नोबिल आर्किड : सिक्किम की लोक-कथा
Noble Orchid : Lok-Katha (Sikkim)
(नोबिल आर्किड सिक्किम का राज्य पृष्प है)
बहुत समय पहले एक राज्य के राज पुरोहित की मृत्यु हो गई । राजा ने
नए राज पुरोहित की नियुक्ति के लिए सारे राज्य में मुनादी करा दी कि उम्मीदवारों की
परीक्षा ली जाएगी, जो योग्य होगा उसी को नया राज पुरोहित बनाया जायेगा ।
यह क्रम लगभग पाँच माह तक चलता रहा। इस मध्य दो सौ से अधिक व्यक्ति
आए। राजा ने सभी का सम्मान किया, उनकी परीक्षा ली और उन्हें लौटा दिया। बस
दो व्यक्तियों को रोक लिया। ये दोनों ऋषि-शिष्य थे और हिमालय के पर्वतीय वनों से
अपनी साधना पूरी करके आए थे। दोनों ऋषि शिष्यों के चेहरों पर अलौकिक आभा
थी, किन्तु एक ऋषि शिष्य के चेहरे पर तेज था और दूसरे ऋषि शिष्य के चेहरे पर
शान्ति । इन दोनों ऋषि शिष्यों के पास बहुत-सी चमत्कारी शक्तियाँ थीं तथा ये अपनी
चमत्कारी शक्तियों के बल पर कुछ भी कर सकते थे।
राजा ने दोनों ऋषि शिष्यों को राज्य के अतिथि गृहों में अलग-अलग ठहराया और
उचित समय आने पर उनकी परीक्षा लेने का निर्णय लिया। राजा इन दोनों ऋषि शिष्यों
की परीक्षा ऐसे समय पर लेना चाहता था, जब राज्य में कोई बड़ी आपदा आई हो।
वह यह देखना चाहता था कि दोनों ऋषि शिष्य आनेवाली आपदाओं का सामना किस
प्रकार करते हैं और उसे किस प्रकार दूर करते हैं?
राजा ने इसके लिए कुछ समय तक प्रतीक्षा की, किन्तु ईश्वर की कृपा से राजा
पर कोई दैवीय संकट नहीं आया। राज्य की स्थिति पहले के समान खुशहाल बनी रही
और प्रजाजनों पर किसी प्रकार की मुसीबत नहीं आई।
अन्त में राजा ने महामन्त्री, सेनापति, राजज्योतिषी आदि से परामर्श करके एक
दिन निश्चित कर दिया और उसी दिन दोनों ऋषि शिष्यों की चमत्कारी शक्तियों की
परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
निर्धारित दिन सभी लोग एक विशाल मैदान में एकत्रित हो गए। इनमें राजा,
महामन्त्री, सेनापति, राजज्योतिषी तथा राज्य के अन्य लोगों के साथ ही साथ बड़ी संख्या
में प्रजाजन भी थे।
मैदान का दृश्य बड़ा रोचक था। दोनों ऋषि शिष्य पूरी तैयारी से आमने-सामने
खड़े थे । एक के चेहरे पर क्रोधयुक्त तेज था और दूसरे के चेहरे पर शान्ति । दोनों अपनी
चमत्कारी शक्तियों का प्रदर्शन करके विजय प्राप्त करना चाहते थे। उन्होंने एक-दूसरे
की ओर देखा और अपने-अपने चमत्कार दिखाने के लिए तैयार हो गए। उन्हें अब
केवल राजा के संकेत की प्रतीक्षा थी।
राजा ने राजपरिवार के अन्य सदस्यों, महामन्त्री, सेनापति, राजज्योतिषी तथा
अपनी प्रजा की ओर एक बार देखा और फिर अपना दाहिना हाथ हवा में हिलाकर
परीक्षा आरम्भ करने का संकेत किया।
क्रोधी स्वभाव का ऋषि शिष्य सावधान हो गया, किन्तु शान्त स्वभाव का ऋषि
शिष्य शान्त बना रहा। वह क्रोधी शिष्य की ओर देखकर मुस्कराया और उससे अपना
चमत्कार दिखाने का आग्रह किया।
क्रोधी ऋषि शिष्य के चेहरे पर अकारण ही क्रोध और दम्भ के चिह्न उभर आए।
उसके चेहरे को देखने से ऐसा लगता था कि वह देखते ही देखते अभी सामने खड़े ऋषि
शिष्य को पराजित कर देगा।
शान्त प्रकृति का ऋषि शिष्य अपने स्थान पर खड़ा मुस्करा रहा था। इसी समय
क्रोधी शिष्य का दाहिना हाथ हवा में लहराया और उसमें एक विलक्षण शस्त्र आ गया।
उसने इस शस्त्र से सामने खड़े शिष्य पर प्रहार कर दिया।
शान्त प्रकृति का शिष्य शान्त अवश्य था, किन्तु वह पूरी तरह सावधान धा। उसने
भी अपनी चमत्कारी शक्ति से वैसा ही एक विलक्षण शस्त्र प्राप्त किया और सामने आते
शस्त्र की ओर छोड़ दिया।
दोनों शस्त्र आपस में टकराए और समाप्त हो गए।
क्रोधी प्रकृति के शिष्य को ऐसी आशा नहीं थी। वह समझता था कि उसके एक
ही वार से सामने खड़ा ऋषि शिष्य ढेर हो जाएगा। अपना पहला वार खाली जाते देख
उसका क्रोध बढ़ गया और उसने अपनी चमत्कारी शक्ति से अधिक घातक शस्त्र प्राप्त
किया और सामने खड़े ऋषि शिष्य पर प्रहार किया।
शान्त प्रकृति के शिष्य ने अपनी चमत्कारी शक्ति से इस शस्त्र को भी नष्ट कर
दिया और मुस्कराने लगा।
अपना दूसरा प्रहार नष्ट होते देखकर क्रोधी शिष्य का पारा सातवें आसमान पर
जा पहुँचा। शान्त प्रकृतिवाले शिष्य की मुस्कराहट ने उसके क्रोध पर आग में घी का
काम किया। उसने पुनः अपनी चमत्कारी शक्ति से वज्र के समान घातक शक्तिवाला
शस्त्र प्राप्त किया और सामने खड़े ऋषि शिष्य पर प्रहार कर दिया।
यह शस्त्र बहुत घातक था, किन्तु शान्त प्रकृति के ऋषि शिष्य ने इसे भी नष्ट
कर दिया। राजा, महामन्त्री, सेनापति, राजज्योतिषी तथा अन्य लोग इन दोनों ऋषि
शिष्यों को देखकर परेशान थे। एक शिष्य चमत्कारी परीक्षा देने के स्थान पर अपने
दिव्यास्त्रों से दूसरे शिष्य को मार डालने का प्रयास कर रहा था।
राजा कुछ समय शान्त रहा। फिर उसने परीक्षा बीच में ही रोक दी और दोनों ऋषि
शिष्यों को सम्बोधित करते हुए बोला कि वे दोनों एक-दूसरे को हानि पहुँचानेवाले
चमत्कारी प्रदर्शन बन्द करके अन्य प्रदर्शन करें।
शान्त प्रकृतिवाले शिष्य को राजा की बात बहुत अच्छी लगी। उसने राजा को
मुस्कराते हुए प्रणाम किया और पूर्ववत् खड़ा होकर सामने खड़े ऋषि शिष्य के अगले
चमत्कार की प्रतीक्षा करने लगा।
क्रोधी प्रकृतिवाले ऋषि शिष्य को प्रदर्शन के मध्य राजा का टोकना बहुत बुरा
लगा। वह चाहता था कि अपने दिव्यास्त्रों से सामने खड़े ऋषि शिष्य को समाप्त कर
दे और प्रतियोगिता जीतकर राजपुरोहित बन जाए, किन्तु राजाज्ञा का पालन करना
अनिवार्य था।
क्रोधी प्रकृति के शिष्य ने पुनः एक मन्त्र पढ़ा। पलक झपकते ही उसके हाथों में
एक घातक दिव्यास्त्र आ गया। उसने मैदान में कुछ दूरी पर लगे एक वृक्ष पर दिव्यास्त्र
से प्रहार कर दिया।
दिव्यास्त्र के प्रहार से देखते ही देखते वृक्ष जलकर राख हो गया।
...शीघ्र ही उसके हाथों में एक कमंडल आ गया। ऋषि
........
........
राजा और अन्य सभी लोगों को नए पुरोहित का सुझाव अच्छा लगा। उन्होंने नए
राजपुरोहित द्वारा बताई गई अनुष्ठान की सभी सामग्री की व्यवस्था रात होने के पहले
कर दी।
अर्धरात्रि के पूर्व ही अनुष्ठान की पूरी तैयारी हो गई। इस अनुष्ठान में सम्मिलित
होने के लिए महामन्त्री, सेनापति, राजज्योतिषी आदि के साथ ही राजा और राजपरिवार
के अन्य सदस्य भी थे।
अर्धरात्रि होते ही अनुष्ठान आरम्भ हो गया। इसी समय न जाने कहाँ से सफेद
रंग के शरीर और लाल मुँहवाले अनगिनत कीड़े आ गए और लोगों को काटने लगे।
कीड़े बहुत घातक थे। वे जिसे काट लेते, वह अचेत हो जाता। कीड़े केवल अनुष्ठान
स्थल को छोड़कर पूरे राज्य में फैले हुए थे और लोगों को काट रहे थे। इससे राजमहल
के साथ ही पूरे राज्य में त्राहि-त्राहि मच गई।
नवनियुक्त राजपुरोहित ने अपने पास बैठे राजा और राजपरिवार के अन्य
सदस्यों को शान्त बने रहने को कहा तथा सभी कीड़ों को सुन्दर-सुन्दर फूलों में बदल
दिया। इसके बाद उसने राज्य की सुख-शान्ति के लिए अनुष्ठान पूरा किया। इस
अनुष्ठान के बाद राज्य क्रोधी स्वभाव के ऋषि शिष्य के प्रभाव से पूरी तरह सुरक्षित
हो गया।
कहते हैं कि शान्त स्वभाव के ऋषि शिष्य ने जिन घातक कीड़ों को फूल बनाया
था, वे आगे चलकर नोबिल आर्किंड के नाम से प्रसिद्ध हुए।
(डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक 'भारत का राष्ट्रीय
पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प' से साभार)