नदी की आत्मा : केन्या लोक-कथा
Nadi Ki Aatma : Kenya Folk Tale
घियासे अपनी जाति का एक बहुत बड़ा लड़ने वाला था इसलिये यह स्वाभाविक था कि अब उसको एक पत्नी की जरूरत थी जो उसके लायक हो।
सो उसने अपने लिये कोई लड़की ढूँढनी शुरू की। काफी ढूँढने के बाद और दर्जनों लड़कियों को मना करने के बाद उसको एक लड़की पसन्द आयी। इसमें कोई शक नहीं कि वह लड़की उस जगह की सबसे सुन्दर लड़की थी। उसका नाम ऐम्मे था और वह नदी के उस पार रहती थी।
घियासे अपना समय बरबाद नहीं करना चाहता था सो उसने उस लड़की के माता पिता से कहा कि वे उसकी शादी उसके साथ जल्दी ही कर दें। उनको भी कोई ऐतराज नहीं था सो घियासे उनसे बात करके शादी का इन्तजाम करने के लिये घर वापस लौट गया।
ऐम्मे का पिता भी अपने जाति का बहुत अमीर और बहुत ताकतवर आदमी था। और क्योंकि वह चाहता था कि उसकी बेटी अपने पति के घर में पहली बार ठीक से घुसे इसलिये उसने उसके साथ के लिये एक बहुत सुन्दर दासी का इन्तजाम कर दिया था। उसने अपनी सबसे छोटी बेटी को भी उसकी बड़ी बहिन के साथ जाने के लिये कह दिया था।
सो तीनों लड़कियाँ घियासे के गाँव चल दीं। उनको घियासे के गाँव पहुँचने के लिये सारा दिन चलना पड़ा इसलिये उनकी शादी की खुशी थकान में बदल गयी। जब तक वे घियासे के घर तक पहुँचीं तब तक शाम हो आयी थी। शाम का पहला तारा आसमान में निकल आया था।
अपनी थकान मिटाने के लिये और घियासे के घर में ठीक से घुसने के लिये ऐम्मे ने सोचा कि वह नदी में नहा कर तरोताज़ा हो ले तब घियासे के घर जाये।
अब उस नदी में एक आत्मा रहती थी जो उस नदी की अकेली ही मालिक थी। पर ऐम्मे को यह पता नहीं था सो ऐम्मे उस पानी में बिना किसी झिझक के कूद गयी। उसकी बहिन और उसकी दासी तब तक अपने कपड़े ही उतार रही थीं।
ऐम्मे और उसकी बहिन दोनों ही नदी की उस आत्मा से बेखबर थीं। उनको उसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। उधर उस दासी का बाहर से तो व्यवहार बड़ा नम्र था पर उसका दिल बहुत काला था।
वह उस आत्मा के बारे में सब जानती थी पर उसने अपनी मालकिन को जानबूझ कर उसके बारे में नहीं बताया और उसे नदी में नहाने से नहीं रोका।
उल्टे वह नदी के किनारे पर खड़ी रह कर अपनी मालकिन को नदी के बीच में जाने को कहती रही कि वहाँ पानी ज़्यादा साफ था सो वह वहाँ जा कर नहाये।
ऐम्मे भी आगे बढ़ती गयी कि अचानक दो हल्के नीले रंग की बाँहें पानी में से निकलीं और उसे पकड़ कर पानी में अन्दर ले गयीं। उसकी बहिन यह देख कर बहुत डर गयी पर दासी ने उसको धमकाया और बताया कि उसका असली रूप क्या था।
वह बोली — “यह रोना धोना छोड़ो नहीं तो मैं तुमको भी नदी में फेंक दूँगी। वह आत्मा आ कर तुमको भी इसी तरह से ले जायेगी जैसे वह ऐम्मे को ले कर गयी। आज से तुम मेरी दासी रहोगी और ध्यान रखना अगर तुमने यह सब किसी से भी कहा तो , , ,।
इस तरह से उसने मालकिन की छोटी बहिन को सारा बोझा उठाने पर मजबूर कर दिया और वह छोटी बहिन उस बोझे को अपनी पीठ पर लाद कर उस दासी के साथ ऐम्मे की ससुराल चली। दोनों नदी के उस पार घियासे के गाँव आयीं।
जब घियासे ने दासी को एक छोटी सी लड़की के साथ देखा तो वह बड़ी मुश्किल से अपना आश्चर्य छिपा सका क्योंकि उसको लगा कि यह तो वह लड़की नहीं थी जिसका हाथ उसने माँगा था।
पर उसने सोचा कि इतनी लम्बी यात्रा की थकान और रात के अँधेरे की वजह से शायद उसकी शक्ल बदली बदली लग रही होगी। सो उसने उन दोनों को घर में बुलाया और उनका इज़्ज़त से स्वागत किया।
अगले दिन घियासे ने अपनी होने वाली पत्नी को अपनी जाति के लोगों से मिलवाया तो वे सब उसको देख कर चकित रह गये। वे सब सोचने लगे कि घियासे तो कह रहा था कि उसकी होने वाली पत्नी बहुत सुन्दर है पर यह तो ऐसी नहीं है। यह तो बहुत ही मामूली सी लड़की है।
पर उन्होंने घियासे से कुछ कहा नहीं क्योंकि वे सब उसको बहुत प्यार करते थे और उसको कोई दुख नहीं पहुँचाना चाहते थे।
दिन बीतते गये और घियासे अन्दर ही अन्दर चिन्तित रहने लगा। वह अपनी शादी की रस्म की तारीख को भी जितना आगे बढ़ा सकता था बढ़ाता रहा। वह कभी एक बहाना बना देता तो कभी दूसरा। पर उसको समझ में नहीं आ रहा था कि वह इस मामले में करे क्या।
दासी इस सबसे बहुत परेशान हो गयी और उसने अपना गुस्सा ऐम्मा की छोटी बहिन पर निकालना शुरू कर दिया। वह उसको डाँटने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती थी। कभी कभी तो वह उसको डंडी से भी मारती।
इससे भी ज़्यादा वह उसको उसकी बड़ी बहिन की दुख भरी घटना की भी याद दिलाती रहती।
रोज सुबह वह उस लड़की को बड़े बड़े घड़े ले कर नदी पर पानी भरने भेजती। वह बच्ची भी उस दुख के डर की वजह से जो उसने ऐम्मा का देखा था चुप ही रहती और उस दासी से कुछ नहीं कहती।
घियासे को पता चल गया था कि वह दासी उस छोटी सी बच्ची से किस तरह से बरताव करती थी।
घियासे जब तक घर में रहता तब तक वह पाम के फल की तरह से बहुत मीठी बनी रहती पर जैसे ही घियासे घर से बाहर जाता वह उसके लिये बहुत बुरी बन जाती – वह उससे बुरी तरह से बोलती, उसको धमकियाँ देती, उसको मारती।
घियासे ने एक दिन उसको इस बात के लिये बहुत डाँटा पर उस डाँट का कोई फायदा नहीं हुआ।
एक दिन वह बच्ची रोज की तरह से नदी पर पानी भरने गयी। उसने नदी के पानी में अपना घड़ा डुबोया और उसे बाहर निकाल कर अपने सिर पर रखने ही वाली थी कि वह ऐसा नहीं कर सकी।
वह घड़ा उसकी अपनी बदकिस्मती की तरह बहुत बड़ा और बहुत भारी हो गया था। वह वहीं किनारे पर बैठ गयी और रोने लगी।
अचानक नदी की सतह कुछ हिली और पानी में से एक बहुत ही सुन्दर लड़की निकली। यह ऐम्मे थी जो अब नदी की आत्मा के पानी के महल में एक कैदी की तरह से रह रही थी।
अपनी छोटी बहिन को रोते देख कर उसने अपनी कैद करने वाली नदी की आत्मा से प्रार्थना की थी कि वह उसको कुछ देर के लिये नदी की सतह पर आने दे ताकि वह उसको कुछ तसल्ली दे सके।
आत्मा को अपनी ताकत का पूरा भरोसा था सो उसने उसको नदी की सतह पर जाने की इजाज़त दे दी।
पर जब बच्ची ने ऐम्मे को फिर से देखा तो वह तो बेहोश सी ही हो जाती पर उसकी बहिन के नम्र शब्दों ने उसको यह विश्वास दिला दिया कि वह सपना नहीं देख रही थी वह सच में ही नदी में से बाहर निकल कर आयी थी।
वह अपनी बहिन से लिपट गयी और रो रो कर उसे बताया कि उनकी दासी उसके साथ कैसा बरताव कर रही थी और वहाँ वह अपने आपको कितनी मजबूर महसूस कर रही थी।
सबसे बाद में ऐम्मे ने उसने पूछा — “और मेरा होने वाला पति?”
ऐम्मे की बहिन बोली — “वह तो रोज ही शादी की तारीख आगे बढ़ा देते हैं। ”
ऐम्मे बोली — “मुझे विश्वास है कि सब कुछ ठीक हो जायेगा, तुम देखना। अब मुझे जाना है क्योंकि अगर मैं अब समय से वापस नहीं गयी तो जब तुम अगली बार यहाँ आओगी तो नदी की आत्मा मुझे तुमसे मिलने नहीं देगी। तुम यहाँ वापस आओगी न?”
“हाँ मैं रोज सुबह यहाँ आऊँगी। ”
“ठीक है तो कल सुबह तक। और देखो बहादुरी से काम लेना। घबराना नहीं। ” कह कर वह पानी में अन्दर चली गयी।
इस तरह से कुछ दिन बीत गये। वह छोटी बच्ची रोज पानी लेने के लिये नदी पर जाती रही। उसकी बहिन ऐम्मे उससे बात करने लिये रोज नदी की सतह पर आती रही।
वे दोनों कुछ देर के लिये साथ साथ बैठतीं, एक दूसरे को तसल्ली देतीं और फिर अपने अपने रास्ते चली जातीं।
एक दिन जब वह बच्ची पानी पर झुक रही थी और “ऐम्मे ऐम्मे” करके अपनी बहिन को बुला रही थी कि घियासे की जाति का एक शिकारी उधर आ निकला।
“ऐम्मे ऐम्मे” की आवाज सुन कर वह शिकारी एक घनी झाड़ी के पीछे छिप गया और देखने लगा कि वहाँ क्या हो रहा था।
कुछ ही देर में उसने देखा कि नदी का पानी फट गया और उसमें से एक बहुत सुन्दर लड़की किनारे पर आ गयी। उसने बच्ची को प्यार से गले लगाया और उससे बात करने लगी। कुछ देर बात करके वह लड़की नदी में फिर से वापस चली गयी।
जब वह सुन्दर लड़की नदी में वापस कूद गयी और वह बच्ची अपने पानी के घड़ों के साथ अकेली रह गयी तो वह शिकारी जल्दी से उस घनी झाड़ी के पीछे से निकला और गाँव की तरफ भाग गया। वहाँ घियासे एक जगह बैठा बैठा अपना भाला बना रहा था।
वह खुशी खुशी उसके पास पहुँचा और जल्दी जल्दी बोला — “घियासे घियासे, मैंने अभी अभी कुछ देर पहले तुम्हारी होने वाली पत्नी की दासी को नदी के किनारे देखा। ”
घियासे ने उसकी इस बात पर ज़्यादा ध्यान न देते हुए और अपना काम जारी रखते हुए कहा — “तो क्या हुआ। वह तो पानी लाने के लिये रोज ही वहाँ जाती है। ”
“पर तुम आगे तो सुनो। मैने उसको “ऐम्मे ऐम्मे” पुकारते हुए सुना। ”
यह सुन कर घियासे कुछ परेशान सा हो गया और बीच में ही बात काट कर बोला — “क्या कहा? वह ऐम्मे ऐम्मे पुकार रही थी?”
“हाँ, और फिर एक बहुत सुन्दर लड़की पानी में से निकल कर आयी और उससे बात करने लगी। ”
“पर ऐम्मे तो , , ,। ” यह सुन कर घियासे तो कुछ भी न समझ सका।
वह शिकारी फिर बोला — “मुझे मालूम है कि “ऐम्मे” तो उस लड़की का नाम है जिसको तुमने अपनी होने वाली पत्नी के लिये चुना था।
सुनो घियासे, मुझे तो ऐसा लगता है कि नदी की आत्मा ने किसी तरह से तुम्हारी होने वाली पत्नी को पकड़ लिया है और वह उसको पकड़ कर कैदी की तरह से रखे हुए है। और जो लड़की तुम्हारे घर में रह रही है वह कोई दूसरी लड़की है। ”
घियासे कुछ सोच कर बोला — “तुम शायद ठीक कह रहे हो। यही बात ठीक हो सकती है क्योंकि जितना ज़्यादा मैं उस लड़की की तरफ देखता हूँ उतना ही ज़्यादा मैं उसको पहचान नहीं पाता।
ऐसा करते हैं कि कल हम दोनों साथ साथ नदी पर चलते हैं और वहाँ चल कर देखते कि हमारा शक ठीक है कि नहीं। यह खबर देने के लिये तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद मेरे दोस्त। ”
सो अगली सुबह घियासे और वह शिकारी दोनों नदी पर गये और एक घनी झाड़ी के पीछे छिप कर बैठ गये।
कुछ देर बाद वह बच्ची वहाँ पानी भरने आयी तो उसने अपनी बहिन ऐम्मे को पुकारना शुरू किया। कुछ ही मिनटों में ऐम्मे उस पानी में निकल आयी। घियासे ने उसको तुरन्त ही पहचान लिया कि वही उसकी असली पत्नी थी। उसके मुँह से खुशी की एक चीख निकलते निकलते बची।
जब ऐम्मे पानी में वापस चली गयी तो वे दोनों आदमी भी यह बात करते करते गाँव वापस चले गये कि ऐम्मे को नदी की आत्मा के चंगुल से किस तरह से छुड़ाया जाये।
शिकारी बोला — “मुझे लगता है कि हम लोग इसको अकेले नहीं कर पायेंगे। केवल नदी की बुढ़िया ही तुम्हारी सहायता कर सकती है। ”
घियासे खुशी से चिल्लाया — “तुम ठीक कहते हो वही हमारी सहायता कर सकती है। चलो उसी के पास चलते हैं। ”
कोई भी यह नहीं जानता था कि नदी की उस बुढ़िया की कितनी उम्र थी। कोई कहता था कि वह 100 साल की थी, कोई कहता था कि वह 200 साल की थी जबकि कुछ का विश्वास था कि वह 1000 साल की थी।
पर हर आदमी जानता था कि वह कहाँ रहती थी। वह नदी के बाँये किनारे पर एक झोंपड़ी में रहती थी। उसकी झोंपड़ी के पास तो हयीना भी आने से डरते थे। वे उसके डर की वजह से वहाँ कभी नहीं आते थे।
घियासे उस नदी की बुढ़िया के पास गया और जा कर उसको अपनी सब बात बतायी तो उस बुढ़िया ने उसको तसल्ली दी कि वह इस मामले में उसकी जरूर सहायता करेगी।
वह एक सफेद बकरा, एक सफेद मुर्गी, एक सफेद शाल और एक टोकरी अंडे इकठ्ठे कर ले। जब वह ये सब चीज़ें इकठ्ठी कर ले तो वह उनको उसके पास ले आये और तब वह देखेगी कि वह क्या कर सकती है।
घियासे वहाँ से चला गया और उस बुढ़िया की बतायी सारी चीज़ें ले कर लौटा तो बुढ़िया ने कहा कि उसको आने वाली अमावस्या तक इन्तजार करना पड़ेगा। अभी वह गाँव वापस जा सकता था और उस दिन वह सब कुछ देखभाल लेगी।
अमावस्या आयी तो बुढ़िया नदी के दूसरे किनारे पर खुद ही चली गयी। पहले उसने वह सफेद बकरी पानी में धकेल दी और फिर वह सफेद मुर्गी। फिर एक एक करके सारे अंडे उसने पानी में फेंक दिये। उसके बाद उसने शाल नदी के पानी पर बिछा दिया जो उसकी लहरों पर बहता चला गया।
तुरन्त ही पानी फाड़ कर ऐम्मे उस शाल पर बैठ कर ऊपर नदी के किनारे आ गयी।
बुढ़िया बोली — “आओ ऐम्मे। तुम्हारा स्वागत है। तुम डरो नहीं। मैं घियासे की तरफ से आयी हूँ। मेरा विश्वास करो। ”
कह कर वह ऐम्मे को अपनी झोंपड़ी में ले गयी। वहाँ पहुँच कर उसने उसके होने वाले पति घियासे को बुलाया तो वह तुरन्त ही अपने शिकारी दोस्त के साथ वहाँ आ पहुँचा।
दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया। कुछ देर बाद यह सब ऐम्मे की छोटी बहिन को भी चुपचाप बता दिया गया तो वह भी उस बुढ़िया की झोंपड़ी में आ गयी।
वहाँ से उस समय जो कोई और भी गुजरा वह यह नहीं बता सका कि वहाँ पर लोग खुशियाँ मना रहे थे या किसी के मरने का दुख मना रहे थे। क्योंकि सभी लोग खुशी के आँसू भी बहा रहे थे और खुशी से हँस भी रहे थे।
उसके बाद उन सबने मिल कर एक प्लान बनाया जिसके अनुसार उस छोटी बच्ची को गाँव वापस भेज दिया गया।
जब वह बच्ची घर पहुँची तो उसने उस दासी को बुरा भला कहना शुरू किया — “ओ नीच लड़की, तू घियासे से शादी करना चाहती थी? उँह। तूने मेरी बहिन को केवल इसलिये मार डाला ताकि तू उसके होने वाले पति से शादी कर सके?”
दासी ज़ोर से चिल्लायी — “चुप रह ओ बेवकूफ। मैं अभी तेरी खबर लेती हूँ। ” कह कर उसने एक डंडी उठायी और उससे उसको वहाँ से भगाने की कोशिश करने लगी।
बच्ची यह कह कर वहाँ से दरवाजे से बाहर निकल कर बुढ़िया की झोंपड़ी की तरफ भाग गयी।
वहाँ ऐम्मे और दूसरे लोग उसका इन्तजार कर रहे थे। उधर वह दासी भी उस बच्ची के पीछे पीछे उस बुढ़िया की झोंपड़ी के अन्दर तक भागी चली गयी।
पर वहाँ तो बच्ची की बजाय ऐम्मे खड़ी थी। दासी को कुछ समझ में नहीं आया कि वहाँ ऐम्मे कहाँ से आ गयी। वह उसको ऐम्मे को भूत समझ कर बहुत डर गयी।
वह वहाँ से बिना सोचे समझे लौट पड़ी और जल्दी ही नदी के किनारे आ पहुँची। वहाँ आ कर वह अपने आपको रोक न सकी और पानी में सिर के बल गिर पड़ी।
उसी समय हल्के नीले रंग की बाँहें पानी में से निकलीं और उस दासी को घसीट कर अपने महल ले गयीं। वह दासी अभी तक नदी की आत्मा की कैदी है।
कुछ दिन बाद घियासे और एम्मे की शादी हो गयी और वे दोनों खुशी खुशी रहने लगे।
(साभार : सुषमा गुप्ता)