पलायन- आरंभ या अंत ? : श्याम सिंह बिष्ट
Palayan -Arambh Ya Ant ? : Shyam Singh Bisht
पहाड़ों के गांव के घर की एक बहुत बड़ी बाखली हुआ करती थी बाखली मैं जहां पहले चार- पांच परिवार के लोग इकट्ठे रहते थे ,खुशी थी ,अपनापन था ,सुबह उठते ही एक दूसरे से राम-राम होती थी। जब भी रात को खाना बनता तौ एक दूसरे को देना नहीं भूलते थे ।
आज आमा और बूबू ना जाने किस विचार और मगन में खोयै हुए थे ,उनके चेहरे पर ना वो खुशी थी , एक अजीब सी चिड़चिड़ाहट थी उनको पता था कि बाखली खाली हो चुकी थी , जहां पहले बाखली में 15-20 परिवार के लोग एक साथ रहते थे ,आज सिर्फ गिने हूयै चार या पांच लोग ही रह गए थे ।
जैसे ही में उनके घर पहुंचा मैंने आम , बूबू को पैला कहा, पर ना जाने क्यों आमा और बूबु का ध्यान मेरी तरफ गया ही नहीं।
थोड़ा और नजदीक जाने के बाद एकाएक बुबूजी ने मेरी तरफ देखा और बोलै- नतिया कैसा है ?
मैंने बोलो -बूबू जु ठीक हूं, ।
मैंने कहा - बुबू आज घर में ईतनी सुनसानी कैसे हैं, बुबूजी बोलै नतिया -बच्चे लोग सब प्रदेश चले गए हैं ,अब सिर्फ हम दो ही बचे हैं ।
देखो तुम तो इतने सालों बाद गांव आ रहे हो क्या तुम्हें बाखली पहले से खाली दिखाई नहीं देती । बुबूजी की कड़क आवाज सुनकर मैं थोड़ा स्तब्ध और घबरा गया ।
पर मैंने भी दबी हुई सी आवाज में पूछ ही डाला ऐसा क्या हो गया-
बूबु जी बोले नतिया अब तुम्हें क्या बताऊं, मैंने तो बच्चों को लाख समझाने की कोशिश की बेटा अभी बच्चे छोटे हैं प्रदेश का मौसम भी शायद उनको अभी सूट ना करें ,जब थोड़ा बड़े हो जाएं तब प्रदेश ले जाना, पर लड़के और बहू ने तो मेरी बात ही नहीं मानी, मैं तो अपने दिल को समझा लेता हूं पर तुम्हारी अम्मा का क्या करूं यह तो अपने -नात नातिन के बिना रह ही नहीं सकती ।
मैंने भी आव देखा ना ताव तपाक बोल पड़ा -तो बूबू जी -अम्मा जी को उनके साथ भेज देते इसमें क्या प्रॉब्लम है।
बूबू जी भी फटाक से बोल पड़े -नतिया तुम्हारी बात सही है पर वहां मेरा लड़का कमाता ही कितना है 15- 20 हजार और वह किराए का मकान एक कमरे में तुम्हारी अम्मा रहेगी या छोटे बच्चे ।
मैं बुबूजी जी की बात सुनकर स्तब्ध सा रह गया- मानो ऐसा लगा जैसे कृष्ण जी ने अर्जुन को जीने का ज्ञान सिखा दिया हो ।
तभी अम्मा मेरे लिए चाय लेकर आई और बोली नतियां अब तुम्हें क्या बताऊं- मैंने तो अपनी बवारी को बोला था- बच्चे यहीं पढ़ लेंगे जब थोड़ा सा बड़े हो जाएं तब ले जाना ।
बवारी कहती हैं- पहाड़ों में रखा ही क्या है -खेत बंजर हो गए हैं कहीं पर बंदर तो कहीं पर जानवरों का आतंक है ।
वह देखो- माल बाखई पनि यक चयल दिल्ली लहगो ,और कस फटाफट ABCD और ट्विंकल ट्विंकल वाला पोयम कूउ ।
और एक यह मेरी लड़की है कि -आई ल ईग हाथ घूमण नि उ रय ।
अम्मा कि बात सुनकर मुझे ऐसा लगा -जैसे वह लोग अमेरिका चले गए हैं ,और हम लोग घर पर ही रह गए हो ।
मैं भी दुखी मन से अम्मा-बुबू जी को पैला कहा और चल दिया।
और निहारता रहा उस बाखली को जहां पहले चहल-पहल थी उस गांव को जहां पहले हर घर खुला हुआ था ।
और अब कई घर टूट चुके थे या टूटने की हालत पर थे घरों के आंगन में नजरें दौड़ती, तो सिर्फ दो चार बुजुर्ग या यकायक चार पांच जवान बच्चे कभी कभार देखने को मिल जाते थे।
मेरी अंतर आत्मा ने मुझसे सवाल पूछा -क्या यह हमारा आरंभ है या अंत?
पर मैं भी उस मूर्ति की तरह चुपचाप खड़ा रहा- जिसके आगे सब हाथ तो जोड़ते हैं -पर वह मूर्ति कुछ कह नहीं पाती ।।