नांगा बैगा-नांगा बैगिन : आदिवासी लोक-कथा

Nanga Baiga-Nanga Baigin : Adivasi Lok-Katha

एक बार भगवान ने विचार किया कि मैंने इतनी सुंदर पृथ्वी बनाई है लेकिन उसमें कोई हलचल नहीं है। वह बहुत सूनी प्रतीत होती है। तब भगवान ने सोचा कि कोई ऐसा समझदार जीव बनाया जाए जिससे पृथ्वी सुंदर लगने लगे और रोचक हो जाए। बहुत सोचने-विचारने के बाद भगवान ने एक पुरुष बनाया और उसे पृथ्वी पर भेज दिया। वह पुरुष था नांगा बैगा। इस प्रकार प्रथम बैगा का जन्म हुआ। वह वस्त्रों से अनभिज्ञ था इसलिए वह निर्वस्त्र रहता था और इसीलिए आगे चलकर वह नांगा बैगा देव के रूप में पूज्य हुआ।

नांगा बैगा नदी के किनारे और सघन वन में विचरण करता। कुछ दिन बाद भगवान को याद आया कि उसने एक मनुष्य पृथ्वी पर भेजा था, देखा जाए कि वह क्या कर रहा है? भगवान ने जिज्ञासावश देखा तो उन्हें यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि नांगा बैगा उदास घूम रहा है। भगवान नांगा बैगा के पास पहुँचे और उससे उसकी उदासी का कारण पूछा।

‘आपने मुझे यहाँ भेज तो दिया है लेकिन यहाँ ऐसा कोई नहीं है जिससे मैं बातचीत कर सकूँ।’ नंगा बैगा ने भगवान को उलाहना दिया।

इस पर भगवान ने बहुत सोच-विचार कर एक स्त्री की रचना की और उसे पृथ्वी पर भेज दिया। वह स्त्री थी प्रथम बैगा स्त्री अर्थात् नांगा बैगिन। वह भी निर्वस्त्र थी। वह भी जंगल में विचरण करने लगी।

एक दिन अचानक नांगा बैगा ने नांगा वैगिन को देखा तो वह चौंक गया। नांगा बैगिन उसे कुछ-कुछ अपने जैसी ही लगी। बस थोड़ी शारीरिक संरचना भिन्न थी। इससे नांगा बैगा के मन में कौतूहल जागा। इसी प्रकार जब नांगा बैगिन की दृष्टि नांगा बैगा पर पड़ी तो वह भी चकित रह गई। उसके मन में भी जिज्ञासा ने जन्म लिया। अब तक नांगा बैगिन भी अकेली घूमती-भटकती उकता गई थी। दोनों एक-दूसरे के निकट पहुँचे। दोनों ने एक दूसरे से बारे में जानना चाहा। परस्पर चर्चा करने पर पता चला कि दोनों की एक ही कहानी थी। दोनों को भगवान ने बनाकर पृथ्वी पर भेजा था। दोनों साथ-साथ रहने लगे, साथ-साथ घूमने लगे।

कुछ दिन बाद भगवान ने सोचा कि देखा जाए कि नांगा बैगा और नांगा बैगन क्या कर रहे हैं और पृथ्वी पर कोई हलचल हो रही है या नहीं? भगवान ने जब पृथ्वी की ओर देखा तो उन्हें नांगा बैगा और नांगा बैगिन साथ-साथ घूमते तो दिखे किंतु पृथ्वी पर कोई हलचल नहीं दिखी। अब मात्र दो प्राणी कितनी हलचल मचा लेते? भगवान ने बहुत सोच-विचार किया और फिर एक मंत्र पढ़ा और पृथ्वी की ओर फूँक मारी। जैसे ही मंत्र नांगा बैगा और नांगा बैगिन के पास पहुँचा वैसे ही उन दोनों के मन में परस्पर एक-दूसरे के शारीरिक अंगों को छूकर जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।

‘हम दोनों एक जैसे दिखाई देते हैं फिर भी हमारे शरीर में कुछ भिन्नता है। मैं चाहता हूँ कि मैं तुम्हारे शरीर को छूकर देखूँ कि यह कैसी भिन्नता है।’ नांगा बैगा ने नांगा बैगिन से कहा।

‘मैं भी यही चाहती हूँ कि मैं तुम्हारे शरीर को छूकर देखूँ।’ नांगा बैगिन ने कहा। दोनों ने एक-दूसरे को छूना और जानना चाहा जिसके परिणामस्वरूप नागा संतति का जन्म हुआ।

कुछ समय बाद भगवान ने नांगा बैगा और नांगा बैगिन का हालचाल जानने के लिए पुन: पृथ्वी की ओर देखा। भगवान यह देखकर बहुत चकित रह गए कि बैगाओं के रूप में पृथ्वी पर मनुष्यों की संख्या बढ़ गई थी और पृथ्वी पर हलचल हो रही थी। पृथ्वी को पूर्ण करने, रोचक बनाने और सुंदर बनाने का भगवान का उद्देश्य इस प्रकार पूरा हो गया।

नांगा बैगा और नांगा बैगिन को बैगा संसार में पितृदेव और मातृदेवी का स्थान मिला। बैगा संतानों ने अपनी मातृदेवी और पितृ देवता की मूर्तियाँ बनाकर पूजा करना आरंभ किया। दोनों की मूर्तियों में वस्त्रों का अंकन नहीं किया गया किंतु दोनों के गले में कंठहार और ताबीज़नुमा माला बनाई गई तथा पैरों में लच्छे (आभूषण) बनाए गए। नंगा बैगा और नांगा वैगिन को यह सम्मान मिलना स्वाभाविक था क्योंकि उन्होंने इस पृथ्वी पर मनुष्यों का संसार बसाया और पृथ्वी को विशिष्टता प्रदान की।

(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)

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