पारसमणि (लेख) : यशपाल जैन
Parasmani (Hindi Essay/Lekh) : Yashpal Jain
रवीन्द्र ठाकुर की एक बड़ी ही सीख देने वाली रचना है। एक आदमी को रात में सपने में भगवान् दिखाई दिये। उन्होंने उससे कहा कि जाओ, आमुक जगह पर एक साधु रहता है, उससे मिलो और उसके पास हीरा है, उसे ले लो। उस आदमी को लगा, भगवान की बात सही हो सकी है। सो अगले दिन उसने सबेरे उठकर उनके बताये स्थान पर साधु की खोज की। संयोग से साधु मिल गये। उसने उन्हें सपने में भगवान् के दर्शन देने और उनसे मिलकर हीरा लेने की बात बतायी। साधु ने कहा-“हॉँ ठीक है। जाओ, वहॉँ नदी-किनारे पेड़ के नीचे हीरा पड़ा है, उसे ले लो।” आदमी वहॉँ गया और उसके अचरज का ठिकाना न रहा, जब उसने देखा कि पेड़ के नीचे सचमुच बड़ा कीमती हीरा पड़ा है। उसने हीरे को उठा लिया। खुशी से उसका दिल नाचने लगा।
अचानक उस आदमी के मन में एक विचार पैदा हुआ। साधु ने इसे यों ही क्यों डाल रखा है? जरूर उसके पास इस हीरे से भी मूल्यवान् कोई चीज़ है, जिसने ऐसी अनमोल चीज़ को मिट्टी के मोल बना दिया हैं यह हीरा तो आज है, कल नहीं। मुझे वही चीज़ प्राप्त करनी
चाहिए, जो हीरे को भी ठीकरा कर देती है। इतना सोच उसने हीरे को नदी में फेंक दिया और साधू के पास चला गया।
यह घटना कवि के दिमाग की कोरी कल्पना नहीं है, इसमें बहुत बड़ी सच्चाई है। जिसके पास धन से भी कीमती कोई दूसरी चीज़ होती है, उसे धन फीका लगता है। किसी बुद्धिमान ने ठीक ही लिखा है, “जिसके पास केवल धन है, उससे बढ़कर ग़रीब और कोई नहीं है।” ऊँचे दर्जे के एक आदमी ने कितनी बढ़िया बात कहीं है, “मुझसे धनी कोई नहीं है, क्योंकि मैं सिवा भगवान् के और किसी का दास नहीं हूँ।”
यह जानते हुए भी कि धन-दौलत की आदमी को देखते कोई कीमत नहीं है, आज सभी समाजों में, सभी देखों में, पैसे का बोलबाला है। अमरीका के पास बहुत धन है, पर वह और धन चाहता हैं। रूस के पास उतना पैसा नहीं है; लेकिन वह चाहता है कि उसके देशवासी खूब खुशहाल हों। यही हाल दूसरे बहुत-से देशों का है। वे सब दिन-रात पैसे की होड़ में दौड़ रहे है। जानते हैं, इसका नतीजा क्या है? इसका नतीजा यह है कि अमरीका के बहुत-से लोग रोज़ रात को नींद की दवा लेकर सोते है। उनके जीवन में सहजता नहीं है। और जिसके जीवन में उतावली या उलझन है, उसे नींद कहॉँ से आयेगी!
दुनिया आज हैरान इसीलिए बनी हुई है कि उसका मुँह दौलत की ओर है। यहॉँ दौलत से मतलब सिर्फ़ रूपये-पैसे से ही नहीं है, सुख-सुविधा की बाहरी चीजों से भी है। ऐसी चीजों के पीछे पड़ने से आदमी को लगता है कि उसे कुछ मिल रहा है, पर उसकी हालत वैसी ही होती है, जैसी की रेगिस्तान में भ्रम से दीख पड़ने वाले पानी को देखकर हिरन की होती है। वह उसकी ओर दौड़ता है, पर पानी हो तो मिले! बेचारा भटक-भटककर प्यासा ही प्राण दे देता है।
हम कह चुके हैं, संसार में जितने साधु, सन्त, महात्मा और बड़े लोग हुए है, उन्होनें धन से जो कीमती चीजें हैं, उसे पाने की कोशिश की है। उन्होंने अपनी आत्मा को ऊँचा उठाया है, अपनी बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न किया है और अपने सामने ऊँचा उद्देश्य रखा है।
सोचने की बात है अगर पैसे में और पैसे के वैभव में ही सब कुछ होता तो भगवान् बुद्ध क्यों घर-बार छोड़ते और क्यों भगवान् महावीर राजपाट पर लात मारते! यह तो ढाई हजार बरस पहले की बात हुई। आज के जमाने में ही हमने गांधीजी को देखां उन्होंने सारे आडम्बर छोड़ दिये। सादगी का जीवन बनाया और बिताया। वह समझ गये थे कि जो आन्नद सादगी की जिन्दगी में है, वह पैसे की जिन्दगी में नहीं है। यदि वह चाहते तो अच्छी-खासी कमाई कर सकते थे, लेकिन उस हालत में वह गांधी न होते। उन्होंने पैसे का मोह त्यागा और बड़े-बड़े काम किये। दुनिया में उनका नाम अमर हो गया। आपको याद होगा, प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइंस्टीन ने लिखा था—“आगे आने वाली पीढ़ियॉँ मुश्किल से विश्वास कर पायेंगी कि इस धरती पर हाड़-मांस का बना गांधी-जैसा व्यक्ति कभी चलता-फिरता था।”
असल में उन्होंने सोना नहीं जुटाया। उन्होनें वह पारसमणि प्राप्त की, जिसको छूकर सब कुछ सोना बन जाता है। जिसके पास ऐसी मणि हो, उसके पास किस चीज़ की कमी हो सकती है!
लेकिन यह पारसमणि यों ही नहीं मिल जाती। इसके लिए बड़ी साधना की जरूरत होती है। सोना तपने पर कंचन बनता है, ठीक यही बात आदमी के साथ भी है।
हमारे धर्म-ग्रन्थों में कहा गया है कि इस दुनिया में सबसे दुलर्भ आदमी का शरीर है। सारे प्राणियों में आदमी को ऊँचा माना गया है और वह इसलिए कि आदमी के पास बुद्धि है, विवेक है। संसार में जितनी ईजादें हुई हैं, सब बुद्धि के बल पर हुई है। आप सबेरे दिल्ली में नाश्ता करके चलते है और दोपहर का खाना मास्कों में खा लेते है। हजारों मील की यात्रा घंटों में हो जाती है। यह सब आदमी की बुद्धि से ही सम्भव हुआ है।
जिसके पास इतनी बड़ी चीज हो, वह धन के या दुनियादारी की चीजों के पीछे भटके, यह उचित नहीं है। बुद्धि का उपयोग उसे बराबर आगे बढ़ने के लिए करना चाहिए। जिन्होंने ऐसा किया है, उन्होंने मानवता की बड़ी सेवा की है। उनका नाम अमर हो गया है।