नायक मिल गया; अब कहानी मिलनी है (कहानी) : रावुरी भारद्वाज

Nayak Mil Gaya; Ab Kahani Milni Hai (Telugu Story in Hindi) : Ravuri Bharadwaja

उसका नाम आनन्द है। उसका नाम आक्रोश है। उसका नाम भय है। उसका नाम मोह है। उसका नाम प्यास है। उसका नाम करुणा है। उसका नाम दुख है। उसका नाम चिन्ता है। उसका नाम प्रवचन है। उसका नाम मुसकान है । रहने दीजिए। इस प्रकार उसके कई नाम हैं । क्यों न हों ? उस परमात्मा के एक सहस्र नाम नहीं हैं क्या ? उन सभी नामों को हमने लिया है न ! तो उनमें से आधे या उसके आधे नाम मेरी कहानी के नायक को देने पर, आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। मेरी बात मानिए।

मेरी कहानी के नायक की किसी भगवान से तुलना करना मुझे बिलकुल पसन्द नहीं है। मेरा कहना बस इतना ही है कि अमुक भगवान के एक हजार नाम जिस प्रकार से हैं, उसी प्रकार से मेरे नायक के भी अनेक नाम हैं। ये सभी नाम मेरे दिये हुए नहीं हैं । वास्तव में ये नाम नहीं हैं, ये उसके गुण हैं। मान लीजिए उसका नाम 'आनन्द' है, तो आनन्द के पैदा होने के पच्चीस साल पहले ही आनन्द की माता का जन्म हुआ था। आनन्द की माँ-यह उसका उपाधि नाम है, असली नाम नहीं। उसका असली नाम 'कांचना' है।

आप उसे जानते नहीं हैं किन्तु कांचना सचमच कांचना ही है । उसका रंग एकदम सोने जैसा था । शरीर पर कहीं भी नोच ले तो वहाँ गड्ढा पड़ जाता और धीरे-धीरे रंग में मिल जाता। उसके बाल घुघराले नहीं थे। हंसते समय गड्ढे पड़ने योग्य गाल नहीं थे। चम-चम करने वाली आँखें नहीं थीं। चम्पक की कली के समान, पतली नोकदार उसकी नाक नहीं थी। फिर भी कांचना सुन्दर ही थी।

कांचना के सौन्दर्य को आप स्वयं देखना चाहते हैं? तो 'आक्रोश' के घर जाइए। बरामदे में लगी बड़ी तसवीर देखिए। उसमें दिखने वाला सौन्दर्य 'आर्त-नाद' की माँ का है। यह फोटो उसी का है। उसके बीमार पड़कर मर जाने के बाद उतारा गया था।

[सूचना-आनन्द का और आक्रोश का दूसरा नाम आर्तनाद है।]

कांचना के सौन्दर्य के बारे में मैंने कम-से-कम साठ-सत्तर पृष्ठ लिखना चाहे । मैं जानता हूँ कि यह कोई अनुचित कार्य नहीं, बल्कि आवश्यक है। फिर भी मैंने नहीं लिखे। इसका एक मात्र कारण यही है कि यह कहानी तो 'आक्रोश' की है, उसकी मां की नहीं।

साठ पृष्ठों तक वर्णन करने लायक सौन्दर्य ही न होता हो शायद कांचना का जीवन भी बिलकुल सीधा-सादा ही रह जाता। हाँ, एक बात और, उसके सौन्दर्य तथा मरज दोनों में निकट सम्बन्ध है।

"अरे ! तुमको देखते ही कोई भी, बस चुटकी भर में, अपने साथ उड़ाकर ले जायेगा।" कहा करते थे अड़ोस-पड़ोस के लोग । वह सच है ! क्योंकि कई लोग कांचना को अपने साथ उड़ा ले जाने के लिए तैयार बैठे थे। किन्तु कांचना तैयार नहीं थी। पर उसे इस कार्य के लिए प्रोत्साहित किया 'परिमल राव' ने।

देखते-देखते इस व्यक्ति ने पहले कांचना के हृदय को चुरा लिया। उसके बाद उसने बाकी सब कुछ चुरा लिया। चाहती तो कांचना इसे रोक सकती थी। रोकना तो दूर, उसी ने परिमल राव को स्वयं बढ़ावा दिया। किसी कारणवश वह न आ पाता तो कांचना स्वयं खबर करती थी। इस पर भी न आता तो कुछ पैसे भेज देती थी। कांचना को इसमें केवल आनन्द ही दिखाई दिया, 'अनीति' नहीं। तिसपर यह आनन्द भी ऐसा महान् जिसे वहन नहीं किया जा सकता । उसका प्रगाढ़ विश्वास था कि 'अनीति' से 'आनन्द' उत्पन्न नहीं होता और 'आनन्द' देने वाला 'अनीति' नहीं हो सकता।

उसके शरीर पर हाथ फेरते हुए एक बार कांचना से परिमल ने कहा, "तुम्हारा नाम कांचना है और मेरा परिमल ! जब तक हम दोनों शाश्वत रूप में एक नहीं हो जायेंगे तब तक सोने में सुगन्ध कैसे आयेगा" बस, कांचना इसके बाद आनन्द की सीमाओं के दूसरे किनारे तक पहुँच गयी। एक वर्ष बीत गया,सोना और सुगन्ध एक-दूसरे से बहुत अधिक मात्रा में घुल-मिल गये और आनन्द की सीमाओं तक विचरने लगे।

इसी दौरान 'मोह' ने सीमा पार कर ली। बहुत दिनों तक इसके बारे में कोई सन्देह तक नहीं हुआ। सन्देह पैदा होने के बाद चार-पांच महीने तक परिमल का आना-जाना जारी रहा । इसके बाद सन्देह, सन्देह न रहकर, सच बना । बस, इसके बाद परिमल का आना-जाना बन्द !

"तुमको न नीति है, न जाति । न पुण्य है न पाप । न न्याय है, न अन्याय ! तुम सब धोखेबाज हो, हत्यारे हो, चोर हो, बदमाश हो।" ऐसे शब्दों के साथ 'आग्रह' (कांचना के पिता) की जबान नाचने लगी। लेकिन उसके क्रोध के बारे में किसको क्या चिन्ता थी? जूता मारकर, उसकी जबान को निस्तेज कर दिया । वह अनाथ है, इसलिए उस पर जूता चलाया गया । लेकिन उसकी बातों में भी कुछ औचित्य है।

परिमल के न दिखाई पड़ने के बाद, 'अब कभी दिखाई न पड़ेगा', ऐसा निश्चय हो जाने के बाद, कांचना को बड़ा आश्चर्य हुआ। इसके बाद वह इसी के बारे में सोच-सोचकर दु:खी हुई । इसी दु:ख के दौरान उसे डॉक्टर के पास ले गये। "पैसे के बारे में मत सोचिए !" कांचना के पिता ने कहा। "मैं ये सारी बातें सुन रहा हूँ। मुझे मालूम है कि आप सब मिलकर मुझे मारने की कोशिश कर रहे हैं । षड्यन्त्र रचा जा रहा है और इस षड्यन्त्र का कारण भी मुझे मालूम है। कांचना के पिता के पास धन है । और वह धन डॉक्टर को चाहिए। उन चन्द पैसों के लिए डॉक्टर मुझे मारने के लिए तैयार हो गया है। मारना तो पाप है। पाप दरने वाले और प्रोत्साहित करने वाले दोनों को भी दण्ड मिलना चाहिए। लेकिन नहीं । हे भगवान ! मेरी हत्या करने पर ये लोग उतारू हो गये हैं ! ऐसा गला फाड़-फाड़कर चिल्लाने पर भी कोई सुन नहीं रहा । वह डॉक्टर मुझे काट-काट कर, टुकड़े-टुकड़े कर बाहर निकालना चाह रहा था। यह बात सुनकर कांचना के अलावा किसी और को दु:ख न हुआ।" दुःख ने कहा।

"ऐसी काँट-छाँट, सुना है हाल ही में हुई है। इस दौरान मां के प्राणों के भी लाले पड़े थे।" इसीलिए कांचना यह काम कराना नहीं चाहती थी।

"इसीलिए मुझे कांचना से भी नफरत है। शायद गोलियों से मुझे मारने का काम आसानी से हो जाता तो वह तैयार हो जाती। अपने प्राणों का कोई खतरा न होता तो शायद वह कांट-छाँट के लिए भी तैयार हो जाती। वह सम्भव नहीं है, इसीलिए उसने खूब रो-धोकर, हंगामा मचाया। वह रोना, कांचना के माता-पिता से देखा न गया और मुझे मारने की बात छोड़ दी गयी। हाँ, मेरे भी माँ बाप हैं । लेकिन फायदा क्या? परिमल ने मेरी माँ को धोखा दिया। मां ने मुझे मारकर अपने को दुनिया के सामने 'सुशीला' के रूप में रखने का प्रयत्न किया। आप सबको उसने धोखा देना चाहा"इन सब लोगों ने धन से अपने पापों को धो डालना चाहा । उनका सोचना तो ठीक ही था, लेकिन उनके पास इतना धन नहीं था कि वे सारे पापों को एकदम से धो डाल सकें। अगर वही होता तो आज यह कहानी ही नहीं होती।" चिन्ता ने कहा। उसके अन्दर आनन्द-आक्रोश, भय-निर्भय, मोह-लालसा, करुणा-क्रोध, चिन्तादुख, धोखा-हास ये सब क्यों हैं-इसकी जानकारी आगे मिल सकती है। ये सभी गुण उसमें एक-एक, दो-दो या झुण्ड के समान अन्दर-ही-अन्दर पैदा होते हैं, संचरित होते हैं । कभी-कभी ये सभी गुण एक साथ बाढ़ के समान बाहर आ जाते हैं । इन सभी गुणों की एक साथ उपस्थिति के कारण ही उसकी मानसिक स्थिति अजीब-सी लगती है। उसे सिरहाने से बहुत डर है। साइकिल पर चढ़ने के लिए भी वह डरता है। कान में तेल डालने से डरता है। मेंढकों से डरता है । कुत्तों से वह डरता है। मकड़ियों से डरता है। बिजली की कड़क से डरता है । सुई से भय, शूल से भय, यहाँ तक कि खिले हुए फूलों से, तिनकों से भी वह डरता है । भूख से और चीख-पुकार से डर है। दुनिया में हर किसी प्रकार की चीज से वह भय खाता है।

उसकी पसन्दगियाँ हैं-आराम से नाखूनों को दांतों से कुतरना, कान में माचिस की तीली घुमाना, हथेली में आधी चम्मच शहद डालकर जीभ से चाटना, आराम से जम्हाई लेना, रूई के बिस्तर पर सोना जैसी अनेक बातें हैं। उसे लम्बी, नाजुक, गोरी और दुबली-सी लड़कियों से घिन है। घडी से गुस्सा है। महीने में पहले हफ्ते से गुस्सा है। फूलों से नफरत है। लिपस्टिक लगायी गयी होंठों से गुस्सा है। मोटरकार के दरवाजे को बन्द करते समय आने वाली आवाज उसे पसन्द नहीं है। पालिश किये गये जूते अच्छे नहीं लगते । पान खाने वाले और ठहाका मारकर हँसने वालों से गुस्सा है। नोटों को गिनने और चूड़ियों के खनकने से आने वाली आवाज भी पसन्द नहीं है । बन्द किये गये खिड़कियों के दरवाजों से गुस्सा है। अंगठी लगाये उंगलियाँ उसे पसन्द नहीं हैं। खाट और उसकी आवाज, ब्रा और ब्लाउज इन सभी से नफरत है ...।

अब तक मैंने उसके बारे में इतनी-सी जानकारी प्राप्त की है। इन विषयों का आधार लेकर ऐसी एक कहानी को लिख लेना मेरे लिए कोई कठिन काम नहीं है। लेकिन एक अच्छी कहानी को जन्म देने के लिए कुछ और विशेष जानकारी चाहिए। जैसे वह परिमल क्यों लापता हो गया? अब कहाँ है ? कांचना के मरने की बात तो आक्रोश के बरामदे में टंगी तसवीर से स्पष्ट है। अपनी कथा के नायक के जन्म से लेकर, उसके मरने तक कांचना ने कैसा जीवन बिताया ? उसके माता-पिता उससे सहमत थे ? ऐसी बहुत सारी बातों के बारे में मुझे और जानकारी चाहिए । इन सबको पाने में कितना समय लगेगा, यह भी मैं बता नहीं सकता। उनके मिलने तक मैं कहानी लिखना शुरू नहीं करूंगा।

अपने आनन्द की पसन्दगियाँ, नापसन्दगियाँ उसके विचार और अनुभतियाँ इन सबके बारे में हम तो जानते ही हैं।

यही कहानी का नायक है।

इसे केन्द्र-बिन्दु मानकर, उसके चारों ओर मँडराने वाली कहानी कैसी होनी चाहिए, यही मैं सोच रहा हूँ। इस नायक के एकदम अनुकूल कहानी अगर आपको मिले तो मेरे पास भेजिए। वरन् कोई एक दिन मैं खुद आपको बताऊंगा। इन्तजार कीजिए।

(अनुवाद : डॉ. आर. सुमनलता)