नदियों की पूजा क्यों ? : असमिया लोक-कथा

Nadiyon Ki Pooja Kyon ? : Lok-Katha (Assam)

पुराने जमाने की बात है। एक गाँव में एक बूढ़ा दंपती रहा करता था। जब वे काफी बूढ़े हो गए, तो बूढी औरत ने अपने पति से कहा- “जब हम इस दुनिया से चले जाएँगे तो हमारे बच्चों को भोजन कैसे मिलेगा? इनके गुजारे के लिए हमें कुछ न कुछ व्यवस्था करनी चाहिए।” अपनी पत्नी की बात सुनकर बूढ़ा व्यक्ति लंबी यात्रा तय करके महान देवता कुबेर के पास गया। जब लौटा तो साथ में कुबेर के दिये हुए धान, दाल, सरसों और लौकी के बीज ले आया। कुछ दिन यात्रा की थकान मिटाने के बाद अपने साथ कुछ कलेवा लेकर पति खेती करने के इरादे से घर से निकल पड़ा। उसने सबसे पहले एक उपजाऊ जमीन देखी। फिर जमीन के चारों ओर सीमा तय करते हुए बाड़ा लगाया और वापस घर आया। अगले दिन बूढ़ा फावड़ा और कुल्हाड़ी लेकर जमीन पर गया। वहाँ उगी झाड़ी और जंगल को साफ किया। सूखे झार-पात को जलाकर खेती के लिए जमीन तैयार की। जमीन साफ होने के बाद उसने अपने इष्ट देवताओं को याद करते हुए जमीन की चारों दिशाओं में बारी-बारी से पूजा की। पूजा की क्रिया समाप्त करने के बाद उसने जमीन के चारों ओर फावड़े से बारी-बारी से प्रहार किया। कुछ समय बाद उसने पूरी जमीन को फावड़े से खोद डाला।

जब मिट्टी तैयार हो गई, बूढ़े व्यक्ति ने उसमें विभिन्न प्रकार के बीज लगाए। तब तक मेहनत के कारण वह थक चुका था। वह वापस घर जाकर आराम करने लगा। जैसे-जैसे समय बीतता गया, बूढ़े की खेती लहलहा उठी।

एक दिन बूढी ने अपने पति से कहा कि उसे खेती देखने जाना है। बूढ़े ने यह यह कहते हुए मना करना चाहा- “जमीन यहाँ से बहुत दूर है। चलते-चलते थक जाओगी। सड़क पर पानी नहीं है। यदि प्यास लगी तो मुश्किल में पड़ जाओगी।” लेकिन बूढ़ी अपनी जिद पकड़कर अड़ी रही। आखिरकार बूढ़े को उसे फसल दिखाने खेत में ले जाना ही पड़ा। दोनों चलने लगे। खेती के नजदीक पहुँचने पर बूढ़ी औरत को बहुत प्यास लगी-और उसने पति को पानी पिलाने को कहा। बूढ़ा उस पर क्रोधित होकर कहने लगा- “मैंने तुम्हें क्या बताया था? यहाँ पानी नहीं मिलेगा। फिर भी तुमने आने की जिद की। अब भुगतो।” बूढ़ी अपने पति से कहने लगी”यदि तुमने मुझे पानी नहीं पिलाया तो मैं मर जाऊँगी। इसलिए कहीं से पानी ले आओ।”

बूढ़ा पानी की तलाश में निकल पड़ा। थोड़ी दूर चलने के बाद उसे एक तालाब दिखाई दिया। उसने बुढ़िया की आँखों में कपड़े की एक पट्टी बाँध दी और उसे पानी तक खींच ले आया। उसने अपनी पत्नी से कहा- “लो पानी पी लो, लेकिन पट्टी मत खोलना।” बूढी को लगा कि जरूर उसका पति उससे कुछ छुपा रहा है। जरा मैं भी तो देखू इस तालाब में क्या है। यह सोचकर उसने चुपके से थोड़ी पट्टी उठाई तो देखा तालाब में कई जोड़े बत्तख पानी में खेल रहे थे, किल्लोल कर रहे थे। सभी जलविहार का आनंद उठा रहे थे। यह दृश्य देखकर बूढ़ी औरत के मन में अपने पति के साथ जल क्रीड़ा करने की इच्छा हुई।

समय बीतता गया। बूढ़े और बूढ़ी के यहाँ कई संतानों ने जन्म लिया। परिवार बढ़ने के कारण अब बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी बढ़ गई। कुछ नया व्यवसाय करने का मन बनाकर बूढ़ा हिमालय की ओर चल पड़ा। वहाँ एक उपयुक्त स्थान पर उसने एक तालाब बनाया और ढेर सारी मछलियाँ पालनी शुरू की।

एक दिन सौभाग्य के देवता, भगवान श्री, अपने सफेद कुत्ते के साथ हिरण, खरगोश और कछुए का शिकार करने आए। जब देवता तालाब के किनारे पर आए तो उन्हें जोर की प्यास महसस हई। जैसे ही उन्होंने पानी पीना चाहा मछलियाँ उनसे प्रार्थना करने लगीं- “आपको पानी के बदले हमें एक वरदान देना होगा।” “अवश्य” कहते हुए भगवान श्री ने अपनी प्यास बुझाई तो मछलियाँ फिर से कहने लगीं- “हमें महान नदी, ब्रह्मपुत्र (या लोहित) में ले जाकर छोड़ दो।” मछलियों को दिए हुए वचन को पूरा करने के लिए भगवान श्री ने उन्हें अपने कर्मचारियों के साथ बाँध दिया। पानी के अभाव में मछलियाँ मर सकती थीं, इसलिए उन्हें ब्रह्मपुत्र तक ले जाने के लिए तालाब से ब्रह्मपुत्र तक पानी का रेला बहाना पड़ा ताकि मछलियाँ सुरक्षित नदी तक पहुँच सकें। इस प्रयास में पानी के रेले नदी में परिवर्तित हो गए। इस तरह नदियों का जन्म हुआ।

इसके बदले में मछलियों ने भगवानश्री को एक कद्दू और एक लौकी उपहार में दी। उन्हें अपने साथ लेकर भगवान अपने एक दोस्त के घर चले गए। उनका दोस्त वही बूढ़ा व्यक्ति था। उनके दोस्त ने उन्हें चावल से बनी शराब और सुअर का मांस खिलाया। उन्होंने दोस्त की इस खातिरदारी से खुश होकर मछलियों का दिया हुआ कद्दू दिया। दोस्त ने खुश होकर जब कद्दू को काटा तो देखा उसके अंदर शुद्ध चाँदी भरा हुआ था। इसे पाकर बढे की खशियों का ठिकाना न रहा। सोचा उसे भगवान श्री को कछ और दिन अपने यहाँ रखना चाहिए। इसलिए उसने भगवान श्री की सेवा के लिए ताजी देशी शराब और सुअर के ताजे मांस की व्यवस्था की। भगवान श्री उसकी आवभगत से अधिक खुश होकर उसे मछली की दी हुई लौकी भी दे दी। बूढ़े ने लौकी काटी तो देखा वह शुद्ध सोने से भरी है। अब बढे के पास भगवान की कृपा से अपने बच्चों के लालन-पालन के लिए पर्याप्त धन इकट्ठा हो चुका था। उसने भगवान को धन्यवाद दिया।

इसके बाद भगवान श्री अपने घर जाने कि लिए निकल पड़े। घर पहुँचने पर पाया कि उनकी छोटी बेटी बहुत बीमार है। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि उन्होंने मछली के दिये हुए उपहार को दूसरों को दे दिया था। मछलियाँ उन्हें सबक सिखाना चाहती थीं। पर छोटी बच्ची की हालत देखकर उस पर तरस आ गया और चिकित्सकों की वेश में भगवान श्री के घर आई। मछली ने उपाय बताते हुए कहा- “यदि आप नदी तट पर पूजा करेंगे और बलि देंगे, तो आपकी बेटी ठीक हो जाएगी।” भगवानश्री ने मछलीरूपी चिकित्सक की बातों का अनुसरण करते हुए नदी की पूजा की और बलि दी। इसके बाद उनकी बेटी ठीक हो गई। उस दिन से कछारी लोग अपनी और परिवार की सलामती के लिए नदियों की पूजा करने लगे। यह परंपरा आज भी कछारी समाज में विद्यमान है।

(साभार : डॉ. गोमा देवी शर्मा)

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