नाग (अंग्रेज़ी कहानी) : आर. के. नारायण
Naag (English Story in Hindi) : R. K. Narayan
लड़के ने बेंत की बनी बड़ी गोल टोकरी का ढक्कन उठाया और भीतर कुंडली मारकर बैठे कोबरा साँप को देर तक देखता रहा। फिर बोला, 'नागदेवता, मैं चाहता था कि तुम मर जाते तो मैं तुम्हारी खाल बटुआ बनाने वालों को बेच सकता-इस तरह तुम्हारा कुछ उपयोग भी होता' फिर एक-एक ऊँगली से उसे टहोका। नाग ने सिर उठाया और जैसे आश्चर्य से ऊपर देखा। 'तुम अब बहुत आलसी हो गये हो, अपना फन भी नहीं उठा पाते। अब तुम कोबरा नहीं रहे, केंचुआ हो गये हो। मैं सँपेरा हूँ और तुम्हें लोगों को दिखाकर रोजी कमाता हूँ। अब मुझे बस स्टैन्ड पर खड़े होकर अंधे का नाटक करके रोजी कमानी पड़ती है। समस्या यह है कि कोई तुम्हें नहीं देखना चाहता, तुम्हारी कोई इज्जत नहीं करता, न कोई तुमसे डरता है-और इसका मतलब क्या होता है, तुम जानते हो? यह कि मैं भूखा मरता हूँ।'
लड़का जब भी सड़क पर निकलता, पड़ोसी उसे भगाने की कोशिश करते। उसने अपने पिता के साथ भी यही सब होते देखा था। पिता तो लोगों के कहने के बावजूद सीढ़ियों पर चढ़ जाते और टोकरा खोलकर बेशर्मी से अपना काम शुरू कर देते थे। वह थैले से कटू की बनी बीन निकालकर उसे बजाना शुरू कर देते, घुमाघुमाकर उसे बजाते रहते और तब तक बजाते जब तक उसकी गूंज एक समाँ-सा न बाँध देती, जिसके कारण दर्शक चुप हो जाते और उनके करतब देखने लगते। फिर वे बोलना शुरू करते: 'भगवान् शिवजी मेरे सपने में प्रकट भये और बोले, 'आगे जाओ और मेरे लिंग के नीचे जो छेद है उसमें हाथ डालो।' आप तो जानते ही हैं भाइयों कि शिवजी सपों के देवता हैं, जिन्हें वे अपनी जटाओं में लिपटाकर रखते हैं, जिनका फन उनका मुकुट है, और हाँ भगवान् विष्णु जी भी आदिशेष देवता की जिनके हजार फनों पर यह सृष्टि टिकी है। और देवी पार्वती जी की बाँहें, उन पर भी छोटे-छोटे साँप लिपटे हैं। हम जानें कि हम अपने देवी-देवताओं से ज्यादा बुद्धिमान नहीं। इस प्रकार सर्प देवी-देवताओं के गहने हैं, जेवर हैं, ये मामूली प्राणी नहीं हैं। तो मैंने शिव भगवान् जी की आज्ञा मान ली और आधी रात के समय जाकर सर्पदेवता की बॉबी में अपना हाथ डाल दिया।'
यह सुनकर दर्शकों को झुरझुरी हो जाती और कुछ पूछते, 'तुमको साँप ने काटा तो नहीं?'
'हाँ काटा, जरूर काटा, लेकिन फिर भी आप मुझे यहाँ देख रहे हैं। इसलिए कि देवता ने मुझे आज्ञा दी, 'पुराने किले की दीवाल पर जो जड़ी-बूटी उग रही है, उसे ले आओ।" मैं उस बूटी का नाम आपको नहीं बताता, भले ही मुझे बदले में हजारों रुपया क्यों न मिले।'
'उस बूटी से तुमने क्या किया?'
'मैंने उसे चबा लिया। फिर कोई जहर ऐसा नहीं, जो मुझ पर असर करे। और टोकरी में बैठा यह भयंकर साँप मेरी बाँहों को ऐसे चूसने लगा, जैसे कोई बच्चा अपनी माँ की छाती। लेकिन मैं हँसता रहा, फिर उसे खींचकर निकाल लिया, फिर पत्थर मारकर उसके जहर के दाँत तोड़ डाले, जिसके कारण यह बहुत परेशान हुआ, लेकिन कोई बात नहीं, वह जल्द ही समझ गया कि मैं उसका दुश्मन नहीं, दोस्त हूँ और फिर उसने कभी कोई तकलीफ नहीं दी। आखिरकार साँप होता क्या है? वह होता है बड़ी महान् आत्मा, जो इस दुनिया में तप कर रहा है और फिर वापस स्वर्ग में चला जायेगा। तो यह है मेरे भाइयों, नागों की कहानी!"
इस भाषण के बाद पिता टोकरी खोलते, बीन फिर बजाना शुरू करते जिसकी आवाज पर साँप तेजी से ऊपर उछलकर खड़ा हो जाता, सामने देखता और इधरउधर हिलता, लोग डर जाते और पीछे हटने लगते, साथ ही मुग्ध होकर उसे देखते भी रहते। यह खेल देर तक चलता, खेल के बाद लोग उन्हें पैसे और चावल देते। कभी-कभी पुरानी कमीज भी दे देते, और अगर उन्हें वहाँ कोई मुर्गी नजर आ जाती तो एक अंडा भी ले लेते जिसे वे साँप की गर्दन दबाकर उसका मुँह खोलते और अंडा उसमें इस तरह डालते कि वह सीधा गले से नीचे उतर जाता। यह देखकर लोग और भी खुश होकर तालियाँ बजाते। फिर वे सामान समेटकर दूसरी सड़क पर या उसके ही पास कहीं और जाकर वही तमाशा फिर दिखाते। इस तरह खेल दिखाकर जब वे काफी पैसा और खाना इकट्ठा कर लेते तो पार्क के किनारे दीवाल के पीछे बनी अपनी झोंपड़ी में वापस आ जाते। चावल पकाकर खुद और बेटे को खिलाते और वहीं सितारों के नीचे जमीन पर सो जाते।
लड़का, जब से उसने चलना शुरू किया, पिता के साथ रहा था और जब वह दस साल का हुआ, पिता ने उसे भी उसी ढंग से नाग को खिलाना और लोगों के सामने प्रदर्शित करने का काम सिखा दिया। पिता अक्सर उससे कहते थे, 'नाग को हमें हर हफ्ते दो अंडे जरूर देना चाहिए। जब वह बूढ़ा होगा तो हर दिन सिकुड़ता जायेगा, फिर किसी दिन उसके पंख निकल आयेंगे और वह आसमान में उड़ जायेगा, और तब वह किसी दिन फन में सारा जहर एक खूबसूरत मणि बनाकर उगल देगा, और तुम्हारे पास वह मणि होगी तो तुम राजा हो जाओगे।'
एक दिन जब लड़का आलस के कारण पिता के साथ न जाकर घर पर ही बना रहा, उसने एक छोटे से बंदर को पास लगे इमली के पेड़ों में उछलते-कूदते देखा, जिसे वह इस तरह आश्चर्य से मुँह फाड़े देखता रहा कि उसे पता ही नहीं चला कि पिता वापस लौट आये हैं।
'क्या देख रहे हो, बेटा ? चलो, यह खाओ, ' यह कहकर उसने लड़के को मिठाइयों का एक पैकेट दिया। 'उस बड़े घर में, जहाँ कोई जलसा मनाया जा रहा है, मुझे यह दिया। नाग आज बीन पर बड़ी खूबसूरती से नाचता रहा। वह अब हमारी भाषा समझने लगा है। नाच के बाद वह अपनी पूँछ पर पूरे छह फीट ऊंचा खड़ा हो गया और फन उठाकर झूमने लगा, जिसे देखकर और लोग तो डरकर भागने लगे लेकिन बड़े घरवालों ने यह खेल खूब पसंद किया और पैसे व मिठाइयाँ दीं।' बहुत खुश होकर उन्होंने टोकरी खोली, कोबरा ने फन उठाया। पिता ने उसे गर्दन से पकड़ लिया और मिठाई का एक टुकड़ा उसके मुँह में डाला और उसे भीतर जाते देखते रहे। 'अब यह हमारे परिवार का सदस्य है और जो हम खाते हैं, वही इसे भी खाना चाहिए', उन्होंने कहा। मिठाई धीरे धीरे निगलकर नाग कुंडली मारकर नीचे बैठ गया और पिता ने टोकरी का ढक्कन बंद कर दिया।
लड़का मिठाई खाते-खाते बंदर को देखता रहा। पिता से बोला, 'बप्पा, मैं बंदर होता तो कितना मजा आता। मैं पेड़ पर कभी नहीं चढ़ा-उतरा। देखो, कैसे मजे से इमली चूस रहा है। बंदर, एक मुझे भी दे.।' वह बोला।
पिता ने हँसकर कहा, 'किसी से दोस्ती करने का यह ढंग नहीं है। तू उसे कुछ खाने का दे, न कि उससे कुछ माँग।'
इस पर लड़के ने अपने मुँह की मिठाई निकाली, उसे साफ किया और बंदर को दिखाकर बोला, 'ले बंदर यह मिठाई खा।'
पिता ने फिर कहा, 'तुम उसे 'बंदर' कहकर बुलाओगे तो वह खुश नहीं होगा। किसी अच्छे नाम से बुलाओ।"
'किस नाम से बुलाऊँ?"
'राम नाम से, जो देवता हनुमान जी के स्वामी थे। बंदरों को यह नाम अच्छा लगता है।'
लड़के ने एकदम पुकारा, 'राम, लो यह खाओ !" उसने अपनी बाँहें ऊपर फैलायीं और हाथ में मिठाई पकड़कर उसे दिखायी, तो अपनी सब उछल-कूद के बावजूद बंदर ने उसकी तरफ देखा। लड़के ने पेड़ का तना पकड़ा, ऊपर चढ़ा और एक चौड़ी-सी डाल पर मिठाई रख दी। बंदर ने आँखें गोलकर आश्चर्य से उसकी ओर देखा। लड़का नीचे उतर आया और उत्सुकता से बंदर के मिठाई खाने का इन्तजार करने लगा। जब तक बंदर यह सोचता-विचारता रहा कि मिठाई उठाऊँ या न उठाऊँ, तब तक कहीं से ताक लगाकर एक कौआ आया और मिठाई उठाकर उड़ गया। लड़के ने उसे एक गाली दी।
पिता ने उसे डाँटा, 'अरे, तुमने यह गाली कहाँ से सीख ली? गालियाँ दोगे तो बंदर तुम्हारी इज्जत नहीं करेगा।" कुछ देर बाद जब बंदर मिठाई का दूसरा टुकड़ा उठाने नीचे आया तो पिता ने सफाई से उसका हाथ इस तरह पकड़ लिया कि वह काबू में आ जाये और काट भी न सके।
अब पंद्रह दिन तक सँपेरा बंदर को डाँटकर, पुचकारकर, खिलाकर-भूखे रख कर सिखाता रहा कि उसे कैसे क्या करना चाहिए। पहली बात उसने यह सीखी कि किसी को काटना ठीक नहीं है। दूसरी बात यह सीखी कि उसकी जिन्दगी का उद्देश्य मालिक के इशारों के अनुसार खेल दिखाकर उसे खुश रखना है। मालिक के इशारे पर वह रामायण के बंदर देवता हनुमान जी की तरह पूँछ में आग लगाकर रावण की लंका में आग लगाने का नाटक करता, गाँव की बहू की तरह सिर पर चलाकर, दाँत निकालकर और भेंवें सिकोड़कर अपनी दुल्हन को रिझाता है और अंत में लम्बे बाँस पर चढ़कर उछलता-कूदता, नाचता और खों खों करके बच्चों को डराता। जब राम तमाशा दिखाने लायक सीख गया, तब उसका मालिक उसे अपने दोस्त एक दर्जी के पास ले गया और उसके नाप की एक कुंदनेदार फ्रॉक, जिसमें पीछे से उसकी पूँछ लटकती रहती थी और एक जोकरनुमा टोपी, जो ठोड़ी पर इस तरह लगी रहती थी कि सिर से उतर न जाये और उस पर चिपकी रहे, सिलवा लाया। पहले तो बंदर को यह पोशाक पसन्द नहीं आयी और वह इसे झटककर उतारने की कोशिश करता, लेकिन ऐसा करते ही उस पर छड़ी पड़ती, जिससे वह समझ गया कि इसे दिन भर पहने रहना है। शाम को जब मालिक घर जाकर उसके कपड़े उतारता तो उसे आराम मिलता और इस खुशी में वह खूब उछलताकूदता।
बहुत जल्द राम लोकप्रिय हो गया। स्कूल के बच्चे उसे देखते ही किलकारी मारकर खुश होने लगे। घरों के लोग रोते हुए बच्चे को चुप कराने के लिए उसे बुलाने लगे। वह बहुत अच्छे ढंग से खेल दिखाता और मालिक के लिए पैसे तथा अपने लिए मूंगफलियाँ प्राप्त करता। बच्चों के उतरे हुए कपड़े उसे भेंट में मिलने लगे। पिता और बेटा रोजाना सुबह इनको लेकर निकलते, लड़के के कंधे पर बंदर सवार होता और कुछ दूरी पर चल रहे पिता के हाथ में नाग की टोकरी-क्योंकि जब कभी नाग टोकरी से फन निकालकर सूं करता तो बंदर डरकर पीछे खिसक जाता और 'चीं-ची' करने लगता। फिर किसी एक जगह रुककर लड़का बंदर के तमाशे दिखाता तो उससे थोड़ी दूर पर पिता नाग को बीन की धुन पर नचाकर लोगों को मोहित करता। गाँवों के साप्ताहिक बाजारों में लोग दोनों को पहचानने लगे थे और उनकी इतनी कमाई होने लगी थी कि शाम को पैदल घर लौटने की जगह बस पर बैठकर आ जायें। कई दफा जब वे बस पर चढ़ते तो कोई डरपोक यात्री उनसे पूछता, 'अगर तुम्हारा नाग बाहर निकल आया तो क्या होगा?'
पिता जवाब देता, 'डरने की कोई बात नहीं है। टोकरी को रस्सी से कसकर बाँध दिया है।'
फिर भी कोई-न-कोई यह कह बैठता, 'जब तक तुम नाग की पूँछ पकड़े रहो तभी तक वह काबू में रहता है।"
'और यह बंदर?' कोई दूसरा कहता, 'पता नहीं, यह क्या शैतानियाँ करेगा।'
'बंदर बड़ा शांत और समझदार है, ' पिता जवाब देता। वे खूब घूमते-फिरते, अच्छा कमाते और कभी-कभी किसी रेस्त्रां में खाना खाने का शौक भी पूरा कर लेते। शाम को पिता बेटे से अलग हो जाता और उससे कहता, 'मेरे सिर में दर्द होने लगा है। तुम घर चलो, मैं दवा लेकर आ जाऊँगा, ' और फिर देर रात तक लौटता। इस वक्त बेटे को पिता से डर महसूस होता, वह कील से बंदर को बाँधकर चटाई पर लेट जाता और सोने की कोशिश करता। पिता लौटकर लात से उसे उठाता और चिल्लाता, 'उठ, सुअर, तेरा बाप कमाई के लिए भाग-दौड़ कर रहा है लेकिन तू पड़ा सो रहा है।' लड़का चुपचाप सुनता रहता।
एक रात लड़का सचमुच गहरी नींद में सो गया और सवेरे जब उठा तो पाया कि बाप वहाँ से हमेशा के लिए चला गया है। बंदर भी गायब था। लड़का रोने लगा, 'वही बंदर को ले गया होगा!" वह बाहर निकलकर जोर-जोर से 'बप्पा, बप्पा, ' चिल्लाया, फिर झोपड़ी में घुसकर देखा तो पाया कि नाग का टोकरा कोने में उसी तरह रखा है। टोकरे के ढक्कन पर कुछ पैसे रखे थे, यह देखकर वह खुश हुआ, गिनकर देखे तो अस्सी पैसे की रेजगारी थी।
यह मेरे लिए होगी, उसने सोचा और इसके साथ ही बच्चा न रहकर बड़ा बन गया। उसे पहली दफा इतना पैसा खुद के लिए प्राप्त हुआ था। अब वह धनी हो गया था लेकिन पिता की इस चाल पर उसे हैरानी हुई। इससे पहले वह जब कभी सवेरे सोकर उठा था, पिता को हमेशा अपने पास पाया था। उसे लगा कि पिता अब उससे मिलने नहीं आयेगा। इससे पहले वह बिना बताये कहीं नहीं जाता था, चाहे नहाने के लिए नुक्कड़ के नल पर जाना हो या 'सिरदर्द की दवा' लाने या कुछ खरीदने बाजार जाना हो।
लड़के ने टोकरी का ढक्कन खोलकर देखा कि नाग उसमें है या भी नहीं। ढक्कन उठते ही उसने फन बाहर निकाला। दोनों ने एक-दूसरे को देखा। 'अब तुम्हारा मालिक मैं हूँ समझ गये, " लड़के की आँखों से संदेश निकला। नाग समझ गया कि परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं, उसने अपनी जीभ बाहर निकाली और फन ऊपर उठाया। 'अभी नहीं, वापस जाओ।" यह कहकर वह सोचने लगा कि पिता का इन्तजार करना बेकार है। उसे भूख लग रही थी। उसने सोचा कि इन पैसों से खाने के लिए कुछ खरीदना ठीक होगा या नहीं। पिता अगर लौट आया तो पैसे उठाने के लिए उसे मारेगा। उसने टोकरी का ढक्कन बंद कर दिया और उस पर पैसे उसी तरह रख दिये जैसे वह पहले रखे थे, और झोपड़ी के दरवाजे पर बैठकर इधर-उधर खाली आँखों से ताकने लगा। सामने इमली का पेड़ खड़ा था जिस पर उसका बंदर उछल-कूद करता रहता था और हर रोज सवेरे नयी कलाबाजियाँ दिखाता था।
बगल में कपड़े का वह छोटा-सा थैला पड़ा था जिसमें बंदर को खिलाने के लिए भुने चने और मूंगफली रहती थीं। उसने थैली खोली, भीतर हाथ डाला और एक मुट्ठी चने निकालकर धीरे-धीरे खाने लगा। 'अच्छे लगते हैं। बंदर के लिए तो बहुत अच्छे हैं। पिता होते तो...।" पिता जब भी उसे इस थैली में से निकालकर कुछ खाते देखते तो एक चाँटा रसीद करते। एक कोने में लौकी से बनी बीन उसी तरह फूस में घुसी रखी थीं। उसने बीन उठा ली और धीरे धीरे बजाने की कोशिश की और उसे यह जानकर अच्छा लगा कि वह भी पिता की तरह उसे देर तक बजा सकता है, बस उसे जरा-सी खाँसी आयी थी और थोड़ी देर के लिए साँस भी फूलने लगी थी। बीन की सुरीली आवाज सुनकर राहगीर, जो ज्यादातर कुल्हाड़ी और फावड़े लिये मजदूर और डलियाँ सिर पर उठाये औरतें थीं, रुककर उसकी तारीफ करने लगे कि 'बाप जैसा ही बेटा भी बजाता है। ' सबने उसे देखा और बातचीत की। सब पानी के फव्वारे के इर्द गिर्द बनी झोपड़ियों में रहते थे और उसे जानते थे। इन झोपड़ियों को उजाड़ने की म्युनिसपैलटी की सब कोशिशें नाकाम हुई थीं। वे एक दिन उजाड़ दिये जाते और दूसरे दिन फिर वहीं आकर बस जाते थे। फिर जब म्युनिसपैलटी के सदस्यों को इनकी वोट देने की ताकत का पता चला तो इनको परेशान करना बंद कर दिया गया। बस जब दिल्ली से कोई नेता या अफसर इधर से गुजरता, तब इनसे कहा जाता कि उनकी नजरों से दूर बने रहें, और तब ये पार्क की दीवाल के पीछे चले जाते और नेता की गाड़ी के सर्र से गुजर जाने के बाद फिर अपनी झोपड़ियों में चले जाते।
'तुम अभी तक नहीं गये," एक औरत ने पूछा।
'बप्पा यहाँ नहीं हैं," लड़के ने दीनता से कहा। 'पता नहीं कहाँ चले गये!' वह सिसकने लगा।
औरत ने डलिया उतारकर रख दी, उसके पास बैठ गयी और पूछा, 'भूख लगी है?'
'पैसे हैं मेरे पास," लड़के ने जवाब दिया।
औरत ने प्यार से उसे थपथपाया। 'बेचारा! मैं तुम्हारी माँ को जानती थी। बड़ी अच्छी लड़की थी। तुम्हें यहाँ इस तरह छोड़कर स्वर्ग चली गयी।' लड़के को माँ की कोई याद नहीं थी। लेकिन उसकी बात सुनकर वह जोर से रोने लगा। आँखों से जो आँसू गिरते, उन्हें वह बड़े स्वाद से जीभ से चाटता जाता। अचानक औरत ने पूछा, 'अब तुम क्या करोगे?'
'पता! नहीं क्या करूंगा बप्पा के लौटने का इन्तजार करूंगा, और क्या?'
'बेवकूफ है तू। तेरा बाप अब लौटकर नहीं आयेगा।'
'वह कहाँ गया?' लड़के ने सवाल किया।
'यह मत पूछ मुझसे,' औरत कहने लगी। 'मैंने एक आदमी से बात की थी, जिसने उसे जाते देखा था। वह सवेरे की बस से चढ़ा, जो पहाड़ की तरफ जाती है, और उसके साथ नीली साड़ी पहने वह रंडी थी।'
'और बंदर का क्या हुआ? क्या वह भी नहीं आयेगा?'
औरत इस सवाल का जवाब नहीं दे सकी। तभी सड़क के दूसरे किनारे से एक खोमचेवाले की आवाज आयी, जो एक बर्तन में लिये गर्मागर्म चावल की इडली बेच रहा था। औरत ने पतली-सी आवाज लगाकर उसे बुलाया और कहा, 'इस गरीब बच्चे को दो इडली दो। ताजी बनी देना, कल की नहीं।'
उसने कहा, 'कल की इडली तो सोने के मोल भी नहीं मिलेंगी।'
'इसे पैसे दे दो' औरत ने लड़के से कहा। वह दौड़कर भीतर गया और कुछ पैसे निकाल लाया। औरत खोमचेवाले से कहने लगी, 'इसे कुछ सस्ती देना।'
'सस्ती क्यों?" उसने गुर्राकर पूछा।
'यह बड़ा गरीब है।'
'गरीब तो सभी हैं। इसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ? तुम अपने कानों के बुन्दे बेचकर उसकी मदद क्यों नहीं कर देतीं? मैं तुम जैसे लोगों की बातें सुनूँ और सस्ता बेचने लगूं तो मेरा तो दिवाला निकल जायेगा।'
उसने पैसे लिये और आगे बढ़ा। वह तीसरी झोंपड़ी तक पहुँचा होगा कि लड़के ने दोनों इडली चट कर डालीं-एकदम मुलायम और हरी चटनी से चटपटी कितनी मजेदार थीं!
खाकर लड़के में कुछ जान आयी और वह जिन्दगी का सामना करने के लिए तैयार हो गया। लड़के को ठीक-ठाक देखकर औरत उठी और यह कहकर चलने लगी, 'हरामजादी! बेटे को बाप से अलग करते शरम नहीं आयी।' लड़का इन शब्दों पर विचार करने लगा। हालांकि उसने ऊपर से कुछ नहीं जताया, वह जानता था कि नीली साड़ी वाली रंडी कौन है। वह पार्क की दीवाल के पीछे एक मकान में रहती थी और हमेशा दरवाजे पर खड़ी नजर आती थी, जैसे वह वहाँ खड़ी रहने के लिए ही बनी है। उसे वहाँ देखते ही पिता अपनी चाल हलकी कर देते और बेटे से कहते, 'तुम आगे चलो। मैं अभी आता हूँ।" पहली दफा जब यह हुआ तो काफी देर इन्तजार करने के बाद उसने बंदर को खम्भे से बाँध दिया और वापस उसी घर पर पहुँच गया। वहाँ उसे पिता और औरत दोनों में से कोई नहीं मिला। दरवाजा भीतर से बंद था। पहले उसने सोचा कि इसे खटखटाऊँ, फिर कुछ सोचकर चुप रह गया। वहीं सीढ़ियों पर बैठा इन्तजार करने लगा। कुछ देर बाद दरवाजा खुला और पिता बाहर निकला। कंधे पर नाग की टोकरी उसी तरह टैंगी थी। लड़के को देखकर वह उसे मारने को हुआ और चिल्लाया, 'शैतान, मैंने तुझसे कहा था कि तू चल, मैं आता हूँ।' लड़का डरकर सड़क पर भागा, और उसने पीछे नीली साड़ी वाली को कहते सुना, 'बदमाश, सब कुछ जानना चाहता है.।" बाद में पिता ने कहा, 'जब मैं कहूँ कि आगे चलो तो तुम्हें कहना मानना है।'
'लेकिन तुम वहाँ क्या करने गये थे, बप्पा?' लड़के ने अनजान बनते हुए पूछा, तो पिता ने सख्ती से कहा, 'सवाल नहीं पूछना है, समझे।'
'कौन है वह ? क्या नाम है?'
'रिश्तेदार हैं एक, ' पिता ने कहा। दूसरे सवालों के जवाब में बोला, 'मैं वहाँ चाय पीने गया था। और सवाल करोगे तो सिर तोड़ दूंगा।'
लेकिन लड़का चुप नहीं हुआ और कहता रहा, 'मैं यह सोचकर आया था कि तुम टोकरी मुझे देना चाहो, 'जिस पर उसने सख्ती से डाँटा, 'सवाल बहुत हो गए। वह अच्छी औरत है, सुंदर भी है।' लेकिन लड़के को यह बात स्वीकार नहीं हुई। उसने उसे बुरा-भला कहा था और वह भी छत पर खड़े होकर चिल्लाना चाहता था, 'वह बुरी औरत है, बहुत-बहुत बुरी है और सुंदर तो बिलकुल नहीं है।' लेकिन चुप रह गया। इसके बाद जब वे यहाँ से गुजरते, लड़का अपनी चाल तेज कर देता, न बायें देखता न दायें, और मोड़ पर खड़े होकर उसका इन्तजार करता रहता। कभी-कभी पिता भी उसी की तरह तेजी से उधर देखे बिना आगे बढ़ने लगता, जब वह दरवाजे पर औरत की जगह छाती पर घने बालों वाले आदमी को अपनी तोंद सहलाते देखता।
लड़के को शीघ्र ही पता चल गया कि वह भी पिता की तरह बीन बजा सकता है, साँप को सँभाल सकता है और उसे खिला-पिला सकता है। यही नहीं, जब उस का फन ज्यादा बढ़ जाता, तब वह उसे काट भी सकता था। वह दिन में काफी कमाने लगा और जैसे-जैसे हफ्ते और महीने बीतने लगे, वह बड़ा और लंबा भी होने लगा। लेकिन नाग, इसके विपरीत, ढीला और दुर्बल होने लगा था और अब अपना फन भी तेजी से उठा नहीं पाता था। वह कुंडली मारे पड़ा रहता था। उसे अपने बंदर की कमी बहुत खलती थी। पिता उसका बंदर लेकर भाग गया था, यह बात उसे बहुत खलती थी।
जब कई दिन तक नाग से उसकी कोई कमाई नहीं हुई तो उसने उससे मुक्त होने का निश्चय कर लिया। लौकी की बीन को वह फेंक-फाँक देगा और रोजी कमाने के लिए कुछ और काम शुरू करेगा। हो सकता है, एक और बंदर पकड़े और उसे ट्रेन्ड कर ले। यह काम उसने पिता को देखकर सीख लिया था। कंधे पर बंदर बिठाकर वह हर कहीं जा सकता था, महल में भी जा सकता था। इसके बाद वह बंदर को अपने पास रख लेगा और कोई दूसरा काम करेगा। स्टेशन पर कुली बन जायेगारेलगाड़ियाँ आते-जाते देखकर कितना अच्छा लगता है और हो सकता है, वह भी एक दिन किसी गाड़ी में बैठकर चला जाये और यह बड़ी दुनिया देखे। लेकिन पहला काम था, इस नाग से छुटकारा पाना। इसके लिए वह अंडे और दूध भी नहीं जुटा पाता था।
वह नाग की पिटारी नदी के किनारे-किनारे काफी दूर लेकर गया, जहाँ बिलकुल शांति थी और साँप आराम से रह सकता था, जहाँ उसे देखने और मारने वाला कोई नहीं था। नल्लप्पा की झाड़ी नामक इस निपट एकांत में बहुत-सी छोटी मोटी पहाड़ियाँ खंदकें और चींटियों के बिल थे। साँप से उसने कहा कि यहाँ तुम अपने यार-दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मजे से रह सकते हो। वे सब तुमसे मिलकर बड़े खुश होंगे। अब अपने घर में रहकर जिन्दगी बिताओ। मुझे भूल जाना। अब तुम मेरे लिए बेकार हो गये हो, इसलिए मैं तुम्हें छोड़ रहा हूँ। मेरे पिता पता नहीं कहाँ चले गये। वे तुम्हें तब तक अपने पास रखते, जब तक तुम्हारे पंख नहीं निकल आते, लेकिन मैं यह सब नहीं कर सकता।
यह कहकर उसने ढक्कन खोला और नाग को निकालकर स्वतंत्र छोड़ दिया। थोड़ी देर वह चुप पड़ा रहा, फिर सिर उठाया, चारों तरफ देखा और धीरे-धीरे चलने लगा। कुछ गज आगे जाकर वह रुका और पीछे मुड़कर अपने पुराने घर, टोकरी की ओर देखने लगा। लड़के ने यह देखकर टोकरी उठायी और दूर, साँप की पहुंच से बाहर, फेंक दी। 'जब तक मैं यहाँ रहूँगा, तुम कहीं नहीं जाओगे," यह कहकर उसने साँप को एक बॉबी की तरफ मोड़ दिया, और जितनी तेजी से हो सकता था, विरोधी दिशा में भागने लगा। फिर, कुछ दूर पहुँचकर वह रुका और एक पेड़ के पीछे छिपकर उसे देखने लगा। नाग बाँबी की ढलान पर पहुँच रहा था। लड़के को विश्वास था कि बाँबी के छेद तक पहुँचकर वह उसमें घुस जायेगा और उसकी जिंदगी से हमेशा के लिए गायब हो जायेगा। नाग आधी दूर तक ऊपर चढ़ा, हिचकिचाकर रुका, फिर वापस मुड़ा और उसकी ही दिशा में लौटने लगा। लड़का चिल्लाया, 'अरे तुम अपनी दुनिया में वापस क्यों नहीं जाते? अब वहीं क्यों नहीं रहते? मुझे अपने घर जाने दो।'
यह कहकर वह नल्लप्पा की झाड़ी पार करने के लिए दौड़ने लगा। कुछ देर बाद साँस लेने को रुका। यहाँ से उसने देखा कि नाग सूरज की रोशनी में चाँदी के रिबन की तरह चमकता मैदान पार कर रहा है। लड़का आखिरी विदा कहने के लिए रुका, लेकिन आसमान की तरफ देखते हुए उसने पाया कि सफेद रंग की एक पतंग जैसी वहाँ उड़ रही है। 'यह तो गरुड़ हैं!' उसने आश्चर्य में भरकर कहा। गरुड़ भगवान् विष्णु के वाहन हैं और पवित्र पक्षी माने जाते हैं। उसने आँखें बंद कर देवता की प्रार्थना की और कहा, 'मैं जानता हूँ आप देवता हैं लेकिन आप सर्पों को खाते हैं। मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे नाग को आप छोड़ दें।'
उसने आँखें खोली तो देखा कि पतंग और नीचे पहुँच गयी है और उसकी छाया नाग के बिलकुल पास तक पहुँचती जा रही है। 'ओह," वह चीखा, 'मैं जानता हूँ, आपका उद्देश्य क्या है।' गरुड़ जब उसके एकदम पास आ जायेगा तब एक झपट्टा मारकर बेवकूफ नाग को, जो बाँबी के भीतर नहीं जा रहा है, अपने पँजों में पकड़ लेगा और फिर उसे अपने रात्रि भोजन के लिए लेकर उड़ जायेगा।
यह देखकर लड़का तेजी से वापस लौटा और टोकरी को उठाकर नाग के पास ले आया, जिसे देखकर नाग फिर आराम से उसमें इस प्रकार जा बैठा, जैसे लम्बी यात्रा के बाद थका-माँदा वापस आया है।
अब नाग झोपड़ी के उसी कोने में फिर वापस आ गया। लड़का उसे देखकर कहने लगा, 'अब अगर तुम बहुत जल्द अपने पंख नहीं उगा लेते तो तुम्हें डंडे के वार का सामना करना पड़ेगा, जैसा सभी नागों के साथ होता है। मैं हमेशा तुम्हारी रक्षा नहीं कर सकूँगा। मैं तो रेलवे स्टेशन काम करने चला जाऊँगा और मेरे पीछे तुम टोकरी से बाहर निकले तो तुम्हें किसी के डंडे का शिकार होना पड़ेगा। फिर मुझ से शिकायत मत करना!"