नाश्ते के बाद : सेई शोनागोन

(सेई शोनागोन दसवीं सदी में जापान की सम्राज्ञी सादाको की एक ऐसी सहचरी थी, जो महल में उसके साथ तो रहती ही थी, अपने आसपास के लोगों को भी बड़ी बारीकी से पढ़ा करती थी। उसने अपनी डायरी में अपने वक्त का बड़ा सजीव और विशद वर्णन किया है। शाही जिन्दगी का एक चित्र यहाँ दिया जा रहा है।)

और तब शाही रसोई के प्रबन्धकों को हमने नौकरों से यह कहते सुना कि अब वे जाएँ। एक क्षण बाद ही सम्राट फिर आ गये। उन्होंने मुझे कुछ स्याही तैयार करने को कहा... और फिर एक सफेद कागज को, जिस पर कविता लिखी हुई थी, तह करते हुए हम महिलाओं से बोले, “हमारे लिए प्राचीन काव्य की कुछ पंक्तियाँ लिखो-कुछ भी, जो भी तुम्हें याद आए।” मैंने सामन्त कोरेचीका से पूछा कि वह मुझे क्या चुनने की सलाह देते हैं। “मुझे मत पूछिए,” उन्होंने कहा, “कुछ भी जल्दी से लिखिए और दे दीजिए। यह पूरी तरह आपका निजी मामला है। हम पुरुष लोग आपकी मदद नहीं कर सकते।” और दवात को मेरे पास रखते हुए वह बोले, “सोचने के लिए रुकिए नहीं! ‘नानीवाजू’ (पहली कविता जिसे बच्चे लिखना सीखते हैं), या कुछ भी, जो आप जानती हों...”

दरअसल डर की कोई बात नहीं थी। पर जाने किस वजह से मुझे बड़ी परेशानी होने लगी, और मेरा मुख लाल हो उठा। दो या तीन उच्च वर्गीय महिलाओं ने लिखा भी : एक ने एक वसन्त-गान, दूसरी ने किसी फूल के बारे में। तब कागज मेरे पास पहुँचा और मैंने यह कविता लिख दी : ‘बरस बीतते जाते हैं; बुढ़ापा और उसकी बुराइयाँ मुझ पर घिरी आती हैं, पर जो कुछ भी हो, जब तक देखने को फूल यहाँ हैं, मुझे कुछ भी दुख नहीं।’ लेकिन ‘फूल’ के बदले मैंने लिखा ‘मेरे प्रभु’।

“मैंने केवल उत्कण्ठावश ही ऐसा करने को कहा था,” सम्राट बोले। वह मेरा लिखा पढ़ रहे थे। “लोगों के माथे में क्या चल रहा है, यह देखना कितना मजेदार रहता है!” तब बातचीत होने लगी, जिसके दौरान वह बोले, “मुझे याद आता है, एक बार मेरे पिता सम्राट एनयू ने अपने दरबारियों से कहा था : ‘लो, यह पुस्तक लो। तुममें से हरेक इसमें एक-एक कविता लिखेगा।’ उनमें से कई-एक को बड़ी कठिनाई हुई। ‘अपने हस्तलेख की चिन्ता मत करो,’ मेरे पिता ने कहा, ‘इस बात की भी नहीं कि तुम्हारी कविताएँ मौसम के अनुरूप हैं या नहीं। मेरे लिए सब बराबर हैं।’ प्रोत्साहन मिलने पर (फिर भी भार-सा महसूस करते हुए) वे लिखने लगे। उनमें से एक वर्तमान प्रधानमन्त्री भी थे! तब वह मात्र तीसरे दर्जे के कप्तान ही थे। जब इनकी बारी आयी, तो इन्होंने वही पुरानी कविता लिख दी : ‘इजूमो के किनारे पर उठनेवाली लहर की तरह मेरा प्यार तुम्हारे लिए गहरे-से-गहरा होता चला जाता है-हाँ, मेरा प्यार! लेकिन इन्होंने ‘मेरा प्यार तुम्हारे लिए’ के स्थान पर लिखा था ‘प्रभु (सम्राट) में मेरी भक्ति’ - जिससे मेरे पिता बेहद खुश हो उठे थे।’ “

  • मुख्य पृष्ठ : कमलेश्वर; हिंदी कहानियां, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां