पर्वतों का संत : अमरीकी लोक-कथा

Parvaton Ka Sant : American Lok-Katha

एक बार अमेरिका में एक पहाड़ी पर एक शिल्पकार आया । उसने पहाड़ की चट्टानों को काटकर एक बहुत ही सुंदर मूर्ति बनाई। वह मूर्ति बहुत ही सौम्य, मासूमियत और भोलेपन की प्रतीक थी। जो भी उस मूर्ति को देखता, वह देखता रह जाता। समय बीतता रहा। शिल्पकार काल की गोद में सो गया, परंतु वह मूर्ति यथावत् बनी रही। अब उस मूर्ति के पास एक छोटा-मोटा गाँव बस गया था। पहाड़ कट गए थे। उस पर्वत पर बनी मूर्ति को देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आने लगे थे। उस मूर्ति की सादगी देखकर लोग चकित रह जाते। धीरे-धीरे वह मूर्ति ' पर्वतों का संत' नाम से प्रसिद्ध हो गई। उस गाँव में एक छोटा सा बालक जॉन रहता था। वह अपने मकान की खिड़की से उस विशाल मूर्ति को देखता और माँ से पूछता, 'माँ! यह चेहरा किसका हो सकता है? यह हमेशा मुसकाराता क्यों नजर आता है? क्या सचमुच इस दुनिया में ऐसा कोई चेहरा होगा ?' जॉन की भोलेपन से भरी बातें सुनकर माँ उसको गोदी में भर लेती और कहती, 'बेटा, सचमुच इस पर्वत के संत जैसा व्यक्ति इस दुनिया में कहीं है। जब वह आएगा तो सबकी रक्षा का भार अपने कंधों पर ले लेगा। सबकी मदद करेगा और ईमानदारी व मेहनत के रास्ते पर चलेगा। इस चट्टान पर उस व्यक्ति की ही मूर्ति बनी है, ताकि लोग उसको पहचान लें।' माँ की बात सुनकर जॉन बोला, 'माँ! पर वह भला मनुष्य यहाँ कब आएगा ?''बेटा, यह तो पता नहीं, पर वह यहाँ आएगा अवश्य ।' केवल जॉन और उसकी माँ को ही नहीं, बल्कि पूरे गाँव को यह विश्वास था कि पर्वत पर उकेरी गई आकृति जैसा देवतुल्य व्यक्ति गाँव में अवश्य आएगा।

एक दिन गाँव में एक ऐसा व्यक्ति आया, जो पहले इसी गाँव में रहता था । व्यापार के सिलसिले में वह शहर चला गया था। अब वह बहुत सारी दौलत इकट्ठी कर वापस लौटा था। सभी गाँववासी यह चर्चा करने लगे कि हो न हो, यह अमीर आदमी ही पर्वतों का संत है। जैसे ही वह व्यक्ति अपने सोने के रथ पर सवार होकर आया तो गाँववासियों ने देखा कि उस व्यक्ति की शक्ल पर्वतवाले व्यक्ति से हू-ब-हू तो नहीं, पर थोड़ी- बहुत मिलती थी। सभी ने उसे ही वह पवित्र आत्मा समझा । लेकिन कुछ ही समय बाद गाँववालों को यकीन हो गया कि वह अमीर व्यक्ति पर्वतों का संत नहीं हो सकता, क्योंकि वह बहुत स्वार्थी था और लोगों को सताता था। इसके बाद फिर से गाँववासी किसी ऐसे व्यक्ति की प्रतीक्षा करने लगे, जो पर्वतों के संत से मिलता हो। एक दिन गाँव में एक देशभक्त सेनापति आया। लोगों ने उसका स्वागत किया। वह युद्ध जीतकर आया था और उसके मुख पर विजय की रेखा स्पष्ट देखी जा सकती थी । उसकी शक्ल भी थोड़ी-बहुत पर्वतों के संत से मिलती थी। लेकिन कुछ ही समय बाद जॉन को यकीन हो गया कि वह सेनापति भी पर्वत पर उकेरे गए व्यक्तित्ववाला नहीं है। वह बेहद घमंडी था। इसी बीच समय बीतता रहा और जॉन जवान हो गया। उसकी माँ की मृत्यु हो गई। एक दिन फिर गाँव में नगाड़े बजे और एक बहुत बड़े नेता वहाँ पधारे। लोगों में फिर चर्चा चली कि वह नेता पर्वतों का संत जैसा दिखता है। उस नेता ने आते ही भाषण देने शुरू कर दिए। वह केवल लोगों से वादे करता था, कभी उनको पूरा नहीं करता था। शीघ्र ही लोगों को पता चल गया कि वह नेता भी पर्वतों का संत नहीं है। समय आगे खिसकता रहा और जॉन प्रौढ़ सा दिखने लगा। लेकिन आज भी उसे पर्वतों के संत की प्रतीक्षा है।

जॉन को गाँव के सभी लोग बहुत पसंद करते थे। जॉन भोला, ईमानदार और मेहनती था । वह सबके काम करने के लिए आगे रहता था। हर किसी की कठिनाई में स्वयं कष्ट सहकर कार्य करता था ।

एक दिन फिर गाँव में चर्चा उठी कि एक कवि यहाँ पधारे हैं, जो बिल्कुल पर्वतों का संत जैसे दिखते हैं। जॉन भी उत्साह से कवि को देखने के लिए आया। जॉन ने उसकी कविताएँ पढ़ीं। उसकी कविताओं में मानवता का संदेश था। जॉन को लगा कि शायद यह ही पर्वतों का संत है। लेकिन धीरे-धीरे कवि की असलियत भी सामने आ गई। वह स्वभाव से अपनी रचनाओं के बिल्कुल विपरीत था। उसे केवल नाम और प्रसिद्धि की भूख थी।

इसी तरह वर्ष-दर-वर्ष बीतते रहे। अब जॉन बूढ़ा सा दिखने लगा था। जॉन सच्चे हृदय से गाँववालों की मदद करता था। सबसे प्रेम करता था और बच्चों को कहानियाँ सुनाता था। एक दिन जॉन बच्चों से बोला, 'आओ आज तुम्हें पर्वतों का संत दिखाकर लाता हूँ।' सभी बच्चे उत्सुकता से (बूढ़े जॉन के साथ चल पड़े। बचपन के बाद आज कई सालों बाद जॉन यहाँ आया था। जैसे ही बच्चे पर्वत पर पहुँचे तो पर्वत पर उकेरे गए चित्र को देखकर दंग रह गए। बहुत ही सुंदर कलाकृति थी। बच्चे कभी पर्वतों का संत को देखते तो कभी जॉन को। यह देखकर जॉन बोला, 'क्या हुआ प्यारे बच्चो ? तुम बार - बार पर्वतों के संत को देखकर मेरी ओर क्यों देखते हो ?' यह सुनकर डेविड नामक एक बालक बोला, 'जॉन अंकल यह पर्वतों के संत तो हू-ब-हू आप जैसे दिखते हैं।' इसके बाद सभी बच्चे एक स्वर में बोले, 'हाँ, हम भी यही देख रहे हैं। यह पर्वत पर उकेरी गई प्रतिमा बिल्कुल आप का रूप है।' यह सुनकर जॉन हैरानी से बोला, 'भला यह कैसे हो सकता है? मेरी माँ तो कहती थी कि पर्वत पर उकेरी गई यह प्रतिमा किसी पवित्र आत्मा की है, जो बेहद नेक होगा और सबका भला करेगा।' इस पर डेविड बोला, 'अंकल, आप से अच्छा और नेक भला कौन हो सकता है? आप हर किसी की मदद के लिए सदा तैयार रहते हैं। आपने पूरा जीवन लोगों की भलाई में बिता दिया।' यह सुनकर जॉन के बूढ़े चेहरे पर मुसकराहट आ गई। अब तो वह पर्वतों का संत हू-ब-हू जॉन जैसा लग रहा था।

आज भी पहाड़ पर उकेरी गई वह आकृति मौजूद है और 'पर्वतों का संत जॉन' के नाम से जानी जाती है।

(साभार : रेनू सैनी)

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