नोमिनी (गुजराती कहानी) : केशुभाई देसाई

Nominee : Keshubhai Desai (Kashmiri Story)

रोहित भट्ट मीठे-गहन विचारों में डूब गए।

उन्हें प्रधानमंत्री सुरक्षा योजना का फार्म लेकर खडे़ देखकर गार्ड ने रोकते हुए कहा, ‘‘काका! इस तरह रास्ता रोककर खडे़ रहने की बजाय आपको जिस काउंटर पर काम है, वहाँ लाइन में खडे़ हो जाएँ तो ठीक या फिर वहाँ बैठ जाएँ।’’

वे किसी समय सुपर क्लास वन ऑफिसर थे। समय की बलिहारी। ‘साहब’ संबोधन सुनने के आदी कान ‘काका’ सा ग्रामीण शब्द सुनकर दुःखी हुए। पर बड़ी या अधिक आयुवाले लोगों के लिए यह शब्द प्रचलन में आ गया है, तब भला उस गार्ड का क्या दोष, सिवाय उसके जो सामनेवाले व्यक्ति के पद-प्रभाव से सुपरिचित न हो। ऐसे अवसरों पर वह ‘सर’ सा सम्मानजनक शब्द प्रयुक्त करेगा, पर रोहित भट्ट को ‘सर’ संबोधन सुनना पसंद है। यह शब्द कान में पड़ते ही उनके कान कुम्हला गए अस्तित्व में मीठी सुगबुगाहट जाग उठती है। सौभाग्य का एहसास होता है। परंतु अब बहुत ही कम व्यक्ति ऐसा विवेक प्रदर्शित करते हैं। मानो ‘सर’ कहने में कोई बहुमूल्य आभूषण दे रहे हों, इस प्रकार सोचकर गुजराती ‘सर’ कहने में बहुत संकोच करते हैं। कतिपय व्यक्ति जान-बूझकर अंकल शब्द प्रयुक्त करते हैं, इन्हें वे अर्वाचीन-पुराने आइटम मानने का एहसास कराते हैं।

रोहित भट्ट चौंके। फार्म में कोई विशेष विवरण नहीं भरना था, मात्र बैंक का खाता नंबर लिखकर हस्ताक्षर करके ही लौटाना था। बैंक में उनका विगत तीस सालों से बचत खाता है। अब तो वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आने से आधा प्रतिशत ब्याज भी ज्यादा मिलता है। वर्ष में सामान्यतः जमा करवाई रकम को साल में एक-दो बार रिन्यू करवाने आना पड़ता था। आयकर नहीं देने पर भी आयकर रिटर्न भरने तो आना ही पड़ता है। इसका कारण है, परदेश का वीजा लेने के लिए इनकम टैक्स रिटर्न की प्रति दिखाना आवश्यक है। बाकी के वर्षों में दुनिया की सैर करना चाहते हैं। बैंक में रुपयों का ढेर खड़ा करके एक दिन मर जाना है, यह करते हुए भी जीवन सफल बनाना क्या बुरा है? वे साहब से काका हो गए। इतना ही नहीं, अपितु सफेद बाल देखकर युवकों ने दादा कहना शुरू कर दिया।

रोहित भट्ट शाम को ‘पुनीतवन’ में भ्रमण करने जाते हैं तो हर बेंच पर युवकों को बैठे देखकर आश्चर्यचकित रह जाते हैं। युवकों की प्रणय-चेष्टाएँ देख-देखकर उन्हें अपना अतीत याद आ जाता है। किसी समय इसी प्रकार सुरभि के साथ...उनकी दृष्टि में रंगीन स्मृतियाँ ताजा हो गईं। जमाने के साथ दुश्मनी करके उन्होंने सुरभि से प्रेम किया था। संभवतः इतना स्नेह विजाणंदे शेरी, राँझा-हीर ने नहीं किया। तदपि थोड़ी गंभीरता से सोचने पर उन्हें अपने प्रेम के बारे में अतिशयोक्ति होने का आभास होता था। सुरभि के लिए इतना गहरा स्नेह था तो उसे क्योंकर छोड़ दिया? उसकी एक-दो भूलों को क्षमा नहीं कर सके तो स्वयं को संसार के अमर प्रेमीजनों की पंक्ति में इतनी प्रशंसा का क्या अधिकार?

कई बार उनका मन सुरभि से क्षमा माँगने का होता। पर क्षमा माँगने की हिम्मत ही नहीं होती थी। अतः वैसे देखा जाए तो वह बेवफाई सामने के पक्ष की थी। स्वयं ने बड़े अफसरों का बुरे कार्यों में साथ नहीं दिया, इसकी सजा भुगतते रहे। कोमल प्राणी, तदुपरांत बैसाख की जलती तेज धूप का तीव्र बैरभाव, अतः कच्छ क्या, लेह-लद्दाख या मिजोरम में नहीं फेंकते। बॉस हैं, अतः इनका आदेश तो मानना ही पड़ता है। पर रिश्वत उघाकर हफ्ता पहुँचानेवाले दूसरे! रोहित भट्ट ऐसे खोटे काम नहीं कर सकता। वह शेर का बच्चा है। मर जाए, पर ऐसे बुरे काम नहीं करे, घास नहीं खाए। सुरभि ने बॉस के साथ संधि कर लेने की सलाह दी, पर रोहित भट्ट ने उसकी सलाह पर ध्यान नहीं दिया। उसने स्पष्ट कहा कि दो साल की कृति को लेकर मैं कच्छ में बस जाऊँगा। ऐसा ठान लिया। दोनों के बीच बहुत बातचीत भी हुई थी। सुरभि ने कहा, ‘‘इस छोटी सी बच्ची पर तो दया करो! तुम्हें अपने सिद्धांत अपनी बेटी से ज्यादा प्यारे हैं? तुम रोहित भट्ट हो, गांधीजी नहीं, इतना तो स्वीकार करो।’’

परंतु रोहित भट्ट माँ-बेटी को रोते-बिलखते छोड़कर स्थानांतरण स्थल पर चले गए थे। महीने-पंद्रह दिन में एक-दो बाद आ जाते। और एक-दो रात को रुककर वापस लौट जाते थे। मानो अपने ही घर में स्वयं ही मेहमान हों।

रोहित भट्ट ने खुद ही अपने हाथों से अपनी एकदम हरी-भरी बगिया को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था, इसका उन्हें अपार कष्ट था। उस रात उन्होंने फ्लैट की घंटी बजाई तो दरवाजा खोलने आई आया को देखकर वे गहन विचारों में खो गए, घना आघात लगा। अचानक ही बिना बुलाए आ गए, अतः सुरभि तो मानो निश्ंिचत थी। आगंतुक व्यक्ति से बहस करके कोई बड़ा अपराध नहीं कर दिया था, परंतु भट्टजी के परंपरागत संस्कारवाला मन यह मानने को तैयार नहीं था। मेरे तो धर्म के भाई हैं। लड़खड़ाती जुबान से बचाव करती परेशान सुरभि रोहित भट्ट की शंका का समाधान नहीं कर सकी। इसके बाद भट्टजी ने इस घर में पाँव नहीं रखा।

‘‘मैडम, फार्म में क्या विवरण भरना है?’’

वे सामने खड़ी लड़की को टुकुर-टुकुर देखते ही रहे। न जाने उसे देखकर उन्हें सुरभि की पहचान कैसे याद आ गई। ठीक ऐसा ही गोरा रंग, ऐसा ही नाक व ऐसी ही आँखें...शायद नई-नई भरती हुई हो।

‘‘अंकल, आपको मात्र अपना नाम और खाता नंबर ही लिखना है। देशवासियों के लिए प्रधानमंत्रीजी ने दो योजनाएँ शुरू की हैं। प्रधानमंत्री की सुरक्षा योजना में तो मात्र बारह रुपए का वार्षिक प्रीमियम—महीने का एक रुपया, वह भी वापस तुम्हारे खाते से स्वतः ही कट जाए, अतः एक बार फार्म भर दिया तो फिर चिंता करने की कोई बात नहीं।’’

रोहित भट्ट को हँसी आ गई। प्रधानमंत्री बहुत नेक व्यक्ति हैं। प्रत्येक खातेदार से प्रति माह रुपया ले लेना तो उन जैसे विलक्षण नेता को ही सूझा। बूँद-बूँद से सागर भरता है। कहावतानुसार एक साल में अरबों रुपयों का खजाना इकट्ठा हो जाए। चाणक्य नीति में लिखा है, यथा मधुमक्खी फूल को नुकसान पहुँचाए बिना शहद इकट्ठा कर लेती है, इसी तरह राजा प्रजा को इसका एहसास कराए बिना कर वसूल किया जाए।

काउंटर पर बैठी युवती ने मुँह बिचकाते हुए कहा, ‘‘लगता है, अंकल बहुत पढ़ते हैं।’’ पास ही बैठी लड़की ने कटाक्ष किया, ‘‘अंकल, यदि आप ट्यूशन कक्षाएँ लगाएँ तो चलेगा, ओ.के., बुढ़ापे में अतिरिक्त कमाई नफे में...’’

दोनों युवतियों द्वारा अपनी ढलती उम्र का मजाक होता देख रोहित भट्ट को मधुर रोमांच की अनुभूति हुई। वे बोले, मुझे आपको कॉफी पिलानी है, क्या यहाँ कैंटीन है?’’

‘‘अरे अंकल, आप हमारे माननीय कस्टमर हैं। कॉफी तो हम आपको पिलाते हैं। पहली रूपाली बालिका ने बिना किसी प्रतिभाव के कहा और उसने चपरासी को आवाज दी, ‘‘करसनजी, अंकल के लिए बढि़या सी कॉफी तो लाओ।’’

‘‘तुम्हें छोड़कर मैं अकेला कॉफी कैसे पीने लगूँ?’’ उसने प्योन को सौ रुपए देकर कहा, ‘‘करसन भाई! प्यारे दोस्त, आप चार कप कॉफी ले आओ। तुम भी हमारे ही साथ पीना भले आदमी, नीचे उतरकर रोड पर वाहन की टक्कर में आ जाऊँ तो सीधे ही दो लाख का चैक देना है। बारह रुपए में दो लाख। क्या ऐसी कल्याणकारी योजना आज तक किसी नेता के दिमाग में आई?’’

दोनों लड़कियाँ उसकी दलील पर बड़ी प्रसन्न हुईं।

‘‘अंकल, बहुत उदार हो।’’ पास की टेबलवाली लड़की ने चुटकी ली, ‘‘ईश्वर ऐसा न करे, पर ऐसी घटना घट जाए तो यह सारी दुनिया...’’ अभी वह वाक्य पूरा करती कि इससे पहले ही फार्म पर सही सील लगानेवाली लड़की बोली, ‘‘अरे अंकल! आपने नोमिनी का नाम तो लिखा ही नहीं।’’

रोहित भट्ट की आँखों के सामने वर्षों पूर्व त्याग दी गई माँ-बेटी तैर उठीं। उन्होंने कहा, ‘‘मैं, आई नो यूअर गुड नेम मैडम?’’

‘‘कृतका भट्ट...’’

यह शब्द सुनकर रोहित भट्ट ने काँपते हाथों से गड़बड़ाए अक्षरों से नोमिनी के कॉलम में लिखा—कृतका रोहित कुमार भट्ट...

‘‘सर!’’ वह लड़की तो स्तब्ध होकर उसके सामने टकटकी लगाए देखती ही रही।

(अनुवाद : शिवचरण मंत्री)