नीला पक्षी (स्पेनिश कहानी) : रूबेन डारियो

Neela Pakshi (Spanish Story in Hindi) : Ruben Dario

पेरिस खुशनुमा है। फिर भी कितनी भयानक जगह है। प्लोमबीयर कैफे में आने-जानेवालों में चित्रकार, संगतराश, लेखक, कवि - हाँ, सभी प्राचीन हरे यश की इच्छा रखनेवाले - अच्छे और वीर लड़के- उनमें विनीत गार्सिन से अधिक प्यारा और कोई नहीं था; सदा लगभग उदासीन, एक अच्छा चिरायता पीनेवाला, स्वप्न देखनेवाला जो कभी भी मदहोश नहीं होता था और सच्चे बोहेमिया निवासी की तरह एक अच्छा दोषरहित रचना करनेवाला था ।

भावी डेलाक्रोक्स के चित्रों और खाकों के मध्य में, जो उस मैले-कुचैले कमरे की दीवारों को सजाते थे, जहाँ हम अपनी मनोरंजक सभाएँ करते थे, अधिक ढलाऊ लिखाई में हमारे नीले पक्षी की कविताएँ और पूरे छंद भी थे।

नीला पक्षी विनीत गार्सिन ही था। तुम नहीं जानते कि उसको इस नाम से क्यों बुलाया जाता था। ठीक है, यह नाम हमने ही उसे दिया था।

यह केवल चपलता नहीं थी । वह दुःख पीनेवाला था और जब हम उससे पूछते कि वह त्योरी चढ़ाकर छत की ओर क्यों देखता है, जब हम सब पागलों या मूर्ख बच्चों की तरह हँसते थे तो वह वस्तुतः कड़वी मुसकराहट के साथ उत्तर देता- 'क्योंकि मेरे सिर में नीला पक्षी है, और इसलिए... ।'

यह भी हुआ कि वसंत ऋतु के समय उसे देहात में जाने का बहुत शौक था । जंगलों की हवा उसके फेफड़ों के लिए लाभदायक थी, जैसाकि कवि हमें बताया करता था। जब वह अपने सैर-सपाटों से लौटता तो हमेशा बैंगनी फूलों के गुच्छे और साफ आकाश के नीचे पत्तों की खड़खड़ाहट में लिखे देहाती गीतों से भरे कागज के पुलिंदे लाया करता था। बैंगनी फूल पड़ोसी की लड़की नीनी के लिए होते थे, जो ताजा और गुलाबी गालों तथा गहरी नीली आँखोंवाली लड़की थी । कविताएँ हमारे लिए होतीं । हम उन्हें पढ़ते थे और सराहते थे। हम सब गार्सिन की प्रशंसा करते थे । वह अपार बुद्धिवाला है जो आगे चलकर चमकेगा । उसका भी समय आ गया। ओह, नीला पक्षी बहुत ऊँची उड़ान भरेगा! शाबाश,अच्छा यहाँ और चिरायता...!

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गार्सिन के सिद्धांत—

फूलों में, सुंदर घंटीनुमा नीला फूल
रत्नों में, नीला नीलम
आकाश और प्रेम अर्थात् नीनी की आँखें

और कवि प्राय: कहा करता - 'मैं सोचता हूँ कि मूढ़ता से उन्माद सदा अच्छा है।'

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कभी-कभी गार्सिन सामान्य से अधिक उदास हो जाता था।

वह सुखभोगी गाड़ियाँ, ढंग से कपड़े पहने आदमियों और सुंदर औरतों के प्रति उदासीन लंबी सड़कों पर घूमा करता था। जब जौहरी की दुकान के पास से गुजरता था तो मुसकराता था, परंतु जब वह पुस्तकों की दुकान पर आता तो खिड़की में रखी चीजों को उत्सुकता से देखता था । सुंदर पुस्तकों को देखकर वह कहा करता था कि निश्चय ही वह ईर्ष्यालु हो जाता था और त्योरी चढ़ाता था। अपने आपको इस भावना से छुड़ाने के लिए वह आकाश की ओर देखकर आह भरता था । उत्तेजित, हुआ— वह चिरायते के लिए ऑर्डर देता और कहता, 'हाँ, मेरे सिर में नीला पक्षी है जो स्वतंत्रता चाहता है । '

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कुछ लोग सोचते थे कि उसका दिमाग चूल से हट गया है।

एक मस्तिष्क विशेषज्ञ से जब परामर्श किया गया तो उसने बताया कि यह मामला एक विशेष उन्माद का था । रोग निदान परीक्षण ने संदेह के लिए कोई जगह नहीं छोड़ी।

निश्चित रूप से विनीत गार्सिन पागल था ।

एक दिन उसे उसके पिता का पत्र मिला। उसका पिता नोरमंडी में बजाज था, पत्र में कुछ ऐसा लिखा था—

"मैंने पेरिस में तुम्हारे पागल व्यवहार के बारे में सुना है। जब तक तुम ऐसा व्यवहार करते रहोगे, मुझसे एक पैसा भी नहीं ले पाओगे। आओ और मेरी पुस्तकों की दुकान में अपनी उन रचनाओं को रखो और जब तुम इनको जला चुको तो, तुम सुस्त पाजी, मुझसे पैसा ले सकते हो। "

यह पत्र प्लोमबीयर कैफे में पढ़ा गया।

“क्या तुम जाओगे?” “... क्या तुम नहीं जाओगे?" "क्या तुम सहमत होगे?" "क्या तुम इसपर कोई ध्यान दोगे? "

शाबाश, गार्सिन! उसने पत्र फाड़ दिया और खिड़की में झुककर जोर से हँसा; फिर कुछ छंदों की रचना की जो मुझे यदि ठीक तरह से याद है और इस प्रकार है-

सच है, बेकारी ने दबोच लिया मुझको
फिर भी बाँध न पाएगी मुझको भाग्य की रस्सी
जब तक बंद है मेरे मस्तिष्क के पिंजरे में
सुरक्षित है और है निर्भय मेरा नीला पक्षी !

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इसके बाद गार्सिन का चरित्र परिवर्तित हो गया । वह बातूनी हो गया, उसने स्वादिष्ट भोजन किया, नया कोट खरीदा, टर्जेट्स में कविता लिखना शुरू किया जिसका स्वाभाविक शीर्षक था - 'नीला पक्षी ।'

हर शाम को हमारी सभा में नई कृति का पाठ किया जाता था; यह अति उत्तम, विशिष्ट और आनंददायक होता था। इसमें नीले आकाश, ताजा दृश्य, कोरोट के चमत्कारी बुरुश की तरह देहात को मंत्रवश करना, फूलों के मध्य में दर्शाए हुए बच्चों के चेहरे, नीनी की गीली और बड़ी आँखें और इन सबमें जुड़ा हुआ वह, जिसे अच्छा परमात्मा भेजता है, सबसे ऊपर उड़ता हुआ नीला पक्षी जो जाने कब और कैसे कवि के सिर में घुसकर घोंसला बना लेता था और वहीं कैदी बन जाता था; इन सबका चित्रण उसकी कविता में मिलता था। जब नीला पक्षी उड़ना चाहता था तो अपने पंख फैलाता था और सिर की दीवारों के साथ टकराता था तो अपनी आँखें आकाश की ओर उठाता था, अपना माथा पकड़ता था और थोड़ा पानी मिलाकर चिरायता पीता था और सिगरेट का कश लगाता था । यह ही कविता थी । एक रात गार्सिन जोर से हँसता हुआ आया, परंतु फिर भी उदास था।

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उसका प्यारा पड़ोसी कब्रिस्तान ले जाया गया था ।

“मेरे पास तुम्हारे लिए सूचना है ! सूचना ! मेरी कविता का अंतिम मिसरा । नीनी की मृत्यु हो गई। वसंत आता है और नीनी डाली हैं! बैंगनी फूल देहात में रह सकते हैं । अब मेरी कविता के उपसंहार के लिए, मेरी कविताओं को पढ़ने के लिए, प्रकाशक एक पद भी कम नहीं करते। तुम्हें बहुत जल्दी जुदा होना पड़ेगा। समय का विधान है। उपसंहार का शीर्षक होना चाहिए - 'नीला पक्षी किस प्रकार नीले आकाश में उड़ गया।' ”

वसंत ऋतु का मध्य! वृक्षों पर फूल आ रहे हैं, बादल प्रात:काल लाल और सायंकाल पीला, नरम हवा पत्तों को हिलाती और तिनकों से बनी टोपियों में लगे फीतों को फड़फड़ाती हैं। गार्सिन देहात में नहीं आया। वह नया सूट पहनकर हमारे प्यारे फ्लोमबीयर कैफे में आता है - पीला और उदास हँसी हँसता मुसकराता हुआ ।

" मेरे मित्रो, मेरा आलिंगन करो, तुम सब मेरा आलिंगन करो, मुझे हार्दिक विदाई दो... नीला पक्षी उड़ान भरने जा रहा है...।"

और विनीत गार्सिन रोया तथा जोर से हाथ मलता हुआ चला गया।

हम सबने कहा- गार्सिन, फिजूलखर्च बेटा अपने पिता के पास नोरमंडी जा रहा है। काव्य की देवी, अलविदा, अलविदा गार्सिन ! हमारे कवि ने कपड़ा नापने का निश्चय कर लिया है! यह गिलास गार्सिन के नाम !

अगले दिन, प्लोमबीयर कैफे में आने-जानेवाले, जो उस मैले-कुचैले छोटे कमरे में शोर मचाते थे, पीले, भयभीत और दुःखी होकर गार्सिन के मकान में खड़े थे। वह खून के धब्बों से भरी चादर में अपनी चारपाई पर लेटा था; उसका सिर गोली से छितरा गया था । तकिए पर उसके मस्तिष्क के टुकड़े पड़े थे... भयानक !

जब हम सदमे से थोड़ा उभरे और अपने मित्र के शव पर रो रहे थे, हमें उसके पास से प्रसिद्ध कविता मिली; उसके अंतिम पृष्ठ पर उसने ये शब्द लिखे थे-

"आज वसंत के मध्य में मैंने अपने विनीत नीले पक्षी के लिए पिंजरे का दरवाजा खोल दिया है।"

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आह! गार्सिन, कितने आदमी तुम्हारी तरह दुःखी हैं!

(अनुवाद: भद्रसेन पुरी)

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