नदी के राक्षस : लाइबेरिया लोक-कथा

Nadi Ke Rakshas : Liberia Folk Tale

एक बार की बात है कि बहुत दूर के एक गाँव में एक स्त्री अपनी दो बेटियों के साथ रहती थी। वे दोनों बहिनें परिवार के लिये बारी बारी से खाना बनाती थीं।

जब उनकी माँ खेत पर चली जाती तब उनमें से एक बहिन खाना बनाती और उसको एक कैलेबाश में रख लेती और एक मिट्टी के ढेर पर रख देती। वह खाना तब तक वहीं रखा रहता जब तक उनकी माँ खेत पर से वापस आती थी।

उसके बाद वे लड़कियाँ खेलने चली जातीं और तब तक खेलती रहतीं जब तक उनकी माँ खेत से वापस आती। फिर सब लोग एक साथ खाना खाते।

यह गाँव एक टापू पर था जो चारों तरफ पानी से घिरा हुआ था। वह पानी भी इतना सारा था कि उस टापू से पानी के उस पार कोई जमीन दिखायी नहीं देती थी।

उस पानी में एक राक्षस रहता था जो केवल उन लोगों को खाता था जो गलत काम करते थे।

जब भी कभी किसी पर किसी गलत काम करने का इलजाम लगता तो वह उस नदी के बीच में ले जाया जाता और उस नदी की कसम खाता।

अगर उसने कोई गलत काम नहीं किया होता तो नदी उसको छोड़ देती नहीं तो वह नदी वाला राक्षस अपना बड़ा सा मुँह खोलता और उसको निगल जाता।

उस स्त्री के घर में कभी कभी कुछ ऐसा होता कि जब भी यह स्त्री जहाँ अपना खाना रखवाती थी वहाँ से उसकी एक बेटी वह खाना खा लेती थी। माँ जब भी पूछती कि खाना किसने खाया तो वे दोनों ही मना कर देतीं कि हमने खाना नहीं खाया।

एक दिन वह स्त्री खेत से एक खरगोश ले कर आयी जो उसने वहाँ मारा था। उसने खरगोश को साफ किया और काटा। उसमें से उसका कुछ माँस उसने अपनी बड़ी बेटी को उसका सूप बनाने को दे दिया और बाकी बचा हुआ माँस उसने आग पर रख दिया।

उस रात सबने इतना अच्छा खाना खाया जितना पहले कभी नहीं खाया था। सब बहुत खुश थे और सबका पेट खूब भरा हुआ था। अगले दिन उन लड़कियों की माँ बेटियों को घर छोड़ कर खेत पर चली गयी।

जब माँ शाम को खेत से वापस आयी तो उसने देखा कि उसका खरगोश का बचा हुआ माँस तो गायब था। वह बहुत गुस्सा हुई।

उसने सोचा — “खाना खाना तो मेरी समझ में आता है कि लड़कियों ने खा लिया होगा क्योंकि वे भूखी थीं पर माँस खाना? यह तो सीधे सीधे लालच है। और जो भी बच्चा इस तरह के स्वाद से बड़ा होता है वह अच्छा बच्चा नहीं होता। अगर उसका ऐसा ही स्वाद रहा तो वह तो घर में एक बीमारी बन जायेगा। ”

यही सोच कर उसने लड़कियों से पूछताछ करने का निश्चय किया। उसने अपनी बेटियों को बुलाया और उनसे पूछा — “खरगोश का माँस किसने खाया?”

पर दोनों ने मना कर दिया कि उनको इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि खरगोश का माँस किसने खाया।

उसकी बड़ी बेटी बोली — “मुझे तो यह भी नहीं पता था कि वह माँस आग पर रखा था। ”

छोटी बेटी बोली — “न ही मुझे इस बात का पता था। मैंने सोचा कि हम लोगों ने कल रात ही उसे खत्म कर लिया था। ”

माँ उनके इन जवाबों से खुश नहीं थी। उसने उनसे कई बार सच बताने को कहा — “मैं तुम लोगों को कोई सजा नहीं दूँगी, बस तुम लोग मुझे सच सच बता दो कि खरगोश का माँस किसने खाया।

तुम लोगों को तो मालूम है कि मुझे चोरी करने वाले लोगों से कितनी नफरत हैं। तुम लोगों को कोई चीज़ लेने से पहले पूछना चाहिये। पर अगर तुमने कोई चीज़ बिना पूछे ले भी ली है तो फिर तुमको मान लेना चाहिये कि वह चीज़ तुमने ही ली है। ”

बड़ी बेटी बोली — “पर माँ, मैंने सच में माँस नहीं लिया। ”

छोटी बेटी बोली — “और मैं तो सारा दिन खेल रही थी। मुझे तो पता ही नहीं था कि हमारे घर में खरगोश का माँस और भी रखा है। ”

वह बेचारी स्त्री बोली — “और मैं सोच रही थी कि मैं अपने बच्चों को बहुत अच्छे तरीके से पाल रही हूँ। पर अब मुझे लग रहा है कि मैं तो न केवल चोरों को पाल रही हूँ बल्कि झूठ बोलने वालों को भी पाल रही हूँ। ”

कई दिनों तक वह सोचती रही कि वह क्या करे क्या करे। क्या मुझे उनसे सच उगलवाना चाहिये? या फिर मुझे उनका खाना बन्द कर देना चाहिये?

पर उसको लगा कि उन दोनों में से कोई भी तरीका ठीक नहीं है क्योंकि इस तरह से तो वह उन भोली भाली लड़कियों को केवल सजा ही देगी। फिर उसने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि उन्होंने दोनों ने एक साथ मिल कर माँस खाया हो।

बहुत सोचने के बाद उसने अपनी बेटियों को एक साथ बुलाया और उनको अपना प्लान बताया।

उसने कहा — “क्योंकि मैं तुम लोगों से सच नहीं निकलवा सकी इसलिये मैं तुम लोगों को नदी वाले राक्षस के पास ले जाऊँगी। पर मैं तुम लोगों को एक आखिरी मौका और देती हूँ कि अगर तुम लोगों ने वह माँस चुराया हो तो मुझे अभी बता दो।

तुम लोगों के लिये यह आसान बनाने के लिये मैं एक काम कर सकती हूँ कि तुम मेरे पास आ कर मुझे अकेले में बता सकती हो कि वह माँस तुमने खाया है और मैं दूसरी को नहीं बताऊँगी कि वह माँस तुमने खाया है।

पर अगर कल सुबह तक तुमने मुझ से कुछ नहीं कहा तो मैं तुम को उस नदी वाले राक्षस को खाने के लिये दे दूँगी। ” यह कह कर वह अपने कमरे में सोने चली गयी।

उसकी दोनों बेटियाँ भी अपने कमरे में सोने चली गयीं। वहाँ जा कर वे सीधी लेट गयीं और रात भर अपने छप्पर की छत पर बैठी रात में आने वाली मौथ को देखती रहीं।

बड़ी बेटी ने कहा — “तुम इस बात को मान क्यों नहीं लेतीं? क्यों कल तुम सबको शर्मिन्दा करना चाहती हो?”

छोटी बेटी बोली — “और तुम? तुम ही इस बात को क्यों नहीं मान लेतीं?”

काफी रात गये तक वे एक दूसरे से ऐसे ही बहस करती रहीं फिर पता नहीं कब उनको नींद आ गयी। जब वे सुबह सो कर उठीं तो उनकी माँ खेत पर जा चुकी थी। यह देख कर उन दोनों को कम से कम दिन भर के लिये तसल्ली मिली।

माँ के घर लौट कर आने से पहले छोटी बेटी ने सोचा कि नदी पर जाने के लिये काफी देर हो जायेगी।

दोपहर बाद उन्होंने देखा कि उनकी माँ खेत पर से वापस आ रही थी। उसको देखते ही दोनों बेटियों के मुँह लटक गये और उनके दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगे।

वे अपने में इतनी खोयी हुईं थीं कि उनको पता ही नहीं चला कि कब उनकी माँ उनके सामने आ कर खड़ी हो गयी।

उसने पूछा — “क्या तुम लोग मेरा स्वागत नहीं करोगी। ”

वे कुछ परेशान सी बोलीं — “हाँ हाँ आओ माँ। ” और उन्होंने अपनी माँ के हाथ में पकड़ा बोझा ले कर जमीन पर रख दिया।

उन्होंने अपनी माँ को खाना परोसा और जब वह खाना खा चुकी तो उसने उनसे फिर पूछा कि क्या वे लोग यह बात मानने के लिये तैयार थीं कि खरगोश का माँस उन्होंने ही खाया था? पर उनमें से कोई कुछ नहीं बोला।

सो उनकी माँ उन दोनों को ले कर नदी पर गयी। वहाँ पहुँच कर उसने अपनी छोटी बेटी को एक बड़े से कैलेबाश के कटोरे में रखा और यह कहते हुए नदी में बहा दिया।

“बेटी, अगर तुम सच्ची हो तो वह तुमको छोड़ देगा, और अगर तुम सच्ची नहीं हो तो अलविदा मेरी बेटी। मैं तुमको आखिरी बार देख रही हूँ। ”

कैलेबाश का कटोरा बहता बहता नदी के बीच में चल दिया तो लड़की ने गाया —

नदी के राक्षस, ओ नदी के राक्षस,
अगर मैंने खरगोश का माँस खाया है
तो मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ और मैं तुम्हारी हूँ,
अपना मुँह खोलो ताकि मैं उसमें घुस सकूँ
पर अगर माँस किसी और ने खाया है
तो हमेशा के लिये तुम अपना मुँह बन्द कर लो
ताकि मैं यहाँ से वापस जा सकूँ

दो या तीन लाइनें गाने के बाद उसको कुछ नहीं हुआ। नदी का बहाव बदल गया और लड़की अपनी माँ के पास किनारे पर आ कर लग गयी। उसकी माँ ने उसको कैलेबाश के कटोरे में से निकाल लिया और फिर उसकी बड़ी बहिन को उसमें रख कर बहा दिया।

जब बड़ी बहिन उस कैलेबाश में बैठ कर नदी के बीच में पहुँची तो उसने भी गाना शुरू किया —

नदी के राक्षस, ओ नदी के राक्षस,
अगर मैंने खरगोश का माँस खाया है
तो मैं तुम्हारे पास आ रही हूँ और मैं तुम्हारी हूँ
अपना मुँह खोलो , , , ,

इतना गाते ही नदी के पानी ने भँवर खाना शुरू किया और उसको अपने भँवर में निगलना शुरू कर दिया। उसकी माँ ने उससे बहुत कहा कि वह अपनी गलती मान ले पर वह उसने अपनी गलती नहीं मानी।

जल्दी ही पानी उसकी गरदन तक आ गया। उसकी माँ ने एक बार फिर उससे कहा कि वह अपनी गलती मान ले परन्तु वह मना ही करती रही कि उसने खरगोश का माँस नहीं खाया।

वह धीरे धीरे नदी के पानी में डूबती चली गयी और नदी के पानी ने उसको पूरी तरह से ढक लिया।

इसके बाद माँ अपनी बेटी के लिये बहुत रोती रही। जब वह रोते थक गयी तो वह अपनी छोटी बेटी को ले कर घर वापस चली गयी।

वे दोनों माँ बेटी बहुत दिनों तक ज़िन्दा रहीं पर जब भी वे नदी की तरफ जातीं तो वे अपनी बेटी और बहिन के लिये बहुत रोतीं।

(साभार : सुषमा गुप्ता)

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