परीलोक से वापसी (कहानी) : एल. फ्रैंक बॉम

Parilok Se Wapsi (English Story in Hindi) : L. Frank Baum

उसका नाम था डोरोथी । यों देखने-सुनने में वह दूसरी लड़कियों की तरह ही थी, लेकिन उसमें एक विशेषता थी, जिसका पता बहुत कम लोगों को था । डोरोथी परी रानी ऊजमा की मित्र थी । ऊजमा परी देश ऊज की रानी थी। डोरोथी कई बार परी देश की सैर कर चुकी थी। ऊजमा ने अपने जादू से अनेक बार डोरोथी को संकट से उबारा था । परी देश में बहुत बड़ी एक तसवीर थी। ऊजमा को उसमें कहीं का भी दृश्य दिखाई दे सकता था। उसने एक बार डोरोथी से कहा था, “जब भी कोई संकट पड़े, मुझे याद करना। मैं अपनी तसवीर में तुम्हें देख लूँगी और तुम्हारी मदद करने आ जाऊँगी।"

उस रात डोरोथी अपने चाचा से मिलने जा रही थी। ट्रेन स्टेशन पर पहुँची। वहाँ जैब नाम का लड़का घोड़ागाड़ी लेकर आया था। घोड़ागाड़ी उसे लेकर चल दी। वह और जैब दोनों आपस में बातें करते जा रहे थे। तभी जोर की गड़गड़ाहट हुई । धरती फट गई। तेज भूकंप में घोड़ागाड़ी एक चौड़ी दरार में गिर पड़ी। डोरोथी तो मारे डर के चीख ही पड़ी। चारों ओर गहरा अँधेरा था और वे लोग जमीन के अंदर गिरते जा रहे थे ।

जब उनके कदम जमीन पर लगे तो देखा - चारों ओर रंग-बिरंगा प्रकाश फैला था। एक तरफ रंग-बिरंगे गोले चमक रहे थे। सामने बस्ती दिखाई दे रही थी । वहाँ सब मकान शीशे के बने हुए थे। उनके अंदर की हर चीज साफ नजर आ रही थी। कई मकानों की छतें टूटी हुई थीं ।

डोरोथी को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वहाँ रहनेवाले आदमी हवा में चलते थे। तभी उसका घोड़ा मनुष्यों की बोली में बात करने लगा। उसे बोलते सुनकर तो डोरोथी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।

थोड़ी देर बाद कुछ लोग वहाँ आए । एक आदमी के माथे पर तारे का चमकीला निशान बना था। वह वहाँ का राजा था। उसने डोरोथी से कहा, "अच्छा, तो तुम्हीं लोगों ने हमारे नगर मंगाबू पर पत्थर बरसाए हैं? "

डोरोथी बोली, “शायद भूकंप के कारण ऐसा हुआ है। हम लोग धरती फट जाने के कारण नीचे गिरे हैं। "

"तुम्हें हमारे देश के तांत्रिक के पास चलना होगा। अगर उसने तुम्हारी बात मान ली तो ठीक, वरना तुम्हें कड़ा दंड दिया जाएगा, " राजा बोला ।

उसी समय ऊपर से एक आदमी और गिरा । वह था ऊज का जादूगर, जो डोरोथी का मित्र था। उसे देखकर डोरोथी की हिम्मत कुछ बढ़ी। जादूगर भी डोरोथी को देखकर खुश था।

इन लोगों को एक बड़े महल में ले जाया गया। वहाँ फर्श पर आग जल रही थी। सबको आया देखकर उस आग में से तांत्रिक निकला। अजीब शक्ल थी उसकी। सारे शरीर में काँटे उगे थे।

उसे देखकर डोरोथी खूब हँसी । उसका मित्र जादूगर भी हँस पड़ा। इसपर मंगाबू का तांत्रिक नाराज हो गया। बोला, “मैं तुम मनुष्यों को जानता हूँ। अगर तुम साँस न लो तो मर जाओगे। मैं अपने जादू से तुम सबकी साँस बंद कर दूँगा ।"

और सचमुच डोरोथी को घुटन महसूस होने लगी । यह देखकर ऊज के जादूगर ने तलवार निकाली और तांत्रिक को मार डाला । आश्चर्य की बात थी, तांत्रिक के बदन से जरा भी खून नहीं निकला। निकलता कैसे! वह मनुष्य जो नहीं था। मंगाबू के सब लोग फल-फूलों की तरह पेड़ों पर उगते थे। जब कोई मर जाता तो लोग उसे जमीन में गाड़ देते। कुछ दिन बाद वह फिर उग आता।

कुछ मंगाबूवासी तांत्रिक के शव को बाग में ले गए। डोरोथी, जादूगर व जैब भी उनके साथ थे। बाग में हर पौधे पर बच्चे उगे थे- फलों की तरह ।

इसके बाद मंगाबूवासियों ने डोरोथी, जैब और जादूगर को घेर लिया। बोले, "हम तुम्हें एक ऐसे गहरे गड्ढे में फेंक देंगे, जहाँ से तुम लोग कभी नहीं निकल सकोगे!” उन्होंने उन सबको एक अँधेरी गुफा 'में बंद कर दिया। उसी में था वह गहरा गड्ढा ।

कुछ समय तक वे तीनों उस गुफा में चुप खड़े रहे। फिर जादूगर ने अपनी जादुई लालटेन जला ली। उसके प्रकाश में एक रास्ता दिखाई दिया। पता नहीं, वह कहाँ जाता था !

वे घंटों चलते रहे। फिर गुफा से बाहर निकल आए। काफी नीचे उन्हें एक गहरी घाटी दिखाई दी। धीरे-धीरे वे तीनों उस घाटी में उतर गए। एकाएक डोरोथी ने चिड़ियों की चहचहाहट सुनी। वह इधर-उधर देखने लगी, पर एक भी चिड़िया नजर नहीं आई। आश्चर्य में डूबे वे चलते रहे। तभी डोरोथी की बिल्ली ने वहाँ उगे एक फल को खा लिया। वह अदृश्य हो गई।

हैरान-परेशान डोरोथी और उसके साथी वहाँ के एक मकान में घुसे तो आवाज आई, आपका स्वागत है!"

डोरोथी ने पूछा, "आप लोग कौन हैं? सामने क्यों नहीं आते?"

जवाब मिला, "इसकी भी एक दुःख भरी कहानी है। इस घाटी का नाम 'वो' है। यहाँ कुछ दिन हुए, बहुत से खूँखार भालू आ गए थे। उन्होंने बहुत लोगों को मार डाला। फिर भालू यहाँ उगनेवाले फलों को खाकर अदृश्य हो गए। तब उनसे बचने के लिए हम लोगों ने भी वे फल खा लिये । यही कारण है कि इस घाटी में आप किसी को नहीं देख पा रहे हैं। "

'शायद मेरी बिल्ली ने भी वही फल खा लिया है।" डोरोथी बोली। फिर उसने कहा, "हमें यहाँ से तुरंत चल देना चाहिए। यह अच्छी जगह नहीं। "

अदृश्य स्वर ने फिर कहा, "इस घर के बाहर तिकोने पत्तों का एक पौधा है। उसका रस आप सब अपने तलवों पर मल लें तो पानी पर चल सकेंगे । वरना भालुओं से आपका बचना मुश्किल होगा । भालू पानी पर नहीं चल सकते।"

डोरोथी, जैब व ऊज के जादूगर ने वैसा ही किया। फिर वे घाटी से बाहर जानेवाले रास्ते पर चल दिए । एकाएक पीछे से उन्हें भालुओं की आवाज सुनाई दी। सब भागकर नदी में कूद पड़े और दूसरी ओर जा पहुँचे।

आगे पहाड़ के पार, गुरगल या लकड़ी मानवों का देश था। वहाँ लकड़ी के पुतले रहते थे। वे लकड़ी के पंखों की सहायता से उड़ा करते थे। वहाँ हर चीज लकड़ी की ही थी। मकान, सड़कें, पशु, पक्षी सब सब गूँगे थे वहाँ । लकड़ी मानव आपस में इशारों से बातें करते थे। वहाँ पहुँचते ही नई मुसीबत आई। लकड़ी मानवों ने उन सबको घेर लिया। जैब अपनी पिस्तौल से गोलियाँ चलाने लगा, लेकिन लकड़ी मानवों पर गोलियाँ भला क्या असर करतीं. वे लकड़ी में धँसकर रह गई। आखिर लकड़ी मानव सबको पकड़कर ले गए और उन्हें एक बहुत बड़े मकान में बंद कर दिया।

"अब क्या होगा?" डोरोथी ने कहा।

जैब बड़े ध्यान से बाहर देख रहा था। उसने कहा, 'अब इन लकड़ी मानवों के सोने का समय हो गया है। वे अपने-अपने पंख उतारकर एक स्थान पर रख रहे हैं। अगर किसी तरह हम उन पंखों को चुरा सकें तो शायद काम बन जाए। "

जैब किसी तरह कैदखाने से बाहर निकल आया। दीवारें लकड़ी की थीं, इसलिए ज्यादा मुश्किल नहीं हुई। वह जल्दी-जल्दी कुछ पंख ले आया। लकड़ी मानव सो रहे थे।

डोरोथी, जादूगर और जैब, सबने पंख अपने हाथों पर बाँध लिये और उड़ने लगे। तब तक लकड़ी मानवों को भी कैदियों के भागने का पता चल गया। उन्होंने पीछा किया, पर डोरोथी और उसके साथी बचकर निकल आए।

एक बार वे जहाँ पहुँचे, वहाँ एक सीढ़ी बनी हुई थी। वह बहुत ऊपर तक गई थी। जैब ने कहा, "शायद इस सीढ़ी पर चढ़कर हम धरती पर जा पहुँचें।"

सब सीढ़ियों पर चढ़ने लगे। किंतु सीढियाँ एक बंद गुफा में जाकर खत्म हो गई। गुफा में बड़े-बड़े अजगर पड़े थे। इन्हें देखते ही वे फुफकारने लगे।

"अब क्या होगा, डोरोथी ? यहाँ से जाने का कोई रास्ता नहीं है। इतने संघर्ष के बाद हमें आखिर अजगरों का ही भोजन बनना पड़ेगा, " जैब ने कहा।

डोरोथी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया। निराश तो वह भी थी, लेकिन फिर एकाएक परी रानी ऊजमा की याद आ गई उसे । डोरोथी ने ऊजमा को याद किया। तभी ऊज के परी देश में लगी बड़ी तसवीर पर अजगरवाली गुफा में कैद डोरोथी, जैब, ऊज का जादूगर और घोड़ागाड़ी - सबकी तसवीर उभर आई।

ऊजमा मुसकराई। उसने हाथ से इशारा किया। गुफा में मौजूद सब लोग अजगरों से बचकर तुरंत ऊज के परीलोक में जा पहुँचे।

अपनी सखी से मिलकर ऊजमा बहुत खुश हुई। कई दिन तक वे लोग ऊज में रहे। एक रोज डोरोथी ने ऊजमा से कहा, "चाचाजी मेरी प्रतीक्षा में होंगे। "

ऊजमा ने हाथ हिलाया तो तसवीर में डोरोथी के उदास चाचा-चाची की शक्लें दिखाई दीं। उनकी आँखों में आँसू झलक रहे थे।

ऊजमा ने कहा, "सखी, अब तुम जाओ। हम फिर मिलेंगे।"

उसने डोरोथी व जैब से आँखें बंद करने के लिए कहा। अगले ही पल डोरोथी ने आँखें खोलीं तो देखा - वह घोड़ागाड़ी में चाचाजी के घर के बाहर खड़ी है।

उसे सकुशल लौट आने की खुशी थी तो प्यारी सखी परी रानी ऊजमा से इतनी जल्दी बिछुड़ने का दुःख भी था । हाँ, ऊज का जादूगर ऊज में ही रह गया था। एक बात और थी— धरती पर लौटकर घोड़ा मनुष्यों की तरह बोलना भूल गया था।

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