नन्‍हीं आईडा के फूल (डैनिश कहानी) : हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन

Nanhin Ida Ke Phool (Danish Story in Hindi) : Hans Christian Andersen

नन्‍हीं आईडा ने घर पर आए एक युवक से कहा, 'हाय, मेरे सारे फूल मर गए। कल रात को वे इतने सुंदर दिख रहे थे, अब उनके सारे पत्ते मुरझा गए हैं। ऐसा क्यों होता है ?'

वह युवक सोफे पर बैठा था। आईडा उसे बहुत पसंद करती थी, क्योंकि वह बहुत अच्छी कहानियाँ जानता था। वह कैंची से काटकर कागज़ की सुंदर तसवीरें बनाता था। तसवीरों में फूल, दिल, छोटी नाचती औरतें, ऐसे किले जिनके दरवाज़े खुल सकते थे, सभी कुछ होता था। वह एक खुशमिजाज़ युवक था और छोटे बच्चों से प्यार करता था।

आईडा ने अपना मरते हुए फूलों का गुच्छा उसे दिखाते हुए फिर पूछा, “मेरे फूल आज इतने उदास क्‍यों लग रहे हैं?'

पल-भर को उन्हें देखकर वह बोला, 'मैं जानता हूँ कि इन्हें क्या हुआ है। ये सारी रात नाचते रहे हैं। इसीलिए इस वक्‍त इतने थके हुए लग रहे हैं और अपना सिर झुकाए हुए हैं।'
नन्‍हीं आईडा बोली, 'पर फूल नाच नहीं सकते।'

युवक छात्र ने जवाब दिया, 'ज़रूर नाच सकते है, जब अँधेरा उतरता है और हम बिस्तर पर जाकर सो जाते हैं, तब फूल खुशी से कूदने लगते हैं, वे तकरीबन हर रात खूब नाचते हैं।'

आईडा ने पूछा, 'क्या छोटे फूल भी उस नाच में भाग ले सकते हैं ?' वह यह जानने को बेचैन थी कि फूल अपने बच्चों को कैसे पालते हैं। 'ओह हाँ, छोटी डेज़ी और लिली को आने दिया जाता है।' छात्र ने मुस्कराकर कहा।
'सबसे सुंदर फूल कहाँ नाचते हैं ?'

'तुम राजा के गर्मियों वाले महल के पास के सुंदर बगीचे में जा चुकी हो। तुमने वहाँ हंसों को रोटी का चूरा खिलाया था। याद है न कि चूरा फेंकने पर वे कैसे तुम्हारी तरफ आते हैं वहीं पर एक बहुत बड़ा नाच होगा।' आईडा सोचती हुई बोली, 'मैं कल माँ के साथ वहाँ गई थी, पर वहाँ तो पेड़ों पर एक पत्ता भी नहीं था और न कहीं एक फूल था। गर्मियों में वहाँ बहुत फूल थे, वे अब कहाँ गए?!

'जैसे ही राजा और उनके दरबारी शहर जाते हैं, फूल किले में चले जाते हैं। वे वहाँ खुशी की जिंदगी जीते हैं। काश, तुम देख पातीं। दो सबसे सुंदर गुलाब सिंहासन पर बैठते हैं। वे राजा और रानी हैं । उनकी सेवा में बड़ी लाल लिली रहती है जो सिंहासन के पीछे सिर झुकाए खड़ी होती है। फिर सारे सुंदर फूल आ जाते हैं और नाच शुरू होता है। जामुनी रंग के फूल युवा नौसैनिक लगते हैं, वे नीले रंग के हायसिंथ और केसर के फूल के साथ नाचते हैं। ट्यूलिप और बड़ी पीली लिली उन बूढ़ी औरतों की तरह हैं, जो यह ध्यान रखती हैं कि सब संगीत के साथ नाचें और तमीज से रहें।'

“पर क्या फूलों को राजा के महल में नाचने की इजाजत है ?' बीच में ही रोककर आईडा ने पूछा।

युवक बोला, 'कोई जानता ही नहीं कि वे वहाँ हैं। राजा के न होने पर किले की रखवाली करने वाला चौकीदार कभी-कभी वहाँ आ जाता है। उसके पास एक बड़ा चाभियों का गुच्छा होता है जिसमें महल के हर दरवाज्ञे की चाभी होती है। फूलों को जैसे ही चाभी के गुच्छे की आवाज़ सुनाई देती है, वे छिप जाते हैं। रात के बूढ़े चौकीदार को उनकी खुशबू आती है, पर वे उसे कभी दिखाई नहीं देते।'

नन्‍हीं आईडा ताली बजाते हुए बोली, 'ओह, कितनी मजेदार बात है। अगर मैं वहाँ होती तो मुझे भी फूल नहीं दिखते ?'

छात्र बोला, “मेरे ख्याल से तो तुम्हें दिख जाते। अगली बार जब तुम बगीचे में जाओगी तो महल की खिड़की से अंदर झाँकना। तुम्हें शायद वे दिख जाएँगे। आज जब मैं वहाँ गया था तो एक लंबी पीली डैफोडिल को सोफे पर लेटा हुआ देखा था।'

'अच्छा, क्या वनस्पति के बगीचे के फूलों को नाच में जाने दिया जाता है? वे जाते कैसे हैं ? वहाँ से महल तक का रास्ता तो बहुत लंबा है।'

'ओह, वे जरूर जा सकते हैं !' छात्र बोला, 'जब फूल चाहें तो उड़ भी सकते हैं। तुमने तितलियाँ देखी हैं ना? क्या वे पीले, लाल और सफेद फूलों जैसी नहीं दिखती? वे भी वैसी ही थीं। वे फूल ही हैं जो अपनी टहनी से कूदकर पत्तियों के साथ उड़ना सीख गए हैं, जब उन्हें एक बार उड़ने का स्वाद मिल जाता है तो वे डाल पर वापस लौटना नहीं चाहते; उनकी छोटी पत्तियाँ उनके पंख बन जाते हैं।'

'क्या ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे यह पता चल सके कि वनस्पति के बगीचे से फूल महल में जाते हैं या नहीं ?' 'हाँ, अगली बार जब तुम वहाँ जाओगी, तब एक फूल को फुसफुसाकर बता देना कि रात को महल में बहुत बड़ा नाच है, फिर देखना क्या होता है। फूल कोई बात छिपा कर नहीं रख पाते हैं। एक से कहोगी तो वह दूसरों को बता देगा। जब रात आएगी तब सभी फूल उड़कर महल तक आ जाएँगे, जो प्रोफेसर बगीचे को संभालता है वह अचरज में पड़ जाएगा। क्योंकि सुबह जब वह सैर के लिए निकलेगा तो पूरे बगीचे में एक भी फूल नहीं होगा। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि फिर वह इस पर एक लेख लिखेगा।'

“जिस फूल को मैं बताऊँगी, वह दूसरे फूलों को कैसे बताएगा? मैंने कभी किसी फूल को बात करते नहीं देखा।' आईडा ने कहा।

“वे बिना बोले नाटक करते हैं। तुमने देखा होगा कि जब हवा चलती है तो सारे फूल सिर हिलाते हैं, साथ में उनके पत्ते भी हिलते हैं। वे इसी तरह बात करते हैं। हम जीभ से बात करते हैं और वे हिलडुल कर।' आईडा ने पूछा, ' क्या प्रोफेसर उनकी बात समझ लेते हैं ?' “जरूर समझ जाते हैं। एक दिन सुबह जब वे बगीचे में गए तो उन्होंने देखा कि एक बड़ा पीले पत्तों वाला बिच्छूबूटी का पौधा लाल रंग की कार्नेशन की तरफ अपने पत्ते हिलाकर कह रहा था, 'तुम इतनी सुंदर हो कि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।' प्रोफेसर को ऐसी बातचीत बिल्कुल पसंद नहीं है, इसलिए उन्होंने पौधे की उँगलियों पर--मतलब पत्तियों पर--हाथ मारा। पौधे ने उनकी उँगलियों को जला दिया, तब से प्रोफेसर बिच्छूबूटी के पौधे को छूने की हिम्मत नहीं करता।'

नन्‍हीं आईडा हँसने लगी, 'यह तो बड़ी मज़ेदार बात है।'

तभी कमरे में बूढ़े प्रोफेसर घुसे। उन्होंने बातचीत का आखिरी हिस्सा सुन लिया था। वे बोले, 'मुझे इसमें कुछ मज़ेदार नहीं लगता। ऐसी बिना मतलब की बातें बच्चों के लिए नुकसानदायक और बड़ों के लिए उबाने वाली होती हैं।'

बूढ़े प्रोफेसर को वह छात्र पसंद नहीं था क्योंकि वह कागज़ की तसवीरें काटता रहता था। उसने तभी एक तसवीर काटी थी जिसमें एक आदमी को फाँसी दी गई थी। वह अपना दिल पकड़े हुए था। उसे औरों का दिल चुराने की वजह से फाँसी की सज़ा हुई थी। अब वह युवक दूसरी तसवीर काट रहा था जिसमें झाड़ू पर सवार एक जादूगरनी अपनी नाक की नोक पर पति को लेकर जा रही थी।

आईडा को लगता था कि वह छात्र जो कुछ भी करता है, मज़ेदार होता है। फूलों के बारे में उसकी बातें आईडा को बहुत ठीक लगती थीं। उसे लगा, सचमुच उसके फूल नाचते-नाचते थक गए हैं। वह अपनी खिलौनों से भरी दराज तक गई जिसमें एक पलंग पर एक गुड़िया सो रही थी।

गुड़िया का नाम सोफी था। छोटी आईडा ने उसे उठाया और समझाया, 'आज रात को तुम एक अच्छी गुड़िया की तरह दराज़ में सो जाओ। मेरे फूल बीमार हैं, मैं उन्हें तुम्हारे पलंग पर सुला दूँगी जिससे वे ठीक हो जाएँगे।' गुड़िया ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसे अपने पलंग पर किसी और के सोने की बात से गुस्सा आ रहा था।

आईडा ने फूलों को पलंग पर रखा और उनके चारों तरफ पर्दा खींच दिया। उसने उनसे यह भी वायदा किया कि अगर वे ठीक से चुपचाप लेटेंगे तो वह उनके लिए एक प्याला चाय बना देगी। उन्हें तसल्ली दिलाते हुए वह बोली, “कल सुबह तक तुम ठीक हो जाओगे।” फिर पलंग के चारों तरफ पर्दा ठीक किया जिससे उनकी आँखों में सूरज की रोशनी न चुभे। पूरी शाम वह उस युवक की बताई बातों के बारे में हो सोचती रही। जब सोने का वक्‍त हुआ तो वह भागकर खिड़की तक गई। उसने पर्दे हटाए, फिर खिड़की में रखे माँ के फूलों के गमलों को देखने लगी। उसने धीरे से 'फुसफुसाकर हायसिंथ और ट्यूलिप से कहा, 'मैं जानती हूँ कि तुम आज रात को कहाँ जाने वाले हो । फूल ऐसे दिखा रहे थे कि जैसे उन्होंने कुछ सुना ही नहीं था। न उन्होंने एक पंखुड़ी हिलाई, न कोई पत्ती; पर नन्‍हीं आईडा ने जो सुना था उसे उस पर विश्वास था।

जब वह बिस्तर पर लेटी, तब भी जागती हुई यही सोचती रही कि 'जब सारे फूल महल में इकट्ठे होकर नाचेंगे तो कितने सुंदर लगेंगे। क्या पता मेरे फूल वहाँ जाएँगे भी या नहीं।' फिर वह सो गई।

रात में उसकी आँख खुल गई; वह फूलों और उस युवक को सपने में देख रही थी जिसके बारे में प्रोफेसर ने कहा था कि वह उसका दिमाग बकवास से भर रहा है। सोने वाले कमरे में बड़ी शांति थी। उसके माता-पिता के पलंग के पास वाली मेज पर छोटी बत्ती जल रही थी।

उसने धीरे से कहा, 'हे भगवान, मैं जानना चाहती हूँ कि मेरे फूल अब भी सोफी के पलंग पर लेटे हैं या नहीं।'

वह उठकर बैठ गई, फिर दरवाजे की तरफ देखा, वह खुला था; उसके 'फूल और खिलौने दूसरे कमरे में थे। वह सुनने की कोशिश करने लगी, कोई धीरे-धीरे प्यानो बजा रहा था। इतनी प्यारी धुन उसने पहले कभी नहीं सुनी थी।

वह सोचने लगी, 'अब सब फूल नाच रहे होंगे, मैं देखना चाहती हूँ ।' पर उसमें उठने की हिम्मत नहीं थी क्योंकि उसे यह डर था कि कहीं उसकी माँ जाग न जाए।
उसे लगा, काश, फूल वहीं आ जाते, पर वे नहीं आए। हाँ, संगीत चलता रहा।
आखिर वह पलंग से उठी, धीमे से दरवाज़े से बाहर निकली और बैठने वाले कमरे की तरफ देखा।

वहाँ बत्ती नहीं जल रही थी, पर फिर भी वह देख सकती थी क्योंकि चाँद की रोशनी खिड़की से आकर फर्श पर पड़ रही थी। वह इतनी तेज़ थी कि दिन जैसा लग रहा था। सारे ट्यूलिप और हायसिंथ दो लंबी कतारों में खड़े थे। खिड़की में रखे उनके गमले खाली पड़े थे, वे एक-दूसरे की पत्तियाँ पकड़कर बड़ी अच्छी तरह नाच रहे थे, और एक-दूसरे को ऐसे घुमा रहे थे जैसे बच्चे नाच रहे हों।

एक बड़ी पीली लिली प्यानो बजा रही थी। नन्‍हीं आईडा को याद आया कि उसने उसे गर्मियों में बगीचे में देखा था। तब उस छात्र ने कहा था, “देखो, यह पतली-दुबली लिली मिस लाइन जैसी दिखती है।' सब उसकी बातों पर हँस पड़े थे, पर अब नन्‍हीं आईडा को लग रहा था कि वह पतली पीली लिली सचमुच लकीर जैसी लग रही है। खासकर जब वह सीधी बैठी प्यानो बजा रही थी और धुन के साथ अपना सिर एक तरफ से दूसरी तरफ हिला रही थी।

किसी भी फूल ने आईडा को नहीं देखा था। अचानक बिच्छूबूटी का एक बड़ा पौधा उसके खिलौनों की मेज़ पर कूदा फिर सीधा गुड़िया के पलंग तक गया और पर्दे हटा दिए। बीमार फूल अभी वहीं पड़े थे, पर अब बीमार नहीं लग रहे थे। वे भी पलंग से कूद कर नाचना चाहते थे। छोटा-सा चीनी का आदमी जिसकी ठोडी थोड़ी टूटी थी, फूलों के आगे झुका, फिर वे सब ज़मीन पर कूद कर मज़े करने लगे।

डेनमार्क में एक उत्सव होता है जब बच्चों को टहनियों और चमकदार पत्तों का गुच्छा रिबन से बाँधकर दिया जाता है। उन टहनियों से कागज़ के फूल, छोटे खिलौने, खाने की गोलियाँ वगैरह बंधे होते हैं | पुराना रिवाज चला आ रहा है कि उस सोमवार को बच्चे इन गुच्छों से मारकर माता-पिता को जगाते हैं। ये गुच्छे बहुत सुंदर होते हैं और ज्यादातर बच्चे बाद में भी उन्हें सँभालकर रखते हैं। नन्‍हीं आईडा के गुलदस्ते भी उसके खिलौनों के बीच मेज़ पर पड़े थे। ठक्‌ ! और वे भी फर्श पर कूद पड़े । उनके रिबन उड़ रहे थे; वे सोच रहे थे कि वे भी फूलों में से एक हैं। एक मोम की सुंदर गुड़िया, जो प्रोफेसर जैसा चौड़े किनारों वाला हैट पहने थी, सबसे लंबी टहनी के साथ बँधी थी।

फिर वे गुलदस्ते पोलिश नाच नाचने लगे, क्योंकि ये फूलों से ज्यादा ताकतवर थे और अपने पैर फर्श पर पटक सकते थे। अचानक मोम की गुड़िया लंबी और बड़ी होने लगी, फिर कागज़ के फूलों पर चीखने लगी, 'बच्चों को क्या बकवास बताते हो! क्या बकवास है !'

वह गुड़िया प्रोफेसर जैसी दिखने लगी क्योंकि वैसा ही हैट पहने हुए थी। प्रोफेसर जैसा ही पीला रंग था और हर वक्‍त एक खीझ-भरा भाव था। जब रिबन गुड़िया की टाँगों पर मारने लगे तो बह फिर छोटी हो गई।

पूरा दृश्य इतना मज़ेदार था कि आईडा हँसे बिना नहीं रह सकी। वे गुलदस्ते नाचते जा रहे थे, प्रोफेसर को उनके साथ चलना पड़ रहा था। वो छोटा होने पर फिर से मोम की गुड़िया जैसा दिखने लगा था। उसे बिल्कुल आराम नहीं मिल रहा था। फूलों को उस पर तरस आ गया, फिर उन्होंने टहनी वाले गुलदस्ते से रुकने की विनती की।

जैसे ही वे रुके, दराज़ से खटखटाने की आवाज़ आई। वहाँ सोफी लेटी थी। चीनी के छोटे-से आदमी ने ध्यान से मेज़ के किनारे तक जाकर- झुककर, जितनी दराज़ खोज सकता था खोल दी। थोड़ी-सी ही खुली थी, उसमें से सिर निकालकर सोफी बोली, 'अच्छा, नाच हो रहा है, मुझे किसी ने क्यों नहीं बताया ?' चीनी के बने आदमी ने पूछा, 'क्या मेरे साथ नाचोगी ?' सोफी ने दराज के किनारे पर बैठकर कहा, 'हह, तुम तो टूटे हुए हो,' और उस बेचारे की तरफ पीठ कर ली। उसने सोचा था, फूलों में से कोई उससे नाचने को कहेगा, पर कोई नहीं आया। चीनी का आदमी अकेला ही नाचता रहा। वह बुरा नहीं नाचता था।

जब किसी फूल ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया तब सोफी अपने आप ही फर्श पर कूद पड़ी । वह गिर गई। सारे फूल दौड़े हुए आए और पूछने लगे चोट तो नहीं लगी। जो फूल रात को उसके पलंग पर सोए थे, वे उसका खास ध्यान रख रहे थे।

पर सोफी के चोट नहीं लगी थी। नन्‍हीं आईडा के फूलों ने पलंग पर सोने देने के लिए उसका धन्यवाद किया और कहा कि वे उसे प्यार करते हैं। फिर वे उसे फर्श पर बीचों-बीच ले गए जहाँ चाँदनी थी और उसके साथ नाचने लगे। बाकी के फूलों ने उसके चारों तरफ घेरा बना लिया। सोफी खुश हुई और फूलों से बोली कि वे उसका पलंग ले सकते हैं, हालाँकि उसे खुद दराज़ में सोना अच्छा नहीं लगता था।

फूलों ने जवाब दिया, 'धन्यवाद, तुम्हारी बड़ी कृपा है। पर हमारा जीवन छोटा होता है। कल हम मर जाएँगे। नन्‍हीं आईडा से कहना कि जहाँ उसने चिड़िया को दफनाया था वहीं हमें भी दबा दे। हम अगले साल फिर से पैदा होकर आएँगे और अब से भी ज्यादा सुंदर लगेंगे।'
गुड़िया चिल्लाई, “तुम्हें मरना नहीं चाहिए” और उसने उन्हें चूम लिया।

उसी वक्‍त खाने वाले कमरे का दरवाज़ा खुला और बहुत सुंदर-सुंदर फूल नाचते हुए अंदर आ गए। नन्‍हीं आईडा कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि वे कहाँ से आए थे, शायद राजा के महल के पास वाले बगीचे से आए थे।

सबसे पहले सोने के मुकुट पहने हुए दो गुलाब आए जो राजा-रानी थे। उनके पीछे कार्नेशन और लिली सिर झुकाए दूसरे फूलों को हाथ हिलाते हुए आ रहे थे। संगीत बज रहा था, बड़े-बड़े पॉपी? और पियोनी? के फूल, स्वीट पी की कलियों को ज़ोर-ज़ोर से फूँक मार रहे थे, उसके मुँह लाल हो गए थे। ब्लूबैल हिल रहे थे। ये एक अजीब तरह का आर्केस्ट्रा था। आखिर में बाकी फूल वायलेट, डेजी, लिली भी नाचते हुए आ गए। नाच खत्म होने पर उन्होंने एक-दूसरे को चूमा। पूरा दृश्य बहुत सुंदर लग रहा था।

फूलों ने एक-दूसरे से 'शुभरात्रि' कहा। नन्‍हीं आईडा भी वापस अपने पलंग पर लेटकर जो कुछ देखा था उसी के सपने देखती रही।

अगले दिन सुबह उठते ही वह सीधी भागकर गुड़िया के पलंग पर अपने फूलों को देखने गई कि वे वहाँ हैं भी या नहीं। वे वहीं थे पर अब मर चुके थे। गुड़िया दराज़ में ही थी और बहुत नींद में थी।

आईडा ने उससे पूछा, 'याद है, तुम्हें मुझे कुछ बताना है ?' सोफी ने एक शब्द भी नहीं कहा।

आईडा ने उसे डाँटते हुए कहा, 'तुम अच्छी गुड़िया नहीं हो। याद है रात को सारे फूल तुम्हारे साथ कैसे नाचे थे ?' फिर उसने एक कागज़ का डिब्बा निकाला जिसके ऊपर एक चिड़िया की सुंदर तसबवीर थी, और उसके अंदर फूल रख दिए।

“यह तुम्हारा सुंदर-सा ताबूत है,” वह बोली, “जब नारवे से मेरे भाई आएँगे तब मैं तुम्हें अच्छी तरह दफनाऊँगी, ताकि तुम अगली गर्मियों में सुंदर फूल बनकर आ सको।'

उसके नारवे वाले भाई बड़े ताकतवर लड़के थे। उनके नाम थे जोनस और अडोल्फ। उनके पिता ने उन्हें धनुष-बाण दिलवाए थे, जो दिखाने के लिए वे अपने साथ लाए थे।

आईडा ने उन्हें अपने बेचारे फूलों के बारे में बताया कि वे मर गए हैं और यह भी कि उन्हें दफनाना है। जुलूस-सा निकाला गया। सबसे आगे धनुष-बाण लिए लड़के थे, फिर सुंदर कागज़ का डिब्बा उठाए नन्‍हीं आईडा थी। बगीचे के कोने में उन्होंने एक कब्र खोदी । आईडा ने फूलों को चूमा और दफना दिया। जोनस और अडोल्फ ने कब्र पर एक तीर गाड़ दिया क्योंकि उनके पास बंदूक या तोप नहीं थी जो छोड़ते।

  • हैंस क्रिश्चियन एंडर्सन की डैनिश कहानियाँ हिन्दी में
  • डेनमार्क की कहानियां और लोक कथाएं
  • भारतीय भाषाओं तथा विदेशी भाषाओं की लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां