पान-सुपारी की कहानी : मेघालय की लोक-कथा

Paan-Supari Ki Kahani : Lok-Katha (Meghalaya)

बहुत पहले की बात है, एक पहाड़ की तलहटी में बसे छोटे से गाँव में दो लड़के रहते थे, जो एकदूसरे के अभिन्न मित्र थे। उनमें से एक का नाम उ रिउभा था, जो बहुत अमीर परिवार से था और दूसरा उ बाडुक था, जो बहुत गरीब परिवार से था, परंतु उनके इस सामाजिक और आर्थिक अंतराल के कारण उनके आपसी प्रेम में कभी कोई कमी नहीं आने पाई। अकसर रोज वे घर से बाहर निकलकर आपस में मिलते और दूर जंगलों में चिड़ियों की बोली बोलते हुए फूलों की सुगंध के बीच दिन भर घूमते-फिरते। वे साथ-साथ नदियों में तैरते, तीर-धनुष चलाना सीखते और साथ-साथ बाँस की बाँसुरियाँ बनाकर उसे देर तक बजाते रहते। इस तरह उन्हें एक-दूसरे के साथ अधिक-से-अधिक समय बिताना अत्यंत प्रिय लगता था।

जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, जीवन के तमाम कार्यों में उनकी व्यस्तता बढ़ती गई और उन्हें साथ-साथ रहते हुए समय बिताने का अवसर कम मिलने लगा। उ रिउभा अपने माता-पिता के काम में हाथ बँटाने लगा और उसे कई-कई दिनों तक व्यापार के सिलसिले में गाँव से दूर रहना पड़ता, जबकि उ बाडुक को खेतों में काम करके धान उपजाना होता था, जिससे उसके परिवार का भरण-पोषण हो सके। इसके बावजूद उनके बीच की मित्रता उसी तरह मजबूत बनी रही। वे एक-दूसरे पर पूरी तरह आज भी विश्वास करते और अपने किसी भी रहस्य को एक-दूसरे से कभी नहीं छुपाते थे।

समय बीतता गया और वे बड़े होते गए। आगे चलकर उनके विवाह हुए और वे अपने परिवार के मुखिया बन गए। उ रिउभा की पत्नी उसी की तरह अमीर घराने से थी, जिसके कारण उ रिउभा की धन-संपत्ति पहले से भी अधिक बढ़ गई और वह अधिक संपन्न और प्रभावशाली होकर गाँव का मुखिया बन गया। उ बाडुक का विवाह दूसरे गाँव के एक गरीब घर की युवती से हुआ। दोनों अत्यंत प्रेम से रहते हुए दिन भर खेत में मेहनत करते और अपने परिवार के लिए धान उपजाते। गरीबी में रहते हुए भी वे दोनों अत्यंत खुश थे और अपने माता-पिता के साथ खुशहाल जिंदगी जी रहे थे। उ बाडुक की पत्नी बहुत कर्मठ और मधुर स्वभाव वाली थी। दोनों कंधे से कंधा मिलाकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रहे थे।

इस प्रकार जीवन की आपाधापी में दोनों मित्र एक-दूसरे से दूर होते चले गए और दोनों को आपस में मिलने का बहुत कम अवसर मिल पाता। बावजूद इसके दोनों के आपसी प्रेम-संबंध में कोई कमी नहीं आने पाई, बल्कि समय बीतने के साथ-साथ उनकी मित्रता और गहरी और प्रगाढ़ होती गई, जब कभी अवसर मिलता उ बाडुक अपने मित्र से मिलने उसके गाँव चला जाता। ऐसे अवसर पर उसका मित्र उ रिउभा बड़ी गर्मजोशी से उससे मिलता, उसका खूब आदर-सत्कार करता और दोनों अत्यंत प्रेम से एक-दूसरे के साथ समय गुजारते। वे दोनों साथ-साथ अपने अतीत के दिनों की स्मृति में डूब जाते। पुराने दिनों की याद ताजा हो जाती और उनकी मित्रता पहले से और अधिक मजबूत हो जाती। कई दिन बाद जब उ बाडुक अपने घर लौटता तो अपनी मित्रता की, अपने मित्र की उदारता और सुंदर स्वभाव की तारीफ अपनी पत्नी से करता।

ऐसे ही एक बार जब उ बाडुक अपने मित्र से मिलकर वापस अपने गाँव लौटा, उसकी पत्नी ने उससे कहा कि उसके पड़ोसी उसके अमीर मित्र के बारे में तरह-तरह की बातें किया करते हैं। उसने कहा कि लोगों का विचार है कि ऐसी मित्रता कभी नहीं टिकती। यह केवल दिखावे के लिए होती है। लोग यह भी कहते हैं कि यदि दोनों में इतनी ही गहरी दोस्ती है तो उनका अमीर मित्र उनकी स्थिति जानने-समझने के लिए कभी उनके घर क्यों नहीं आता। पहले तो उसने पत्नी की इन बातों पर ध्यान नहीं दिया, लेकिन चूँकि लोग उसके सबसे प्रिय दोस्त के बारे में बात कर रहे थे, इसलिए उसने निश्चय किया कि एक दिन वह अपने मित्र को अपने घर अवश्य आमंत्रित करेगा।

अगली बार जब वह अपने दोस्त के यहाँ गया तो हमेशा की तरह गर्मजोशी से उसका खूब स्वागतसत्कार हुआ, तब उ बाडुक ने अपने मित्र से कहा कि मैं तुमसे मिलने हमेशा आता रहता हूँ और मुझे तुम्हारा आदर सत्कार लगातार मिलता है, लेकिन मेरे विवाह के पश्चात् तुम एक बार भी मुझसे मिलने मेरे घर नहीं आए। यह सुनकर उ रिउभा ने कहा, "तुम सही कह रहे हो मेरे मित्र, परंतु ऐसा नहीं है कि मैंने पहले इसके बारे में नहीं सोचा है। तुम्हें पता ही है कि मेरे ऊपर व्यापार की बहुत जिम्मेदारियाँ हैं और मुझे अपने जीवन में अपने मनपसंद सुख के क्षण जीने का बहुत कम अवसर मिल पाता है। मुझे तुम्हारे यहाँ न आ सकने का दुःख लगातार रहता है, लेकिन मैं अपनी इस गलती को जल्द ही ठीक करूँगा। तुम अपनी पत्नी से कहना कि मैं जल्दी ही तुम लोगों से मिलने तुम्हारे घर आऊँगा और फिर हम सब साथ बैठकर उसके हाथ का पकाया हुआ स्वादिष्ट भोजन करेंगे।" उसने यह भी कहा कि मैं कल ही तुम्हारे घर के लिए प्रस्थान करूँगा और शाम होते-होते वहाँ पहुँच जाऊँगा।

अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक उत्साह से भरा हुआ उ बाडुक जल्दी-जल्दी अपने घर आया और अपनी पत्नी को मित्र के आने की सूचना दी। उसने उससे कहा कि अगले दिन वह जल्दी उठकर जितना अच्छा भोजन वह पका सकती है, पका ले, क्योंकि वह अपने मित्र का स्वागत यथासंभव बेहतरीन तरीके से करना चाहता था। मित्र के आने की खबर सुनकर उसकी पत्नी भी बहुत खुश हुई, लेकिन अत्यंत चिंतित स्वर में उसने उ बाडुक से कहा कि उसके घर में इस समय न तो मछलियाँ हैं और न ही खाना पकाने के लिए अनाज का एक दाना भी। वह उसके मित्र का स्वागत किस प्रकार करेगी। यह सुनकर दोनों ही प्राणी अत्यंत चिंतित हो गए। “सचमुच यह तो बड़े दुर्भाग्य की बात है," उ बाडुक ने कहा, "इतनी गरीबी किस काम की कि हम अपने प्रिय मित्र के स्वागत में उसे खाना तक न खिला सकें।"

अचानक उ बाडुक के चेहरे पर आशा की एक किरण नजर आई। उसने कहा-हमारे गाँव के लोग और हमारे पड़ोसी बहुत ही अच्छे स्वभाव वाले हैं और हमने उनसे आज तक कभी किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं माँगी है। तुम जल्दी से पड़ोसियों के घर चली जाओ और जिनसे जो कुछ हो सके, माँगकर ले आओ, जिससे मित्र के स्वागत के लिए कुछ-न-कुछ तो भोजन अवश्य बन सके, क्योंकि यह तो उचित नहीं है कि इतने दिनों बाद प्रिय मित्र घर आए और हम उसे खाना तक न खिला सकें।

उ बाडुक की पत्नी ने वैसा ही किया, जैसा उसके पति ने उससे कहा था। वह तुरंत अपने पड़ोसियों के पास गाँव के इस छोर से उस छोर तक गई, लेकिन पूरे गाँव में घूमने के पश्चात् भी उसे किसी से कुछ भी प्राप्त न हो सका। न तो उसे मछली मिली और न ही चावल का एक दाना। वह अत्यंत दुःखी और उदास होकर घर लौट आई और पूरी बात अपने पति से बताई, जब उ बाडुक ने अपनी पत्नी की बात सुनी तो उसे दुःख हुआ। अत्यंत दु:खी और परेशान होकर वह सोचने लगा कि ऐसे समाज और परिस्थिति में जीने से क्या फायदा कि वह अपने सबसे प्रिय मित्र के खाने के लिए कुछ जुटा नहीं सकता। यह कैसी दुनिया है, जहाँ हम लोग रहते हैं? लोग आपस में इतनी भी सहायता नहीं करते कि हम अपने प्रिय मित्र के स्वागत में उसे एक समय का खाना खिला सकें? उसका हृदय दुःख और पीड़ा से कराह उठा। ऐसी दुनिया में रहने से तो अच्छा है कि हम यह जीवन ही समाप्त कर दें। दुःख और पीड़ा के आघात से वह इतना टूट चुका था कि उसने पास में रखे एक दाव को उठाया और उसे अपने छाती में घोंपकर अपने प्राण त्याग दिए।

जब उसकी पत्नी ने देखा कि उसके प्रिय पति ने दुःख और पीड़ा से अपने प्राण त्याग दिए हैं तो वह अत्यंत व्याकुल होकर चीख-चीखकर विलाप करने लगी, अब मेरे लिए इस दुनिया में रखा ही क्या है, उसने सोचा-मेरे प्रिय पति ने इस प्रकार अपने प्राण त्याग दिए। बिना प्रिय पति के इस प्रकार जीने से बेहतर है कि मैं भी अपने प्राण त्याग दूँ। यह कहकर उसने भी दाव को अपने सीने में मारकर अपने प्राण दे दिए।

उसी रात एक दुष्ट चोर, जिसका नाम नांग्तुह था, चोरी की ताक में चारों ओर घूम रहा था, क्योंकि बहुत ठंड पड़ रही थी। वह रात बिताने के लिए ऐसे किसी घर की खोज में था, जहाँ वह छिपकर भयंकर ठंड से अपने को बचा सके। अचानक उसकी निगाह उ बाडुक और उसके घर पर पड़ी। उसने देखा कि घर में आग जल रही थी, लेकिन चारों ओर गहरा सन्नाटा पसरा हुआ था। किसी को आसपास न देखकर उस चोर ने सोचा कि ये मेहनती लोग थककर गहरी नींद में सो चुके हैं। उसने जलती हुए आग के पास छिपकर अपने को ठंड से बचाने की सोची। वह चुपचाप एक किनारे छुपकर बैठ गया। जलते हुए अलाव से उसे बहुत आराम महसूस हुआ। उसे इस बात का जरा भी एहसास नहीं हो सका कि उसके पास ही फर्श पर दो लोगों का मृत शरीर पड़ा हुआ है।

आग की गरमी से आराम मिलने पर नांग्तुह को कुछ झपकी आने लगी और वह जल्दी ही गहरी नींद में सो गया, अगले दिन जब उसकी आँख खुली तो दिन चढ़ आया था। वह हड़बड़ाकर जल्दी से उठा और सोचा कि गाँववालों के एकत्र होने से पहले ही वह वहाँ से भाग जाए, लेकिन अचानक उसकी निगाह पास ही पड़े दो मृत शरीरों पर पड़ी और वह अत्यधिक भयभीत हो उठा। वह भय से काँपने लगा। वह अपने आप से बोला, यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि मैं रात में इस घर में आया। लोग सोचेंगे कि मैंने ही इन दोनों की हत्या की है। मैं कितनी भी सफाई क्यों न हूँ, लोग मुझ चोर का विश्वास क्यों करेंगे। गाँव के लोगों द्वारा पकड़े जाने और हत्यारे की तरह बदनाम होने और मारे जाने से बेहतर तो यही है कि मैं खुद ही अपने प्राण त्याग दूं। यह सोचकर उसने भी पास पड़ा हुआ दाव उठाया और अपने सीने में मारकर अपने प्राण दे दिए, अब वहाँ तीन मृत शरीर पड़े थे। तीनों की मृत्यु का एक ही कारण था कि मित्र के स्वागत-सत्कार के लिए घर में अनाज का एक दाना भी उपलब्ध न था।

जब दिन चढ़ आया तो लोगों ने देखा कि उ बाडुक के घर में सन्नाटा पसरा हुआ है और कोई भी गतिविधि नहीं दिखाई दे रही है, जब गाँववाले एकत्र हुए तो उन्हें उ बाडुक, उसकी पत्नी और चोर के शव दिखलाई दिए। उन्हें याद आया कि किस प्रकार उ बाडुक की पत्नी उनके घर मित्र के स्वागत के लिए भोजन हेतु चावल और मछली माँगने आई थी।

उधर अपने वायदे के मुताबिक उ रिउभा सज-धजकर शाम होते-होते अपने मित्र के घर उससे मिलने पहुँच गया, जब उसे अपने मित्र के साथ घटित इस दुःखद घटना की जानकारी हुई, उसके दुःख का पारावार न रहा। वह अपने मित्र के मृतक शरीर के पास बैठकर अत्यंत करुण स्वर में विलाप करने लगा, “यह संसार कितना क्रूर और निष्ठुर है, जिसने उसके प्रिय मित्र को इतनी निर्ममता से छीन लिया है। यहाँ अपने मित्र को भोजन कराने के लिए उसे मुट्ठी भर अनाज तक नहीं मिलता। आखिर मित्र के स्वागत की ऐसी आवश्यकता ही क्यों है कि उसकी पीड़ा में मित्र को अपने प्राण तक दे देने पड़ें। इस प्रकार के नियम के कारण ऐसे निर्मल हृदय मित्र का बिछुड़ना कितना अधिक पीड़ादायक है।"

वह घंटों तक विलाप करता रहा और ईश्वर से प्रार्थना की कि वह कुछ ऐसा करे कि आगे से ऐसी दुःखद घटना फिर घटित न हो सके। वह कुछ ऐसा रास्ता दिखाए कि गरीब-से-गरीब व्यक्ति भी अपने मित्र का स्वागत जो उसके पास है, उसी से करे और स्वागत न कर पाने को सामाजिक अपमान और प्रतिष्ठा की दृष्टि से न देखा जाए।

उसकी करुण पुकार सुनकर अचानक ईश्वर वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने उ रिउभा के दुःख को महसूस किया। वे उस पर द्रवित हो उठे। परम पिता ने उससे कहा कि आज के बाद वे इस पृथ्वी पर तीन ऐसी वस्तुएँ उत्पन्न करेंगे, जिसकी सहायता से भविष्य में गरीब और अमीर दोनों ही बिना किसी भेदभाव और संकोच के अपने मित्र का स्वागत सम्मानपूर्ण तरीके से कर सकेंगे। दोनों के स्वागत के तरीकों में कुछ भी अंतर न रहेगा। इसके बाद जहाँ तीनों के मृत शरीर पड़े थे, वहाँ से तीन ऐसे पौधे उत्पन्न हुए, जो पहले इस पृथ्वी पर कहीं नहीं थे। वे पौधे पान, सुपारी और तंबाकू के थे।

उसी समय से खासियों में यह रिवाज चल पड़ा कि जब भी कोई मित्र किसी के घर पहुँचेगा, वे उसका स्वागत पान, सुपारी और तंबाकू से ही करेंगे। चाहे अमीर हो या गरीब, सभी के स्वागत का तरीका एक ही तरह का होगा , जिससे लोगों को छोटे -बड़े का भेद महसूस न हो ।

(साभार : माधवेंद्र/श्रुति)

  • मेघालय की कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां