एक या दो चुटकी नमक : फ्रेंच/फ्रांसीसी लोक-कथा
One or Two Pinch Salt : French Folk Tale in Hindi
एक बार फ्रांस के एक राजा के दो बेटियाँ थीं। वह अपनी दोनों बेटियों को बहुत प्यार करता था।
एक दिन वह राजा बैठा बैठा यह सोच रहा था कि मैं तो अपनी बेटियों को बहुत प्यार करता हूँ पर क्या वे भी मुझे उतना ही प्यार करती हैं?
वह जितना ज़्यादा इस बारे में सोचता था वह उतना ही और ज़्यादा परेशान हो जाता। “मुझे इसका जवाब जानना ही है कि क्या मेरी बेटियाँ मुझे सचमुच में ही उतना प्यार करती हैं जितना मैं उनको करता हूँ? पर मैं यह कैसे जानूँ?
यह सवाल राजा को दिन रात परेशान करता था। आखीर में उसने अपनी लड़कियों से ही यह बात पूछने का निश्चय किया कि वे उसके बारे में कैसा महसूस करती थीं।
उसने सोच रखा था जो भी लड़की उसको सबसे ज़्यादा प्यार करती थी वह उसी को अपना राज्य देगा।
“बेटी, तुम मुझे कितना प्यार करती हो?”
पहली लड़की हँसी और बोली — “ओह पिता जी, आप तो मेरी आँखों के तारे हैं और मुझे मालूम कि आप भी मेरे बारे में ऐसा ही महसूस करते हैं। है न?”
राजा बोला — “तुम ठीक कहती हो बेटी, मैं भी तुम्हें इतना ही चाहता हूँ जितना कि तुम मुझको चाहती हो। तुम बहुत ही प्यारी बच्ची हो।” फिर राजा ने वही सवाल अपनी दूसरी बेटी से भी पूछा।
उसकी दूसरी बेटी हँसी नहीं। वह हमेशा से ही बहुत ही सोच विचार करने वाली लड़की थी। कुछ सोच कर वह बोली — “पिता जी आप मेरे लिये उस एक या दो चुटकी नमक की तरह हैं जो मैं अपने खाने में डालती हूँ।”
“बस इतना ही? बस नमक जितना ही? तुम मुझे एक या दो चुटकी नमक के बराबर ही समझती हो? यह किस तरह का जवाब है?” राजा ने उससे यह सब पूछा तो पर वह अपने सवालों के जवाब पाने का इन्तजार नहीं कर सका।
वह बोला — “ओ बेवफा लड़की, तुम मेरे सामने से चली जाओ, तुम मेरे महल से चली जाओ और मेरे राज्य से भी चली जाओ। और एक या दो चुटकी नमक़ फिर यहाँ कभी वापस मत आना।”
छोटी सी राजकुमारी अपने कमरे में भाग गयी। वहाँ वह बहुत देर तक रोती रही। फिर उसने अपने आँसू पोंछे और अपनी हालत के बारे में सोचा।
“मैं जिसको अब तक अपना घर समझती थी मुझे अब वह छोड़ना पड़ेगा।” यह सोचते ही उसकी आँखें फिर भर आयीं। “पर ये आँसू अब मेरी कोई सहायता नहीं करने वाले।”
यह सोच कर उसने अपनी कुछ सबसे अच्छी पोशाकें उठायीं और कुछ अपनी मन पसन्द का गहना उठाया उन सबको एक गठरी में बाँधा और महल से चली गयी।
जब वह वहाँ से जा रही थी तो वह सोचती जा रही थी कि अब उसका क्या होने वाला है। “मुझे पता नहीं मैं कहाँ जाऊँ, मैं क्या करूँ।”
इसमें उसकी कोई गलती नहीं थी जब तक वह महल में थी उसने कुछ करना सीखा ही नहीं था।
वह सोचने लगी — “हाँ माँ ने बचपन में मुझे खाने की कुछ चीज़ें बनानी जरूर सिखायी थीं पर वे तो मेरा कुछ भला नहीं करने वालीं। और शीशे के सामने खड़े हो कर तैयार होना जो मैं ठीक से हो लेती हूँ, उससे मुझे किसी के घर में नौकरी नहीं मिलेगी।”
इसके अलावा वह यह भी जानती थी कि इतनी सुन्दर लड़की
को भी कोई अपने घर में नौकरी नहीं देगा सो उसने सोचा —
“अगर मुझे अपने आप ही काम करना और खाना कमाना है तो मुझे
अपने आपको थोड़ा बदसूरत बनाना पड़ेगा। सबसे पहले तो मुझे
इस खूबसूरत पोशाक को उतारना पड़ेगा।”
सो राजकुमारी ने एक भिखारी से कुछ फटे कपड़े लिये और अपनी उस खूबसूरत पोशाक को उतार कर अपनी पोटली में ठूँस लिया।
भिखारी वाले कपड़े थोड़े बदबूदार थे और मैले थे पर उसको मालूम था कि वह इससे कुछ और ज़्यादा भी कर सकती थी सो उसने अपने फटे कपड़ों पर थोड़ी सी मिट्टी मल ली। फिर उसने अपने हाथ पैरों पर भी मिट्टी मल ली।
उसने सोचा कि बस अब मेरे बाल रह गये हैं सो उसने अपने धूल भरी उँगलियाँ दो चार बार अपने बालों में भी फेर लीं और उसकी यह उलझन भी खत्म हो गयी।
अब मुझे काम करने के लिये कोई बहुत सुन्दर नहीं समझेगा मैं भेड़ चराने या मुर्गियों की देखभाल करने का काम आसानी से कर सकूँगी।
और वह अपने सोचने में ठीक थी। पर कोई उतनी गन्दी
लड़की को भी काम देने को तैयार नहीं था। उसने मुस्कुरा कर सोचा
“शायद मैंने ज़रा कुछ ज़्यादा ही कर लिया था।”
इस तरह राजकुमारी बहुत दिनों तक चलती रही। इन दिनों में उसने कई राज्य पार किये। आखिर वह एक बड़े से खेत पर आयी जहाँ उनको एक भेड़ चराने वाली की जरूरत थी।
किसान की पत्नी ने हवा सूँघी और बोली — “यह यहाँ तब तक काम कर सकती है जब तक यह घर से दूर रहे।” किसान राजी हो गया।
उसने अपनी पत्नी से कहा — “भेड़ें पहाड़ के उस पार हैं हम यहाँ से भेड़ों को या उसकी रखवालिन को नहीं सूँघ पायेंगे।” इस तरह राजकुमारी को अपना नया घर मिल गया।
उसे घर तो नहीं कहना चाहिये क्योंकि वह तो पहाड़ के उस पार उस किसान की केवल एक झोंपड़ी थी जिसके चारों तरफ भेड़ें रहती थीं – बदबूदार भेड़ें, उतनी ही बदबूदार जितनी कि वह खुद थी।
पर अब कम से कम उसके पास एक सुरक्षित जगह थी रहने के लिये और खूब खाना था खाने के लिये।
जैसे कि लड़कियों की इच्छा होती है, इस राजकुमारी को भी एक दिन यह इच्छा हुई कि वह अच्छे अच्छे कपड़े पहन कर सजे। बहुत सारी लड़कियों को पास सजने के लिये कुछ नहीं होता पर इस राजकुमारी के पास तो इसकी पोटली में अच्छे कपड़े भी थे और गहने भी थे।
और क्योंकि वह किसान और उसकी पत्नी के घर से बहुत दूर थी सो डर की भी कोई बात नहीं थी। सो उसने अपनी फटी पोशाक उतार दी, पास की एक नदी में जा कर नहायी और अपने राजकुमारी वाले कपड़े और गहने पहन लिये।
कुछ ही देर में वह बदबूदार फटे कपड़े पहनने वाली भेड़ चराने वाली लड़की एक सुन्दर राजकुमारी में बदल गयी।
अब उस दिन कुछ ऐसा हुआ कि उस राज्य का राजकुमार उस दिन शिकार के लिये निकला हुआ था। उस दिन वह पहाड़ के दूसरी तरफ जंगल में रास्ता भूल गया।
घूमते घूमते उसको प्यास लग आयी सो वह जंगल में पानी ढूँढने लगा। ढूँढते ढूँढते वह भी उसी नदी पर आ पहुँचा जहाँ राजकुमारी नहाने आयी थी।
जैसे ही उसने नदी के दूसरे किनारे की तरफ देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ। एक बहुत ही सुन्दर लड़की बहुत सुन्दर शाही कपड़े पहने तितलियों के साथ नाच रही थी, और वह भी भेड़ों के झुंड के पास।
राजकुमार ने अपनी आँखें कई बार झपकायीं “लगता है कि मैं अपने आप ही चीज़ें देखने लग गया हूँ।” सो यह पक्का करने के लिये कि वह ठीक ही देख रहा है वह थोड़ा और आगे बढ़ा जिससे घास हिल गयी।
यह घास के हिलने की आवाज राजकुमारी ने सुनी तो उधर देखा जहाँ से वह घास के हिलने की आवाज आ रही थी। वहाँ उसने इतनी सुन्दर नीली आँखें देखीं जैसी पहले कभी नहीं देखी थीं। तुरन्त ही वह जंगल की तरफ भाग गयी।
उसको भागते देख कर राजकुमार ने उसका पीछा किया पर वह नदी की कीचड़ में दो बार फिसला पर फिर उसने पेड़ की एक शाख पकड़ ली। जब तक वह ठीक से खड़ा हो सका तब तक तो राजकुमारी दूर जा चुकी थी।
वह वहाँ खोयी थोड़े ही थी वह तो अच्छी तरह जानती थी कि उसे कहाँ छिपना है – जहाँ राजकुमार उसे न ढूँढ सके। बस वह वहीं जा कर छिप गयी।
जब राजकुमार उसको ढूँढते ढूँढते थक गया और राजकुमारी को भी यह यकीन हो गया कि राजकुमार वहाँ से चला गया तो उसने अपने शाही कपड़े उतार कर अपनी पोटली में रख दिये और फिर से अपने उस भेड़ चराने वाली वाले कपड़े पहन लिये। उसने अपने शरीर पर फिर से थोड़ी सी मिट्टी, भी मल ली।
फिर वह अपनी प्रिय भेड़ के पास बैठ गयी और उसके गले में अपनी बाँह डाल दी और उसके कान में फुसफुसायी — “वह तो बहुत ही करीब था। पर तूने क्या उसकी आँखें देखीं?”
इसके जवाब में भेड़ केवल मिमिया दी।
इस बीच में राजकुमार को पहाड़ के दूसरी तरफ अपना रास्ता मिल गया सो वह उधर चला गया। पहाड़ के दूसरी तरफ किसान का घर था। तो जब किसान की पत्नी ने उसको देखा तो वह उसके पीने के लिये सेब का रस ले आयी।
राजकुमार सेब का रस पीने बैठ गया तो उसने किसान से उस खूबसूरत लड़की को बारे में पूछा जो भेड़ चराती थी। जैसे ही किसान ने उस लड़की को खूबसूरत सुना तो उसके मुँह से सेब का रस बाहर आ गया।
वह खाँस कर बोला — “खूबसूरत लड़की? उस भेड़ चराने वाली जैसी गन्दी और बदसूरत लड़की तो मैंने आज तक नहीं देखी और आप उसको खूबसूरत लड़की कहते हैं?”
उसकी पत्नी बोली — “और तुम उसको बदबूदार कहना तो भूल ही गये।” मेज के चारों तरफ बैठे सारे लोग हँस पड़े। पर राजकुमार को पूरा विश्वास था कि उसने तो किसी बहुत ही सुन्दर लड़की को देखा था जो तितलियों के साथ खेल रही थी। पर उसको यह भी विश्वास था कि उसको भेड़ों की बू भी आ रही थी। आखिर वह इस नतीजे पर पहुँचा कि हो न हो उस लड़की के साथ कोई जादू हुआ है। और अगर कोई जादू हुआ भी है तो वह उसको अपने से दूर रखने के लिये है।
जब राजकुमार का सेब का रस खत्म हो गया तो उसने किसान और उसकी पत्नी से विदा ली और अपने महल की तरफ चल दिया। पर उसके दिमाग से उस लड़की की तस्वीर नहीं गयी। राजकुमार ने सोचा “वह तो मेरे पिता के दरबार की लड़कियों से कहीं ज़्यादा सुन्दर थी।”
बल्कि उसने इससे कहीं ज्यादा सोचा। और जब वह सो गया तो इससे कहीं और ज़्यादा वह उसे सपने में देखता रहा। पर राजकुमार की तो भूख और नींद दोनों ही उड़ गयी थीं। वह दुबला होता जा रहा था। उसके माता पिता ने उससे बहुत पूछा कि वह यह बता दे कि उसे क्या परेशानी थी।
पर राजकुमार ने सोचा — “मैं उनको उस लड़की के बारे में क्या बताऊँ जिसने मेरे ऊपर जादू कर दिया है? वे तो मेरे ऊपर केवल हँसेंगे ही।”
सो अपने माता पिता से सच कहने की बजाय उसने उस लड़की से पहाड़ के किनारे के एक दूर खेत पर पर एक ताजा डबल रोटी मँगवायी।
हालाँकि उसकी यह माँग बहुत ही अजीब सी थी। उसके माता पिता उसके कमरे से बाहर आने के बाद भी काफी देर तक कानाफूसी करते रहे कि उनके बेटे की कैसी अजीब सी माँग है। पर फिर भी राजा और रानी अपने बेटे की इच्छा को पूरी करने के लिये तुरन्त ही रवाना हो गये।
उन्होंने तुरन्त ही एक दूत उस खेत को जो पहाड़ के किनारे था भेजा जिसने जा कर किसान को यह सन्देश दिया।
किसान की पत्नी भी यह अजीब सी माँग सुन कर आश्चर्य में पड़ गयी फिर भी राजा का हुक्म था सो उसने उस भेड़ चराने वाली लड़की को बुला भेजा।
उसने उससे कहा — “देखो, राजकुमार ने तुमसे एक ताजा डबल रोटी मँगवायी है। तुम जल्दी से हाथ धो लो। नहीं नहीं तुम नहा लो और फिर डबल रोटी बना लो।”
राजकुमारी ने आटा लिया, एक दो चुटकी नमक लिया और पानी लिया। उसने एक साबुन की टिक्की भी ली और एक नया तौलिया भी। उसने भगवान को धन्यवाद दिया कि डबल रोटी बनाने का यह तरीका उसकी माँ ने उसे बहुत दिन पहले बताया था और वह उसको अभी तक याद था।
नहाने के बाद उसने अपनी एक प्रिय अँगूठी पहनी। इस छोटे काम को करने में भी उसको कुछ खासियत लगी। फिर उसने आटा मलना शुरू किया। जब वह आटा मल रही थी तो वह राजकुमार की नीली आँखों के बारे में सोचने लगी।
वह उन नीली आँखों में इतनी खो गयी कि उसको पता ही नहीं चला कि कब उसकी अँगूठी उसके हाथ से निकल कर आटे में गिर गयी।
थोड़ी ही देर में राजकुमार के लिये गर्म ताजा डबल रोटी बन कर तैयार थी। राजकुमारी ने मला हुआ आटा अपने हाथ पर लगा रहने दिया और कुछ आटा अपने चेहरे और अपने बालों पर भी लगा लिया और फिर किसान की पत्नी को डबल रोटी देने के लिये चली।
किसान की पत्नी ने डबल रोटी देख कर कहा — “यह भी कोई तुमसे ज़्यादा सुन्दर नहीं है पर राजकुमार ने यही मँगवायी है तो यही सही।”
राजा का दूत वह डबल रोटी ले कर राजमहल भागा गया। वहाँ जा कर उसने वह डबल रोटी रानी को दी और रानी ने वह डबल रोटी अपने बेटे को दी।
डबल रोटी देते हुए रानी बेटे से बोली — “बेटा, यह कोई बहुत सुन्दर डबल रोटी तो नहीं है। हमारे शाही रसोइये तो इससे कहीं ज़्यादा अच्छी डबल रोटी बनाते हैं अगर तुम चाहो तो।”
पर राजकुमार को उससे क्या लेना देना था। उसने तो जब वह रोटी सूँघी तो बस एक मुस्कुराहट उसके चेहरे पर दौड़ गयी और उसकी नीली आँखें खुशी से नाच उठीं।
पर जैसे ही उसने उसे खाने के लिये अपने दाँत घुसाये तो वह किसी कड़ी चीज़ में जा कर लगे तो वह आश्चर्य से बोला — “अरे यह क्या है?”
रानी ने तुरन्त पूछा — “क्या हुआ बेटे?”
बेटे ने डबल रोटी तोड़ी तो उसमें से तो नीले रंग के पत्थर जड़ी एक अँगूठी निकली। वह बोला — “देखो तो माँ यह तो एक अँगूठी है और यह कितनी सुन्दर भी है।”
रानी बोली — “और इसका तो रंग भी तुम्हारी आँखों की तरह नीला ही है मेरे बेटे।”
राजकुमार बोला — “माँ, यह निशानी है उस लड़की की। मैं उसी लड़की से शादी करूँगा जिसकी उँगली में यह आ जायेगी।”
और फिर ऐसा ही हुआ। राजा ने अपने राज्य भर में यह मुनादी पिटवा दी कि हमारे पास एक अँगूठी है वह जिस लड़की की भी उँगली में आ जायेगी हम अपने राजकुमार की शादी उसी लड़की से करेंगे।”
दूर से पास से, गाँव से शहर से, मोटी पतली, जवान बुढ़िया, लम्बी छोटी बड़ी चौड़ी सभी तरह की लड़कियाँ और स्त्रियाँ उस अँगूठी को पहन कर देखने के लिये और राजकुमार से शादी करने के लिये वहाँ आयीं पर वह अँगूठी तो किसी को भी नहीं आयी।
बहुत लोगों ने कहा — “अरे यह तो बहुत ही छोटी अँगूठी है। और यह बहुत ही छोटी नहीं बल्कि यह तो इतनी छोटी है कि यह तो किसी छोटी से छोटी स्त्री की सबसे छोटी उँगली में भी नहीं आ सकती।”
और यह तो ठीक भी था। बहुत सारी लड़कियों के उस अँगूठी पहन कर देखने के बाद भी जब वह किसी के हाथ में नहीं आयी तो ऐसी लड़की की खोज और बढ़ा दी गयी। किसानों की लड़कियाँ और बतखों की लड़कियाँ भी बुलायी गयीं पर उनको भी वह अँगूठी नहीं आयी।
आखिर राजा बोला — “शायद हमको अपनी यह खोज अब यहाँ बन्द करनी पड़ेगी।”
रानी भी एक लम्बी साँस ले कर बोली — “हमने राज्य की सब तरह की लड़कियाँ देख लीं पर किसी की उँगली में भी यह अँगूठी नहीं आयी।”
राजकुमार हँस कर बोला — “पर पिता जी, अभी भी एक लड़की है जो हमारे महल में नहीं आयी है – वह है वह भेड़ चराने वाली लड़की।”
राजा बोला — “क्या? उसके बारे में तो मंैने भी सुना है कि उसमें से बहुत बदबू आती है।”
राजकुमार बोला — “पिता जी, आदमी की शक्ल और बू धोखा भी तो दे सकती हैं।”
सो तुरन्त ही उस भेड़ चराने वाली लड़की को लाने के लिये एक दूत भेजा गया। वह लड़की भी तुरन्त ही अपने फटे कपड़े पहने और भेड़ों की बू से लिपटी हुई वहाँ आ पहुँची।
पर उसके हाथ बहुत साफ थे और वह अँगूठी भी उसके हाथ में बिना किसी मुश्किल के आ गयी। अँगूठी में लगा नीला पत्थर उस की उँगली पर ऐसे ही चमक रहा था जैसे राजकुमार की आँखें। राजकुमार खुशी से बोला — “सो मैंने तुमको ढूँढ ही लिया। तुम वही हो जिसकी मैं इतने दिनों से तलाश में था।”
राजा चिल्लाया — “पर यह तो केवल एक भेड़ चराने वाली है।”
रानी आगे बोली — “और इसमें से तो बू भी बहुत आती है।” तब वह भेड़ चराने वाली लड़की आगे बढ़ी और बोली — “मैं कोई भेड़ चराने वाली नहीं हूँ। मैं एक राजकुमारी हूँ। मैं यहीं पास के एक राज्य के राज परिवार में पैदा हुई हूँ। अगर आप मुझे थोड़ा सा साबुन और पानी दें तो मैं अपने आपको साफ कर के अभी आपके सामने आती हूँ।”
राजा ने अपने नौकरों को हुक्म दिया कि वे उसको पानी ला कर दें। रानी ने कहा — “और हाँ साबुन लाना मत भूलना। और देखो साबुन भी बहुत सारा होना चाहिये। हमें बहुत सारे साबुन की जरूरत पड़ेगी।”
सो भेड़ चराने वाली ने अपनी पोटली उठायी और एक नौकर के साथ नहाने के लिये चल दी। दो और नौकर उसके पीछे पीछे उसके नहाने का पानी और साबुन ले कर चल दिये।
जब वह लड़की नहा धो कर लौटी तो उसमें कहीं भी कोई भी निशान किसी भी भेड़ चराने वाली का नहीं था। बल्कि शाही दरबार के सामने खड़ी थी एक राजकुमारी अपनी बहुत सुन्दर पोशाक में और अपने सबसे अच्छे गहने पहने हुए।
राजकुमार तो उसको देखता का देखता रह गया। उसके माता पिता ने भी चैन की साँस ली।
तुरन्त ही राजकुमार राजकुमारी के आगे झुका और बोला —
“मैं तो तुमको तभी से प्यार करता हूँ जिस दिन मैंने तुमको पहली
बार तितलियों के साथ नाचते देखा था।”
राजकुमारी ने मजाक किया — “अगर मुझे ठीक याद पड़ता है तो उस दिन तो तुम मिट्टी में लिपटे हुए थे।”
राजकुमार बोला — “एक बार मैंने तुमको खो दिया था पर अब ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
एक पल रुक कर राजकुमारी बोली — “शायद।”
“हुँह, शायद। इस शायद के क्या मानी?”
“जैसा कि मैंने तुमसे कहा कि मैं सचमुच में एक राजकुमारी हूँ तो शादी से पहले मुझे अपने पिता की मर्जी तो जाननी ही चाहिये न।”
राजकुमार तुरन्त बोला — “घुड़सवार, दूत, सब इनके पिता के राज्य जाओ और उनसे इनकी हमसे शादी की मर्जी ले कर आओ और जब तक कि वह राजी न हो जायें तब तक वापस नहीं आना।”
दूत बोला — “ठीक है।” और यह कह कर वह अपने आदमियों को ले कर राजकुमारी के राज्य को चल दिया।
राजकुमार ने अपनी होने वाली दुलहिन का हाथ पकड़ा और मुस्कुराया। पर इससे पहले कि वह कुछ कहता कि दरवाजे पर एक दस्तक हुई।
वह दूत कमरे में घुसा। उसका चेहरा बिल्कुल लाल था। वह झुका और बोला — “माफ कीजिये सरकार, पर हम किस राज्य में जायें?”
तब राजकुमारी ने उनको अपना राज्य बताया और वे फिर दौड़े हुए चले गये।
उधर राजकुमारी के पिता ने अब अपनी बेटी के मिलने की उम्मीद छोड़ दी थी। जैसे ही उसको यह महसूस हुआ कि उसने अपनी बेटी के साथ क्या कर दिया उसने उसको अपने सारे राज्य में ढूँढा पर वह कहीं नहीं मिली।
उसको यह अन्दाजा ही नहीं हुआ कि वह अपने राज्य से कुछ दूर किसी और राज्य में पहाड़ के उस पार किसी भेड़ चराने वाले के घर में उसे ढूँढ ले।
सो जैसे ही वे दूत उसके पास शादी की बात करने आये राजा बड़े आराम और खुशी से अपनी बेटी की शादी उस राजकुमार से करने पर राजी हो गया।
शादी की तारीख तय हुई, शादी की तैयारियाँ हुईं और शादी की पोशाक सिली जाने लगी। जल्दी ही राजकुमारी ने अपने पिता का अपने नये राज्य में स्वागत किया।
राजकुमारी खुशी से चिल्ला पड़ी — “आइये पिता जी, आइये। मुझे यकीन है कि आप यात्रा से थके होंगे। मैंने आपके लिये एक बड़ा खास खाना तैयार किया हुआ है।”
राजा भी उसको देख कर खुशी से चिल्लाया — “ओह मेरी बेटी। जैसा मैंने तुम्हारे साथ सुलूक किया है उसके हिसाब से मैं उस खाने के लायक तो नहीं हूँ। मुझे तो बस तुम माफ कर दो।”
राजकुमारी बोली — “चलिये, सब कुछ माफ किया पर आज आप मेरा खाना नहीं छोड़ सकते।”
“जैसी तुम्हारी मर्जी, बेटी।”
जब खाने की मेज लगायी गयी तो राजकुमारी अपने पिता के पास बैठी। राजा को यह पता ही नहीं था कि उसके लिये एक खास प्लेट तैयार की गयी थी।
जबकि और लोग जो वहाँ बैठे थे वे सब उस खाने की बहुत तारीफ कर रहे थे पर राजा को अपनी रोटी में बिल्कुल भी स्वाद नहीं आ रहा था। रोटी में नमक नहीं था और उसका खाना भी बिना नमक और मसालों का था।
आखिर राजकुमारी पिता के कान में फुसफुसायी — “पिता जी, मैं तो आपका चेहरा बहुत पहले से पढ़ लेती थी। और मैं आज भी आपके चहरे को देख कर यह बता सकती हूँ कि आपको यह खाना अच्छा नहीं लग रहा है। यह आपके स्वाद का नहीं है न?”
राजा बोला — “बेटी, सारा खाना बहुत मेहनत से बनाया गया है और बड़े सलीके से पेश भी किया गया है मगर मुझे यह कहते में कुछ अच्छा नहीं लग रहा है कि सारा खाना बिल्कुल ही बेस्वाद है।”
राजकुमारी बोली — “पिता जी, ऐसा इसलिये है कि इसमें नमक नहीं है।
अब तो आप जान ही गये होंगे कि नमक हमारी ज़िन्दगी की सबसे कीमती चीज़ है। यह हमारे खाने में स्वाद लाती है। यह हमारी ज़िन्दगी बेहतर बनाती है।
और जब मैंने आपका नमक से मुकाबला किया था तो वह इसी लिये किया था कि मैं आपको इतना ही प्यार करती थी जितना कोई अपने खाने से करता है पर उस समय आपने मुझे अपने राज्य से भी बाहर निकाल दिया था।”
“बेटी, मैं बेवकूफ था जो यह नहीं समझ सका कि तुम कितनी अक्लमन्द हो। अब क्या मुझे इस खाने के लिये थोड़ा सा नमक मिल सकता है?”
राजकुमारी मुस्कुरायी और बोली — “हाँ शायद मैं आपको एक या दो चुटकी दे सकूँ।”
और फिर वह राजा का सबसे अच्छा खाना था जो उसने अपनी ज़िन्दगी में खाया।
(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)