नादान बुढ़िया : बुंदेली लोक-कथा
Naadaan Budhiya : Bundeli Lok-Katha
एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। बुढ़िया थी तो बड़ी बातून पर अकल की कुछ कमजोर थी।
बुढ़िया के दो लड़के थे; अल्ले और मल्ले।बड़े हुए तो दोनों की शादी हो गयी। बाद में बहुओं में आपस में बनी नहीं इसलिए दोनों भाई अलग अलग हो गए। एक पुराने मुहल्ले में ही बना रहा, तो दूसरा अलग मुहल्ले में अपना घर बनाकर रहने लगा। बुढ़िया अपने बड़े बेटे अल्ले के साथ हो गयी।
दोनों भाई बकरियाँ पालते थे। बकरियों को चरने के लिए दिन में खुला छोड़ देते थे। शाम को पकड़ कर बाँध लेते थे।
एक दिन मल्ले ने चुपचाप अल्ले का एक बकरा पकड़ लिया और उसके परिवार के सभी लोगों ने उसका गोश्त बना कर खा लिया। यद्यपि मल्ले ने बहुत सावधानी से छिप कर इस कार्य को अंजाम दिया था फिर भी बुढ़िया ने कहीं से यह कृत्य देख लिया। यह बात मल्ले को भी पता चल गई । तो मल्ले ने बुढ़िया को अपने घर बुलाया, उसकी खूब आवभगत की, उसे उसी बकरे का गोश्त भी खिलाया ;फिर मनुहार करते हुए कहा कि अम्मा यह बात किसी को बताना नहीं।
बुढ़िया ने कहा मुझे क्या पड़ी है जो मैं किसी को बताऊँ। नहीं बताऊँगी किसी को।
खा-पीकर बुढ़िया अपने घर के लिए चल दी। थोड़ी ही दूर चली थी कि रास्ते में मुहल्ले का एक आदमी मिला। बुढ़िया ने उसे रोककर उससे कहा-अल्ले का बकरा, मल्ले ने मार खाया। दो कतले गोश्त के और थोड़ा सा शोरबा हमें भी मिल गया, अब मुझे क्या गरज पड़ी है जो मैं यह बात किसी को बताऊँ। इसके बाद बुढ़िया को रास्ते में जो कोई मिलता उसे रोकती फिर उससे कहती-अल्ले का बकरा मल्ले ने मार खाया; दो कतले गोश्त के और थोड़ा सा शोरबा हमें भी मिल गया। अब मुझे क्या गरज पड़ी है जो मैं यह बात किसी को बातून। अंत में उसे अपने घर के दरवाजे पर अल्ले की पत्नी मिली। बुढ़िया उससे बोली-बहू ये बताओ; अल्ले का बकरा, मल्ले ने मार खाया। दो कतले गोश्त के और थोड़ा सा शोरबा हमें भी मिल गया;अब मुझे क्या गरज पड़ी है कि मैं यह बात किसी को बताऊँ।
अल्ले की पत्नी अपना सिर पीट लेती है, फिर होती है महाभारत की शुरुआत।
(साभार : डॉ आर बी भण्डारकर)