पत्ता भर भत्ता : बुंदेली लोक-कथा

Patta Bhar Bhatta : Bundeli Lok-Katha

एक गाँओं में दो भइया रहत थे। बड़े को नाम कुन्दन, छोटे को नाम नन्दन थो। बे भोतई गरीब हते। बे गाँओं में मेहनत मजूरी करके अपनो पेट भरत थे। एक दिना कुन्दन ने नन्दन से कई, “भइया जा गाँओं में, दिनों-दिन हमरी भूँको मरने की नोबत आ रई है। में कल्लई दूसरे गाँओं काम ढूँढबे जाहूँ।”

दूसरे दिना कुन्दन जोरे के गाँओं में जाके जोर-जोर से चिल्लाके कहन लगो, "मोहे कोई काम से लगा लो... भइया कोई काम से लगा लो...।" बाको ऐरो सुनके गाँओं पटेल ने बाहे बुला लओ। पटेल ने बासे पूछी, "का नाम हे तेरो, काँ से आ रओ हे ओर का काम करहे ?” कुन्दन ने अपनो नाम-पतो सब बता दओ ओर कई, “जो कछु भी काम बताहो बो में करहूँ।” अब पटेल ने कई, "साल भर काम करने के बाद, पाँच सौ रुपैया मजूरी के देहूँ ओर हर दिन खाबे के लाने पत्ता भर भात मिलेगो पर एक सरत है, अगर अपने तूने अपने मन से साल भर के भीतर काम छोड़ो, तो तेरे नाक-कान काट लेहूँ ओर मजूरी भी न देहूँ । ओर अदि में तोहे झाँ से भगाऊँ, तो तू मेरे नाक-कान काट लइए ओर बदले में मोसे हजार रुपैया लइए।” कुन्दन ने लालच के मारे बिना सोचे समझे पटेल की सरत मान लई ।

अब बो दिन भर काम करे ओर दिन डूबे पटेल के बगीचा में से कभी आम को पत्ता तो कभी बिही को पत्ता तोड़ के ले जाए। पटेल के घर से बाहे पत्ता भरके भात मिल जाए। छोटे-छोटे पत्ता पे जरा सो भात बने, जाके मारे बो भूँको मरन लगो । जेंसे-तेंसे कछु दिन बाने काम करो। जब भूँक सहन नहीं भई तो बाने पटेल से कई, “पटेल सब में जाओ हूँ।” पटेल ने बाहे सरत याद दिलाई । कुन्दन बोलो, “पटेल साब पेट कटने से अच्छो हे अपने नाक-कान कटा लऊँ।” पटेल ने बाके नाक-कान काट लए।

कुन्दन रोत-रोत बापस अपने घर पोंहचो। नन्दन ने पूछी, “काय भइया तोरे नाक-कान कोन ने काट लए ?” कुन्दन ने पूरी कहानी सुनाई। नन्दन हे आओ गुस्सा, बाने कई, “भइया जेने तेरे नाक-कान काटे हैं, में बाके सुई नाक-कान काटके लाहूँ।”

दूसरे दिना नन्दन बई गाँओं पोहोंचके, गली-गली चिल्लान लगो, “काम लगा लो... कोई मोहे काम लगा लो...!” पटेल ने आबाज सुनी तो खुस हो गओ की एक ओर मुरगा फँसो । पटेल ने बाहे बुलाओ ओर अपनी सरत बताई। नन्दन ने बाकी सब बातें तुरतई मान लई ।

दूसरे दिना पटेल के खेत में काम करने के बाद, दिन डूबे नन्दन पटेल के घर केरा को पत्ता लेके पोहोंच गाओ। पटेल हे बाहे केरा के पत्ता भर भात देनो पड़ो। नन्दन की पहचान एक बगीचा बारे से थी, बो बासे रोज एक केरा को पत्ता लिआए। पटेल से भात लेके खुद जी भर के खाए ओर बचो भात बगीचा बारे गोई के लाने ले जाए। बो भी खाके खुस हो जाए ।

एक दिना का भओ, पटेल के इते मिजबान आए। पटेल ने नन्दन हे बुलाओ ओर कई, “तू झल्दी चाय बनाके ला ।" नन्दन ने कई, “केंसे बनाऊँगो ?” पटेल ने कई, “अरे मूरख ! घर में आगी बारके बना लइए।”

नन्दन घर गओ ओर बाने घर में आगी लगा दई। देखत देखत पूरो घर बर गओ । गाँओं भर में हल्ला मच गओ की पटेल के घर में आगी लग गई है। सबरे दोड़े। उनने आगी बुझाई। पटेल ने नन्दन हे खूब डाँटो । नन्दन कई, "तुमने तो कई थी घर में आगी बारके चाय बना लइयो ।”

पटेल को घर तो बर गओ । पर पटेल नन्दन हे भगा भी नई सके, नईं तो बो पटेल के नाक-कान काट लेहे। ऊपर से हजार रुपैया धरबा लेहे। पटेल ने सोची जो मोहे बरबाद करके छोड़ हे, जासे केसे पिण्ड छुड़ाऊँ ? रात में बाने पटेलन से कई, “अपन दोई चुपचाप कछु दिना के लाने तेरे मायके चले चलत हैं। तब तक जो नन्दन हेरान होके काम छोड़के भग लेहे। रस्तो लम्बो हे खाबे-पीबे, ओबे-बिछाने को सामान पेटी में रख लईयो ।” जा बात नन्दन ने सुनई। रात में बो पेटी में चुपके से घुसके बेठ गओ ।

पटेल ने आधी रात में पेटी मूद पे धरी ओर पटेलन हे संग लेके निकर गओ । गेल में बाने पटेलन से कई, "पेटी तो भोतई गरई लग रई हे। जामे का धरो हे ?” पटेलन ने कई, “कछु नईं थोड़ो सो खाबे-पीबे को सामान हे ।” नन्दन ने पेटी में बेठे-बेठे खीर-पुड़ी, साग-सब्जी सब खा लई ।

पटेल पेटी धरे-धरे बिट्टया गओ तो बाने एक जिग्गहा सुस्ताबे काजे पेटी उतारी। बाहे खोली तो बामे से नन्दन निकरो। पटेल बाहे देखके मनई-मन भोत गुस्सा भओ पर बासे कछु बोलो नई। पटेल ने पटेलन से कई, “ अपन झई रुकहें ।” पटेलन ने कई, “अपन सोहें काँ ?” पटेल ने कई, “जा कुआ की पाट पे सो जेहें ।”

तीन कुआ की पाट पे सो गए। नन्दन समझ गओ थो, जामे कछु पटेल को कपट हे । बाने धीरे से उठके अपनी चद्दर पटेलन हे उड़ा दई ओर बाकी चद्दर खुद ओड़के सो गओ । सकारे उठके पटेल ने नन्दन के धोके में पटेलन हे कुआ में धका दई । पटेलन बचाओ-बचाओ चिल्लाई तो पटेल घबरा गओ । नन्दन भी जग गओ । पटेल ने बासे कई, “में तुमरे हाथ पाओं जोड़त हूँ, पटेलन हे कुआ में से निकार दे ओर बाके बदले में चाहे तो तू मेरे नाक-कान काट लइए।" बो रोन-गान लगो ।

नन्दन रस्सी बाँधके कुआ में कूदो ओर पटेलन हे कुआ में से निकार लाओ। पटेल पानी-पानी हो गओ । नन्दन से बोलो, "भइया तू मेरे नाक-कान काट ले, हजार रुपैया ले ले ओर मोहे माफी दे दे।" नन्दन ने कई, "पटेल साब तुमरे नाक-कान काटने की जरूरत नईहाँ। तुमने अपनी करनी की सजा भोग लई है। अब आगे से कोई को बुरो मत चेतियो, नईं तो तुमरो ओर भी बुरो हुए।” पटेल ने सों खा लई ।

गाँओं लोटके पटेल ने नन्दन, कुन्दन दोई भाइयों हे काम पे लगा लए।

(साभार : प्रदीप चौबे, महेश बसेड़िया)

  • बुंदेली कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां