नीच दोस्त : कश्मीरी लोक-कथा
Neech Dost : Lok-Katha (Kashmir)
एक बार की बात है कि एक जगह एक बहुत बड़ा और अमीर राजा रहता था उसके एक ही बेटा था। जब उसका बेटा बड़ा हो गया तो उसने सोचा कि वह उसको एक सौदागर की हैसियत से दूर देशों में भेजे।
ताकि उसको दूसरे लोगों के बारे में दूसरी जगहों के बारे में दुनियाँ के बारे में कुछ जानकारी हासिल हो ताकि जब उसका राजगद्दी पर बैठने का समय आये तो वह राजा बनने पर अच्छी तरह से राज कर सके।
सो उसने उसको बहुत सारा पैसा दिया बहुत सारा सामान दिया और उससे कहा कि वह जहाँ चाहे जाये पर अपनी आँखें खुली रखे और जितना चाहे उतना पैसा कमा कर लाये।
सब तैयारी हो जाने पर राजकुमार जाने के लिये तैयार हुआ। वजीर का बेटा उसका बहुत अच्छा दोस्त था वह उसके साथ जा रहा था और बहुत सारे नौकर और घोड़े।
घूमते घामते वे सब समुद्र के किनारे एक जगह आ पहुँचे जहाँ एक जहाज़ अपना लंगर उठाने ही वाला था। वहाँ वे विदेश की यात्रा के लिये उस जहाज़ पर सवार हो लिये।
कुछ समय तक तो सब ठीकठाक रहा जब तक वे एक टापू के पास से गुजरे। वहाँ जहाज़ ने अपना लंगर डाल दिया। यहाँ वह कुछ घंटों के लिये रुकने वाला था सो राजकुमार अकेला ही बाहर टापू घूमने के लिये निकला क्योंकि उसके दोस्त वजीर के बेटे ने बीमार होने का बहाना करके बाहर जाने से मना कर दिया।
वजीर का बेटा बहुत ही नीच आदमी था। उसने राजकुमार को उकसाया कि वह टापू पर खूब लम्बा घूम कर आये और उधर जहाज़ के कप्तान और नाविकों को रिश्वत दी कि वे राजकुमार को वहाँ से बिना लिये ही चले जायें।
सो वह जहाज़ राजकुमार को लिये बिना ही वहाँ से चला गया। उसने कप्तान से गोल घूम कर वहीं चलने के लिये कहा जहाँ से वे चले थे। वहाँ उसने सब राजकुमार का सब सामान बेचा और राजा के पास लौट गया।
राजा ने पूछा — “अरे तुम बहुत जल्दी वापस आ गये। और राजकुमार कहाँ है?”
वजीर का बेटा बोला — “योर मैजेस्टी मुझे बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि राजकुमार तो मर गया। हुआ यों कि हम लोग एक टापू के पास से ठीक से जा रहे थे कि ज़ोर का एक तूफान आया और इतना बढ़ा कि उसने पूरे जहाज़ को अपनी चपेट में ले लिया। जहाज़ में जो कुछ भी था सब पानी में डूब गया। मैंने राजकुमार को बचाने की बहुत कोशिश की पर अफसोस मैं उनको नहीं बचा सका। मैं भी बड़ी मुश्किल से बच कर वहाँ से निकल सका।”
राजा ने जब यह सुना तो राजा तो दुख के सागर में डूब गया। वह अपने बेटे के लिये बहुत दिनों तक रोता रहा। इस समय में उसकी हालत पागलों जैसी हो गयी। वह न किसी की परवाह करता था और न कोई काम करता था। बस हमेशा अपने बेटे के लिये ही रोता रहता।
इस बीच राजकुमार के हालात अच्छे हुए। जैसे ही उसको अपने दोस्त की नीचता का पता चला तो उसने रात को ठहरने की जगह ढूँढनी शुरू कर दी। उसने एक साफ झरने के पास एक जगह ढूँढ ली जहाँ जा कर वह इस आशा में सोने के लिये लेट गया कि अगली सुबह उसके लिये कुछ अच्छा ले कर आयेगी।
जब वह सो रहा था तो झरने में से स्वर्ग की एक अप्सरा निकली जिसके साथ बहुत सारे सिपाही थे वहाँ आ कर वह खाना खाने बैठ गयी। जब वह खुद खाना खा चुकी तो वह राजकुमार के पास गयी और उसको कुछ खाना दिया।
राजकुमार ने उसका दिया वह खाना खाया और उसको बहुत बहुत धन्यवाद दिया क्योंकि जबसे वह जहाज़ से उतरा था उसने कुछ भी नहीं खाया था। खाना खा कर उसने उस अप्सरा से पूछा — “ओ सुन्दरी तुम कौन हो और कहाँ से आयी हो?”
सुन्दरी बोली — “जनाब मैं स्वर्ग से आयी एक अप्सरा हूँ। आप मुझे अपनी कहानी बतायें तो शायद मैं आपकी कुछ सहायता कर सकूँ।”
राजकुमार बोला — “सुन्दरी मैं एक राजकुमार हूँ। मैं अपने पिता की इच्छा से अनुभव और ज्ञान पाने के लिये इधर उधर घूम रहा हूँ ताकि मैं उनके बाद मैं अच्छी तरह से राज कर सकूँ। मैं बहुत सारा सामान ले कर जहाज़ में जा रहा था कि जहाज़ यहाँ कुछ घंटों के लिये रुका सो मैं इस टापू को देखने के लिये नीचे उतर आया। पर जब मैं जहाज़ के कप्तान के बताये समय पर जहाज़ पर चढ़ने के लिये पहुँचा तो वह जहाज़ वहाँ से जा चुका था। मुझे इसमें कोई शक नहीं है कि इस काम में मेरे दोस्त वजीर के बेटे का हाथ था जो मेरे साथ यात्रा कर रहा था।”
अप्सरा बोली — “ओह वह नीच आदमी। उसको अपनी इस नीचता का फल भुगतना पड़ेगा। जनाब आप इस समय सोइये मैं कल सुबह आपको आपके पिता के पास पहुँचा दूँगी। यह आदमी भी शायद लौट कर वहीं गया होगा। तब आप इसको आमने सामने बुरा भला कह सकते हैं।” इतना कह कर वह अपने सिपाहियों के साथ झरने में ही गायब हो गयी। राजकुमार सोने चला गया।
अगली सुबह वह फिर आयी। उसको जगा कर उसने उसको उसका नुकसान भरने के लिये कई कीमती जवाहरात दिये और उससे जाने के लिये कहा। उसकी बात मान कर वह बहुत सारे सिपाहियों को साथ ले कर चल दिया तो उसने अपने आपको अपने महल के रास्ते पर पाया।
राजा उस समय अपने सोने वाले कमरे में बैठा हुआ था। उसने उस कमरे की खिड़की से एक बहुत बड़ा जुलूस आता देखा तो सोचा “यह कौन आ रहा है।” उसने अपने दरबान को बुलाया और उसको यह देखने के लिये भेजा कि उसके महल की तरफ यह कौन आ रहा था।
उसने दरबान को कुछ मोती दिये और उससे कहा — “जाओ भाग कर जाओ और देखो कि यह कौन आ रहा है। कहीं ऐसा न हो कि यह कोई ताकतवर दुश्मन हम पर हमला करने आ रहा हो।”
जब वह वहाँ पहुँचा तो राजकुमार ने उससे कहा — “जाओ और वापस जा कर अपने राजा से कहो कि मैं उनका एक दोस्त हूँ और उनके बेटे के बारे में खबर देने आया हूँ। उसके बारे में मुझे कुछ अजीब खबरें मिली है।”
यह सुन कर राजा ने उसका अपने महल में बड़ी शानो शौकत के साथ स्वागत किया। उसने राजकुमार को आँखों में आँसू भर कर अपने राजकुमार के जहाज़ के डूब जाने की कहानी सुनायी। फिर उसने वजीर के बेटे को बुलाया ताकि वह उसको कहे को ठीक साबित कर सके।
यह सब सुन कर राजकुमार अपने आपको रोक न सका और बोला — “पिता जी आप अपने आँसू पोंछ लें। आपका बेटा वापस आ गया है। मैं ही हूँ आपका बेटा। हमारे जहाज़ को किसी तूफान ने नहीं डुबोया था। किसी लहर ने मुझे नहीं मारा। बल्कि मैं एक अकेले टापू पर जहाँ कोई नहीं रहता था भूखा मरने के लिये छोड़ दिया गया था।”
फिर उसने वजीर के बेटे की तरफ इशारा करते हुए कहा — “इस आदमी ने जहाज़ के कप्तान को रिश्वत दी कि वह मेरे बिना ही जहाज़ को ले जाये ताकि मेरे पीछे यह मेरा सब सामान बेच कर उसका सारा पैसा हड़प ले।”
राजा चिल्लाया — “ओ नीच आदमी।” फिर अपने आदमियों को उसको फाँसी का हुकुम सुनाते हुए कहा कि ऐसे लोगों को हमारे बीच रहने का कोई अधिकार नहीं है।”
राजा को अपना बेटा ज़िन्दा पा कर बहुत खुशी हुई। कुछ समय बाद राजा मर गया और फिर उसके बाद उसके बेटे ने सफलतापूर्व क राज किया।
(सुषमा गुप्ता)