पलटाऊ बाघ : ओड़िआ/ओड़िशा की लोक-कथा
Paltau Baagh : Lok-Katha (Oriya/Odisha)
कई साल पहले की बात है। एक गोरा साहेब मंडासरू गाँव आए थे। वहाँ की झोंपड़ियों को देखकर वह इतना ख़ुश हुए कि उसी गाँव में रह गए। गाँव वालों से मिलकर अपने देश की बात वह भूल गए। उनके दुःख-सुख के साथ अपने को भूल गए। गाँव में रहते उन्हें पता चला कि गाँव वाले बाघ से बहुत डरते हैं। उनके मन से भय को दूर करने के लिए गोरा साहेब बंदूक़ लेकर शिकार करने के लिए घूमते फिरते। कई बार बाघ को देखा था उन्होंने। उसका सामना भी किया था। कई बार उसके मुँह से बाल-बाल बच भी गए थे। बाघ का शिकार करने के लिए ख़ूब सोच-विचार करने के बाद आख़िर एक उपाय उन्होंने ढूँढ़ निकाला।
एक बार मंडासरू गाँव की एक कुटिया में उन्होंने एक पिंजड़ा बनाया। उस कुटिया को दो हिस्से में बाँटा। एक हिस्से में बाघ के लिए पिंजड़ा रखा। फिर गाँव वालों के साथ उस कुटिया में गए। पिंजड़े में मेमना रखकर साहेब चले गए और गाँव वाले कुटिया से दूर छिपकर बैठ गए।
उस दिन दुपहर के समय उस इलाक़े की एक बुढ़िया जंगल में गई। कुसुम के एक पेड़ के नीचे सो गई। आधे घंटे बाद बुढ़िया के माथे से एक चूहे का बच्चा निकला। धीरे-धीरे चूहे का बच्चा बिल्ली का बच्चा बन गया। बिल्ली के बच्चे ने सात बार बुढ़िया के चारों तरफ़ चक्कर लगाया। उसके बाद कुसुम पेड़ के चारों तरफ़ एक बार घूमा। उसके बाद बिल्ली का बच्चा देखते-देखते एक बाघ में बदल गया और पलक झपकते कूद कर जंगल के भीतर चला गया।
शाम लगभग सात बजे एक महाबली बाघ उस पिंजड़े के पास पहुँचा। बकरी के बच्चे को खाने के लिए पिंजड़े के अंदर घुसा। तुरंत पिंजड़े का दरवाज़ा बंद हो गया। बाघ फिर बाहर नहीं निकल सका। गाँव वालों ने तुरंत गोरा साहेब को ख़बर दी और बाघ को मारने का उनसे अनुरोध किया। साहेब की उम्र ज़्यादा होने के कारण उन्हें रात को ठीक से दिखाई नहीं देता था। इसलिए उन्होंने सुबह तक इंतज़ार करने के लिए कहा। गाँव वाले रात भर आग जलाकर रखवाली करते रहे।
दूसरे दिन सुबह होने पर गोरा साहेब बंदूक़ लेकर वहाँ पहुँचे। बाघ को मारने से पहले एक व्यक्ति गोरा साहेब के पास पहुँचकर उनसे अनुरोध करते हुए बोला, “साहेब! उस बाघ को मारिए मत। वह मेरी माँ है। वह बाघ बन गई है। उसे आप छोड़ दें। वह फिर कभी बाघ नहीं बनेगी।” उसकी बात सुनकर साहेब हँस पड़े। गाँव वाले भी हँसे। फिर साहेब ने कहा, “जा, जा इंसान कभी बाघ बन सकता है! तुम झूठ बोल रहे हो। मैं बाघ को छोड़ नहीं सकता।” इतना कहकर उन्होंने बाघ पर निशाना साधकर बंदूक़ चलाई। दो-तीन गोली लगने के बाद बाघ छटपटाकर मर गया। बाघ के मर जाने पर सारे गाँव वाले ख़ूब ख़ुश हुए।
गाँव वालों ने देखा वह आदमी थोड़ी दूरी पर खड़ा होकर रो रहा है। उसकी दोनों आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने गाँव वालों से और गोरा साहेब को सारी बात बताई और सबको कुसुम के पेड़ के नीचे, जहाँ उसकी माँ सोई थी, ले गया। सब ने देखा कि बूढ़ी जहाँ सोई थी, वहीं सोते हुए मर गई थी। पर बूढ़ी ही पलटकर बाघ बन गई थी, यह बात कोई नहीं जान पाया था।
(साभार : ओड़िशा की लोककथाएँ, संपादक : महेंद्र कुमार मिश्र)