Nadiyan Aur Samudra (Hindi Story) : Ramdhari Singh Dinkar
नदियाँ और समुद्र (कहानी) : रामधारी सिंह 'दिनकर'
एक ऋषि थे, जिनका शिष्य तीर्थाटन करके बहुत दिनों के बाद वापस आया।
संध्या-समय हवन-कर्म से निवृत होकर जब गुरु और शिष्य, ज़रा आराम से, धूनी के आर-पार बैठे, तब गुरु ने पूछा, "तो बेटा, इस लंबी यात्रा में तुमने सबसे बड़ी कौन बात देखी? "
शिष्य ने कुछ सोचकर कहा, "सबसे बड़ी बात तो मुझे यह लगी कि देश की सारी नदियाँ बेतहाशा समुद्र की ओर भागी जा रही है।"
गुरु बोले, "अरे, इसमें कौन सी बड़ी बात हैं?"
शिष्य ने निवेदन किया, "बड़ी बात तो है महाराज! अब यही देखिए कि जितनी नदियाँ हैं, वे सब की सब श्रद्धेय हैं, उनका रूप मनोहर और जल सुस्वादु है और उनके किनारों पर इतने फूल खिलते हैं, इतने पक्षी चहचहाते रहते हैं कि आदमी का जी वहाँ से हटने को नहीं चाहता। मगर नदियाँ हैं कि एक क्षण कहीं रुकने का नाम नहीं लेती, वे भागी जा रही है, भागी जा रही हैं। और किसकी तरफ को महाराज? उस समुद्र की तरफ को, जिसका रंग नीला और सारा शरीर लवण से तिक्त है, जिसके मुंह से हर समय पागलों की तरह झाग चलता रहता है और जिसे यह फिक्र ही नहीं रहती कि कौन उससे मिलने को आ रहा है।"
ऋषि ने कहा, "बेटा, समुद्र और नदियां नारी है। नारियों का स्वभाव है कि वे अपने प्रेमी का चुनाव, गुण देखकर करती है। समुद्र नीला और खारा भले ही हो, मगर वह गंभीर हैं और बड़ा मर्यादावान भी। इसलिए वह न तो कभी घटता है और ना उसमें बाढ़ ही आती है। ऐसे सुगंभीर मर्यादा-पुरुषोत्तम का आकर्षण भला कौन नारी रोक सकती हैं? "