नीना क्रावत्सोवा (रूसी उपन्यासिका) : सेर्गेइ अन्तोनोव

Nina Kravtsova (Russian Novella) : Sergei Antonov

नीना क्रावत्सोवा ने इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट में पढ़ाई खत्म की तो उसे कई मंजिल ऊँची इमारत के निर्माण-कार्य पर भेज दिया गया। नीना अपने माता-पिता के साथ मास्को की एक शान्त और फर्श-जड़ी गली में रहती थी। डिग्री के लिए थीसिस पेश करने के कुछ ही दिन बाद उसने अपनी तेईसवीं वर्षगाँठ मनायी थी, लेकिन फिर भी जो आदमी उससे पहली बार मिलता था, वह उसको प्रथम या द्वितीय वर्ष की छात्रा ही समझ बैठता था, वह उसकी आयु बीस वर्ष होने का ही अनुमान लगा पाता था। क्यों, यह कहना कठिन है। शायद इसलिए कि इंस्टीट्यूट के शिक्षा काल के वर्षों में भी वह अपनी स्कूली लड़कियों जैसी आदतें नहीं छोड़ पायी थी और मूँछों वाले विद्यार्थियों को भी ‘‘हमारे बच्चे’’ ही कहा करती थी। या शायद इसलिए कि उसकी आँखें बड़ी-बड़ी थीं और ऊपर को मुड़ी हुई छोटी-सी नाक पर बचपन के अवशेष के रूप में छोटी-छोटी चित्तियाँ पड़ी हुई थीं। लेकिन उसका मस्तिष्क जितनी जल्दी परिपक्व हुआ ओर उसमें जितनी सूक्ष्म दृष्टि और व्यवहार-कुशलता विकसित हुई, उसको देखकर उसके घनिष्ठ मित्रों को भी आश्चर्य हुआ।

जिस व्यक्ति ने नीना को निर्माण-स्थल पर भेजा था, उसने नीना से कहा: ‘‘यह इमारत हमारा नया प्रयास है और हमारे पास पूरी संख्या में इंजीनियर और टेक्निकल विशेषज्ञ नहीं हैं। अब आप ही का आसरा है।’’ इन शब्दों में नीना ने सुपरिचित व्यंग्य की ध्वनि पायी, लेकिन इस बार उसने इसका बुरा नहीं माना। ‘‘ठीक है,’’ घर जाते हुए रास्ते में उसने सोचा, ‘‘जहाँ मैंने काम शुरू किया, तहाँ मेरे साथ उन लोगों का व्यवहार भी बदल जाएगा। निर्माण कार्य का अध्यक्ष यह आशा करता है कि मैं एक महीने के अन्दर काम पर पहुँच जाऊँगी। वह आनन्द-सहित कितना चकित रह जाएगा, जब वह देखेगा कि मैंने विद्यार्थी की हैसियत से मिलने वाली आखिरी छुट्टी भी कुर्बान कर दी है।’’

अगले दिन सुबह उसने हल्की-सी रेशमी पोशाक धारण की, गर्मी की ऋतु में पहनी जाने वाली सेंडिलें पहनी, सफेद हैण्डबैग उठाया और अपने जीवन में पहली बार टैक्सी किराये पर ली और निर्माण-स्थल की ओर रवाना हो गयी। सफेद हैण्डबैग में उसके सारे कागजात थे: एक सेलुलायड के खोल में कोम्सोमोल की सदस्यता का कार्ड रखा था, उसका पासपोर्ट भी था जिस पर विद्यार्थी की हैसियत से उसका परिचय अंकित था, और उसका डिप्लोमा भी था जिस पर लाख की संख्या में कोई नम्बर पड़ा हुआ था और लाल स्याही में लिखा था कि उसने आनर्स के साथ डिग्री प्राप्त की है।

दूर पर उस इमारत का लोहे का ढाँचा आसमान को छू रहा था और किताबों की अल्मारी जैसा मालूम होता था। रास्ता लम्बा था और जब उसकी टैक्सी सड़कों को पार करती बढ़ रही थी, तब वह इमारत कभी नजदीक मालूम होती और कभी बड़ी दूर।

‘‘क्या आप वहाँ काम करती हैं?’’ टैक्सी ड्राइवर ने पूछा।

‘‘हाँ,’’ नीना ने एक क्षण सोचकर उत्तर दिया।

‘‘वह कितने मंजिल ऊँची होगी?’’

नीना को यह पता नहीं था।

‘‘छब्बीस,’’ उसने उदासीनतापूर्वक उत्तर दिया और इस डर से कि कहीं ड्राइवर और कोई सवाल न पूछ बैठे, उसने शीघ्रतापूर्वक जोड़ दिया, ‘‘और मीनार अलग है।’’

अन्त में वे लोग वहाँ पहुँच गये और नीना दरवाजे में घुस गयी। बड़े-बड़े ट्रक आ-जा रहे थे और जीन की पतलूनें पहने कुछ औरतें भी उसके पास से गुजर गयीं। प्रवेश द्वार पर, छोटा-सा कोट पहने हुए एक बूढ़ा मिला, जिसने उसे सैल्यूट झाड़ा और क्षमा माँगते हुए बताया कि बाहरी आदमियों को घुसने की इजाजत नहीं है। इस बार नीना को बुरा लग गया। उसने लपक कर अपना डिप्लोमा उसे दिखाया और बताया कि वह बाहरी व्यक्ति नहीं है।

‘‘इस तरह के कागज से यहाँ काम नहीं चलता,’’ बूढ़े ने साँस खींच कर कहा। ‘‘रजिस्ट्रेशन आफिस में जाओ और ‘पास’ लेकर आओ।’’

‘‘इतने लोग जब बिना किसी पास के आ-जा रहे हैं तो मेरे लिए पास की क्या आवश्यकता है?’’ नीना ने पहले से भी अधिक अपमान महसूस करते हुए अपने मन में सोचा।

‘‘मुझे निर्माण-कार्य के अध्यक्ष से मिलना है,’’ उसने अनिश्चित कठोरता के साथ कहा।

‘‘चाहे अध्यक्ष से मिलना हो, चाहे किसी और से-सब बराबर है,’’ बूढ़े ने असहाय स्वर में कहा, ‘‘37 नम्बर पर फोन कर लीजिये।’’

आधे घण्टे बाद उसे गुलाबी रंग का पास मिला और वह निर्माण-स्थल में प्रवेश कर पायी, लेकिन तब तक सुबह का उत्साह समाप्त हो गया था।

इस्पात का ढाँचा, जिसमें खड़े ओर पड़े गर्डर लगे हुए थे, आसमान में और भी ऊँचा लगने लगा। नीचे से देखने से वह किताबों की अल्मारी जैसा बिल्कुल नहीं लगता था। मस्तक ऊँचा किये हुए, वह ढाँचा ज्यों-ज्यों आसमान की नीलिमा में लीन होती जाती थी, त्यों-त्यों ऐसा लगता था मानो हवा के पटल पर किसी ने उसे अंकित कर दिया हो। निकट ही बादल तैर रहे थे और इस कारण यह धारणा पैदा होती थी मानो सारा ढाँचा धीरे-धीरे ढह रहा है। धमाके और झनझनाहट के साथ बड़ी-बड़ी लारियाँ बालू, कंक्रीट, कंक्रीट की इंटें, लोहे के नल आदि ढो कर ला रही थीं। नीना के सिर के ठीक ऊपर लाउडस्पीकर खड़खड़ाया और यूक्रेनी लहजे में एक औरत की आवाज सुनायी दी: 3 नम्बर की यूनिट के फोरमैन सुनें। 3 नम्बर की यूनिट के फोरमैन सुनें। इवान पावलोविच, कृपया फौरन ही चीफ इंजीनियर के पास यातायात का परमिट भिजवाइये। इवान पावलोविच, कृपया फौरन ही..., इसी बीच वह आवाज शोर में डूब गयी: दूर कहीं ऊपर, किसी ने गर्डर पर हथौड़ा चलाना शुरू कर दिया और लोहे का सारा ढाँचा सितार की तरह झनझना उठा। नीना ने अनगिनत लोगों को काम पर लगे देखा। खतेरे की लाल झण्डी लिये एक नौजवान उसके पास से ही गुजरा और उसके पीछे-पीछे बिजली का कारीगर परीक्षण लैम्प लिये जा रहा था, जिसके तार जमीन पर खड़खड़ा रहे थे और ऐसा लगता था मानो उसमें तार समेत उस लैम्प को दीवार से निकाल लिया हो। पीतल के बुन्दे पहने हुए एक लड़की एक बोर्ड टाँग रही थी, जिस पर लिखा हुआ था: ‘‘कारीगरो देख लीजिए कि आपके काम की जगह व्यवस्थित है या नहीं।’’ और ‘‘कारीगरो’’ के बाद कामा नहीं लगाया गया था। आकर्षण से भरपूर इस लड़की को ऐसा नगण्य काम करना पड़ता है, इस पर रहम खाते हुए, नीना केन्द्रीय दफ्तर को बढ़ गयी।

अध्यक्ष अन्दर नहीं थे। एक युवा सेक्रेटरी ने लापरवाही के साथ नीना को बायीं तरफ तीसरे द्वार पर कर्मचारी विभाग में जाने और एक प्रश्नावली भरने की सलाह दी। कर्मचारी विभाग का प्रधान भी सेक्रेटरी की ही तरह, नीना के आगमन से कोई अधिक प्रभावित नहीं प्रतीत हुआ। उसने एक आल्मारी से प्रश्नावली निकाली और उसे चेतावनी दी कि किसी बात को रेखांकित किये या काटे बिना, सभी सवालों का पूरा-पूरा उत्तर दिया जाय और कहा कि अगले दिन पूरे चेहरे के दो चित्र भी साथ में लेती आये। नीना ने अपने आपको सांत्वना दी, ‘‘स्वाभाविक ही तो है। ये लोग हर रोज नये-नये आदमी भरती करते हैं, मुझे यह आशा नहीं करना चाहिए कि वे लोग मेरी तरफ कोई विशेष प्रकार से ध्यान देंगे।’’ फिर वह वेटिंग रूम में चली गयी और उस समय तक बैठी रही, जब तक सेक्रेटरी ने यह हिदायत न दे दी कि वह प्रधान इंजीनियर रोमन गव्रीलोविच के पास जाकर, उनसे बात करे।

‘‘क्या यह बेहतर न होगा कि आप उन्हें पहले ही यह बता दें कि मैं कौन हूँ?’’ नीना ने अभिमान के साथ होंठ दबाते हुए कहा।

‘‘मैं क्यों बताऊँ? सीधी चली जाइये।’’

प्रधान इंजीनियर के कमरे में लगभग कोई फर्नीचर नहीं था। उनकी मेज पर भी, एक ईंट-साधारण लाल ईंट, जिसमें छेद थे-के सिवाय और कुछ नहीं था। वहाँ बैठा हुआ व्यक्ति लम्बा और दुबला-पतला था, हाथ धूप से साँवले पड़ गये थे, और वह कहीं टेलीफोन करने में लगा हुआ था। उसके काले बालों में सफेद बालों की रेखाएँ भूसे के तिनकों की तरह उलझी मालूम होती थीं। नीना ने उसकी मेज पर कुछ क्लिपों को जंजीर की तरह एक दूसरे से जुड़े हुए देख कर कल्पना की, ‘‘परेशान है।’’

सावधानी से नीना का अध्ययन करते हुए, प्रधान इंजीनियर ने टेलीफोन के चोंगे में फटी आवाज में कहा, ‘‘और अब के. आर. 272 नम्बर का नक्शा निकालो। जल्दी करो। मिला कि नहीं? खिड़की जिस तरफ खुलती है, उस तरफ, बायीं ओर तुम्हें 12-40 नम्बर दिखायी देता है कि नहीं? तो बस, उसमें टेक की ऊँचाई जोड़ दो और उससे तुम्हें तख्तों की लम्बाई का पता लग जायेगा। नहीं, इससे कम नही होना चाहिए। चार इंच भी नहीं।’’ प्रधान इंजीनियर की नजर ज्यों ही नीना के सफेद बैग पर पड़ी, त्यों ही उसकी ऊबड़-खाबड़ भौंहें एक दूसरे के पास खिंच लायी। नीना ने मन ही मन अपने आप को झिड़का कि वह इस बैग का लेकर क्यों आयी। ‘‘बिना टेक के, तुम उसे कैसे छोड़ सकते हो? तुम्हें अपनी बुद्धि से काम लेना होगा, मेरे दोस्त। अब के. आर. 221 नम्बर का नक्शा निकालो... यही है। दीवारगीर को जरा नीचा कर दो और एक गद्दी लगा दो...’’

प्रधान इंजीनियर ने टेलीफोन रख दिया।

‘‘आप मुझसे मिलना चाहती हैं?’’ उसने कुछ आश्चर्य के साथ पूछा।

‘‘हाँ,’’ नीना उसका नाम और पितृनाम लेना चाहती थी, पर भूल चुकी थी।

‘‘मैं यहाँ काम करने के लिए भेजी गयी हूँ।’’

उसने नीना का डिप्लोमा खोला और विभिन्न विषयों में उसे जो नम्बर मिले थे, उनके अध्ययन में डूब गया।

‘‘डिप्लोमा बिल्कुल निष्कलंक मालूम होता है,’’ उसने कहा। ‘‘और आशा है, ऐसा ही रहेगा।’’

‘‘आशा मुझे यही है,’’ नीना ने दृढ़तापूर्वक कहा।

‘‘यह इतना आसान नहीं है।’’ प्रधान इंजीनियर ने प्रश्नावली पर अपनी दृष्टि दौड़ायी और फिर दुहराया, ‘‘यह इतना आसान नहीं है नीना वासिलीयेव्ना! आज कल उच्च शिक्षा प्राप्त नौजवान ठीक ही बड़े-बड़े दावे करते हैं। उन्हें यह काम पसन्द नहीं तो वह भी पसन्द नहीं और इस तरह एक काम छोड़कर दूसरा काम टटोलते घूमते हैं और अपना डिप्लोमा पेश करके कहते हैं कि उन्होंने विशेष योग्यता के साथ डिग्री हासिल की है। स्वाभाविक है कि इस तरह डिप्लोमा एक हाथ से दूसरे हाथ जाकर बहुत से हाथों में पड़ता है और गन्दा हो जाता है।’’

‘‘मुझे ऐसा लगता है...’’ नीना ने बात शुरू की।

‘‘तुमने विद्यार्थी की हैसियत से काम कहाँ सीखा?’’ प्रधान इंजीनियर ने उसकी बात बीच ही में काट दी और उसके स्वर से नीना समझ गई कि वह खुद अब उसकी मातहत बना गयी है और वह उसका प्रधान है।

‘‘यारोस्लाव्ल में,’’ नीना ने जवाब दिया। ‘‘मुझे अपनी डिग्री की थीसिस के लिए आँकड़े जमा करने थे और इसलिए मैंने उनसे कहा कि मुझे जिम्मेदारी की जगह पर नियुक्त न किया जाय। इसलिए उन्होंने मुझे ऐसा काम दिया जिसका निर्माण-कार्य से कोई सम्बन्ध नहीं था। मैं शर्म भी महसूस करती हूँ कि...’’

‘‘काम क्या था?’’’

‘‘सुरक्षा की टेक्निक।’’

टेलीफोन की घण्टी बज उठी।

‘‘थोड़ी देर बाद फिर फोन करना। अभी मैं व्यस्त हूँ,’’ प्रधान इंजीनियर ने फोन में कहा और चोंगा फिर लटका दिया।

‘‘यह बड़े भाग्य की बात है,’’ उसने टीका की।

‘‘क्या भाग्य की बात है?’’ नीना ने पूछा।

‘‘बात यह है कि सुरक्षा की टेक्निक के काम पर हमलोग अक्सर अनुभवी इंजीनियरों को लगाते हैं। सफेद बालोंवाला या गंजा सिर। लेकिन जो इंजीनियर इस काम पर था, वह अभी उस दिन बीमार पड़ गया और अब तुम्हें इस काम पर रखने के अलावा और कोई चारा नहीं है।’’

‘‘ऐसे पोस्टर लगाने का काम दिया जायगा, जिनमें विराम-चिन्ह लगाने की गलतियाँ हों?’’

‘‘यह तो एक काम है। लेकिन उसममें गलतियाँ नहीं होना चाहिए। इतनी जानकारी तो तुम्हें होना ही चाहिए कि ऐसे काम में कोई गलती बर्दाश्त नहीं की जा सकती।’’

नीना ने सोचा, ‘‘अगर मैं इस काम को अभी ही अस्वीकार नहीं कर दूँगी, तो बाद में असली निर्माण-कार्य पाने में बड़ी कठिनाई होगी।’’ इसलिए उसने अपना हैण्डबैग उठाया और ऐसे स्वर में बोली जिसमें अफसरियत जरा भी नहीं थी: ‘‘ओह, मैं यह काम नहीं कर सकूँगी। उससे मुझे नफरत होगी।’’

‘‘क्यों?’’ प्रधान इंजीनियर ने पूछा और उसकी भौंहें एक दूसरे से लगभग मिल-सी गयीं और उसकी पतली-पतली उँगलियाँ पेपर-क्लिपों की जंजीर की कड़ियाँ जल्दी-जल्दी गिनने लगीं।

‘‘जरा आप खुद ही ख्याल कीजिये, रोमन गव्रीलोविच’’ प्रधान इंजीनियर का पितृनाम, नीना को यकायक याद आ गया था, हालाँकि उस भावावेग में इस बात को वह समझ न पायी। ‘‘मुझे निर्माण-कला सिखायी गयी थी ओर मैं निर्माण का काम चाहती हूँ। आप इस तरह का काम देकर अनेक लोगों को शत्रु ही बनाते हैं, और कुछ नहीं करते। ओह, उससे मुझे नफरत होगी।’’

‘‘तो यह तुम्हारी पहली माँग है,’’ प्रधान इंजीनियर ने थकी हुई मुस्कान के साथ कहा। ‘‘मैं एक बीच का रास्ता पेश करता हूँ: इस काम को उस वक्त तक के लिए ले लो जब तक हमारा बूढ़ा इंजीनियर अस्पताल से नहीं लौट आता। इसी बीच तुम और कामों पर भी नजर रखो और ऐसा काम चुन लो जो तुम्हें भा जाये, और मैं वायदा करता हूँ कि तुम्हारी इच्छा पर गौर करूँगा। अभी तो हमें यह भी नहीं मालूम कि तुम्हारी इच्छा क्या है। मेरे लिए तो तुम बोरे में बन्द पशु के समान हो, जिसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता और सच कहूँ तो तुम खुद अपने लिए भी इसी तरह हो।’’

‘‘आप अपना वायदा पूरा करेंगे?’’

‘‘तुम और मैं, किसी किंडरगार्डन स्कूल के बच्चे नहीं हैं, नीना वासिलीयेव्ना।’’ वे दोनों बाहर निकले। प्रधान इंजीनियर के पीछे-पीछे सीढ़ियों पर चढ़ते हुए नीना बराबर सावधान थी कि रेलिंग की पट्टियों में उसके वस्त्र न उलझ जाए-वे उस बड़े हाल की तरफ बढ़े, जिस पर अभी छत नहीं बनी थी। ताजा जंग चढ़े शहतीर हवा में झूल रहे थे। चिपचिपे रक्षक पदार्थ में लिपटे हुए तार चारों तरफ बिखरे पड़े हुए थे और यहाँ वहाँ रेत के ढेर पड़े हुए थे। एक तरफ पैकिंग का एक बड़ा भारी डिब्बा खड़ा हुआ था, जो छत पर लगाये जानेवाले कागज से ढँका था और चारों तरफ इस तरह की चेतावनियाँ लगी हुई थी: ‘‘यह सिरा ऊपर की तरफ रखो’’, ‘‘सावधानी से उठाओ’’, ‘‘नाजुक चीजें’’। एक कोने में बिना रन्दा किये तख्तों से जल्दबाजी में एक कमरा बना दिया गया था जिसके तख्तों पर खोपड़ी और गुणा के चिन्ह जैसी दो हड्डियों के चित्र बने हुए थे और एक तख्ती टँगी थी : ‘‘होशियार! उच्च शक्ति के तार।’’ एक आदमी, जिसमें अपना हैट सिर के पीछे के भाग की तरफ खिसका रखा था, प्रधान इंजीनियर के पास आया।

‘‘रोमन गव्रीलोविच, उस कंक्रीट मिलानेवाली मशीन का क्या करें?’’ उसने नीना की तरफ आश्चर्यपूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा।

‘‘एक ठेला ले लो और उसे ले आओ,’’ प्रधान इंजीनियर ने कहा।

‘‘पहियों पर रखे हुए सन्दूक जैसी चीज के पास जाकर नीना रुक गयी और ऊपर आसमान की तरफ देखने लगी,-जिधर देखने भर से चक्कर आने लगता है, क्योंकि वहाँ एक क्रेन के तारों से लटका हुआ लोहे का गर्डर धीरे-धीरे झूल रहा था। यकायक वह सन्दूक खड़खड़ाने और कांपने लगा, मानों उसे जूड़ी चढ़ आयी हो। नीना चौंक कर अलग हट गयी।

‘‘डरो मत,’’ प्रधान इंजीनियर ने मुस्कुराकर कहा। ‘‘यह वेल्डिंग ट्रान्सफोर्मर है और जब हमारे वेल्डर काम करते हैं, तो यह इसी तरह चलता है।’’

‘‘मैं जरा भी डरी नहीं हूँ,’’ नीना ने हठपूर्वक कहा। ‘‘मैं जरा-सा हट गयी थी, बस।’’

‘‘यह भोज-समारोह का हाल होगा,’’ प्रधान इंजीनियर ने रेत के ढेर और जंग खाये शहतीरों का सिंहावलोकन करते हुए कहा। ‘‘संगीतकार वहाँ बैठेंगे। बर्फ पड़ी शेम्पेन शराब और खाने की दूसरी बढ़िया-बढ़िया चीजें यहाँ से मिला करेंगी। यह यूनिट नं. 3 है और आज कल यही हमारे काम का केन्द्र है।’’

नीना को एक हल्की सीटी की ध्वनि सुनायी दी और फिर कोई चीज पैकिंग के डिब्बों पर इतने जोर से गिरी कि वह ऊपर के सिरे को तोड़ कर अन्दर घुस गयी।

‘‘यह क्या था?’’ उसने आश्चर्य से पूछा।

‘‘बिना सुरक्षा-इंजीनियर के यही घपला होता है,’’ प्रधान इंजीनियर ने जवाब दिया। ‘‘उधर सोलहवीं मंजिल पर वह वेल्डर दिखायी दे रहा है? उसने नया इलेक्ट्रोड लगा दिया है और जला हुआ इधर फेंक दिया है।’’

‘‘लेकिन इससे तो किसी की जान चली जाती।’’

‘‘हो सकता था। एक मिनट हमें अपनी बात रोक देनी होगी, नीना वासिलीयेव्ना। ऐसी घटना को हम अनदेखा नहीं छोड़ सकते।’’

‘‘तो क्या आप वेल्डर का डाँटने जा रहे हैं?’’

‘‘नहीं। इस यूनिट के फोरमैन को।’’

‘‘तो मैं जाकर वेल्डर से बात करती हूँ। कर सकती हूँ?’’

नीना ने सीढ़ियाँ खोज लीं और ऊपर की तरफ चढ़ दौड़ी। सीढ़ियाँ भारी तार की जाली की बनी थीं, इसलिए उसके पैरों तले झनझना उठीं और वहाँ से उसे वह सभी काम दिखायी दे रहा था जो नीचे हो रहा था। ‘‘मैं शायद सोलहवीं मंजिल भी पार कर गयी हूँ,’’ उसने साँस लेने के लिए रुकते हुए सोचा। तांबे के कर्णफूल पहने हुए वही लड़की किसी गीत की धुन गुनगुनाती हुई ऊपर से उतर रही थी।

‘‘यह कौन-सी मंजिल है?’’ नीना ने पूछा।

‘‘नवीं। आप कहाँ जाना चाहती हैं?’’

‘‘सोलहवीं पर। क्या वहाँ वेल्डर लोग काम कर रहे हैं?’’

‘‘सोलहवीं मंजिल पर तो सिर्फ अर्सेन्तियेव काम कर रहा है।’’

ऊपर कहीं से लाउडस्पीकर की आवाज आयी: ‘‘तीसरी यूनिट के फोरमैन सुनें। तीसरी यूनिट के फोरमैन सुनें। प्रधान इंजीनियर इवान पावलोविच आपके दफ्तर में बैठे आपको बुला रहे हैं।’’

मंजिलें गिनती हुई नीना सोलहवीं मंजिल तक पहुँच गयी और तंग से उतार पर पहुँचकर रुक गयी।

छोटी-सी वास्कट और मोटी जीन का पतलून पहने एक नौजवान बाहर निकले हुए गर्डर पर इधर-उधर पैर लटकाये बैठा था। नीचे चिड़िया उड़ रही थीं। उसका चेहरा नकाब जैसी ढाल से ढँका था, जिसमें झिल्ली की खिड़की बनी थी। एक जोड़ पर अपने वेल्डिंग के यंत्र को लगाये हुए, वह बड़ी तन्मयता के साथ उस जोड़ पर झुका हुआ था। कमरे के चारों तरफ, वह एक चौड़ी रक्षात्मक पेटी कसे था, जो एक गर्डर से बँधी हुई थी और ऐसा मालूम होता था कि इतनी ऊँचाई पर भी वह बड़े चैन से बैठा है। एक खड़ी छड़ के बोल्ट पर उसकी टोपी टँगी थी और एक दूसरी खड़ी छड़ पर उसका इलैक्ट्रोड का थैला टँगा था।

‘‘कहिए, क्या हाल-चाल है,’’ नीना ने पूछा।

नौजवान ने अपना नकाब उठाया और उसकी चौधियाई हुई भूरी आँखों, अधीरता की रेखा से खिंचे हुए पतले होंठ, सुकोमल नासिका छिद्र, और अस्त-व्यस्त बालों पर नीना की नजर पड़ी।

‘‘यह शुभ दिन बार-बार आये,’’ उसने नीना की तरफ उपहास भरी दृष्टि डालकर कहा। ‘‘क्या आप घूमने आयी हैं।’’

‘‘नहीं। क्या नाम है?’’

‘‘पेत्रोव।’’

‘‘पहला नाम और पितृनाम?’’

‘‘प्योत्र पेत्रोविच। जन्म 1928। व्हाईटगार्ड्स की फौज में कभी नहीं रहा। कभी जुर्माना नहीं हुआ....’’

‘‘लेकिन, अगर आप अपने तौर-तरीके नहीं बदलेंगे, तो कामरेड अर्सेन्तियेव, मुझे डर है कि आप पर जुर्माना होगा,’’ नीना ने अपनी भौहों को प्रधान इंजीनियर की भौंहों की तरह भयानक बनाने की कोशिश करते हुए कहा। ‘‘फिर आप अपने जीवन-चरित्र की शान इतना न बघार सकेंगे।’’

‘‘और आप कौन होती हैं?’’ अर्सेन्तियेव ने किंचित आश्चर्य के साथ पूछा और इलेस्ट्रोड-होल्डर रख दिया।

‘‘वह... उठा लो,’’ नीना कुछ हिचकी, क्योंकि उसे यह नहीं मालूम था कि वह यंत्र क्या कहलाता है। ‘‘...वह उठा लो। अगर वह किसी के सिर पर गिर गया तो जवाबदेही कौन करेगा?’’

‘‘लेकिन आप कौन हैं?’’ अर्सेन्तियेव ने और भी अधिक कौतूहल के साथ आग्रह किया।

‘‘इससे क्या मतलब? मैं नयी सुरक्षा इंजीनियर हूँ।’’

‘‘ओह। अच्छा, तो, इसकी जवाबदेही आप ही करेंगी,’’ वेल्डर ने बड़े शान्तिपूर्वक कहा। ‘‘आपको जाल लगवाना चाहिए।’’

‘‘अच्छा, मुझे करना चाहिए। और इसकी जिम्मेदारी मुझ पर क्यों होगी? पहली बात यह है कि इस काम पर मेरा पहला दिन है,’’ नीना ने कहना शुरू किया, लेकिन यह अनुभव करके कि वह सफाई देने लगी है, उसने फौरन अपना स्वर बदला। ‘‘और दूसरी बात यह कि जला हुआ इलेक्ट्रोड गिराने के लिए तुम्हें जवाब देना होगा।’’

‘‘आप मजाक कर रही हैं। हैं न?’’

‘‘वह तो प्रधान इंजीनियर के सिर पर लगते-लगते रह गया था।’’

‘‘आप जरूर मजाक कर रही हैं, क्यों?’’ अर्सेन्तियेव ने फिर कहा। ‘‘मैं सारे टुकड़े अपने थैले में रखता हूँ।’’

‘‘तो मेरा ख्याल है कि वह आसमान से गिरा होगा।’’

‘‘बहुत मुमकिन है। मेरे सारे टुकड़े थैले में हैं। आपको अगर मुझ पर विश्वास न हो तो खुद गिनकर देख लीजिए।’’

‘‘इसका ख्याल है कि गर्डर पार करने से मैं डर जाऊँगी,’’ नीना ने गुस्से से लाल होकर सोचा। ‘‘मैं अभी बता दूँगी,’’ और वह गर्डर पर चढ़ गयी।

सुरक्षा नियमों का इतना गम्भीर उल्लंघन करने पर भी उस वेल्डर ने जो दुस्साहस दिखाया था, उसके कारण, यदि नीना का क्रोध प्रज्वलित न हो उठा होता, तो नीना उस गर्डर पर कभी पैर भी न रखती, जिसके नीचे चिड़िया उड़ रही थीं। उसने एक गर्डर पार किया, और खड़ी धड़ का चक्कर लगाकर दूसरे पर चढ़ गयी और अगर उसे ईंटों से लदी खिलौने जैसी ट्रक तथा खिलौने जैसा बूढ़ा आदमी किसी का सलाम करता दिखायी न दे जाता, तो शायद वह भली चंगी बनी रहती। लेकिन यकायक उसे चक्कर आ गया और उसने दूसरी छड़ को चारों तरफ से अपनी बाँहों में भर लिया। ‘‘मैं अब सही-सलामत न लौट पाऊँगी,’’ उसके, दिमाग में यह ख्याल चक्कर काट गया, ‘‘जब तक वे लोग यहाँ फर्श नहीं बिछा देते, तब तक मुझे यहीं रहना होगा।’’

‘‘उस गर्डर से मत चिपटो,’’ नौजवान ने चेतावनी दी। ‘‘आपकी पोशाक पर धब्बे पड़ जायेंगे।’’

‘‘मेरी पोशाक की चिन्ता मत करो,’’ नीना ने अपने को कहते सुना।

यह दृढ़ निश्चय करके कि ऊँचाई पर चढ़ने का आदी हो जाना चाहिए, उसने चारों तरफ नजर डालने के लिए अपने को मजबूर किया। उसे अगणित छतें दिखायी दीं-लाल, काली, हरी, रुपहली-हजारों कलई की हुई चिमनियाँ, घरों के बीच-बीच में हरी-भरी वृक्षावलि, स्वच्छ हाते और वेधशाला की टोपी-नुमा गुम्बद की रुपहली चोटी-ये सभी उसकी आँखों के सामने घूम गये। पुल के पास से एक चौड़ी सड़क फूटी नजर आ रही थी, जिस पर यातायात सम्बन्धी चिन्ह अंकित थे और नीना समझ गयी कि यह वही सड़क है, जहाँ से वह हर सुबह डबल रोटी खरीद कर ले जाती है। पीली-पीली छत वाली ट्राली बसें वेग से इधर-उधर आ-जा रही थीं और लारियों की एक लम्बी पाँत शहर के बाहर की बस्ती की तरफ बढ़ रही थी। जब तक किसी कोने से एक ट्राम सरकती निकल आती थी, जो न जाने क्यों यहाँ से काली-काली नजर आती थी, और बड़े धीमे-धीमे सड़क पार करती थी मानो उसे कोई डोर में बाँध कर खींच रहा हो और सड़कों के चौराहों पर कारों का जमघट इकट्ठा हो जाता था। पुल पर नीना को एक गाड़ी दिखायी दी और उसने कल्पना की कि यह वही गाड़ी होगी जिसे कंक्रीट मिलाने वाले यंत्र को लेने भेजा गया था। पुल के कुछ ही दूर पर रेलवे स्टेशन की काँच की छत धूप में दमक रही थी। स्टेशन से बहुत दूर, इमारतों और फैक्टरियों के पार। क्षितिज पर यूनिवर्सिटी की सफेद रूपरेखा उभर रही थी। यह सब जरा भी खौफनाक नहीं लगा-दरअसल, दूर तक नजरें फैलाने में, एक तरह से, आनन्द ही अनुभव हुआ। लेकिन ज्यों ही उसकी दृष्टि नीचे मुख्य द्वार पर, रजिस्ट्रेशन के दफ्तर पर और उस बूढ़े आदमी पर पड़ी, त्यों ही उसका सिर फिर चक्कर खाने लगा और यकायक गिर पड़ने के भय से अभिभूत होकर उसने आँखें बन्द कर ली।

इस बीच अर्सेन्तियेव ने अपना थैला बोल्ट पर से उतार लिया था और कई इलेक्ट्रोड निकाल लिये।

‘‘देखिए कामरेड इंजीनियर,’’ उसने कहा। ‘‘मुझे सप्लाई दफ्तर से पच्चीस इलेक्ट्रोड दिये गये थे-आपको विश्वास न हो तो इस रसीद को देखकर जाँच कर लीजिये। इतने बच गये हैं, जिनका इस्तेमाल नहीं हुआ,’’ और यह कहकर वह गिनती करने लगा। आँखें खोले बिना नीना यह सोचती रही: ‘‘वापस सीढ़ी तक मैं कैसे पहुँच सकूँगी?’’

‘‘देखिए, कुछ उन्नीस हैं,’’ अर्सेन्तियेव ने कहा, ‘‘और पाँच पुराने टुकड़े हैं। ये देखिए: एक, दो, तीन, चार, पाँच। एक होल्डर में लगा है। कोई गड़बड़झाला नहीं, सब चीज सही-सलामत।’’

‘‘तो वह किसने गिराया होगा?’’ नीना से पूछा।

‘‘पता नहीं। हो सकता है, मित्या ने गिरा दिया हो,’’ और अर्सेन्तियेव ने ऊपर की तरफ नजर डाली।

ऊपर की मंजिल पर एक लाल सिर वाला व्यक्ति भी जो टोपी उल्टी पहने था, वेल्डिंग कर रहा था।

‘‘मित्या!’’ अर्सेन्तियेव ने पुकारा। उस व्यक्ति ने नकाब उठाया और नीचे देखा। उसका भला-सा चौड़ा चेहरा, चौड़ी नाक और थोड़ी-सी सूजी हुई आँखें जैसी कि सभी बिजली वेल्डरों की आँखें होती हैं, दिखायी दीं।

‘‘क्या बात है?’’ उसने पूछा।

‘‘क्या तुमने कोई टुकड़ा अध्यक्ष के सिर पर गिरा दिया है?’’

‘‘क्या?’’

‘‘उन्होंने वकील भेजा है,’’ अर्सेन्तियेव ने आँखें झपकाकर नीना की तरफ इशारा करते हुए कहा। ‘‘जरा ठहरना। वह अभी ही नीचे जाएँगी और अधिकारियों से तुम्हारी रिपोर्ट कर देगी और वे लोग तुम्हारी जिन्दगी के दस वर्षों की बलि चढ़ा देंगे। फिर तुम्हें कुछ सबक मिलेगा।’’

‘‘क्षमा चाहता हूँ,’’ अपने मित्र के स्वर में दिल्लगी उड़ाने का आभास पाकर मित्या ने कहा। ‘‘हम लोग कभी-कभी असावधान हो जाए, तो स्वाभाविक है। पिछले साल उस इमारत पर हमारे साथ एक राजगीर काम करता था, जिसे हम लोग चाचा येफिम कहते थे। वह कहा करता था कि जब वह ऊपर आसमान पर चढ़कर काम करता है तो हर चीज उसके हाथ से ऐसे छूटकर गिर पड़ती है, मानो वह निर्जीव वृक्ष हो। इसलिए, तुम विश्वास करो या न करो, वह अपनी हर चीज,-अपनी टोपी, अपनी पेन्सिल, अपना रूमाल, अपनी सिगरेटें, अपनी माचिस-सभी कुछ अपने से बाँध लेता था। क्रिसमस पर जो पेड़ बनाया जाता है, बस वह उसी तरह बन जाता था। तुम मुझे ये टुकड़े गिराने के वास्ते कोस रहे हो, लेकिन जब कोई आदमी इतनी ऊँचाई पर चढ़कर काम करता है जो उसे हर बात का ध्यान रखने का होश नहीं रहता। उसे ध्यान होता है तो अपने काम का और खुद अपना। अगर वह हर छोटी चीज का ध्यान रखने लगे, जो जल्दी ही लुढ़क जाएगा। इसलिए तुम उनसे कहो, कि अगर चीजों के गिरने से वह अपने सिर बचाना चाहते हैं, तो खुली जगहों में जाल लगायें, ऐसी चीजों के बारे में सोचना उनका काम है।’’

‘‘अब क्या आप नीचे जाएँगी?’’ अर्सेन्तियेव ने नीना से पूछा।

‘‘मैं... मैं नहीं जानती...’’

‘‘यूनिट नं. तीन में जाल लगवाने के लिए उनसे कहिए।’’

‘‘अच्छा।’’

‘‘या सीधे आप प्रधार इंजीनियर के पास जाइए।’’

‘‘बहुत अच्छा, प्योत्र पेत्रोविच।’’

‘‘मेरा नाम है एन्द्री अर्सेन्तियेव। मैं तो मजाक कर रहा था। और आपको मैं क्या कह कर पुकारूँ, अगर कभी पुकारना पड़ा तो?’’

‘‘नीना वासिलीयेवना।’’

‘‘ठीक। और मैं यह समझ रहा था कि आप महज घूमने के लिए आयीं हैं। लेकिन जब आप गर्डर पार करने लगी, तो उसी क्षण मुझे अपनी गलती महसूस हो गयी। ऐरा-गैरा यह नहीं करेगा। जालों के बारे में आप नहीं भूलेंगी, क्यों?’’ और उसने झिल्लीदार खिड़की वाला नकाब फिर चेहरे पर खींच लिया और काम में जुट गया।

‘‘अब मैं क्या करूँ?’’ नीना ने विचार किया। ‘‘खैर, इंजीनियर क्रावत्सोवा, तुम यहाँ से वापस जा सको या न जा सको, यहाँ से तुम्हें टलना ही होगा। पता नहीं, उन्हें अभी फुर्सत मिली या नहीं कि तुम्हारा नाम अपने कर्मचारियों में दर्ज कर ले।’’ उसने नीचे ताका और जमीन पर पैर टिकाये काम करने वाले लोगों से उसे ईर्ष्या हुई; उसने गर्डर को छोड़ने के लिए जबर्दस्त प्रयत्न किया। लेकिन उसका सिर फिर घूमने लगा; उसकी एड़ियों में गुदगुदी जैसी सनसनी पैदा हो गयी और वह समझ गयी कि एक भी कदम नहीं उठा पायेगी।

चारों तरफ लोग, हमेशा की तरह, शान्ति के साथ काम कर रहे थे। नीचे, कहीं दूर से मोटर के भोंपुओं की आवाज, धातुओं की चीजों की खड़खड़ाहट और धौंकनियों से चलनेवाले हथौड़ों की रट्-टट्-टट् के स्वर आ रहे थे। कोई तीस फीट दूर, एक क्रेन के काँच के पिंजड़े में नाीन को नीली आँखोंवाली लड़की लीवर घुमाती हुई दिखायी दी, जिससे क्रेन की विराट भुजा की छाया, हवाई जहाज की छाया की तरह, पूरी इमारत के इस्पाती ढाँचे के ऊपर घूम गयी।

‘‘आप अभी भी यहीं हैं,’’ अर्सेन्तियेव ने नकाब उठाते हुए पूछा।

‘‘मैं बताऊँ, उसे डर लग रहा है,’’ ऊपर मित्या चिल्लाया और जोर से हँस पड़ा। ‘‘माफ कीजियेगा।’’

‘‘इसमें हँसी की बात ही क्या है,’’ नीना ने हताश भाव से कहा।

‘‘सचमुच कोई बात नहीं है। बस, करना यह चाहिए कि अपने मन में सोच ले कि हम जमीन पर चल रहे हैं और तब सब कुछ ठीक हो जाता है। एक अमरीकन था, जिसने दो गगन चुम्बी इमारतों के बीच एक तख्ता लगा दिया और यह शर्त लगायी कि वह आँख मूँदकर उसे पार कर सकता है। उसने कहा कि जब उसके आँखों पर पट्टी बँध जायगी, तो फिर यह तख्ता चाहे जमीन पर हो चाहे आसमान, उसके लिए रत्ती भर फर्क न पड़ेगा। तो, उन लोगों ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी और वह उस तख्ते पर चल पड़ा। और वह धड़ाम से नीचे आ गिरा।’’

‘‘बात खत्म हो गयी?’’ अर्सेन्तियेव ने चिढ़कर कहा।

‘‘क्या मामला है?’’

अर्सेन्तियेव ने नीना की तरफ घबरायी हुई दृष्टि डाली।

‘‘क्या आप यहीं खड़ी रहेंगी?’’ एक क्षण सोच-विचार कर अर्सेन्तियेव ने पूछा।

‘‘मैं नहीं जानती।’’

‘‘वाह, यह भी क्या बात हुई। आपको सीढ़ियों तक क्या मैं ले जाऊँगा?’’

‘‘ओह, नहीं, लेकिन कोई और उपाय निकालिए।’’

‘‘मैं आपको उठाकर ले जाता, यदि परिस्थिति इतनी गम्भीर न होती। मैं ऐसी जिम्मेदारी नहीं ले सकता।’’ फिर मित्या की ओर मुड़कर उसने कहा, ‘‘परियों के किस्से तुम अच्छे सुनाते हो, लेकिन कुछ सलाह तो दो।’’

कुछ क्षण तक वे एक-दूसरे की तरफ देखते बैठे रहे।

‘‘बस अगले क्षण, मैं गिर ही जाऊँगी,’’ नीना ने अपनी काँपती पलकें बन्द करने की कोशिश करते हुए अस्फुट स्वर में कहा।

‘‘अगर फर्श लगा दिया जाय, तो वह पार कर लेगी।’’ मित्या ने अन्त में कहा।

‘‘बस, यही सोच पाये?’’ अर्सेन्तियेव ने चोट की, लेकिन यकायक उसे एक सूझ समझ में आयी।

‘‘मारूस्या।’’ उसने क्रेन चलाने वाली नीलाक्षी लड़की को आवाज लगा दी।

‘‘सिग्नेलर से कहो कि मेरे लिए 5 नम्बर के दो तख्ते भिजवा दे। बाकी बात, मैं नीचे आकर बता दूँगा।’’

नीना ने उस लड़की को सिर हिलाते और फिर टेलीफोन में कुछ कहते और फिर लीवर खींचकर क्रेन चलाते देखा। शीघ्र ही इस्पात की विराट भुजा हवा को चीरती हुई आयी और अर्सेन्तियेव के सिर पर कंक्रीट का चौकोर तख्ता झूलने लगा।

‘‘नीचा करो और नीचा करो।’’ अर्सेन्तियेव ने हाथ हिलाते हुए आवाज लगायी।

तख्ता बड़ी सफाई के साथ गर्डरों पर आकर जम गया और नीना ने यकायक महसूस किया वह कंक्रीट के चौड़े फर्श पर खड़ी है, जिसपर किसी के बड़े-बड़े चरण-चिन्ह हमेशा के लिए अंकित हो गये थे। पाँच मिनट एक और तख्ता आकर उसके आगे बिछ गया और नीना, अर्सेन्तियेव की नजरें बचाती हुई, उन्हें पार करती भागी और तारों की बनी सीढ़ियों से नीचे उतर गयी।

‘‘मैं इसी क्षण प्रधान इंजीनियर से बात करूँगी,’’ उसने सोचा ‘‘और इसके पहले कि अवसर चूक जाय, मैं यह नौकरी स्वीकार करने से इनकार कर दूँगी।’’

लेकिन ठोस जमीन पर आकर उसने देखा कि सभी लोग इतने व्यस्त हैं कि किसी को उसकी तरफ ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं मालूम होती थी और ठण्डे बरामदे में एक नोटिस पहले से ही टँग चुका था कि नीना वासिलीयेव्ना क्रावत्सोवा को एक महीने के परीक्षा-काल के लिए सुरक्षा-टेक्नीक के इंजीनियर पद पर नियुक्त किया गया है।

******

नीना ने अगला दिन अपने कार्यक्रम के अध्ययन में लगाया-इस कार्यक्रम के साथ विस्तृत व्याख्यात्मक टिप्पणियाँ लगी हुई थीं और दर्जनों नक्शें जुड़े हुए थे, जिन्हें खोलना तो आसान था, लेकिन मोड़कर फिर रख देना लगभग असम्भव था। प्रधान इंजीनियर उसके साथ बैठे थे और कमजोर मचान बनाने, असावधानी से बनाये गये पाल लगाने और नीचे जाल लगाकर तथा लट्ठों की आड़ लगाकर सुरक्षा किये बिना खुली जगहों के ऊपर काम करने में क्या खतरे हैं। यह बता रहे थे और उन्होंने किसी भी आदमी से मिलने से इनकार कर दिया था। पहले तो नीना को लगा कि वे उसके काम के महत्व को व्यर्थ बढ़ा-चढ़ा कर बता रहे हैं, लेकिन जब उनकी बात खत्म हो गयी और प्रधान इंजीनियर ने उससे हाथ मिलाकर कहा: ‘‘मुझे आशा है कि तुम्हारी जाँच के कारण एक भी दुर्घटना नहीं होगी,’’ तब उसे यह महसूस हुआ कि वह सैकड़ों के जीवन की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगी और इस विचार से ही वह काँप गयी।

अगले दिन उसने नोटबुक और पेन्सिल ली और निर्माण-स्थल की पहली जाँच के लिए निकल पड़ी।

दूसरी मंजिल पर भोज के लिए बनने वाले बड़े कमरे में उसकी नजर जल्दी में बनाये गये मचान पर पड़ी। देखने से ही मालूम हो गया कि यह बिजली की वेल्डिंग करने वालों के लिए बनाया गया था, क्योंकि अर्सेन्तियेव वहाँ पर तारों को सुलझा रहा था। विद्यार्थीकाल में नीना ने मचान बनाने के काम का सावधानी के साथ अध्ययन किया था और उसने फौरन ही समझ लिया कि यह मचान जैसा होना चाहिए, वैसा बनाया नहीं गया है। 3 नम्बर की यूनिट का फोरमैन, इवान पावलोविच, बढ़ई से बात कर रहा था, जिसने इस डवाँडोल ढाँचे में आखिरी कील अभी-अभी ठोंकी थी। ‘‘इनसे मैं कहूँ या नहीं?’’ नीना ने सोचा, वह डर रही थी कि अर्सेन्तियेव सोलहवीं मंजिल वाली घटना पर कोई भौंड़ी टीप कसे बिना मानेगा नहीं।

‘‘मैं सदा तो उससे बचकर नहीं रह सकती, इसलिए अभी ही उसको निपट लूँ तो बेहतर है,’’ उसने फैसला कर लिया और इवान पावलोविच के पास गयी।

‘‘इसे आप क्या कहते हैं?’’ उसने सख्ती से पूछा।

‘‘नीना वासिलीयेव्ना, यह अस्थायी ढाँचा है जिसे मचान कहते हैं,’’ फोरमैन ने घमण्ड के साथ बतलाया, ‘‘इन्हें खड़े डण्डे कहते हैं और ये आड़े-तिरछे डण्डे...’’

‘‘डण्डे नहीं, तख्ते,’’ नीना ने अर्सेन्तियेव की नजर बचाते हुए बीच में टोक दिया।

‘‘निश्चय ही आप इन्हें तख्ते नहीं कहेंगी,’’ इवान पावलोविच ने आड़े-तिरछे टुकड़ों में सबसे मोटे तख्ते पर हाथ मारकर उतने ही घमण्ड के साथ कहा। ‘‘ये उतने ही चौड़े हैं, जितने नक्शे में बताये गये हैं।’’

‘‘यह तख्ता है, और यह भी वही है,’’ नीना ने अनुपयुक्त तख्तों पर काटने का निशान बनाकर कहा और उसे महसूस हुआ कि उसका गुस्सा उभड़ रहा है। ‘‘कृपया इन्हें बदल डालिए।’’

‘‘देखिए, देखिए, नीना वासिलीयेव्ना, अभी आप हमारे काम को पूरी तरह समझ नहीं पायी हैं।’’

‘‘और ये खड़े भी सीधे नहीं हैं। सारा ढाँचा ढीला पोला है।’’

‘‘यह सीधे नहीं है, यह आप कैसे कहती हैं?’’

‘‘यहाँ से देखो।’’

‘‘वहाँ से ऐसा ही लगता है। अगर आप इस जगह से देखें तो आप को ये इतने ही सीधे दिखायी देंगे, जैसे साँचे में ढले हों।’’

अर्सेन्तियेव और बढ़ई जाने ही वाले थे, लेकिन वे यह देखने रुक गये कि यह झगड़ा कैसे निपटता है।

‘‘जो जी चाहे, करो,’’ नीना ने कहा, ‘‘लेकिन अगर किसी ने भी इस मचान पर चढ़ने की हिम्मत की तो मैं फौरन यह रिपोर्ट कर दूँगी कि उसने आज्ञा का उल्लंघन किया है।’’

‘‘आप यह क्या कर रही है, नीना वासिलीयेव्ना,’’ इवान पावलोविच ने शीघ्रता से कहा और फौरन गम्भीर हो गया। ‘‘हम सब ठीक किये देते हैं। वास्या, इन तख्तों का मचान तुमने कैसे बनाया?’’

‘‘मुझे जैसे तख्ते दिये गये, वैसे मैंने लगा दिये,’’ बढ़ई ने हठपूर्वक कहा।

‘‘तुम्हें ऐसे सामान की माँग करना चाहिए, जो नक्शे ने अनुसार हो। ये डण्डे देखो। इन्हें तुम सीधा खड़ा कहते हो? देखो, एक घण्टे से सब चीज बदल जाना चाहिए।’’

बढ़ई सारे आड़े-तिरछे तख्तों को गिराने लगा।

‘‘और इस एक घण्टे में मुझसे किस काम की आशा की जाती है?’’ अर्सेन्तियेव ने उदासी के स्वर में कहा।

नीना चली गयी। जब तक वह ओझल नहीं हो गयी, तब तक इवान पावलोविच उसकी तरफ देखता रहा, फिर वह बढ़ई के पास गया।

‘‘रुक जाओ,’’ उसने फुसफुसा कर कहा।

बढ़ई ने अपने कन्धे के ऊपर से प्रश्न-सूचक दृष्टि डाली।

‘‘इन्हें फिर लगा दो। जभी वह छींके, तभी हम डाक्टर के पास नहीं दौड़े जाएंगे। अर्सेन्तियेव, चढ़ तो जाओ।’’

आधे घण्टे बाद लाउडस्पीकर ने नीना को भोज वाले बड़े कमरे में बुलाया। वहाँ नीना ने प्रधान इंजीनियर और अर्सेन्तियेव को मचान के पास खड़े पाया।

‘‘इसे तुमने देखा था?’’ प्रधान इंजीनियर ने नीना से पूछा।

‘‘देखा था।’’

‘‘देखो,’’ और प्रधान इंजीनियर ने पैर रखकर बड़ी आसानी से एक तख्ते के दो टुकड़े कर दिये। ‘‘ऐसी चीज तुम्हें नजर से नहीं बचने देनी चाहिए।’’

‘‘कामरेड अर्सेन्तियेव, इसकी सफाई में आपको क्या कहना है? किंकर्त्तव्यविमूढ़ नीना ने पूछा। वह देखती कि जब लोग झूठ बोल रहे हैं या उसे धोखा देने का प्रयत्न कर रहे हैं, तब वह किंकर्त्तव्यविमूढ़ रह जाया करती है।

‘‘सफाई तुम्हें देना है,’’ प्रधान इंजीनियर ने कहा। ‘‘तुम्हें और अधिक सावधान रहना है। तुम कितनी सावधान हो, इसी पर लोगों का जीवन निर्भर करता है.. समझीं?’’

‘‘समझी,’’ नीना ने धीमे से कहा।

‘‘मैं बताऊँ, रोमन गव्रीलोविच,’’ अस्रेन्तियेव ने बात शुरू की, लेकिन नीना ने उसकी बात काट दी।

‘‘प्रधान इंजीनियर को सफाई आपको नहीं देना है,’’ उसने धीमे से कहा। ‘‘बात बिल्कुल साफ है। यूनिट के फोरमैन के पास जाओ और कहो कि एक घण्टे में, मैं फिर इस मचान की जाँच करने आऊँगी।’’

******

नीना को जो कठिन काम सौंपा गया था, उस पर अधिकार प्राप्त करने में उसे वक्त नहीं लगा। निश्चय ही, वह इसे अस्थायी काम समझती थी और इसीलिए गैरहाजिर इंजीनियर की मेज की एक भी चीज को उसने नहीं छुआ-यहाँ तक कि उसने कलैण्डर को भी नहीं छुआ, जिस पर तमाम पुरानी टिप्पणियाँ लिखी हुई थीं। उसने कोई परिवर्तन किया, तो सिर्फ इतना कि एक पानी के गिलास में कुछ फूल सजा लिए। किन्तु इस अस्थायी स्थिति के बावजूद वह ‘‘अपने काम में तन-मन से जुट गयी’’-उसके मित्र यही कहा करते थे।

उसके पहले के इंजीनियर का दफ्तर छोटा-सा था और उसमें सिर्फ एक खिड़की थी। यह खिड़की निर्माण-स्थल की ओर खुलती थी, और उसके बाहर झुककर सारी इमारत बिल्कुल चोटी तक देखी जा सकती थी। लेकिन नीना दफ्तर में इतना कम रहती थी कि विभिन्न सुपरवाइजर उसे सीधे लाउडस्पीकर से बुलाते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास-सा हो गया था कि उसे टेलीफोन पर पाना असम्भव है। नीना दफ्तर में नहीं रहती थी, उसका एक कारण यह भी था कि वह यह खुद देखना पसन्द करती थी कि उसके आदेशों का पालन किस तरह किया जा रहा है और दूसरा कारण यह था कि वह सप्लाई विभाग के टेक्नीकल विशेषज्ञ अखापकिन से बचना चाहती थी क्योंकि वह अपनी रोज की शिकायतों से-कि खारकोव कारखाने ने ब्लाक 92 के लिए अपना आर्डर अभी तक नहीं भेजा है-उसके कान खा जाता था। दो ही सप्ताहों में उसे अपने काम में इतना आनन्द मिलने लगा कि जब वह निर्माण-स्थल के जीने पर ऊपर नीचे जाती तो इधर-उधर निकले हुए तारों को अनजाने में आप ही आप मोड़ देती थी।

फिर भी, इन दो सप्ताहों के अन्त में वह उतनी ही अकेली थी जितनी कि पहले दिन जब वह आयी थी। उसने कोई मित्र नहीं बनाया। फोरमैन समझते थे कि यह थोड़े दिनों की बला है, जो आँधी-पानी की तरह एक दिन चली जाएगी। नीना गर्डरों पर जिस तरह चलती थी, उसका वे लोग मजाक बनाते थे और अपनी मीटिंगों में बड़े बुजुर्गाने ढंग से झिड़कते थे। यह देखकर कारीगर भी उसका सम्मान नहीं करते थे और उसकी पीठ पीछे उसे नीना वासिलीयेव्ना कहने के बजाय ‘‘सुरक्षा टेक्नीक’’ के नाम से पुकारते थे। लेकिन इस सबके बावजूद, नीना खुली जगहों में काम करने वालों के चारों तरफ घेरे लगवाने या नीचे की खुली जगह को जाल या तख्तों से पटवा डालने में सफल हो गयी थी।

फिर भी, साधारण संख्या में छोटी-छोटी दुर्घटनाएँ होती ही रहती थीं। सुरक्षा नियमों को समझाने के लिए बैठकें करने के उद्देश्य से नीना कई बार कारीगरों के होस्टल में गयी, लेकिन कोम्सोमोल के समर्थन के बावजूद, इन बैठकों में कोई नहीं आता था। नीना को बड़ा गुस्सा आया। वह कह उठती थी कि नौजवानों को अनुशासन का जरा भी ध्यान नहीं है और होस्टल की प्रबन्धकर्त्री, क्सेनिया इवानोव्ना से वह अनुरोध करती कि इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाय। क्सेनिया इवानोव्ना सिर्फ खेदपूर्वक हँस कर रह जाती और कहती कि नीना को अभी यह नहीं मालूम कि असली अनुशासन-हीनता क्या होती है। और तो और, कभी-कभी नौजवान लोग इस हद पर पहुँच जाते कि कल्याण समिति अपराधी युवक के माता-पिता के पास शिकायत लिखकर भेजने के लिए विवश हो जाती-हालाँकि नौजवान कारीगर अगर किसी बात से खौफ खाते हैं, तो सिर्फ इसी से। अन्त में क्सेनिया इवानोव्ना ने सुझाव दिया कि एक नृत्य-कार्यक्रम संगठित किया जाय और उसको सुरक्षा विषयक वार्ता से शुरू किया जाय।

नीना का पारा चढ़ गया। उसने कहा कि अगर सुरक्षा नियमों को समझाने के लिए कोई प्रलोभन देना आवश्यक है, तो लानत है इस पर और यह कहकर वह घर चली गयी। चूँकि क्सेनिया इवानोव्ना तनिक भी सहायक सिद्ध नहीं हुई, इसलिए उसने तमाम निर्माण-क्षेत्र में तख्तियाँ लगाने का निश्चय किया। इसके बारे में सबसे पहले उसने अखापकिन से बात की ओर उसे बताया कि यहाँ बहुत कम तख्तियाँ लगी हैं और जो थोड़ी-बहुत लगी भी हैं, उन पर लिखाई बड़ी खराब है। साइनबोर्ड अच्छे बनने चाहिए, हो सकें तो टीन के, और उन पर रंगीन पृष्ठभूमि में तेल के रंगों से अक्षर लिखे जाने चाहिए। इबारत संक्षिप्त, मगर प्रभावशाली होनी चाहिए-‘‘हो सके तो पद्य लिखी जाय,’’ उसने किंचित सन्देह के साथ कहा।

‘‘कितनी तख्तियाँ चाहिए?’’ अखापकिन ने पूछा।

‘‘कम से कम साढ़े तीन सौ।’’

‘‘कितने?’’

‘‘साढ़े तीन सौ।’’

‘‘तुम क्या मजाक कर रही हो? पता है, कितना खर्चा होगा?’’ उसने अपनी कापी में से एक पन्ना फाड़ा और हिसाब-किताब लगाता हुआ गुड़गुड़ाने लगा: ‘‘टीन-एक सौ चादरें, तेल... सूखा रंग... मजदूरी... यातायात... फुटकर...’’ अन्त में उसने कहा, ‘‘एक साइनबोर्ड की कीमत तेरह रूबल बैठेगी।’’

‘‘एक व्यक्ति की कीमत कितनी होती है?’’ नीना ने पूछा।

‘‘एक व्यक्ति की कीमत? क्या मतलब?’’

‘‘हमारे देश में एक व्यक्ति की कीमत क्या है?’’

‘‘एक आदमी की कीमत क्या होती है, यह मुझे नहीं मालूम, लेकिन तीन सौ पचास को तेरह से गुणा करने से पाँच हजार रूबल का हिसाब आता है। ऐसी बेकार सी बात पर, इतनी बड़ी रकम कोई नहीं खर्च करने देगा।’’

नीना ने उसका हिसाब-किताब उठाया और प्रधान इंजीनियार से बात करने चली गयी। उन्होंने उतनी रकम खर्च करने की इजाजत दे दी, लेकिन इबारत पद्य में रखने पर ऐतराज किया। कुछ दिनों बाद, ताँबे के कर्णाभूषण पहले वही लड़की (जिसका नाम न्यूरा था) तमाम जगह साइनबोर्ड लटकाती नजर आयी, इस बार मुंडेरों पर नहीं, बल्कि नीना द्वारा चुने हुए स्थानों पर इन्हें लटकाया जा रहा था, क्योंकि उन्हीं स्थानों पर लोग काम कर रहे थे। दो रात तक नीना ने नियम-उपनियमों का मंथन किया और उपयुक्त हिदायतें चुनीं। उसने सभी को संक्षिप्त और सार्थक रूप दिया: ‘‘अपने औजारों की मरम्मत अच्छी तरह करा लो। टूटा औजार खतरनाक होता है, वेल्डिंग की चमक की तरफ मत ताको।’’

मगर शीघ्र ही सप्लाई विभाग की कंजूसी प्रकट होने लगी। साढ़े तीन सौ साइनबोर्डों के आर्डर के बजाय उसने सिर्फ पचास के आर्डर दिये और हर साइनबोर्ड के कोने में लिखा था: ‘‘कीमत, तेरह रूबल।’’ स्पष्ट था कि यह अखायकिन की करामात है।

अगले दिन सुबह जब साइनबोर्ड लगा दिये गये, तब नीना निरीक्षण के लिए निकली। इस समय तक वह ऊँची जगहों पर चढ़ने की आदी हो गयी थी, लेकिन गर्डरों पर पैर रखने में उसे अभी भी डर लगता था। सातवीं मंजिल पर उसने देखा कि लाल सिरवाला मित्या गैस-वैल्डिंग का काम कर रहा है।

‘‘काम खत्म करने के बाद जनरेटर में कोई कारबाइट मत छोड़ देना-ध्यान रखना।’’ नीना ने चेतावनी दी।

‘‘मैं कभी नहीं छोड़ता, नीना वासिलीयेव्ना।’’ मित्या ने मुड़कर कहा।

‘‘अरे भाई, यह तो देखो। तुम फिर बिना चश्मा लगाये काम कर रहे हो।’’

‘‘टूट गया,’’ मित्या ने मुस्कुरा कर कहा। ‘‘आज सुबह वह चश्मा मेरी जेब में पड़ा था और यह मैं भूल गया। मैंने अपने प्लायर्स जेब में डाल दिये। काँच टूट गये। यह है।’’

मित्या ने जेब से चश्मा निकाल लिया, जिसका एक काँच टूटा था।

‘‘इससे तुम अभी भी काम कर सकते थे,’’ नीना ने कहा।

‘‘और अगर कहीं काँच का टुकड़ा टूट कर आँख में घुस गया तो?’’ मित्या ने आपत्ति की। ‘‘आप नहीं जानतीं, टूटा औजार खतरनाक होता है?’’

नीना का गुस्सा भड़क उठा। ये कारीगर उसके काम का सम्मान करना कब शुरू करेंगे, और उसके आदेशों का मजाक उड़ाना कब बन्द करेंगे?

‘‘अगर तुम्हें अपनी आँख में काँच घुसने का इतना डर था, तो तुम्हें बहुत पहले नया चश्मा लाने के लिए सप्लाई दफ्तर जाना चाहिए था,’’ नीना ने शान्ति धारण करने का प्रयत्न करते हुए कहा। ‘‘रंगीन चश्मे के बिना काम करने पर मैं रोक लगाती हूँ।’’

‘‘आप समझती हैं कि मेरे पास सात मंजिल उतरने और सात मंजिल चढ़ने के अलावा और कोई काम नहीं है? योजना की पूर्ति कैसे होगी? मेरी कमाई क्या होगी?’’

‘‘तो तुम अपने यूनिट फोरमैन को जाकर सूचित करो कि मैंने तुम्हें काम से हटा दिया है,’’ नीना ने अपना पैड निकाला और उल्लंघन करने के अभियोग का नोटिस लिखने लगी।

‘‘भूल भी जाइये, नीना वासिलीयेव्ना।’’

‘‘नहीं। मैं नहीं छोड़ूँगी। तुमने यह दूसरी बार नियमों का उल्लंघन किया है। अगर तुम इस बात को जारी रखोगे-तो मैं लिख दूँगी और तुम्हारे माता-पिता को सूचित कर दूँगी कि तुम कैसे व्यवहार करते हो।’’

‘‘मैं आपको उनका पता ही नहीं बताऊँगा।’’

‘‘तुम्हें बताना नहीं पड़ेगा; मैं नियुक्ति विभाग से पता हासिल कर लूँगी।’’

सच यह है कि नीना को उसके माता-पिता को शिकायत लिख भेजने का कतई इरादा नहीं था और पता नहीं, क्यों वह उसे ऐसी धमकी दे बैठी, लेकिन इसके पहले कि उससे वह कुछ और कह पाती, लाउडस्पीकर से एक आकाशवाणी ने घोषणा की: दस मिनट के अन्दर एक रेडियो सम्मेलन होगा। दस मिनट के...’’ नीना यूनिट नम्बर 3 के दफ्तर की तरफ भागी, जहाँ ट्रांसमीटर था।

रास्ते में उसे एक लड़की मिली, जिसे उसने पहले कभी नहीं देखा था। यह लड़की तार की सीढ़ियों पर रेलिंग को कस कर पकड़े हुए, धीरे-धीरे चढ़ रही थी ओर अपने चारों तरफ शीघ्रतापूर्वक नजर डालती जा रही थी और कभी-कभी रुककर क्रेन की हवा में झूलती हुई भुजा को निरखने लग जाती थी। ‘‘नयी आयी है,’’ नीना ने उसके करीब से गुजरते हुए सोचा।

चौथी मंजिल पर एक अस्थायी दफ्तर में नीनाा को इवान पावलोविच मिले। वे अपने चिर-संगी टोप को सिर पर पीठ की तरफ खिसकाये हुए थे। उनके चौड़े, रूखे और धूप खाये चेहरे पर यह टोप जरा भी नहीं फबता था, उनके हिसाब से वह बहुत छोटा मालूम पड़ता था, लेकिन वे इसे दफ्तर में भी चढ़ाये रहते थे ताकि टेलीफोन की अगली पुकार सुनने या अगले कागज पर हस्ताक्षर करने की बला से बचने के लिए किसी भी क्षण बाहर भाग सकें।

फोरमैन के सामने अर्सेन्तियेव खड़ा था।

नीना ने चोरी-चोरी उसकी तरफ नजर डाली-इस भय से कि सोलहवीं मंजिल पर जिस तरह उनका परिचय हुआ था, उसे लेकर वह छींटा न कस दे। लेकिन इस वेल्डर का दिमाग इस समय कहीं और ही उलझा था।

‘‘अगर हमारे पास चार आदमी और हों, तो सारा काम बन जाय,’’ उसने फोरमैन से कहा।

‘‘चार आदमी, मैं कहाँ से लाऊँगा?’’ इवान पावलोविच ने बड़ी थकी आवाज में पूछा। ‘‘यह तो बताओ।’’

‘‘हमें आदमी नहीं चाहिए। चार लड़कियाँ हमें दे दीजिये, जो हमारे ऊपरी काम को कर सकें, ट्रांसफार्मरों की देख-भाल कर सकें और यह देख सकें कि तार लगाने का काम ठीक है या नहीं-ताकि हम वेल्डरों को इधर-उधर भाग-दौड़ करने में वक्त बर्बाद न करना पड़े।’’

द्वार खुला और सीढ़ियों पर नीना को जो लड़की मिली थी, उसने दफ्तर में झाँका।

‘‘अच्छा, तो आपको ऐसा जॉब चाहिए जो आपके खाने के लिए सैण्डविचें ला सके?’’ इवान पावलोविच ने अर्सेन्तियेव से पूछा।

‘‘क्यों नहीं? वे लोग हमारे लिए सैण्डविचें भी ला सकती हैं?’’ अर्सेन्तियेव ने निश्चित भाव से कहा।

‘‘मैं आ सकती हूँ?’’ उस लड़की ने दरवाजा और अधिक खोलकर पूछा और इजाजत का इंतजार किये बिना, वह अन्दर चली भी आयी, और मेज के पास आकर खड़ी हो गयी।

‘‘कोई आपकी सेवा में हाजिर रहे, यही तुम चाहते हो,’’ इवान पावलोविच ने उस लड़की की उपेक्षा करके कहा। ‘‘मैं किसी को नहीं ला सकता।’’

‘‘तुम्हारी जगह मैं होता, तो किसी न किसी को ला खड़ा करता।’’

‘‘अच्छा, तो मेरा आसन लीजिए। मेरी जगह ले सको तो मुझे बड़ी खुशी होगी।’’

‘‘मुझे पागल समझते हो?’’

इस सवाल पर विचार करने में लीन होकर इवान पावलोविच अपनी उँगलियों में पेन्सिल घुमाने लगे। स्पष्ट था कि उसके विचार कोई आनन्दजनक नहीं थे, इसीलिए अपने विचारों की लड़ी तोड़ने के लिए उसने उस लड़की की ओर अपनी थकी नजरें घुमायीं।

‘‘क्या चाहती हैं?’’ उसने पूछा।

‘‘मुझे यहाँ काम के लिए भेजा गया है। मैं क्या काम करूँ?’’

‘‘हूँ, काम के लिए। अच्छी बात है। क्या नाम है?’’

‘‘रोदिओनोवा। लीदा रोदिओनोवा।’’

‘‘अच्छा, लीदा रोदिओनोवा, आप उस सोफे पर तशरीफ रखिए और जरा आराम कर लीजिए।’’

‘‘आराम करते-करते मैं थक गयी हूँ,’’ लीदा ने कहा। ‘‘मैं दो दिन से आराम कर रही हूँ-तभी से, जब से रेल से उतरी हूँ।’’

‘‘इसका इलाज हम लोग कर देंगे। तो आपको हमारा यह छोटा सा घरौंदा कैसा लगा?’’

‘‘बुरा नहीं है। सिर्फ बड़ी बुरी तरह भारी-भरकम जगह है। गिर तो नहीं पड़ेगी?’’

‘‘रत्ती भर मुमकिन नहीं। हम कोई चीज बनाते हैं, तो हमेशा के लिए बनाते हैं।’’

‘‘तो, इवान पावलोविच, उन लोगों की बाबत क्या सोचा?’’ अर्सेन्तियेव ने फिर पूछा।

लेकिन इसी क्षण लाउडस्पीकर फिर चालू हो गया और प्रधान इंजीनियर की कर्कश आवाज सुनायी दी: ‘‘सम्मेलन शुरू हो रहा है। ‘‘यूनिट न. 1 के फोरमैन ही सुन रहे हैं, न?’’ ‘‘जी हाँ,’’ यूनिट नम्बर 1 के फोरमैन ने जवाब दिया और फिर अन्य स्त्री-पुरुषों के स्वरों ने भी इसी तरह के प्रश्नों के उत्तर में ‘‘सुन रहा हूँ,’’ या ‘‘मौजूद हूँ,’’ कहकर जवाब दिया। प्रधान इंजीनियर ने जब इवान पावलोविच के बारे में सवाल किया तो उसने जवाब दिया:

‘‘मैं यहाँ मौजूद हूँ और नीना वासिलीयेव्ना भी है,’’ और उसने चोंगे में फूँक मार दी।

लीदा किताबों की आलमारी तक गयी और दरवाजे के शीशे में अपना प्रतिबिम्ब देखकर सिर से रूमाल को कसकर बाँधने लगी।

‘‘मैं खाना खाने बैठ जाऊँ, तो किसी को एतराज तो नहीं?’’ उसने अर्सेन्तियेव से पूछा।

‘‘यहाँ किसी को किसी बात से एतजराज होता है, तो अपना फैसला देने से,’’ अर्सेन्तियेव ने उत्तेजित होकर कह डाला और सोफे पर लीदा की बगल में बैठ गया।

लीदा ने अपने थैले से कुछ बन और पनीर निकाला, अपने घुटनों पर रूमाल बिछाकर उन्हें रख लिया और खाने लगी।

‘‘तुम साइबेरिया की हो?’’ अर्सेन्तियेव ने पूछा।

‘‘तुमने कैसे ताड़ लिया?’’

‘‘साइबेरिया के बन तो साफ झलकते हैं। साइबेरिया के किस भाग की हो?’’

‘‘ओम्स्क क्षेत्र। मैं इशिम के पास रहती हूँ। तुम कहाँ के हो?’’

‘‘नोवोसिबिर्स्क के पास का।’’

नीना यह वार्तालाप सुनकर ईर्ष्या और जलन महसूस कर रही थी।

‘‘यह लड़की कितनी जल्दी दोस्त बना लेती है,’’ नीना सोचने लगी। ‘‘इस जमीन पर पैर रखते ही, वह यहाँ रम गयी। कल तक, शायद इसके दर्जनों दोस्त बन जाएँगे। काश, मैं भी इस मनहूस काम से छुटकारा पा सकती और कोई असली काम शुरू कर सकती।’’

‘‘लोग बताते हैं कि नावोसिबिर्स्क के लोग जरा भी साँवले नहीं होते,’’ लीदा कह रही थी, ‘‘लेकिन तुम तो अपने टोप की तरह काले हो।’’

‘‘क्यों न होऊँ? हम वेल्डर लोग, सभी की बनिस्बत धूप में ज्यादा रहते हैं। बिल्कुल चोटी पर काम करते हैं। तुमने क्या कोई शिक्षा समाप्त की है?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘निर्माण के किसी काम को जानती हो?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘यानी कि तुम कुछ नहीं जानती।’’

‘‘कुछ भी नहीं।’’

‘‘चलो ठीक है। तुम इन लोगों से कहो कि वे तुम्हें मेरी सहायक बना दें। क्या तुम्हें यह काम पसन्द होगा?’’

‘‘मैं क्या जानूँ। जो भी कहा जायगा, मैं करूँगी। अगर मैं तुम्हारी सहायक बना दी जाऊँ, तो मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘कोई अधिक काम नहीं। अगर नीचे से हमें कोई चीज मँगानी होगी, तो हम लोग तुम्हें अपने... अपने जिसे कहते हैं, अपने प्रतिनिधि की हैसियत से वह चीज लाने भेज देंगे, हमारे लिए चीजें लाने के लिए तुम्हें इधर-उधर भाग-दौड़ करनी पड़ेगी ताकि हमें बीच में अपना काम रोकना न पड़े।’’

‘‘तुम्हारी बात मेरी समझ में नहीं आयी। तुम्हारा मतलब है कि तुम्हें अपने काम के लिए नीचे-ऊपर दौड़ने के वास्ते एक दूत की जरूरत है?’’ लीदा ने पूछा।

‘‘क्यों, शुरू में ही तुम नक्शों पर दस्तख़त बनाने का काम चाहती हो क्या?’’

‘‘वे लोग क्या मुझे जूते भी देंगे?’’

‘‘जूते और काम के वक्त पहनने के कपड़े भी।’’

‘‘खैर, होगा। तुम कह रहे थे कि तुम्हें साया पहनने वालियों की जरूरत है और मुझे पहननी पड़ेगी पतलून। मैं इंतजार करूँगी कि प्रधान जी मुझे कहाँ भेजते हैं।’’

बाकी बातें नीना सुन नहीं सकी, क्योंकि इसी समय इवान पावलोविच रेडियो-ट्रांसमीटर के चोंगे में चिल्ला-चिल्ला कर कुछ कहने लगा।

‘‘फिटर लोगों को गर्डरों के लिए एक-एक घण्टे तक इंतजार करना पड़ता है और क्रेन ईंटें ढोये चली जाती है,’’ चोंगे की तरफ उँगली हिलाते हुए वह चिल्ला उठा। ‘‘यूनिट नं. 1 ईंटों से पट गयी है, जबकि मुख्य काम पर लगे आदमी लोग हाथ पर हाथ धरे इसलिए बैठे रहते हैं कि उनके पास अपने काम का कोई सामान नहीं है। प्रधान इंजीनियर क्या यह सोचते हैं कि काम करने का यही तरीका है?’’

‘‘क्या तुम्हारा ख्याल है कि हमलोग बिना ईंटों के, काम चला सकते हैं?’’ यूनिट नम्बर 1 के फोरमैन की आवाज आयी। ‘‘इवान पावलोविच का ख्याल है कि केन्द्रीय क्रेन का इजारा उन्हीं के नाम लिख दिया गया है।’’

‘‘यूनिट नम्बर 1, फिजूल की टीका मत करो,’’ प्रधान इंजीनियर ने कर्कश स्वर में कहा। ‘‘अपने दैनिक काम की योजना सामने रख लो। निकाल ली?’’ यह बात इवान पावलोविच से नहीं कही गयी थी फिर भी उसने अपनी मेज में से योजना निकाल ही ली।

‘सभी क्रेनों की स्थिति देखो,’’ प्रधान इंजीनियर कह रहे थे। ‘‘मिली? नं. 2 को देखो। इस बात की सफाई में क्या कहना है कि क्रेन नं. 2 को इमारत की बायीं तरफ ले जाने के लिए जगह साफ क्यों नहीं की गयी?’’

‘‘कोयला-भण्डार को मैं कहाँ ले जाऊँगा?’’ यूनिट नं. 1 ने पूछा। ‘‘मैं इसे कोने में रखना चाहता था, लेकिन नीना वासिलीयेवना एतराज करती हैं। कोयला-भण्डार को उस तरफ रखने के लिए वह मना करती हैं।’’

‘‘हाँ, मैं मना करती हूँ,’’ इवान पावलोविच के हाथ से चोंगा लेकर नीना ने कहा। ‘‘कामरेड रेशेतोव, जरा नियम पढ़ लीजिए। क्रेन ने नीचे काम करने पर रोक लगायी गयी है।’’

‘‘एक मिनट, नीना वासिलीयेव्ना,’’ प्रधान इंजीनियर ने बीच में टोक दिया। ‘‘इस बात की सूचना तुमने मुझे पहले क्यों नहीं दी, कामरेड रेशेतोव? ओ-आर 12 नम्बर का नक्शा निकालो। उसे देखो। पी-आर और 10-11 जहाँ एक दूसरे को काटते हैं, उस जगह के बीच में, क्या क्रेन नहीं लगायी जा सकती? और क्रेन किस तरह वहाँ लगायी जाएगी, इसकी चिन्ता तुम्हें करनी होगी। और केन्द्रीय क्रेन यूनिट नं.3 के फोरमैन के सुपुर्द कर दी जानी चाहिए।’’

इवान पावलोविच ने अपनी उँगलियाँ चटखायीं और लीदा की तरफ आँख मारी। ‘‘काम ऐसे होता है,’’ वह बोला।

‘‘और इवान पावलोविच को याद रखना चाहिए,’’ प्रधान इंजीनियर कह रहे थे, ‘‘कि सारा ढाँचा अगले बीस दिन में तैयार हो जाना चाहिए। बात साफ हुई?’’

इवान पावलोविच ने चोंगे में इस तरह फूँक मारी, मानो वह चूल्हा हो। ‘‘रोमन गव्रीलोविच, रोमन गव्रीलोविच।’’ वह चिल्लाया, ‘‘मैं आपको पहले ही बता चुका हूँ कि बीस दिन में काम खत्म होना मुश्किल है।’’

‘‘तुम्हें पक्का विश्वास है?’’

‘‘हर आदमी जानता है कि हम नहीं कर सकते। किसी भी कारीगर से पूछ लीजिए। यहाँ, इत्तफाक से अर्सेन्तियेव मौजूद है।’’ उसने चोंगा अर्सेन्तियेव की ओर बढ़ाया और फुसफुसाकर कहा, ‘‘लो और प्रधान को बता दो कि तुम्हारा क्या ख्याल है।’’

‘‘उन्हें अपनी सच्ची राय बताऊँ?’’

‘‘हाँ। डरो नहीं। अगर हम नहीं कर सकते, तो नहीं कर सकते और बस क्या कहा जा सकता है।’’

‘‘अर्सेन्तियेव, तुम्हारा क्या ख्याल है?’’ प्रधान इंजीनियर ने पूछा।

अर्सेन्तियेव ने चोंगा ले लिया। ‘‘अगर जो लोग इन-चार्ज हैं, वे हमारे कहे के अनुसार काम करें, तो हम वक्त पर काम खत्म कर सकते हैं,’’ उसने कहा।

‘‘खूब कहता है,’’ नीना ने सोचा। इवान पावलोविच किंकत्तव्यविमूढ़ होकर धम से कुर्सी पर बैठ गया।

यह सम्मेलन खत्म हो गया तो नीना अपने दफ्तर वापस चली गयी। वहाँ उसे मित्या मिला, जो उसका इंतजार करता हुआ अखापकिन से बातें कर रहा था।

‘‘क्या मतलब, छुट्टी लोगे? सोचो तो, आज जब हम वेल्डरों की वजह से योजना पूरी नहीं हो पा रही है, तब अगर मैं छूट्टी पर जाना चाहूँ, तो कैसा लगेगा? हमलोग राज्य के लिए काम कर रहे हैं, या नहीं?’’

‘‘इसकी तुम चिन्ता मत करो। तुम अपनी चिन्ता आप करो और राज्य स्वयं अपनी फिक्र कर लेगा,’’ अखापकिन बोला।

‘‘मैं चीजों को इस तरह नहीं देखता-मैं अपनी फिक्र करूँ और राज्य अपनी करे। मैं तो राज्य की चिन्ता खुद करूँगा और राज्य से चाहूँगा कि वह मेरी चिन्ता करे।’’

‘‘तुम लोग खाना खाने क्यों नहीं गये?’’ नीना ने पूछा।

‘‘अभी वक्त है,’’ मित्या ने कहा। ‘‘मैं आपसे कुछ बात कहना चाहता हूँ।’’

‘‘किस चीज के बारे में?’’

‘‘अगर आप मेरी माँ को खत लिखें, तो उसे यह न बतायें कि मैं ऊँचाई पर काम करता हूँ।’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बस नहीं ही करें, यही ठीक होगा,’’ उसने उदासी के साथ कहा। ‘‘आप कुछ भी लिख दें, तो आपके लिए क्या फर्क पड़ता है? मेरी माँ का तो कोई दोष नहीं है।’’

‘‘तुम क्या चाहते हो, मित्या, यह मेरी समझ में नहीं आया।’’

‘‘इसमें समझने की बात क्या है? लड़ाई के जमाने में मेरी माँ को बड़े दुर्दिन देखने पड़े। तब से वह अच्छी तरह सो भी नही सकी। अगर वह यह सुनेगी कि मैं इतनी ऊँचाई पर काम करता हूँ, तो वह बिल्कुल ही नहीं सो पायेगी। उसके दिमाग में तमाम ऊलजलूल ख्याल चक्कर काटने लगेंगे।’’

‘‘तुम्हारे पिता नहीं है?’’ नीना ने नरमाई से पूछा।

‘‘नहीं। माँ को तीन बच्चों और खुद अपनी देखभाल करनी पड़ती है। और वह स्वस्थ भी नहीं है, अब वह ज्यादा दिन काम-काज नहीं कर पायेगी। यह मेरे परिवार की तस्वीर है।’’ मित्या ने अपने थैले से एक तस्वीर निकाली, जिसके किनारे कट-फट गये थे। ‘‘यह मेरी माँ है-वह सामूहिक खेत में अनाज की छँटाई करती है। यह ल्युस्का है और वह वास्का है और यह सब से छोटी अल्योन्का है।’’ बच्चों के शरीर सूखे-से थे और इसीलिए वे सभी एक जैसे लग रहे थे।

‘‘मैं जितना भी भेज पाता हूँ, उन्हें भेज देता हूँ-अपने लिए, बस, खाने और सिनेमा भर के लिए पेैसे रख लेता हूँ। कपड़ों के लिए कुछ नहीं रखता-अभी इसकी गुंजाइश ही नहीं है। अगली बार जब कीमतों में कमी होगी, तब मैं अपने कपड़ों के लिए कुछ बचाकर रखूँगा।

‘‘मैं तुम्हारी माँ को कुछ भी नहीं लिखूँगी, मित्या,’’ नीना ने कहा। ‘‘मैं तो हँसी कर रही थी।’’

‘‘यह खूब है। ओर आपको मेरे बारे में चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। अगर कोई व्यक्ति जमीन पर दृढ़तापूर्वक चल सकता है, तो आप यकीन रखिए कि जब वह ऊपर हवा में काम करेगा, तब भी लड़खड़ाएगा नहीं।’’

और वह चला गया। नीना ग्लास के फूलों पर आँखें गड़ाये हुए मेज के सामने बैठी रही और मित्या के भाई और बहिनों के बारे में सोचती रही, जो शायद मित्या की ही तरह लाल-सिर वाले होंगे, उसे मित्या की माँ का भी ख्याल आया, जिसका पति युद्ध ने छीन लिया, और हर तनखा के दिन मित्या के पोस्ट आफिस जाने तथा मनीआर्डर का फार्म भरने का चित्र भी नीना देखने लगी।

‘‘और तीन सौ साइनबोर्ड, कब बनकर तैयार होंगे?’’ उसने अखापकिन से यह सवाल इतने अकस्मात पूछा कि वह चौंक गया।

‘‘जल्दी ही। जैसे ही कुछ टीन और मिला।’’

‘‘सुनो, कामरेड अखापकिन, यह इमारत किसके लिए बन रही है, यह जानते हो?’’ उसने फिर पूछ और बड़ी कठिनाई से अपना गुस्सा रोक पायी।

‘‘मास्को सोवियत के लिए।’’

‘‘जनता के लिए, मास्को सोवियत के लिए नहीं। क्या तुम्हें आम लोगों से प्रेम है?’’

‘‘यह आदमी-आदमी की बात है। क्या तुम यही आशा करती हो कि मैं खारकोव कारखाने के डायरेक्टर को भी प्यार करूँ, जो हमारे लिए नम्बर 92 नहीं भेजता है?’’

‘‘मैं किसी खास आदमी की बात नहीं कर रही हूँ। मैं सम्पूर्ण जनता की बात-सारी मानवता की चिन्ता की बात कह रही हूँ-यह कि हम सब को, तुम को और मुझको और हर व्यक्ति को, जनता की भलाई की बात सोचना चाहिए।’’

‘‘मुझ पर चिल्लाओ मत।’’

‘‘मैं चिल्ला नहीं रही हूँ। लेकिन वे साइनबोर्ड कब तैयार होंगे?’’

‘‘मैंने बताया कि जब हमें टीन मिल जाएगा।’’

‘‘खैर, ठीक है। यही बात मैं प्रधान इंजीनियर को बता दूँगी।’’

इसी समय, टेलीफोन की घण्टी बज उठी और प्रधान इंजीनियर ने नीना को अपने दफ्तर बुलाया।

बरामदा पार कर वह तेजी के साथ प्रधान इंजीनियर के दफ्तर की तरफ चली और निश्चय करती जाती थी कि मित्या और उसकी माँ के बारे में, साइनबोर्ड तैयार करने के मामले में सप्लाई विभाग की देरी के बारे में और खुद अपने काम के विषय में अपने असंतोष के बारे में, प्रधान इंजीनियर से सब कुछ कह देंगी।

प्रधान इंजीनियर किसी उधेड़-बुन में उलझे हुए थे। खोये-खोये ढंग से, उन्होंने नीना से बैठने के लिए कहा और एक पत्र पढ़ते हुए उँगलियों के बीच में रखकर रबर की मुहर को घुमाते जा रहे थे।

‘‘मुझे पता लगा कि तुमने हमारे एक और कारीगर को काम से बैठा दिया है,’’ उसने उस पत्र का पढ़ना समाप्त करके कहा। ‘‘नीना वासिलीयेव्ना, एक चीज तुम्हें नहीं भूलना चाहिए: अगर सुरक्षा-व्यवस्थापिका इंजीनियर अपना काम ठीक से करती है, तो उससे मजदूरों की उत्पादन-शक्ति में वृद्धि होनी चाहिए। वृद्धि,’’ उन्होंने यह शब्द इस तरह दुहराया, मानों रबर की मुहर को निचोड़ कर उसे निकाल रहे हों।

‘‘मेरी राय में, उन्हें गिरने देने के बजाय, काम से बैठा देना ज्यादा अच्छा है,’’ नीना ने उत्तेजित होकर कहा। ‘‘जहाँ तक उत्पादन-शक्ति का प्रश्न है-आप, सचमुच, ठीक ही कहते हैं, लेकिन अभी तक किसी ने मुझे सहायता नहीं दी है। आपने भी नहीं। उन साइनबोर्डों के बारे में और सभी कारीगरों को सुरक्षा नियम समझाने के लिए उनकी सभा करने के विषय में, मैंने आपसे कितनी बार कहा है? और इसके अलावा...।’’

‘‘और इसके अलावा?’’ उन्होंने ध्यानपूर्वक नीना के चेहरे का अध्ययन करते हुए पूछा।

नीना की आँखें भर आयी थी और वह मुँह फेर कर खड़ी हो गयी। प्रधान इंजीनियर उठे और उसके पास गये।

‘‘काम मुश्किल मालूम होता है?’’ उन्होंने पूछा।

नीना उनकी तरफ पीठ किये खड़ी रही और कोई जवाब नहीं दिया।

‘‘मेरे लिये भी यह सब आसान नहीं है, नीना वासिलीयेव्ना,’’ उन्होंने कहा। ‘‘मैं अभी यह हिसाब लगा रहा था कि इस्पात के ढाँचे का निर्माण कोई संतोषजनक नहीं है। फिलहाल हम पूरे एक सप्ताह पीछे हैं। मैंने निमनि-विभाग के अध्यक्ष से कुछ कारीगर बढ़ाने की प्रार्थना की थी और जवाब में यह पत्र आया है। कोरा जवाब। और एक तुम हो कि हर रोज आदमियों को काम से बैठा देती हो।’’

‘‘मैं आइंदा ऐसा नहीं करूँगी,’’ नीना ने कहा।

‘‘लेकिन मेरा मतलब यह नहीं है। तुम्हें अपना काम ढीला नहीं करना है। एक बात और: अगर मैं तुम्हारी जगह होता, तो उन गर्डरों के ऊपर न चलता।’’

‘‘आप खुद भी तो ऐसा करते हैं।’’

‘‘मुझे भी नहीं करना चाहिए। अगली बार, यदि तुम मुझे गर्डरों पर चढ़ते पकड़ लो, तो मेरे पीछे पड़कर भगा देना,’’ उन्होंने कहा और सख्ती के साथ ये शब्द जोड़ दिये, ‘‘लेकिन मैं तुम्हें भी मना कर रहा हूँ।’’

नीना ने सिर हिलाया और आगे एक शब्द भी कहे बिना वह दफ्तर से बाहर चली गयी।

******

हाल के वर्षों में, मास्को में ऊँची-ऊँची इमारतों के निर्माण का दृश्य शहर के सबसे अधिक आकर्षक दृश्यों में से एक रहा है। सुबह, दोपहर और रात को, उन्हें शहर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है। बहुत रात गये जब काम की गुंजन शान्त हो जाती है, दानवी क्रेनें आराम करने लगती हैं और जब मोटरों के भौपुओं के हूँकों के बीच इमारत का विराट ढाँचा ऊँघता सा महसूस होता है, तब अगर किसी की नजर उसकी तरफ पड़ जाय, तो कहीं 8वीं या 9वीं मंजिल की खिड़की में से झाँकते हुए एक मात्र बिजली के लट्टू के प्रकाश से अवश्य उसकी कल्पना शक्तियाँ जागृत हो जाएगी। खाली खिड़कियों के साथ अवाक खड़ी हुई और सिर पर इस्पात के पिंजर का बोझ सम्भाले हुए, वे ईंटों की नंगी-नंगी दीवारें अभी ढाँचे की आधी ऊँचाई तक ही पहुँच सकी हैं, लेकिन वहीं, एक ओर एक मात्र खिड़की के काँच लगे पट से बहुत रात बीत जाने पर भी एक रोशनी झाँकती दिखायी देती है। इसका रहस्य क्या हो सकता है? क्या कोई फोरमैन घर जाने से पहले इसे बुझाना भूल गया है या कोई कारीगर अपने काम को शीघ्र समाप्त करने के लिए ओवर टाइम काम कर रहा है या कुछ अधीर कारीगर किसी एक कमरे को अन्दरूनी रूप में पूरा करके यह अनुमान लगाने का प्रयत्न कर रहे हैं कि जब पूरी इमारत बन जायेगी तो कैसी लगेगी?

एक शाम ऐसी ही रोशनी तीसरी मंजिल की खिड़की में जल रही थी, जहाँ नीना क्रावत्सोवा काम कर रही थी। जब होटल बनकर खत्म हो जायगा तो यह कमरा दो-कमरे वाले निवास-गृह का भाग होगा, फिलहाल कोम्सोमोल संगठन ने इसे अपने लिए क्लब-रूम बना लिया है।निर्माणकर्ताओं की आदत होती है कि जब इमारत बन रही होती है, तब वे उसके कमरों की अपनी आवश्यताओं के अनुरूप बना लेते हैं और इसलिए यदि किसी कमरे के बाहर आपको नलों और पैकिंग के डिब्बों का ढेर मिले और उस पर लिखा हो ‘‘भोजनालय’’ या ‘‘यूनिट नं. 3 का दफ्तर’’, तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। और आगे चलकर जब नीना के होटल में कोई यात्री आकर ठहरेगा तो उसके लिए यह कल्पना भी करना कठिन होगा कि उसके कमरे में कभी लारी ड्राइवर दूध और लेमन पीते थे, या फोरमैन अपने कारीगरों का सम्मेलन करते थे।

जिस शाम का जिक्र है, कोम्सोमोल के सदस्य अपने समाजवादी प्रतियोगिता के फैसले के बारे में बात करने जमा हुए थे। नीना, मीटिंग शुरू होने के दस मिनट पहले ही आ पहुँची और एक कोने में बैठ गयी। कमरे में अभी और कोई नहीं था। अध्यक्ष मण्डल की मेज के लिए न्यूरा एक मेजपोश ले आयी; उसने एक ग्लास और काँच की सुराही रख दी और बाहर चली गयी। दो और तीन के दलों मे वे लोग आ पहुँचे। लड़के अलग और लड़कियाँ अलग-सभी शोर-गुल और आमोद-प्रमोद में मस्त थे। लेकिन नीना पर नजर पड़ते ही, उन्होंने अपनी आवाजें धीमी कर दीं, उसको दूर से ही सलाम कर लिया और यथा-सम्भव उससे दूर जाकर बैठ गये। घायल नीना को अपने विद्यार्थी जीवन के दिन याद आ गये, जब वह भी शोरगुल मचाने वाली लड़कियों में आगे रहती थी, सभी उसके मित्र थे और सभी लोग उसके करीब बैठने के लिए उसकी चिरौरी किया करते थे।

अर्सेन्तियेव भी दरवाजे पर प्रकट हुआ, उसने कमरे में चारों ओर नजर डाली, लापरवाही से नीना की तरफ अभिवादन के लिए सिर हिलाया और अगली पाँत में जाकर बैठ गया। और यद्यपि कमरा भर गया था, फिर भी नीना की दायीं और बायीं तरफ की सीटें खाली ही रहीं। अन्त में लीदा रोदिओनोवा भीड़ चीरती हुई आयी और उसके पास बैठ गयी। ‘‘हफ्ते भर के अन्दर यह भी मुझसे कतराने लगेगी,’’ नीना ने दुखित भाव से सोचा, ‘‘दूसरे लोग इसे भी भड़का देंगे।’’

‘‘कारीगरों पर देख-रेख करने वाली, क्या आप ही हैं?’’ तंग बैंच पर जरा आराम से बैठते हुए लीदा ने पूछा।

‘‘हाँ, क्यों?’’

‘‘आपका असली काम क्या है?’’

‘‘मेरा असली काम? क्या मतलब?’’

‘‘हुँह, कैसे समझाऊँ-आप करती क्या हैं? कंक्रीट मिलाती हैं या ईंटें बिछाती हैं?’’

‘‘मैं सिर्फ दुर्घटनाओं की रोकथाम को देखती हूँ, और कुछ नहीं करती,’’ नीना ने कुछ सकुचा कर कहा। ‘‘मेरा काम यह देखना है कि किसी को चोट न लगने पाये।’’

‘‘यह काम भी क्या खूब है,’’ लीदा ने रहम के स्वर में कहा और फिर चुप हो गयी।

कोम्सोमोल की मंत्राणी, जो यूक्रेन की लड़की है (और जो डिस्पेचर के पद पर काम करती है और लाउडस्पीकर पर हमेशा किसी न किसी को ‘‘पुकारती’’ रहती है), मेज के पीछे जा बैठी और सभा शुरू हो गयी। थोड़ी ही देर में अध्यक्ष मण्डल का चुनाव हो गया और दो नवयुवक मेज के पीछे सीट लेने दौड़ पड़े-दोनों ही इस बात के लिए उत्सुक थे कि उनमें से एक सबसे पहले अध्यक्ष पद ग्रहण कर ले ताकि कार्रवाई लिखने का काम दूसरे को करना पड़े। उनमें से, जिस एक को, अध्यक्ष पद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हो गया, उसने उस यूक्रेनी लड़की से घुस-फुस बातें कीं और फिर घोषित किया कि आज की सभा में कुछ मेहमान भी उपस्थित हैं-अपनी इमारत से कुछ दूर पर एक दूसरी ऊँची इमारत के कारीगर लोग। वे लोग यहाँ के लोगों के साथ समाजवादी होड़ के समझौते पर हस्ताक्षर करने आये थे। हर व्यक्ति खड़ा हो गया और ताली बजाने लगा, और उधर एक लजायी हुई लड़की और दो नौजवान सभा के सामने आ खड़े हुए। दोनों युवक उस लड़की के अलग-बगल खड़े हो गये और उस लड़की ने समझौते का मसौदा पढ़ना शुरू कर दिया, जिसमें काम की किस्म और पेश किये गये काम-सुधार सम्बन्धी सुझावों जैसी अनेक बातें थीं। अन्त में काम को निश्चित कोटे से 20 से 30 फीसदी तक अधिक पूरा करने का संकल्प किया गया था।

‘‘कोई सवाल?’’ अध्यक्ष ने पूछा।

‘‘मेरा एक सवाल है,’’ मित्या ने कहा। ‘‘निश्चित चुनाई से एक फुट अधिक चुनाई करने के लिए आपको क्या मिलता है?’’

उस लड़की ने बता दिया।

‘‘हमें भी यही मिलता है,’’ मित्या ने कुछ निराश भाव से कहा।

‘‘और कोई सवाल?’’ अध्यक्ष ने पूछा। ‘‘लेकिन सवाल मतलब का हो।’’

और कोई सवाल नहीं उठा, इसलिए बहस शुरू हुई। सबसे पहले अर्सेन्तियेव बोला। उसने कहा कि यह समझौता स्वीकार कर लिया जाना चाहिए-खास तौर से इसलिए कि यहाँ के कारीगरों ने भी काम-सुधार सम्बन्धी उतने ही सुझाव पेश किये हैं, जितने कि इस समझौते में लिखे हैं। मेहमानों पर जरा रोब जमाने के लिए, उसने सुझाव दिया कि कोटे को 40 फीसदी अधिक पूरा किया जाय। नीना को छोड़कर, बाकी सभी ने इस पर हर्ष ध्वनि की।

‘‘मुझे कामरेड अर्सेन्तियेव से एक सवाल पूछना है,’’ जब शान्ति हो गयी, तो नीना ने अध्यक्ष से कहा। हर आदमी उसकी तरफ देखने के लिए मुड़ा।

‘‘आपने 40 फीसदी ही क्यों पसन्द किया, मान लीजिये, कहें कि 60 फीसदी हो, तो क्यों नहीं?’’

‘‘जैसे कि हम लोग 60 फीसदी से अधिक काम पूरा कर सकते हैं।’’ कोम्सोमोल के सदस्य चिल्लाये। ‘‘एक आँकड़ा बोल देना आसान है, काम करना दूसरी ही बात है।’’

‘‘ठीक है,’’ नीना ने कहा, ‘‘तो इसे 10 फीसदी क्यों न तय किया जाय?’’ चकित श्रोताओं ने कुछ न कहा।

नीना कहती ही गयी, ‘‘हम बड़े शानदार वायदे करते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि योजना के अनुसार आखिरी गर्डर अपनी जगह पर आज से 19वें दिन रखा जाना है। इसके पहले कि हम 40 फीसदी अधिक काम करने का वायदा करें, हमें यह हिसाब लगा लेना चाहिए कि यह काफी है या नहीं। सबसे महत्व की बात तो यह है कि हम निश्चित समय के अन्दर काम पूरा कर दें।’’

‘‘और मान लो कि वह काफी न हो?’’ अर्सेन्तियेव ने बड़ी ऐंठ के साथ कहा।

‘‘अगर काफी न होगा तो हमें और भी मेहनत से काम करना होगा। आप आडम्बरपूर्वक यह घोषणा करते हैं कि आप अपने कोटे से 40 फीसदी अधिक काम करने के लिए राजी हैं। 40 फीसदी आप इस लिए चुनते हैं कि आप को यह विश्वास है कि इतना काम आप कर सकेंगे। लेकिन इन जिम्मेदारियों को ओढ़ने में मुख्य तत्व यह नहीं है कि हम यह दिखाना चाहते हैं कि हम कितने वीर हैं, बल्कि यह है कि निर्माण-कार्य हम वक्त पर खत्म कर दें।’’

‘‘आपकी बात गलत है,’’ एक लड़की जो क्रेन चलाती है, चिल्ला उठी। ‘‘यह हमारे प्रधानों का काम है कि वे हमें काफी कारीगर दें। तभी हम वक्त पर काम खत्म कर सकेंगे।’’

‘‘हमारे यहाँ काफी कारीगर है,’’ यूक्रेनी लड़की ने उठकर कहा। ‘‘अगर शुरू से ही हर व्यक्ति ने अपनी शक्ति भर सख्ती से काम किया होता तो आज हमें 40 फीसदी अधिक काम करने का संकल्प ही न करना पड़ता। अगर काम को वक्त से पूरा करने के लिए हमें 100 फीसदी अधिक काम करने का प्रण करना पड़े, तो हमें वह भी करना पड़ेगा-यही मुख्य बात है। तुम्हारा क्या ख्याल है, एन्द्री अर्सेन्तियेव?’’

‘‘इस मामले पर हमें गौर करना पड़ेगा।’’

‘‘तुम तो कूटनीतिज्ञ की तरह बात करते हो।’’

‘‘मैं अखबार क्यों खरीदता हूँ, आपका क्या ख्याल है? क्या पार्सलें बाँधने के लिए?’’

‘‘अगर हम आपका प्रस्ताव स्वीकार कर लें, तो शायद हम अपना प्रण तो पूरा कर लेंगे और फिर भी इमारत शायद वक्त से पूरी न कर पायें,’’ नीना ने बात काट कर कहा, ‘‘यह कोरी लम्बी चौड़ी बात है, कामरेड अर्सेन्तियेव।’’

‘‘कोरी बात?’’ अर्सेन्तियेव उठ बैठा और मेज तक जा पहुँचा। ‘‘तो मुझे थोड़ी कोरी बातें और कर लेने दी जाए। अगर आप लोग पिछले दो हफ्तों के तनख्वाह रजिस्टर देखें, तो पायेंगे कि कारीगरों की कमाई गिर रही है। क्या कारण है? अनेक कारण हैं, लेकिन मुख्य कारण जो मुझे मालूम होता है, वह यह है कि कुछ लोग, इधर कुछ दिनों से, हमारी बड़ी चिन्ता करने लगे हैं, उन्हें हमारे स्वास्थ्य का बड़ा ख्याल है, मानों कि हम सेनेटोरियम में रहते हैं।’’

किसी ने एक शब्द नहीं कहा। नीना कुछ पीली पड़ गयी थी और दीवार का सहारा ले रही थी।

‘‘अगर हम इसका हिसाब लगायें कि इस चिन्ता के कारण हमें कितनी बार नीचे उतर कर जाना पड़ता है और किसी मूर्खतापूर्ण काम के लिये सोलह मंजिलों की सीढ़ियों से नीचे उतरने और फिर वापस चढ़ने में कितना समय बर्बाद करना पड़ता है, तो हमें पता चलेगा कि इस तरह काम के कई दिन खत्म हो जाते हैं। मेरा कहना है: अगर किसी व्यक्ति में सेनेटोरियम में काम करने की प्रतिभा है, तो उसे वही काम करना चाहिए। तब वह इस बात की देखभाल में समय लगा सकता है कि कोई छप्पर पर न चढ़ पाये। लेकिन यहाँ खड़े होना और वक्त पर योजना पूरी करने की दलीलें देना, जब कि वही व्यक्ति... ओह, इससे क्या लाभ है?’’ अर्सेन्तियेव बैठ गया ओर अपनी जगह से इतना और बोला, ‘‘मुझे जो कुछ कहना था, कह चुका।’’

‘‘नुकसानदेह काम है,’’ किसी को यह साफ-साफ कहते हुए नीना ने सुना। श्रोताओं में एक करकर स्वर गूँज कर रह गया। मित्या ने बोलने की इजाजत माँगी।

‘‘मुझे दूसरी इमारत से जब यहाँ भेजा गया,’’ उसने कहना शुरू किया, ‘‘तो मैं इसी कमरे में काम करता था-उन कड़ियों की मैंने वेल्डिंग की थी,’’ उसने छत की तरफ इशारा किया और हर एक की नजरें ऊपर उठ गयीं। ‘‘खैर, जब मैं काम कर रहा था, तो जूतों पर रबर का जूता चढ़ाये हुए एक बौना-सा आदमी आया और मुझसे बोला, तुम्हारा फोरमैन कौन है? जाहिर है, मैंने बता दिया। उसने अपने पैड पर कुछ लिख लिया और चला गया। तीन घण्टे बाद मुझे एक दूसरी मंजिल पर काम करने भेज दिया गया। यह तबकी बात थी जब काम सलीके से चलना शुरू नहीं हुआ था, तब तो एक आदमी को दिन भर में पाँच अलग-अलग जगह भेजा जा सकता था। तो मैं उस मंजिल पर, जब काम कर रहा था, तभी रबर का जूता चढ़ाये हुए वही सज्जन फिर आये। उन्होंने मेरी तरफ देखा और कहा: तुम्हारा फोरमैन कौन है? जाहिर है, मैंने बता दिया। और फिर तीसरी बार, जबकि दिन खत्म हो रहा था और मैं नीचे वेल्डिंग कर रहा था, तब फिर वही घटना हुई: रबर का जूता चढ़ाये हुए वही सज्जन आये और पूछने लगे: ‘तुम्हारा फोरमैन कौन है?’ ’’

‘‘संक्षेप में कहो,’’ अध्यक्ष ने कहा, ‘‘बात क्यों लम्बी-चौड़ी बनाते हो, जबकि तुम यह कहना चाहते हो कि उसने तीसरी बार भी नहीं पहचाना?’’

‘‘आप विश्वास करें या न करें, आपकी मर्जी। जब दिन खत्म हुआ तो फोरमैन इवान पावलोविच मेरे पास आये और बोले, ‘देखो जी, सुरक्षा-नियमों को भंग करने की तीन शिकायतें मेरे खिलाफ दर्ज हुई हैं और वे सभी तुम वेल्डरों की वजह से। तुममें से तीन व्यक्ति आज खुले तार लेकर काम कर रहे थे। क्या मजाक है कि तीनों ने आज ही के दिन यह किया’, उसने कहा। तो, हमारा बूढ़ा सुरक्षा-इंजीनियर इस तरह काम करता था।’’ मित्या ने आह भर कर आगे कहा।

‘‘वह कारीगरों से कुछ नहीं कहता था-कभी उनके नाम भी नहीं पूछता था। सिर्फ फोरमैनों तक ही जाँच करता था। नीना वासिलीयेव्ना भी नहीं जानती कि उससे किस बात की आशा की जाती है। लेकिन मेरा ख्याल है कि वे समय रहते सब सीख जाएँगी।’’

‘‘आप कुछ कहना चाहती हैं?’’ अध्यक्ष ने नीना से पूछा।

‘‘हाँ, कहना है,’’ उसने कहा और सटी हुई बेंचों को चीरती हुई वह सभा के सामने पहुँच गयी।

‘‘जो बात मैंने कही है, उसके अलावा, इस समझौते में मैं एक धारा और जुड़वाना चाहती हूँ जिसमें सभी यूनिटों में दुर्घटनाओं को खत्म कर देने के लिए आह्नान किया जाय। और यह जिम्मेदारी मैं लेती हूँ कि इस धारा पर अमल हो,’’ नीना ने काँपती आवाज में कहा और फिर एन्द्री अर्सेन्तियेव की तरफ नजर डालकर उसने कहा: ‘‘मुझे सिर्फ इतना ही कहना है।’’

*******

एन्द्री और मित्या, इस इमारत में काम करने वाले अन्य युवक-युवतियों की भाँति, मास्को से दस या बारह मील दूर, एक होस्टल में रहते थे। हम शाम को सात और दस बजे के बीच में ये युवक और युवातियाँ, किएव स्टेशन पर विद्युत ट्रेन के किसी लम्बे-चौड़े डिब्बे में घुस जाते थे। अन्य यात्रियों के क्रोधपूर्ण विरोध की उपेक्षा करते हुए वे लोग धक्का-मुक्की के साथ खिड़कियों के पास पहुँच जाते, यात्रियों का आना-जाना बन्द कर देते या बिना किसी लिहाज के, ऐसी सीटों पर बैठ जाते, जिन्हें दूसरे यात्रियों ने अपने देर से आने वाले मित्रों के लिए सुरक्षित रख छोड़ा होता।

लड़कियों के गिरोह जब जम जाते, तो वे या तो अपनी बुनाई का काम निकाल लेती, राज की बातें फुसफुसाती या घर से आये पत्र एक-दूसरे को सुनातीं और आधा रास्ता तय करते-करते वे एक दूसरे के कन्धों पर सिर टिका कर ऊँघने लगतीं। लड़के अट्टहास करते और लड़कियों पर तीखी छींटाकशी करते, लेकिन जब आइसक्रीम बेचने वाले की पुकार उन्हें सुनायी देती: ‘‘कीमत सिर्फ सवा रूबल, और उसका दूना मजा लो। मीठी जैसे शहद हो’’, तो वे लोग फौरन ही छः आइसक्रीमें खरीद लेते और लड़कियों को भी खिलाते।

कण्डक्टर लोग इन कारीगरों को किसी खास चिन्ह से पहचान लेते, जिसका पता सिर्फ उन्हीं को है, वे कण्डक्टर इनसे कभी टिकट नहीं माँगते और स्टेशन से पहले उन लोगों को जगा देते, जो सो जाते हैं। लेकिन इनमे से अनेक युवक-युवतियों को उनकी इस सावधानी की आवश्यकता भी न पड़ती, क्योंकि अपने ही आप स्टेशन आने के पाँच मिनट पहले उठ बैठते, जल्दी-जल्दी अपनी टोपियाँ और रूमाल ठीक करते, बाल सँवारते, बुनाई आदि का काम समेट लेते, किताबों के पृष्ठ बन्द कर देते, सिगरेटें पीने लगते और डिब्बे के रास्ते में लाइन बनाकर खड़े हो जाते।

जिस बैठक में समाजवादी होड़ के समझौते पर बहस हुई थी, वह इतनी देर चली थी कि कोम्सोमोल के सदस्यों को अपने घर के लिए आखिरी ट्रेन पकड़नी पड़ी थी। वह लगभग खाली थी। अदृश्य मकानों की प्रकाशमान खिड़कियाँ और स्टेशनों की लालटेनें अँधेरे में चमकतीं और विलीन हो जातीं। मित्या ठुकराये हुए व्यक्ति की तरह अकेला बैठा और कुछ देर तो उसने बर्दाश्त किया, फिर वह उठ बैठा और उस बैंच पर जा बैठा, जहाँ अपनी आँखों पर टोपी रखे, एन्द्री ऊँघ रहा था। एन्द्री के सामने न्यूरा बैठी हुई थी और रूमाल पर कढ़ाई कर रही थी। मित्या ने न्यूरा को इसी डिब्बे में, और इसी सीट पर और यही रूमाल काढ़ते हुए अकसर देखा था।

‘‘क्यों, क्या 1954 तक तुम इसे खत्म कर लोगी?’’ उसके बगल में बैठते हुए मित्या ने पूछा।

‘‘अगर तुम जैसे निकम्मे लोग मुझे कढ़ाई के फंदे गिनना न भुला देंगे,’’ उसने जवाब दिया।

‘‘लो यह सुनो। जरा दो बोल भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। दो शब्द कहे, तो मानो मैंने इसका डोरा पकड़ कर तोड़ दिया है और यह फंदे गिनना भूल गयी है।’’

‘‘आठ...नौ...दस...’’ न्यूरा ने मर्मर स्वर में गिना।

‘‘परसों मैंने बड़े भोर से ही, वेल्डिंग का काम शुरू कर दिया था,’’ मित्या ने कहा। ‘‘मैंने पेटी कसी। उसके छल्ले में जंजीर लगाई और वह जंजीर मेरे पैरों पर इस तरह लटक आयी, मानों तलवार लटकी हो। तभी मैंने किसी की आवाज सुनी: कामरेड याकोवलेव, मैं पीछे घुमा और क्या देखता हूँ कि वही नन्ही-मुन्नी सुरक्षा-टेकनीक जी खड़ी हैं-सिर से पैर तक नयी पोशाक से सजी हुई, मानो तस्वीर खिंचाने खड़ी हैं। मैंने सोचा कि अब यह अपना सुरक्षा सम्बन्धी भाषण देना शुरू करेगी और वह ठीक ही निकला। उसने कहा, क्षमा कीजिये, कामरेड याकोवलेव, क्या आप एक मिनट के लिए यहाँ तशरीफ लाने की कृपा करेंगे? वह मुझसे इतनी दूर खड़ी हुई थी, जितनी दूर यहाँ से वह दरवाजी है। मैंने सेचा कि, ‘यह मेरे रंगीन चश्मे की जाँच करना चाहती है’। सौभाग्य से मेरी जेब में दो चश्मे थे-एक मेरा और एक एन्द्री का। उसको बनाने का यह मौका हाथ आया देखकर, मैं जरा भी न रुक सका-फौरन दौड़ पड़ा, लेकिन मेरा पैर उस मनहूस जंजीर में उलझ गया और मैं साष्टाँग उसके चरणों पर गिर पड़ा।’’

‘‘खैर, मैं उठ बैठा और उसने कहा यह कैसे हुआ कामरेड याकोवलेव? मैंने कहा, ‘मेरी टाँगें छोटी हैं। बचपन से ही छोटी हैं। मेरा पेट तो साधारण गति से बढ़ा और मेरी बाँहें भी ठीक ही बढ़ी, लेकिन मेरे पैर नहीं बढ़ सके। मेरा ख्याल है, इसका कारण यह था कि मैं हमेशा झुककर चलता था।’ ’’

‘‘आठ...नौ...दस...’’ न्यूरा ने फिर मर्मर स्वर में गिना।

‘‘लेकिन सुरक्षा-टेक्नीक बोली, यह बात नहीं है। कारण यह है कि आपने छल्ले में जंजीर उस तरह नहीं बाँधी, जैसे कि सुरक्षा नियमों में लिखा है। और फिर वह मुझे उपदेश देने लगी कि अगर मैं कहीं ऊँचाई पर होता और गर्डर पर चलता और कहीं मेरा पैर इस जंजीर में फँस गया होता तो जमीन पर आ गिरता... वह सख्त बनने का प्रयत्न करती हुए बराबर भाषण देती रही और रत्ती भर काम बिना, समय भी बीतता गया जब तक मैं सह सका, तब तक मैं उसका भाषण सुनता रहा-मैंने सोचा कि यह तो रुकेगी ही नहीं-इसलिए मैंने कहा: हमारे ब्रिगेड के पीछे आप क्यों पड़ी हैं? अगर आप चाहें, तो हम सब यह लिख कर दे सकते हैं कि अगर हम मर जाएँ, तो उसके लिए सुरक्षा-टेक्नीक जी जरा भी जिम्मेदार नहीं हैं। फिर क्या वह चीखती-चिल्लाती। उसने कहा, कामरेड याकोवलेव, लेकिन मैंने जंजीर को छल्ले में घुसेड़ी और मचान पर बन्दर की तरह छलाँग मार कर चढ़ गया...’’

‘‘लेकिन मैं तुमसे यह बात क्यों कह रहा हूँ? ओह, हाँ, तुम अभी शिकायत कर रही थीं कि मेरी बातों से तुम अपनी कढ़ाई के फंदे भूल जाती हो, लेकिन हमारी हालत भी तो देखो-वह अपने भाषणों से हमें अपना कोटा पूरा नहीं करने देती और बेकार खड़ा रखती है, मगर फिर भी हम शिकायत नहीं करते। यही तो कहना चाहता था।’’

‘‘तुम क्या नीना वासिलीयेव्ना का जिक्र कर रहे हो?’’ न्यूरा ने पूछा।

‘‘हाँ, वही तो है। मैं जानता हूँ, अभी वह छोटी है और उसे काम का तजुर्बा नहीं है। वैसे हम लोगों से उसकी अच्छी निभ रही है। जाहिर है कि हर एक को अपनी तनख्वाह कमानी पड़ती है-कोई निर्माण-कार्य करके, कोई उसे गिरा कर और कोई सिर्फ दूसरों के काम में बाधक बन कर। हर आदमी अपना कर्तव्य कर रहा है। लेकिन अपनी योजना पूरी न कर पाने के अलावा, हम लोग कमा भी तो नहीं पा रहे हैं। पिछली तनख्वाह के दिन मुझे सिर्फ तीन सौ तिरसठ रूबल मिले। और यह सब उसकी बदौलत। आखिर हम लोग क्या करें?’’

‘‘तुम उसे प्लेग समझ कर उससे दूर भागते हो लेकिन तुम्हें चाहिए तो यह कि उससे दोस्ती कर लो। उसके सुरक्षा-भाषणों का शीघ्र अन्त करने का यही रास्ता है।’’

‘‘तुम मजाक कर रही हो?’’

‘‘नहीं, बिल्कुल नहीं। तुम उसे सिनेमा या नृत्य के लिए आमंत्रित क्यों नहीं करते जैसा कि शरीफ लोग करते हैं? तुम लोगों में कोई अक्ल नहीं है, मैं तो यही कहूँगी।’’

‘‘मैं समझता था कि तुम कोई अच्छी सलाह दोगी,’’ मित्या ने रुखाई से कहा। ‘‘मानों कि वह मेरे साथ चाहे जहाँ चली जाएगी। पहली बात यह कि मेरा सिर लाल-लाल है। दूसरे, मेरे पैर बड़े छोटे हैं। वह मुझसे लम्बी है। और मान लो कि वह मेरे साथ तांगो नृत्य नाचना चाहे-तो क्या मैं नाच सकूँगा?’’

‘‘कोई जरूरी है कि तांगो ही हो,’’ न्यूरा ने कहा। ‘‘तुम उससे गप तो लड़ा सकते हो। जहाँ जरूरत नहीं होती, वहाँ तो तुम इतनी बातें करते हो कि सुनने वाले के कान पक जाए।’’

‘‘उससे बातचीत करने से भी कोई फल नहीं निकलेगा। वह ऐसे शब्द इस्तेमाल करती है, जिन्हें दूध-मक्खन खाये बिना तो कोई समझ नहीं सकता। आज ही की सभा में उसने क्या कह डाला था? आडम्बरपूर्वक। पता है इसका क्या मतलब होता है?’’

‘‘आडम्बरपूर्ण-यानी कि जब कोई बेवकूफ अपने को अक्लमंदों का दादा समझ कर बात करता है,’’ एन्द्री अचानक बोल उठा।

‘‘आदमी हो तो तुम, जिसे उससे दोस्ती करनी चाहिए,’’ मित्या ने यकायक प्रेरित होकर कहा। ‘‘तुम यही आदमी हो, एन्द्री सेर्गेयेविच। तुम लम्बे भी हो और तमाम शब्द जानते हो।’’

‘‘यह बचकानापन अपने पास रखो। शुक्रिया।’’

‘‘ईमान से एन्द्री। सोचो तो तुम सारे ब्रिगेड की कितनी बड़ी सेवा कर सकोगे।’’

‘‘जाने भी दो,’’ एन्द्री ने अपनी आँखों के ऊपर टोपी खींचते हुए बात खत्म कर दी।

लेकिन कुछ दिनों बाद, जब निर्माण-स्थल पर काम करने वाले युवक-युवतियाँ, सामूहिक रूप से सर्कस देखने गये, तो एन्द्री को यह वार्तालाप फिर याद आ गया। नीना और एन्द्री की सीटें अगल-बगल निकलीं। जाहिर है, टिकट बाँटने का काम मित्या ने किया था। एन्द्री ने सोचा, ‘‘ठहरो बच्चू, कल तुम्हारी अकल ठिकाने लगा दूँगा।’’

खेल शुरू हुआ। मोटे-चिकने घोड़ों ने घेरे के अन्दर दौड़ शुरू की। उन्होंने अपने खुरों से रेशम के ढँके घेरे पर हल्की-सी चोट की और पहली पंक्ति में बैठे दर्शकों पर तमाम धूल उड़ा दी। वाद्य-मण्डली के निर्देशक ने डण्डा झुलाते हुए अपने कन्धों के ऊपर नजर उठा कर कनखी से झाँका और खाली ताल पड़ने पर फ्राँसीसी तुरही बजाने वालों ने अपने बाजे को ऊपर उठा दिया, ताकि उसमें से इकट्ठी थूक निकल जाये।

नीना की तरफ से आती हुई हल्की-सी सुगन्ध का अहसास तो एन्द्री को था। उसने बेचैनी के साथ, अपनी आँखें वाद्य-मण्डली पर से हटाकर परिचारकों पर गड़ा दी और फिर लाल-सिरवाले मित्या की तरफ देखा जो घेरे के दूसरी तरफ दूसरी पंक्ति में बैठा था। लेकिन उससे एक शब्द भी नहीं बोला गया।

‘‘तुम इस कदर उदासी में डूबे क्यों बैठे हो?’’ नीना ने पूछा।

‘‘उदासी क्यों न हो? हम अपनी योजना पूरी नहीं कर पा रहे हैं। यह ऐसी बात है जो सारा जोश खत्म कर देती है।’’ उसने चिढ़कर कहा और खामोश हो गया।

दुमदार कोट पहने एक आदमी ने घेरे में प्रवेश किया और कहा ‘‘इण्टरवल।’’ नीना फौरन उठी और बाहर चली गयी। ‘‘वह शायद घर जा रही है,’’ एन्द्री ने सोचा। ‘‘मुझे इतनी बदतमीजी नहीं करनी चाहिए थी।’’ पाँच मिनट बाद मित्या उसके पास आया।

‘‘कहो, कैसी गुजर रही है,’’ उसने बड़ी शान से कहा।

‘‘बदस्तूर,’’ एन्द्री ने जवाब दिया, जिसे सुनकर मित्या कुछ हँसा और चला गया। पहली और दूसरी घण्टी बजी, मगर नीना वापस नहीं आयी। जब तीसरी घण्टी बजी तब यकायक एक सफेद पैकेट लिये हुए नीना ने प्रवेश किया।

‘‘हमलोग इसी पैकेट में से निकाल-निकाल कर खायें-अगर तुम्हें कोई एतराज न हो तो,’’ उसने अपनी जगह पर बैठते हुए मुस्कुरा कर कहा।

इस पैकेट में मिठाई थी। एन्द्री ने कुछ मिठाइयाँ ले लीं-यह दिखाने के लिए कि वह अब नाराज नहीं है।

‘‘तुम भी होस्टल में रहते हो?’’ नीना ने पूछा।

‘‘हाँ।’’

‘‘रात्रि-पाठशाला जाते हो?’’

‘‘पत्र-व्यवहार स्कूल में नाम लिखा रखा है। मैं इंस्टीट्यूट के दूसरे वर्ष में हूँ। शीघ्र ही हम सामग्री-तत्व का अध्ययन करेंगे-कहते हैं यह सबसे कठिन विषय हैं दूसरे विषय तो बड़े आसान हैं।’’

‘‘जब मैं इंस्टीट्यूट में थी, तब विद्यार्थी यह कहा करते थे कि जिस किसी ने सामग्री-तत्व में पास कर लिया, बस, वह शादी के योग्य हो गया।’’ और, हालाँकि नीना के शब्दों का कोई गहरा मतलब नहीं था, फिर भी एन्द्री ने देखा कि वह परेशान हो उठी है। दोनों की ही समझ में यह नहीं आया कि अब क्या कहा जाय। इसलिए वे खेल के अन्त तक चुपचाप बैठे रहे-सिर्फ एक बार, जब जहाजी मल्लाहों के वेष में कुछ लोग कलईदार तार पर कलाबाजियाँ दिखा रहे थे, तब नीना ने कहा था:

‘‘ताज्जूब है, इस रस्सी की परीक्षा, ये लोग कितनी बार लेते हैं।’’ इस टिप्पणी को सुनकर एन्द्री को नीना पर बड़ा तरस आया।

सर्कस के खत्म होते ही वे लोग बाहर निकल आये। ‘‘क्या मैं आपको घर तक पहुँचा दूँ?’’ एन्द्री ने पूछा।

उन्होंने त्स्वेत्नोई मार्ग पर कदम बढ़ाये। उसने जब नीना की बाँह गही, तो आश्चर्य में पड़ गया कि वह इतनी नाजुक और हल्की है-वह हैरान था कि उस दिन जब नीना सँकरे गर्डर पर चढ़ गयी थी, तो हवा उसे क्यों नहीं उड़ा ले गयी। एक शब्द बोले बिना वे सदोवाया मार्ग की तरफ मुड़ गये। तारों-विहीन आकाश शहर पर तना हुआ था। एक मंत्रालय की इमारत की सभी खिड़कियों में रोशनी थी और उसके सामने चमकीली मोटरों की पाँत लगी थी। शोफरों ने कारों के दरवाजे खोल रखे थे, रेडियो चालू कर दिये थे और उन व्यक्तियों का इंतजार कर रहे थे जो आधी रात तक या उसके बाद यहाँ काम करेंगे। मायाकोव्स्की स्क्वायर से थोड़ी ही दूर पर एक गली में नीना रहती थी। यहाँ पर गली के लैम्प जलाये नहीं गये थे, सिर्फ घरों की रोशनियाँ दिखायी दे रही थीं और मकान के नम्बर धातु की पट्टियों पर खुदे थे।

‘‘वह डिब्बा-सा क्या है?’’

‘‘गश्त करने वाली पुलिस के लिए टेलीफोन है,’’ एन्द्री ने उत्तर दिया। ‘‘शनिवार को हमारे होस्टल में कोई ने कोई शौकिया तमाशा जरूर होता है। क्या आप कभी आयेंगी?’’

‘‘हाँ,’’ नीना ने कहा, ‘‘लेकिन उन लोगों को टेलीफोनों की जरूरत क्यों होती है?’’

एन्द्री की अहसास हो गया कि वे दोनों की खामोशी के साथ अगल-बगल चलने के अटपटेपन को छिपाने के लिए बातें बना रहे हैं और नीना भी समझ गयी कि वह क्या महसूस कर रहा है और इस अहसास से उनकी परेशानी और अधिक बढ़ गयी।

नीना एक तिमंजिले मकान में रहती थी, जिसका पलस्तर जगह-जगह से उखड़ गया था। पहली मंजिल में एक लाण्ड्री थी।

‘‘तुम्हारी ट्रेन कब छूटती है?’’ नीना ने पूछा।

एन्द्री ने अपनी घड़ी देखी। ‘‘करीब डेढ़ घण्टे बाद। रात के इस पहर में ट्रेनें जरा देर-देरे से छूटती हैं।’’

‘‘तो थोड़ी देर के लिए घर आओ न। स्टेशन पर बैठे क्या करेंगे?’’

‘‘आ सकता हूँ?’’

‘‘यदि मैं निमंत्रित करूँ, तो निश्चय ही तुम आ सकते हो,’’ नीना ने बुजुर्गाना अन्दाज में कहा।

उन्होंने जिस कमरे में प्रवेश किया, वह काँच के झाड़-फानूस के प्रकाश से उज्ज्वल था और यह झाड़-फानूस भोजन की गोल मेज के ऊपर लटका हुआ था। ताजे मेजपोश पर तीन तश्तरियाँ करीने से रखी हुई थीं और होल्डरों पर छुरी-काँटे भी रखे थे। इन सबका केन्द्र एक बड़ी तश्तरी थी, जिसमें सेब रखे हुए थे। छल्लों में नेपकिन लगे हुए थे।

‘‘तुम क्या अकेली हो नीना?’’ दूसरे कमरे से आवाज आयी।

‘‘नहीं, माँ, मेरे साथ एक मित्र आये हैं।’’

छोटे से कद की, सफेद बालों वाली महिला दरवाजे पर प्रकट हुई, जो आँखों की कम रोशनी लेकर अपने मेहमान को खोजने लगी ओर उसे देख पाने से पहले ही उसके स्वागत में मुस्कुराने लगी।

‘‘मेरा नाम है इरीना मक्सिमोव्ना,’’ उसने उल्लासपूर्ण स्वर में कहा। ‘‘आप हमारे साथ चाय पीने के लिए ठीक ही मौके पर आये।’’

उसके पीछे, नीना के पिता, वासिली याकोवलेविच प्रकट हुए, जो काम से अभी ही घर वापस लौटे थे। रेलवे-कर्मचारी की पोशाक पहने हुए वे लम्बे, सख्त और अडिग व्यक्ति मालूम होते थे। उन्होंने मेज पर बैठते ही, तश्तरी और छूरी-काँटों को कुहनी से खिसका कर मेज का सुघड़ सौन्दर्य बिगाड़ दिया।

‘‘क्या आप इसके साथ काम करते हैं?’’ उन्होंने एन्द्री से पूछा।

‘‘सख्त आदमी है,’’ एन्द्री ने सोचा। ‘‘अगर इसे पता चल जाय कि उसकी बेटी क्या कर रही है, तो क्या उसे माफ कर देगा?’’ बाहरी तौर से एन्द्री ने कहा, ‘‘हाँ, मैं इनके साथ काम करता हूँ, लेकिन बराबरी के साथ नहीं। यह हमारे ऊपर हैं।’’

‘‘यह कैसा काम कर रही है? क्या यह अपना रौबदाब मनवा लेती है?’’ वासिली याकोवलेविच ने इस तरह पूछा, मानो नीना वहाँ है ही नहीं।

नीना ने एन्द्री की तरफ उत्सुकतापूर्वक देखा।

‘‘हाँ, हाँ,’’ एन्द्री ने जवाब दिया और एक नजर नीना पर डाल कर उसे दिलासा दे दिया। ‘‘हम साइबेरियन लोग कहा करते हैं, इस तरह का पेड़ न झुकाया जा सकता है और न तोड़ा जा सकता है।’’

‘‘सौभाग्य है कि यह अपने बाप के नाम को कलंकित नहीं कर रही है,’’ वासिली याकोवलेविच ने कहा।

‘‘पढ़ाई में इसे हमेशा अच्छे नम्बर मिलते रहे हैं,’’ बगल के कमरे से इरीना मक्सिमोव्ना की आवाज आयीं।

‘‘बहुत हुआ माँ,’’ नीना ने कहा और एन्द्री को यह देखकर ताज्जूब हुआ कि पिता की आवाज जैसी सख्ती नीना की आवाज में भी है। ‘‘पढ़ाई-लिखाई और काम दो अलग-अलग चीजें हैं। आपने साइबेरिया क्यों छोड़ा, एन्द्री सेर्गेयेविच?’’

‘‘मैं पढ़ना चाहता था, लेकिन मेरी दादी है पुराने विचारों की। उसने नहीं पढ़ने दिया। वह मुझे किताबें भी नहीं खरीदने देती थी। यदि कोई किताब खरीद भी लेता था, तो मैं उस पर एक चिप्पी लगा देता था ताकि वह लाइब्रेरी की किताब मालूम हो। तब उसे कोई ऐतराज न होता था। लेकिन ज्यों ही उसे पता लग गया, उसने एक वेल्डिंग की किताब छोड़कर, बाकी सब जला दीं। इसलिए हमरा झगड़ा हो गया। मैं अपने कोट के अस्तर में कुछ रुपया सिलाकर और रसोई से रोटी चुराकर स्टेशन भाग गया।’’

‘‘तुमने ठीक किया,’’ अपने बड़े-बड़े हाथों से सेब के दो टुकड़े करते हुए वासिली याकोवलेविच ने कहा।

‘‘जब मैं स्टेशन पहुँचा, तो मास्को के लिए साधारण टिकट खत्म हो गये थे-सिर्फ पहले दर्जे के टिकट बचे थे। इसलिए मैंने अस्तर फाड़ा और एक टिकट के लिए सारा रुपया झौंक दिया।’’

‘‘तुम दृढ़ संकल्पी व्यक्ति हो,’’ नीना ने कहा। ‘‘तुम्हें ऊँचाई पर काम करना पसन्द होगा।’’

‘‘आदमी किस तरह का है, इसी से यह तय होता है कि वह किस तरह का काम कर सकता है। तुम्हें अपने काम में मुसीबतें क्यों उठानी पड़ रही हैं? क्योंकि तुम इस तरह के काम के लिए बनी ही नहीं हो।’’

‘‘तो इसे मुसीबत पड़ रही है, क्यों?’’ वासिली याकोवलेविच ने थोड़ा-सा हँसकर कहा।

‘‘इनमें थोड़ी-सी कमजोरियाँ हैं, जैसी कि सभी में होती हैं,’’ एन्द्री ने झटपट बात सम्भाल ली, ‘‘लेकिन इनका काम हमारे काम से कठिन है। वह एक बहुत खास तरह का काम है। मसलन, अभी कुछ दिन पहले हमने यह संकल्प किया था कि हम योजना को वक्त से पूरा कर देंगे-हमें चिन्ता है तो योजना को पूरा करने की-और इन्होंने यह संकल्प कर रखा है कि हममें से कोई किसी कील-काँटे में न फँसने पाये। जरा देखो तो? कोई योजना देखता है और कोई कील-काँटे।’’

‘‘लेकिन जेब में एक भी पैसा न होते हुए तुम मास्को कैसे आ गये?’’ नीना ने विषय बदलने की इच्छा से पूछा।

‘‘मैं बता चुका हूँ कि मेरे पास एक रोटी थी ही। और फिर, कुछ मुसाफिरों ने मेरी सहायता की। उस दिन सुबह जब मेरी आँख खुली तो नीचे की सीट पर मैंने कुछ आदमियों को बातें करते सुना-रोजगार विभाग का ऐजण्ट अपने काम के बारे में शिकायत कर रहा था। मैं उतर पड़ा और एक सज्जन को टीन खोलते देखा। उस शाम मैंने अपनी वेल्डिंग सम्बन्धी किताब निकाली और वह व्यक्ति मेरी सारी हालत भाँप गया। उसने मुझे अपने दफ्तर में काम करने के लिए राजी करने का प्रयत्न किया। उसने मुझे सोने की मुहरें दिलाने का वायदा किया। उसने मेरे लिए सैण्डविचों और गर्म चाय का इन्तजाम करने के लिए भाग-दौड़ की। मास्को तक यह खातिर जारी रखी। लेकिन मैं उसके साथ काम करने के लिए तैयार न हुआ। उसने बहुत ज्यादा सुनहरा खाका खींच दिया था। इससे मैं शक में पड़ गया। फिर जब मैं मास्को पहुँच गया...।’’

‘‘चाय तैयार है,’’ इरीना मक्सिमोव्ना ने कहा और केतली लिये हुए कमरे में प्रवेश किया।

तभी एन्द्री को अपनी ट्रेन का ख्याल आया। उसने घड़ी पर नजर डाली और उछल पड़ा। नीना उसे दरवाजे तक पहुँचाने आयी।

‘‘देहरी पर हाथ मिलाना शुभ नहीं होता,’’ एन्द्री ने कहा।

‘‘फिजूल बात,’’ नीना ने हाथ झुलाकर कहा, ‘‘कोई अशुभ नहीं होगा।’’

एन्द्री ने सोचा, ‘‘हालाँकि यहाँ मेज पर छल्लों में नेपकिन रखे हुए हैं, फिर भी इसकी जिन्दगी आसान नहीं मालूम होती।’’

‘‘हिम्मत न हारना,’’ एन्द्री ने कमरे में वापस घुसते हुए कहा, ‘‘काम पर, अच्छे घोड़े की तरह, काबू पाना पड़ता है। अच्छा, सलाम। और चिन्ता न करो, अपने साथ काम करनेवाले लड़कों पर मैं निगाह रखूँगा।’’

वह चला गया तो नीना ने द्वार बन्द कर दिया और पीर के भँवर में फँसी हुई वहीं खड़ी रही। जब तक सीढ़ियों पर पैरों की आहट खामोश नहीं हो गयी और बाहरी भारी दरवाजे के बन्द होने की भड़क नहीं सुनायी दे गयी, तक तक वह वहीं खड़ी रही। फिर जाकर उसने भोजन किया। उसके माता-पिता, जब सोने चले गये, तो वह खिड़की के पत्थर पर जा बैठी-यह स्थान सदा से उसे प्रिय है-और यहाँ बैठकर रंगीन सितारों से जड़े स्याह आसमान को ताकती हुई विचारों में खो गयी।

कमरे में, यदि कोई स्वर था तो घड़ी की हल्की सी गम्भीर टिक-टिक, और कभी-कभी घर के पास से लारी के गुजर जाने पर झाड़-फानूस का काँच आपस में टकराकर बज उठता था। रात बहुत बीत गयी थी। दिमाग से परेशानियों का बोझा उतार फेंकने के लिए नीना ने उस रिपोर्ट का मसौदा लिख डालने का निश्चय किया, जिसे प्रधान इंजीनियर ने अगले दिन पेश करने के लिए कहा था।

वह उस मेज के सामने बैठ गयी, जिस पर उसने पहाड़ा याद किया था, गणित के कठिन सवालों को लेकर रोई थी और इन्स्टीट्यूट में बताये गये नक्शों को खींचा था। उसने गुलाब के फूलों से सजे, चीनी मिट्टी के कलमदान की दावात में कलम डुबोया और लिखा: ‘‘...इमारत के केन्द्रीय भाग में पहली मंजिल का कमरा साफ करते समय एक कारीगर को चोट लग गयी,’’ यकायक उसे बोध हुआ कि उसकी पीर का कारण क्या है।

‘‘इसका कारण यह है कि अर्सेन्तियेव को मुझ पर इतना तरस आया कि वह मेरे पिता से झूठ बोला और उन्हें यह बताने की कोशिश करने लगा कि मैं अपना काम-काज ठीक कर रही हूँ। और उसकी बात का खण्डन न करके, मैंने एक तरह से यह प्रकट किया कि मैं उस तरह झूठ बोलने का समर्थन करती हूँ। अब अर्सेन्तियेव सोचेगा कि मैं कायर हूँ और उसका यह ख्याल ठीक ही होगा।’’

नीना ऐसी असहाय अवस्था से गुजर रही थी, जब कि इस संसार में आशा की एक भी किरण नजर नहीं आती।

‘‘वह मेरे बारे में क्या सोचता है, इसकी चिन्ता मैं क्यों करूँ?’’ वह जोर से कह बैठी। और यद्यपि यह बात उसने बड़े दृढ़ निश्चय के साथ कही थी, फिर भी वह यह समझ रही थी कि आज से उसके तमाम पुराने मित्रों, या प्रधान इंजीनियर अथवा स्वयं उसके पिता तक की राय की बनिस्बत एन्द्री की राय कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गयी है।

‘‘शनिवार की शाम को उन लोगों के होस्टल जाने में क्या हर्ज है,’’ उसने सोचा और रिपोर्ट के हाशिये में बेकार के गोलाकार और त्रिकोण चित्र बनाती रही। ‘‘इन लोगों के शौकिया तमाशे कैसे होते हैं, यह देखना सचमुच दिलचस्प होगा।’’

********

होस्टल में एन्द्री के कमरे में जो लड़के रहते थे, वे सर्कस से लौटने के बाद फौरन ही सोने न गये।

इस आधी रात पर थोड़ा-सा नाश्ता करने के लिए मित्या मेज पर अखबार बिछाये, डिब्बे वाले गोश्त के टुकड़े काट रहा था। एक इलैक्ट्रीशियन खिड़की के पास चारपाई, सिर के पीछे हाथ बाँधे, चित लेटा था और बड़ी व्यथा के साथ छत की कड़ियों की तरफ अपलक देख रहा था।

‘‘नहीं, यह बात नहीं है,’’ मित्या ने रोटी और गोश्त पर सरसों लगाते हुए कहा, ‘‘आप लोगों की इत्तला के लिए, मैं यह बता दूँ कि सर्कस के बाद मैं दो गलियों तक उसने पीछे-पीछे गया। पहले तो वे लोग यों ही चलते रहे, फिर उसने उसकी बाँह पकड़ ली। फिर उसने कहा कि वह उसकी सही बाजू नहीं चल रहा है, इसलिए वह दूसरी बाजू चला गया और फिर उसने उसकी बाँह पकड़ ली।’’

‘‘यह रोशनी आप लोग कितनी देर बाद बुझायेंगे,’’ उस इलैक्ट्रीशियन ने पूछा।

‘‘मैं जरा खा-पी लूँ, फिर बुझा दूँगा। और फिर एक बात और सोचने की है: वह अभी तक वापस क्यों नहीं आया? क्या ख्याल है, वह क्या कर रहा होगा-सदोवाया मार्ग पर, क्या अकेले-अकेले चक्कर लगा रहा होगा? एक तो अभी बज गया है।’’

‘‘इससे कुछ सिद्ध नहीं होता,’’ इलैक्ट्रीशियन ने कहा। ‘‘अब रोशनी बुझा दो।’’

‘‘जरा ठहरो, देखो-तो। अपने यहाँ काम-काज फिर ढर्रे पर आ जाएगा। उसका सारा ध्यान एन्द्री पर केन्द्रित हो जाएगा। शर्त बरतते हो?’’

मगर इलैक्ट्रीशियन सिर्फ गुड़बुड़ा कर रहा गया और दीवार की तरफ मुँह फेर लिया। इस सवाल पर थोड़ी देर और बात करने के बाद मित्या ने गोश्त का डिब्बा, रोटी और चाकू अल्मारी में रख दिया। फिर उसने हाथ-मुँह धोया, कपड़े उतारे, छोटे से शीशे में अपने दाँतों की बड़े गौर से जाँच की और बिजली बुझाने वाला ही था कि बाहर हाल में किसी के पैरों की आहट सुनकर वह बिस्तरे में घुस गया।

एन्द्री ने बड़े आहिस्ते से प्रवेश किया और चाय लेकर बैठ गया। उसके चेहरे से कुछ समझ पाना कठिन था। कुछ देर तक तो मित्या ने सोने का बहाना किया, मगर जब बर्दाश्त के बाहर हो गया तो उसने कुहनी टिकाकर सिर उठाया और कहा:

‘‘कहो, कैसा रहा, एन्द्री?’’

‘‘नीना वासिलीयेव्ना के बारे में, अगर तुमने एक शब्द भी कहा, तो समझ लेना, मैं तुम्हें चारपाई से उठाकर फेंक दूँगा,’’ एन्द्री ने हल्का-सा जोर देकर कहा ‘‘अब बेहतर होगा कि हम इस कमरे की सफाई कर डालें। और लैम्प का आवरण अगर खरीद लिया जाय तो कोई नुकसान नहीं होगा। अगर इत्तफाक से कोई यहाँ आ जाय, तो हम लोग शर्म से गड़ जाएगे।’’

‘‘तुम रोशनी कब बुझाओगे?’’ इलैक्ट्रीशियन ने फिर पूछा।

‘‘तुम बेचारे को एक प्याला चाय भी नहीं पीने दोगे?’’ मित्या ने एन्द्री की हिमायत में कहा और कम्बल के भीतर घुसते हुए उसने फुसफुस स्वर में कहा, ‘‘मैंने कहा था कि नहीं-कि अब सारी चीज ढर्रे पर आ जायगी?’’

******

दोनों इमारतों पर काम करने वाले कारीगरों के बीच जैसे-जैसे प्रतियोगिता आगे बढ़ी, तैसे-तैसे उत्तेजना भी बढ़ती गयी।

एक दिन, जब नीना प्रधान कार्यालय की ओर जा रही थी, तभी उसने एक नोटिस बोर्ड के सामने भीड़ देखी।

‘‘यह भीड़ क्यों जमा है?’’ उसने पूछा।

‘‘हम लोग काम के ताजे नतीजों का इंतजार कर रहे हैं,’’ लीदा ने कहा। ‘‘आप अपने क्लर्कों को जरा जल्दी हाथ-पैर चलाने के लिए, मजबूर नहीं कर सकतीं, नीना वासिलीयेव्ना?’’

नीना ने इसके बारे में प्रधान इंजीनियर से कहा और अगले दिन से इस प्रतियोगिता ने नतीजे लाउडस्पीकर से सुनाये जाने लगे। इन घोषणाओं के समय कारीगर लोग लाउडस्पीकरों के इर्द-गिर्द जमा हो जाते, ड्राइवर लोग अपनी लारियों के इंजन बन्द कर देते और नतीजे सुनने के लिए दरवाजे खोलकर बैठ जाते। नीना पूरे निर्माण-स्थल पर नजर डालकर मुस्कुरा उठती और मन ही मन कहती, ‘‘वाह ये लोग मानों फुटबाल के मैच का नतीजा सुन रहे हैं।’’

इस्पात का ढाँचा खड़ा करने की गति दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगी और एक बार प्रधान इंजीनियर ने नीना को चुपके से बताया कि ऐसा लगता है कि ये लोग अपने काम को निश्चित समय से एक दिन पहले ही खत्म कर लेंगे।

एक सप्ताह में ही इतना काम पूरा हो गया कि कारीगर लोग यह समझ गये कि अपना काम वक्त पर पूरा कर लेंगे। अब उनको मुख्य चिन्ता यह थी कि पड़ोस की इमारत पर काम करने वाले कोम्सोमोल के साथियों को वे कैसे पछाड़ें और कुशलता तथा कारीगरों में उन्हें कैसे मात दें।

इन दिनों अर्सेन्तियेव और उसकी मित्र-मण्डली बड़ा उत्साह लेकर आती थी और न्यूरा तथा लीदा पर भी (जिन्हें प्रधान इंजीनियर ने वेल्डरों की मदद पर नियत कर दिया था) उन लोगों की चित्त-वृति का असर पड़ता था और वे भी तारों की जाँच करने, ट्रासफार्मरों को चलाने और खाने-पीने की चीजें लाने में बड़ी भाग-दौड़ करती-और भोज-गृह में काम करने वाली लड़की को जब यह पता चला कि ये लोग अर्सेन्तियेव तथा उसके मित्रों के लिए खाने-पीने की चीजें लेने आती हैं, तो उन्हें उनकी बारी न होने पर भी पहले ही चीजें दे देती।

नीना की यह आशंका बेबुनियाद निकली कि उसके बारे में अर्सेन्तियेव की राय बिगड़ गयी होगी। इसके विपरीत, सर्कस-यात्रा के बाद से वह नीना की तरफ और भी ज्यादा ध्यान देने लगा। जब वह नीना से बात करता तो उसके स्वर में तिरस्कार के भाव की जरा भी झलक न होती, बल्कि उसने अपना यह वायदा निभाया कि उसके मित्र सभी सुरक्षा-नियमों का पालन करेंगे-और नीना के लिए यही सबसे बड़ी प्रसन्नता की बात थी।

एक दिन जब वह रास्ते पर चली जा रही थी, तब उसने सुना कि वह मित्या को टूटी सीढ़ी काम में लाने के वास्ते डाँट रहा है। मित्या हठपूर्वक जोर दे रहा था कि उस सीढ़ी से उसका काम चल जाएगा। नीना कुछ दूर जाकर खड़ी हो गयी और इस झगड़े का अन्त कैसे होता है-इसको देखने का इंतजार करने लगी। अर्सेन्तियेव ने ज्यादा बहस नहीं की। उसने कहा, ‘‘अगर दूसरी सीढ़ी लाने में तुम्हें बहुत तकलीफ होगी, तो मैं खुद लाये देता हूँ।’’ और वह चला गया। परेशान हाल मित्या उसे दार्शनिक विराग के भाव से देखता रहा और अपने आप से बड़बड़ाता रहा: ‘‘लगता है कि कुमारी सुरक्षा-टेक्निक पर विजय इसने नहीं पायी है, बल्कि इसके ऊपर कुमारी सुरक्षा-टेक्निक ने विजय पा ली है। इससे तो मामला और भी संगीन हो गया है। ये दोनों मिलकर तो हमारी जान ही निकाल लेंगे। हुँह, क्या बढ़िया सलाह दी है तुमने,’’ उसने न्यूरा की तरफ मुड़कर कहा।

‘‘दूसरों के सिर दोष मढ़ने की कोशिश न करो,’’ न्यूरा ने जवाब दिया। ‘‘सकर्स के लिए टिकट किसने बाँटे थे?’’

‘‘लेकिन यह सूझ किसकी थी? तुमने ट्रेन में जो कुछ कहा था, उसे भूल गयी हो? तुम उस मनहूस रूमाल के साथ जहन्नुम में क्यों न चली गयीं और चुप रहतीं?’’

‘‘तुमसे जो कुछ कहा जाय, उस सबको सुनने की जरूरत ही क्या है?’’

यह टिकटों और सलाह की चर्चा क्या है, इसका नीना को ज्ञान नहीं था, लेकिन उसके हृदय में अर्सेन्तियेव के प्रति कृतज्ञता का ज्वर उमड़ पड़ा...

*****

बारिश के रुकने का इंतजार किये बिना ही नीना घर की तरफ चल दी। वर्षा बड़ी छितरी-छितरी हो रही थी, कभी मूसलाधार हो जाती, तो कभी बड़ी हल्की-फुल्की -मानो अगले हमले के लिए तैयारी कर रही हो।

शीशे की तरह चमकीले लबादे ओढ़े पुलिसवाले असंतुष्ट भाव से सड़कों के नुक्कड़ पर खड़े भीग रहे थे और गढ़ों में भरा पानी उछालती हुई चमचमाती मोटर-कारें उनके पास से गुजर जाती थीं। बहती जल-धारा में सिगरेटों के टुकड़े और बसों के टिकट तैरते हुए नालियों की तरफ चले जा रहे थे।

सार्वजनिक स्थानोें के प्रवेश-द्वार पर भीड़ें जमा थीं और आसमान की ओर बार-बार ताक लेती थीं। लेकिन नीना, गर्मी की ऋतु की सैंडिलें गीली सड़क पर फटफटाती हुई चली ही जा रही थी, ग्रीष्म पवन और वर्षा की शीतलता में तथा उससे चेहरों पर जो ताजी रौनक आ जाती है, उसमें विभोर होकर वह आनन्द अनुभव कर रही थी।

यात्रिगण, पारदर्शी लबादे ओढ़कर या अखबार लपेटकर, स्थानीय ट्रेन पकड़ने दौड़े जा रहे थे। यकायक नीना को याद आया कि आज शनिवार है और आज के दिन होस्टल में खेल-तमाशे किये जाते हैं, उसकी चाल धीमी पड़ गयी। शीघ्र ही उसने सड़क पार कर ली और स्टेशन की तरफ भागी...


न्यूरा जिस कमरे में रहती थी, वह शीशे की तरह स्वच्छ था। दीवार के सहारे चार चारपाइयां लगी हुई थीं और हर-एक से उस पर सोने वाले के व्यक्तित्व प्रकट होता था।

...कमरे में एक दुबली-पतली अठारह वर्षीय लड़की ने प्रवेश किया, उसकी आभापूर्ण नीली आँखों से, एक साथ ही, आनन्द और वेदना झलक रही थी। नीना ने फौरन पहचान लिया कि यह वही क्रेन-चालिका है, जिसने उस दिन सोलहवीं मंजिल पर कंक्रीट के पटिये पहुँचा दिये थे।

‘‘हल्लो’’ कहे बिना ही, वह लड़की सीधी अपनी चारपाई पर पहुँची और बच्चे पर झुक गयी।

‘‘क्या यह अब भी खाँस रहा है?’’

‘‘नहीं। अब तो बेहतर मालूम होता है,’’ न्यूरा ने कहा। ‘‘हम लोग मण्डली के लिए जा रहे हैं।’’

...इसी क्षण दरवाजे पर दस्तक हुई और अर्सेन्तियेव ने प्रवेश किया।

‘‘तुम यहीं बैठी हो,’’ उसने लीदा को देख कर कहा। ‘‘उठो, चलो। वे लोग क्या नाच रहे हैं-देखकर जी मिचलाने लगता है। उन्हें हम बता देंगे कि हमारी तरफ के लोग किस तरह नाचते हैं। आप भी यहीं हैं, नीना वासिलीयेव्ना? तो आप भी आइये, चलो, सब लोग चलें।’’

अर्सेन्तियेव और लीदा के पीछे-पीछे नीना ने एक बड़े कमरे में प्रवेश किया, जहाँ खिड़कियाँ खुली होने के बावजूद काफी घुटन थी। लोग ठसाठस भरे थे।

‘‘हाँ, भाई, अब हमें साइबेरियाई धुन सुनाओ,’’ उसने बाजे की धौंकनी पर हाथ रखकर कहा।

‘‘मुझे कोई धुन नहीं आती,’’ वादक ने कहा।

‘‘लीदा, इसे कोई धुन तो बता दो।’’

लीदा संगीतकार के बगल में बैठ गयी ओर उसके कान में कोई धुन गुनगुनाने लगी, संगीतकार पर्दों पर धीरे-धीरे उँगलियाँ फेर कर उस धुन को पकड़ने का प्रयत्न करने लगा।

अर्सेन्तियेव वापस नीना के पास चला आया।

‘‘जरा सरक कर बैठो, अन्धे हो क्या?’’ बैंच पर बैठे कुछ लड़कों को उसने डाँट दिया।

लड़के सरक गये और नीना बैठ गयी, अर्सेन्तियेव उसके पीछे खड़ा हो गया।

संगीतकार ने जब वह आसान-सी धुन समझ ली, तो उसने मानों मन्त्र-मुग्ध होकर, अपने बाजे को कोयल से चिपका लिया और लिदा उठकर खड़ी हो गयी—संगीत की ताल पर उसके कन्धे उछलने लगे और सारा शरीर बड़े मनमोहक ढंग से तन गया और सीधा रह गया। जिस स्वर का वह इंतजार कर रही थी, वह भी आ गया और वह नाच उठी, लेकिन वह शुरू में ही कुछ लड़खड़ा गयी, इसलिए खीझ के भाव से उसने सिर झटक कर नृत्य बन्द कर दिया और प्रारम्भिक ताल का इंतजार करने लगी।

फिर यह यकायक हवा में लहराती, सुपरिचित धुन के साथ पदनिक्षेप से ताल देती, अगती ताल के बारे में चिन्ता किये बिना, सिर पर ओढ़े गये रूमाल के दोनों छोरों को बेफिक्री के साथ मजबूती से पकड़े संगीत की स्वर लहरी के जादू में बँध सी गयी और यह स्वर-लहरी उसे दर्शकों—मेजों, कुर्सियों और तख्तियों तथा पोस्टरों से सजी दीवारों—के बीच बहाये ले जा रही थी।

यद्यपि अर्सेन्तियेव पीछे खड़ा था, और नीना ने एक बार भी उसकी तरफ मुड़कर नहीं देखा, फिर भी उसने साफ महसूस किया कि अर्सेन्तियेव नृत्य में डूब गया है और लीदा की प्रत्येक मुद्रा का अनुसरण कर रहा है, नीना के सीने में ईर्ष्या सी जाग गयी। वह चाहने लगी कि लीदा थक जाय, ताकि यह अनन्त नृत्य समाप्त हो जाय।

अपने प्रदेश की इस प्यारी धुन की जादुई शक्ति के इशारे पर लीदा ने अपनी भुजाएँ सुन्दरता के साथ फैला दीं और समेट कर सीने पर रख लिया, साथ ही उसके चरण संगीत के चढ़ाव के साथ हवा में लहराकर, ताल के साथ जमीन पर उठने और गिरने लगे। अकार्डियन-वादक से उसके होंठ फुसफुसाकर कहने लगे—‘‘तेज और तेज’’ और ऐसा लगने लगा मानों उसके वस्त्र स्वयं अपने आप नाच रहे हैं।

माधुर्य भरकर, अकार्डियन-वादक ने अन्तिम स्वर मोड़ ली और लीदा नृत्य समाप्त कर लाज से इस तरह कमरा छोड़कर भागी, मानो यकायक उसे अपने सौन्दर्य का बोध हो गया हो।

‘‘यह हमारा साइबेरियाई नृत्य है, नीना वासिलीयेव्ना,’’ अर्सेन्तियेव ने ऐसे गर्व से कहा, मानो यह नृत्य खुद उसने पेश किया हो। ‘‘आपको कैसा लगा?’’

‘‘बहुत अच्छा है, थोड़ा-सा एक-रस है,’’ नीना ने कहा और खेदपूर्वक सोचने लगी, ‘‘इस आँधी-पानी में, मैं यहाँ आयी ही क्यों?’’

लेकिन बाद में जब अर्सेन्तियेव ने कहीं से बरसाती माँग लाकर, खुद अपने हाथ से उसे पहनायी और फिर स्टेशन तक छोड़ने भी आया तो उसका दिल कुछ खुला।

उसने किंचित मुस्कुराकर अपने आपसे कहा: ‘‘क्या मैं ईर्ष्या कर रही थी? कितनी मूर्ख हूँ।’’

*****

कुछ दिन बाद एक बड़े अफसोस की बात हुई। नापजोख करने वाले का पता चला कि तूफान के दिनों में जो खड़े गर्डर लगाये थे, उनमें से कुछ सीधे जमे नहीं थे। पिछले दिनों लोगों ने जिस तेजी से काम किया था, उसे देखते हुए यह कोई ताज्जुब की बात नहीं थी, लेकिन फिर भी इस पर अपार चर्चा और कहा-सुनी होने लगी थी इसलिए यह पता लगाने का प्रयत्न होने लगा कि दोष किसका था। इन गर्डरों को सीधा करने तक सभी काम रोक देना पड़ा।

काम के बाद अर्सेन्तियेव ने लड़कियों को जमा किया और अगले दिन मशीनों की जाँच करने तथा यह देखने के लिए कि तार ठीक लगाये गये हैं और कहीं फर्श तो नहीं छू रहे हैं, उसने उनको काम पर जल्दी आने के लिए कहा। वह अन्त में बोला, ‘‘जो समय बर्बाद हुआ है, उसे हमें कल पूरा करना है, हमें हर कीमत पर नुकसान भरना होगा।’’

तूफान के बाद मौसम साफ हो गया, एक भी बादल न रहा। दूसरे दिन सुबह सात बजे से ही धूप महसूस होने लगी। उमस और गर्मी सुबह से जान पड़ने लगी। काम पर न्यूरा और लीदा सबसे पहले आयीं। उनकी हाजिरी खत्म हुई तो वे बाईसवीं मंजिल की सीढ़ियों पर बैठकर वेल्डरों का इंतजार करने लगीं।

अर्सेन्तियेव आया तो बड़ी कठोर और दृढ़ मुद्रा में। आते ही उसने लीदा से कहा, ‘‘तुम सीटी बजा सकती हो?’’

‘‘नहीं। क्यों?’’

‘‘तो यह चाबी लो और जब तुम्हें नीना वासिलीयेव्ना आती दिखायी दें, तो इससे गर्डर बजा देना।’

‘‘क्यों?’’

‘‘जो कहा जाय, वह करो और कोई सवाल मत पूछो। समझी?’’

‘‘ठीक। यह कोई कठिन काम नहीं है,’’ लीदा ने जवाब दिया।

वह फिर सीढ़ियों पर बैठ गयी और अर्सेन्तियेव के चारों तरफ छिटकती चिनगारियों को देखने लगीं।

लीदा ने पहली बार जब यह निर्माण-स्थल देखा था, तो उसे लगा था कि अलौकिक शक्ति और बुद्धि वाले दानव ही ऐसी इमारत खड़ी कर सकते हैं। उसे यह विश्वास हो चला था कि यहाँ काम करने के लिए उसको भेजने में कहीं कोई गलती हो गयी है और हफ्ते भर के अन्दर ही उसे कहीं और भेज दिया जायगा।

लेकिन शीघ्र ही उसने अपनी ही तरह के दूसरे साधारण लोगों को भी देख-परख लिया जिनमें से कई लड़कियाँ थी और कई साइबेरिया वासी भी थे। इससे वह बड़ी उत्साहित हुई और भोजन की छुट्टी में वह एक मंजिल से दूसरी मंजिल घूमती और मित्या से पूछती कि वे नल कहाँ जा रहे हैं और कुछ दरवाजों पर खोपड़ियों और आड़ी तिरछी हड्डियों के चिन्ह क्यों बनाये गये हैं।

उसने ऐसी बहुत-सी मशीनें देखीं, जो इससे पहले उसने कभी नहीं देखी थीं, एक पम्प था, जिससे एक बड़े नल से सातवीं मंजिल पर कंक्रीट जाता था और यह पम्प तेल के इंजिन जैसे लीवरों से चलता था। जब यह पम्प चालू होता था तो आसपास की सारी चीजें ऐसे हिल-डुल उठती थीं मानों उन्हें तूफान झकझोर रहा हो।

उसने देखा कि निर्माण की सामग्री से भरे डिब्बे आसमान में खिंचे तारों के सहारे भेजे जाते हैं। बिजली के तारों को छुए बिना, वे डिब्बे इमारत के भीतर घुसकर गायब हो जाते हैं, मानों उनमें भी बुद्धि भर दी गयी हो।

एक दिन लीदा ने आठवीं मंजिल पर तार का पिंजड़ा देखा, जो लिफ्ट के पिंजड़े की तरह था। जब वह उसके करीब पहुँची तो उसने देखा कि उसका दरवाजा खुल गया और इस्पाती भुजाओं ने बड़ी सावधानी के साथ उसमें से ईंटों के डिब्बे लुढ़काये जो बेलन जैसी चीज पर फिसलते हुए ठीक वहीं जा पहुँचे, जहाँ कारीगर उनका इंतजार कर रहे थे। फिर इस्पाती भुजाएँ वापस पिंजड़े में सिमट गयी और हल्की-सी सीटी बजाता हुआ वह पिंजड़ा नीचे उतर कर गायब हो गया।

‘‘यह क्या है?’’ लीदा ने पूछा।

‘‘सामान ऊपर ले जाने वाली मशीन है,’’ एक संगतराश ने जवाब दिया। ‘‘जरा दूर ही रहना। कहीं पाँव फँस गया तो सब मजा निकल आयगा। हमारी सुरक्षा-इंजीनियर से, अभी शायद, तुम्हारी भेंट नहीं हुई है।’’

लीदा भाग कर नीचे वहाँ पहुँच गयी जहाँ सामान ऊपर ले जाने वाली मशीन चलाने के लिए स्विच बोर्ड पर बटन लगे हुए थे। मंजिलों की संख्या के सामने बिजली के छोटे-छोटे बल्ब कभी जल जाते थे और कभी बुझ जाते थे, एक मुस्तैद और कम बोलने वाली औरत इस मशीन के पिंजड़े को भरने का हुक्म दे रही थी। ज्यों ही उसने बटन दबाया ईंटों समेत वह पिंजड़ा तीर की तरह ऊपर लपका।

‘‘जहाँ रुकना होता है, वहाँ यह अपने आप रुक जाता है क्या?’’ लीदा ने पूछा।

‘‘ठीक वहीं जाकर रुक जाता है,’’ उस औरत ने जवाब दिया। ‘‘यहाँ से भागो। यह जगह ऊँची शक्ति की बिजली के तारों से भरी है। अगर नीना वासिलीयेव्ना ने तुम्हें यहाँ पकड़ लिया तो ऐसी डाँट पिलायेंगी कि तुम अपना नाम भी भूल जाओगी।’’

लीदा को हर तरफ नीना वासिलीयेव्ना का नाम सुनायी देता था। उसके विषय में भाँति-भाँति की बातें कही जाती थीं। लेकिन अधिकांश बातें व्यंग्य या कटाक्ष से भरी होती थीं। धीरे-धीरे लीदा की यह धारणा बन गयी कि नीना वासिलीयेव्ना को हटा दिया जाता तो अच्छा होता, क्योंकि वह हमेशा दोष ही खोजती रहती है और जरा-जरा सी बात के लिए लोगों के काम में बाधा डालती है। लेकिन उसकी समझ में एक बात नहीं आती थी और वह यह कि एन्द्री क्यों उसकी हिमायत करता है।

‘‘हल्लो,’’ लीदा ने यकायक किसी की आवाज सुनी और नजर उठायी तो नीना को खड़े पाया। लीदा ने प्रेरणावश चाभी पकड़ी, लेकिन अब तो काफी देर हो चुकी थी।

‘‘मैंने तुमसे जो कुछ करने को कहा था, उसे तुम भूल गयी हो,’’ नीना ने कहा। ‘‘देखो, अर्सेन्तियेव सुरक्षा-पेटी बाँधे बिना ही काम कर रहा है। क्या ख्याल है, यह ठीक है?’’

‘‘नहीं, नहीं तो, लेकिन उसने मुझसे कहा था कि मैं तुम्हें न बताऊँ।’’

‘‘दूसरे शब्दों में, जो बात वह कहे, उसके तुम मेरे कहे की बनिस्बत ज्यादा वजनदार मानती हो?’’

‘‘खैर, मैं सबकी बातें नहीं सुन सकती,’’ लीदा ने टका-सा जवाब दे दिया।

एक शब्द कहे बिना नीना अर्सेन्तियेव के पास चली गयी। अर्सेन्तियेव ने उसे उस समय तक नहीं देखा, जब तक कि नया इलैक्ट्रोड लगाने के लिए उसने अपने चेहरे से नकाब नहीं उठाया। नीना को देखते ही उसने लीदा की तरफ क्रोध-भरी नजर डाली।

‘‘एन्द्री सेर्गेयेविच, पेटी बाँधे बिना काम करके क्या करना चाहते हो?’’ उसने पूछा।

‘‘बड़ी गर्मी है,’’ अर्सेन्तियेव ने कहा। ‘‘पेटी बाँधकर मैं काम नहीं कर सकता। फर का कोट पहनने से भी बदतर होती है।’’

‘‘तो काम बन्द कर देते।’’

‘‘लो, अब यह देखो। नीना वासिलीयेव्ना तुम खुद जानती हो कि जो वक्त बर्बाद हो गया है, उसे हमें पूरा करना है।’’

‘‘जानती हूँ, लेकिन तुम्हें पेटी बाँधनी ही होगी, एन्द्री। तुम मुझे कुछ कहने के लिए क्यों मजबूर करते हो?’’

‘‘अच्छा भई, मैं बाँधे लेता हूँ। अगली मंजिल पर जब पहुचूँगा, तो बाँध लूँगा। वहाँ वह लटक तो रही है,’’ उसने खुश करने की नियत से वायदा किया।

‘‘नहीं, तुम्हें इसी क्षण बाँधनी होगी,’’ नीना ने कहा, लेकिन उसने फिर नकाब डाल लिया और वेल्डिंग में जुट गया।

‘‘तुम क्या सचमुच मुझसे झगड़ना चाहते हो?’’ नीना गर्डर पर चढ़ गयी और उसका यंत्र पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाया। अर्सेन्तियेव ने जल्दी से अपना नकाब हटा दिया।

‘‘सम्भलो, वरना गिर पड़ोगी,’’ उसने धमकाते हुए कहा। ‘‘अब कोई यहाँ फर्श बिछाने नहीं आएगा।’’

मित्या ने, जो ऊपर की मंजिल पर काम कर रहा था, थोड़ा-सा हँस दिया।

‘‘और तुम्हारा वह दोस्त भी बिना पेटी बाँधे काम कर रहा है,’’ नीना ने क्रोध से कहा। ‘‘लीदा, नीचे जाओ और उनसे कहो कि मैंने बिजली बन्द करने का हुक्म दिया है,’’

लीदा ने प्रश्न-सूचक दृष्टि से अर्सेन्तियेव की तरफ देखा।

‘‘मत जाओ,’’ उसने अपनी आँखें झुका कर कहा।

‘‘मैं कहती हूँ, जाओ,’’ नीना ने फिर कहा और पीली पड़ गयी।

‘‘तुम इसे हुक्म नहीं दे सकतीं,’’ अर्सेन्तियेव ने सामने देखे बिना कहा। ‘‘इसे हुक्म देना मेरा काम है।’’

नीना को लगा कि इस संघर्ष से उस मित्रता के खत्म हो जाने की नौबत आ गयी है, जिसको पाने के लिए उसे इतनी कीमत अदा करनी पड़ी थी — इससे शायद और भी बड़ी चीज खत्म हो जाए — वह चीज जिसका अहसास इधर कुछ दिनों से वह बराबर कर रही थी, लेकिन उसे खुलकर स्वीकार करने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी। लेकिन उसने अपने हाथ का पैड मसल डाला और शान्तिपूर्वक फिर दुहराया: ‘‘लीदा, नीचे जाओ।’’

लीदा ने फिर अर्सेन्तियेव की तरफ देखा और अर्सेन्तियेव ने कड़ी नजर से देखा।

‘‘नहीं, मैं नहीं जाऊँगी,’’ उसने दृढ़तापूर्वक कह डाला। न्यूरा, जो अभी तक यह सब सुन रही थी, हल्की सी कराह भर कर रह गयी।

‘‘झगड़ो मत,’’ वह बोली। ‘‘मैं जाती हूँ।’’

नीना गर्डर से वापस आकर समतल जगह पर जा खड़ी हुई और काँपते हाथों से पैड में उँगलियाँ उलझाती खड़ी रही।

‘‘अगर इसने बिजली बन्द करा दी, तो नुकसान इसके फरिश्तों को भी भरना पड़ेगा,’’ लीदा ने मन ही मन कहा।

दस मिनट बाद सभी वेल्डिंग यंत्र ठण्डे पड़ गये। अर्सेन्तियेव ने अपना यंत्र फेंक दिया और नकाब हटा ली।

‘‘ऐसी औरत से, भला, कोई क्या निपट सकता है?’’ नीना की नजर बचाते हुए, उसने किसी खास व्यक्ति से नहीं, अपने आप से ही कहा।

‘‘मिसाल के तौर पर, पिछले साल,’’ मित्या ने बात शुरू की, ‘‘उन लोगों ने उस दूसरी इमारत के दरवाजे पर एक नया संतरी नियुक्त किया। अगले दिन एक भी ड्राइवर अपना कोटा नहीं पूरा कर सका। हर बार जब वे लोग दरवाजे पर आते थे, तो वह संतरी उनसे पास माँगता था और हर बार वह इन पासों की जाँच करता था। वह कहता, ‘इवान इवानोविच, जरा आपका पास तो देखें। नहीं इधर नहीं होगा, पिछली बार तुमने उस जेब में रख लिया था।’ और कोई उससे कुछ कह भी नहीं पाता था। वह हिदायतों के अनुसार काम कर रहा था, लेकिन भलाई से ज्यादा नुकसान कर रहा था।’’

‘‘लेकिन, कामरेड याकोवलेव, क्या आप यह नहीं देखते कि मुझे लोगों की जिन्दगी की सुरक्षा का भार सौंपा गया है?’’ नीना ने कहा।

अर्सेन्तियेव चीख उठा, ‘‘तुमसे यह आशा नहीं की जाती कि लोगों की जिन्दगी की रक्षा करने के नाम पर तुम काम में रोड़े अटकाओगी।’’

‘‘जिन्दगी की सुरक्षा की चिन्ता करने से काम में कोई बाधा नहीं पड़ती।’

‘‘लेकिन तुम तो रुकावट डाल ही रही हो। क्या यह बात तुम्हें नहीं दिखायी देती?’’

इसी समय प्रधान इंजीनियर भी वहाँ आ पहुँचे।

‘‘बिजली किसने बन्द करा दी है?’’ उन्होंने माथे से पसीना पोंछते हुए सख्ती के साथ पूछा।

‘‘इन्होंने,’’ अर्सेन्तियेव ने सिर हिलाकर नीना की तरफ इशारा करके कहा और यह ध्यान रखा कि उसका नाम न लिया जाय। ‘‘इन्होंने मुझे बिना पेटी बाँधे बैठे देखा और बिजली बन्दा करा दी।’’

‘‘बैठे नहीं, काम करते देखा,’’ नीना ने बयान ठीक करते हुए कहा।

‘‘इसी क्षण अपनी पेटी बाँधो। और यकोवलेव तुम भी,’’ प्रधान इंजीनियर ने सख्ती से कहा और वापस जाने के लिए सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, लेकिन दूसरी सीढ़ी पर उतर कर उन्होंने कहा, ‘‘नीना वासिलीयेव्ना, जैसे ही काम से फुर्सत मिले, जरा दफ्तर में मुझसे मिलती जाना,’’ और उनके स्वर में नीना के खिलाफ गुस्से की ध्यनि थी।

****

उस दिन नीना जब घर पहुँची तो बिल्कुल थक गयी थी। और घर पर उसने हर चीज अव्यवस्थित देखी। पिताजी उस समय किसी काम से बाहर जाने के लिए तैयार हो रहे थे।

वे जो भी चीज खोजते, वहीं न मिलती, इसलिए अपनी पत्नी को कोस उठते, जो भोजन के बाद बाजार चली गयी थी, अभी लौटकर न आयी थी। नीना ने उनकी सहायता करने की कोशिश की, लेकिन हर चीज उसके हाथ मे से फिसलती जान पड़ने लगी। उसने जब मोजे गिने तो पहले सात निकले और फिर नौ हो गये।

‘‘बात क्या है, बीमार हो?’’ वासिली याकोवलेविच ने पूछा।

‘‘नहीं, पिताजी। मैं थक गयी हूँ। काश, वह इंजीनियर छुट्टी से वापस आ जाता। यह काम अब और अधिक बर्दाश्त नहीं होता।’’

‘‘तुम्हें कठिन मालूम होता है?’’

हथेली पर ठोड़ी रखकर नीना मेज के सामने बैठ गयी और खामोश रह गयी।

‘‘अन्त में, उसने कहा, ‘‘हाँ, यह मेरे बस के बाहर है।’’

‘‘आनर्स के साथ डिग्री लेने का यही मतलब है,’’ सिर्फ इतनी ही टीका उन्होंने की, लेकिन सख्त से सख्त सजा की बनिस्बत इन शब्दों को बर्दाश्त करना नीना के लिए कठिन था।

‘‘कितनी आसानी से इन्होंने कह डाला,’’ नीना ने अपने आँसू पोंछकर मन ही मन कहा। ‘‘कल से मैं दूसरे इंजीनियरों की तरह ही काम करूँगी, मैं सिफ फोरमैनों और प्रधान इंजीनियर से ही शिकायत किया करूँगी। कारीगरों से वे लोग ही निपटें। आखिरकार, अर्सेन्तियेव या याकोवलेव या उसकी माँ से मुझे क्या लेना-देना है? मैं उन लोगों की चिन्ता क्यों करूँ, जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखा-जो मेरे लिए निरर्थक हैं? यह फिजूल की बात है।’’

अगली सुबह चारपाई छोड़ने में उसे विशेष प्रयत्न करना पड़ा और वह दिल पर बोझा ढोये काम पर पहुँची। हमेशा की तरह दरवाजे पर उसे बूढ़ा संतरी मिला जिसने ‘‘पास’’ दिखाने के लिए कहे बिना ही उसे सलाम किया। कड़वाहट भरी मुस्कान के साथ उसे याद आया कि इस दरवाजे पर पहले दिन वह कितने उल्लासपूर्वक आयी थी, उसे यह विश्वास था कि निर्माण-कार्य का प्रधान उसकी विद्वत्ता और कार्य-शक्ति से चकित रह जायगा। ‘‘और जब, मुझसे ‘पास’ पेश करने की आशा की गयी, तो मैंने कितना अपमान महसूस किया था? कितनी बेवकूफ थी मैं?’’ उसने थोड़ी-सी उल्लास-शून्य हँसी के साथ अपने आप से कहा।

उसने प्रवेश किया तो एक नोटिस बोर्ड के सामने मित्या को असंतोष के साथ बड़बड़ाते देखा। मित्या ने उसे सलाम किये बिना, टोपी आँखों पर खींच ली और सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया। नोटिस बोर्ड पर दो बड़े आँकड़ों से पिछले दिन की लक्ष्य-पूर्ति दिखायी गयी थी। ‘‘हम 100 फीसदी तक भी नहीं पहुँचे हैं,’’ नीना ने सोचा। ‘‘प्रतियोगिता में हम हार गये हैं, निश्चय ही हार गये हैं।’’

रोज की तरह, यह देखने कि हर चीज व्यवस्थित है, वह चोटी की मंजिल की तरफ चल पड़ी। दूसरी मंजिल पर एक बड़े हाल में खम्भे के पीछे उसने दो कारीगरों को उत्तेजनापूर्वक बात करते सुना।

‘‘जरूर प्रबन्धकों का ही दोष है,’’ उनमें से एक ने कहा। ‘‘उससे तुम क्या उम्मीद कर सकते हो, उस बेचारी को तो कोई तजुर्बा नहीं था-सीधी स्कूल की बेंच छोड़कर आ रही थी। उसके लिए जरूरी यह है कि पहले किसी ब्रिगेड में काम करे।’’

नीना ने भाँप लिया, ‘‘ये लोग मेरे ही बारे में चर्चा कर रहे हैं,’’ और यकायक उसे यहाँ के सारे वातावरण से ऐसी विरक्ति अनुभव हुई कि वह उल्टे पैरों लौट गयी, उसने निश्चय कर लिया कि सारे दिन अपने दफ्तर में ही रहेगी।

पिछले दिन के मुकाबले आज मौसम ज्यादा गर्म था और बड़ी उमस थी। दमघोंटू वायुमण्डल में बारीक, गर्म धूप निश्चय भाव से लटक रही थी। महीन पोशाक पहने और सिर से रूमाल बाँधे लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी के नल से छिड़काव कर रही थीं। मोटर-लारियों के भोपुओं की आवाज मानो भरी गयी थी। कई ड्राइवरों ने अपनी कारों को ठण्डा रखने के लिए उनके ढकने ऊपर उठा दिये थे। मास्को में इतनी गर्मी कभी नहीं होती, इसलिए ऐसे वातावरण में नीना की तबियत और भी गिर गयी थी। यहाँ तक कि जब अखापकिन ने भी उसे देखकर सलाम नहीं किया, तो इसे स्वाभाविक ही मान लिया और जरा भी अपमान नहीं महसूस किया।

मेज के पास खाली बैठना भी निरर्थक लगने लगा और तबियत ऊबने लगी।

‘‘बाकी साइनबोर्ड कब तैयार हो जायेंगे?’’ कोई और बात न मिलने के कारण वह यही सवाल पूछ बैठी।

‘‘मेरा ख्याल है, कि और कोई चारा नहीं है,’’ नीना ने उदासीनता के साथ कहा।

तभी यकायक दरवाजा भड़ाक से खुल पड़ा और लीदा आफिस में घुस आयी-उसके कपोलों पर आँसुओं की धार बँधी हुई थी।

‘‘नीना वासिलीयेव्ना।’’ वह चीख उठी। ‘‘जल्दी आइये, नीना वासिलीयेव्ना।’’

‘‘क्या हुआ?’’

‘‘जल्दी चलिए, नीना वासिलीयेव्ना: एन्द्री अधर में लटक रहा है।’’

‘‘लटक रहा है?’’

‘‘हाँ, लटक रहा है। वह गिर पड़ा है और पेटी से बँधा लटक रहा है। और यह किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाय।’’

नीना उछल पड़ी और दफ्तर से बाहर भागी-एक कुर्सी से उसने ठोकर भी खायी। दूर कोने-कोने से कारीगर लोग दौड़े चले आ रहे थे, वे हाथ हिला-डुला रहे थे और चीख-पुकार मचा रहे थे।

एक सफेद एम्बुलेंस, जिसकी खिड़कियों पर रेशमी पर्दे पड़े थे, ऊबर-खाबड़ जगह पर उछलती-कूदती, लगातार भोंपू बजाती, चली आ रही थी-निर्माण-स्थल की लारियों, कंक्रीट-मिश्रण की मशीनों और क्रेनों के बीच वह बिल्कुल बेमौजूँ दिखायी दे रही थी।

नीना सीढ़ियों की तरफ दौड़ी और उसके पीछे-पीछे लीदा ऐसे फूट-फूटकर रो रही थी, जैसे देहात की लड़कियाँ रोती हैं। लेकिन यकायक मित्या की आवाज से नीना रुक गयी।

‘‘नीना वासिलीयेव्ना, दौड़िये मत,’’ उसने कहा। ‘‘सब कुशल-मंगल है। उसे प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र पहुँचाया जा चुका है।’’

कारीगरों की भीड़ प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र की खिड़कियों से अन्दर झाँकने का प्रयत्न कर रही थी। सफेद बालों वाली नर्स ने, जिसके हाथ भीगे थे, नीना को अन्दर आ जाने दिया।

प्रेत की तरह छायामात्र-सा अर्सेन्तियेव, खिड़की के पास चारपाई पर गीले चादर में लिपटा पड़ा था।

‘‘धूप लग गयी है,’’ नर्स ने कहा। ‘‘बहुत ज्यादा गर्मी है।’’

मूर्च्छा के कारण नीना स्टूल पर बैठ गयी। एम्बूलेंस का डाक्टर अन्दर आया, उसने छिद्रान्वेषी दृष्टि से सारा कमरा देखा और मुस्कुरा कर नर्स से बोला, ‘‘मरीज कौन है-यह या वह?’’ और जवाब का इंतजार किये बिना, वह अर्सेन्तियेव के पास बैठ गया और नब्ज देखने लगा।

‘‘तुम्हारे यहाँ का सुरक्षा-निरीक्षक ढीला-ढाला है,’’ उसने नर्स से कहा। ‘‘ऐसी गर्मी में लोगों को हैट पहना कर काम कराना चाहिए। आधे घण्टे में यह भला-चंगा हो जायेगा।’’

न जाने क्यों ये आखिरी शब्द उसने नीना की तरफ मुखातिब होकर कहे। फिर उसने नर्स को सलाम किया और चला गया।

‘‘नीना वासिलीयेव्ना, जाइये, अब आराम कीजिये,’’ नर्स ने सलाह दी। ‘‘तुम्हारी हालत खराब मालूम होती है।’’

‘‘आराम?’’ नीना ने अपने को झकझोर कर चेतन बनते हुए कहा। ‘‘मुझे इसी क्षण जाकर देखना चाहिए कि वहाँ हालत क्या है।’’

वह प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र से निकल कर भागी तो उसे ऐसा लगा कि उसकी सारी यौवन-शक्ति वापस लौट आयी है। दम मारे बिना वह सीढ़ियों पर चढ़ गयी।

‘‘इन लोगों से जिस तरह काम करने की आशा की जाती है, मैं उसी तरह इन्हें काम करने के लिए मजबूर करूँगी,’’ उसने उत्तेजनापूर्वक अपने आप से कहा। ‘‘प्रधान इंजीनियर मुझे झिड़क लें और कारीगर लोग मेरा मजाक बना लें, लेकिन में उनकी एक न सुनूँगी-रत्ती-भर भी नहीं... लोगों की जिन्दगी की रक्षा करना आसान काम नहीं है-एक दिन एन्द्री भी इसे मानेगा... या शायद वह न भी माने, लेकिन मैं फिर भी तिल भर पीछे नहीं हटूँगी,’’ और वह बिना रुके बराबर सीढ़ियों पर चढ़ते-चढ़ते बीसवीं मंजिल पर पहुँच गयी।

वहाँ पहुँच कर ही उसे अहसास हुआ कि वह क्या कर रही है। उसने साँस सम्भाली और पीछे से किसी के आने की आहट सुनी। वह लीदा थी।

‘‘कितनी तेजी से दौड़ती हो।’’ लीदा बोली। ‘‘मैं तुम्हें पकड़ ही नहीं पायी। धन्यवाद, नीना वासिलीयेव्ना।’’

‘‘धन्यवाद किसलिए?’’

‘‘एन्द्री के लिए,’’ और लीदा ने नीना को बाहों में भर लिया और उसके कन्धें में मुँह छिपा लिया।

‘‘मैं जानती थी,’’ नीना ने लीदा के कन्धे थपथपाते हुए अचेत भाव से सोचा ओर एक बार फिर उसे अहसास हुआ कि दुर्बलता और उदासीनता ने उसे धर दबोचा है।

‘‘पहले मैं उससे घबराती थी, उसके साथ अकेले मैं नहीं जाना चाहती थी,’’ लीदा ने जल्दी से कह डाला। ‘‘दूसरी लड़कियों ने मुझे डरा दिया था। लेकिन कल मेरे बर्दाश्त के बाहर हो गया और मैंने तय किया कि चाहे कुछ हो, उसके साथ फिल्म देखने जाऊँगी। मैं उसके लिए पागल हूँ। और वह कहता है कि जिस रात उसने हमारा साइबेरियाई नृत्य देखा था, उसी रात से वह मुझे प्यार करने लगा था। वह कितना बढ़िया है। मैं नहीं जानती कि अब क्या करूँ,’’ और वह नीना के कन्धे पर सिर रख कर फिर फूट पड़ी।

नीना के हृदय में, इस लड़की के प्रति मातृभाव और ईर्ष्या के भाव के बीच द्वन्द्व छिड़ गया। इन दोनों भावनाओं में किसकी विजय होगी, इस कल्पना से भयभीत सी वह रेलिंग पकड़े खड़ी रही और आँखें फाड़े शून्य में देखती रही।

ईर्ष्या ने जोर पकड़ा लेकिन तभी किसी की तेज पदचाप से तार से बनी सीढ़ी झनझना उठी और शीघ्र ही मित्या ने प्रवेश किया।

‘‘इंजीनियर वापस आ गया है, नीना वासिलीयेव्ना,’’ उसने कहा।

‘‘कौन-सा इंजीनियर?’’ नीना ने आश्यर्च से पूछा।

‘‘वही जो अस्पताल में था।’’

‘‘तो अब मेरी सारी मुसीबतों का खात्मा हो जायगा,’’ नीना ने कहा, लेकिन ये शब्द उसकी चेतना का न बेध सके। ‘‘तो अब मेरी सारी मुसीबतों का अन्त हो जाएगा,’’ उसे फिर स्पष्ट रूप से दुहराया। ‘‘अब मैं सच्चा काम चुन सकूँगी।’’

लेकिन उसे यह समझकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि जिस बात की प्रतीक्षा वह बहुत दिनों से कर रही थी, उसी के आज पूरी होने की सम्भावना से उसमें कोई उल्लास नहीं पैदा हुआ। मित्या, एन्द्री, न्यूरा और लीदा की चिन्ता से उसका हृदय भर गया था, और उसे महसूस हुआ कि इन लापरवाह आदमियों के जीवन की सुरक्षा का भार किसी और को सौंपना असम्भव है।

‘‘तुझे शर्म नहीं आती?’’ उसने रोषपूर्वक अपने से कहा। ‘‘पिछलें सप्ताहों से तू इसी बात की प्रतीक्षा कर रही थी और अब पीछे हट रही है। अब तुम बच्ची नहीं हो, नीना वासिलीयेव्ना।’’

‘‘तुम क्या सोच रही हो,’’ लीदा ने पूछा।

‘‘कुछ नहीं, लीदा प्यारी। अब मैं दूसरे काम पर जाऊँगी, इसलिए अब तुम्हें देखना होगा...’’

‘‘तुम्हारा मतलब है, तुम हम लोगों को छोड़ कर चली जाओगी?’’

‘‘नहीं। लेकिन जिस इंजीनियर की जगह मैं काम कर रही थी, वह वापस आ गया है। वह बूढ़ा आदमी है और उसे बड़ा तजुर्बा है। मेरी तरह, सीधा स्कूल से नहीं आया है। लेकिन वह इतना चढ़कर कभी ही यहाँ आएगा, इसलिए लीदा, मैं तुमसे वचन चाहती हूँ कि तुम इन लड़कों की देखभाल रखोगी। ध्यान रखना कि जब गर्मी हो, तो ये लोग टोप पहने रहें। और तुम भी सावधान रहना। मसलन, तुम्हें रेलिंग पर झुकना नहीं चाहिए। और तुम्हें तारों पर भी पैर नहीं रखना चाहिए..क्या पता कब...’’

नीना ने अपने कपोलों से लीदा के बचे-खुचे आँसू पोंछ डाले और दफ्तर लौट गयी।

दफ्तर में उसने अपनी कुर्सी पर एक चिड़चिड़े बूढ़े को बैठे देखा जो अपने कोट पर काली साटिन की आस्तीनें पहने था। गुलदस्तावाला गिलास खिड़की के पत्थर पर रख दिया गया था। वह उन सभी कागजों को उलट-पुलट का देख रहा था, जिन पर उसकी गैर हाजिरी में दस्तखत किये गये थे। जब नीना ने प्रवेश किया तो उसने अपनी बुझी-बुझी आँखें उठायी और बड़ी आलोचनात्मक दृष्टि से उसका अध्ययन करने लगा।

जब मूल्यांकन कर चुका तो वह बड़ी कठिनाई से अपनी कुर्सी से उठा, उससे हाथ मिलाया और उसे अपना अपना नाम बताया।

‘‘लेकिन, नीना वासिलीयेव्ना, आपने ये प्रस्ताव सही फाइल में नहीं रखे हैं,’’ उसने कहा।

नीना उसे बताना चाहती थी कि निर्माण-स्थल की परिस्थिति बड़ी उलझ गयी है, यहाँ स्वयंसेवक सुरक्षा-निरीक्षक नियुक्त किये जाने चाहिए। यहाँ के मचानों के रस्से आदि बदलने की आवश्यकता है और अनेक साइनबोर्डों की जरूरत है। लेकिन यह सब कहने के बजाय, उसे खुद आश्चर्य हुआ कि वह यह कह बैठी:

‘‘मुझे यह काम छोड़ने से सख्त नफरत महसूस हो रही है।’’

‘‘तो कृपा कर मत छोड़िये,’’ गर्व से सिर उठाकर उस बूढ़े व्यक्ति ने कहा। ‘‘अगर आप प्रधान इंजीनियर को राजी कर सकती हैं कि इस पद पर वे आपको ही रखें, तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी-मैं दो बार दरखास्त भेज चुका हूँ कि मेरा टेक्निकल विभाग के लिए तबादला कर दिया जाय।’’

वे दोनों साथ-साथ प्रधान इंजीनियर से बात करने गये, लेकिन सेक्रेटरी ने बताया कि प्रधान इंजीनियर एक सम्मेलन में गये हैं और रात का आठ बजे से पहले नहीं लौटेंगे।

नीना ने घर टेलीफोन किया और कह दिया कि उसके लिए भोजन न रखा जाय, क्योंकि वह यहाँ दूसरी पाली में भी रहेगी।

नीना ने डिस्पैचर से कह दिया कि प्रधान इंजीनियर ज्यों ही वापस आयें, उसे लाउडस्पीकर से बुला लिया जाए ओर फिर वह बाईसवीं मंजिल पर चढ़ गयी।

‘‘पता नहीं, वे लोग मुझे इसी काम पर रखेंगे भी या नहीं,’’ झन-झन बोलती सीढ़ियों पर चढ़ने हुए वह यहीं सोचती जा रही थी। ‘‘अगर प्रधान इंजीनियर ने आपत्ति की, तो मैं बता दूँगी कि जब से मैंने काम सम्भाला है तब से एक भी असली दुर्घटना नहीं हुई है। अगर वे यह कहेंगे कि उनके पास यह शिकायतें आयी हैं कि मैं काम में रुकावट पैदा करती हूँ, तो मैं कह दूँगी कि यह सही नहीं है और खुद प्रधान इंजीनियर ने यह हिदायत दी थी कि मैं कारीगरों के साथ सख्ती बरतूँ। वे यह कह सकते हैं कि मैं नातजुर्बेकार हूँ, तो मैं जवाब दूँगी कि जब से यहाँ काम किया है, तबसे मैंने बहुत कुछ सीखा है, मैं कारीगरों को समझ गयी हूँ, मैं उनसे परिचित हो गयी हूँ और आगे मुझे काम करने में और भी आसानी होगी। और फिर मैं यह भी बता दूँगी कि अगर मुझे दूसरे काम पर भेजा गया तो मुझे हर समय अपने इन कारीगरों की चिन्ता बनी रहेगी-इनका ख्याल मैं कभी दिमाग से नहीं उतार सकूँगी।’’

और अकस्मात नीना को अपने ऊपर आश्चर्य भी हुआ कि जिस काम ने इतनी बदमजगी पैदा की, जो काम उसके प्यार के मार्ग में रोड़ा भी बना, उस पर वह क्यों टिकना चाहती है।

‘‘शायद यह अच्छा ही हुआ कि सब मामला खत्म हो गया,’’ इमारत की चोटी पर पहुँच कर उसने अपने आप से कहा।

यहाँ से उसे मास्को की रात का दृश्य भली-भाँति दिखायी दे रहा था। छोटी और बड़ी बत्तियाँ, दूर क्षितिज तक जगमगा रही थीं। ऐसा लगता था मानों सितारों भरा आसमान सारी पृथ्वी पर फैल गया हो और ज्यों-ज्यों वह गौर से देखती गयी उसने पुश्किन-चौराहे और रेलवे स्टेशनों के नक्षत्र-समूहों, ट्रालियों के तार से टूट कर गिरते हुए सितारों, संस्कृति और विश्राम उद्यान की आकाशगंगा, ऊँची-ऊँची इमारतों पर लगे लाल सितारे, क्रेमलिन पर लगे लाल नक्षत्र, आदी को स्पष्ट पहचान लिया।

विभिन्न रोशनियों के कारण क्षितिज नीले प्रकाश से आलोकित था। और धरातल का यह तारा-मण्डल अनन्त-सा प्रतीत हो रहा था।

घरों की खिड़कियों से आमंत्रण करने वाली रोशनियाँ नन्हें-नन्हें सितारों-सी चमक रही थीं और उन्हें देखकर नीना की अन्तर-दृष्टि के सामने सारा शहर घूम गया: संस्कृति और विश्राम उद्यान के फूलों के बगीचों में किनारे-किनारे पड़ी बैंचें, पुश्किन-चौराहे पर ‘‘हम शान्ति के समर्थक हैं’’ नामक फिल्म के विज्ञापन, कई मंजिल ऊँची खूबसूरत इमारतें जो कालीनों और फर्नीचर से सजी खड़ी हैं,-यह सारा नगर जो अपने नागरिकों के कल्याण की इतनी चिन्ता करता है। और यकायक उसने महसूस किया कि अभी कुछ खत्म नहीं हुआ है-उसके जीवन का सर्व श्रेष्ठ अध्याय तो अभी आगे है।

(1952)

  • सेर्गेइ अन्तोनोव की रूसी कहानियाँ, उपन्यास हिन्दी में
  • रूस की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां