नारी-विद्रोह : एरिस्टोफेंस

(यह एरिस्टोफेंस के एक पुरातन यूनानी नाटक का कथासार है। यह नाटक 400 ईसा पूर्व में लिखा और खेला गया था, ऐसी सूचना मिलती है। पर इसका आलेख पहली सदी ई. पू. में शायद फिर हस्तगत हुआ। इस नाटक का नाम है ‘लिसिस्त्राता’।)

एथेंस और स्पार्टा के राज्यों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। युद्ध की विनाश-लीला से सभी त्रस्त थे। एक बार युद्ध छिड़ जाने के बाद दोनों ही राज्यों की सेनाएँ उन्मत्त हो गयी थीं। दोनों ही राज्य शक्तिशाली थे। युद्ध के समाप्त होने के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे थे। दिन भर युद्ध होता। शाम होते ही दोनों पक्षों के योद्धा अपने शयनागारों में लौट जाते। प्रातः फिर युद्ध के लिए आ डटते। एथेंस नगर के न्यायाधीश की पत्नी लिसिस्त्राता युद्ध की विभीषिका और व्यर्थता को देख-समझकर बहुत खिन्न थी। उसने युद्ध रोकने का एक अभिनव उपाय सोचा। वह एक-एक एथेंसवासी योद्धा की पत्नी से मिली, और उनसे मन्त्रणा की। अन्त में योद्धाओं की पत्नियों ने अपने युद्धोन्मत्त पतियों को युद्ध से विरत करने के लिए एक अभिनव विद्रोह किया। उन्होंने रात को लौट-लौटकर आने वाले योद्धा पतियों के साथ रात को सोने से इनकार कर दिया। कोई पत्नी अपने पति के पास नहीं गयी। पत्नियों के इस विद्रोह से भयंकर स्थिति पैदा हो गयी। एथेंसवासी महिलाओं द्वारा युद्ध को रोकने के इस अभिनव प्रयास की सूचना स्पार्टा की महिलाओं तक पहुँची। उन्होंने भी विद्रोह का झण्डा उठा लिया। पतियों के पास जाने से उन्होंने भी इनकार कर दिया। तब दोनों राज्यों के योद्धाओं को होश आया। अपने घरों की इस विकट परिस्थिति का सामना करने के लिए उन्हें युद्ध बन्द करना पड़ा। और इस तरह एथेंस और स्पार्टा के बीच शान्ति कायम हुई।

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