पलिया : आदिवासी लोक-कथा

Paliya : Adivasi Lok-Katha

सहरियों के उस गाँव में एक तालाब था। उस तालाब में बहुत सी मछलियाँ थीं। मछलियाँ स्वच्छ पानी में रहना पसंद करती हैं इसलिए गाँव वाले तालाब के पानी की स्वच्छता का बहुत ध्यान रखते थे। वे उस तालाब से पानी निकालकर अलग ले जाकर नहाते-धोते थे। अपने पशुओं को भी वे सीधे तालाब से पानी नहीं पिलाते थे। जिससे पानी गंदा न हो सके।

एक दिन एक युवक दूसरे गाँव से घूम कर चला आ रहा था। रास्ते में उसके पैरों कीचड़ लग गया। उसने सोचा कि तालाब के पानी से पैर धो लेने चाहिए। किंतु ऐसा करना अपराध था। इससे पानी गंदा हो सकता था। किंतु युवक को अपने पैर धोने की शीघ्रता थी। उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई। उसे आस-पास कोई दिखाई नहीं दिया। उसने सोचा कि यदि इस समय वह तालाब में अपने पैर धो लेगा तो किसी को पता नहीं चलेगा। उसने अपने पैर तालाब के पानी में डुबोए और उन्हें रगड़-रगड़कर धोलिया। पैर का कीचड़ तालाब के पानी में पहुँचते ही तालाब का पानी गंदा हो गया।

यह देखकर युवक चुपचाप अपने घर भाग गया।

तालाब का पानी गंदा हो जाने से मछलियों का दम घुटने लगा और वे उछल-उछल कर साँस लेने को पानी की सतह पर आने लगीं। उसी समय कुछ लोग तालाब के पास आए तो वे यह दृश्य देखकर सकते में आ गए। तालाब के पानी के गंदे होने का समाचार गाँव में जंगल की आग की तरह फैल गया। लोग तालाब निकट एकत्र हो गए।

किसने गंदा किया पानी? सभी यही सोच रहे थे। उसी समय गाँव के मुखिया का ध्यान गया कि वहाँ गाँव के सब लोग एकत्र हैं किंतु एक युवक वहाँ नहीं है। वह तत्काल समझ गया कि यह करतूत उस युवक की है। मुखिया ने तत्काल उस युवक को बुलवाया। युवक अपनी करनी पर लज्जा का अनुभव कर रहा था। उसने अपनी ग़लती स्वीकार कर ली। अपनी ग़लती स्वीकार करने के कारण उसे क्षमा कर दिया गया किंतु उस युवक के परिवार से विकसित सहरिया समुदाय पलिया अर्थात पानी को गंदा करने वाला कहलाया।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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