Na Koi Hindu Na Koi Musalman

ना कोई हिन्दू ना कोई मुसलमान

पंजाब में एक शहर है, जिसका नाम है सुलतानपुर लोधी । पांच सौ वर्ष पहले यहां एक नवाब का शासन था, जिसका नाम था दौलत खान लोधी। गुरु नानक के बहनोई जयरामजी इस नवाब के पास नौकरी करते थे। कुछ दिनों के लिए नानकजी को उन्होंने अपने पास बुला लिया।

जब नानकजी सुलतानपुर पहुंचे तो जयराम जी उन्हें नवाब से मिलाने के लिए ले गये। नवाब ने उन्हें देखा तो देखता ही रह गया । उनका भोला-भाला चेहरा, कुछ पाने को व्याकुल आखें, कुछ बोलते से होंठ, मस्तक पर चमकता हुआ तेज यह सब देखकर नवाब बहुत प्रभावित हुआ । वह नानकजी से बोला

"आप मेरे पास काम करना पसन्द करेंगे?"
"हां, यदि काम मेरी पसन्द का होगा तो करूंगा।" उन्होंने कहा ।
"कैसा काम आपको पसन्द होगा?" नवाब ने पूछा ।
"जिससे बहुत से लोगों का भला हो।" नानकजी का उत्तर था।
नवाब ने कुछ देर सोचा, फिर बोला, "आप हमारे मोदी खाने का काम संभालिए । यहाँ से अनाज बांटा जाता है। आप यह काम अच्छी तरह कर लेंगे।"

नानकजी ने यह काम करना स्वीकार कर लिया वे अपने काम को बहुत अच्छी तरह से करते थे । परन्तु जो रसद उन्हें अपने लिए मिलती थी, उसे वे जरूरतमंदों में बांट देते थे।

एक बार नानकजी किसी को रसद तौल कर दे रहे थे । अपने तराजू से वे बारह बार तौल चुके । जब तेरहवीं बार तोलने लगे तो मुख से निकला 'तेरा' ।

तेरा का एक मतलब है-'तेरह' और दूसरा मतलब है-'तुम्हारा' अर्थात परमात्मा का। बस नानकजी की रट 'तेरा' पर ही लग गयी। तेरा, तेरा कहकर उन्होंने न जाने कितनी रसद उसे तौल दी।
लोगों ने नवाब से शिकायत की कि नानक जी तो मोदीखाने को लुटाए दे रहे हैं। पर जब जांच-पड़ताल की गयी तो रसद पूरी निकली।

नानकजी पास में ही बहती हुई, बेईं नदी पर स्नान करने जाया करते थे। एक दिन वे स्नान करने के लिए गये और तीन दिन तक वापिस नहीं आए। घर में सभी को बहुत चिन्ता हुई । लोगों ने सोचा शायद नानकजी नदी में डूब गये हैं। पर उनकी बहन नानकी कहती थी-
"मुझे विश्वास है कि मेरा भाई जीवित है। उसे तो अभी संसार में बहुत बड़े बड़े काम करने हैं-भूली भटकी जनता को सही रास्ता दिखाना है । वह भला कैसे डूब सकता है।"

तीन दिन बाद नानकजी एकाएक प्रकट हो गये । लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी । इन तीन दिनों में नानकजी समाधि में लीन रहे थे । उसी समाधि में उन्हें परमात्मा का प्रकाश अनुभव हुआ था । लोगों ने बड़े आश्चर्य से देखा कि उनका रूप-रंग पूरी तरह से बदला हुआ है । उनका मुख-मण्डल प्रकाश से चमक रहा है। उनकी आंखों से अद्भुत ज्योति फूट रही है और उनके मुख से लगातार निकल रहा है-'ना कोई हिन्दू ना कोई मुसलमान ।'

उनकी इस बात से सभी लोग उन्हें भौंचक्के होकर देखने लगे। कट्टरपंथी हिन्दू और मुसलमान-दोनों ही उनकी बात सुनकर नाराज भी होने लगे। उन्होंने सोचा-हिन्दू-हिन्दू है और मुसलमान-मुसलमान है । नानकजी यह क्या कह रहे हैं कि न कोई हिन्दू है और न कोई मुसलमान ।

शहर के काजी ने नवाब दौलत खान से उनकी शिकायत की। नवाब ने उनसे पूछा- "यह आपको क्या हो गया है ? आप कहते हैं कि न कोई हिन्दू है न कोई मुसलमान है । इसका मतलब क्या है ?"

नानक जी ने कहा, "मैं इंसान और इंसान में कोई भेद नहीं मानता । परमेश्वर के दरबार में मनुष्य की पहचान उसके अच्छे गुणों के कारण होती है, न कि हिन्दू या मुसलमान होने के कारण ।"

नवाब के पास ही शहर का काजी बैठा हुआ था। उसने कहा, "क्या आप यह जानते हैं कि एक मुसलमान को खुदा की दरगाह में सिर्फ इसलिए जगह मिल पाती है, क्योंकि वह मुसलमान है।"

नानक जी ने कहा- "मैं यह नहीं मानता कि किसी को केवल मुसलमान होने के कारण ही खुदा की दरगाह में जगह मिल सकती है। अपने आपको मुसलमान कहने वाले ऐसे कितने हैं, जो सच्चे मुसलमान हैं ? सच्चा मुसलमान अपने संतों द्वारा बताए धर्म का पालन करता है, वह गरीबों की मदद करता है, रब की रजा में खुश रहता है, सभी जीवों पर रहम करता है । ऐसा व्यक्ति ही मुसलमान कहलाने का अधिकारी है।"

उन्होंन फिर कहा, "दूसरों पर दया का भाव ही ऐसे मुसलमान की मस्जिद है, धीरज ही उसका मुसल्ला है जिस पर बैठकर वह नमाज पढ़ता है, ईमानदारी की कमाई ही उसकी कुरान है, बुरे कर्मों के प्रति लज्जा अनुभव करना ही उसकी सुन्नत है, शील ही उसका रोजा है, उसके अच्छे कर्म ही काबा हैं और सच्चाई ही उसका पीर है।"

काजी ने पूछा-"और पांच वक्त की नमाज के बारे में आप क्या कहते हैं ?" गुरु नानकजी ने कहा-"एक सच्चे मुसलमान की पहली नमाज उसकी सच्चाई है, ईमानदारी की कमाई उसकी दूसरी नमाज है, खुदा की बंदगी तीसरी नमाज है, मन को पवित्र रखना उसकी चौथी नमाज है और सारे संसार का भला चाहना उसकी पांचवीं नमाज है । हे काजी, जो ऐसी नमाज पढ़ता है वही सच्चा मुसलमान है।

उनकी बात सुनकर काजी बहुत सोच में पड़ गया । वह रोज नमाज तो पढ़ता था, पर उसका मन इधर-उधर भटकता रहता था। इतने में शाम की नमाज़ का वक्त हो गया । गुरु नानक जी सहित सभी लोग मस्जिद में आ गये । काजी खड़ा होकर नमाज पढ़ने लगा। जब नमाज पूरी हो गई तो नवाब ने पूछा
"आपने नमाज़ क्यों नहीं पढ़ी?"
गुरु नानकजी हंस दिये और बोले-"नमाज पढ़वाने वाले काजी का मन तो कहीं और था।"
काजी ने बड़े आश्चर्य से पूछा-"कहां था मेरा मन ?"

गुरु नानकजी बोले-"काजी जी की गाय ने अभी बछड़ा दिया है । इनके घर के अहाते में एक कुआँ है। बछड़ा खुला हुआ था काजी जी लगातार सोच रहे थे कि बछड़ा कहीं कुएं में न गिर जाए, इन्हें तो बछड़े की चिन्ता सता रही थी। नमाज में इनका मन ही नहीं था।"
काजी और नवाब बड़े आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगे।

"और नवाब साहब," गुरु जी बोले-"आपका मन भी नमाज में नहीं था। जब आप नमाज पढ़ रहे थे, आपका मन काबुल में घोड़े खरीद रहा था। क्यों यह ठीक है ना?"
नवाब ने दुगने आश्चर्य से उन्हें देखा।
काज़ी और नवाब दोनों ही सोच रहे थे कि उनके मन की बात गुरुजी को कैसे पता लगी।

(डॉ. महीप सिंह)