पतझड़ की हवा : अमीन कामिल (कश्मीरी कहानी)
Patjhad Ki Hawa : Amin Kamil (Kashmiri Story)
अब किसी को पता नहीं कि वह कहाँ गया और फिर इतना अवकाश किसे है कि उसके
संबंध में जांच पड़ताल करता फिरे। बूढ़ा खूसट ! शैतान की आंत जैसी आयु !
ऊपर से बातूनी। मेरे बच्चे कभी-कभी उसे याद करते हैं। बच्चों को क्या
चाहिए, उन्हें तो उसकी बकवास सुनने में ही आनंद आता था।
जिस दिन वह हमारे घर आता पूरे दिन का सत्यानाश। कोई भी मित्र मेरे घर नहीं
आ सकता था। उसे देखते ही उल्टे पांव वापस चला जाता। ऐसा कौन था जिसका उसने
दिमाग न चाटा हो ! बात-बात पर कहता, ‘‘सुनो इतिहास
सुनाता हूं।’’
नाम था अज़ीम बाबा, पर पीठ पीछे लोग उसे
‘बकवासी’ कहते थे। एक दिन वह हमारे घर आया। वह दिन
उसका हमारे घर का अंतिम दिन था। उसी दिन वह घटना घटी, जिसका मुझे आज तक
दुःख है। वास्तव में जब किसी चीज का समय होता है, तब वैसी ही परिस्थितियां
हो जाती हैं। तभी से उसकी चर्चा सुनने में नहीं आई।
पतझड़ के दिन थे... आकाश में सफेद बादलों की चादर सी फैली थी। बादलों में
से सूर्य धीरे-धीरे अस्त हो रहा था। मैं कार्यालय से आकर आंगन में
कुड़क-मुर्गी की पूछ में झाड़ू बांध रहा था।
कहते हैं कि कुड़क मुर्गी की पूछ में झाड़ू बांधने से उसका कुड़कपन समाप्त
हो जाता है। मेरे झाड़ू बांधने से मुर्गी बहुत चिल्ला रही थी। इससे भी
अधिक हंगामा घर के दूसरे मुर्गे ने मचा रखा था। पता नहीं उसे क्या लग रहा
था, संभावतः यह कि मैं मुर्गी को खा गया। मैं यही विचार कर रहा था कि बाहर
से मेरे बच्चों का शोर सुनाई पड़ाः
‘‘अज़ीम बाबा- देखो अज़ीम बाबा
आए।’’ मेरे तो प्राण ही निकल गए। झाड़ू बंधी मुर्गी
को घुटनों में दबाए, मैं स्तब्ध रह गया। अज़ीम बाबा गेट पर आ गया। श्वेत
बर्फ जैसी घनी दाढ़ी, भरे-भरे सेब जैसे लाल कपोल, लंबा-चौड़ा हृष्ट-पुष्ट
शरीर। पता नहीं कितनी आयु थी। आज-कल किसकी इतनी आयु होती है ! कहां होती
है ?
‘‘बब्बा-बब्बा ! अज़िम बुद बाबा आ
दए।’’ जाना के अनुसार वह यह मेरे लिए शुभ समाचार था।
‘‘ये मेरे अज़ीम दादा
है।’’ गुल्ला गर्भ से बोला। उंह
–बले आए तुम-’’ जाना को गुल्ला की बात नहीं
पची।
‘‘मैं तुम दोनों का दादा हूं। ’’
अज़ीम बाबा ने सिर पर हाथ फेरा। होठों ही होठों में मुस्कुराए,
‘‘सबका दादा हूं’’ उन्होंने मेरी
ओर देखा। ‘‘सो तो है ही। सलाम
अलैकुम’’ मैं मुर्गी छोड़कर शक्तिहीन सा उठा। मुख पर
झूठी प्रसन्नता प्रकट करते हुए बोला, ‘‘आज बहुत दिनों
बाद दिखाई दिए- कारण ?’’
‘‘स्वास्थ्य ठीक नहीं था।’’ उसने
दाहिने हाथ से सिर को सहलाया, जिस पर समय ने अपनी छाप छोड़ रखी थी।
‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो ?’’
उसने पहले मेरी ओर फिर कुड़क मुर्गी की ओर देखा, जो झाड़ू बांधने के कारण
छटपटा रही थी।
‘‘वह क्या कहते हैं’’ मैंने
शुष्कता से उत्तर दिया, कुड़क मुर्गी थी। झाड़ू बांधी
है।’’
‘‘अच्छा, आज के पुरुष यहाँ तक पहुंच
गए।’’ अज़ीम बाबा ने पत्थर पर बैठते हुए कहा,
‘‘कुड़क मुर्गी को झाड़ू बांधना प्राचीन काल में होता
था। सुनो इतिहास सुनाता हूं।’’ उसने अपनी बकवास आरंभ
की, ‘‘सुल्तान शहाबुद्दीन कश्मीर का एक महान पुत्र
था, इतना वीर की काबुल, बदख्शां, गज़नी, कंधार, हरात, तिब्बत मुलतान और
लाहौर विजय करते-करते दिल्ली की ओर चल पड़ा। फ़िरोज़ शाह तुगलक वहाँ का
सम्राट् था।’’ अज़ीम बाबा ने अपनी पगड़ी ठीक की मानो
वही सम्राट् शहाबुद्दीन हो।
इतने में ऊपर से जंगी जहाज की भाँति चील की छाया पड़ी। मुर्गे ने सावधान
रहने का संकेत दिया और मुर्गी के बच्चे चीं-चीं करते हुए छाया की ओर भागे
मुझे भी बात टालने का अवसर मिल गया।
‘‘चलिए अंदर बैठते हैं। मेरी पत्नी को पता नहीं,
अन्यथा वह दौड़ी-दौड़ी आती’’
‘‘चलो यह भी ठीक है।’’ उसने चील
पर क्रोधित दृष्टि डाली।
‘‘आप चलिए। मैं लघुशंका करके आता
हूं।’’
‘‘मैं अज़ीम बाबा के छात
बैथूंगी।’’ जाना ने गुल्ले को चिढ़ाया।
‘‘मैं भी बैठूंगा। मैं गोद में
बैठूंगा।’’
‘‘होप्प।’’ जाना ने गुल्ले की ओर
मुंह फुलाकर कहा।
‘‘तुम्हारी नाक बहती है, मेरी
नहीं।’’ गुल्ले ने उसकी कमजोरी पकड़ी।
‘‘नहीं ?’’ जाना जल्दी से आस्तीन
से नक साफ करने लगी, ‘‘
तुम्हाली-तुम्हाली।’’ जाना की समझ में बस इतना ही
आया, ‘‘अभी मैं तेली तांद तात
लूंगी।’’
हमारे पास जगह की बहुत तंगी थी। नीचे एक दलान जिसमें एक ओर रसोई और बैठने
का स्थान, दूसरी मंजिल पर छोटे-छोटे दो कमरे सोने के लिए हैं। दूसरों को
ऊपर बिठाते हैं पर अज़ीम बाबा प्रत्येक का दादा था। अतः मैं सीधा दालान
में गया।
‘‘ अज़ीम बकवासी आ गया।’’ मैंने
पत्नी से कहा,‘‘ अब सारी रात बरबाद हो
जाएगी।’’
‘‘मैंने उन्हें अंदर आते देख लिया- इसी कारण समावार
में पानी डालकर रखा है।’’
‘‘कहते हैं अज़ीम बकवासी’’
गुल्ले को स्वयं ही हंसी आई।
‘‘चुप।’’ मैंने गुल्ले को डांटा।
‘‘ऐसा नहीं कहते, मैं जीभ काट
डालूंगा।’’
‘‘तातो जीब, तातो।’’ पत्नी ने
बच्चो की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘सोचे समझे बिना
बकवास करते रहते हो।’’ इतने में अज़ीम बाबा के चलने
की आहट सुनाई दी। हम तुरन्त चुप हो गए। मैं हुक्के में तंबाकू भरने लगा और
मेरी पत्नी समावार में फूंक मारने लगी।
अज़ीम बाबा जितना पुरुषों को बुरा लगता उतना ही महिलाओं को प्रिय। क्योंकि
वह कभी-कभी स्त्रियों की वीरता की कहानियां सुनाता या फिर नारी पुरुषों को
प्रभावित करने के लिए हमारे अतीत और हमारे अस्तित्व की कहानी सुनाता, जैसे
कि हम उन्हें जानते ही नहीं।’’
अज़ीम बाबा जाना और गुल्ले के बीच में बैठ गए। सिर पर पगड़ी (जो पुराने
ढंग से बंधी थी) उतारकर नीचे रखी और अपने श्वेत बालों पर हाथ फेरने लगे।
‘‘क्या हाल है ? ओह ! मेरी तो पुत्री पर दृष्टि ही
नहीं पड़ी’’ उन्होंने हंस कर कहा।
‘‘अस्सलाम अलैकुम ! मैंने सलाम किया था पर आपने सुना
नहीं।’’ उसने सलाम किया या झूठ बोला, मैंने नहीं
सुना।
‘‘अज़ीम दादा’’ जाना को गोद में
चढ़ने का अवसर मिल गया।
‘‘अज़ीम दादा’’ गुल्ला उनके बगल
में बैठ गया।
‘‘पुत्री तुम इतनी दुर्बल क्यों हो रही हो
?’’ उसने मेरी पत्नी से कहा,
‘‘दूध मट्ठा खूब खाना चाहिए। सुनो स्त्रियां कैसी
होती थीं। इतिहस सुनाता हूं।’’
‘‘सुन रही हूं।’’ मेरी पत्नी
वास्तव में ध्यानपूर्वक सुनने लगी।
रानी जोशी मती एक कश्मीरी महिला थी।’’ उसने कहना आरंभ
किया मुझे उस कहानी या उस इतिहास में कोई रूचि नहीं थी। मैं खिड़की के
बाहर एक पेड़ की शाखाएं गिनने लगा और विचारने लगा कि ईंधन महंगा हो गया है
अब गुजारा कैसे होगा ? अज़ीम बाबा कह रहा था,
‘‘इतिहास सुना रहा हूं संसार में जो नारी सर्वप्रथम
सिंहासन पर आसीन हुई, वह यही थी। यहाँ से निकलकर भारत पर आक्रमण किया तथा
मथुरा में श्रीकृष्ण से युद्ध किया।’’
उसने उत्तेजना से इस प्रकार मुठ्ठियां बांधी, मानो वह स्वयं रानी जोशी की
सहायता करने निकला हो।
‘‘उसने श्रीकृष्ण को दिखा दिया कि कश्मीरी नारी केवल
कुड़क मुर्गी की पूछ ही नहीं बांधा करती, आक्रमण भी कर सकती
है।’’
मेरी पत्नी ने मेरी ओर दृष्टि डाली, ‘‘सुन रहे
हो।’’
मैंने हुक्के का तीव्र कश लिया,
‘‘फुर्र।’’
‘‘जयमति तहते थे ?’’ जाना ने
अपनी प्रबुद्धता का परिचय दिया।
‘‘जयमति’’ गुल्ला ने चिढ़ाया,
‘‘जय शो मती।’’
मैंने बात को टालने का प्रयास किया ताकि जोशमति से छुटकारा मिले।
‘‘क्या कष्ट था तुम कह रहे कि तुम बीमार
थे।’’
‘‘हाँ, मेरा पेट ठीक नहीं था। पहले साधारण भोजन किया
करते थे, इस कारण शक्ति भी हुआ करती थी, अन्यथा
सोचो।’’ उसने फिर बकवास आरंभ की।
‘‘हाथी को मदिरा पिलाकर उनमादी कर दिया गया, उसके
पश्चात उसे एक कश्मीरी नवयुवक पर छोड़ दिया, ताकि वह उसे चीर कर रख दे।
ध्यापूर्वक सुनो, इतिहास सुना रहा हूं। वह हाथी पगला गया पर नवयुवक का
साहस देखो। वह नवयुवक कमर से तलवार निकालकर उस पर टूट पड़ा और हाथी का
सारा नशा उतार दिया। यह एक कश्मीरी नवयुवक था। इतिहास सुना रहा
हूं।’’ उसने कोई नाम बताया पर मैंने नहीं सुना। किस
प्रकर मैं सब्जी वालों का सामना करूंगा। ग्यारह रूपय का ऋणी हूं। वेतन
चुटकी में चट हो गया।
‘‘मैं भी हाथी तो मालूंदी।’’
जाना ने गुल्ला को अपनी वीरता दिखाई। ‘‘एत ही पटख में
दिला दूंदी।’’
‘‘वह हाथी कहाँ है ?’’ गुल्ले ने
जाना को चिढाया, ‘‘चूल्हे में से जो चूहा निकलता है,
मैं उसी को मारूंगा। गुल्ले ने हाथ नचाकर कहा।
(सामवारः एक विशेष प्रकार का बर्तन जिसमें कश्मीरी, नमकीन चाय और क़हवा
बनाते हैं।)
अनुवाद : मोहम्मद ज़मां आजुर्दा