पाँचवीं चतुराई : जर्मन लोक-कथा
Paanchvin Chaturai : Lok-Katha (German)
एक गाँव में एक व्यक्ति अपने चार बेटों के साथ रहता था । वह अपने बेटों को बहुत प्यार करता था । उन सभी में आपस में बहुत प्रेम था। व्यक्ति ने बचपन से ही अपने चारों बेटों को अच्छे संस्कार दिए थे और परिवार का महत्त्व बताते हुए कहा था कि 'बेटा, तुम चारों साथ रहकर दुनिया को हिला सकते हो, लेकिन जहाँ तुममें दूरियाँ हुईं या तुम अलग- थलग हुए तो फिर दुनिया तुम्हें हिला देगी। इसलिए निर्णय तुम्हारे हाथ में है कि तुम्हें एक साथ मिल-जुलकर प्रेम से रहना है या फिर अलग- थलग।' पिता की बात बेटों ने ध्यान से सुनी और बोले, 'पिताजी, चाहे जीवन में कैसी भी परिस्थितियाँ आएँ, हम चारों भाई हमेशा प्रेम से मिल-जुलकर रहेंगे।' पिता यह सुनकर बहुत खुश हुआ।
एक दिन चारों भाई पिता से बोले, 'पिताजी, अब हम बड़े हो गए हैं। हम चारों को कोई-न-कोई हुनरवाला काम सीखना चाहिए। अब आपको आराम करना चाहिए और हम सबको काम ।' पिता ने बच्चों की बात से सहमति जताई और उन्हें काम सीखने की अनुमति दे दी। चारों भाई चल दिए। एक चौराहे पर उन्होंने आपस में कहा, 'आज से तीन महीने बाद हम यहीं मिलेंगे।' इसके बाद चारों भाई चार दिशा की ओर चल पड़े।
पहले भाई को एक ऐसा व्यक्ति मिला, जो सफाई से किसी भी व्यक्ति या वस्तु को उठाना जानता था। उसने उसे वे सारे गुर सिखा दिए। दूसरा भाई एक खगोलशास्त्री से मिला । खगोलशास्त्री ने उसे दूर-दूर तक की वस्तुओं को जानने की कला सिखाई और साथ ही उसे एक ऐसा यंत्र दिया, जिससे दूर-दूर की चीजें देखी जा सकती थीं। तीसरे भाई को एक शिकारी मिला। उस शिकारी का निशाना अचूक था। शिकारी ने तीसरे भाई को अचूक निशानेबाज बना दिया। चौथे भाई को शहर में एक दरजी मिला। वह दरजी बहुत अद्भुत था। अपने हुनर से वह हर टूटी-फूटी चीज को कुशलता से सिल सकता था। उसने चौथे भाई को हुनर सिखाने के साथ ही उसे एक सुई भी प्रदान की। उस सुई से किसी भी चीज में टाँके लगाकर उसे पहले की तरह बनाया जा सकता था ।
तीन महीने बाद चारों उसी स्थान पर मिले, जहाँ से वे अलग हुए थे। वे चारों अपने पिता के पास पहुँचे। पिता ने चारों बेटों की कला देखी। उनकी अद्भुत कला देखकर वह बहुत प्रसन्न हुए और बोले,
'आज से तुम चारों बेटे चार चतुर हो। मैं तुम्हारी चतुराई और कला से बहुत प्रभावित हुआ हूँ।' अपने पिता को खुश देखकर चारों भाई बहुत खुश हुए और काम करने लगे।
एक दिन जब चारों भाई काम कर रहे थे तो उन्होंने राजा के द्वारा करवाई गई घोषणा सुनी। हर ओर यह मुनादी की जा रही थी कि राजा की एकमात्र बेटी को ड्रेगन उठाकर ले गया है। जो कोई राजकुमारी को उस ड्रैगन के चुंगल से मुक्त कराएगा, उससे राजकुमारी का विवाह कर दिया जाएगा।' यह सुनकर चारों भाई अपने पिता के पास पहुँचे और वहाँ जाकर सारी बात बताई। पिता ने चारों भाइयों को आदेश दिया कि चारों राजकुमारी को ड्रेगन से बचाकर सकुशल राजा के पास पहुँचा दें। दूसरे भाई ने यंत्र से देखकर पता लगाया कि ड्रेगन राजकुमारी को कहाँ लेकर गया है। राजकुमारी को ढूँढ़ने के बाद पहला भाई बेहद सतर्कता से वहाँ पहुँचा और राजकुमारी को इस कुशलता से उठाकर लाया कि ड्रेगन को उसके आने की आहट तक न हुई। चारों राजकुमारी को लेकर नाव में बैठ गए। तभी ड्रेगन उड़ता हुआ उनकी ओर आने लगा । यह देखकर निशानेबाज भाई ने अपना निशाना ड्रेगन की ओर लगाया। तीर ड्रेगन के गले में जा धँसा। वह मरकर सीधा नाव पर आ गिरा। नाव ड्रेगन का भार सहन नहीं कर पाई और चूर-चूर हो गई। यह देखकर चौथे भाई ने जल्दी से सुई की सहायता से नाव को सिल दिया ।
इसके बाद चारों भाई राजकुमारी को लेकर राजा के पास पहुँचे और उसे राजा को सौंप दिया। अपनी बेटी को सही-सलामत देखकर राजा बहुत खुश हुआ। वह खुशी से बोला, 'तुमने राजकुमारी को बचाकर बहुत नेक काम किया है। पर तुम चार हो और राजकुमारी एक मैं अपनी बेटी का विवाह तुममें से किसके साथ करूँ ? इसका फैसला कैसे होगा ? राजा की बात सुनकर चारों भाई एक-दूसरे की ओर देखने लगे। उन्होंने आपस में सलाह की और राजा से अनुरोध करते हुए बोले, 'महाराज ! राजकुमारी को पाने के लिए हम आपस में लड़ना नहीं चाहते। हमने उसे ड्रेगन से बचाकर अपना फर्ज अदा किया है। हमें राजकुमारी से विवाह नहीं करना । ' चारों युवकों की बात सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। उसने चारों भाइयों को ढेर सारे इनाम दिए । घर लौटकर चारों ने अपने पिता को सारी बात बताई। सारी बात जानने के बाद पिता मुसकराकर बोले, 'तुम चारों ने अपना-अपना काम किया, फिर यह पाँचवीं चतुराई तुमने कहाँ से सीखी ?"
'आपसे और किससे ?' यह कहकर चारों अपने पिता से लिपट गए।
(साभार : रेनू सैनी)