पड़ोसियों को प्यार करो (व्यंग्य रचना) : डॉ. मुकेश गर्ग ‘असीमित’

Padosiyon Ko Pyar Karo (Hindi Satire) : Dr. Mukesh Garg Aseemit

बचपन से ही हिंदी और अंग्रेजी की लोकोक्तियाँ और मुहावरों को रटते आए हैं, लेकिन कभी उनके गूढ़ार्थ पर दिमाग नहीं लगाया। वैसे भी, तब दिमाग था भी नहीं लगाने को। एक इंग्लिश का इडीयाज्म याद आता है, "लव थाई नेबर," यानी "अपने पड़ोसी को प्यार करो"। कहते हैं न, आप दोस्त बदल सकते हैं, पड़ोसी नहीं। और इस समस्या से जब देश ही जूझ रहा है, तो मैं अदना सा प्राणी भला क्यों नहीं?

जब से इसका मतलब समझ में आया, हमने भी गांठ बांध ली कि एक दिन इसे जरूर निभाएंगे। चाहे कुछ भी हो जाए, पड़ोसियों से प्यार करना है। यहां आपके खुराफाती दिमाग में चल रहा होगा कि मैं पड़ोसन की बात कर रहा हूं। नहीं जी, सिर्फ़ पड़ोसी को प्यार करने की बात लिखी है। ये स्वतंत्रता न तो मुहावरे रचयिता ने दी है, न हमारी शक्ल-सूरत ने, न ही हमारी अर्धांगिनी ने दी है कि पड़ोसन को प्यार करें। अरे, प्यार तो दूर, पड़ोसन देखने के नाम पर सिर्फ 'पड़ोसन' मूवी देखी है।

खैर, जब से खुद के मकान में निवास करने लगे हैं, हम भी पड़ोसियों से घिर गए हैं और हम इस पड़ोसी प्रेम के चक्कर में जुट गए हैं। यह तय कर लिया है कि जो भी हो, पड़ोसियों से प्यार बनाए रखना है।

लेकिन जैसे सर मुंडाते ही ओले पड़ते हैं, कुछ कुछ ऐसा ही मेरे साथ घटित हुआ! कॉलोनी में प्रवेश करते ही जैसे पड़ोसियों के घरों में भूचाल आ गया। उनकी नाक में पहले दिन से ही मेरे घर और क्लिनिक के अंदर से बदबू घुसने लगी। मेरे घर के कचरे को भी अस्पताल का कचरा समझकर उसकी शिकायतें करने लगे और मुझसे पहले वो खुद अपना पड़ोसी धर्म निभाने लगे।

मेरे द्वारा निशुल्क में बांटी गई दवाइयों से उन्हें एलर्जी होने लगी। कई बार मैंने धृष्टता भी दिखाई थी। एक पड़ोसी मुझसे हर दूसरे दिन खुद या अपने परिवार को दिखाने के लिए ले आते थे। दवाई के सैंपल बांटने के बजाय एक बार मैंने उन्हें लिख दी। मुंह तो उन्होंने वही बना लिया था कि मुझे पड़ोसियों को ठीक से ट्रीट करना नहीं आता। चलते चलते बता भी गए थे कि पड़ोसी धर्म निभाने में तुम हो निखट बुद्धू।

एक पड़ोसी सिर्फ इस बात पर नाराज हो गए थे कि मैंने उन्हें चेंबर में ही परामर्श दे दिया। मुझे पड़ोसी धर्म निभाना चाहिए था, उन्हें बैठक में ले जाकर चाय, पानी, नाश्ता कराना चाहिए था। होली, दीवाली, सत्संग, भंडारे, जुलूस, कथा में भी मैं पड़ोसी धर्म निभाने का भरसक प्रयास कर रहा हूं। कभी-कभार दान की गई राशि में कटौती की गुजारिश करता हूं तो पड़ोसी नाराज होकर मुझे अगले साल से पड़ोसी धर्म निभाने से वंचित रहने की चेतावनी दे डालते हैं।

पड़ोस में शादी थी, एक स्वर्णिम अवसर आया था मेरी गलतियों को सुधारने का और एक बार फिर से पड़ोसी का धर्म निभाने का। शादी में अपने मकान का हाल, बरामदा और दो कमरे उन्हें दे दिए थे। उनके रिश्तेदारों को लगा कि यह भी पड़ोसी की जगह है, भेड़ बकरियों के बाड़े की तरह उसमें घुस गए। टेंट के बिस्तरों की जगह मैंने अपने पास से ही बिस्तर निकाल दिए थे। पंखे, पानी, चाय, दूध का इंतजाम भी कर दिया था।

घर के सभी वाशरूम और टॉयलेट उनके हाथों से गंदे करवा चुका हूं। साबुन और शैंपू का स्टॉक खत्म करवा चुका हूं। दो किवाड़ की जोड़ी और एक पर्दा फटवा चुका हूं। एसी का रिमोट गायब कर दिया है। लेकिन चेहरे पर शिकन तक नहीं आने दी, आखिर सब कुछ जायज है पड़ोसी धर्म निभाने में। रात को उनके रिश्तेदारों ने कुछ दारू पार्टी भी निपटाने का मन बना लिया था, उसके लिए चखने का भी इंतजाम करवा चुका था।

सुबह खाली बोतलें देखीं, पांच बोतलें रिश्तेदारों के साथ बिस्तरों पर औंधे मुंह पड़ी थीं। पड़ोसी को इस मन से कि खाली बोतलों की भी कीमत होती है, उन्हें वापस करने गया तो पड़ोसी भड़क गए, "क्या गर्ग साहब, आप क्या समझते हैं हमारे रिश्तेदार ऐसे हैं? आप गलत तोहमत लगा रहे हैं। आपके खुद के परिवार या रिश्तेदार के कर्म होंगे ऐसे। आप यहां इन्हें दिखाकर हमें नीचा दिखाना चाहते हैं। आपको अगर मकान नहीं देना था तो पहले मना कर देते। हमने तो सोचा पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है, इसलिए आपसे मदद मांग ली।"

मैं मुंह नीचे लटकाकर तुरंत वहां से सटक लिया। एक बार फिर पड़ोसी धर्म निभाने से वंचित रह गया। शायद अगली बार, जब ऐसा कोई अवसर आए, तो मैं बेहतर तरीके से पड़ोसी का धर्म निभा सकूं। अभी के लिए तो यह अनुभव एक सीख की तरह रहेगा कि कभी-कभी भलाई का भी गलत अर्थ लगाया जा सकता है।

अब पड़ोसी अगर कुत्ता पालें, यहां भी पड़ोसी धर्म निभाना जरूरी है, चाहे आपको इस कुत्ते प्रजाति से एलर्जी हो। अब एक हमारे पड़ोसी ने कुत्ता पाल लिया था, लग तो ये रहा था शायद कुत्ते ने उस पूरे परिवार को अडॉप्ट कर लिया था। पड़ोसी नाराज न हो जाएं, इसलिए उसके कुत्ते का नाम और उसका विशेष उच्चारण रटना आवश्यक था, वो हमने किया। अब आप आदमी को तो कुत्ता कह सकते हो लेकिन कुत्ते को कुत्ता कैसे कह दोगे भला! सुबह-सुबह मॉर्निंग वॉक पर कुत्ते के साथ निकलते शर्मा जी का अभिवादन करना, कुत्ते के अवशिष्ट मल-मूत्र को अपने घर के अहाते में रोज साफ करना हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन गया।

एक बार कुत्ते की टांग उनके घर की चौखट से गिरने के कारण क्षतिग्रस्त हो गई। वह मेरे पास लेकर आए, उसका एक्स-रे करवाकर प्लास्टर लगवाने के लिए। अब आजकल का ब्रिज कोर्स तो मैंने किया नहीं कि जानवरों का इलाज भी कर सकूं। मैंने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया। यह बात उन्हें बड़ी नागवार गुजरी और एक बार फिर मैं पड़ोसी धर्म निभाने से वंचित हो गया।

मेरे सामने का रास्ता और उसकी नालियों के ऊपर, सभी पड़ोसी धर्म निभा रहे हैं। नालियों में सुबह-सुबह पड़ोस के परिवार लाइन में बैठकर मल-मूत्र के विसर्जन के साथ देश-विश्व की समस्याओं पर विचार करते नजर आते हैं। सामने की सड़क आए दिन पड़ोसियों के सत्संग, कथा, और शादी-विवाह के लिए कनात-चांदनी लगाकर पंडाल निर्माण के काम आती है। अब मैं अज्ञानी, इतनी सी बात नहीं समझ सका कि मेरे मरीजों को आने-जाने में होने वाली परेशानी, वाहन पार्किंग की समस्या गौण है। सबसे पहले पड़ोसी धर्म निभाना है।

शायद पड़ोसी अपना पड़ोसी धर्म निभाने में ज्यादा अनुभवी हैं, अब देखो उनके कोई शादी ब्याह के फंक्शन्स में बजने वाले कानफोड़ू संगीत, या भगवत कथा वाचक के प्रेरक वक्तव्यों को भी पड़ोसी होने के

नाते मुझे सुनाना है इसलिए लाउडस्पीकर का मुँह मेरे घर के दरवाजे की तरफ करके मुझे मुफ्त का संगीत सुनने, धुन में नाचने का मौका देते हैं। उनके कथा वाचकों के राग-आलाप का भी मैं आनंद ले रहा हूं। मुस्कराकर पड़ोसी को अपने दांत दिखाकर इसका अनुमोदन भी कर देता हूं। कहीं पड़ोसी मेरे अंदर की खीझ को भांपकर वापस मुझे पड़ोसी धर्म नहीं निभाने का उलाहना न दे।

इन सबके बावजूद मैं अपने पड़ोसियों के साथ संबंध बनाए रखने की पूरी कोशिश करता हूं। आखिरकार, एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाना कोई आसान काम नहीं है। उम्मीद है कि एक दिन मैं एक आदर्श पड़ोसी बनने में सफल हो जाऊंगा। आखिरकार, जिनसे हमारा रोज का सामना होता है, उन्हें प्यार और सम्मान देना ही तो असली इंसानियत है। एक अच्छा पड़ोसी बनने की अगर कोई किताब आती तो कृपया मुझे बताएं, सबसे पहले मुझे उसका ऑर्डर देना है।

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