नकटेले : आदिवासी लोक-कथा
Naktele : Adivasi Lok-Katha
गाँव में एक परिवार हँसी-ख़ुशी से रह रहा था। उस परिवार के सबसे छोटे बेटे का विवाह तय हुआ। घर में प्रसन्नता का वातावरण व्याप्त हो गया। सभी लोग बारात सजाकर दुल्हन लाने पहुँचे। शुभमुहूर्त पर विवाह संपन्न हुआ और दुल्हन की विदाई करा कर बाराती अपने गाँव लौट आए।
दुल्हन सुंदर थी किंतु उसका चाल-चलन ठीक नहीं था। वह गली-मोहल्ले के लड़कों के प्रति आकृष्ट होती रहती थी। लड़के ने अपनी पत्नी को समझाया कि वह अब विवाहित है अतः संयम से रहे किंतु उस नई बहू पर कोई असर नहीं हुआ। तब घर के बड़े-बूढ़ों ने समझाया लेकिन नई बहू तो मानो चिकना घड़ा थी। उस पर किसी की समझाइश का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता था।
जब बात बहुत बढ़ गई और गाँव भर में परिवार की बदनामी होने लगी तो पंचायत के सामने नई बहू को खड़ा किया गया।
‘अब तुम सुधर जाओ यह सब ठीक नहीं है।’ सरपंच ने कहा।
‘मैं तो वही करूँगी जो मुझे अच्छा लगेगा।’ नई बहू आँखें नचाती हुई बोली।
यह सुनकर उसके पति को उस पर बहुत क्रोध आया और उसने उसी समय अपनी पत्नी की नाक काट दी। इसके बाद नई बहू की अकल ठिकाने आ गई और वह सुधर गई।
इस घटना के बाद से सहरियों के इस परिवार से विकसित समुदाय नकटेले कहलाया।
(साभार : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं, संपादक : शरद सिंह)