नहले पे दहला : हरियाणवी लोक-कथा
Nehle Pe Dehla : Lok-Katha (Haryana)
सेठ घमंडी लाल, अपनी इकलौती पुत्री रत्नप्रभा का विवाह रचा रहे थे। वे मारवाड़ी थे तथा दिसावर करने, असम गए थे। वहाँ से अकूत धन कमा कर लौटे थे। मारवाड़ी थे तो बेटी के लिए मारवाड़ी दूल्हा ही ढूँढना था। अपने बराबर के रईस लाला माणिक चन्द, जो बीकानेर के नामी जौहरी थे, के बेटे गणेशी प्रसाद से सगाई कर घमंडीलाल निशचिंत हो गए थे कि अकेली बेटी को कभी किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। फिर भी बेटी का बाप था, दहेज के अलावा बरातियों के नखरे उठाने की तैयारी करके टेवा भेज दिया।
शुभ मुहूर्त में, बारात का आगमन हुआ। जनवासे में नाई, धोबी पॉलिश करने वाले से लेकर, मालिसिये तक का इन्तजाम किया। मोहन भोग सतपकवानी क्या-क्या नहीं परोसी थी, उसने बारातियों को? जी, उस जमाने में बारात तीन-तीन दिन रुकती थी। तीन दिन तक कलेवा भोजन रात्रि भोजन, केसर मिले दूध आदि अनगिने पकवानों से सराबोर कर दिया था, बारातियों को। आज बारात वापिस लौट रही थी। हर बाराती की जुबान पर घमंडीलाल की खातिरदारी के गुण टपक रहे थे। लोग कह रहे थे, बारातियों की ऐसी खातिरदारी हमारी याद में हजारों कोसों, मीलों तक नहीं हई होगी?
बारात आखिरी बार खाना खा रही थी। इसके बाद तो वापिसी रवानगी करनी थी। बारातियों को पहले दिन खाना, पत्तलों में परोसा गया था। दूसरे दिन पीतल की कलई दार थालियों में।
आज तो खाना ही पहले से बेहतर नहीं था, बल्कि परोसा भी चाँदी के बरतनों में गया था। चाँदी का थाल, चाँदी की कटोरियाँ, चाँदी के चम्मच, चाँदी के गिलास, सजे-सजाए बारातियों से भी चाँदी के बरतन ज्यादा चमक रहे थे।
हर कोई तारीफ के पुल बाँध रहा था। बारात खाना खाकर उठने लगी तो घमंडी लाल को अपने नाम के अनुरूप ही चुहल सूझी। हाथ जोड़कर विनम्रता की मूरत बन घमंडीलाल ने कहा, “सेठो! ये चाँदी के बरतन जिनमें आप ने खाना खाया है, मेरी ओर से आपको तुच्छ भेंट हैं। बारातियों की बाँछे खिल गई कि वाह! पाँच-पाँच बरतन चाँदी के हाथ लगे। सभी घमंडीलाल की जय बोल उठे।
इससे पहले कि बाराती बरतन समेटते उसके समधी माणिक चन्द उठ खड़े हुए और कहने लगे, वाह घमंडीलाल जी, ये कियां मखौल री बात करौ हो-झूठी पत्तल पर तो हक जमादार रा होवे है (अरे घमंडीलाल, क्या मजाक कर रहे हो, झूठी पत्तल पर तो जमादार का हक होता है) यह कह कर उन्होंने घमंडीलाल के जमादार घसीटाराम को बुलाकर चाँदी के सारे बरतन उठा लेजाने का हुक्म दे दिया।
बाराती तथा घमंडीलाल मूक दर्शक बने खड़े रहे और घसीटाराम सारे बरतन लेकर चलता बना।
(डॉ श्याम सखा)