पशुओं और पक्षियों की लड़ाई : अफ्रीकी लोक-कथा

Pashuon Aur Pakshiyon Ki Ladai : African Folk Tale

एक बार की बात है कि एक मुर्गा और एक हाथी पास पास रहते थे। एक दिन हाथी ने मुर्गे की झोंपड़ी का डंडा तोड़ दिया तो मुर्गे ने भी बदले में हाथी की झोंपड़ी में कूड़ा कबाड़ फेंक दिया।

हाथी ने जब अपने घर में इतना सारा कूड़ा कबाड़ देखा तो वह आग बबूला हो गया और बोला — “ज़कारा, इस बात का फैसला तो अब लड़ाई से ही होगा। तुम ऐसे नहीं मानोगे। ”

मुर्गा बोला — “ठीक है ठीक है, पर लड़ाई से पहले हम लोग अपने अपने सम्बन्धियों को इस लड़ाई के बारे में तो बता दें। ”

सो हाथी ने जंगल के सभी जानवरों को और मुर्गे ने जंगल के सभी पक्षियों को कहला भेजा कि उन दोनों में लड़ाई होने वाली है और सारे जानवर और पक्षी लड़ाई के लिये तैयार हो जायें।

दोनों ओर से लड़ाई की पूरी पूरी तैयारियाँ हो गयीं। जानवरों का कप्तान बना भेड़िया और पक्षियों की कप्तान बना चील।

चील ने शुतुरमुर्ग को पशुओं की सेना को देखने के लिए भेजा। इसी समय भेड़िये ने भी यही सोचा कि पक्षियों की सेना की जाँच की जाये और दोनों एक दूसरे की तरफ चल दिये।

भेड़िया बोला — “कहो जिमिना, क्या तुम्हारी सेना तैयार है?”

शुतुरमुर्ग बोला — “बिल्कुल, और तुम्हारी?”

भेड़िया बोला — “हमारी भी। ”

शुतुरमुर्ग बोला — “ठीक है, तुम अपने साथियों को बोलो और मैं अपने साथियों को जा कर बोलता हूँ कि हम सब लड़ाई के लिये तैयार हैं। ” और शुतुरमुर्ग वापस अपनी सेना की ओर चल दिया।

जैसे ही शुतुरमुर्ग वापस जाने के लिए मुड़ा तो भेड़िये ने देखा कि शुतुरमुर्ग की टाँगों पर तो बहुत माँस है। उस माँस को देख कर उसके मुँह में पानी भर आया।

वह तुरन्त बोला — “जिमिना रुको, क्यों न पहले हम तुम आपस में ही लड़ लें। हममें से जो जीतेगा वह जीत जायेगा। ”

शुतुरमुर्ग बोला — “ठीक है, पहले तुम मुझे तीन बार मारो फिर मैं तुम्हें तीन बार मारूँगा। ”

भेड़िया अपनी जगह से उठा और उसने शुतुरमुर्ग पर तीन बार वार किया।

“अब मेरी बारी है। ” कह कर शुतुरमुर्ग ने अपनी चोंच से भेडिये को नोचा और अपने पंजे भी मारे।

भेड़िया परेशान हो गया और बोला — “तुम्हारी बारी अब खत्म हो गयी। ”

शुतुरमुर्ग बोला — “नहीं, अभी मेरी बारी खत्म कैसे हो गयी, यह तो अभी एक ही बार हुआ है। अभी तो मेरे दो बार और बाकी हैं। ”

कह कर वह उड़ा और अपनी चोंच से भेड़िये की दोनों आँखें निकाल लीं। इसके बाद वे दोनों अपनी अपनी सेनाओं में चले गये।

जानवरों ने जब भेड़िये को अन्धा देखा तो पूछा — “भाई भेड़िये, यह क्या हुआ?”

भेड़िया बोला — “वे लोग हमारे साथ अन्याय कर रहे हैं। देखो न उन्होंने मेरे साथ कैसा बरताव किया है। ”

यह देख कर सभी जानवरों को बडा, गुस्सा आया। लड़ाई का ऐलान कर दिया गया और दोनों सेनाएँ आगे बढ़ने लगीं।

चील आगे बढ़ा, उसने मुर्गे को सलामी दी और मुर्गी के कुछ अंडे उठा कर हाथी के सिर पर दे मारे और चिल्लाया — “देखो देखो, हाथी का सिर फूट गया। हाथी का सिर फूट गया। ”

जब हाथी ने यह सुना तो अपनी सूँड़ से अपना सिर छू कर देखा और बोला — “हे भगवान, अभी तो मेरा सिर सलामत है। ”

उसके बाद चील ने एक रस्सी ली और हाथी के आगे फेंकता हुआ बोला — “देखो देखो, हाथी की सूँड़ कट गयी, देखो हाथी की सूँड़ कट गयी। ”

जानवरों ने उस रस्सी को हाथी की सूँड़ समझा और वहाँ से उलटे पैरों भाग खडे, हुए। उन जानवरों के पीछे पीछे और जानवर भी भाग लिये। लड़ाई का मैदान जानवरों से खाली हो गया। बस फिर क्या था मुर्गा जीत गया और हाथी हार गया।

लड़ाई के बाद मुर्गा अपने घर वापस गया। उसने चील को बुलाया और कहा — “शैफो,, मैं तुम्हें इस लड़ाई में किये गये काम के लिए कुछ इनाम देना चाहता हूँ। वह यह कि आज के बाद जब भी हमारी पत्नियाँ बच्चे देंगी तो तुम एक बच्चा हर परिवार से ले सकते हो यही तुम्हारा इनाम है। ”

अक्लमन्दी से काम लेने पर अपने से ज़्यादा ताकतवर दुश्मन को भी हराया जा सकता है इसलिये ताकतवर दुश्मन के सामने ताकत से नहीं बल्कि अक्लमन्दी से ही काम लेना चाहिये। चील ने अक्लमन्दी से काम लिया तो बड़े बड़े जानवरों को भी हरा दिया।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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