पंडित और भूत : डोगरी लोक-कथा

Pandit Aur Bhoot : Lok-Katha (Dogri/Jammu)

एक बार की बात है। एक पंडित था। उसकी पत्नी बहुत झगड़ालू थी। वह हर समय पंडित से लड़ती-झगड़ती रहती थी। पंडित बहुत दु:खी हो गया। उसको ऐसा लगता, जैसे उसे सूली पर चढ़ा दिया हो। वह सहमा-सहमा और डरा-डरा सा रहता था।

पंडित की पत्नी से सारा गाँव थर-थर काँपता था। लोग कहते थे कि उसका नाम सुनते ही देवता तक काँपने लगते हैं, हम क्या चीज हैं। पंडिताइन रोजाना पंडितजी को गाली-गलौज से अच्छी-खासी पूजा करती थी। पंडितजी थे कि उसके आगे बोलते तक नहीं थे।

आखिर में पंडितजी ने थक-हारकर अपना घर और गाँव छोड़ने का निर्णय लिया। वह घर से निकलकर एक सुनसान-भयानक जंगल में आ गया। एक वटवृक्ष के नीचे बैठकर आराम करने लगा। इतने में उसे गहरी नींद आ गई।

उस वटवृक्ष पर एक भूत रहता था। आने-जाने वालों को डराता था और कभी-कभी आने-जाने वालों के साथ मसखरी करके उनका मजाक भी उड़ाता था। पंडित को वहाँ सोए हुए देखकर उसके मन में एक शरारत आई। वह धीरे से से वटवृक्ष से नीचे उतरा और पंडित के सिर पर हलकी सी चोट मारी।

पंडित घबराकर उठ खड़ा हुआ। वह डर के मारे काँप रहा था। भय से उसके मुँह से अचानक अपनी पत्नी का नाम ‘त्रिशूला’ निकला।

‘त्रिशूला’ का नाम सुनते ही भूत डर के मारे काँपने लगा। वह सामने आकर पंडित के चरणों में गिर पड़ा। और कहने लगा, पंडितजी, मुझे त्रिशूला से बचाओ। मैं आपका गुलाम बनकर रहूँगा। जो भी कहोगे, वही करूँगा। पंडित ने उस भूत से पूछा, अरे भाई! तुम त्रिशूला से इतना क्यों डरते हो?

भूत बोला—पंडितजी, पूछो मत। इससे पहले मैं एक पंडितों की बस्ती में रहता था। उसी गाँव में पंडितों की एक लड़की, जिसका नाम त्रिशूला था, वह भी रहती थी। उससे सारा गाँव थर-थर काँपता था। वह बहुत ही झगड़ालू स्वभाव की थी।

एक बार की बात है कि तालाब के किनारे एक बार मेरी उससे मुलाकात हो गई। मैंने उसका हाथ पकड़ने का प्रयास किया। वह तालाब के किनारे कपड़े धो रही थी। वह कपड़े धोने वाले डंडे से मुझे पीटने लगी। उसने पीट-पीटकर मुझे अधमरा कर दिया। मैं वहाँ से भागकर दूसरे गाँव में आ गया। उसकी भी शादी हो गई। परंतु यह क्या, वह भी शादी करके उसी गाँव में आ गई।

एक बार फिर मैं गलती से उसके घर चला गया। उसने मुझे पहचान लिया। भीतर से मूसल लेकर आ गई और मुझे मूसल से पीटने लगी। मैं बड़ी मुश्किल से वहाँ से बचकर भागा। अब मैं इस सुनसान जंगल में रहता हूँ। कहीं वह यहाँ भी न आ जाए। कृपा करके आप मुझे उससे बचाओ।

भूत की बात सुनकर पंडित को संतुष्टि हो गई। पंडित ने सोचा, लोग भूत से डरते हैं। परंतु यहाँ पर तो भूत भी मेरी पत्नी से डरते हैं। कितनी बहादुर है मेरी पत्नी। पंडित ने मन-ही-मन विचार किया।

भूत ने पंडित को बताया कि इस पेड़ के नीचे खजाना है। आप यह खजाना ले जाओ, परंतु त्रिशूला को मेरा पता मत बताना।

पंडित ने धन निकाला, गठरी बाँधकर सिर पर रखी और घर लौट आए। यह देखकर पंडिताइन बहुत खुश हो गई। वे दोनों खुशी-खुशी रहने लगे। अब पंडिताइन ने भी पंडित को डाँटना और उसके साथ झगड़ना छोड़ दिया था।

(प्रस्तुतकर्ता : यशपाल निर्मल)

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