नाग्यराय और हीमाल : कश्मीरी लोक-कथा
Nagrai Aur Heemal : Lok-Katha (Kashmir)
बहुत समय पहले एक ब्राह्मण कश्मीर में रहता था, जिसका नाम सोदराम था। उसके पास यदि कुछ था तो एक टूटी-फूटी झोंपड़ी और एक गुस्सैल स्वभाव की पत्नी। यह पत्नी उसे बहुत परेशान करती थी। वह तंग आ चुका था। इस कारण उसे अपने घर से कुछ ज्यादा लगाव भी न था। “परम-ईश्वर ने मेरे भाग्य में यही लिखा है तो मैं उनके सामने क्या असंतोष दिखाऊँ, मेरे भाग्य में यही लिखा है तो यही सही।” वह अपने आपसे यह कहता रहता था। परंतु उसकी पत्नी के तेवर बिगड़ते रहे और अपमान करना भी बढ़ता गया। कभी-कभी यदि वह कुछ कमा कर लाता तो वह झिड़कियाँ देती और हाथ भी उठाती। जब यह सब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो उसने घर छोड़कर जाने का निश्चय किया। इसलिए अगली सुबह उसने पत्नी से कहा, “मैंने सुना है कि कश्मीर के बाहर एक राजा गरीब लोगों को बहुत सा धन देता है। मैं भी जा रहा हूँ। मैं भी अपना भाग्य आजमाऊँगा।”
“ठीक है, चले जाओ। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।” पत्नी ने कहा।
ब्राह्मण ने यात्रा के लिए कुछ चीजें इकट्ठी कीं और निकल पड़ा। वह लगातार चलता रहा और कहीं पर भी नहीं रुका, जब तक कि वह एक जंगल के पास न पहुँचा। वहाँ उसे एक मीठे और शुद्ध पानी का सरोवर दिख गया। वह वहीं पर रुक गया। अपना सामान नीचे रखा, ताकि कुछ खाकर आराम कर ले। जब वह सो रहा था, तब सरोवर से एक छोटा सा साँप बाहर आया और उस झोले में घुस गया, जिसमें ब्राह्मण ने खाने-पीने का सामान रखा था। कुछ आवाज सी हुई और ब्राह्मण जाग गया। वह झोली खोलकर देखने लगा। जब उसने साँप देखा तो एकदम से झोली का मुँह बंद कर दिया और झोली को जोर से बाँध दिया।
तभी उसे खयाल आया कि क्यों न वह वापिस अपनी पत्नी के पास जाए और उसे यह झोली भेंट करे। सोचा कि वह यह बंद झोला जरूर खोलेगी और इसके खोलते ही साँप उसे डस लेगा और वह मर जाएगी, तब मुझे उस झगड़ालू पत्नी से छुटकारा मिलेगा। यह सोचते ही सोदराम घर की तरफ लौट पड़ा। घर पहुँचते ही उसने अपनी पत्नी से कहा, “ऐ मेरी प्रिये! मैं तुमसे दूर रह ही नहीं सकता। देखो, मैं लौट आया हूँ। और यह देखो, मैं तुम्हारे लिए क्या लाया हूँ।”
“खुद ही खोल के देख लो।”
पत्नी ने झोली पकड़ ली और उसके ऊपर लगी गाँठ खोलने लगी। “अरे नहीं, नहीं! यहाँ नहीं। ऊपर कमरे में जाकर देख लेंगे।” सोदराम ने कहा।
“हाँ-हाँ, वह भी है।”
“चलो!”
“चलो!”
जब वे दूसरे कमरे में पहुँच गए तो सोदराम ने कोई बहाना बनाया और कमरे से बाहर आ गया।
“तू देख, मैं अभी आया।”
ब्राह्मण ने बाहर से दरवाजा बंद किया और यह सोचकर खुश होता रहा कि उसे इस जल्लाद जैसी औरत से अब छुटकारा मिलेगा।
कमरे के अंदर उसकी पत्नी ने जैसे ही झोली की गाँठ खोली, वैसे ही एक साँप बाहर आ गया। उसने झोली एक तरफ फेंक दी और चिल्लाने लगी, “साँप! साँप!” वह कमरे से बाहर आने लगी, मगर दरवाजा बंद था।
“अरे! दरवाजा खोलिए!”
“हाँ-हाँ, खोलता हूँ।” मगर सोदराम ने दरवाजा नहीं खोला। तभी कमरे में एक प्रकाश सा उभरा। उस प्रकाश-पुंज के पीछे से एक आकृति सी दिखाई देने लगी। वहाँ अब साँप नहीं, एक सुंदर बालक था। उसे देखते ही ब्राह्मणी प्रसन्न हो गई। उसने अपने पति को बुलाया। मगर वह अंदर नहीं आया। वह यही सोचता रहा कि अंदर एक साँप है, जो उसे भी डस लेगा।
“देखिए तो कितना सुंदर बालक है। इस बार तो आप सच में ही कितनी अच्छी भेंट लेकर आए हैं। अब मैं आपसे कभी भी नाराज नहीं होऊँगी। अंदर तो आइए!”
पत्नी की ये बातें सुनकर सोदराम ने तुरंत दरवाजा खोल दिया और कमरे के अंदर आ गया। इतने सुंदर बालक को देखकर उसके सारे दु:ख जैसे छू-मंतर हो गए। उसने अपने बेटे और पत्नी को चूमा। दोनों पति-पत्नी प्रसन्न हो गए और अब सुख से रहने लगे।
ब्राह्मण का इस बालक के आते ही जैसे भाग्य खुल गया। वह एक धनी व्यक्ति बन गया। उसका हर तरफ सम्मान होने लगा। उसका बेटा जितना बड़ा होता जाता, उतना ही सुंदर होता जाता। सोदराम और उसकी पत्नी ने उस बालक का नाम ‘नाग्यराय’ रखा। चार वर्ष का बालक इतना बुद्धिमान था कि बड़ों-बड़ों को बहस में हरा देता था। हालाँकि उसको दूसरे बालकों की तरह पाठशाला नहीं भेजा गया, मगर वह फिर भी उन बच्चों से ज्यादा जानकार था। सभी भाषाएँ जानता था। ज्ञान की बातें कहता था। यह इसलिए, क्योंकि वह स्वर्गिक बालक था। उसमें असीम शक्तियाँ और गुण थे।
जब नाग्यराय युवा हुआ तो उसने एक दिन अपने पिता सोदराम से पूछा, “पिताजी, क्या यहाँ आसपास कोई पवित्र जलाशय है?”
“क्यों, किसलिए?”
“मैं एक पवित्र जलाशय में नहाना चाहता हूँ।”
“क्यों?”
“पिताजी, मेरी कई दिनों से क्या, बहुत समय से एक सरोवर में नहाने की इच्छा हो रही है। परंतु वह स्वच्छ होना चाहिए, नहीं तो मैं अशुद्ध हो जाऊँगा।”
सोदराम ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “यहाँ हमारे आस-पास तो ऐसा कोई जलाशय नहीं है, मगर राजा के बाग में एक पोखर है। उस बाग के चारों ओर एक ऊँची दीवार है। वहाँ जाना तो असंभव है।”
“आप मुझे दिखा दीजिए कि वह बाग कहाँ है?”
“नहीं, कभी नहीं। अगर राजा के सिपाही हमें देख लेंगे तो महाराज को खबर कर देंगे और वे हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे।”
“आप मुझे वहाँ ले चलिए। हमें कुछ नहीं होगा। आप तो जानते ही हैं कि मेरे पास दिव्य शक्तियाँ हैं, मैं कोई साधारण युवक नहीं।”
“मगर फिर भी हमें ध्यान रखना होगा।”
“आप मुझ पर विश्वास रखिए।”
“सो तो है।”
जब सोदराम राजा के बाग की ओर जाने के लिए मान गए तो वे दोनों राजा के महल की तरफ चल पड़े। नाग्यराय ने देखा कि कितनी ऊँची दीवारें हैं तो वह एक छिद्र ढूँढ़ने लगा। मगर दीवार में कोई छेद नहीं था।
आखिर उसे एक छोटा सा छिद्र दीवार के नीचे दिखा। वह प्रसन्न हो गया। उसने अपने आपको एक छोटे साँप में परिवर्तित किया और बाग के अंदर घुस गया। अंदर आकर जब उसने एक पवित्र, स्वच्छ पानी का पोखर देखा तो उसने अपना रूप बदला। एक सुंदर युवा के रूप में परिवर्तित होकर वह निर्मल जल के जलाशय में नहाने लगा। जब राजकुमारी ने, जो उस समय बाग में बैठी थी, पानी में छप-छप की आवाज सुनी तो उसने अपनी दासियों को यह देखने भेजा कि बाग में कोई घुस तो नहीं आया है। परंतु जब तक दासियाँ वहाँ पहुँचीं, नाग्यराय ने फिर से साँप का रूप धारण करके बाग से बाहर निकलने में सफलता पा ली थी।
कुछ दिनों बाद वह फिर से आया और वहाँ नहाने लगा। जब इस बार भी राजकुमारी ने छप-छप की आवाज सुनी तो वह गुस्सा होने लगी। राजकुमारी हीमाल ने अपनी दासियों से कहा, “कौन है यह, जो मेरे बाग में आकर मेरे ही ताल में नहाने की हिम्मत कर रहा है? देखकर आओ, और जो भी हो, उसे पकड़ कर ले आओ।” दासियाँ गईं, मगर इस बार भी वे नाग्यराय को देख न पाईं, क्योंकि वह निकल चुका था।
तीसरी बार जब नाग्यराय आया तो हिमाल वहीं ताल के आस-पास थी। जब उसने एक अति सुंदर युवक को ताल में नहाते देखा तो वह देखती रह गई। ऐसी सुंदरता तो साधारण मनुष्यों में होती नहीं। कौन हो सकता है? वह सोचने लगी। ऐसा और इतना सुंदर पुरुष उसने कभी नहीं देखा था। जब युवक ने अपने आपको एक साँप में परिवर्तित किया तो हिमाल ने अपनी एक दासी को कहा कि वह इसका पीछा करे और देखे कि यह कहाँ जाता है। जब कुछ देर बाद दासी लौटी तो उसने राजकुमारी से कहा कि बाहर निकलते ही उस सर्प ने वापिस युवक का रूप धारण किया और ब्राह्मण सोदराम के घर में गया। लगता है कि यह उसी ब्राह्मण का बेटा है।
राजकुमारी, हीमाल अपनी माँ के पास गई और कहने लगी कि उसे नाग्यराय के साथ विवाह की अनुमति दी जाए, क्योंकि उस जैसे रूपवान युवक के बिना वह और किसी से भी विवाह नहीं करेगी। मुझे उस युवक से प्रेम हो गया है।
रानी ने यह बात राजा को बताई। राजा अपनी बेटी के पास गए और कहा, “मेरी प्रिय पुत्री, तुम जिस भी राजकुमार के साथ विवाह करना चाहो करो। मैं सभी अच्छे-अच्छे राजकुमारों को यहाँ बुलाऊँगा। तुम जिसको भी चुनोगी, उसे तुम्हारा पति स्वीकार करूँगा।”
“नहीं पिताजी, मैंने इस ब्राह्मण के बेटे को देखा है। उसके रूप और गुणों के समान और कोई नहीं हो सकता।”
“तुम्हें मालूम भी है कि तुम क्या कह रही हो? वह ब्राह्मण सोदराम एक साधारण सा व्यक्ति है। मैं कैसे उसके साथ अपनी बेटी के रिश्ते के लिए उसके बेटे का हाथ माँगूँगा। कहाँ मैं और कहाँ वह। क्या कभी धरती और आकाश मिल सकते हैं। मैं तुम्हारे लिए दुनिया का सबसे सुंदर राजकुमार ढूँढ़ कर लाऊँगा।”
“नहीं पिताजी नहीं। इससे क्या फर्क पड़ता है कि वह गरीब है या अमीर। मैंने सोदराम के बेटे को ही अपना पति माना है। मैं अब किसी और को स्वीकार ही नहीं कर सकती। मुझे विवाह भी उसी से करना चाहिए, जिससे मैंने प्रेम किया है।”
राजा कुछ दिनों तक सोचते रहे और आखिर में उन्होंने अपनी बेटी की प्रसन्नता को ध्यान में रखते हुए सोदराम ब्राह्मण को बुलवाने की आज्ञा दी।
जब सोदराम ने राजा की आज्ञा सुनी तो चिंता में पड़ गया। वह सोचने लगा, ‘क्यों बुलाया होगा? क्या उनको पता चल गया होगा कि मेरा बेटा राजकुमारी के बाग में जाता है? क्या उनको यह तो नहीं पूछना है कि मैं एक साधारण सा ब्राह्मण था फिर धनवान कैसे हो गया? या कोई और बात है?’ वह सारी रात सो न सका।
सोदराम जब महाराज के सामने पहुँच गया तो राजा उसे देखकर सोचने लगा, ‘क्या इसी के बेटे के साथ मुझे अपनी बेटी का विवाह करना होगा? दूसरे राजा क्या कहेंगे? मेरे मंत्री क्या कहेंगे?’ परंतु उसने फिर हीमाल की बातों को ध्यान किया तो निश्चय किया कि अपनी बेटी की खुशी के लिए इससे बात करनी आवश्यक है। उन्होंने कहा, “ब्राह्मण महाराज! मैंने सुना है कि आपका बेटा गुणवान है और रूपवान भी, क्या आप उसे मेरी बेटी के साथ विवाह के लिए अनुमति देंगे?”
“महाराज! आप महान्, अति बुद्धिमान और ज्ञानी हैं। प्रजा के पालक हैं। मैं आपकी आज्ञाकारी प्रजा हूँ। आपने जो ठीक समझा, उसमें अवश्य ही हम सबका हित है। राजा और प्रजा सुखी रहें, मेरे लिए इससे अधिक शुभ क्या हो सकता है।”
“तो ठीक है, हम राजज्योतिषी से विवाह का मुहूर्त निकलवाते हैं।”
राजा के महल से निकलकर सोदराम घर की ओर चला, मगर वह प्रसन्न था और दु:खी भी। प्रसन्न इसलिए कि उसके बेटे का विवाह राजकुमारी के साथ होने जा रहा था और दु:खी इसलिए कि इतनी बड़ी शादी का खर्चा वह कैसे उठा पाएगा। जब वह घर पहुँचा तो उसने सारी बात अपने बेटे और पत्नी को बताई।
“पिताजी चिंता न कीजिए। आप महाराज के पास जाकर पूछ लीजिए कि क्या वे मुझे एक साधारण से दूल्हे के रूप में या फिर बाजे-गाजे के साथ देखना चाहते हैं। हमारी बारात कैसी होनी चाहिए। उनकी क्या इच्छा है?”
“अरे बेटे! यह कैसी बात कर दी तुमने। मैं धनवान जरूर हूँ, मगर एक राजा का क्या मुकाबला कर सकता हूँ।”
“पिताजी, आप चिंता न करिए। मेरे पास ऐसा खजाना है, जो हमारी सभी जरूरतें पूरी करेगा। आप निश्चिंत होकर उनसे पूछिए। हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि वे किस प्रकार की बारात चाहते हैं।”
अगले दिन सोदराम महाराज से मिला तो राजा प्रसन्न हुआ और कहा कि मैं चाहता हूँ कि बारात धूमधाम से आए। निश्चित दिवस पर एक बहुत बड़ी बारात राजा के महल में गई, जिसकी व्यवस्था नाग्यराय ने एक पत्र द्वारा की थी। नाग्यराय ने बारात के प्रस्थान से कुछ दिन पहले अपने पिता को एक पत्र दिया था। सोदराम वह पत्र लेकर एक ताल के पास गए। पत्र को ताल में फेंका तो वहाँ से तुरही और ढोल आदि की आवाजें सुनाई दीं। कुछ ही देर में घोड़े, हाथी, सोना, चाँदी, सिपाही ताल से बाहर निकल आए। एक बहुत बड़ी, सजीली बारात राजा के महल की तरफ चलने लगी।
जब बारात राजा के महल के नजदीक पहुँची तो राजा ने महल के छज्जे से एक लंबा जुलूस आता हुआ देखा। उन्होंने अपने मंत्री से पूछा, “क्या यह सोदराम के बेटे की बारात ही है या कोई बहुत बड़ा राजकुमार आ रहा है?”
“नहीं महाराज, यह सोदराम के बेटे की ही बारात है। वह देखिए!”
राजा बहुत ही प्रसन्न हुए। विवाह प्रसन्नतापूर्वक संपन्न हुआ। भव्य समापन के बाद राजा ने नाग्यराय को दरबार में आने को कहा और उसे दरबारियों को निर्देश देने का आग्रह किया। इसके पश्चात् महाराज ने नदी के किनारे पर नाग्यराय को एक अलग महल बनाने की अनुमति दी। नाग्यराय अपनी पत्नी हीमाल के साथ उस नए महल में रहने लगा।
नाग्यराय की जो नाग-पत्नियाँ सरोवर में रहती थीं, वे अपने पति के बहुत समय से न आने के कारण चिंतित रहती थीं। उन्होंने अपने पति को ढूँढ़ने और वापिस लाने के लिए योजना बनानी शुरू की। जब उन्हें यह मालूम चला कि उसने मनुष्य का रूप धारण करके हीमाल से विवाह किया है तो वे क्रुद्ध हुईं। उनमें से एक ने उसे वापिस लाने की जिम्मेदारी ली। उसने एक डायन का रूप धारण किया और नागयराय के महल की तरफ काँच के बरतन लेकर गई। उसने सोचा कि जब नाग्यराय इन काँच के बरतनों को देखेगा तो उसे नाग-पत्नियों की याद आ जाएगी। ये औरतें कई दिनों तक प्रतीक्षा करती रहीं, आखिर एक दिन उसने हीमाल से मिलने में सफलता पाई। उसने काँच के बरतन हीमाल को बेच दिए और फिर बाहर चली आईं। शाम को जब नाग्यराय आया तो उसको यह बरतन देखकर बहुत गुस्सा आया। उसने हीमाल से कहा कि वह तुरंत काँच के बरतनों को तोड़ दे। काँच के बरतन टुकड़े-टुकड़े हो गए। फिर उसने हीमाल से कहा, “देखो, कभी ऐसी दोखेबाज स्त्रियों से कुछ न खरीदना।”
जब पहली नागिन की चाल विफल हो गई तो दूसरी ने एक फूहड़ स्त्री का रूप धारण किया और हीमाल के पास चली आई। उस फूहड़ स्त्री ने हीमाल से कहा, ‘ऐ राजकुमारी! मेरा पति नाग्यराय मुझे छोड़कर चला गया है। कृपया मेरी सहायता करें।”
यह सुनकर हीमाल को गुस्सा आया, “क्या मैंने एक फूहड़ कमबख्त इनसान से शादी की है?”
“हाँ-हाँ!” फूहड़ स्त्री ने उत्तर दिया।
“मगर मुझे मेरा पति लौटा दीजिए, राजकुमारी! आपका क्या है, आपके लिए तो कई राजकुमार आएँगे, राजकुमारीजी! और...”
“हाँ-हाँ! आप उसकी परीक्षा ले लीजिए न।”
“परीक्षा?”
“हाँ, आप उसे पानी में उतरने को कहिए। यदि वह डूब गया तो वह मेरा पति है, एक फूहड़ औरत का फूहड़ पति, और यदि नहीं डूबा तो वह आपका?” यह कहकर वह चली गई।
जब शाम को नाग्यराय महल में आया तो हीमाल ने सारी कथा सुना दी।
“हिमाल, तुम्हें कौन बताता है यह सब?”
“एक स्त्री आई थी।”
“हिमाल, वह असली मनुष्य नहीं थी। वह कोई ऐसी स्त्री थी, जो रूप बदल कर आई थी। वह हमें अलग करना चाहती है। ऐसे लोगों पर विश्वास मत करो।”
“मैं नहीं करूँगी उन पर विश्वास, मगर आप पानी में उतरकर जल-परीक्षा दे दीजिए। फिर मैं निश्चिंत हो जाऊँगी।”
दोनों में बहुत देर तक बहस होती रही। नाग्यराय जानता था कि अगर वह सरोवर के पानी में उतर गया तो नागिनें उसे नीचे खींच लेंगी। लेकिन हीमाल की जिद्द के आगे उसकी एक न चली। वह उस सरोवर के पास पहुँचा, जिसके लिए नागिन ने, जो स्त्री बनकर आई थी, कहा था। हीमाल किनारे पर खड़ी-खड़ी देखने लगी। ज्यों ही नाग्यराय के पाँव जल में उतरे, अनेक साँपिनियों ने उसके पैरों को जकड़ लिया और नीचे उतारती गई। वह धीरे-धीरे नीचे जाता रहा। हीमाल यह देख रोने लगी। साँपिनियाँ नाग्यराय को बहुत नीचे तक ले गईं। अब कुछ नहीं हो सकता था। हीमाल अपने सुंदर, गुणी और देव-समान पति को खो बैठी।
रोते-रोते हीमाल अपने महल के पास पहुँच गई। वह सारा दिन नाग्यराय के बारे में सोचती रहती। उसे न सुख था न चैन। उसे सब कुछ बेकार और बेमतलब लगने लगा। आखिर उसने अपना महल भी छोड़ा और एक धर्मशाला बनवाई। वह अपना सारा धन नाग्यराय के नाम पर गरीब लोगों में बाँटती रहती। लोग हर रोज आते और उससे दान-दक्षिणा लेकर जाते।
धीरे-धीरे उसकी सारी धन-संपत्ति समाप्त हुई। एक दिन एक वृद्ध और उसकी बेटी उसके पास कुछ माँगने के लिए आए। हीमाल ने कहा, “अब मेरे पास धन नहीं बचा है, हाँ, यह सोने की ओखली और मूसल बचे रह गए हैं। इन्हें आप ले जाओ। उसके बाद मैं मर जाऊँगी। मैं अब जी कर भी क्या करूँगी।”
वह वृद्ध भिखारी और उसकी बेटी धर्मशाला में रुके थे और जब निकलने लगे तो वृद्ध ने हीमाल से कहा, “राजकुमारीजी! मैं और मेरी बेटी सदा ही इधर-उधर आते-जाते रहते हैं। कल जब हम जंगल के पास पहुँचे तो वहाँ एक साफ पानी का ताल देखकर रुक गए। हम ताल के पास ही एक पुराने वृक्ष के खोखले कुंड में सो गए। आधी रात के समय जब सब कुछ शांत था, तब कुछ आवाज हुई। हमने देखा कि ताल से एक राजा तथा उसकी फौज बाहर आई। अब तक मैं पूरी तरह जाग गया था। मैंने ध्यान से देखा। राजा बहुत ही सुंदर था और अपने सैनिकों का पूरा ध्यान रख रहा था। जैसे ही सभी ऊपर आए, वैसे ही सभी के लिए खाना परोसा गया। सबने रात का खाना खाया और उस दावत के बाद सभी सैनिक तथा कर्मचारी ताल के पास जाकर गायब हो गए, मगर राजा वहीं रहा। जब राजा ने देखा कि सभी जा चुके हैं तब उसने एक थाली में खाना परोसा और पुकारने लगा, “क्या कोई गरीब आदमी है यहाँ?” यह सुनकर हम आगे चले गए। राजा ने वह खाना हमें दिया और कहा, “मेरी उस प्रिय हीमाल के नाम!” इसके बाद वह वह भी ताल के पास पहुँच कर गायब हो गया।"
यह सब सुनकर हीमाल का जी घबराने लगा। वह सिहर उठी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह हँसे या रोए, क्योंकि वह जानती थी कि वह ताल के पास प्रकट हुआ राजा नाग्यराय ही था। उसने वृद्ध भिखारी से कहा कि क्या वह उसे उस ताल के पास ले जाने की कृपा करेगा। "क्यों नहीं!" वृद्ध भिखारी बोला, जिसे सोने की ओखली और मूसल हीमाल ने दे दिए थे।
वे तीनों जंगल की तरफ निकल पड़े और संध्या समय होते ही ताल के पास पहुँच गए। वे रात होने और ताल से प्रकट होने वाले लोगों की प्रतीक्षा करने लगे। वृद्ध भिखारी तथा उसकी बेटी को नींद आ गई, मगर हीमाल जागती रही। आधी रात के समय, जब सब शांत था, नाग्यराय, उसको खाना खिलाने वाले और उसके सैनिक प्रकट हो गए। सेवकों ने खाना परसोना शुरू किया। जब सब लोगों ने खाना खा लिया और वे वापिस ताल की तरफ चले गए, तब नाग्यराय एक थाली में खाना लेकर जंगल में चला और पुकारने लगा, "कोई गरीब है कहीं?"
जब हीमाल ने अपने नाग्यराय का सुंदर रूप, महान दिखने वाला राजा का व्यक्तित्व सामने पाया तो उससे रहा न गया, वह बोली, "ओ मेरे प्यारे नाग्यराय! मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती हूँ। मुझे क्षमा करो। आ जाओ और फिर से मेरे साथ रहो।"
नाग्यराय चौंक गया। समझ न पाया कि क्या हुआ, और कहा, "कौन हो तुम?"
"देखो मुझे, देखो! मुझे पहचानो! मैं तुम्हारी पत्नी हूँ।"
नाग्यराय ने उसे पहचाना, मगर वह जानता था कि ताल में चले जाने के बाद अब वह उसके साथ रह नहीं सकता, “साँपिनियाँ मुझे ऊपर नहीं आने देंगी। तुम जाओ, मैं मौका देखकर तुम्हारे पास लौट आऊँगा।"
"नहीं, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। अगर तुम नहीं आ सकते तो मुझे ही ताल के तल में, ताल-लोक में ले चलो।"
“ऐसा संभव नहीं है।"
बहुत देर तक बहस होती रही, उसके बाद नाग्यराय उसे अपने साथ ले जाने के लिए मान गया। मगर उसे कैसे ले जाए। इसलिए उसने हीमाल को एक कंकड़ के रूप में परिवर्तित किया और अपनी जेब में रख लिया।
ताल-लोक में पहुँचकर साँपनियाँ आईं और उसका स्वागत किया। नाग्यराय ने उनका स्वागत स्वीकार किया, परंतु उनके स्वभाव में कुछ बदलाव सा आ रहा था। जब नाग्यराय ने पूछा तो साँपनियों ने कहा कि उसके शरीर से मानव की बू आ रही है। नाग्यराय ने उन्हें बताया, हाँ उसके साथ एक मानव है, मगर वह उसे तभी प्रकट करेगा, जब वे उसे कोई कष्ट न पहुँचाने का वचन देंगी। सर्पिनियाँ मान गईं और तब नाग्यराय ने अपनी जेब से कंकड़ निकाला। कंकड़ हीमाल में परिवर्तित हुआ। जब सर्पिनियों ने एक सुंदर राजकुमारी देखी तो उनके मन में ईर्ष्या और द्वेष की भावना उत्पन्न हुई। उन्होंने एक साथ यह निर्णय लिया कि हीमाल से परिश्रम कराएँगे, उसे काम पर लगाएँगे। उसको कई काम दिए गए। उनमें से एक यह था कि उसे सर्पिनयों के बच्चों के लिए दूध उबालना होगा। हीमाल काम में जुट गई और उफ किए बिना सारे काम करती रही। वह हर दिन सर्पिनियों के बच्चों को दूध पिलाती। एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि दूध ज्यादा ठंडा नहीं हुआ था और जैसे ही उन साँपनियों के बच्चों ने वह गरम दूध पिया, वे मर गए। जब उन सर्पिनियों को मालूम चला कि हीमाल की गलती के कारण उनके बच्चे मर गए हैं तो उन सब ने मिलकर उसे डस लिया और वह मर गई। जैसे ही हीमाल की मृत्यु की बात नाग्यराय ने सुनी, वह दौड़ा-दौड़ा आया और शोक में डूब गया।
जब नाग्यराय थोड़ा सँभल गया तो उसने एक शय्या बनाई। उस शय्या पर हीमाल को लिटाया और ताल से बाहर आ गया। उसने उस शय्या को ताल के सामने वाले पेड़ पर रख दिया। वह हर रोज पानी से बाहर आता और हीमाल को शय्या पर देखकर फिर वापिस ताल में चला जाता। एक दिन सुबह-सुबह एक महात्माजी वहाँ से गुजरे। जब उसने पेड़ की टहनियों के बीच एक शय्या देखी तो वह कुछ सोचने लगे और फिर हीमाल के मृत शरीर को नीचे लाया। इतनी सुंदर और छोटी उम्र की स्त्री को किसी ने मारा है, यह बात महात्माजी समझ गए। महात्मा ने नारायण से प्रार्थना की। उसने प्रभु से कहा, "हे ईश्वर ! इस निर्दोष स्त्री को फिर से जीवित करो!" उसकी प्रार्थना स्वीकार हुई। हीमाल पुनः जीवित हुई। महात्मा प्रसन्न हुए और हीमाल से कहा, "चलो बेटी, तुम मेरे साथ चलो, मेरे परिवार में रहो।" महात्मा और हीमाल दूसरे गाँव की ओर चले गए।
जब नाग्यराय पेड़ पर रखी अपनी हीमाल को देखने आया तो उसे वहाँ न पाकर बहुत दु:खी हुआ। वह सोचने लगा, 'क्या कोई हीमाल का शव ले गया है या वह जीवित होकर चली गई।' वह भटकने लगा और वन में हीमाल को ढूँढ़ने लगा, मगर हीमाल का कहीं पता नहीं चला। ढूँढ़ते-ढूँढ़ते वह दूसरे गाँव पहुँचा और महात्मा के घर तक पहुँचा। वहाँ उसने हीमाल को सोते हुए पाया। उसने अपना रूप बदला। एक साँप में परिवर्तित होकर वह हीमाल के बिस्तर के पास कुंडली मारकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद जब महात्मा का बेटा आया और उसने हीमाल के पास एक साँप देखा तो उसने सोचा, यह कहीं इस स्त्री को डस न ले। उसने एकदम से एक तलवार उठाई और साँप के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इस शोर से हीमाल जाग गई। जब उसने देखा तो वह रोने लगी, "अरे यह तुमने क्या किया? हाय! तुमने मेरे पति को ही मार दिया। मेरे नाग्यराय की हत्या की!" उसी दिन दोपहर को चंदन की लकड़ी की चिता बनाई गई और मृत नाग्यराय को उस पर रखा गया। उसी समय हीमाल भी चिता पर चढ़ गई। “मैं अब जीकर क्या करूँगी। मैं भी इसी के साथ जल मरूँगी।" दोनों भस्म हो गए।
महात्मा यह सब देखकर बहुत ही दुःखी हुआ। वह चैन से सो न सका। वह रात भर जागता रहा। अगले दिन सुबह-सुबह वह उस स्थान पर गया, जहाँ हीमाल और नाग्यराय को जलाया गया था। उसने चिता के पास जाकर ठंडी राख उठाई और उस राख को लेकर एक पेड़ के नीचे बैठकर पश्चात्ताप करने लगा। दिनभर रोता रहा। जिस पेड़ के नीचे यह वृद्ध महात्मा बैठा था, उस पेड़ पर भाग्यवश शिव और पार्वती दो पक्षियों के रूप में बैठे हुए थे। उन्होंने वृद्ध पुरुष का रोना सुना और सोचा कि इसकी सहायता करें। शिव ने पार्वती से कहा, "देखो तो कितने कष्ट में है यह भला आदमी। इसे मालूम है कि चिता से प्राप्त इस भस्म में कितनी शक्ति है। अगर यह इस भस्म को किसी जलाशय में डालेगा तो ये दोनों फिर से जीवित हो उठेंगे।" वृद्ध पुरुष ने यह बात सुनी और चिता की राख को एक सरोवर में डाल दिया। जैसे ही भस्म पानी में गिरी, वैसे ही नाग्यराय और हीमाल जीवित हो उठे। पहले से भी सुन्दर!
उन्होंने यहीं आस-पास एक छोटा घर बनाया और उसमें रहने लगे। वृद्ध पुरुष, जो महात्मा पुरुष था, भी उनके साथ ही रहने लगा। वह उनके पिता के समान घर में रहने लगा और उन दोनों ने भी उसकी खूब सेवा की। उसके कारण ही उनको नया जन्म मिला था। वे उसकी सभी जरूरतों का पूरा-पूरा ध्यान रखते। एक दिन वह वृद्ध-पुरुष उन्हें आशीर्वाद देते-देते स्वर्ग सिधार गया। उसके बाद भी उसके आशीर्वाद के कारण वे दोनों उसी छोटे से घर में सुखी जीवन बिताते रहे।