पहाड़ एवं नदियों की उत्पत्ति की कथा : मिजोरम की लोक-कथा

Pahad Evm Nadiyon Ki Utpatti Ki Katha : Lok-Katha (Mizoram)

जब उपजाऊ भूमि का निर्माण हो गया तो उसमें विविध प्रकार के पेड़-पौधे भी उगने लगे। उन सभी में एक बहुत बड़ा पेड़ था, जिसका नाम ‘थिङवानदोङ’ (Thingvantawng) था, जिसका तना आकाश में स्वर्ग को छूता था। सभी लोग उस पेड़ को काटना चाहते थे, क्योंकि उस पेड़ के काटने से बहुत सारी लकड़ियों की प्राप्ति होती, किंतु वे सभी डरते थे कि जिस भूमि को ‘जूनतेइनू’ (Zunteinu—ईश्वर की माँ) ने अपने हाथों से समतल किया हो, उसे कैसे खराब किया जाए। उन्हें डर था कि यदि वे इस विशाल पेड़ को काटते हैं तो यह पेड़ गीली जमीन पर गिरेगा, जिससे समतल भूमि ऊबड़-खाबड़ हो जाएगी। इसलिए उपजाऊ भूमि के ठीक प्रकार से सूखने के पहले तक उनमें उस पेड़ को काटने का साहस नहीं हुआ, परंतु कुछ समय के बाद एक दिन उन लोगों को लगा कि भूमि की ऊपरी सतह सूख गई है। ऊपर से देखने पर धरती की ऊपरी परत सूखी हुई जान पड़ती थी। इस बात की जाँच के लिए उन्होंने एक छोटी चिड़िया को भेजा। भूमि की जाँच के लिए वह चिड़िया दिन भर उड़ती रही। उसने जमीन में चोंच मारकर जमीन के अंदर छेद कर जाँचने की कोशिश की, लेकिन बहुत हल्की होने के कारण और उस समतल भूमि के ऊपरी परत के सूख जाने के कारण वह उस पर प्रहार कर कोई छेद नहीं बना पाई। तब उसे लगा कि भूमि सूख गई है, जबकि उस समय तक भूमि की केवल ऊपरी परत ही सूख पाई थी। इसके बाद वह वापस आई और उसने ये सारी बातें और अपनी जाँच के बारे में लोगों को बता दिया कि “भूमि सूख चुकी है और बड़े पेड़ को काटा जा सकता है।” किंतु उस समय तक धरती की ऊपरी सतह भी पूरी तरह से सूख नहीं पाई थी। जब उस बड़े पेड़ को लोगों ने काट दिया तो वह पेड़ भहराकर भूमि पर गिर पड़ा। उसके गिरने और तने के दबाव के कारण जमीन पर जगह-जगह गड्ढे हो गए, जहाँ-जहाँ गड्ढे हुए, वहाँ घाटियाँ एवं नदियाँ बन गईं और जो स्थान ऊँचे रह गए, वे पहाड़ बन गए। इस प्रकार मिजोरम में बहुत सारे पहाड़, घाटियों एवं नदियों की उत्पत्ति हुई।

(साभार : प्रो. संजय कुमार)

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