नयी रोशनी (असमिया बाल कहानी) : अनन्तदेव शर्मा/অনন্তদেৱ শৰ্মা
Nayi Roshni (Assamese Baal Kahani in Hindi) : Anant Dev Sharma
माँ ने उसे कितना समझाया और पिता ने कितनी गालियाँ दीं, लेकिन इसका कुछ भी असर उस पर नहीं पड़ा। अमल को दुबारा स्कूल नहीं भेजा जा सका। उसकी इच्छा ही सब कुछ है। एक बार यदि उसने 'न' कह दिया तो उसके मुँह से 'हाँ' निकलना कतई संभव नहीं है। इसी दोष के कारण माँ और बाप ने उसे कई बार पीटा भी, फिर भी वह अपनी जिद पर हमेशा अड़ा रहा।
अमल हाईस्कूल की सातवीं कक्षा की परीक्षा में पास न हो सका। एक बार पास न हुआ तो क्या हुआ, परीक्षा में पास फेल तो होता ही है। फिर से अच्छी तरह पढ़ कर परीक्षा में बैठना चाहिए था लेकिन नहीं, वह अब और पढ़ने के लिए स्कूल नहीं जाएगा। किसी ने कुछ कहा तो चुप्पी साध लेता । इससे उसे हिला पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है। इस कारण उसके माता-पिता बड़े दुखी थे । उसे लेकर माँ-बाप ने कितने ही रंगीन सपने देखे थे, पर सभी बेकार गये। पिता का दुख, माँ के आँसू का उसके लिए कोई मतलब नहीं। माँ-बाप ने आखिर यही सोच लिया था कि अमल अब और नहीं पढ़ेगा। इस तरह उन्होंने अमल की पढ़ाई की आशा छोड़ भाग्य पर ही सभी कुछ समर्पित कर दिया था।
अमल के मन में भी बड़ा दुख था, जरूर। वह सोचता, मैंने तो अपनी पढ़ाई ठीक ही की थी, लेकिन मुझे याद ही नहीं रहता, क्यों पड़ोस का परमेश्वर एक बार जो पढ़ता है, वह उसे याद हो जाता है। मैं समझ गया, मेरे भाग्य में विद्या है ही नहीं। बेकार पढ़ते रहने से पिताजी का पैसा ही खर्च होगा। मेरे सभी साथी पास होकर अगली कक्षाओं में चले गये। अब शायद मुझसे वे बातें भी करना नहीं चाहेंगे। उनको शायद घमंड हो गया होगा। अब मुझे अपने से छोटे लड़कों के साथ पढ़ना होगा। नहीं, नहीं, अब और नहीं होगा। मैं और नहीं पढ़ेगा। यहाँ से कहीं भाग जाऊँगा। गाँव के लोग मुझे देख नहीं पायेंगे। वह यही सब सोच-सोच कर उदास-सा रहता था। भाग जाना तो वह चाहता है। पर इसे वह पूरा नहीं कर पाता । भाग जाने का साहस ही उसमें नहीं जुटता । माँ बाप को छोड़कर जाने की हिम्मत ही उसमें न होती। किसी अनजानी अनदेखी जगह जाकर वह कहाँ किस विपत्ति में फँसे इसका क्या भरोसा । अमल ने मन की सारी चिन्ताएँ छोड़कर, पिता के बताये रास्ते पर ही चलना तय किया ।
एक दिन की बात है कि अमल की बुआ का लड़का मदन बहुत दिनों बाद उनके घर आया। मदन भैया से शर्म के मारे वह दूर-दूर भागता फिरा । एक बार दोनों मिले, लेकिन आपस में बातें नहीं हुईं। मदन ने इस पर ध्यान नहीं दिया, कारण घर आने के बाद से ही मदन अपने मामा-मामी के साथ बातें करता रहा।
शाम को चाय नाश्ते के बाद अमल के पिता नवीन बरुवा और मदन की बैठक फिर लगी। दोनों अपने-अपने गाँवों के दोस्तों-मित्रों के तथा रिश्तेदारों के सुख दुख आदि की बातें करने लगे। पनबट्टे में पान-सुपारी लेकर अमल की माँ उनकी बातचीत में हिस्सा लेने लगीं। अमल के पढ़ने और सोने का कमरा उसके पिताजी के कमरे के पास ही था। एक कमरे में हो रही बातवीत दूसरे कमरे में आसानी से सुनी जा सकती थी। अमल भी हाथ-पैर धो, चाय-पानी कर अपने कमरे में आकर बैठा। अपने कमरे में बैठे-बैठे वह पिताजी के कमरे में हो रही बातचीत सुनने लगा ।
पिताजी और मदन की बातचीत चलती रही। मदन भी अपनी बातें कहने लगा। मदन ने इस बार बी० ए० किया है। अब एम० ए० पढ़ने की मन में साध है। कुछ दिन बाद ही जालुकवारी के गुवाहाटी विश्वविद्यालय में दाखिला होगा। सब इन्तजाम हो चुका है। पिताजी को मदन से कहते सुना, जो भी हो बेटे, अपनी कोशिश के बल पर आखिर तक तुमने एम० ए० कर ही लिया । एक दिन तुम बी० ए० भी पास कर लोगे, इसका मुझे पूरा विश्वास है। तुमने एम० ए० पास कर लिया यह सुनते ही मैं और तुम्हारी मामी कितने खुश हुए थे कि कह नहीं सकता। तुम्हारी मामी ने तो उस दिन मुहल्ले भर के लड़कों को चाय-नाश्ता करा दिया। अब बी० ए० करो ताकि तुम्हें लेकर हम भी गर्व कर सकें। मामाजी की इतनी बातें सुनने के बाद मदन ने कहा, 'मामाजी, मैं कभी किसी काम से निराश नहीं होता। लगातार कोशिश करते रहने से एक न एक दिन उसे फल मिलेगा ही। आप तो जानते ही हैं कि मैं बी० ए० में दो बार असफल रहा था। दूसरी बार की असफलता के बाद घर के सभी लोगों ने मेरे बी० ए० पास करने की आशा छोड़ दी थी । यहाँ तक कि पिताजी ने भी । मेरी दशा देखकर पास पड़ोस के लोग, दोस्त - रिश्तेदार सभी दुखी हुए थे। लेकिन मामाजी, इतना होने पर भी मेरा धीरज खोया नहीं था। मैंने अपने मन में इस बात की शपथ खाई थी कि मुझे किसी भी हालत में बी० ए० की परीक्षा पास करनी ही होगी, चाहे इसके लिए दस बार ही परीक्षा क्यों न देनी पड़े। कर्म का फल जो मिलता है, इसका प्रमाण मैं खुद बन गया । तीसरी बार ही सही, मैंने बी० ए० में सफलता हाँसिल कर ली। 'मामाजी, आज मैं आपको यह वचन देता हूँ कि मैं एम० ए० की परीक्षा भी पास कर लूँगा ।' मदन की बातें सुनकर मामाजी ने कहा, 'क्यों नहीं बेटे, जरूर पास करोगे - तुम्हारे पास जो साहस और मनोबल है। फिर कोशिश तो है ही। पढ़ने के लिए जो जरूरी गुण चाहिए, वे सभी तुम्हारे पास हैं । भगवान से प्रार्थना है कि तुम्हारे मन की मुराद पूरी करें।' इतना कह कर बरुवा प्रसन्नतापूर्वक हँस पड़े ।
दूसरे कमरे में बैठे हुए अमल ने सारी बातें सुनीं। उसने मन ही मन ठान लिया कि बात तो सभी सही है। मनोबल, साहस और कोशिश बिलकुल ठीक है ।
दूसरे दिन सवेरे चाय नाश्ते के बाद मदन अपनी मामा-मामी से विदा ले चला गया। बरुवा तथा बरुवानी के मुख पर हल्की मुस्कान उतर आई। भांजे ने बी० ए० पास तो किया ही है, एक दिन बी० ए० भी होकर रहेगा। इसी बात को लेकर उनके मन में आनन्द था । देखते-देखते दिन निकल आया। करीब नौ बजे होंगे। अमल के पिताजी ने नहा-धोकर दफ्तर जाने की तैयारी कर ली थी। माँ भी खाना पका चुकी थी । स्कूल छोड़ने के बाद से अमल खाना देर से खाता था। अपने पिताजी के दफ्तर चले जाने के बाद ही वह नहा धोकर खाना खाता था। लेकिन उस दिन पिताजी से पहले ही वह नहा-धोकर आ गया । इसी बीच पिताजी ने नहाने का काम खत्म किया। अमल ने आवाज दी, 'माँ, मेरे लिए भी खाना लगाओ। मैं भी अभी खाना खाऊँगा।' अमल की बातें सुनकर माँ चकित हुई और पूछा, 'क्यों आज तुम इतनी जल्दी खाना क्यों खाओगे। आज फिर तुम्हें क्या हुआ रे!' अमल ने कहा, 'कुछ नहीं, मैं अभी खाना खाऊँगा। मुझे भी खाना दो!' अमल ने पिता के पास हाँ बैठकर खाना खाया। उसके बाद स्कूल जाने वाले कपड़े सन्दूक से निकाल कर पहने। फिर हाथ में किताबें और कापियाँ लेकर बाहर आ माँ और पिताजी की ओर देखते हुए कहा, 'पिताजी, माँ मैं स्कूल जा रहा हूँ। देर हो गयी है, ऐसा लगता है।' इतना कहते हुए बड़ी तेजी से वह स्कूल की ओर चल पड़ा।
अमल का यह मानसिक परिवर्तन देखकर पहले तो माता-पिता कुछ चकित हुए, फिर स्कूल जाते अमल को देख दोनों ने मुस्करा दिया।
रास्ते पर चलते समय अमल ने अनुभव किया कि कच्ची धूप से आज यह रास्ता मानो अधिक प्रकाशमान बन गया है।
(अनुवाद : चित्र महंत)