परी राजकुमारी : आदिवासी लोक-कथा

Pari Rajkumari : Adivasi Lok-Katha

यह कथा उस समय की है जब हैवलाक द्वीप का नाम हैवलाक नहीं पड़ा था। उन दिनों इस द्वीप पर मनुष्यों का वास नहीं था। यहाँ केवल सुंदर परियाँ आया करतीं थीं। वे हैवलाक में स्थित सरोवर में नहातीं, खेलतीं और खिलखिलातीं। उन परियों की राजकुमारी उन सबसे सुंदर और विशेष शक्ति से युक्त थी। वह जहाँ भी जाती वहाँ का वातावरण प्रकाशित हो उठता। राजकुमारी जब भी अपनी सखियों के साथ हैवलाक आती तो हैवलाक का वातावरण सुंदरता और प्रकाश से भर जाता। राजकुमारी की इस विशिष्टता को लेकर उसके माता-पिता चिंतित रहते और उसे दिन में महल से निकलने नहीं देते। रात्रि को ही वह हैवलाक आ पाती।

राजकुमारी बहुत दयालु और संवेदनशील थी। उससे किसी का दुख देखा नहीं जाता। यदि तितली या जुगनू भी दुखी होते तो राजकुमारी उनके दुख को दूर करने का पूरा-पूरा प्रयास करती।

एक बार हैवलाक के समुद्र तट पर भयावह तूफ़ान आया। राजकुमारी की सखियों ने ऐसे तूफ़ान में हैवलाक द्वीप पर जाने से मना कर दिया। राजकुमारी हैवलाक जाना चाहती थी अत: उसने अकेले ही जाने का निश्चय किया। उस समय हैवलाक में तूफ़ान के कारण गहन अँधकार छाया था। राजकुमारी के वहाँ पहुँचते ही समूचा द्वीप प्रकाशित हो उठा। राजकुमारी ने अपने पंख एक ओर रखे और सरोवर में उतरकर नहाने लगी। नहाने के बाद वह जब सरोवर से बाहर निकली तो उसने देखा कि सरोवर के पास एक युवक मूर्छित पड़ा हुआ है। वह युवक बहुत सुंदर था। राजकुमारी ने तब तक ऐसे किसी युवक को देखा ही नहीं था। इतने सुंदर युवक को इस तरह मूर्छित देखकर राजकुमारी का मन द्रवित हो उठा और उसने सरोवर का जल युवक के चेहरे पर छिड़का। युवक की मूर्छा टूट गई और वह उठ बैठा। होश में आते ही अपने सामने एक अत्यंत रूपवती युवती को देखकर वह युवक ठगा-सा रह गया।

कुछ पल बाद उसने राजकुमारी से पूछा कि वह कौन है?

मैं एक राजकुमारी हूँ और यह द्वीप मेरा है। राजकुमारी ने बताया।

‘मैं भी एक राजकुमार हूँ। मेरा देश पूर्व दिशा में है। मैं अपने जहाज़ पर होकर समुद्री यात्रा पर निकला था। अचानक तूफ़ान आ जाने के कारण मेरा जहाज़ समुद्र में डूब गया। मेरे साथी भी डूब गए। मैं किसी तरह इस द्वीप पर आ गया। शायद लहरों ने मुझे यहाँ पहुँचा दिया।’ उस युवक ने बताया।

‘तुम चिंता मत करो! जब तक तूफ़ान थम नहीं जाता है तब तक तुम इस द्वीप पर रहो। मैं प्रतिदिन तुमसे मिलने आया करूँगी।’ राजकुमारी ने कहा।

राजकुमारी अपने वचन के अनुसार राजकुमार से मिलने के लिए प्रतिदिन हैवलाक द्वीप पर आने लगी। इस समीपता के परिणामस्वरूप राजकुमारी के हृदय में प्रेम का अंकुर प्रस्फुटित हो गया। वह राजकुमार से बहुत प्रेम करने लगी। कुछ दिन बाद तूफ़ान थम गया। अब राजकुमार ने अपने घर जाने की इच्छा प्रकट की।

‘मैं अपने माता-पिता की इकलौती संतान हूँ। मेरे न लौटने से मेरे माता-पिता दुखी होंगे और मेरा राज्य संकट से घिर जाएगा अत: मुझे अपने राज्य लौटना होगा। फिर मुझे अपने माता-पिता के पास जाकर तुम्हारे साथ अपने विवाह की अनुमति भी तो लेनी है।’ राजकुमार ने कहा।

विवाह की बात सुनकर राजकुमारी लजा गई।

‘हाँ, तुम्हें अपने माता-पिता से मिलने अवश्य जाना चाहिए किंतु वादा करो कि तुम मुझे अपने साथ ले जाने वापस आओगे।’ राजकुमारी ने भावुक होते हुए कहा।

‘मैं वादा करता हूँ कि मैं वापस आऊँगा और तुम्हें अपने साथ ले जाऊँगा लेकिन...।’ कहते-कहते राजकुमार रुक गया। उसका चेहरा उदास हो गया।

‘क्या हुआ? तुम कहते-कहते रुक क्यों गए? अपनी बात पूरी करो।’ राजकुमारी ने कहा।

‘नहीं जाने दो।’ राजकुमार ने टालने का प्रयास किया।

‘नहीं, इस तरह बात अधूरी छोड़ना ठीक नहीं होता है। अपनी बात पूरी करो।’ राजकुमारी ने आग्रह किया।

‘मैं जाना तो चाहता हूँ किंतु जाऊँगा कैसे? न तो मेरे पास जहाज़ है न ही कोई और साधन।’ राजकुमार ने उदास होते हुए कहा।

‘हाँ, यह तो तुमने सही कहा।’ राजकुमारी भी चिंतित हो उठी।

‘यदि तुम चाहो तो मेरी मदद कर सकती हो।’ राजकुमार झिझकते हुए बोला।

‘हाँ-हाँ, कहो मुझे क्या करना होगा?’

‘तुम मुझे अपने पंख दे दो। मैं इन्हें लगाकर अपने देश चला जाऊँगा और माता-पिता से मिलकर अपना जहाज़ लेकर तुम्हारे पास आकर तुम्हें तुम्हारे पंख लौटा दूँगा।’ राजकुमार ने कहा।

‘मेरे पंख ही मेरे परी होने के पहचान हैं। इन्हीं में मेरी शक्तियाँ और मेरा प्रकाश है। किंतु मैं तुमसे इतना प्रेम करती हूँ कि मैं सहर्ष तुम्हें अपने पंख दे रही हूँ। यद्यपि पंखों के बिना मेरे माता-पिता और मेरी सखियाँ भी मुझे स्वीकार नहीं करें राजकुमारी ने कहा और अपने पंख निकाल कर राजकुमार को दे दिए।

राजकुमार ने पंख लगा लिए। राजकुमारी ने पंखों का प्रयोग करना सिखा दिया। इसके बाद राजकुमार ने परी राजकुमारी से विदा ली और अपने देश की ओर उड़ गया। राजकुमार के जाते ही राजकुमारी पंखविहीन हो गई जिससे हैवलाक द्वीप पर अँधेरा छा गया।

दिन बीते, माह बीते, वर्ष व्यतीत हो गए किंतु राजकुमार लौटकर नहीं आया। परी राजकुमारी द्वीप में सरोवर के पास अकेली घूमती और राजकुमार के लौटने की प्रतीक्षा करती। जब धीरे-धीरे मनुष्यों ने हैवलाक की धरती पर आना-जाना शुरू किया तो परी राजकुमारी अदृश्य होकर भटकने लगी। वह आज भी राजकुमार के लौटने की प्रतीक्षा कर रही है। अंडमानी आदिवासियों में यह विश्वास प्रचलित है कि हैवलाक द्वीप के सरोवर के किनारे राजकुमारी के सरोवर के पानी से भीगे हुए पदचिन्ह दिखाई देते हैं।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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