पारिवारिक व्यक्ति की चिंताएँ : फ़्रेंज़ काफ़्का

कुछ लोग कहते हैं कि 'ओडराडेक' शब्द सलावॉनिक मूल का है; और इसी आधार पर इसका पता लगाने की कोशिश करते हैं। कुछ अन्य लोगों का मानना है कि यह जर्मन मूल का शब्द है, इस पर सिर्फ सलावॉनिक प्रभाव है। दोनों व्याख्याओं की अनिश्चितताओं के कारण व्यक्ति निष्पक्षता के साथ यह मान लेता है कि दोनों में से कोई भी सही नहीं है, विशेषकर दोनों में से कोई भी उसका तर्कपूर्ण अर्थ नहीं दे पाता है।

निश्चित रूप से कोई भी इस प्रकार का अध्ययन नहीं करेगा यदि 'ओडराडेक' नामक प्राणी का कोई अस्तित्व ही नहीं है तो। पहली नजर में तो यह तारे के आकार की एक समतल लटाई थी, जिसपर धागा लपेटा जाता था और वास्तव में इस पर धागे के निशान प्रतीत होते हैं । निश्चिंत होने के लिए वे धागे के पुराने, टूटे हुए टुकड़े थे, जो एक- दूसरे से उलझ गए थे और उनमें गाँठें पड़ गई थीं। ये अनेक प्रकार के एवं विभिन्न रंगों में थे। लेकिन यह तो सिर्फ एक लटाई है, जिसमें तारे के मध्य में अनेक पट्टे लगे हुए थे तथा इसके समकोण पर एक दूसरा लट्ठ लगा हुआ था। एक ओर इस बाद वाले लट्ठ एवं दूसरी ओर एक तारे के एक बिंदु की सहायता से यह पूरी चीज इस प्रकार सीधी खड़ी हो सकती थी मानो वह दो टाँगों पर खड़ी है।

कोई भी यह विश्वास करने के लिए प्रेरित होगा कि इस प्राणी की कभी । स्पष्ट आकृति रही होगी, जो आज खंडित अवशेष है। फिर भी यह मामला ऐसा प्रतीत होता है, कम-से-कम ऐसे कोई संकेत नहीं हैं । कहीं भी अधूरा या खंडित सतह नहीं है, जिससे इस तरह की किसी बात का पता चले। पूरी चीज बिल्कुल अर्थहीन प्रतीत होती है, लेकिन अपनी तरह से पूर्ण रूप से तैयार । किसी भी मामले में, निकट जाँच असंभव है, क्योंकि 'ओडरारेक' अद्भुत रूप से फुरतीला है और कभी भी इसे पकड़ा नहीं जा सकता है।

बारी-बारी से वह अटारी, सीढ़ी, लॉबी या स्वागत कक्ष में छुप जाता है । कभी-कभी तो महीनों वह दिखाई नहीं पड़ता है। तब यह मान लिया जाता है कि वह किसी अन्य घरों में चला गया है। लेकिन हमेशा वह पूरी निष्ठा के साथ वापिस फिर हमारे घर में आ जाता है । बहुत बार तो ऐसा होता है कि जैसे ही आप दरवाजे से बाहर निकलते हैं तो वह ठीक आपके नीचे जंगले से लटकता मिलता है और आप को लगता है कि उससे बात करें । निस्संदेह आप उससे कोई कठिन प्रश्न नहीं करते हैं, बल्कि आप उसके साथ बच्चे की तरह व्यवहार करते हैं, क्योंकि वह इतना छोटा है कि आप कुछ भी कर नहीं सकते । "ठीक है, तुम्हारा नाम क्या है?" आप उससे पूछते हैं। 'ओडराडेक, " वह जवाब देता है । "तुम कहाँ रहते हो?' 'कोई स्थायी निवास नहीं," वह जवाब देता है और हँसने लगता है। यह इस प्रकार की हँसी है, जिसमें कोई गहराई नहीं होती है, बल्कि यह सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट सी प्रतीत होती है और प्रायः बातचीत यहीं खत्म हो जाती है। यहाँ तक कि ये उत्तर भी स्पष्टवादी नहीं होते हैं। कभी-कभी तो वह बहुत देर तक चुप रहता है, बिल्कुल अपनी आकृति की तरह निष्क्रिय ।

बिना किसी उद्देश्य के मैंने स्वयं से पूछा, इसके साथ क्या घटित होने की संभावना है? संभवतः क्या वह मर सकता है? वह कोई भी चीज जिसकी मृत्यु होती है, उसको जीवन में कोई-न-कोई उद्देश्य, किसी-न-किसी तरह की गतिविधि, जो घिसपिट गई है, जरूर होती है। लेकिन ओडराडेक के संदर्भ में यह सही नहीं था। तब क्या मैं यह मान लूँ कि यह हमेशा सीढ़ियों से लुढ़कता रहेगा तथा धागे के सिरे इसके पीछे चलते रहेंगे, जो मेरे बच्चों एवं बच्चों के बच्चों के ठीक कदमों के नीचे आते रहेंगे? इससे किसी को कोई क्षति नहीं होती है, जैसा कि सभी को पता है, लेकिन यह विचार कि यह मेरे बाद भी जीवित रहेगा, यह लगभग पीड़ादायक है।

(अनुवाद: अरुण चंद्र)

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