हमारे पड़ोसी (अंग्रेजी कहानी) : चार्ल्स डिकेंस

Our Next-Door Neighbour (English story in Hindi) : Charles Dickens

हम सब लोग जब सड़क पर चल रहे होते हैं तो हमें यह जानने का बड़ा कौतूहल रहता है कि हमारे आसपास रहनेवाले कैसे हैं और वे क्या करते हैं? और इस सब में हमें सबसे ज्यादा मदद उनके मुख्य द्वार को देखने से मिलती है, जो सड़क पर खुलता हो। आदमी के चेहरे पर आने-जानेवाले हाव-भाव का अध्ययन बहुत ही खूबसूरत और दिलचस्प होता है; पर मुख्य दरवाजे पर लगे डोर-नॉकर या खट-खट करनेवाले लोहे के छल्ले (कुंडे) की बनावट से भी हम उसमें रहनेवालों के बारे में काफी कुछ सही-सही अंदाजा लगा सकते हैं। जब हम किसी आदमी से पहली बार मिलने जाते हैं तो हम उसके दरवाजे पर लगे डोर नॉकर की बनावट से बहुत कु छ उस आदमी के बारे में जान सकते हैं; क्योंकि हमें यह अच्छी तरह पता है कि सामने लगे 'डोर-नॉकर' और अंदर रहनेवाले आदमी में काफी कुछ समानता हो सकती है।

उदाहरण के तौर पर एक नॉकर, जो अकसर लोगों के घरों के बाहर लगा रहता है, उसके छल्ले के अंदर एक हँसते-मुसक राते हुए शेर का चेहरा बना रहता है, जिससे आप यह अंदाजा लगा सकते हैं कि भीतर रहनेवाला आदमी कदापि गँवार नहीं हो सकता। वहाँ जाने पर आपका गर्मजोशी से स्वागत होगा और हो सकता है, आपको एक प्याला गरम चाय या कुछ मदिरा पान करने के लिए मिल जाए।

इस तरह का डोर-नॉकर किसी छोटे-मोटे वकील या ब्रोकर (दलाल) के यहाँ नहीं मिलेगा। उसके नॉकर पर एक अलग किस्म का 'शेर' बना पाया जाएगा-एक भारी व भयानक दिखनेवाले शेर का चेहरा, जो कि एक प्रकार की जंगली मूर्खता को बयाँ करता है। डोर-नॉकर्स में एक तरह का ग्रैंड मास्टर और स्वार्थी, निर्दयी व कठोर व्यक्ति को दरशाता है। फिर एक प्रकार का खूबसूरत सा मिस्त्री या इजिप्शियन नॉकर, जिसमें एक लंबा चेहरा, थोड़ी उठी हुई नाक और तराशी हुई ठुड्डी (चिन) होती है। इस प्रकार का नॉकर बहुधा सरकारी दफ्तरों में काम करनेवाले लोगों के घर के बाहर दरवाजे पर लगा होता है। वह हलके, मद्धिम या फीके रंगों के कपड़े पहनता होगा और गले में कलफ लगी कै वे या नैक टाई लगाता होगा। छोटा सा स्पेयर अपने आपको बहुत ही ठीक-ठाक और महत्त्वपूर्ण समझनेवाला आदमी होगा तथा जो अपनी राय को बिल्कुल सही समझता होगा।

कुछ साल पहले हम एक नए प्रकार के नॉकर, जिसमें कोई चेहरा नहीं था, देखकर चकरा गए, जिसमें एक छोटे से हाथ या छड़ी से फूलों की एक गोल माला लटक रही थी। फिर कुछ अनुसंधान और खोजबीन से हमें यह पता चला कि इस प्रकार के नॉकर या द्वार खटखटानेवाले ऐसे लोगों के घर में लगे रहते हैं, जो बहुत औपचारिक और ठंडे किस्म के लोग होते हैं, जो आपसे हमेशा यह कहेंगे कि आप आते क्यों नहीं; पर कभी भी आपसे अंदर आने को नहीं कहेंगे।

सब लोग यह जानते हैं कि उपनगरीय बड़े-बड़े विला टाइप घरों में और विस्तृत विशाल स्कूलों, जिसमें छात्रावास भी होते हैं, में पीतल के नॉकर्स लगे रहते हैं और इस प्रकार के नॉकर को देखने के बाद हमने अन्य प्रकार के नॉकर्स का विवरण ऊपर देने का प्रयास किया।

कुछ कपाल-विज्ञानी इस बात का दावा करते हैं कि आदमी के अंदर भिन्न प्रकार की भावनाएँ और आवेग उसकी खोपड़ी की बनावट के विकास को प्रभावित करते हैं। इसके कहने का तात्पर्य यह नहीं है कि आदमी के स्वभाव के परिवर्तन उसके दरवाजे पर लगे नॉकर में परिलक्षित होंगे। हम केवल यह कह सकते हैं कि हो सकता है, जो चुंबकत्व या आकर्षण एक व्यक्ति और नॉकर में होता है, उसके मद्देनजर वह अपने नॉकर को अपने व्यक्तित्व के अनुसार बदल दे। यदि आप बिना किसी कारण के ही अपना घर बदलते हुए पाएँ तो आप यह मानकर चलिए कि उसके व्यक्तित्व और नॉकर में सामंजस्य न होने के कारण उसने ऐसा किया; पर वह स्वयं इस तथ्य से अवगत नहीं होता है। यह एक नई थ्योरी या सिद्धांत है, पर मैं इसे प्रतिपादित करने का जोखिम उठा रहा हूँ।

नॉकर्स के बारे में इतनी कुछ व्याख्या करने के बाद हमें यह बड़ी चिंता का विषय लगा कि हमारे बगलवाले पड़ोसी ने अपना नॉकर बिलकुल ही हटवा दिया और उसकी जगह एक घंटी लगवा दी। यह एक ऐसी आपदा या परिस्थिति थी जिसकी हमने कभी कल्पना नहीं की थी। कोई आदमी बिना नॉकर के रह सकता है, यह विचार ही बड़ा विचित्र और भयानक लगता है, जो हमारे दिमाग में एक क्षण के लिए भी घुस नहीं सकता और हमारी कल्पना के परे है।

इसी तरह से घूमते-फिरते हम एटन स्वचैर पहुँच गए, जो कि उस वक्त केवल एक बिल्डिंग थी। पर हम इस चीज को नोट करके बहुत अचंभित हुए और चौंके भी कि घंटियों या डोर बेल्स का चलन बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है और 'डोर नॉकर' तो लुप्त होते जा रहे थे। इससे नॉकर्स के बारे में हमारी थ्योरी गलत साबित हो सकती या उसका आधार ही खत्म होता जा रहा था। हम जल्दी-जल्दी घर आ गए और यह देखते हुए कि नॉकर्स की प्रथा अब खत्म होती जा रही थी, हमने विचार कि अब हम किसी व्यक्ति के बारे में उसको देखकर ही कोई धारणा बनाएँगे।

हमारे घर की बाई ओर जो घर था, वह आजकल खाली था। अतः हमारी दाई ओर जो घर था, उसके निवासियों के बारे में देखने-सुनने का पर्याप्त समय था।

दाएँ हाथवाला घर, जिसमें नॉकर नहीं था, वह एक सिटी क्लर्क के कब्जे में था और उसकी बैठक की खिड़की पर एक नोटिस चस्पाँ थी कि एक अकेले आदमी के रहने के लिए यहाँ कमरा उपलब्ध है।

वह घर सड़क के छायादार हिस्से में एक छोटा सा साफ-सुथरा मकान था। उसके पैसेज में एक नया पतला फर्श का बिछावन था और पहली मंजिल तक जो सीढियाँ जा रही थीं, उस पर भी नई पतली कालीन बिछाई हुई थी। वॉल पेपर भी नया था, रंग-रोगन भी नया किया गया था तथा फर्नीचर भी नया था। इन तीनों चीजों को देखकर ऐसा लगता था कि किराएदार एक सीमित साधनों का आदमी था। ड्रॉइंग रूम में भी एक छोटी लाल-काले रंग की कारपेट थी और उसके चारों ओर बॉर्डर की फर्श थी। छोटी सी मेज और कुछ धब्बेवाली कुरसियाँ भी थीं। एक छोटे से साइडबोर्ड के दोनों ओर गुलाबी रंग के शेल्स (शंख) रखे थे और एक आतशदान पर कुछ और पिंक शेल्स रखे थे। और उन सबके ऊपर तीन मोर पंख सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाए हुए थे। यही सब उस कमरे की सजावट को पूरा करते थे। इस कमरे में दिन के समय एक भद्रलोक को बैठाया जा सकता था। इस कमरे के पीछे एक और कमरा था, जो रात में उसका बेडरूम था।

खिड़की में लगी नोटिस ज्यादा दिन तक चिपकी नहीं रह पाई, क्योंकि जल्द ही एक आदमी, जो गठीले बदन का था और जिसकी उम्र लगभग 35 साल की रही होगी, वह किराए पर रहने के लिए आया और संभवतः जल्दी ही किराया आदि और अन्य चीजें तय हो गई होंगी; क्योंकि शीघ्र वह नोटिस हटा ली गई थी। एक-दो दिन बाद ही वह अकेला आदमी रहने के लिए आ गया और अब उसका असली चरित्र निकलकर आया।

सबसे पहले तो उसे रात में 3-4 बजे तक जगे रहने की आदत थी और उस वक्त वह व्हिस्की में पानी मिलाकर पीता रहता और तमाम सिगार भी फूंकता रहता था। फिर वह अपने दोस्तों को बुलाने लग गया, जो रात में 10 बजे और अल सुबह तक वहाँ गुल-गपाड़ा मचाते रहते थे। वे मिल-जुलकर जोर-जोर से आधा दर्जन गानों की दो लाइनें गाते थे और फिर कोरस में जोर-जोर से कोई अन्य गाना गाने लग जाते थे, जिससे उनके पड़ोसियों को बहुत परेशानी होती थी और उस एकाकी आदमी की तकलीफ का तो आप अंदाजा लगा ही सकते थे।

अब, यह तो बड़ी गड़बड़ बात थी और ऐसा हफ्ते में तीन बार होता था। और यही सबकुछ नहीं था, क्योंकि जब वे लोग अल सुबह बाहर निकलकर जाते थे, तब भी रास्ते में वे तरह-तरह की आवाजें जोर-जोर से निकालते और कभी-कभी तो ऐसी आवाज में चिल्लाते, जैसे कोई औरत बहुत परेशानी में हो। और एक दिन रात को तो ऐसा हुआ कि लाल चेहरेवाले एक आदमी, जिसने सफेद रंग का हैट लगाया हुआ था, ने घर नं. 3 में जाकर दरवाजा खटखटाया, जिसमें सफेद बालोंवाला एक आदमी रहता था। उस आदमी ने सोचा कि शायद उसकी किसी विवाहित लड़की की समय से पूर्व तबियत खराब हो गई हो, वह अँधेरे में टटोलते हुए सीढियों से नीचे उतरा और कई चिटखनियाँ और ताले खोलने के बाद दरवाजा खोला। दरवाजा खोलने पर उसने देखा कि सामने लाल मुँहवाला एक आदमी, जो सफेद रंग का हैट पहने हुए था, खड़ा था और जिसने आधी रात में दरवाजा खटखटाने के लिए माफी माँगी और कहा कि-"क्या उसे एक गिलास ठंडा झरनेवाला पानी मिल सकता था? और साथ में एक शिलोंग का उधार भी, जिससे वह कैब लेकर घर पहुँच सके?" इतना सुनकर उस वृद्ध आदमी ने अपना दरवाजा जोर से बंद कर लिया और ऊपर जाकर खिड़की खोलकर जग का सारा पानी नीचे उस पर फेंक दिया। पर गलती से वह पानी किसी दूसरे आदमी के ऊपर पड़ा और उसके बाद सारी गली में शोर-शराबा मच गया।

एक मजाक, एक मजाक ही होता है और यदि दूसरा आदमी उस मजाक को समझ सके तो बहुत अच्छी बात है, वरना बात बिगड़ सकती है। पर हमारी गली में जो लोग रहते थे, वे बड़े सुस्त किस्म के लोग थे और इस तरह के मखौल आदि को समझने में असमर्थ थे। इस सबका परिणाम यह हुआ कि हमारे पड़ोस में जो सज्जन अकेले रहते थे, उनको अपने किराएदार से कहना पड़ता कि या तो वह अपने दोस्तों को घर पर बुलाना छोड़ दे या मकान खाली कर दे।

उस आदमी ने इस डाँट-फटकार को गंभीरता से लिया और उसने वादा किया कि भविष्य में वह अपने दोस्तों को घर नहीं बुलाया करेगा और अपनी शामें किसी कॉफी हाउस में गुजारा करेगा। इससे उसने और मुहल्ले में रहनेवाले लोगों ने सुकून की साँस ली।

पर यह शांति ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाई। अगली रात तो ठीक-ठाक बीत गई, पर उससे अगली रात फिर से उतना ही शोर-शराबा होने लगा, दरअसल पहले से भी ज्यादा। उस एकाकी पुरुष के दोस्तों ने, जो उसको पहले एक-एक दिन छोड़कर मिलने आया करते थे, उन्होंने तय किया कि वे उसे रोज रात घर तक छोड़ने आया करेंगे। और अब उसे छोड़ने के बहाने और शोर मचाते हुए उससे 'बाई-बाई' और 'गुडनाइट' कहते तथा वह एकाकी आदमी भी घर में शोर मचाते हुए घुसते, सीढियों पर धप-धप करके चढ़ता तथा ऊपर जाकर धप-धप कर जूते निकालकर इधर-उधर फेंकता। अतः हमारे बगलवाले पड़ोसी ने उस एकाकी पुरुष को घर छोड़ने का नोटिस दे दिया तथा कुछ दिन बाद वह किराएदार ऊपर का घर खाली करके अन्यत्र चला गया-अपने नए मकान-मालिक और पड़ोसियों का मनोरंजन करने।

फर्स्ट फ्लोर पर खाली अपार्टमेंट के लिए जो अगला अभ्यर्थी था, वह परेशान करनेवाले जेंटलमैन से बिल्कुल अलग प्रकृति का था। वह लंबा, पतला व युवा आदमी था और उसके सिर पर खूब घने व भूरे बाल थे तथा लाल रंग के गलमुच्छे थे और थोड़ी हलकी सी मूंछे भी थीं उसकी ब्रांडेड शर्ट थी, जिसके पीछे मेढक बने थे और वह सलेटी रंग की पैंट पहने हुए था, चमड़े के ग्लब्स (दस्ताने) थे और कुल मिलाकर वह मिलिट्रीवाला दिखता था। वह उस विनोदी स्वभाव और गुल-गपाड़ा मचानेवाले आदमी के बिल्कुल विपरीत था। बहुत तहजीबवाला और नम्रता से बातचीत करनेवाला। जब वह पहली बार घर देखने आया तो उसने पूछा कि क्या उसे पेरिश चर्च में एक सीट मिल जाएगी? और जब वे इस बात के लिए राजी हो गए कि वे उसे ले जाएँगे, तब वह लोकल चैरिटीज (यहाँ का खैरातखाना) के बारे में जानना चाहता था। वह इसलिए कि वह अपने सामर्थ्य में जो कुछ भी अंशदान हो, उन्हें दे सके, जो सबसे ज्यादा उसके योग्य हो।

हमारा निकट पड़ोसी अब पूर्णतया संतुष्ट था। उसको एक ऐसा किराएदार मिल गया था, जो बिलकुल उसी की सोच का था-एक गंभीर व अच्छे स्वभाव वाला आदमी, जिसकी सोच उसी की तरह थी, जिसको किसी तरह का गुल-गपाड़ा पसंद नहीं था और जिसको अपना रिटायरमेंट पसंद था। उसने अपनी नोटिस को शांत मन से उतार लिया और उन तमाम शांतिपूर्ण रविवारों के बारे में सोचने लगा, जो अपने किराएदार के साथ बिताएगा, बातचीत करेगा और अखबारों की अदला-बदली करेगा।

वह गंभीर आदमी आ गया और उसका सामान गाँव से अगले दिन आने वाला था। उसने अपने मकान मालिक से एक साफ कमीज और प्रार्थना की किताब माँगी और जल्द ही सोने चला गया तथा साथ ही में हमारे पड़ोसी को हिदायत दी कि उसे सुबह 10 बजे से पहले न उठाया जाए, क्योंकि वह बहुत थका हुआ है और आराम करना चाहता था।

अगली सुबह उसे 10 बजे आवाज दी गई। थोड़ी देर बाद उसे फिर आवाज दी गई। अंदर से कोई जवाब नहीं आया। अब हमारे पड़ोसी का माथा ठनका। उसने दरवाजे को धक्का दिया। दरवाजा एक धक्के से खुल गया। पर यह क्या? अंदर तो कोई नजर ही नहीं आ रहा था। वह गंभीर-सा दिखनेवाला आदमी वहाँ से रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था और अपने साथ शर्ट व प्रार्थना की पोथी के अलावा एक चम्मच और बिखरी चादर भी ले गया था।

इस वाकये के बाद पता नहीं क्या हुआ, हमारे पड़ोसी ने जो अगली नोटिस अपने खिड़की पर लगाई, उसमें केवल यह लिखा था कि पहली मंजिल पर अपार्टमेंट खाली है। ऐसा लगता था कि अब उसे अकेले आदमी को किराए पर कमरा देने में डर लग रहा था। जल्द ही वह नोटिस भी हट गई। जो नए कि राएदार आए, उन्होंने पहले तो हमारी जिज्ञासा जाग्रत् की और फिर उसमें हमारी दिलचस्पी भी बढ़ गई।

वे-लगभग 18-19 साल का एक युवा लड़का और उसकी माता थी, जो लगभग 50 वर्ष की या उससे कुछ कम की रही होगी। माँ एक विधवा थी और लड़के ने अभी शोक के कपड़े पहने हुए थे। वे लोग गरीब थे, काफी गरीब थे; क्योंकि उनकी आय का एकमात्र साधन का स्रोत उसके लड़के द्वारा कुछ किताबों की नकल करने या उनके अनुवाद करने से जो पैसा उसको बुकसेलर्स या प्रकाशकों से मिलता था, जो कि बहुत ही थोड़ा होता था।

वे लोग किसी गाँव से आकर लंदन में बसे थे-कुछ इस वजह से कि लंदन में उस लड़के को नौकरी ढूँढ़ने की संभावनाएँ ज्यादा थीं और दूसरी एक वजह यह भी हो सकती थी कि शायद वे अब उस जगह और ज्यादा दिन नहीं रहना चाहते थे, जहाँ उन्होंने पहले अच्छे दिन गुजारे थे और जहाँ अब लोगों को उनकी गरीबी के बारे में पता था। वे अपने बुरे दिन में भी गर्व से सिर उठाकर जीना चाहते थे और अपनी कमजोरियों व विपन्नता को अजनबियों को बताना नहीं चाहते थे।

उनके दुर्दिन कितने कठिन थे और वह लड़का उन्हें दूर करने के लिए कितने कठिन प्रयास कर रहा था, इसका किसी को कुछ पता नहीं था। हर रात वह तीन-चार बजे तक काम करता रहता था और रात में उसके खाँसने, आतिशदान में आग कुरेदने तथा लकड़ी खड़खड़ाने की आवाज हमें सुनाई पड़ती थी और दिन में हम पड़ोसियों को यह पता चल रहा था कि उसके चेहरे पर जो हल्की सी गैर जमीनी रोशनी या चमक-सी दिख रही थी, वह किसी भयानक बीमारी (क्षय रोग) की ओर इशारा कर रही थी।

जिज्ञासा से कुछ अधिक पड़ोसी-भावना से प्रेरित होकर हमने अपना परिचय बढ़ाना चाहा और उनसे कुछ घनिष्ठता पैदा करने का प्रयास किया। हमें जिस चीज का डर था, वही सच निकला। बहुत तेजी से उस लड़के की तबीयत गिरती जा रही थी। अगले साल के जाड़े, फिर वसंत ऋतु और फिर गरमियों में भी उसकी खाँसी और छाती का दर्द बढ़ता ही गया। उसकी तकलीफ बढ़ती ही जा रही थी तथा उसकी माँ घर का खर्च चलाने के लिए सिलाई-कढ़ाई, जो भी काम मिल सका, करने लगी।

पर इस सबके बावजूद वह कुछ शिलिंग ही यदा-कदा कमा पाती थी। लड़का भी लगभग बराबर ही अपने काम में लगा रहता था। वह क्षण-क्षण करके मर रहा था, पर फिर भी कभी कोई गिला-शिकवा नहीं करता था और न ही उसकी आवाज कभी सुनाई पड़ती थी।

शिशिर ऋतु की एक सुहावनी शाम को हम अपने कृशकाय मरीज को देखने गए। पिछले दो-तीन दिनों से उसकी रही-सही शक्ति भी कमतर होती जा रही थी, वह खिड़की के पास रखे सोफे पर बैठकर शहर में डूबते हुए सूरज को देख रहा था। उसकी माँ 'बाइबल' पढ़ रही थी, जिसे बंद करके वह हम लोगों से मिलने आगे बढ़ी।

"मैं विलियम से कह रही थी," उसने बताया कि हम फिर से गाँव में किसी खुली जगह चले जाएँ, जहाँ उसे ताजा हवा मिल सके और सेहत सुधर जाए। वह बीमार नहीं है, बस इधर ज्यादा काम करने की वजह से वह कमजोर हो गया है। बेचारा! उसने अपने आँसू छिपाने के लिए दूसरी ओर मुँह फेर लिया। उसने अभी भी विधवाओंवाली टोपी पहन रखी थी, जिसको उसने ठीक-ठाक किया; पर अपने आँसू छिपाने की उसकी कोशिश नाकाम रही।

हम सोफे के सिरहाने बैठ गए, पर कुछ बोले नहीं; क्योंकि उसकी प्राणवायु धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही थी और हमारे सामने ही उसकी साँस तेज चलने लग गई थी। हर बार साँस लेने पर उसकी दिल की धड़कन हल्की पड़ती जा रही थी और उसे ज्यादा प्रयास करना पड़ रहा था।

लड़के ने अपना एक हाथ हमारे हाथ में रख दिया और दूसरे हाथ से अपनी माँ की बाँहों को पकड़ लिया और फुरती से उसे अपनी ओर खींचा तथा जल्दी से उसके गालों को चूमा। वह थोड़ा सा रुका। वह अपने तकिया पर फिर से लुढ़ककर धंस गया और अपनी माँ के चेहरे की ओर चाहत से बड़ी देर तक देखा।

"विलियम, विलियम!" उसकी माँ काफी देर बाद फुसफुसाकर बोली, "मेरी ओर इस तरह से मत देखोमुझसे बातें करो, मेरे बेटे।"

लड़का बहुत शांति से मुसकराया, पर एक क्षण बाद ही उसका चेहरा ठंडा और गंभीर मुद्रा में बदल गया। "विलियम, मेरे प्यारे बेटे! अपने आपको उठाओ। मेरी ओर इस तरह से मत देखो मेरे प्रिय! मैं प्रार्थना करती हूँ, ऐसे मत देखो। हे भगवान्! मैं क्या करूँ?" वह विधवा स्त्री चिल्लाई। अपने दोनों हाथ तमाम दर्द-दुःख से जोड़ते हुए बोली, "मेरा प्यारा बेटा! यह तो मर रहा है।"

लड़के ने तमाम जोर लगाकर अपने आपको ऊपर उठाया और अपने दोनों हाथ जोड़कर बोला, "माँ, ओ मेरी प्यारी माँ! मुझे खुले मैदान में दफन करना—कहीं भी... इन भयानक गलियों को छोड़कर। मैं वहाँ पर रहना चाहूँगा, जहाँ पर तुम मेरी कब्र को देख सको; पर इन बंद अँधेरी गलियों में कभी नहीं। इन्होंने मुझे मार डाला है। मुझे फिर से चूमो, माँ! तुम अपनी बाँहें मेरे गले में डालो...।"

वह वापस बेदम होकर लुढ़क गया और उसके चेहरे पर एक अजीब सा भाव आ गया, जो कि न दर्द का था, न पीड़ा सहने का था; पर एक अवर्णनीय मांसपेशियों और चेहरे की हर रेखाओं के ठहर जाने का था। लड़का दूसरी दुनिया में जा चुका था।

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