पाडिन्याम का फूल (मीजी जनजाति) : अरुणाचल प्रदेश की लोक-कथा
Padinyam Ka Phool : Folk Tale (Arunachal Pradesh)
एक समय की बात है, एक गाँव में दो भाई-बहन रहते थे। दोनों के माँ--बाप उनके बचपन में ही गुजर गए थे। वे आपस में बहुत प्रेम से रहते थे। बहन का नाम पाडिन्याम था। उसका भाई उसे अपनी जान से भी ज्यादा चाहता था । वह बहन को खुश रखने का हरसंभव प्रयास करता था। जब भी वह काम के लिए बाहर जाया करता था, अपनी बहन के लिए कुछ-न-कुछ अवश्य ला देता था। अपनी बहन पाडिन्याम के जिद करने पर एक सुंदर लड़की से उसने विवाह भी कर लिया। शुरू-शुरू में सभी खुशी से रहने लगे। पर कुछ दिनों के बाद भाभी ने अपना असली रूप दिखाना शुरू कर दिया। वह पाडिन्याम को पसंद नहीं करती थी, इसलिए उसे तरह-तरह से सताने लगी। परंतु अपने पति के सामने उससे प्यार का दिखावा भी करती थी।
एक दिन भाई को कुछ काम से बाहर जाना पड़ा, परंतु जाते-जाते अपनी पत्नी से वह यह कहकर गया कि वह पाडिन्याम की देखभाल अच्छे से करे, लेकिन उसके जाने के बाद उसकी पत्नी पाडिन्याम को दिन भर काम में लगाती और छोटी-छोटी बातों पर उसे मारने-पीटने लगती। इस प्रकार एक दिन उसने पाडिन्याम को मार डाला। लोगों को पता न चले, इसलिए उसने पाडिन्याम के मृत शरीर को अपने घर के पीछे गाड़ दिया। कुछ दिनों के बाद उसी स्थान पर जहाँ पाडिन्याम को गाड़ा गया था, एक लौकी का सुंदर लहलहाता पौधा उग आया। उसमें कई फल लगे हुए थे। हर कोई उस लौकी के उन फलों को ललचाई नजरों से देखता था । परंतु उसे कोई तोड़ने का प्रयास करता तो उससे एक आवाज आती - 'मुझे मत तोड़ो। मैं पाडिन्याम हूँ और यहाँ अपने भाई का इंतजार कर रही हूँ।' लोग आश्चर्यचकित होकर उस बोलनेवाली लौकी के पौधे को देखते रहते। जब पाडिन्याम की भाभी को इस बात की खबर लगी तो उसने जाकर उस लौकी के पौधे को उखाड़ दिया और नदी में फेंक आई। लौकी का पौधा बहता हुआ एक पुल पर फँस गया और फिर एक सुंदर फूल के रूप में बदल गया।
कुछ दिनों के बाद जब पाडिन्याम का भाई उसी पुल से होकर वापस अपने घर आ रहा था, तब उसकी नजर उस फूल पर पड़ी और उसके मन में आया कि मैं उस फूल को तोड़कर अपनी प्यारी बहन पाडिया के लिए ले चलूँ। परंतु जैसे ही वह उसे तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाने लगा, फूल से आवाज आई, "मुझे मत तोड़ो भैया, मैं आपकी बहन पाडिन्याम हूँ।” भाई यह सुनकर आश्चर्यचकित रह गया और फिर पूरे वाकये को सुनने के बाद उसे अपनी पत्नी पर बहुत क्रोध आया और वह अत्यंत दुःखी हुआ । उसकी दशा देखकर पाडिन्याम ने उससे कहा कि "मैं आपके जीवन में वापस तो नहीं आ सकती, क्योंकि मृत्यु के बाद फूल बन चुकी हूँ, परंतु आप मुझसे एक वादा करें कि जब भी मैं फूल बनकर खिलूँगी, उसी समय आप अपने खेत में धान, मकई एवं सब्जियाँ लगाएँगे। ऐसा करने पर आपको अच्छी फसल की प्राप्ति होगी।" भाई ने पाडिन्याम से यह वादा किया और फिर वह रोते-रोते अपने घर चला गया। वहाँ उसने ठीक वही किया, जो उसकी बहन ने उसे करने को कहा था। उसके बाद से वाकई में उसकी खेती से अच्छी फसल की उपज होने लगी। तब से लेकर आज भी मीजी समाज में पाडिन्याम के फूल को बहुत आदर दिया जाता है और जब भी वह फूल खिलता है, तो मीजी समाज के लोग अपने-अपने खेतों में धान, मकई तथा सब्जी आदि लगाते हैं।
(साभार : बनीश्री पर्टिन)