पहाड़ और बुढापा ? : श्याम सिंह बिष्ट
Pahad Aur Budhapa ? : Shyam Singh Bisht
बुढ़ापा और बचपन की एक जैसी अवस्था होती है हम अपने मन को इस अवस्था में कितने भी संसारिक जंजीरों में बांध ले फिर भी हमारा मन बाहर की दुनिया देखने के लिए हमेशा लालायित रहता है हमारे गांव वाले शाही जी का भी आज यही हाल था ।
शाही जी को रिटायरमेंट हुए आज चार-पांच साल हो गए थे, भगवान की दया से उनके बच्चे अच्छी शिक्षा और अपनी मेहनत के फलस्वरुप अच्छी जगह,अच्छी पोस्ट पर नियुक्त व कार्यरत थे ।
और तो और शाही जी के नाती पोते भी अब बड़े हो चुके थे, पर ना जाने क्यो शाही जी का मन अपने शहर कै घर की चारदीवारी से बाहर जाने को हमेशा लालायित रहता था ।
सुबह होते ही वह एक -दो घंटे के लिए पार्क में जाकर चहल - कदमी कर लेते व बाद में घर आकर अखबार पढ़ लिया करते, और आस -पड़ोस में कम ही लोग जान पहचान कै थै ।
शहरों में सब लोगों की अपनी दिनचर्या थी, इस कारणवश किसी के वहां उठना - बैठना अक्सर कम ही हुआ करता था ।
शायद आज जीवन के इस पड़ाव में आकर -शाही जी को गांव और शहर में अंतर समझ में आ गया था -जहां गांव में आपको सब जानते हैं और आप गांव में सब को जानते हो, वही इसके विपरीत शहर में आपको अधिकतर कोई नहीं जानता ।
दिनभर शाही जी अखबार व TV देखते,कभी वो इस कमरे में जाते कभी उस कमरे में जाते, इस दिनचर्या के कारण शाही जी को अजीब सी में झूनझनाहट हो चुकी थी ।
इसी कारण वश शाही जी और हमारी काकी, ने अपने परिवार से आपस में बात करके अपने देवभूमि -उत्तराखंड में आने का निर्णय कर लिया ।
बेटे - बहू ने पहले तो समझाने की कोशिश की पर बाद में मम्मी - पापा की खुशी को अपनी खुशी मानकर उनके इस निर्णय को खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया ।
मुझे भी मेरे पड़ोस की अम्मा व बुबु जी से पता चला कि शहर से शाही जी और काकी गांव आ चुके हैं ।
गांव वालों की हमेशा एक खासियत होती है- जब भी शहर से कोई आता है तो, उनसे मिलने जरुर पहुंच जाते हैं ।
शाही जी और हमारे घर की दूरी सिर्फ 10 से 15 मिनट की ही थी, मैं भी खूसी-खुषी उनसे मिलने उनके निवास स्थान पर पहुंच गया ।
आज शाही जी व काकी जी गांव में आकर अपनी थकान भूल चुके थे, उन्होंने गांव और शहर के बीच कै बैलेंस को बनाए रखा इसी के परिणाम स्वरुप वौ आज गांव की प्राकृतिक सुंदरता को निहार रहे थे ।
जहां पहाड व गांव वालों को अपना एक भुला हुआ परिवार मिल चुका था,वही शाही जी को अपना पहाड़ ।
और कहते हैं ना - बच्चा चाहे कितनों की ही गोद में क्यों न चला जाए, पर उसको असली आराम सुख -शांति अपनी मां की गोद में ही आकर मिलती है ।
यही हाल आज शाही जी का था- इसी के साथ आप लोग भी शाही जी जैसा बनै - गांव और शहर के बीच कै बैलेंस को बनाए रखें ।।