नेकी कर, दरिया में डाल : उज़्बेक लोक-कथा
Neki Kar, Dariya Mein Daal : Uzbek Folk Tale
बहुत दिन हुए नूराता पहाड़ों की तलहटी में बसे एक शहर में, जिस का नाम आज की पीढ़ी को याद नहीं रहा, लोहारों की बस्ती में एक माहिर लोहार रहता था। लेकिन लोगों की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है, और अब अन्दाज लगाना भी मुश्किल है कि उस ग़रीब पर सुयोग्य आदमी का नाम क्या था ।
उस वर्ष भीषण सूखा पड़ा था। आम तौर पर गरमियों में पानी से भरी रहनेवाली नदी सूख चुकी थी। नहरें सूख गयी थीं । पेड़ों के पत्ते झड़ चुके थे । रेगिस्तान की निर्मम साँसों ने उस साल की फ़सल बरबाद कर दी थी। अकाल मुंह बाये खड़ा था ।
पर गरम से गरम हवा से भी बेकों (जमींदार, सामंत) और खानों के बाग़ों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा न ही सूखे की छाया फलों से लदे उनके पेड़ों और अंगूर की बेलों पर पड़ी। क्योंकि पहाड़ों की तलहटी में से जाड़े और गरमी में सदैव फूटते रहनेवाले चश्मों का पानी सूखता नहीं । वे बाग़ और चश्मे शहर के सबसे धनी, सबसे ज्यादा लोभी आदमियों की जायदादें थीं।
कड़ी गरमी के कारण तालाब सूख चुके थे और माँएं प्यास के मारे तड़प रहे बच्चों को छाती से चिपटाये शहर की तपती हुई गलियों में भटक रही थीं, बाग़ों के मालिक उनके दुःख और आँसुओं को बेपरवाही से देख रहे थे ।
असहाय औरतें निराश होकर रो रही थीं, चिल्ला-चिल्लाकर बच्चों के गले बैठ गये थे । लोगों के असंतोष की लहर शासक के ऊँची पहाड़ी पर बने महल तक पहुँचने लगी। लोग नगर के शासक के पास गये और उन्हें अपनी मुसीबतों से बचाने में उनकी सहायता करने का अनुरोध किया। लोगों ने कहा: “हमारे बच्चे मर रहे हैं। आपके पास शक्ति है, पानी है और दौलत भी - हमारी मदद कीजिये । "
पर उसने साफ़ इनकार कर दिया : " तुम्हारी तक़दीर में यही बदा है। अगर अल्लाह यह जुल्म सह रहा है, तो तुम नाशवानों को भी सहना चाहिए। जो शिकायत करेगा, वह काफ़िर होगा !"
शहर के लोग क्रोधित हो उठे। लोगों की भीड गलियों और मैदानों में मारी-मारी फिरने लगी। लोग चिल्लाने लगे : “कहाँ है पानी ?"
जनता में रोष बढ़ने लगा। पर धनवानों के बाग़ों की दीवारें ऊँची और अगम्य थीं । जनता के क्रोध का आवेग दीवारों के पत्थरों से टकराकर ठंडा पड़ गया। बहुत-से ताक़तवर और साहसी आदमी शासक के सैनिकों की तलवारों से मौत के घाट उतर गये । स्तेपी में दूर फेंकी गयी लाशों पर कौवों और गिद्धों के झुंड बहुत दिनों तक मंडराते रहे।
सारे शहर में मायूसी छा गयी, बाजार सुनसान हो गये, केवल तपती हवा गलियों में बहती रही ।
और लोहार, गुस्से में भरा, पहाड़ों में चला गया ।
लोहारखाने में सन्नाटा छा गया। लोहे पर हथौड़े की आवाजें गूँजनी बन्द हो गयीं, भट्टियों में आग ठंडी पड़ गयी ।
भटकते हुए लोहार को पहाड़ों में एक सफ़ेद दाढ़ीवाला गड़रिया मिला, जिसने उसे अपने यहाँ शरण दी । पत्थर के चूल्हे पर रूखा-सूखा खाना पक रहा था, इस बीच लोहार अपने दुःख के बारे में और घाटी के लोगों की दर्द भरी ज़िन्दगी के बारे में गड़रिये को बताने लगा । बूढ़ा चूल्हे की आग को ताकता हुआ सोचता रहा ।
फिर वह तनकर खड़ा हो गया, गुफ़ा की छत की ऊँचाई से चमक रही उसकी आंखों में खून उतर गया।
"मैं पानी का देवता हूं, उस नदी के उद्गमों का रक्षक हूँ, जो घाटी की जीवनदाता है। मैं जानता हूँ," वह बोला, “ किस तरह घाटी के लोगों को सुखी बनाया जा सकता है, मैं जानता हूँ, कैसे उनके हाथों में महाशक्ति दी जा सकती है। मैं तुम्हें नीचे घाटी में जाने की आज्ञा देता हूँ... गाँव और शहर के लोगों को इकट्ठा करो और उन्हें कुदालें लेकर यहाँ आने को कहो ।"
जब सूरज रेतीले मैदान के ऊपर आसमान पर चढ़ रहा था, लोहार तेज़ क़दमों से शहर की ऊँची मीनारों की ओर बढ़ता जा रहा था।
लोहार ने रास्तों, गाँवों, बाज़ारों के मैदानों, हमामों और मसजिदों के दरवाजों पर लोगों को आवाज़ें दे-देकर मुनादी की। हज़ारों आदमी पहाड़ों की ओर चल पड़े।
पानी के देवता ने उन्हें इकट्ठा करके कहा: “तुम्हारी मुसीबतों का कारण सूखा है। घाटी में बाँध बना दो। पानी का भंडार बना लो, फिर तुम्हें भीषण से भीषण सूखे में भी रेगिस्तान की गरम हवाओं से कोई खतरा नहीं रहेगा।
लोग फ़ौरन बाँध बनाने में जुट गये ।
उधर धनवानों और बाग़ों के मालिकों ने रेगिस्तान में रहनेवाले दुष्ट जादूगर अजरूब के पास अपना एक वफ़ादार आदमी यह सन्देश देकर भेजा : " ऐ ज़िन्दा और मरों के मालिक ! छोटे लोग आपकी ताक़त के खिलाफ़ पत्थरों का क़िला खड़ा कर रहे हैं। आप पहाड़ों पर उड़कर जायें और अपनी आंखों से देख लें।"
दुष्ट अजरूब पहाड़ों की ओर उड़ा। आसमान में ऊँचाई तक इतनी धूल और मिट्टी छा गयी कि तारे भी छिप गये।
गुस्से से पागल हुए अजरूब ने पहाड़ी घाटी में कुदालें चलानेवाले हजारों लोगों पर आग का तूफ़ान भेजा। बहुत-से लोग जल गये, बहुतों का दम घुट गया, लगता था कि घाटी में इकट्ठे हुए सारे लोग मर जायेंगे। पर पानी के देवता ने आग पर पहाड़ी झील का पानी छिड़क दिया और बर्फीले पानी से चट्टानें ठंडी हो गयीं, गरम हवा हमाम की हवा जैसी सुहानी हो गयी । क्रोध से काँपता हुआ अजरूब वहाँ से चला गया।
लोग फिर ज़मीन खोदने, चट्टानें तोड़ने, बांध बनाने लगे, पर उन पर एक और मुसीबत आनेवाली थी ।
धरती डोलकर काँपने लगी। छत की जंजीर से लटके दीये की तरह चाँद इधर-उधर डोलने लगा । धरती की छाती में से एक चीख निकली। पहाड़ों की चोटियाँ आपस में टकराकर पाताल में गिरने लगीं। चट्टानों का समूह तेजी से घाटी में नीचे की ओर लुढ़कने लगा ।
पर पानी के देवता ने हाथ के एक इशारे से बाँध बनानेवालों को पहाड़ों की ढलान पर ला खड़ा किया। और लोगों को गिरनेवाले पत्थरों से कोई नुकसान नहीं हुआ, बल्कि उनसे बाँध बनने में आसानी हो गयी।
अजरूब हार नहीं माननेवाला था । उसने सारे पहाड़ों और घाटियों के खूंख्वार शेरों, आग उगलनेवाले अजदहों, तेंदुओं, जंगली भेड़ियों, लकड़बग्धों, गीदड़ों, जहरीले साँपों, बिच्छुओं को इकट्ठा करके लोहार और उसके साथियों पर हमला कर दिया। अंधेरी रात में जब हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, जंगली जानवरों और कीड़ों की फ़ौजें खामोश छावनी पर टूट पड़ीं, जहाँ मिट्टी की झोंपड़ियों और तंबुओं में थके-हारे बाँध बनानेवाले सोये हुए थे। इस संकट और भगदड़ में लोहार घबराया नहीं । उसने जंगली आर्चा1 की रालदार डालों की सैकड़ों मशालें जलाने का हुक्म दिया। उनकी लाल-लाल लपटों से सारे जंगली जानवर और कीड़े डरकर भाग गये।
लोहार अपने लोगों के साथ मिलकर पाँच पोपलरों जितना ऊँचा बाँध बना रहा था । ऐसी पानी के देवता की आज्ञा थी। जिन शिलाखंडों को काट और तराशकर बाँध बनाया जा रहा था, उनमें से हर एक घर के बराबर था। और शिलाखंडों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए लोहार वहीं आस-पास के पहाड़ों से सीसा निकालकर और उसे पिघलाकर दरारों में भर रहा था ।
जादूगर चुप नहीं बैठा। वह समझ गया कि बाँध में बंधी नदी लोगों की सेवा करेगी, सूखी हुई धरती को खूब पानी देगी जिससे लोगों का हौसला बढ़ जायेगा और वे उसके क़ाबू से निकल जायेंगे ।
उसने बाँध बनानेवालों पर गरज के साथ बिजली गिरायी। पर लोहार और उसके साथी डटे रहे।
एक हजार दिनों तक लोग चट्टानें तोड़ते हुए नहर खोदते रहे ।
जादूगर ने खुदे हुए ग़ार में लोगों को कुचला, उनके सिरों के ऊपर पत्थर गिराये। जहरीले साँप उन्हें डसकर मारते रहे। पर रात-दिन लोहा ठोका-पीटा जाता रहा। लोग जब पहाड़ का सीना फोड़ते तो वह काँपकर कराह उठता ।
और अंततः खुशी का दिन भी आ गया।
बाँध में बँधी नदी शांत हो गयी। पानी पहाड़ी सुरंग में से होकर धीरे-धीरे नहर में बहने लगा और शीतल जल की धारा ने गरमी से तपी धरती की प्यास बुझा दी।
झुंझलाया अजरूब ऊँचे काले पहाड़ की चोटी पर बैठा गुस्से में दाँत पीसता रहा ।
लोग खुशी-खुशी शहर लौट रहे थे। उस दिन दावत हुई, नाच-गाने हुए। धनवान और बाग़ों के मालिक लोहार के आगे सिर झुकाने दौड़े-दौड़े आये। बड़े अभिमानी लोग लोहार के पाँव पड़कर जोर से कहने लगे "तुम महान हो !"
लोहार के हृदय में उनके प्रति दया जाग उठी। उसने उन्हें कोई सजा नहीं दी, बल्कि उन अभिमानियों को क्षमा कर दिया और अपने हाथों ही अपनी बरबादी के बीज बो दिये। वह ज्ञानियों की सीख भूल गया : 'दुश्मन मरा ही भला ।'
पर बाग़ों के मालिकों के दिल में घोर घृणा छुपी हुई थी। धनवानों ने लोहार को बरबाद कर डालने की क़सम खायी।
कई सालों तक अजरूब रेगिस्तान में निर्वासित-सा भटकता रहा और उसमें गौरैया जितनी ताक़त रह गयी ।
उधर बाग़ों के मालिकों और अमीरों ने दुष्ट जादूगर को चोरी से शहर बुलवाया। वे लोग उसके साथ षड्यंत्र रचते रहे। अजरूब दूर के एक देश चला गया और उसने वहाँ रहनेवाले असभ्य और खौफ़नाक घुड़सवार लुटेरे लोगों को इस शहर की सुख-समृद्धि के बारे में बताया।
उन लोगों ने लालच में आकर इस शहर के लिए कूच कर दिया। उन काले कौवों से लोगों की सेना ने शहर का घेरा डाल दिया। घेरा बहुत दिन तक चला। बड़ी घमासान लड़ाई हुई । बहादुर लोहार ने दुश्मनों के बादशाह के साथ हुए मरणांतक द्वन्द्व में उसे मार डाला । विजय द्वन्द्व युद्ध के नियमानुसार नगरवासियों की हुई। यही परम्परा थी ।
दुश्मन थककर कमज़ोर हो गया लड़ाकू घुड़सवार लुटेरों के हाथ ढीले हो गये। उन्होंने अपनी स्तेपी में लौट जाना चाहा ।
पर बेईमान अमीरों ने अपने एक सेवक के साथ असभ्य खानाबदोशों की छावनी में सन्देश भेजा :
"यहाँ से थोड़ी दूर एक बाँध है, जिससे शहर को पानी और जीवन मिलता है। बाँध पत्थरों और सीसे से बना है। और सीसे की दुश्मन आग है। "
हजारों घुड़सवार घाटी में दौड़ पड़े। उन्होंने लकड़ियाँ सूखी टहनियाँ और कंटीली झाड़ियाँ इकट्ठी कीं। आग की लपटें आसमान को छूने लगीं, गरमी से सीसा पिघल गया और पत्थर कोई सहारा न होने के कारण खिसककर नीचे बिखर गये। पानी की दीवार तेजी से घाटी में बढ़ने लगी, खेत और बाग़ डूब गये शहर बह गया, बहुत-से नगरवासी और दुश्मन के सारे सैनिक मारे गये। दुष्ट जादूगर अजरूब भी मारा गया।
बहुत थोड़े नगरवासी जिन्दा बच पाये, पर वे भी यह स्थान छोड़कर चले गये। उस समय से यह शहर खंडहर पड़ा है।
यह बिल्कुल सत्य घटना है, और अगर किसी को इसकी सचाई में संदेह हो, तो स्वयं उस घाटी में जाकर देख ले। वहाँ अब भी वे सीसे के अंशवाले पत्थर दिखाई देंगे, जिनसे लोहार ने बाँध बनाया था ।
1. आर्चा मध्य एशिया का नुकीले पत्तोंवाला एक सदाबहार पेड़ ।