नौकपौलिबा का त्याग : नागा लोक-कथा
Naukpauliba Ka Tyag : Naga Folktale
('आओ' नागा कथा)
एक बार की बात है, लोंगमितांग नामक स्थान पर नौकपौलिबा नामक एक जादूगर रहता था।
उसी समय में मैदानी क्षेत्र में एक व्यापारी और उसका पुत्र रहते थे जो नागा लोगों के साथ व्यापार में धोखाधड़ी करते थे। नागा लोग रूई बेचने उस क्षेत्र में जाते थे। वे दोनों व्यापारी नागा लोगों से रूई ले लेते तथा बदले में उन्हें गाय देते। नागा व्यक्ति प्रसन्नतापूर्वक गाय लेकर लौटते, किन्तु आधा रास्ता होने पर वह गाय कुत्ते का रूप धारण कर लेती और भाग जाती। वास्तव में वह गाय नहीं, व्यापारी का पुत्र होता था जो इच्छाधारी था, किसी भी समय कोई भी वेश बना सकता था।
उनकी करतूत की ख़बर नौकपौलिबा तक भी पहुँची और उसने उनकी धोखेबाज़ी के लिए उनको पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया।
नौकपौलिबा ने एक डलिया में पेड़ की पत्तियां लीं और उन्हें जादू से रूई बना दिया। वह रूई उसने व्यापारी को बेच दी, व्यापारी ने बदले में उसे गाय दी। किन्तु इस बार व्यापारी के साथ भी धोखा हुआ था, नौकपौलिबा के जाते ही रूई पुनः पत्तों में परिवर्तित हो गयी। दूसरी ओर गाय साम्भर बन कर भाग निकली। तब नौकपौलिबा ने लाल शिकारी कुत्ते का रूप धारण कर लिया और साम्भर का पीछा करने लगा। शत्रु से पीछा छुड़ाने के लिये साम्भर बना व्यापारी का पुत्र चावल के तीन दानों मे बदल गया। नौकपौलिबा भी तुरन्त फ़ाख़्ता बन गया और चावल खाने लगा किन्तु वह शीघ्रता से कार्य न कर सका। वह चावल के दो दाने ही खा पाया था कि तीसरा दाना बाज़ मे परिवर्तित हो गया और उस बाज़ ने फ़ाख़्ता को खा लिया।
इस प्रकार साहसी नौकपौलिबा की मृत्यु हुई, किन्तु उसका बलिदान व्यर्थ नहीं गया, क्योंकि वह चावल के दो दाने खा चुका था, अतः व्यापारी पुत्र की जादुई शक्ति अति क्षीण हो गयी और वह नागा लोगों को पुनः धोखा नहीं दे सका।
(सीमा रिज़वी)