पत्थर क्या सोचता है : जापानी लोक-कथा
Patthar Kya Sochta Hai : Japanese Folktale
एक था पत्थर । वह चट्टान के छोर पर अटका हुआ था । अचानक मूसलधार बारिश होने लगी, बिजली कड़कने लगी | और तेज हवाएँ चलने लगीं। तेज हवाओं से पेड़, पत्ते और पत्थर हिलने लगे। वह पत्थर तेज हवा के बहाव से नीचे जा गिरा । एक मुसाफिर वहाँ से निकल रहा था । पत्थर उसके सामने आकर गिरा। उसने गुस्से में पत्थर को उठाया और तेजी से दूसरी ओर उछाल दिया। यह देखकर पत्थर सोचने लगा, 'इससे तो मैं अपने स्थान पर ही ठीक था। वहाँ मेरे संगी-साथी तो थे । यहाँ तो मैं बिल्कुल अकेला हूँ।' वह चुपचाप अपनी मूक पीड़ा पर आँसू बहाता रहा। बारिश, बिजलियों की गड़गड़ाहट बंद हो गई। पत्थर रातभर सोचता रहा कि अब उसका क्या होगा ?
सुबह होने पर एक व्यक्ति वहाँ से गुजरा। उसके पास एक थैला था। थैले में चावल भरे हुए थे। थैले में नीचे से एक पतला सुराख था। उस सुराख में से चावल गिरते जा रहे थे। कुछ चावल उस पत्थर पर भी गिर गए। पत्थर सोचने लगा, 'यदि कोई प्राणी यहाँ आ जाता तो वह मेरे ऊपर गिरे चावलों से अपना पेट भर लेता।' अभी वह यह सोच ही रहा था कि चींटियों की कतार पत्थर पर आ चढ़ी। वह चावलों को अपने मुँह में भरकर वहाँ से ले जाने लगी। यह देखकर पत्थर खुश हो गया। चींटियाँ पत्थर से बातें करने लगीं और चावल अपने-अपने घरों को ले जाने लगीं।
तभी एक व्यक्ति वहाँ से गुजरा, उसने पत्थर को उठाया और पत्थर को उछाल-उछालकर खेलने लगा। इस कार्य में पत्थर व्यक्ति की चोट से लुढ़कता पुढ़कता दूसरी ओर जा गिरता था। पत्थर सोचने लगा, 'मैंने तो इस राहगीर को कोई तकलीफ नहीं पहुँचाई, परंतु फिर भी यह मुझे नुकसान पहुँचा रहा है।' उधर पत्थर उछलने से चींटियों के मुँह का निवाला उनसे छिन गया था। पत्थर को यह देखकर बहुत दुःख हुआ। तभी बिखरे चावलों को चुगने के लिए एक चिड़िया वहाँ आ गई। वह चिड़िया पत्थर के पास से गुजरी। पत्थर उससे बोला, 'चिड़िया बहन, यह आदमी मुझे इधर से उधर फेंक रहा है। इसने चींटियों का भोजन भी उनसे छीन लिया। मुझे तो ऐसे व्यक्ति बिल्कुल पसंद नहीं हैं, जो बेवजह किसी को नुकसान पहुँचाते हैं। मेरा तो यहाँ कोई दोस्त भी नहीं है, जिससे मैं मदद के लिए कहूँ।' यह सुनकर चिड़िया बोली, 'आप ऐसा क्यों, कहते हैं कि आपका कोई दोस्त नहीं है। आज से मैं आपकी दोस्त हूँ। आप चिंता मत करिए, मैं चींटियों के बिल के पास चावल के दाने रख आती हूँ।' पत्थर चिड़िया की बात सुनकर खुश हो गया। चिड़िया चावल के दानों को उठाकर चींटियों बिल के पास रख आई। चींटियों ने उनका धन्यवाद किया और दोनों में दोस्ती हो गई ।
अब तक उस मुसाफिर का पत्थर को बार-बार उछालकर खेलने से मन भर गया था। मुसाफिर छायादार पेड़ के नीचे बैठ गया और अपने साथ लाया खाना खाने लगा।
जिस पेड़ के नीचे वह बैठा था, उस पेड़ पर ही वह चिड़िया रहती थी, जो अब पत्थर की दोस्त बन गई थी। उसने मुसाफिर के खाने में घास-फूस डालकर उसे गंदा कर दिया। यह देखकर मुसाफिर को बहुत गुस्सा आया । उसने उसी पत्थर को चिड़िया की ओर उछाल दिया। पर पत्थर तो किसी को भी बेवजह नुकसान पहुँचाने के पक्ष में नहीं था, फिर वह अपनी मित्र चिड़िया को कैसे नुकसान पहुँचा सकता था। पत्थर ने अपनी दिशा बदली और वह राह में आ रहे एक घुड़सवार राजा से टकरा गया। पत्थर लगने से घुड़सवार राजा का संतुलन गड़बड़ा गया और वह जमीन पर गिर गया। राजा को जब यह ज्ञात हुआ कि वहाँ बैठे मुसाफिर के पत्थर फेंकने के कारण उसे चोट पहुँची है तो उसने अपने सैनिकों से मुसाफिर को गिरफ्तार करने के लिए कहा। मुसाफिर को गिरफ्तार कर लिया गया। यह देखकर चिड़िया मुसकराकर बोली, 'आखिर मेरे दोस्त को नुकसान पहुँचानेवाले व्यक्ति को सजा मिल गई।'
पत्थर उसी स्थान पर पड़ा हुआ था, जहाँ पर उसे मुसाफिर ने फेंका था। पत्थर को उदास देखकर चिड़िया उससे बोली, ‘क्या सोच रहे हो?' पत्थर बोला, 'बहन, मैं यह सोच रहा हूँ कि भला मेरा भी कोई जीवन है? सदा दूसरों के थपेड़े खाता हूँ और एक दिन मिट . जाता हूँ।' चिड़िया बोली, 'आप गलत कह रहे हैं। अरे, आप हैं तो दुनिया है। लोग आपका प्रयोग कर घरों में निवास करते हैं, यहाँ तक कि मंदिर, मसजिद, गुरुद्वारे और चर्च सबकी दीवारों में आप हैं। आप तो पूरे विश्व के सामने धर्मनिरपेक्षता का बहुत खूबसूरत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। आप से तो "उन देशों और व्यक्तियों को शिक्षा लेनी चाहिए, जो अपने-अपने धर्म का नारा लगाकर व्यक्तियों का खून बहाते हैं। आप कण-कण में हैं, धूल का रूप आप हैं, शिला का रूप आप हैं और देवताओं का निवास भी आप हैं।'
चिड़िया की बातें सुनकर पत्थर झूम उठा। वह बोला, 'हाँ नन्हीं चिड़िया, आज तुमने मुझे इस बात का एहसास दिला दिया है कि मेरा जीवन बहुत महत्त्वपूर्ण है। अब मैं कभी ऊटपटाँग बातें नहीं सोचूँगा, हमेशा अच्छी बातें सोचूँगा और नेक काम करूँगा।' यह सुनकर चिड़िया ने अपने पंख फड़फड़ाए और बोली, 'आपकी यह नन्हीं दोस्त हर समय आपके साथ रहेगी।' पत्थर यह सुनकर मुसकरा दिया। पत्थर को ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो चिड़िया रूपी कलाकार ने उसमें प्राण फूँक दिए हों।
(साभार : रेनू सैनी)