मेरी आत्मकथा : चार्ली चैप्लिन - अनुवाद : सूरज प्रकाश

My Autobiography : Charlie Chaplin

भूमिका : मेरी आत्मकथा

वेस्ट मिंस्टर ब्रिज के खुलने से पहले केनिंगटन रोड सिर्फ अश्व मार्ग हुआ करता था। 1750 के बाद, पुल से शुरू करते हुए एक नयी सड़क बनायी गयी थी जिससे ब्राइटन तक का सीधा रास्ता खुल गया था। इसका नतीजा यह हुआ कि केनिंगटन रोड पर, जहां मैंने अपने बचपन का अधिकांश वक्त गुज़ारा है, कुछ बहुत ही शानदार घर देखे जा सकते थे। ये घर वास्तुकला के उत्कृष्ट नमूने थे। इनके सामने की तरफ लोहे की ग्रिल वाली बाल्कनी होती थी। हो सकता है कि उन घरों में रहने वालों ने कभी अपनी कोच में बैठ कर ब्राइटन जाते हुए जॉर्ज IV को देखा होगा।

उन्नीसवीं शताब्दी के आते-आते इनमें से ज्यादातर घर किराये के कमरे देने वाले घरों में और अपार्टमेंटों में बदल चुके थे। अलबत्ता, कुछ घर ऐसे भी बचे रहे जिन पर वक्त की मार नहीं पड़ी और उनमें डॉक्टर, वकील, सफल व्यापारी और नाटकों वग़ैरह में काम करने वाले कलाकार रहते आये। रविवार के दिन, सुबह के वक्त केनिंगटन रोड के दोनों तरफ के किसी न किसी घर के बाहर आप कसी हुई घोड़ी और गाड़ी देख सकते थे जो वहां रहने वाले नाटक कलाकार को नौरवुड या मेरटन जैसी दसियों मील दूर की जगह पर ले जाने के लिए तैयार खड़ी हो। वापसी में ये केनिंगटन रोड पर अलग-अलग तरह के शराब घरों व्हाइट हाउस, द' हार्न्स, और द' टैन्कार्ड पर रुकते हुए आते थे।

मैं बारह बरस का लड़का, अक्सर टैन्कार्ड के बाहर खड़ा बेहतरीन पोशाकें पहने इन रंगीले चमकीले महानुभावों को उतरते और भीतर लाउंज बार में जाते देखा करता था। वहां नाटकों के कलाकार आपस में मिलते-जुलते थे। रविवार के दिनों का उनका यही शगल हुआ करता था। दोपहर के भोजन के लिए घर जाने से पहले वे अपना एक आखिरी पैग यहां लिया करते थे। वे कितने भव्य लगते थे। चारखाने के सूट पहने और भूरे फेल्ट हैट डाटे, अपनी हीरे की अंगूठियों और टाइपिनों के लशकारे मारते। रविवार को दोपहर दो बजे पब बंद हो जाता था और वहां मौजूद सब लोग बाहर झुंड बना कर खड़े हो जाते और एक-दूसरे को विदा देने से पहले मन बहलाव में वक्त ज़ाया करते। मैं उन सबको हसरत भरी निगाहों से देखा करता और खुश होता क्योंकि उनमें से कुछेक बेवकूफी भरी अकड़ के साथ डींगें हांकते।

जब उनमें से आखिरी आदमी भी जा चुका होता तो ऐसा लगता मानो सूर्य बादलों के पीछे छिप गया हो। और तब मैं ढहते पुराने घरों की अपनी कतार की तरफ चल पड़ता। मेरा घर केनिंगटन रोड के पीछे की तरफ था। ये तीन नम्बर पाउनाल टेरेस था जिसकी तीसरी मंज़िल पर एक छोटी-सी दुछत्ती पर हम रहा करते थे। तीसरी मंज़िल तक आने वाली सीढ़ियां खस्ता हाल में थीं। घर का माहौल दमघोंटू था और वहां की हवा में बास मारते पानी और पुराने कपड़ों की बू रची-बसी रहती।

जिस रविवार की मैं बात कर रहा हूं, उस दिन मां खिड़की पर बैठी एकटक बाहर देख रही थी। वह मेरी तरफ मुड़ी और कमज़ोरी से मुस्कुरायी। कमरे की हवा दमघोंटू थी और कमरा बारह वर्ग फुट से थोड़ा-सा ही बड़ा रहा होगा। ये और भी छोटा लगता था और उसकी ढलुआं छत काफी नीची प्रतीत होती थी। दीवार के साथ सटा कर रखी गयी मेज़ पर जूठी प्लेटों और चाय के प्यालों का अम्बार लगा हुआ था। निचली दीवार से सटा एक लोहे का पलंग था जिस पर मां ने सफेद रंग पोता हुआ था। पलंग और खिड़की के बीच की जगह पर एक छोटी सी आग झंझरी थी। पलंग के एक सिरे पर एक पुरानी-सी आराम कुर्सी थी जिसे खोल देने पर चारपाई का काम लिया जा सकता था। इस पर मेरा भाई सिडनी सोता था लेकिन फिलहाल वह समुद्र पर गया हुआ था।

इस रविवार को कमरा कुछ ज्यादा ही दमघोंटू लग रहा था क्योंकि किसी कारण से मां ने इसे साफ-सूफ करने में लापरवाही बरती थी। आम तौर पर वह कमरा साफ रखती थी। इसका कारण यह था कि वह खुद भी समझदार, हमेशा खुश रहने वाली और युवा महिला थी। वह अभी सैंतीस की भी नहीं हुई थी। वह इस वाहियात दुछत्ती को भी चमका कर सुविधापूर्ण बना सकती थी। खासकर सर्दियों की सुबह के वक्त जब वह मुझे मेरा नाश्ता बिस्तर में ही दे देती और जब मैं सो कर उठता तो वह छोटा-सा कमरा सफाई से दमक रहा होता। थोड़ी-सी आग जल रही होती और खूंटी पर गरमा-गरम केतली रखी होती और जंगले के पास हैड्डर या ब्लो्टर मछली गरम हो रही होती और वह मेरे लिए टोस्ट बना रही होती। मां की उल्लसित कर देने वाली मौज़ूदगी, कमरे का सुखद माहौल, चीनी मिट्टी की केतली में डाले जाते उबलते पानी की छल-छल करती आवाज़, और मैं ऐसे वक्त अपना साप्ताहिक कॉमिक पढ़ रहा होता। शांत रविवार की सुबह के ये दुर्लभ आनन्ददायक पल होते।

लेकिन इस रविवार के दिन वह निर्विकार भाव से बैठी खिड़की से बाहर एकटक देखे जा रही थी। पिछले तीन दिन से वह खिड़की पर ही बैठी हुई थी। आश्चर्यजनक ढंग से चुप और अपने आप में खोयी हुई। मैं जानता था कि वह परेशान है। सिडनी समुद्र पर गया हुआ था और पिछले दो महीनों से उसकी कोई खबर नहीं आयी थी। मां जिस किराये की सिलाई मशीन पर काम करके किसी तरह घर की गाड़ी खींच रही थी, किस्तों की अदायगी समय पर न किये जाने के कारण ले जायी जा चुकी थी (ये कोई नयी बात नहीं थी) और मैं डांस के पाठ पढ़ा कर पांच शिंलिंग हफ्ते का जो योगदान दिया करता था, वह भी अचानक खत्म हो गये थे।

मुझे संकट के बारे में शायद ही पता रहा हो क्योंकि हम तो लगातार ही ऐसे संकटों से जूझते आये थे और लड़का होने के कारण मैं इस तरह की अपनी परेशानियों को शानदार भुलक्कड़पने के साथ दर किनार कर दिया करता था। हमेशा की तरह मैं स्कूल से दौड़ता हुआ घर आता और मां के छोटे-मोटे काम कर देता। बू मारता पानी गिराता और ताज़े पानी के डोल भर लाता। तब मैं भाग कर मैक्कार्थी परिवार के घर चला जाता और वहां शाम तक खेलता रहता। मुझे इस दम घोंटती दुछत्ती से निकलने का कोई न कोई बहाना चाहिये होता।

मैक्कार्थी परिवार मां का बहुत पुराना परिचित परिवार था। मां उन्हें नाटकों के दिनों से जानती थी। वे केनिंगटन रोड के बेहतर समझे जाने वाले इलाके में आरामदायक घर में रहते थे। उनकी माली हैसियत भी हमारी तुलना में बेहतर थी। मैक्कार्थी परिवार का एक ही लड़का था - वैली। मैं उसके साथ शाम का धुंधलका होने तक खेलता रहता और अमूमन यह होता कि मुझे शाम की चाय के लिए रोक लिया जाता। मैंने इस तरह कई बार देर तक वहां मंडराते हुए रात के खाने का भी जुगाड़ किया होगा। अक्सर मिसेज मैक्कार्थी मां के बारे में पूछती रहती और कहती कि कई दिन से वह नज़र क्यों नहीं आयी है। मैं कोई भी बहाना मार देता क्योंकि जब से मां दुर्दिन झेल रही थी, वह शायद ही अपनी नाटक मंडली के परिचितों से मिलने-जुलने जाती हो।

हां, ऐसे भी दिन होते जब मैं घर पर ही रहता और मां मेरे लिए चाय बनाती, सूअर की चर्बी में मेरे लिए ब्रेड तल देती। मुझे ये ब्रेड बहुत अच्छी लगती। फिर वह मुझे एक घंटे तक कुछ न कुछ पढ़ कर सुनाती। वह बहुत ही बेहतरीन पाठ करती थी। और तब मैं मां के इस संग-साथ के सुख के रहस्य का परिचय पाता और तब मुझे पता चलता कि मैं मैक्कार्थी परिवार के साथ जितना सुख पाता, उससे ज्यादा मैंने मां के साथ रह कर पा लिया है।

सैर से आ कर मैं जैसे ही कमरे में घुसा, वह मुड़ी और उलाहने भरी निगाह से मेरी तरफ देखने लगी। उसे इस हालत में देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ गया। वह बहुत कमज़ोर तथा मरियल-सी हो गयी थी तथा उसकी आंखों में गहरी पीड़ा नज़र आ रही थी। मैं अकथनीय दुख से भर उठा। मैं तय नहीं कर पा रहा था कि घर पर रह कर उसके आसपास ही बना रहूं या फिर इस सब से दूर चला जाऊं। उसने मेरी तरफ तरस खाती निगाह से देखा,"तुम लपक कर मैक्कार्थी परिवार के यहां चले क्यों नहीं जाते," उसने कहा था।

मेरे आंसू गिरने को थे,"क्योंकि मैं तुम्हारे पास ही रहना चाहता हूं। वह मुड़ी और सूनी-सूनी आंखों से खिड़की के बाहर देखने लगी,"तुम भाग कर मैक्कार्थी के यहां ही जाओ और रात का खाना भी वहीं खाना। आज घर में खाने को कुछ भी नहीं है।

मैंने उसकी आवाज में तड़प महसूस की। मैंने इस तरफ से अपने दिमाग के दरवाजे बंद कर दिये,"अगर तुम यही चाहती हो तो मैं चला जाता हूं।

वह कमजोरी से मुस्कुरायी और मेरा सिर सहलाया,"हां..हां तुम दौड़ जाओ।" हालांकि मैं उसके आगे गिड़गिड़ाता रहा कि वह मुझे घर पर ही अपने पास रहने दे लेकिन वह मेरे जाने पर ही अड़ी रही। इस तरह से मैं अपराध बोध की भावना लिये चला गया। वह उसी मनहूस दुछत्ती की खिड़की पर बैठी रही। उसे इस बात का ज़रा सा भी गुमान नहीं था कि आने वाले दिनों में दुर्भाग्य की कौन-सी पोटली उसके लिए खुलने वाली है।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 1

मेरा जन्म ईस्ट लेन, वेलवर्थ में 16 अप्रैल 1889 को रात आठ बजे हुआ था। इसके तुरंत बाद, हम, सेंट स्क्वायर, सेंट जॉर्ज रोड, लैम्बेथ में रहने चले गये थे। मेरी मां का कहना है कि मेरी दुनिया खुशियों से भरी हुई थी। हमारी परिस्थितियां कमोबेश ठीक-ठाक थीं। हम तीन कमरों के घर में रहते थे जो सुरुचिपूर्ण तरीके से सजे हुए थे। मेरी शुरुआती स्मृतियों में से एक तो ये है कि मां रोज़ रात को थियेटर जाया करती थी और मुझे और सिडनी को बहुत ही प्यार से आरामदायक बिस्तर में सहेज कर लिटा जाती थी और हमें नौकरानी की देख-रेख में छोड़ जाती थी। साढ़े तीन बरस की मेरी दुनिया में सब कुछ संभव था; अगर सिडनी, जो मुझसे चार बरस बड़ा था, हाथ की सफाई के करतब दिखा सकता था और सिक्का निगल कर अपने सिर के पीछे से निकाल कर दिखा सकता था तो मैं भी ठीक ऐसे ही कर के दिखा सकता था। इसलिए मैं अध पेनी का एक सिक्का निगल गया और मज़बूरन मां को डॉक्टर बुलवाना पड़ा।

रोज़ रात को जब वह थियेटर से वापिस लौटती थी तो उसका यह दस्तूर-सा था कि मेरे और सिडनी के लिए खाने की अच्छी-अच्छी चीज़ें मेज़ पर ढक कर रख देती थी ताकि सुबह उठते ही हमें मिल जायें - रंग-बिरंगे और सुगंधित केक का स्लाइस या मिठाई। इसके पीछे आपसी रज़ामंदी यह थी कि हम सुबह उठ कर शोर-शराबा नहीं करेंगे। वह आम तौर पर देर तक सो कर उठती थी।

मां वैराइटी स्टेज की कलाकार थी। अपनी उम्र के तीसरे दशक को छूती वह नफ़ासत पसंद महिला थी। उसका रंग साफ़ था, आंखें बैंजनी नीली और लम्बे, हल्के भूरे बाल। बाल इतने लम्बे कि वह आसानी से उन पर बैठ सकती थी। सिडनी और मैं अपनी मां को बहुत चाहते थे। हालांकि वह असाधारण खूबसूरत नहीं थी फिर भी वह हमें स्वर्ग की किसी अप्सरा से कम नहीं लगती थी। जो लोग उसे जानते थे उन्होंने मुझे बाद में बताया था कि वह सुंदर और आकर्षक थी और उसमें सामने वाले को बांध लेने वाले सौन्दर्य का जादू था। रविवार के सैर-सपाटे के लिए हमें अच्छे कपड़े पहनाना उसे बहुत अच्छा लगता था। वह सिडनी को लम्बी पतलून के साथ चौड़े कालर वाला सूट पहनाती, और मुझे नीली मखमली पतलून और उससे मेल खाते नीले दस्ताने। इस तरह के मौके आत्मतुष्टि के उत्सव होते जब हम केनिंगटन रोड पर इतराते फिरते।

लंदन उन दिनों धीर-गंभीर हुआ करता था। शहर की गति मंथर थी; यहां तक कि वेस्टमिन्स्टर रोड से चलने वाली घोड़े जुती ट्रामें भी खरामा-खरामा चलतीं और इसी गति से ही पुल के पास टर्मिनल पर गोल घेरे, रिवाल्विंग टेबल पर घूम जातीं। जब मां के खाते-पीते दिन थे तो हम भी वेस्टमिन्स्टर रोड पर रहा करते थे। वहां का माहौल दिल खुश करने वाला और दोस्ताना होता। वहां शानदार दुकानें, रेस्तरां और संगीत सदन थे। पुल के ठीक सामने कोने पर फलों की दुकान रंगीनियों से भरी होती। बाहर की तरफ तरतीब से रखे गये संतरों, सेबों, नाशपाती और केलों के पिरामिड सजे होते। इसके ठीक विपरीत, सामने की तरफ नदी के उस पार संसद की शांत धूसर इमारतें नज़र आतीं।

ये मेरे बचपन का, मेरी मन:स्थितियों का और मेरे जागरण का लंदन था। वसंत में लैम्बेथ की स्मृतियां - छोटी मोटी घटनाएं और चीज़ें। मां के साथ घोड़ा बस में ऊपर जा कर बैठना और पास से गुज़रते लिलाक के दरख्तों को छूने की कोशिश करना। तरह-तरह के रंगों की बस टिकटें, संतरे के रंग की, हरी, नीली, गुलाबी और दूसरे रंगों की। जहां बसें और ट्रामें रुकती थीं, वहां फुटपाथ पर उन टिकटों का बिखरा होना। मुझे वेस्टमिन्स्टर पुल के कोने पर फूल बेचने वाली गुलाबी चेहरे वाली लड़कियां याद आती हैं जो कोट के बटन में लगाने वाले फूल बनाया करती थीं। उनकी दक्ष उंगलियां तेजी से गोटे और किनारी के फर्न बनाती चलतीं। ताज़े पानी छिड़के गुलाबों की भीगी-भीगी खुशबू, जो मुझे बेतरह उदास कर जाती थी। और वो उदास कर देने वाले रविवार और पीले चेहरे वाले माता-पिता और उनके बच्चे जो वेस्टमिन्स्टर पुल पर पवन चक्की के खिलौने तथा रंगीन गुब्बारे लिये घिसटते चलते। और फिर पैनी स्टीमर जो हौले से पुल के नीचे से जाते समय अपने फनेल नीचे कर लेते थे। मुझे लगता है इस तरह की छोटी-छोटी घटनाओं से मेरी आत्मा का जन्म हुआ था। और फिर, हमारे बैठने के कमरे से जुड़ी स्मृहतियां जिन्होंने मेरी अनुभूतियों पर असर डाला।

नेल ग्वेन की मां की बनायी आदमकद पेंटिंग जिसे मैं पसंद नहीं करता था। हमारे खाने-पीने की मेज़ के लम्बोतरे डिब्बे जो मुझमें अवसाद पैदा करते थे और फिर छोटा-सा गोल म्यूजिक बॉक्स जिसकी ऐनामल की हुई सतह पर परियों की तस्वीरें बनी हुई थीं। इसे देख मैं खुश भी होता था और परेशान भी।

महान पलों की स्मृतियां : रायल मछली घर में जाना, मां के साथ वहां के स्लाइड शो देखना, लपटों में मुस्कुराती औरत का जीवित सिर देखना, 'शी' देखना, छ: पेनी की भाग्यशाली लॉटरी, सरप्राइज़ पैकेट उठाने के लिए मां का मुझे एक बहुत बड़े बुरादे के ड्रम तक ऊपर करना और उस पैकेट में से एक कैंडी का निकलना जो बजती नहीं थी और एक खिलौने वाले ब्रूच का निकलना। और फिर कैंटरबरी म्यूजिक हॉल में एक बार जाना जहां लाल आरामदायक सीट पर पांव पसार कर बैठना और पिता को अभिनय करते हुए देखना।

और अब रात का वक्त हो रहा है और मैं चार घोड़ों वाली बग्घी में ऊपर की तरफ सफरी झोले में लिपटा हुआ, मां और उसके थियेटर के और साथियों के साथ चला जा रहा हूं। उनकी चाल में रमा तथा हंसी-खुशी में खुश। हमारा बिगुल बजाने वाला अपनी शेखी में हमें केनिंगटन रोड से घोड़े की साज-सज्जा की सुमधुर रुन झुन और घोड़ों की टापों की संगीतमय आवाज़ के साथ लिये जा रहा था।

तभी कुछ हुआ। ये एक महीने के बाद की बात भी हो सकती है या थोड़े ही दिनों के बाद की भी। अचानक लगा कि मां और बाहर की दुनिया के साथ सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वह सुबह से अपनी किसी सखी के साथ बाहर गयी हुई थी और वापिस लौटी तो बहुत अधिक उत्तेजना से भरी हुई थी। मैं फर्श पर खेल रहा था और अपने ठीक ऊपर चल रहे भीषण तनाव के बारे में सतर्क हो गया था। ऐसा लग रहा था मानो मैं कूएं की तलहटी में सुन रहा होऊं। मां भावपूर्ण तरीके से हाव-भाव जतला रही थी, रोये जा रही थी और बार-बार आर्मस्ट्रंग का नाम ले रही थी - आर्मस्ट्रंग ने ये कहा और आर्मस्ट्रंग ने वो कहा। आर्मस्ट्रंग जंगली है। मां की इस तरह की उत्तेजना हमने पहले नहीं देखी थी और यह इतनी तेज थी कि मैंने रोना शुरू कर दिया। मैं इतना रोया कि मज़बूरन मां को मुझे गोद में उठाना पड़ा और दिलासा देनी पड़ी। कुछ बरस बाद ही मुझे उस दोपहरी के महत्त्व का पता चल पाया था। मां अदालत से लौटी थी। वहां उसने मेरे पिता पर बच्चों के भरण पोषण का खर्चा-पानी न देने की वजह से मुकदमा ठोक रखा था और बदकिस्मती से मामला उसके पक्ष में नहीं जा रहा था। आर्मस्ट्रंग मेरे पिता का वकील था।

मैं पिता को बहुत ही कम जानता था और मुझे इस बात की बिल्कुल भी याद नहीं थी कि वे कभी हमारे साथ रहे हों। वे भी वैराइटी स्टेज के कलाकार थे। एकदम शांत और चिंतनशील। आंखें उनकी एकदम काली थीं। मां का कहना था कि वे एकदम नेपोलियन की तरह दीखते थे। उनकी हल्की महीन आवाज़ थी और उन्हें बेहतरीन अदाकार समझा जाता था। उन दिनों भी वे हर हफ्ते चालीस पौंड की शानदार रकम कमा लिया करते थे। बस, दिक्कत सिर्फ एक ही थी कि वे पीते बहुत थे। मां के अनुसार यही उन दोनों के बीच झगड़े की जड़ थी।

स्टेज कलाकारों के लिए यह बहुत ही मुश्किल बात होती कि वे पीने से अपने आपको रोक सकें। कारण यह था कि उन दिनों शराब सभी थियेटरों में ही बिका करती थी और कलाकार की अदाकारी के बाद उससे उम्मीद की जाती थी कि वह थियेटर बार में जाये और ग्राहकों के साथ बैठ कर पीये। कुछ थियेटर तो बॉक्स ऑफिस से कम और शराब बेच कर ज्यादा कमा लिया करते थे। कुछेक कलाकारों को तो तगड़ी तन्ख्वाह ही दी जाती थी जिनमें उनकी प्रतिभा का कम और उस पगार को थियेटर के बार में उड़ाने का ज्यादा योगदान रहता था। इस तरह से कई बेहतरीन कलाकार शराब के चक्कर में बरबाद हो गये। मेरे पिता भी ऐसे कलाकारों में से एक थे। वे मात्र सैंतीस बरस की उम्र में ज्यादा शराब के कारण भगवान को प्यारे हो गये थे।

मां उनके बारे में मज़ाक ही मज़ाक में और उदासी के साथ किस्से बताया करती थी। शराब पीने के बाद वे उग्र स्वभाव के हो जाते थे और उनकी इसी तरह की एक बार की दारूबाजी की नौटंकी में मां उन्हें छोड़-छाड़ कर अपनी कुछ सखियों के साथ ब्राइटन भाग गयी थी। पिता जी ने जब हड़बड़ी में तार भेजा,"तुम्हारा इरादा क्या है और तुरंत जवाब दो?" तो मां ने वापसी तार भेजा था,"नाच, गाना, पार्टियां और मौज-मज़ा, डार्लिंग!"

मां दो बहनों में से बड़ी थी। उनके पिता चार्ल्स हिल्स, जो एक आइरिश मोची थे, काउंटी कॉर्क, आयरलैंड से आये थे। उनके गाल सुर्ख सेबों की तरह लाल थे। उनके सिर पर बालों के सफेद गुच्छे थे। उनकी वैसी सफेद दाढ़ी थी जैसी व्हिस्लर के पोट्रेट में कार्लाइल की थी। वे कहा करते थे कि राष्ट्रीय आंदोलन के दिनों में पुलिस से छिपने-छिपाने के चक्कर में वे गीले नम खेतों में सोते रहे। इस कारण से उनके घुटनों में हमेशा के लिए दर्द बैठ गया और इस कारण वे दोहरे हो कर चलते थे। वे आखिर लंदन में आ कर बस गये थे और अपने लिए ईस्ट लेन वेलवर्थ में जूतों की मरम्मत का काम-धंधा तलाश लिया था।

दादी आधी घुमक्कड़िन थी। यह बात हमारे परिवार का खुला रहस्य थी। दादी मां हमेशा इस बात की शेखी बघारा करती थी कि उनका परिवार हमेशा ज़मीन का किराया दे कर रहता आया था। उनका घर का नाम स्मिथ था। मुझे उनकी शानदार नन्हीं बुढ़िया के रूप में याद है जो हमेशा मेरे साथ नन्हें-मुन्ने बच्चों जैसी बातें करके मुझसे दुआ सलाम किया करती थी। मेरे छ: बरस के होने से पहले ही वे चल बसी थीं। वे दादा से अलग हो गयी थीं जिसका कारण उन दोनों में से कोई भी नहीं बताया करता था। लेकिन केट आंटी के अनुसार इसके पीछे पारिवारिक झगड़ा था और दादा ने एक प्रेमिका रखी हुई थी और एक बार उसे बीच में ला कर दादी को हैरानी में डाल दिया था। आम जगह के मानदंडों के माध्यम से हमारे खानदान के नैतिकता को नापना उतना ही गलत प्रयास होगा जितना गर्म पानी में थर्मामीटर डालकर देखना होता है। इस तरह की आनुवंशिक काबलियत के साथ मोची परिवार की दो प्यारी बहनों ने घर-बार छोड़ा और स्टेज को समर्पित हो गयीं।

केट आंटी, मां की छोटी बहन, भी स्टेज की अदाकारा थी। लेकिन हम उसके बारे में बहुत ही कम जानते थे। इसका कारण यह था कि वह अक्सर हमारी ज़िंदगी में से आती-जाती रहती थी। वह देखने में बहुत आकर्षक थी और गुस्सैल स्वभाव की थी इसलिए मां से उसकी कम ही पटती थी। उसका कभी-कभार आना अचानक छोटे-मोटे टंटे में ही खत्म होता था कि मां ने कुछ न कुछ उलटा सीधा कह दिया होता था या कर दिया होता था।

अट्ठारह बरस की उम्र में मां एक अधेड़ आदमी के साथ अफ्रीका भाग गयी थी। वह अक्सर वहां की अपनी ज़िंदगी की बात किया करती थी कि किस तरह से वह वहां पेड़ों के झुरमुटों, नौकरों और जीन कसे घोड़ों के बीच मस्ती भरी ज़िंदगी जी रही थी। उसकी उम्र के अट्ठारहवें बरस में मेरे बड़े भाई सिडनी का जन्म हुआ था। मुझे बताया गया था कि वह एक लॉर्ड का बेटा था और जब वह इक्कीस बरस का हो जायेगा तो उसे वसीयत में दो हजार पौंड की शानदार रकम मिलेगी। इस समाचार से मैं एक साथ ही दुखी और खुश हुआ करता था।

मां बहुत अरसे तक अफ्रीका में नहीं रही और इंगलैंड में आ कर उसने मेरे पिता से शादी कर ली। मुझे नहीं पता कि उसकी ज़िंदगी के अफ्रीकी घटना-चक्र का क्या हुआ, लेकिन भयंकर गरीबी के दिनों में मैं उसे इस बात के लिए कोसा करता था कि वह इतनी शानदार ज़िंदगी काहे को छोड़ आयी थी। वह हँस देती और कहा करती कि मैं इन चीज़ों को समझने की उम्र से बहुत कम हूं और मुझे इस बारे में इतना नहीं सोचना चाहिये।

मुझे कभी भी इस बात का अंदाज़ा नहीं लग पाया कि वह मेरे पिता के बारे में किस तरह की भावनाएं रखती थी। लेकिन जब भी वह मेरे पिता के बारे में बात करती थी, उसमें कोई कड़ुवाहट नहीं होती थी। इससे मुझे शक होने लगता था कि वह खुद भी उनके प्यार में गहरे-गहरे डूबी हुई थी। कभी तो वह उनके बारे में बहुत सहानुभूति के साथ बात करती तो कभी उनकी शराबखोरी की लत और हिंसक प्रवृत्ति के बारे में बताया करती थी। बाद के बरसों में जब भी वह मुझसे खफा होती, वह हिकारत से कहती,तू भी अपने बाप की ही तरह किसी दिन अपने आपको गटर में खत्म कर डालेगा।"

वह पिताजी को अफ्रीका जाने से पहले के दिनों से जानती थी। वे एक दूसरे को प्यार करते थे और उन्होंने शामुस ओ'ब्रीयन नाम के एक आयरिश मेलोड्रामा में एक साथ काम किया था। सोलह बरस की उम्र में मां ने उसमें प्रमुख भूमिका निभायी थी। कम्पनी के साथ टूर करते हुए मां एक अधेड़ उम्र के लॉर्ड के सम्पर्क में आयी और उसके साथ अफ्रीका भाग गयी। जब वह वापिस इंगलैंड आयी तो पिता ने अपने रोमांस के टूटे धागों को फिर से जोड़ा और दोनों ने शादी कर ली। तीन बरस बाद मेरा जन्म हुआ था। मैं नहीं जानता कि शराबखोरी के अलावा और कौन-कौन सी घटनाएं काम कर रही थीं लेकिन मेरे जन्म के एक बरस के ही बाद वे दोनों अलग हो गये थे। मां ने गुज़ारे भत्ते की भी मांग नहीं की थी। वह उन दिनों खुद एक स्टार हुआ करती थी और हर हफ्ते 25 पौंड कमा रही थी। उसकी माली हैसियत इतनी अच्छी थी कि अपना और अपने बच्चों का भरण पोषण कर सके। लेकिन जब उसकी ज़िंदगी में दुर्भाग्य ने दस्तक दी तभी उसने मदद की मांग की। अगर ऐसा न होता तो उसने कभी भी कानूनी कार्रवाई न की होती।

मां को उसकी आवाज़ बहुत तकलीफ दे रही थी। वैसे भी उसकी आवाज़ कभी भी इतनी बुलंद नहीं थी लेकिन ज़रा-सा भी सर्दी-जुकाम होते ही उसकी स्वर तंत्री में सूजन आ जाती थी जो फिर हफ्तों चलती रहती थी; लेकिन उसे मज़बूरी में काम करते रहना पड़ता था। इसका नतीजा यह हुआ कि उसकी आवाजा़ बद से बदतर होती चली गयी। वह अब अपनी आवाज़ पर भरोसा नहीं कर सकती थी। गाना गाते-गाते बीच में ही उसकी आवाज़ भर्रा जाती या अचानक गायब ही हो जाती और फुसफुसाहट में बदल जाती। तब श्रोता बीच में ठहाके लगने लगते। वे गला फाड़ कर चिल्लाना शुरू कर देते। आवाज़ की चिंता ने मां की सेहत को और भी डांवाडोल कर दिया था और उसकी हालत मानसिक रोगी जैसी हो गयी। नतीजा यह हुआ कि उसे थियेटर से बुलावे आने कम होते चले गये और एक दिन ऐसा भी आया कि बिल्कुल बंद ही हो गये।

ये उसकी आवाजा़ के खराब होते चले जाने के कारण ही था कि मुझे पांच बरस की उम्र में पहली बार स्टेज पर उतरना पड़ा। मां आम तौर पर मुझे किराये के कमरे में अकेला छोड़ कर जाने के बजाये रात को अपने साथ थियेटर ले जाना पसंद करती थी। वह उस वक्त कैंटीन एट द' एल्डरशाट में काम कर रही थी। ये एक गंदा, चलताऊ-सा थियेटर था जो ज्यादातर फौजियों के लिए खेल दिखाता था। वे लोग उजड्ड किस्म के लोग होते थे और उन्हें भड़काने या ओछी हरकतों पर उतर आने के लिए मामूली-सा कारण ही काफी होता था। एल्डरशॉट में नाटकों में काम करने वालों के लिए वहां एक हफ्ता भी गुज़ारना भयंकर तनाव से गुज़रना होता था।

मुझे याद है, मैं उस वक्त विंग्स में खड़ा हुआ था जब पहले तो मां की आवाज़ फटी और फिर फुसफुसाहट में बदल गयी। श्रोताओं ने ठहाके लगाना शुरू कर दिये और अनाप-शनाप गाने लगे और कुत्ते बिल्लियों की आवाज़ें निकालना शुरू कर दिया। सब कुछ अस्पष्ट-सा था और मैं ठीक से समझ नहीं पा रहा था कि ये सब क्या चल रहा है। लेकिन शोर-शराबा बढ़ता ही चला गया और मज़बूरन मां को स्टेज छोड़ कर आना पड़ा। जब वह विंग्स में आयी तो बुरी तरह से व्यथित थी और स्टेज मैनेजर से बहस कर रही थी। स्टेज मैनेजर ने मुझे मां की सखियों के आगे अभिनय करते देखा था। वह मां से शायद यह कह रहा था कि उसके स्थान पर मुझे स्टेज पर भेज दे। और इसी हड़बड़ाहट में मुझे याद है कि उसने मुझे एक हाथ से थामा था और स्टेज पर ले गया था। उसने मेरे परिचय में दो चार शब्द बोले और मुझे स्टेज पर अकेला छोड़ कर चला गया। और वहां फुट लाइटों की चकाचौंध और धुंए के पीछे झांकते चेहरों के सामने मैंने गाना शुरू कर दिया। ऑरक्रेस्टा मेरा साथ दे रहा था। थोड़ी देर तक तो वे भी गड़बड़ बजाते रहे और आखिर उन्होंने मेरी धुन पकड़ ही ली। ये उन दिनों का एक मशहूर गाना जैक जोन्स था।

जैक जोंस सबका परिचित और देखा भाला

घूमता रहता बाज़ार में गड़बड़झाला

नहीं नज़र आती कोई कमी जैक में हमें

तब भी नहीं जब वो जैसा था तब कैसा था

हो गयी गड़बड़ जब से छोड़ा उसे बुलियन गाड़ी ने

हो गया बेड़ा गर्क, जैक गया झाड़ी में

नहीं मिलता वह दोस्तों से पहले की तरह

भर देता है मुझे वह हिकारत से

पढ़ता है हर रविवार वह अखबार टेलिग्राफ

कभी वह बन कर खुश था स्टार

जब से जैक के हाथ में आयी है माया

क्या बतायें, हमने उसे पहले जैसा नहीं पाया।

अभी मैंने आधा ही गीत गाया था कि स्टेज पर सिक्कों की बरसात होने लगी। मैंने तत्काल घोषणा कर दी कि मैं पहले पैसे बटोरूंगा और उसके बाद ही गाना गाऊंगा। इस बात पर और अधिक ठहाके लगे। स्टेज मैनेजर एक रुमाल ले कर स्टेज पर आया और सिक्के बटोरने में मेरी मदद करने लगा। मुझे लगा कि वो सिक्के अपने पास रखना चाहता है। मैंने ये बात दर्शकों तक पहुंचा दी तो ठहाकों का जो दौरा पड़ा वो थमने का नाम ही न ले। खास तौर पर तब जब वह रुमाल लिये-लिये विंग्स में जाने लगा और मैं चिंतातुर उसके पीछे-पीछे लपका। जब तक उसने सिक्कों की वो पोटली मेरी मां को नहीं थमा दी, मैं स्टेज पर वापिस गाने के लिए नहीं आया। अब मैं बिल्कुल सहज था। मैं दर्शकों से बातें करता रहा, मैं नाचा और मैंने तरह-तरह की नकल करके दिखायी। मैंने मां के आयरिश मार्च थीम की भी नकल करके बतायी।

रिले . . रिले. . बच्चे को बहकाते रिले

रिले. . रिले. . मैं वो बच्चा जिसे बहकाते रिले

हो बड़ी या हो सेना छोटी

नहीं कोई इतना दुबला और साफ

करते अच्छे सार्जेंट रिले

बहादुर अट्ठासी में से रिले. .।

और कोरस को दोहराते हुए मैं अपने भोलेपन में मां की आवाज़ के फटने की भी नकल कर बैठा। मैं ये देख कर हैरान था कि दर्शकों पर इसका जबरदस्त असर पड़ा है। खूब हंसी के पटाखे छूट रहे थे। लोग खूब खुश थे और इसके बाद फिर सिक्कों की बौछार। और जब मां मुझे स्टेज से लिवाने के लिए आयी तो उसकी मौज़ूदगी पर लोगों ने जम के तालियां बजायीं। उस रात मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार स्टेज पर उतरा था और मां आखिरी बार।

जब नियति आदमी के भाग्य के साथ खिलवाड़ करती है तो उसके ध्यान में न तो दया होती है और न ही न्याय ही। मां के साथ भी नियति ने ऐसे ही खेल दिखाये। उसे उसकी आवाज़ फिर कभी वापिस नहीं मिली। जब पतझड़ के बाद सर्दियां आयीं तो हमारी हालत बद से बदतर हो गयी। हालांकि मां बहुत सावधान थी और उसने थोड़े-बहुत पैसे बचा कर रखे थे लेकिन कुछ ही दिन में ये पूंजी भी खत्म हो गयी। धीरे-धीरे उसके गहने और छोटी-मोटी चीज़ें बाहर का रास्ता देखने लगीं। ये चीज़ें घर चलाने के लिए गिरवी रखी जा रही थीं। और इस पूरे अरसे के दौरान वह उम्मीद करती रही कि उसकी आवाज़ वापिस लौट आयेगी।

इस बीच हम तीन आरामदायक कमरों के मकान में से दो कमरों के मकान में और फिर एक कमरे के मकान में शिफ्ट हो चुके थे। हमारा सामान कम होता चला जा रहा था और हर बार हम जिस तरह के पड़ोस में रहने के लिए जाते, उसका स्तर नीचे आता जा रहा था। तब वह धर्म की ओर मुड़ गयी थी। मुझे इसका कारण तो यह लगता है कि शायद उसे यह उम्मीद थी कि इससे उसकी आवाज़ वापिस लौट आयेगी। वह नियमित रूप से वेस्टमिन्स्टर ब्रिज रोड पर क्राइस्ट चर्च जाया करती और हर इतवार को मुझे बाख के आर्गन म्यूजिक के लिए बैठना पड़ता और पादरी एफ बी मेयेर की जोशीली तथा ड्रामाई आवाज़ को सुनना पड़ता जो गिरजे के मध्य भाग से घिसटते हुए पैरों की तरह आती प्रतीत होती। ज़रूर ही उनके भाषणों में अपील होती होगी क्योंकि मैं अक्सर मां को दबोच कर थाम लेता और चुपके से अपने आंसू पोंछ डालता। हालांकि इससे मुझे परेशानी तो होती ही थी।

मुझे अच्छी तरह से याद है उस गर्म दोपहरी में पवित्र प्रार्थना सभा की जब वहां भीड़ में से चांदी का एक ठंडा प्याला गुज़ारा गया। उस प्याले में स्वादिष्ट अंगूरों का रस भरा हुआ था। मैंने उसमें से ढेर सारा जूस पी लिया था और मां का मुझे रोकता-सा वह नम नरम हाथ और तब मैंने कितनी राहत महसूस की थी जब फादर ने बाइबल बंद की थी। इसका मतलब यही था कि अब प्रार्थनाएं शुरू होंगी और ईश वंदना के अंतिम गीत गाये जायेंगे।

मां जब से धर्म की शरण में गयी थी, वह थियेटर की अपनी सखियों से कभी-कभार ही मिल पाती। उसकी वह दुनिया अब छू मंतर हो चुकी थी और उसकी अब यादें ही बची थीं। ऐसा लगता था मानो हम हमेशा से ही इस तरह के दयनीय हालात में रहते आये थे। बीच का एक बरस तो तकलीफों के पूरे जीवन काल की तरह लगा था। हम अब बेरौनक धुंधलके कमरे में रहते थे। काम-धाम तलाशना बहुत ही दूभर था और मां को स्टेज के अलावा कुछ आता-जाता नहीं था, इससे उसके हाथ और बंध जाते थे। वह छोटे कद की, लालित्य लिये भावुक महिला थी। वह विक्टोरियन युग की ऐसी भयंकर विकट परिस्थितियों से जूझ रही थी जहां अमीरी और गरीबी के बीच बहुत बड़ी खाई थी। गरीब-गुरबा औरतों के पास हाथ का काम करने, मेहनत मजूरी करने के अलावा और कोई चारा नहीं था या फिर थी दुकानों वगैरह में हाड़-तोड़ गुलामी। कभी-कभार उसे नर्सिंग का काम मिल जाता था लेकिन इस तरह के काम भी बहुत दुर्लभ होते और ये भी बहुत ही कम अरसे के लिए होते। इसके बावजूद वह कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेती। वह थियेटर के लिए अपनी पोशाकें खुद सीया करती थी इसलिए सीने-पिरोने के काम में उसका हाथ बहुत अच्छा था। इस तरह से वह चर्च के लोगों की कुछ पोशाकें सी कर कुछेक शिलिंग कमा ही लेती थी। लेकिन ये कुछ शिलिंग हम तीनों के गुज़ारे के लिए नाकाफी होते। पिता जी की दारूखोरी के कारण उन्हें थियेटर में काम मिलना अनियमित होता चला गया और इस तरह हर हफ्ते मिलने वाला उनका दस शिलिंग का भुगतान भी अनियमित ही रहता।

मां अब तक अपनी अधिकांश चीज़ें बेच चुकी थी। सबसे आखिर में बिकने के लिए जाने वाली उसकी वो पेटी थी जिसमें उसकी थियेटर की पोशाकें थीं। वह इन चीज़ों को अब तब इसलिए अपने पास संभाल कर रखे हुए थी कि शायद कभी उसकी आवाज़ वापिस लौट आये और उसे फिर से थियेटर में काम मिलना शुरू हो जाये। कभी-कभी वह ट्रंक के भीतर झांकती कि शायद कुछ काम का मिल जाये। तब हम कोई मुड़ी-तुड़ी पोशाक या विग देखते तो उससे कहते कि वह इसे पहन कर दिखाये। मुझे याद है कि हमारे कहने पर उसने जज की एक टोपी और गाउन पहने थे और अपनी कमज़ोर आवाज़ में अपना एक पुराना सफल गीत सुनाया था। ये गीत उसने खुद लिखा था। गीत के बोल तुकबंदी लिये हुए थे और इस तरह से थे:

मैं हूं एक महिला जज

और मैं हूं एक अच्छी जज

मामलों के फैसले करती ईमानदारी से

पर आते ही नहीं मामले पास मेरे

मैं सिखाना चाहती हूं वकीलों को

एकाध काम की बात

क्या नहीं कर सकती औरत जात।

आश्चर्यजनक तरीके से तब वह गरिमापूर्ण लगने वाले नृत्य की भंगिमाएं दिखाने लगती। वह तब कसीदाकारी भूल जाती और हमें अपने पुराने सफल गीतों से और नृत्यों से तब तक खुश करती रहती जब तक वह थक कर चूर न हो जाती और उसकी सांस न उखड़ने लगती। तब वह बीती बातें याद करते लगती और हमें अपने नाटकों के कुछ पुराने पोस्टर दिखाती। एक पोस्टर इस तरह से था:

खासो-खास प्रदर्शन

नाज़ुक और प्रतिभा सम्पन्न

लिली हार्ले

गम्भीर हास्य की देवी,

बहुरूपिन और नर्तकी

जब वह हमारे सामने प्रदर्शन करती तो वह अपने खुद के मनोरंजक अंश तो दिखाती ही, दूसरी अभिनेत्रियों की भी नकल दिखाती जिन्हें उसने तथा कथित वैध थियेटरों में काम करते देखा था।

किसी नाटक को सुनाते समय वह अलग-अलग अंशों का अभिनय करके दिखाती। उदाहरण के लिए द' साइन ऑफ द' क्रॉस' में मर्सिया अपनी आंखों में अलौकिक प्रकाश भरे, शेरों को खाना खिलाने के लिए मांद वाले पिंजरे में जाती है। वह हमें विल्सन बैरट की ऊंची पोप जैसी आवाज में नकल करके दिखाती। वह छोटे कद का आदमी था इसलिए पांच इंच ऊंची हील वाले जूते पहन कर घोषणा करता:"यह ईसाइयत क्या है, मैं नहीं जानता लेकिन मैं इतना ज़रूर जानता हूं कि..कि यदि ईसाइयत ने मर्सिया जैसी औरतें बनायी हैं तो रोम, नहीं, जगत ही इसके लिए पवित्रतम होगा।" इस अंश को हास्य की झलक के साथ करके दिखाती लेकिन उसमें बैरेट की प्रतिभा के प्रति सराहना भाव ज़रूर होता।

जिन व्यक्तियों में वास्तविक प्रतिभा थी, उन्हें पहचानने, मान देने में उसका कोई सानी नहीं था। चाहे फिर वह नायिका ऐलेन टेरी हो, या म्यूजिक हॉल की जो एल्विन, वह उनकी कला की व्याख्या करती। वह तकनीक की बारीक जानकारी रखती थी और थियेटर के बारे में ऐसे व्यक्ति की तरह बात करती थी जो थियेटर को प्यार करने वाले ही कर सकते हैं।

वह अलग-अलग किस्से सुनाती और उनका अभिनय करके दिखाती। उदाहरण के लिए, वह याद करती सम्राट नेपोलियन के जीवन का कोई प्रसंग : दबे पांव अपने पुस्तकालय में किसी किताब की तलाश में जाना और मार्शल नेय द्वारा रास्ते में घेर लिया जाना। मां ये दोनों ही भूमिकाएं अदा करती लेकिन हमेशा हास्य का पुट ले कर, "महाशय, मुझे इजाज़त दीजिये कि मैं आपके लिये ये किताब ला दूं। मेरा कद ऊंचा है।" और नेपोलियन यह कहते हुए खफ़ा होते हुए गुर्राया "ऊंचा या लम्बा?"

मां नेल ग्विन का विस्तार से अभिनय करके बताती कि वह किस तरह से महल की सीढ़ियों पर झुकी हुई है और उसकी बच्ची उसकी गोद में है। वह चार्ल्स II को धमकी दे रही है,"इस बच्ची को कोई नाम दो वरना मैं इसे ज़मीन पर पटक दूंगी।" और सम्राट चार्ल्स हड़बड़ी में सहमत हो जाते हैं, "ठीक है, ठीक है, द' ड्यूक ऑफ अल्बांस।"

मुझे ओक्ले स्ट्रीट में तहखाने वाले एक कमरे के घर की वह शाम याद है। मैं बुखार उतरने के बाद बिस्तर पर लेटा आराम कर रहा था। सिडनी रात वाले स्कूल में गया हुआ था और मां और मैं अकेले थे। दोपहर ढलने को थी। मां खिड़की से टेक लगाये न्यू टेस्टामेंट पढ़ रही थी, अभिनय कर रही थी, और अपने अतुलनीय तरीके से उसकी व्याख्या कर रही थी। वह गरीबों और मासूम बच्चों के प्रति यीशू मसीह के प्रेम और दया के बारे में बता रही थी। शायद उसकी संवेदनाएं मेरे बुखार के कारण थीं, लेकिन उसने जिस शानदार और मन को छू लेने वाले ढंग से यीशू के नये अर्थ समझाये वैसे मैंने न तो आज तक सुने और न ही देखे ही हैं। मां उनकी सहिष्णुता और समझ के बारे में बता रही थी; उसने उस महिला के बारे में बताया जिससे पाप हो गया था और उसे भीड़ द्वारा पत्थर मार कर सज़ा दी जानी थी, और उनके प्रति यीशू के शब्द, "आप में से जिसने कभी पाप न किया हो वही आगे आ कर सबसे पहला पत्थर मारे।"

सांझ का धुंधलका होने तक वह पढ़ती रही। वह सिर्फ लैम्प जलाने की लिए ही उठी। तब उसने उस विश्वास के बारे में बताया जो यीशू मसीह ने बीमारों में जगाया था। बीमारों को बस, उनके चोगे की तुरपन को ही छूना होता था और वे चंगे हो जाते थे।

मां ने बड़े-बड़े पादरियों और महिला पादरियों की घृणा के बारे में बताया और बताया कि किस तरह से यीशू मसीह को गिरफ्तार किया गया था और वे किस तरह से पोंटियस के सामने शांत बने रहे थे। पोंटियस ने हाथ धोते हुए कहा था (मां ने बहुत ही शानदार अभिनय करके ये बताया)," मुझे इस आदमी में कोई खराबी ही नज़र नहीं आती।" तब मां ने बताया कि किस तरह से उन लोगों ने यीशू को निर्वस्त्र कर डाला था और उसे जलील किया था और उसके सिर पर कांटों का ताज पहना दिया था, उसका मज़ाक उड़ाया था और उसके मुंह पर ये कहते हुए थूका था, "ओ यहूदियों के राजा ..।"

जब वह ये सब सुना रही थी तो उसके गालों पर आंसू ढरके चले आ रहे थे। मां ने बताया कि किस तरह से साइमन ने क्रॉस ढोने में यीशू मसीह की मदद की थी और किस तरह भाव विह्वल हो कर यीशू ने उसे देखा था। मां ने बाराबास के बारे में बताया जो पश्चातापी था और क्रॉस पर उनके साथ ही मरा था। वह क्षमा मांग रहा था और यीशू कह रहे थे, "आज तुम मेरे साथ स्वर्ग में होवोगे", और क्रॉस से अपनी मां की ओर देखते हुए यीशू ने कहा था, "मां, अपने बेटे को देखो।" और उनकी अंतिम, मरते वक्त की पीड़ा भरी कराह, "मेरे परम पिता, आपने मुझे क्षमा क्यों नहीं किया?" और हम दोनों रो पड़े थे।

"तुमने देखा", मां कह रही थी, "वे मानवता से कितने भरे हुए थे। हम सब की तरह उन्हें भी संदेह झेलना पड़ा।" मां ने मुझे इतना भाव विह्वल कर दिया था कि मैं उसी रात मर जाना और यीशू से मिलना चाहता था। लेकिन मां इतनी उत्साहित नहीं थी, "यीशू चाहते हैं कि पहले तुम जीओ और अपने भाग्य को यहीं पूरा करो।" उसने कहा था। ओक्ले स्ट्रीट के उस तहखाने के उस अंधेरे कमरे में मां ने मुझे उस ज्योति से भर दिया था जिसे विश्व ने आज तक जाना है और जिसने पूरी दुनिया को एक से बढ़ कर एक कथा तत्व वाले साहित्य और नाटक दिये हैं: प्यार, दया और मानवता।

हम समाज के जिस निम्नतर स्तर के जीवन में रहने को मज़बूर थे वहां ये सहज स्वाभाविक था कि हम अपनी भाषा-शैली के स्तर के प्रति लापरवाह होते चले जाते लेकिन मां हमेशा अपने परिवेश से बाहर ही खड़ी हमें समझाती और हमारे बात करने के ढंग, उच्चारण पर ध्यान देती रहती, हमारा व्याकरण सुधारती रहती और हमें यह महसूस कराती रहती कि हम खास हैं।

हम जैसे-जैसे और अधिक गरीबी के गर्त में उतरते चले गये, मैं अपनी अज्ञानता के चलते और बचपने में मां से कहता कि वह फिर से स्टेज पर जाना शुरू क्यों नहीं कर देती। मां मुस्कुराती और कहती कि वहां का जीवन नकली और झूठा है और कि इस तरह के जीवन में रहने से हम जल्दी ही ईश्वर को भूल जाते हैं। इसके बावज़ूद वह जब भी थियेटर की बात करती तो वह अपने आपको भूल जाती और उत्साह से भर उठती। यादों की गलियों में उतरने के बाद वह फिर से मौन के गहरे कूंए में उतर जाती और अपने सुई धागे के काम में अपने आपको भुला देती। मैं भावुक हो जाता क्योंकि मैं जानता था कि हम अब उस शानो-शौकत वाली ज़िंदगी का हिस्सा नहीं रहे थे। तब मां मेरी तरफ देखती और मुझे अकेला पा कर मेरा हौसला बढ़ाती।

सर्दियां सिर पर थीं और सिडनी के कपड़े कम होते चले जा रहे थे। इसलिए मां ने अपने पुराने रेशमी जैकेट में से उसके लिए एक कोट सी दिया था। उस पर काली और लाल धारियों वाली बांहें थीं। कंधे पर प्लीट्स थी और मां ने पूरी कोशिश की थी कि उन्हें किसी तरह से दूर कर दे लेकिन वह उन्हें हटा नहीं पा रही थी। जब सिडनी से वह कोट पहनने के लिए कहा गया तो वह रो पड़ा था, "स्कूल के बच्चे मेरा ये कोट देख कर क्या कहेंगे?"

"इस बात की कौन परवाह करता है कि लोग क्या कहेंगे?" मां ने कहा था,"इसके अलावा, ये कितना खास किस्म का लग रहा है।" मां का समझाने-बुझाने का तरीका इतना शानदार था कि सिडनी आज दिन तक नहीं समझ पाया है कि वह मां के फुसलाने पर वह कोट पहनने को आखिर तैयार ही कैसे हो गया था। लेकिन उसने कोट पहना था। उस कोट की वजह से और मां के ऊंची हील के सैंडिलों को काट-छांट कर बनाये गये जूतों से सिडनी के स्कूल में कई झगड़े हुए। उसे सब लड़के छेड़ते,"जोसेफ और उसका रंग बिरंगा कोट।" और मैं, मां की पुरानी लाल लम्बी जुराबों में से काट-कूट कर बनायी गयी जुराबें (लगता जैसे उनमें प्लीटें डाली गयी हैं।) पहन कर जाता तो बच्चे छेड़ते,"आ गये सर फ्रांसिस ड्रेक।"

इस भयावह हालात के चरम दिनों में मां को आधी सीसी सिर दर्द की शिकायत शुरू हुई। उसे मज़बूरन अपना सीने-पिरोने का काम छोड़ देना पड़ा। वह कई-कई दिन तक अंधेरे कमरे में सिर पर चाय की पत्तियों की पट्टियां बांधे पड़ी रहती। हमारा वक्त खराब चल रहा था और हम गिरजा घरों की खैरात पर पल रहे थे, सूप की टिकटों के सहारे दिन काट रहे थे और मदद के लिए आये पार्सलों के सहारे जी रहे थे। इसके बावजूद, सिडनी स्कूल के घंटों के बीच अखबार बेचता, और बेशक उसका योगदान ऊंट के मुंह में जीरा ही होता, ये उस खैरात के सामान में कुछ तो जोड़ता ही था। लेकिन हर संकट में हमेशा कोई न कोई क्लाइमेक्स भी छुपा होता है। इस मामले में ये क्लाइमेक्स बहुत सुखद था।

एक दिन जब मां ठीक हो रही थी, चाय की पत्ती की पट्टी अभी भी उसके सिर पर बंधी थी, सिडनी उस अंधियारे कमरे में हांफता हुआ आया और अखबार बिस्तर पर फेंकता हुआ चिल्लाया,"मुझे एक बटुआ मिला है।" उसने बटुआ मां को दे दिया। जब मां ने बटुआ खोला तो उसने देखा, उसमें चांदी और सोने के सिक्के भरे हुए थे। मां ने तुरंत उसे बंद कर दिया और उत्तेजना से वापिस अपने बिस्तर पर ढह गयी।

सिडनी अखबार बेचने के लिए बसों में चढ़ता रहता था। उसने बस के ऊपरी तल्ले पर एक खाली सीट पर बटुआ पड़ा हुआ देखा। उसने तुरंत अपने अखबार उस सीट के ऊपर गिरा दिये और फिर अखबारों के साथ पर्स भी उठा लिया और तेजी से बस से उतर कर भागा। एक बड़े से होर्डिंग के पीछे, एक खाली जगह पर उसने बटुआ खोल कर देखा और उसमें चांदी और तांबे के सिक्कों का ढेर पाया। उसने बताया कि उसका दिल बल्लियों उछल रहा था और और वह बिना पैसे गिने ही घर की तरफ भागता चला आया।

जब मां की हालत कुछ सुधरी तो उसने बटुए का सारा सामान बिस्तर पर उलट दिया। लेकिन बटुआ अभी भी भारी था। उसके बीच में भी एक जेब थी। मां ने उस जेब को खोला और देखा कि उसके अंदर सोने के सात सिक्के छुपे हुए थे। हमारी खुशी का ठिकाना नहीं था। ईश्वर का लाख-लाख शुक्र कि बटुए पर कोई पता नहीं था। इसलिए मां की झिझक थोड़ी कम हो गयी थी। हालांकि उस बटुए के मालिक के दुर्भाग्य के प्रति थोड़ा-सा अफसोस जताया गया था, अलबत्ता, मां के विश्वास ने तुरंत ही इसे हवा दे दी कि ईश्वर ने इसे हमारे लिए एक वरदान के रूप में ऊपर से भेजा है।

मां की बीमारी शारीरिक थी अथवा मनोवैज्ञानिक, मैं नहीं जानता। लेकिन वह एक हफ्ते के भीतर ही ठीक हो गयी। जैसे ही वह ठीक हुई, हम छुट्टी मनाने के लिए समुद्र के दक्षिण तट पर चले गये। मां ने हमें ऊपर से नीचे तक नये कपड़े पहनाये।

पहली बार समुद्र को देख मैं जैसे पागल हो गया था। जब मैं उस पह़ाड़ी गली में तपती दोपहरी में समुद्र के पास पहुंचा तो मैं ठगा-सा रह गया। हम तीनों ने अपने जूते उतारे और पानी में छप-छप करते रहे। मेरे तलुओं और मेरे टखनों को गुदगुदाता समुद्र का गुनगुना पानी और मेरे पैरों के तले से सरकती नम, नरम और भुरभुरी रेत.. मेरे आनंद का ठिकाना नहीं था। वह दिन भी क्या दिन था। केसरी रंग का समुद्र तट, उसकी गुलाबी और नीली डोलचियां और उस पर लकड़ी के बेलचे। उसके सतरंगी तंबू और छतरियां, लहरों पर इतराती कश्तियां, और ऊपर तट पर एक तरह करवट ले कर आराम फरमाती कश्तियां जिनमें समुद्री सेवार की गंध रची-बसी थी और वे तट। इन सबकी यादें अभी भी मेरे मन में चरम उत्तेजना से भरी हुई लगती हैं।

1957 में मैं दोबारा साउथ एंड तट पर गया और उस संकरी पहाड़ी गली को खोजने का निष्फल प्रयास करता रहा जिससे मैंने समुद्र को पहली बार देखा था लेकिन अब वहां उसका कोई नामो-निशान नहीं था। शहर के आखिरी सिरे पर वहां जो कुछ था, पुराने मछुआरों के गांव के अवशेष ही दीख रहे थे जिसमें पुराने ढब की दुकानें नजर आ रही थीं। इसमें अतीत की धुंधली सी सरसराहट छुपी हुई थी। शायद यह समुद्री सेवार की और टार की महक थी।

बालू घड़ी में भरी रेत की तरह हमारा खज़ाना चुक गया। मुश्किल समय एक बार फिर हमारे सामने मुंह बाये खड़ा था। मां ने दूसरा रोज़गार ढूंढने की कोशिश की लेकिन कामकाज कहीं था ही नहीं। किस्तों की अदायगी का वक्त हो चुका था। नतीजा यही हुआ कि मां की सिलाई मशीन उठवा ली गयी। पिता की तरफ से जो हर हफ्ते दस शिलिंग की राशि आती थी, वह भी पूरी तरह से बंद हो गयी। हताशा के ऐसे वक्त में मां ने दूसरा वकील करने की सोची। वकील ने जब देखा कि इसमें से मुश्किल से ही वह फीस भर निकाल पायेगा, तो उसने मां को सलाह दी कि उसे लैम्बेथ के दफ्तर के प्राधिकारियों की मदद लेनी चाहिये ताकि अपने और अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए पिता पर मदद के लिए दबाव डाला जा सके।

और कोई उपाय नहीं था। उसके सिर पर दो बच्चों को पालने का बोझ था। उसका खुद का स्वास्थ्य खराब था। इसलिए उसने तय किया कि हम तीनों लैम्बेथ के यतीम खाने (वर्कहाउस) में भरती हो जायें।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 2

हालांकि हम यतीम खाने यानी वर्कहाउस में जाने की ज़िल्लत के बारे में जानते थे लेकिन जब मां ने हमें वहां के बारे में बताया तो सिडनी और मैंने सोचा कि वहां रहने में कुछ तो रोमांच होगा ही और कम से कम इस दमघोंटू कमरे में रहने से तो छुटकारा मिलेगा। लेकिन उस तकलीफ से भरे दिन मैं इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था कि क्या होने जा रहा है जब तक हम सचमुच यतीम खाने के गेट तक पहुंच नहीं गये। तब जा कर उसकी दुखदायी दुविधा का हमें पता चला। वहां जाते ही हमें अलग कर दिया गया। मां एक तरफ महिलाओं वाले वार्ड की तरफ ले जायी गयी और हम दोनों को बच्चों वाले वार्ड में भेज दिया गया।

मैं मुलाकात के पहले ही दिन की दिल को छू लेने वाली उदासी को भला कैसे भूल सकता हूं। यतीम खाने के कपड़ों में लिपटी मां को मुलाकातियों के कमरे की ओर जाते हुए देखना। वह कितनी बेचारी और परेशान हाल दिखायी दे रही थी। एक ही सप्ताह में उसकी उम्र ज्यादा नज़र आने लगी थी और वह दुबला गयी थी। लेकिन उसका चेहरा हमें देखते ही दमकने लगा था। सिडनी और मैं रोने लगे जिससे मां को भी रोना आ गया और उसके गालों पर बड़े-बड़े आंसू ढरकने लगे। आखिर उसने अपने आप को संभाला और हम तीनों एक खुरदरी बेंच पर जा बैठे। हम दोनों के हाथ उसकी गोद में थे और वह धीरे-धीरे उन्हें थपका रही थी। वह हमारे घुटे हुए सिर देख कर मुस्कुरायी और जैसे सांत्वना देते हुए थपकियां सी देने लगी। हमें बताने लगी कि हम जल्दी ही एक बार फिर एक साथ रहने लगेंगे। अपने लबादे में से उसने नारियल की एक कैंडी निकाली जो उसने एक नर्स के कफ को लेस लगा कर कमाये पैसों से खरीदी थी। जब हम अलग हुए तो सिडनी लगातार भरे मन से उससे कहता रहा कि उसकी उम्र कितनी ज्यादा लगने लगी है। • सिडनी और मैंने जल्दी ही अपने आपको यतीम खाने के माहौल के हिसाब से ढाल लिया लेकिन उदासी की काली छाया हमेशा हमारे ऊपर मंडराती रहती थी। मुझे बहुत ही कम घटनाएं याद हैं लेकिन दूसरे बच्चों के साथ एक लम्बी-सी मेज पर बैठ कर दोपहर का भोजन करना अच्छा लगता था और हम इसकी राह देखा करते थे। इसका मुखिया यतीम खाने का ही एक निवासी हुआ करता था। यह व्यक्ति पिचहत्तर बरस का एक बूढ़ा आदमी था। उसका चेहरा गम्भीरता ओढ़े रहता था। उसकी दाढ़ी सफेद थी और उसकी आंखों में उदासी भरी होती थी। उसने मुझे अपने पास बैठने के लिए चुना क्योंकि मैं ही वहां सबसे छोटा था और जब तक उन लोगों ने मेरे सिर की घुटाई नहीं कर दी, मेरे बहुत ही सुंदर घुंघराले बाल हुआ करते थे। बूढ़ा आदमी मुझे अपना "शेर" कहा करता था और बताता कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो मैं एक टॉप हैट लगाया करूंगा और उसकी गाड़ी में पीछे हाथ बांधे बैठा करूंगा। वह मुझे जिस तरह का स्नेह देता, मैं उसे बहुत पसंद करने लगा था। लेकिन अभी एकाध दिन ही बीता था कि वहां एक और छोटा-सा लड़का आया और उस बूढ़े के पास मेरी वाली जगह पर बैठने लगा। लेकिन जब मैंने पूछा तो उसने मौज में आ कर बताया कि हमेशा छोटे और घुंघराले बालों वाले लड़के को ही वरीयता दी जाती है।

तीन सप्ताह के बाद हमें लैम्बेथ यतीम खाने से यतीमों और असहायों के हॉनवैल स्कूल में भेज दिया गया। ये स्कूल लंदन से कोई बारह मील दूर था। घोड़ों द्वारा खींची जाने वाले बेकरी वैन में यह बहुत ही रोमांचकारी यात्रा थी और इन परिस्थितियों में सुखद भी क्योंकि हॉनवैल के आस-पास का नज़ारा उन दिनों बहुत ही खूबसूरत हुआ करता था। वहां शाहबलूत के दरख्त थे, पकते गेहूं से भरे खेत थे और फलों से खूब लदे फलोद्यान थे; और तब से खुले इलाकों में बरसात के बाद की खूब तेज़ और माटी की सोंधी-सोंधी खुशबू मुझे हमेशा हॉनवैल की याद दिला जाती है।

वहां पहुंचने पर हमें अनुमति वाले वार्ड के हवाले कर दिया गया और विधिवत स्कूल में डालने से पहले हमें डाक्टरी और मानसिक निगरानी में रखा गया। इसका कारण ये था कि तीन या चार सौ बच्चों में अगर एक भी ऐसा बच्चा आ गया जो सामान्य न हो या बीमार वगैरह हो तो ये स्कूल के स्वास्थ्य के लिए खराब होता ही, खुद बच्चे को भी विकट हालत से गुज़रना पड़ सकता था।

शुरू के कुछ दिनों तक तो मैं खोया-खोया सा रहा। मेरी हालत बहुत ही खराब थी। इसका कारण यह था कि यतीम खाने में तो मां को मैं हमेशा अपने आस-पास महसूस करता था और इससे मुझे बहुत सुकून मिलता था लेकिन हॉनवैल में आने के बाद यही लगता कि हम एक दूसरे से मीलों दूर हो गये हैं। सिडनी और मेरा दर्जा बढ़ा दिया गया और हमें अनुमति वाले वार्ड से निकाल कर विधिवत स्कूल में डाल दिया गया। यहां हमें एक दूसरे से अलग कर दिया गया। सिडनी बड़े बच्चों के साथ जाने लगा और मैं शिशुओं के साथ। हम अलग-अलग ब्लाकों में सोते थे और एक-दूसरे से कभी-कभार ही मिल पाते। मेरी उम्र छ: बरस से कुछ ही ज्यादा थी और मैं तनहा था। ये बात मुझे खासी परेशान करती। खास तौर पर गर्मियों की रात, सोते समय प्रार्थना करते समय जब मैं रात के सोने की कमीजें पहने वार्ड के बीचों-बीच दूसरे बीस नन्हें मुन्ने बच्चों के साथ घुटनों के बल झुक कर प्रार्थना करता और दूर डूबते सूर्य को और ऊंची नीची पहाड़ियों की तरफ लम्बोतरी खिड़की में से देखता और जब हम सब भर्राये गले से बेसुरी आवाज़ में गाते तो मैं अपने आपको इससे सब से अलग-थलग पाता।

साथ दो मेरा; रात तेजी से गहराती है

अंधियारी होता जाता है घना: प्रभु साथ दो मेरा

जब और मददगार रह जायें पीछे और आराम हो जाये दुश्वार

ओ निर्बल के बल, साथ दो मेरा

ये तभी होता कि मैं अपने-आपको पूरी तरह हताश पाता। हालांकि मैं प्रार्थना के बोल नहीं समझता था, लेकिन ये धुन और धुंधलका मुझे उदासी से भर जाते।

लेकिन तब हमारी खुशी और आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब दो महीने के भीतर ही मां ने हमारी रिहाई का बंदोबस्त कर दिया था और हमें एक बार फिर से लंदन और लैम्बेथ यतीम खाने में भेज दिया गया। मां यतीम खाने के गेट पर अपने खुद के कपड़े पहने हमारी राह देख रही थी। उसने रिहाई के लिए आवेदन सिर्फ इसीलिए दिया था कि वह एक दिन अपने बच्चों के साथ गुज़ारना चाहती थी और उसकी इच्छा थी कि दो-चार घंटे बाहर गुज़ार कर फिर उसी दिन वापिस लौट आये। मां चूंकि यतीम खाने में ही रह रही थी इसलिए यह प्रपंच ही एक मात्र तरीका बचा था उसके पास कि दिन हमारे साथ गुज़ार सके।

हमारे भीतर जाने से पहले ही हमारे निजी कपड़े हमसे ले लिये गये थे और उन्हें गर्म पानी में खंगाल दिया गया था। अब ये कपड़े हमें बिना इस्त्रीत किये लौटा दिये गये। जब हम यतीम खाने के गेट से बाहर निकले तो मां, सिडनी और मैं, तीनों ही मुचड़े हुए कपड़ों में नमूने नज़र आ रहे थे। एकदम सुबह का वक्त था और हमें कहीं भी नहीं जाना था इसलिए हम केनिंगटन पार्क की तरफ चल दिये। पार्क तकरीबन एक मील दूर था। सिडनी के पास नौ पेंस थे जो उसने रुमाल में गांठ बांध कर रखे हुए थे। इसलिए हमने आधा पौंड ब्लैक चेरी ली और पूरी सुबह पार्क में एक बेंच पर बैठ कर चेरी खाते हुए गुज़ार दी। सिडनी ने अखबार के पुराने कागजों को मोड़-तोड़ कर उसे सुतली से कस कर बांध दिया और हम तीनों काफी देर तक इस काम चलाऊ गेंद से पकड़ा-पकड़ी खेलते रहे। दोपहर के वक्त हम एक कॉफी शॉप में गये और अपने बाकी सारे पैसों से दो पेनी का केक, एक पैनी की सूखी, नमक लगी मछली और अध पेनी की दो कप चाय खरीद कर खर्च कर डाले। हमने ये चीज़ें मिल बांट कर खायीं। इसके बाद हम फिर पार्क में वापिस लौट आये। इसके बाद मैं और सिडनी फिर से खेलते रहे और मां क्रोशिया ले कर बैठ गयी।

दोपहर के वक्त हम वापिस यतीम खाने की तरफ चल दिये क्योंकि मां बहुत ही बेशरमी से बोली कि हम चाय के वक्त तक ज़रूर पहुंच जायेंगे। वहां के अफसर लोग बहुत ही खड़ूस थे क्योंकि इसका मतलब होता कि हमें फिर से उन सारी प्रक्रियाओं से गुज़रना पड़ता। हमारे कपडेख गर्म पानी में खंगाले जाते और सिडनी और मुझे हॉनवैल लौटने से पहले यतीम खाने में और वक्त गुज़ारना पड़ता। हां, इससे हमें मां से एक बार फिर मिलने का मौका मिल जाता।

लेकिन इस बार हम हॉनवैल में लगभग एक बरस तक रहे। यह बरस बहुत ही रचनात्मक था। मैंने स्कूल जाना शुरू किया और मुझे अपना नाम लिखना सिखाया गया," चैप्लिन।" ये शब्द मुझे बहुत आकर्षित करते और मुझे लगता - ये ठीक मेरी ही तरह हैं।

हॉनवैल स्कूल दो हिस्सों में बंटा हुआ था। एक हिस्सा लड़कों के लिए था और दूसरा लड़कियों के लिए। शनिवार की दोपहर स्नानघर नन्हें मुन्नों के लिए आरक्षित रहता और बड़ी लड़कियां उन्हें नहलाती। हां, ये बातें उस वक्त से पहले की हैं जब मैं सात बरस का नहीं हुआ था। और एक तरह की नाज़ुक मिज़ाजी वाली लज्जा इस तरह के अवसरों के साथ जुड़ी रहती। चौदह बरस की युवा लड़की मेरे पूरे शरीर पर तौलिया रगड़ रही हो तो झेंप तो होनी ही थी। सचेत झेंप के ये मेरे पहले मौके थे।

सात बरस की उम्र में मुझे नन्हें मुन्ने बच्चों के वार्ड में से स्थानांतरित करके बड़े बच्चों के वार्ड में भेज दिया गया। यहां बच्चों की उम्र सात से चौदह बरस के बीच थी। अब मैं बड़े बच्चों की सभी गतिविधियों में भाग ले सकता था। ड्रिल, एक्सरसाइज और हफ्ते में दो बार स्कूल के बाहर हम नियमित रूप से सैर को जाते।

हालांकि हॉर्नवेल में हमारी अच्छी तरह से देखभाल की जाती थी लेकिन फिर भी माहौल पर मुर्दनगी छायी रहती। वहां की हवा में ही उदासी थी। उन गांवों की गलियों में से हम सैकड़ों बच्चे एक के पीछे एक चलते। मैं सैर के उन अवसरों को कितना अधिक नापसंद करता था, और उन गांवों को, जिन में से हम गुज़र कर जाया करते थे, उन स्थानीय लोगों का हमें घूर-घूर कर देखना। हमें 'बूबी हैच के बाशिंदे' के नाम से पुकारा जाता था। ये यतीम खाने के लिए बोलचाल का शब्द था।

बच्चों के खेल का मैदान लगभग एक एकड़ लम्बा-चौड़ा था। इसमें लम्बे-चौड़े पत्थर जड़े हुए थे। इसके चारों तरफ एक मंजिला ईंट की इमारतें थीं जिनमें दफ्तर, भंडार घर, डॉक्टर का एक औषधालय, दांतों के डॉक्टर का कमरा और बच्चों के कपड़ों के लिए अल्मारियां थीं। अहाते के आखिरी सिरे पर एक अंधेरा कमरा था। उसमें इन दिनों चौदह बरस के एक छोकरे को बंद करके रखा गया था। लड़कों के अनुसार वह लड़का आफत की पुड़िया था। एक गया गुज़रा चरित्र। उसने दूसरी मंज़िल की खिड़की से कूद कर स्कूल से भाग जाने की कोशिश की थी और वहां से छत पर चढ़ गया था। जब स्टाफ के लोग उसके पीछे चढ़े तो उसने उन पर चीज़ें फेंक कर मारनी शुरू कर दीं और उन पर शाहबलूत फेंके। ये किस्सा तब हुआ जब हम नन्हें-मुन्ने सो रहे थे। अगली सुबह हमें इस किस्से का पूरा का पूरा हिसाब-किताब बड़े बच्चों ने सुनाया था।

इस तरह की बड़ी हरकतों के लिए हर शुक्रवार को बड़े वाले जिमनाशियम में दंड मिला करता था। ये एक साठ फुट लम्बा और चालीस फुट चौड़ा अंधियारा-सा हॉल था। इसकी छत ऊंची थी और ऊपर की कड़ियों तक रस्सियां लटकी हुई थीं। शुक्रवार की सुबह, सात से चौदह बरस के बीच की उम्र के दो या तीन सौ बच्चे प्रवेश करते और वे मिलिटरी के जवानों की तरह आते, और स्क्वायर के तीनों तरफ खड़े हो जाते। सबसे दूर वाले सिरे पर, यानी चौथी तरफ एक लम्बी-सी स्कूली मेज के पीछे शरारती बच्चे अपने-अपने अपराध की सज़ा सुनने और सज़ा पाने के लिए एकत्र होते। ये मेज आर्मी वालों की खाने की मेज जितनी लम्बी थी। डेस्क के सामने तथा दायीं तरफ एक ईज़ल थी जिस पर हाथों में बांधने वाले स्ट्रैप लटकते रहते और फ्रेम से एक टहनी झूलती रहती।

छोटे-मोटे अपराधों के लिए बच्चे को लम्बी मेज पर लिटा दिया जाता। बच्चे का चेहरा नीचे की तरफ होता और उसके पैर एक सार्जेंट पट्टों से कस देता। तब दूसरा सार्जेंट आता और बच्चे की कमीज को उसकी पतलून में से खींच कर बाहर निकाल देता और उसके सिर के ऊपर की तरफ कर देता, और उसकी पतलून को कस कर खींचता।

एक थे कैप्टन हिन्ड्रम। नेवी से रिटायर हुए शख्स। वजन उनका रहा होगा कोई दो सौ पौंड। उनका एक हाथ पीछे रहता और दूसरे हाथ में वे मारने के लिए छड़ी थामे रहते। छड़ी की मोटाई होती हाथ के अंगूठे के बराबर और लम्बाई कोई चार फुट। वे तन कर खड़े हो जाते।

वे छड़ी को लड़के के चूतड़ों के आर-पार नापते, और तब हौले से और पूरी नाटकीयता के साथ वे छड़ी ऊपर उठाते और एक सड़ाक के साथ लड़के के चूतड़ों पर पड़ती। नज़ारा दिल दहला देने वाला होता और निश्चित रूप से लड़का बेहोश हो कर नीचे गिर जाता।

पिटाई के लिए कम से कम तीन छड़ियों का और अधिकतम छ: का प्रावधान था। यदि दोषी को तीन से ज्यादा छड़ियों की मार पड़ती तो उसकी चीखें दिल दहला देने वाली होतीं। कई बार ऐसा भी होता कि वह आश्चर्यजनक रूप से शांत रहता या बेहोश ही हो चुका होता। ये मार आदमी को अधमरा कर देने वाली होती इसलिए शिकार को तो अक्सर ही एक तरफ ले जाना पड़ता और उसे जिमनाशियम में ले जा कर लिटाना पड़ता, जहां उसे दर्द कम होने तक कम से कम दस मिनट तक तिलमिलाना और दर्द के मारे ऐंठना पड़ता था। दर्द कम होने पर उसके चूतड़ों पर धोबन की उंगलियों की तरह तीन चौड़ी धारियां बन चुकी होतीं।

भूर्ज का मामला अलग था। तीन संटियां खाने के बाद लड़के को दो सार्जेंट सहारा कर इलाज के लिए सर्जरी में ले जाते।

लड़के यही सलाह देते कि कोई भी आरोप लगने पर मना मत करो, बेशक आप निरपराध हों, क्योंकि दोष सिद्ध हो जाने पर आपको अधिकतम मार पड़ेगी। आम तौर पर लड़के निर्दोष होने पर भी अपनी ज़ुबान नहीं खोलते थे और चुपचाप मार खा लेते थे।

अब मैं सात बरस का हो चला था और बड़े बच्चों के सैक्शन में था। मुझे याद है जब मैंने पहली बार इस तरह की पिटाई देखी थी। मैं शांत खड़ा हुआ था और मेरा दिल तेजी से धड़कना शुरू हो गया जब मैंने अधिकारियों को भीतर आते देखा। डेस्क के पीछे वह जांबाज़ बहादुर था जिसने स्कूल से भाग जाने की कोशिश की थी। डेस्क के पीछे से हमें मुश्किल से उसका सिर और कंधे ही नज़र आ रहे थे। वह एकदम पिद्दी-सा नज़र आ रहा था। उसका चेहरा पतला, लम्बोतरा और आंखें बड़ी थीं। वह बहुत छोटा-सा लगता था।

प्रधान अध्यापक ने धीमे स्वर में आरोप पत्र पढ़ा और पूछा,"दोषी या निर्दोष?"

हमारे जांबाज़ हीरो ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन सीधे उनकी आंखों में देखता रहा। इसके बाद उसे ईज़ल पर ले जाया गया और चूंकि वह ज़रा सा ही था, उसे साबुन की एक पेटी पर खड़ा कर दिया गया ताकि उसकी कलाइयों में पट्टे बांधे जा सकें। उसे भूर्ज की छड़ी से तीन बार पीटा गया और फिर उसे सर्जरी के लिए ले जाया गया।

गुरुवार के दिन खेल के मैदान में एक बिगुल बजता और हम खेलते हुए जहां के तहां मूर्तियों की तरह जड़ खड़े हो जाते। तब कैप्टन हिन्ड्रम एक मेगाफोन के ज़रिये उन छोकरों के नाम पुकारते जिन्हें शुक्रवार को दंड भोगने के लिए हाजिर होना है।

मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब एक गुरुवार मेरा नाम पुकारा गया। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मैंने ऐसा क्या कर डाला होगा। फिर भी किसी नामालूम कारण से मैं रोमांचित था। शायद इसलिए कि मैं इस नाटक के केन्द्र में होने जा रहा था। ट्रायल के दिन मैं आगे की तरफ बढ़ गया। हैड मास्टर ने पूछा,"तुम पर आरोप है कि तुमने लैट्रिन को आग लगायी।"

यह सच नहीं था। कुछ छोकरों ने पत्थर के फर्श पर कुछ कागज जला डाले थे और संयोग से मैं उस वक्त लैट्रिन का इस्तेमाल करने के लिए वहां जा पहुंचा। लेकिन आग जलाने में मेरी कोई भूमिका नहीं थी।

"तुम दोषी हो या नहीं?"

मैं नर्वस हो गया था और अपने नियंत्रण से बाहर की ताकत में मैं चिल्लाया,"दोषी।" न तो मैंने प्रायश्चित महसूस किया और न ही अन्याय की भावना ही महसूस की लेकिन एक तरह का भयमुक्त रोमांच मुझे लगा जब मुझे डेस्क के पास ले जाया गया और मेरे चूतड़ों पर तीन संटियां फटकारी गयीं। दर्द इतना जान लेवा था कि मेरी तो सांस ही थम गयी। लेकिन मैं चिल्लाया या रोया नहीं और हालांकि मैं दर्द के मारे अधमरा हो गया था और आराम करने के लिए चटाई पर ले जाया गया था, मैं अपने आपको पराक्रम के साथ विजेता समझ रहा था।

सिडनी तो रसोई में काम कर रहा था, उस बेचारे को सज़ा के दिन तक इसके बारे में कुछ पता ही नहीं चला। और उसे दूसरों के साथ जिम में लाया गया तो वह मुझे सज़ा वाली मेज पर औंधे लेटे और सिर लटकाये देख कर हैरानी से दंग रह गया था। उसे झटका लगा था। उसने बाद में मुझे बताया था कि जब उसने मुझे चूतड़ों पर तीन बेंत खाते देखा था तो वह गुस्से के मारे रो पड़ा था।

छोटा भाई अपने बड़े भाई को "भैया" कहकर बुलाता था तो उसमें एक तरह की गर्व की भावना भर जाती थी और एक सुरक्षा का भी अहसास होता था। मैं अक्सर डाइनिंग रूम से बाहर आते समय अपने इस "बड़े भैया" को देखा करता था। वह रसोई में काम करता था इसलिए अक्सर मेरे हाथ में ढेर सारे मक्खन के साथ एक बेड स्लाइस चुपके से सरका देता था। मैं इसे अपनी जर्सी में छुपाकर बाहर ले आता और एक अन्य छोकरे के साथ मिल-बांट कर खा लेता। ऐसा नहीं था कि हमें भूख लगी होती थी, दरअसल मक्खन का इतना बड़ा लोंदा एक असाधारण विलासिता की बात होती थी। लेकिन यह ऐय्याशी भी बहुत ज्यादा दिन तक नहीं चली क्योंकि उसे हॉनवेल छोड़कर एक्समाउथ ट्रेनिंग शिप पर जाना पड़ा।

यतीम खाने में रहने वाले लड़कों को ग्यारह बरस की उमर में विकल्प दिया जाता था कि वे जलसेना या थलसेना, दोनों में से कोई एक चुन लें। यदि वह जल सेना पसन्द करे तो उसे एक्समाउथ पर भेज दिया जाता था, हालांकि यह अनिवार्य नहीं था लेकिन सिडनी तो सागर की विराटता में रह कर अपना जीवन बनाना चाहता था। और एक दिन वह मुझे हॉनवेल में अकेला छोड़कर चला गया।

बच्चों का अपने बालों से खास तरह का जुड़ाव होता है। जब उनके बाल पहली बार काटे जाते हैं तो वे बुरी तरह से रोते और छटपटाते हैं। चाहे बाल घने उगें, सीधे हों या घुंघराले हों, उन्हें ऐसा ही लगता है कि मानो उनसे उनके व्यक्तित्व का कोई हिस्सा अलग किया जा रहा हो।

हॉनवेल में दाद, रिंगवार्म की महामारी फैली हुई थी। यह बीमारी छूत की बीमारी है और बहुत ही तेजी से फैलती है। इसलिए जो भी बच्चा इसकी चपेट में आता था उसे पहली मंजिल पर एक अलग कमरे में रहना पड़ता था, जहां से खेल का मैदान नज़र आता था। अक्सर हम खिड़कियों में से देखते कि वे दीन-हीन बच्चे बड़ी हसरत भरी निगाहों से हमारी ओर टकटकी लगाए देखते रहते थे। उनके घुटे हुए सिरों पर आयोडिन के भूरे चकत्ते नजर आते। उन्हें देखना बहुत ही दिल दहला देने वाला होता और हम उनकी तरफ बहुत ही घृणापूर्वक देखते।

इसलिए जैसे ही एक दिन अचानक ही एक नर्स ने डाइनिंग हाल में मेरे सिर पर हाथ रखा और बालों में उंगलियां फिराने के बाद घोषणा की कि मेरे सिर में दाद हो गयी है तो मैं सकते में आ गया और बुक्का फाड़ कर रो पड़ा।

इलाज में हफ्तों लग गये। लगता था, समय ठहर गया है। मेरा सिर मूंड दिया गया था और मैं रुई धुनने वालों की तरह हर समय सिर पर एक रुमाल बांधे रहता था। बस, मैं एक ही काम नहीं करता था और वो ये कि कभी भी खिड़की से नीचे झांक कर नीचे खड़े लड़कों की तरफ नहीं देखता था, क्योंकि मैं जानता था कि वे लड़के ऊपर फंसे बच्चों को किस हिकारत भरी निगाह से देखते थे।

मेरी बीमारी के दौरान मां मुझसे मिलने आयी। उसने कुछ जुगत भिड़ा कर हमें यतीम खाने से बाहर निकालने का रास्ता निकाल लिया था और अब हम लोगों के लिए एक बार फिर अपना घर बसाना चाहती थी। उसकी मौजूदगी फूलों के गुलदस्ते की तरह थी। ताज़गी और स्नेह की महक से भरी हुई। उसे इस तरह देख कर मुझे अपनी गंदी और बेतरतीब हालत पर और घुटे सिर पर आयोडिन लगा देख कर अपने आप पर शर्म आयी।

नर्स ने मां से कहा,"इसके गंदे मुंह की वजह से इस पर नाराज़ न हों।"

मां हँसी और मुझे याद है कि किस तरह से ये कहते हुए उसने मुझे अपने सीने में भींच लिया था और चूम लिया था,"तेरी इस सारी गंदगी के बावजूद मैं तुझे प्यार करती हूं मेरे लाल।"

इसके तुरंत बाद ही सिडनी एक्समाउथ पर चला गया और मैंने हानवेल छोड़ दिया ताकि मैं अपनी मां के पास रह सकूं। उसने केनिंगटन रोड के पीछे वाली गली में एक कमरा किराये पर ले लिया था और कुछ दिन तक तो वह हमारा भरण-पोषण करने की हालत में रही। थोड़े ही दिन बीते थे कि हम एक बार फिर यतीम खाने के दरवाजे पर खड़े थे। हमारे इस तरह से वहां वापिस जाने के पीछे कारण ये थे कि मां कोई ढंग का रोजगार तलाश नहीं पायी थी और थियेटर में पिता जी के दिन खराब चल रहे थे। इस थोड़े से अरसे के दौरान हम पिछवाड़े की गलियों के एक कमरे से दूसरे कमरे में शिफ्ट होते रहे। ये गोटियों के खेल की तरह था और अपनी आखिरी चाल के बाद हमने खुद को फिर से यतीम खाने में पाया।

अलग ही अलग रहते हुए हमें दूसरे यतीम खाने में भेज दिया गया। और वहां से हमें नोरवुड स्कूल भेज दिया गया। यह स्कूल हॉनवेल के मुकाबले बेहतर था। यहां की पत्तियां गहरी हरी और दरख्त ज्यादा ऊंचे थे। शायद इस ग्रामीण इलाके में भव्यता तो ज्यादा थी लेकिन परिवेश मायूसी से भरा हुआ था।

एक दिन की बात, सिडनी फुटबाल खेल रहा था। तभी दो नर्सों ने उसे खेल से बाहर बुलाया और उसे बताया कि तुम्हारी मां पागल हो गई है, उसे केनहिल के पागलखाने में भेजा गया है। सिडनी ने जब यह खबर सुनी तो किसी भी किस्म की प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की और वापिस जाकर अपने खेल में मशगूल हो गया। लेकिन खेल खत्म होते ही वह एक सुनसान कोने में गया और फूट-फूट कर रोया।

सिडनी ने जब मुझे यह खबर दी तो मैं यक़ीन ही नहीं कर पाया। मैं रोया तो नहीं लेकिन पागल कर देने वाली उदासी ने मुझे घेर लिया। उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। माँ जो इतनी खुशमिजाज़ और दिल की साफ़ थी, भला पागल कैसे हो सकती है। मोटे तौर पर मैंने यही सोचा कि माँ ने जान-बूझ कर अपने दिमाग के दरवाज़े बंद कर दिये होंगे और हमें बेसहारा छोड़ दिया है। मैं हताशा में यह कल्पना करने लगा कि वह परेशान हाल मेरी तरफ़ देख रही है और उसके बाद शून्य में घूर रही है।

आधिकारिक रूप से यह खबर हमें एक हफ्ते बाद मिली। यह भी सुनने में आया कि अदालत ने पिता के ख़िलाफ डिक्री जारी कर दी है कि उन्हें सिडनी और मुझे अपनी निगहबानी में लेना ही होगा। पिता के साथ रहने की संभावना ही उत्तेजना से भर देने वाली थी। मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में उन्हें सिर्फ़ दो बार ही देखा था। एक बार मंच पर और दूसरी बार केनिंगटन रोड में एक घर के आगे से गुज़रते हुए जब वे फ्रंट गार्डन के रास्ते से एक महिला के साथ चले आ रहे थे। मैं एक पल के लिए ठिठका था और उनकी तरफ़ देखने लगा था। मुझे पूरा यक़ीन था कि वे मेरे पिता ही हैं। उन्होंने मेरी पीठ पर हाथ रखकर मुझसे मेरा नाम पूछा था। इस परिस्थिति की नाटकीयता का अंदाज़ा लगाते हुए मैंने भोलेपन से सिहरते हुए कहा था,"चार्ली चैप्लिन।" तब उन्होंने जानबूझ कर उस महिला की तरफ देखा, अपनी जेब में हाथ डालकर कुछ टटोला और आधे क्राउन का सिक्का मुझे थमा दिया। बगैर कुछ और सोचे मैं सीधा घर की तरफ लपका और माँ को बताया कि मैं अपने पिता से मिलकर आ रहा हूं।

और अब हम उनके साथ जाकर रहने वाले थे। कुछ भी हो, केनिंगटन रोड जानी-पहचानी जगह थी और वहां नॉरवुड की तरह अजनबियत और मायूसी नहीं थी।

अधिकारी हमें एक बेकरी वैन में बिठा कर 287 केनिंगटन रोड ले गये। यह वही जगह थी जहां मैंने अपने पिता को बगीचे के रास्ते से गुज़रते हुए देखा था। दरवाजा एक महिला ने खोला। यह वही महिला थी जो उस दिन पिता के साथ थी। वह ऐय्याश और चिड़चिड़ी-सी लगने वाली औरत लगती थी। इसके बावजूद वह आकर्षक, लम्बी और सुंदर देहयष्टि की मालकिन थी। उसके होंठ भरे-भरे और उदास थे। आंखें कबूतरी जैसी थीं। उसकी उम्र तीस बरस के आस-पास हो सकती थी। उसका नाम लुइस था। ऐसा प्रतीत हुआ कि मिस्टर चैप्लिन घर पर नहीं थे। लेकिन सामान्य कागज़ी कार्रवाई पूरी करने और हस्ताक्षर वगैरह करने के बाद अधिकारी हमें लुइस के जिम्मे छोड़ गये। लुइस हमें ऊपर वाली मंज़िल पर आगे वाली बैठक में ले गयी। जब हम कमरे के भीतर पहुंचे तो एक छोटा-सा बच्चा फर्श पर खेल रहा था। बड़ी-बड़ी, गहरी आंखों और घने भूरे बालों वाला एक निहायत ही खूबसूरत बच्चा। ये बच्चा लुइस का बेटा था। मेरा सौतेला भाई।

परिवार दो कमरों में रहता था और हालांकि सामने वाला कमरा बहुत ब़ड़ा था लेकिन उसमें रौशनी ऐसे छन कर आती थी मानो पानी के नीचे से आ रही हो। सारी चीजें लुइस की ही तरह मायूस नज़र आती थीं। वाल पेपर उदास नज़र आता था। घोड़े के बालों से भरा फर्नीचर उदासी भरा था और ग्लास केस में पाइक मछली जो अपने ही बराबर एक और पाइक अपने भीतर ठूंसे हुए थी, और उसका सिर पहले वाली के मुंह से बाहर लटक रहा था, बुरी तरह से उदास नज़र आते थे।

लुइस ने पिछवाड़े वाले कमरे में सिडनी और मेरे सोने के लिए एक अतिरिक्त बिस्तर लगवा दिया था लेकिन ये बिस्तर बहुत ही छोटा था। सिडनी ने सुझाव दिया कि वह बैठक में सोफे पर सो जाया करेगा लेकिन लुइस ने उसे बरज दिया,"तुम्हें जहां सोने के लिए कहा गया है, तुम वहीं सोवोगे।" इस संवाद से विकट मौन पसर गया और हम चुपचाप पिछवाड़े वाले कमरे की तरफ बढ़ गये।

हमारा जिस तरीके से स्वागत हुआ था, उसमें लेशमात्र भी उत्साह नहीं था। और इसमें हैरानी वाली कोई बात भी नहीं थी। सिडनी और मैं अचानक उसके ऊपर लाद दिये गये थे। वैसे भी हम अपने पिता की छोड़ी गयी पत्नी के ही तो बच्चे थे।

हम दोनों चुपचाप बैठे उसे काम करते देखते रहे। वह खाने की मेज पर कुछ तैयारियां कर रही थी। तब उसने सिडनी से कहा,"ऐय, क्या निठल्ले की तरह से बैठे हो, कुछ काम-धाम करो और इस सिगड़ी में कोयले भरो।" और तब वह मेरी तरफ मुड़ी और कहने लगी,"और तुम लपक कर जाओ और व्हाइट हार्ट की बगल वाली कसाई की दुकान से एक शिलिंग के छीछड़े लेकर आओ।"

मैं उसकी मौजूदगी और पूरे माहौल के आतंक से बाहर निकलने पर खुश ही था क्योंकि एक अदृश्य भय मेरे भीतर उगने लगा था और मैं चाहने लगा था कि हम वापिस नौरवुड लौट जायें।

पिताजी देर से घर वापिस आये और उन्होंने गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। वे मुझे बहुत अच्छे लगे। खाना खाते समय मैं उनकी एक एक गतिविधि को ध्यान से देखता रहा। वे किस तरह से खाते थे और किस तरह से चाकू को पैन की तरह पकड़ते थे और उससे गोश्त की बोटियां काटते थे। और मैं बरसों-बरस उनकी नकल करता रहा।

जब लुइस ने पिताजी को बताया कि सिडनी यह शिकायत कर रहा था कि उसका बिस्तर छोटा है तो उन्होंने कहा कि वह बैठक में सोफे पर सो जाया करेगा। सिडनी की जीत ने लुइस को और भी भड़का दिया और उसने सिडनी को इस बात के लिए कभी माफ नहीं किया। वह हमेशा पिताजी के कान सिडनी के खिलाफ भरती रहती। लुइस हालांकि अक्खड़ और चिड़चिड़ी थी और हमेशा असहमत ही रहती थी लेकिन उसने मुझे एक बार भी पीटा नहीं या कभी डांटा फटकारा भी नहीं। लेकिन इस बात ने कि वह सिडनी को नापसंद करती है, मुझे हमेशा डराये रखा और मैं उससे भय खाता रहा। वह जम के पीती थी और उसकी यह बात मुझे भीतर तक हिला कर रख देती थी। वह अपने छोटे बच्चे के मासूम चेहरे को निहारती हुई हंसती थी और वह अपनी खराब ज़बान में उसे कुछ कहता रहता था। पता नहीं क्यों, मैं उस बच्चे के साथ हिल-मिल नहीं सका। वैसे तो वह मेरा सौतेला भाई था लेकिन मैंने उससे शायद ही कभी बात की हो, बेशक मैं उससे चार बरस बड़ा भी था। जब कभी भी लुइस पी कर बैठती और क़ुड़-कुड़ करती रहती तो मैं भीतर तक हिल जाता था। दूसरी तरफ सिडनी था, उसने इन बातों पर कभी भी ध्यान ही नहीं दिया। शायद ही कोई ऐसा समय रहा हो जब वह रात में देर से न आया हो। मुझ पर यह बंदिश थी कि मैं स्कूल से सीधा ही घर आऊं और घर आते ही मुझे तरह तरह के कामों के लिए दौड़ाया जाता।

लुइस ने हमें कैनिंगटन रोड के स्कूल में भेजा। यह मेरे लिए बाहरी दुनिया का एक छोटा-सा टुकड़ा था क्योंकि मैं दूसरे बच्चों की मौजूदगी में खुद को कम तन्हा महसूस करता था। शनिवार के दिन आधी छुट्टी रहती थी, लेकिन मैं कभी भी इस दिन का इंतज़ार नहीं करता था क्योंकि मेरे लिए इसका मतलब था कि जल्दी घर जाना, झाड़ू पोंछा करना, चाकू साफ करना, और तो और, लुइस उस दिन हर हाल में पीना शुरू कर देती थी। जब मैं चाकू साफ कर रहा होता था तो वह अपनी एक सखी के साथ बैठ जाती, पीती रहती और ज़ोर-ज़ोर से अपनी सखी से कड़ुआहट भरे स्वर में शिकायतें करती रहती कि उसे सिडनी और मेरी देखभाल करनी पड़ती है और किस तरह से उसके साथ यह अन्याय किया जा रहा है। मुझे याद है कि उसने मेरी तरफ इशारा करते हुए अपनी सखी से कहा था कि ये तो फिर भी ठीक है लेकिन दूसरा वाला तो आफत की पुड़िया है और उसे तो ज़रूर ही सुधार घर में भेज देना चाहिए। इतना ही नहीं, वो तो चार्ली की औलाद भी नहीं है। सिडनी के बारे में यह बदज़ुबानी मुझे भयभीत कर देती थी। मैं हताशा से भर जाता और मायूस-सा अपने बिस्तर पर जा कर ढह जाता और आंखें खोले निढाल-सा पड़ा रहता था। उस वक्त मैं आठ बरस का भी नहीं हुआ था लेकिन वे दिन मेरी ज़िन्दगी के सबसे लम्बे और उदासी भरे दिन थे।

कई बार शनिवार की रात को जब मैं खुद को बुरी तरह से हताश महसूस करता तो पिछवाड़े के बेडरूम के पास से गुज़रते हुए किसी दो धौंकनियों वाले बाजे, कन्सर्टिना का संगीत सुना करता। कोई जाते-जाते हाइलैंड मार्च की धुन बजा रहा होता और उसके साथ लुच्चे लड़कों और खिड़ खिड़ करती फेरी करके सामान बेचने वाली लड़कियों की आवाजें सुनाई देतीं। संगीत का प्रवाह और प्रभाव भी मेरी बेरहम उदासी पर कोई खास असर नहीं कर पाता था। इसके बावजूद संगीत दूर जाता हुआ धीमा होता चला जाता और मैं उसके चले जाने पर अफसोस मनाता। कई बार कोई फेरी वाला गली से गुज़रता। एक खास फेरी वाले की मुझे याद है जो रात को रूल ब्रिटानिया की धुन पर आवाज़ निकालता था और उसे झटके के साथ खत्म कर देता। दरअसल वह घोंघे बेच रहा होता था। तीन दरवाजे छोड़कर एक पब था, जिसके बंद होते समय मैं ग्राहकों की आवाज़ें सुन सकता था। वे नशे में धुत गाते, भावुकता भरा एक उदास गीत जो उन दिनों खासा लोकप्रिय हुआ करता था।

पुराने वक्त की खातिर मत रहने दो नफरत को जिंदा

पुराने वक्त की खातिर कहो भुला दोगे और कर दोगे माफ

जिंदगी इतनी छोटी कि मत गंवाओ लड़ने में

दिल इतने कीमती कि मत तोड़ो इन्हें

मिलाओ हाथ और खाओ दोस्ती की कसमें

पुराने वक्त की खातिर

मैं भावनाओं को कभी पसंद नहीं कर पाया था लेकिन मुझे ये गीत मेरी उदास हालत में एक बहुत ही नजदीकी साथी की तरह प्रतीत होता था और मुझे लोरी की तरह से सुला दिया करता था।

जब सिडनी रात में देर से लौटता, और ऐसा अक्सर होता था कि वह बिस्तर में सोने के लिए जाने से पहले खाने की अलमारी पर हल्ला बोलता था। इससे लुइस बहुत ताव खाती थी। एक रात जब वह पी रही थी तो वह कमरे में आयी और सिडनी की चादर खींच कर चिल्लाई और उससे बोली कि दफा हो जाओ यहां से। लेकिन सिडनी इसके लिए तैयार था, तुरंत उसने अपने तकिये के नीचे हाथ डाला और एक छोटा सा खंजर निकाला। इसमें एक लम्बा बटन हुक था और उस पर उसने तेज धार दे रखी थी।

"आओ तो जरा मेरे पास और मैं ये तुम्हारे पेट में घुसेड़ दूंगा," सिडनी चिल्ला पड़ा था। लुइस हक्की-बक्की सी पीछे हटी थी,"ऐ क्यों रे, ये हरामी का पिल्ला तो मुझे मार डालेगा।"

"हां, मैं तुम्हें मारूंगा," सिडनी ने बड़े ही नाटकीय अंदाज में कहा।

"ज़रा घर आने तो दे मिस्टर चैप्लिन को।"

लेकिन मिस्टर चैप्लिन कभी-कभार ही घर आते थे। अलबत्ता, मुझे शनिवार की एक शाम की याद है। लुइस और पिताजी बैठे पी रहे थे। और पता नहीं किस वज़ह से हम मकान मालकिन और उसके पति के साथ पहली मंज़िल पर उनके सामने वाले कमरे के आगे की जगह पर बैठे हुए थे। चमकीली रौशनी में मेरे पिता का चेहरा बहुत ही ज्यादा पीला लग रहा था। और वे बहुत ही खराब मूड में अपने आपसे कुछ बड़बड़ा रहे थे। अचानक उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और ढेर सारे पैसे निकाले और गुस्से में चारों तरफ उछाल दिये। सोने और चांदी के सिक्के। इसका असर अतियथार्थवादी था। कोई भी अपनी जगह से नहीं हिला। मकान मालकिन अपनी जगह से चिपकी रह गयी। लेकिन मैंने देखा कि उसकी निगाह सोने के एक सिक्के का पीछा कर रही थी जो लुढ़कता हुआ दूर एक कुर्सी के नीचे जा पहुंचा था। मेरी निगाहें भी उसी सिक्के का पीछा कर रही थी। अभी भी कोई भी नहीं हिला था। मैंने सोचा, मैं ही सिक्के उठाने का श्रीगणेश करूं। मेरे पीछे मकान मालकिन और दूसरे लोग भी उठे। और सावधानी पूर्वक बिखरे सिक्के बीनने लगे, इस तरह से कि पिता की धमकाती आंखों के आगे अपनी हरकत को वाजिब ठहरा सकें।

एक शनिवार की बात है, मैं स्कूल से लौटा तो देखा, घर पर कोई भी नहीं है। सिडनी हमेशा की तरह सारे दिन के लिए फुटबाल खेलने गया हुआ था। मकान मालकिन ने बताया कि लुइस अपने बेटे के साथ सुबह से ही बाहर गयी हुई है। पहले तो मैने राहत महसूस की क्योंकि लुइस के न होने का मतलब था कि मुझे पोंछा नहीं लगाना पड़ेगा, चाकू-छुरियां साफ नहीं करनी प़ड़ेंगी। मैं खाने के समय के बाद भी बहुत देर तक उनका इंतज़ार करता रहा, तब मुझे चिंता घेरने लगी। शायद वे लोग मुझे अकेला छोड़ गए थे। जैसेड़जैसे दोपहर ढलती गई, मुझे उनकी याद सताने लगी। ये क्या हो गया था? कमरा मनहूस और पराया-सा लग रहा था और उसका खालीपन मुझे डरा रहा था। मुझे भूख भी लग आयी थी। इसलिए मैंने अलमारी में खाने को कुछ तलाशा लेकिन वहां कुछ भी नहीं था। मैं अब खाली घर के भीतर और देर तक खड़ा नहीं रह सकता था इसलिए मैं हताशा में बाहर आ गया और पूरी दोपहर मैंने बाजारों में आवारागर्दी करते हुए गुज़ार दी। मैं लैम्बेथ वॉक पर और दूसरी सड़कों पर भूखा-प्यासा केक की दुकानों की खिड़कियां में झांकता चलता रहा और गाय और सूअर के मांस के गरमा-गरम स्वादिष्ट लजीज पकवानों को और शोरबे में डूबे गुलाबी लाल आलुओं को देख-देख कर मेरे मुंह में पानी आता रहा। मैं घंटों तक सड़क के किनारे मजमेबाजों को तरह-तरह की चीज़ें बेचते देखता रहा। इस तरह के भटकाव से मुझे थोड़ी राहत मिली और कुछ देर के लिए मैं अपनी परेशानी और भूख को भूल गया था।

जब मैं वापिस लौटा तो रात हो चुकी थी। मैंने दरवाजा खटखटाया लेकिन कोई जवाब नहीं आया। सब बाहर गये हुए थे। थका मांदा मैं केनिंगटन क्रॉस रोड पर जा कर, घर के पास ही एक पुलिया पर जा कर बैठ गया और निगाह अपने घर पर रखी कि शायद कोई आ जाये। मैं थका हुआ था और बुरी हालत थी मेरी। मैं इस बात को भी सोच-सोच कर परेशान हो रहा था कि सिडनी भी कहां चला गया। आधी रात होने को थी और एकाध भूले-भटके आवारा को छोड़ कर केनिंगटन रोड पूरी तरह शांत और उजाड़ थी। कैमिस्ट और सरायों की बत्तियों को छोड़ कर बाकी सारी दुकानों की बत्तियां बंद होने लगी थीं।

तभी संगीत की आवाज सुनायी दी। दिल की गहराइयों को छू लेने वाला संगीत। ये आवाजें व्हाइट हार्ट कार्नर पब की दहलीज से आ रही थीं और सुनसान चौराहे पर एकदम साफ गूंज रही थीं। धुन जिस गीत की थी वह था, 'द हनीसकल एंड द बी' और इसे क्लेरिनेट और हार्मोनियम पर पूरी तन्मयता से बजाया जा रहा था। मैं इससे पहले कभी भी संगीत लहरियों को ले कर सचेत नहीं हुआ था। लेकिन ये गीत तो अद्भुत और शानदार था। इतना अलौकिक और खुशी से भर देने वाला। गर्मजोशी और आश्वस्ति से भर देने वाला। मैं अपनी हताशा भूल गया और सड़क पार वहां तक चला गया जहां वे संगीतज्ञ थे। हार्मोनियम बजाने वाला अंधा था और उसकी आंखों की जगह पर गहरे खोखल थे। और एक जड़ कर देने वाला, बदसूरत चेहरा क्लेरिनेट बजा रहा था।

संगीत सभा जल्द ही खत्म हो गयी और उनके जाते ही रात फिर से पहले से भी ज्यादा उदास हो गयी। मैं सड़क पार कर घर की तरफ आया। थका मांदा और कमज़ोर। मैंने इस बात की भी परवाह नहीं की कि कोई घर लौटा भी है या नहीं। मैं सिर्फ बिस्तर पर पहुंच कर सो जाता चाहता था। तभी मैंने हल्की रौशनी में बगीचे के रास्ते से किसी को अपने घर की तरफ जाते हुए देखा। ये लुइस थी और साथ में उसका बेटा था जो उसके आगे-आगे भागा जा रहा था। मुझे ये देख कर गहरा सदमा लगा कि वह बुरी तरह से लड़खड़ा रही थी और एक तरफ बहुत ज्यादा झुकी जा रही थी। पहले तो मैंने यही सोचा कि कहीं उसके साथ कोई दुर्घटना हो गयी होगी और उसमें उसका पैर जख्मी हो गया होगा लेकिन तभी मैंने महसूस किया कि वह बुरी तरह से नशे में थी। मैंने उसे पहले कभी भी इस तरह से नशे में धुत्त नहीं देखा था। उसकी इस हालत में मैंने यही उचित समझा कि उसके सामने न ही पड़ा जाये तो बेहतर। इसलिए मैं तब तक रुका रहा जब तक वह घर के अंदर नहीं चली गयी। कुछ ही पलों के बाद मकान मालकिन आयी तो मैं उसके साथ भीतर गया। मैं जब अंधेरे में सरकते हुए सीढ़ियां चढ़ रहा था कि किसी तरह उसकी निगाह में आये बिना अपने बिस्तर तक पहुंच जाऊं। लुइस सीढ़ियों पर एकदम सामने आ खड़ी हुई,"ऐ, कहां चले जा रहे हो ओ नवाबजादे? ये तेरा घर नहीं है।"

मैं बिना हिले डुले खड़ा रहा।

"आज रात तुम यहां नही सोवोगे। समझे। बहुत झेल चुकी मैं तुम दोनों को। दफा हो जाओ यहां से। तुम और तुम्हारा वो भाई। करने दो अपने बाप को तुम लोगों की तीमारदारी।"

मैं बिना हिचकिचाहट के मुड़ा और सीढ़ियों से नीचे उतर कर घर से बाहर हो गया। अब मैं बिल्कुल भी थका हुआ नहीं था। मुझे मेरी दूसरी दिशा मिल चुकी थी। मैंने सुना था कि पिता जी प्रिंस रोड पर क्वींस हैड पब में जाया करते हैं। ये पब आधा मील दूर था। इसलिए मैं उस दिशा में चल पड़ा। मैं उम्मीद कर रहा था कि वे वहां पर मुझे मिल जायेंगे। लेकिन मैंने जल्दी ही उनकी छाया आकृति अपनी तरफ आती देखी। वे गली के लैम्प की रौशनी में चले आ रहे थे।

मैं कुनमुनाया,"वो मुझे अंदर नहीं आने दे रही। और मुझे लगता है वह पीती रही है।"

जब हम घर की तरफ चले आ रहे थे तो वे हिचकिचाये,"मेरी खुद की हालत बहुत अच्छी नहीं है।"

मैंने उन्हें आश्वस्त करने की कोशिश की कि वे बिलकुल ठीक-ठाक हैं।

"नहीं, मैं नशे में धुत्त हूं।"

उन्होंने बैठक का दरवाजा खोला और वहां मौन और डराने की मुद्रा में खड़े रहे और लुइस की तरफ देखते रहे। वह फायर प्लेस के पास खड़ी, मैंटलपीस पकड़े लहरा रही थी।

"तुमने इसे भीतर क्यों नहीं आने दिया?"

वह अकबकाई-सी पिता जी की तरफ देखती रही और फिर बुड़बुड़ाई,"तुम भी जहन्नुम में जाओ। तुम सब।"

अचानक पिता ने बगल की अलमारी में से कपड़े झाड़ने का भारी ब्रश उठाया और लुइस की तरफ ज़ोर से दे मारा। ब्रश का पिछला हिस्सा ठीक उसके चेहरे के एक तरफ जा लगा। उसकी आंखें बंद हुईं और वह फर्श पर ज़ोर की आवाज़ करते हुए भहरा कर गिर गयी मानो वह खुद इस उपेक्षा का स्वागत कर रही हो।

पिता की ये करनी देख कर मुझे धक्का लगा। उनकी इस तरह की हिंसा देख कर मेरे मन से उनके प्रति सम्मान की भावना जाती रही थी। और उसके बाद फिर क्या हुआ था, इस बारे में मेरी याददाश्त बहुत धुंधली-सी है। मेरा विश्वास है कि बाद में सिडनी आया था और पिता जी ने हम दोनों को बिस्तर पर लिटा दिया था और घर से चले गये थे।

मुझे पता चला था कि पिताजी और लुइस का उस सुबह ही झगड़ा हुआ था क्योंकि पिताजी उसे छोड़ कर अपने भाई स्पैंसर के पास दिन बिताने के लिए चले गये थे। उनके भाई के लैम्बेथ के आस-पास कई सराय घर थे। अपनी हैसियत के प्रति संवेदनशील होने के कारण लुइस ने इस बात को पसंद नहीं किया कि वह स्पैंसर चैप्लिन के घर जाये और पिताजी अकेले ही चले गये थे। और बदले के भावना से जलते हुए लुइस ने दिन कहीं और बिताया था।

वह पिता को प्यार करती थी। हालांकि मैं उस वक्त बहुत छोटा था लेकिन मैं इस बात को महसूस कर सका था कि जब वह रात के वक्त फायरप्लेस के पास बेचैन और उनकी उपेक्षा से आहत खड़ी थी। मुझे इस बात का भी यकीन है कि वे भी उसे प्यार करते थे। मैंने इस बात को कई मौकों पर खुद देखा। ऐसे भी वक्त आते थे कि जब वे आकर्षक लगते, स्नेह से पेश आते और थियेटर के लिए निकलने से पहले शुभ रात्रि का चुंबन दे कर जाते। और किसी रविवार की सुबह, जब उन्होंने पी नहीं रखी होती थी, वे हमारे साथ नाश्ता करते और लुइस को उन कलाकारों के बारे में बताते जो उनके साथ काम कर रहे होते थे। वे हम सब को ये बातें बता कर खूब हंसाते। मैं मुंह बाये गिद्ध की तरह उनकी तरफ देखता रहता और उनकी हर गतिविधि को अपने भीतर उतारता रहता। एक बार जब वे बहुत ही खिलंदड़े मूड में थे तो अपने सिर पर तौलिया बांध कर मेज के चारों तरफ अपने नन्हें बेटे के पीछे-पीछे दौड़ते हुए बोलते रहे,"मैं हूं राजा टर्की रूबार्ब।"

शाम को आठ बजे थियेटर के लिए निकलने से पहले वे पोर्ट वाइन के साथ छ: कच्चे अंडे निगल जाते। वे शायद ही कभी ठोस आहार लेते। यही उनकी खुराक थी जो उन्हें पूरा दिन चुस्त-दुरुस्त बनाये रखती। वे शायद ही कभी घर आते। कभी आते भी तो सिर्फ़ नशा उतरने तक सोने के लिए आते थे।

एक दिन बच्चों के प्रति क्रूरता की रोक-थाम करने वाली सोसाइटी से कुछ लोग लुइस से मिलने आये। वह उन्हें देख कर बुरी तरह बेचैन हो गयी थी। वे लोग इसलिए आये थे क्योंकि पुलिस ने उन्हें बताया था कि उन्होंने सिडनी और मुझे आधी रात को तीन बजे चौकीदार की कोठरी के पास सोये हुए पाया था। यह उस रात की बात थी जब लुइस ने हम दोनों को बाहर निकाल कर दरवाजा बंद कर दिया था और पुलिस ने जबरदस्ती उससे दरवाजा खुलवाया था और हमें भीतर लेने के लिए उससे कहा था।

अलबत्ता, कुछेक दिनों के बाद, पिता जब दूसरे प्रदेशों में अभिनय में व्यस्त थे, लुइस को एक पत्र मिला जिसमें लिखा था कि मां ने पागलखाना छोड़ दिया है। एक या दो दिन के बाद मकान मालकिन ऊपर आयी और बताने लगी कि दरवाजे पर एक औरत खड़ी है जो सिडनी और चार्ली को पूछ रही है।

"जाओ, तुम्हारी मां आयी है।" लुइस ने कहा। थोड़ी देर के लिए भ्रम की स्थिति पैदा हो गयी। तभी सिडनी कूदा और तेज़ी से दौड़ते हुए सीधे मां की बांहों में जा समाया। मैं उसके पीछे-पीछे लपका। यह वही हमारी प्यारी, मुस्कुराती मां थी और उसने हम दोनों को स्नेह से अपने सीने से लगा लिया था।

लुइस और मां का एक दूसरे से मिलना, खासा परेशानी का कारण बन सकता था, इसलिए मां दरवाजे पर ही खड़ी रहीं और हम दोनों भाई अपनी चीजें समेटते रहे। दोनों तरफ कोई कड़ुवाहट या दुर्भावना नहीं थी बल्कि सिडनी को विदा करते समय लुइस का व्यवहार बहुत ही अच्छा था।

मां ने हेवर्ड अचार फैक्टरी के पास केनिंगटन क्रॉस के पीछे वाली गली में एक कमरा किराये पर ले लिया था। हर दोपहर को वहां एसिड की तीखी गंध वातावरण में फैलने लगती, लेकिन कमरा सस्ता था और हम सब एक बार फिर साथ-साथ रह पा रहे थे। मां की सेहत बहुत अच्छी थी और ये बात हमने कभी सोची ही नहीं कि वह कभी बीमार भी रही थी।

मुझे इस बात का ज़रा-सा भी गुमान नहीं है कि हमारा वह अरसा कैसे गुज़रा। न तो मुझे किसी सीमा से ज्यादा तकलीफ की याद है और न ही किसी ऐसी समस्या की जिसका समाधान हमारे पास न हो। पिता की ओर से हर सप्ताह मिलने वाली दस शिलिंग की राशि आम तौर पर नियमित रूप से मिलती रही और, हां, मां ने सीने-पिरोने का काम फिर से हाथ में ले लिया था और गिरजा घर के साथ फिर से संबंध बना लिये थे।

उस समय की एक घटना खास तौर पर याद आ रही है। हमारी गली के एक सिरे पर कसाईघर था जहां हमारी गली में से हो कर कटने के लिए भेड़ें ले जायी जाती थीं। मुझे याद है कि एक भेड़ बच कर निकल भागी थी और गली में दौड़ती चली गयी थी। सब लोग ये तमाशा देखने लगे। कुछेक लोगों ने उसे दबोचने की कोशिश की और दूसरे कुछ लोग अपनी जगह ही कूद-फांद रहे थे। मैं खुशी के मारे खिलखिला कर हँस रहा था। ये नज़ारा इतना ज्यादा हास्यास्पद लग रहा था। लेकिन जब भेड़ को पकड़ लिया गया और वापिस कसाईघर की तरफ ले जाया गया तो त्रासदी की सच्चाई मुझ पर हावी हो गयी और मैं भाग कर घर के अंदर चला गया। मैं चिल्ला रहा था और ज़ार-ज़ार रोते हुए मां को बता रहा था,"वे लोग उसे मारने के लिए ले जा रहे हैं, वे लोग उसे मारने के लिए ले जा रहे हैं।" वह तीखी, वसंत की दोपहर और उस भेड़ का कॉमेडी-भरा पीछा करना, कई दिन तक मेरे दिलो-दिमाग पर छाये रहे। और मुझे लगता है कि शायद कहीं इसी घटना ने ही मेरी भावी फिल्मों के लिए ज़मीन तैयार की हो। त्रासदी और कॉमेडी का मिला-जुला रूप।

स्कूल अब नयी ऊंचाइयां छू रहा था। इतिहास, कविता और विज्ञान। लेकिन कुछ विषय बहुत ही जड़ और नीरस थे। खास तौर पर अंक गणित। उसके जोड़-भाग मुझमें किसी लिपिक और कैश रजिस्टर, उसके इस्तेमाल की छवि पैदा करते थे और और सबसे बड़ी बात, ये लगता था कि ये रेज़गारी की कमी से एक बचाव की तरह है।

इतिहास मूर्खताओं और हिंसा का दस्तावेज था। कत्ले-आम और राजाओं द्वारा अपनी रानियों, भाइयों और भतीजों को मारने का सतत सिलसिला; भूगोल में सिर्फ नक्शे ही नक्शे ही थे; काव्य के नाम पर अपनी याददाश्त की परीक्षा लेने के अलावा कुछ नहीं था। शिक्षा शास्त्र मुझे पागल बनाता था और तथ्यों की जानकारी में मेरी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी।

काश, किसी ने कारोबारी दिमाग इस्तेमाल किया होता, प्रत्येक अध्ययन की उत्तेजनापूर्ण प्रस्तावना पढ़ी होती जिसने मेरा दिमाग झकझोरा होता, तथ्यों के बजाये मुझ में रुचि पैदा की होती, अंकों की कलाबाजी से मुझे आनंदित किया होता, नक्शों के प्रति रोमांच पैदा किया होता, इतिहास के बारे में मेरा दृष्टिकोण विकसित किया होता, मुझे कविता की लय और धुन को भीतर उतारने के मौके दिये होते तो मैं भी आज विद्वान बन सकता था।

अब चूंकि मां हमारे पास वापिस लौट आयी थी, उसने थियेटर की तरफ मेरी रुचि फिर से जगानी शुरू कर दी थी। उसने मुझमें यह अहसास भर दिया था कि मुझ में थोड़ी-बहुत प्रतिभा है। लेकिन ये सुनहरा मौका बड़े दिन से पहले तब तक नहीं आया था जब तक स्कूल ने अपना संक्षिप्त नाटक सिंडरेला नहीं खेला था और मुझे अपने आपको वह सब अभिव्यक्त करने की ज़रूरत महसूस होने लगी थी जो मुझे मां ने सिखाया-पढ़ाया था। कुछ कारण थे कि मुझे नाटक के लिए नहीं चुना गया था, और भीतर ही भीतर मैं कुढ़ रहा था और महसूस कर रहा था कि बेहतर होता, मैं नाटक में भूमिका करूं बजाये उनके जो इस नाटक के लिए चुने गये थे। जिस तरह से बच्चे नीरस ढंग से और कल्पना शक्ति का सहारा लिये बिना अपनी भूमिका अदा कर रहे थे, उससे मुझमें खीज पैदा हो रही थी। बदसूरत बहनों में न कोई उत्साह था न ही भीतरी उमंग। वे अपनी लाइनें रटे-रटाये ढंग से पढ़ रही थीं जिसमें स्कूल के बच्चों वाली भेड़-चाल और खीझ पैदा करने वाली कृत्रिमता का दबाव था। मैं मां की दी हुई शिक्षा के साथ बदसूरत बहनों में से एक की भूमिका भला कैसे कर सकता था। अलबत्ता, जिस लड़की ने सिंडरेला की भूमिका की थी, उसने मुझे बांध लिया था। वह खूबसूरत और नफासत पसंद थी और उसकी उम्र चौदह बरस के आस-पास थी। मैं उससे गुपचुप प्यार करने लगा था। लेकिन वह मेरी पहुंच से दूर थी। सामाजिक तौर पर भी और उम्र के लिहाज से भी।

मैंने जब नाटक देखा तो मुझे ये बकवास लगा लेकिन लड़की की खूबसूरती के कारण मैंने इसे पसंद किया। उस लड़की ने मुझे उदास कर दिया था। अलबत्ता, मैंने इस बात को शायद ही महसूस किया था कि दो महीने बाद मेरी ज़िंदगी में कितने शानदार पल आने वाले थे कि मुझे हर क्लास के सामने ले जाया गया और -मिस प्रिशिला की बिल्ली का पाठ करने के लिए कहा गया। ये एक स्वांग भरी कविता थी जो मां ने अखबारों की दुकान के बाहर देखी थी और ये उसे इतनी अच्छी लगी कि वह खिड़की पर से नकल करके घर लेती आयी। कक्षा में खाने की छुट्टी के समय मैं उसे एक लड़के को सुना रहा था। तभी मिस्टर रीड, हमारे स्कूल के अध्यापक, ने अपने कागजों पर से ध्यान हटा कर देखा। वे इसे सुन कर इतने खुश हुए कि जब कक्षा के सब बच्चे वापिस आ गये तो उन्होंने मुझे ये सुनाने के लिए कहा। पूरी कक्षा हंसते-हंसते लोट पोट हो गयी। इस वजह से पूरे स्कूल में मेरा नाम फैल गया और अगले दिन मुझे स्कूल की हर कक्षा में, लड़के-लड़कियों की सभी कक्षाओं में ले जाया गया और उसका पाठ करने के लिए कहा गया।

हालांकि मैंने पांच बरस की उम्र में दर्शकों के सामने मंच पर मां की जगह लेते हुए अभिनय किया था लेकिन ग्लैमर से ये मेरा पहला होशो-हवास वाला साबका था। अब स्कूल मेरे लिए उत्तेजनापूर्ण हो चुका था और अब मैं शर्मीला और गुमसुम-सा लड़का नहीं रहा था। अब मैं अध्यापकों और बच्चों, सबका चहेता विद्यार्थी बन चुका था। इससे मेरी पढ़ाई में भी सुधार हुआ, लेकिन मेरी पढ़ाई में फिर से व्यवधान आया जब मुझे अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली के साथ क्लॉग नर्तकों के एक ट्रुप में हिस्सा लेना पड़ा।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 3

पिता जी मिस्टर जैक्सन को जानते थे। वे एक ट्रुप के संचालक थे। पिता जी ने मां को इस बात के लिए मना लिया कि मेरे लिए स्टेज पर कैरियर बनाना एक अच्छी शुरुआत रहेगी और साथ ही साथ मैं मां की आर्थिक रूप से मदद भी कर पाऊंगा। मेरे लिए खाने और रहने की सुविधा रहेगी और मां को हर हफ्ते आधा क्राउन मिला करेगा। शुरू-शुरू में तो वह अनिश्चय में डोलती रही, लेकिन मिस्टर जैक्सन और उनके परिवार से मिलने के बाद मां ने हामी भर दी।

मिस्टर जैक्सन की उम्र पचास-पचपन के आस-पास थी। वे लंकाशायर में अध्यापक रहे थे और उनके परिवार में चार बच्चे थे। तीन लड़के और एक लड़की। ये चारों बच्चे अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली के सदस्य थे। मिस्टर जैक्सन परम रोमन कैथोलिक थे और अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह करने के बारे में उन्होंने अपने बच्चों से सलाह ली थी। उनकी दूसरी पत्नी उम्र में उनसे भी थोड़ी बड़ी थी। वे हमें पूरी नेकनीयती से बता दिया करते कि उन दोनों की शादी कैसे हुई थी। उन्होंने एक अखबार में अपने लिए एक बीवी के लिए एक विज्ञापन दिया था और उसके जवाब में तीन सौ से भी ज्यादा ख़त मिले थे।

भगवान से राह सुझाने के लिए दुआ करने के बाद उन्होंने केवल एक ही लिफाफा खोला था और वह खत था मिसेज जैक्सन की ओर से। वे भी एक स्कूल में पढ़ाती थीं और शायद ये मिस्टर जैक्सन की दुआओं का ही असर था कि वे भी कैथोलिक थीं।

मिसेज जैक्सन को बहुत अधिक खूबसूरती का वरदान नहीं मिला था और न ही उन्हें किसी भी निगाह से कमनीय ही कहा जा सकता था। जहां तक मुझे याद है, उनका बड़ा सा, खोपड़ी जैसा पीला चेहरा था और उस पर ढेर सारी झुर्रियां थीं। शायद इन झुर्रियों की वज़ह यह रही हो कि उन्हें काफी बड़ी उम्र में मिस्टर जैक्सन को एक बेटे की सौगात देनी पड़ी थी। इसके बावजूद वे निष्ठावान और समर्पित पत्नी थीं और हालांकि उन्हें अभी भी अपने बेटे को छाती का दूध पिलाना पड़ता था, वे ट्रुप की व्यवस्था में हाड़-तोड़ मेहनत करके मदद किया करती थीं।

जब उन्होंने रोमांस की अपनी दास्तान सुनायी तो यह दास्तान मिस्टर जैक्सन की बतायी कहानी से थोड़ी अलग थी। उनमें आपस में पत्रों का आदान-प्रदान हुआ था लेकिन उन दोनों में से किसी ने भी दूसरे को शादी के दिन तक नहीं देखा था और बैठक के कमरे में उन दोनों के बीच जो पहली मुलाकात हुई थी और परिवार के बाकी लोग दूसरे कमरे में इंतज़ार कर रहे थे, मिस्टर जैक्सन ने कहा था, "बस, आप वही हैं जिनकी मुझे चाह थी।" और मैडम ने भी वही बात स्वीकार की। हम बच्चों को ये किस्सा सुनाते समय वे विनम्र हो कर कहतीं,"लेकिन मुझे नहीं पता था कि मुझे हाथों-हाथ आठ बच्चों की मां बन जाना पड़ेगा।"

उनके तीन बच्चों की उम्र बारह से अट्ठारह बरस के बीच थी और लड़की की उम्र नौ बरस थी। उस लड़की के बाल लड़कों की तरह कटे हुए थे ताकि उसे भी मंडली के बाकी लड़कों में खपा लिया जा सके।

हर रविवार को मेरे अलावा सब लोग गिरजाघर जाया करते थे। मैं ही उन सब में अकेला प्रोटैस्टैंट था, इसलिए अक्सर उनके साथ ही चला जाता। मां की धार्मिक भावनाओं के प्रति सम्मान न होता तो मैं कब का कैथोलिक बन चुका होता क्योंकि मैं इस धर्म का रहस्यवाद पसंद करता था और घर की बनी हुई छोटी-छोटी ऑल्टर तथा लास्टर की मेरी वर्जिन की मूर्तियां, जिन पर फूल और मोमबत्तियां सजी रहतीं, मुझे अच्छी लगतीं। इन्हें बच्चे अपने बेडरूम के कोने में सजा कर रखते और जब भी उसके आगे से गुज़रते, घुटने टेक कर श्रद्धा अर्पित करते।

छ: सप्ताह तक अभ्यास करने के बाद मैं अब इस स्थिति में था कि बाकी मंडली के साथ नाच सकूं। लेकिन चूंकि मैं अब आठ बरस की भी उम्र पार कर चुका था, मैं अपनी आश्वस्ति खो चुका था और पहली बार दर्शकों के सामने आने पर मुझे मंच का भय लगा। मैं मुश्किल से अपनी टांगें हिला पा रहा था। हफ्तों लग गये तब कहीं जा कर मैं मंडली के बाकी बच्चों की तरह एकल नृत्य करने की हालत में आ सका।

मैं इस बात को ले कर बहुत अधिक खुश नहीं था कि मुझे भी मंडली के बाकी आठ बच्चों की तरह क्लॉग डांसर ही बना रहना पड़े। बाकी बच्चों की तरह मैं भी एकल अभिनय करने की महत्त्वाकांक्षा रखता था। सिर्फ इसलिए नहीं कि इस तरह के काम के ज्यादा पैसे मिलते थे बल्कि इसलिए भी कि मैं शिद्दत से महसूस करता था कि नाचने के बजाये इस तरह के अभिनय से कहीं ज्यादा संतुष्टि मिलती है। मैं बाल हास्य कलाकार बनना चाह सकता था लेकिन उसके लिए स्टेज पर अकेले खड़े रहने का माद्दा चाहिये था। इसके अलावा मेरी पहली भीतरी प्रेरणा यही थी कि मैं एकल नृत्य के अलावा जो कुछ भी करूंगा, हास्यास्पद होगा। मेरा आदर्श दोहरा अभिनय था। दो बच्चे कॉमेडी ट्रैम्प की तरह कपड़े पहने हों। मैंने यह बात अपने एक साथी बच्चे को बतायी और हम दोनों ने पार्टनर बनना तय किया। ये हमारा कब का पाला सपना पूरा होने जा रहा था। हम अपने आपको ब्रिस्टॉल और चैप्लिन - करोड़पति ट्रैम्प कहते और ट्रैम्प गलमुच्छे लगाते, और हीरे की बड़ी बड़ी अंगूठियां पहनते। हमने उस हर पहलू पर विचार कर लिया था जो मज़ाकिया होता और जिससे कमाई हो सकती लेकिन अफ़सोस, ये सपना कभी भी साकार नहीं हो सका।

दर्शक अष्टम लंकाशायर बाल गोपाल मंडली पसंद करते थे क्योंकि जैसा कि मिस्टर जैक्सन कहते थे - हम थियेटर के बच्चों जैसे बिलकुल भी नहीं लगते थे। उनका यह दावा था कि हमने कभी भी अपने चेहरों पर ग्रीज़ पेंट नहीं पोता, और हमारे गुलाबी गाल वैसे ही गुलाबी थे। यदि कोई बच्चा स्टेज पर जाने से पहले जरा-सा भी पीला दिखायी देता तो वे हमें बताते कि अपने गालों को मसल दें। लेकिन लंदन में एक ही रात में दो या तीन संगीत सदनों में काम करने के बाद अक्सर हम भूल जाते और स्टेज पर खड़े हुए थके-मांदे और मनहूस लगने लगते। तभी हमारी निगाह विंग्स में खड़े मिस्टर जैक्सन पर पड़ती और वे ज़ोर-ज़ोर से खींसें निपोरते हुए अपने चेहरे की तरफ इशारा कर रहे होते। इसका बिजली का-सा असर होता और हम अचानक हँसी के मारे दोहरे हो जाते।

प्रदेशों के टूर करते समय हम हर शहर में एक-एक हफ्ते के लिए स्कूल जाया करते। लेकिन इससे मेरी पढ़ाई में कोई खास इज़ाफा नहीं हुआ।

क्रिसमस के दिनों में हमें लंदन हिप्पोड्रोम में सिंडरेला पैंटोमाइम में बिल्ली और कुत्ते का मूक अभिनय करने का न्यौता मिला। उन दिनों ये नया थियेटर हुआ करता था और इसमें वैराइटी शो और सर्कस का मिला-जुला रूप हुआ करता था। इसे बहुत खूबसूरती से सजाया जाता और काफी हंगामा रहा करता था। रिंग का फर्श नीचे चला जाता था और वहां पानी भर जाता था और काफी बड़े पैमाने पर बैले होता। एक के बाद एक बला की खूबसूरत लड़कियां चमकीली सज-धज में आतीं और पानी के नीचे एकदम गायब हो जातीं। जब लड़कियों की आखिरी पंक्ति भी डूब जाती तो मैर्सलाइन, महान फ्रांसीसी जोकर, शाम की बेतुकी, चिकनी पोशाक में सजे धजे, एक कैम्प स्टूल पर बैठे हाथ में मछली मारने की रॉड लिये अवतरित होते और बड़ा-सा गहनों का बक्सा खोलते, अपने कांटे में हीरे का एक नेकलेस फंसाते और उसे पानी में डाल देते। थोड़ी देर के बाद वे छोटे आभूषण निकालते और कुछ बेसलेट फेंकते, और इस तरह पूरा का पूरा बक्सा खाली कर डालते। अचानक वे एक झटका खाते और तरह-तरह की मजाकिया हरकतें करते हुए रॉड के साथ संघर्ष करते हुए प्रतीत होते और आखिर कांटे को खींच कर बाहर निकालते और हम देखते कि पानी में से एक छोटा-सा प्रशिक्षित कुत्ता बाहर आ रहा है। कुत्ता वही सब कुछ करता जो मार्सलीन करते। अगर वे बैठते तो कुत्ता भी बैठ जाता और अगर वे खड़े होते तो कुत्ता भी खड़ा हो जाता। मार्सलीन साहब की कॉमेडी हंसी-ठिठोली से भरी और आकर्षक थी और लंदन के लोग उनके पागलपन की हद तक दीवाने थे।

रसोई के एक दृश्य में मुझे उनके साथ करने के लिए एक छोटा-सा मजाकिया दृश्य दिया गया। मैं बिल्ली बना हुआ था और मार्सलीन एक कुत्ते की तरफ से पीछे आते हुए मेरे ऊपर गिर जाने वाले थे जबकि मैं दूध पी रहा होता। वे हमेशा शिकायत किया करते कि मैं अपनी कमर को इतना नहीं झुकाता कि उनके गिरने के बीच आड़े आऊं। मैंने बिल्ली का एक मुखौटा पहना हुआ था और मुखौटा ऐसा कि जिस पर हैरानी के भाव थे। बच्चों के लिए पहले मैटिनी शो में मैं कुत्ते के शरीर के पिछले हिस्से की तरफ चला गया और उसे सूंघने लगा। जब दर्शक हंसने लगे तो मैं वापिस मुड़ा और उनकी तरफ हैरानी से देखने लगा और मैंने एक डोरी खींची जिससे बिल्ली की घूरती हुई आंख मुंद जाती थी। मैं जब कई बार सूंघने और आंख मारने का अभिनय कर चुका तो स्टेज मैनेजर लपका हुआ बैक स्टेज में आया और विंग्स में से पागलों की तरह हाथ हिलाने लगा। लेकिन मैं अपने काम में लगा रहा। कुत्ते को सूंघने के बाद मैंने रंगमंच सूंघा और फिर अपनी टांग उठा दी। दर्शक हँस हँस कर दोहरे हो गये। शायद इसलिए क्योंकि ये हरकत बिल्ली जैसी नहीं थी। आखिरकार मैनेजर से मेरी आंखें मिल ही गयीं और मैं इतना कूदा-फांदा कि लोग हँसते हँसते लोट पोट हो गये। वे मुझ पर झल्लाये,"इस तरह की हरकत फिर कभी मत करना।" यह कहते हुए उनकी सांस फूल रही थी,"तुम जरूर इस थियेटर के मालिक लॉर्ड चैम्बरलिन को ये थियेटर बंद करने पर मजबूर करोगे।"

सिंडरेला को आशातीत सफलता मिली। और हालांकि मार्सलीन साहब को कहानी तत्व या प्लॉट के साथ कुछ लेना-देना नहीं था, फिर भी वे सबसे बड़ा आकर्षण थे। कई बरसों के बाद मार्सलीन न्यूयॉर्क के हिप्पोड्रोम में चले गये और उन्हें वहां भी हाथों-हाथ लिया गया। लेकिन जब हिप्पोड्रोम की जगह सर्कस ने ले ली तो मार्सलीन साहब को जल्दी ही भुला दिया गया।


1918 या उसके आस पास की बात है, रिंगलिंग ब्रदर्स का थ्री रिंग सर्कस लॉस एंजेल्स में आया तो मार्सलीन उनके साथ थे। मैं ये मान कर चल रहा था कि उनका ज़िक्र पोस्टरों में होगा लेकिन मुझे यह देख कर गहरा धक्का लगा कि उनकी भूमिका बहुत से उन दूसरे जोकरों की ही तरह थी जो पूरे रिंग में यहां से वहां तक दौड़ते नज़र आते हैं। एक महान कलाकार तीन रिंग वाले सर्कस की अश्लील तड़क-भड़क में खो गया था।

बाद में मैं उनके ड्रेसिंग रूम में गया और अपना परिचय दिया और उन्हें याद दिलाया कि मैंने उनके साथ लंदन के हिप्पोड्रोम में बिल्ली की भूमिका अदा की थी। लेकिन उनकी प्रतिक्रिया उदासीन थी। यहां तक कि अपने जोकर वाले मेक-अप में भी उनका चेहरा सूजा हुआ लग रहा था और वे उदास और सुस्त लग रहे थे।

एक बरस बाद न्यू यार्क में उन्होंने खुदकुशी कर ली। अखबारों में एक कोने में छोटी-सी खबर छपी थी कि उसी घर में रहने वाले एक पड़ोसी ने गोली चलने की आवाज़ सुनी थी और मार्सलीन को फर्श पर पड़े हुए देखा था। उनके एक हाथ में पिस्तौल थी और ग्रामोफोन रिकार्ड अभी भी घूम रहा था। रिकार्ड पर जो गीत बज रहा था, वह था, "मूनलाइट एंड रोजेज़।"


कई मशहूर अंग्रेज़ी कॉमेडियनों ने खुदकुशी की है। टी ई डनविले, जो बहुत ही आला दरजे के हंसोड़ व्यक्ति थे, ने सैलून बार के भीतर जाते समय किसी को पीठ पीछे यह कहते सुन लिया था,"अब इस शख्स के दिन लद गये।" उसी दिन उन्होंने टेम्स नदी के किनारे अपने आप को गोली मार दी थी।

मार्क शेरिडन, जो इंगलैंड के सर्वाधिक सफल कामेडियन थे, ने ग्लासगो में एक सार्वजनिक पार्क में अपने आपको गोली मार दी थी क्योंकि वे ग्लासगो के दर्शकों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे थे।

फ्रैंक कॉयन, जिनके साथ हमने उसी शो में काम किया था, जांबाज़, हट्टे-कट्टे कामेडियन थे और जो अपने एक हल्के-फुल्के गाने के लिए बहुत प्रसिद्ध थे:


आप मुझे घोड़े की पीठ पर दोबारा सवार नहीं पायेंगे

ऐसा नहीं है वह घोड़ा चढ़ सकूं जिस पर मैं

जिस घोड़े पर मैं चढ़ सकता हूं वो तो

है वो जिस पर मोहतरमा सुखाती है कपड़े


स्टेज के बाहर वे हमेशा खुश रहते और मुस्कुराते रहते। लेकिन एक दोपहर, अपनी पत्नी के साथ घोड़ी वाली गाड़ी पर सैर की योजना बनाने के बाद वे कुछ भूल गये और अपनी पत्नी से कहा कि वह इंतज़ार करे और वे खुद सीढ़ियां चढ़ कर भीतर गये। बीस मिनट के बाद जब वह ऊपर यह देखने के लिए गयी कि उन्हें आने में देर क्यों हो रही है तो उसने उन्हें बाथरूम के फर्श पर खून से लथपथ पड़े हुए पाया। उनके हाथ में उस्तरा था और उन्होंने अपना गला काट कर अपने आपको लगभग खत्म ही कर डाला था।

अपने बचपन में मैंने जिन कई कलाकारों के साथ काम किया था और जिन्होंने मुझे प्रभावित किया था, वे स्टेज पर हमेशा सफल नहीं थे बल्कि स्टेज से बाहर उनका विलक्षण व्यक्तित्व हुआ करता था। जार्मो नाम के एक कॉमेडी ट्रैम्प बाजीगर हुआ करते थे जो कड़े अनुशासन में काम करते थे और थियेटर के खुलते ही हर सुबह घंटों तक अपनी बाजीगरी का अभ्यास किया करते थे। हम उन्हें स्टेज के पीछे देख सकते थे कि वे बिलियर्ड खेलने की छड़ी को अपनी ठुड्डी पर संतुलित कर रहे हैं और एक बिलियर्ड गेंद उछाल कर उसे इस छड़ी के ऊपर टिका रहे हैं। इसके बाद वे दूसरी गेंद उछालते और पहली गेंद के ऊपर टिका देते। अक्सर वे दूसरी गेंद टिकाने में चूक जाते। मिस्टर जैक्सन ने बताया कि वे चार बरस तक लगातार इस ट्रिक का अभ्यास करते रहे थे और सप्ताह के अंत में इसे पहली बार दर्शकों के सामने दिखाना चाह रहे थे। उस रात हम सब विंग्स में खड़े उन्हें देखते रहे। उन्होंने बिलकुल ठीक प्रदर्शन किया और पहली ही बार ठीक किया। गेंद को ऊपर उछालना और बिलियर्ड की छड़ी पर ऊपर टिका देना और फिर दूसरी गेंद उछालना और उसे पहली गेंद के ऊपर टिका देना लेकिन दर्शकों ने मामूली सी तालियां ही बजायीं।

मिस्टर जैक्सन ने उस रात का किस्सा बताया था, उन्होंने जार्मो से कहा था,"तुम इस ट्रिक को बहुत ही आसान बना डालते हो। इस वज़ह से तुम इसे बेच नहीं पाते। तुम इसे कई बार मिस करो, तब जा कर गेंद को ऊपर टिकाओ, तब बात बनेगी।" जार्मो हंसे थे,"मैं इतना कुशल नहीं हूं कि इसे मिस कर सकूं।" जार्मो मानस विज्ञान में भी दिलचस्पी रखते थे और हमारे चरित्र पढ़ा करते। उन्होंने मुझे बताया था कि मैं जो कुछ भी ज्ञान हासिल करूंगा, उसे बनाये रखूंगा और उसका बेहतर इस्तेमाल करूंगा।

इनके अलावा, ग्रिफिथ बंधु हुआ करते थे। मज़ाकिया और प्रभाव छोड़ने वाले। उन्होंने मेरा मनोविज्ञान ही उलट-पुलट डाला था। वे दोनों कॉमेडी ट्रैपीज़ जोकर थे और दोनों ट्रैपीज़ पर झूला करते। वे मोटे पैड लगे जूतों से एक दूसरे के मुंह पर जोर से लात जमाते।

"आह," लात खाने वाला चिल्लाता।

"ज़रा एक बार फिर मार कर तो दिखा।"

"ले और ले। एक और लात"

और फिर लात खाने वाला हैरानी से देखता रह जाता और आंखें नचाता और कहता,"अरे देखो, उसने फिर से लात मार दी है।"

मुझे इस तरह की पागलपन से भरी हिंसा से तकलीफ होती। लेकिन स्टेज से बाहर वे दोनों भाई बहुत प्यारे, शांत और गम्भीर होते।

मेरा ख्याल है, किंवदंती बन चुके ग्रिमाल्डी के बाद डान लेनो महान अंग्रेज़ कॉमेडियन रहे। हालांकि मैंने कभी भी लेनो को उनके चरम उत्कर्ष पर नहीं देखा, वे मेरे लिए कॉमेडियन के बजाये चरित्र अभिनेता अधिक थे। लंदन के निचले वर्गों के सनक से भरे जीवन के उनके खाके, स्कैच अत्यंत मानवीय और दिल को छू लेने वाले होते, मां ने मुझे बताया था।

प्रसिद्ध मैरी लॉयड की प्रसिद्धि छिछोरी औरत के रूप में थी। इसके बावजूद जब हमने उनके साथ स्ट्रैंड में ओल्ड टिवोली में अभिनय किया तो वे ज्यादा गम्भीर और सतर्क अभिनेत्री लगीं। मैं उन्हें आंखें चौड़ी किये देखता रहता। एक चिंतातुर, छोटी-मोटी महिला जो दृश्यों के बीच आगे-पीछे कदम ताल करती रहती थीं।

वे तब तक गुस्से में और डरी रहतीं जब तक उनके लिए मंच पर जाने का समय न आ जाता। उसके बाद वे एकदम खुशमिजाज दिखतीं और उनके चेहरे पर राहत के भाव आ जाते।

और फिर, ब्रांसबाय विलियम्स, जो डिकेंस के पात्रों का अभिनय करते थे, वे उरिया हीप, बिल साइक्स और द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के बूढ़े आदमी की नकल से मुझे आनन्दित किया करते थे। इस खूबसूरत, अभिजात्य पुरुष का ग्लासगो की उजड्ड जनता के सामने अभिनय करना और अपने आप को इन शानदार चरित्रों में ढाल कर करतब दिखाना, थियेटर के नये ही अर्थ खोलता था।

उन्होंने साहित्य के प्रति भी मेरे मन में अनुराग जगाया था। मैं जानना चाहता था कि आखिर वह अबूझ रहस्य क्या है जो किताबों में छुपा रहता है, डिकेंस के ये ज़मीनी रंग के चरित्र जो इस तरह की आश्चर्यजनक क्रुक्शांकियाई दुनिया में विचरते हैं। हालांकि मैं मुश्किल से पढ़ पाता था, मैंने आखिरकार ऑलिवर ट्विस्ट की प्रति खरीदी।

मैं चार्ल्स डिकेंस के चरित्रों के साथ इतना ज्यादा रोमांचित था कि मैं उनकी नकल करने वाले ब्रांसबाय विलियम्स की नकल करता। इस बात से इनकार कैसे किया जा सकता है कि इस तरह की उभरती हुई प्रतिभा पर किसी की निगाह न जाती। इसे छुपा कर कैसे रखा जा सकता था। तो हुआ ये कि एक दिन मिस्टर जैक्सन ने मुझे अपने दोस्तों का द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के बूढ़े का चरित्र निभा कर उसकी नकल करते देख लिया। मुझे तब और तभी जीनियस मान लिया गया और मिस्टर जैक्सन ने तय कर लिया कि वे पूरी दुनिया से इस प्रतिभा का परिचय करवा के रहेंगे।

अचानक मौका आया मिडल्सबोरो में थियेटर में। हमारे क्लॉग नृत्य के बाद मिस्टर जैक्सन स्टेज पर कुछ इस तरह का भाव लिये हुए आये मानो वे एक नये मसीहा का परिचय कराने के लिए चले आ रहे हों। उन्होंने घोषणा की कि उन्होंने एक बाल प्रतिभा खोज निकाली है और द' ओल्ड क्यूरोसिटी शॉप के उस बूढ़े की ब्रांसबाय विलियम्स की नकल करके दिखायेगा जो अपने नन्हें नेल की मृत्यु को पहचान नहीं पाता।

दर्शक इसके लिए बहुत ज्यादा तैयार नहीं थे, क्योंकि वे पहले ही पूरी शाम का एक बोर मनोरंजन झेल चुके थे। अलबत्ता, मैं अपनी डांस वाली सामान्य पोशाक पहने हुए ही मंच पर आया। मैंने सफेद लीनन का फ्रॉक, लेस वाले कॉलर, चमकीले निक्कर, बॉकर पैंट, और नाचने के समय के लाल जूते पहले पहने हुए थे। और मैं अभिनय कर रहा था ऐसे बूढ़े का जो नब्बे बरस का हो। कहीं से हमें एक ऐसी पुरानी विग मिल गयी थी - शायद मिस्टर जैक्सन कहीं से लाये होंगे, जो वैसे तो बड़ी थी लेकिन जो मुझे पूरी नहीं आ रही थी हालांकि मेरा सिर बड़ा था लेकिन विग उससे भी बड़ी थी। ये एक गंजे आदमी वाली विग थी और उसके चारों तरफ सफेद लटें झूल रही थीं इसलिए मैं जब स्टेज पर एक बूढ़े आदमी की तरह झुका हुआ पहुंचा तो इसका असर घिसटते गुबरैले की तरह था और दर्शकों ने इस तथ्य को दबी हंसी के साथ स्वीकार किया।

इसके बाद तो उन्हें चुप कराना ही मुश्किल हो गया। मैं दबी हुई फुसफुसाहट में बोल रहा था," हश़ ... हश़.... शोर मत करो, नहीं तो मेरा नेल जग जायेगा।"

"जोर से बोलो, जोर से बोलो" दर्शक चिल्लाये।

लेकिन मैं बहुत ही अनौपचारिक तरीके से उसी तरह से फुसफुसाहट के स्वर में ही बोलता रहा। मैं इतने अंतरंग तरीके से बोल रहा था कि दर्शक पैर पटकने लगे। चार्ल्स डिकेंस के चरित्रों को जीने के रूप में ये मेरे कैरियर का अंत था।


हालांकि हम किफायत से रहते थे लेकिन हम अष्टम लंकाशायर बाल गोपालों का जीवन ठीक-ठाक चल रहा था। कभी कभी हम लोगों में छोटी-मोटी असहमति भी हो जाती। मुझे याद है, हम दो युवा एक्रोबैट्स के साथ एक ही प्रस्तुति में काम कर रहे थे। प्रशिक्षु लड़के मेरी ही उम्र के रहे होंगे। उन्होंने हमें विश्वास पूर्वक बताया कि उनकी मांओं को तो सात शिलिंग और छ: पेंस हफ्ते के मिलते हैं और हर सोमवार की सुबह उन्हें नाश्ते की बैकन और अंडे की प्लेट के नीचे एक शिलिंग की पाकेट मनी भी रखी मिलती है। और हमें तो, हमारे ही एक साथी ने शिकायत की,"हमें तो सिर्फ दो ही पेंस मिलते हैं और ब्रेड जैम का नाश्ता मिलता है।"

जब मिस्टर जैक्सन के पुत्र जॉन ने ये सुना कि हम शिकायत कर रहे हैं तो वह रुआंसा हो गया और एकदम रो पड़ा। हमें बताने लगा कि हमें कई बार लंदन के उन उपगनरों में ऐसे भी सप्ताह गुज़ारने पड़ते हैं जब उसके पिता को पूरी मंडली के लिए मात्र सात पौंड ही मिल पाते हैं और वे किसी तरह गाड़ी खींचने में बहुत ही मुश्किल का सामना कर रहे हैं।

इन दोनों युवा एक्रोबैट्स की इस शानदार जीवन शैली का ही असर था कि हमने भी एक्रोबैट बनने की हसरतें पाल लीं। इसलिए कई बार सुबह के वक्त, जैसे ही थियेटर खुलता, हम में से एक या दो जन एक रस्सी के साथ कलाबाजियां खाने का अभ्यास करते। हम रस्सी को अपनी कमर से बांध लेते, जो एक पूली से जुड़ी होती, और हम में से एक लड़का रस्सी को थामे रहता। मैंने इस तरीके से अच्छी कलाबाजियां खाना सीख लिया था कि तभी मैं गिरा और अपने अंगूठे में मोच खा बैठा। इसी के साथ ही मेरे एक्रोबैट के कैरियर का अंत हुआ।

नृत्य के अलावा हमेशा हम लोगों की कोशिश होती कि अपने आइटम में नया कुछ जोड़ें। मैं एक कॉमेडी बाजीगर बनना चाहता था। और इसके लिए मैंने इतने पैसे बचा लिये थे कि मैंने उनसे रबर की चार गेंदें और टिन की चार प्लेटें खरीदीं। मैं अपने बिस्तर के पास खड़ा घंटों इनके साथ अभ्यास किया करता।

मिस्टर जैक्सन अनिवार्य रूप से एक बेहतरीन आदमी थे। मेरे ट्रुप छोड़ने से तीन महीने पहले उन्होंने मेरे पिता की सहायतार्थ एक आयोजन किया था और उसमें हम लोग शामिल हुए थे। मेरे पिता उन दिनों बहुत बीमार चल रहे थे। कई वैराइटी कलाकारों ने बिना कोई शुल्क लिये अपनी सेवाएं दीं। मिस्टर जैक्सन की अष्टम बाल गोपाल मंडली ने भी अपनी सेवाएं दीं। उस सहायतार्थ आयोजन में मेरे पिता स्टेज पर मौज़ूद थे और वे बहुत मुश्किल से सांस ले पा रहे थे। बहुत तकलीफ़ से वे अपना भाषण दे पाये थे। मैं स्टेज पर एक तरफ खड़ा उन्हें देख रहा था। उस वक्त मैं नहीं जानता था कि वे तिल-तिल मौत की तरफ बढ़ रहे थे।


जब हम लंदन में होते तो मैं हर सप्ताह मां से मिलने के लिए जाता। उसे लगता कि मैं पीला पड़ गया हूं और कमज़ोर हो गया हूं और कि नाचने से मेरे फेफड़ों पर असर हो रहा है। इस बात ने उसे इतना चिंतित कर दिया कि उसने इस बारे में मिस्टर जैक्सन को लिखा। मिस्टर जैक्सन इतने नाराज़ हुए कि आखिरकार उन्होंने मुझे घर का ही रास्ता दिखा दिया कि मैं चिंतातुर मां का लाडला इतनी बड़ी परेशानी के लायक नहीं हूं।

अलबत्ता, कुछ ही हफ्तों के बाद मुझे दमा हो गया। दमे के दौरे इतने तेज होते कि मां को पूरा यकीन हो गया कि मुझे टीबी हो गयी है और वह मुझे तुरंत ब्राम्पटन अस्पताल ले गयी। वहां मेरी अच्छी तरह से पूरी जांच की गयी। मेरे फेफड़ों में कोई भी खराबी नहीं थी, बस, मुझे अस्थमा हो गया था। महीनों तक मैं उसकी तकलीफ से गुज़रता रहा और मुझे सांस लेने में भी तकलीफ होती थी। कई बार तो खिड़की से बाहर कूद जाने की मेरी इच्छा होती। सिर पर कंबल डाले जड़ी-बूटियों की भाप लेने से भी मेरे सिर दर्द में कोई कमी न आती। लेकिन जैसा कि डॉक्टर ने कहा था, अंतत: मैं ठीक हो जाऊंगा, मैं ठीक हो ही गया।


इस दौरान की मेरी स्मृतियां स्पष्ट और धूमिल होती रहती हैं। सबसे उल्लेखनीय छवि तो हमारी दयनीय हालात का निचाट कछार है। मुझे याद नहीं पड़ता कि उन दिनों सिडनी कहां था। चूंकि वह मुझसे चार बरस बड़ा था, वह कभी-कभार ही मेरे चेतन में आता। ऐसा हो सकता है कि मां की तंग हालत के कारण वह नाना के पास रह रहा हो। हम अपना डोरा-डंडा उठाये एक गरीबखाने से दूसरे गरीबखाने की ओर कूच करते रहते। और अंतत: 3 पाउनाल टैरेस की दुछत्ती पर आ बसे थे।

मुझे अपनी गरीबी के सामाजिक कलंक का अच्छी तरह से भान था। गरीब से गरीब बच्चे भी रविवार की शाम को घर के बने डिनर का लुत्फ ले ही लिया करते थे। घर पर कोई भुनी हुई चीज़ का मतलब सम्मानजनक स्थिति हुआ करता था जो एक गरीब को दूसरे गरीब से अलग करती थी। वे लोग, जो रविवार की शाम घर पर डिनर के लिए नहीं बैठ पाते थे, उन्हें भिखमंगे वर्ग का माना जाता था और हम उसी वर्ग में आते थे। मां मुझे नजदीकी कॉफी शॉप से छ: पेनी का डिनर (मीट और दो सब्जियां) लेने के लिए भेजती। और सबसे ज्यादा शर्म की बात ये होती कि ये रविवार की शाम होती। मैं उसके आगे हाथ जोड़ता कि वह घर पर ही कोई चीज़ क्यों नहीं बना लेती और वह बेकार में ही यह समझाने की कोशिश करती कि घर पर ये ही चीजें बनाने में दुगुनी लागत आयेगी।

अलबत्ता, एक सौभाग्यशाली शुक्रवार को, जब उसने घुड़दौड़ में पांच शिलिंग जीते थे, मुझे खुश करने की नीयत से मां ने तय किया कि वह रविवार के दिन डिनर घर पर ही बनायेगी। दूसरी स्वादिष्ट चीजों के अलावा वह भूनने वाला मांस भी लायी जिसके बारे में वह तय नहीं कर पा रही थी कि ये गाय का मांस है या गुर्दे की चर्बी का लोंदा है। ये लगभग पांच पौंड का था और उस पर चिप्पी लगी हुई थी,"भूनने के लिए।"

हमारे पास क्योंकि ओवन नहीं था, इसलिए मां ने उसे भूनने के लिए मकान-मालकिन का ओवन इस्तेमाल किया और बार-बार उसकी रसोई के भीतर आने-जाने की जहमत से बचने के लिए अंदाज से उस मांस के लोंदे को भूनने के लिए ओवन का टाइम सेट कर दिया और उसके बाद ही वह रसोईघर में गयी। और हमारी बदकिस्मती से हुआ ये कि हमारा ये मांस का पिंड क्रिकेट की गेंद के आकार का ही रह गया था। इसके बावजूद, मां के इस दृढ़ निश्चय के बावजूद कि हमारा खाना बाहर के छ: पेंस के खाने से कम तकलीफदेह और ज्यादा स्वादिष्ट होता है, मैंने उस भोजन का भरपूर आनंद लिया और यह महसूस किया कि हम भी किसी से कम नहीं।


हमारे जीवन में अचानक एक परिवर्तन आया। मां अपनी एक पुरानी सहेली से मिली जो बहुत समृद्ध पहुंचेली चीज़ बन गयी थी, खूबसूरत हो गयी थी और चलती-पुरजी टाइप की महिला बन गयी थी। उसने एक अमीर बूढ़े कर्नल की मिस्ट्रैस बनने के लिए स्टेज को अलविदा कह दी थी।

वह स्टॉकवेल के फैशनपरस्त जिले में रहा करती थी और मां से फिर से मिलने के अपने उत्साह में उसने हमें आमंत्रित किया कि गर्मियों में हम उसके यहां आ कर रहें। चूंकि सिडनी गांवों की तरफ मस्ती मारने के लिए गया हुआ था इसलिए मां को मनाने में ज़रा भी तकलीफ नहीं हुई और उसने अपनी सुई और कसीदेकारी के हुनर से अपने-आपको काफी ढंग का बना लिया था और मैंने अपना संडे सूट पहन लिया। यह अष्टम बाल मंडली का अवशेष था और इस मौके के हिसाब से ठीक-ठाक लग रहा था।

और इस तरह रातों-रात हम लैंसडाउन स्क्वायर में कोने वाले एक बहुत ही शांत मकान में पहुंचा दिये गये। ये घर नौकरों-चाकरों से भरा हुआ था। वहां गुलाबी और नीले बैडरूम थे, छींट के परदे थे और सफेद भालू के बालों के नमदे थे। मुझे कितनी अच्छी तरह से याद हैं डाइनिंग रूम के साइड बोर्ड को सजाने वाले बड़े नीले हॉटहाउस ग्रेप्स की और मुझे यह बात कितनी लज्जा से भर देती जब मैं देखता कि वे रहस्यमय तरीके से गायब होते चले जा रहे हैं और हर दिन बीतने के साथ उनके ढांचे भर नज़र आने लगे थे।

घर के भीतर काम करने के लिए चार औरतें थीं। रसोईदारिन और तीन नौकरानियां। मां और मेरे अलावा वहां पर एक और मेहमान थे। बहुत तनावग्रस्त, एक सुदर्शन युवक जिनकी कुतरी हुई लाल मूंछें थीं। वे बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक थे और बहुत सज्जन थे। वे उस घर में स्थायी सामान की तरह थे लेकिन सफेद मूंछों वाले कर्नल महाशय के नज़र आने तक ही। उनके आते ही वह खूबसूरत नौजवान गायब हो जाता।

कर्नल महोदय का आना कभी-कभार ही होता। हफ्ते में दो-एक बार। जब वे वहां होते तो पूरे घर में एक रहस्य का आवरण तना रहता और उनकी मौजूदगी हर जगह महसूस की जाती। और मां मुझे बताती कि उनके सामने न पड़ा करूं और उन्हें नज़र न आऊं। एक दिन मैं ठीक उसी वक्त हॉल में जा पहुंचा जब वे सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे।

वे लम्बे, भव्य, राजसी ठाठ-बाठ वाले व्यक्ति थे और उन्होंने फ्रॉक कोट और टॉप हैट पहने हुए थे। उनका चेहरा गुलाबी था। लम्बी सफेद कलमें चेहरे पर दोनों तरफ काफी नीचे तक थीं और सिर गंजा था। वे मेरी तरफ देख कर शिष्टता से मुस्कुराये और अपने रास्ते चले गये।

मैं समझ नहीं पाया कि उनके आने के पीछे ये सब क्या हंगामा था और उनके आते ही क्यों अफरा-तफरी मच जाती थी लेकिन वे कभी भी बहुत अधिक अरसे तक नहीं रहे और कुतरी मूंछों वाला नौजवान जल्दी ही लौट आता और सब कुछ पहले की तरह सामान्य ढंग से चलने लगता।

मैं कुतरी हुई मूंछों वाले नौजवान का मुरीद हो गया। हम दोनों क्लाफाम कॉमन तक लम्बी सैर पर जाते और हमारे साथ मालकिन के दो खूबसूरत ग्रेहाउंड कुत्ते होते। उन दिनों क्लाफाम कॉमन का माहौल बेहद खूबसूरत हुआ करता था। यहां तक कि कैमिस्ट की दुकान भी, जहां हम अक्सर खरीदारी किया करते थे, फूलों के अर्क की गंध, इत्रों और साबुनों और पाउडरों के साथ भव्य लगा करती थी। मेरे अस्थमा के इलाज के लिए उन्होंने मां को बताया था कि रोज़ सवेरे वह मुझे ठंडे पानी से नहलाया करे और शायद इससे फायदा भी हुआ। ये स्नान बहुत ही स्वास्थ्यकर थे और मैं उन्हें पसंद करता हुआ बड़ा हुआ।


यह एक उल्लेखनीय बात है कि हम किस सफाई से अपने आपको सामाजिक मान मर्यादाओं के अनुसार ढाल लेते हैं। आदमी उपलब्ध सृष्टि की भौतिक सुविधाओं के साथ कितनी अच्छी तरह से एकाकार और आदी हो जाता है। एक सप्ताह के भीतर ही मेरे लिए सब कुछ सहज स्वीकार्य हो चला था। बेहतर होने का बोध - सुबह सवेरे की औपचारिकताएं, कुत्तों को एक्सरसाइज कराना, उनके नये चमड़े के पट्टे लिये जाना, फिर खूबसूरत घर में वापिस लौटना, जहां चारों तरफ नौकर-चाकर हों, शानदार तरीके से चांदी के बरतनों में परोसे जाने वाले लंच की प्रतीक्षा करना।

हमारे घर का पिछवाड़ा एक दूसरे घर के पिछवाड़े से सटा हुआ था और उस घर में भी उतने ही नौकर थे जितने हमारे घर पर थे। उस घर में तीन लोग रहा करते थे, एक युवा दम्पत्ति और उनका एक लड़का जो लगभग मेरी ही उम्र का था। उसके पास एक बालघर था जिसमें बहुत खूबसूरत खिलौने भरे हुए थे। मुझे अक्सर उसके साथ खेलने के लिए बुलवा लिया जाता और रात के खाने के लिए रोक लिया जाता। हम दोनों आपस में बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे। उसके पिता सिटी बैंक में किसी बहुत अच्छे पद पर काम करते थे और उसकी मां युवा और बेहद खूबसूरत थी।

एक दिन मैंने अपनी तरफ वाली नौकरानी को लड़के की नौकरानी से गुपचुप बात करते हुए सुन लिया कि उन्हें लड़के के लिए एक गवर्नेस की ज़रूरत है।

"और इसे भी उसी की ज़रूरत है।" हमारी वाली नौकरानी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा। मैं इस बात से बेहद रोमांचित हो गया कि मेरी भी अमीर लड़कों की तरह देखभाल की जायेगी लेकिन मैं इस बात को कभी भी समझ नहीं पाया कि क्यों उसने मेरा दर्जा इतना ऊपर उठा दिया था। हां, तब की बात अलग है कि वह जिन लोगों के लिए काम करती थी या जिनके पड़ोस में वे लोग रहते थे उनका कद ऊपर उठा कर वह खुद ही अपना दर्जा ऊपर उठाना चाहती हो। आखिर, मैं जब भी पड़ोस के उस छोकरे के साथ खाना खाता था, मुझे कमोबेश यही लगता कि मैं बिन बुलाया मेहमान ही तो हूं।

जिस दिन हम उस खूबसूरत घर से अपने 3 पाउनाल के घर लौटने के लिए वापिस चले, वह उदासी भरा दिन था, फिर भी एक तरह की राहत भी थी कि हम अपनी आज़ादी में वापिस लौट रहे हैं। मेहमानों के तौर पर वहां रहते हुए आखिर हमें कुछ तनाव तो होता ही था। और जैसा कि मां कहा करती थी, हम केक की तरह थे। अगर उसे बहुत देर तक रखा जाये तो वह बासी और अखाद्य हो जाता है। और इस तरह से उस संक्षिप्त और शानो-शौकत से भरे वक्त के रेशमी तार हमसे छिन गये और हम एक बार फिर अपने जाने-पहचाने फटेहाल तौर-तरीकों में लौट आये।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 4

1899 बरस गलमुच्छों का बरस था। गलमुच्छों वाले राजा, राजनयिक, सैनिक और नाविक, क्रूगर, सेलिसबरी, रसोइये, कैसर, और क्रिकेट खिलाड़ी। दिखावे और शोशेबाजी का वाहियात बरस। बेइंतहा अमीरी और बेइंतहा गरीबी का बरस। कार्टून और प्रेस, दोनों की शून्यता से भरे राजनैतिक हठधर्मिता से भरे बरस। लेकिन इंगलैंड को कई धक्के और बदमगज़ियां सहनी थीं। अफ्रीकी ट्रांसवाल में कुछ बोअर किसान बिला वज़ह युद्ध छेड़े हुए थे और बड़े-बड़े पत्थरों के और चट्टानों के पीछे से शानदार निशाने लगाते हुए हमारे लाल कोट धारी सैनिकों को मार रहे थे। तब हमारे युद्ध कार्यालय वालों के दिमाग की बत्ती जली और उन्होंने तुरत-फुरत लाल को खाकी में बदल दिया। अगर बोअर उन्हें इस रूप में मारना चाहें तो भले ही मार सकते हैं।

मुझे युद्ध की थोड़ी बहुत ही जानकारी थी और ये मुझे मिली थी देश भक्ति के गीतों, विविध मंचों पर हास्यमय प्रस्तुतियों और सिगरेट की डिब्बियों पर छपी जनरलों की तस्वीरों के माध्यम से। अलबत्ता, हमारे दुश्मन खत्म न होने वाले विलेन थे। कभी सुनने में आता कि बोअर लोगों ने लेडी स्मिथ को घेर लिया है तो इंगलैंड मेफकिंग को मुक्त करा लेने के बाद खुशी के मारे पागल हो गया है। आखिरकार हम जीत ही गये, बेशक ये जीत भी परेशान ही करने वाली थी। अलबत्ता, मैं ये सारी बातें सबसे सुनता था लेकिन मां इस बारे में कुछ नहीं बताती थी। उसने कभी भी लड़ाई का ज़िक्र नहीं किया। उसके पास लड़ने के लिए खुद की लड़ाइयां थी।

सिडनी अब चौदह बरस का हो चला था। उसने स्कूल छोड़ दिया था और उसे स्ट्रैंड डाक घर में तार वाले के रूप में काम मिल गया था। सिडनी की पगार और मां की सिलाई मशीन की वज़ह से होने वाली कमाई से हमारा घर किसी तरह ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन इसमें मां का योगदान मामूली ही था। वह मज़दूरों का खून चूसने वाली किसी दुकान के लिए काम करती थी और उसे वहां पर ब्लाउज सीने के एवज में एक दर्जन ब्लाउज के लिए एक शिलिंग और छ: पेंस मिलते थे। हालांकि उसे डिजाइन पहले से ही कट कर मिला करते थे, फिर भी एक दर्जन ब्लाउज सीने में उसे पूरे बारह घंटे लग जाया करते थे। मां का रिकार्ड था एक हफ्ते में चौदह दर्जन ब्लाउज सी कर देने का। इससे उसे छ: शिलिंग और नौ पेंस की कमाई हुई थी।

अक्सर रात को मैं अपनी दुछत्ती में लेटा जागता रहता और उसे अपनी मशीन पर झुके काम करते देखा करता। उसका सिर तेल की कुप्पी की रौशनी में झुका रहता और उसका चेहरा नरम छाया में नज़र आता। उसके होंठ तनाव के कारण थोड़े से खुले होते और वह अपनी मशीन पर तेज़ी से सिलाई का काम करती रहती। और उसके इस काम की उबा देने वाली भिन-भिन की आवाज की वजह से मुझे झपकी आ जाती। वह जब भी रात-बेरात इस तरह से देर तक काम करती थी तो उसके सामने एक ही मकसद होता - पैसों की अगली किसी न किसी किस्त की मीयाद सिर पर होती। हमेशा किस्तों की अदायगी की समस्या सिर पर खड़ी होती।

अब एक और संकट सिर पर आ खड़ा हुआ था। सिडनी को कपड़ों के नये जोड़े की ज़रूरत थी। वह अपनी टेलिग्राफ वाली यूनिफार्म हफ्ते के सभी दिन, यहां तक कि रविवारों को भी डाटे रहता था और आखिर एक ऐसा दिन भी आया कि उसके यार दोस्त उसे इस यूनिफार्म को लेकर छेड़ने लगे। इस वज़ह से वह दो हफ्ते तक, उस वक्त तक घर पर ही रहा जब तक मां के पास उसके लिए नीले सर्ज का सूट खरीदने लायक पैसे नहीं हो गये। उसने किसी तरह से अट्ठारह शिलिंग का बंदोबस्त कर ही लिया था। इससे हमारी अर्थव्यवस्था में भारी दिवालियेपन की हालत आ गयी थी। इसलिए मां को मजबूरन हर सोमवार को, जब सिडनी टेलिग्राफ आफिस चला जाता था, सूट गिरवी रखना पड़ता था। उसे सूट के लिए सात शिलिंग मिलते थे। और हर शनिवार को सूट छुड़वा लिया जाता ताकि सिडनी उसे हफ्ते की छुट्टियों के दौरान पहन सके। यह साप्ताहिक व्यवस्था पूरे साल तब तक चलती रही जब तक सूट फट कर तार तार नहीं हो गया। तभी ये झटका लगा।

सोमवार की सुबह मां हमेशा की तरह गिरवी वाली दुकान पर गयी तो दुकानदार हिचकिचाया,"माफ करना, मिसेज चैप्लिन, लेकिन अब हम आपको सात शिलिंग उधार नहीं दे सकते।"

मां हैरान रह गयी थी,"लेकिन क्यों?" उसने पूछा था।

"अब इसमें अच्छा-खासा जोखिम है। पैंट तार-तार हो रही है। देखो तो ज़रा," दुकानदार पैंट की सीट पर हाथ रखते हुए बोला,"आप उसके आर-पार देख सकती हैं।"

"लेकिन इन कपड़ों को अगले हफ्ते छुड़वा लिया जायेगा।" मां ने कहा था।

गिरवी वाले ने सिर हिलाते हुए कहा,"बहुत हुआ तो मैं आपको कोट और वेस्टकोट के लिए तीन शिलिंग दे सकता हूं।"

मां कभी भी रोती नहीं थी लेकिन इस तरह के अचानक आये धक्के को सह न पाने के कारण वह आंसूं बहाती घर वापिस आयी। पूरा हफ्ता घर की गाड़ी खींचने के लिए उसे इन सात शिलिंग का ही सहारा था।

इस बीच मेरे खुद के कपड़े, कम से कम कहूं तो चीथड़े हो रहे थे। हम अष्टम लंकाशायर बाल गोपालों की जो पोशाक थी, उसकी वाली मेरी पोशाक अब तार तार हो चली थी। जहां-तहां थिगलियां लगी हुई थीं। कुहनी पर, पैंट पर, जूतों पर और मोजों पर। और अपनी इसी हालत में मैं स्टॉकवैल के अपने खास नन्हें दोस्त से जा टकराया। मुझे नहीं पता था कि वह केनिंगटन रोड पर क्या कर रहा था, लेकिन उसे देख कर मैं बहुत परेशानी में पड़ गया था। हालांकि वह मुझसे बहुत प्यार से मिला लेकिन मैं अपनी खस्ता हालत के कारण उससे आंखें भी नहीं मिला पर पा रहा था। अपनी परेशानी को छुपाने के लिए मैंने अपना आजमाया हुआ तरीका अपनाया और अपनी बेहतरीन, सधी हुई आवाज में उसे बताया कि चूंकि मैं बढ़ईगिरी की अपनी कक्षा से आ रहा हूं इसलिए मैं ये सब पुराने कपड़े पहने हुए हूं।

लेकिन उसे मेरी इस सफाई में ज़रा सी भी दिलचस्पी नहीं थी। वह जैसे आसमान से गिरा लग रहा था और अपनी हैरानी-परेशानी को छुपाने के लिए दायें बायें देखने लगा। उसने तब मां के बारे में पूछा।

मैंने तत्काल जवाब दिया कि मां तो आजकल गांव गयी हुई है और तब मैंने उसी की तरफ ध्यान देना शुरू किया,"और सुनाओ, आजकल वहीं रह रहे हो क्या?"

"हां।" उसने मुझे ऊपर से नीचे तक इस तरह से घूरते हुए देखा मानो मैंने कोई अपराध कर दिया हो।

"अच्छा, तो मैं जरा चलूंगा," मैंने अचानक कह कर अपनी जान छुड़ायी।

वह सहर्ष मुस्कुराया और अच्छा विदा कह कर चला गया। वह एक तरफ चला और मैं उसकी विपरीत दिशा में बढ़ा। मैं गुस्से और शर्म के कारण गिरते पड़ते भागा जा रहा था।

मां हमेशा कहा करती थी,"तुम हमेशा अपनी मर्यादा का त्याग कर सकते हो, लेकिन हो सकता है तुम्हें कुछ भी न मिले।" लेकिन वह खुद ही इस सूत्र वाक्य का पालन नहीं करती थी और अक्सर मेरी शिष्टता के बोध को ठेस लगती थी। एक दिन जब मैं ब्राम्पटन अस्पताल से लौट रहा था तो मैंने देखा कि मां कुछ सड़कछाप लड़कों को धकिया रही थी क्योंकि वे एक पागल औरत को सता रहे थे। उस औरत ने बुरी तरह से गंदे चीथड़े लपेटे हुए थे और खुद भी गंदी थी। उसका सिर मुंडा हुआ था और ये उन दिनों असामान्य बात समझी जाती थी। लड़के उस पर हँस रहे थे और एक दूसरे को उस पर धकिया रहे थे। और उसे छू नहीं रहे थे मानो उसे छू लेने से उन्हें गंदगी लग जायेगी। वह दुखियारी तब तक हिरणी की तरह सड़क के बीचों-बीच खड़ी रही जब तक जा कर मां ने उसे उन दुष्ट लड़कों से छुड़वा नहीं लिया। तब उस औरत के चेहरे पर पहचान के चिह्न उभरे। उस औरत ने कमज़ोर आवाज में मां को उसके स्टेज के नाम से पुकारा,"तुम मुझे नहीं पहचानती क्या? मैं इवा लेस्टॉक हूं।"

मां ने उसे तुंत पहचान लिया। वह मां के साथ की वैराइटी स्टेज की पुरानी दोस्त थी।

मां की इस बात से मैं इतना परेशान हो गया कि आगे बढ़ गया और आगे कोने पर जा कर मां का इंतज़ार करने लगा। बच्चे मेरे पास से गुज़र गये। वे फब्तियां कस रहे थे और खी खी करके हँस रहे थे। मैं गुस्से से लाल पीला हो रहा था। मैं ये देखने के लिए मुड़ा कि मां को क्या हो गया है। हे भगवान, वह औरत मां के साथ लग ली थी और अब दोनों मेरी तरफ चली आ रही थीं।

मां ने कहा,"तुम्हें नन्हें चार्ली की याद है?"

"तुम याद की बात करती हो, जब वो ज़रा सा था तो मैंने कितनी बार उसे अपनी बांहों में उठाया है।" उस औरत से लाड़ से कहा।

ये विचार ही लिजलिजे थे क्यों कि वह औरत इतनी गंदी और घिनौनी थी। और जब हम चले आ रहे थे तो मुझे इस बात से खासी कोफ्त हो रही थी कि लोग मुड़ मुड़ कर हम तीनों को देख रहे थे।

मां उसे वैराइटी के दिनों से 'डैशिंग इवा लैस्टाक' के नाम से जानती थी। वह उन दिनों आकर्षक और सदाबहार हुआ करती थी, मां ने मुझे ऐसा बताया था। उस औरत ने मां को बताया कि वह बीमार थी और अस्पताल में थी और अस्पताल छोड़ने के बाद से वह मेहराबों के तले और सैल्वेशन आर्मी के रैन बसेरों में ही सो रही थी।

सबसे पहले तो मां ने उसे स्नान के लिए सार्वजनिक स्नानघर में भेजा और उसके बाद, मेरे आतंक की सीमा न रही जब मां उसे अपने साथ हमारी दुछत्ती पर ले आयी। उसकी इस हालत के पीछे उसकी बीमारी ही थी या कोई और कारण, मैं नहीं जान पाया। इससे वाहियात बात और क्या हो सकती थी कि वह सिडनी की आराम कुर्सी वाले बिस्तर में सोयी थी। अलबत्ता, मां ने उसे वे कपड़े निकाल कर दिये जो वह दे सकती थी और उसे दो शिलिंग भी उधार दिये। तीन दिन बाद वह चली गयी और वही आखिरी बार थी जब हमने `डैशिंग इवा लैस्टाक ' के बारे में देखा या सुना था।

पिता के मरने से पहले मां ने पाउनाल टैरेस वाला घर छोड़ दिया था और अपनी एक सखी, गिरजा घर की सदस्या और समर्पित ईसाई महिला मिसेज टेलर के घर में एक कमरा किराये पर ले लिया था। वे एक छोटे कद की, लगभग पचास बरस की चौड़े बदन की महिला थीं। उनका जबड़ा चौकोर था और पीला झुर्रियोंदार चेहरा था। उन्हें गिरजा घर में देखते समय मैंने पाया था कि उनके दांत नकली थे। जब वे गातीं तो उनके दांत उनके ऊपरी जबड़े से जीभ पर गिर जाते। बहुत ही मोहक नज़ारा होता।

उनका व्यवहार प्रभावशाली था और उनके पास अकूत ताकत थी। उन्होंने मां को अपनी ईसाइयत की छत्र-छाया में ले लिया था और अपने बड़े से घर की दूसरी मंज़िल पर सामने की तरफ वाला कमरा बहुत ही वाजिब किराये पर दे दिया था। ये घर कब्रिस्तान के पास था।

उनके पति चार्ल्स डिकेंस के मिस्टर पिकविक की हूबहू प्रतिकृति थे और उनके घर की सबसे ऊपर वाली मंज़िल पर गणित में काम आने वाले रूलर बनाने का अपना कारखाना था। छत पर आसमानी रौशनी आती और मुझे वह जगह बिलकुल स्वर्गतुल्य लगती। वहां बहुत अधिक शांति होती। मैं अक्सर मिस्टर टेलर को काम करते हुए देखता जब वे अपने मोटे मोटे कांच वाले चश्मे से और मैग्नीफाइंग ग्लास से गहराई से देख रहे होते और स्टील का कोई स्केल बना रहे होते और इंच के भी पांचवें हिस्से को नाप रहे होते। वे अकेले काम करते और मैं अक्सर उनके छोटे मोटे काम कर दिया करता।

मिसेज टेलर की एक ही इच्छा थी कि वे किसी तरह अपने पति को ईसाई धर्म की ओर मोड़ दें। उनकी धार्मिक नैतिकता के हिसाब से तो उनके पति पापी ही थे। उनकी बेटी जो शक्ल-सूरत में ठीक अपनी मां पर गयी थी, सिर्फ उसका चेहरा कम सूजा हुआ था और हां, वह काफी जवान भी थी, आकर्षक होती अगर उसका व्यवहार ढीठपने का न होता और उसके तौर-तरीके आपत्तिजनक न होते। अपने पिता की तरह वह भी चर्च नहीं जाती थी। लेकिन मिसेज टेलर ने उन दोनों को धर्म की शरण में लाने की उम्मीद कभी भी नहीं छोड़ी। बेटी अपनी मां की आंखों का तारा थी लेकिन मेरी मां की आंखों का नहीं।

एक दोपहरी को, जब मैं ऊपर वाली मंज़िल पर मिस्टर टेलर को काम करते हुए देख रहा था, मैंने नीचे से मां और मिसेज टेलर के बीच कहा-सुनी की आवाज़ सुनी। मिसेज टेलर बाहर थीं। मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे शुरू हुआ लेकिन वे दोनों एक दूसरे पर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थीं। जब मैं नीचे सीढ़ियों पर पहुंचा तो मां सीढ़ियों के जंगले पर झुकी हुई थी,"तुम अपने आपको समझती क्या हो? औरत जात की लेंड़ी?"

"ओह," बेटी चिल्लायी, "एक ईसाई औरत की जुबान से कितने शानदार फूल झर रहे हैं?"

"चिंता मत करो," मां ने तुरंत जवाब दिया,"ये सब बाइबिल में है। ओल्ड टेस्टामेंट का पांचवां खंड, अट्ठाइसवां अध्याय, सैंतीसवां पद, हां, वहां इसके लिए एक दूसरा शब्द दिया हुआ है। बस, तुम्हें लेंड़ी शब्द ही सूट करेगा।"

इसके बाद हम अपने पाउनाल टैरेस में वापिस चले आये।

केनिंगटन रोड पर थ्री स्टैग्स बार इस तरह की जगह नहीं थी जहां मेरे पिता अक्सर जाया करते लेकिन एक बार वहां से गुज़रते हुए मुझे पता नहीं ऐसा क्यों लगा कि अंदर झांक कर देखना चाहिये कि कहीं वे भीतर तो नहीं बैठे हैं। मैंने सैलून का दरवाजा कुछ ही इंच खोला था कि वे वहां बैठे हुए मुझे दिखायी दिये। वे एक कोने में बैठे हुए थे। मैं वापिस लौटने ही वाला था कि उनके चेहरे पर चमक उभरी और उन्होंने मुझे अपने पास आने का इशारा किया। मैं इस तरह के स्वागत से हैरान था, क्योंकि वे कभी भी दिखावे में विश्वास नहीं रखते थे। वे बहुत बीमार लग रहे थे। आंखें उनकी भीतर को धंसी हुई थीं और उनका शरीर सूज कर बहुत बड़ा लग रहा था। उन्होंने अपना एक हाथ नेपोलियन की तरह अपने वेस्ट कोट में टिका रखा था मानो अपनी सांस की तकलीफ पर काबू पाना चाहते हों। उस शाम वे बेहद बेचैन थे। वे मां और सिडनी के बारे में पूछते रहे और मेरे चलने से पहले उन्होंने मुझे अपनी बांहों में भरा और पहली बार मुझे चूमा। यही वह आखिरी बार था जब मैंने उन्हें जीवित देखा।

तीन सप्ताह के बाद उन्हें सेंट थॉमस अस्पताल में ले जाया गया। पिताजी को वहां ले जाने के लिए उन लोगों को पिताजी को शराब पिलानी पड़ी थी। जब पिताजी को पता चला कि वे कहां हैं तो वे बुरी तरह से लड़े झगड़े। लेकिन उनकी हालत मर रहे आदमी जैसी थी। वे मर रहे थे। हालांकि वे अभी भी बहुत जवान थे, मात्र सैंतीस बरस के, वे जलोदर रोग के कारण मर रहे थे। उन लोगों ने पिताजी के घुटने से चार गैलन पानी निकाला था।

मां उन्हें देखने के लिए कई बार गयी और हर मुलाकात के बाद वह और ज्यादा उदास हो जाती। वह बताती कि पिता फिर उसके पास वापिस आ कर अफ्रीका में नये सिरे से ज़िंदगी शुरू करना चाहते हैं। मैं इस तरह की संभावना से ही खिल उठता। मां सिर हिलाती, क्योंकि वह बेहतर जानती थी,"वे ये बात सिर्फ इसलिए कह रहे थे क्योंकि वे अच्छे दिखना चाहते थे।" मां ने बताया था।

एक दिन जब वह अस्पताल से वापिस आयी तो रेवरेंड जॉन मैकनील एवेंजलिस्ट की बात सुन कर बहुत खफा थी। जब मां पिताजी से मिलने गयी थी तो तो वे पिता से कह रहे थे,"देखो, मिस्टर चार्ली, जब भी मैं तुम्हारी तरफ देखता हूं तो मुझे एक पुरानी कहावत ही याद आती है कि जो जैसा बोएगा, वैसा ही काटेगा।"

"मरते हुए आदमी को दिलासा देने के लिए आप कितनी अच्छी वाणी बोल रहे हैं," मां ने पलट कर जवाब दिया था। कुछ ही दिन बाद पिताजी की मृत्यु हो गयी थी।

अस्पताल वाले जानना चाहते थे कि उनका अंतिम संस्कार कौन करेगा। मां के पास तो एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी इसलिए उसने वैराइटी आर्टिस्ट सहायता निधि का नाम सुझाया। ये थियेटर वालों की एक चैरिटी संस्था थी। इस सुझाव से परिवार के चैप्लिन कुनबे वालों में अच्छा खासा हंगामा मच गया। चैप्लिन परिवार का आदमी खैरात के पैसों से दफनाया जाये, ये बात वे कैसे गवारा कर सकते थे। उस समय पिताजी के एक छोटे भाई अल्बर्ट लंदन में ही थे। वे अफ्रीका से आये हुए थे। उन्होंसने पिताजी को दफनाने का खर्चा उठाने का जिम्मा उठाया।

ताबूत पर सफेद साटन का कफन लपेटा गया था और पिताजी के चेहरे के चारों उसके तरफ डेज़ी के नन्हें नन्हें सफेद फूलों से सजाया गया था। मां का कहना था कि वे इतने सादगी-भरे और मन को छू लेने वाले लग रह थे। मां ने पूछा था कि ये फूल किसने रखवाये हैं। वहां पर मौजूद कर्मचारी ने बताया था कि सुबह सुबह एक औरत एक छोटे-से बच्चे के साथ आयी थी और ये फूल रख गयी थी। वह लुइस थी।

पहली गाड़ी में मां, अंकल अल्बर्ट और मैं थे। टूटिंग तक की यात्रा तनाव पूर्ण थी क्योंकि मां इससे पहले कभी भी अंकल अल्बर्ट से नहीं मिली थी। वह कुछ कुछ ठाठ-बाठ वाले आदमी थे और अभिजात्य संस्कारों वाले शख्स थे। हालांकि वे बहुत विनम्र थे, उनका व्यवहार बर्फ की तरह ठंडा था। उनकी ख्याति एक अमीर आदमी के रूप में थी। ट्रांसवाल में घोड़ों के उनके रैंच थे और बोअर युद्ध के दौरान उन्होंने ब्रिटिश सरकार को घोड़े उपलब्ध कराये थे।

सर्विस के दौरान बरसात होने लगी थी। कब्र खोदने वालों ने फटाफट ताबूत पर मिट्टी के लोंदे फेंके। इससे बहुत ही क्रूर किस्म की आवाज हो रही थी। ये भयावह नज़ारा था और कुल मिला कर बेहद डरावना था इसलिए मैं रोने लगा। इसके बाद रिश्तेदारों ने अपने साथ लायी मालाएं और फूल उस पर डाले। मां के पास डालने के लिए कुछ भी नहीं था, इसलिए उसने मेरा बेशकीमती काले बार्डर वाला रुमाल लिया और मेरे कान में फुसफुसायी,"मेरे लाल, ये हम दोनों की तरफ से।" इसके बाद चैप्लिन परिवार रास्ते में एक पब में खाना खाने के लिए रुक गया और उन्होंने भीतर जाने से पहले हमसे बहुत विनम्रता से पूछा कि हमें कहां छोड़ दिया जाये। और हमें घर छोड़ दिया गया था।

जब हम घर पहुंचे तो घर में खाने को एक दाना भी नहीं था। बीफ के थोड़े शोरबे की एक प्लेट रखी थी। मां के पास एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी। उसके पास सिर्फ दो पेंस थे जो उसने सिडनी को खाने का इंतज़ाम करने के लिए दे दिये थे। पिताजी की बीमारी के बाद उसने बहुत कम काम हाथ में लिया था इसलिए अब हफ्ता खत्म होने को था और टेलिग्राफ बाय के रूप में सिडनी की सात शिलिंग हफ्ते की पगार पहले ही खत्म हो चुकी थी। अंतिम संस्कार के बाद हमें भूख लगी हुई थी। सौभाग्य से रद्दी वाला बाहर से गुजर कर जा रहा था। मां के पास तेल का एक पुराना स्टोव था जिसे मां ने बहुत संकोच के साथ अधपेनी में बेचा और उस अधपेनी की ब्रेड लायी जिसे हमने उस शोरबे के साथ खाया।

मां चूंकि पिता की कानूनन विधवा थी इसलिए उसे अगले दिन बताया गया कि वह अस्पताल जा कर उनका सामान वगैरह ले ले। इस सामान में एक काला सूट था जिसमें खून के दाग लगे हुए थे। एक जांघिया था, एक कमीज, एक काली टाई, एक पुराना ड्रेसिंग गाउन, घर पर पहनने की कुछ पुरानी चप्पलें, जिनमें पंजों की तरफ कुछ ठुंसा हुआ था। जब मां ने वह बाहर निकाला तो स्लीपरों में सोने का एक सिक्का बाहर लुढ़क आया। ये भगवान की भेजी हुई सौगात थी।

हफ्तों तक हम अपने बाजू पर काली क्रेप की पट्टी लगाये रहे। शोक का ये संकेत भी मेरे लिए फायदेमंद रहा क्योंकि शनिवार की दोपहर के वक्त जब मैं फूल बेचने के काम धंधे पर निकलता तो मुझे इससे फायदा ही होता। मैंने मां को मना लिया था कि वह मुझे एक शिलिंग उधार दे दे। मैं सीधे ही फूल बाजार गया और नार्सीसस के फूलों के दो बंडल खरीदे और स्कूल से आने के बाद मैं उनके नन्हें-नन्हें बंडल बनाने में जुटा रहा। अगर सब बिक जाते तो मैं सौ प्रतिशत लाभ कमा सकता था। मैं सैलूनों में जाता जहां मैं अपने संभावित ग्राहक तलाशता कहता,"नार्सीसिस मैडम, मिस .. .. नार्सीसिस के फूल मिस।" महिलाएं हमेशा पूछतीं,"कौन था बेटे?" मैं अपनी आवाज फुसफुसाहट के स्तर तक ले आता और बताता,"मेरे पिता।" और वे मुझे टिप देतीं। मां ये देख कर हैरान रह गयी कि मैं सिर्फ दोपहर में काम करके पांच शिलिंग कमा लाया था। एक दिन उसने मुझे झिड़क दिया जब उसने मुझे एक पब से बाहर आते देखा। उस दिन से उसने मेरे फूल बेचने पर पाबंदी लगा दी। उसका ये मानना था कि बार रूम में जा कर इस तरह से फूल बेचना उसकी ईसाईयत को कहीं ठेस लगाता था,"दारू पीने से तुम्हारे पिता मर गये और इस तरह की कमाई से हम पर दुर्भाग्य का ही साया पड़ेगा," उसने कहा। अलबत्ता, उसने सारी कमाई रख ली थी। उसने फिर कभी मुझे फूल बेचने नहीं दिये।

मुझमें धंधा करने की जबरदस्त समझ थी। मैं हमेशा कारोबार करने की नयी-नयी योजनाएं बनाने में उलझा रहता। मैं खाली दुकानों की तरफ देखता, सोचता, इनमें पैसा पीटने का कौन सा धंधा किया जा सकता है। ये सोचना मछली बेचने, चिप्स बेचने से ले कर पंसारी की दुकान खोलने तक होता। हमेशा जो भी योजना बनती, उसमे खाना ज़रूर होता। मुझे बस पूंजी की ही ज़रूरत होती लेकिन पूंजी ही की समस्या थी कि कहां से आये। आखिर मैंने मां से कहा कि वह मेरा स्कूल छुड़वा दे और काम तलाशने दे।

मैंने कई धंधे किये। पहले मैं एक बिसाती की दुकान में ऊपर के काम करने के लिए रखा गया। काम करने के बाद मैं तहखाने में खुशी खुशी बैठा रहता, वहां साबुन, स्टार्च, मोमबत्तियों, मिठाइयों तथा बिस्किटों से घिरा रहता। मैं सारी की सारी मिठाइयां चख कर तब तक देखता रहा जब तक खुद बीमार नहीं पड़ गया।

इसके बाद मैंने थ्रॉगमोर्टन एवेन्यू में हूल एंड किन्स्ले टेलर, बीमा डॉक्टरों के यहां काम किया। ये काम मेरे हिस्से में सिडनी की वज़ह से आया था। उसी ने इस काम के लिए मेरी सिफारिश की थी। मुझे हर हफ्ते के बारह शिलिंग मिलते थे और मुझे रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करना होता था। इसमें डॉक्टरों के चले जाने के बाद दफ्तरों को साफ करने की ड्यूटी भी शामिल थी। रिसेप्शनिस्ट के रूप में मैं बहुत सफल था क्योंकि मैं वहां पर इंतज़ार कर रहे मरीजों का खूब मनोरंजन करता लेकिन जब दफ्तरों की सफाई का नम्बर आता तो मेरा दिल डूबने लगता। इस काम में सिडनी बेहतर था। मैं पेशाब के पॉट साफ करने में बुरा नहीं मानता था, लेकिन दस-दस फुटी खिड़कियों को साफ करना मेरे लिए आकाशगंगा निकालने जैसा था। इसका नतीजा ये हुआ कि दफ्तर गंदे और धूल भरे होते चले गये और एक दिन आया जब मुझे विनम्रतापूर्वक बता दिया गया कि मैं इस काम के लिए बहुत ही छोटा हूं।

जिस वक्त मैंने ये खबर सुनी, मैं अपने आपको संभाल नहीं पाया और रो पड़ा। डॉक्टर किन्स्ले टेलर, जिन्होंने एक बहुत ही अमीर महिला से शादी की थी और उन्हें शादी में लेसेन्स्टर गेट पर बहुत बड़ा मकान मिला हुआ था, ने मुझ पर तरस खाया और मुझसे कहा कि वे मुझे अपने घर में ऊपर के काम के लिए पेजबॉय के रूप में रखवा देंगे। तुरंत ही मेरा दिल बाग बाग हो गया। किसी निजी घर में पेजबॉय, और घर भी कैसा, बहुत खूबसूरत। ये अच्छा काम था। इसका कारण ये था कि मैं घर भर की नौकरानियों का दुलारा बन गया था। वे मुझसे बच्चे की तरह व्यवहार करतीं और रात को बिस्तर पर जाने से पहले गुड नाइट किस देतीं। अगर मेरी किस्मत में लिखा होता तो मैं बटलर बन गया होता। मैडम ने मुझसे कहा कि मैं तहखाने में जा कर उस जगह को साफ करूं जहां पर पैकिंग वाली पेटियों का ढेर लगा हुआ था और कचरे का अम्बार लगा हुआ था जिसे साफ करना, अलग करना और फिर से लगाना था। मेरा ध्यान इस काम से उस वक्त बंट गया जब मेरे हाथ में लगभग आठ फुट लम्बा लोहे का एक पाइप आ गया और मैं उसे बिगुल की तरह बजाने लगा। जिस वक्त मैं उसके मजे ले रहा था, मैडम अवतरित हुईं और मुझे तीन दिन का नोटिस दे दिया गया।

मुझे स्टेशनरी की एक दुकान डब्ल्यू एच स्मिथ एंडरसन में काम करने में बहुत मज़ा आया लेकिन उन्हें जैसे ही पता चला कि मेरी उम्र कम है तो उन्होंने बाहर का रास्ता दिखा दिया। फिर मैं एक दिन के लिए ग्लास ब्लोअर बना। मैंने स्कूल में ग्लास ब्लोइंग के बारे में पढ़ा था और मुझे लगा, ये बहुत ही रोमांचकारी काम होगा। लेकिन गर्मी मेरे सिर पर चढ़ गयी और मुझे बेहोशी की हालत में बाहर लाया गया और रेत की ढेरी पर लिटा दिया गया। यहीं पर इसकी इतिश्री हो गयी। मैं इस इकलौते दिन की पगार लेने भी नहीं गया। इसके बाद मैंने स्ट्रेकर, पिंटर और स्टेशनर्स के यहां काम किया। मैंने वहां पर झूठ बोला कि मैं व्हार्फेडेल पिंटिंग मशीन चला सकता हूं। ये बहुत ही बड़ी मशीन थी। लगभग बीस फुट लम्बी। मैंने इस मशीन को गली से तहखाने में चलते हुए देखा था और मुझे लगा कि इसे चलाना तो बेहद आसान होगा। एक कार्ड पर लिखा था व्हार्फेडेल प्रिंटिंग मशीन के लिए कागज़ चढ़ाने वाला लड़का चाहिये। जब फोरमैन मुझे मशीन के पास लाया तो ये मुझे दैत्याकार सरीखी लगी। इसे चलाने के लिए मुझे पांच फुट ऊंचे एक प्लेटफार्म पर खड़ा होना पड़ा। मुझे लगा मानो मैं एफिल टावर के ऊपर खड़ा हूं।

"मारो इसे," फोरमैन ने कहा।

"क्या मारूं?"

मुझे हिचकिचाते देख, वह हँसा,"तो इसका मतलब तुमने व्हार्फेडेल प्रिंटिंग मशीन पर कभी काम नहीं किया है?"

"मुझे बस, एक मौका दीजिये, मैं एकदम तेजी से इसे चलाना सीख जाऊंगा।"

"इसे मारो" का मतलब था उस दैत्य को शुरू करने के लिए लीवर को खींचो। मशीन घूमने, चलने और घुरघुराने लगी। मुझे लगा ये मशीन तो मुझे ही निगल जायेगी। कागज़ बहुत ही बड़े बड़े थे। इतने बड़े कि आसानी से मुझे एक कागज़ में लपेटा जा सकता था। एक बड़े से गत्ते से मैं कागजों को पंखा करता, उन्हें कोनों से उठाता, और ठीक वक्त पर मशीन के जबड़ों में धर देता ताकि वह दैत्य उन्हें निगल जाये, उस पर छापे और दूसरे सिरे पर वापिस उगल दे। पहले दिन तो मैं उसे इतना घबराया हुआ था कि कहीं ये भूखा दैत्य मुझे ही न चबा जाये। इसके बावजूद मुझे बारह शिलिंग हफ्ते की पगार पर नौकरी पर रख लिया गया।

दिन निकलने से पहले, उन ठंडी सुबहों में काम पर निकलने का अपना ही रोमांच था। गलियां शांत और सुनसान होतीं। इक्का दुक्का छायाएं लोखार्ट के टीरूम की मध्यम रौशनी में नाश्ते के लिए आते जाते दिखायी देतीं। ऐसा लगता मानो आप अपने साथ के लोगों के साथ हैं, उस धुंधलके में गरम चाय पीते हुए और आगे मुंह बाये खड़े दिन भर के काम के बावजूद क्षणिक राहत पाते हुए। और फिर प्रिंटिंग का काम इतना उबाऊ भी नहीं था। बस, हफ्ते के आखिर में काम बहुत करना पड़ता, गिलेटिन के उन लम्बे रोलरों पर से स्याही हटाने का काम करना पड़ता। इन रोलरों का वजन सौ पौंड से भी ज्यादा होता। बाकी कुछ मिला कर काम सहन करने योग्य था। अलबत्ता, वहां पर तीन हफ्ते तक काम करने के बाद मुझे इन्फ्लुंजा ने धर दबोख और मां ने ज़िद की कि मैं वापिस स्कूल की राह पकडूं।

सिडनी अब सोलह बरस का हो चला था। एक दिन वह खुश खुश घर आया क्योंकि उसे अफ्रीका जाने वाले एक जहाज में डोनोवन लाइन पैसेंजर बोट पर बिगुल बजाने वाले का काम मिल गया था। उसका काम था खाने वगैरह के लिए बुलाने के लिए बिगुल बजाना। उसने बिगुल बजाना एक्समाउथ ट्रेनिंग कैम्प में सीख लिया था। अब वह सीखना काम आ रहा था। उसे हर महीने दो पाउंड और दो शिलिंग मिलते और सेकेंड क्लास में तीन मेजों पर सर्व करने के लिए टिप अलग से मिलती। उसे जहाज पर जाने से पहले पैंतीस शिलिंग अग्रिम रूप से मिलने वाले थे। तय था वह ये रकम मां को दे कर जाने वाला था। इस सुखद भविष्य के सपने संजोये हम चेस्टर स्ट्रीट में एक नाई की दुकान के ऊपर दो कमरे वाले मकान में आ गये।

अपनी ट्रिप से जब सिडनी पहली बार लौटा तो ये मौका उत्सव की तरह था। क्योंकि उसके पास टिप से कमाये तीन पाउंड से भी ज्यादा की रकम थी और ये चांदी के थे। मुझे याद है वह अपनी जेबों से बिस्तर पर से अपनी दौलत लुढ़काता जा रहा था। ये पैसे इतने ज्यादा लगे मुझे जितने मैंने अपनी ज़िंदगी में नहीं देखे थे और मैं उन पर से अपने हाथ हटा ही नहीं पा रहा था। मैंने उनकी ढेरियां लगायीं, चट्टे लगाये और उनके साथ तब तक खेलता रहा जब मां और सिडनी ने आखिर कह ही दिया कि मैं नदीदा हूं।

क्या तो शान थी। क्या ही मस्ती थी। ये गर्मी के दिन थे और ये हमारे केक और आइसक्रीम खाने का काल था। इनके अलावा और भी कई विलासिताएं राह देख रही थीं। हमने नाश्ते में ब्लोटर, किप्पर, हैड्डाक मछली खायीं और चाय केक का आनंद लिया, और इतवार के दिन बंद और कटलेट खाये।

सिडनी को सर्दी ने जकड़ लिया और वह कई दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहा। मां और मैं उसकी तीमारदारी करते रहे। तभी ये हुआ कि हमने खूब छक कर आइसक्रीम खायी। मैं एक बड़े से गिलास में एक पेनी की ले कर आया। मैं ये गिलास इताल्वी आइसक्रीम की दुकान में ले गया था और वह गिलास और एक पेनी देख कर अच्छा खासा चिढ़ा था। दुकानदार ने सुझाव दिया कि अगली बार मैं आऊं तो अपने साथ एक बाथ टब ले कर आऊं। गर्मियों में हमारा प्रिय ड्रिंक होता था शरबत और दूध। खूब झागदार दूध में बुलबुले छोड़ता शरबत, बस पीते ही तबीयत खुश हो जाती।

सिडनी ने हमें अपनी समुद्री यात्रा के बहुत से रोचक किस्से सुनाये। अभी उसने अपनी यात्रा शुरू भी नहीं की थी एक बार उसकी नौकरी पर ही बन आयी। उसने लंच के लिए पहला बिगुल बजाया। बिगुल बजाने की उसकी प्रेक्टिस नहीं रही थी और सारे फौजी खूब हो हल्ला करने लगे। मुख्य स्टीवर्ड भागता हुआ आया,"ऐय तुम क्या कर रहे हो?"

"सॉरी सर, मेरे होंठ अभी बिगुल पर सेट नहीं हुए हैं।"

"ठीक है, ठीक है, जल्दी से अपने होंठ सेट कर लो नहीं तो जहाज चलने से पहले ही तुम्हें तट पर ही उतार देना पड़ेगा।"

खाने के दौरान किचन के बाहर सब वेटरों की लम्बी लम्बी कतारें लग जातीं जो अपने अपने आर्डर का सामान ले रहे होते। जब तक सिडनी का नम्बर आता, वह अपना आर्डर ही भूल चुका होता और उसे एक बार फिर लाइन के आखिर में खड़ा होना पड़ता। सिडनी ने बताया कि पहले कुछ दिन तो ये हालत रही कि बाकी सब तो अपनी स्वीट डिश खा रहे होते और उसकी मेज पर अभी भी सूप ही सर्व हो रहा होता।

सिडनी तब तक घर पर रहा जब तक सारे पैसे खत्म नहीं हो गये। अलबत्ता, उसे दूसरी ट्रिप के लिए भी बुक कर लिया गया। उसे कम्पनी से एक बार फिर पैंतीस शिलिंग अग्रिम रूप से मिले जो उसने मां को दे दिये। लेकिन ये रकम ज्यादा दिन नहीं चली। तीन ही हफ्ते बाद हम बर्तनों की तली में झांक रहे थे। सिडनी के वापिस आने में अभी भी तीन हफ्ते बाकी थे। मां हालांकि अभी भी अपनी सिलाई मशीन पर काम कर ही रही थी, जो कुछ वह कमा रही थी, हम दोनों के लिए काफी नहीं था। नतीजा ये हुआ कि हम एक बार फिर पाउनाल हॉल लौट आये।

लेकिन मैं कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लिया करता था। मां के पास पुराने कपड़ों का एक ढेर लगा हुआ था। एक दिन शनिवार की सुबह थी। मैंने मां को सुझाव दिया कि क्यों न मैं कोशिश करूं और बाज़ार में जा कर इन्हें बेच आऊं। मां इस बात को ले कर थोड़ी परेशान हो गयी। उसका कहना था कि ये सब किसी काम के नहीं हैं। इसके बावजूद मैंने एक पुरानी चादर में कपड़ों की पोटली बांधी और नेविंगटन बट्ट की ओर चल पड़ा। वहां जा कर मैंने अपना माल असबाब फुटपाथ पर फैलाया और गटर पर खड़े हो कर आवाजें लगानी शुरू कर दीं। मेरी दुकानदारी बहुत ही दयनीय हालत में थी."देखिये साहेबान, मेहरबान, कदरदान," मैंने एक पुरानी कमीज हाथ में उठायी और बोलना शुरू किया,"बोलिये साहेबान क्या देते हैं इसका? एक शिलिंग, छ: पेंस, चार पेंस दो पेंस।" मैं उसे एक पेनी में भी न बेच पाया। लोग-बाग आते, खड़े होते, हैरानी से देखते, और हँसते हुए चले जाते। मैं परेशान होना शुरू हो गया। सामने की जवाहरात की दुकान की खिड़की से वहां के मालिकों ने मुझे देखना शुरू कर दिया। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार, गेलिस की एक जोड़ी जो इतनी खराब नहीं लग रही थी, मैं छ: पेंस में बेचने में सफल हो ही गया। लेकिन मुझे वहां पर खड़े हुए जितनी देर होती जा रही थी, मैं उतना ही बेचैन होता जा रहा था। थोड़ी देर बाद उस जवाहरात की दुकान में से एक महाशय आये और भारी रूसी लहजे में मुझसे पूछने लगे कि मैं इस धंधे में कब से हूं। उसके विनम्र चेहरे के बावजूद मैंने ताड़ लिया कि उसके बात करने के लहजे में मज़ाक उड़ाने का सा भाव था। मैंने उसे बताया कि बस अभी शुरू ही किया है। वह धीरे धीरे अपनी दुकान पर लौट गया और, खींसे निपोरते अपने दो भागीदारों के पास लौट गया और फिर से वे दुकान की खिड़की में से मुझे देखने लगे। अब बहुत हो गया था। मैंने अपनी दुकानदारी समेटी और घर वापिस लौट आया। मैंने मां को बताया कि मैंने छ: पेंस में गेटर्स बेचे हैं तो वह हिकारत से बोली, अच्छे भले थे वो तो, उसे ज्यादा पैसों में बेचा जा सकता था।

ये एक ऐसा वक्त था जब हम किराया देने के बारे में ज्यादा माथा पच्ची नहीं करते थे। हमने आसान तरीका ये अपनाया कि जब किराया वसूल करने वाला आता तो सारा दिन गायब ही रहते। हमारे सामान की कीमत ही क्या थी? दो कौड़ी। उसे कहीं और ढो कर ले जाने में ज्यादा पैसे लगते। अलबत्ता, हमारी मंजिल एक बार फिर 3 पाउनाल टेरेस थी।

उसी समय मुझे एक ऐसे बूढ़े आदमी और उसके बेटे के बारे में पता चला जो केनिंगटन रोड के पिछवाड़े की तरफ एक घुड़साल में काम करते थे। वे खिलौने बनाने वाले घुमंतु लोग थे और ग्लासगो से आये थे। वे लोग खिलौने बनाते थे और शहर दर शहर घूमते हुए उन्हें बेचते थे। वे बंधन मुक्त थे और उन पर कोई जिम्मेवारी नहीं थी, इसलिए मैं उनसे ईर्ष्या करता था। उनके धंधे के लिए बहुत ही कम पूंजी की ज़रूरत थी। एक शिलिंग की मामूली रकम लगा कर वे धंधा शुरू कर सकते थे। वे जूतों के डिब्बे इकट्ठे करते। कोई भी दुकानदार खुशी खुशी ये डिब्बे उन्हें दे देता। फिर वे अंगूरों की पैकिंग में इस्तेमाल होने वाला बुरादा जुटाते। ये भी उन्हें सेंत मेंत में मिल जाता। उन्हें शुरुआत में जिन मदों के लिए पूंजी लगानी पड़ती, वे थीं, एक पेनी की गोंद, एक पेनी के क्रिस्मस वाली रंगीन पन्नियां, और दो पेनी के रंगीन झालर के गोले। एक शिलिंग की पूंजी से वे सात दर्जन नावें बना लेते और एक एक नाव एक एक पेनी की बिकती। नाव के दोनों तरफ के हिस्से जूतों के डिब्बों में से काट लिये जाते, और उन्हें गत्ते के तले के साथ सी दिया जाता। साफ सतह पर गोंद फेर दिया जाता और फिर उस पर कॉर्क का बुरादा छिड़क दिया जाता। मस्तूलों को रंगीन झालरों से सजा दिया जाता और सबसे ऊपर वसले मस्तूल, नाव के आगे और पीछे वाले हिस्से पर और पाल फैलाने के डंडों के आखिरी सिरे पर लाल, पीले और नीले झंडे लगा दिये जाते। सौ या उससे भी अधिक इस तरह की रंगीन पन्नियों वाली नावें ग्राहकों को आकर्षित करतीं और इन्हें आसानी से बेचा जा सकता था।

हमारे परिचय का नतीजा ये हुआ कि मैं नावें बनाने में उनकी मदद करने लगा और जल्दी ही मैं उनके हुनर से वाकिफ हो गया। जब वे लोग हमारा पड़ोस छोड़ कर गये तो मैं खुद उनके धंधे में उतर गया। छ: पेंस की मामूली सी पूंजी और कार्ड बोर्ड काटने से हाथों में हुए छालों के साथ मैं एक ही हफ्ते में तीन दर्जन नावें बनाने में कामयाब हो गया था।

लेकिन हमारी परछत्ती पर इतनी जगह नहीं थी कि मां के काम और मेरे धंधे के लिए जगह हो पाती। इसके अलावा मां की शिकायत थी कि उसे उबलते हुए गोंद की बू से उबकाई आती है और ये भी था कि गोंद का डिब्बा हर समय उसके सीये जाने वाले कपड़ों के लिए मुसीबत बन रहा था। संयोग से, सारे घर भर में ये कपड़े बिखरे ही रहते। अब चूंकि मेरा योगदान मां के योगदान की तुलना में मामूली ही था, मेरी कला को तिलांजलि दे दी गयी।

इन दिनों हम अपने नाना से बहुत कम मिले थे। पिछले एक बरस से उनकी सेहत ठीक नहीं चल रही थी। उनके हाथ गठिया की वजह से सूज गये थे और इस कारण वे जूते गांठने का अपना धंधा नहीं कर पाते थे। पहले के वक्त में जब भी उनसे बन पड़ता, वे एकाध सिक्का दे कर मां की मदद कर दिया करते थे। कभी कभी वे हमारे लिए खाना भी बना दिया करते। वे ओट के आटे और प्याज को दूध में उबाल कर और उस पर नमक और काली मिर्च बुरक कर शानदार दलिये जैसा व्यंजन बनाया करते थे। सर्दी की रातों में ठंड का मुकाबला करने के लिए ये हमारा सबसे बढ़िया खाना होता।

जब मैं बच्चा था तो मैं नाना को हमेशा खरदिमाग और खड़ूस बूढ़ा समझा करता था जो मुझे हर वक्त किसी न किसी बात के लिए टोकते ही रहते थे। कभी व्याकरण के लिए तो कभी तमीज के लिए। इन छोटी-मोटी मुठभेड़ों के कारण ही मैंने उन्हें नापसंद करना शुरू कर दिया था। अब वे अस्पताल में अपने जोड़ों के दर्द की वजह से पड़े हुए थे और मां उन्हें रोज़ देखने के लिए अस्पताल जाती। अस्पताल की ये विजिटें बहुत फायदे की होतीं क्योंकि वह अक्सर थैला भर ताज़े अंडे ले कर वापिस आती। ये हमारी मुफ़लिसी के दिनों में विलासिता की तरह होते। जब वह खुद न जा पाती तो मुझे भेज देती। मुझे ये देख कर हमेशा बहुत हैरानी होती जब मैं नाना को बहुत ज्यादा सहमत और मेरे आने से खुश पाता। वे नर्सों में खासे लोकप्रिय थे। बाद की ज़िंदगी में उन्होंने मुझे बताया था कि वे नर्सों के साथ चुहलबाजी करते और उन्हें बताते कि जोड़ों के दर्द के बावज़ूद उनकी सारी मशीनरी काम से बेकार नहीं हुई है। इस तरह की अश्लील चुहलबाजी नर्सों को खुश कर देती। जब उनके जोड़ों का दर्द काबू में रहता तो वे जा कर रसोई में काम करते, और इस तरह से हमारे पास अंडे आते। विजिट वाले दिनों में वे आम तौर पर अपने बिस्तर पर ही होते और अपने बिस्तर के पास वाले केबिनेट से चुपके से अंडों का एक बड़ा-सा थैला थमा देते, जिसे मैं चलने से पहले नाविकों वाली अपनी बनियान में छुपा लेता।

हम कई-कई हफ्ते अंडों पर ही गुज़ार देते। उनका कुछ न कुछ बना ही लेते। उबले हुए, तले हुए या उनका कस्टर्ड ही बना लेते। बेशक नाना इस बात का विश्वास दिलाते कि सारी नर्सें उनकी दोस्त हैं और कमोबेश जानती हैं कि क्या कुछ चल रहा है, अस्पताल के वार्ड से उन अंडों के साथ बाहर निकलते समय हमेशा मुझे खटका लगा रहता। कभी लगता कि मैं मोम से चिकने फर्श पर फिसल कर गिर पड़ूंगा या मेरा फूला हुआ पेट पकड़ में आ जायेगा। इस बात की हैरानी होती थी कि जब भी मैं अस्पताल से बाहर आने को होता, सारी की सारी नर्सें वहां से गायब हो जातीं। हमारे लिये ये बहुत ही दु:खद दिन था जब नाना को अपने जोड़ों के दर्द से आराम आ गया और उन्हें अस्पताल छोड़ना पड़ा।

अब छ: सप्ताह बीतने को आये थे और सिडनी अब तक नहीं लौटा था। शुरू-शुरू में तो मां इससे इतनी चिंता में नहीं पड़ी लेकिन एक और हफ्ते की देरी के बाद मां ने डोनोवन एंड कैसल लाइन नाम के जहाज के दफ्तर को लिखा तो वहां से ये खबर मिली कि उसे जोड़ों के दर्द के इलाज के लिए केप टाउन के तट पर जहाज से उतार दिया गया है। इस खबर से मां चिंता में पड़ गयी और इससे उसकी सेहत पर बुरा असर पड़ा। अभी भी वह सिलाई मशीन पर काम कर रही थी और मैं भी इस मामले में किस्मत वाला था कि मुझे स्कूल के बाद एक परिवार में नृत्य के लैसन देने का काम मिल गया था और मुझे हफ्ते के पांच शिलिंग मिल जाया करते थे।

लगभग इन्हीं दिनों मैक्कार्थी परिवार केनिंगटन रोड पर रहने आया। मिसेज मैक्कार्थी आयरिश कामेडियन रही थीं और मां की सहेली थीं। उनकी शादी एक सर्टिफाइड एकांउटेंट वाल्टर मैक्कार्थी से हुई थी। लेकिन जब मां को मज़बूरन स्टेज छोड़ देना पड़ा तो हम लोगों की मैक्कार्थी परिवार से मिलने-जुलने की संभावना ही नहीं रही और अब वे सात बरस के बाद एक बार फिर मिल रहे थे। अब वे लोग केनिंगटन रोड के खास इलाके में वाल्कॉट मैन्सन में रहने के लिए आ गये थे।

उनका बेटा वैली मैक्कार्थी और मैं लगभग एक ही उम्र के थे। जब हम छोटे थे तो बड़े लोगों की नकल किया करते थे मानो हम रंगारंग कार्यक्रम के कलाकार हों। हम काल्पनिक सिगार पीते, अपनी कल्पना की घोड़ी वाली बग्घी में सैर करते, और अपने माता-पिता का खूब मनोरंजन किया करते थे।

अब चूंकि मैक्कार्थी परिवार वाल्कॉट मैन्सन में रहने के लिए आ गया था, मां उनसे मिलने शायद ही कभी गयी हो लेकिन मैंने और वैली ने पक्की दोस्ती कर ली थी। स्कूल से वापिस लौटते ही मैं भाग कर मां के पास यह पूछने के लिए जाता कि मेरे लायक कोई काम तो नहीं है, फिर मैक्कार्थी परिवार के यहां भागा-भागा पहुंच जाता। हम वाल्कॉट मैन्सन के पिछवाड़े थियेटर खेलते। मैं चूंकि निर्देशक बनता इसलिए मैं हमेशा खलनायक वाले पात्र अपने लिए रखता। मैं अपने आप ही ये जानता था कि खलनायक का पात्र नायक की तुलना में ज्यादा रंगीन होता है। हम वैली के खाने के समय तक खेलते रहते। आम तौर पर मुझे भी बुलवा लिया जाता। खाने के समय के आस-पास मैंने अपने आप को उपलब्ध कराने के अचूक खुशामदी तरीके खोज निकाले थे। अलबत्ता, ऐसे मौके भी आते जब मेरी सारी तिकड़में काम न आतीं और मैं संकोच के साथ घर लौट आता। मां मुझे देख कर हमेशा खुश होती और मेरे खाने के लिए कुछ न कुछ बना देती। कभी शोरबे में तली हुई ब्रेड या नाना के यहां से जुटाये गये अंडों का कोई पकवान और एक कप चाय। वह मुझे कुछ न कुछ पढ़ कर सुनाती या हम दोनों एक साथ खिड़की पर बैठ जाते और वह नीचे सड़क पर जा रहे राहगीरों के बारे में मज़ेदार बातें करके मेरा दिल बहलाती। उनके बारे में वह किस्से गढ़ कर सुनाती। यदि कोई आदमी खुशमिजाज, फिरकी जैसी चाल के साथ जा रहा होता तो मां कहता,"देखो जा रहे हैं श्रीमान हेपांडस्कौच, बेचारे शर्त लगाने की जगह जा रहे हैं। अगर आज उनकी किस्मत ने साथ दिया तो वह अपनी गर्लफ्रेंड के लिए दो सीटों वाली पुरानी साइकिल खरीदेंगे।"

जब कोई आदमी धीमी गति से कदम गिनते हुए गुजरता तो मां का किस्सा होता,"देखो बेचारे को, घर जा रहा है और उसे पता है आज खाने में उसे फिर से वही कद्दू मिलने वाला है। वह कद्दू से नफरत करता है।"

कोई अपनी ऐंठ में ही चला जा रहा होता तो मां कहती,"देखो, ये सभ्य समाज के सज्जन जा रहे हैं। लेकिन फिलहाल तो वे अपनी पैंट में हो गये छेद की वजह से खासे परेशान हैं।"

इसके बाद एक और आदमी तेज-तेज चाल से लपकता हुआ गुज़र जाता,"उस भले आदमी ने अभी अभी ईनो की खुराक ली है और . ....।" और इस तरह से किस्से चलते रहते और हम हँस-हँस कर दोहरे हो जाते।

एक और सप्ताह बीतने को आया था लेकिन अभी भी सिडनी का कोई समाचार नहीं मिला था। अगर मैं और छोटा होता और मां की चिंता के प्रति ज्यादा संवेदनशील होता तो मैं महसूस कर सकता था कि उसके दिल पर क्या गुज़र रही थी। मैंने तब इस बात को देखा होता कि वह कई दिनों से खिड़की की सिल पर ही बैठी बाहर देखती रहती थी। उसने कई दिन से कमरे को साफ तक नहीं किया था और बेहद शांत होती चली गयी थी। मैं शायद तब भी चिंता में पड़ा होता जब कमीज़ें बनाने वाली फर्म ने उसके काम में मीन-मेख निकालनी शुरू कर दी थी और उसे और काम देना बंद कर दिया था और जब वे बकाया किस्तों की अदायगी न होने के कारण सिलाई मशीन ही उठा कर ले गये और जब नृत्य के पाठ से होने वाली मेरी पांच शिलिंग की कमाई भी अचानक बंद हो गयी तो शायद इस सबके बीच मैंने इस बात पर ध्यान दिया हो कि मां लगातार उदासीन और किंकर्तव्यविमूढ़ बनी रही थी।

अचानक मिसेज मैक्कार्थी की मृत्यु हो गयी। वे कुछ अरसे से बीमार चल रही थीं। उनकी हालत खराब होती चली गयी और अचानक वे गुज़र गयी थीं। तत्काल ही मेरे दिमाग में ख्यालों ने हमला बोल दिया। कितना अच्छा होता अगर मिस्टर मैक्कार्थी मां से विवाह कर लेते। वैली और मैं तो अच्छे दोस्त थे ही। इसके अलावा, ये मां की समस्याओं का आदर्श हल भी होता।

संस्कार के तुरंत बाद मैंने मां से इस बात बारे में बात की,"अब तुम इसे अपनी दिनचर्या बना लो मां कि अक्सर मिस्टर मैक्कार्थी से मिल लिया करो। मैं शर्त बद कर कह सकता हूं कि वे तुमसे शादी कर लेंगे।"

मां कमजोरी से मुस्कुरायी,"उस बेचारे को एक मौका तो दो," मां ने जवाब दिया।

"मां, अगर तुम ढंग से तैयार हो जाया करो और अपने आपको आकर्षक बना लो, जैसा तुम पहले हुआ करती थी तो वे जरूर तुम्हें पसंद कर लेंगे। लेकिन तुम तो अपनी तरफ से कोई कोशिश ही नहीं करती, बस, इस गंदे कमरे में पसरी बैठी रहती हो और वाहियात नज़र आती हो।"

बेचारी मां, मैं अपने इन शब्दों पर कितना अफ़सोस करता हूं। मैं इस बात को कभी सोच ही नहीं पाया कि वह खाना पूरा न मिलने के कारण कमज़ोर थी। इसके बावजूद अगले दिन, पता नहीं उसमें कहां से इतनी ताकत आ गयी, उसने सारा कमरा साफ-सूफ कर दिया। स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो गयी थीं। इसलिए मैंने सोचा, मैक्कार्थी परिवार के यहां थोड़ा पहले ही चला जाऊं। अपने उस मनहूस दड़बे से बाहर निकलने का कोई तो बहाना चाहिये ही था। उन्होंने मुझे लंच तक रुकने का न्यौता दिया था। लेकिन मुझे ऐसा आभास हो रहा था कि मुझे मां के पास वापिस लौट जाना चाहिये। जब मैं पाउनाल टैरेस वापिस पहुंचा तो पड़ोस के कुछ बच्चों ने मुझे गेट के पास ही रोक लिया,"तुम्हारी मां पागल हो गयी है, एक छोटी सी लड़की ने कहा।

ये शब्द तमाचे की तरह मेरे मुंह पर आ लगे।

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घिघियाया।

"ये सच है," दूसरी ने बताया।

"वो सारे घरों के दरवाजे खटखटाती फिर रही थी और हाथ में कोयले के टुकड़े ले कर बांटती फिर रही थी कि ये बच्चों के लिए जन्मदिन का उपहार है। चाहो तो तुम मेरी मां से भी पूछ सकते हो।"

और कुछ सुने बिना मैं रास्ते से दौड़ा, खुले दरवाजे से घर के भीतर गया, फलांगता हुआ सीढ़ियां चढ़ा और अपने कमरे का दरवाजा खोला। एक पल के लिए अपनी सांस पर काबू पाने के लिए मैं थमा और मां को गहरी नज़र से देखने लगा। ये गरमी की दोपहरी थी और माहौल घुटा-घुटा सा और दबाव महसूस कराने वाला था। मां हमेशा की तरह खिड़की पर बैठी हुई थी। वह धीमे से मुड़ी और उसने मेरी तरफ देखा। उसका चेहरा पीला और पीड़ा से ऐंठा हुआ लग रहा था।

"मां," मैं लगभग चिल्ला उठा।

"क्या हुआ?" मां ने निर्विकार भाव से पूछा।

तब मैं दौड़ कर गया और अपने घुटनों के बल गिरा और उसकी गोद में अपना मुंह छुपा लिया। ज़ोर से मेरी रुलाई फूट पड़ी।

"रुको, रुको, बेटे," वह हौले से मेरा सिर सहलाते हुए बोली,"क्या हो गया मेरे बच्चे?"

"तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है," मैं सुबकते हुए चिल्लाया।

वह मुझे आश्वस्त करते हुए बोली,"मैं तो बिल्कुल चंगी हूं।"

वह बहुत ज्यादा खोयी-खोयी और ख्यालों में डूबी रही थी।

"नहीं,नहीं, वे सब बता रहे हैं कि तुम सब घरों में फिरती रही थी और.. .. और ..." मैं अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाया, लेकिन सुबकता रहा।

"मैं सिडनी को तलाश कर रही थी," वह कमज़ोरी से बोली,"वे उसे मुझसे दूर रखे हुए हैं।"

तब मुझे पता चला कि जो कुछ बच्चे बता रहे थे, वह सही था।

"ओह मां, इस तरह की बातें मत करो। नहीं, नहीं," मैं सुबकने लगा,"मैं तुम्हारे लिए डॉक्टर बुलवाता हूं।"

वह मेरा सिर सहलाते हुए बोलती रही,"मैक्कार्थी जी को मालूम है कि वह कहां है और वे उसे मुझे दूर रखे हुए हैं।"

"मम्मी, मम्मी, मुझे जरा डाक्टर को बुलवा लेने दो," मैं चिल्लाया। मैं उठा और सीधे दरवाजे की तरफ लपका।

मां ने दर्दभरी निगाहों से मेरी तरफ देखा और पूछा,"कहां जा रहे हो?"

"डॉक्टर को लिवाने। मुझे ज्यादा देर नहीं लगेगी।"

मां ने कोई जवाब नहीं दिया लेकिन मेरी तरफ चिंतातुर निगाहों से देखती रही। मैं तेजी से लपक कर नीचे गया और मकान मालकिन के पास पहुंचा।

"मुझे तुरंत डॉक्टर को बुलवाना पड़ेगा। मां की हालत ठीक नहीं है।"

"हमने पहले ही डॉक्टर को बुलवा लिया है।" मकान मालकिन ने बताया।

खैराती डॉक्टर बूढ़ा और चिड़चिड़ा था। मकान मालकिन की दास्तान सुन लेने के बाद, जो कमोबेश बच्चों के बताये किस्से जैसी ही थी, उसने मां की सरसरी तौर पर जांच की।

"पागल . . . इसे आप अस्पताल भिजवाइये," कहा उसने।

डॉक्टर ने एक पर्ची लिखी। दूसरी बातों के अलावा इसमें ये लिखा था कि वह कुपोषण की मरीज थी। डॉक्टर ने इसका मतलब मुझे ये बताया कि उसे पूरी खुराक नहीं मिलती रही है।

मकान मालकिन ने मुझे दिलासा देते हुए कहा,"ठीक हो जायेगी बेटा, और उसे वहां खाना भी ठीक तरह से मिलेगा।"

मकान मालकिन ने मां के कपड़े-लत्ते जमा करने में मेरी मदद की और उसे कपड़े पहनाये। मां एक बच्चे की तरह सारी बातें मानती रही। वह इतनी कमज़ोर थी कि उसकी इच्छा शक्ति ने मानो उसका साथ छोड़ दिया हो। जब हम घर से चले तो पास-पड़ोस के बच्चे और पड़ोसी मजमा लगाये गेट के पास खड़े थे और इस अनहोनी को देख रहे थे।

अस्पताल लगभग एक मील दूर था। जब हम वहां के लिए चल रहे थे तो मां कमज़ोरी के कारण किसी शराबी औरत की तरह लड़खड़ा कर चल रही थी और दायें-बायें झूम रही थी। मैं उसे किसी तरह संभाले हुए था। उस दोपहरी में धूप का तीखापन हमें अपनी गरीबी का अहसास बेदर्दी से करवा रहा था। जो लोग हमारे आस पास से गुज़र कर जा रहे थे जरूर सोच रहे होंगे कि मां ने पी रखी है, लेकिन मेरे लिए वे सपने में अजगरों की तरह थे। वह बिल्कुल भी नहीं बोली लेकिन शायद वह जानती थी कि उसे कहां ले जाया जा रहा है और उसे वहां पहुंचने की चिंता भी थी। रास्ते में मैंने उसे आश्वस्त करने की कोशिश की और वह मुस्कुरायी भी। लेकिन यह मुस्कुराहट बेहद कमज़ोर थी।

आखिरकार जब हम अस्पताल में पहुंचे तो एक युवा डॉक्टर ने मां को अपनी देखभाल में ले लिया। नोट को पढ़ने के बाद उसने दयालुता से कहा,"ठीक है मिसेज चैप्लिन, आप इधर से आइये।"

मां ने चुपचाप उसकी बात मान ली। लेकिन जब नर्सें उसे ले जाने लगीं तो वह अचानक मुड़ी और दर्द भरी निगारहों से मुझे देखने लगी। उसे पता चल गया था कि वह मुझे छोड़ कर जा रही है।

"मां, मैं कल आऊंगा," मैंने कमज़ोर उत्साह से कहा।

जब वे उसे ले जा रहे थे तो वह पीछे मुड़ मुड कर मेरी तरफ चिंतातुर निगाहों से देख रही थी। जब वह जा चुकी तो डाक्टर ने मुझसे कहा,"अब तुम्हा रा क्या होगा, मेरे नौजवान दोस्त?"

अब तक मैं यतीनखानों के स्कूलों की बहुत रोटियां तोड़ चुका था इसलिए मैंने लापरवाही से जवाब दिया,"मैं अपनी आंटी के यहां रह लूंगा।"

जब मैं अस्पताल से घर की तरफ वापिस लौट रहा था मैं सिर्फ सुन्न कर देने वाली उदासी ही महसूस कर पा रहा था। इसके बावजूद मैं राहत महसूस कर रहा था। क्योंकि मैं जानता था कि अस्पताल में मां की बेहतर देखभाल हो पायेगी बजाये घर के अंधेरे में बैठे रहने के जहां खाने को एक दाना भी नहीं हैं लेकिन जब वे लोग उसे ले जा रहे थे जो जिस तरह से उसने दिल चीर देने वाली निगाह से मुझे देखा था, वह मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा। मैंने उसके सभी सहन करने के तरीकों के बारे में सोचा, उसकी चाल के बारे में सोचा, उसके दुलार और उसके प्यार के बारे में सोचा, और मैंने उस कृष काया के बारे में सोचा जो थकी हारी नीचे आती थी और अपने ही ख्यालों में खोयी रहती थी और मुझे अपनी तरफ लपकते हुए आते देखते ही जिसके चेहरे पर रौनक आ जाती थी। किस तरह से वह एकदम बदल जाती थी और जब मैं उसके लिफाफे की तलाशी लेने लगता था जिसमें वह मेरे और सिडनी के लिए अच्छी अच्छी च़ाजें लाती थी तो उसके चेहरे के भाव कितने अच्छे हो जाते थे और वह मुस्कुराने लगती थी। यहां तक कि उस सुबह भी उसने मेरे लिए कैंडी बचा कर रखी थी और जिस वक्त मैं उसकी गोद में रो रहा था, उसने मुझे कैंडी दी थी।

मैं सीधा घर वापिस नहीं गया। मैं जा ही नहीं सका। मैं नेविंगटन बट्स मार्केट की तरफ मुड़ गया और दोपहर ढलने तक दुकानों की खिड़कियों में देखता रहा। जब मैं अपनी परछत्ती पर वापिस लौटा तो वह हद दरजे तक खाली-खाली लग रही थी। एक कुर्सी पर पानी का टब रखा हुआ था। पानी से आधा भरा हुआ। मेरी दो कमीजें और एक बनियान उसमें भिगोने के लिए रखे हुए थे। मैंने तलाशना शुरू किया। घर में खाने को कुछ भी नहीं था। अल्मारी में सिर्फ चाय की पत्ती का आधा भरा पैकेट रखा हुआ था। मेंटलपीस पर मां का पर्स रखा हुआ था जिसमें मुझे तीन पेनी के सिक्के और गिरवी वाली दुकान की कई पर्चियां मिलीं। मेज के कोने पर वही कैंडी रखी हुई थी जो उसने मुझे सुबह दी थी। जब मैं अपने आपको संभाल नहीं पाया और फूट फूट कर रोया।

भावनात्मक रूप से मैं चुक गया था। उस रात मैं गहरी नींद सोया। सुबह मैं जागा तो कमरे का खालीपन भांय भांय कर रहा था। फर्श पर बढ़ती आती सूर्य की किरणें जैसे मां की गैर मौजूदगी का अहसास करवा रही थीं। बाद में मकान मालकिन आयी और बताने लगी कि मैं वहां पर तब तक रह सकता हूं जब तब वह कमरा किराये पर नहीं दे देती और अगर मुझे खाने की ज़रूरत हो तो मुझे कहने भर की देर होगी। मैंने उसका आभार माना और उसे बताया कि जब सिडनी वापिस आयेगा तो उसके सारे कर्जे उतार देगा। लेकिन मैं इतना शरमा रहा था कि खाने के लिए कह ही नहीं पाया।

हालांकि मैंने मां से वायदा किया था कि अगले दिन उससे मिलने जाऊंगा लेकिन मैं नहीं गया। मैं जा ही नहीं पाया। जाने का मतलब उसे और विचलित करना होता। लेकिन मकान मालकिन डॉक्टर से मिली। डॉक्टर ने उसे बताया कि मां को पहले ही केन हिल पागल खाने में ले जाया जा चुका है। इस उदासी भरी खबर ने मेरी आत्मा पर से बोझ हटा दिया क्योंकि केन हिल पागलखाना वहां से बीस मील दूर था और वहां तक जाने का मेरे पास कोई जरिया नहीं था। सिडनी जल्दी ही लौटने वाला था और तब हम दोनों उसे देखने जा पाते। पहले कुछ दिन तक तो मैं न अपने किसी परिचित से मिला और न ही किसी से बात ही की।


मैं सुबह सुबह ही घर से निकल जाता और सारा दिन मारा मारा फिरता। मैं कहीं न कहीं से खाने का जुगाड़ कर ही लेता। इसके अलावा, एक आध बार का खाना गोल कर जाना कोई बड़ी बात नहीं थी। एक सुबह जब मैं चुपके से सरक कर बाहर जा रहा था तो मकान मालकिन की निगाह मुझ पर पड़ गयी और उसने पूछा कि क्या मैंने नाश्ता किया है।

मैंने सिर हिलाया, वह मुझे अपने साथ ले गयी,"तब चलो मेरे साथ," उसने अपनी भारी आवाज में कहा।

मैं मैक्कार्थी परिवार से दूर दूर ही रहा क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि उन्हें मां के बारे में पता चले। मैं किसी भगोड़े सैनिक की तरह सबकी निगाहों से बचता ही रहा।

मां को गये एक सप्ताह बीत चुका था और मैंने राम भरोसे रहने की आदत डाल ली थी जिस पर न तो अफसोस किया जा सकता था और न ही उसे आनंददायक ही कहा जा सकता था। मेरी सबसे बड़ी चिंता मकान मालकिन थी क्योंकि अगर सिडनी वापिस न आया तो देर सबेर वह मेरे बारे में सुधारगृह वालों को बता ही देगी और मुझे एक बार फिर हैनवेल स्कूल में भेज दिया जायेगा, इसलिए मैं उसके सामने पड़ने से कतरा रहा था और कई बार तो बाहर ही सो जाता।

मैं लकड़ी चीरने वाले कुछ लोगों से जा टकराया जो केनिंगटन रोड के पिछवाड़े की तरफ एक घुड़साल में काम करते थे। ये सड़क छाप से दिखने वाले लोग थे जो एक अंधेरे से भरे दालान में काम करते थे और फुसफुसा कर बातें करते, सारा दिन लकड़ियां चीरते और कुल्हाड़ी से उनकी फांकें तैयार करते। बाद में वे उनके आधी आधी पेनी के बंडल बना देते। मैं उनके खुले दरवाजे के आस पास मंडराता रहता और उन्हें काम करते हुए देखता। उनके पास एक फुट का लकड़ी का गुटका होता। वे उसकी पतली पतली फांकें बनाते और फिर से इन फांकों को तीलियों में बदल डालते। वे इतनी तेजी से लकड़ियां चीरते कि मैं हैरान हो कर देखता ही रह जाता। मुझे उनका ये काम बेहद आकर्षित करता। जल्द ही मैं उनकी मदद करने लगा। वे अपने लिए लकड़ी के लट्ठे इमारतें गिराने वाले ठेकेदारों से लाते और उन्हें ढो कर शेड तक लाते, उनके चट्टे बना कर रखते। इस काम में पूरा एक दिन लग जाता। फिर वे एक दिन लकड़ियां चीरने का काम करते और उससे अगले दिन उसकी तीलियां बनाते। शुक्रवार और शनिवार वे जलावन की लकड़ियां बेचने के लिए निकलते लेकिन बेचने के काम में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी। शेड में काम करना कहीं ज्यादा रोमांचक लगता था।

वे लोग तीस और चालीस बरस की उम्र के बीच के शालीन, शांत लोग थे हालांकि वे बरताव बड़ी उम्र के लोगों का करते और लगते भी ज्यादा उम्र के थे। बॉस (जैसा कि हम उसे कहा करते थे) मधुमेह की वजह से लाल नाक वाला था। उसके ऊपर के दांत झड़ गये थे, बस एक ही दांत लटकता रहता लेकिन फिर भी न जाने क्यों उसके चेहरे में अपनेपन का अहसास होता था। अच्छा लगता था वह। वह अजीब तरीके से हँसता जिससे उसका इकलौता दांत दिखायी देने लगता। जब चाय के लिए एक और कप की ज़रूरत होती तो वह दूध का टिन उठाता, उसे धोता, पोंछता और कहता,"क्या ख्याल है इसके बारे में?"

दूसरा आदमी हालांकि सहमत लगता, शांत, सूजे से चेहरे वाला, मोटे होंठों वाला, व्यक्ति था। वह बहुत धीरे धीरे बोलता, एक बजे के करीब बॉस मेरी तरफ देखता,"ऐय क्या तुमने कभी चीज़ की पपड़ी से बना अधपके मांस का स्वाद लिया है?"

"हमने इसे कई बार खाया है," मैं जवाब देता।

तब ठहाके लगाते हुए और खींसे निपोरते हुए वह मुझे दो पेंस देता और मैं ऐश की राशन की दुकान पर जाता, ये कोने पर चाय की दुकान थी। वह मुझे पसंद करता था और मेरे पैसों पर हमेशा ढेर सारी चीजें दे दिया करता। मैं वहां से एक पेनी की चीज़ की पपड़ी लेता, और एक पेनी की बेड। चीज़ को धो लेने और उसकी पपड़ियां बना लेने के बाद हम उसमें पानी मिलाते, थोड़ा नमक और काली मिर्च डालते, कई बार बॉस उसमें थोड़ी सी सूअर की चर्बी और कतरे हुए प्याज भी छोड़ देता और ये सारी चीजें मिल कर चाय के कैन के साथ बहुत ही पेट भर कर खाने वाला मामला हो जाता।

हालांकि मैं कभी पैसों के लिए पूछता नहीं था, हफ्ता बीतने पर बॉस ने मुझे छ: पेंस दिये। ये मेरे लिए सुखद आश्चर्य था। जो, जिसका चेहरा फूला हुआ था, को मिर्गी के दौरे पड़ते। तब बॉस उसे होश में लाने के लिए उसकी नाक के नीचे खाकी कागज जला कर उसे सुंघाता। कई बार तो उसके मुंह से झाग निकलने शुरू हो जाते और वह अपनी जीभ काटने लगता। जब वह होश में आता तो बेहद दयनीय और शर्मिंदा लगता।

लकड़हारे सुबह सात बजे से लेकर रात के सात बजे तक काम करते रहते। कई बार उसके बाद भी। जब वे शेड में ताला लगा कर घर की तरफ रवाना होते, मैं हमेशा उदास हो जाया करता। एक दिन बॉस ने तय किया कि वह हम सबको ट्रीट देगा और साउथ म्यूजिक हॉल में दो पेनी की गेलरी सीटों पर शो दिखायेगा। मैं और जो पहले ही हाथ मुंह धो चुके थे और बॉस का इंतजार कर रहे थे। मैं बेहद रोमांचित था क्योंकि उस हफ्ते फ्रेड कार्नो की कॉमेडी अर्ली बर्ड्स (इस कम्पनी में मैं कई बरस बाद शामिल हुआ) चल रहा था। जो घुड़साल की दीवार के सहारे खड़ा हुआ था और मैं उसके सामने उत्साहित और रोमांचित खड़ा हुआ था। तभी अचानक जो ने बहुत तेज आवाज़ में चीख मारी और उसे दौरा पड़ा और वह उसी में दीवार के सहारे ही नीचे गिर गया। जो होना था, वह कुछ ज्यादा ही था। जब जो को होश आया तो बॉस चाहते थे कि वे वहीं रुक कर उसकी देखभाल करें लेकिन जो ने जिद की कि वह एकदम ठीक है और हम दोनों उसके बगैर चले जायें। वह सुबह तक एकदम चंगा हो जायेगा।

स्कूल की धमकी एक ऐसी दानव था जिसने कभी भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा। बीच बीच में लकड़ी चीरने वाले मुझसे स्कूल के बारे में सवाल पूछ लेते। जब छुट्टियां खत्म हो गयीं तो वे थोड़े से बेचैने हो गये। अब मैं साढ़े चार बजे तक, यानी स्कूल के छूटने के वक्त तक गलियों में मारा मारा फिरता, लेकिन ये बहुत मुश्किल काम था। बेमतलब गलियों में फिरते रहना और साढ़े चार बजे तक इंतज़ार करना जब मैं अपनी राहत की जगह पर और लकड़ी चीरने वालों के पास लौट सकता।

एक रात जब मैं चुपके से सोने के लिए अपने बिस्तर में सरक रहा था, मकान मालकिन मुझसे मिलने के लिए आयी। वह बेचारी मेरी राह देखती बैठी थी। वह बहुत उत्तेजित थी। उसने मुझे एक तार थमाया जिस पर लिखा था,"कल सुबह दस बजे वाटरलू स्टेशन पर पहुंचूंगा। प्यार, सिडनी।

जिस वक्त मैं उससे स्टेशन पर मिला तो मेरी हालत वाकई खराब थी। मेरे कपड़े गंदे और फटे हुए थे और मेरी कैप में से धागे इस तरह से लटके हुए थे मानो किसी लड़की के स्कर्ट के नीचे झालरें लटकती नज़र आती हैं। मैंने लकड़ी चीरने वालों के यहां ही मुंह धो लिया था और इस तरह से मैं तीसरी मंज़िल तक दो डोल पानी के भर कर ले जाने और मकान मालकिन की रसोई के आगे से गुज़रने की जहमत उठाने से बच गया था। जब मैं सिडनी से मिला तो मेरे कानों और गर्दन के आस पास रात की गंदगी और मैल की परत दिखायी दे रही थी।

मेरी तरफ देखते हुए सिडनी ने पूछा,"क्या हुआ है?"

मैंने सीधे ही खबर नहीं दी। थोड़ा वक्त लिया,"मां पागल हो गयी है और हमें उसे अस्पताल भेजना पड़ा।"

उसका चेहरा चिंता से घिर गया लेकिन उसने अपने आप पर काबू पा लिया,"तो तुम कहां रह रहे हो इस वक्त?"

"वहीं पाउनाल टैरेस"

वह अपना सामान देखने के लिए मुड़ा। उसने एक हाथ गाड़ी का आर्डर दिया और जब कुलियों ने उस पर उसके सामान के चट्टे लगाये तो सबसे ऊपर केलों की एक गेल भी थी।

"ये हमारे हैं क्या?" मैं बेसब्री से पूछा।

उसने सिर हिलाया,"अभी ये कच्चे हैं। इनके तैयार होने में हमें एकाध दिन का इंतज़ार करना पड़ेगा।"

घर आते समय रास्ते में उसने मां के बारे में सवाल पूछने शुरू कर दिये। मैं इतने उत्साह में था कि सारी बातें सिलसिलेवार बता ही नहीं पाया लेकिन उसे सारे सूत्र मिल गये थे। तब उसने बताया कि वह बीमार हो गया था और उसे केप टाउन में उतार कर अस्पताल में ही छोड़ दिया गया था। और कि वापसी की यात्रा में उसने बीस पाउंड कमा लिये थे। ये पैसे वह मां को दे कर जाना चाहता था। उसने ये पैसे सैनिकों के लिए जूए और लाटरी के इंतजाम करके कमाये थे।

उसने मुझे अपनी योजनाओं के बारे में बताया। वह अब अपनी समुद्री यात्राएं छोड़ देने का इरादा रखता था और अभिनेता बनना चाहता था। उसने बताया कि ये पैसे हमारे लिए बीस हफ्तों के लिए काफी होंगे और तब तक उसे थियेटर में कोई न कोई काम मिल ही जायेगा।

जब हम टैक्सी में केलों की गेल के साथ घर पहुंचे तो पड़ोसियों और मकान मालकिन पर इसका बहुत अच्छा असर पड़ा। मकान मालकिन ने सिडनी को मां के बारे में बताया लेकिन सारे डरावने ब्यौरे नहीं बताये।

उसी दिन सिडनी शॉपिंग के लिए गया और मेरे लिए नये कपड़े खरीदे। और उसी रात पूरी सज धज के साथ हम दोनों साउथ म्यूजिकल हॉल के स्टाल में जा पहुंचे। नाटक के दौरान सिडनी लगातार कहता रहा,"जरा सोचो तो, मां के लिए इस सब का क्या मतलब होता।"

उसी हफ्ते हम मां को देखने के लिए केन हिल गये। जिस वक्त हम विजिटिंग रूम में बैठे हुए थे, वहां बैठ कर इंतज़ार करना बहुत कठिन काम लग रहा था। मुझे याद है कि चाभी घूमने की आवाज़ आयी थी और मां चल कर आ रही थी। वह पीली नज़र आ रही थी। उसके होंठ नीले पड़ गये थे। हालांकि उसने हमें पहचान लिया था, उसमें उत्साह नहीं था और उसकी पुरानी जीवन शक्ति जा चुकी थी। उसके साथ एक नर्स आयी थी। बातूनी और भली महिला। वह खड़ी हो कर बात करना चाह रही थी। कहने लगी,"आप लोग बहुत ही गलत वक्त पर आये हैं। आज आपकी मां की हालत बहुत अच्छी नहीं है। नहीं क्या?" उसने मां की तरफ देखा।

मां विनम्रता से मुसकुरायी मानो उसके जाने की राह देख रही हो।

नर्स ने आगे कहा,"अगली बार जब मां की हालत अच्छी हो तुम लोग ज़रूर आना।"

आखिरकार वह चली गयी और हमें अकेला छोड़ दिया गया। हालांकि सिडनी ने मां का मूड बेहतर करने की कोशिश की और उसे अपनी किस्म।त के चमकने और पैसा कमाने और इतने अरसे तक बाहर रहने के बारे में किस्से बताता रहा, वह बैठी सिर्फ सुनती रही और सिर हिलाती रही। वह अपने ही ख्यालों में गुम लग रही थी। मैंने मां को बताया कि वह जल्दी ही चंगी हो जायेगी। "हां बेशक," मां ने मायूसी से कहा,"काश उस दोपहर तुमने मुझे एक कप चाय दे दी होती तो मैं एकदम ठीक हो जाती।"

बाद में डॉक्टर ने सिडनी को बताया कि कम खुराक मिलने की वजह से मां के दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ा है और उसे ठीक ठाक इलाज की ज़रूरत है और कि हालांकि उसे बीच बीच में बातें याद आती हैं, पूरी तरह से ठीक होने मे उसे कई महीने लगेंगे।

लेकिन मैं कई दिन तक मां के इस जुमले से मुक्त नहीं हो सका कि "काश उस दोपहर तुमने मुझे एक कप चाय दे दी होती तो मैं एकदम ठीक हो जाती।"

मेरी आत्मकथा : अध्याय 5

जोसफ कॉनराड ने इस बारे में अपने एक दोस्त को लिखा था कि ज़िंदगी ने उन्हें एक कोने में दुबके उस अंधे चूहे में बदल डाला था जिसे बस, दबोचा जाने वाला हो। ऐसी उपमा से हम लोगों की दयनीय ज़िंदगी को बयान किया जा सकता था। इसके बावजूद हम में से कुछ लोगों की किस्मत अच्छी रही और ऐसे भाग्यशाली लोगो में से मैं भी था।

मैंने बहुत धंधे किये। मैंने अखबार बेचे, प्रिंटर का काम किया, खिलौने बनाए, ग्लास ब्लोअर का काम किया, डॉक्टर के यहाँ काम किया लेकिन इन तरह-तरह के धंधों को करते हुए मैंने सिडनी की तरह इस लक्ष्य से कभी भी निगाह नहीं हटायी कि मुझे अंतत: अभिनेता बनना है, इसलिए अलग-अलग कामों के बीच अपने जूते चमकाता, अपने कपड़ों पर ब्रश फेरता, साफ कॉलर लगाता और स्ट्रैंड के पास बेडफोर्ड स्ट्रीट में ब्लैक मोर थिएटर एजेन्सी में बीच-बीच में चक्कर काटता। मैं तब तक वहाँ चक्कर लगाता रहा जब तक मेरे कपड़ों की हालत ने मुझे वहाँ और जाने से बिलकुल ही रोक नहीं दिया।

जब मैं वहाँ पहली बार गया तो वहाँ पर शानदार कपड़े पहने हुए अभिनेता-अभिनेत्री घेरा बनाए खड़े थे और लम्बी-लम्बी हांक रहे थे।

मैं डर से काँपते हुए दरवाजे के पास, दूर के एक कोने में खड़ा हो गया। मैं हद दर्जे का शर्मीला लड़का था और अपने चिथड़े हो गये सूट और पंजों से फटे जूतों को छुपाने की भरसक कोशिश कर रहा था। अचानक ही भीतर से एक युवा क्लर्क लपकता हुआ बाहर आता, हाय तौबा मचाता और वहाँ जुटे अभिनेताओं को सम्बोधित करते हुए ज़ोर से चिल्लाता,"तुम, तुम, और तुम, तुम्हारे लिए कोई काम नहीं है।" और ऑफिस गिरजाघर की तरह खाली हो जाता। एक मौके पर मैं अकेला ही वहां खड़ा रह गया था।

जब क्लर्क ने मुझे देखा तो अचानक रुक गया,"क्या चाहिए तुम्हें?"

मुझे लगा, मैं ओलिवर ट्विस्ट की तरह कुछ और मांग रहा होऊं,"क्या आपके पास बच्चों के लिए कोई भूमिका है?"

"क्या तुमने अपना नाम रजिस्टर करवा लिया है?" मैंने सिर हिलाया।

मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब वह मुझे बगल वाले ऑफिस के भीतर ले गया, मेरा नाम, पता और दूसरे ब्यौरे दर्ज किये और मुझे बताया कि जब भी मेरे लायक कोई काम होगा मुझे खबर कर देगा।

मैं बहुत खुश, इस अहसास के साथ वापिस लौटा कि मैंने अपना कर्त्तव्य निभा दिया है। हालांकि मैं अभी भी मान रहा था कि इसका कोई नतीजा नहीं निकला।

और अब, सिडनी के लौटने के एक महीने के बाद मुझे एक पोस्ट कार्ड मिला। इस पर लिखा था,"क्या आप ब्लैकमोर एजेन्सी, बेडफोर्ड स्ट्रीट, स्ट्रैंड में आयेंगे?"

मैं अपने नये सूट में मिस्टर ब्लैकमोर के ही सामने ले जाया गया। वे मुस्कुरा रहे थे और बहुत प्यार से मिले। मैं यह मानकर चल रहा था कि वे सर्वशक्तिमान होंगे और बारीकी से जांच पड़ताल करेंगे लेकिन वे बहुत ही विनम्र थे और उन्होंने मुझे एक पर्ची दी कि मैं चार्ल्स फ्राहमॅन के कार्यालय में मिस्टर सी ई हैमिल्टन को जाकर दे दूं।

मिस्टर हैमिल्टन ने पर्ची पढ़ी और यह जानकर बहुत खुश और हैरान हुए कि मैं कितना छोटा-सा हूं। दरअसल मैंने अपनी उम्र के बारे में झूठ बोला था कि मैं चौदह बरस का हूं जब कि मेरी उम्र साढ़े बारह बरस की थी। उन्होंने समझाया कि मुझे शारलॉक होम्स में बिली, पेजबॉय की भूमिका करनी है और शरद ऋतु से शुरू होने वाले दौरे में चालीस सप्ताह तक काम करना है।

"इस बीच," मिस्टर हैमिल्टन ने आगे कहा,"एक नये नाटक, जिम, द रोमांस ऑफ अ कॉक्नी" में एक अच्छे लड़के की बहुत ही शानदार भूमिका है। इसे मिस्टर सेंट्सबरी ने लिखा है। ये वही शख्स हैं जो आगामी दौरे में शारलॉक होम्स में प्रमुख भूमिका निभाने जा रहे हैं। जिम नाटक `होम्स' के दौरे से पहले आजमाइश के तौर पर किंग्स्टन में खेला जायेगा। मेरा वेतन दो पाउंड दस शिलिंग प्रति सप्ताह रहेगा और मुझे शारलॉक होम्स के लिए भी इतना ही वेतन मिलेगा।

हालांकि यह राशि मेरे लिए छप्पर फाड़ लॉटरी खुलने जैसी थी फिर भी मैंने यह बात अपने चेहरे पर नहीं झलकने दी। मैंने निम्रता से कहा,"शर्तों के बारे में मैं अपने भाई से सलाह लेना चाहूंगा।"

मिस्टर हैमिल्टर हंसे और लगा कि वे बहुत खुश हुए हैं। इसके बाद उन्होंने सारे ऑफिस को इकट्ठा कर लिया और मेंरी तरफ इशारा करते हुए बोले,"ये हमारा बिली है। क्या ख्याल है इसके बारे में?"

हर कोई बहुत खुश हुआ और मेरी तरफ देखकर मुस्कुराया। क्या हो गया था? ऐसा लगा मानो पूरी दुनिया ही अचानक बदल गयी हो, दुनिया ने मुझे प्यार से अपने सीने से लगा लिया हो और मुझे अपना लिया हो। तब मिस्टर हैमिल्टन ने मुझे सेंट्सबरी के लिए एक पर्ची दी। उनके बारे में बताया कि वे लीसेस्टर स्क्वायर में ग्रीन रूम क्लब में मिलेंगे। और मैं वहाँ से वापिस लौटा, बादलों पर सवार।

ग्रीन रूम क्लब में भी वही बात हुई। मिस्टर सेंट्सबरी ने अपने स्टाफ सदस्यों को मुझे देखने के लिए बुलवाया। वहाँ पर उसी समय मुझे यह कहते हुए सामी की भूमिका थमा दी गई कि उनके नाटक में यह एक महत्त्वपूर्ण चरित्र है। मैं डर के मारे थोड़ा नर्वस था कि कहीं वे उसी समय मुझसे अपना पाठ पढ़ने के लिए न कह दें क्योंकि मैं बिल्कुल भी पढ़ना नहीं जानता था और मैं परेशानी में पड़ जाता। सौभाग्य से उन्होंने मुझे मेरे संवाद घर ले जाने के लिए दे दिए कि मैं फुरसत से उन्हें पढ़ूं क्योंकि वे अगले हफ्ते से पहले रिहर्सल शुरू करने वाले नहीं थे।

मैं खुशी के मारे पागल होता हुआ बस में घर पहुंचा और पूरी शिद्दत से यह महसूस करने लगा कि मेरे साथ क्या हो गया है। मैंने अचानक ही गरीबी की अपनी ज़िंदगी पीछे छोड़ दी थी और अपना बहुत पुराना सपना पूरा करने जा रहा था। ये सपना जिसके बारे में अक्सर मां ने बातें की थीं और उसे मैं पूरा करने जा रहा था। अब मैं अभिनेता होने जा रहा था। ये सब इतना अचानक और अप्रत्याशित रूप से होने जा रहा था। मैं अपनी भूमिका के पन्नों को सहलाता रहा। इस पर नया खाकी लिफाफा था। यह मेरी अब तक की ज़िंदगी का सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज था। बस की यात्रा के दौरान मैंने महसूस किया कि मैंने एक बहुत बड़ा किला फतह कर लिया है। अब मैं झोपड़ पट्टी में रहने वाला नामालूम सा छोकरा नहीं था। अब मैं थिएटर का एक खास आदमी होने जा रहा था। मेरा मन किया कि मैं रो पडूं।

जब मैंने सिडनी को बताया कि क्या हो गया है तो उसकी आंखें भर आयीं। वह बिस्तर पर पालथी मारकर बैठ गया और खिड़की से बाहर देखने लगा। वह हिल रहा था। और तब अपना सिर हिलाते हुए उसने गहरी उदासी से कहा,"ये हमारी ज़िंदगी का निर्णायक मोड़ है। काश, आज हमारी माँ यह खुशी बांटने के लिए हमारे साथ होती।"

मैंने उत्साहपूर्वक कहा,"जरा सोचो तो, चालीस सप्ताह तक दो पाउंड और दस शिलिंग। मैंने तो मिस्टर हैमिल्टन से कह दिया है कि तुम्हीं मेरे कारोबारी मामले सम्भालते हो।" इसलिए मैं बेताबी से बोला,"हो सकता है, हमें कुछ ज्यादा भी मिल जाएं। खैर, हम हर वर्ष साठ पाउंड बचा सकते हैं।"

हमने अपने उत्साह के चलते यह गणना भी कर ली और तर्क भी गढ़ लिया कि इतनी बड़ी भूमिका के लिए दो पाउंड और दस शिलिंग की राशि बहुत कम है। सिडनी ने यहाँ तक सोच डाला कि वह जाकर पैसे बढ़वाने की बात करेगा। मैंने कहा कि कोशिश करने में कोई हर्ज नहीं है। लेकिन हैमिल्टन अड़ गये।

"हम अधिकतम दो पाउंड दस शिलिंग ही दे सकते हैं।" वे बोले। हम इसे पाकर ही खुश थे।

सिडनी ने मुझे मेरी भूमिका पढ़कर सुनाई और मुझे अपनी पंक्तियां याद करने में मेरी मदद की। यह काफी बड़ी भूमिका थी और लगभग पैंतीस पन्नों में लिखी हुई थी। इसे मैंने तीन दिन में ही मुंह ज़बानी याद कर लिया था।

`जिम' की रिहर्सलें ड्ररी लेन थिएटर की ऊपर वाली मंज़िल में हुईं। सिडनी ने मुझे इतने उत्साह के साथ ट्रेनिंग दी थी कि मुझे एक-एक शब्द याद हो गया था। बस, एक शब्द मुझे परेशान कर रहा था। लाइन कुछ इस तरह से थी, "आप अपने आप को समझते क्या हैं मिस्टर पियरपाँट मोरगन?" और मैं कह बैठता,"पुटरपिंट मोरगन।" मिस्टर सेंट्सबरी ने मुझे ये शब्द ज्यों के त्यों रखने दिये। ये शुरुआती रिहर्सलें आँखें खोलने वाली थीं। इन्होंने मेरे सामने तकनीकों की एक नयी दुनिया खोल कर रख दी। मुझे इस बात की कत्तई जानकारी नहीं थी कि स्टेज क्राफ्ट, टायमिंग, विराम, मुड़ने के लिए संकेत, बैठने के लिए संकेत जैसी कई बातें भी होती हैं। लेकिन ये सारी चीज़ें मुझे स्वाभाविक रूप से आ गयीं। बस, मेरी एक ही खामी को मिस्टर सेंट्सबरी ने ठीक किया - बोलते समय मैं सिर बहुत हिलाता था और सांस बहुत रोकता था।

कुछ दृश्यों की रिहर्सल कर लेने के बाद वे हैरान रह गये और मुझसे पूछने लगे कि क्या मैंने पहले कभी अभिनय किया है। कितना संतोषजनक था सेंट्सबरी साहब को और नाटक दूसरे अभिनेताओं को खुश करना! अलबत्ता, मैंने उनका उत्साह इस तरह से स्वीकार किया मानो यह मेरा स्वाभाविक जन्मसिद्ध अधिकार हो।

जिम को किंग्स्टन थिएटर में पहले हफ्ते में और फुलहाम थिएटर में दूसरे हफ्ते में आजमाइश के तौर पर के रूप में खेला जाना था। यह हैनरी ऑर्थर जोन्स के सिल्वर किंग पर आधारित एक मैलोड्रामा था। इसकी कहानी कुछ इस तरह से थी कि एक अभिजात्य व्यक्ति अनिद्रा रोग से पीड़ित है और एक दिन अपने आपको फल बेचने वाली एक युवा लड़की और अखबार बेचने वाले एक लड़के के साथ एक दुछत्ती में रहते हुए पाता है। लड़के सामी की भूमिका मैंने निभानी थी। नैतिक रूप से सब ठीक-ठाक था। लड़की दुछत्ती में एक अलमारी में सोती थी और ड्यूक, उसको हम यही कर पुकारते थे, खाट पर आराम से सोता था और मैं फर्श पर सोता था।

पहले अंक का दृश्य 7 ए डेवरयू कोर्ट, द टेंपल का था। यह एक अमीर वकील जेम्स सीटन गेटलॉक का चेंबर था। बरबाद ड्यूक अपने विरोधी वकील के पास जाता है और अपना भला करने वाली फूल बेचने वाली लड़की, जो बीमार है, की मदद करने के लिए हाथ फैलाता है। इस लड़की ने अनिद्रा के उसके रोग में उसकी मदद की थी।

नोक झोंक में विलेन ड्यूक से कहता है,"दफा हो जाओ। जाओ और भूखे मरो। तुम और तुम्हारी ये रखैल।"

ड्यूक हालांकि कमजोर और मरियल सा है, मेज से कागज़ काटने वाला चाकू उठा लेता है मानो वह विलेन पर हमला कर रहा हो, लेकिन इस तरह से चाकू मेज पर गिरा देता है जैसे उसे मिर्गी का दौरा पड़ा हो और वह विलेन के पैरों के पास बेहोश हो कर गिर जाता है। इस मोड़ पर आकर विलेन की भूतपूर्व पत्नी, जिससे कभी यह पस्त ड्यूक प्रेम किया करता था, कमरे के भीतर आती है। वह भी यह कहते हुए पस्त ड्यूक के लिए हाथ जोड़ती है,"उसकी मेरे साथ नहीं बनी। वह अदालतों में भी कुछ नहीं कर पाया। कम से कम तुम तो उसकी मदद कर सकते हो।"

लेकिन विलेन मना कर देता है। दृश्य चरम उत्तेजना तक जा पहुंचता है। विलेन अपनी भूतपूर्व पत्नी पर निष्ठावान न रहने का आरोप लगाता है और उसे भी छोड़ देता है। सनक में आकर वह कागज़ काटने वाला चाकू उठा लेती है जो पस्त ड्यूक के हाथ से गिरा था और विलेन को मार देती है। विलेन अपनी आराम कुर्सी में गिर कर मर जाता है जबकि ड्यूक अभी भी उसके पैरों के पास बेहोश पड़ा हुआ है। महिला दृश्य से गायब हो जाती है और ड्यूक को जब होश आता है तो वह अपने विरोधी को मरा हुआ पाता है। वह कहता है,"हे भगवान, ये मैंने क्या कर डाला।"

और इस तरह से नाटक चलता रहता है। वह मृतक की जेबों की तलाशी लेता है और उसे एक पर्स मिलता है जिसमें कई पाउंड, हीरे की अंगूठी और आभूषण मिलते हैं। वह ये सारी चीज़ें अपनी जेब के हवाले करता है और जब वह खिड़की रास्ते बाहर निकल रहा है तो मुड़ कर कहता है,"गुड बाय गैटलॉक, आखिर तुमने मेरी मदद कर ही दी।" और परदा गिरता है।

दूसरा दृश्य उस दुछत्ती का था जहाँ ड्यूक रहता था। जब दृश्य खुलता है तो एक अकेला जासूस अलमारी के अंदर तांक-झाँक कर रहा है। मैं सीटी बजाते हुए आता हूँ और जासूस को देखकर रुक जाता हूँ।

अखबारवाला लड़का - अरे आप, क्या आपको नहीं पता कि ये एक महिला का बेडरूम है?

जासूस - क्या? ये अलमारी? जरा इधर तो आना

लड़का - बदतमीज, ढीठ कहीं के!

जासूस - तुमने ये दिखाया। इधर आओ और दरवाजा बंद कर दो।

लड़का - (उसकी तरफ जाते हुए) जरा आराम से। समझे नहीं क्या? उनके अपने ड्राइंग रूम में भोंदुओं के आमंत्रण?

जासूस - मैं एक जासूस हूँ।

लड़का - अरे पुलिस वाला ...तब तो हो गई मेरी छुट्टी।

जासूस - मैं तुम्हें कोई नुक्सा न नहीं पहुंचाऊंगा। मैं तो थोड़ी-जानकारी चाहता हूँ जिससे किसी गरीब की मदद हो जाए।

लड़का - किसी की मदद? यदि यहाँ किसी का भला होता है तो वह कम से कम किसी पुलिस वाले के हाथों तो नहीं ही होगा।

जासूस - ज्यादा मूरख मत बनो। क्या मैंने तुझसे ये कहा है कि मैं कभी फौज में था।

लड़का - बिना किसी बात के शुक्रिया। मैं आपके जूते देख सकता हूँ।

जासूस - यहाँ कौन रहता है?

लड़का - ड्यूक

जासूस - वो तो ठीक है, लेकिन उसका असली नाम क्या है?

लड़का - मुझे नहीं पता। लेकिन वह इसी नाम से जाना जाता है। वैसे आप मुझे इस बात के लिए मार भी सकते हैं कि मुझे इसका मतलब नहीं मालूम।

जासूस - और वो देखने में कैसा लगता है?

लड़का - कागज की तरह पतला, सफेद बाल, दाढ़ी सफाचट, टॉपहैट और एक आँख वाला चश्मा पहनता है। और हां!! वह आपको उसी चश्मे से देखता है।

जासूस - और जिम, - ये कौन है?

लड़का - वह आदमी? आपका मतलब लड़की?

जासूस - तो यह वही लड़की है जो -

लड़का - (उसे टोकते हुए) जो अलमारी में सोती है। यहाँ ये कमरा हमारा है, मेरा और ड्यूक का वगैरह। वगैरह ...

और भी बहुत कुछ था मेरी भूमिका में और मेरा यकीन मानिये, दर्शकों को इसमें बहुत मज़ा आया। मेरा ख्याल है इसका कारण यह रहा होगा कि मैं अपनी उम्र से बहुत छोटा दिखता था। मैं जो भी लाइन बोलता, उस पर ठहाके लगते। सिर्फ मंच पर किए जाने वाले काम मुझे परेशान करते। स्टेज पर सचमुच की चाय बनाना। मैं हमेशा भ्रम में पड़ जाता कि पहले पॉट में गरम पानी डालना है या चाय की पत्ती। इसकी तुलना में स्टेज पर कुछ भी काम करने के बजाय लाइनें बोलना हमेशा आसान होता।

जिम नाटक सफल नहीं रहा था। समीक्षकों ने उस नाटक पर बहुत बेदर्दी से कलम चलायी। इसके बावजूद मेरा ज़िक्र अनुकूल ढंग से किया गया। एक समीक्षा जो मुझे हमारी ही कम्पनी के मिस्टर चार्ल्स रॉक ने दिखायी थी, बहुत ही अच्छी थी। वे एक पुराने एडाल्फी अभिनेता थे और उनका बहुत नाम था। और मैंने अपने अधिकतर दृश्य उनके साथ ही किये थे। "...नौजवान," उन्होंने गंभीरता से कहा था," जब तुम ये सब पढ़ो तो ये चीज़ें तुम्हारे दिमाग पर सवार नहीं हो जानी चाहिये।" और विनम्रता और सौम्यता पर मुझे भाषण पिलाने के बाद लंदन ट्रापिकल टाइम्स में से मुझे ये समीक्षा पढ़ कर सुनायी। मुझे समीक्षा का एक-एक शब्द याद है।

नाटक के बारे में हिकारत से लिखने के बाद अखबार ने लिखा: "लेकिन एक आशा जगाने वाली बात भी है। सामी की भूमिका, अखबार बेचने वाला छोकरा, लंदन की गलियों का एक स्मार्ट अरब, जिसने काफी हद तक का नाटक में हास्य की कमी पूरी की है। बेशक ये भूमिका घिसी-पिटी और पुराने ढब की है फिर भी, मास्टर चार्ली चैप्लिन ने सामी के रोल को काफी हद तक रोचक बना दिया है। एक शानदार और मेहनती बाल कलाकार, मैंने हालांकि इस बच्चे के बारे में पहले कभी पहले नहीं सुना है फिर भी हमें निकट भविष्य में इस बच्चे के बारे में बहुत कुछ बेहतर सुनने को मिलेगा, मुझे ऐसी उम्मीद है।" सिडनी ने इसकी एक दर्जन प्रतियां खरीद लीं।

`जिम' के दो सप्ताह तक चलने के बाद हमने शरलॉक होम्स का पूर्वाभ्यास शुरू किया। इस वक्त के दौरान सिडनी और मैं अभी भी पाउनॉल टैरेस पर ही रह रहे थे। इसका कारण यह था कि आर्थिक रूप में अभी भी हम अपने पैरा तले की ज़मीन के बारे में बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं थे।

पूर्वाभ्यास के दौरान सिडनी और मैं मां से मिलने के लिए केन हिल गये। पहले तो नर्सों ने हमें यही बताया कि हम मां से नहीं मिल पायेंगे क्योंकि मां की तबीयत ठीक नहीं है। फिर वे सिडनी को एक तरफ ले गयीं और उससे फुसफुसा कर बात करने लगीं, लेकिन मैंने सिडनी की बात सुन ली थी,"नहीं, मुझे नहीं लगता वह देख पायेगा।" तब वह मेरी तरफ मुड़ कर उदासी से बोला था,"तुम मां को पागलखाने में नहीं देखना चाहोगे?"

"नहीं नहीं, मैं ये बरदाश्त नहीं कर पाऊंगा।" मैंने तड़प कर कहा।

लेकिन सिडनी मां से मिला और मां ने उसे पहचान लिया और वह सचेत हो गयी। कुछ ही पलों के बाद नर्स ने आ कर मुझे बताया कि अब मां बेहतर है और क्या मैं उसे देखना चाहूंगा। तब हम दोनों पागलखाने वाले कमरे में गये और वहाँ जा कर बैठ गये। इससे पहले कि हम जाते, वह मुझे एक तरफ ले कर गयी और मेरे कान में फुसफुसायी,"हिम्मत मत हारना, नहीं तो वे लोग तुम्हें यहीं रख सकते हैं।" मां फिर से अपनी सेहत वापिस पाने से पहले पूरे अट्ठारह महीने केन हिल में रही। मैं जब दौरे पर था तो सिडनी नियमित रूप से जा कर उससे मिलता रहा।

मिस्टर एच ए सेंट्सबरी जो टूर पर होम्स का पार्ट कर रहे थे, स्ट्रैंड मैग्जीन में छपने वाले चित्रों की हू ब हू प्रतिकृति थे। उनका लम्बोतरा संवेदनशील चेहरा था, और माथे पर प्रेरणा देते से भाव थे। जितने भी कलाकार होम्स की भूमिका अदा किया करते थे, उनमें से सेंट्सबरी को बेहतरीन समझा जाता था। उन्हें विलियम गिलेट, मूल होम्स और नाटक के लेखक से भी अच्छा माना जाता था।

मेरे पहले टूर के दौरान मैनेजमेंट ने तय किया कि मैं मिस्टर और मिसेज ग्रीन के साथ रहूं। मिस्टर ग्रीन हमारी कम्पनी के बढ़ई थे और मिसेज ग्रीन वार्डरोब संभालती थीं। ये व्यवस्था बहुत शानदान नहीं कही जा सकती थी। ऊपर से मिस्टर और मिसेज ग्रीन कभी-कभार पीते-वीते थे। इसके अलावा, मै अक्सर उसी वक्त खाना नहीं खाता था जब वे खाया करते। जो वे खाया करते वह मैं नहीं खाता। मुझे यकीन है, मेरा ग्रीन दम्पत्ति के साथ रहना मेरे लिये उतना तकलीफदेह नहीं था, जितना उनके लिए था। इसलिए तीन हफ्ते तक एक साथ रहने के बाद हमने आपसी रज़ामंदी से अलग होने का फैसला कर लिया। और चूंकि मैं इतना छोटा था कि किसी और कलाकार के साथ नहीं रह सकता था, मैं अकेला ही रहने लगा। मैं अजनबी शहरों में अकेले रहता, पिछवाड़े के कमरों में अकेले रहता, और शाम के शो के वक्त से पहले शायद ही किसी साथी कलाकार से मिलता-जुलता। जब मैं अपने आप से बात करता तो मुझे सिर्फ अपनी ही आवाज़ सुनायी देती। अक्सर मैं सैलूनों में चला जाता जहाँ हमारी कम्पनी के साथी इकट्ठे होते। और उन्हें बिलियर्ड्स खेलते देखता। लेकिन मैं हमेशा पाता कि मेरी मौजूदगी से उनकी बातचीत में बाधा ही आ खड़ी होती है और वे इस बात को मुझे जतलाने में कोई शर्म भी महसूस न करते। इसलिए उनकी किसी ऐसी-वैसी बात पर मुस्कुरा भी दूँ तो उनकी भौंहे तन जाती थीं।

मैं अकेला होता चला गया। रविवारों की रात को उत्तरी शहरों में पहुंचना, अंधियारी मुख्य गली में से गुजरते हुए गिरजा घर की घंटियों की उदास टुनटुनाहट सुनना। ये सारी बातें मेरे अकेलेपन में कुछ भी न जोड़ पाती। सप्ताह के अंत की छुट्टियों के दिनों में मैं स्थानीय बाजार खंगालता, और अपनी खरीदारी करता, राशन-पानी खरीदता, मांस खरीदता जिसे मकान मालकिन पका कर दे देती। कई बार मुझे खाने और रहने की सुविधा मिल जाती और मैं तब रसोई में बैठ कर परिवार के साथ ही खाता। मुझे वह व्यवस्था अच्छी लगती क्योंकि उत्तरी इंगलैंड के रसोईघर साफ-सुथरे और भरे पूरे होते, वहां पॉलिश किए हुए फायरग्रेट होते और नीली भट्टियाँ होतीं। मकान मालकिन का ब्रेड सेंकना, और ठंडे अंधियारे दिन में से निकल कर लंकाशायर रसोई की जलती आग की लाल लौ के दायरे में आना हमेशा अच्छा लगता। वहाँ बिना सिंकी डबलरोटियों के डिब्बे भट्टी के आस-पास पार बिखरे होते, तब परिवार के साथ चाय के लिए बैठना, भट्टी से अभी-अभी निकली गरमा-गरम डबलरोटी की सोंधी-सोंधी महक, उस पर लगाया गया ताज़ा मक्खन...मैं गंभीर महानता ओढ़े इनका आनंद उठाता।

मैं प्रदेशों में छह महीने तक रहा। इस बीच सिडनी को थियेटर में ही काम तलाशने में बहुत कम सफलता मिली थी इसलिए अब वह कलाकार बनने की अपनी महत्त्वाकांक्षा को त्याग कर स्ट्रैंड में कोल होल में एक बार में काम के लिए आवेदन करने पर मजबूर हो गया। एक सौ पचास आवेदकों में से यह नौकरी उसे मिली थी। लेकिन मानो एक तरह से यह उसका पहले की स्थिति से पतन था।

वह मुझे नियमित रूप से लिखा करता और मां के बारे में मुझे समाचार देता रहता। लेकिन मैं शायद ही उसके खतों के जवाब देता। इसका एक कारण था कि मुझसे वर्तनी की गलतियाँ बहुत होतीं। उसके एक खत ने तो मुझे इतनी गहराई से छुआ और इसकी वजह से मैं उसके और नजदीक आ गया। उसने मुझे उसके खतों का जवाब न देने के कारण फटकार लगायी और याद दिलाया था कि हम कैसे-कैसे दिन एक साथ देख कर यहाँ तक पहुँचे हैं और इस बात से हमें कम से कम एक दूसरों के और करीब होना चाहिए।

सिडनी ने लिखा,".. मां की बीमारी के बाद हम दोनों के पास एक दूसरे के अलावा और कौन बचे हैं। तुम नियमित रूप से लिखा करो और मुझे बताओ कि मेरा एक भाई भी है।"

उसका पत्र इतना अधिक भावपूर्ण था कि मैंने तुरंत ही उसका जवाब दे दिया। अब मैं सिडनी को दूसरे ही आलोक में देख रहा था। उसके पत्र ने भ्रातृत्व के प्यार का ऐसा अटूट बंधन बांधा जो मेरी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ बना रहा।

मैं अकेले रहने का आदी हो चुका था। लेकिन मैं बातचीत करने से इतना विमुख होता चला गया कि जब कम्पनी का कोई साथी मुझसे मिलता तो मैं बहुत ज्यादा परेशानी में पड़ जाता। मैं अपने आपको फटाफट इस बात के लिए तैयार ही न कर पाता कि हाजिर जवाबी से, समझदारी से किसी बात का जवाब दे सकूं। लोग-बाग मुझे छोड़ कर चले जाते। मुझे पक्का यकीन है कि मेरी बुद्धि के प्रति घबड़ाकर चिंतातुर हो कर ही मुझसे विदा लेते। अब उदाहरण के लिए, मिस ग्रेटा हॉन को ही लें। वे हमारी प्रमुख अभिनेत्री थीं। खूबसूरत, आकर्षक और दयालुता की साक्षात प्रतिमा, लेकिन जब मैंने उन्हें सड़क पार कर अपनी तरफ आते देखता तो मैं तेजी से मुड़ कर या तो एक दुकान की खिड़की में देखने लगता या उससे मिलने से बचने के लिए किसी दूसरी ही गली में सरक जाता।

मैंने अपने-आप की परवाह करनी छोड़ दी और अपनी आदतों में लापरवाह होता चला गया। जब मैं कम्पनी के साथ यात्रा कर रहा होता तो रेलवे स्टेशन पहुंचने में मुझे हमेशा देर हो जाती। आखिरी पलों में पहुँचता और मेरी हालत अस्त-व्यस्त होती, मैंने कॉलर भी न लगाया होता, और मुझे हमेशा इस बात के लिए फटकार सुननी पड़ती।

मैंने अपने साथ के लिए एक खरगोश खरीद लिया और मैं जहाँ भी रहता, उसे छुपा कर अपने कमरे में ले जाता और मकान मालकिन को इस बात की हवा भी न लग पाती। ये एक छोटा-सा प्यारा-सा जीव था जो बेशक इधर-उधर मुंह नहीं मारता था। इसकी फर इतनी सफेद और साफ थी कि यह बात किसी की ध्यान में भी नहीं आती थी कि इसकी गंध कितनी तीखी हो सकती है। मैं इसे अपने बिस्तर के नीचे एक लकड़ी के पिंजरे में छुपा कर रखता। मकान मालकिन खुशी-खुशी मेरे कमरे में मेरा नाश्ता ले कर आती, तभी उसे इस महक का पता चलता, तब वह कमरे से परेशान और भ्रमित हो कर चली जाती, उसके कमरे से बाहर जाते ही मैं अपने खरगोश को आज़ाद कर देता और वह सारे कमरे में फुदकता फिरता।

बहुत पहले ही मैंने अपने खरगोश को इस बात की ट्रेनिंग दे दी थी कि ज्यों ही वह दरवाजे पर खटखट सुने, पलट कर अपनी पेटी में चला जाये। अगर मकान मालकिन को मेरे इस रहस्य का पता चल भी जाये तो मैं अपने खरगोश को ट्रिक करके दिखाने को कह कर उसका दिल जीत लेता और वह फिर हमें पूरा हफ़्ता रहने के लिए इजाजत दे देती।

लेकिन टोनीपेंडी, वेल्स में, मैंने अपनी ट्रिक दिखायी तो मकान मालकिन रहस्यमय ढंग से मुस्कुरायी लेकिन उसने कोई राय जाहिर नहीं की, लेकिन उस रात जब मैं थियेटर से लौटा तो मेरा प्रिय पालतू खरगोश जा चुका था। जब मैंने उसके बारे में पूछताछ की तो मकान मालकिन ने सिर्फ अपना सिर हिला दिया,"कहीं भाग-वाग गया होगा या उसे ज़रूर किसी ने चुरा लिया होगा।" उसने बड़ी चतुराई से अपने-आप ही समस्या को सुलझा लिया था।

टोनीपेंडी से हम ऐब्बी वेल के खदानों वाले शहर में पहुँचे जहाँ हमें तीन रातों के लिए रुकना था। और मैं इस बात के लिए शुक्रगुजार था कि हमें सिर्फ तीन दिन ही रुकना था क्योंकि ऐब्बीवेल एक सीलन-भरी जगह थी जो उन दिनों गंदा-सा शहर हुआ करता था, भयानक, एक जैसे मकानों की एक के बाद एक कतार, हर घर में चार छोटे कमरे थे जिनमें तेल की कुप्पियाँ जलतीं। कंपनी के ज्यादातर लोग एक छोटे-से होटल में ठहरे। सौभाग्य से मुझे एक खदानकर्मी के घर में सामने की तरफ वाला कमरा मिल गया। कमरा बेशक छोटा था लेकिन ये साफ और आरामदायक था। रात को जब मैं नाटक से वापिस लौटता तो कमरे में आग के पास ही मेरा खाना रख दिया जाता जहाँ वह गरम रहता।

मकान मालकिन लम्बी, खूबसूरत-सी औरत थी जिसके आस-पास त्रासदी का एक आवरण लिपटा हुआ था। वह सुबह मेरे कमरे में राश्ता ले कर आती और शायद ही कभी एक-आध शब्द बोलती। मैंने नोट किया कि उसकी रसोई का दरवाजा हमेशा ही बंद रहता। जब भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत होती, मुझे दरवाजा खटखटाना पड़ता और दरवाजा एकाध इंच ही खोला जाता।

दूसरी रात जब मैं रात का खाना खा रहा था तो उसका पति आया। वह लगभग अपनी पत्नी की उम्र का रहा होगा। उस शाम वह थियेटर गया हुआ था और उसे हमारा नाटक अच्छा लगा था। बातचीत करते समय वह खड़ा ही रहा। उसने हाथ में एक जलती मोमबत्ती पकड़ी हुई थी और वह सोने के लिए जाने की तैयारी में था। वह बात करते समय थोड़ा रुका मानो कुछ कहना चाह रहा हो."...सुनो, मेरे पास कुछ ऐसा है जो मुझे लगता है, तुम्हारे काम काज में कहीं फिट हो सकता है। कभी मानव मेंढक देखा है? लो इस मोमबत्ती को पकड़ो और मैं लैम्प पकड़ता हूँ।"

वह मुझे रसोई घर तक ले कर गया और लैम्प को ड्रेसर पर रख दिया। ड्रेसर पर ऊपर से नीचे तक अलमारी के दरवाजों के पल्लों की जगह पर परदा लगा हुआ था। "...ऐ गिल्बर्ट, जरा बाहर तो निकलो।" उसने परदे सरकाते हुए कहा।

एक आधा आदमी जिसके पैर नहीं थे, सामान्य आकार से बड़ा सिर, लाल बाल, चपटा-सा माथा, बीमार-सा सफेद चेहरा, धँसी हुई नाक, बड़ा-सा मुँह और मजबूत कंधे और बाहें, ड्रेसर के नीचे से निकल कर आया। उसने फलानेल का जांघिया पहना हुआ था। जांघिये के कपड़े को जाँघों तक काट दिया गया था। वहाँ उसके दस मोटे, ठूँठ जैसे पंजे नज़र आ रहे थे। इस डरावने प्राणी की उम्र बीस से चालीस के बीच कुछ भी हो सकती थी।

"ऐ, ... हे गिल्बर्ट, जरा कूद के दिखाओ।" पिता ने कहा और दीन-हीन आदमी ने अपने आपको थोड़ा नीचे किया और लगभग मेरे सिर की ऊँचाई तक अपनी बाहें ऊपर उछाल दीं।

"...क्या ख्याल है? सर्कस के लिए यह फिट रहेगा? मानव मेंढक?"

मैं इतना भयभीत हो गया था कि जवाब ही न दे सका। अलबत्ता, मैंने उन्हें कई सर्कसों के नाम पते बताये जहाँ वे इस बारे में लिख सकते थे।

वे इस बात पर अड़े रहे कि ये लिजलिजा प्राणी और भी उछल कूद, कलाबाजियाँ और कूद फाँद दिखाये। उसे आराम कुर्सी के हत्थे पर हाथों के बल खड़ा किया गया, कुदाया गया। जब उसने अपने ये सब करतब बंद किये तो मैंने यह जतलाया कि ये वाकई उत्साह जनक है और इन ट्रिक्स पर उसे बधाई दी।

कमरे से बाहर निकलने से पहले मैंने उससे कहा ..."गुड नाइट गिल्बर्ट," तो कूँए में से आती सी, जबान दबा कर उसे बेचारे ने जवाब दिया," ...गुड नाइट।"

उस रात कई बार मैं उठा और अपने बंद दरवाजे को अच्छी तरह देखा-भाला। अगली सुबह मकान मालकिन खुश मिजाज़ नजर आयी और उसके चेहरे पर संवाद करने जैसे भाव थे। "मेरा ख्याल है, तुमने कल रात गिल्बर्ट को देखा है," कहा उसने, "हां, ये ज़रूर है कि जब हम थिएटर के लोगों को घर में रखते हैं तो वह ड्रेसर के नीचे ही सोता है।"

तब यह वाहियात ख्याल मेरे मन में आया कि मैं गिल्बर्ट के बिस्तर में ही सोता रहा हूँ।... "हाँ," मैंने जवाब दिया और उसके सर्कस में जाने की संभावनाओं पर नपे-तुले शब्दों में ही बात करता रहा।

मकान मालकिन ने सिर हिलाया,"...हम अक्सर इस बारे में सोचते रहे हैं।"

मेरा उत्साह - या इसे जो भी नाम दे दें - मकान मालकिन को खुश करता जा रहा था। वहाँ से चलने से पहले मैं रसोई में गिल्बर्ट को बाय-बाय कहने गया। सहज रहने की कोशिश करते हुए मैंने उसका बड़ा-सा फैला हुआ हाथ अपने हाथ में लिया और उसने हौले से मेरा हाथ दबाया।

चालीस हफ्तों तक अलग-अलग प्रदेशों में प्रदर्शन करने के बाद हम लंदन लौटे। अब हमें आस-पास के उपनगरों में आठ हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे। शरलॉक होम्स, जो सदाबहार सफलता के झँडे गाड़ता था, पहले टूर के होने के बाद तीन हफ्ते बाद दूसरे टूर से शुरू होने वाला था।

अब सिडनी और मैंने तय किया कि पाउनाल टेरेस वाला अपना कमरा छोड़ दें और केनिंगटन रोड पर किसी ज्यादा इज़्ज़तदार जगह में जा कर रहें। हम अब सांपों की तरह अपनी केंचुल को उतार फेंक देना चाहते थे। अपने अतीत को धो पोंछ देना चाहते थे।

मैंने होम्स के अगले दौरे के दौरान सिडनी को एक छोटी-सी भूमिका दिये जाने के बारे में मैनेजमेंट से बात की। और उसे काम मिल भी गया। एक हफ्ते के पैंतीस शिलिंग। अब हम अपने दौरे पर साथ एक साथ थे।

सिडनी हर हफ्ते मां को खत लिखता था और हमारे दूसरे दौरे के आखिरी दिनों में हमें केन हिल पागल खाने से एक पत्र मिला कि अब हमारी मां की सेहत बिलकुल ठीक है। यह निश्चित ही एक बेहतर खबर थी। हमने फटाफट अस्पताल से मां को डिस्चार्ज कराने के इंतज़ाम किये और इस बात की तैयारियाँ कीं कि वह हमारे पास ही रीडिंग शहर में पहुँच जाये। इस मौके का जश्न मनाने के लिए हमने एक स्पेशल डीलक्स अपार्टमेंट लिया जिसमें दो बेडरूम थे, एक ड्राइंगरूम था जिसमें पियानो रखा हुआ था। हमने मां का बेडरूम फूलों से सजा दिया और एक शानदार डिनर का इंतजाम किया।

सिडनी और मैं स्टेशन पर मां का इंतज़ार करते रहे। हम तनाव में भी थे और खुश भी। लेकिन मैं इस बात को सोच-सोच कर परेशान हुआ जा रहा था कि अब वह कैसे हमारी ज़िंदगी में फिर से फ़िट हो पायेगी, इस बात को जानते हुए कि उन दिनों की वह आत्मीय घड़ियां फिर से नहीं जी जा सकेंगी।

आखिरकार ट्रेन आ पहुँची। सवारियाँ जैसे-जैसे डिब्बों में से निकल कर आ रही थीं, हम उत्तेजना और अनिश्चितता से उनके चेहरे देख रहे थे। और आखिर में वह नज़र आयी। मुस्कुराती हुई और चुपचाप धीरे-धीरे हमारी तरफ बढ़ती हुई। जब हम उससे मिलने के लिए आगे बढ़े तो उसने ज्यादा भाव प्रदर्शित नहीं किये लेकिन वात्सल्य के साथ हमें प्यार किया। तय था वह अपने आपको एडजस्ट करने के भीषण दौर से गुज़र रही थी। टैक्सी से अपने कमरों तक की उस छोटी-सी यात्रा में हमने हज़ारों बातें की, मतलब की और बेमतलब की।

मां को अपार्टमेंट और उसके बेडरूम के फूल दिखा देने के तात्कालिक उत्साह के बाद हम अपने आपको ड्राइंगरूम में एक दूसरे के सामने खाली-खाली बैठा पा रहे थे। हमारी सांस फूल रही थी। धूप भरा दिन था और हमारा अपार्टमेंट एक शांत गली में था। लेकिन अब इसकी शांति बेचैन कर रही थी। हालांकि मैं खुश होना चाहता था लेकिन पता नहीं क्यों, मैं अपने-आपको एक तरह के दिल डूबने वाले के भाव से लड़ता हुआ पा रहा था। बेचारी मां, उसने खुश और संतुष्ट रहने के लिए ज़िंदगी से कितना कम चाहा था, मुझे अपने तकलीफ़ भरे अतीत की याद दिला रही थी ...वह दुनिया की आखिरी औरत थी जिसने मुझे इस तरह से प्रभावित किया होगा। लेकिन मैंने अपनी तरफ़ से इन भावनाओं को छुपाने की भरपूर कोशिश की। उसकी उम्र थोड़ी बढ़ गयी थी और वज़न भी बढ़ गया था। मैं हमेशा इस बात पर गर्व किया करता था कि हमारी मां कितनी शानदार दिखती है और ढंग से पहनी ओढ़ती है, और मैं चाहता था कि मैं अपनी कम्पनी को उसके बेहतरीन रूप में दिखाऊं। लेकिन अब वह अनाकर्षक दिख रही थी। मां ने ज़रूर मेरी शंका के ताड़ लिया होगा तभी तो उसने मेरी तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखा।

झिझकते हुए मैंने मां के बालों की लट का ठीक किया,"...मेरी कम्पनी से मिलने से पहले," मैं मुस्कुराया,"मैं चाहता हूँ कि तुम अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में होवो।"

हमें एक दूसरे से एडजस्ट हाने में ज्यादा वक्त नहीं लगा। और मेरी हताशा उड़न छू हो गयी। अब हम उस आत्मीयता के दायरे से बाहर आ चुके थे जो वह तब जानती थी जब हम बच्चे थे और तब वह उस बात को हम बच्चों से बेहतर जानती थी। और यह बात हमें और भी प्यारी बना रही थी। हमारे टूर के दौरान वह खरीदारी करती, सौदा सुलुफ लाती, घर पर फल वगैरह ले आती, खाने-पीने के लिए कुछ न कुछ अच्छी चीज़ें ले आती और थोड़े से फल तो जरूर ही खरीद कर लाती। हम अतीत में कितने भी गरीब क्यों न रहे हों, शनिवारों की रात के वक्त खरीदारी करते समय हम हमेशा पेनी भर के फूल खरीदने का जुगाड़ तो कर ही लिया करते थे। अक्सर वह शांत और अपने आप में गुमसुम रहती और उसका ये अलगाव मुझे उदास कर जाता। वह हमारे साथ मां की तरह पेश आने के बजाये मेहमानों की तरह पेश आती।

एक महीने के बाद मां ने लंदन वापिस जाने की इच्छा प्रकट की। वह अब घर बसा लेना चाहती थी ताकि जब हम दौरे से वापिस आयें तो उसके पास हमारे लिए एक घर हो। इसके अलावा, जैसा कि उसने कहा, इस तरह सदा सैरों पर घूमते हुए एक अतिरिक्त किराया देने की तुलना में लंदन में घर ले कर रहना कहीं ज्यादा सस्ता पड़ेगा।

मां ने चेस्टर स्ट्रीट पर नाई की दुकान के ऊपर एक फ्लैट किराये पर ले लिया। यहाँ हम पहले भी रह चुके थे। मां किस्तों पर दस पाउंड का फर्नीचर ले आयी। कमरे हालांकि वर्सेलिस के कमरों जैसे बड़े और शानदार नहीं थे लेकिन मां ने तो कमाल कर दिया और कमरों का काया-कल्प कर दिया। उसने सोने के कमरों को संतरी रंग के क्रेटस् और क्रेटोन से रंग डाला। अब कमरे सजावटी अल्मारियों की तरह दिखने लगे थे। हम दोनों, सिडनी और मैं मिल कर हर हफ्ते चार पाउंड और पांच शिलिंग कमा रहे थे और उसमें से एक पाउंड और पांच शिलिंग मां को भेज देते।

अपने दूसरे दौरे के बाद मैं और सिडनी घर वापिस लौटे और एक हफ्ता मां के साथ रहे। हालांकि हम मां के पास आ कर खुश थे, फिर भी हम मन ही मन फिर से दौरे पर जाने की चाह रखने लगे थे क्योंकि चेस्टर स्ट्रीट के घर में वे सारी सुविधाएं उस तरह की नहीं थीं जिनके मैं अब और सिडनी आदी होने लगे थे। बिला शक मां ने इस बात को ताड़ लिया। जब हमें स्टेशन पर विदा करने के लिए आयी तो वह काफी खुश लग रही थी लेकिन हम दोनों ने सोचा, जब प्लेटफार्म पर खड़ी वह रुमाल हिलाती हमें विदा कर रही थी तो हमें वह चिंतित लगी।

हमारे तीसरे दौरे के दौरान मां ने हमें लिखा कि लुइस, जिसके साथ सिडनी और मैं केनिंगट रोड पर रहे थे, नहीं रही है। मज़ाक ही तो कहा जायेगा कि, उसकी मृत्यु भी लैम्बेथ यतीम घर में ही हुई जिस जगह पर कुछ अरसे तक हमें रखा गया था। वह पिता जी के बाद सिर्फ चार बरस ही जी पायी थी और अपने बच्चे को यतीम छोड़ गयी थी। उस बेचारे को भी उस अनाथालय में ही रखा गया और उसे भी उसी हॉनवेल स्कूल में ही भेजा गया था जहाँ सिडनी और मुझे भेजा गया था।

मां ने लिखा था कि वह बच्चे से मिलने के लिए गयी थी और उसे बताने की कोशिश की थी कि वह कौन है और कि सिडनी और मैं केनिंगटन रोड पर उसके और उसके पापा...मम्मी के साथ रहे थे लेकिन बच्चे को कुछ भी याद नहीं था क्योंकि वह उस समय मात्र चार बरस का ही था। उसे अपने पिता की भी कोई स्मृतियां नहीं थीं। अब वह दस बरस को होने को आया था। उसे लुइस के मायके वाले नाम के साथ रखा गया था और मां जहाँ तक पता लगा पायी थी, उसका कोई रिश्तेदार नहीं था। मां ने लिखा था कि वह खूबसूरत और शांत लड़का निकल आया था। वह शर्मीला और ख्यालों में खोया रहने वाला लड़का था। वह उसके लिए थैला भर मिठाइयां, संतरे और सेब लेकर गयी थी और उससे वायदा किया था कि वह उसके पास नियमित रूप से आती रहेगी और मेरा विश्वास है वह तब तक जाती भी रही होगी जब तक वह खुद बीमार हो कर फिर से केन हिल में वापिस न भेज दी गयी हो।

मां के एक बार फिर पागल हो जाने की खबर सीने में खंजर की तरह लगी। हमें पूरे ब्यौरे कभी नहीं मिल पाये। हमें सिर्फ एक शुष्क सरकारी पर्ची मिली कि वह बेमतलब और असंगत तरीके से गलियों में फिरती हुई पायी गयी थी। हम कुछ भी तो नहीं कर सकते थे सिवाय इसके कि बेचारी मां की किस्मत के लेखे को स्वीकार कर लें। उसके बाद उसका दिमाग फिर कभी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ।

वह कई बरस तक केन हिल पागल खाने में ही तब तक एड़ियाँ रगड़ती रही जब तक हम इस लायक नहीं हो गये कि उसे एक प्राइवेट पागल खाने में भर्ती करवा सकें।

कई बार बदकिस्मती के देवता भी अपनी चलाते-चलाते थक जाते हैं और थोड़ी-सी दया माया दिखला देते हैं जैसा कि मां के मामले में हुआ। अपने जीवन के अंतिम सात बरस मां को आराम से, फूलों से घिरे हुए और धूप से घिरे हुए बिताने का मौका मिला। वह अपने बड़े हो गये सपूतों को यश और किस्मत के उस स्तर को भोगते देख सकी जिसकी उसने कभी कल्पना की थी।

शरलॉक होम्स के तीसरे टूर के कारण ही सिडनी और मुझे मां को देखने आने में अच्छा-खासा वक्त लग गया। फ्रॉहमैन कम्पनी के साथ टूर हमेशा के लिए खत्म हो गया। इसके बाद थियेटर रॉयल, ब्लैकबर्न के मालिक मिस्टर हैरी यॉर्क ने फ्रॉहमैन से छोटे शहरों में खेलने के लिए शरलॉक होम्स के अधिकार खरीद लिये। सिडनी और मुझे नयी कम्पनी में रख लिया गया लेकिन अब हमारा वेतन घटा कर पैंतीस शिलिंग प्रति सप्ताह कर दिया गया था।

उत्तरी इंगलैंड के छोटे शहरों में अपेक्षाकृत हल्के स्तर के कम्पनी के साथ नाटक खेलना घुटन पैदा करने वाला और स्तर से नीचे आने जैसा था। इसके बावजूद, इसने मेरे इस विवेक को समृद्ध किया कि जो कम्पनी हम छोड़ कर आये थे और जिसमें काम कर रहे थे उनमें क्या फर्क था। मैं इस तुलना को छुपाने की कोशिश करता लेकिन रिहर्सलों के समय, नये निर्देशक की मदद करने के उत्साह में मैं अक्सर उसे बताने लगता कि ये काम तो फ्रॉहमैन कम्पनी में इस तरह से होता था और फलां काम उस तरह से होता था। वह बेचारा तो मुझसे स्टेज डायरेक्शन, संवादों के संकेतों तथा स्टेज पर होने वाले कामों के बारे में पूछ लिया करता था। लेकिन सच तो यह था कि मैं अपनी इस हरकत से बाकी कलाकारों के साथ खास तौर पर लोकप्रिय नहीं हो पाया था और मुझे बड़बोले के रूप में देखा जाने लगा था। बाद में, नये स्टेज पर अपनी यूनिफार्म में से एक बटन खो देने के कारण मैनेजर ने मुझ पर दस शिलिंग का जुर्माना ठोंक दिया। इस बटन के बारे में वे मुझसे पहले भी कई बार कह चुके थे।

विलियम गिलेट, शरलॉक होम्स के लेखक, क्लारिसा नाम के नाटक में मारियो डोरो को ले कर आये। ये नाटक भी उन्होंने ही लिखा था। समीक्षक नाटक के प्रति और गिलेट की स्पीच के तरीके के प्रति बहुत बेरहम थे, जिसकी वजह से गिलेट साहब को एक पर्दा उठाऊ, कर्टेन रेजर नाटक द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलाक होम्स' लिखने पर मजबूर होना पड़ा। इसमें उन्होंने कभी एक शब्द भी नहीं बोला था। नाटक के पात्रों में सिर्फ तीन ही लोग थे, एक पगली, खुद होम्स और उनका पेज बॉय। जब मुझे मिस्टर पोस्टेंट, गिलेट के प्रबंधक से एक तार मिला तो मुझे लगा, मेरे लिए स्वर्ग से खास संदेश आ गया है। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं लंदन आ कर कर्टेन रेजर में विलियम गिलेट महोदय के साथ बिली की भूमिका अदा करना चाहूँगा?

मैं पेसोपेश के मारे कांपने लगा। मेरी चिंता ये थी कि क्या मेरी कम्पनी वाले इतने कम समय के नोटिस पर प्रदेशों में मेरी जगह कोई दूसरा बिली खोज लेंगे। मैं कई दिन तक उहापोह वाले रहस्य में डूबता-इतराता रहा। अलबत्ता, उन्हें दूसरा बिली मिल गया।

लंदन में वापिस लौट कर वेस्ट एंड में नाटक करने के अनुभव को मैं सिर्फ अपने पुनर्जागरण के रूप में ही बयान कर सकता हूँ। मेरा दिमाग प्रत्येक घटना के रोमांच के साथ चकर-घिन्नी सा घूम रहा था। शाम के वक्त ड्यूक के यॉर्क थियेटर में पहुँचना और स्टेज मैनेजर मिस्टर पोस्टेंट से मिलना, जो मुझे मिस्टर गिलेट के ड्रेसिंग रूप में लिवा ले गये, और जब मेरा उनसे परिचय करवा दिया गया तो उनका मुझसे पूछा,"...क्या तुम मेरे साथ शरलॉक होम्स में काम करना चाहोगे?"

और मेरा उत्साह के मारे नर्वस हो जाना, ..."ओह ज़रूर, मिस्टर गिलेट, ज़रूर ज़रूर...।" और अगली सुबह रिहर्सल के लिए स्टेज पर इंतज़ार करना और पहली बार मारियो डोरो को देखना। वे निहायत खूबसूरत सफेद रंग की गर्मी की पोशाक पहने हुए थीं। सुबह के वक्त इतनी खूबसूरत किसी महिला को देख लेने का अचानक झटका! वे दो पहिये की एक बग्घी में आयी थीं और उन्होंने पाया कि उनकी पोशाक पर कहीं स्याही का एक धब्बा लग गया है। वे नाटक की प्रापर्टी वाले से पूछना चाह रही थीं कि कहीं कुछ होगा इस दाग से छुटकारा पाने के लिए तो जब उस आदमी ने इस बारे में शक जाहिर किया तो उनके चेहरे पर खीझ के इतने शानदार भाव आये,"ओह, लेकिन क्या ये इतना वाहियात नहीं है?"

वे बला की सुंदर थीं। मैं उनसे खफ़ा हो गया। में उनके नाज़ुक, कलियों से खिलते हेंठों से नाराज़ हो गया, उनके एक जैसे सफेद दांतों से नाराज़ हो गया, उनकी मदमस्त ठुड्डी ने मुझे खफ़ा कर दिया, उनके लहराते बाल, और उनकी गहरी भूरी आँखों ने मुझे नाराज़ कर दिया। मैं उनके नाराज़ होने की अदा पर नाराज़ हुआ और उस आकर्षण पर खफ़ा हुआ जो उन्होंने इस बात को पूछते समय दिखाया था। इस पूछताछ के दौरान मैं उनके और प्रापर्टी वाले के बस एकदम पास ही खड़ा हुआ था, पर वे मेरी उपस्थिति से पूरी तरह अनजान थीं। हालांकि मैं उनके पास ही, उनकी खूबसूरती से ठगा और मंत्र बिद्ध सा खड़ा था। मैं हाल ही में सोलह बरस का हुआ था और इस अचानक चकाचौंध के सानिध्य ने मेरा यह पक्का इरादा सामने ला दिया कि मैं इससे अभिभूत नहीं होऊँगा। लेकिन हे भगवान! वे इतनी खूबसूरत थीं। ये पहली ही नज़र में प्यार था।

द' पेनफुल प्रेडिक्टामेंट ऑफ शरलॉक होम्स' में आइरीन वानब्रुग नाम की एक बहुत ही उत्कृष्ट अभिनेत्री ने पगली की भूमिका की थी और नाटक में बोलने का सारा काम वही करती थीं जबकि होम्स चुपचाप बैठे रहते और सुनते। ये समीक्षकों पर करारा तमाचा था। मेरी हिस्से में शुरुआती लाइनें थी, मैं होम्स के अपार्टमेंट मे जा घुसता हूँ और दरवाजा थामता हूँ जबकि बाहर से पगली दरवाजा लगातार पीट रही है और जब मैं उत्साह में भर कर होम्स को ये समझाना चाहता हूँ कि क्या हो रहा है, पगली धड़धड़ाती हुई अंदर आती है। लगातार बीस मिनट तक वह किसी ऐसे मामले के बारे में आँय बाँय बकती रहती है जिसके बारे में वह चाहती है कि होम्स हाथ में ले लें। चोरी छुपे होम्स एक पर्ची लिखते है और घंटी बजाते हैं और वह पर्ची मुझे थमा देते हैं। बाद में दो हट्टे कट्टे आदमी आ कर उस पगली को लिवा ले जाते हैं। मैं तथा होम्स अकेले रह जाते हैं। मैं कहता हूँ,"... आप ठीक कहते हैं सर, यह सही पागल खाना था।"

समीक्षकों को लतीफा अच्छा लगा लेकिन क्लारीसा नाटक जो गिलेट ने मैरी डोरो के लिए लिखा था, फ्लॉप गया। हालांकि उन्होंने मैरी की खूबसूरती के गुणगान किये थे लेकिन उन्होंने लिखा कि यही काफी नहीं मदोन्मत्त नाटक को बांधे रखने के लिए। इसलिए गिलेट ने उस सीजन का बाकी वक्त शरलॉक होम्स को फिर से नये सिरे से पेश करके गुज़ारा। मुझे इस नाटक में फिर से बिली की भूमिका के लिए रख लिया गया।

विख्यात विलियम्स गिलेट के साथ काम करने के अति उत्साह में मैं अपने काम की शर्तों वगैरह के बारे में बात करना ही भूल गया। सप्ताह खत्म होने पर मिस्टर पोस्टेंट मेरे पास आये और मुझे वेतन का लिफाफा देते हुए शर्मिंदा होते हुए कहने लगे,"...मैं तुम्हें ये राशि देते हुए वाकई शर्मिंदा हूँ लेकिन फ्रॉहमैन के दफ्तर में मुझे यही बताया गया था कि मुझे तुम्हें उतनी ही राशि देनी है जितनी पहले तुम हमसे लेते रहे थे।...दो पाउंड और दस शिलिंग।" मुझे ये राशि पा कर सुखद आश्चर्य हुआ।

होम्स की रिहर्सलों के दौरान, मैं मेरी डोरो से फिर मिला...वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही थीं। मेरे इस संकल्प के बावजूद कि मैं उनकी खूबसूरती के जाल में नही फँसूंगा, मैं उनके मौन प्यार के निराशाजनक सागर में और गहरे धंसता चला गया। मैं इस कमज़ोरी से नफ़रत करता था और अपने चरित्र की कमज़ोरी के कारण खुद से खफ़ा था। ये एक तरफा प्यार का मामला था। मैं उनसे प्यार भी करता था और नफ़रत भी करता था। इतना ही नहीं, वह बला की खूबसूरत और भव्य थी।

होम्स में वे एलिस फॉकनर की भूमिका निभाती थीं। लेकिन नाटक के दौरान हम कभी भी नहीं मिले। अलबत्ता, मैं सीढ़ियों पर उनका इंतज़ार करता और वे जब गुज़र कर जातीं तो गुड मार्निंग कह दिया करता। वे जवाब में खुश होकर गुड मार्निंग कहतीं और यही था जो हम दोनों के बीच हो पाया।

होम्स ने हाथों-हाथ सफलता के झंडे गाड़ दिये। नाटक जब चल रहा था तो रानी एलेक्जेंड्रा भी देखने आयीं। उनके साथ रॉयल बॉक्स में ग्रीस के राजा और प्रिंस क्रिश्चियन भी बैठे थे। प्रिंस महोदय राजा जी को जबरदस्ती नाटक समझाये जा रहे थे और ऐसे अत्यंत तनाव भरे और अशांत पलों में जब होम्स और मैं स्टेज पर अकेले होते हैं, पूरे थियेटर में गूँजती-सी एक आवाज़ सुनाई दी,"...मुझे मत बताओ, मुझे मत बताओ।"

डिऑन बाउसीकाल्ट का दफ्तर भी ड्यूक ऑफ यॉर्क थियेटर में ही था और आते-जाते वे मेरे सिर पर प्यार भरी चपत लगा दिया करते। हाल केन भी ऐसा ही करते। वे अक्सर गिलेट से मिलने बैक स्टेज में आ जाया करते। एक मौके पर तो मुझे लॉर्ड किचनर से मुस्कुराहट का भी सम्मान मिला।

जब शरलॉक होम्स चल रहा था, उन्हीं दिनों सर हेनरी इर्विंग का देहांत हो गया और मुझे वेस्टमिन्स्टर ऐब्बी में उनके अंतिम संस्कार में जाने का मौका मिला। मैं चूँकि वेस्ट एंड का एक्टर था इसलिए मुझे विशेष पास मिला और मैं इस बात से बेहद खुश हुआ। अंतिम संस्कार के वक्त मैं शांत लेविस वालर और डॉ. वाल्फोर्ड बोडी के बीच बैठा। लेविस उन दिनों लंदन के रोमांटिक अभिनेताओं के बेताज़ बादशाह थे और डॉक्टर बोडी की ख्याति रक्तरहित सर्जरी के कारण थी। उन पर मैंने बाद में एक रंगारंग कार्यक्रम में उनके पात्र का स्वांग किया था। वालर मौके की नज़ाकत के अनुरूप खूबसूरत तरीके से कपड़े पहने हुए थे और गर्दन अकड़ाये, सीधे बैठे वे न दायें देख रहे थे और न बायें। लेकिन डॉक्टर बोडी, बस इस कोशिश में कि वे हेनरी के ताबूत को नीचे अब उतारे जाते समय बेहतर तरीके से देख पायें, ड्यूक की छाती से उचक उचक कर देखते रहे। जबकि वालर साहब को अच्छी खासी कोफ्त हो रही थी। मैंने कुछ भी देखने की कोशिश ही छोड़ दी और मेरे आगे जो लोग बैठे हुए थे, सिर्फ उन्हीं की पीठ की तरफ देखता रहा।

शारलॉक होम्स के बंद होने से दो सप्ताह पहले मिस्टर बाउसीकॉल्ट ने विख्यात मिस्टर और मिसेज कैंडल के नाम मुझे इस बात की संभावना के साथ एक परिचय पत्र दिया कि शायद मुझे उनके नये नाटक में कोई भूमिका मिल जाये। वे सेंट जेम्स थियेटर में अपने सफल नाटक के शो खत्म कर रहे थे। मिलने के लिए सवेरे दस बजे का समय तय हुआ। मैडम कैंडल मुझे फोयर में मिलने वाली थीं। वे बीस मिनट देरी से आयीं। आखिरकार, गली में एक आकृति उभरी। ये मिसेज कैंडल थीं। लम्बी तगड़ी, अभिमानी मोहतरमा। उन्होंने यह कहते हुए मेरा अभिवादन किया,"ओह, तो तुम हो, छोकरे से!! हम जल्द ही प्रदेशों की तरफ एक नया नाटक ले कर जा रहे हैं। मैं चाहूंगी कि तुम हमें अपनी भूमिका पढ़ कर सुनाओ। लेकिन फिलहाल तो हम बहुत ही व्यस्त हैं। इसलिए तुम कल सुबह इसी वक्त यहां आ रहे हो!!"

"माफ करना मैडम," मैंने ठंडेपन के साथ जवाब दिया, "लेकिन मैं शहर से बाहर कोई भी काम स्वीकार नहीं कर सकता।" इसके साथ ही मैंने अपना हैट ऊपर किया, फोयर से बाहर आया, वहां से गुज़रती एक टैक्सी रुकवायी और - मैं दस महीने तक बेकार रहा था।

जिस रात ड्यूक ऑफ यार्क थियेटर में शारलॉक होम्स का अंतिम शो हुआ, और मैरी डोरो को अमेरिका वापिस लौटना था, मैं अकेला ही बाहर निकल गया और शराब पी कर बुरी तरह से धुत्त हो गया। दो या तीन बरस बाद फिलेडाल्फिया में मैंने उन्हें दोबारा देखा। उन्होंने उस नये थियेटर का समर्पण किया था जिसमें मैं कार्नो कॉमेडी कम्पनी में अभिनय कर रहा था। वे अभी भी पहले की ही तरह खूबसूरत थीं। मैं विंग्स में अपना कॉमेडी का मेक अप किये हुए उन्हें देखता रहा था। वे भाषण दे रही थीं। मैं इतना अधिक शरमा रहा था कि आगे बढ़ कर उन्हें अपने बारे में बता ही नहीं पाया था।

लंदन में होम्स के समापन पर प्रदेशों में काम करने वाली कम्पनी के नाटक भी समाप्त हो चले थे और इस तरह से सिडनी और मैं, दोनों ही बिना काम के थे। सिडनी ने अलबत्ता, नया काम तलाशने में कोई वक्त नहीं गंवाया। नाटकों से संबंधित एक अखबार ऐरा में एक विज्ञापन देख कर वह सड़क छाप कॉमेडी करने वाली चार्ली मैनान की कम्पनी में शामिल हो गया। उन दिनों इस तरह की बहुत सारी कम्पनियां हुआ करती थीं जो हॉलों के चक्कर लगाती फिरती थीं। चार्ली बाल्डविन की बैंक क्लर्कस, जो बोगानी की लुनैटिक बेकर्स और बोइसेटे ट्रुप, ये सब के सब मूक अभिनय करते थे। हालांकि ये लोग प्रहसन कॉमेडी करते थे, उनमें साथ साथ बजाया जाने वाला संगीत होता था और ये बहुत लोकप्रिय हुआ करते थे। सबसे उत्कृष्ट कम्पनी कार्नो साहब की थी जिनके पास कॉमेडियों का खजाना था। इन सबको बर्ड्स कहा जाता था। ये होते थे, जेल बर्ड, अर्ली बर्ड्स, ममिंग बर्ड्स। इन तीन स्केचों से कार्नो साहब ने तीस से भी ज्यादा कम्पनियों का थियेटर का ताम झाम खड़ा कर लिया था। इनमें क्रिसमस पेंटोमाइम और खूब ताम झाम वाले संगीत कार्यक्रम होते। कार्नो साहब के इन्हीं नाटकों की देन थी कि वहां से फ्रेड किचन, जॉर्ज ग्रेव्स, हैरी वैल्डन, बिल रीव्ज़, चार्ली बैल और दूसरे कई महान कलाकार और कॉमेडियन सामने आये।

ये उसी वक्त की बात है जब सिडनी मेनान ट्रुप के साथ काम कर रहा था और उसे फ्रेड कार्नो ने देखा और चार पाउंड प्रति सप्ताह के वेतन पर रख लिया। चूंकि मैं सिडनी से चार बरस छोटा था, इसलिए मैं किसी भी थियेटर के काम के लिए न तो बड़ों में गिना जाता और न ही छोटों में ही, लेकिन मैंने अपने लंदन के दिनों में किये गये काम से कुछ पैसे बचा कर रखे थे, और जिस वक्त सिडनी प्रदेशों में काम करता घूम रहा था, मैं लंदन में ही रहा और पूल के खेल खेलता रहा।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 6

मैं किशोरावस्था की मुश्किल और अनाकर्षक उम्र के दौर में आ पहुंचा था और उस उम्र के संवेदनशील उतार-चढ़ावों से जूझ रहा था। मैं बुद्धूपने और अतिनाटकीयता का पुजारी था, स्वप्नजीवी भी और उदास भी। मैं ज़िंदगी से खफ़ा भी रहता था और उसे प्यार भी करता था। मेरा दिमाग अविकसित कोष की तरह था फिर भी उसमें अचानक परिपक्वता के सोते से फूट रहे थे। चेहरे बिगाड़ते दर्पणों की इस भूल भुलइयां में मैं इधर उधर डोलता और मेरी महत्त्वाकांक्षाएं रह-रह कर फूट पड़ती थीं। कला शब्द कभी भी मेरे भेजे में या मेरी शब्द सम्पदा में नहीं घुसा। थियेटर मेरे लिए रोज़ी-रोटी का साधन था, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

इस चक्कर और भ्रम के आलम में मैं अकेला ही रहता आया। इस अवधि के दौरान मेरी ज़िंदगी में रंडियों, बेशर्म औरतों और बीच-बीच में एकाध बार शराबखोरी के मौके आते और जाते रहे। लेकिन सुरा, सुंदरी और न ही गाना बजाना देर तक मेरे भीतर दिलचस्पी जगाये रख पाये। मैं सचमुच रोमांस और रोमांच चाहता था।

मैं एडवर्डकालीन कपड़ों में गदबदे बच्चे, टेडी बॉय के मनोवैज्ञानिक नज़रिये को अच्छी तरह से समझ सकता हूं। हम सब की तरह वह भी ध्यान चाहता है, अपनी ज़िंदगी में रोमांस और ड्रामा चाहता है। तब क्यों न प्रदर्शन की भावना के पल और खरमस्ती की कामना उसके मन में आये जिस तरह से पब्लिक स्कूल का लड़का अपनी आवारगर्दी और उदंडता के साथ इस कामना का प्रदर्शन करता है। क्या यह प्राकृतिक और स्वाभाविक नहीं है कि जब वह अपने वर्ग और तथाकथित बेहतर वर्गों को अपनी अकड़फूं दिखाते हुए देखता है तो उसके मन में भी यही कुछ करने की ललक जागती है।

वह जानता है कि मशीन उसके मन की बात मानती है और किसी भी वर्ग की बात मानती है। कि उसके गियर बदलने या बटन दबाने के लिए किसी खास मानसिकता की ज़रूरत नहीं पड़ती। अपनी असंवेदनशील उम्र में वह किसी नवाब, अभिजात्य या विद्वान की तरह भयावह नहीं है। उसकी उंगली किसी नेपोलियन सेना की तरह इतनी ताकतवर नहीं है कि किसी शहर को नेस्तनाबूद कर डाले। क्या टेडी बॉय अपराधी शासक वर्ग की राख में से जन्म लेता फिनिक्स नहीं है! उसका व्यवहार शायद अचेतन की इस भावना से प्रेरित है कि आदमी सिर्फ अर्ध पालतू जानवर होता है जो पीढ़ी दर पीढ़ी दूसरों पर धोखेबाजी, क्रूरता और हिंसा के जरिये ही राज करता रहा है। लेकिन जैसा कि बर्नार्ड शॉ ने कहा है,"मैं आदमी को वैसे ही भटकाता हूं जिस तरह से तकलीफें हमेशा भटकाती हैं।"

और आखिर मुझे एक रंगारंग व्यक्तिचित्र, केसै'ज सर्कस में काम मिल ही गया। मुझे डिक टर्पिन, हाइवे मैन और ड़ॉ वैल्फोर्ड बोडी पर प्रहसन करना था। मुझे सफलता का पूरा इलहाम था क्योंकि ये सिर्फ निचले दर्जे की कॉमेडी के अलावा भी बहुत कुछ था। ये एक प्रोफेसरनुमा, विद्वान,व्यक्ति का चरित्र-चित्रण था और मैंने खुशी-खुशी मन ही मन तय किया कि मैं उन्हें जस का तस पेश करूंगा। मैं कम्पनी में सबकी आंखों का तारा था। हफ्ते में तीन पाउंड कमाता था। इसमें बच्चों का एक ट्रुप शामिल था जो एक सड़क दृश्य में बड़ों की नकल उतारता था। मुझे लगा, ये बहुत ही वाहियात किस्म का शो था लेकिन इसने मुझे एक कॉमेडियन के रूप में खुद को विकसित करने को मौका दिया। जब कैसी'ज सर्कस ने लंदन में प्रदर्शन किये तो हम छ: लोग मिसेज फील्डस् के साथ केनिंगटन रोड पर रहे। वे पैंसठ बरस की एक बूढ़ी विधवा महिला थीं जिनकी तीन बेटियां थीं। फ्रेडेरिका, थेल्मा, और फोबे। फ्रेडेरिका की एक रूसी केबिनेट मेकर के साथ शादी हो रखी थी जो वैसे तो शरीफ आदमी था लेकिन निहायत ही बदसूरत था। उसका चौड़ा-सा तातार चेहरा था, लाल बाल थे, लाल ही मूंछें और आंख में उसकी भेंगापन था। हम छ: के छ: जन रसोई में खाना खाया करते। हम परिवार को बहुत अच्छी तरह से जानने लग गये थे। सिडनी जब भी लंदन में काम कर रहा होता, वहीं ठहरता।

जब मैंने अंतत: कैसी'ज़ सर्कस छोड़ा तो मैं केनिंगटन रोड लौटा और फील्ड्स परिवार के पास ही रहता रहा। बूढ़ी महिला भली, धैर्यवान और मेहनतकश थीं और उनकी कमाई का ज़रिया कमरों से आने वाला किराया ही था। फ्रेडेरिका, यानी शादीशुदा लड़की का खर्चा पानी उसका पति देता था। थेल्मा और फोबे घर के काम-काज में हाथ बंटातीं। फोबे की उम्र पंद्रह बरस की थी और वह खूबसूरत थी। उसकी कद काठी लम्बोतरी और चिड़ियानुमा टेढ़ी थी और वह शारीरिक तथा भावनात्मक रूप से मुझ पर बुरी तरह से आसक्त थी। मैं दूसरी वाली के प्रति अपनी भावनाओं को रोकता क्योंकि मैं अभी सत्रह बरस का भी नहीं हुआ था और लड़कियों के मामले में मेरी नीयत डांवाडोल ही रहती थी। लेकिन वह तो साधवी प्रकृति की थी और हमारे बीच कुछ भी हुआ नहीं। अलबत्ता, वह मेरी दीवानी होती चली गयी और बाद में चल कर हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गये।

फील्ड्स परिवार बहुत ही अधिक संवेदनशील था और कई बार आपस में वे लोग एक-दूसरे से प्यार भरी झड़पों में उलझ जाते। इस तू तू मैं मैं का कारण अक्सर यही होता कि घर का काम करने की बारी किसकी है। थेल्मा, जो लगभग बीस बरस की थी, घर की मालकिन होने का दंभ भरती थी। वह आलसी थी और वह हमेशा यही दावा करती कि काम करने की बारी फ्रेडेरिका या फोबे की है। यह मामूली-सी बात तू तू मैं मैं से बढ़ कर हाथापाई तक जा पहुंचती। तब गड़े मुरदे उखाड़े जाते और पूरे परिवार की बखिया ही उधेड़ी जाती। और उस पर तुर्रा ये कि ये सबकी आंखों के सामने ही होता। मिसेज फील्डस् तब रहस्योद्घाटन करतीं कि चूंकि थेल्मा घर से भाग चुकी है और लीवरपूल में एक युवा वकील के साथ रह चुकी है अत: वह अपने आपको यही मान कर चलती है कि वही घर की सर्वेसर्वा होनी चाहिये और ये बात उसकी हैसियत से नीचे की है कि वह घर का कामकाज करे। मिसेज फील्डस् तब अपना आखिरी हथियार छोड़ती हुई कहतीं,"ठीक है, अगर तुम अपने आपको इस तरह की औरत मानती हो तो यहां से दफ़ा हो जाओ और जा के रहो अपने उसी लीवरपूल वाले वकील के पास, बस देख लेना अगर वो तुम्हें अपने घर में घुसने दे तो।" और दृश्य को अंतिम परिणति पर पहुंचाने के लिए मिसेज फील्डस् चाय की केतली उठा कर जमीन पर दे मारतीं। इस दौरान थेल्मा मेज पर महारानी की तरह बैठी रहती और ज़रा भी विचलित न होती। तब वह आराम से उठती, एक कप उठाती और, और उसे हौले से यह कहते हुए ठीक वैसे ही ज़मीन पर टपका देती,"मुझे भी ताव आ सकता है।" इसके बाद वह एक और कप उठा कर जमीन पर गिराती, एक और कप, फिर एक और कप .. .। वह तब तक कप गिरा-गिरा कर त़ेडती रहती जब तक सारा फर्श क्रॉकरी की किरचों से भर न जाता,"मैं भी सीन क्रिएट कर सकती हूं।" इस पूरे नज़ारे के दौरान मां और उसकी बहनें असहाय-सी बैठी देखती रहतीं,"जरा देखो तो, देखो तो ज़रा, क्या कर डाला है इसने?" मां घिघियाती।

"ये देख, ये देख, यहां कुछ और भी है जो तू तोड़ सकती है," और वे थेल्मा के हाथ में चीनी दानी थमा देतीं। और थेल्मा आराम से चीनी दानी पकड़ लेती और उसे भी जमीन पर गिरा देती।

ऐसे मौकों पर फोबे की बीच-बचाव कराने वाली की भूमिका होती। वह निष्पक्ष थी, ईमानदार थी और पूरा परिवार उसकी इज़्ज़त करता था। और अक्सर यही होता कि झगड़ा टंटा निपटाने के लिए वह खुद ही काम करने के लिए तैयार हो जाती। थेल्मा उसे ऐसा न करने देती।

मुझे लगभग तीन महीने होने को आये थे कि मेरे पास कोई काम नहीं था और सिडनी ही मेरा खर्चा-पानी जुटा रहा था। वही मेरे रहने-खाने के लिए मिसेज फील्डस् को हर हफ्ते के चौदह शिलिंग दे रहा था। वह अब फ्रेड कार्नो की कम्पनी के साथ मुख्य हास्य कलाकार की भूमिका निभा रहा था और अक्सर फ्रेड के साथ अपने हुनरमंद छोटे भाई की बात छेड़ देता। लेकिन कार्नो उसकी बातों पर कान ही नहीं धरते थे। उनका मानना था कि मैं बहुत छोटा हूं।

उस समय लंदन में यहूदी कामेडियनों की धूम थी। इसलिए मैंने सोचा कि मैं भी मूंछें लगा कर अपनी कम उम्र छुपा लूंगा। सिडनी ने मुझे दो पांउड दिये जिनसे मैं गाने-बजाने का साजो-सामान खरीद लाया और लतीफों की एक अमरीकी किताब मैडिसन बजट में से ढेर-सारे मज़ाकिया संवाद मार लिये। मैं हफ्तों तक प्रैक्टिस करता रहा। फील्डस् परिवार के सामने प्रदर्शन करता रहा। वे ध्यान से मेरा काम देखते और मेरा उत्साह भी बढ़ाते लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं।

मैंने फोरेस्टर म्युजिक हॉल में बिना एक भी धेला दिये एक ट्रायल हफ्ते का जुगाड़ कर लिया था। ये एक छोटा-सा थियेटर था जो यहूदी चौक पर बीचों-बीच माइल एंड रोड से पीछे की तरफ बना हुआ था। मैं वहां पहले भी कैसी'ज सर्कस के साथ अभिनय कर चुका था और मैनेजमेंट ने यह सोचा कि मैं इस लायक तो होऊंगा ही सही कि मुझे एक मौका दिया जाये। मेरी भावी उम्मीदें और मेरे सपने इसी ट्रायल पर टिके हुए थे। फोरेस्टरके यहां प्रदर्शन करने के बाद मैं इंगलैंड के सभी प्रमुख सर्किटों में प्रदर्शन करता। कौन जानता है, हो सकता है मैं एक बरस के भीतर ही रंगारंग कार्यक्रमों के शो का सबसे बड़ा और अखबारों की हैड लाइनों पर छा जाने वाला कलाकार बन जाऊं। मैंने पूरे फील्डस् परिवार के साथ वादा किया था कि मैं उन्हें हफ्ते के आखिरी दिनों के टिकट दिलवा दूंगा। तब तक मैं अपनी भूमिका के साथ भी अच्छी तरह से न्याय कर पाऊंगा।

"मेरा ख्याल है कि आप अपनी सफलता के बाद हम लोगों के साथ नहीं रहना चाहेंगे?" फोबे ने पूछा था।

"बेशक, मैं यहीं रहता रहूंगा।"

सोमवार की सुबह बारह बजे बैंड रिहर्सल और संवाद अदायगी आदि की रिहर्सल थी जिसे मैंने व्यावसायिक तरीके से निपटाया। लेकिन मैंने अब तक अपने मेक अप की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया था। रात के शो से पहले मैं घंटों तक ड्रेसिंग रूम में बैठा माथा-पच्ची करता रहा,नये-नये प्रयोग करता रहा, लेकिन मैं भले ही कितने भी लंबे रेशमी बाल क्यों न लगाऊं, मैं अपनी जवानी छुपा नहीं पा रहा था। हालांकि इस बारे में मैं भोला था लेकिन मेरी कॉमेडी बहुत अधिक यहूदी विरोधी थी और मेरे लतीफे पिटे-पिटाये थे और वाहियात थे। बल्कि मेरे यहूदी उच्चारण की तरह घटिया भी थे। और उस पर तुर्रा यह कि मैं बिल्कुल भी मज़ाकिया नहीं लग रहा था।

पहले दो एक लतीफ़ों पर ही जनता ने सिक्के और संतरे के छिलके फेंकने और जमीन पर धमाधम पैर पटकने शुरू कर दिये। पहले तो मैं समझ ही नहीं पाया कि आखिर ये हो क्या रहा है! तभी इस सब का आतंक मेरे सिर पर चढ़ गया। मैंने फटाफट रेल की गति से बोलना शुरू कर दिया। हुल्लड़बाजी और संतरों तथा सिक्कों की बरसात बढ़ती जा रही थी। जब मैं स्टेज से नीचे उतरा, तो मैं मैनेजमेंट का फैसला सुनने के लिए भी नहीं रुका, मैं सीधे ही ड्रेसिंग रूम में गया, अपना मेक-अप उतारा, थियेटर से बाहर निकला और फिर कभी वहां वापिस नहीं गया। यहां तक कि मैं वहां अपनी संगीत की किताबें उठाने भी नहीं गया।

रात को बहुत देर हो चुकी थी जब मैं वापिस केनिंगटन रोड पहुंचा। फील्डस् परिवार सोने जा चुका था और मैं इसके लिए उनका अहसानमंद ही था कि वे सो चुके थे। सुबह नाश्ते के वक्त मिसेज फील्डस् इस बारे में जानने को चिंतित थीं कि शो कैसा रहा। मैंने उदासीनता दिखायी और कहा,"वैसे तो ठीक रहा लेकिन उसमें कुछ हेर-फेर करने की ज़रूरत पड़ेगी।" उन्होंने बताया कि फोबे नाटक देखने गयी थी लेकिन उसने वापिस आ कर कुछ बताया नहीं क्योंकि वह बहुत थकी हुई थी और सीधे ही सोने चली गयी थी। जब मैंने बाद में फोबे को देखा तो उसने इसका कोई ज़िक्र नहीं किया। मैंने भी कोई ज़िक्र नहीं किया और न ही मिसेज फील्डस् ने या किसी और ने कभी भी इसका कोई ज़िक्र ही किया और न ही इस बात पर हैरानी ही व्यक्त की कि मैं उसे सप्ताह तक जारी क्यों नहीं रख रहा हूं।

भगवान का शुक्र है कि उन दिनों सिडनी दूसरे प्रदेशों की तरफ गया हुआ था और मैं उसे बताने की इस ज़हमत से बच गया कि आखिर हुआ क्या था। लेकिन ज़रूर उसने अंदाजा लगा लिया होगा या हो सकता है फील्डस् परिवार ने उसे बता दिया हो क्योंकि उसने मुझसे कभी भी इस बारे में कोई पूछताछ नहीं की। मैंने उस रात के दु:स्वप्न को अपनी स्मृति से धो-पोंछ देने की पूरी कोशिश की लेकिन उसने मेरे आत्म-विश्वास पर एक न मिटने वाला धब्बा छोड़ दिया था। उस भुतैले अनुभव ने मुझे यह पाठ पढ़ाया कि मैं खुद को सच्ची रौशनी में देखूं।

मैंने महसूस कर लिया था कि मैं रंगारंग हास्य कलाकार नहीं हूं। मेरे भीतर वह आत्मीय, नज़दीक आने की कला नहीं थी जो आपको दर्शकों के निकट ले जाती है। और मैंने अपने आपको यही तसल्ली दे ली कि मैं चरित्र प्रधान हास्य कलाकार हूं। अलबत्ता, व्यावसायिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने से पहले मुझे दो एक और निराशाओं का सामना करना पड़ा।

सत्रह बरस की उम्र में मैंने द' मेरी मेजर नाम के एक नाटक में किशोर युवक के रूप में मुख्य पात्र का अभिनय किया। ये एक सस्ता,हतोत्साहित करने वाला नाटक था जो सिर्फ एक हफ्ते चला। मुख्य नायिका, जो मेरी बीवी बनी थी, पचास बरस की औरत थी। हर रात जब वह मंच पर आती तो उसके मुंह से जिन की बू आ रही होती, और मुझे उसके पति की भूमिका में, उत्साह से लबरेज हो कर उसे अपनी बाहों में लेना पड़ता,उसे चूमना पड़ता। इस अनुभव ने मेरा इस बात से मन ही खट्टा कर दिया कि मैं कभी मुख्य कलाकार बनूं।

इसके बाद मैंने लेखन पर हाथ आजमाये। मैंने एक कॉमेडी स्कैच लिखा जिसका नाम था ट्वैल्व जस्ट मैन।ये एक हल्के फुल्के प्रहसन वाला मामला था कि किस तरह जूरी वचन भंग के एक मामले में बहस करती है। जूरी के सदस्यों में से एक गूंगा- बहरा था, एक शराबी था और एक अन्य नीम-हकीम था। मैंने ये आइडिया चारकोट को बेच दिया। ये रंगारंग मंच का एक हिप्नोटिस्ट था जो किसी हँसोड़ आदमी को हिप्नोटाइज़ करता और उसे आंखों पर पट्टी बांध कर शहर की गलियों में गाड़ी चलाने के लिए प्रेरित करता जबकि वह खुद पीछे बैठ कर उस पर चुम्बकीय प्रभाव छोड़ता रहता। उसने मुझे पांडुलिपि के लिए तीन पाउंड दिये लेकिन ये शर्त भी जोड़ दी कि मैं ही उसका निर्देशन भी करूंगा। हमने अभिनेताओं आदि का चयन किया और केनिंगटन रोड परहॉर्नस् पब्लिक हाउस क्लब रूम में रिहर्सल शुरू कर दी। एक खार खाये एक्टर ने कह दिया कि ये स्कैच न केवल अनपढ़ों वाला है बल्कि मूर्खतापूर्ण भी है।

तीसरे दिन जब रिहर्सल चल रही थी, मुझे चारकोट से एक नोट मिला कि उसने इस स्कैच का निर्माण न करने का फैसला कर लिया है।

अब मैं चूंकि जांबाज टाइप का नहीं था, मैंने नोट अपनी जेब के हवाले किया और रिहर्सल जारी रखी। मुझमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि उन्हें रिहर्सल करने से रोक सकूं। इसके बजाये, मैं लंच के समय सबको अपने कमरे पर लिवा लाया और उनसे कहा कि मेरा भाई उनसे बात करना चाहता है। मैं सिडनी को बेडरूम में ले गया और उसे नोट दिखाया। नोट पढ़ने के बाद सिडनी ने कहा,"ठीक है। तुमने उन्हें इस बारे में बता दिया है ना!"

"नहीं," मैं फुसफुसाया।

"तो जा कर बता दो।"

"मैं नहीं बता सकता। बिलकुल भी नहीं। वे लोग तीन दिन तक फालतू फंड में रिहर्सल करते रहे हैं।"

"लेकिन इसमे तुम्हारा क्या दोष?" सिडनी ने कहा।

"जाओ और उन्हें बता दो," वह चिल्लाया।

मैं हिम्मत हार बैठा और रोने लगा,"क्या कहूं मैं उनसे?"

"मूरख मत बनो," वह उठा और साथ वाले कमरे में आया और उन सबको चारकोट का नोट दिखाया और समझाया कि क्या हो गया है। तब वह सबको नुक्कड़ के पब तक ले गया और सबको सैंडविच और एक-एक ड्रिंक दिलवाये।

अभिनेता एकदम मौजी आदमी होते हैं। कब क्या कर बैठें, कहा नहीं जा सकता। वह आदमी जो इतना ज्यादा भुनभुना रहा था, एकदम दार्शनिक हो गया और जब उसे सिडनी ने बताया कि मैं किस बुरी हालत में था तो वह हँसा और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोला,"इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है पुत्तर, ये सब तो उस हरामी चारकोट का किया धरा है।"

फोरेस्टर्स में अपनी असफलता के बाद मैंने जिस काम में भी हाथ डाला, उसी में मैं धराशायी हुआ और मुझे एक बार फिर असफलता का मुंह देखना पड़ा। अलबत्ता, आशावादी बने रहना जवानी का सबसे बड़ा गुण होता है, क्योंकि इसी जवानी में आदमी स्वभावत: यह मान कर चलता है कि प्रतिकूल परिस्थितियां भी अल्पकालिक ही होती हैं और बदकिस्मती का लगातार दौर भी सही होने के सीधे और संकरे रास्ते की तरह संदिग्ध होता है। दोनों ही निश्चित ही समय के साथ-साथ बदलते हैं। मेरी किस्मत ने पलटा खाया। एक दिन सिडनी ने बताया कि मिस्टर कार्नो मुझे मिलना चाहते हैं। ऐसा लगा कि वे अपने किसी कामेडियन से नाखुश थे जो फुटबाल नाटक में मिस्टर हैरी वेल्डन के साथ भूमिका कर रहा था। ये स्कैच कार्नो साहब का अत्यंत सफल नाटक था। वेल्डन अत्यंत लोकप्रिय हास्य कलाकार थे जो तीसरे दशक में अपनी मृत्यु तक उसी तरह से लोकप्रिय बने रहे।

मिस्टर कार्नो थोड़े मोटे, तांबई रंग के आदमी थे। उनकी आंखों में चमक थी और जिनमें हमेशा नापने जोखने के भाव होते। उन्होंने कभी अपना कैरियर आड़े डंडों पर काम करने वाले एक्रोबैट के रूप में शुरू किया था और इसके बाद उन्होंने अपने साथ तीन धमाकेदार कामेडियनों की चौकड़ी बनायी। ये चौकड़ी मूकाभिनय स्केचों का केन्द्र थी। वे खुद बहुत ही उत्कृष्ट हास्य अभिनेता थे और उन्होंने कई कॉमेडी भूमिकाओं की शुरुआत की थी। वे उस वक्त तक भी हास्य भूमिकाएं करते रहे जब उनकी दूसरी पांच-पांच कम्पनियां एक साथ चल रही थीं।

उनके मूल सदस्यों में से एक उनकी सेवा निवृत्ति का मज़ेदार किस्सा यूं बताया करता था: एक रात मानचेस्टर में प्रदर्शन के बाद, मंडली ने शिकायत की कि कार्नो की टाइमिंग गड़बड़ायी थी और उन्होंने सारे लतीफों के मज़े पर पानी फेर दिया। कार्नो, जिन्होंने तब तक अपने पांच प्रदर्शनों से 50,000 पाउंड जुटा लिये थे, कहा,"ठीक है मेरे दोस्तो, अगर आप लोगों को ऐसा लगता है तो यही सही। मैं छोड़ देता हूं।" और तब अपनी विग उतारते हुए उन्होंने उसे ड्रेसिंग टेबल पर पटका और हँसते हुए बोले,"इसे आप लोग मेरा इस्तीफा समझ लो।"

मिस्टर कार्नो का घर कोल्ड हारबर लेन, कैम्बरवैल में था और इससे सटा हुआ एक गोदाम था जिसमें वे अपनी बीस प्रस्तुतियों के लिए सीन सिनरी रखा करते थे। उनका अपना ऑफिस भी वहीं पर था। जब मैं वहां पहुंचा तो वे बहुत प्यार से मिले, "सिडनी मुझे बताता रहा है कि तुम कितने अच्छे हो," उन्होंने कहा,"क्या तुम्हें लगता है कि तुम द' फुटबाल मैच में हैरी वेल्डन के सामने अभिनय कर पाओगे?"

हेरी वेल्डन को खास तौर पर बहुत ऊंची पगार पर रखा गया था। उनकी पगार चौंतीस पाउंड प्रति सप्ताह थी।

"मुझे सिर्फ मौका चाहिये," मैंने आत्मविश्वास पूर्ण तरीके से कहा।

वे मुस्कुराये,"सत्रह बरस की उम्र बहुत कम होती है और तुम तो और भी छोटे लगते हो!"

मैं यूं ही कंधे उचकाये,"ये सब मेक अप से किया जा सकता है।"

कार्नो हंसे। इस कंधे उचकाने ने ही मुझे काम दिलवाया था, बाद में सिडनी ने मुझे बताया था।

"ठीक है, ठीक है, हम देख लेंगे कि तुम क्या कर सकते हो।"

ये काम मुझे तीन सप्ताह तक ट्रायल के रूप में करना था जिसके एवज में मुझे प्रति सप्ताह तीन पाउंड और दस शिलिंग मिलते और अगर मैं संतोषजनक पाया जाता तो मुझे एक बरस के लिए करार पर रख लिया जाता।

लंदन कोलेसियम में प्रदर्शन शुरू होने से पहले मेरे पास अपनी भूमिका का अध्ययन करने के लिए एक सप्ताह का समय था। कार्नो साहब ने मुझे बताया कि मैं जा कर शेफर्ड बुश एम्पायर में द' फुटबाल मैच देखूं और उस आदमी का अध्ययन करूं जिसकी भूमिका मुझे करनी है। मुझे ये मानने में कोई शर्म नहीं कि वह सुस्त और आत्म सजग था और ये कहने में भी कोई झूठी शेखी नहीं है कि मैं जानता था कि मैं उससे आगे निकल जाऊंगा। भूमिका में थोड़े और कैरिकेचर, और ज्यादा स्वांग की ज़रूरत थी। मैं अपना मन बना चुका था कि मैं उसे ठीक वैसे ही पेश करूंगा।

मुझे मात्र दो ही रिहर्सलें दी गयीं, क्योंकि इससे ज्यादा के लिए मिस्टर वेल्डन उपलब्ध नहीं थे। दरअसल वे इस बात के लिए भी खफा थे कि उन्हें अपना गोल्फ का खेल छोड़ कर सिर्फ इसी के लिए आना पड़ा।

रिहर्सलों के दौरान मैं प्रभाव न जमा सका। चूंकि मैं धीमे पढ़ता था अत: मुझे ऐसा लगा कि वेल्डन साहब मेरी क्षमता के बारे में कुछ संदेह करते थे। सिडनी भी चूंकि यही भूमिका अदा कर चुका था, अगर वह लंदन में होता तो ज़रूर मेरी मदद करता, लेकिन वह तो दूसरे हास्य नाटक में अन्य प्रदेशों में काम कर रहा था।

हालांकि द' फुटबाल मैच स्वांग वाला मामला था, फिर भी जब तक मिस्टर वेल्डन साहब सामने न आ जाते, कहीं से भी हंसी की आवाज़ नहीं फूटती थी। सब कुछ उनकी एंट्री के साथ ही जुड़ा हुआ था। और इसमें कोई शक नहीं कि वे बहुत ही शानदार किस्म के हास्य कलाकार थे और उनके आने से हँसी का जो सिलसिला शुरू होता था, वह आखिर तक थमता नहीं था।

कोलिसियम में अपने नाटक की शुरुआत की रात मेरी नसें रस्सी की तरह तनी हुई थीं। उस रात का मतलब फिर से मेरे खोये हुए आत्म विश्वास को वापिस पाना और फोरेस्टर में उस रात जो कुछ हुआ था, उसके दु:स्वप्न से खुद को मुक्त करना था। उस विशालकाय स्टेज पर मैं आगे-पीछे हो रहा था। मेरे डर के ऊपर चिंता कुंडली मारे बैठी थी और मैं अपने लिए प्रार्थना कर रहा था।

तभी संगीत बजा। पर्दा उठा। स्टेज पर एक्सरसाइज़ करते कलाकारों का एक कोरस चल रहा था। आखिरकार वे चले गये और स्टेज खाली हो गया। ये मेरे लिए संकेत था। भावनात्मक हा हा कार के बीच मैं चला। या तो मैं मौके के अनुरूप खरा उतरूंगा या फिर मुंह के बल गिरूंगा। स्टेज पर पैर रखते ही मैं राहत महसूस करने लगा। सब कुछ मेरे सामने साफ था। दर्शकों की तरफ पीठ करके मैंने मंच पर प्रवेश किया था। ये मेरा खुद का आइडिया था। पीछे की तरफ से मैं टिप टॉप लग रहा था। फ्रॉक कोट पहने हुए, टॉप हैट, हाथ में छड़ी और मोजे। हू ब हू एडवर्डकालीन विलेन। तब मैं मुड़ा। और अपनी लाल नाक दिखलायी। हंसी का फव्वारा। इससे मैं दर्शकों का कृपापात्र बन गया। मैंने उत्तेजनापूर्ण तरीके से कंधे उचकाये,अपनी उंगलियां चटकायीं और स्टेज पर इधर उधर चला। एक मुगदर पर ठोकर खायी। इसके बाद मेरी छड़ी सीधे जा कर पंचिंग बैग के साथ अटक गयी और वह उछल कर वापिस मेरे मुंह पर आ लगा। मैं अकड़ कर चला और घूमा, अपने ही सिर की तरफ बार बार छड़ी से वार करता। दर्शक हँसी के मारे दोहरे हो गये।

अब मैं पूरी तरह से सहज था और नयी नयी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मैं स्टेज को पांच मिनट तक भी बांधे रख सकता था और एक शब्द भी बोले बिना उन्हें लगातार हँसा सकता था। अपनी विलेनमुमा चाल के बीच मेरी पैंट नीचे सरकने लगी। मेरा एक बटन टूट गया था। मैं बटन की तलाश करने लगा। मैंने यूं ही कुछ उठाने का नाटक सा किया और हिकारत से परे फेंक दिया,"ये करमजले खरगोश!!!" एक और ठहाका।

हैरी वेल्डन का चेहरा पूरे चांद की तरह विंग्स में नज़र आने लगा था। उनके मंच पर आने से पहले कभी भी ठहाके नहीं लगे थे।

ज्यों ही उन्होंने स्टेज पर अपनी एंट्री ली मैंने लपक कर ड्रामाई अंदाज में उनकी बांह थाम ली और फुसफुसाया,"जल्दी कीजिये, मेरी पैंट खिसकी जा रही है। एक पिन का सवाल है।" ये सब उसी वक्त के सोचे हुए का कमाल था और इसके लिए कोई रिहर्सल नहीं की गयी थी। मैंने हैरी साहब के लिए दर्शकों को पहले ही तैयार कर दिया था। उस शाम उन्हें जो सफलता मिली, वह आशातीत थी और हम दोनों ने मिल कर दर्शकों से कई अतिरिक्त ठहाके लगवाये। जब पर्दा नीचे आया तो मुझे पता था, मैं किला फतह कर चुका हूं। मंडली के कई सदस्यों ने हाथ मिलाये और मुझे बधाई दी। ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय वैल्डन साहब ने अपने पीछे मुड़ कर देखा और शुष्क स्वर में बोले,"अच्छा रहा। बहुत बढ़िया रहा।"

उस रात मैं अपने घर तक पैदल चल कर गया ताकि अपने आपको खाली कर सकूं। मैं रुका और वेस्टमिन्स्टर ब्रिज पर झुका, और उसके नीचे से बहते गहरे, रेशमी पानी को देखता रहा। मैं खुशी के मारे रोना चाहता था। लेकिन मैं रो नहीं पाया। मैं ज़ोर लगाता रहा, मुद्राएं बनाता रहा,लेकिन मेरी आँखों में कोई आंसू नहीं आये। मैं खाली हो चुका था। वेस्टमिन्स्टर ब्रिज से मैं चल कर एलिफैंट एंड कैसल ट्यूब स्टेशन तक गया और एक कप कॉफी के लिए एक स्टाल पर रुक गया। मैं किसी से बात करना चाहता था, लेकिन सिडनी तो बाहर के प्रदेशों में था। काश, वह यहां होता तो मैं उसे आज की रात के बारे में बता पाता! आज की रात मेरे लिये क्या मायने रखती थी! खास तौर पर फोरेस्ट्रर की रात के बाद।

मैं सो नहीं पाया। एलिफैंट एंड कैसल से मैं केनिंगटन गेट तक गया और वहां एक और कप चाय पी। रास्ते में मैं अपने आप से बतियाता रहा और अकेले हँसता रहा। बिस्तर पर जाने के समय सुबह के पांच बजे थे और मैं बुरी तरह से पस्त हो चुका था।

पहली रात मिस्टर कार्नो वहां पर मौजूद नहीं थे। लेकिन वे तीसरी रात को आये। उस मौके पर मेरी एंट्री के वक्त जम कर तालियां मिलीं। वे बाद में वहां आये। उनके चेहरे पर मुस्कुराहट थी और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सवेरे उनके ऑफिस में आ कर करार कर लूं।

मैंने पहली रात के बारे में सिडनी को नहीं लिखा था, लेकिन अब मैंने उसे एक संक्षिप्त तार भेजा,"मैंने एक बरस के लिए चार पाउंड प्रति सप्ताह पर करार कर लिया है, प्यार, चार्ली।"

द' फुटबाल मैच लंदन में चौदह सप्ताह तक रहा और उसके बाद दौरे पर चला गया।

वेल्डन साहब की कॉमेडी विकलांग टाइप की थी। वे धीमी गति के समाचारों की तरह लंकाशायर वाले लहजे में गड़बड़ भाषा बोलते थे। ये अदा उत्तरी इंगलैंड में बहुत बढ़िया तरीके से चल जाती थी लेकिन दक्षिण में उन्हें बहुत अधिक भाव नहीं दिया गया। ब्रिस्टॉल, कार्डिफ, प्लायमाउथ,साउथम्पटन, जैसे शहर वेल्डन के लिए मंदे गये। इन सप्ताहों में वे चिड़चिड़े होते चले गये और उनका प्रदर्शन नाम मात्र का रहा तो वे अपना गुस्सा मुझ पर उतारते रहे। शो में उन्हें मुझे थप्पड़ मारना और धकियाना था और ये सब काफी बार करना था। इसे झपकी लेना कहा जाता था। इसका मतलब यह होता था कि वे मेरे चेहरे पर मारेंगे लेकिन इसे वास्तविक प्रभाव देने के लिए विंग्स में कोई ज़ोर से हाथों से ताली बजायेगा। कई बार वे मुझे सचमुच मार बैठते, और वह भी बिना ज़रूरत के और ज़ोर से। मुझे लगता है कि वे ईर्ष्या से भर कर ही ऐसा करते थे।

बेलफेस्ट में तो स्थिति और खराब हो गयी। समीक्षकों ने उनकी ऐसी-तैसी कर दी थी लेकिन मेरी भूमिका की तारीफ की थी। इसे भला वेल्डन साहब कैसे सहन कर सकते थे। सो, एक रात उन्होंने स्टेज पर ही अपना गुस्सा निकाला और मुझे ऐसा ज़ोर का थप्पड़ मारा कि मेरी सारी कॉमेडी निकाल कर धर दी। मेरी नाक से खून आने लगा। बाद में मैंने उन्हें बताया कि अगर उन्होंने फिर कभी ऐसा किया तो मंच पर ही मुगदर से उनकी धुनायी कर दूंगा। और उस पर यह भी जोड़ दिया कि अगर उन्हें ईर्ष्या हो रही है तो उसे कम से कम मुझ पर तो न निकालें।

"ईर्ष्या और वो भी तुमसे?" वे ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते हुए बोले,"क्यों रे, मेरी गुदा में ही इतना टैलेंट है जितना तुम्हारे पूरे शरीर में भी नहीं होगा।"

"यही वो जगह है जहां आपका टेलेंट रहता है।" मैं गुर्राया और लपक कर डेसिंग रूम का दरवाजा बंद कर दिया।

सिडनी जब शहर में वापिस आया तो हमने तय किया कि ब्रिक्स्टन रोड पर एक फ्लैट ले लें और उसे चालीस पाउंड तक की राशि खर्च करके उसे सजाएं। हम नेविंगटन बट्स में पुराने फर्नीचर की एक दुकान में गये और मालिक को बताया कि हम कितनी राशि खर्च करने का माद्दा रखते हैं और कि हमारे पास सजाये जाने के लिए चार कमरे हैं। मालिक ने हमारी समस्या में व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी ली और हमारे काम की चीज़ें चुनने में घंटों हमारे साथ खपाये। हमारे पहले वाले कमरे में कालीन बिछाया और बाकी तीन कमरों में लिनोलियम। इसके अलावा हम अस्तर चढ़ा हुआ सामान भी लाये। इसमें एक दीवान और दो आराम कुर्सियां थीं। बैठने के कमरे के एक कोने में हमने एक नक्काशीदार मूरिश परदा रखा जिसके पीछे से पीला बल्ब जलता था और उसके सामने वाले कोने में मुलम्मा चढ़ी ईज़ल पर सोने का पानी चढ़े फ्रेम में हमने एक पेस्टल सजाया। यह तस्वीर एक निर्वस्त्र औरत की थी जो एक पेडस्टल पर खड़ी थी और अपने कंधे के पीछे से दाढ़ी वाले चित्रकार की तरफ देख रही थी जो उसके नितम्ब के पास एक मक्खी को चित्रित करने की कोशिश कर रहा था। यह कलाकृति और परदा, मेरे हिसाब से कमरे को भरा पूरा बना रहे थे। असली प्रदर्शन योग्य चीज़ तो एक मूरिश सिगरेट शॉप और एक फ्रेंच रंडीखाने का जोड़ा थे लेकिन हमें ये अच्छे लगते थे। यहां तक कि हम एक सीधा खड़ा पियानो भी लेते आये। और हालांकि हमने अपने बजट से पन्द्रह पाउंड ज्यादा खर्च कर डाले थे, फिर भी हमें इसकी पूरी कीमत मिल गयी थी। 15 ग्लेनशॉ मैन्सन, ब्रिक्स्टन रोड पर हमारा ये घर हमारे सपनों का स्वर्ग था। प्रदेशों में प्रदर्शन करने के बाद हम यहां लौटने का कितनी बेसब्री से इंतजार किया करते थे। अब हम इतने अमीर हो चले थे कि अपने नाना की भी मदद कर सकते थे और उन्हें दस शिलिंग प्रति सप्ताह दिया करते थे। और हमारी हैसियत इतनी अच्छी हो गयी थी कि हफ्ते में दो दिन घर का काम करने वाली नौकरानी आती थी और फ्लैट में झाड़ू पोंछा कर जाती थी। लेकिन इस सफाई की ज़रूरत शायद ही कभी पड़ती हो क्योंकि हम किसी चीज़ को उसकी जगह से हिलाते भी नहीं थे। हम उसमें इस तरह से रहा करते थे मानो ये कोई पवित्र मंदिर हो। सिडनी और मैं अपनी विशालकाय आराम कुर्सियों में पसरे रहते और परम संतुष्टि का अहसास लेते। हम एक ऊंचा सा पीतल का मूढ़ा लेते आये थे जिस पर लाल रंग का चमड़ा मढ़ा हुआ था। मैं आराम कुर्सी से उठ कर मूढ़े पर चला जाता और दोनों पर मिलने वाले आराम की तुलना करता रहता।

सोलह बरस की उम्र में रोमांस के बारे में मेरे ख्यालों को प्रेरणा दी थी एक थियेटर के पोस्टर ने जिसमें खड़ी चट्टान पर खड़ी एक लड़की के बाल हवा में उड़े जा रहे थे। मैं कल्पना करता कि मैं उसके साथ गोल्फ खेल रहा हूं, एक ऐसा खेल जिसें मैं नापसंद करता हूं, और ओस भरी जमीन पर नीचे की ओर चलते हुए, दिल की धकड़न बढ़ाने वाली भावनाओं में डूबे हुए, स्वास्थ्य और प्रकृति के ख्यालों में डूबे हुए उसके साथ साथ चल रहा हूं।

यही मेरे लिए रोमांस था। लेकिन कम उम्र का प्यार तो कुछ और ही होता है। ये आम तौर पर एक जैसे ढर्रे पर चलता है। एक नज़र मिलने पर, शुरुआत में कुछ शब्दों का आदान प्रदान (आम तौर पर गदहपचीसी के शब्द), कुछ ही मिनटों के भीतर पूरी जिंदगी का नज़रिया ही बदल जाता है। पूरी कायनात हमारे साथ सहानुभूति में खड़ी हो जाती है और अचानक हमारे सामने छुपी हुई खुशियों का खज़ाना खोल देती है। और मेरे साथ भी ठीक ऐसा ही हो गुज़रा था।

मैं उन्नीस बरस का होने को आया था और कार्नो कम्पनी का सफल कामेडियन था। लेकिन कुछ था जिसकी अनुपस्थिति खटक रही थी। वसंत आ कर जा चुका था और गर्मियां अपने पूरे खालीपन के साथ मुझ पर हावी थीं। मेरी दिनचर्या बासीपन लिये हुए थी और मेरा परिवेश शुष्क। मैं अपने भविष्य में कुछ भी नहीं देख पाता था, वहां सिर्फ अनमनापन, सब कुछ उदासीनता लिये हुए और चारों तरफ आदमी ही आदमी। सिर्फ पेट भरने की खातिर काम धंधे से जुड़े रहना ही काफी नहीं लग रहा था। ज़िंदगी नौकर सरीखी हो रही थी और उसमें किसी किस्म की बांध लेने वाली बात नहीं थी। मैं तन्हा होता चला गया, अपने आप से असंतुष्ट। मैं रविवारों को अकेला भटकता घूमता रहता, पार्कों में बज रहे बैंडों को सुन का दिल बहलाता। न तो मैं अपनी खुद की कम्पनी झेल पाता था और न ही किसी और की ही। और तभी एक खास बात हो गयी - मुझे प्यार हो गया।

हम स्ट्रीथम एम्पायर में प्रदर्शन कर रहे थे। उन दिनों हम रोज़ रात को दो या तीन म्यूज़िक हॉलों में प्रदर्शन किया करते थे। एक प्राइवेट बस में एक जगह से दूसरी जगह जाते। स्ट्रीथम में हम जरा जल्दी शुरू कर देते ताकि उसके बाद कैंटरबरी म्यूज़िक हॉल और उसके भी बाद,टिवोली में प्रदर्शन कर सकें। अभी सांझ भी नहीं ढली थी कि हमने अपना काम शुरू कर दिया। गर्मी बरदाश्त से बाहर हो रही थी और स्ट्रीथम हॉलआधे से ज्यादा खाली था। और संयोग से ये बात मुझे उदास और तन्हा होने से विमुख नहीं कर सकी।

बर्ट काउंट्स यैंकी डूडले गर्ल्स नाम की गीत और नृत्य की एक मंडली का प्रदर्शन हमसे पहले होता था। मुझे उनके बारे में कोई खास खबर नहीं थी। लेकिन दूसरी शाम, जब मैं विंग्स में उदास और वीतरागी खड़ा हुआ था, उनमें से एक लड़की नृत्य के दौरान फिसल गयी और दूसरे लोग ही ही करके हँसने लगे। उस लड़की ने अचानक नज़रें उठायीं और मुझसे आंखे मिलायीं कि क्या मैं भी इस मज़ाक का मज़ा ले रहा हूं। मुझे अचानक दो बड़ी-बड़ी भूरी शरारत से चमकती आंखों ने जैसे बांध लिया। ये आंखें एक दुबले हिरनी जैसे, सांचे में ढले चेहरे पर टंगी हुई थीं और बांध लेने वाला उसका भरा पूरा चेहरा, खूबसूरत दांत, ये सब देखने का असर बिजली जैसा था। जब वह स्टेज से वापिस आयी तो उसने मुझसे कहा कि मैं उसका छोटा-सा दर्पण तो थामूं ताकि वह अपने बाल ठीक कर ले। इससे मुझे उसे देखने परखने का एक मौका मिल गया।

ये शुरुआत थी। बुधवार तक मैं इतना आगे बढ़ चुका था कि उससे पूछ बैठा कि क्या मैं उससे रविवार को मिल सकता हूं। वह हंसी,"मैं तो तुम्हें जानती तक नहीं कि बिना इस लाल नाक के तुम लगते कैसे हो।" उन दिनों मैं ममिंग बर्ड्स में शराबी के रोल वाली कॉमेडी कर रहा था और लम्बा कोट और सफेद टाई पहने रहता था।

"मेरी नाक इतनी ज्यादा तो लाल नहीं है और फिर मैं उतना गया गुजरा भी नहीं हूं जितना नज़र आता हूं।" मैंने कहा, "और इस बात को सिद्ध करने के लिए मैं कल रात अपनी एक तस्वीर लेता आऊंगा।"

मेरा ख्याल है मैंने उसके सामने एक गिड़गिड़ाते, उदास और नौसिखुए किशोर को पेश किया था जो काली स्टॉक टाइ पहने हुआ था।

"ओह, लेकिन तुम तो बहुत जवान हो," उसने कहा,"मुझे तो लगा कि तुम्हारी उम्र बहुत ज्यादा होगी।"

"तुम्हें कितनी लगती है मेरी उम्र?"

"कम से कम तीस"

मैं मुस्कुराया,"मैं उन्नीस पूरे करने जा रहा हूं।"

चूंकि हम लोग रोज़ ही पूर्वाभ्यास किया करते थे इसलिए सप्ताह के दिनों में उससे मिल पाना मुश्किल होता था। अलबत्ता, उसने वायदा किया कि वह रविवार की दोपहर ठीक चार बजे केनिंगटन गेट पर मिलेगी।

रविवार का दिन एकदम बढ़िया, गर्मी भरा था और सूर्य लगातार चमक रहा था। मैंने एक गहरा सूट पहना जो सीने के पास शानदार कटाव लिये हुए था और अपने साथ एक काली आबनूसी छड़ी डुलाता चला। मैंने काली स्टॉक टाइ भी पहनी हुई थी। चार बजने में दस मिनट बाकी थे और घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था, मैं इंतज़ार कर रहा था और यात्रियों को ट्रामकारों से उतरता देख रहा था।

जब मैं इंतज़ार कर रहा था तो मैंने महसूस किया कि मैंने हैट्टी को बिना मेक अप के तो देखा ही नहीं था। मुझे इस बात की बिल्कुल भी याद नहीं आ रही थी कि वह देखने में कैसी लगती है। मैं जितनी ज्यादा कोशिश करता, मुझे उसका चेहरा मोहरा याद ही न आता। मुझे हल्के से डर ने जकड़ लिया। शायद उसका सौन्दर्य नकली था। एक भ्रम!! साधारण सी दिखने वाली जो भी लड़की ट्रामकार में से उतरती, मुझे हताशा के गर्त में धकेलती जाती। क्या निराशा ही मेरे हाथ लगेगी? क्या मैं अपनी ही कल्पना के द्वारा छला गया हूं या थियेटरी मेक अप के नकलीपने ने मुझसे छल किया है?

चार बजने में तीन मिनट बाकी थे कि एक लड़की ट्रामकार से उतरी और उसने मेरी तरफ बढ़ना शुरू किया। मेरा दिल डूब गया। उसका चेहरा मोहरा निराश करता था। उसके साथ पूरी दोपहरी बिताने का ख्याल और उत्साह बनाये रखने का नाटक करना, मेरी तो हालत ही खराब हो गयी। इसके बावजूद मैंने अपना हैट ऊपर किया और अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाया। उसने हिकारत से मेरी तरफ घूरा और आगे बढ़ गयी। भगवान का शुक्र है, ये वो नहीं थी।

तब, चार बज कर ठीक एक मिनट पर ट्रामकार में से एक नवयुवती उतरी, आगे बढ़ी और मेरे सामने आ कर रुक गयी। इस समय वह बिना किसी मेक अप के थी और पहले की तुलना में ज्यादा सुंदर नज़र आ रही थी। उसने सादा सेलर हैट, पीतल के बटनों वाला नीला वर्दी कोट पहना हुआ था, और उसके हाथ ओवरकोट की जेबों में गहरे धंसे हुए थे।

"लो मैं आ गयी" कहा उसने।

उसकी मौजूदगी इतनी आल्हादित करने वाली थी कि मैं बात ही नहीं कर पा रहा था। मेरी सांस फूलने लगी। मैं कुछ कहने या करने की सोच ही नहीं पाया।

"चलो टैक्सी कर लेते हैं।" मैं सड़क पर आगे पीछे की तरफ देखते हुए और फिर उसकी तरफ मुड़ते हुए भारी आवाज़ में बोला।

"तुम कहां जाना चाहोगी?"

"कहीं भी"

"तो चलो, वेस्ट एंड में डिनर के लिए चलते हैं।"

"मैं डिनर ले चुकी हूं" उसने ठंडेपन से कहा।

"ये बात हम टैक्सी में तय कर लेंगे" मैंने कहा।

मेरी भावनाओं के उबाल के वजह से वह ज़रूर ही सकपका गयी होगी, क्योंकि टैक्सी में जाते हुए मैं लगातार यही कहता रहा था, "मुझे पता है कि मुझे एक दिन इसके लिए अफसोस करना पड़गा, तुम इतनी ज्यादा सुंदर हो।" मैं बेकार ही में उस पर प्रभाव जमाने और उसका दिल बहलाने की कोशिश करता रहा। मैंने बैंक से तीन पाउंड निकाले थे और सोचा था कि ट्रोकाडेरो रेस्तरां ले कर जाऊंगा। वहां के संगीत और शानो शौकत के माहौल में वह मुझे बेहद रोमांटिक रूप में देख पायेगी। मैं चाहता था कि मुझसे मिल कर उसके पैर तले की ज़मीन गायब हो जाये। लेकिन वह मेरी बक बक सुन कर सूनी आंखों से और कुछ हद तक हैरान परेशान सी देखती रही। खास कर एक बात जो मैं उससे कहना चाह रहा था कि वह मेरी प्रतिशोध की देवी है। ये शब्द मैंने नया नया सीखा था।

जो बातें मेरे लिए इतने ज्यादा मायने रखती थीं, उन्हें वह कितना कम समझ पा रही थी। इसका सेक्स से कुछ लेना देना नहीं था: जो बात मायने रखती थी, वह था उसका संग साथ। मेरी ज़िदंगी जिस मोड़ पर रुकी हुई थी, वहां पर लावण्य और सौन्दर्य से मिल पाना दुर्लभ ही था।

उस शाम ट्रोकाडेरो में मैंने उसे इस बात के लिए राजी करने की बहुत कोशिश की कि वह मेरे साथ डिनर ले ले, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उसने कहा कि मेरा साथ देने के लिए वह सैंडविच ले लेगी। चूंकि हमने एक बहुत ही भव्य रेस्तरां में एक बहुत बड़ी मेज घेर रखी थी, मुझे ये ज़रूरी लगा कि कई तरह के व्यंजनों वाले खाने का ऑर्डर दिया जाये हालांकि मुझे इस सब की ज़रूरत नहीं थी। डिनर लेना बहुत गम्भीर मामला हो गया। मुझे ये भी नहीं पता था कि किस छुरी कांटे से क्या खाना होता है। मैं खाना खाते समय सहज आकर्षण के साथ शेखियां बघारता रहा, यहां तक कि फिंगर बाउल के इस्तेमाल में भी मैंने लापरवाही का अंदाज अपनाया। लेकिन मेरा ख्याल है, रेस्तरां से बाहर आते समय हम दोनों ही राहत महसूस कर रहे थे।

ट्रोकाडेरो के बाद हैट्टी ने तय किया कि वह घर जायेगी। मैंने टैक्सी का सुझाव दिया लेकिन उसने पैदल चलना ही पसंद किया। चूंकि वह चैम्बरलेन में रहती थी, मेरे लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती थी। इसका मतलब यही होता कि मैं उसके साथ और ज्यादा वक्त गुज़ार सकता था।

अब चूंकि मेरी भावनाओं का ज्वार उतरने लगा था, वह मुझसे भी ज्यादा सहज लग रही थी। उस शाम हम टेम्स एम्बैंकमेंट§ पर चहलकदमी करते रहे। हैट्टी अपनी सहेलियों के बारे में बातें करती रही, हँसी खुशी की और इधर उधर की बेकार की बातें। लेकिन मुझे इस बात का ज़रा सा भी भान नहीं था कि वह क्या कह रही है। मुझे तो सिर्फ इतना पता था कि रात सौन्दर्य से भरी थी, कि मैं स्वर्ग में चल रहा था और मेरे भीतर आनंद भरी उत्तेजना के सोते फूट रहे थे।

उसे विदा कर देने के बाद मैं फिर से एम्बैंकमेंट पर लौटा। मैं अभिभूत था। मेरे भीतर एक मध्यम लौ का उजाला हो रहा था और तीव्र इच्छा शक्ति जोर मार रही थी। तीन पाउंड में से मेरी जेब में जितने भी पैसे बचे थे, मैंने टेम्स एम्बैंकमेंट पर सोने वाले भिखारियों में बांट दिये।

हमने अगली सुबह सात बजे फिर से मिलने का वायदा किया था क्योंकि शाफ्टेसबरी एवेन्यू में कहीं आठ बजे उसकी रिहर्सल शुरू होती थी। उसके घर से ले कर वेस्टमिन्स्टर ब्रिज रोड अंडरग्राउंड स्टेशन तक की दूरी लगभग डेढ़ मील की थी और हालांकि मैं देर तक काम करता था और शायद ही कभी रात दो बजे से पहले सोता था, मैं उससे मिलने के लिए सही वक्त पर हाजिर था।

कैम्बरवेल को किसी ने जादुई छड़ी से छू लिया था क्योंकि हैट्टी केली वहां पर रहती थी। सुबह के वक्त चैम्बरलेन की सड़कों पर हाथों में हाथ दिये अंडरग्राउंड स्टेशन तक जाना भ्रमित इच्छाओं के साथ घुले मिले वरदान की तरह होता था। गंदा, हताशा से भरने वाली चैम्बरलेन रोड, जिससे मैं हमेशा बचा करता था, अब प्रलोभन की तरह लगती जब मैं दूर से कोहरे में से निकल कर हैट्टी की आकृति को अपनी ओर आते देख रोमांचित होता। उस साथ साथ आने के दौरान मुझे बिल्कुल भी याद न रहता कि उसने क्या कहा है। मैं सम्मोहन के आलम में होता और ये मान कर चलता कि कोई रहस्यमयी ताकत हमें एक दूजे के निकट लायी है और भाग्य में पहले से ये लिखा था कि हम इस तरह से मिलेंगे।

उससे परिचय पाये मुझे तीन सुबहें हो गयी थीं; इन संक्षिप्त सुबहों के कारण बाकी दिन के अस्तित्व का पता ही नहीं चलता था। अगली सुबह ही पता चलता था। लेकिन चौथी सुबह उसका व्यवहार बदला हुआ था। वह मुझसे ठंडेपन से मिली। कोई उत्साह नहीं था उसमें। उसने मेरा हाथ भी नहीं थामा। मैंने इसके लिए उसे फटकारा और मज़ाक में उस पर आरोप लगाया कि वह मुझसे प्यार नहीं करती है।

"तुम कुछ ज्यादा ही उम्मीद करने लगे हो," कहा उसने "ज़रा ये भी तो देखो कि मैं सिर्फ पन्द्रह बरस की हूं और तुम मुझसे चार बरस बड़े हो।"

मैं उसके इस जुमले के भाव को समझ नहीं पाया। लेकिन मैं उस दूरी की भी अनदेखी नहीं कर पाया जो उसने अचानक ही हम दोनों के बीच रख दी थी। वह सीधे सामने की तरफ देख रही थी और गर्वोन्नत तरीके से चल रही थी। उसकी चाल स्कूली लड़की की तरह थी और उसके दोनों हाथ ओवरकोट की जेबों में गहरे धंसे हुए थे।

"दूसरे शब्दों में कहें तो तुम सचमुच मुझसे प्यार नहीं करती?"

"मुझे नहीं पता," वह बोली।

मैं हक्का बक्का रह गया। "अगर तुम नहीं जानती तो तुम प्यार नहीं करती।"

उत्तर देने के बजाये वह चुपचाप चलती रही।

"देखो तो जरा, मैं भी देवदूत ही हूं। मैंने तुमसे कहा था न कि मुझसे तुमसे मिलने का हमेशा अफसोस होता रहेगा।" मैंने हल्केपन से कहना जारी रखा।

मैंने उसका दिमाग टटोलने की कोशिश की कि आखिर उसके दिमाग में चल क्या रहा था और मेरे सभी सवालों के जवाब में वह सिर्फ यही कहती रही, "मुझे नहीं पता।"

"मुझसे शादी करोगी?" मैंने उसे चुनौती दी।

"मैं बहुत छोटी हूं।"

"अच्छा एक बात बताओ, अगर तुम्हें शादी के लिए मज़बूर किया जाये वो वो मैं होऊंगा या कोई और?"

लेकिन उसने किसी भी बात पर हां नहीं की और यही कहती रही,"मुझे नहीं पता, मैं तुम्हें पसंद करती हूं . .लेकिन . ."

"लेकिन तुम मुझसे प्यार नहीं करती।" मैंने उसे भारी मन से टोकते हुए कहा।

वह चुप रही। ये बादलों भरी सुबह थी और गलियां गंदी और हताश पैदा करने वाली लग रही थीं।

"मुसीबत ये है कि मैंने इस मामले को बहुत दूर तक जाने दिया है।" मैंने भारी आवाज़ में कहा। हम अंडरग्राउंड स्टेशन के गेट तक पहुंच गये थे, "मेरा ख्याल यही है कि हम विदा हो जायें और फिर कभी दोबारा एक दूजे से न मिलें।" मैंने कहा और सोचता रहा कि उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी।

वह उदास दिखी।

मैंने उसका हाथ थामा और हौले से सहलाया,"गुड बाय, यही बेहतर रहेगा। पहले ही तुम मुझ पर बहुत असर डाल चुकी हो।"

"गुड बाय" उसने जवाब दिया,"मुझे माफ करना।"

उसका माफी मांगना मेरे दिल पर कटार की तरह लगा। और जैसे ही वह अंडरग्राउंड में गायब हुई, मुझे असहनीय खालीपन ने घेर लिया।

मैंने क्या कर डाला था? क्या मैंने बहुत जल्दीबाजी की? मुझे उसे चुनौती नहीं देनी चाहिये थी। मैं भी निरा गावदी हूं कि उससे दोबारा मिलने के सारे रास्ते ही बंद कर दिये, हां तब की बात और है जब मैं खुद को मूरख बनने दूं। मुझे क्या करना चाहिये था? सहन तो मुझे ही करना होगा। काश, उससे दोबारा मिलने से पहले मैं अपनी इस मानसिक यंत्रणा को नींद के जरिये कम कर सकूं। किसी भी कीमत पर मुझे तब तक अपने आपको उससे अलग रखना ही होगा जब तक वह न मिलना चाहे। शायद मैं कुछ ज्यादा ही गम्भीर था, ज्यादा पागल। अगली बार जब हम मिलेंगे तो मैं और अधिक विनम्र और नि:संग रहूंगा। लेकिन क्या वो फिर से मुझसे मिलना चाहेगी? ज़रूर, उसे मिलना ही चाहिये। वह इतनी आसानी से मुझसे किनारा नहीं कर सकती।

अगली सुबह मैं अपने आप पर काबू नहीं पा सका और चैम्बरलेन रोड पर जा पहुंचा। मैं उससे तो नहीं लेकिन उसकी मां से मिला,"तुमने हैट्टी को क्या कर दिया है?" कहा उन्होंने,"वह रोती हुई घर आयी थी और बता रही थी कि तुमने उससे कभी न मिलने की बात कही है।"

मैंने कंधे उचकाये और व्यंग्य से मुस्कुराया,"उसने मेरे साथ क्या किया है?" तब मैंने हिचकिचाते हुए पूछा कि क्या मैं उससे दोबारा मिल सकता हूं।

उन्होंने जोर से अपना सिर हिलाया, "नहीं, मुझे नहीं लगता कि तुम्हें मिलना चाहिये।"

मैंने उन्हें एक ड्रिंक के लिए आमंत्रित किया और हम बात करने के इरादे से पास ही के एक पब में चले गये और बाद में मैंने उनसे एक बार फिर उनुरोध किया कि वे मुझे हैट्टी से मिलने दें तो वे मान गयीं।

जब हम घर पहुंचे तो हैट्टी ने दरवाजा खोला। वह मुझे देख कर हैरान और परेशान नज़र आयी। उसने अभी अभी सनलाइट साबुन से अपना चेहरा धोया था इसलिए एकदम ताज़ा लग रहा था। वह घर के बाहर वाले दरवाजे पर ही खड़ी रही। उसकी बड़ी बड़ी आंखें ठंडी और निर्जीव लग रही थीं। मैं समझ गया, मामला निपट चुका है।

"तो फिर" मैंने मज़ाकिया बनने की कोशिश करते हुए कहा,"मैं एक बार फिर गुडबाय कहने आया हूं।"

उसने कुछ नहीं कहा लेकिन मैं देख पाया कि वह मुझसे जान छुड़ाने के लिए बेताब थी।

मैंने अपना हाथ आगे बढ़ाया और कहा,"तो!! एक बार फिर गुडबाय"

"गुडबाय" उसने ठंडेपन से जवाब दिया।

मैं मुड़ा और अपने पीछे मैंने हौले से दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनी।

हालांकि मैं उससे सिर्फ पांच ही बार मिला था और हमारी कोई भी मुलाकात शायद ही बीस मिनट से ज्यादा की रही हो, इस संक्षिप्त हादसे ने मुझे लम्बे अरसे तक प्रभावित किये रखा।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 7

1909 में मैं पेरिस गया। फोलीज़ बेरजेरे ने कार्नो कम्पनी को एक महीने की सीमित अवधि के लिए प्रदर्शन करने के लिए अनुबंधित किया था। मैं दूसरे देश में जाने के ख्याल से ही कितना उत्तेजित था। यात्रा शुरू करने से पहले हमने एक सप्ताह के लिए वूलविच में प्रदर्शन किये। ये एक वाहियात शहर में बिताया गया वाहियात और सड़न भरा सप्ताह था और मैं परिवर्तन की राह देख रहा था। हमें रविवार की सुबह निकलना था। मुझसे गाड़ी, बिल्कुल छूटने वाली ही थी। किसी तरह भाग कर मैंने प्लेटफार्म से छूटती गाड़ी पकड़ी। मैं सामान वाला आखिरी डिब्बा ही पकड़ पाया था। उन दिनों मुझे गाड़ियां मिस करने में महारत हासिल थी।

चैनल पर तेज धूंआधार बरसात होने लगी। लेकिन कोहरे में लिपटे फ्रांस को पहली नजर से देखना कभी न भूलने वाला रोमांचक अनुभव था।...ये इंगलैंड नहीं है। मुझे अपने आपको बार-बार याद दिलाना पड़ रहा था। ये महाद्धीप है। फ्रांस। मैंने अपनी कल्पना में हमेशा इसे देखने की अपील की थी। मेरे पिता आधे फ्रेंच थे। दरअसल, चैप्लिन परिवार मूलत: फ्रांस से इंगलैंड में आया था। वे फ्रांसीसी प्रोटैस्टेंट ईसाई ह्यूग नॉट्स के वक्त इंगलैंड की धरती पर उतरे थे। पिता के चाचा अक्सर गर्व से कहा करते कि एक फ्रांसीसी जनरल ने चैप्लिन परिवार की इंगलैंड शाखा की नींव रखी थी।

ये ढलती शरद ऋतु के दिन थे। और कैलाइस से पेरिस तक की यात्रा बेमज़ा थी। इसके बावजूद, जैसे-जैसे हम पेरिस के निकट पहुंचते गये,मेरी उत्तेजना बढ़ती चली गयी। हम अंधेरे, अकेले गांवों से गुज़र कर जा रहे थे। धीरे-धीरे धूसर आसमान में हमने रौशनी के दर्शन किये।... वो ही है पेरिस का प्रतिबिंब, गाड़ी में हमारे साथ यात्रा कर रहे एक फ्रेंच आदमी ने बताया।

पेरिस में वह सब कुछ था जिसकी मैं उम्मीद कर रहा था। गारे दू नोर्द से रू ज्योफ्रे मारी तक की यात्रा ने मुझे उत्तेजना और अधैर्य से भर दिया। मैं हर नुक्कड़ पर उतर कर पैदल चलना चाहता था। इस समय शाम के सात बज रहे थे। कैफ़े से आमंत्रित करती सी सुनहरी बत्तियां चमक रही थी। और उनके बाहर सजी मेज़ें जीवन के आनंद की बातें कर रही थीं। कुछेक नयी कारों के आगमन के अलावा ये अभी भी मौने, पिसारो तथा रेनॉइर का ही पेरिस था। रविवार का दिन था और लग रहा था जैसे हर आदमी उत्सव के मूड में है। उत्सव और उल्लास वहां की फ़िजां में थे। यहां तक कि रूओ ज्योफ्रे मारी में मेरा पत्थर की दीवारों वाला कमरा जिसे मैं अपनी कारागार कहता था, मेरे उत्साह को दबा नहीं पाया क्योंकि सारा वक्त तो मैं बिस्त्रो और कैफे के बाहर लगी मेज़ों पर ही बैठा रहता था।

रविवार की रात फ्री थी। इसलिए हम फोलिज़ बेरजेरे में शो देख पाये। हमें यहीं पर अगले सोमवार से अपना नाटक शुरू करना था। मैंने सोचा कि कोई भी थियेटर इतने अधिक ग्लैमर के साथ, अपनी चमक-दमक और ठाट-बाट के साथ अपने दर्पणों और बड़े बड़े स्फटिक के फानूसों के साथ चमका नहीं था। मोटे-मोटे कालीन बिछे फोयर में तथा ड्रेस सर्किल में सारी दुनिया मौजूद थी। बड़ी-बड़ी गुलाबी रत्न जड़ित पगड़ियां बांधे भारतीय युवराज, कलगी लगे टोपों में फ्रेंच और टर्की अधिकारी जो शराब घरों में कोनियाक की चुस्कियां लेते नज़र आ रहे थे। बाहर की ओर बड़े फोयर में संगीत की लहरियां बज रही थीं और महिलाएं अपनी पोशाकों को और अपने फर कोटों को सहेजती, संभालती घूम रही थीं और अपने संगमरमरी सफेद कंधों की झलक दिखा रही थीं। वे ऐसी महिलाओं का संसार था जिन्हें फोयर में बने रहने और ड्रेस सर्कल में मौजूद रहने की लत लगी हुई थी और वे चतुराई से वहां अपनी मौजूदगी दर्ज करातीं और चहकती फिरतीं। वे उन दिनों वाकई खूबसूरत और विनम्र हुआ करतीं।

फोलिज़ बेरजेरे में व्यावसायिक दुभाषिये भी थे जो अपनी टोपी पर दुभाषिया का बिल्ला लगाये थियेटर के फोयर में घूमते रहते। मैंने उनमें से प्रमुख दुभाषिये से दोस्ती कर ली जो बहुत सारी भाषाएं धड़ल्ले से बोल सकता था।

शाम को अपने प्रदर्शन के बाद मैं अपनी स्टेज की शाम वाली पोशाक पहन लेता और मज़ा मारने वालों की भीड़ में शामिल हो जाता। उनमें से मुझे एक ऐसी हसीना मिली जिसने मेरा दिल ही छीन लिया। इस तन्वंगी हसीना की गर्दन हंसनुमा थी और उसकी रंगत सफेद थी। वो छोकरी छरहरी थी और बेहद खूबसूरत थी। उसकी सुतवां नाक और लम्बी गहरी बरौनियां थीं। उसने काली मखमली पोशाक पहनी हुई थी और हाथों में सफेद दस्ताने थे। जब वह ड्रेस सर्कल की सीढ़ियां चढ़ने लगी तो उसने अपना एक दस्ताना गिरा दिया। मैंने लपक कर उसका दस्ताना उठा लिया।

"..माफ करना "उसने कहा

"काश, आप इसे एक बार फिर गिरातीं!" मैंने बदमाशी से कहा।

"माफ करना?"

तब मैंने महसूस किया कि उसे अंग्रेजी नहीं आती और मुझे फ्रेंच बोलनी नहीं आती। इसलिए मैं भागा-भागा अपने दुभाषिए दोस्त के पास गया,"उधर एक बला की खूबसूरत लड़की खड़ी है जिसने मेरी कामुकता जागृत कर दी है। लेकिन वह खासी महंगी लग रही है।"

उसने कंधे उचकाये,"एक लुइस से ज्यादा नहीं,"

"तक तो ठीक है," मैंने कहा, हालांकि उन दिनों एक लुइस भी अच्छी खासी रकम हुआ करती थी। मैंने सोचा, और ये थी भी।

मैंने दुभाषिए से एक पोस्टकार्ड की दूसरी तरफ कई फ्रेंच अभिव्यक्तियां लिखवा कर रख ली थीं जैसे जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं। इत्यादि जिन्हें मैं ऐसे पवित्र मौकों पर इस्तेमाल करने का इरादा रखता था। मैंने दुभाषिए से कहा कि वह शुरुआती धंधेदारी की बातें करवा दे और उसने हमारे लिए दूत का काम किया। इधर से उधर संदेशों का आदान प्रदान करता रहा। आखिर वह वापिस आया और कहने लगा,"सब कुछ तय हो गया है। एक लुइस में। लेकिन तुम्हें उसके घर तक जाने और वापिस आने का टैक्सी का किराया देना होगा।"

मैं एक पल के लिए चकराया,"वह रहती कहां है?" मैंने पूछा।

"किराये में दस सेंट से ज्यादा नहीं लगेंगे।"

दस सेंट्स की रकम दिल दहला देने वाली थी क्योंकि मैंने इस अतिरिक्त खर्च की उम्मीद ही नहीं की थी। मैंने मजाक में पूछा,"क्या वो पैदल नहीं चल सकती?"

"सुनो, लड़की आला दर्जे की चीज़ है। सिर्फ किराये के लिए लफड़ा मत करो।" उसने बताया।

मैं आखिर तैयार हो गया।

जब सब कुछ तय कर लिया गया तो मैं ड्रेस सर्कल की सीढ़ियों पर उसे पास से गुजरा। वह मुस्कुरायी और मैंने मुड़ कर उसकी तरफ देखा।..."आज शाम!"

"अच्छी बात है महाशय"

चूंकि हमारे प्रदर्शन पूरा होने में टाइम था, मैंने उससे वायदा किया कि हम प्रदर्शन के बाद वहीं मिलते हैं। मेरे दोस्त ने कहा,"तुम टैक्सी मंगाना और मैं तब तक लड़की लेकर आऊंगा, इससे टाइम बरबाद नहीं होगा।"

"टाइम बरबाद?"

हमारी गाड़ी जब बोलेवियर दे इतालियंस के पास गुजरी तो उसके चेहरे पर रौशनी और छाया के चहबच्चे अठखेलियां कर रहे थे। मैंने अपने पोस्टकार्ड पर लिखी फ्रेंच पर उड़ती सी निगाह डाली और उससे कहा..."आप मुझे बहुत अच्छी लगी हैं!"

वह अपने सफेद चमकीले दांत झलकाती हुई हँसी,"आप बहुत अच्छी फ्रेंच बोल लेते हैं।"

मैं भावुक हो कर आगे बोलता रहा," जब से मैंने आपको देखा है, मैं होश खो बैठा हूं। "

वह फिर हँसी और उसने मेरी फ्रेंच सुधारी...और समझाया कि मैं अनौपचारिक जबान का इस्तेमाल करूं और उसे तू या तुम कहूं। उसने इसके बारे में सोचा और फिर हँसी। तब उसने अपनी घड़ी की तरफ देखा। लेकिन घड़ी बंद हो गयी थी। तब उसने इशारे से बताया कि वह समय जानना चाहती है। और बताया कि ठीक बारह बजे उसे एक बहुत ही जरूरी एपाइंटमेंट पर जाना है।

"आज शाम तो नहीं," मैंने झिझकते हुए जवाब दिया।

"हां आज शाम ही"

"लेकिन आप तो आज की पूरी शाम के लिए इंगेज हैं मोहतरमा? पूरी रात के लिए"

वह अचानक बदहवास दिखने लगी,"ओह, नहीं, नहीं, पूरी रात के लिए नहीं।"

इसके बाद वह जिद पर आ गयी,"फिलहाल के लिए बीस फ्रांक!"

"ये क्या है?" उसने जोर दे कर जवाब दिया।

"आयम सौरी," मैंने कहा,"मेरा ख्याल है हम टैक्सी यहीं रुकवा दें।"

और तब टैक्सी को उसे फालिज़ बेरजेरे में वापिस छोड़ आने का भाड़ा दे कर मैं टैक्सी से उतर गया। उस समय मुझसे ज्यादा उदास, और मोहभंग आदमी कौन रहा होगा।

हमें फालिज़ बेरजेरे में दस हफ्ते तक प्रदर्शन करने थे क्योंकि हम बहुत अधिक सफल जा रहे थे लेकिन कार्नो साहब की दूसरी बुकिंग थी। मेरा वेतन छ: पाउंड प्रति सप्ताह था और मैं इसकी पाई पाई खर्च कर रहा था। मेरे भाई सिडनी का एक कज़िन, जो उसके पिता की ओर से उसका कोई लगता था, मेरे परिचय में आया। वह अमीरजादा था और तथाकथित उच्च वर्ग से नाता रखता था। जिन दिनों वह पेरिस में था, उसने मुझे खूब समय भी दिया और घुमाया भी। उसे भी स्टेज के कीड़े ने काटा था और वह स्टेज का इस हद तक दीवाना था कि उसने अपनी मूंछें तक मुंड़वा डालीं ताकि वह हमारी ही मंडली के किसी सदस्य जैसा लग सके और उसे बैक स्टेज में आने दिया जाये।

दुर्भाग्य से उसे इंगलैंड लौट जाना पड़ा, जहां मेरा ख्याल है कि उसके मां बाप ने उसकी अच्छी खासी सिकाई की और उसे उसके महान माता पिता ने दक्षिण अफ्रीका भेज दिया।

पेरिस में जाने से पहले मैंने सुना था कि हैट्टी की मंडली भी फालिज़ बेरजेरे में ही प्रदर्शन कर रही है, इसलिए मुझे पूरा यकीन था कि उससे वहां पर मुलाकात हो जायेगी। जिस रात मैं वहां पहुंचा तो मैं बैक स्टेज में गया और उसके बारे में पूछताछ की। लेकिन वहाँ पर एक बैले लड़की से मुझे पता चला कि उनकी मंडली एक हफ्ता पहले ही मास्को के लिए रवाना हो चुकी है। जिस वक्त मैं उस लड़की से बातें कर रहा था, सीढ़ियों से एक बहुत ही रूखी आवाज सुनायी दी,"तुरंत इधर आओ, अजनबियों से बात करने की तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?" ये लड़की की मां थी। मैंने समझाने की कोशिश की कि मैं तो सिर्फ अपनी एक मित्र के बारे में जानकारी लेना चाह रहा था लेकिन मां ने मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया,"उस आदमी से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं है। चलो एकदम अंदर आ जाओ।"

मैं उसकी इस बदतमीजी पर खासा खफा हुआ। अलबत्ता, बाद में मैं उसका अच्छा परिचित बन गया। वह भी उसी होटल में ही रहती थी जिसमें मैं रुका हुआ था। उसकी दो लड़कियां थीं जो फालीज़ बेरजेरे बैले की सदस्याएं थी। उनमें से छोटी वाली तेरह बरस की थी और मुख्य अदाकारा थी। वह सुंदर और विदुशी थी जबकि पंद्रह बरस की बड़ी वाली न तो सुंदर थी और न ही उसमें अक्कल ही थी। मां फ्रेंच थीं भरे पूरे शरीर की मालकिन थीं। उनकी उम्र चालीस बरस के आस पास थी। उन्होंने एक स्कॉटमैन से शादी रचाई थी और वह इंगलैंड में रहता था। जब हमने फालीज़ बेरजेरे में अपने प्रदर्शन शुरू किये तो वे मेरे पास आयीं और माफी मांगने लगीं कि वे इतने बेहूदे तरीके से पेश आयी थीं। ये एक बहुत ही शानदार दोस्ताना संबंध की शुरुआत थी। मुझे अक्सर उनके कमरे में चाय के लिए बुला लिया जाता। चाय वे लोग बेडरूम में ही बनाया करती थीं।

मैं अब जब पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो मैं बेहद मासूम था। एक दोपहर को जब बच्चियां बाहर गयी हुई थीं और मामा और मैं अकेले थे उनका व्यवहार बदल गया और जब वे चाय छान रही थीं तो उनका बदन कांपने लगा। मैं उस वक्त अपने सपनों और अपनी उम्मीदों की बात कर रहा था, अपने प्यार और अपनी निराशाओं की बात कर रहा था, और वे बेहद भावुक हो गयीं। जब मैं मेज पर अपनी चाय का प्याला रखने के लिए उठा तो वे मेरे पास आयीं ... तुम कितने अच्छे हो। उन्होंने कहा और अपने हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए मेरी आंखों में गहरे देखते हुए कहा...तुम इतने प्यारे बच्चे हो कि तुम्हारा दिल नहीं तोड़ा जाना चाहिये। उनकी निगाहें झुकती होती चलीं गयीं। अजीब तरह से और मंत्रबिद्ध हो गयीं और उनकी आवाज़ कांपने लगी...तुम्हें पता है, मैं तुम्हें अपने बच्चे की तरह प्यार करती हूँ। उन्होंने कहा और अब भी अपने हाथों में मेरा चेहरा भरे हुए थीं। तब हौले से उनका चेहरा मेरे चेहरे के पास आया और उन्होंने मुझे चूम लिया।

"थैंक यू," मैंने विनम्रता पूर्वक कहा और भोलेपन से उन्हें चूम लिया। वे अपनी बेधती आंखों से मुझे बांधे रहीं और उनके होंठ कांपते रहे। और उनकी आंखों में पनीली चमक आ गयी। तभी अचानक अपने आपको संभालते हुए वे एक कप चाय और ढालने के लिए चली गयीं और पल भर में उनका बात करने का तरीका बदल गया और मधुर हंसी से और हास्य बोध से उनका चेहरा दमकने लगा," तुम बहुत ही प्यारे लड़के हो...मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ।"

उन्होंने अपनी लड़कियों के बारे में मुझे कई रहस्य बताये,"छोटी वाली बहुत अच्छी लड़की है।" उन्होंने बताया,"लेकिन बड़ी वाली पर निगाह रखने की जरूरत होती है। वह समस्या बनती जा रही है।"

शो के बाद वे मुझे अपने बड़े वाले बेडरूम में खाने के लिए आमंत्रित करतीं। इस बेडरूम में वे और उनकी छोटी वाली लड़की सोया करते थे। अपने कमरे में लौटने से पहले मैं उन्हें और छोटी वाली को गुड नाइट किस करता। उसके बाद मुझे एक छोटे वाले कमरे से गुज़र कर जाना पड़ता जहाँ पर बड़ी वाली सोती थी। एक रात जब मैं उस कमरे से हो कर गुज़र रहा था तो वह एकदम मेरे पास आ गयी और फुसफुसा कर बोली,"रात को अपने कमरे का दरवाजा खुला रखना। जब परिवार सो जायेगा तो मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगी।" मेरा यकीन करें या न करें, मैंने उसे हिकारत से उसके बिस्तर पर धकेला और लपक कर कमरे से बाहर आया। फालिस बेरजेरे में उनके अंतिम प्रदर्शन के बाद मैंने सुना था कि उनकी बड़ी वाली लड़की, जो मुश्किल से पन्द्रह बरस की हुई थी, साठ बरस के एक मोटे से जर्मन डॉग ट्रेनर के साथ भाग गयी थी।

लेकिन मैं उतना भोला नहीं था जितना दिखता था। अपनी मंडली के साथियों के साथ रातों में अक्सर मैं वेश्यालयों के चक्कर काटता और वहां वे सब भद्दी हरकतें करता जो जवान लोग करते हैं। एक रात, कई पैग चढ़ा लेने के बाद, मैं एनी स्टोन नाम के एक भूतपूर्व लाइट हैवी वेट ईनामी फाइटर के साथ भिड़ गया। ये लफड़ा रेस्तरां में शुरू हुआ। और जब वेटरों ने तथा पुलिस ने हमें अलग किया तो वह बोला,"मैं तुम्हें होटल में देख लूंगा।" हम दोनों एक ही होटल में ठहरे हुए थे। उसका कमरा मेरे कमरे के ऊपर था। सुबह चार बजे मैं जब अपने होटल में लौटा तो मैंने उसका दरवाजा खटखटाया।

"आ जाओ," वह जल्दी से बोला," और अपने जूते उतार दो ताकि कोई शोर शराबा न हो।"

जल्दी ही हम छाती तक नंगे हो गये और एक दूसरे के सामने आ गये। हम काफी देर तक एक दूसरे को हिट करते रहे और एक दूसरे के वार भी बचाते रहे। इसी में मानो सदियां लग गयीं। कई बार उसने सीधे ही मेरी ठुड्डी पर वार किया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। "मैंने सोचा, तुम पंच मारोगे," मैं ताना मारा। उसने एक छलांग लगाई लेकिन उसका वार खाली गया। और उसका सिर दीवार से जा टकराया। वह अपने आप ही पस्त हो चला था। मैंने उसे खत्म करने की सोची, लेकिन मेरे पंच कमजोर थे। उसे खतरनाक ढंग से हिट कर सकता था, लेकिन मेरे पंच के पीछे जोर नहीं था। अचानक उसने जोर से मेरे मुंह पर एक ज़ोर का घूंसा मारा, जिससे मेरे आगे के दांत हिल गये, और इससे मेरा तन बदन गुस्से के मारे जलने लगा।"...बहुत हो गया," मैंने कहा,"मैं अपने दांत नहीं गंवाना चाहता।" वह मेरे ऊपर आया और मुझसे लिपट गया। और तब शीशे में देखने लगा। मैंने उसका चेहरा कुतर कर छलनी कर दिया था। मेरे हाथ इतने सूज गये थे मानों दस्ताने पहन रखे हों। छत पर, दीवारों पर और परदों पर खून के दाग नज़र आ रहे थे। मैं नहीं जानता, खून सब जगह कैसे पहुंच गया था।

रात को खून मेरे मुंह के पास से सरकता हुआ मेरे गरदन तक आ पहुँचा था। सुबह के वक्त जो नन्हा छोकरा जो मेरे लिए चाय का प्याला ले कर आता था, ये देख कर चिल्लाया। उसने सोचा कि मैंने आत्महत्या कर ली है। और उसके बाद मैंने किसी से झगड़ा नहीं किया।

एक रात दुभाषिया मेरे पास आया और बोला कि एक प्रसिद्ध संगीतकार मुझसे मिलना चाहता है, और क्या मैं उससे बॉक्स में जाना चाहूँगा?

आमंत्रण रोचक था क्योंकि उनके साथ वहाँ पर एक बहुत ही खूबसूरत, भव्य महिला बैठी हुई थीं जो रूसी बैले की सदस्या थी। दुभाषिये ने मेरा परिचय कराया। उन महानुभाव ने कहा कि वे मेरा काम देख कर बहुत खुश हुए हैं और जानना चाहते हैं कि मेरी उम्र क्या है। इन तारीफ भरे शब्दों को सुन कर मैं सम्मानपूर्वक झुका और बीच-बीच में मैं चोर निगाहों से उनकी मित्र को भी कनखियों से देख लेता था,"आप जन्मजात एक संगीतकार और नर्तक हैं।"

यह महसूस करते हुए कि इस तारीफ के बदले शब्द कोई मायने नहीं रखते और जवाब में सिर्फ मुस्कुराया ही जा सकता है, मैंने दुभाषिये की तरफ देखा और झुका। संगीतकार महोदय उठे और मुझसे हाथ मिलाया, तब मैं भी खड़ा हो गया," हां," उन्होंने मेरा हाथ हिलाते हुए कहा,"आप एक सच्चे कलाकार हैं।"

जब वे लोग चले गये तो मैं दुभाषिये से पूछा,"उनके साथ वह महिला कौन थी?"

"वे एक रूसी बैले डांसर है मिस...।" यह एक बहुत ही लम्बा और मुश्किल नाम था।

"और इस महाशय का क्या नाम था?" मैंने पूछा।

"डेबुसी," उसने जवाब दिया,"वे एक विख्यात कम्पोजर हैं।"

"मैंने तो उनका नाम कभी नहीं सुना," मैंने टिप्पणी की।

ये बरस मैडम स्टेनहैल के कुख्यात स्कैंडल और मुकदमेबाजी का बरस था। उनपर मुकदमा चला था और उन्हें अपने पति की हत्या को दोषी नहीं पाया गया था। ये बरस सनसनीखेज "पॉम पॉम डांस" का था जिसमें जोड़े कामुकता का प्रदर्शन करते हुए अशोभनीय तरीके से गोल गोल घूम कर नृत्य करते थे। ये बरस व्यक्तिगत आय पर प्रति पाउंड पर लगाये गये छ: पेंस के अविश्वसनीय दिमाग खराब करने वाले टैक्स् का था। इसी बरस डेबुसी ने इंगलैंड में अपना फ्रेंच नाटक प्रस्तुत किया जिसे जनता ने नकार दिया और दर्शक हॉल से बाहर निकल गये।

भारी मन के साथ मैं इंगलैंड लौटा और प्रदेशों के दौरे पर निकल गया। ये पेरिस के कितना विपरीत था। उत्तरी शहरों में वे मनहूसयित भरी रविवार की शामें। सब कुछ बंद, और सब कुछ याद दिलासी वह उदासी भी जो कामातुर युवकों और पतुरियें के साथ-साथ चलती। ये अंधियारी हाई स्ट्रीट में और पिछवाड़े की गलियों में गश्त लगाते घूमते रहते। रविवारों की शामों को यही उनका टाइम पास होता था।

इंगलैंड में मुझे वापिस आये छ: माह बीत चुके थे और मैं अपने सामान्य रूटीन का आदी हो चला था। और तभी लंदन कार्यालय से एक ऐसी खबर आयी जिसने मुझे रोमांच से भर दिया। मिस्टर कार्नो ने खबर दी कि द' फुटबाल मैच के दूसरे दौर में मुझे मिस्टर हेरी वैल्डन की जगह लेनी है। अब मुझे महसूस हुआ कि अब मेरे सितारे बुलंदी पर हैं। अब पत्ते मेरे हाथ में थे। हालांकि मैं अपनी रिपेटरी में ममिंग बर्डस् और दूसरे नाटकों में सफलता के झंडे गाड़ चुका था, वे सारी चीजें द फुटबाल मैच में मुख्य भूमिका निभाने के सामने कुछ भी नहीं थीं। और सबसे बड़ी बात तो ये थी कि हमें ऑक्सफोर्ड से शुरुआत करनी थी। ये लंदन का सबसे महत्त्वपूर्ण संगीत हॉल था। हम सबसे बड़ा आकर्षण होने जा रहे थे। और ये पहली बार होने जा रहा था कि पोस्टरों में और विज्ञापनों आदि में मेरा नाम सबसे ऊपर जाता। ये बहुत ऊंची छलांग थी। अगर मैं ऑक्सफोर्ड में सफल हो जाता तो इससे मैं एक नया नाम बनता और मैं तब इस स्थिति में होता कि और अधिक पगार की मांग कर सकता था और एक दिन ऐसा भी आ सकता था कि मैं अपने खुद के स्कैच लिखता। दरअसल, इससे हर तरह की शानदार योजनाओं के द्वार खुलते थे। चूंकि कमोबेश उसी कास्ट को हीद' फुटबाल मैच के लिए रखा जा रहा था, इसलिए हमें सिर्फ एक ही हफ्ते की रिहर्सल की ज़रूरत थी। मैंने इस बारे में बहुत ज्यादा सोचा कि मैं नाटक में अपनी भूमिका कैसे निभाऊंगा। हैरी वेल्डन लंकाशायर उच्चारण में बोलते थे, मैंने तय किया कि मैं इसे कॉकने शैली में करूंगा।

लेकिन पहली ही रिहर्सल में मुझे स्वर यंत्र की गड़बड़ी का दौरा पड़ गया। मैंने अपनी आवाज़ को बचाने के लिए सब कुछ करके देख डाला,फुसफुसा कर बात की, भाप को अपने भीतर लिया, गले पर स्प्रे किया, और तब तक लगा रहा जब तक चिंता ने मुझसे मेरी कोमलता और सारी कॉमेडी छीन ली।

नाटक की पहली रात मेरे गले की नस-नस तनी हुई रस्सी की माफिक खिंची हुई थी। लेकिन मेरी आवाज़ सुनी नहीं जा सकी। कार्नो बाद में मेरे आस-पास मंडराते रहे। उनके चेहरे पर निराशा और हिकारत के मिले जुले भाव थे,"कोई भी तो तुम्हारी आवाज़ नहीं सुन सका।" वे झिड़कते हुए बोले, लेकिन मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि अगली रात मेरी आवाज़ ज़रूर बेहतर हो जायेगी। लेकिन अगली रात भी वही हाल रहा। सच तो ये है कि अगली रात वह और खराब हो चुकी थी। इसका कारण ये था कि मैंने आवाज़ के साथ इतनी जोर आजमाइश कर ली थी कि मुझे खतरा लगने लगा कि कहीं मेरी आवाज़ पूरी तरह से चली ही न जाये। उससे अगली रात भी मेरा यही हाल रहा। नतीजा यह हुआ कि पहले हफ्ते के बाद ही प्रदर्शनों का पर्दा गिर गया। ऑक्सफोर्ड में प्रदर्शन के मेरे सारे सपने चूर चूर हो चुके थे और मेरी निराशा का यह आलम था कि मैं एन्फ्लूंजा का मरीज हो कर बिस्तर पर पड़ गया।

हैट्टी से मिले मुझे एक बरस से ज्यादा हो गया था। फ्लू के प्रकोप के बाद कमज़ोरी और उदासी के आलम में मुझे एक बार फिर उसका ख्याल आया और मैं एक रात देर को कैम्बरवैल में उसके घर की तरफ घूमता-घामता पहुँच गया। लेकिन घर खाली था और दरवाजे पर `किराये के लिए खाली' का बोर्ड लटका हुआ था। मैं बिना किसी खास मकसद के गलियों में भटकता रहा। अचानक रात के अंधेरे में से एक आकृति उभरी,सड़क पार करते हुए और मेरी तरफ आते हुए।

"चार्ली, आधी रात को तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" ये हैट्टी थी। उसने सील की खाल वाला काला कोट पहना हुआ था और सील की खाल का ही गोल हैट पहना हुआ था।

"मैं तुमसे मिलने आया था,' मैंने मज़ाक में कहा।

वह मुस्कुरायी,"बहुत कमज़ोर हो गये हो तुम?"

मैंने उसे बताया कि मैं अभी ही फ्लू से उठा हूँ। वह अब सत्रह बरस की हो रही थी और खासी सुंदर नज़र आ रही थी और उसने कपड़े भी काफी सलीके से पहने हुए थे।

"लेकिन सवाल ये है कि तुम इस वक्त यहाँ क्या कर रही हो?" पूछा मैंने।

"मैं अपनी एक सहेली से मिलने आयी थी और अब अपने भाई के घर जा रही हूं। आना चाहोगे तुम मेरे साथ?" उसने जवाब दिया।

रास्ते में उसने बताया कि उसकी बहन ने एक अमरीकी करोड़पति फ्रैंक से शादी कर ली है और वे नाइस में रह रहे हैं। वह सुबह लंदन छोड़ कर उनसे मिलने के लिए जा रही है।

उस रात में उसे ठगा-सा खड़ा देखता और वह अपने भाई के साथ इठला-इठलाकर नाचती रही। वह अपने भाई के साथ मूर्खतापूर्ण और ठगिनी की तरह एक्टिंग कर रही थी। और मैं, अपने आप के बावजूद, इस भावना से अपने आपको मुक्त नहीं कर पा रहा था कि मेरी जुस्तजू उसके लिए ज़रा सी भी कम नहीं हुई थी। अगर वह किसी साधारण जगह से ताल्लुक रखती होती? किसी भी और सामान्य लड़की की तरह? इस ख्याल ने मुझे उदास कर दिया और मैं उसकी तरफ वस्तुपरक निगाहों से देखता रह गया।

उसके शरीर में भराव आ गया था और मैंने उसकी छातियों के उभारों की तरफ देखा और पाया कि उनकी गोलाइयां छोटी थीं और बहुत ज्यादा आकर्षक नहीं थी। अगर मेरी हैसियत हुई तो क्या मैं उससे शादी कर पाऊंगा? नहीं, मैं किसी से भी शादी नहीं करना चाहता था।

उस ठंडी और चमकीली रात को मैं जब उसके साथ घर की तरफ आ रहा था तो मैं ज़रूर ही बहुत अधिक उदास तरीके से तटस्थ रहा होऊंगा क्योंकि मैंने उससे इस बात की आशा व्यक्त की कि उसका जीवन बहुत सुखी और शानदार होगा।

"तुम इतने उदास और टूटे लग रहे थे कि मैं एकदम रोने रोने को थी।" उसने कहा था।

उस रात मैं एक विजेता की तरह घर लौटा क्योंकि मैंने उसे अपनी उदासी से छू लिया था और अपने व्यक्तित्व को महसूस करा दिया था।

कार्नो ने मुझे फिर से ममिंग बर्डस् में रख लिया था और विडंबना ये कि मेरी आवाज़ को पूरी तरह से ठीक होने में एक महीना लग गया था।द' फुटबाल मैच के बारे में मेरी जो निराशा थी, मैंने तय किया कि अब उसे हावी नहीं होने दूंगा। लेकिन एक ख्याल भी मुझे सताये जा रहा था कि शायद मैं वैल्डन की बराबरी करने या उनकी जगह लेने के काबिल नहीं था। और इससे सबके पीछे फोरेस्टर थियेटर में मेरी असफलता ही काम कर रही थी। अब तक चूंकि मेरा आत्म विश्वास पूरी तरह से लौटा नहीं था, जिस भी नये नाटक में मैंने मुख्य भूमिका निभायी, वह डर का एक ट्रायल था। और अब सबसे अधिक चौंकाने वाला और अत्यधिक निर्णायक दिन आ गया जब मैंने मिस्टर कार्नो को बताया कि मेरा करार खत्म होने को है और मुझे वेतन में बढ़ोतरी चाहिये।

कार्नो जिसे भी पसंद नहीं करते थे उसके प्रति क्रूर और सनकी हो सकते थे। चूंकि वे मुझे पसंद करते थे इसलिए मैंने उनके व्यक्तित्व के इस पक्ष के दर्शन नहीं किये थे लेकिन वे सचमुच बहुत ही बदतमीज़ी भरे तरीके से चूर-चूर कर सकते थे। अपने किसी कामेडियन के प्रदर्शन के दौरान अगर उन्हें वह कामेडियन पसंद नहीं आता था तो वे विंग्स में खड़े हो कर इतने ज़ोर से नाक सिनकने का नाटक करते थे कि सबको सुनायी दे जाये। वे अक्सर ऐसा करने लगते थे कि कामेडियन मंच छोड़ कर ही आ जाता था और उसके साथ हाथा-पाई करने लगता था। वह आखिरी बार थी जब उन्होंने इस तरह की हरकत की थी और अब मैं उनके पास वेतन में बढ़ोतरी के लिए भिड़ने जा रहा था।

"ठीक है," उन्होंने रूखेपन के साथ मुस्कुराते हुए कहा, "तुम वेतन में वृद्धि चाहते हो और थियेटर सर्किट उसमें कटौती करना चाहता है।"उन्होंने कंधे उचकाये,"ऑक्सफोर्ड म्यूज़िक हाल के हंगामे के बाद हमारे पास सिर्फ शिकायतें ही शिकायतें हैं। उनका कहना है कि कम्पनी उस लायक नहीं है... दो कौड़ी का क्रैच क्राउड§।

कार्नो की मंडली में हमें कम से कम से छ: महीने लगते थे कि हम परफैक्ट टैम्पो विकसित कर पाते और तब तक उसे क्रैच क्राउड के नाम से पुकारा जाता था।

"लेकिन उसके लिए मुझे ही तो दोषी नहीं ठहरा सकते," मैंने जवाब दिया।

"लेकिन वे तो दोषी ठहराते हैं।" उनका जवाब था। वे चुभती निगाहों से मेरी तरफ घूर रहे थे।

"उन्हें क्या शिकायत है?" पूछा मैंने।

उन्होंने अपना गला खखारा और फर्श पर देखने लगे,"उनका कहना है कि तुम सक्षम नहीं हो।"

हालांकि उनकी यह टिप्पणी सीधे मेरे पेट में जा कर शूल की तरह चुभी, इससे मुझे गुस्सा भी आया, लेकिन मैंने शांत स्वर में जवाब दिया,"ठीक है, दूसरे लोग ऐसा नहीं सोचते। और वे मुझे उससे ज्यादा देने को तैयार हैं जितना मुझे यहाँ मिल रहा है।" ये सच नहीं था। मेरे सामने कोई प्रस्ताव नहीं था।

"उनका कहना है कि शो फालतू है और कामेडियन दो कौड़ी का है। देखो," उन्होंने फोन उठाते हुए कहा,"मैं एक स्टार को फोन करूंगा,बेरमाँडसे को, और तुम उनसे अपने आप सुन लेना।... मेरा ख्याल है पिछले हफ्ते तुम्हारा शो बहुत ही खराब रहा था।" उन्होंने फोन पर बात की।

"वाहियात..." फोन पर आवाज आयी।

कार्नो ने खींसें निपोरी,"आप इसे किस श्रेणी में डालेंगे?"

"दो कौड़ी का...शो"

"और चैप्लिन के बारे में क्या ख्याल है? हमारे प्रधान कामेडियन? क्या उसका काम भी ठीक नहीं?"

"वह तो बू मारता हैं।"

कार्नो साहब ने फोन मुझे थमा दिया,"अपने आप ही सुन लो..."

मैं फोन लिया। "...हो सकता है वह बू मारता हो लेकिन उससे आधा भी नहीं जितना आपका सड़ांध भरा थियटर बू मारता है।" मैंने जवाब दिया।

कार्नो साहब की मुझे औकात दिखाने की तरकीब काम नहीं आयी। मैंने उनसे कहा कि अगर वे भी मेरे बारे में यही राय रखते हैं तो करार का नवीकरण करने का कोई मतलब नहीं है। कई मायनों में कार्नो बहुत ही काइयां आदमी थे। लेकिन वे मनोवैज्ञानिक नहीं थे। बेशक मैं बू मारता था तो भी ये कार्नो साहब को शोभा नहीं देता था कि फोन की दूसरी तरफ से किसी और से ये कहलवायें मुझे पांच पाउंड मिल रहे थे और हालांकि मेरा आत्म विश्वास डगमाया हुआ था, फिर भी मैं छ: की मांग कर रहा था। मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रहा जब कार्नो साहब ने मुझे छ: पाउंड देना स्वीकार कर लिया और मैं एक बार उनकी निगाहों में राज दुलारा बन गया।

आल्फ रीव्ज़, जो कार्नो साहब की अमेरिकी कम्पनी में मैनेजर थे, इंगलैंड वापिस आये और उन्होंने ये अफवाह फैला दी कि वे अपने साथ अमेरिका ले जाने के लिए किसी प्रधान कामेडियन की तलाश में हैं।

ऑक्सफोर्ड म्यूजिक हॉल के उस बड़े हादसे के बाद से मैं अमेरिका जाने के ख्यालों से भरा हुआ था। अकेले जा कर थ्रिल और रोमांच के लिए नहीं, बल्कि वहाँ जाने का मतलब हमेशा नयी आशाएं और नयी दुनिया में एक नयी शुरुआत। सौभाग्य से, मैं जिस नये नाटक स्केटिंग में प्रमुख भूमिका निभा रहा था, बरमिंघम में सफलता के झंडे गाड़ रहा था, और जब मिस्टर रीव्ज़ वहाँ आ कर कम्पनी में शामिल हुए तो मैंने अपनी भूमिका को बेहतर बनाने में जान लड़ा दी और इसका नतीजा ये हुआ कि रीव्ज़ साहब ने कार्नो साहब को तार भेजा कि उन्हें अमेरिका के लिए अपना कामेडियन मिल गया है। लेकिन कार्नो साहब ने मेरे लिए और ही मंसूबे बांधे हुए थे। इस वाहियात खबर ने मुझे हफ्तों तक पेसोपेश में डाले रखा जब तक कि वे वॉव वॉव नाम के नाटक में दिलचस्पी नहीं लेने लग गये। ये नाटक सीक्रेट सोसाइटी में किसी सदस्य को लिये जाने के बारे में प्रहसन था। मुझे और रीव्ज़ साहब को ये नाटक वाहियात लगा, बिना सिर पैर का, बिना किसी खासियत के लगा, लेकिन कार्नो साहब पर इसका नशा सवार था और वे अड़ गये कि अमेरिका सीक्रेट सोसाइटियों से भरा पड़ा है। और उन पर इस तरह का कटाक्ष करने वाला नाटक ज़रूर सफल होगा। मेरी खुशी और राहत का ठिकाना न रहा जब कार्नो साहब ने मुझे ही इसकी प्रधान भूमिका के लिए चुना। अमेरिका के लिए वॉव वॉव।

मुझे अमेरिका जाने के लिए इसी तरह के किसी मौके की जरूरत थी। इंगलैंड में मुझे लग रहा था कि मैं अपनी संभावनाओं के शिखर पर पहुँच चुका हूँ और इसके अलावा, वहाँ पर मेरे अवसर अब बंधे बंधाये रह गये थे। आधी-अधूरी पढ़ाई के चलते अगर मैं म्यूजिक हॉल के कामेडियन के रूप में फेल हो जाता तो मेरे पास मजदूरी के काम करने के भी बहुत ही सीमित आसार होते।

अमेरिका में संभावनाओं का अंनत आकाश था।

यात्रा शुरू करने से पहले की रात मैं लंदन के वेस्ट एंड में घूमता रहा, लीसेटर स्क्वायर, कोवेन्टरी स्ट्रीट, द माल, और पिकाडिल्ली में रुका। उस समय मेरे मन में उदासी भरी भावना थी कि ये आखिरी बार होगा कि मैं लंदन घूम रहा हूँ क्योंकि मैं मन ही मन तय कर चुका था कि मुझे स्थायी रूप से अमेरिका जाकर ही बसना है। मैं आधी रात तक दो बजे तक भटकता रहा, सुनसान गलियों और मेरी खुद की उदासी की कविता में डूबता उतराता।

मैं विदा के दो शब्द कहने से बच रहा था। अपने नातेदारों से और दोस्तों से बिछुड़ते समय आदमी जो कुछ भी महसूस करता है, उनके द्वारा विदाई दिये जाने के बारे में, उसमें और धंसता ही है। मैं सुबह छ: बजे ही उठ गया था। इसलिए मैंने इस बात की ज़रूरत नहीं समझी कि सिडनी को जगाऊं। लेकिन मैंने मेज पर एक पर्ची छोड़ दी,"अमेरिका जा रहा हूँ। तुम्हें लिखता रहूँगा। प्यार। चार्ली।"

§ टेम्स एम्बैंकमेंट लंदन का प्रसिद्ध कला क्षेत्र है। शाम के वक्त लोग यहां चहलकदमी करते ऩजर आते हैं। कई स़डक छाप कलाकार वहां पर तटबंध के पास अपनी गायन और संगीत कला का प्रदर्शन करके भीख मांगते हैं।

§ कार्ना ट्रुप में हम सही तरीके से टेम्पो पर महारत हासिल कर सकें, इसमें एक साथ काम करने में हमें छ: महीने लग जाया करते थे तब तक हमें क्रैच क्राउड कहा जाता था।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 8

हमें यात्रा करते हुए बारह दिन हो चुके थे, और हमारा अगला पड़ाव क्यूबेक था। बेहद खराब मौसम और चारों तरफ लहराता हुआ महासमुद। तीन दिन तक तो हम टूटी पतवार लेकर पड़े रहे, इसके बावज़ूद मैं तो एक दूसरी ही दुनिया में जाने के विचार से उल्लसित था और अपने आपको बहुत हल्का महसूस कर रहा था। मवेशियों वाली नाव पर हम कनाडा हो कर जा रहे थे। नाव पर गाय, बैल, भेड़, बकरी भले ही न हों, पर चूहे ढेर सारे थे और रह-रह कर वे बड़ी हेकड़ी से मेरी बर्थ पर आ धमकते और जूता चलाने पर ही भागते।

सितंबर की शुरुआत थी और न्यू फाउंडलैंड हमने कोहरे में पार किया। आखिर मुख्य भूमि के दर्शन हुए। फुहार पड़ रही थी और दिन में भी सेंट लांरेस नदी के तट निर्जन नज़र आ रहे थे। नाव से क्यूबेक उस चहारदीवारी की तरह लग रहा था जहाँ हैमलेट का भूत चला करता होगा। मेरा मन स्टेट्स के बारे में कुतूहल से भर उठा।

पर जैसे-जैसे हम टोरंटो की ओर बढ़ते गए, पतझड़ के रंगों से देश और खूबसूरत होता चला गया और मेरी उम्मीदें पहले से ज्यादा रंगीन हो उठीं।

टोरंटो में हमने गाड़ी बदली और अमेरिकी आप्रवासन के दफ्तर से होकर गुज़रे। आखिरकार रविवार सुबह दस बजे हम न्यूयार्क आ पहुँचे।टाइम्स स्क्वायर में जब हम टैक्सी से उतरे तो कुछ निराशा सी हुई। सड़कों और फुटपाथों पर अखबार इधर-उधर उड़ रहे थे। ब्रॉडवे बेरौनक दिख रहा था, मानो फूहड़-सी कोई औरत अभी-अभी बिस्तर से उतरी हो। प्राय: हरेक नुक्कड़ पर ऊंची ऊँची कुर्सियां थीं जिसमें जूतों के साँचे लगे थे और लोग बिना कोट वगैरह के, केवल कमीज़ पहने हुए आराम से बैठ कर अपने जूते पॉलिश करवा रहे थे। देख कर लगा, मानो वे लोग सड़क पर ही शौच आदि से निवृत्त हुए हों। कई लोग अजनबियों सरीखे लगे जो फुटपाथों पर यूं ही खड़े थे मानो अभी-अभी रेलवे स्टेशन से बाहर निकले हों और अगली गाड़ी के आने तक का समय काट रहे हों।

जो भी हो, ये न्यू यार्क था, रोमांचक, अक्कल चकरा देने वाला और कुछ-कुछ डरावना। दूसरी तरफ पेरिस ज्यादा दोस्ताना था। मैं फ्रेंच भले ही नहीं बोल पाता था पर बिस्तास और कैफे वाले पेरिस ने हरेक नुक्कड़ पर मेरा स्वागत किया था। लेकिन न्यू यार्क बड़े कारोबार की जगह थी। गर्व से भरी निष्ठुर, ऊँची-ऊँची आकाश को छूने वाली इमारतों को आम आदमी की तकलीफ से कोई सरोकार नहीं था। सैलून बार में भी ग्राहकों के बैठने की कोई जगह नहीं थी। सिर्फ पीतल की लम्बी रेलिंग लगी हुई थी जिस पर आप पैर टिका सकें, और खाने की नामी जगहें, बेशक साफ-सुथरी थी, सफेद संगमरमर लगे हुए थे वहां लेकिन ये जगहें भी मुझे बेजान और अस्पतालनुमा लगीं।

फोर्टी-थर्ड स्ट्रीट से कुछ दूर ब्राउन स्टोन हाउसेस में मैंने पिछवाड़े का एक कमरा लिया, जहाँ अब पुरानी टाइम्स बिल्डिंग खड़ी है। घर बड़ा ही मनहूस और गंदा था और इसे देख कर मुझे लंदन और अपने छोटे से फ्लैट की याद सताने लगी। बेसमेंट में धुलाई और इस्तरी का कारोबार चलता था और हफ्ते के दिनों में भाप के साथ ऊपर उड़कर आती इस्तरी होते कपड़ों की बू मेरी परेशानियों को और बढ़ाती।

उस पहले दिन मैंने अपने आपको बहुत ही अधूरा पाया। किसी रेस्तरां में जाना और कुछ ऑर्डर करना तो अग्नि परीक्षा थी क्योंकि मेरा अंग्रेज़ी उच्चारण उनसे अलग था और मैं धीरे-धीरे बोलता था। कई लोग इतने फर्राटे से और झटका देकर बोलते थे कि मुझे इस डर से असुविधा होने लगती कि मैं बोलने चला तो हकलाने लगूंगा और उनका भी समय बरबाद होगा।

ये चमक-दमक और ये रफ्तार मेरे लिए नई थी। न्यू यॉर्क में छोटे से छोटे कारोबार वाला आदमी भी फुर्ती से काम करता है। जूता पॉलिश करने वाला लड़का पॉलिश वाले कपड़े को फुर्ती से झटकता है, बार में बियर देने वाला ही वैसी ही फुर्ती से बार की चमचमाती सतह पर बीयर आपकी ओर सरका देगा। अण्डे की जर्दी मिले माल्ट देते वक्त सोडा क्लर्क किसी कूदते फांदते कलाबाज की तरह काम करता है। एक ही बार में वह एक गिलास झटकता है और जो भी चीज़ें डालनी हैं, उन पर टूट पड़ता है। वनीला फ्लेवर, आइसक्रीम का छोटा-सा टुकड़ा, दो चम्मच माल्ट, कच्चा अण्डा, बस एक बार में फोड़ डाला, दूध मिलाया, फिर इन सबको लेकर एक बर्तन में ज़ोर से हिला कर मिलाया और लीजिए पेश है। ये सब कुछ एक मिनट से भी कम समय में।

एवेन्यू पर उस पहले दिन कई लोग वैसे नज़र आए जैसा मैं महसूस कर रहा था - अकेले और कटे-फटे। इनमें से कुछ ऐसे हाव-भाव में थे जैसे वही उस जगह के मालिक हों। कई तो बड़े ढीठ और बदमिजाज थे मानो सज्जनता और विनम्रता से पेश आएंगे तो कोई उन्हें कमज़ोर समझ लेगा। लेकिन शाम को गर्मियों के कपड़े पहनी हुई भीड़ के साथ जब मैं ब्रॉडवे होकर जा रहा था तो जो देखा उससे मेरा मन आश्वस्त हो गया। कड़ाके की सितंबर के ठंड के बीच हमने इंगलैण्ड छोड़ा था और झुलसा देने वाली अस्सी डिग्री की गर्मी में न्यू यार्क पहुँचे थे। अभी मैं चल ही रहा था कि बिजली की ढेर सारी रंग-बिरंगी बत्तियों से ब्रॉडवे जगमगाने लगा और बेशकीमती जवाहरात की तरह चमकने लगा। गर्मी की उस रात में मेरा नज़रिया बदला और अमेरिका का नया मतलब मेरे ज़ेहन में उतरता चला गया। बहुमंज़िला इमारतों, चमकती खुशनुमा रोशनियों और गुदगुदा देने वाले विज्ञापनों ने मेरे मन में आशा और रोमांच की हलचल मचा दी। यही है - मैंने अपने आपसे कहा - मैं इसी जगह से वास्ता रखता हूँ।

ब्रॉडवे पर लगता था हर कोई किसी न किसी कारोबार में है: अभिनेता, हास्य कलाकार, मजमे वाले, सरकस में काम करने वाले और मनोरंजन वाले हर जगह थे। सड़क पर, रेस्तराओं में, होटलों और डिपार्टमेंटल स्टोरों में हर आदमी धंधे की बात कर रहा था। थिएटर मालिकों के नाम जहाँ-तहाँ सुनने को मिल जाते: ली शुबर्ट, मार्टिन बैक, विलियम मॉरिस, पर्सी विलियम्स, क्ला एंड इरलैंगर, फ्रॉइमैन, सुलिवन एण्ड कान्सिडाइन, पैंटेजेज़। घरेलू नौकरानी हो, लिफ्ट वाला हो, वेटर हो, टैक्सीवाला हो, बारमैन हो, दूध वाला हो या बेकरी वाला, जिसे देखो, शो मैन की तरह बात करता। राह चलते लोगों की बातचीत के सुनायी पड़ते अंश भी वही। बूढ़ी हो चली माताएं, दिखने में किसानों की बीवियों की तरह और बातें सुनिए तो - वह अभी-अभी वेस्ट में पैंटेज़ेज के लिए काम करके लौटा है। एक दिन में तीन-तीन शो थे। सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो बड़ा हास्य कलाकार बनेगा।

एक दरबान कह रहा है,"तुमने विंटर गार्डन में जॉनसन को देखा?"

"जरूर, उसने जेक के शो की लाज रख ली।"

अखबारों का एक पूरा पन्ना हर दिन थिएटर को समर्पित होता था जिसमें रेसकोर्स वाले घोड़ों के रेसिंग चार्ट की मानिंद खबरें होतीं। हास्य कला में किसने कितना नाम कमाया, किस पर अधिक तालियां बजीं, इसके आधार पर रेस के घोड़ों की तरह पहले, दूसरे और तीसरे स्थान दिए जाते थे। अभी इस दौड़ में हम शामिल नहीं हुए थे और मुझे इस बात की चिंता रहती कि चार्ट में हम किस पोजीशन पर आएंगे। 56 हफ्तों तक हमारा कार्यम पर्सी विलियम्स सर्किट में था। इसके बाद और कोई बुकिंग नहीं थी। हमारा अमेरिका में टिकना इसी कार्यम के परिणाम पर निर्भर था। नहीं चले, तो इंगलैंड लौट जाएंगे।

हम लोगों ने एक रिहर्सल रूम लिया और द' वाउ वाउज़ की एक हफ्ते तक रिहर्सल की। हमारे दल में ड्ररी लेन का प्रसिद्ध बूढ़ा सनकी जोकरवाकर था। सत्तर पार कर चुका था। आवाज़ तो बड़ी गंभीर थी पर रिहर्सल में पता चला कि साफ-साफ तो बोल ही नहीं पाता। ऊपर से प्लॉट का एक बड़ा हिस्सा दर्शकों को समझाने का काम उसी को करना था। ऐसी कोई लाइन जैसे - मज़ाक बेहन्तहा डरावना होगा उससे बोली ही न जाए और वह कभी बोल पाया भी नहीं। पहली रात वह एब्लिब-एब्लिब ब़ड़बड़ाया। बाद में यह एब्लिब ही रह गया, पर आखिर तक सही शब्द नहीं ही निकला।

अमेरिका में कार्नो का बड़ा नाम था। इसलिए बेहतरीन कलाकारों के कार्यक्रम में सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र हम ही होते थे। भले ही मुझे उस स्केच से नफरत थी, मैंने इसका भरपूर उपयोग किया। मुझे उम्मीद थी कि शायद यही वो चीज़ हो जाये जिसे कार्नो खालिस अमेरिका के लिए कहा करते थे।

पहली रात स्टेज पर आने से पहले मैं कितना नर्वस था, किस तकलीक और पसोपेश में था, मैं इसका बयान नहीं कर सकता और न ही इसका कि स्टेज के साइड में खड़े अमेरिकी कलाकार हमें देख रहे थे तो मुझ पर क्या बीत रही थी। इंगलैंड में मेरे पहले लतीफे पर ज़ोरदार ठहाके लगते थे और इससे पता चल जाता था कि बाकी की कॉमेडी कैसी चलेगी।

कैंप का सीन था, एक तंबू में चाय का कप लिए मैं प्रवेश करता हूं।

आर्ची (मैं) : गुड मार्निंग हडसन। मुझे थोड़ा-सा पानी चाहिए। देंगे ?

हडसन : जरूर, पर किसलिए

आर्ची : मैं नहाना चाहता हूँ।

(दर्शकों की ओर से एक हल्की आधी-अधूरी हँसी और फिर बेरुखी चुप्पी)

हडसन : रात की नींद कैसी रही, आर्ची?

आर्ची : अरे, मत पूछो। सपने में देखा, एक इल्ली मुझे दौड़ा रही है।

अब भी दर्शकों में वैसी ही मुर्दनगी। इस तरह हम बड़बड़ाते रहे और स्टेज के बगल में खड़े अमेरिकियों के थोबड़े और ज्यादा लटकते गए। लेकिन हमारे उस अंक को खत्म करने से पहले ही वे जा चुके थे।

ये स्केच बचकाना और नीरस था, और मैंने कार्नो को सलाह दी थी कि इससे शुरुआत न करें। हमारे पास दूसरे ज्यादा मज़ेदार स्केचेज थे जैसे स्केटिंग, द डैंडी थीव्स, द पोस्ट ऑफिस और मिस्टर पर्किंस, एम.पी. जो अमेरिकी दर्शकों को पसंद आते। लेकिन कार्नो अपनी ज़िद पर अड़े रहे।

जो भी कहिए, परदेस में नाकामी से तकलीफ तो होती ही है। हर रात ऐसे दर्शकों के सामने हाजरी बजाना वाकई दुष्कर काम था जो एक के बाद एक गुदगुदा देने वाली इंगलिश कॉमेडी के आगे बेरुखी से सन्नाटा ओढ़े बैठे रहें। स्टेज पर हमारा आना-जाना शरणार्थियों की तरह होता था। ये बेइज़्ज़ती हम लोगों ने छह हफ्ते तक झेली। दूसरे कलाकार हम लोगों से यूं अलग-थलग रहते थे जैसे हमें प्लेग हुआ हो। इस तरह से पटकनी खाने और जलील होने के बाद जब हम जाने के लिए स्टेज के पास खड़े हुए तो लगा मानो लाइन में खड़ा करके हम गोली मारी जानी है।

हालांकि मैं अपने आपको अकेला और ठुकराया हुआ महसूस करता था, फिर भी इस बात के लिए शुक्रगुज़ार था कि मैं अकेला रह रहा हूँ। कम से कम दूसरों के साथ अपनी बेइज़्ज़ती शेयर तो नहीं करनी पड़ती थी। दिन में मैं लंबी अंतहीन वीथियों पर चहल कदमी किया करता था। कभी चिड़िया घर, तो कभी पार्क, मछलीघर और कभी संग्रहालय जाकर मन बहला लेता था। अपनी नाकामी के बाद न्यू यार्क अब एकदम अपराजेय लगता था। इमारतें इतनी ऊँची जहाँ पहुँचा न जा सके और उनका प्रतिस्पर्धी परिवेश इतना दबाने वाला कि जिसके आगे आप खड़े नहीं हो सकते। इसकी शानदार ऊँची इमारतें और फैशनबेल दुकानें बेरहमी से मुझे मेरे अधूरेपन का अहसास कराती थीं। फिफ्थ एवेन्यू के परे आलीशान मकान सफलता के स्मारक थे, घर नहीं।

मैं पैदल चल कर शहर भर की धूल फांकता रहता और शहर से होते हुए झोपड़ पट्टी वाले इलाकों की ओर चला जाता। मेडिसन स्क्वायर के पार्क से होकर, जहाँ लावारिस बूढ़े अपने पैरों की तरफ भाव शून्यता से घूरते हुए हताशा में बेंच पर बैठे रहते थे। इसके बाद मैं सेकण्ड और थर्ड एवेन्यू की ओर चला। गरीबी यहां बेरहम, तीखी और मारक थी। जहाँ-तहाँ पसरी हुई, एक गुर्राती, अट्ठहास करती और चिल्लाती हुई गरीबी; दरवाजों पर, चिमनियों पर फैलती हुई और रास्तों पर वमन करती हुई गरीबी। मेरा दिल बैठने लगा और मेरा मन जल्द से जल्द ब्रॉडवे लौटने का करने लगा।

अमेरिकी आदमी आशावादी होता है। अथक चेष्टा करने वाला और सैकड़ों सपनों में डूबा रहने वाला। वह जल्द से जल्द बाजी मार लेना चाहता है। वह जैक पॉट हिट करो! निकल चलो! बेच डालो!। कमाओ और भागो! कोई दूसरा धंधा कर लो! में विश्वास करता है। लेकिन हद से गुज़र जाने के इसी अंदाज़ ने मेरी हिम्मत बँधानी शुरू कर दी। दूसरी ओर से देखा जाये तो अपनी नाकामियों के चलते मैं काफी हल्का महसूस करने लगा। ऐसा लगने लगा मानो अब कोई रुकावट नहीं है। अमेरिका में और भी कई संभावनाएं थीं। मैं थिएटर की दुनिया से क्यूँ चिपका रहूँ? मैं कला को समर्पित तो था नहीं। कोई दूसरा धंधा कर लेता। मुझमें आत्म विश्वास लौटने लगा। जो हो गया सो हो गया, मैंने अमेरिका में टिकने की ठान ली थी।

असफलता से ध्यान हटाने के लिए मैंने सोचा, कुछ पढूँ और अपना शैक्षिक स्तर उठाऊं। मैंने पुरानी किताबों की दुकानों के चक्कर लगाने शुरू किए। कई पाठ्य पुस्तकें खरीद डालीं - केलॉग्स रेटरिक, एक अंग्रेजी व्याकरण और एक लैटिन अंग्रेजी डिक्शनरी - और उन्हें पढ़ने की ठानी। लेकिन मेरा संकल्प धरा का धरा रह गया। किताबों को देखते ही मैंने उन्हें अपने संदूक में एकदम नीचे रख दिया और भूल गया - और स्टेट्स में दूसरी बार आने पर ही उनकी ओर देखा।

न्यू यार्क में पहले हफ्ते के कार्यक्रम में एक नाटक था, गस एडवार्ड्स स्कूल डेज। बच्चों को लेकर बनाया गया। इस मण्डली में एक आकर्षक चरित्र था जो दिखने में छोटा था, पर चाल-ढाल और तौर-तरीकों से पहुँची हुई चीज़ लगता था। उसे सिगरेट के कूपनों से जूए की लत थी जिसके बदले में युनाइटेड सिगार स्टोर से निकल प्लेटेड कॉफी के बरतनों से लेकर शानदार पियानो तक मिलने का चांस रहता था। उनके लिए वह किसी के भी साथ पाँसा फेंकने को तैयार था। वाल्टर विंचेल नामक यह व्यक्ति असाधारण तेज़ी से बात कर सकता था। उम्र हो जाने पर भी उसका धुँआधार बोलना जारी रहा, पर कई बार मुँह से कुछ का कुछ निकल जाया करता था।

हालांकि हमारा शो चला नहीं। व्यक्तिगत रूप से मैं लोगों का ध्यान खींचने में सफल रहा। वेरायटी के सिम सिल्वर मैन ने मेरे बारे में कहा,"मण्डली में कम से कम एक मज़ेदार अंग्रेज़ था, और वो अमेरिका में चलेगा।"

अब तक हम लोग बोरिया-बिस्तर समेट कर छ: हफ्तों के बाद इंगलैण्ड लौटने का मन बना चुके थे। पर तीसरे सप्ताह हमने अपना नाटकफिफ्थ एवेन्यू थिएटर में खेला। यहां ज्यादातर दर्शक अंग्ऱेज नौकर और खानसामे थे। सोमवार, पहली रात को हम धमाके से चले। हर चुटकुले पर वे हँसे। हम सभी चकित थे, मैं भी, क्योंकि मैंने भी हमेशा जैसी बेरुखी की उम्मीद की थी। मुझे लगता है, कामचलाऊ प्रदर्शन से मेरे ऊपर दबाव नहीं था और मैंने कोई गलती नहीं की।

उस सप्ताह एक एजेंट ने हम लोगों से मुलाकात की और सालिवन एण्ड कॉन्सिडाइन सर्किट में बीस हफ्तों के दौरे के लिए बुक कर लिया। ये चलताऊ रंगारंग विविध शो कार्यक्रम था, और हमें दिन में तीन शो करने थे।

सालिवन कॉन्सिडाइन के उस पहले दौरे में कोई जबर्दस्त धमाका तो हम लोगों ने नहीं किया लेकिन औरों के मुकाबले बीस ही रहे। उन दिनों मिडिल वेस्ट लुभावना था। उतनी भाग-दौड़ नहीं थी और माहौल रोमांटिक था। हरेक ड्रग स्टोर और सैलून में घुसते ही चौसर की टेबल होती थी जहां हर उस चीज के लिए पाँसा फेंका जा सकता था जो वहाँ बिक रही हो। रविवार की सुबह मेन स्ट्रीट खड़खड़ाते डाइस की प्यारी और दोस्ताना आवाज़ से भरी होती थी। कई बार मैं भी दस सेंट में एक डालर की चीज़ें जीत जाता।

जीवन यापन सस्ता था। एक हफ्ते में सात डॉलर पर किसी छोटे होटल में एक कमरा और दिन में तीन बार भोजन मिल जाता था। खाना बहुत ही सस्ता था। सैलून का फ्री लंच काउंटर हमारी मंडली के लिए बहुत बड़ा संबल था। एक निकल (पाँच सेण्ट) में एक गिलास बीयर और खाने की सबसे स्वादिष्ट और खास चीज़ें मिल जाया करती थीं। सूअर की रानें होती थीं, स्लाइस्ड हैम, आलू सलाद, सार्डिन मछलियां, मैकरॉनी चीज़,लीवर वुर्स्ट, कुलचा और हॉट डॉग! हमारे कुछ सदस्य इसका फायदा उठाते और अपनी प्लेटों पर तब तक ढेर लगाते जाते जब तक बार मैन टोक न दे,"ओए, उतना लाद कर कहाँ चल दिए - क्या क्लोनडाइक की तरफ?"

हमारे दल में पंद्रह या कुछ अधिक लोग थे। ट्रेन की बर्थ के पैसे देने के बाद भी हर मेम्बर कम से कम अपना आधा मेहनताना बचा लेता था। मेरी तनख्वाह थी एक हफ्ते में पचहत्तर डॉलर और इसमें से पचास तो शान से बैंक ऑफ मैनहटन में नियमित रूप से पहुँच जाते।

दौरे के सिलसिले में हम लोग कोस्ट पहुँचे। रंगारंग कार्यक्रम की उसी टीम में हमारे साथ पश्चिम की तरफ चलने वालों में टेक्सास का एक सुंदर युवक था जो कसरती झूले पर करतब दिखाता था। वह ये तय नहीं कर पा रहा था कि और आगे भी अपने पार्टनर के साथ ही बना रहे या ईनामी दंगल लड़ा करे। रोज सुबह मैं बॉक्सिंग के दस्ताने पहन कर उसके साथ उतरता। वह बेशक मुझसे लंबा और भारी था, फिर भी मैं उसे जब जैसे चाहता, हिट कर सकता था। हम बहुत अच्छे दोस्त बन गए और बॉक्सिंग की एक पारी के बाद हम साथ लंच लेते। वो कहा करता था कि उसके आदमी टेक्सॉस के सीधे सादे किसान हैं। वह फार्म की ज़िंदगी के बारे में घण्टों बतियाता। जल्दी ही हम लोग थिएटर का धंधा छोड़ने और साझेदारी में सूअर पालने के बारे में बात करने लगे।

हम दोनों के पास कुल मिलाकर दो हजार डॉलर थे और था, ढेर सारा पैसा कमाने का एक सपना। हमने योजना बनायी। अरकसॉन्स में पचास सेन्ट प्रति एकड़ के हिसाब से दो हज़ार एकड़ जमीन शुरू में ली जाए और बाकी पैसा सूअर खरीदने में लगाया जाए। हमने जोड़-जाड़ कर देखा कि अगर सब कुछ ठीक-ठाक चला तो सूअरों के चक्रवृद्धि ढंग से पैदा होने और औसतन हर साल पाँच के हिसाब से बच्चे जनने के हिसाब से पाँच वर्षों में हम एक लाख डॉलर बना सकते हैं।

रेलगाड़ी में सफ़र करते हुए हम खिड़की से बाहर देखते और सूअर बाड़ों को देखकर जोश से भर उठते। हमारे खाने, सोने और यहाँ तक कि सपने में भी सूअर ही सूअर। सूअर पालने के वैज्ञानिक तौर तरीकों पर मैंने एक किताब न खरीद ली होती तो शो बिजनेस छोड़कर सूअर पालक बन गया होता। लेकिन उस किताब ने, जिसमें सूअरों को बधिया करने के सचित्र तरीके दिए गए थे, मेरा जोश ठण्डा कर दिया और जल्दी ही मैं इस धंधे को भूल गया।

इस दौरे पर अपने साथ मैं वायलिन और सेलो लेकर चला था। सोलह बरस की उम्र से ही अपने बेडरूम में मैं हर दिन चार से छह घण्टे इन्हें बजाने का अभ्यास किया करता था। हर हफ्ते मैं थिएटर संचालक से या जिसे वो कहता उससे वायलिन के सबक लेता था। मैं बाएँ हाथ से बजाता था इसलिए वायलिन भी बाएँ हाथ के हिसाब से बँधा था, जिसमें बास-बार और साउंडिंग पोस्ट उलट दिए गए थे। मेरी बड़ी इच्छा थी कि संगीत समारोह का कलाकार बनूंगा या ये नहीं कर पाया तो रंगारंग कार्यक्रम में बजाऊँगा। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, मेरी समझ में आ गया कि इसमें कभी माहिर नहीं हो पाऊँगा, सो मैंने इसे छोड़ दिया।

1910 का शिकागो अपनी कुरूपता, भयावहता और कालिमा में एक आकर्षण लिए हुए था। एक ऐसा शहर जिसमें अभी भी शुरुआती दिनों के मिजाज थे। कार्ल सैंडलिंैग के शब्दों में धूंए और इस्पात का एक फलता-फूलता साहसी महानगर। मुझे इसके चारों ओर फैले समतल मैदान रूस के घास के मैदानों जैसे लगते हैं। कुछ नया करने का इसमें प्रचण्ड उल्लास था जो तन-मन को अनुप्राणित करता था। लेकिन इसके भीतर एक पौरुषी एकाकीपन धड़कता था। इस जिस्मानी बीमारी के काट के रूप में मौजूद था एक राष्ट्रीय मनोरंजन जिसे बर्लेस्क शो (प्रहसन/पैरोडी) कहा जाता था। इसमें बेहरतीन कॉमेडियनों का एक गुट होता था और साथ में बीस या कुछ अधिक कोरस लड़कियां होती थीं। कुछ सुंदर, कुछ घिसी-पिटी। कामेडियन मज़ेदार थे। ज्यादातर शो अश्लील होते थे, जनानखाने की कॉमेडी घटिया और बुराइयों से भरी हुई। पूरा माहौल हीमैन का था। क्षुद्र काम प्रतिद्वंद्विता से भरा हुआ जो देखने वालों को उल्टे किसी भी प्रकार की सामान्य कामेच्छा से अलग कर देता था। झूठ-मूठ की भावुकता दिखाना ही उनकी प्रतिक्रिया होती। ऐसे शो शिकागो में भरे पड़े थे। वाट्सन्स बीफ ट्रस्ट नामक ऐसे ही एक शो में अधेड़ उम्र की भारी-भरकम औरतें चुस्त कपड़ों में प्रदर्शन करती थीं। इस बात का प्रचार किया जाता था कि उन सभी का वजन टनों में है। थिएटर के बाहर शर्माये, सकुचाए पोज़ में उनकी तस्वीरें बड़ी दु:खद और निराशाजनक होती थीं।

शिकागो में हम वाबाश एवेन्यू में एक छोटे होटल में रहते थे। जीर्ण-शीर्ण और मनहूस होने के बावजूद इसमें एक रोमानी आकर्षण था क्योंकि बर्लेस्क की अधिकांश लड़कियां वहाँ रहती थीं। हर शहर में हम उस होटल के बाहर मधुमक्खियों की तरह लाइन लगा देते जहाँ शो वाली लड़कियाँ ठहरती थीं। पर जिस चक्कर में जाया करते थे उसमें कामयाब नहीं हुए। ऊँचाई पर चलने वाली ट्रेनें रात को तेज़ी से निकलतीं और रह-रह कर पुराने बाइस्कोप की तरह मेरे सोने के कमरे की दीवाल को झिलमिला जातीं। फिर भी, मुझे इस होटल से प्यार था, हालांकि कभी कुछ रोमानी घटित हुआ नहीं।

एक जवान लड़की, शांत और सुंदर, किसी कारण से हमेशा अकेली रहती थी, उसे चलते देखकर लगता, जैसे अपने प्रति बेहद सचेत है। होटल की लॉबी में आते-जाते उसके पास से होकर कई बार गुज़रा पर इतनी हिम्मत कभी जुटा नहीं पाया कि परिचय पाऊं। वैसे ये तो कहना ही पड़ेगा कि अपनी तरफ से उसने कभी पत्ता नहीं फेंका।

शिकागो से कोस्ट हम जिस ट्रेन में जा रहे थे, वो लड़की भी उसी में थी। वेस्ट जाने वाली बर्लेस्क कंपनियां आम तौर पर हमारे ही रास्ते होकर जातीं। और उनका कार्यक्रम भी एक ही शहर में पड़ता। गाड़ी में मैंने उसे अपनी कंपनी के एक सदस्य से बात करते देखा। बाद में वह मेरे पास आकर बैठा।

मैंने पूछा, "कैसी लड़की है वो?"

"बड़ी ही प्यारी। बेचारी, अफसोस होता है उसके लिए!"

"क्यों?"

वह झुककर और पास आ गया,"याद है, हवा उड़ी थी कि शो की किसी लड़की को सिफलिस है? बस, यही है।"

सीटल में उसे कंपनी छोड़ने दिया गया। वह अस्पताल में भर्ती हुई। हमने उसके लिए पैसे इकट्ठे किए जिसमें सारी घुमंतू कंपनियों ने योगदान दिया। बेचारी के बारे में सबको पता था। अलबत्ता, वो सबकी शुक्रगुजार थी और बाद में सैलवरसम की सुई, जो उस समय अभी नयी दवा थी,लेकर ठीक हुई। और फिर से अपनी कंपनी में वापस आ गयी।

उन दिनों पूरे अमेरिका में वेश्यावृत्ति बेरोक-टोक फैल रही थी। शिकागो का विशेष नाम हाउस ऑफ ऑल नेशन्स के चलते था जिसे दो अधेड़ उम्र की महिलाएं, ईवरली बहनें चलाती थीं। इसकी ख्याति इस बात में थी कि यहाँ हर देश की औरतें उपलब्ध थीं। कमरों के फर्नीचर भी हर स्टाइल के थे : तुर्की, जापानी, लूइ XVI, यहाँ तक की अरबी तंबू भी। ये दुनिया का सबसे खर्चीला रंडी बाज़ार था। बड़े-बड़े लखपति, उद्योगपति, कैबिनेट मंत्री, सीनेटर और जज, सभी इसके ग्राहक थे। आम तौर पर किसी एक परिपाटी के लोग पूरे रंडी बाज़ार को ही एक शाम के लिए अपने कब्जे में लेने का ठेका कर लेते करते थे। बताते हैं कि एक बहुत बड़े ऐय्याश ने वहाँ ऐसा डेरा जमाया कि तीन हफ्ते तक उसने दिन का उजाला भी नहीं देखा।

जितना ही हम पश्चिम की तरफ बढ़ते गए, उतना ही मुझे यह पसंद आता गया। ट्रेन के बाहर जंगली ज़मीन के विशाल फैलाव को देखकर मेरे मन में आशा का संचार होता, भले ही जगह सुनसान और मटमैली हो। खुली जगह रूह के लिए अच्छी होती है। हृदय को विशाल बनाती है। मेरे देखने का नज़रिया बड़ा होता था।

क्वीवलैंड सेंट लुइ, मिन्निपोलिस, सेंट पॉल, कानसास सिटी, डेनवर, बट, बिलिंैग्स, जैसे शहरों में आने वाले कल की हलचल थी जो मेरी नस-नस को तड़का रही थी।

दूसरी रंगारंग कार्यक्रमों वाली कंपनियों से कई सदस्य हमारे दोस्त बने। हर शहर में रेड लाइट इलाकों में हम में से छ: या उस से अधिक लोग इकठठे् हो जाते। कभी-कभी किसी वेश्यालय की मैडम को हम लोग पटाने में कामयाब हो जाते। वो उस रात के लिए "अड्डा" बंद कर देती और फिर हमारा राज होता। यदा-कदा लड़कियां अभिनेताओं पर फ़िदा हो जातीं और अगले शहर तक उनका पीछा करतीं।

बट्ट, मोन्टाना के रेड-लाइट इलाके लम्बी सड़कों और उनसे लगे अगल-बगल के छोटे रास्तों वाले हुआ करते थे जिसमें सैकड़ों झोपड़ियां थीं,और खाटें लगी होती थीं। इनमें जो लड़कियां मिलती थीं उनकी उम्र सोलह साल से शुरू होती थी - एक डॉलर में उपलब्ध। बट्ट को किसी भी रेड लाइट इलाके के मुकाबले अपने यहाँ ज्यादा सुंदर लड़कियां होने का नाज़ था और ये सच था भी। जहाँ कोई सुंदर-सी लड़की आकर्षक कपड़ों में दिखी,देखने वाला समझ जाता था कि रेड लाइट वाली है, अपनी शॉपिंग कर रही है। धंधे का टाइम न हो तो वो दाएं-बाएं नहीं झाँकती थी और इज़्ज़तदार हो जाती थीं। कई बरस बाद मैं सॉमर सेट मॉम से उनके सेडी थामसन के चरित्र को लेकर उलझ पड़ा था। जहाँ तक मुझे याद है, जीन ईगल्स ने उसे स्प्रिंग साइड बूट वगैरह पहना कर पूरा ऊट-पटांग सा रूप दे दिया था। मैंने उन्हें बताया, जनाब ऐसे कपड़े बट्ट मोन्टाना में कोई भी धंधे वाली पहन ले तो एक अधेला नहीं कमा पाएगी।

1910 में बट्ट, मोन्टाना अभी भी "निक कार्टर" वाला शहर था। लम्बे-लम्बे बूट और दस गैलन वाली टोपियां और लाल गुलूबंद लगाए खान मजदूरों का शहर। बंदूक का खेल मैंने अपनी आँखों से सड़कों पे देखा, जिसमें एक बूढ़ा शैरिफ भगोड़े कैदी के पैरों परनिशाना लगा रहा था। तकदीर से वो बाद में एक बंद गली में फंस गया, और कुछ हुआ नहीं।

हम जैसे जैसे पश्चिम की तरफ बढ़ते जाते, मेरा दिल उतना ही खुश होता जाता। शहर ज्यादा साफ़ थे। रास्ते में विनिपेग, टेकोमा, सीटल,वैंकूवर और पोर्टलैंड पड़ते थे। विनिपेग और वैंकूवर में ज्यादातर दर्शक अंग्रेज थे और अपने अमेरिकी झुकाव के बावजूद उनके सामने अभिनय करने में आनंद आया।

और अंत में केलिफोर्निया! खिली धूप, संतरे और अंगूर के बाग, और प्रशांत महासागर के तट पर हज़ारों मील तक फैले ताड़ के वृक्षों का स्वर्ग! पूर्व का प्रवेश द्वार सैन फ्रांसिस्को अच्छे व्यंजनों और सस्ते दामों का शहर, जिसने मुझे पहली बार मेंढ़क की टांग का जायका दिया। खालिस वहीं की चीज़, स्ट्रॉबेरी शॉर्ट केक और एवोकेडो नाशपाती।

हम 1910 में पहुँचे जब शहर 1906 वाले भूकंप से, या उनके शब्दों में कहें तो आग से, उबर चुका था। पहाड़ी रास्तों में अभी एक या दो दरारें थीं लेकिन नुक्सान का कोई अवशेष नहीं। हर चीज़ नयी और चमचमाती हुई थी। मेरा छोटा होटल भी।

हमारा कार्यक्रम एम्प्रेस में था। इसके मालिक थे सिड ग्राउमैन और उनके पिता, बड़े ही मिलनसार और सामाजिक लोग। पहली बार पोस्टर पर मैं अकेला था और कार्नो का नाम तक नहीं था। दर्शक - क्या खूब! "वाऊ वाऊज़" नीरस था फिर भी हर शो खचाखच भरा और ठहाकों से गूँजता हुआ होता। ग्राउमैन ने उत्साहित होकर कहा, "कार्नो साहब का काम जब भी निपट जाय, मेरे पास आना, हम लोग मिलकर शो करेंगे।" मेरे लिए यह उत्साह नयी बात थी। सैन फ्रांसिस्को में उम्मीद और मेहनत के ज़ज्बे को महसूस किया जा सकता था।

दूसरी ओर लॉस एंजेल्स, बदसूरत शहर था। गर्म और कष्टदायक। लोग मरियल और कांतिहीन लगते थे। जलवायु ज्यादा गर्म थी पर सैन फ्रांसिस्को वाली ताज़गी नहीं थी; प्रकृति ने उत्तरी कैलिफोर्निया को वो संपदाएं दी हैं जो विल्सायर बोलेवियर वाले प्रागैतिहासिक कोलतार के गड्ढों में हॉलीवुड के गायब हो जाने के बाद भी फलती-फूलती रहेंगी।

हमने अपना पहला दौरा मोरमोन्स[1] के गृह नगर साल्ट लेक सिटी में समाप्त किया। मैं मोज़ेज और इज़राएल के बच्चों के बारे में सोचने लगा। शहर काफ़ी फैला और खुला हुआ है जो सूरज की गर्मी में मरीचिका की तरह थर्राता सा दिखता है। सड़कों की चौड़ाई का अंदाज वही लगा सकता है जिसने विशाल मैदानों को पार किया हो। मोरमोन्स की ही तरह शहर अकेला और कठोर है। देखने वाले भी वैसे ही थे।

सलिवान एंड कॉन्सीडाइन सर्किट में "वाउ वाउ'ज" के प्रदर्शन के बाद हम न्यू यार्क वापस आ गए जहाँ से सीधे इंगलैंड लौटने का इरादा था,लेकिन मिस्टर विलियम मॉरिस, जो दूसरे रंगारंग ट्रस्टों से लड़ रहे थे, ने हम लोगों के पूरे दल को न्यू यार्क शहर में फोर्टीथर्ड स्ट्रीट पर स्थित अपने थिएटर में छह हफ्ते के कार्यक्रम के लिए बुक किया। हमने ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूज़िक हॉल से शुरुआत की। इसमें भारी सफलता मिली।

सप्ताह के दौरान एक युवक और उसके दोस्त लड़कियों से मुलाकात होने तक का समय काटने के लिए इधर उधर डोलते हुए विलियम मॉरिस के अमेरिकन म्यूजिक हॉल में घुस गए। यहाँ, उन लोगों ने हमारा शो देखा। उनमें से एक ने कहा, "मैं कभी बड़ा बना तो एक आदमी है जिसे अपने लिए लूँगा।" वो "ए नाइट इन एन इंग्लिश म्यूलिक हॉल" की बात कर रहा था। उस समय वह जी डब्लू ग्रिफिथ के लिए प्रति दिन पाँच डॉलर पर बायोग्राफ कंपनी में फिल्म के एक्स्ट्रा के रूप में कार्य कर रहा था। वह व्यक्ति था, मैक सेनेट जिसने बाद में कीस्टोन कंपनी बनायी।

न्यू यार्क में विलियम मॉरिस के लिए छ: सप्ताह का सफल कार्यक्रम करने के बाद एक बार फिर सलिवान एंड कंसिडाइन सर्किट के लिए बीस हफ्तों के दौरे के लिए हमारी बुकिंग हो गयी।

दूसरा दौरा समाप्ति के करीब आने लगा तो मैं उदास हो उठा। तीन ही सप्ताह रह गए थे: सैन फ्रांसिस्को, सैन डिएगो, सॉल्ट लेक सिटी और उसके बाद वापिस इंगलैंड।

सैन फ्रांसिस्को से रवाना होने के एक दिन पहले मार्केट स्ट्रीट पर टहलते हुए मैंने एक छोटी सी दुकान देखी जिसमें पर्दे वाली खिड़कियां थीं। लिखा था, "हाथ और पत्ते देख कर आपकी तकदीर बतायी जाती है - एक डालर।" मैं अंदर गया, जरा झेंपता हुआ। मेरा सामना भीतर के कमरे से निकलती हुई लगभग बयालिस साल की एक सुंदर औरत से हुआ। वह भोजन के बीच में ही उठ कर आ गई थी। खाना चबाते हुए उसने लापरवाही से एक छोटी टेबल की ओर इशारा किया जिसमें दीवार की ओर पीठ और दरवाजे की ओर मुख पड़ता था। मेरी ओर देखे बिना उसने कहा,"बैठ जाइये," और दूसरी तरफ खुद बैठी। उसके तौर तरीके बड़े बेढंगे थे। "पत्तों को इधर उधर करो, और तीन बार मेरी तरफ काटो और टेबल पर अपनी खुली हथेली रखो।" उसने पत्ते उलटे, सामने फैलाया और उनका अध्ययन किया। फिर मेरे हाथ देखे। "लंबी यात्रा के बारे में सोच रहे हो, यानी स्टेट्स छोड़ दोगे। पर जल्द ही वापस लौटोगे और एक नया धंधा शुरू करोगे - जो अभी कर रहे हो उससे कुछ अलग।" इसके बाद वह कुछ हिचकिचाई और भ्रम में पड़ गयी, "लगभग वैसा ही, लेकिन अंतर है। इस नए कारोबार में मुझे भारी सफलता दिखाई दे रही है। तुम्हारे सामने जबर्दस्त कैरियर पड़ा हुआ है। पर मुझे नहीं पता क्या है?" पहली बार उसने नज़रें ऊपर कीं। फिर मेरा हाथ लिया, "अरे, हाँ, तीन शादियाँ हैं: पहली दोनों नहीं चलेंगी, लेकिन अंत में तीन बच्चों के साथ सुखी विवाहित जीवन बिताते हुए आपकी ज़िंदगी कटेगी।" (यहाँ वो गलत थी!)। इसके बाद फिर से उसने मेरा हाथ देखा,"हाँ, पैसा बहुत ज्यादा कमाओगे; कमाने वाला हाथ है।" फिर उसने मेरा चेहरा देखा,"श्वास नली के न्यूमोनिया से मरोगे,बयासी साल की उम्र में। एक डॉलर, प्लीज़। और कुछ पूछना चाहोगे?"

"नहीं," मै हँसा, "मुझे लगता है, मैं अकेला अच्छा खासा जाऊँगा।"

साल्ट लेक सिटी में समाचार पत्र अपहरण और बैंक डकैतियों से भरे रहते थे। नाइट क्लबों और कैफे के ग्राहकों को कतार में दीवार की तरक मुँह किए हुए खड़ा करवा कर नकाबपोश लुटेरे लूट लेते थे। एक ही रात में डकैती की तीन घटनाएं हो गयी थीं और पूरे शहर में आतंक फैल गया था।

शो के बाद हम पीने के लिए पास के किसी सैलून में चले जाते थे, और यदा-कदा ग्राहकों से परिचय हो जाया करता था। एक शाम एक मोटा, खुश-मिजाज़, गोल चेहरे वाला आदमी दो और लोगों के साथ आया। उनमें से उम्र में सबसे बड़ा, वो मोटा आदमी आगे आया, "उस अंग्रेज़ी नाटक में तुम्हीं लोग साम्राज्ञी की भूमिका कर रहे हो?"

हम लोगों ने मुस्करा कर सिर हिलाया, "तभी तो कहूँ मैंने तुम लोगों को पहचान लिया! अरे! आओ आओ!" उसने अपने साथ आए उन लोगों को बुलाया और उनसे परिचय करा कर हमें ड्रिंक ऑकर किये।

मोटा अंग्रेज़ था - वैसे वो उच्चारण अब नाम मात्र को रह गया था - लगभग पचास का, अच्छे स्वभाव का, छोटी चमकती आँखों और लाल सुर्ख चेहरे वाला आदमी।

रात जैसे-जैसे बीतती गयी, उसके दोनों दोस्त और मेरे साथ के लोग बार की ओर चले गए। मैं "मोटू" के साथ अकेला रह गया। उसके दोस्त उसे यही कहकर पुकारते थे।

वह हमराज़ हो गया। "उस पुराने देश में तीन साल पहले मैं गया था।" उसने कहा,"लेकिन ये वैसा नहीं है - यही तो जगह है। यहाँ तीस साल पहले आया। कुछ नहीं था। बस, एक अनाड़ी मोन्टाना कॉपर में स्सालों मेहनत करते-करते चूतड़ घिस जाती थी। फिर दिमाग लगाया। मैं कहता हूं यही तो खेल है, अब अपने पास मुस्टण्डे हैं। काम करने को। उसने नोटों की मोटी गड्डी बाहर निकाली।"

"चलो एक और डरिंक लेते हैं," "बच के!" मैंने मज़ाक में कहा, "पकड़े जा सकते हो!"

उसने मुझे बड़ी शैतानी, और जानकार मुस्कुराहट से देखा फिर आँख मार कर कहा, "ये नहीं बच्चू!"

जिस ढंग से उसने आँख मारी, मैं अंदर तक सहम गया। इसका मतलब बहुत बड़ा था। वैसे ही मुस्कराते हुए और मुझ पर अपनी नज़रें उसी तरह टिकाए वह बोलता गया,"समझ रहे हो?" उसने कहा। मैंने समझदारी से सिर हिलाया।

इसके बाद गूढ़ भाव से अपना चेहरा मेरे कान के पास लाकर उसने बात शुरू की,"उन दो पट्ठों को देख रहे हो?" वह अपने मित्रों के बारे में फुसफुसाया,"वही अपना लश्कर है, दो उल्लू के पठ्ठे, दिमाग़ जरा भी नहीं, लेकिन जिगर फौलाद का।"

मैंने सावधानी से अपने होठों पर उंगली रखी कि लोग सुन लेंगे, वो आहिस्ता बोले।

"ठीक है, भाईजान, हम लोग आज रात जहाज से निकल रहे हैं।" उसने आगे कहा, "सुनो, हम तो पुराने जहाजी ठहरे, है न? तुम्हें कई बार इलिंगटन एम्पायर में देखा है जाते आते।" मुँह बनाकर उसने कहा,"मुश्किल काम है मेरे भाई।"

मैं हँस पड़ा।

और गहरा राज़दार बनने के बाद उसने मुझसे ताउम्र दोस्ती करनी चाही और मेरा न्यू यार्क का पता माँगा।

"बीते दिनों की खातिर कभी दो-एक लाइन तुम्हें लिखूंगा।"

शुक्र है फिर उसने कभी संपर्क नहीं किया।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 9

अमेरिका छोड़ते समय मुझे कोई खास अफसोस नहीं हो रहा था, क्योंकि मैंने लौटने का मन बना लिया था। कैसे और कब, मैं नहीं जानता था। इसके बावजूद, मेरा मन अभी से लंदन और अपने छोटे-से सुकून भरे घर में लौटने की राह देखने लगा था। जब से मैं अमेरिका के टूर पर था,ये फ्लैट मेरे लिए मंदिर जैसा हो गया था।

सिडनी का समाचार बहुत दिनों से नहीं मिला था। अपने आखिरी खत में उसने लिखा था कि नानाजी फ्लैट में रह रहे थे। लेकिन मेरे लंदन पहुँचने पर, सिडनी मुझे स्टेशन पर मिला और बताया कि उसने शादी कर ली है, फ्लैट छोड़ दिया है और ब्रिक्सटन रोड पर सजे सजाए घर में रह रहा है। ये सोच कर मुझे बड़ा झटका लगा कि खुशियों से भरा वह छोटा-सा स्वर्ग अब नहीं रहा जिसने मुझे जीवन जीने का एक अर्थ दिया था, और घर पर नाज करना सिखाया था --------। अब मैं बेघर था। ब्रिक्सटन रोड पर मैंने पीछे की ओर एक कमरा लिया। जगह इतनी मनहूस थी कि मैंने जितनी जल्द हो सके, अमेरिका लौटने फैसला कर लिया। किसी खाली स्लॉट मशीन में सिक्का डालने पर जैसे कुछ नहीं होता उस रात लंदन मेरी वापसी पर वैसा ही बेपरवाह लगा।

सिडनी ने चूंकि शादी कर ली थी और हर शाम काम पर रहता, मैं उससे कम ही मिल पाता था; परंतु रविवार को हम मां से मिलने गए। ये बहुत ही हताश करने वाला दिन था क्योकि मां अभी भी ठीक नहीं हुई थी। वह अभी-अभी भजन कीर्तन के शोरगुल वाले दौर से होकर गुज़री थी और उसे गद्देदार दीवारों वाले कमरे में रखा गया था। नर्स हमें पहले ही ताकीद कर चुकी थी। सिडनी ने उसे देखा, लेकिन मैं उससे मिलने की हिम्मत न कर सका, इसलिए इंतज़ार करना रहा। सिडनी वापिस आया तो परेशान लग रहा था। उसने बताया कि इलाज के तौर पर मां को बर्फ़ीले,ठंडे पानी की धार से शॉक दिया गया था और उसका चेहरा बिल्कुल नीला पड़ गया था। इस पर हम लोगों ने उसे एक प्राइवेट संस्थान में रखने का फैसला किया - खर्च अब हम उठा सकते थे - सो, हम उसे उस पागल खाने में ले आए जिस जगह इंगलैण्ड के महान कॉमेडियन स्वर्गीय डान लीओ भर्ती किये गये थे।

हर दिन मैं अपने आपको पहले से कहीं ज्यादा बेगाना और जड़ से कटा हुआ महसूस करता था। मेरी समझ से अगर मैं अपने छोटे से फ्लैट में लौटा होता, तो मेरी भावनाएं दूसरी होतीं। तब स्वाभाविक रूप से उदासी मुझ पर पूरी तरह से हावी न हो पाती। अमेरिका से आने के बाद पुराना परिचय, रीति-रिवाज और इंगलैण्ड से मेरा रिश्ता सभी मेरे भीतर उथल-पुथल मचा रहे थे। इंगलैण्ड की गर्मी का मौसम अपने सबसे अच्छे रूप में था जिसके जोड़ की रूमानी और सुहावनी चीज़ मेरी नज़र में कोई दूसरी नहीं थी।

बॉस कार्नो ने मुझे टैग्स आइलैण्ड के अपने हाउस बोट पर सप्ताहांत के लिए बुलाया। काफी लम्बा चौड़ा इंतज़ाम था। सब कुछ बेहद सुव्यवस्थित। महोगनी के पैनल वाले कमरे और मेहमानों के लिए निजी राजसी ठाठ बाठ वाले कमरे। रात में बोट के चारों ओर रंगीन बत्तियों के मनमोहक बंदनवार जगमगा उठे। गर्म और सुंदर शाम थी और डिनर के बाद अपनी कॉफी और सिगरेट लेकर ऊपर वाले डेक में जगमगाती रंगीन रोशनियों के नीचे जाकर बैठे गए। यही वो इंगलैण्ड था जो मुझे किसी भी देश से वापस खींच सकता था।

अचानक कहीं से एक बनावटी आवाज ने पागलों की तरह चीखना शुरू कर दिया; "अरे देखो, क्या प्यारी बोट है मेरी, देखो! मेरी मस्त नाव को! और क्या रोशनी! हा! हा! हा!" आवाज़ मज़ाक उड़ाने वाली हँसी में बदल रही थी। हम लोगों ने यह देखने के लिए नज़र दौड़ायी कि कहाँ से यह धारा फूट कर आ रही है। हमने खेनेवाली नाव में सफेद फ्लेनल के कपड़े पहने एक आदमी को देखा जिसके पीछे की सीट पर एक औरत लेटी हुई थी। पूरा दृश्य "पंच" पत्रिका के किसी कार्टून चित्र की तरह था। कार्नो रेलिंग पर झुके और ज़ोर से आवाज़ लगायी लेकिन उसने अपनी पागलों जैसी हँसी नहीं रोकी।

"अब एक ही चीज़ की जा सकती है," मैंने कहा: "हम भी वैसे अश्लील बन जाएं जैसा वो हमें सोचता है।" फिर तो मैंने चुन-चुन कर ऐसी गालियां सुनायी जो उसके साथ की औरत के झेंपने के लिए काफी थी। वो झटपट खिसक लिया।

ये मूर्ख चिल्ला-चिल्लाकर रुचि की आलोचना नहीं कर रहा था, ये तो अहंकार भरा पूर्वाग्रह था उस चीज के खिलाफ जिसे वह निम्न वर्गीय ठाठ बाठ समझ रहा था। बकिंघम पैलेस के सामने वह कभी अट्टहास करते हुए नहीं चिल्लाएगा कि देखो मैं कितने बड़े घर में रहता हूं, या राज्याभिषेक वाले रथ पर नहीं हँसेगा। हमेशा इस तरह होने वाले वर्गीकरण का इंगलैण्ड में मुझे तीखा अनुभव मिला। ऐसा लगता है जैसे इस तरह के अंग्रेज सामाजिक तौर पर दूसरों की कमियां बड़ी जल्दी ही मापने तौलने लगते हैं।

हमारी अमेरिकी मंडली काम में लग गयी थी और लंदन के हॉलों में हम लोगों ने चौदह सप्ताह तक प्रदर्शन किया। शो ठीक चले, दर्शक भी अच्छे थे लेकिन हमेशा मैं यह सोचता रहता कि कहीं अमेरिका वापिस जा पाऊँगा या नहीं। इंगलैंड से मुझे प्यार था, पर मेरे लिए वहाँ रहना असंभव था; अपनी पृष्ठभूमि के चलते हमेशा ये बात बेचैन किए रहती कि यहाँ रह कर मैं अपनी तुच्छता के दलदल में धंसता चला जा रहा हूं। इसलिए स्टेट्स के अगले टूर के लिए हमारे बुक हो जाने का समाचार पाकर मैं बड़ा खुश हुआ।

रविवार को सिडनी और मैं मां से मिलने गए। उसकी सेहत पहले से बेहतर लगी और सिडनी के प्रदेशों की तरफ जाने से पहले हम लोगों ने साथ खाना खाया। लंदन में अपनी आखिरी रात अपनी भावनाओं से जूझता हुआ, उदासी और कड़वाहट लिए हुए मैं वेस्ट एंड में चहलकदमी कर रहा था और अपने आप से कह रहा था, इन गलियों को आखिरी बार देख रहा हूँ।

इस बार हम ओलंपिक पर सेकंड क्लास में न्यू यॉर्क होते हुए पहुँचे। इंजन की धड़कन धीमी पड़ गयी। उसका मतलब था हम अपनी नियति के करीब पहुँच रहे हैं। इस बार स्टेट्स अपरिचित नहीं लगा। मुझे लगा मैं विदेशियों के बीच विदेशी हूँ, बाकी सबसे जुड़ा हुआ।

न्यू यॉर्क को मैं जितना पसंद करता था, उतनी ही उत्सुकता से मैं वेस्ट की प्रतीक्षा कर रहा था जहाँ फिर उन लोगों से मुलाकात होगी जिन्हें अब मैं अच्छा दोस्त समझता था : मोन्टाना के बट्ट के बार में काम करने वाला आयरिश, मिनेपोलिस का दोस्ताना मेहमाननवाज़ जमीन जायदाद वाला लखपती, सेंट पॉल की सुंदर लड़की जिसके साथ मैंने एक रोमांटिक सप्ताह बिताया था। सॉल्ट लेक सिटी का स्कॉटिश खदान मालिक, टकोमा का मित्रवत डेंटिस्ट और सेन फ्रांसिस्को का ग्रॉमैन्स परिवार।

प्रशांत के तट पर जाने से पहले हमने "स्माल्स" के इर्द गिर्द कार्यक्रम किये। शिकागो और फिलाडेल्फिया के दूरस्थ उपनगरों और फॉल रिवर और ड्यूलुथ जैसे औद्योगिक शहरों के छोटे (स्माल) थिएटरों में।

पहले की तरह मैं अकेले रह रहा था लेकिन इसके लाभ थे, क्योंकि इससे मुझे स्वाध्याय का मौका मिलता था। जिसका संकल्प मैंने महीनों के पहले किया था पर पूरा नहीं कर पाया था।

कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनमें कुछ जानने समझने की प्रचण्ड इच्छा होती है। मैं भी उन्हीं में से एक था। पर मेरा उद्देश्य इतना पवित्र नहीं था। मैं जानना चाहता था लेकिन मुझे ज्ञान से प्रेम नहीं था, मेरे लिए यह जाहिलों के प्रति दुनिया की घृणा से बचने के लिए ढाल थी। इसलिए जब मुझे समय मिलता था, मैं सेकेंड हैंड किताबों की दुकानों के चक्कर लगाता था।

फिलाडेल्फिया में यूँ ही एक बार मुझे राबर्ट इंगरसोल्स की किताब एसेज़ एंड लेक्चर्स का एक संस्करण हाथ लग गया। बड़ी उत्साहजनक खोज थी यह; उसकी नास्तिकता से मेरे इस विश्वास को बल मिला कि ओल्ड टेस्टामेंट की भयानक क्रूरता मानवता के लिए शर्मनाक बात थी। फिर मुझे इमर्सन मिले। "सेल्फ रिलाएन्स" ("आत्मनिर्भरता") पर उनका लेख पढ़ कर लगा जैसे मुझे स्व,र्गिक जन्मसिद्ध अधिकार सौंप दिया गया हो। फिर आए शापेनहावर। मैंने द वर्ल्ड एज़ विल एंड आइडिया के तीन खंड खरीदे जिसे चालीस सालों से जब तब पढ़ता रहा हूं पर कभी भी शुरू से अंत तक नहीं। वाल्ट व्हिटमैन की लीव्स ऑफ ग्रास से मुझे चिढ़ हुई और ये चिढ़ आज तक बरकरार है। उसमें प्यार भरा हृदय कुछ ज्यादा ही उमड़ता है और राष्ट्रीय रहस्यवाद की अति है। शो के बीच मिलने वाले समय में अपने ड्रेसिंग रूम में मैंने ट्वेन, पो, हार्थोन, इर्विंग और हैज़लिट को भी पढ़ने का आनंद लिया। दूसरे दौरे में शास्त्री य शिक्षा उतनी भले ही न आत्मसात कर पाया होऊं जितना मैं चाहता था, पर जिस कारोबार में मैं था उसके निचले स्तर के उबाऊपन से मेरा परिचय हो गया था।

ये सस्ते रंगारंग सर्किट्स बड़े ही मनहूस और निराशाजनक थे और अमेरिका में मेरे भविष्य की आशा सप्ताह के हर दिन तीन और कभी तीन और कभी चार शो की चक्की में पिसने लगी। इसकी तुलना में इंगलैंड का रंगारंग जगत स्वर्ग था। कम से कम वहाँ सप्ताह में छ: दिन ही काम करते थे और एक रात में दो ही शो होते थे। अमेरिका में हमें यही सोच कर संतोष कर लेना पड़ता था कि पैसा कुछ ज्यादा बच रहा है।

लगातार पाँच महीनों तक "कड़ी" मेहतन के साथ काम करने की थकान से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी। इसलिए फिलाडेल्फिया में एक हफ्ते के आराम का जब मौका मिला तो मैंने इसे सहर्ष स्वीकार किया। मुझे बदलाव चाहिए था। दूसरा परिवेश चाहिये था। अपनी पहचान खोकर कोई और बन जाने के लिए मौका चाहिये था। रोज़-रोज़ की इस घटिया दर्जे की रंगारंग प्रस्तुति से उकता गया था और सोचा एक हफ्ते जम कर ऐश की जाय। काफी पैसे जमा हो चुके थे और खूँटे से एक बार जो छूटा, दिल खोल कर खरचने लगा। और क्यों नहीं? मैंने इतना जमा करने के लिए फूंक-फूंक कर खर्च किया था और ये सोचा था कि जब काम नहीं होगा, उस समय भी संभाल कर खरचना है, तो फिर अभी क्यूं नहीं जरा सा खर्च कर लिया जाए?

मैंने एक मँहगा ड्रेसिंग गाउन खरीदा और एक शानदार सूटकेस खरीदा जिसकी कीमत पिचहत्तर डालर पड़ी। दुकानदार तो खुशामद में बिछ गया; "सर, कहिए तो आपके घर पर पहुँचा दिया जाये?" उसके इन थोड़े से शब्दों ने मेरा सिर ऊंचा कर दिया, मुझे कुछ विशिष्ट बना दिया। अब न्यूयार्क जाऊंगा और इस घटिया रंगारंग कार्यक्रम का और इसके पूरे अस्तित्व का चोला अपने पर से उतार फेकूँगा।

मैंने होटल एस्टॉर में एक कमरा लिया। ये होटल उन दिनों बड़ा आलीशान माना जाता था। मैंने अपना नया कोट और डर्बी टोप पहना, छड़ी ली और हाँ, साथ में अपना छोटा सूटकेस भी ले लिया। लॉबी की तड़क-भड़क और वहाँ आते-जाते लोगों का विश्वास देख कर मैं कुछ डगमगाया। घबड़ाहट में ही डेस्क पर जाकर नाम दर्ज कराया।

कमरे का किराया 4.50 डालर प्रतिदिन। डरते हुए मैंरे पूछा कि किराया एडवांस में दे दू। क्लर्क ने बड़ी ही विनम्रता और दिलासा भरे अंदाज में कहा,"अरे नहीं, सर, ऐसी कोई ज़रूरत नहीं है।"

लॉबी की चमक-दमक और शानो-शौकत के बीच चलते हुए मेरी भावनाओं को कुछ कुछ होने लगा और कमरे में पहुँच कर मन रोने को करने लगा। कमरे में मैं लगभग एक घंटे तक रहा। बाथरूम में लगे तरह-तरह के आइनों और नलों का मुआयना किया। इसके ठंडे और गर्म पानी के नलों को चलाकर उनका प्रचुर बहाव देखा। नलकों और फव्वारों की बढ़िया किस्में निहारता रहा। कितनी बेहिसाब होती है विलासिता और कितनी आश्वस्त करती है।

मैंने स्नान किया, बालों में कंघी की, नया बाथ रोब पहना। मेरा इरादा था अपने चार डॉलर पचास सेंट की पाई पाई को भोगना। काश, मेरे पास पढ़ने को कुछ होता - अखबार ही सही। लेकिन अखबार मंगाने के लिए फोन करने का आत्मविश्वास नहीं था। सो, कमरे के बीच में एक कुर्सी पर बैठकर अत्यंत उदास मन से हर चीज को निहारने लगा। जितना देखता, उतना ही दु:खी होता जाता।

कुछ देर बाद मैंने कपड़े पहने और नीचे उतरा। मुख्य भोजन कक्ष का रास्ता पूछा। अभी डिनर का समय नहीं हुआ था। जगह खाली-खाली थी। बस, दो एक खाने वाले पहुँचे थे। हेड वेटर मुझे खिड़की के पास वाली एक टेबल की ओर ले गया।

"सर, आप यहाँ बैठना पसंद करेंगे?"

"कहीं भी चलेगा," मैंने अपनी सबसे उम्दा अंग्रेजी आवाज़ में कहा।

अगले ही पल वेटरों की फौज ने मुझे घेर लिया और ठंडा पानी, मेन्यू, मक्खन और ब्रेड पेश करने लगे। भावुकता में मेरी भूख गायब हो चुकी थी। अलबत्ता, मैंने इशारों से काम लिया और शोरबा, रोस्ट किया हुआ चिकेन और मीठी चीज के तौर पर वनीला आइस क्रीम का ऑर्डर दिया। शराबों का एक मेन्यू वेटर ने मुझे दिया। मैंने ध्यान से देखने के बाद आधी बोतल शैम्पेन मँगायी। मैं रईस की भूमिका में इतना डूबा हुआ था कि भोजन और शराब का मज़ा क्या ही लेता। खा पी लेने के बाद मैंने वेटर को एक डॉलर का टिप दिया जो उन दिनों के हिसाब से असाधारण रूप से ज्यादा थी। लेकिन बाहर जाते वक्त जो अदब और आदाब मुझ पर बरसाये गये, इतनी टिप देनी बनती थी। अकारण ही, मैं वापस अपने कमरे में गया, दस मिनट तक बैठा, फिर हाथ धोये और बाहर निकल पड़ा।

चुपचाप मुलायम गर्मी की शाम थी। मेरे मूड की तरह। मैं मेट्रोपोलिटन ओपेरा हाउस की ओर जा रहा था। वहाँ "तैन्हॉउज़र" चल रहा था। मैंने कभी भी ग्रैण्ड ओपेरा नहीं देखा था। इसके कुछ अंश रंगारंग कार्यक्रमों में देखे थे और मुझे भयंकर चिढ़ थी इससे। पर अभी मैं इसके मूड में था। मैंने एक टिकट खरीदा और सेकेंड सर्किल में बैठा। ओपेरा जर्मन में था, जिसका एक भी शब्द अपने पल्ले नहीं पड़ा और न ही मुझे इसकी कहानी मालूम थी। लेकिन रानी के मरने के बाद उसे तीर्थ यात्रियों के सामूहिक गान के संगीत के साथ लाया गया तो मैं फूट-फूट कर रो पड़ा। इसमें मेरी जिंदगी का सारा दर्द सिमट आया लगता था। मैं अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरे आस पास बैठे लोगों ने क्या सोचा होगा, मुझे नहीं पता, लेकिन बाहर निकला तो बदन में ताकत नहीं रह गई थी और भावनात्मक रूप से चूर-चूर हो गया था।

सबसे अंधेरे रास्तों से होकर मैं शहर की ओर चलने लगा क्योंकि ब्रॉडवे की घूरती रोशनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी और मूड ठीक होने तक मैं होटल वाले उस वाहियात कमरे में लौटना भी नहीं चाहता था। ठीक होने पर मेरा सीधा सो जाने का इरादा था। शारीरिक और मानसिक रूप से मैं निढाल हो चुका था।

होटल में घुसने के पहले मैं अचानक हेट्टी के भाई आर्थर केली से टकरा गया। हेट्टी जिस मंडली में थी उसका वह मैनेजर था। उसका भाई होने के नाते हम लोगों में दोस्ती थी। आर्थर को मैंने कई बरसों से नहीं देखा था।

"चार्ली! कहाँ जा रहे हो?" उसने कहा। मैने लापरवाही से एस्टर की दिशा में सिर हिलाया, "सोने जा रहा था।"

आर्थर पर इसका असर पड़ा।

उसके साथ दो दोस्त थे। उनसे मेरा परिचय कराने के बाद उसने प्रस्ताव रखा कि हम सभी मेडिसन एवेन्यू स्थित उसके घर चलें, कॉफी पी जाय और गपशप हो।

फ्लैट आरामदायक था। हम लोगों ने साथ बैठ कर हल्की फुल्की इधर-उधर की बातें कीं। आर्थर इस बात के प्रति सतर्क था कि हमारे अतीत का कोई जिक्र न आने पाए। वैसे, मेरे एस्टर में ठहरने की बात सुनकर वह और जानने को उत्सुक था। लेकिन मैंने कुछ खास बताया नहीं। सिर्फ ये कि मैं दो या तीन दिनों की छुटटी में न्यू यॉर्क आया था।

केंबरवैल में जब आर्थर रह रहा था तब से अब तक उसने लम्बा सफ़र तय कर लिया था। अब वह अमीर व्यवसायी बन गया था और अपने जीजा फ्रेंक जे गॉल्ड के लिए काम करता था। उसकी दुनियावी बातें सुन कर मैं और उदास होता गया। अपने दोस्तों में से एक की ओर इशारा करते हुए केली ने कहा, "अच्छा लड़का है वह। अच्छे परिवार का है, मेरी जानकारी में।" खानदान के बारे में उसकी रुचि देखकर मैं अपने आप पर मुस्कुराया और समझ गया कि आर्थर और मेरा मेल नहीं था।

न्यू यार्क में मैं केवल एक दिन रुका। अगली सुबह मैंने फिलाडेल्फिया लौटने का फैसला किया। उस एक दिन में मुझे जो बदलाव चाहिए था,वह मिला पर ये भावनात्मक अकेलेपन का था। मुझे अब संग-साथ चाहिए था। मुझे सोमवार सुबह वाले कार्यक्रम और मंडली के लोगों से मिलने का इंतज़ार था। पुराने कोल्हू में जुतना कितना भी उबाऊ हो, उस एक दिन के ठाट-बाट से मेरा जी भर गया था।

फिलाडेल्फ़िया लौट कर मैं थिएटर गया। रीव्ज़ साहब के नाम एक तार आया था और उन्होंने जब उसे खोला, मैं वहीं था।

"मुझे लगता है कहीं तुम्हारे लिए तो नहीं," उन्होंने कहा।

लिखा था "आपकी कंपनी में चैक़िन या वैसे ही नाम का कोई व्यक्ति है। यदि हो तो वह कैसेल एंड बावमैन, 24 लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे से संपर्क करे।"

कंपनी में उस नाम का कोई नहीं था, लेकिन रीव्ज़ का मानना था कि उस नाम का मतलब चैप्लिन हो सकता है। फिर तो मैं आनंदित हो उठा क्योंकि मुझे, जैसा कि पता चला, लॉन्गकेयर बिल्डिंग ब्रॉडवे के बीचों-बीच पड़ती थी और इसमें वकीलों के दफ्तर भरे पड़े थे; ये याद करके कि स्टेट्स में कहीं मेरी एक अमीर चाची हुआ करती थी, मेरी कल्पना को पंख लग गए; गुज़रने से पहले वो ज़रूर अच्छा-खासा पैसा छोड़ गयी होगी। सो मैंने झटपट केसल एंड बावमैन को तार दिया कि कंपनी में चैप्लिन नामक एक व्यक्ति है और वे शायद उसी के बारे में बात कर रहे हैं। मैं उत्सुकता से जवाब की प्रतीक्षा करने लगा। उसी दिन जवाब मिला। मैंने झट से तार फाड़ा और खोलकर पढ़ा।

लिखा था: "क्या आप चैप्लिन को जल्द से जल्द दफ्तर में मिलने को कह सकते हैं।"

उत्साहित होकर बड़ी आशा से मैंने न्यू यार्क के लिए एकदम सुबह की गाड़ी पकड़ी। फिलाडेल्फ़िया से ढाई घंटे का रास्ता था। क्या होगा मुझे नहीं पता था - मैंने कल्पना की कि किसी वकील के दफ्तर में बैठा हूं और मुझे कोई वसीयत पढ़कर सुनायी जा रही है।

पहुँचने पर कुछ निराशा हुई क्योंकि केसल एंड बावमैन वकील नहीं थे, चलचित्र निर्माता थे। अलबत्ता, ये मामला रोमांचक होने जा रहा था।

चार्ल्स केसल कीस्टोन कंपनी के मालिकों में से एक थे। उन्होंने कहा कि मिस्टर मैक सेनेट ने मुझे फोर्टी सेकेण्ड स्ट्रीट वाले अमेरिकी म्यूज़िक हॉल में पियक्कड़ की भूमिका में देखा था और यदि मैं वही आदमी हूँ तो वो मुझे फोर्ड स्टर्लिंग की जगह रखना चाहेंगे। मेरे मन में कई बार फिल्मों में काम करने का ख्याल आया था, और अपने मैनेजर रीव्ज़ के सामने मैंने प्रस्ताव भी रखा था कि हम लोग मिलकर साझेदारी में कार्नो के स्केचेज के सर्वाधिकार खरीद लें और उनकी फिल्में बनाएं। लेकिन रीव्ज़ को पूरा भरोसा नहीं था, और बात सही भी थी, क्योंकि हम फिल्में बनाने के बारे में कुछ जानते नहीं थे।

"क्या मैंने कीस्टोन की कोई कॉमेडी देखी है?" केसल साहब ने पूछा। देखी तो मैंने कई थी, लेकिन मैंने ये नहीं बताया कि मुझे वो कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा जोड़ के बनायी लगती थीं। अलबत्ता, माबेल नार्मेड नामक खूबसूरत लड़की, जो बीच बीच में उन फिल्मों में आती जाती रहती थी,की मौजूदगी के कारण वे अब तक टिके हुए थे। कीस्टोन ढर्रे की कॉमेडी को लेकर मैं कुछ खास उत्साहित नहीं था, लेकिन मुझे इसकी लोकप्रियता का भान था।

इस लाइन में एक साल बिताकर रंगारंग कार्यक्रमों की दुनिया में लौटने पर मैं अंतर्राष्ट्रीय सितारा बन जाऊंगा। इसके अलावा, इसमें एक नयी ज़िंदगी और अच्छा माहौल भी था। कैसल का कहना था कि करार के अनुसार मुझे प्रति सप्ताह तीन फिल्मों में काम करना होगा और वेतन होगा डेढ़ सौ डालर। कार्नो की कंपनी से जितना मिलता था, उससे यह दुगुना था। फिर भी मैंने ना नुकुर करते हुए कहा कि प्रति सप्ताह दो सौ डॉलर से कम नहीं लूँगा। कैसल साहब ने कहा अब ये सेनेट साहब पर है; वो उन्हें केलिफोर्निया में बता देंगे। फिर मुझे सूचना मिल जाएगी।

कैसल के जवाब का इंतज़ार मैंने बड़ी बेचैनी से किया। शायद मैं बहुत ज्यादा मांग बैठा था। आखिरकार खत आया कि वे लोग पहले तीन महीनों के लिए डेढ़ सौ डॉलर और बाकी के नौ महीनों के लिए एक सौ पचहत्तर डॉलर – जिंदगी में अब तक इससे बड़ा ऑफर नहीं मिला था - के हिसाब से साल भर के करार के लिए तैयार थे। सलिवन एंड कंसिडाइन टूर के समाप्त होते ही काम शुरू होना था।

ईश्वर की कृपा से लॉस एंजेल्स में हम लोग एम्प्रेस में खूब चले थे। यह एक कॉमेडी थी। नाम था "ए नाइट एट द क्लब"। मैं एक कमज़ोर बूढ़े पियक्कड़ की भूमिका में था और दिखने में कम से कम पचास बरस का लग रहा था। नाटक समाप्त होने पर सेनेट साहब खुश होकर मुझे बधाई देने आए थे। उस छोटी-सी मुलाकात में मेरा साबका घनी भौंह, भारी अनाकर्षक मुंह, और मजबूत जबड़े वाले एक भारी-भरकम इन्सान से पड़ा था और इस चेहरे मोहरे से मैं प्रभावित हुआ। पर मैं इस उधेड़बुन में था कि अपने भविष्य के रिश्ते में वह कितनी सहृदयता से पेश आएंगे। उस साक्षात्कार में लगातार मैं बेहद नर्वस था और समझ नहीं पा रहा था कि बंदा मुझसे खुश है या नहीं।

मैं कब उन्हें ज्वाइन करूँगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से पूछा। मैने बताया सितंबर के पहले हफ्ते में शुरू करूँगा, जब कार्नो कंपनी से मेरा करार खत्म हो रहा है। कन्सास सिटी छोड़ने को लेकर मेरे मन में कुछ खटका था। कंपनी वापस इंग्लैंड जा रही थी और मैं लॉस एंजेल्स, जहाँ मैं अकेला होऊंगा और बात कुछ जम नहीं रही थी। अंतिम कार्यक्रम के पहले मैंने सबके लिए ड्रिंक मंगाया और सबसे विदा लेने के विचार से मैं कुछ ग़मगीन हो गया।

अपनी मंडली के आर्थर डेन्डो, जिसकी मुझसे किसी कारण वश पटती नहीं थी, को मज़ाक सूझा और मुझे कुछ उपहासात्मक ढंग से कसमसा कर बताया कि कंपनी की ओर मुझे तोहफ़ा मिलेगा। ये कबूल करता हूँ कि ये बात मेरे दिल को छू गयी थी। अलबत्ता, कुछ हुआ नहीं। ड्रेसिंग रूम से जब सब जा चुके थे, फ्रेड कार्नो जूनियर ने स्वीकार किया कि डैंडो ने वास्तव में एक विदाई भाषण तैयार किया था और मुझे एक भेंट देने की व्यवस्था की थी, लेकिन ये देखकर कि मैंने सबके लिए पीने का इंतजाम किया है, उसकी वो सब करने की हिम्मत नहीं हुई और वह तथाकथित"उपहार" ड्रेसिंग टेबल के आइने के पीछे छोड़ गया था। टीन की पन्नी में लिपटी हुई तंबाकू की खाली डिबिया थी जिसमें चिकनाई वाले रोगन की पुरानी खुरचन रखी हुई थी।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 10

उत्सुकता और चिंता से भरा मैं लॉस एंजेल्स पहुँचा और ग्रेट नार्दर्न में एक छोटे से होटल में कमरा ले कर टिक गया। पहली ही शाम को मैंने एक बसमैन होलिडे का टिकट लिया और एम्प्रेस में दूसरा शो देखा। यहीं पर कार्नो कम्पनी अपने प्रदर्शन कर चुकी थी। एटेडेंट ने मुझे पहचान लिया और कुछ ही पल बाद मुझे यह बताने के लिए आया कि मिस्टर सेनेट और मिस मॉबेल नोर्माड मुझसे दो कतारें पीछे बैठे हुए हैं और पूछ रहे हैं कि क्या मैं उनके साथ बैठना पसंद करूंगा? मैं रोमांचित हो गया और जल्दबाजी में, फुसफुसा कर किये गये परिचय के बाद हमने मिल कर शो देखा। शो के खत्म हो जाने के बाद, हम मेन स्ट्रीट पर कुछ कदम चल कर गये और हल्के-फुलके खाने और ड्रिंक के लिए तहखाने में बने बीयर बार में चले गये। मिस्टर सेनेट को यह देख कर धक्का लगा कि मैं इतनी कम उम्र का हूँ।

"मेरा तो ख्याल था कि तुम काफी बूढ़े आदमी होवोगे," उन्होंने कहा। उनकी आवाज़ में परेशानी का तंज था। और इस बात ने मुझे भी परेशानी में डाल दिया क्योंकि सेनेट साहब के सभी कामेडियन बुढ़ऊ से दिखने वाले शख्स होते थे। फ्रेड मेस पचास से ऊपर की उम्र के थे जबकि फोर्ड स्टर्लिंग भी चालीस के पेटे में थे।

"मैं उतने बूढ़े जैसा मेक अप कर सकता हूँ जितना आप चाहें, मैंने जवाब दिया।" अलबत्ता, नोर्माड ज्यादा आश्वस्त करने वाली थी। मेरे बारे में उसके जो भी ख्यालात थे, उसने उन्हें जाहिर नहीं होने दिया। मिस्टर सेनेट ने कहा कि मेरा काम तत्काल ही शुरू नहीं होगा। लेकिन मैं एडेन्डेल में स्टूडियो में आ सकता हूँ और वहाँ लोगों से जान पहचान बढ़ा सकता हूँ। जब हम कैफे से चले तो हम मिस्टर सेनेट की भव्य रेसिंग कार में ठुंस गये और उन्होंने मुझे मेरे होटल पर छोड़ दिया।

अगली सुबह, मैं एडेन्डेल के लिए एक स्ट्रीटकार में सवार हुआ। ये जगह लॉस एजेंल्स के एक उप नगर में थी। ये जगह बहुत बड़ी विचित्र सी दिखती थी और मैं तय नहीं कर पाया कि ये गुज़ारे लायक लोगों की रिहायशी बस्ती थी या फिर अर्ध-औद्योगिक बस्ती। इसमें छोटे-छोटे काठ कबाड़ और कबाड़ खाने थे और वहाँ उजाड़ से दिखने वाले छोटे-छोटे खेत थे जिन पर सड़क की तरफ एकाध लकड़ी के खोखे से बने हुए थे। कई जगह पूछताछ करने के बाद मैं कीस्टोन के सामने पहुँच पाया। यहाँ पर भी ढहते हुए खंडहरों वाला मामला था। उसके चारों तरफ हरी बाड़ लगी हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्ग फुट की। इसका रास्ता एक बगीचे के गलियारे से हो कर जाता था और बीच में एक पुराना बंगला पड़ता था। पूरी जगह ही एडेन्डेल की ही तरह मनहूसियत भरी लग रही थी। मैं सड़क के दूसरी तरफ खड़ा हो कर उसे देखता रहा और मन ही मन उधेड़बुन में लगा रहा कि भीतर जाऊँ या नहीं।

लंच टाइम हो रहा था और मैं औरतों, मर्दों को अपने अपने मेक अप में बंगले के बाहर आते देखता रहा। इनमें कीस्टोन के सुरक्षाकर्मी भी थे। वे सड़क पार कर सामने बने एक छोटे से जनरल स्टोर में जाते और सैंडविच और हॉट डॉग खाते हुऐ बाहर आ जाते। उनमें से कुछ लोग एक दूसरे को ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें देकर पुकार रहे थे,"...ओए हैंक, जल्दी करो, स्लिम से कहो, फटाफट आये।"

अचानक ही मैंने शर्मिंदगी महसूस की और तेजी से एक सुरक्षित दूरी पर जा कर एक कोने में खड़ा हो गया और देखने लगा कि शायद मिस्टर सेनेट या मिस नोर्माड बंगले से बाहर निकल कर आ जायें लेकिन वे नज़र नहीं आये। मैं आधे घंटे तक वहाँ खड़ा रहा और फिर मैंने फैसला कर लिया कि होटल में ही वापिस चला जाये। स्टूडियो में जाने और उन सब लोगों का सामना करने की समस्या मेरे लिए पहाड़ सी होती चली जा रही थी।

दो दिन तक मैं स्टूडियो के गेट तक आता रहा लेकिन मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी कि भीतर तक जा सकूँ। तीसरे दिन मिस्टर सेनेट ने फोन किया और जानना चाहा कि मैंने अब तक अपनी शक्ल क्यों नहीं दिखायी है। मैंने कोई भी उलटा सीधा बहाना बना दिया। अभी ठीक इसी वक्त चले आओ। मैं तुम्हारा इंतज़ार करूंगा। उन्होंने कहा। इसलिए मैं वहाँ जा पहुँचा और धड़ल्ले से बंगले के भीतर घुसता चला गया और मिस्टर सेनेट के लिए पूछा।

वे मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मुझे सीधे ही स्टूडियों में ले गये। मेरी खुशी का पारावार न रहा। नरम, सम रौशनी पूरे सेट पर फैली हुई थी। ये रौशनी सफेद कपड़ों की बहुत बड़ी चादरों से आ रही थी जो सूर्य की रौशनी की चमक को छितरा रही थीं और इससे पूरे परिवेश को एक अलौकिक आभा सी मिल रही थी। रौशनी के इस फैलाव से दिन की सी रौशनी का आभास मिल रहा था।

एक या दो अभिनेताओं से मिलवाये जाने के बाद मैं वहाँ चल रहे कारोबार में दिलचस्पी लेने लगा। एक दूसरे से सटे तीन-तीन सेट लगे हुए थे और उन पर तीन कॉमेडी कम्पनियाँ काम कर रही थीं। ये सब ऐसा लग रहा था मानो आप विश्व मेले में कुछ देख रहे हों। एक सेट पर माबेल नोर्माड एक दरवाजा पीट रही थीं और चिल्ला रही थी,"..मुझे भीतर आने दो।" तभी कैमरा रुक गया और सीन पूरा हो गया। तब मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि फिल्में इस तरह से टुकड़ों में बना करती हैं।

एक और सेट पर फोर्ड स्टर्लिंग काम कर रहे थे। मुझे उन्हीं की जगह लेनी थी। मिस्टर सेनेट ने उनसे मेरा परिचय कराया। फोर्ड साहब कीस्टोन कम्पनी छोड़ कर जा रहे थे क्योंकि वे युनिवर्सल के साथ मिल कर अपनी खुद की कम्पनी खड़ी करने वाले थे। वे जनता के बीच और स्टूडियो में सबके बीच बहुत अधिक लोकप्रिय थे। लोग बाग उनके सेट के आस-पास घेरा बनाये खड़े थे और उनके अभिनय पर खूब हँस रहे थे। सेनेट मुझे एक तरफ ले गये और अपने काम करने के तौर तरीके के बारे में बताया,"हमारे पास कोई सीनेरियो नहीं होता। हमें बस एक आइडिया आता है, और उसके बाद घटनाओं की स्वाभाविक श्रृंखला चलती है और चलती रहती है और आखिर में भागा-दौड़ी में खत्म होती है। यही हमारी कॉमेडी का निचोड़ होता है।"

ये तरीका अच्छा था लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं पीछा करने के नाटक से नफरत करता था। इससे आदमी के व्यक्तित्व ही गायब हो जाता है, नास पिट जाता है उसका। अब चूंकि मैं फिल्मों के बारे में वैसे ही कम जानता था, लेकिन इतना ज़रूर जानता था कि कोई भी चीज़ व्यक्तित्व पर हावी नहीं होती।

उस दिन मैं एक सेट से दूसरे सेट के बीच भटकता रहा और कम्पनियों को काम करते देखता रहा। ऐसा लग रहा था मानों वे सब के सब स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे हों। मैं इससे चिंता में पड़ गया, क्योंकि उनकी स्टाइल मुझे माफिक नहीं आती थी। वे एक परेशान हाल डच मेन की भूमिका कर रहे थे, और डच उच्चारण में दृश्यों के ज़रिये होठ हिलाने का अभिनय करते थे। हालांकि ये सब मज़ाक भरा होता था लेकिन मूक फिल्मों में खो जाता था। मैं इस बात को ले कर परेशान था कि मिस्टर सेनेट मुझसे क्या उम्मीद करते हैं। उन्होंने मेरा काम देखा हुआ था और जानते ही होंगे कि मैं फोर्ड टाइप की कॉमेडी के लायक नहीं था। लेकिन मेरी स्टाइल तो ठीक उसके विपरीत थी। इसके बावजूद स्टूडियो में सोची या विचारी गयी कोई भी कहानी या स्थिति सायास या अनायास ही फोर्ड साहेब को ही ध्यान में रख कर तय की जाती थी। यहाँ तक कि रोस्को ऑरबक्कल भी स्टर्लिंग की ही नकल कर रहे थे।

स्टूडियो निश्चित ही पहले कोई खेत रहा होगा। माबेल नोर्माड का ड्रेसिंग रूम दूर एक पुराने बंगले में था और इससे सटा हुआ एक दूसरा कमरा था जहाँ अभिनेत्रियों की मंडली की दूसरी महिलाओं के तैयार होने की जगह थी। बंगले के ठीक सामने ही कलाकारों की मंडली के जूनियर स्टाफ और कीस्टोन के सुरक्षा कर्मियों के लिए मुख्य ड्रेसिंग रूम था जो शायद कभी खलिहान रहा होगा। इनमें ज्यादातर लोग सर्कस के भूतपूर्व जोकर और ईनामी कुश्तीबाज रहे थे। मुझे स्टार ड्रेसिंग रूम दिया गया। इसे पहले मैक सेनेट, फोर्ड स्टर्लिंग और रोस्को ऑरबक्क्ल इस्तेमाल करते रहे थे। यह भी एक खलिहाननुमा ढांचा था जो शायद कभी अश्व सज्जा कक्ष होगा। माबेल नोर्माड के अलावा वहाँ दूसरी कई खूबसूरत लड़कियाँ भी थीं। ये सौन्दर्य और पाशविकता का अद्भुत और अनूठा संगम था।

कई दिन तक मैं स्टूडियो दर स्टूडियो भटकता रहा और हैरान परेशान होता रहा कि आखिर काम कब शुरू होगा। कई बार मैं स्टेज पर आते जाते सेनेट साहब से टकरा जाता, लेकिन वे मेरी तरफ सूनी निगाहों से देखते, और अपने ही ख्यालों में खोये रहते। मैं इस असुविधाजनक ख्याल से ही परेशान हो रहा था कि वे ये समझते होंगे कि उन्होंने मुझे रख कर गलती ही की है और वे मुझे इस हाल से निकालने के लिए कोई कोशिश भी तो नहीं कर रहे थे।

रोज़ दर रोज़ मेरी मानसिक शांति सेनेट साहब पर ही निर्भर करती थी। अगर हम कहीं एक दूसरे से रास्ते में टकरा भी गये तो वे मुस्कुरा देते और मेरी उम्मीदें बढ़ जातीं। बाकी कम्पनी का जो रुख था वह देखो और इंतज़ार करो वाला था लेकिन कुछ लोगों की निगाह में मैं फोर्ड के गलत विकल्प के रूप में ही चुन लिया गया था।

शनिवार आया तो सेनेट साहब बहुत ही उदारमना थे। उन्होंने कहा,"फ्रंट ऑफिस में जाओ और अपना चेक ले लो।" मैंने उनसे कहा कि मैं चेक के बजाये काम पाने के बारे में ज्यादा परेशान हूं। मैं फोर्ड स्टर्लिंग की नकल करने के बारे में भी बात करना चाहता था लेकिन उन्होंने मुझे ये कह कर दर किनार कर दिया,"चिंता मत करो, हम जल्दी ही तुम्हें काम भी देंगे।"

निट्ठले बैठे हुए नौ दिन बीत चुके थे और मेरा तनाव मेरी शिराओं पर आ रहा था। अलबत्ता, फोर्ड साहब मुझे सांत्वना देते, और काम के बाद अक्सर वे मुझे शहर तक लिफ्ट भी दे देते। हम रास्ते में एलेक्ज़ैंड्रा बार में ड्रिंक के लिए रुकते, उनके कई मित्रों से मिलते। उनमें से एक थे मिस्टर एल्मर एल्सवर्थ जिन्हें मैं शुरू शुरू में तो नापसंद करता रहा और उन्हें कुछ हद तक फूहड़ समझता रहा, लेकिन वे मुझ पर मज़ाक करते हुए फब्तियाँ कसते,"मेरा ख्याल है आप फोर्ड की जगह ले रहे हैं। ठीक है, आप हंसोड़ हैं क्या?"

"विनम्रता इस बात की इजाज़त नहीं देती," मैंने चुटकी ली। इस तरह ही घिसाई बहुत तकलीफदेह थी, खासकर फोर्ड साहब की मौजूदगी में।

लेकिन पूरी सौम्यता से उन्होंने मुझे इस हालत से यह कह कर बाहर निकाल दिया,"क्या आपने इन्हें एम्प्रेस में शराबी की भूमिका में नहीं देखा है? बहुत हंसाया इन्होंने उसमें।"

"वैसे तो इन्होंने मुझे अब तक नहीं हंसाया है।" एल्सवर्थ बोले।

वे मोटे, बेढंगे आदमी थे जो ग्लैंडर रोग से पीड़ित दिखते थे, जिसमें नीचे का जबड़ा घोड़े की तरह सूज जाता है और नाक से पानी आने लगता है। उनका चेहरा उदासी से भरा और मनहूसियत के भाव लिये होता था। उनके चेहरे पर कोई बाल नहीं थे, उदास आँखें, और लटका चेहरा, और ऐसी मुस्कुराहट जिससे लगे कि वे साहित्य, वित्त और राजनीति पर कोई तोप चीज़ हैं। देश में सबसे ज्यादा जानकार बस, वही हैं और उन्हें हास्य बोध की खूब परख है। अलबत्ता, मुझे ये सब नहीं जमा और मैं तय किया कि मैं उनसे बचने की कोशिश करूंगा। लेकिन एलेक्जेंड्रा बार में एक रात, वे बोले, "अब तक ये जहाज पानी में नहीं उतरा है?"

"अब तक तो नहीं," मैं बेचैन हंसी हंसा।

"ठीक है, आप हंसोड़ ही बने रहो।"

इन महाशय से काफी कुछ सुन चुका था मैं। अब तक तो मैंने भी तय किया कि इनकी कड़वी खुराक का एक घूंट भी आज पिला ही दिया जाये।

"अच्छी बात है, आप जितने हंसोड़ दिखते हैं, उसके आधे में से भी मेरा काम चल जायेगा।"

"हुंह, ताने मारने वाला मज़ाक? ठीक है, ठीक है, मैं इसके बाद उनके लिए एक ड्रिंक खरीद दूंगा।"

और आखिर वे पल आ ही गये। सेनेट साहब माबेल के साथ लोकेशन पर बाहर गये हुए थे और फोर्ड स्टर्लिंग कम्पनी भी वहाँ नहीं थी। और इस हिसाब से स्टूडियो में कोई भी नहीं था। कीस्टोन के सबसे वरिष्ठ निर्देशक हेनरी लेहरमैन सेनेट के बाद एक नयी फिल्म शुरू करने वाले थे और चाहते थे कि मैं उसमें अखबार के एक रिपोर्टर की भूमिका करूं। लेहरमैन बहुत ही घमंडी किस्म के आदमी थे और इस बात पर उन्हें बहुत गर्व था कि उन्होंने मशीनी तरीके की कुछ बहुत ही सफल कॉमेडी फिल्में बनायी हैं। वे कहा करते थे कि उन्हें व्यक्तित्वों की ज़रूरत नहीं होती और वे अपने लिए हंसी का सारा सामान मैकेनिकल प्रभावों से और संपादन से पैदा कर सकते हैं।

हमारे पास कोई कहानी नहीं थी। सारा किस्सा प्रिंटिंग प्रेस के आस-पास बुना जाना था जिसमें यहाँ वहाँ हंसी के कुछ पल जुटाये जाने थे। मैंने एक हल्का फ्रॉक कोट पहना, एक टॉप हैट लगाया, और नींबू अटकाने वाली मूंछें रखीं। जब हमने काम शुरू किया तो मैं देख पा रहा था कि लेहरमेन साहब के पास नये नये विचारों का अकाल था। और ये बात भी थी कि चूंकि मैं कीस्टोन में नया था तो सुझाव देने के लिए छटपटा रहा था, परेशान था कि सुझाव दूँ या नहीं। और यहीं पर आकर मेरी लेहरमैन साहब से टकराहट शुरू हुई। एक दृश्य था जिसमें मुझे अखबार के सम्पादक का साक्षात्कार लेना था और अपनी तरफ से जितना भी सोचा जा सकता था, मैंने हँसी के पल डालने की कोशिश की। और यहाँ तक किया कि बाकी कलाकारों को भी सुझाव देने की ज़हमत भी उठायी। हालांकि फिल्म तीन दिन में पूरी हो गयी थी, मुझे लगा कि हम कुछ बहुत ही हँसी-मज़ाक की चीजें डालने में सफल रहे थे। लेकिन जब मैंने तैयार फिल्म देखी तो मेरा दिल डूब गया। इसका कारण यह था कि सम्पादक महोदय ने उसमें इतनी बुरी तरह से काट-छाँट कर दी थी कि उसे पहचाना ही नहीं जा सकता था। मेरे हँसी मज़ाक वाले सभी दृश्यों के ठीक बीच में कैंची चलायी गयी थी। मेरा तो दिमाग ही खराब हो गया। और सोच-सोच कर परेशान होने लगा कि आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया था। लेहरमैन साहब ने कई बरस बाद इस बात को स्वयं स्वीकार किया था कि उन्होंने ये सब जानबूझ कर किया था क्योंकि, उनके विचार से मैं कुछ ज्यादा ही सयाना बन रहा था।

लेहरमैन साहब के साथ जिस दिन मैंने अपना काम खत्म किया, उसके एक दिन बाद सेनेट साहब लोकेशन से वापिस आये। फोर्ड साहब एक सेट पर थे और ऑरबक्कल दूसरे सेट पर। पूरा का पूरा सेट तीनों कम्पनियों के काम के कारण व्यस्त था और वहाँ तिल धरने की जगह नहीं थी। मैं सड़क छाप कपड़ों में था और मेरे पास कोई काम धाम नहीं था। इसलिए मैं एक ऐसी जगह पर जा कर खड़ा हो गया जहाँ से सेनेट साहब की मुझ पर निगाह पड़ सके। वे माबेल के साथ खड़े थे और एक होटल लॉबी का सेट देख रहे थे और अपने सिगार का सिरा कुतर रहे थे।

"हमें यहाँ कुछ हँसी चाहिये।" उन्होंने कहा और फिर मेरी तरफ मुड़े,"कॉमेडी वाला मेक अप कर लो। कुछ भी चलेगा।"

मुझे रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि किस तरह का बाना धारण किया जाये। मुझे प्रेस रिपोर्टर वाला अपना गेट अप अच्छा नहीं लगा था। अलबत्ता, ड्रेसिंग रूम की तरफ जाते समय मैंने सोचा कि मैं बैगी पैंट पहन लूँ, बड़े-बड़े जूते हों, हाथ में छड़ी हो, तंग कोट हो, हैट छोटा सा हो, और जूते बड़े। मैं अभी ये तय नहीं कर पाया था कि मुझे जवान दिखना चाहिये या बूढ़ा, लेकिन मुझे याद आया कि सेनेट साहब मुझसे उम्मीद कर रहे थे कि मैं काफी बूढ़ा लगूँ, मैंने छोटी छोटी मूंछें भी लगाने का फैसला किया जिससे, मेरे ख्याल से, बिना अपने हाव-भाव छुपाये मैं अपनी उम्र को ज्यादा दिखा सकता था।

मुझे चरित्र के बारे में कोई आइडिया नहीं था। लेकिन ज्यों ही मैं तैयार हुआ, कपड़ों से और मेक अप से मुझे पता चल गया कि इस बाने से किस किस्म का व्यक्ति बन चुका है। मैं उसे जानने लग गया और जब तक मैं स्टेज तक चल कर आता, उस व्यक्तित्व का पूरी तरह से जन्म हो चुका था। जब मैं सेनेट साहब के सामने आया तो मैंने चरित्र को ही जीना शुरू कर दिया और रौब से चलने लगा। अपनी छड़ी को हिलाते हुए और उनके आगे चहल कदमी करते हुए मेरे दिमाग से हँसी भरी स्थितियों और मज़ाकों का सोता सा फूटने लगा।

मैक सेनेट की सफलता का राज़ ये था कि उनमें गज़ब का उत्साह था। वे एक बहुत ही बेहतरीन श्रोता थे और जो बात भी उन्हें मज़ाकिया लगती, उस पर खुल कर हँसते थे। वे खड़े-खड़े तब तक खिलखिलाते रहे जब तक उनका पूरा शरीर हिलने डुलने नहीं लग गया। उन्होंने मेरा उत्साह बढ़ाया और मुझे चरित्र समझाया,"तुम जानते हो कि इस आदमी के व्यक्तित्व के कई पहलु हैं। वह घुमक्कड़, मस्त मौला है, भला आदमी है, कवि है, स्वप्नजीवी है, अकेला जीव है, हमेशा रोमांस और रोमांच की उम्मीदें लगाये रहता है। वह तुम्हें इस बात की यकीन दिला देगा कि वह वैज्ञानिक है, संगीतज्ञ है, ड्यूक है, पोलो खिलाड़ी है, अलबत्ता, वह सड़क पर से सिगरेटें उठा कर पीने वाले और किसी बच्चे से उसकी टॉफी छीन लेने वाले से ज्यादा कुछ नहीं। और हाँ, यदि मौका आये तो वह किसी भली औरत को उसके पिछवाड़े लात भी जमा सकता है, लेकिन बेइंतहा गुस्से में ही।

मैं दस मिनट या उससे भी ज्यादा देर तक यही करता रहा, और सेनेट साहब लगातार हँसते रहे, खिलखिलाते रहे,"ठीक है, उन्होंने कहा,"चले जाओ सेट पर और देखो कि तुम क्या कर सकते हो।"

लेहरमैन की फिल्म की ही तरह मैं इस फिल्म के बारे में भी कुछ भी नहीं जानता था सिवाय इसके कि माबेल नोर्माड अपने पति और अपने प्रेमी के बीच फंस जाती है।

किसी भी कॉमेडी में सबसे महत्त्वपूर्ण होता है नज़रिया। लेकिन हर बार नज़रिया ढूंढना आसान भी नहीं होता। अलबत्ता, होटल लॉबी में मैंने यह महसूस किया कि मैं छलिया हूँ जो कि किसी मेहमान की तरह पोज़ कर रहा है, लेकिन वास्तविकता में मैं एक ट्रैम्प था जो थोड़ा बहुत आश्रय चाहता है। मैं प्रवेश करता हूं और एक महिला के पैर से ठोकर खा जाता हूँ, मैं मुड़ता हूँ और जैसे माफी माँगते हुए अपना हैट उठाता हूँ और फिर मुड़ता हूं और इस बार एक पीकदान से टकरा जाता हूँ। और इस बार मैं पीकदान के आगे हैट उठाकर माफी मांगता हूँ। कैमरे के पीछे वे लोग हँसने लगे।

वहाँ पर काफी भीड़ जमा हो गयी थी। वहाँ न केवल उन दूसरी कम्पनियों के कलाकार अपना अपना काम छोड़ कर वहीं जुट आये थे बल्कि स्टेज पर काम करने वाले बढ़ई और वार्डरोब में काम करने वालों ने भी अच्छी खासी भीड़ जुटा ली थी। और ये सबसे बड़ा पुरस्कार था। और जब तक हमने रिहर्सल खत्म की, हमारे आस-पास बहुत बड़ी संख्या में दर्शक खड़े हुए हँस रहे थे। जल्दी ही मैंने फोर्ड साहब को दूसरे लोगों के कंधों के पीछे से उचक कर देखते हुए देखा। और जब ये सब खत्म हुआ तो मैं जानता था, मैं किला फतह कर चुका हूँ।

दिन के अंत में जब मैं अपने ड्रेसिंग रूम में गया तो फोर्ड स्टर्लिंग और ऑरबक्कल अपने-अपने मेकअप उतार रहे थे। बहुत कम बातें हुई लेकिन पूरे माहौल में एक लहर चल रही थी। फोर्ड तथा रोस्को, दोनों ने मुझे पसंद किया। लेकिन ईमानदारी से कहूँ तो वे दोनों ही किसी भीतरी संघर्ष से जुझ रहे थे।

ये एक लम्बा दृश्य था जो पूरे पिचहत्तर फुट तक चला। बाद में लेहरमैन और सेनेट साहब में बहस होती रही कि क्या इस पूरे दृश्य को ज्यों का त्यों जाने दिया जाये क्योंकि उस समय अमूमन हँसी मज़ाक के दृश्यों की लम्बाई मुश्किल से दस फुट हुआ करती थी।

"ये अच्छा मज़ाक भरा है," मैंने कहा,"क्या लम्बाई से वाकई फर्क पड़ता है?" तब उन्होंने तय किया कि इस पूरे दृश्य को जस का तस पिचहत्तर फुट की लम्बाई तक जाने दिया जाये। चूँकि मेरे कपड़े मेरे चरित्र से मेल खा रहे थे, मैंने तभी और उसी वक्त ही तय कर लिया कि भले ही कुछ भी हो जाये, मैं अपनी इसी ढब को बनाये रखूँगा।

उस रात मैं स्ट्रीटकार में अपने घर लौटा तो मेरे साथ हमारी कम्पनी में काम करने वाला एक जूनियर कलाकार था। उसने कहा,"दोस्त, आपने कुछ नयी शुरुआत कर दी है। अब तक ऐसा कभी भी नहीं हुआ था कि सेट पर इस तरह की हँसी के मौके आये हों। फोर्ड स्टर्लिंग साहब के लिए भी नहीं। आप ज़रा उनका चेहरा तो देखते, देखने लायक था।"

"अब हम यही उम्मीद करें कि लोग बाग थियेटर में भी इसी तरह से हँसते हैं?" मैंने अपनी खुशी को दबाते हुए कहा।

कुछ ही दिन बाद, एलेक्जेड्रा बार में मैंने अपने कॉमन दोस्त एल्मर एल्सवर्थ को मेरे चरित्र के बारे में फोर्ड साहब को कानाफूसी करते सुना,"जनाब ने बैगी पैंट पहनी थी, सपाट पैर, और उनकी हालत खस्ता थी, आप देखते तो बंदा अच्छा खासा हरामी, धूल-गंदगी में सना लग रहा था। इस तरह के खीझ भरे हाव भाव दिखाता है मानो इसकी बगल में चीटियाँ काट रही हों। अच्छा खासा कार्टून लगता है।"

मेरा चरित्र थोड़ा अलग था और अमेरिकी जनता के लिए अनजाना भी। यहाँ तक कि मैं भी उससे कहाँ परिचित था। लेकिन वे कपड़े पहन लेने के बाद मैं यही महसूस करता था कि मैं एक वास्तविकता हूँ, एक जीवित व्यक्ति हूँ। दरअसल, जब मैं वे कपड़े पहन लेता और ट्रैम्प का बाना धारण कर लेता तो मुझे तरह तरह के मज़ाकिया ख्याल आने लगते जिनके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था।

मैं उस जूनियर कलाकार के बहुत करीब आ गया था और हर रात स्ट्रीटकार में घर वापिस आते समय वह मेरी कामेडी के बारे में दिन भर स्टूड़ियों में हुई प्रतिक्रियाओं के बारे में बताता और बातें करता," वो तो कमाल का ही आइडिया था, दोस्त, तुम्हारा वे फिंगर बॉल में उंगलियां डुबोना और उस बुढ़ऊ की मूंछों से पोंछ लेना।...आज तक किसी ने इस तरह की बातों के बारे में सोचा भी नहीं होगा।" और इस तरह से वह ये सारी बातें बताता रहता और मुझे हवा भरे गुब्बारे में ऊपर चढ़ाता रहता।

सेनेट साहब के निर्देशन में मैं सहज महसूस करता था क्योंकि उनके साथ सेट पर सब कुछ सहज स्फूर्त तय होता चला जाता था। चूँकि कोई भी अपने खुद के बारे में पाज़िटिव या अंतिम रूप से पक्का नहीं होता था (यहाँ तक कि निर्देशक भी नहीं,) इसलिए मैं अपने बारे में यह मान कर चलता कि मैं दूसरों से ज्यादा जानता हूँ। मैंने सुझाव देने शुरू कर दिये जिन्हें सेनेट साहब सहर्ष स्वीकार कर लेते। इस तरह से मुझमें यह विश्वास पनपने लगा कि मैं सृजन भी कर सकता हूँ और अपनी खुद की कहानियाँ भी लिख सकता हूँ। सेनेट महोदय ने निश्चय ही इस विश्वास को प्रेरित किया। लेकिन हालांकि मैं सेनेट साहब को खुश कर चुका था, जनता के दरबार में जा कर उसे खुश करना अभी बाकी था।

अगली फिल्म में मुझे फिर से लेहरमैन के हवाले कर दिया गया। वे सेनेट साहब को छोड़ कर स्टर्लिंग के पास जा रहे थे हालांकि वे सेनेट के साथ अपने करार के खत्म होने की तारीख के बाद भी दो हफ़्ते तक रुकने के लिए तैयार हो गये थे। जब मैंने उनके साथ फिर से काम करना शुरू किया तो मैं एक से एक नायाब सुझावों से भरा हुआ था। वे मेरी बात सुनते और मुस्कुरा देते लेकिन उन्हें स्वीकार न करते। वे कहा करते,"हो सकता है इस तरह की बातें थियेटर में चल जाये लेकिन फिल्मों में हमारे पास इन सब बातें के लिए फुर्सत नहीं है। हमें हमेशा गतिशील रहना चाहता हूँ। कॉमेडी पीछा करने के लिए एक बहाना है।"

मैं उनकी इस सपाटबयानी से सहमत नहीं था,"हास्य तो हास्य है।" मैं तर्क देता,"चाहे वह फिल्मों में हो या थियेटर में।" लेकिन वे अपनी ही बातों पर अड़े रहे, वही करने पर तुले रहे जो कीस्टोन में होता आया था। सारे एक्शन तेज गति से होने चाहिये। इसका यही मतलब होता कि लगातार दौड़ते रहो, घरों की छतों पर, स्ट्रीटकारों में कूदो, दौड़ो, नदियों में छलांगें मारो, और खम्भों पर से कूदो। उनकी इस कॉमेडी की थ्योरी के बावजूद मैं किसी न किसी तरह से अकेले की कॉमेडी के लिए एकाध गुंजाइश निकाल ही लेता था, लेकिन हमेशा की तरह, वे उन्हें संपादन कक्ष में कटवा ही लेते।

मैं नहीं समझता कि लेहरमैन ने मेरे बारे में सेनेट साहब को कोई बहुत अच्छी रिपोर्ट दी होगी। लेहरमैन के बाद मुझे एक अन्य निर्देशक को सौंप दिया गया। मिस्टर निकोलस साठ के पेटे में एक अधेड़ आदमी थे जो मोशन फिल्मों की शुरुआत से ही उनसे जुड़े हुए थे। मेरे सामने उनके साथ भी वही दिक्कत थी। उनके पास कुल मिला कर एक ही हँसाने का एक ही तरीका होता था। इसमें वे कॉमेडियन को गर्दन से पकड़ते थे और एक सीन से दूसरे सीन तक उसे घूँसे ही मारते जाते थे। मैं इससे बारीक बातें उन्हें बताना चाहता था, लेकिन वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। "हमारे पास टाइम नहीं है, टाइम नहीं है।" वे चिल्लाते। वे बस किसी तरह से फोर्ड स्टर्लिंग की नकल भर चाहते। हालांकि मैंने मामूली सा ही विरोध जतलाया था लेकिन लगता है, वे जाकर सेनेट साहब के कान भर आये कि मुझ जैसे सुअर के पिल्ले के साथ काम करना उनके बस की बात नहीं।

लगभग इसी समय वह फिल्म जो सेनेट साहब ने निर्देशित की थी, माबेल्स स्ट्रेंज प्रेडिक्टामेट, उप नगरों में दिखायी गयी। भय और घबड़ाहट के मिले जुले भाव के साथ मैंने इसे दर्शकों के बीच बैठ कर देखा। जब फोर्ड स्टर्लिंग पर्दे पर आते तो उनका स्वागत हमेशा उत्साह और हँसी के साथ होता था लेकिन मेरे हिस्से में ठंडा मौन ही आया। वह सब हँसी मज़ाक के सीन जो मैंने होटल लॉबी में किये थे, मुश्किल से एकाध मुस्कुराहट ही जुटा पाये। लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ी, दर्शक पहले दबी हँसी हँसे, फिर खुल कर हँसे, और फिल्म के खत्म होते न होते, एक दो ज़ोर के ठहाके लगे। उस प्रदर्शन में मैंने पाया कि दर्शक नये आगंतुक को एकदम नकार नहीं देते हैं।

मैं दुविधा में था कि ये पहला प्रयास सेनेट साहब की उम्मीदों पर खरा उतरा या नहीं। मेरा तो यही मानना है कि वे निराश ही हुए थे। वे एकाध दिन के बाद मेरे पास आये और बोले,"सुनो, सब लोगों का कहना है कि तुम्हारे साथ काम करना मुश्किल है।" मैं उन्हें ये समझाना चाहता था कि मैं सतर्क था और सिर्फ फिल्म की बेहतरी के लिए ही काम कर रहा था। "वो तो ठीक है, सेनेट बोले, "तुम सिर्फ वही करो जो तुम्हें करने के लिए कहा जाये। उसी में हमारी तसल्ली हो जायेगी।" लेकिन अगले ही दिन निकोलस के साथ मेरी एक और झड़प हो गयी और मैं फट पड़ा,"आप मुझसे जो कुछ करवाना चाहते हें, वह तीन डॉलर रोज़ कमाने वाला कोई भी एक्स्ट्रा कर सकता है।" मैंने घोषणा कर दी,"मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जिसमें कुछ अक्ल का काम हो, सिर्फ इधर उधर मारा-मारा गिरते पड़ते रहना और स्ट्रीटकार में से गिरना, ये सब मेरे बस का नहीं। मुझे हफ़्ते के एक सौ पचास डॉलर सिर्फ इसी के लिए नहीं मिलते।"

बेचारा "पॉप" निकोलस, जैसा कि हम उसे कहा करते थे, उसकी तो हालत खराब थी। "मैं पिछले दस बरस से इस धंधे में हूँ।" वे कहने लगे, "तुम इन सबके बारे में जानते ही क्या हो?" मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने कास्ट के बाकी कलाकारों को भी समझाने की कोशिश की लेकिन वे सब भी मेरे खिलाफ थे। "ओह, वह जानता है, वही जानता है, वह पिछले कई बरस से इसे लाइन में है," एक बूढ़े कलाकार ने मुझे समझाया।

मैंने कुल मिला कर पाँच फ़िल्में बनायीं और उन सबमें किसी तरह से जोड़-तोड़ करके अपना खुद का कुछ न कुछ कॉमेडी का मसाला डाल ही दिया। बेशक उसका संपादन कक्ष में बैठे कसाई जो भी करते रहे हों। अब चूँकि मैं संपादन कक्ष में उसकी संपादन कला से वाकिफ हो चुका था इसलिए मैं सीन के शुरू में और आखिर में ही अपना हास्य का मसाला डाल देता था ताकि उसे काटने में उन्हें अच्छी खासी तकलीफ हो। मैं सीखने के लिहाज से कोई भी मौका नहीं चूकता था। मैं डेवलपिंग कक्ष से और संपादन कक्ष के अंदर-बाहर होता रहा था और देखता था कि संपादन करने वाला किस तरह से कटे हुए टुकड़ों को आपस में जोड़ता है।

अब मैं इस चिंता में था कि अपनी खुद की फिल्में लिखूँ और उनका निर्देशन भी करूँ। इस लिहाज से मैंने सेनेट साहब से बात की। लेकिन वे तो इस बारे में कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। इसके बजाये उन्होंने मुझे माबेल नोर्माड के हवाले कर दिया। उन्होंने अभी अभी ही अपनी खुद की फिल्मों का निर्देशन शुरू किया था। इस बात ने मुझे चित्त कर दिया क्योंकि बेशक माबेल बला की खूबसूरत थीं, उनकी निर्देशन क्षमता पर मुझे शक था। इसलिए पहले ही दिन सिर मुंडाते ही ओले पड़े। होनी हो कर रही। हम लॉस एंजेल्स के एक उप नगर में लोकेशन पर थे। एक सीन में माबेल मुझसे चाहती थीं कि मैं सड़क पर एक हौज और पानी ले कर खड़ा होऊं ताकि विलेन की कार उस पर फिसल जाये। मैंने सुझाव दिया कि मैं हौज पाइप पर ही खड़ा हो जाता हूँ ताकि पानी बाहर नहीं आयेगा और जब मैं अनजाने में उसके नोज़ल को देखता हूँ और हौज पाइप के ऊपर से पैर हटाता हूँ तो पानी की बौछार अचानक मेरे चेहरे को भिगो देती है। लेकिन उसने ये कह कर मेरा मुँह बंद कर दिया,"हमारे पास वक्त नहीं है। हमारे पास वक्त नहीं है। वही करो जो आपसे करने को कहा गया है।"

ये बहुत बड़ी बात थी। मैं इसे सहन नहीं कर सकता था और वो भी ऐसी खूबसूरत लड़की से,"माफ करना, मिस नोर्माड, मैं वही नहीं करूंगा जो मुझे करने के लिए कहा गया है। मुझे नहीं लगता कि आप इतनी लियाकत रखती हैं कि मुझे बता सकें कि मुझे क्या करना चाहिये।"

ये दृश्य सड़क के बीचों-बीच फिल्माया जाना था और मैं इसे छोड़ कर चल दिया और एक पुलिया पर जा कर बैठ गया। प्यारी माबेल, उस वक्त बिचारी मात्र बीस बरस की थी, खूबसूरत और आकर्षक, हर दिल अजीज, हर कोई उसे चाहता था, अब वह कैमरे के पास हैरान परेशान बैठी हुई थी। आज तक उससे किसी ने सीधे बात तक नहीं की थी, मैं भी उसकी खूबसूरती, उसके सौन्दर्य और उसके आकर्षण का कायल था, और मेरे भी दिल के किसी कोने में उसके नाम के चिराग जलते थे, लेकिन ये तो मेरा काम था। तत्काल ही पूरा का पूरा स्टाफ माबेल के चारों तरफ झुंड बना कर खड़ा हो गया और सम्मेलन होने लगा। माबेल ने मुझे बाद में बताया था कि एक दो एक्स्ट्रा तो मुझे तभी के तभी रगेदना चाहते थे। लेकिन उसी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया। तब उसने अपने एक सहायक को मेरे पास यह पूछने के लिए भेजा कि क्या मैं काम जारी रखने के लिए इच्छुक हूँ। मैं सड़क पार कर उस तरफ गया जहाँ वह बैठी हुई थी।,"मैं शर्मिंदा हूँ," मैंने माफी सी मांगते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि ये मज़ाकिया है या नहीं लेकिन अगर आप मुझे एकाध मज़ाकिया दृश्यों के बारे में सुझाव देने की अनुमति दें तो...।"

उसने कोई बहस नहीं की। "ठीक है," उसने कहा,"अगर आप वह नहीं करते जो आपको बताया गया है तो हम स्टूडियो वापिस चले चलते हैं।" हालांकि स्थिति खराब थी, मैंने हार मान ली और मैंने कंधे उचकाये। हमने दिन के काम का ज्यादा नुकसान नहीं किया, क्योंकि हम सुबह नौ बजे से शूटिंग कर रहे थे। अब शाम के पाँच बजने को आये थे, और सूर्य डूबने की तैयारी कर रहा था।

स्टूडियो में मैं अपना ग्रीज़ पेंट उतार रहा था कि सेनेट साहब ड्रेसिंग रूम में दनदनाते हुए आये और एकदम फट पड़े,"ये सब मैं क्या सुन रहा हूँ? क्या लफड़ा है ये सब?"

मैंने समझाने की कोशिश की,"कहानी में एकाध हल्के फुल्के हास्य की ज़रूरत है।" मैंने बताया, "लेकिन मिस नोर्माड तो कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं है।"

"आप सिर्फ वही कीजिये जो आपको करने के लिए कहा जाता है, नहीं तो यहाँ से दफा हो जाइये, करार होता है या नहीं, भाड़ में जाये करार।" वे बोले।

मैं बहुत ही शांत बना हुआ था,"मिस्टर सेनेट, मैंने जवाब दिया,"मैं यहाँ आने से पहले भी अपनी रोज़ी रोटी कमा रहा था, और अगर मुझे निकाल भी दिया जाता है, तो ठीक है, मैं बाहर हो जाता हूँ। लेकिन मैं विवेकशील हूँ और मैं भी आप ही की तरह फिल्म को बेहतर बनाने की ही उतना ही उत्सुक हूँ।"

बिना एक शब्द और बोले उन्होंने ज़ोर से दरवाजा बंद कर दिया।

उस रात स्ट्रीटकार में घर जाते समय मैंने अपने दोस्त को बताया कि क्या हुआ था।

"बहुत बुरा हुआ। आप तो बहुत ही अच्छा करने जा रहे थे।" उसने कहा।

"क्या ख्याल है, वे मुझे निकाल बाहर करेंगे?" मैंने खुश होते हुए कहा ताकि अपनी चिंता पर परदा डाल सकूं।

"मुझे इस बात पर कोई हैरानी नहीं होगी। जब उन्हें आपके ड्रेसिंग रूम से जाते हुए देखा तो वे अच्छे खासे उखड़े हुए नज़र आ रहे थे।"

"मेरे साथ ये भी चलेगा। मेरे खीसे में पन्द्रह सौ डॉलर हैं और ये मेरे इंगलैंड वापिस जाने के किराये के लिए काफी हैं। अलबत्ता, मैं कल तो आऊंगा ही और अगर उन्हें मेरी ज़रूरत नहीं है तो यही सही।

अगले दिन सुबह मुझे आठ बजे काम पर हाज़िर होना था, लेकिन मैं तय नहीं कर पा रहा था कि जाऊं या नहीं, इसलिए मैं ड्रेसिंग रूम में बिना कोई मेक-अप किये बैठा रहा। आठ बजने में पाँच मिनट पर सेनेट साहब ने दरवाजे पर अपना चेहरा दिखाया। "चार्ली, मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ। चलो, माबेल के ड्रेसिंग रूम में चलें।" उनकी टोन आश्चर्यजनक रूप से दोस्ताना थी।

"कहिये मिस्टर सेनेट," मैंने उनके पीछे जाते हुए कहा।

माबेल वहाँ पर नहीं थी। उस वक्त वह प्रोजेक्शन रूम में रशेस देख रही थी।

"सुनो, मैक बोले,"माबेल तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक है। और हम सब भी तुम्हें बहुत चाहते हैं। हम जानते हैं कि तुम बेहतरीन कलाकार हो।"

मैं इस अचानक हुए परिर्वतन को देख कर हैरान था और मैं तत्काल पिघलने भी लगा,"मेरे मन में भी माबेल के लिए बहुत अधिक सम्मान और प्रशंसा के भाव हैं," मैंने कहा, "लेकिन मुझे नहीं लगता कि उसमें इतनी क्षमता है कि निर्देशन कर सके। आखिर वह एकदम युवा ही तो है।"

"तुम जो भी सोचो, लेकिन भगवान के लिए अपने अहं को पी जाओ और इस पचड़े में से निकलने में हमारी मदद करो।" सेनेट साहब मेरे कंधे पर धौल धप्पा करते हुए बोले।

"..और मैं भी तो यही करने की कोशिश कर रहा हूँ।"

"तो ठीक है। उसके साथ संबंध ठीक रखने के लिए अपनी ओर से पूरी कोशिश करो।"

"सुनिये, अगर मुझे ही निर्देशन करने का भार सौंप देंगे तो आपको किसी भी किस्म की तकलीफ नहीं होगी।" मैंने कह ही दिया।

मैक एक पल के लिए ठिठके,"और अगर हम फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो उसका हरजाना कौन भरेगा?"

"मैं उठाऊंगा खर्चा।" मैंने जवाब दिया,"मैं किसी भी बैंक में पन्द्रह सौ डॉलर जमा करवा देता हूँ। और अगर आप फिल्म रिलीज़ न कर पाये तो आप ये पैसे रख सकते हैं।"

मैक एक पल के लिए सोचने लग,"कोई कहानी है तुम्हारे पास?"

"बेशक, आप जितनी मर्जी कहानियां चाहें।"

"तो ठीक है।" मैक बोले,"माबेल के साथ ये फिल्म पूरी कर लो फिर हम देखते हैं।"

हम दोनों ने निहायत ही दोस्ताना लहजे में हाथ मिलाये। बाद में मैं मोबेल के पास गया और उससे क्षमा याचना की। और उसी शाम मैक हम दोनों को डिनर पर बाहर ले गये। अगले दिन माबेल जितनी मधुरता बिखेर रही थी, उससे ज्यादा प्रिय नहीं हो सकती थी। यहाँ तक कि उसने मेरे सुझाव भी माँगे और विचार भी पूछे। इस तरह, पूरी कैमरा टीम और बाकी की कास्ट को हैरान छोड़ते हुए हमने खुशी-खुशी फिल्म पूरी की। सेनेट साहब के नज़रिये में अचानक आये इस परिवर्तन से मैं हैरान था। अलबत्ता, ये तो महीनों के बाद मुझे जा कर इसके पीछे का एक कारण पता चला। ऐसे लगता है कि हफ़्ते के आखिर में सेनेट मुझे नौकरी से निकालना चाहते थे, लेकिन जिस सुबह माबेल के साथ मेरी झड़प हुई थी, मैक को न्यू यार्क कार्यालय से एक तार मिला था कि वे फटाफट चैप्लिन की और फिल्में बनायें क्योंकि वहाँ उनकी बहुत अधिक माँग हो गयी थी।

कीस्टोन द्वारा रिलीज की जाने वाली कॉमेडी फिल्मों के आम तौर पर बीस प्रिंट बनाये जाते थे। तीस की संख्या काफी सफल मानी जाती थी। पिछली फ़िल्म, जो क्रम से चौथी थी, पैंतालिस प्रिंट की संख्या तक जा पहुँची थी तथा अतिरिक्त प्रतियों की माँग बढ़ती ही जा रही थी। मैक साब के दोस्ताना व्यवहार के पीछे ये तार ही काम कर रहा था।

उन दिनों निर्देशन का अंक गणित बहुत ही सीधा सादा हुआ करता था। मुझे सिर्फ यही देखना होता था कि आने और बाहर जाने के लिए दिशा दायीं तरफ थी या बायीं तरफ। यदि कोई कलाकार बाहर जाते समय कैमरे की तरफ पीठ करके गया तो वापसी में उसका चेहरा कैमरे की तरफ होगा। अलबत्ता, ये बेसिक नियम थे।

लेकिन और अधिक अनुभव के साथ मैंने पाया कि कैमरे के रखने की जगह का न केवल मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है बल्कि इससे सीन भी बनता बिगड़ता है। दरअसल, यही सिनेमाई शैली का आधार था। यदि कैमरा बहुत नज़दीक या बहुत दूर रख दिया जाये तो इससे पूरा का पूरा दृश्य बन भी सकता है और पूरा प्रभाव बिगड़ भी सकता है। अब चूँकि गति की किफायत आपके लिए महत्त्वपर्ण होती है, अत: आप नहीं चाहते कि अभिनेता बिना किसी वजह के कई कदम चले, हाँ, जब तक इसके लिए कोई खास कारण न हो। इसका कारण यह है कि चलने में कुछ भी ड्रामाई नहीं है। इसलिए कैमरे को रखने का मतलब कम्पोजिशन होना चाहिये और ये अभिनेता के लिए गरिमामय होना चाहिये। कैमरे को कहां रखना है, ये बात सिनेमाई अर्थ संयोजन की होती है। इस बात के कोई तय नियम नहीं है कि क्लोज़ अप से अधिक अच्छे परिणाम मिलते हैं या लांग शॉट से बेहतर प्रभाव पैदा किया जा सकता है। क्लोज अप महसूस करने की चीज़ है। कुछेक मामलों में लाँग शॉट से बहुत अच्छे प्रभाव पैदा किये जा सकते हैं।

इसका एक उदाहरण मेरी शुरुआती कॉमेडी फिल्म स्केटिंग में देखा जा सकता है। ट्रैम्प रिंग में प्रवेश करता है और एक पैर ऊपर करके स्केट करता है। वह गिरता है, लड़खड़ाता है और आस-पास के सब लोगों को गिराता, लुढ़काता जाता है और तरह तरह की शरारतें करता रहता है। आखिर, वह सबको धराशायी करके दूर वाले कोने की तरफ जा कर दर्शकों के बीच यह देखने के लिए भोला बन के बैठ जाता है कि उसने क्या हंगामा बरपा दिया है। यहाँ पर ट्रैम्प की ये छोटी सी आकृति ही बहुत कुछ कह जाती है जो शायद क्लोज अप में उतनी मजेदार न बन पाती।

जब मैंने अपनी पहली फिल्म का निर्देशन किया तो मुझमें इतना आत्म विश्वास नहीं था जितना होना चाहिये था। दरअसल, मुझे अफरा-तफ़री का दौरा सा पड़ गया था। लेकिन जब सेनेट साहब ने पहले दिन का काम देख लिया तो में आश्वस्त हो गया। फिल्म का नाम था "कॉट इन द रेन"। हालांकि ये विश्व स्तरीय फिल्म नहीं थी लेकिन ये मज़ेदार थी और काफी सफल भी रही। जब मैंने इस पूरा कर लिया तो सेनेट साहब की प्रतिक्रिया जानने को उत्सुक था। प्रोजेक्शन रूम से उनके बाहर आने तक मैं उनकी राह देखता रहा।

"तो, बंधुवर, एक और फिल्म शुरू करने के लिए तैयार हो?" पूछा उन्होंने। उसके बाद से तो मैंने अपनी सभी कॉमेडी फिल्में खुद ही लिखीं और निर्देशित भी कीं। एक प्रोत्साहन के रूप में सेनेट साहब ने प्रत्येक फिल्म के लिए पच्चीस डॉलर का बोनस दिया।

अब उन्होंने मुझे मानो गोद ही ले लिया था। वे रोज़ रात को मुझे खाने पर बाहर ले जाते। वे मेरे साथ दूसरी कम्पनियों के लिए कहानियाँ पर चर्चा करते। और मैं उनके साथ ऐसे-ऐसे पागलपन से भरे ख्यालात के बारे में बात करता जो कई बार इतने निजी होते कि जनता उन्हें समझ ही न पाती। लेकिन सेनेट उन्हें सुनते और उन्हें स्वीकार कर लेते।

अब जब मैंने आम जनता के बीच बैठ कर अपनी फिल्में देखीं तो उनकी प्रतिक्रिया अलग ही थी। कीस्टोन कॉमेडी की घोषणा होते ही हलचल और उत्तेजना, मेरे पहले-पहले आगमन के साथ ही, मेरे कुछ करने से पहले ही खुशी भरी चीखें मेरे लिए बेहद सुकून भरी होतीं। मैं दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय होता जा रहा था। अगर मैं अपने जीवन को इसी तरह से चलाता रह पाता तो मेरे लिए यही संतोष की बात थी। अपने बोनस के साथ मैं दो सौ डॉलर हर हफ्ते के कमा रहा था।

अब चूँकि मैं अपने काम में उलझा हुआ था अब मेरे पास एलैक्ज़ेंड्रिया बार या अपने ताना मारने वाले दोस्त एल्मर एल्सवर्थ के पास जाने का वक्त ही नहीं मिलता था। अलबत्ता, मैं उसे हफ्तों बाद एक दिन सड़क पर ही मिल गया। वह कहने लगा,"अरे भई, सुनो तो, मैं कुछ अरसे से तुम्हारी फिल्में देखता आ रहा हूँ। और भगवान की कसम, तुम काफी अच्छे हो। तुम्हारे पास जो क्वालिटी है, वह यहाँ औरों से बिलकुल ही अलग है। तुमने पहली ही बार में अपने बारे में ये सब क्यों नही बता दिया था।" हाँ, हम बाद में जा कर बहुत अच्छे दोस्त बन गये थे।

ऐसा बहुत कुछ था जो मैंने कीस्टोन से सीखा और बदले में बहुत कुछ कीस्टोन कम्पनी को सिखाया भी। उन दिनों वे लोग तकनीक, स्टेज क्राफ़्ट या मूवमेंट के बारे में बहुत कम जानते थे। मैं उनके लिए ये चीजें थियेटर से ले कर आया। वे प्राकृतिक मूक अभिनय पेंटोमाइम के बारे में भी बहुत कम जानते थे। किसी सीन को ब्लॉक करने के लिए निर्देशक तीन या चार अभिनेताओं को कैमरे की तरफ मुँह करके सपाट खड़ा करवा देता और उनमें से एक बहुत खुले हावभाव के साथ अपनी ओर इशारा करते हुए मूक अभिनय करता, तब वह अपनी अंगूठी वाली उंगली की तरफ इशारा करता, और फिर लड़की की तरफ इशारा करता," मैं तुम्हारी लड़की से शादी करना चाहता हूँ।" उनके मूक अभिनय से बारीकी या प्रभाव डालने की जरा भी गुंजाइश न बचती। इसलिए मैं उनकी तुलना में बीस ठहरता। उन शुरुआती फ़िल्मों में मुझे पता था कि मेरे पक्ष में कई बातें हैं। और एक भूगर्भशास्त्रीर की तरह मैं एक नये, समृद्ध और अब तक अछूते क्षेत्र में प्रवेश कर रहा हूँ। मेरा ख्याल है, वह मेरे कैरियर का सबसे अधिक रोमांचक काल था, क्योंकि मैं कुछ आश्चर्यजनक करने की दहलीज पर था।

सफलता आपको प्यारा बना देती है और मैं स्टूडियो में सबका परिचित दोस्त बन गया। मैं एक्स्ट्रा लोगों के लिए, स्टेज पर काम करने वालों के लिए और वार्डरोब विभाग के लिए और कैमरामेन के लिए चार्ली था। हालांकि मैं चने के झाड़ पर चढ़ने वालों में से नहीं हूँ, फिर भी सच में ये बातें मुझे खुश करती ही थीं क्योंकि मैं जानता था कि इस अंतरंगता का मतलब ही यही है कि मैं सफल हो रहा हूँ।

अब मुझे अपने विचारों में आत्मविश्वास नज़र आने लगा था। और मैं सोच सकता हूँ कि सेनेट बेशक मेरी तरह काला अक्षर भैंस बराबर ही थे, उन्हें अपनी पसंद पर भरोसा था और यही भरोसा उन्होंने मुझमें भी पैदा किया। उनके काम करने के तरीके ने मेरा आत्मविश्वास बढ़ाया। स्टूडियो में उनकी पहले दिन की टिप्पणी,"हमारे पास कोई सिनेरियो नहीं होता, हम एक आइडिया पकड़ लेते हैं। और फिर उसी की लीक पर स्वाभाविक परिणति पर चल देते हैं।" इससे मेरी कल्पना शक्ति को नये पंख लगे थे।

इस तरह से फिल्में बनाना बहुत उत्तेजनापूर्ण काम था। थियेटर में मैं रात दर रात वही बंधी बंधायी लीक पर वह सब कुछ जड़, बंधी-बंधायी दिनचर्या दोहराने को मजबूर था। एक बार स्टेज का कारोबार देख लिये जाने और तय कर लिये जाने के बाद उनमें कुछ नया डालने की कोई कभी सोचता भी नहीं था। थियेटर में काम करने की एक ही प्रेरित करने वाली वजह होती थी और वह यह थी कि अच्छा काम या बुरा काम। लेकिन फिल्मों में ज्यादा आज़ादी थी। उनमें मुझे रोमांच का अनुभव होता था। "इस आइडिया के बारे में तुम क्या सोचते हो?" सेनेट कहते या फिर "पता है शहर में मुख्य बाज़ार में बाढ़ आयी हुई है!" इस तरह की टिप्पणी से ही कीस्टोन की कामेडी की शुरुआत होती थी। ये एक बांध लेने वाली मोहक खुली हवा थी जो शानदार थी...व्यक्ति की सृजनात्मकता के लिए चुनौती।

ये सब इतना खुला-खुला और सहज रहा...कोई साहित्य नहीं, कोई लेखक नहीं, हम सब मिल कर एक विचार का ताना बाना बुनते, उसके आस-पास हँसी ठिठोली की बातें बांधते और जैसे-जैसे आगे बढ़ते जाते, कहानी आकार लेने लगती।

उदाहरण के लिए, हिज प्रीहिस्टारिक पास्ट में मैंने हँसी की एक ही बात से शुरू किया और वह मेरी पहली एंट्री से थी। मैं खाल लपेट के एक प्रागैतिहासिक आदमी के रूप में एंट्री लेता हूँ और जैसे-जैसे मैं लैंडस्केप को देखता परखता हूँ, मैं अपना पाइप भरने के लिए ओढ़ी हुई भालू की खाल में से बाल नोचने लगता हूँ। ये आइडिया अपने आप में काफी था प्रागैतिहासिक काल की कथा बुनने में। इसमें प्यार था, दुश्मनी थी, मारा मारी थी और पीछा करो के दृश्य थे। यही तरीका था जिसे कीस्टोन में हम सब अपनाया करते थे।

मैं अपनी फिल्मों में कॉमेडी के अलावा और नये आयाम जोड़ने की अपनी ललक के शुरुआती प्रेरक पलों को याद कर सकता हूँ। मैं द' न्यू जेनिटर नाम की एक फ़िल्म में काम कर रहा था। इसमें एक दृश्य था जिसमें कार्यालय का मैनेजर मुझे नौकरी से निकाल देता है। उसके सामने गिड़गिड़ाते हुए कि वह मुझ पर रहम खाये और मुझे नौकरी में रहने दे, मैंने इस बात का मूक अभिनय शुरू कर दिया कि मेरे ढेर सारे छोटे छोटे बच्चे हैं। तभी मैंने पाया कि डोरोथी डेवेनपोर्ट नाम की एक वृद्ध नायिका एक तरफ रिहर्सल देख रही थी। अचानक उस पर मेरी निगाह पड़ी तो मैं ये देख कर हैरान रह गया कि वह रो रही थी। उसने बताया,"मुझे पता है कि आप यहाँ हँसाना चाहते हैं। लेकिन आपने तो मुझे रुला ही दिया।" उसने एक ऐसी बात की पुष्टि की जिसे मैं पहले से ही महसूस कर रहा था। मुझमें यह काबलियत थी कि मैं हँसाने के साथ-साथ रुला भी सकूँ।

अगर सौंदर्य का असर नहीं होता तो स्टूडियो का मर्दाना माहौल सहन करना मुश्किल हो जाता। सचमुच माबेल नोमार्ड की मौजूदगी स्टूडियो को गरिमा प्रदान करती थी। वह बेहद खूबसूरत थी, उसकी भरी-भरी आँखें, भरे भरे होंठ जो उसके मुँह के कानों से मुलायम तरीके से मुड़ जाते थे जो हास्य को और हर तरह की भावना, अदा को अभिव्यक्त करते थे। वह दिल की बहुत अच्छी थी, हल्के फुल्के मूड में और खुश रहती थी, उसके दिल में दया थी और वह उदारमना थी; हर कोई उसे चाहता था।

वार्डरूम की महिला के बच्चे के प्रति माबेल की उदारता के किस्से सुनने में आते थे, कैमरामैन के साथ उसके मज़ाक की बातें सुनायी देतीं। माबेल मुझसे भाई बहन के जैसा प्यार करती थी, और इसकी एक वजह यह थी कि उस समय वह मैक के प्यार में बुरी तरह से पागल थी। मैक के कारण ही मुझे माबेल को इतना अधिक जानने का मौका मिला। हम तीनों अक्सर एक साथ बाहर खाना खाते, उसके बाद मैक होटल की लॉबी में सो जाता। हम ये एकाध घंटा फिल्म देख कर कैफे में ही गुज़ार देते। तब वापिस आकर हम मैक को जगाते, कोई सोच सकता है कि इस तरह की निकटता किसी तरह के रोमांस में बदल जाती, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। दुर्भाग्य से हम दोनों अच्छे मित्र बने रहे।

हाँ, एक बार ऐसा ज़रूर हुआ कि मैं, माबेल, रोस्को ऑरबक्कल सैन फ्रांस्सिको में एक थियेटर में एक चैरिटी के लिए एक साथ मंच पर आये तो मैं और माबेल एक दूसरे के काफी निकट आ गये और भावनात्मक रूप से जुड़ गये। ये एक बहुत ही शानदार शाम थी और हम तीनों ने मंच पर बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन किया था, माबेल अपना कोट ड्रेसिंग रूम में ही छोड़ आयी थी। उसने मुझसे कहा कि मैं उसे वहाँ ले जाऊं ताकि वह कोट ला सके। ऑरबक्कल और बाकी लोग नीचे कार में इंतज़ार कर रहे थे। एक पल के लिए हम दोनों अकेले थे। वह उस समय अलौकिक सौन्दर्य की देवी लग रही थी और जब मैंने उसका कोट उसके कंधे पर डाला तो मैंने उसे चूम लिया। बदले में उसने भी मुझे चूमा। हम और भी आगे बढ़ गये होते, लेकिन लोग नीचे इंतज़ार कर रहे थे। बाद में मैंने मामले को आगे बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन कोई भी नतीजा सामने नहीं आया। "नहीं चार्ली," उसने बहुत अच्छे मूड में हँसते हुए कहा,"मैं तुम्हारी तरह की नहीं हूँ और न ही तुम मेरी ही तरह के हो।"

लगभग उसी समय के दौरान डायमंड जिम ब्राडी लॉस एंजेल्स आये। उस समय हॉलीवुड का जन्म अभी होना था। वे डॉली बहनों और उसके पतियों के साथ पहुँचे और दिल खोल कर खर्च किया। उन्होंने एलेक्जेंड्रिया होटल में जो डिनर दिया उसमें डॉली बहनें, उनके पति, कारलोटा मोन्टेरी, लोउ टेलेगेन, साराह बर्नहार्ट के प्रमुख नायक, मैक सेनेट, माबेल नोर्माड, ब्लांशे स्वीट, नैट गुडविन और कई दूसरे लोग शामिल हुए। डॉली बहनें गज़ब की खूबसूरत लग रही थीं। दोनों बहनें और उन दोनों के पति और उनके साथ डायमंड जिम ब्रैडी, इन सबके बीच दांत काटी रोटी वाला मामला था। हमेशा इन सबका एक साथ रहना उलझन में डालता था।

डायमंड जिम ब्रैडी एक अद्भुत अमेरिकी चरित्र थे। वे विनम्र जॉन बुल सरीखे दिखते थे। पहली रात तो मैं अपनी आंखों पर ही विश्वास नहीं कर सका क्योंकि उन्होंने हीरे के कफ लिंक और शर्ट फ्रंट पर स्टड पहने हुए थे और हरेक हीरा शिलिंग के आकार से भी बड़ा था। कुछ ही रातों के बाद हमने तट पर नाट गुडविन कैफे में एक साथ खाना खाया तो इस बार डायमंड जिम ब्रैडी अपने पन्ने के सेट के साथ नज़र आये। इस बार तो हरेक पन्ना छोटी माचिस की डिबिया से भी बड़ा था। पहले तो मैंने यही समझा कि उन्होंने ये सब मज़ाक के तौर पर पहने हुए हैं और भोलेपन में उनसे पूछ भी लिया कि क्या ये असली हैं। उन्होंने बताया,"ये असली ही हैं।"

"लेकिन हैं ये शानदार," मैंने हैरान होते हुए कहा। "अगर तुम सचमुच खूबसूरत पन्ने देखना चाहते हो तो ये देखो," और उन्हेंने अपना ड्रग्स वेस्टकोट ऊपर उठा दिया और मुझे अपनी बेल्ट दिखायी। ये क्वींसबेरी चैम्पियनशिप की बेल्ट जितनी बड़ी थी और पूरी की पूरी पन्नों से भरी हुई थी। मैंने आज तक इतने बड़े पन्ने नहीं देखे थे। वे मुझे बहुत गर्व से बता रहे थे कि उनके पास बेशकीमती हीरों वगैरह के पूरे दस सेट हैं और वे हर रात उन्हें बदल बदल कर पहनते हैं।

1914 चल रहा था और मैं पच्चीस बरस का होने को आया था। मुझमें जवानी पैठ रही थी और मैं अपने काम में मसरूफ था। मैं उससे काम की सफलता के लिए नहीं जुड़ा हुआ था बल्कि इसके मौज मजे के लिए ही नहीं बल्कि इससे मुझे हर तरह के फिल्मी अभिनेताओं से भी मिलने का मौका मिलता रहा था। कभी न कभी मैं उन सबका फैन रहा था। मैरी पिकफोर्ड, ब्लांशे स्वीट, मिरियम कूपर, क्लारा किमबैल यंग, गिश बहनें तथा दूसरे लोग, वे सब की सब खूबसूरत थीं और उनसे रू ब रू मिलना सुख देता था।

थॉमस इन्स अपने स्टूडियो में सींक कबाब की पार्टियां और नृत्य के कार्यक्रम रखते। ये स्टूडियो नार्दर्न सांता मोनिका के जंगलों में था और प्रशांत महासागर के सामने पड़ता था। क्या तो मदमस्त रात हुआ करती थी - जवानी और खूबसूरती; मुक्ताकाश मंच पर मादक संगीत पर झूम झूम कर थिरकना और पास ही समुद्र तट पर से टकराती लहरों की मंद मंद स्वर लहरियां बज रही होतीं।

पेगी पियर्स बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी। उसका नरम जिस्म जैसे बारीकी से तराशा गया हो, खूबसूरत गोरी गर्दन, और सम्मोहक देहयष्टि। मेरे दिल में हलचल मचा देने वाली वह पहली औरत थी। कीस्टोन में मेरे आने के तीसरे हफ्ते तक उसके दर्शन नहीं हुए थे क्योंकि उन दिनों वह फ्लू से पीड़ित थी। लेकिन जिस पल हम मिले, उसी पल से एक दूजे के दिल मिल गये, चिंगारी भड़की और हम एक दूसरे के हो गये। मेरा दिल गा उठा। वे सुबहें कितनी रूमानी हुआ करती थीं। हर सुबह इस उम्मीद के साथ काम पर आना कि उस मोहतरमा के दीदार होंगे। रविवार के दिन मैं उसके माता पिता के अपार्टमेंट में उससे मिलने चला जाता। हर रात हमारा मिलन प्यार पर स्वीकृति की मुहर लगाता, हर रात संघर्ष में बीतती। हां, पेगी मुझसे प्यार करती थी, लेकिन ये एक खोये हुए प्यार का मामला था। वह बार बार अपने आपको रोकती। यहां तक कि मैंने निराश हो कर कोशिश ही छोड़ दी। उस वक्त मेरी यह हालत थी कि किसी से भी शादी करने में मेरी दिलचस्पी नहीं थी। मेरे लिए आज़ादी बहुत बड़ा रोमांच था। कोई भी औरत उस धुंधली छवि पर खरी नहीं उतरती थी जो मैंने अपने मन में बसा रखी थी।

हरेक स्टूडियो एक परिवार की तरह था। सप्ताह भर में फिल्म पूरी हो जाया करती थी और फीचर की लम्बाई वाली फिल्म को पूरा करने में दो या तीन सप्ताह से अधिक का समय नहीं लगता था। हम सूरज की रौशनी में काम करते थे इसीलिए हम कैलिफोर्निया में काम करते थे; यह कहा जाता था कि वहां पर हर बरस नौ महीने तक धूप चमकती रहती है।

क्लीग लाइटों का आविष्कार 1915 के आस पास हुआ था; लेकिन कीस्टोन कम्पनी ने उन्हें कभी भी इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि वे लहरदार होती थीं, सूर्य की रौशनी की तरह साफ नहीं होती थीं और लैम्पों को सेट करने में बहुत वक्त ज़ाया होता था। कीस्टोन की कॉमेडी को बनाने में मुश्किल से एक सप्ताह का समय लगता था। दरअसल, मैंने ट्वेंटी मिनटस् ऑफ लव नाम की एक फिल्म तो दोपहर में ही पूरी कर डाली थी और मज़े की बात यह कि इसमें शुरू से ले कर आखिर तक ठहाके ही ठहाके थे। डाव एंड डायनामिक नाम की एक बेहद सफल फिल्म को बनाने में नौ दिन लगे थे और इसकी लागत आयी थी अट्ठारह सौ डॉलर। अब चूंकि मैं एक हज़ार डॉलर के बजट को पार कर गया था, जो कि कीस्टोन कॉमेडी की अधिकतम सीमा हुआ करती थी, मुझे पच्चीस डॉलर के बोनस का नुक्सान उठाना पड़ा। सेनेट का कहना था कि फिल्में अपनी लागत निकाल सकें इसका एक ही तरीका है कि दो दो रील की फिल्में बनायी जायें और वे करते भी यही थे। इनसे पहले ही बरस में एक सौ तीस हजार डॉलर की कमाई हुई।

अब मैं इस बात का दावा कर सकता था कि मैं कई सफल फिल्में बना चुका हूं। इनमें ट्वेंटी मिनटस् ऑफ लव, डाव एंड डायनामिक, लाफिंग गैस तथा द स्टेज आदि शामिल थीं। इसी अरसे के दौरान मैं और माबेल नोर्माड मैरी ड्रेसलर नाम की एक फीचर फिल्म में एक साथ आये। मैरी के साथ काम करना सुखद अनुभव था। लेकिन मुझे नहीं लगता कि फिल्म कोई बहुत ऊंची चीज़ बन पायी थी। मैं एक बार फिर से फिल्मों का निर्देशन करने में जुट गया।

मैंने सेनेट साहब से सिडनी की सिफारिश की। अब चूंकि चैप्लिन नाम जा ही रहा था, हमारे ही परिवार के एक और सदस्य के नाम को शामिल करने में उन्हें खुशी ही होनी थी। सेनेट साहब ने उसे एक बरस के लिए दो सौ डॉलर प्रति सप्ताह के वेतन पर करार कर लिया। ये वेतन मेरे वेतन से पच्चीस डॉलर प्रति सप्ताह अधिक था। सिडनी और उसकी पत्नी ताज़े ताज़े इंगलैंड से आये हुए उस वक्त स्टूडियो पहुंचे जिस वक्त मैं लोकेशन के लिए निकलने वाला था। बाद में शाम के वक्त हमने एक साथ खाना खाया। मैंने पूछा कि इंगलैंड में मेरी फिल्मों का क्या हाल है।

उसने बताया कि मेरा नाम आने से पहले ही कई म्यूजिक हॉलों के कलाकारों ने उसे अमेरिकी सिनेमा के एक नये कामेडियन के बारे में उत्साह पूर्वक बताना शुरू कर दिया था जिसे उन्होंने अभी अभी देखा था।

सिडनी ने मुझे ये भी बताया कि उस वक्त जब उसने मेरी कोई भी कॉमेडी फिल्म देखी नहीं थी, वह फिल्म एक्सचेंज के दफ्तर में यह पूछने गया था कि ये फिल्में कब रिलीज होंगी और जब उसने बताया कि वह कौन है तो उन्होंने उसे तीनों फिल्में देखने के लिए आमंत्रित किया। उसने प्रोजेक्शन रूम में अकेले बैठ कर ये फिल्में देखीं और लगातार पागलों की तरह हंसता ही रहा।

"इन सब के बारे में तुम्हारी क्या प्रतिक्रिया है?"

सिडनी ने जो कुछ कहा उसमें कुछ भी हैरान होने वाली बात नहीं थी, "ओह, मैं जानता था कि तुम बेहतरीन ही करोगे।" उसने विश्वासपूर्वक कहा।

मैक सेनेट लॉस एंजेल्स एथलेटिक क्लब के सदस्य होने के नाते इस बात के अधिकारी थे कि वे अपने किसी दोस्त को एक अस्थायी सदस्यता कार्ड दे सकें और इस तरह से उन्होंने मुझे एक कार्ड दे दिया। यह शहर में सभी छड़े लोगों और कारोबारियों का अड्डा हुआ करता था - एक बहुत बड़ा क्लब जिसमें पहली म़ंजिल पर एक बड़ा सा डाइनिंग रूम और एक लाउंज थे। ये शाम के वक्त महिलाओं के लिए भी खुल जाते थे और इनके अलावा एक कॉकटेल बार था।

मुझे सबसे ऊपरी मंज़िल पर एक कोने वाला कमरा मिला हुआ था जिसमें एक पियानो रखा हुआ था और थी छोटी सी लाइबेरी। ये कमरा मोज़ हैम्बर्गर के कमरे के बगल में था। वे मे डिपार्टमेंटल सेंटर के मालिक थे। ये स्टोर शहर का सबसे बड़ा स्टोर हुआ करता था। क्लब में रहने का खर्च उन दिनों बहुत ही मामूली हुआ करता करता था। मैं अपने कमरे के लिए प्रति सप्ताह बारह डॉलर अदा किया करता था और इसमें क्लब की सारी सुविधाएं मसलन, बड़ा सा जिम्नाशियम, तरण ताल, और बेहतरीन सेवाएं शामिल थीं। सारी बातें होने के बावजूद मैं पिचहत्तर डॉलर प्रति सप्ताह खर्च करते हुए आलीशान ढंग से रहा करता था। इन्हीं डॉलरों में से मैं ड्रिंक के एकाध राउंड और कभी कभार के डिनर के पैसे भी रखता।

क्लब के लोगों के बीच एक तरह का भाईचारा था जिसे पहले विश्व युद्ध की घोषणा भी भंग नहीं कर पायी थी। हर कोई यही सोच रहा था कि लड़ाई तो छ: महीने में निपट जायेगी या जैसा कि लॉर्ड किचनर ने अनुमान लगाया था कि ये चार बरस तक चलेगी, लोग बाग बेकार में सोचते थे। कई लोग तो इस बात से ही खुश थे कि युद्ध की घोषणा हो गयी है क्योंकि अब हम जर्मन लोगों को दिखा देंगे। नतीजे निकलने का कोई सवाल ही नहीं था, अंग्रेज और फ्रेंच उन्हें छ: महीने में ही धूल चटा देंगे। युद्ध अभी तक अपने चरम तक नहीं पहुंचा था और कैलिफोर्निया असली युद्ध की ज़मीन से खासा दूर था।

लगभग यही समय था जब सेनेट मेरा करार फिर ने नया करने की बात कर रहे थे और मेरी शर्तें जानना चाह रहे थे। मैं कुछ हद तक तो अपनी लोकप्रियता के बारे में जानता ही था, लेकिन मैं अपनी सफलता की क्षण भंगुरता के बारे में भी जानता था, और ये भी जानता था कि अगर मैं इसी गति से चलता रहा तो एक ही बरस में चुक जाऊंगा। इसलिए मुझे, जितना भी हो सके, बटोर लेना होगा। मत चूके चौहान वाली स्थिति थी।

"मैं एक हज़ार डॉलर प्रति सप्ताह चाहता हूं," मैंने जान बूझ कर कहा।

सेनेट बिगड़ उठे,"लेकिन इतना तो मैं भी नहीं कमाता।"

"मैं जानता हूं।" मैंने जवाब दिया, "लेकिन थियेटरों के बाहर जो लाइनें लगती हैं वे आपके नाम के लिए नहीं बल्कि मेरे नाम के लिए लगती हैं।"

"हो सकता है," सेनेट बोले,"लेकिन हमारी संस्था की मदद के बिना तुम खो जाओगे।" उन्होंने चेताया, "देखा नहीं, फोर्ड स्टर्लिंग का क्या हाल हो रहा है?"

ये सच था। फोर्ड स्टर्लिंग कीस्टोन कम्पनी छोड़ देने के बाद बहुत अच्छा नहीं कर पा रहे थे। लेकिन मैंने सेनेट साहब से कहा,"मुझे कॉमेडी बनाने के लिए सिर्फ एक पार्क, एक पुलिसवाले और एक खूबसूरत लड़की की ज़रूरत होती है।" और सच तो ये था कि मैंने सिर्फ इसी तामझाम के साथ कई अत्यंत सफल फिल्में बनाकर दिखा दी थीं।

इस बीच सेनेट ने अपने भागीदारों, कैसेल एंड बाउमैन को तार दे कर मेरे करार और मेरी मांग के बारे में उनकी सलाह मांगी थी। बाद में सेनेट मेरे पास एक प्रस्ताव ले कर आये,"सुनो, अभी तुम्हारे चार महीने बाकी हैं। हम तुम्हारा करार फाड़ देंगे और अभी से पांच सौ डालर हफ्ते के देंगे। अगले बरस सात सौ डॉलर और उसके बाद एक बरस में पन्द्रह सौ डॉलर देंगे। इस तरह से तुम्हें हजार डॉलर प्रति सप्ताह मिल जाया करेंगे।"

"मैक," मैंने जवाब दिया, "अगर आप इस शर्त को ठीक उलटा कर दें तो आप पहले बरस में मुझे पन्द्रह सौ डॉलर, दूसरे बरस में सात सौ डॉलर और तीसरे बरस में पांच सौ दें तो मैं ले लूंगा।"

"लेकिन ये तो पागलपन से भरा विचार है।"

इस तरह से इसके बाद करार को नया करने की कोई बात ही नहीं हुई।

अभी कीस्टोन में मेरा एक महीना बाकी था और अब तक किसी और कम्पनी ने मेरे सामने कोई प्रस्ताव नहीं रखा था। मैं नर्वस हो रहा था और मैं कल्पना कर रहा था कि सेनेट इस बात का जानते हैं और किसी तरह अपना समय पूरा करने के चक्कर में थे। आम तौर पर फिल्म खत्म होने पर वे मेरे पास आते थे और मुझे मज़ाक में जल्दी से दूसरी फिल्म शुरू करने के बारे में उकसाते थे। और अब हालांकि मैंने पिछले दो सप्ताह से कोई काम नहीं किया था, वे मुझसे दूर दूर ही रहे थे। वे विनम्र लेकिन अलग थलग बने रहे।

इस सबके बावजूद मेरे आत्म विश्वास ने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा। अगर किसी ने भी मेरे सामने प्रस्ताव न रखा तो मैं अपने आप ही धंधा शुरू कर दूंगा। क्यों नहीं। मैं आत्म विश्वास से भरा हुआ था और अपने आप में निर्भर भी था। मैं जानता था कि ठीक किस वक्त इस भावना ने जन्म लिया था। मैं स्टूडियो की दीवार का सहारा ले कर एक मांग पर्ची भर रहा था।

सिडनी ने कीस्टोन कम्पनी में आने के बाद कई सफल फिल्में बनायीं। एक फिल्म जिसने पूरी दुनिया में रिकार्ड ही तोड़ डाले वह थी - द सबमैरीन पाइलट। इसमें सिडनी ने हर तरह की कैमरा ट्रिक का सहारा लिया। चूंकि वह इतना अधिक सफल था, मैंने उससे सम्पर्क किया और उससे मेरे साथ मिल कर अपनी खुद की कम्पनी बनाने के बारे में राय मांगी।

"हमें सिर्फ एक कैमरा और एक ट्रैक लाइट चाहिये।" मैंने उसे बताया। लेकिन सिडनी दकियानूसी था। उसे लगा, ये सब कुछ ज्यादा ही जोखिम लेने वाला मामला होगा। इसके अलावा, उसने कहा, "मैं इतनी अच्छी पगार, जितनी मैंने अपनी पूरी जिंदगी में नहीं कमायी है, कैसे छोड़ दूं।" इस तरह से वह एक और बरस के लिए कीस्टोन कम्पनी के साथ ही बना रहा।

एक दिन मुझे युनिवर्सल कम्पनी के कार्ल लईम्ले की तरफ से एक टेलिफोन संदेश मिला। वे मुझे एक फुट के बारह सेंट देने और मेरी फिल्मों के लिए वित्त जुटाने के लिए तैयार थे। लेकिन वे मुझे हफ्ते के एक हजार डॉलर का वेतन नहीं देंगे। इसे देखते हुए मामला आगे नहीं बढ़ा।

जेस्स रॉबिंस नाम के एक युवा, जो ऐसेने कम्पनी का प्रतिनिधि था, ने कहा कि उसने सुना है कि मैं कोई भी करार पर हस्ताक्षर करने से पहले दस हज़ार डालर का बोनस और साढ़े बारह सौ डॉलर प्रति सप्ताह का वेतन चाहता हूं। ये मेरे लिए खबर थी। जब तक उसने ज़िक्र नहीं किया था, मैंने दस हज़ार डालर के बोनस की कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन उस सुखद पल के बाद से ये विचार मेरे दिमाग में टंक गया।

उस रात मैंने रॉबिंस को डिनर पर आमंत्रित किया और उसे ही सारी बातें करने दीं। उसने बताया कि वह सीधे ही ऐसेने कम्पनी के जी एम एंडरसन के पास से चला आ रहा है। लोग उन्हें ब्रांको बिली के नाम से भी जानते हैं। एंडरसन मिस्टर जार्ज के स्पूअर के भागीदार हैं और उनका प्रस्ताव है कि वे बारह सौ पचास डॉलर प्रति सप्ताह देने के लिए तैयार हैं लेकिन वह बोनस के बारे में कुछ नहीं कह सकता। मैंने कंधे उचकाये,"यही अड़चन कई लोगों के साथ है।" मैंने बात आगे बढ़ायी,"उनके पास बड़े बड़े प्रस्ताव तो हैं लेकिन वे नकद नारायण की बात ही नहीं करना चाहते।" बाद में उसने सैन फ्रांसिस्को में एंडरसन को फोन किया और उसे बताया कि डील हो गयी है लेकिन मैं दस हजार नकद बोनस के रूप में तत्काल चाहता हूं। वह मेज पर चहकता हुआ वापिस आया, "डील पक्की समझें। और कल आपको दस हज़ार डॉलर नकद मिल जायेंगे।"

मैं सातवें आसमान पर था। प्रस्ताव इतना शानदार था कि सच नहीं लगता था। लेकिन ये सच था क्योंकि अगले ही दिन रॉबिन्सन ने मेरे हाथ में केवल छ: सौ डॉलर का चेक थमा दिया और बताया कि मिस्टर एंडरसन अगले दिन खुद ही लॉस एंजेल्स आ रहे हैं और बाकी सब वे खुद ही निपट लेंगे। एंडरसन उत्साह से भरे हुए आये और डील के बारे में आश्वस्त किया लेकिन दस हज़ार डॉलर का कोई जिक्र नहीं,"मेरे पार्टनर मिस्टर स्पूअर शिकागो पहुंच कर इस मामले को देख लेंगे।"

हालांकि मेरे शक ने सिर उठाना शुरू कर दिया था लेकिन मैंने आशावाद के चलते अपने शक को दफनाने का ही फैसला किया। अभी भी कीस्टोन कम्पनी के साथ मेरे दो सप्ताह बाकी थे। अपनी अंतिम फिल्म हिज़ प्रिहिस्टारिक पास्ट को पूरा कर पाना मेरे लिए खासा तनाव वाला मामला था, क्योंकि इतने अधिक कारोबारी प्रस्तावों के साथ उस पर ध्यान केन्द्रित कर पाना मेरे लिए मुश्किल था, इसके बावजूद मैंने आखिर फिल्म पूरी कर ही दी।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 11

कीनोट कम्पनी को छोड़ना मेरे लिए तकलीफदेह था क्योंकि मैं वहाँ पर सेनेट और दूसरे सभी लोगों का प्रिय व्यक्ति बन चुका था। मैंने किसी से भी विदा के दो शब्द नहीं कहे; मैं कह ही नहीं सका। ये सब शुष्क, आसान तरीके से हो गया। मैंने शनिवार की रात को अपनी फिल्म का संपादन पूरा किया और अगले सोमवार मिस्टर एंडरसन के साथ सेन फ्रांसिस्को के लिए रवाना हो गया जहाँ पर हमें उनकी हरे रंग की नयी मर्सडीज़ कार के दर्शन हुए। हम सेंट फ्रांसिस होटल में सिर्फ लंच के लिए ही रुके उसके बाद में नाइल्स चले गए। वहाँ पर एंडरसन का अपना एक छोटा सा स्टूडियो था और उसमें उन्होंने एसेने कम्पनी के लिए ब्रांको बिली वेस्टर्न्स बनायी थी (एसेने स्पूअर और एंडरसन के पहले अक्षरों को मिलाकर बनाया गया नाम था)।

नाइल्स सैन फ्रांसिस्को से बाहर की ओर एक घंटे की ड्राइव की दूरी पर था और रेल की पटरियों के पास बसा हुआ था। एक छोटा सा शहर था और वहाँ की आबादी चार सौ की थी और वहाँ का काम धंधा लसुनिया घास तथा पशुपालन था। स्टूडियो लगभग चार मील बाहर की ओर एक खेत के बीचों-बीच बना हुआ था। जब मैंने इसे देखा तो मेरा दिल डूबने लगा क्योंकि इससे कम प्रेरणादायक कुछ और हो ही नहीं सकता था। इसकी काँच की छत थी, जहाँ पर गर्मियों में काम करना बेहद मुश्किल हो जाता था। एंडरसन के कहा कि वे मेरे लिए मेरी पसंद का और कॉमेडी बनाने के लिए बेहतर तरीके से सुसज्जित स्टूडियो शिकागो के आसपास ढूंढेंगे। मैं नाइल्स में सिर्फ एक ही घंटा रहा और एंडरसन अपने स्टाफ के साथ कुछ कामकाज़ निपटाते रहे। तब हम दोनों फिर से सैन फ्रांसिस्को के लिए चल पड़े। वहाँ से हमने शिकागो के लिए यात्रा शुरू की।

मुझे एंडरसन अच्छे लगे थे। उनमें एक खास तरह का आकर्षण था। रेल यात्रा में उन्होंने मेरी एक भाई की तरह देख भाल की और अलग-अलग स्टेशनों पर कैन्डी और पत्रिकाएं ले आते। वे लगभग 40 बरस के शर्मीले और चुप्पे व्यक्ति थे और जब कारोबार की चर्चा की जाती वे बड़े इत्मीनान के साथ कह देते,"इसके बारे में चिंता मत करो। सब ठीक हो जाएगा।" वे बहुत कम बात करते थे और हमेशा ख्यालों से घिरे रहते। इसके बावजूद मैंने महसूस किया कि वे भीतर ही भीतर काइयाँ थे।

यात्रा रोचक थी। ट्रेन में तीन व्यक्ति थे जिन्हें हमने पहली बार डाइनिंग कार में देखा। उनमें से दो तो संपन्न लग रहे थे, लेकिन तीसरा बेतरतीब-सा लगने वाला साधारण सा आदमी था। उन तीनों को एक साथ खाना खाते देख हमें हैरानी हुई। हमने अंदाज़ा लगाया कि दो व्यक्ति तो इंजीनियर हो सकते हैं और तीसरा सड़क छाप आदमी छोटे-मोटे काम करने के लिए मज़दूर रहा होगा। जब हम डाइनिंग कार से चले तो उनमें से एक हमारे कूपे में आया, अपना परिचय दिया। उसने बताया कि वह सेंट लुईस का शेरिफ है और उसने ब्रांको बिली को पहचान लिया है। वे फाँसी दिए जाने के लिए एक कैदी को सैन क्विंटन जेल से वापिस सेंट लोइस लिए जा रहे हैं और चूंकि वे कैदी को अकेला नहीं छोड़ सकते हैं, क्या हम उनके कूपे में आकर ज़िला एटॉर्नी से मिलना पसंद करेंगे?

शेरिफ ने विश्वास के साथ कहा,"हमने सोचा कि आपको परिस्थितियों के बारे में जानना अच्छा लगेगा। ये जो कैदी है, इसका अच्छा-खासा आपराधिक रिकार्ड है। जब अधिकारी ने इसे सेंट लोइस में गिरफ्तार किया तो इस बंदे ने कहा कि उसे अपने कमरे में जाकर अपने ट्रंक में से कुछ कपड़े-लत्ते लाने की इजाज़त दी जाए और जिस वक्त वह अपने ट्रंक में सामान तलाश रहा था, तो अचानक ही वह अपनी बंदूक के साथ घूमा और अफसर को गोली मार दी और तब भाग कर कैलिफोर्निया चला गया। वहाँ पर उसे सेंधमारी करते हुए पकड़ा गया और तीन बरस की सज़ा दी गयी और जब वह बाहर निकला तो जिला एटॉर्नी और मैं उसका इंतज़ार कर रहे थे। यह एकदम दिन की रौशनी की तरह साफ मामला है - हम उसे फाँसी देंगे।" उसने जोश के साथ कहा।

एंंडरसन और मैं उनके कूपे में गए। शेरिफ हँसोड़ मोटा-सा आदमी था, जिसके चेहरे पर सदाबहार मुस्कुराहट और आँखों में चमक बसी हुई थी। जिला एटॉर्नी कुछ ज्यादा-ही गंभीर आदमी था।

अपने मित्र से हमारा परिचय कराने के बाद शेरिफ ने कहा,"बैठ जाइए।" तब वह कैदी की तरफ मुड़ा,"और ये हैंक है।" कहा उसने, "हम इसे सेंट लोइस वापस ले जा रहे हैं, जहाँ पर वह जरा फंस गया था।"

हैंक विद्रूपता से हँसा लेकिन कुछ कहा नहीं। वह लगभग 45-46 बरस का छ: फुटा आदमी था। उसने यह कहते हुए एंडरसन से हाथ मिलाया, "ब्रांको बिली, मैंने आपको कई बार देखा है और हे भगवान! आप कैसे उन्हें बंदूकें थमाते हैं और उन्हें धराशायी कर देते हैं, मैंने आज तक नहीं देखा।" हैंक मेरे बारे में बहुत कम जानता था। उसने बताया: वह तीन बरस तक सैन क्विंटन में रहा था, "और बाहरी दुनिया में ऐसा बहुत कुछ चलता रहता है, जिसके बारे में आपको पता ही नहीं चलता।"

हालांकि हम सब बहुत सहजता से बात कर रहे थे लेकिन एक भीतरी तनाव था, जिससे उबर पाना मुश्किल लग रहा था। मैं सकते में था कि क्या कहूँ इसलिए मैं शेरिफ के जुमले पर खींसे निपोरने लगा।

"ये एक बहुत मुश्किल दुनिया है।" ब्रांको बिली ने कहा।

"हाँ, सो तो है।" शेरिफ ने कहा,"हम इसे कम मुश्किल बनाना चाहते हैं। हैंक इस बात को जानता है।"

"बेशक!" हैंक ने उपहास करते हुए कहा।

शेरिफ ने उपदेश देना शुरू कर दिया,"यही बात मैंने हैंक से कही थी जब वह सैन क्विंटन से बाहर आया था। मैंने उससे कहा कि अगर वह हमारे साथ ज्यादा सयानापन दिखाएगा तो हम भी उसके साथ वैसे ही पेश आएँगे। हम हथकड़ियों का इस्तेमाल करना या ताम झाम फैलाना नहीं चाहते; हमने उसके पैर में सिर्फ बेड़ी डाल रखी हैं।"

"बेड़ी! वो क्या होती है?" मैंने पूछा।

"आपने कभी बेड़ी नहीं देखी है?" शेरिफ ने पूछा

"अपने पैंट ऊपर करो, हैंक।"

हैंक ने अपना पाइँचा ऊपर किया और वहाँ पर लगभग पाँच इंच लंबी और तीन इंच मोटी निकल प्लेटेड बेड़ी उसके टखने के चारों ओर जकड़ी हुई थी और उसका वज़न 40 पौंड रहा होगा। इससे बातचीत बेड़ियों की नयी नयी किस्मों की तरफ मुड़ गयी। शेरिफ ने बताया कि इस खास बेड़ी में अंदर की तरफ रबर की परत चढ़ी हुई है, जिससे कैदी को आसानी हो जाती है।

"क्या ये इसके साथ ही सोता है?" मैंने पूछा।

"ये तो भई, निर्भर करता है।" शेरिफ ने हैंक की तरफ सकुचाते हुए देखते हुए कहा।

हैंक की मुस्कुराहट उदास और रहस्यमय थी।

हम उनके साथ डिनर के समय तक बैठे रहे और जैसे-जैसे दिन ढलता गया, बातचीत उस तरीके की ओर मुड़ गयी जिसमें हैंक को फिर से गिरफ्तार किया गया था। शेरिफ ने बताया था कि जेल-सूचना के आदान-प्रदान से उन्हें फोटो और उँगलियों के निशान मिले थे और उन्हें यकीन हो गया कि हैंक ही वह आदमी है जिसकी उन्हें तलाश है। इसलिए जिस दिन हैंक को रिहा किया जाना था, वे सैन क्विंटन की जेल के दरवाज़े पर पहुँच गए थे।

"हाँ!" अपनी छोटी-छोटी आँखें टिमटिमाते हुए और शेरिफ और हैंक की तरफ देखते हुए शेरिफ बोले,"हम सड़क के दूसरी तरफ इसका इंतज़ार करने लगे। बहुत जल्द ही जेल के गेट के एक तरफ वाले दरवाज़े से हैंक बाहर आया।" शेरिफ अपनी अनामिका उँगली अपनी नाक के पास ले गए और धीरे से व्यंगपूर्ण हँसी के साथ हैंक की दिशा में इशारा करते हुए बोले,"मेरा ख्याल है, यही वह व्यक्ति है, जिसकी हमें तलाश है।"

एंडरसन और मैं मंत्रमुग्ध उसे सुनते रहे,"इसलिए हमने उसके साथ सौदा किया" शेरिफ ने कहा,"अगर वह हमारे साथ चालबाज़ी करेगा तो हम उसे सीधा कर देंगे।" हम इसे नाश्ते के लिए ले गए और उसे गरमा गरम केक और अंडे खिलाए और देखिए इसे फर्स्ट क्लास में यात्रा कर रहा है। हथकड़ी और बेड़ी में मुश्किल से ले जाए जाने से तो यह बेहतर ही है।"

हैंक मुस्कुराया और भुनभुनाया,"अगर मैं चाहता तो मैं आपके साथ प्रत्यार्पण के मामले पर लड़ सकता था।"

शेरिफ ने उसे ठंडेपन से देखा,"उससे तुम्हारा कोई खास भला न हुआ होता, हैंक।" उन्होंने धीरे से कहा,"इससे बस मामूली सी देर ही होती। क्या आराम से फर्स्ट क्लास में जाना बेहतर नहीं हैं?

"मेरा ख्याल है, बेहतर ही है।" हैंक ने कंधे उचकाए।

जैसे जैसे हम हैंक की मंज़िल के नज़दीक आ रहे थे, उसने लगभग प्यार भरे स्वर में सेंट लोईस में जेल के बारे में बातें करनी शुरू कर दीं। उसने दूसरे कैदियों द्वारा अपना मुकदमा लड़े जाने की प्रत्याशा से ही खुशी हो रही थी,"मैं तो बस सोच रहा हूँ कि जब मैं कंगारू कोर्ट के सामने पहुंचूंगा तो वे गोरिल्ला मेरे साथ क्या करेंगे। जरा सोचो तो। वे मेरा तंबाखू और मेरी सिगरेटें मुझसे ले लेंगे।"

शेरिफ और एटॉर्नी का हैंक के साथ संबंध ठीक वैसा ही था जैसा उस सांड के साथ मैटाडोर का दुलार होता है, जिसे वो मारने वाला है। जब वे ट्रेन से उतरे तो ये दिसंबर का आखिरी दिन था और जब हम अलग हुए तो शेरिफ और एटॉर्नी ने हमें नववर्ष की शुभकामनाएँ दीं। हैंक ने भी उदासी से यह कहते हुए हाथ मिलाए कि सारी अच्छी चीज़ों का अंत होता ही है। यह तय कर पाना मुश्किल था कि उसे विदा कैसे दी जाए। उसका अपराध क्रूरतापूर्ण और कायरपने का था। इसके बावजूद मैंने पाया कि मैं उसे शुभकामना के दो शब्द कह रहा हूँ जिस वक्त वह अपनी भारी बेड़ी के साथ ट्रेन से लंगड़ाता हुआ उतर रहा था। बाद में हमें पता चला था कि उसे फाँसी दे दी गयी थी।

जब हम शिकागो पहुँचे तो हमारा स्वागत मिस्टर स्पूअर के बजाय स्टूडियो मैनेजर ने किया। उसने बताया कि मिस्टर स्पूअर कारोबार के सिलसिले में बाहर गए हुए हैं और नए वर्ष की छुट्टियों तक वापस नहीं आएंगे। मुझे नहीं लगा कि मिस्टर स्पूअर की गैर हाज़िरी से इस वज़ह से कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है कि नए वर्ष की शुरुआत से पहले स्टूडियो में कुछ भी नहीं होने वाला। इस बीच मैंने नव वर्ष की पूर्व संध्या एंडरसन, उनकी पत्नी और परिवार के साथ बितायी। नव वर्ष के दिन एंडरसन यह आश्वासन देते हुए कैलिफोर्निया के लिए रवाना हो गए कि जैसे ही स्पूअर लौटेंगे वे सारे चीजों, जिनमें दस हजार डॉलर का बोनस शामिल है, को देख लेंगे। स्टूडियो औद्योगिक जिले में था और ज़रूर कभी गोदाम रहा होगा। सुबह के वक्त मैं वहाँ पहुँचा, न तो स्पूअर आए थे और न ही मेरे कारोबार की व्यवस्थाओं के बारे में कोई हिदायतें छोड़ गए थे। तुरंत ही लगा कि ज़रूर कुछ न कुछ गड़बड़ है और ऑफिस वाले जितना बताने को तैयार थे, उससे ज्यादा जानते थे। लेकिन उससे मैं परेशानी में नहीं पड़ा; मुझे यकीन था कि एक अच्छी फिल्म मेरी सारी समस्याओं को हल कर देगी, इसलिए मैंने प्रबंधक से पूछा कि क्या वह जानता है कि मुझे स्टूडियो स्टाफ के पूरा सहयोग मिलना है और उनकी सारी सुविधाओं को इस्तेमाल करने की पूरी छूट है।

"बेशक!" उसने ज़वाब दिया,"मिस्टर एंडरसन इस बारे में हिदायतें दे गए हैं।"

"तब तो मैं तुरंत काम करना चाहूँगा।" मैंने कहा।

"बेहतर है।" उसने जवाब दिया,"पहली मंजिल पर आपको सिनेरियो विभाग की मिस लॉयला पार्सन्स मिलेंगी, वे आपको पटकथा देंगी।"

"मैं दूसरे लोगों की पटकथाओं को इस्तेमाल नहीं करता। अपनी खुद की पटकथा लिखता हूँ।" मैंने पलटकर जवाब दिया।

मैं लड़ने भिड़ने के मूड में था क्योंकि वे सारी चीजों के बारे में और स्पूअर की अनुपस्थिति के बारे में बहुत हल्के तरीके से पेश आ रहे थे; स्टूडियो का स्टाफ अकड़ू था और बैंक क्लर्कों की तरह हाथ में सामान की मांग पर्ची लिये इधर उधर डोलता रहता था मानो वे गारंटी ट्रस्ट कम्पनी के सदस्य हों। उनका कारोबारी तरीके से पेश आना बहुत आकर्षक था लेकिन उनकी फिल्में नहीं। ऊपर वाली मंज़िल पर अलग अलग विभागों के बीच इस तरह के पार्टीशन डाले गये थे मानो बैंक के टेलरों के दड़बे हों। ये सब कुछ था लेकिन सृजनात्मक काम के लिए अनुकूल नहीं था। छ: बजते ही, इस बात की परवाह किये बिना कि दृश्य आधा हुआ है या नहीं, निर्देशक सब कुछ छोड़ छाड़ कर चल देता और बत्तियां बंद कर दी जातीं और सब लोग अपने अपने घर चले जाते।

अगली सुबह मैं कलाकारों का चयन करने वाले कास्टिंग के दफ्तर में गया। "मैं कुछ कलाकार चुनना चाहूंगा," मैंने शुष्कता से कहा,"इसलिए क्या आप अपनी कम्पनी के ऐसे लोगों के मेरे पास भेजने का कष्ट करेंगे जो फिलहाल काम में लगे हुए नहीं हैं?"

उन्होंने मेरे सामने ऐसे लोग हाज़िर कर दिये जो उनके ख्याल से मेरे काम के हो सकते थे। वहां पर भेंगी आंखों वाला एक आदमी था जिसका नाम बेन टर्पिन था जो रस्सी वगैरह का काम जानता था और उसके पास उन दिनों ऐसेने में कोई खास काम नहीं था। मैंने उसे हाथों-हाथ पसंद कर लिया, सो उसे चुन लिया। लेकिन कोई प्रमुख महिला पात्र नहीं थी। कई कई साक्षात्कार लेने के बाद एक आवेदक में कुछ संभावनाएं नज़र आयीं। वह एक खूबसूरत सी युवा लड़की थी जिसे कम्पनी ने हाल ही में करार पर रखा था। लेकिन, हे भगवान! मैं उसके चेहरे पर हाव भाव ला ही न सका। वह इतनी गयी गुज़री थी कि मैंने हार मान ली और उसे दफा कर दिया। कई बरसों के बाद ग्लोरिया स्वैनसन ने मुझे बताया था कि वही वह लड़की थी और कि ड्रामे में कुछ करने की महत्त्वाकांक्षा के चलते और स्वांग वाली चीजें पसंद न करने के कारण ही उस दिन उसने जान बूझ कर सहयोग नहीं दिया था।

फ्रांसिस एक्स बुशमैन, उस वक्त के ऐसेने के महान कलाकार ने उस जगह के प्रति मेरी नापसंदगी को ताड़ लिया, "आप स्टूडियो के बारे में जो कुछ भी सोचें," कहा उसने,"ये तो बस, विपरीत ध्रुवों वाला मामला है।" लेकिन ऐसा नहीं था। न तो मुझे स्टूडियो नापसंद था और न ही मुझे विपरीत ध्रुव शब्द ही पसंद आया। परिस्थितियां बद से बदतर होती चली गयीं। जब मैं अपनी फिल्म के रशेज़ देखना चाहता तो वे पॉजिटिव प्रिंट का खर्चा बचाने के लिए मूल नेगेटिव फिल्म ही चला देते। इस बात ने मुझे डरा दिया। और जब मैंने इस बात की मांग की कि वे एक पॉजिटिव प्रिंट बनायें तो उन्होंने इस तरह के हाव भाव दिखाये मानो मैं उन्हें दिवालिया करने आ गया हूं। वे लोग संकीर्ण और आत्म तुष्ट थे। चूंकि वे फिल्म कारोबार में सबसे पहले आये थे, और उन्हें पेटेंट अधिकारों से सुरक्षा मिली हुई थी और इस तरह से वे फिल्म निर्माण में एकाधिकार रखते थे, अच्छी फिल्म बनाना उनका अंतिम उद्देश्ये था। और हालांकि दूसरी कम्पनियां उनके पेटेंट अधिकार को चुनौती दे रही थीं और बेहतर फिल्में बना रही थीं, ऐसेने अभी भी अपने तौर तरीके बदलने को तैयार नहीं थे और हर सोमवार की सुबह ताश के पत्तों की तरह सिनेरियो का धंधा कर रहे थे।

मैंने अपनी पहली फिल्म लगभग पूरी कर ली थी। इसका नाम था हिज़ न्यू जॉब। दो हफ्ते बीत गये थे और अब तक मिस्टर स्पूअर के दर्शन नहीं हुए थे। न तो मुझे वेतन मिला था और न ही बोनस ही, इसलिए मैं तिरस्कार से भरा हुआ था।

"मिस्टर स्पूअर कहां पर हैं?" मैंने फ्रंट ऑफिस में जा कर जानना चाहा। वे परेशानी में पड़ गये और कोई संतोषजनक उत्तर न दे सके। मैंने अपनी नाराज़गी छुपाने की कोई कोशिश नहीं की और पूछा कि क्या हर बार वे अपना कारोबार इसी तरीके से करते हैं।

कई बरस बाद मैंने खुद मिस्टर स्पूअर से सुना था कि हुआ क्या था। ऐसा लगता है कि जब स्पूअर, जिन्होंने कभी मेरा नाम भी नहीं सुना था, को जब पता चला कि एंडरसन ने मुझे बारह सौ डॉलर प्रति सप्ताह और दस हज़ार डॉलर के बोनस पर एक बरस के लिए साइन कर लिया है तो उन्होंने हड़बड़ाते हुए एंडरसन को यह जानने के लिए एक तार भेजा कि कहीं वे पागल तो नहीं हो गये हैं और जब स्पूअर को पता चला कि एंडरसन ने मुझे जैस्स रॉबिन्स की सिफारिश पर सिर्फ एक जूए के तौर पर साइन किया है, उनकी चिंता दुगुनी हो गयी। उनके पास ऐसे ऐसे हँसोड़ थे जिनमें से सबसे अच्छे कलाकार सिर्फ पिचहत्तर डॉलर प्रति सप्ताह पर काम कर रहे थे और वे जो कॉमेडी बनाते थे, मुश्किल से उनका खर्चा ही निकल पाता था। इसलिए स्पूअर शिकागो से गायब ही हो गये थे।

अलबत्ता, जब वे लौटे तो अपने कई दोस्तों के साथ शिकागो के बड़े होटलों में से एक में खाना खा रहे थे तो उनकी हैरानी का ठिकाना न रहा जब दोस्तों ने उन्हें इस बात पर बधाई दी कि मैं उनकी कम्पनी में शामिल हो गया हूं। इसके अलावा चार्ली चैप्लिन के बारे में स्टूडियो कार्यालय में पहले से ज्यादा प्रचार होने लगा था। इसलिए उन्होंने सोचा कि एक आजमाइश करके देखी जाये। उन्होंने होटल के एक छोकरे को बुलवाया, उसे चौथाई डॉलर दिया और कहा कि वह पूरे होटल में घूम घूम कर चार्ली की तलाश के लिए आवाज़ लगाये। लड़का जैसे जैसे लॉबी में ये चिल्लाता घूमने लगा कि "चार्ली चैप्लिन के लिए फोन!!", लोग उसके आस पास जुटने लगे और आलम ये हो गया कि चारों तरफ उत्तेजना और हलचल मच गयी। मेरी लोकप्रियता से ये उनका पहला साबका था। दूसरी घटना फिल्म एक्सचेंज के दफ्तर में तब हुई थी जब वे वहां पर मौजूद नहीं थे; उन्होंने पाया कि मेरे फिल्म शुरू करने से पहले ही फिल्म की पैंसठ प्रतियों की अग्रिम बिक्री हो जाती थी। ऐसा आज तक नहीं हुआ था और जब तक मैं फिल्म पूरी करता, एक सौ तीस प्रिंट बिक चुके होते और अभी भी ऑर्डर आ रहे होते। उन्होंने तुरंत ही कीमत तेरह सेंट से बढ़ा कर पच्चीस सेंट प्रति फुट कर दी।

आखिरकार जब स्पूअर आये तो मैंने उनसे छूटते ही अपने वेतन और बोनस की बात की। वे तरह तरह से क्षमा मांग रहे थे और बता रहे थे कि वे अपने फ्रंट ऑफिस को मेरे सारे कारोबारी इंतज़ाम करने के लिए कह कर गये थे। उन्होंने करार नहीं देखा था लेकिन ये मान कर चल रहे थे कि उनके फ्रंट ऑफिस को इसके बारे में सब कुछ मालूम होगा।

स्पूअर ऊंचे कद के, थोड़े भारी शरीर वाले मृदु भाषी व्यक्ति थे। वे आकर्षक भी होते अगर उनके चेहरे पर मांस की पीली परत न चढ़ी होती और उनका मोटा सा ऊपरी होंठ नीचे वाले होंठ के ऊपर टिका न होता।

"मुझे अफ़सोस है कि आप इस तरह से सोचते हैं," कहा उन्होंने, "लेकिन आप को पता होना चाहिये चार्ली कि हमारी फर्म एक इज़्ज़तदार फर्म है और हम अपने करार हमेशा पूरे करते हैं।"

"ठीक है, लेकिन इस करार को आप पूरा नहीं कर रहे हैं," मैंने टोका।

"कोई बात नहीं, हम अभी सारे मामले सुलझा लेते हैं।" उन्होंने कहा।

"मुझे कोई जल्दी नहीं है।" मैंने कटाक्ष के साथ जवाब दिया।

शिकागो में मेरे संक्षिप्त प्रवास के दौरान स्पूअर ने मुझे तुष्ट करने की हर तरह से कोशिश की। लेकिन मैं कभी भी उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप खरा नहीं उतर सका। मैंने उन्हें बताया कि मैं शिकागो में काम करने में खुश नहीं हूं और कि अगर वे नतीजे चाहते हैं तो मेरे लिए कैलिफोर्निया में काम करने की व्यवस्था करा दें।

"हम ऐसा कुछ भी करेंगे जिससे आपको खुशी मिले," उन्होंने कहा,"नाइल्स जाने के बारे में क्या ख्याल है?"

मैं इस प्रस्ताव पर बहुत खुश नहीं था, लेकिन मैं स्पूअर की तुलना में एंडरसन को ज्यादा पसंद करता था, इसलिए हिज़ न्यू जॉब पूरी कर लेने के बाद मैं नाइल्स चला गया।

ब्रोंको बिली अपनी वेस्टर्न फिल्में वहीं पर बनाया करते थे। ये एक-एक रील की फिल्में हुआ करती थीं जिन्हें बनाने में उन्हें एक ही दिन लगता था। उनके पास सात ही कहानियों के प्लॉट थे जिन्हें वे घुमा-फिरा कर बार-बार दोहराते रहते थे और इन्हीं से उन्होंने कई लाख डॉलर कमाये थे। वे कभी कभार काम करते थे। कभी-कभी वे एक-एक रील की सात फिल्में एक ही हफ्ते में बना कर धर देते। और फिर छ: सप्ताह के लिए छुट्टी मनाने चले जाते।

नाइल्स में स्टूडियो के आस-पास कैलिफोर्निया शैली के कई छोटे-छोटे बंगले थे जो ब्रोंको बिली ने अपनी कम्पनी के स्टाफ के लिए बनवाये थे। एक बड़ा-सा बंगला था जो उनके खुद के लिए था। उन्होंने बताया कि अगर मैं चाहूं तो उनके बंगले में उनके साथ ही रह सकता हूं। मैं इस प्रस्ताव से खुश हुआ। ब्रोंको बिली, करोड़पति काउबॉय, जिन्होंने शिकागो में अपनी पत्नी के आलीशान अपार्टमेंट में मेरी आवभगत की थी, के साथ रहने से कम से कम नाइल्स में ज़िंदगी सहने योग्य तो रहेगी।

जिस समय हम बंगले पर पहुंचे, उस वक्त अंधेरा था। जब हमने स्विच ऑन किये तो मुझे झटका लगा। जगह एक दम खाली और मनहूसियत भरी थी। उनके कमरे में लोहे की एक चारपाई रखी थी और उसके ऊपर एक बल्ब लटक रहा था। कमरे में फर्नीचर के नाम पर एक खस्ताहाल मेज़ और एक कुर्सी भी थे। पलंग के पास लकड़ी की एक पेटी रखी थी जिस पर पीतल की एक ऐश ट्रे रखी थी जो सिगरेट के टोटों से पूरी तरह से भरी हुई थी। मुझे जो कमरा दिया गया था, वो भी कमोबेश ऐसा ही था। उसमें बस, राशन रखने की पेटी नहीं थी। कोई भी चीज़ काम करने की हालत में नहीं थी। गुसलखाने के तो और भी बुरे हाल थे। नहाने के नलके से एक मग पानी भर कर लैट्रिन में ले जाना पड़ता था तभी फ्लश किया जा सकता था और लैट्रिन को इस्तेमाल किया जा सकता था। ये घर था जी एम एंडरसन, करोड़पति काउबॉय का।

मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि एंडरसन सनकी थे। करोड़पति होने के बावजूद वे गरिमामय जीवन के प्रति ज़रा भी परवाह नहीं करते थे। उनके शौक थे, भड़कीले रंगों वाली कारें, नूरा कुश्तियों के पहलवानों को पालना, एक थियेटर रखना और संगीतमय प्रस्तुतियां करना। जब वे नाइल्स में काम न कर रहे होते, वे अपना अधिकतर समय सैन फ्रैंसिस्को में बिताते, जहां पर वे छोटे, कम कीमत वाले होटलों में ठहरते। वे अजीब ही किस्म के शख्स थे, अस्पष्ट, मौजी और बेचैन, जो आनंद भरी अकेली ज़िंदगी की चाह रखते थे। और हालांकि शिकागो में उनकी बहुत ही खूबसूरत पत्नी और बेटी थी, वे शायद ही उनसे मिलते। वे अलग और अपने तरीके से अपनी ज़िंदगी जी रही थीं।

एक बार फिर से एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में धक्के खाना कोफ्त में डालता था। मुझे काम करने वाली एक और यूनिट का इंतज़ाम करने की ज़रूरत पड़ी। इसका मतलब, एक और संतोषजनक कैमरामैन, सहायक निर्देशक और कलाकारों की टोली चुननी पड़ी। कलाकारों की टोली चुनना थोड़ा मुश्किल काम था क्योंकि नाइल्स में इतने लोग ही नहीं थे जिनमें से चुनने की बात आती। एंडरसन की कॉउबॉय कम्पनी के अलावा नाइल्स में एक और कम्पनी थी। ये एक नामालूम सी कॉमेडी कम्पनी थी जिनका काम-काज चलता रहता और जब जी एम एंडरसन की कम्पनी काम न कर रही होती तो खर्चे निकाल लिया करती थी। कलाकारों की टोली में बारह लोग थे। और इनमें से ज्यादातर कॉउबॉय अभिनेता थे। एक बार फिर मेरे सामने मुख्य भूमिका के लिए कोई खूबसूरत-सी लड़की तलाश करने की समस्या आ खड़ी हुई। अब मैं इस बात को ले कर परेशान था कि कैसे भी करके काम शुरू किया जाये। हालांकि मेरे पास कहानी नहीं थी, मैंने आदेश दिया कि तड़क भड़क वाले एक कैफे का सेट बनाया जाये। जब मुझे हँसी-ठिठोली के लिए कुछ भी न सूझता तो कैफे के विचार से मुझे कुछ न कुछ ज़रूर सूझ जाता। जिस समय सेट बनाया जा रहा था, मैं जी एम एंडरसन के साथ सैन फ्रांसिस्को के लिए रवाना हो गया ताकि वहां पर उनकी संगीतमय कॉमेडी में समूहगान गाने वाली लड़कियों में से अपने लिए प्रमुख अभिनेत्री चुन सकूं। हालांकि वे अच्छी लड़कियां थीं फिर भी उनमें से किसी का भी चेहरा फोटोजेनिक नहीं था। एंडरसन के साथ काम करने वाले कार्ल स्ट्रॉस, खूबसूरत युवा जर्मन-अमेरिकी काउबॉय ने बताया कि वह एक ऐसी लड़की को जानता है जो कभी-कभी हिल स्ट्रीट पर टाटे के कैफे में जाती है। वह उसे व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता था लेकिन वह खूबसूरत है और हो सकता है कि होटल का मालिक उसका पता जानता हो।

मिस्टर टाटे उसे बहुत अच्छी तरह से जानते थे। वह लवलॉक, नेवादा की रहने वाली थी और उसका नाम एडना पुर्विएंस था। तुरंत ही हमने उससे सम्पर्क किया और उससे सेंट फ्रांसिस होटल में मुलाकात के लिए समय तय किया। वह खूबसूरत से कुछ ज्यादा ही थी। कमनीय थी वह। साक्षात्कार के समय वह उदास और गम्भीर जान पड़ी। मुझे बाद में पता चला कि वह अपने हाल ही के एक प्रेम प्रसंग से उबर रही थी। उसने कॉलेज तक की पढ़ाई की थी और उसने बिजिनेस कोर्स किया था। वह शांत और अलग थलग रहने वाली लड़की थी। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, सुंदर दंत-पंक्ति और संवेदनशील मुंह था। मुझे इस बात पर शक था कि वह इतनी गम्भीर दिखती है कि वह अभिनय भी कर पायेगी या नहीं और उसमें हास्य बोध है या नहीं। इसके बावज़ूद, इन सारी बातों को दर किनार करते हुए हमने उसे रख लिया। वह मेरी कॉमेडी फिल्मों में कम से कम सौन्दर्य तो बिखेरेगी।

अगले दिन हम नाइल्स लौट आये लेकिन अब तक कैफे बन कर तैयार नहीं हुआ था। जो ढांचा उन्होंने खड़ा किया था, वह वाहियात और बकवास था। स्टूडियो में पक्के तौर पर तकनीकी ज्ञान की कमी थी। कुछेक बदलावों के लिए कहने के बाद मैं किसी आइडिया की तलाश में बैठ गया। मैंने एक शीर्षक सोचा, हिज़ नाइट आउट। खुशी की तलाश में एक शराबी। शुरुआत करने के लिए इतना काफी था। मैंने यह महसूस करते हुए नाइट क्लब में एक झरना लगवा दिया कि इसी से शायद कुछ हंसी-मज़ाक की चीजें निकल आयें। मेरे पास ठलुए की भूमिका के लिए बेन टर्पिन था। जिस दिन हमने फिल्म शुरू करनी थी, उससे एक दिन पहले एंडरसन की कम्पनी के एक सदस्य ने मुझे रात के खाने पर आमंत्रित किया। ये सीधी-सादी पार्टी थी। वहां पर एडना पुर्विएंस को मिला कर हम बीस के करीब लोग थे। खाने के बाद कुछ लोग ताश खेलने बैठ गये जबकि दूसरे लोग आस पास बैठ कर बातें करने लगे। हमारे बीच सम्मोहन शक्ति, हिप्नोटिज्म़ की बात चल पड़ी। मैंने शेखी बघारी कि मैं सम्मोहन शक्तियां जानता हूं। मैंने दावे के साथ कहा कि मैं साठ सेकेंड के भीतर कमरे में किसी को भी हिप्नोटाइज कर सकता हूं। मैं इतने आत्म विश्वास के साथ बात कर रहा था कि सबको मुझ पर यकीन हो गया। लेकिन एडना ने विश्वास नहीं किया।

वह हँसी,"क्या बकवास है? मुझे कोई हिप्नोटाइज कर ही नहीं सकता।"

"तुम," मैंने कहा,"एकदम सही व्यक्ति हो। मैं तुमसे दस डॉलर की शर्त बद कर कहता हूं कि मैं तुम्हें साठ सेकेंड के भीतर सुला दूंगा।"

"ठीक है," एडना ने कहा, "तो लग गयी शर्त"

"अब एक बात सुन लो। अगर बाद में तुम्हारी तबीयत खराब हो गयी तो इसके लिए मुझे दोष मत देना। हां, मैं जो कुछ करूंगा, बहुत ज्यादा गम्भीर नहीं होगा।"

मैंने इस बात की भरपूर कोशिश की कि वह पीछे हट जाये लेकिन वह अपनी बात पर डटी रही। एक महिला ने उसके आगे हाथ-पैर जोड़े कि वह ये सब न करने दे,"तुम तो एक दम मूरखा हो," कहा उसने।

"शर्त अभी भी अपनी जगह पर है।" एडना ने शांति से कहा।

"ठीक है," मैंने जवाब दिया,"मैं चाहता हूं कि तुम सबसे अलग, अपनी पीठ दीवार से अच्छी तरह से सटा कर खड़ी हो जाओ ताकि मुझे तुम्हारा पूरा का पूरा ध्यान मिले।"

उसने नकली हँसी हँसते हुए मेरी बात मान ली। अब तक कमरे में मौजूद सभी लोग इसमें दिलचस्पी लेने लगे थे।

"कोई घड़ी पर निगाह रखे।" मैंने कहा।

"याद रखना," एडना ने कहा, "आप मुझे साठ सेकेंड के भीतर सुला देने वाले हैं।"

"साठ सेकेंड के भीतर तुम एक दम बेहोश हो जाओगी।" मैंने जवाब दिया।

"शुरू," टाइम कीपर ने कहा

तुरंत ही मैंने दो-तीन ड्रामाई हरकतें कीं, उसकी आंखों में घूर-घूर कर देखा, तब मैं उसके चेहरे के निकट गया और उसके कानों में फुसफुसाया ताकि दूसरे लोग न सुन सकें,"झूठ मूठ का नाटक करो।" और मैंने हवा में हाथ लहराये, "तुम बेहोश हो जाओगी, बेहोश, बेहोश!!"

तब मैं अपनी जगह पर वापिस आया और वह लड़खड़ाने लगी। तुरंत ही मैंने उसे अपनी बाहों में थाम लिया। दर्शकों में से दो चिल्लाये।

"जल्दी करो," मैंने कहा, "इसे दीवान पर लिटाने में कोई मेरी मदद करे।"

जब उसे होश आया तो उसने हैरानी से चारों तरफ देखा और कहा कि वह थकान महसूस कर रही है।

हालांकि वह अपना तर्क जीत सकती थी और सभी उपस्थित लोगों के सामने अपनी बात सिद्ध कर सकती थी फिर भी उसने खुशी-खुशी अपनी जीत को हार में बदल जाने दिया। उसकी इस बात से मैं उसका मुरीद हो गया और मुझे तसल्ली हो गयी कि उसमें हास्य बोध है।

मैंने नाइल्स में चार कॉमेडी फिल्में बनायीं लेकिन चूंकि स्टूडियो सुविधाएं संतोषजनक नहीं थीं, मैं अपने आपको जमा हुआ या संतुष्ट अनुभव नहीं करता था। इसलिए मैंने एंडरसन को सुझाव दिया कि मैं लॉस एंजेल्स चला जाता हूं। वहां पर उनके पास कॉमेडी फिल्में बनाने के लिए बेहतर सुविधाएं थीं। वे सहमत हो गये लेकिन ये सहमति एक दूसरे ही कारण से थी। मैं स्टूडियो पर एकाधिकार जमाये बैठा था जो कि तीन कम्पनियों के लायक बड़ा या पर्याप्त रूप से स्टाफ युक्त नहीं था। इसलिए उन्होंने बॉयल हाइट्स पर एक छोटा-सा स्टूडियो किराये पर लेने के लिए बातचीत की। ये स्टूडियो लॉस एंजेल्स के बीचों-बीच था।

जिस वक्त हम वहां पर थे, दो युवा लड़के, जो अभी कारोबार में बस, शुरुआत कर ही रहे थे, आये और स्टूडियो की जगह किराये पर ले ली। उनके नाम थे हाल रोच और हारोल्ड लॉयड।

मेरी हर नयी फिल्म के साथ जैसे-जैसे मेरी कॉमेडी फिल्मों की कीमत बढ़ती गयी, ऐसेने ने अप्रत्याशित शर्तें लगानी शुरू कर दीं और वितरकों से मेरी दो रील की कॉमेडी के लिए हर दिन के लिए कम से कम पचास डॉलर का किराया वसूल करना शुरू कर दिया। इस तरह से वे मेरी प्रत्येक फिल्म से अग्रिम रूप से पचास हज़ार डॉलर जमा कर रहे थे।

उन दिनों मैं स्टॉल होटल पर मैं ठहरा हुआ था। ये एक ठीक-ठाक किराये वाला नया लेकिन आराम दायक होटल था। एक शाम मेरे काम से लौटने के बाद, लॉस एंजेल्स एक्जामिनर से मेरे लिए एक ज़रूरी टेलिफोन कॉल आया। उन्हें न्यू यार्क से एक तार मिला था जिसे उन्होंने पढ़ कर सुनाया: न्यू यार्क हिप्पोड्रोम में हर शाम पन्द्रह मिनट के लिए दो सप्ताह तक आ कर प्रदर्शन करने के लिए चार्ली चैप्लिन को 25000 डॉलर देंगे। इससे उनके काम में बाधा नहीं पड़ेगी।

मैंने तत्काल सैन फ्रांसिस्को में जी एम एंडरसन को फोन लगाया। देर हो चुकी थी और मैं अगली सुबह तीन बजे तक उनसे बात नहीं कर पाया। फोन पर ही मैंने उन्हें तार के बारे में बताया और पूछा कि क्या वे दो हफ्ते के लिए मुझे जाने देंगे ताकि मैं 25000 डॉलर कमा सकूं। मैंने सुझाव दिया कि मैं न्यू यार्क जाते समय ट्रेन में ही कॉमेडी बनाना शुरू कर सकता हूं और वहां रहते हुए उसे पूरा भी कर लूंगा। लेकिन एंडरसन नहीं चाहते थे कि मैं ये काम करूं।

मेरे बेडरूम की खिड़की होटल के भीतरी हॉल की तरफ खुलती थी इसलिए वहां पर कोई भी बात कर रहा होता तो उसकी आवाज़ सभी कमरों में गूंजती थी। टेलिफोन कनेक्शन अच्छी तरह से काम नहीं कर रहा था। मैं दो हफ्ते के लिए अपने हाथ से पच्चीस हज़ार डॉलर नहीं जाने दे सकता। ये बात मुझे कई बार चिल्ला कर कहनी पड़ी।

ऊपर के किसी कमरे की खिड़की खुली और एक आवाज़ पलट कर ज़ोर से चिल्लायी, "दफा करो इस हरामजादे को और सो जाओ, बदतमीज कहीं के!!"

एंडरसन ने फोन पर बताया कि अगर मैं ऐसेने को दो रील की एक और कॉमेडी बना कर दे दूं तो वे मुझे पच्चीस हज़ार डॉलर दे देंगे। उन्होंने वादा किया कि अगले ही दिन वे लॉस एंजेल्स आ रहे हैं और करार कर लेंगे। जब मैंने टेलिफोन पर बात पूरी कर ली तो बत्ती बंद करके सोने जा ही रहा था कि मुझे वह आवाज़ याद आयी, मैं बिस्तर से उठा, खिड़की खोली और ज़ोर से चिल्लाया, "भाड़ में जाओ!"

अगले दिन एंडरसन पच्चीस हज़ार डॉलर के साथ लॉस एंजेल्स आये। न्यू यार्क की मूल कम्पनी जिसने यह प्रस्ताव रखा था, दो हफ्ते बाद ही दिवालिया हो गयी। ऐसी थी मेरी किस्मत।

अब लॉस एंजेल्स वापिस लौट कर मैं पहले से ज्यादा खुश था। हालांकि बॉयल हाइट्स पर बने हुए स्टूडियो के आस-पास छोपड़-पट्टियां थीं, वहां रहने से मुझे एक फायदा से हुआ कि मैं अपने भाई सिडनी के आस-पास ही रह सका। मैं उससे अक्सर शाम को मिल लेता। वह अभी भी कीस्टोन में ही काम कर रहा था और ऐसेने के साथ मेरा करार खत्म होने से एक महीना पहले उसका करार पूरा हो जाता। मेरी सफलता का ये आलम था कि सिडनी ये सोच रहा था कि वह अब अपना पूरा वक्त मेरे कारोबारी कामों में ही लगाये। रिपोर्टों के अनुसार, मेरी लोकप्रियता आने वाली प्रत्येक कॉमेडी फिल्म के साथ बढ़ती ही जा रही थी। हालांकि लॉस एंजेल्स में सिनेमा हॉलों के बाहर लगने वाली लम्बी-लम्बी कतारों को देख कर मैं अपनी सफलता की सीमा की बारे में जानता था, मैं इस बात को महसूस नहीं कर पाया कि बाकी जगह मेरी सफलता कितनी बढ़ी है। न्यू यार्क में मेरे चरित्र, कैलेक्टर के खिलौने और मूर्तियां सभी डिपार्टमेंट स्टोरों और ड्रगस्टोरों में बिक रहे थे। जिगफेल्ड लड़कियां चार्ली चैप्लिन गीत गा रही थीं और अपने खूबसूरत चेहरों पर चार्लीनुमा मूछें लगा कर, डर्बी हैट लगा कर, बड़े जूते और बैगी पैंट पहन कर अपनी खूबसूरती का नाश मार रही थीं। वे दोज़ चार्ली चैप्लिन फीट गीत गा रही थीं।

हमारे पास हर तरह के कारोबारी प्रस्तावों का तांता लगा रहता। इनमें किताबों, कपड़ों, मोमबत्तियों, खिलौनों, सिगरेट और टूथपेस्ट जैसी चीजों के प्रस्ताव होते। इसके अलावा प्रशंसकों की डाक के लगने वाले अम्बार एक और ही परेशानी खड़ी कर रहे थे। सिडनी की ज़िद थी कि भले ही एक और सचिव रखने का खर्चा उठाना पड़े, सभी खतों का जवाब दिया जाना चाहिये।

सिडनी ने एंडरसन साहब से इस बारे में बात की कि मेरी फिल्मों को रूटीन फिल्मों से अलग से बेचा जाये। ये ठीक नहीं लगता था कि सारा का सारा पैसा वितरकों की ही जेब में जाये। हालांकि ऐसेने वाले मेरी फिल्मों की सैकड़ों प्रतियां बना कर बेच रहे थे, ये फिल्में वितरण के पुराने ढर्रे पर ही बेची जा रही थीं। सिडनी ने सुझाव दिया कि बैठने की क्षमता के अनुसार बड़े थियेटरों के लिए दाम बढ़ाये जाने चाहिये। इस योजना को लागू किया जाता तो हरेक फिल्म से आने वाली रकम एक लाख डॉलर या उससे भी ज्यादा बढ़ सकती थी। एंडरसन साहब को ये योजना असंभव लगी। उन्हें ये योजना पूरे मोशन पिक्चर्स ट्रस्ट की नीतियों के खिलाफ मोर्चा बांधने जैसी लगी। इस ट्रस्ट में सोलह हज़ार थियेटर थे। फिल्में खरीदने के उनके नियम और तरीके बदले नहीं जा सकते थे। कुछ ही वितरक ऐसी शर्तों पर फिल्में खरीद पाते।

बाद में पता चला कि ऐसेने ने बिक्री का अपना पुराना तरीका छोड़ दिया है और जैसा कि सिडनी से सुझाव दिया था, अब वे थियेटर की बैठने की क्षमता के अनुसार अपनी दरें बढ़ा रहे थे। इससे, जैसा कि सिडनी ने कहा था, मेरी प्रत्येक कॉमेडी फिल्म के लिए आने वाली रकम एक लाख डॉलर हो गयी। इस खबर से मेरे कान खड़े हो गये। मुझे हफ्ते के सिर्फ बारह सौ पचास डॉलर ही मिल रहे थे और मैं लिखने, अभिनय करने और निर्देशन करने का सारा काम कर रहा था। मैंने शिकायत करना शुरू कर दिया कि मैं बहुत ज्यादा काम कर रहा हूं और मुझे फिल्म बनाने के लिए थोड़े और समय की ज़रूरत है। मेरे पास एक बरस का करार था और मैं हर दो या तीन हफ्ते में कॉमेडी फिल्म बना कर दे रहा था। जल्द ही शिकागो में स्पूअर साहब हरकत में आये। वे लॉस एंजेल्स के लिए ट्रेन में सवार हुए और एक अतिरिक्त चुग्गे के रूप में यह करार किया कि अब मुझे हर फिल्म के लिए दस हज़ार डॉलर का बोनस मिला करेगा। इससे मेरी सेहत को कुछ खुराक मिली।

लगभग इसी समय डी डब्ल्यू ग्रिफिथ ने अपनी एपिक फिल्म द बर्थ ऑफ ए नेशन बनायी जिसने उन्हें चलचित्र सिनेमा के उत्कृष्ट निर्देशक के रूप में स्थापित कर दिया। इसमें कोई शक नहीं था कि वे मूक सिनेमा के बेताज बादशाह थे। हालांकि उनके काम में अतिनाटकीयता होती थी और कई बार सीमाओं से बाहर और असंगत भी, लेकिन ग्रिफिथ की फिल्मों में मौलिकता की छाप होती थी जिसकी वज़ह से हर आदमी को उनकी फिल्म देखनी होती।

डे मिले ने अपने कैरियर की शुरुआत द व्हिस्पिरिंग कोरस और कारमैन के एक संस्करण से की थी लेकिन अपने मेल एंड फिमेल के बाद उनका काम कभी भी चोली के पीछे क्या है, से आगे नहीं जा सका। इसके बावज़ूद मैं उनकी कारमैन से इतना ज्यादा प्रभावित था कि मैंने इस पर दो रील की एक प्रहसन फिल्म बनायी थी। ये ऐसेने के साथ मेरी आखिरी फिल्म थी। जब मैंने ऐसेने को छोड़ दिया था तो उन्होंने सारी कतरनों को जोड़-जाड़ कर उसे चार रील की फिल्म बना दिया था। इससे मैं बुरी तरह से आहत हो गया और दो दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहा। हालांकि उनकी ये करतूत बेईमानी भरी थी, फिर भी मेरा ये भला कर गयी कि उसके बाद मैंने अपने सभी करारों में ये शर्त डलवानी शुरू कर दी कि मेरे पूरे किये गये काम में किसी भी किस्म की कोई काट-छांट, उसे बढ़ाना या उसमें छेड़-छाड़ करना नहीं चलेगा।

मेरे करार के खत्म होने का समय निकट आ रहा था, तभी स्पूअर साहब कोस्ट पर मेरे पास एक प्रस्ताव ले कर आये। उनका कहना था कि इस प्रस्ताव का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अगर मैं उन्हें दो-दो रील की बारह फिल्में बना कर दूं तो वे मुझे साढ़े तीन लाख डॉलर देंगे। फिल्म निर्माण का खर्च वे उठायेंगे। मैंने उन्हें बताया कि किसी भी करार पर हस्ताक्षर करने से पहले मैं चाहूंगा कि डेढ़ लाख डॉलर का बोनस पहले रख दिया जाये। इस बात ने स्पूअर साहब के साथ किसी भी किस्म की बातचीत पर विराम लगा दिया।

भविष्य! भविष्य!! शानदार भविष्य!! कहां ले जा रहा था भविष्य!!! संभावनाएं पागल कर देने वाली थीं। किसी हिम स्खलन की तरह पैसा और सफलता हर दिन और तेज गति से बरस रहे थे। ये सब पागल कर देने वाला, डराने वाला था लेकिन था हैरान कर देने वाला।

जिस वक्त सिडनी न्यू यार्क में अलग-अलग प्रस्तावों की समीक्षा कर रहा था, मैं कारमैन फिल्म का निर्माण पूरा करने में लगा हुआ था और सांता मोनिका में समुद्र की तरफ खुलने वाले एक घर में रह रहा था। किसी-किसी शाम मैं सांता मोनिका तटबंध दूसरे सिरे पर बने नाट गुडविन के कैफे में खाना खा लिया करता था। नाट गुडविन को अमेरिक मंच का महानतम अभिनेता और हल्की फुल्की कॉमेडी करने वाला कलाकार समझा जाता था। शेक्सपियर काल के अभिनेता और आधुनिक हल्के-फुल्के कॉमेडी कलाकार, दोनों ही रूपों में उनका बहुत ही शानदार कैरियर रहा था। वे सर हेनरी इर्विंग के खास दोस्त थे और उन्होंने आठ शादियां की थीं। उनकी प्रत्येक पत्नी अपने सौन्दर्य के लिए प्रसिद्ध होती। उनकी पांचवीं पत्नी मैक्सिन इलियट थी जिसे वे तरंग में आ कर "रोमन सिनेटर" कह कर पुकारते थे। "लेकिन वह वाकई खूबसूरत और बेहद बुद्धिमति थी," वे बताया करते। वे बहुत सहज सुसंस्कृत व्यक्ति थे और अपने वक्त से कई बरस आगे थे। उनमें गहरा हास्य बोध था और अब उन्होंने सब-कुछ छोड़-छाड़ दिया था। हालांकि मैंने उन्हें मंच पर कभी अभिनय करते हुए नहीं देखा था, मैं उनका और उनकी प्रतिष्ठा का बहुत सम्मान करता था।

हम बहुत अच्छे दोस्त बन गये और पतझड़ के दिनों की ठिठुरती शामें एक साथ सुनसान समंदर के किनारे चहलकदमी करते हुए गुज़ारते। निचाट उदासी भरा माहौल सघन हो कर मेरी भीतरी उत्तेजना को आलोकित कर देता। जब उन्हें पता चला कि मैं अपनी फिल्म पूरी करके न्यू यार्क जा रहा हूं तो उन्होंने मुझे बहुत ही शानदार सलाह दी। "तुमने आशातीत सफलता पायी है। और अगर तुम जानते हो कि किस तरह से अपने आप से निपटना है तो तुम्हारे सामने एक बहुत ही शानदार ज़िंदगी तुम्हारी राह देख रही है। जब तुम न्यू यार्क पहुंचो तो ब्रॉडवे से परे ही रहना। जनता की निगाहों से दूर-दूर बने रहो। कई सफल अभिनेता यही करते हैं कि वह देखा जाना और तारीफ किया जाना चाहते हैं। इससे उनके भ्रम ही टूटते हैं।" उनकी आवाज़ गहरी और गूंज लिये हुए थी, "तुम्हें हर कहीं बुलाया जायेगा," उन्होंने कहना जारी रखा,"लेकिन सभी न्यौते स्वीकार मत करो। सिर्फ एक या दोस्त चुनों और बाकी के बारे में कल्पना करके ही संतुष्ट हो जाओ। कई महान अभिनेताओं ने हर तरह के सामाजिक निमंत्रण स्वीकार करने की गलती की है। जॉन ड्रियू ने भी यही गलती की थी। वे सामाजिक दायरों में बहुत लोकप्रिय थे और उनके घरों में चले जाया करते थे लेकिन लोग थे कि उनके थियेटरों में नहीं जाते थे। जॉन ड्रियू उन्हें उनके ड्राइंगरूम में ही मिल जाते थे। तुमने दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर रखा है और तुम ऐसा करना जारी रख सकते हो अगर तुम इससे बाहर खड़े रहो।" उन्होंने विचारों में खोये हुए कहा।

ये बहुत ही शानदार बातें होतीं। कभी कभी उदास कर देने वाली। हम उजाड़ समुद्र तट पर पतझड़ के दिनों में गोधूलि की वेला में चलते बातें करते रहते। नाट अपने कैरियर की अंतिम पायदान पर थे और मैं अपना कैरियर शुरू कर रहा था।

जब मैंने कारमैन का संपादन पूरा कर लिया तो मैंने फटाफट अपना थोड़ा बहुत सामान समेटा और अपने ड्रेसिंग रूम से सीधे ही स्टेशन की तरफ लपका ताकि न्यू यार्क के लिए छ: बजे की ट्रेन पकड़ सकूं। मैंने सिडनी को एक तार भेज दिया कि मैं कब चलूंगा और कब पहुंचूंगा।

ये धीमी गति वाली गाड़ी थी और न्यू यार्क पहुंचने में पांच दिन लगाती थी। मैं एक खुले कम्पार्टमेंट में अकेला बैठा हुआ था। उन दिनों मेरे कॉमेडी मेक अप के बिना मुझे पहचाना नहीं जा सकता था। हम अमारिलो, टैक्सास, होते हुए दक्षिणी रूट से जा रहे थे। गाड़ी वहां शाम को सात बजे पहुंचती थी। मैंने दाढ़ी बनाने का फैसला किया लेकिन मुझसे पहले ही वाशरूम में दूसरे मुसाफिर चले गये थे, इसलिए मैं इंतज़ार कर रहा था। नतीजा ये हुआ कि गाड़ी जब अमारिलो पहुंचने को थी, मैं अभी भी अपना अंडरवियर ही पहने था। जैसे-जैसे गाड़ी ने स्टेशन में प्रवेश किया, हमें अचानक शोर शराबे भरी उत्तेजना ने घेर लिया। वाशरूम की खिड़की से झांकते हुए मैंने देखा कि स्टेशन पर बेइंतहा भीड़ जुटी हुई है। चारों तरफ, एक खंबे से दूसरे खम्बे तक झंडियां और पताकाएं लहरा रही थीं। प्लेटफार्म पर कई लम्बी मेजें लगी हुई थीं जिन पर नाश्ता सजा हुआ था। मैंने सोचा, किसी स्थानीय राजा के स्वागत या विदाई के लिए ये सारा ताम-झाम हो रहा होगा। मैंने अपने चेहरे पर क्रीम लगानी शुरू की। लेकिन उत्तेजना थी कि बढ़ती ही जा रही थी। और फिर स्पष्ट आवाज़ें आनी लगीं,"कहां हैं वे?", तभी डिब्बे में भगदड़ मच गयी। गलियारे में लोग-बाग शोर मचाते हुए आगे से पीछे और पीछे से आगे भागे जा रहे थे।

"कहां है वे?, चार्ली चैप्लिन कहां हैं?"

"जी कहिये!," मैंने कहा।

"अमारिलो, टैक्सास के मेयर की ओर से तथा आपके सभी प्रशंसकों की ओर से हम आपको आमंत्रित करते हैं कि आप हमारे साथ एक कोल्ड ड्रिंक और नाश्ता लें।"

मुझे अचानक हड़बड़ाहट की भावना ने घेर लिया।

"मैं इस हालत में कैसे जा सकता हूं?" मैंने शेविंग क्रीम के पीछे से कहा।

"ओह, आप किसी भी बात की परवाह न करें। चार्ली, बस ड्रेसिंग गाउन डाल लें और जनता से मिल लें।"

जल्दी जल्दी में मैंने अपना चेहरा धोया और अध शेव की हालत में कमीज और टाई डाली और अपने कोट के बटन बंद करता हुआ ट्रेन से बाहर आया।

तालियों की गड़गड़ाहट से मेरा स्वागत किया गया। मेयर साहब ने कहने की कोशिश की: "मिस्टर चैप्लिन, अमारिलो के आपके प्रशंसकों की ओर से . . .", लेकिन लगातार तालियों और हो-हल्ले के बीच उनकी आवाज़ डूब गयी। उन्होंने एक बार फिर से बोलना शुरू किया, "मिस्टर चैप्लिन, अमारिलो के आपके प्रशंसकों की ओर से मैं ..." तब भीड़ ने आगे की तरफ धक्का लगाया और मेयर मेरे ऊपर आ गिरे, और हम दोनों ही ट्रेन से जा टकराये। और एक पल के लिए हालत ये हो गयी कि स्वागत भाषण गया तेल लेने, पहले खुद की जान बचायी जाये।

"पीछे हटो," भीड़ को पीछे धकेलते हुए और हमारे लिए रास्ता बनाते हुए पुलिस वाले चिल्लाये।

पूरे समारोह के लिए ही मेयर साहब के उत्साह पर पानी फिर चुका था और पुलिस तथा मेरे प्रति थोड़ी चिड़चिड़ाहट के साथ वे बोले, "ठीक है चार्ली, पहले हम ये सब खाना पीना ही निपटा लें, फिर आप अपनी ट्रेन में सवार हो जाना।"

मेजों पर धक्का-मुक्की के बाद चीजें थोड़ी शांत हुईं और आखिरकार मेयर साहब अपना भाषण देने में सफल हुए। उन्होंने मेज पर चम्मच ठकठकायी और बोले,"मिस्टर चैप्लिन, अमारिलो, टैक्सास के आपके मित्र उस खुशी के लिए आपके प्रति अपना आभार प्रकट करना चाहते हैं जो आपने उन्हें उनकी तरफ से सैंडविच और कोला कोला की ये दावत स्वीकार करके उन्हें दी है।"

अपना प्रशस्ति गान पूरा कर लेने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं कुछ कहना चाहूंगा। उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं मेज पर ही चढ़ जाऊं। मेज पर चढ़ कर मैं इस आशय के कुछ शब्द बुदबुदाया कि मैं अमारिलो में आ कर बेहद खुश हूं और इस आश्चर्यजनक, रोमांचक स्वागत पा कर बहुत हैरान हूं और मैं इसे अपनी बाकी की ज़िदगी के लिए याद रखूंगा। वगैरह वगैरह। तब मैं बैठ गया और मेयर से बात करने की कोशिश करने लगा।

मैंने उनसे पूछा कि आखिर उन्हें मेरे आगमन का पता ही कैसे चला।

"टैलिग्राफ ऑपरेटर के जरिये," उन्होंने बताया, उन्होंने स्पष्ट किया कि मैंने जो तार सिडनी को भेजा था, वह अमारिलो से रिले हो कर गया था इसके बाद कैन्सास सिटी, शिकागो और न्यू यार्क गया था वह तार। और ऑपरेटरों ने ये खबर प्रेस को दे दी थी।

जब मैं ट्रेन में लौटा तो अपनी सीट पर जा कर विनम्रता की मूर्ति बन कर बैठ गया। एक पल के लिए मेरा दिमाग एकदम सुन्न हो गया था। तभी पूरा का पूरा डिब्बा ही लोगों की आवा-जाही से गुलज़ार हो उठा। लोग गलियारे से गुज़रते, मेरी तरफ घूर कर देखते और खींसे निपोरते। जो कुछ अमारिलो में हो गया था उसे न तो मैं मानसिक रूप से पचा ही पा रहा था और न ही ढंग से उसका आनंद ही ले पाया था। मैं बेहद उत्तेजित था। मैं तनाव में बैठा रहा। एक ही वक्त में अपने आप को ऊपर और हताश महसूस करते हुए।

ट्रेन के छूटने से पहले मुझे कई तार थमा दिये गये थे। एक में लिखा था,"स्वागत चार्ली, हम कन्सास सिटी में आपकी राह देख रहे हैं।" दूसरा था: "जब आप शिकागो पहुंचेंगे तो एक लिमोजिन आपकी सेवा में हाज़िर होगी ताकि आप एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन पर जा सकें।" तीसरे तार में लिखा था: "क्या आप रात भर के लिए ठहरेंगे और ब्लैकस्टोन होटल के मेहमान बनेंगे!!" जैसे जैसे हम कैन्सास सिटी के निकट पहुंचते गये, रेल की पटरियों के दोनों तरफ लोग खड़े थे और शोर मचाते हुए अपने हैट हिला रहे थे।

कैन्सास सिटी का बड़ा-सा रेलवे स्टेशन लोगों के हुजूम से अटा पड़ा था। बाहर जमा हो रही और भीड़ को काबू में पाने में पुलिस को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा थ। ट्रेन के सहारे एक नसैनी लगा दी गयी थी ताकि मैं ट्रेन की छत पर चढ़ सकूं और सबको अपना चेहरा दिखा सकूं। मैंने अपने आपको वही शब्द दोहराते हुए सुना जो मैं अमारिलो में बोल कर आया था। मेरे लिए और तार इंतज़ार कर रहे थे: "क्या मैं स्कूलों और संस्थाओं में जाऊंगा!!" मैंने सारे तार अपने सूटकेस में ठूंस लिये ताकि न्यू यार्क में उनका जवाब दिया जा सके। कन्सास सिटी से ले कर शिकागो के रास्ते में भी लोग वैसे ही रेल जंक्शनों पर और खेतों में खड़े थे और जब उनके सामने से ट्रेन गुज़रती तो हाथ हिलाते। मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के इस सबका आनंद लेना चाहता था लेकिन मैं यही सोचता रहा कि दुनिया जो है पागल हो गयी है। अगर कुछ स्वांग भरी कॉमेडी फिल्में इस तरह की उत्तेजना जगा सकती हैं तो क्या सारी ख्याति के बारे में कुछ ऐसा नहीं था जो नकली था। मैंने हमेशा सोचा था कि जनता मेरी तरफ ध्यान दे तो मुझे अच्छा लगेगा और अब जब जनता मुझे सिर आंखों पर बिठा रही थी तो मुझे अकेलेपन की हताश करने वाली भावना का साथ मुझे अलग-थलग करती जा रही थी।

शिकागो में जहां पर ट्रेन और स्टेशन बदलना ज़रूरी था, बाहर जाने के रास्ते पर भीड़ जुटी हुई थी और मुझे धकेल कर एक लिमोजिन में बिठा दिया गया। मुझे ब्लैकस्टोन स्टेशन ले जाया गया और न्यू यार्क के लिए अगली ट्रेन पकड़ने तक आराम करने के लिए एक सुइट दे दिया गया।

ब्लैकस्टोन होटल में न्यू यार्क के पुलिस प्रमुख की तरफ से एक तार आया जिसमें मुझसे अनुरोध किया गया था कि मैं उन पर ये अहसान करूं कि तय शुदा कार्यक्रम के अनुसार ग्रैंड सेन्ट्रल स्टेशन पर उतरने के बजाये 125वीं स्ट्रीट पर ही उतर जाऊं क्योंकि वहां आपके आने की उम्मीद में अभी से भीड़ जुटनी शुरू हो गयी है।

125वीं स्ट्रीट पर सिडनी एक लिमोजिन ले कर मुझे लेने आया था। वह तनाव और उत्तेजना में था। वह फुसफुसाया,"क्या ख्याल है इस सबके बारे में। स्टेशन पर सुबह से लोगों की भीड़ उमड़नी शुरू हो गयी है। और जब से तुम लॉस एंंजेल्स से चले हो, प्रेस रोज़ाना बुलेटिन जारी कर रही है।" उसने मुझे एक अखबार दिखाया जिसमें बड़े बड़े फांट में लिखा था, "वो यहां है!!"

दूसरी हैड लाइन थी: "चार्ली छुपते फिर रहे हैं।"

होटल जाते समय रास्ते में उसने बताया कि उसने म्युचूअल फिल्म कार्पोरेशन के साथ एक सौदा किया है जिसमें मुझे छ: लाख सत्तर हज़ार डॉलर मिलेंगे और ये मुझे दस हज़ार डॉलर प्रति सप्ताह के हिसाब से दिये जायेंगे और बीमे का टेस्ट पास कर लेने के बाद मुझे करार के लिए साइनिंग राशि के रूप में पन्द्रह लाख डॉलर दिये जायेंगे।

वकील के साथ उसकी एक लंच मीटिंग थी जिसमें उसे बाकी सारा दिन लग जाने वाला था। इसलिए वह मुझे प्लाज़ा में, जहां उसने मेरे लिए एक कमरा बुक करवा रखा था, छोड़ने के बाद चला जायेगा और मुझसे अगली सुबह मिलेगा।

जैसा कि हेमलेट कहता है: "अब मैं अकेला हूं!!" उस दोपहर मैं गलियों में भटकता रहा और दुकानों की खिड़कियों में देखता रहा, और बेवजह गलियों के नुक्कड़ों पर रुकता रहा। अब मेरा क्या होगा। यहां मैं था अपने कैरियर के शिखर पर। एकदम चुस्त दुरुस्त कपड़ों में, और मेरे पास कोई जगह नहीं थी जहां मैं जाता। लोगों से, रोचक लोगों से कोई कैसे मिलता है!!

मुझे ऐसा लगा कि हर कोई मुझे जानता है लेकिन मैं किसी को भी नहीं जानता था। मैं अंतर्मुखी हो गया। अपने आप पर दया आने लगी और मुझ पर उदासी तारी होने लगी।

मुझे याद है एक बार कीस्टोन के एक सफल कॉमेडियन ने कहा था,"और अब चूंकि हम पहुंच चुके हैं, चार्ली, ये सब क्या है।"

"कहां पहुंचे हैं?" मैंने पूछा था।

मुझे नाट गुडविन की सलाह याद आयी,"ब्रॉडवे से दूर ही रहना।" जहां तक मेरा सवाल है, ब्रॉडवे मेरे लिए रेगिस्तान है। मैंने उन पुराने दोस्तों के बारे में सोचा जिन्हें मैं सफलता के इस भव्य शिखर पर मिलना चाहूंगा। क्या मेरे पुराने दोस्त थे न्यू यार्क में या लंदन में या कहीं भी। मैं किसी खास दोस्त से मिलना चाहता था। शायद केली हैट्टी से। मैं जब से फिल्मों में आया था, मैंने उसके बारे में नहीं सुना था। उसकी प्रतिक्रिया मज़ेदार होती।

उस वक्त वह न्यू यार्क में अपनी बहन के पास रह रही थी। मिसेज फ्रैंक गॉल्ड। मैं फिफ्थ एवेन्यू तक चल कर गया। उसकी बहन का पता था - 834। मैं घर के बाहर एक पल के लिए ठिठका। हैरान हो कर सोचता रहा कि वह वहां होगी या नहीं लेकिन मैं दरवाजा खटखटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। शायद वह खुद बाहर आ जाये और मैं अचानक ही उसे मिल जाऊं। मैं वहां पर लगभग आधा घंटे तक इंतज़ार करता रहा, गली के चक्कर काटता रहा लेकिन कोई बाहर नहीं आया और न ही कोई अंदर ही गया।

मैं कोलम्बस सर्कल पर चाइल्ड्स रेस्तरां में चला गया और आटे के केक और कॉफी का आर्डर दिया। मुझे लापरवाही भरे अंदाज में सर्व किया गया। तब मैंने वेटर को मक्खन के एक और के लिए आर्डर दे दिया। तभी उसने मुझे पहचान लिया। उसके बाद तो बस चेन रिएक्शन शुरू हो गया और भीतर तथा बाहर खूब भीड़ जुट आयी। भीड़ में से किसी तरह से अपने लिए रास्ता बनाना पड़ा और वहां से जाती एक टैक्सी ले कर गायब हो जाना पड़ा।

दो दिन तक मैं बिना किसी से परिचित से मिले न्यू यार्क में भटकता रहा। मैं खुशगवार उत्तेजना और हताशा के बीच डूब उतरा रहा था। इस बीच बीमा डॉक्टर ने मेरी जांच कर ली थी। कुछ दिन बाद सिडनी होटल में आया। वह खुशी से फूला नहीं समा रहा था,"सब कुछ तय हो गया है। तुमने बीमा टेस्ट पास कर लिया है।"

इसके बाद शुरू हुईं करार पर हस्ताक्षर करने की औपचारिकताएंं। डेढ़ लाख का चेक लेते हुए मेरे फोटो लिये गये। उस शाम मैं टाइम्स स्क्वायर में भीड़ के बीच खड़ा था जब टाइम्स बिल्डिंग पर इलैक्ट्रिक साइन पर खबर आ रही थी - "चैप्लिन ने म्युचूअल के साथ 670000 डॉलर सालाना पर करार किया।"

मैं खड़ा देखता रहा और इसे वस्तुपरक हो कर पढ़ता रहा मानो ये सब किसी और के लिए हो। मुझ पर इतना कुछ बीत चुका था कि मेरी संवेदनाएं चुक गयी थीं।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 12

अकेलापन घिनौना होता है। इसमें उदासी का हल्का सा घेरा होता है, आकर्षित कर पाने या रुचि जगा पाने की अपर्याप्तता होती है इसमें। कई बार आदमी इसकी वज़ह से थोड़ा शर्मिंदा भी होता है। लेकिन कुछ हद तक अकेलापन हर आदमी के लिए थीम की तरह होता है। अलबत्ता, मेरा अकेलापन कुंठित करने वाला था क्योंकि मैं दोस्ती करने की सारी ज़रूरतें पूरी करता था। मैं युवा था, अमीर था और बड़ी हस्ती था। इसके बावज़ूद मैं न्यू यार्क में अकेला और परेशान हाल घूम रहा था। मुझे याद है मैं अंग्रेज़ी संगीत जगत की कॉमेडी स्टार, खूबसूरत जोसी कॉलिन्स से उस वक्त अचानक ही मिल गया था जब वह फिफ्थ एवेन्यू पर चली जा रही थी।

"ओह," उसने सहानुभूति पूर्ण तरीके से कहा,"आप अकेले क्या कर रहे हैं?"

मुझे ऐसा लगा मानो मुझे कुछ प्यारा सा अपराध करते हुए पकड़ लिया गया हो। मैं मुस्कुराया और बोला,"मैं तो बस, ज़रा दोस्तों के साथ लंच करने के लिए जा रहा था," लेकिन काश, मैंने उससे सच कह दिया होता कि मैं तन्हा हूं और उसे लंच पर ले जाना मुझे अच्छा लगता, सिर्फ मेरे संकोच ने ही मुझे ऐसा करने से रोका।

उसी दोपहर को मैं मैट्रोपॉलिटन ओपेरा हाउस के पास ही चहल कदमी कर रहा था कि मैं डेविड बेलास्को के दामाद मॉरिस गेस्ट से जा टकराया। मैं मॉरिस से लॉस एंजेल्स में मिल चुका था। उसने अपने कैरियर की शुरुआत टिकट ब्लैकी के रूप में की थी। ये धंधा उस वक्त बहुत फल फूल रहा था जब मैं पहली बार न्यू यार्क आया था। (टिकट ब्लैकी वह आदमी होता है जो थियेटर में सबसे अच्छी सीटें पहले खरीद कर रख लेता है और बाद में थियेटर के बाहर खड़ा हो कर फायदे में बेचता है।) मॉरिस ने थियेटर के धंधे में आशातीत सफलता हासिल की थी। इसका सर्वोच्च बिन्दु था उसके द्वारा बनायी गयी द मिरैकल जिसका निर्देशन मैक्स रेनहार्ड्ट ने किया था। मॉरिस स्लाविक था। चेहरा उसका पीला, और बड़ी बड़ी कंचे जैसी आंखें, बड़ा सा मुंह, और मोटे होंठ। वह ऑस्कर वाइल्ड का भद्दा संस्करण नज़र आता था। वह बहुत ही भावुक किस्म का आदमी था जो जब बोलता था तो ऐसा लगता था मानो आपको धमका रहा हो।

"आप कहां गायब हो गये थे श्रीमान," इससे पहले कि मैं जवाब दे पाता, वह आगे बोला, "आपने मुझे सम्पर्क क्यों नहीं किया?"

"मैंने उसे बताया कि मैं तो बस, ज़रा चहलकदमी कर रहा हूं।"

"क्या बात है। आपको अकेले नहीं होना चाहिये। आप जा कहां रहे हैं?"

"कहीं नहीं," मैंने दब्बूपन के साथ कहा,"बस, ज़रा साफ हवा ले रहा था।"

"आओ भी," उसने मुझे अपनी दिशा में मोड़ते हुए और अपनी बांह से मेरी बांह को घेरते हुए कहा। अब मेरे पास बचने का कोई उपाय नहीं था, "मैं आपको असली लोगों से मिलवाऊंगा। ऐसे लोग जिनमें आपको घुलना मिलना चाहिये।"

"हम कहां जा रहे हैं?" मैंने चिंतातुर हो कर पूछा।

"आप मेरे दोस्त करूसो से मिलने जा रहे हैं।" कहा उसने।

मेरी सारे प्रतिरोध बेकार गये।

"आज कारमैन का मैटिनी शो चल रहा है। उसमें करूसो और गेराल्डिन फरार हैं।"

"लेकिन मैं . ."

"भगवान के लिए, आप डरो नहीं, करूसो बहुत ही शानदार आदमी हैं। आपकी ही तरह सीधे सादे और इन्सानियत से भरे हुए। आपको देख कर वे खुशी के मारे झूम उठेंगे। वे आपकी तस्वीर लेंगे और भी बहुत कुछ करेंगे।"

मैंने उसे बताना चाहा कि मैं टहलना और थोड़ी देर ताज़ा हवा लेना चाहता हूं।

"इस मुलाकात से आपको ताज़ा हवा से भी ज्यादा आनंद मिलेगा।"

मैंने पाया कि मुझे मैट्रोपोलिटन ऑपेरा की लॉबी में से ठेल कर ले जाया जा रहा है। हम दोनों गलियारे में से दो खाली सीटों पर जा बैठे।

"यहां बैठिये," गेस्ट फुसफुसाया, "मैं इंटरवल में लौट आऊंगा।" तब वह खड़ा हुआ और गायब ही हो गया।

मैंने कारमैन का संगीत कई बार सुना था लेकिन अब जो कुछ बज रहा था, अपरिचित सा लगा। मैंने अपने कार्यक्रम पत्रक की तरफ देखा, और आज के दिन के लिए कारमैन की ही घोषणा की गयी थी। लेकिन वे कुछ दूसरी ही चीज़ बजा रहे थे। वह भी मुझे परिचित सी ही लग रही थी और कुछ कुछ रिगालेटो की तरह लग रही थी। मैं भ्रम में पड़ गया। अंक की समाप्ति से दो मिनट पहले गेस्ट चुपके से मेरे साथ वाली सीट पर लौट आया।

"क्या ये कारमैन है?" मैं फुसफुसाया।

"हां," उसने जवाब दिया, "क्या आपके पास कार्यक्रम नहीं है?"

उसने मुझसे कार्यक्रम छीना, "हां," वह फुसफुसाया,"करूसो और गेराल्डिन फरार, बुधवार, मैटिनी शो, कारमैन, ये रहा।"

परदा नीचे गिरा और वह मुझे लिये दिये सीटों के बीच में से बगल वाले दरवाजे से मंच के पीछे की तरफ ले चला।

बिना आवाज़ के बूटों में आदमी लोग सीन सिनरी को उसी तरह से शिफ्ट कर रहे थे जिस तरह से मुझे हमेशा लगती रही। वहां का माहौल किसी दुखदायी स्वप्न की तरह था। इसमें से नुकीली दाढ़ी वाला, और जासूसी कुत्ते जैसी आंखों वाला एक लम्बा, छरहरा शांत और गंभीर आदमी वहां खड़ा था। उसने मुझे एक ऊंचाई से देखा। वह मंच के बीचों बीच खड़ा था। परेशान हाल। उसके पास से एक सीनरी आ रही थी और दूसरी जा रही थी।

"मेरे अच्छे दोस्त सिग्नोर गाटी कसाज़ा कैसे हैं?" अपना हाथ बढ़ाते हुए गेस्ट ने कहा।

गाटी कसाज़ा ने हाथ मिलाया और एक उदास मुद्रा बनायी और कुछ बुड़बुड़ाये। तब गेस्ट मेरी तरफ मुड़ा,"आपका कहना सही था, ये कारमैन नहीं है, रिगोलेटो है। अंतिम पलों में गेराल्डिन फरार ने फोन करके बताया कि उसे जुकाम है इसलिए नहीं आ पायेगी। ये चार्ली चैप्लिन हैं," उसने कहा,"मैं इन्हें करूसो से मिलवाने के लिए ले जा रहा हूं। हो सकता है, इनका जी बहल जाये। आइये हमारे साथ।" लेकिन गाटी कसाज़ा ने अफ़सोस के साथ अपना सिर हिलाया।

"उनका ड्रेसिंग रूम किस तरफ है?"

काटी कसाज़ा ने स्टेज मैनेजर को बुलवाया और कहा,"ये आपको बता देगा।"

मेरी छठी इंद्रीय ने मुझे सचेत किया कि करूसो को इस वक्त डिस्टर्ब न किया जाये, और ये बात मैंने गेस्ट को बतायी।

"पागल मत बनो," उसने जवाब दिया।

हमने पैसेज में से उनके ड्रेसिंग रूम के लिए चले।

"किसी ने बत्ती बुझा दी है," स्टेज मैनेजर ने कहा,"एक पल के लिए रुकिये, मैं स्विच तलाशता हूं।

"सुनो," गेस्ट ने कहा,"कुछ लोग मेरा इंतज़ार कर रहे हैं, इसलिए मुझे निकलना होगा।"

"तुम मुझे छोड़ कर मत जाओ।" मैं जल्दी से बोला।

"आपको कुछ नहीं होगा।"

मैं जवाब ही दे पाता, इससे पहले ही वह गायब हो गया। स्टेज मैनेजर ने एक तीली जलाई। "हम पहुंच गये हैं," कहा उसने, और धीरे से दरवाजा ठकठकाया। भीतर से इतावली में ज़ोर से कुछ कहा गया।

मेरे दोस्त ने इतालवी में ही जवाब दिया। जवाब के आखिर में "चार्ली चैप्लिन" कहा गया।

एक और धमाका।

"सुनो," मैं फुसफुसाया, "फिर कभी सही।"

"नहीं, नहीं," उसने कहा, अब उसे एक मिशन पूरा करना था। दरवाजा चीं की आवाज के साथ खुला और अंधेरे में से ड्रेसर ने झांका। मेरे दोस्त ने परेशानी भरे स्वर में बताया कि मैं कौन हूं।

"ओह," ड्रेसर ने कहा, और दरवाजा फिर बंद कर दिया। दरवाजा फिर से खुला, "भीतर आइये।"

इस छोटी सी विजय से मेरे दोस्त का सीना चौड़ा हो गया। जब हम भीतर पहुंचे तो करूसो अपनी ड्रेसिंग टेबल पर एक शीशे के सामने बैठे अपनी मूंछे कुतर रहे थे। हमारी तरफ उनकी पीठ थी।

"अहा महाशय," मेरे दोस्त ने उल्लसित होते हुए कहा,"ये मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है श्रीमन, कि मैं आपके सामने सिनेमा के करूसो, मिस्टर चार्ली चैप्लिन को प्रस्तुत कर रहा हूं।"

करूसो ने दर्पण में सिर हिलाया और मूंछे कुतरते रहे।

आखिरकार वे उठे और अपनी बेल्ट कसते हुए ऊपर से नीचे तक मेरा मुआइना किया।

"आप तो बहुत सफल आदमी हैं, नहीं क्या, खूब पैसा कमाया होगा।"

"हां," मैं मुस्कुराया।

"आप तो बहुत ही खुश आदमी होंगे।"

"हां, बेशक," तब मैंने स्टेज मैनेजर की तरफ देखा तो वे उल्लसित हो कर ये संकेत देते हुए बोले कि जाने का समय हो गया है।

मैं खड़ा हुआ और तब करूसो पर मुस्कुराया,"मैं टोरेडोर दृश्य मिस नहीं करना चाहता।"

"वो कारमैन है। ये रिगोलेटो है।" मुझसे हाथ मिलाते हुए वे बोले।

"ओह, हां हां हां जी हां।"

मैंने परिस्थितियों में जितना संभव था, न्यू यार्क को अपने भीतर उतार लिया था और ये सोचा कि इससे पहले कि खुशियों के मेले का रंग फीका होना शुरू हो, यहां से कूच कर देना ही बेहतर होगा।इसके अलावा, मेरी चिंता अपने नये करार के अंतर्गत काम शुरू करने की भी थी।

जब मैं लॉस एंंजेल्स लौटा तो मैं फिफ्थ स्ट्रीट और मेन पर एलेक्जेंड्रिया होटल में ठहरा। ये उस वक्त शहर का सबसे ज्यादा ठाठ बाठ वाला होटल हुआ करता था। ये भव्य अंलकरण शैली वाला होटल था। लॉबी में लगे संगमरमर के स्तम्भ, और क्रिस्टल के झाड़ फानूस उसकी शोभा में चार चांद लगाते थे। लॉबी के बीचों बीच दस लाख डॉलर का शानदार कालीन बिछा हुआ था। इसे बड़े बड़े फिल्मी सौदों का मक्का मदीना कहा जाता था। इसका ये नाम मज़ाक में ही पड़ गया था क्योंकि यहां पर शेखी बघारने वाले और आधे अधूरे प्रोमोटर वहां पर खड़े हो कर लाखों करोड़ों डॉलर से कम की तो बात ही न करते।

इसके बावजूद, अब्राहमसन ने इसी कालीन पर अपनी किस्मत का सितारा बुलंद किया था। वह स्टूडियो किराये पर ले कर और बेरोज़गार कलाकारों को काम धंधे पर रख कर सस्ते में फिल्में बनाता था और उन सस्ती स्टेट राइट पिक्चरों को बेचा करता था। इस तरह की फिल्मों को चवन्नी छाप दर्शकों की, पावर्टी रो वाली फिल्में कहा जाता था। स्वर्गीय हैरी कॉन, कोलम्बिया पिक्चर्स के अध्यक्ष भी इन चवन्नी छाप फिल्मों में नज़र आया करते थे।

अब्राहमसन यथार्थवादी आदमी थे। वे इस बात को स्वीकार करते थे कि वे इस किसी कला वला में नहीं, सिर्फ धन कमाने में दिलचस्पी रखते हैं। वे भारी रूसी लहजे में बोलते थे और जिस वक्त अपनी फिल्मों का निर्देशन कर रहे होते, वे मुख्य अभिनेत्री पर चिल्लाते, "ठीक है, पीच्छे की तरफ से आग्गे की तरफ आओ। अब्ब शीशे के सामने आवो, और अपणे आप को देक्खो। ओह, ऐसे नहीं जी, अब्ब आप बीस फुट तक इधर उधर चलो। (मतलब मस्ती से, बीस फिट फिल्म के चलने तक)।" आम तौर पर उनकी नायिका भरे भरे सीने वाली छप्पन छुरी मार्का कोई युवा लड़की होती और उसने ढीला सा खुले गले की कोई पोशाक पहनी होती और भरपूर अंग प्रदर्शन करती। वह नायिका से कहता कि कैमरे की तरफ देक्खो, नीचे झुक्को और अपने तस्में बांधो, या झूला झूलो, या कुत्ते को सहलाओ। मतलब, किसी न किसी तरह सीने के उभार दिखाओ। इसी तरीके से अब्राहमसन ने करोड़ों डॉलर पीटे।

दस लाख वाला ये कालीन सिड ग्राउमैन को सैन फ्रांसिस्को से यहां तक लाया ताकि वे अपनी लॉस एंजेल्स की दस लाख डॉलर की बिल्डिंग का सौदा कर सकें। जैसे जैसे शहर सम्पन्न होता गया, वे भी सम्पन्न होते चले गये। उन्हें अनोखे प्रचार का बहुत शौक था। एक बार उन्होंने लॉस एंजेल्स को हैरान ही कर दिया था। उन्होंने दो टैक्सियां किराये पर लीं। टैक्सियां सड़कों पर दौड़ने लगीं और उनमें बैठे हुए सवार खाली कारतूसों से एक दूसरे पर गोलियां चलाने का नाटक करते रहे। टैक्सियों के पीछे इश्तहार लगे हुए थे जिन पर लिखा था, ग्राउमैन की मिलियन डॉलर थियेटर की आपराधिक दुनिया।

वे नयी नयी शोशेबाजियां खोजने और करने में माहिर थे। सिड का एक अद्भुत आइडिया ये था कि अपने चीनी थियेटर के बाहर गीले सीमेंट पर हॉलीवुड के सितारों के हाथों तथा पैरों के निशान अंकित कराये जायें, कुछ कारणों से सितारों ने निशान दिये भी। बाद में ये ऑस्कर पाने जैसा सम्मान पाने की महत्त्वपूर्ण बात हो गयी थी।

जिस दिन मैं एलेक्जेंड्रिया होटल पहुंचा, होटल के डेस्क क्लर्क ने मुझे विख्यात अभिनेत्री, मिस माउदे फीली की ओर से एक खत दिया। वे सर हेनरी इर्विंग और विलियम जिलेट की प्रमुख अदाकारा रह चुकी थीं। उन्होंने मुझे बुधवार को हॉलीवुड होटल में पावलोवा के सम्मान में दिये जाने वाले डिनर में आमंत्रित किया था। बेशक मैं निमंत्रण पा कर आह्लादित था। हालांकि मैं कभी मिस फीली से मिला नहीं था, मैंने पूरे लंदन में उनके पोस्टकार्ड देखे थे और उनके सौन्दर्य का प्रशंसक था।

डिनर से एक दिन पहले मैंने अपने सचिव से कहा कि वह फोन करके पूछ ले कि ये पार्टी अनौपचारिक है या मैं काली टाई लगा कर आऊं।

"कौन बात कर रहे हैं?" मिस फीली ने पूछा।

"मैं मिस्टर चैप्लिन का सचिव बोल रहा हूं और बुधवार की शाम के उनके आपके साथ होने वाले डिनर के बारे में पूछ रहा हूं।"

ऐसा लगा कि मिस फीली सतर्क हो गयीं,"ओह, निश्चित ही अनौपचारिक।" कहा उन्होंने।

मिस फीली हॉलीवुड होटल की पोर्च में मेरी अगवानी करने के लिए मौजूद थीं। वे हमेशा की तरह प्यारी लग रही थीं। हम आधे घंटे तक इधर उधर की बातें करते रहे। इसके बाद मैं हैरान हो कर सोचने लगा कि बाकी मेहमान कब आयेंगे।

आखिरकार उन्होंने कहा,"हम चलें डिनर के लिए चलें?"

मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने डाइनिंग हॉल में पाया कि वहां पर सिर्फ हम दो ही थे।

आकर्षक होने के अलावा मिस फीली बेहद अलग थलग रहने वाली महिला थीं। मेज़ के पार उनकी तरफ देखते हुए मैं इस बात को ले कर हैरान होता रहा कि इस तरह की मुलाकात का मकसद क्या हो सकता है। मेरे दिमाग में शरारतपूर्ण और गंदे ख्याल आने लगे लेकिन ऐसा लगा कि वे मेरी अशोभनीय अटकलों पर उनका कोई ध्यान नहीं था। इसके बावजूद मैंने यह पता लगाने के लिए अपने कान खड़े कर लिये कि मुझसे आखिर उम्मीद क्या की जा रही है।

"ये वाकई मज़ेदार है," मैंने उत्तेजना से कहा, "इस तरह से आपके साथ खाना खाना!"

वे सौम्यता से मुस्कुरायीं।

"चलो, हम डिनर के बाद कुछ मौज मज़ा करें," कहा मैंने,"चलो किसी नाइट क्लब में चलें या ऐसा ही कुछ करें।"

उनके चेहरे पर मामूली सी अलार्म की झांई उभरी, और वे हिचकिचायीं,"मुझे डर है कि मुझे आज जल्दी ही सोने के लिए जाना पड़ेगा क्योंकि मुझे कल जल्दी ही मैकबेथ की रिहर्सल शुरू करनी है।"

मेरे कान खड़े हुए। मैं पूरी तरह से हैरान परेशान था। संयोग से खाने का पहला कोर्स आ गया और हम थोड़ी देर तक चुपचाप खाते रहे। कुछ न कुछ जरूर गड़बड़ है, ये हम दोनों ही जानते थे। मिस फिली हिचकिचायीं,"मुझे अफसोस है कि आज की शाम आपके लिए बहुत फीकी रही।

"नहीं तो, शाम तो बहुत ही शानदार गुज़री।"

"मुझे अफसोस है कि आप तीन महीने पहले उस वक्त यहां पर नहीं थे जब मैंने पावलोवा के सम्मान में एक डिनर दिया था। मुझे पता है कि वे आपके दोस्त हैं। लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि उस वक्त आप यहां पर नहीं थे।"

"माफ कीजिये," मैंने कहा, और तपाक से जेब से मिस फिली का पत्र निकाला। पहली बार मैंने उस पर तारीख देखी। तब मैंने पत्र उन्हें थमाया, "देखिये," मैं हँसा,"मैं तीन महीने देरी से पहुंचा हूं।"

1910 में लॉस एंजेल्स वेस्टर्न के अगुआ लोगों और धनकुबेरों के युग के अंत का समय था और उनमें से अधिकतर ने मेरा सत्कार किया था।

इनमें से एक स्वर्गीय विलियम ए क्लार्क थे। वे करोड़पति असामी थे और रेल के महकमे से जुड़े थे और कॉपर किंग माने जाते थे। वे शौकिया संगीतकार थे जो फिलहॉरमोनी आर्केस्ट्रा को हर बरस 150000 डॉलर का दान दिया करते थे। वे खुद उस आर्केस्ट्रा में बाकी लोगों के साथ दूसरा वायलिन बजाया करते थे।

मौत की घाटी वाले स्कॉटी एक फैन्टम चरित्र थे जो हँसमुख, मोटे से चेहरे वाले आदमी थे। वे दस गैलन हैट, लाल कमीज़, और डंगरी पहना करते थे। वे हर रात स्प्रिंग स्ट्रीट में दारू के अड्डों और नाइट क्लबों में हज़ारों डॉलर लुटाया करते, पार्टियां देते, वेटरों को सौ सौ डॉलर की टिप दिया करते और फिर अचानक ही गायब हो जाते। फिर वे महीनों बाद वापिस आते और फिर से पार्टियां देने लगते। ऐसा वे बरसों तक करते रहे। कोई भी नहीं जानता था कि उनके पास पैसे आते कहां से थे। कुछ लोगों का विश्वास था कि डैथ वैली में उनकी कोई गुप्त खदान थी। लोगों ने उनका पीछा करने की कोशिश की लेकिन वे हमेशा उन्हें वहां पर चकमा दे देते और आज तक कोई भी उनका रहस्य नहीं जान पाया है। 1940 में उनकी मृत्यु से पहले उन्होंने डैथ वैली में रेगिस्तान के बीचों बीच एक बहुत ही भव्य महलनुमा घर बनवाया था। ये बहुत ही शानदार इमारत थी जिसके बनने में पांच लाख डॉलर से भी ज्यादा लगे थे। आज भी ये इमारत धूप में खंडहर सी खड़ी है।

पेसाडोना की मिसेज क्रेनेय गैट्स चार करोड़ डॉलर की हैसियत वाली महिला थीं जो घनघोर समाजवादी थीं और कई अराजकों, समाजवादियों और इंडस्ट्रियल वर्कर्स ऑफ द वर्ल्ड के सदस्यों की कानूनी सुरक्षा के लिए धन दिया करती थीं।

ग्लेन कर्टिस उन दिनों सेनेट के लिए काम किया करते थे और हवाई जहाज के स्टंट किया करते थे और बेसब्री से आज जिसे गेट कर्टिस एयरक्राफ्ट इंडस्ट्रीज कहते हैं, उसके लिए बेताबी से वित्त जुटाने का काम देखा करते थे।

ए पी गियानिनी दो छोटे बैंक चलाया करते थे। बाद में जा कर ये युनाइटेड स्टेट्स के सबसे बड़े वित्तीय संस्थानों में से एक, द बैंक ऑफ अमेरिका बने।

हावर्ड ह्यूज को अपने पिता, आधुनिक आयल ड्रिल के आविष्कारक से बहुत बड़ी सम्पदा विरासत में मिली। हावर्ड एयराक्राफ्ट उद्योग में चले गये और उन लाखों डॉलरों को करोड़ों डॉलर में बदला। वे सनकी आदमी थे जो अपना कारोबार एक घटिया से होटल के कमरे से टेलिफोन के जरिये चलाया करते थे और वे शायद ही किसी से मिलते थे। वे मोशन फिल्मों में भी हाथ आजमाने आये, और हैल्स एंंजेल्स जैसी फिल्मों से अपार सफल्ता हासिल की। इस फिल्म के नायक स्वर्गीय जीन हारलो थे।

उन दिनों रोज़ के आनंद उठाने के मेरे ठीये होते थे, वेर्नान में जैक डॉयल की शुक्रवार की रात की कुश्तियां देखना, सोमवार की रातों को ऑरफीम थियेटर में रंगारंग कार्यक्रम देखना, गुरुवार के दिनों में मोरोस्को स्टॉक कम्पनी के कार्यक्रम देखना और कभी कभार, क्लूंस फिलहार्मोनिक ऑडिटोरियम में कोई सिम्फनी सुनना।

लॉस एंजेल्स का एथलेटिक क्लब एक ऐसा केन्द्र था जहां पर स्थानीय सम्पन्न वर्ग और कारोबारी लोग कॉकटेल के समय इकट्ठे होते। ये जगह विदेशी बस्ती की तरह लगती।

एक नौजवान जो बिट बजाता था, लाउंज में अकेले बैठा रहता। उसका नाम वेलन्टिनो था और वह हॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने आया था लेकिन कुछ खास कर नहीं पा रहा था। एक अन्य बिट प्लेयर जैक गिल्बर्ट ने उससे मेरा परिचय कराया था। उसके बाद मैंने एकाध बरस तक वैलन्टिनो को नहीं देखा था। इस बीच वह अचानक स्टार बन गया था। अगली बार जब हम मिले तो वह दूसरा ही शख्स था। तब मैंने उससे कहा,"जब हम पिछली बार मिले थे उसके बाद तो तुम अमर लोगों की कतार में जा बैठे हो।" इसके बाद वह हँसा और अपना मुखौटा उतार फेंका और काफी दोस्ताना व्यवहार करने लगा।

वैलन्टिनो में उदासी का तत्व था। उसने अपनी सफलता को गरिमापूर्वक तरीक से स्वीकार किया। लगता था मानो वह सफलता के बोझ से दबता चला जा रहा है। वह समझदार, शांत और बिना किसी टीम टाम के था और औरतों का बहुत बड़ा रसिया था। लेकिन वहां उसकी दाल ज्यादा नहीं गलती थी। और जिन औरतों से उसने शादी की थी, वे उससे खराब तरीके से पेश आतीं। उसकी एक शादी के तुंत बाद ही उसकी बीवी ने उसी की डेवलेपिंग लेबारेटरी में काम करने वाले आदमियों में से एक के साथ इश्क लड़ाना शुरू कर दिया। उसके साथ वह डार्क रूम में ही गायब हो जाती। वैलेन्टिनो में औरतों के प्रति जितना आकर्षण था, किसी में भी नहीं रहा होगा। और कोई दूसरा आदमी भी ऐसा नहीं होगा जिसे औरतों ने इतना ज्यादा धोखा दिया हो।

अब मैंने 670000 डॉलर का करार पूरा करना शुरू करने की तैयारियां शुरू कर दीं। मिस्टर कॉलफील्ड, जो म्यूचुअल फिल्म कार्पोरेशन के प्रतिनिधि थे और सारे कारोबारी इंतज़ाम देख रहे थे, ने हॉलीवुड के बीचों बीच एक स्टूडियो किराये पर लिया। सक्षम सितारों की कोई कमी नहीं थी, उनमें एडना पुर्विएंंस, एरिक कैम्पबेल, हेनरी बर्गमैन, एल्बर्ट ऑस्टिन, लॉयड बेकन, जॉन रैंड, फ्रैंक जो कोलमैन और लिओ व्हाइट, इन सबके साथ मुझे काम शुरू करने का पूरा विश्वास था।

मेरी पहली फिल्म द फ्लोर वॉकर बहुत अधिक सफल गयी। इसका सेट एक डिपार्टमेंट स्टोर का था जिसमें मैंने चलती हुई सीढ़ियों पर पीछा करने का दृश्य दिखाया। जब सेनेट ने इस फिल्म को देखा तो बोले,"हे भगवान, मुझे कभी चलती हुई सीढ़ियों का ख्याल क्यों नहीं आया।"

जल्दी ही मैं अपनी पराकष्ठा पर था और हर महीने दो रील की एक फिल्म बना कर दे रहा था। फ्लोर वॉकर के बाद, जो फिल्में आयीं, वे थीं, द फायरमैन, द वैगाबाँड, वन ए एम, द काउंट, द पॉनशॉप, बिहाइंड द क्रीन, द रिंक, ईज़ी स्ट्रीट, द क्योर, द इमिग्रैंट, द एडवंचरर, इन बारह कॉमेडी फिल्मों को बनाने में कुल सोलह महीने लगे और इसमें वह समय भी शामिल था जो ठंड या मामूली बाधाओं की वजह से गया।

कई बार कोई कहानी समस्या खड़ी देती और मैं उसने सुलझाने में मुश्किल पाता। ऐसे मौकों पर मैं काम बंद कर देता और सोचने की कोशिश करता, इस यातना में अपने ड्रेसिंग रूम में चहल कदमी करता या सेट के पिछवाड़े घंटों तक बैठा रहता, और समस्या से जूझता रहता। मेरी तरफ देख रहे मैनेजमैंट के या स्टाफ के किसी आदमी को देखते ही मेरी देह सुलग जाती, खास तौर पर इसलिए भी कि म्युचूअल निर्माण की लागत अदा कर रही थी और मिस्टर कॉलफील्ड वहां पर यह देखने के लिए मौजूद थे कि सब कुछ ठीक ठाक चलता रहे।

दूर से ही मैं उन्हें देख लेता कि वे लोगों के बीच से हो कर आ रहे हैं। मैं अच्छी तरह से जानता था कि वे क्या सोच रहे होंगे, कुछ भी नहीं हो रहा है और ऊपरी खर्चे बढ़ते जा रहे हैं। और मैं उन पर मीठी छुरी से वार कर देता कि जिस वक्त मैं सोच रहा होऊं, उस वक्त किसी का आस पास होना या ये सोचना कि वे चिंता कर रहे हैं, मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।

बेकार जा चुका दिन के खत्म होने के बाद, जब मैं स्टूडियो छोड़ कर जा रहा होता, वे जानबूझ कर अचानक ही मुझसे टकरा जाते और पूछते,"और कैसे चल रहा है, बात बनी कुछ?"

"वाहियात, मेरा ख्याल है, मैं चुक गया हूं, मैं कुछ सोच ही नहीं पाता।"

और वे खोखली आवाज़ निकालते जिसका मतलब हँसी होता,"चिंता मत करो, सब ठीक हो जायेगा।"

कई बार ऐसा होता कि समस्या का हल शाम को उस वक्त सूझता जिस वक्त मैं हताशा के आलम में होता और सब कुछ पर सोच चुका होता और दरकिनार कर चुका होता। और तभी हल अचानक ही सामने आ जाता मानो संगमरमर के फर्श पर से धूल की मोटी पर्त हटा दी गयी हो और सामने चमचमाता फर्श निकल आया हो जिसे मैं कब से तलाश रहा था। तनाव गायब हो जाता और सारे स्टूडियो में चहल पहल मच जाती। देखने की बात होती कि मिस्टर कॉलफील्ड के चेहरे पर हँसी कैसे आती है।

हमारी किसी भी पिक्चर में कभी भी कोई कलाकार जख्मी नहीं हुआ। हिंसा की भी बाकायदा रिहर्सल की जाती और उसे कोरियोग्राफी की तरह माना जाता।

चेहरे पर थप्पड़ मारने में भी ट्रिक इस्तेमाल की जाती। कितनी भी झड़प हो, हर कोई जानता था कि अंत में क्या होने वाला है। सब कुछ समय के हिसाब से चलता। घायल होने के लिए कोई बहाना नहीं चलता क्योंकि फिल्म में सभी इफेक्ट हिंसा, भूकंप, जहाज का टूटना, और बड़ी बड़ी घटनाएंं, सब को झूठ मूठ किया जा सकता है।

उस पूरी सीरीज़ में मात्र एक ही दुर्घटना हुई।

ये बात ईज़ी स्ट्रीट की है। जिस वक्त मैं स्ट्रीट लैम्प को जलाने के लिए उसे एक बड़ी सी घिरनी पर खींच रहा था तो लैम्प का ऊपरी हिस्सा गिर गया और उसका इस्पात का नुकीला टुकड़ा मेरी नाक के सिरे पर आ लगा जिसकी वजह से मुझे दो टांके लगवाने पड़े।

मेरा ख्याल है कि म्युचूअल के करार को पूरा करना मेरे कैरियर के सबसे अच्छा अरसा था। मैं अपने आप को हलका और बिना किसी बोझ के महसूस कर रहा था। मैं सिर्फ सत्ताइस बरस का था और मेरे सामने अनंत सम्भावनाएं थीं, और थी मेरे सामने एक दोस्तानी दुनिया। थोड़े से ही अरसे में मैं करोड़पति हो जाऊंगा। ये सारी बातें कुछ कुछ पगला देने वाली थीं। धन मेरी तिजोरियों में बरस रहा था। हर हफ्ते मुझे दो हज़ार डॉलर मिल रहे थे जो लाखों में बदल रहे थे। इस समय मेरी हैसियत चार लाख डॉलर की थी और अब पांच लाख की। मैं कभी इस सब की कल्पना भी नहीं कर सकता था।

मुझे जे पी मोर्गन के एक दोस्त मैक्सिन ईलियट की याद है। उसने एक बार मुझसे कहा था, धन तभी तक अच्छा है जब भुला दिया जाये।

लेकिन ये कुछ ऐसी शै भी है जिसे याद रखा जाये।

इस बात में कोई शक नहीं कि सफल आदमी अलग अलग दुनिया में रहते हैं। जब मैं लोगों से मिलता हूं तो उनके चेहरे दिलचस्पी से दिपदिपाने लगते हैं। हालांकि मैं नया नया रईस बना था, मेरी राय को गम्भीरता से लिया जाता था। जो परिचित थे वे मुझसे प्रगाढ़ संबंध बनाने के लिए लालायित रहते और मेरी समस्याएंं सुलझाने के लिए वैसे ही आगे आते मानो मेरे नातेदार हों। ये सब बहुत चाटुकारिता लगती लेकिन मेरी प्रकृति इस तरह की आत्मीयता को घास नहीं डालती। मैं दोस्तों को वैसे ही पसंद करता हूं जैसे संगीत को पसंद करता हूं। अलबत्ता, इस तरह की आज़ादी कभी कभार के अकेलेपन की कीमत पर ही होती।

एक दिन, जब मेरा करार पूरा होने ही वाला था, मेरा भाई एथलेटिक क्लब में मेरे बेडरूम में आया और प्रसन्नता से बोला,"सुनो भई चार्ली, अब तुम करोड़पतियों की जमात में आ गये हो। मैंने अभी अभी तुम्हारे लिए एक सौदा तय किया है जिसमें तुम फर्स्ट नेशनल के लिए दो दो रील की आठ कॉमेडी फिल्में बनाओगे और तुम्हें इसके एवज में बारह लाख डॉलर मिलेंगे।

मैंने अभी अभी स्नान किया था और अपनी कमर पर तौलिया लपेटे अपने वायलिन पर द टेल ऑफ हॉफमैन की धुन बजा रहा था। "हम . . हम. . मेरा ख्याल है, ये वाकई शानदार है, नहीं क्या!!"

सिडनी अचानक ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा,"ये बात मेरे संस्मरणों में जायेगी। तुम, चार्ली, अपनी चूतड़ पर तौलिया लपेटे, वायलिन बजा रहे हो, और मैं तुम्हें जब बताता हूं कि मैंने तुम्हारे लिए साढ़े बारह लाख डॉलर का करार किया है, तुम्हारी ये प्रतिक्रिया!!"

मैं स्वीकार करता हूं कि इसमें आडम्बर का थोड़ा सा तंज था क्योंकि इसमें एक काम भी था कि ये सारा धन कमाया जाना था।

सारी बातों के बावजूद, धन सम्पदा के इन सारे वायदों ने मेरी जीवन शैली पर कोई प्रभाव नहीं डाला। मैं धन के आगे झुकता था लेकिन इसके इस्तेमाल के आगे नहीं। जो धन मैं कमाता था वो काल्पनिक था, दंत कथा की तरह था। ये सब आंकड़ेबाजी थी क्योंकि दरअसल ये धन मैंने सचमुच देखा भी नहीं था। इसलिए मुझे कुछ ऐसा करना था कि सिद्ध हो सके कि मेरे पास ये धन है। इसलिए मैंने एक सचिव रखा, एक खिदमतगार और एक शोफर रखे। एक कार ली। एक दिन एक शोरूम के आगे से गुज़रते हुए मैंने एक सात सीटर यात्री कार देखी। उन दिनों अमेरिका में ये सबसे अच्छी कार मानी जाती थी। वो इतनी शानदार और भव्य लग रही थी कि मुझे ये लगा ही नहीं कि ये बिक्री के लिए हो सकती है। अलबत्ता, मैं दुकान में गया और पूछा," कितने की है?"

"चार हज़ार नौ सौ डॉलर"

"पैक कर दीजिये," मैंने कहा।

वह आदमी हैरान परेशान, उसने इतनी जल्दी हो गयी बिक्री में कुछ रोक लगाने की नियत से कहना चाहा, "क्या आप इंजिन वगैरह नहीं देखना चाहेंगे?"

"इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि मैं उनके बारे में कुछ भी तो नहीं जानता।" मैंने जवाब दिया। अलबत्ता, मैंने अंगूठे से एक टायर दबा कर अपनी व्यावसायिक समझ दिखा दी।

लेनदेन बहुत आसान था। इसका मतलब एक कागज के टुकड़े पर अपना नाम लिखना था और कार मेरी हो गयी।

पैसे का निवेश करना एक समस्या थी और मैं इनके बारे में कुछ भी नहीं जानता था। सिडनी अलबत्ता, इन सारी चीजों के नामों से वाकिफ था। वह बुक वैल्यू, पूंजीगत लाभ, वरीयता प्राप्त और दूसरे स्टॉक, ए और बी रेटिंग, कर्न्विटबल स्टॉक और बाँड, औद्यौगिक कम्पनियों, और सेविंग बैंकों की कानूनी प्रतिभूतियों के बारे में खूब जानता था। उन दिनों निवेश करने के अवसरों की कोई कमी नहीं थी। लॉस एंंजेल्स के ज़मीन जायदाद के एक एजेंट ने एक बार मुझसे कई बार कहा कि मैं उसके साथ भागीदारी करके लॉस एंंजेल्स घाटी में ज़मीन का एक टुकड़ा खरीद लूं और दोनों पच्चीस पच्चीस हज़ार डॉलर का निवेश करें। अगर मैंने उस परियोजना में निवेश कर लिया होता तो मेरा हिस्सा बढ़ कर पांच कऱोड़ डॉलर का हो चुका होता क्योंकि वहां पर तेल निकल आया था और वह कैलिफोर्निया के सबसे अमीर क्षेत्रों में से एक हो गया था।

उस वक्त स्टूडियो में कई लब्ध प्रतिष्ठ विभूतियाँ पधारीं। मेलबा, लिओपोल्ड गोडोवस्की और पेडेरेवस्की, निजिंस्की और पावलोवा।

पेडेरेवस्की बहुत ही मोहक व्यक्तित्व के मालिक थे लेकिन उनमें थोड़ा सा बुर्जुआपन था। वे गरिमा पर कुछ ज्यादा ही ज़ोर देते थे। अपने लम्बे बालों, नीचे की तरफ झुकती चली आयी मूंछों और निचले होंठ के नीचे दाढ़ी के बालों के नन्हें से गुच्छे की वज़ह से वे खासे आकर्षक लगते थे लेकिन मुझे ऐसा लगता मानो उनकी इस छवि से उनके रहस्यमय घमंड की कोई झलक सामने आती थी। जब वे पिआनो बज़ाने बैठते तो घर भर की बत्तियों की रौशनी धीमी कर देते, माहौल ग़मगीन और रहस्यमय हो जाता। और जब वे अपने पिआनो स्टूल पर बैठने को होते तो मुझे हमेशा ऐसा लगता मानो उनके नीचे से किसी को स्टूल खींच लेना चाहिए।

युद्ध के दौरान उनसे मेरी मुलाकात न्यू यार्क में रिट्ज होटल में हुई थी। मैं उनसे बहुत उत्साह से मिला; पूछा था मैंने कि क्या वे वहाँ कोई कार्यक्रम देने के सिलसिले में आये हुए हैं। आडम्बरी गम्भीरता के साथ उन्होंने जवाब दिया,"जब मैं देश की सेवा में होता हूँ तो कार्यक्रम नहीं दिया करता।"

पेडेरेवस्की पोलैण्ड के प्रधानमंत्री बने, लेकिन उस वक्त मेरे ख्यालात क्लेमेंसीयू की तरह ही थे, जिन्होंने दुर्भाग्यपूर्ण वारसा संधि पर एक सम्मेलन के दौरान उनसे कहा था, "क्यूं कर हो गया कि आपके जैसा कलाकार इतना नीचे गिर गया कि उसे राजनीतिज्ञ बन जाना पड़ा?"

दूसरी तरफ महान पिआनो वादक लिआपोल्ड गोडोवस्की सरल-निच्छल और मज़ाकिया किस्म के आदमी थे। वे छोटे कद का, मुस्कुराते हुए गोल चेहरे वाले शख्स थे। लॉस एजेंल्स में कार्यक्रम देने के बाद उन्होंने वहीं पर एक मकान किराये पर ले लिया था, और मैं अक्सर उनसे मिलने चला जाता। रविवार के दिन यह मेरा सौभाग्य होता कि मैं उन्हें रियाज़ करते सुन सकता था और उनके बेहद छोटे हाथों में छुपे असाधारण जादू और तकनीक के दर्शन कर पाता था।

निजिंस्की भी स्टूडियो में आया करते। उनके साथ उनके रूसी बैले के सदस्य थे। वे गम्भीर किस्म के शख्स थे; आकर्षक, सुंदर चेहरा, उनके गालों की हड्डियां ऊपर की तरफ उठी हुई थीं और आँखें में उदासी तारी रहती। उनकी ढब से लगता, साधारण वस्त्रों में कोई भिक्षु चला आ रहा है। हम द क्योर की शूटिंग कर रहे थे। वे कैमरे के पीछे बैठ गये और मुझे काम करते हुए देखने लगे। मैं जो दृश्य शूट कर रहा था, वह मेरे हिसाब से मज़ाकिया था लेकिन बंदा मुस्कुरा के न दिया। हालांकि आसपास जुट आये लोग हँस रहे थे लेकिन निजिंस्की उदास, और उदास होते चले गये। जब वे जाने लगे तो मेरे पास आये, हाथ मिलाया और अपनी खोखली आवाज़ में बोले कि मैं बता नहीं सकता, आपका काम देख कर मुझे कितना आनन्द मिला है। उन्होंने पूछा कि क्या मैं यहाँ फिर आ सकता हूँ?

"बेशक," कहा मैंने। वे दो और दिन मिट्टी के माधो बने मुझे काम करते हुए देखते रहे। आखिरी दिन मैंने कैमरामैन से कहा कि वह कैमरे में रोल न डाले। मैं जानता था कि निजिंस्की की मनहूस मौजूदगी मज़ाकिया दिखने की मेरी सारी कोशिशों पर पानी फेर देगी। इसके बावजूद, वे हर दिन की समाप्ति पर मुझे बधाई देते, `आपकी कॉमेडी, आप सचमुच नर्तक हैं।' कहा उन्होंने।

मैंने अब तक रूसी बैले नहीं देखा था, या यूं कहूँ कि अब तक कोई बैले ही नहीं देखा था। लेकिन जब सप्ताह खत्म हुआ तो मुझे मैटिनी शो देखने के लिए आमंत्रित किया गया।

थियेटर में मेरा स्वागत दियाघिलेव ने किया। वे बेहद ऊर्जावान और उत्साह से भरे हुए शख्स थे। उन्होंने इस बात के लिए क्षमा माँगी कि उस वक्त उनका कोई ऐसा कार्यक्रम नहीं चल रहा है जो उनकी निगाह में मैं बहुत ज्यादा पसन्द कर सकूँ। उन्होंने अफ़सोस व्यक्त किया कि इस समय ल' अप्रेस-मिडी-द' डन फाउन' नहीं चल रहा है। उनके ख्याल से मैं ये वाला कार्यक्रम ज्यादा पसन्द करता। तब वे तुंत अपने मैनेजर की तरफ मुड़े, "निजिंस्की साहब को बताओ कि हम चार्लोट के लिए इन्टरवल के बाद फाउने का प्रदर्शन करेंगे।"

पहला बैले शहाराज़ादे था। मेरी प्रतिक्रिया कमोबेश नकारात्मक थी। इसमें बहुत ज्यादा एक्टिंग थी और नृत्य नाममात्र को भी नहीं था। मेरे ख्याल से रिम्स्की - कोर्साकोव का संगीत दोहराव लिये हुए था। लेकिन इसके बाद पास दे `देव प्रस्तुत किया गया। इसमें स्वयं निजिंस्की थे। जिस पल वे मंच पर अवतरित हुए जैसे मुझे बिजली का करन्ट लग गया हो। मैंने दुनिया में बहुत कम जीनियस देखे हैं और निजिंस्की उनमें से एक थे। उनमें सम्मोहित कर लेने की ईश्वरीय शक्ति थी। अपने हावभावों से वे हमारे सामने दूसरी ही दुनिया पेश कर रहे थे। उनकी हर भंगिमा में जैसे कविता की लय थी। उनकी एक एक मुद्रा हमें विचित्र कल्पना लोक में ले जाती थी।

उन्होंने दियाघिलेव से कह रखा था कि इन्टरवल में वे मुझे उनके ड्रेसिंग रूम में लिवा लायें। मेरे पास उनकी तारीफ के लिए शब्द नहीं थे।

उनके ड्रेसिंग रूम में मैं चुपचाप बैठा रहा और उन्हें फाउने के लिए मेक-अप करते हुए अजीब-अजीब चेहरे बनाते हुए देखता रहा। वे अपने गालों पर हरे रंग के घेरे बना रहे थे। वे बीच-बीच में बातचीत का सिरा जोड़ने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। वे मेरी फिल्मों के बारे में इधर-उधर के सवाल पूछते रहे। मैं सिर्फ़ एक-एक शब्द के वाक्यों में जवाब दे पा रहा था। जब इन्टरवल की समाप्ति पर घंटी बजी तो मैंने सलाह दी कि अब मुझे अपनी सीट पर लौट जाना चाहिए।

"न, न, अभी नहीं," कहा उन्होंने।

तभी दरवाजे पर खट-खट हुई। "मिस्टर निजिंस्की, इन्टरवल में बजने वाले धुन पूरी हो चुकी है।"

मेरे चेहरे पर परेशानी झलकने लगी।

"ठीक है, ठीक है," जवाब दिया उन्होंने, "अभी बहुत समय है।"

मुझे झटका लगा और मैं इस बात को कत्तई समझ नहीं पाया कि वे ऐसा बरताव क्यों कर रहे हैं, "क्या आपको नहीं लगता कि मुझे जाना चाहिए?"

"नहीं, नहीं, उन्हें एक और धुन बजाने दो।"

अंतत: दियाघिलेव हड़बड़ाते हुए ड्रेसिंग रूम में आये और चमकने लगे," जल्दी करो, जल्दी करो, दर्शक हल्ला कर रहे हैं।"

"इंतज़ार करने दो उन्हें, इसमें ज्यादा ही मज़ा है," कहा निजिंस्की ने और मुझसे बेसिर-पैर के और सवाल पूछने शुरू कर दिये। परेशानी के मारे मेरा बुरा हाल। मैं मिनमिनाया, "मेरे ख्याल से मुझे अपनी सीट पर लौट जाना चहिए।"

आज तक कोई भी कलाकार ल' अप्रेस-मिडी-द' उन फाउने में निजिंस्की की बराबरी नहीं कर सका है। जिस रहस्यमय सृष्टि का सृजन वे करते थे, अपनी रहस्यमयी, आत्मीय-सी उदासी के ज़रिये वे जिस निस्सीम विस्तार लिये प्यार की अनदेखी उदास छायाओं की सैर कराने दर्शक को अपने साथ ले जाते थे, उस सबका कोई सानी नहीं था। वे बिना किसी सायास प्रयास के कुछ ही भाव भंगिमाओं से सब कुछ कह डालते थे।

छ: महीने बाद निजिंस्की पागल हो गये थे। इस बात के संकेत तो उस दिन दोपहर के वक्त ड्रेसिंग रूम में ही नज़र आने लगे थे जब उन्होंने अपने दर्शकों को इंतज़ार करने के लिए छोड़ दिया था। मैं इस बात का गवाह था कि किस तरह से एक संवेदनशील मस्तिष्क युद्ध की विभीषिका झेल रहे क्रूर विश्व से विचरते हुए एक दूसरी ही दुनिया में, अपने सपनों की दुनिया में चला गया था।

किसी भी साधना या कला में उत्कृष्टता के शिखर पर विरल ही लोग पहुंचते हैं, और पावलोवा उन दुर्लभ कलाकारों में से एक थीं जिसने इसे सच कर दिखाया था। मुझ पर हर बार उसका जादुई असर होता था। हालांकि उनकी कला उत्कृष्ट थी, फिर भी उनमें एक स्तरीय पीलापन, उदासी का तत्व रहता। गुलाब की सफेद पंख़ुड़ी की तरह बेहद नाज़ुक। जब वे नृत्य करती थीं तो उनकी हर लय-ताल गुरुत्वाकर्षण का केंद्र बन जाती। जिस पल वे मंच पर अवतरित होतीं, वे जितनी भी खुश या आकर्षक क्यों न हो, मेरा मन रोने का करता। वे सम्पूर्णता की त्रासदी को साकार कर देती थीं। ऐसा अद्भुत होता उनका नृत्य।

वे अपने मित्रों के लिए पाव थी। मैं उनसे उस वक्त मिला था जब वे युनिर्सल स्टूडियो में हॉलीवुड में एक फिल्म बना रही थीं। हम अच्छे दोस्त बन गये थे। इसे त्रासदी ही तो कहा जायेगा कि पुरानी सिनेमा की गति उनकी नृत्य की भंगिमाओं की गीतात्मकता को ग्रहण करने में असफल रही थी और इस वज़ह से उनकी यह महान कला दुनिया से हमेशा के लिए विलुप्त हो गयी।

एक बार की बात है, रूसी कौन्सूलेट ने उनके सम्मान में एक भोज दिया जिसमें मैं भी मौजूद था। यह एक अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आयोजन था और निश्चय ही गरिमा लिये हुए था। डिनर के दौरान कई जाम छलकाये गये और भाषण वाषण चले। कुछ फ्रांसीसी में और कुछ रूसी में। मेरे ख्याल से सिर्फ़ मैं ही अकेला अंग्रेज़ था जिसे बुलाया गया था। अलबत्ता, इससे पहले कि कुछ कहने के लिए मेरी बारी आती, एक प्रोफेसर ने पावलोवा की कला पर रूसी भाषा में एक शानदार कसीदा पढ़ा। ऐसे भी पल आये जब प्रोफेसर की आँखों में आँसू आ गये। वह रो पड़ा और तब वह पावलोवा के पास गया और उन्हें बेतहाशा चूमने लगा। मुझे पता चल चुका था कि उस प्रोफेसर के बाद कुछ करने की मेरी कोई भी कोशिश बेकार जायेगी। इसलिए मैं उठा और बोला कि चूँकि मेरी अंग्रेजी मादाम पावलोवा की कला की महानता का बयान करने के लिए पूरी तरह से नाकाफी होगी, इसलिए मैं चीनी भाषा में बोलूँगा। मैं चीनी भाषा में अनाप शनाप बकता रहा और मैंने भी उसी तरह का समां बांध दिया जिस तरह का प्रोफेसर ने बांधा था। मैंने अपनी बात का समापन प्रोफेसर से भी ज्यादा शिद्दत से पावलोवा को चूमने से किया। मैंने एक नैपकिन लिया और जब तक मैं उन्हें लगातार चूमता रहा, नैप्किन को हम दोनों से सिर के आगे थामे रहा। पार्टी का हँस-हँस के बुरा हाल हो गया और इस तरह से माहौल की गंभीरता टूटी।

साराह बर्नहार्ड्ट ऑरपीयम रंगारंग थियेटर में अभिनय किया करती थीं। इसमें कोई शक नहीं कि वे बहुत बूढ़ी थीं और उनका कैरियर ढलान पर था, फिर भी उनके अभिनय का सच्चा मूल्यांकन करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। लेकिन जब ड्यूस लॉस एजेंल्स आयी तो उनकी ढलती उम्र और नज़दीक आता उनका अंत भी उनकी प्रतिभा की चमक को फीका नहीं कर पाये थे। उनके पीछे बेहतरीन इतालवी कलाकार मंडली थी। जब वे मंच पर आयीं - उससे पहले एक सुदर्शन युवा अभिनेता आकर अपनी अभिनय क्षमता के जलवे दिखा चुका था। और अभी भी मंच के बीचों बीच जमा हुआ था। मैं इस बात पर हैरान होता रहा कि किस तरह से ड्यूस उस युवा अभिनेता के शानदार अभिनय के भी आगे जा पायीं?

तभी एकदम बांयी तरफ से ड्यूस एक मेहराब के नीचे से होती हुई सहजता से मंच पर आयीं। वे सफेद क्रिसैन्थेमम फूलों की टोकरी के पीछे पल भर के लिए ठिठकीं। ये फूल बड़े से पिआनो पर रखे हुए थे। उन्होंने चुपचाप फूलों को तरतीब देना शुरू कर दिया। पूरे थियेटर में फुसफुसाहट की आवाज़ें आने लगीं और मेरा ध्यान तुंत युवा कलाकार से हट कर ड्यूस की तरफ चला गया। न तो वे युवा कलाकार की तरफ देख रही थीं और न ही किसी अन्य चरित्र की तरफ ही। वे चुपचाप फूलों को सजाती रहीं। बीच बीच में वे उन फूलों को भी लगा रही थीं जो वे अपने साथ लायी थीं। जब उन्होंने यह काम खत्म कर लिया तो वे तिरछे चलते हुए मंच से नीचे आयीं और फायर प्लेस के पास आ कर एक आराम कुर्सी में बैठ गयीं। उनकी निगाहें आग की तरफ थीं। एक बार और सिर्फ़ एक बार उन्होंने युवा कलाकार की तरफ देखा। उस निगाह में क्या कुछ नहीं था? सारी की सारी बुद्धिमता और मानवीय करुणा। इसके बाद वे सुनती रहीं और अपने हाथ गरम करती रहीं। बेहद खूबसूरत और संवेदनशील हाथ।

युवा कलाकार के उत्तेजक संभाषण के बाद डÎूस आग की तरफ देखते हुए शांत स्वर में बोलीं। उनकी संवाद अदायगी में सामान्य कृत्रिमता नहीं थी। उनकी आवाज़ त्रासद भावावेग की आंच से आ रही थी। उनका एक शब्द भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था लेकिन मैंने महसूस किया कि मैं साक्षी बन रहा था अब तक की देखी महानतम अभिनेत्री के अभिनय का।

कौंस्टांस कौलियर सर हरबर्ट बीरबोहम ट्री की प्रमुख अभिनेत्री थीं और वे ट्रिंगल फिल्स कम्पनी के लिए सर हरबर्ट बीरबोहम के साथ लेडी मैक्बेथ की भूमिका कर रही थीं। जब मैं छोटा बच्चा था तो मैंने उन्हें हिज़ मैजेस्टी थियेटर की गैलरी से कई बार देखा था और द इटरनल सिटी में और ओलिवर ट्विस्ट में नैन्सी की उनकी यादगार भूमिकाओं का दीवाना था। इसलिए जब लेवी'ज कैफे में मेरी मेज पर एक नोट आया कि मिस कौलियर मुझसे मिलना चाहती हैं और मैं उनकी मेज पर चला आऊं। मुझे ऐसा करने में अपार खुशी हुई। उस मुलाकात के बाद हम जीवन भर के लिए बेहतरीन दोस्त बन गये। वे बहुत दयामयी महिला थीं जिसमें उष्मा ही उष्मा भरी हुई थी। उनमें अपार जीजिविषा थी। उन्हें लोगों को आपस में मिलवाना अच्छा लगता था। उनकी इच्छा थी कि मेरी मुलाकात सर हरबर्ट से और डगलस फेयरबैंक्स नाम के एक नौजवान से हो। कोलियर का ख्याल था कि हम तीनों में बहुत कुछ एक समान है।

मेरा ख्याल है, सर हरबर्ट अंग्रेजी थियेटर के डीन थे और अभिनेताओं में सबसे ज्यादा विनम्र थे। वे सामने वाले के दिमाग पर तो असर छोड़ते थे, उसकी संवेदनाओं को भी छूते थे। ओलिवर ट्विस्ट में उनका फागिन हँसी मजाक से भरपूर और डरावना एक साथ था। जरा सी कोशिश करके वे ऐसा तनाव पैदा कर देते जिसे सहन करना लगभग असंभव हो जाता। उन्हें बस, इतना करना होता कि तनाव पैदा करने के लिए जाम छलकाने वाले फोर्क से मज़ाक में ही कलापूर्ण पैंतरेबाज को छेड़ भर देते। चरित्र को ले कर ट्री की अवधारणा हमेशा उत्कृष्ट होतीं। भोंदू स्वेंगाली इसका नमूना था। वे इस वाहियात से लगने वाले चरित्र में सामने वाले को विश्वास करा देते और उसे न केवल हास्य से भर देते बल्कि कवितामय भी बना देते। आलोचकों का मानना था कि ट्री को व्यवहारों को परखने की अद्भुत समझ थी। यह सच है लेकिन वे उन्हें असरदार ढंग से इस्तेमाल करना भी जानते थे। जूलियस सीजर में उन्होंने जो व्याख्याएंं कीं, वे बौद्धिकतापूर्ण थीं। अंतिम संस्कार के दृश्य में उनका मार्क एन्टोनी भीड़ को परम्परागत जोश से संबोधित करने के बजाये उनके सिरों के ऊपर से सनक और भीतरी तिरस्कार से भरा लापरवाही से बात करता है।

जब मैं चौदह बरस का था तो मैंने ट्री को उनकी कई महान निर्मितियों की प्रस्तुति में देखा था। इसलिए जब कौन्टांस ने जब सर हरबर्ट, उसकी बेटी आइरिस और मेरे लिए एक छोटे से डिनर का आयोजन किया तो इस विचार से ही मैं उत्साहित हो गया था। हमें एलेक्जंड्रिया होटल में ट्री के कमरे में मिलना था। मैं जान बूझ कर देर कर रहा था और यह उम्मीद कर रहा था कि वहाँ पर तनाव कम करने के लिए कौन्टेंस होंगी ही, लेकिन जब सर हरबर्ट ने अपने कमरे में मेरी अगवानी की तो वे वहाँ अकेले थे। उनके साथ उनके फिल्म निर्देशक जॉन एमरसन ही थे।

"आहा, आओ, आओ चैप्लिन," सर हरबर्ट ने कहा,"मैंने कौन्सटांस से आपके बारे में बहुत कुछ सुना है।"

एमरसन से परिचय कराने के बाद उन्होंने बताया कि वे मैक्बैथ के कुछ दृश्यों पर बात कर रहे थे। जल्द ही एमरसन विदा हो गये और मैं अचानक शर्म के मारे पसीना-पसीना हो गया।

"क्षमा करना, मैंने आपको इंतज़ार कराया," सर हरबर्ट मेरे सामने वाली आरामकुर्सी में पसरते हुए बोले, "हम चुड़ैल वाले दृश्य के लिए इफेक्ट्स के बारे में चर्चा कर रहे थे।"

"ओह - ह: ह:।" मैं हकलाया।

"मेरा ख्याल है कि गुब्बारों के ऊपर की तरफ एक रस्सी बांध दी जाये और उस दृश्य इस तरह से प्रभावशाली बनेगा। क्या ख्याल है आपका?"

"ओह ह: ह: ह: बेशक शानदार!"

सर हरबर्ट एक पल के लिए रुके और मेरी तरफ देखने लगे।

"आप तो वाकई सफलता के शिखर पर विराजे हुए हैं, नहीं क्या?"

"ऐसा तो कुछ नहीं है," जैसे मैं माफी मांगते हुए मिमियाया।

"लेकिन पूरी दुनिया में आपकी धाक जमी हुई है। इंगलैण्ड में और फ्रांस में सैनिक आपके बारे में गीत तक गाते हैं।"

"ऐसा है क्या?" मैंने अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करते हुए कहा।

उन्होंने दोबारा मेरी तरफ देखा - शक और पूर्वाग्रह उनके पूरे चेहरे पर पसरे हुए थे। तभी वे उठे, कमरे से बाहर जाते हुए बोले, "कौंसटांस को देरी हो रही है। मैं फोन करके पूछता हूँ कि माजरा क्या है। इस बीच आप मेरी बेटी आइरिस से तो ज़रूर ही मिलें।"

मैंने राहत की सांस ली। इसकी वज़ह यह थी कि मेरे दिमाग में तो एक बच्चे की स्मृतियाँ थी जिससे मैं स्कूल और फिल्मों के बारे में अपने खुद के स्तर पर बात कर पाता। तभी एक लम्बा सा सिगरेट होल्डर लिये एक तन्वंगी नवयौवना ने कमरे में प्रवेश किया,"आप कैसे हैं मिस्टर चैप्लिन? मेरा ख्याल है मैं पूरी दुनिया में ऐसी अकेली लड़की हूँ जिसने आपको परदे पर नहीं देखा है।"

मैंने खींसें निपोरीं और अपना सिर हिलाया।

आइरिश स्कैंडिनेवियाई लगती थी। उसके फूले-फूले लाल रंगत लिये बाल थे, उभरी हुई नाक और हल्की नीली आँखें। उस वक्त उसकी उम्र अट्ठारह बरस की थी। वह बेहद आकर्षक थी और उसमें स्वाभाविक रूप से अंगड़ाई लेता अभिजात्य वर्ग वाला दर्जा था। पन्द्रह बरस की उम्र में उसकी कविताओं की किताब छप चुकी थी।

"कौंसटेंस आपके बारे में बहुत कुछ बताती रहती हैं।" कहा उसने।

मैंने एक बार फिर खींसें निपोरीं और सिर हिलाया।

आखिरकार, सर हरबर्ट लौटे और उन्होंने बताया कि चूँकि कौंसटैंस को कॉस्टÎूम फिटिंग्स के चक्कर में देर हो गयी है इसलिए वे नहीं आ पायेंगी और कि हमें उनके बिना ही खाना खाना होगा।

हे भगवान!! इन अजनबियों के बीच मैं रात कैसे गुजारूंगा?

जलते हुए इस ख्याल का बोझ अपने दिमाग पर लिये मैं उनके साथ चुपचाप कमरे से निकला। हम चुपचाप लिफ्ट में घुसे और चुपचाप ही डाइनिंग रूम में गये और वहाँ जा कर मेज़ पर इस तरह से बैठ गये मानो किसी की मैय्यत से अभी-अभी लौटे हों।

बेचारे सर हरबर्ट और आइरिश ने इस बात की भरपूर कोशिश की कि बातचीत में जान आ जाये। बेचारी ने कोशिश करनी ही छोड़ दी और आराम से बैठकर डाइनिंग रूम का मुआइजा करने लगी। काश, खाना ही परोस दिया जाता। खाते समय शायद मुझे इस भयावह तनाव से मुक्ति मिल जाती!! बाप-बेटी थोड़ी देर बात करते रहे। फिर उन्होंने साउथ ऑफ फ्रांस की और रोम की और साल्जबर्ग की बात की - क्या मैं वहाँ कभी गया हूँ? क्या मैंने मैक्स रेनहाईट प्रोडक्शन की कोई प्रस्तुति देखी है?

मैंने जैसे माफी मांगते हुए सिर हिलाया।

ट्री ने अब मुझे ऊपर से नीचे तक देखा, "पता है, आपको खूब घूमना चाहिए।"

मैंने उन्हें बताया कि मेरे पास घूमने के लिए वक्त ही नहीं बचता है। तब मैंने बातचीत का सिरा पकड़ा," देखिये, सर हरबर्ट, मेरी सफलता इतनी अचानक रही है कि मैं सफलता के साथ-साथ चल पाने में भी वक्त की कमी महसूस कर रहा हूँ। लेकिन जब मैं चौदह बरस का बच्चा था तो मैंने आपको स्वेंगाली के रूप में, फागिन के रूप में, एन्टोनी के रूप में और फालस्टाफ के रूप में देखा था। कुछ नाटक तो मैंने कई कई बार देखे थे और तब से आप मेरे लिए आदर्श प्रतिमा रहे हैं। मैं आपको स्टेज से परे देखने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। आप की दंत कथा की तरह थे। और आज रात लॉस एंजेल्स में आपके साथ बैठकर भोजन करना मुझे खुशियों से भर रहा है।"

ट्री अभिभूत हो गये "वाकई!!" वे बार बार कहते रहे, "वाकई!!"

उस रात के बाद से हम बहुत अच्छे दोस्त बन गये। वे अक्सर मुझे बुलवा भेजते, और तब हम तीनों, आइरिस, सर हरबर्ट और मैं इकट्ठे बैठ कर खाना खाते। कई बार कौंसटेंस भी आ जाती तो हम विक्टर ह्यूगो के रेस्तरां में चले जाते और कॉफी की चुस्कियां लेते हुए भावपूर्ण चैम्बर म्यूजिक सुनते।

मुझे कांसटैंस से डगलस फैयरबैंक्स के आकर्षण और योग्यता के बारे में बहुत कुछ पता चला था, न केवल व्यक्तित्व के बारे में बल्कि डिनर के बाद होने वाले मेधावी भाषण कर्ता के रूप में भी। उन दिनों मैं मेधावी युवकों, खास तौर पर डिनर के बाद भाषण देने वालों को पसंद नहीं करता था, अलबत्ता, डिनर का इंतज़ाम उन्हीं के घर पर था।

डगलस और मैंने उस रात को एक बहाना मारा। जाने से पहले मैंने कांसटेंस से यह बहाना बनाया कि मैं बीमार हूं, लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी। इसलिए मैंने तय किया कि मैं सिरदर्द का नाटक करूंगा और जल्दी निकल जाऊंगा। फेयरबैंक्स ने कहा कि वे भी बहुत नर्वस हैं और कि जिस वक्त दरवाजे की घंटी बजी तो वे जल्दी से तलघर में सरक लिये। वहां पर एक बिलियर्ड की मेज़ रखी थी। उन्होंने पूल खेलना शुरू कर दिया। उस रात आजीवन चलने वाली मित्रता की शुरुआत थी।

ये बिना वज़ह ही नहीं था कि डगलस ने जनता की कल्पना और प्यार पर अधिकार जमाया। उनकी फिल्मों की आत्मा, उनका आशावाद और उनके अमोघ अर्थ अमेरिकी रुचि के बहुत निकट पड़ते थे और निश्चित ही ये पूरी दुनिया की रुचि के भी निकट पड़ते थे। उनमें असाधारण चुम्बकीय शक्ति और आकर्षण थे और उनमें असली लड़कपन वाला उत्साह था जिसे उन्होंने जनता तक पहुंचाया। जैसे जैसे मैं उन्हें अंतरंगता से जानने लगा, मैंने पाया कि वे हद दर्जे के ईमानदार थे क्योंकि उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि वे स्नॉब रहने में आनंद अनुभव करते हैं और कि सफल आदमियों में उनक प्रति आकर्षण है।

हालांकि डगलस बहुत अधिक लोकप्रिय थे, वे खुले दिल से दूसरों की मेधा की तारीफ किया करते थे लेकिन अपनी खुद की मेधा के बारे में विनम्र रहते। वे अक्सर कहते कि मैरी और मुझमें जीनियस है जबकि खुद उनमें मामूली सी ही बुद्धि है। हालांकि ये सच नहीं था। डगलस सृजनशील थे और अपने काम बड़े पैमाने पर किया करते थे।

उन्होंने रॉबिन हुड के लिए दस एकड़ का सेट बनवाया था। ये बहुत बड़े बड़े कंगूरों और बंद होने वाले पुलों से लैस एक महल जैसा था। अब तक कोई इतना बड़ा महल अस्तित्व में भी नहीं रहा होगा। बहुत गर्व के साथ डगलस ने मुझे बंद होने वाला विशाल पुल दिखाया। "अद्भुत," मैंने कहा,"मेरी किसी कॉमेडी के लिए कितनी शानदार शुरुआत रहेगी। बंद होने वाला पुल नीचे आता है और मैं बिल्ली बाहर निकालता हूं और दूध भीतर लेता हूं।"

उनके बिल्कुल ही अलग-अलग तरह को दोस्त थे। इनमें काउबॉय से ले कर राजाओं तक का शुमार होता। वे उन सबमें अच्छे अच्छे गुण तलाश ही लेते। उनका दोस्त चार्ली मैक, जो एक काउबॉय था, लापरवाह, बड़बोला किस्म का शख्स, वह डगलस का बहुत मनोरंजन किया करता। जिस समय हम डिनर कर रहे होते, चार्ली दरवाजे में जा खड़ा होता और कहता, "आपक्के पास तो ये बढ़िया जगह है डग," तब वह डाइनिंग रूम में चारों तरफ निगाह फेरता, "बस, एक ही दिक्कत है कि ये फायर प्लेस से इतनी दूर है कि आप यहां बैट्ठ कर सीद्धे फायर प्लेस में थूक नहीं सकते।" तब वह अपने पंजों के बल उचक कर खड़ा हो जाता और हमें बताता कि उसकी बीवी उस पर क्रूरता के आधार पर तल्लाक के लिए केस कर रही है। मैं कहता हूं कि जज्ज महाशय, इस औरत की कानी उंगली में जितनी क्रूरता भरी हुई है, उतनी क्रूरता तो मेरे पूरे बद्दन में भी नहीं है। और किस्सी भी मोहतरमा ने आज तक मुझ पर इतनी बंदूकें नहीं तानी हैं जितनी इस्स साली ने तानी हैं। इसने मुझे जान बचाने के लिए हमारे उस ओल पेड़ के चारों तरफ इतने चक्कर कटवाये हैं कि वो पेड़ ही छलनी हो गया है और अब उसके आर पास देख सकते हैं।" मुझे ऐसा लगता है कि चार्ली डगलस के घर पर आने से पहले अपनी इस मसखरी के लिए अभ्यास करके आते होंगे।

डलगस का घर एक शूटिंग लॉज रहा था।ये एक पहाड़ी के बीचों बीच बना हुआ दो मंज़िला बंगला था। ये पहाड़ी उन दिनों बेवरली हिल्स कहलाती थी और झाड़ियों से भरी बंजर पहाड़ी थी। खारेपन और सेजब्रश की झाड़ियों से एक बदबू, खट्टी महक आती रहती जिससे गला शुष्क रहता और नासिका में खुजली मची रहती।

उन दिनों बेवरली हिल्स उजाड़ रीयल एस्टेट विकास की मानिंद लगती। गलियां खूब थीं और वे खेतों में जा कर गुम हो जातीं। सफेद गोलों वाले लैम्प पोस्ट सूनसान गलियों की शोभा बढ़ाते। ज्यादातर ग्लोब गायब ही होते क्योंकि उन्हें सड़क के किनारे रहने वाले मौज मनाने वालों का निशाना बना दिया जाता।

डगलस बेवरली हिल्स पर रहने वाले पहले फिल्मी कलाकार थे। वे अक्सर मुझे सप्ताहांत में वहां रहने के लिए बुलवा लेते। रात को मैं अपने बेडरूम में से भेड़ियों के चीखनें की आवाजें सुनता। वे झुंड के झुंड कचरे के टिन पर हल्ला बोलते। उनकी चीखें डरावनी होतीं जैसे कोई छोटी छोटी घंटियां टुनटुना रहा हो।

उनके पास हमेशा ही दो या तीन ठलुए टिके रहते। टॉम गेराहटी, जो उनकी पटकथाएंं लिखा करता था, कार्ल, एक भूतपूर्व ओलम्पिक एथलीट, और दो एक काउबॉय। टॉम, डगलस और मुझमें तीन तिलंगों वाली यारी थी।

रविवारों की सुबह डगलस टट्टुओं का एक दस्ता तैयार कराते और हम सब अल सुबह अंधेरे में ही जाग जाते और सूर्योदय देखने के लिए पहाड़ी की तरफ निकल पड़ते। काउबॉय घोड़ों का दाना पानी करते और कैम्प फायर जलाते, कॉफी, हॉटकेक और शूकरी के पेट का नाश्ता तैयार करते। जिस समय हम सूर्योदय होता हुआ देखते, डगलस लम्बी लम्बी डींगें हांकते और मैं नींद की कमी के लतीफे सुनाता और ये तर्क देता कि सूर्योदय देखने का असली मज़ा तो किसी महिला के साथ ही है। इसके बावजूद सुबह सवेरे की ये यात्राएं बहुत रोमांटिक होतीं। डगलस ही ऐसे अकेले व्यक्ति थे जो मुझे घोड़े पर सवार करवा पाये, मेरी इन शिकायतों के बावजूद कि दुनिया भर में इस पशु के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता दिखायी गयी है जबकि ये जानवर कमीना है और चिड़चिड़ा है और इसका दिमाग भोंदू का है।

ये उस वक्त की बात है जब वे अपनी पहली पत्नी से अलग हुए थे। शाम के वक्त वे अपने दोस्तों को खाने पर बुलवा लेते। इन दोस्तों में मैरी पिकफोर्ड भी होतीं जिन पर वे उन दिनों बुरी तरह से आसक्त थे। वे दोनों ही इस बारे में डरे हुए खरगोशों की तरह व्यवहार करते। मैं उन्हें सलाह दिया करता कि वे शादी वादी के चक्कर में न पड़ें और एक साथ रहते रहें और अपने अपने दायरे से बाहर निकलें। लेकिन वे मेरी परम्परा के खिलाफ वाली सलाह को नहीं मान पाये। मैंने उनकी शादी के खिलाफ इतने ज़ोरदार शब्दों में कहा था कि जब आखिर में उन्होंने सचमुच शादी की तो सब दोस्तों को बुलवाया था, बस, मैं ही नहीं बुलाया गया था।

उन दिनों डगलस और मैं अक्सर घिसे पिटे दर्शन बघारने में लगे रहते और मैं जीवन की नश्वरता के अपने तर्क पर टिका रहता। डगलस ये मानते थे कि हमारी ज़िंदगियां तय हैं और कि हमारी नियति महत्त्वपूर्ण है। जिस वक्त डगलस इस रहस्यमय उत्तेजना में घिरे होते तो मुझ पर इसका विपरीत असर होता। मुझे गर्मियों की एक गर्म रात की बात याद है। हम दोनों एक बड़ी-सी पानी की टंकी के ऊपर चढ़ गये और वहां पर बैठ कर बेवरली के जंगली फैलाव में बातें करते रहे। तारे रहस्यमय रूप से चमकीले थे और चंद्रमा उदास था और मैं कह रहा था कि जीवन का कोई मकसद नहीं है।

"देखो," डगलस जोश से पूरी कायनात को अपने इशारे की जद में लेते हुए बोले, "चंद्रमा, और वहां पर तारों का झुरमुट, तय है कि इस सारे सौन्दर्य के पीछे कोई न कोई वज़ह तो होगी ही। ये सब किसी न किसी नियति की परिपूर्णता की ओर जा रही होंगी। ये सब किसी न किसी बेहतरी के लिए होंगे और तुम और मैं इसके हिस्से ही हैं।" तब अचानक ही प्रेरित हो कर वे मेरी तरफ मुड़े, "बताओ तुम्हें ये मेधा किस लिये दी गयी है? मोशन फिल्मों का ये आश्चर्यजनक माध्यम जो पूरी दुनिया में लाखों करोड़ों लोगों तक पहुंचता है!!"

"तो ये लुइस बी मेसर और वार्नर बंधुओं को भी क्यों दी गयी है?" मैंने कहा और डगलस हँस दिये।

डगलस असाध्य रूप से रोमांटिक व्यक्ति थे। उनके साथ सप्ताहांत बिताते समय कई बार मुझे तीन बजे गहरी नींद से जगा दिया जाता और मैं धुंध के बीच देखता कि लॉन में हवाईयन आर्केस्ट्रा बज रहा है। मैरी को प्रेम गीत सुनाये जा रहे हैं। ये बहुत प्रिय लगता लेकिन उस वक्त इसकी भावना में प्रवेश करना मुश्किल होता खास कर तब जब आप खुद व्यक्तिगत रूप से उससे जुड़े हुए न हों। लेकिन लड़कपन की ये हरकतें उन्हें प्रिय व्यक्ति बनातीं।

डगलस स्पोर्ट भी बहुत पसंद करते थे। अपनी खुली कैडिलैक कार की पिछली सीट पर वुल्फहाउंड और पुलिस कुत्ते रखते थे। वे सचमुच इस तरह की चीजें पसंद करते थे।

हॉलीवुड तेज़ी से लेखकों, अभिनेताओं और बुद्धिजीवियों की मक्का मदीना बनता जा रहा था। पूरी दुनिया से लब्ध प्रतिष्ठ लेखक वहां आते: सर गिल्बर्ट पारकर, विलियम जे लॉक, रैक्स बीच, जोसेफ हरगेशीमर, सॉमरसेट मॉम, गोवरनीयर मॉरिस, इबानेज़, एलिनॉर ग्लिन, एडिथ व्हारटन, कैथलीन नॉरिस और कई अन्य।

सॉमरसेट मॉम ने कभी भी हॉलीवुड में काम नहीं किया लेकिन उनकी कहानियों की बहुत मांग रहती। हालांकि वे साउथ सी आइलैंड में जाने से पहले कई हफ्ते तक वहां रहे थे। साउथ सी आइलैंड में ही उन्होंने अपनी यादगार कहानियां लिखीं। एक बार डिनर के वक्त उन्होंने डगलस और मुझे सैडी थॉम्पसन कहानी सुनायी थी। उनका कहना था कि ये वास्तविक तथ्यों पर आधारित है। बाद में इस कहानी का रेन के नाम से ड्रामा भी बना था। रेन को मैं हमेशा एक आदर्श नाटक मानता हूं। रेवरेंड डेविडसन और उनकी पत्नी को खूबसूरती से परिभाषित किया गया है। वे सैडी थाम्पसन से भी अधिक रोचक बन पड़े हैं। रेवरेंड डेविडसन की भूमिका में ट्री कितने शानदार लगते। उन्होंने इस भूमिका को विनम्र, बेरहम, चापलूस और आतंकित करने वाले तरीके से निभाया होता।

इसी हॉलीवुड परिवेश में बना हुआ था हॉलीवुड होटल। ये जगह बेहद घटिया, बेतरतीब और बखार जैसी थी। ये अचानक ही भौंचक देहाती छोकरी की तरह प्रमुखता में आ गयी थी और सोना उगल रही थी। यहां पर कमरे हमेशा सामान्य दर से ज्यादा पर मिलते। उसका कारण सिर्फ यही था कि लॉस एंजेल्स से हॉलीवुड को जाने वाली सड़क एकदम अलंघ्य थी और कलम के ये धनी लोग स्टूडियो के आस पास रहना चाहते। लेकिन वहां पर हर कोई खोया हुआ लगता मानो सब के सब गलत पते पर आ गये हों।

वहां पर एलिनॉर ग्लिन ने दो कमरों पर कब्जा जमा रखा था। उन्होंने एक कमरे को बैठक की शक्ल दे रखी थी। तकियों को उन्होंने पेस्टल के से रंग के कपड़े से मढ़ दिया था और ये तकिये बिस्तर पर फैला दिये थे ताकि इससे सोफे का अहसास हो। वे अपने मेहमानों की आवाभगत यहीं पर करती थीं।

मैं एलिनॉर से पहली बार तब मिला था जब उन्होंने दस व्यक्तियों को डिनर पर बुलाया था। हमें डाइनिंग रूम में खाना खाने जाने से पहले उनके कमरों में ही कॉकटेल के लिए मिलना था। मैं ही वहां सबसे पहले पहुंचा था। "आह," अपने हाथों में मेरा चेहरा भरते हुए और जानबूझ कर नज़र भर देखते हुए कहा उन्होंने,"मैं तुम्हें जी भर कर निहार तो लूं। कितने असाधारण। मैं तो सोचती थी कि तुम्हारी आंखें भूरी हैं लेकिन ये तो एकदम नीली हैं।"

हालांकि शुरू शुरू में वे अति उत्साही लगीं लेकिन मैं उनका काफी मुरीद हो गया।

एलिनॉर हालांकि अंग्रेजी समाज में काफी प्रतिष्ठित नाम था, फिर भी उन्होंने अपने उपन्यास थ्री वीक्स से एडवर्डकालीन समाज को झटका दिया था। उसका नायक पॉल, अच्छे भले घर का अंग्रेज है जिसका रानी से प्रेम प्रसंग चल रहा है। बूढ़े राजा से शादी करने से पहले वह उसके साथ अंतिम बार रंगरेलियां मनाता है। बालक क्राउन पिंस गुप्त रूप से पॉल का ही बेटा है।

जब हम उनके मेहमानों का इंतज़ार कर रहे थे, एलिनॉर मुझे दूसरे कमरे में ले कर गयीं जहां पर दीवारों पर पहले विश्व युद्ध के युवा अंग्रेज अधिकारियों की तस्वीरें फ्रेम में मढ़ी हुई लगी हुई थीं। सारे तस्वीरों पर चलताऊ निगाह मारते हुए वे बोलीं,"ये सब के सब मेरे पॉल हैं।"

वे तंत्र मंत्र में बहुत विश्वास करती थीं। मुझे एक दोपहर की याद है। मैरी पिकफोर्ड थकान और नींद न आने की शिकायत कर रही थीं। हम मैरी के ही बेडरूम में थे।

"मुझे उत्तर दिशा दिखाओ," एलिनॉर ने आदेश दिया। तब उन्होंने बहुत आहिस्ता से अपनी उंगली मैरी की भौंह पर रखी और बार-बार कहने लगीं,"अब वह गहरी नींद में है।" डगलस और मैं आगे सरक आये और मैरी को देखने लगे। उसकी आंखें फड़फड़ा रही थीं। मैरी ने बाद में हमें बताया था कि उसे एक घंटे से भी ज्यादा तक नींद में होने का नाटक करना पड़ा था क्योंकि एलिनॉर कमरे में ही मौजूद थीं और उस पर निगाह रखे हुए थीं।

एलिनॉर की ख्याति सनसनीखेज शख्सियत के रूप में थीं। लेकिन कोई भी उसने अधिक संतुलित नहीं था। फिल्मों के लिए उनकी व्यापक संकल्पनाएं किशोरियों जैसी और नौसिखियापन लिये हुए थीं। महिलाएं अपनी भौहें अपने-अपने प्रेमी के गालों पर रगड़ रही हैं और चीते की खाल के कालीनों पर प्रेम में व्याकुल हो रही हैं।

हॉलीवुड के लिए उन्होंने जो तीन फिल्में लिखी थीं, वे समयातीत प्रकृति की थीं। पहली का नाम था थ्री वीक्स, दूसरी का नाम हिज़ आवर और तीसरी का नाम था हर मोमेंट। हर मोमेंट में भयंकर विवाद हो गया। कहानी में दिखाया गया था कि एक प्रतिष्ठित महिला, जिसकी भूमिका ग्लोरिया स्वैनसन ने निभायी थी, की शादी एक ऐसे आदमी से होने वाली है जिसे वह प्यार नहीं करती। उनकी तैनाती एक घने जंगल में है। एक दिन वह अकेली ही घुड़सवारी के लिए निकल जाती है। चूंकि उसे वनस्पतियों में दिलचस्पी है, वह अपने घोड़े से उतरती है ताकि एक दुर्लभ फूल का मुआइना कर सके। जैसे ही वह फूल पर झुकती है, एक खतरनाक वाइपर सांप आता है और उसके दायें सीने पर डंस देता है। ग्लोरिया अपना सीना दबोचती है और मदद के लिए पुकारती है। ये चीखें वही आदमी सुन लेता है जिससे वह प्यार करती है। संयोग से वह वहीं से गुज़र कर जा रहा होता है। इस भूमिका में खूबसूरत टॉमी मैघम थे। तुंत वे झाड़ी के पीछे से आते हैं।

"क्या हुआ?"

वह जहरीले सांप की तरफ इशारा करती है,"मुझे काट खाया है।"

"कहां?"

वह अपने सीने की तरफ इशारा करती है।

"ये तो सब सांपों से भी ज्यादा जहरीला है।" टॉमी कहते हैं। निश्चित रूप से उनका मतलब सांप से ही है,"जल्दी जल्दी ही कुछ करना होगा। एक मिनट भी बरबाद करने को नहीं है।"

वे डॉक्टर से मीलों दूर हैं। और ऐसे मौके पर रक्तबंध का जो सामान्य उपचार होता है कि प्रभावित हिस्से पर रुमाल बांध कर खून में जहर को फैलने से रोका जाये, संभव नहीं है। अचानक ही वे उसे उठाते हैं, नायिका की कमीज को फाड़ते हैं और उनकी नरम गोरी गोलाई अनावृत करते हैं। तब वे कैमरे की बदतमीज निगाह से बचाने के लिए उसका चेहरा दूसरी तरफ करते हैं, उस पर झुकते हैं और उनका मुंह जहर चूसने लगता है और जैसे जैसे वे जहर चूसते हैं, थूकते चलते हैं।

इस चूसन ऑपरेशन के परिणाम स्वरूप वह उससे शादी कर लेती है।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 13

म्यूचुअल कांट्रैक्ट के खत्म होने के बाद मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं फर्स्ट नेशनल शुरू करूं लेकिन हमारे पास कोई स्टूडियो नहीं था। मैंने फैसला किया कि मैं हॉलीवुड में ज़मीन खरीद कर एक स्टूडियो बनवाऊंगा। ये ज़मीन सनसेट और लॉ ब्री के कोने में थी और इसमें बहुत ही शानदार 10 कमरे का घर बना हुआ था और दस एकड़ में नींबू, संतरे और आड़ू के दरख्त थे। हमने हर तरह से चुस्त-दुरुस्त यूनिट बनायी और इसमें डेवलपिंग प्लांट, संपादन कक्ष और दफ्तर बनवाये।

जिस वक्त स्टूडियो बन रहा था, मैं आराम करने के वास्ते एक महीने के लिए एडना पुर्विएंस के साथ होनोलुलु की सैर पर निकल गया। उन दिनों हवाई बेहद खूबसूरत द्वीप हुआ करता था। फिर भी, मुख्य धरती से दो हज़ार मील दूर बेपनाह खूबसूरती, उसके चीड़ के दरख्तों, गन्ने, मस्त करने देने वाले फलों और फूलों के बावजूद वहां रहने के ख्याल मात्र से मेरा दिल डूबा जा रहा था। मुझे ऐसे लग रहा था मानों किसी तंग जगह में फंस गया हूं, जैसे किसी लिली के फूल में कैद कर लिया गया हूं। मैं वापिस आने के लिए बेचैन था।

इसमें कोई शक नहीं था कि एडना पूर्विएंस जैसी खूबसूरत ल़ड़की की मौजूदगी मेरे दिल को अपनी गिरफ्त में न ले लेती। जब हम पहली बार लॉस एजेंल्स में काम करने के लिए आये तो एडना ने एथलेटिक क्लब के पास ही एक अपार्टमेंट किराये पर ले लिया और कमोबेश हर रात मैं उसे वहां पर डिनर के लिए ले जाता। हम एक दूसरे के बारे में गम्भीर थे। और मेरे दिमाग में कहीं यह बात भी थी कि किसी दिन हम शादी कर लेंगे लेकिन एडना के बारे में मेरे खुद के कुछ पूर्वाग्रह थे। मैं उसके बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता था और इसलिए मैं अपने खुद के बारे में भी अनिश्चित था।

1916 में यह हालत हो गयी थी कि हम एक दूजे से जुदा नहीं हो सकते थे। हम तब रेड क्रॉस के और दूसरे हर तरह के मेले-ठेलों में घूमते फिरे। इन भीड़-भरे मेलों में एडना ईर्ष्या से भर उठती और इसे दिखाने का उसका खुद का नाज़ुक और खतरनाक तरीका था। अगर कोई मेरी तरफ कुछ ज्यादा ही ध्यान देने लगता तो एडना गायब हो जाती और मेरे पास तब एक संदेशा आता कि वह बेहोश हो गयी है और मुझे पूछ रही है। मैं उसके पास भागा-भागा जाता और बाकी शाम उसके सिरहाने बिताता। एक ऐसे ही मौके पर एक आकर्षक मोहतरमा ने मेरे सम्मान में एक गार्डन पार्टी दी। मुझे एक सोसाइटी सुंदरी से दूसरी सुंदरी के पास घुमाती फिरी और आखिरकार मुझे एक लता मंडप के भीतर ले गयी। एक बार फिर संदेशा आया कि एडना बेहोश हो गयी है। हालांकि मैं इस बात से फूला नहीं समाता था कि जब भी वह खूबसूरत लड़की बेहोश होती थी, हमेशा मुझे ही पूछती थी। लेकिन उसकी ये आदत अब कोफ्त में डालने लगी थी।

इसकी अंतिम परिणति फेनी वार्ड की पार्टी में हुई जहां कई हसीनाएं और सुदर्शन युवक बहुत बड़ी संख्या में मौजूद थे। एक बार फिर एडना बेहोश हो गयी। लेकिन इस बार जब वह बेहोश हुई तो उसने पैरामाउंट के लम्बे, आकर्षक हीरो थॉमस मीघन को बुलवाया। उस वक्त मैं इस सब के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। ये तो अगले दिन फेनी वार्ड ने ही मुझे सब कुछ बताया। एडना के लिए मेरी भावनाओं को जानने की वजह से वह नहीं चाहती थी कि इस तरह से मुझे बेवकूफ बनाया जाये।

मैं इस पर विश्वास ही न कर सका। मेरे आत्म सम्मान को ठेस लगी थी। मैं गुस्से से आग बबूला हो रहा था। अगर इसमें सच्चाई होगी तो ये हमारे संबंधों पर विराम होगा। लेकिन इसके बावज़ूद मैं उसे इतनी आसानी से नहीं छोड़ सका। उसके जाने से जो खालीपन आता, वह बहुत ज्यादा होता। जो कुछ हम दोनों के बीच घटा था, उन सबके ख्याल मुझे सताने लगे।

इस घटना के अगले दिन मैं काम ही न कर सका। दोपहर के वक्त उससे सफाई मांगने के इरादे से मैंने उसे फोन किया। मैं ऐसा जताने लगा मानो मैं बेहद गुस्से में हूं, लेकिन इसके बजाये मेरे अहं ने बाजी मार ली और मैं ताने मारता जैसा लगा। यहां तक कि मैंने मामले के बारे में एकाध मज़ाक भी कर दिया,"मेरा ख्याल है कि फेनी वार्ड की पार्टी में तुमने गलत आदमी को बुलवा लिया था - लगता है तुम्हारी याददाश्त कमज़ोर हो रही है।"

वह हँसी और मैंने परेशानी का हल्का-सा झटका महसूस किया।

"आप किस बारे में बात कर रहे हैं?" कहा उसने।

मैं तो यही उम्मीद कर रहा था कि वह एक सिरे से ही मुकर जायेगी लेकिन उसने चालाकी से काम लिया। उसने उलटे मुझसे ही सवाल कर डाला कि कौन है वो जो मुझे इस तरह की बेसिर-पैर की बातें बताता रहता है।

"इससे क्या फर्क पड़ता है कि मुझे किसने बताया। लेकिन मेरा ख्याल है कि मैं तुम्हारे लिए ज्यादा मायने रखता हूं बजाये इसके कि तुम सरे आम मुझे मूरख बनाती फिरो।"

वह बेहद शांत रही और यही कहती रही कि मैं आजकल इधर-उधर की बातों पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रहा हूं।

मैं उसकी तरफ उदासीनता दिखा कर उसे चोट पहुंचाना चाहता था,"तुम्हें मेरे सामने ज्यादा बनने की ज़रूरत नहीं है," कहा मैंने,"तुम कुछ भी करने के लिए आज़ाद हो। तुम मेरी ब्याहता तो हो नहीं। जब तक तुम अपने काम के प्रति ईमानदार हो, वही मेरे लिए मायने रखता है।"

इस सब के प्रति एडना पूरी तरह से सहमत थी और हमारे एक साथ काम करने पर उसे कोई एतराज़ नहीं था। उसने कहा कि हम हमेशा ही अच्छे दोस्त बने रह सकते हैं। और इस बात ने मुझे पहले से भी ज्यादा बेचारा बना दिया।

मैं नर्वस और हैरान-परेशान फोन पर एक घंटे तक बात करता रहा और समझौता करने के लिए कोई बहाना तलाशता रहा। जैसा कि इस तरह की परिस्थितियों में आम तौर पर होता है, मैं उसमें नये सिरे से और ज्यादा शिद्दत से रुचि लेने लगा। और जब बातचीत खत्म हुई तो मैं उससे पूछ रहा था कि क्या शाम को वह मेरे साथ डिनर पर चलेगी ताकि हम मामले पर और बात कर सकें।

वह हिचकिचायी लेकिन मैं ही अड़ा रहा। सच तो ये है कि मैं गिड़गिड़ा रहा था और मिन्नतें कर रहा था। उस समय मेरा सारा आत्म सम्मान और मेरे सारे तर्क पता नहीं कहां चले गये थे। आखिरकार वह मान गयी। उस रात हम दोनों ने हैम और अंडों का डिनर लिया जोकि उसने अपने अपार्टमेंट में तैयार किया था।

हम दोनों में एक तरह का समझौता-सा हो गया था और अब मैं कम परेशान था। कम से कम इतना तो था ही कि मैं अगले दिन काम कर पाया। इसके बावजूद हताशा से उपजे गुस्से का और आत्म ग्लानि का तंज बाकी था। मुझे अपने आप पर ग्लानि हो रही थी कि मैं ही क्यों बीच-बीच में उसकी उपेक्षा करने लगता था। मैं गहरे असमंजस में था। क्या मैं उससे पूरी तरह से नाता तोड़ दूं या न तोड़ूं। शायद मीघम के बारे में जो किस्सा बताया गया था, वह सच नहीं था।

लगभग तीन सप्ताह के बाद वह स्टूडियो में अपना चेक लेने के लिए आयी। जिस समय वह वापिस जा रही थी तभी मैं रास्ते में उससे टकरा गया। वह अपने किसी दोस्त के साथ थी। "आप जानते हैं टॉमी मीघम को?" उसने सौम्यता से पूछा। मुझे हल्का-सा झटका लगा। उस नन्हें से पल में एडना अजनबी बन गयी मानो मैं उससे पहली बार मिल रहा होऊं।

"बेशक," मैंने कहा।

"कैसे हो टॉमी?" वह थोड़ा-सा परेशानी में पड़ गया। हमने हाथ मिलाये और उसके बाद हमने एकाध सुख-दुख की बातें कीं और वे दोनों एक साथ स्टूडियो से चले गये।

अलबत्ता, ज़िंदगी संघर्ष का ही दूसरा नाम है जो हमें बहुत कम परिणाम देती है। अगर ये समस्या प्रेम की नहीं होती तो किसी और चीज़ की होती है। सफलता हैरान करने वाली थी लेकिन उसके साथ ही सफलता नाम के इस शिशु के साथ गति बनाये रखने की कोशिश करने का तनाव भी जुड़ा हुआ था। इसके बावजूद मेरी सान्त्वना मेरे काम में ही थी।

लेकिन बरस-भर में बावन हफ्ते तक लेखन करने, अभिनय करने और निर्देशन करने का काम थका देने वाला था। इसके लिए नसों को तोड़ कर रख देने वाली बेइन्तहां ऊर्जा की ज़रूरत थी। एक फिल्म के पूरा होते ही मैं गहरे अवसाद और थकान से घिर जाता। और नतीजा ये होता कि मुझे एकाध दिन के लिए बिस्तर के हवाले हो जाना पड़ जाता।

शाम के वक्त मैं उठता और शांत चहल कदमी के लिए निकल जाता। मैं तन्हा-तन्हा और उदास महसूस करते हुए शहर में मारा-मारा फिरता, दुकानों की खिड़कियों में सूनी-सूनी आंखों से देखता रहता। मैं ऐसे मौकों पर कभी भी कुछ सोचने की कोशिश न करता। मेरा दिमाग सुन्न पड़ जाता। लेकिन मैं जल्दी ही ठीक भी हो जाता। आम तौर पर अगली सुबह गाड़ी में स्टूडियो की तरफ आते हुए मेरी उत्तेजना लौट चुकी होती और मेरा दिमाग फिर से तेज़ी से काम करना शुरू कर देता।

सिर्फ़ एक ख्याल मात्र आ जाने से भी मैं सेट बनाने का ऑर्डर दे देता और जब तक सेट बन रहे होते, कला निर्देशक मेरे पास ब्यौरे लेने के लिए आ जाता। मैं उस वक्त यूं ही कुछ भी हांक देता और इस तरह के ब्यौरे देने लगता कि मुझे दरवाजे कहां पर चाहिये और मेहराब कहां चाहिये। इस तरह की बेहद हताशा के आलम में मैंने कई कॉमेडी शुरू कीं।

कई बार मेरा दिमाग बुनी हुई रस्सी की तरह कड़ा पड़ जाता और तब उसे ढीला करने के लिए किसी उपाय की ज़रूरत पड़ती। ऐसे मौकों पर रात बाहर गुज़ारना राहत का काम करता। शराब के नशे से नसें ढीली करना मुझे कभी भी नहीं रास नहीं आया। दरअसल, काम करते समय ये मेरा अंधविश्वास सा था कि किसी भी किस्म का नशा व्यक्ति की कुशाग्रता को प्रभावित करता है। किसी कॉमेडी को सोचने और उसे निर्देशित करने से ज्यादा दिमाग की सतर्कता किसी और काम में ज़रूरी नहीं होती।

जहां तक सेक्स का सवाल है, इसका ज्यादातर हिस्सा तो मेरे काम में ही चला जाता था। और कभी सैक्स अपना शानदार सिर उठाता भी तो मेरी ज़िंदगी इतनी अनियमित थी कि या तो मुझे बाज़ार में ही मुंह मारना पड़ता या फिर सैक्स का घनघोर अकाल होता। अलबत्ता, मैं पक्का अनुशासन पसंद व्यक्ति था और अपने काम को गम्भीरता से लेता। बालज़ाक की तरह, जो यह मानता था कि सैक्स वाली एक रात का मतलब होता है कि आपके उपन्यास का एक अच्छा पन्ना कम होगा, इसी तरह मैं भी विश्वास करता था कि सैक्स का मतलब स्टूडियो में एक अच्छे-भले दिन के काम का कबाड़ा।

एक सुविख्यात महिला उपन्यासकार को जब पता चला कि मैं अपनी आत्म कथा लिख रहा हूं तो उसने कहा, "मेरा विश्वास है कि आप में सच बताने का साहस तो होगा ही।" मैंने सोचा कि वह राजनैतिक रूप से कह रही है लेकिन वह तो मेरे सैक्स जीवन की बात कर रही थी। मेरा ख्याल है कि आत्म कथा में व्यक्ति से ये उम्मीद की जाती है कि वह अपनी ऐन्द्रिकता पर पूरा शोध प्रबंध ही लिख डाले। हालांकि मैं ये नहीं जानता कि ऐसा क्यों होता है। मेरे ख्याल से तो सैक्स से चरित्र को समझने में या उसे सामने लाने में शायद ही कोई मदद मिलती हो। फ्रायड की तरह मैं यह नहीं मानता कि सैक्स ही व्यवहार की जटिलता का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तत्व है।

ठंड, भूख और गरीबी की शर्म से व्यक्ति के मनोविज्ञान पर कहीं अधिक असर पड़ सकता है।

हर दूसरे व्यक्ति की तरह मेरे जीवन में भी सैक्स के दौर आते-जाते रहे। कभी-कभी मैं पूर्ण पुरुष होता और कई बार मैं बेहद निराश कर बैठता। लेकिन एक बात थी कि मेरे जीवन में सारी दिलचस्पियों का केन्द्र सैक्स ही नहीं था। मेरे जीवन में सृजनात्मक दिलचस्पियां भी थीं जो मुझे उतना ही उलझाये रहती थीं। लेकिन इस किताब में मेरी ऐसी कोई मंशा नहीं है कि मैं अपने सैक्स के कारनामों का एक-एक करके बखान करूं। मुझे ऐसे वर्णन अकलात्मक, नैदानिक और अकविता जैसे लगते हैं। हां, जो परिस्थितियां आपको सैक्स की तरफ ले जाती हैं, वे मुझे ज्यादा रोमांचक लगती हैं।

इसी विषय के प्रसंग के अनुकूल, जब मैं न्यू यार्क से लॉस एंजेल्स वापिस लौटा तो एलेक्जेंड्रा होटल में पहली ही रात मेरे साथ एक बहुत ही शानदार वाक्या घटा। मैं कमरे में जल्दी ही लौट आया था और हाल ही के न्यू यार्क के एक गाने की धुन गुनगुनाते हुए कपड़े उतार रहा था। ख्यालों में खोया हुआ बीच-बीच में मैं रुक जाता। और जब मैं रुकता तो साथ वाले कमरे से एक महिला स्वर उस धुन को वहीं से उठा लेता जहां मैंने उसे छोड़ा होता। और तब मैं उस धुन को वहां से उठाता जहां उसने छोड़ा होता। और इस तरह से ये एक मज़ाक बन गया। और आखिरकार हमने उस धुन को इस तरह से समाप्त किया। क्या मैं उससे परिचय पाऊं? इसमें जोखिम था। इसके अलावा मुझे रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि वह देखने में कैसी होगी? मैंने एक बार फिर धुन बजायी तो फिर से वही हुआ। उस तरफ से भी धुन को आगे बढ़ाया गया।

"हा हा हा। क्या मज़ेदार किस्सा हो गया ये तो!" मैं हँसा और अपनी आवाज़ में इस तरह का उतार-चढ़ाव रखा कि ऐसा लगे कि मैं खुद से बात कर रहा हूं और ऐसा भी लगे कि उससे मुखातिब हूं।

दूसरी तरफ से आवाज आयी, "माफ कीजिये, कुछ कहा आपने?"

तब मैं चाभी की झिर्री में से फुसफुसाया,"मेरा ख्याल है आप हाल ही में न्यू यार्क से लौटी हैं!"

"मैं आपकी आवाज नहीं सुन पा रही हूं!" वह बोली।

"तब तो ज़रा दरवाजा खोलिये।" मैंने जवाब दिया।

"मैं ज़रा-सा दरवाजा खोलूंगी लेकिन खबरदार जो अंदर आने की ज़ुर्रत की।"

"वादा करता हूं।"

उसने चार इंच के करीब दरवाजा खोला और मेरे सामने एक बेहद खूबसूरत लाल बालों वाली नवयौवना लड़की खड़ी थी। मुझे नहीं पता कि उसने ठीक-ठीक किस तरह के कपड़े पहने हुए थे लेकिन उसने ऊपर से नीचे तक रेशमी ढीला ढाला सा गाउन पहना हुआ था और उसका जो असर हुआ, वह एकदम स्वप्निल था।

"अंदर मत आना, नहीं तो मैं आपकी पिटाई कर दूंगी," उसने बेहद आकर्षण के साथ कहा। वह अपनी प्यारी दंत पंक्ति झलका रही थी।

"आप कैसी हैं?" मैं फुसफुसाया और अपना परिचय दिया। वह पहले ही से जानती थी कि मैं कौन हूं और उसे पता था कि मैं उसके साथ वाले कमरे में ठहरा हुआ हूं।

बाद में उसने उस रात बताया कि किसी भी हालत में मैं सार्वजनिक रूप से उसे पहचानूंगा नहीं। यहां तक कि अगर हम होटल के गलियारे में एक-दूसरे के पास से गुज़रें भी तो मैं उसकी तरफ देख कर सिर न हिलाऊं। उसने अपने बारे में बस, सिर्फ यही बताया था।

दूसरी रात भी जब मैं अपने कमरे में लौटा तो उसने नि:संकोच मेरा दरवाजा खटखटाया और हम एक बार फिर रूमानी और जिस्मानी रिश्ते में बंध गये।

तीसरी रात मुझे कुछ-कुछ ऊब-सी होने लगी थी। इसके अलावा, मेरे पास सोचने के लिए कैरियर और काम थे। इसलिए चौथी रात मैं दबे पांव अपने कमरे में आया और ये सोचता रहा कि उसे मेरे आने के बारे में पता नहीं चलेगा। मैं उम्मीद कर रहा था कि उसे पता भी नहीं चलेगा और मैं अपने बिस्तर में घुस जाऊंगा लेकिन उसे मेरे आने की खबर मिल गयी थी। उसने दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया। इस बार मैंने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया और सीधे ही सोने के लिए बिस्तर में घुस गया। अगले दिन जब वह होटल के गलियारे में मेरे पास से गुज़री तो उसकी आंखों में बरफ का-सा ठंडा परिचय था।

अगली रात उसने दरवाजा तो नहीं खटखटाया लेकिन मेरे दरवाजे के हैंडल के घूमने की आवाज़ आयी और मैंने दरवाजे की घुंडी घूमते हुए देखी। हालांकि मैंने अपनी तरफ से दरवाजे को अंदर से बंद कर रखा था। उसने बेरहमी से दरवाजे का हैंडल घुमाया और फिर ज़ोर-ज़ोर से दरवाजा पीटने लगी।

अगली सुबह मैंने यही बेहतर समझा कि होटल से ही बोरिया-बिस्तर बांध लिया जाये। और मैं एक बार फिर एथलेटिक क्लब के क्वार्टर्स में आ गया।

मेरे स्टूडियो में बनी मेरी पहली फिल्म थी ए डॉग्स लाइफ। कहानी में थोड़ा-बहुत व्यंग्य का पुट था और उसमें एक ट्रैम्प की जिंदगी की तुलना कुत्ते की ज़िंदगी से की गयी थी। यह प्रधान कथा वस्तु ही वह ढांचा था जिस पर मैंने छोटे-मोटे हँसी के पल और प्रहसन के रूप में हास्य पैदा किये थे। मैं एक विधिवत ढांचे की शक्ल देते हुए कॉमेडी बनाने की सोच रहा था और इसलिए उसके ढांचागत स्वरूप के बारे में बहुत सतर्क हो गया था। प्रत्येक दृश्य से अगले दृश्य का आभास हो जाता था और इस तरह से एक पूरी कड़ी एक दूजे से जुड़ती चलती थी।

पहले दृश्य में दिखाया गया था कि कुछ कुत्ते झगड़ रहे हैं और उनमें से एक कुत्ते को बचाया जाता है। दूसरे दृश्य में एक डाँस हॉल में एक ऐसी लड़की की रक्षा करते हुए दिखाया गया था जो कि कुत्ते का-सा जीवन जी रही थी। इस तरह के बहुत सारे दृश्य थे जो आपस में मिल कर घटनाओं को एक तर्क संगत परिणति में पहुंचाते थे। हालांकि देखने में ये दृश्य एक दम सीधे-सादे और स्पष्ट से जान पड़ते थे लेकिन इनके पीछे गहरी सोच और खोज लगी हुई थी। अगर हँसी की कोई बात घटनाओं के तर्क में आड़े आती थी तो मैं उसे इस्तेमाल नहीं करता था बेशक वह कितनी भी मज़ाकिया क्यों न हो।

कीस्टोन के दिनों में मेरा ट्रैम्प ज्यादा आज़ाद हुआ करता था और प्लॉट से बंधा हुआ नहीं होता था। उस वक्त उसका दिमाग शायद ही कभी इस्तेमाल में आता हो। केवल उसके मूल भाव ही होते थे जो मूल ज़रूरतों, खाने, गर्मी और सोने की जगह से ही ताल्लुक रखते थे। लेकिन आगे बढ़ती हरेक कॉमेडी के साथ ट्रैम्प और अधिक जटिल होता चला जा रहा था। अब संवेदनाएं उसके चरित्र में से निथर कर आने लगी थीं। ये मेरे लिए समस्या बन गयी थी क्योंकि वह प्रहसन की सीमाओं से बंधा हुआ था। ये बात कुछ बड़बोलापन लग सकती है लेकिन प्रहसन के लिए एकदम सही मनोविज्ञान की ज़रूरत होती है।

इसका समाधान तब मिला जब मैंने ट्रैम्प को एक तरह के भाँड़ के रूप में सोचा। इस संकल्पना के साथ अब मेरे पास अभिव्यक्ति के लिए और ज्यादा आज़ादी थी और मैं अब संवेदनाओं के पिरोते हुए कॉमेडी कर सकता था। लेकिन तार्किक रूप से देखें तो ट्रैम्प में दिलचस्पी रखने वाली कोई खूबसूरत लड़की खोज पाना मुश्किल काम था। मेरी फिल्मों में ये हमेशा की समस्या रही है। द गोल्ड रश में लड़की ट्रैम्प में इस रूप में दिलचस्पी लेना शुरू करती है कि वह पहले ट्रैम्प पर एक फिकरा कसती है। बाद में वही फिकरा उसे बेचारगी की तरफ ले जाता है और ट्रैम्प इसे उसका प्यार समझ बैठता है। सिटी साइट्स में लड़की अंधी है। इस संबंध में ट्रैम्प लड़की के प्रति तब तक रोमांटिक और शानदार है जब तक उसकी आँखों की रौशनी नहीं लौट आती।

जैसे-जैसे कहानी के गठन में मेरा हाथ साफ होता गया, वैसे-वैसे ही कॉमेडी की मेरी आज़ादी कम होती चली गयी। मेरे एक प्रशंसक ने, जो कीस्टोन के वक्त की मेरी हास्य फिल्मों को हाल ही की हास्य फिल्मों की तुलना में ज्यादा पसंद करता था, लिखा,"उस वक्त जनता आपकी गुलाम थी और इस वक्त आप जनता के गुलाम हैं।"

अपनी शुरुआती हास्य फिल्मों के लिए भी मैं मूड पकड़ने के लिए छटपटाता था और आम तौर पर संगीत ही मुझे राह सुझाता था। मिसेज ग्रुंडी नाम के एक पुराने गाने ने द इमिग्रेंट के लिए मूड तैयार किया। इसकी धुन में गज़ब की नरमी थी और बताती थी कि किस तरह से दो अकेले सड़क छाप एक मनहूस बरसात के दिन शादी करते हैं।

कहानी में दिखाया जाता है कि एक चार्लोट अमेरिका की तरफ जा रहा है। जहाज में वह एक लड़की और उसकी मां से मिलता है जो उसी की तरह फटेहाल हैं। जब वे न्यू यार्क में पहुंचते हैं तो दोनों बिछुड़ जाते हैं। बाद में वह उस लड़की से एक बार फिर मिलता है लेकिन इस बार लड़की अकेली है। और खुद उसकी तरह ज़िंदगी में असफल है। जिस वक्त वे बात करने के लिए बैठते हैं, वह अनजाने में काले कोने वाला रुमाल इस्तेमाल करती है जिससे वह यह संदेशा देती है कि उसकी मां मर चुकी है। और हां, आखिर में वे एक मनहूस बरसात के दिन शादी कर लेते हैं।

छोटी-छोटी, आसान-सी लगने वाली धुनों ने मुझे दूसरी हास्य फिल्मों के लिए छवियां दीं। ट्वेंटी मिनट्स ऑफ लव नाम की एक फिल्म थी। ये पार्कों में, पुलिस वाले और नर्सनुमा नौकरानियों की फालतू की और बेसिर-पैर की लतीफेबाजी से भरी हुई फिल्म थी। इस फिल्म में मैंने 1914 की एक मशहूर दो लाइनों वाली धुन टू मच मस्टर्ड पर परिस्थितियां बुनी थीं। वायोलेट्रा नाम के गीत ने सिटी लाइट्स के लिए मूड बनाने में मदद की थी जबकि गोल्ड रश के लिए मूड ऑल्ड लैंग साइन की मदद से बना था।

बहुत पहले, 1916 में फीचर फिल्मों के लिए मेरे मन में ढेरों ख्यालात थे। एक फिल्म में चंद्रमा का एक दौरा दिखाया जाता जहां पर ओलम्पिक खेलों के हंसी-मज़ाक भरे दृश्य होते और वहां गुरुत्वाकर्षण के नियमों के साथ खिलवाड़ करने की संभावनाओं का पता लगाया जाता। यह प्रगति पर एक तरह का कटाक्ष होता। मैंने खाना खिलाने वाली एक फीडिंग मशीन के बारे में भी सोचा था। एक रेडियोइलैक्ट्रिक हैट का भी ख्याल मेरे मन में था। इस हैट को लगाते ही उसमें व्यक्ति के विचार दर्ज होने शुरू हो जाते। और उस वक्त की मुसीबत के बारे में बताया जाता जब मैं इस हैट को सिर पर पहनता हूं और मेरा परिचय चंद्रमा पर रहने वाले आदमी की बेहद कमनीय बीवी से कराया जाता है। बाद में मैंने इस फीडिंग मशीन को माडर्न टाइम्स में इस्तेमाल किया था।

साक्षात्कार करने वाले मुझसे पूछते हैं कि मुझे अपनी फिल्मों के लिए विचार या आइडिया कहां से मिलता है और मैं आज दिन तक इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया हूं। बरसों के बाद मैंने यही पाया है कि विचार तभी आते हैं जब आप में विचारों के लिए उत्कट इच्छा हो। लगातार इच्छा करते रहने से आपका दिमाग ऐसी घटनाओं की तलाश में भटकने वाला बुर्ज हो जाता है जिनमें आपकी कल्पना को उत्तेजित करने का माद्दा हो। संगीत और सूर्यास्त भी विचारों को अमली जामा पहना सकते हैं।

मैं तो यही कहूंगा कि कोई भी ऐसा विषय लीजिये जो आपको उत्तेजित करे। इसे फैलाइये और इसमें रम जाइये। और अगर आप इसे और आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं तो इसे छोड़ दीजिये और दूसरे विचार पर काम करना शुरू कर दीजिये। जो कुछ आप संजोते हैं, उसमें से उलीचते रहना ही वह प्रक्रिया है जिसमें आपको वह मिल जाता है जो आप खोजना चाहते हैं।

तो आदमी के पास विचार आते कैसे हैं। पागलपन की हद तक जाने के बाद अचानक ही। आदमी में तकलीफ सहने की कूव्वत होनी चाहिये और उत्साह को देर तक बरकरार रखने का माद्दा होना चाहिये। हो सकता है ऐसा कर पाना कुछ व्यक्तियों के लिए दूसरों की तुलना में आसान होता होता हो लेकिन मुझे इसमें शक है।

हां, इसमें कोई शक नहीं कि प्रत्येक संभावनाशील कॉमिक को कॉमेडी के बारे में आध्यात्मिक साधारणीकरण से हो कर गुज़रना पड़ता है। कीस्टोन में जो फिल्में बनती थीं, उनमें हर दूसरे दिन एक जुमला उछाला जाता था कि "आश्चर्य और रहस्य का तत्व होना चाहिये फिल्मों में।"

मैं मानव व्यवहार को समझाने के लिए मनोविश्लेषण की गहराइयों में उतरने की कोशिश नहीं करूंगा जो कि अपने आप ही ज़िंदगी की तरह विवेचना से परे है। सैक्स या बाल सुलभ मतिभ्रंश से भी अधिक। मेरा यह मानना है कि हमारे अधिकांश विचारशील दबाव पूर्वज अनुरूप कारणों से होते हैं। अलबत्ता, मुझे यह जानने के लिए किताबें पढ़ने की ज़रूरत नहीं है कि ज़िदंगी की थीम संघर्ष और तकलीफ है। ये सहज संवेदनाओं का ही कमाल था कि मेरा सारा जोकरपना इन्हीं पर आधारित था। कॉमेडी बुनने के मेरे साधन सरल थे। यह प्रक्रिया थी आदमियों को तकलीफों के भीतर ले जाने की और उससे बाहर ले आने की।

लेकिन हास्य थोड़ा-सा अलग और ज्यादा बारीक होता है। मैक्स ईस्टमैन ने अपनी किताब द सेंस ऑफ ह्यूमर में इसका विश्लेषण किया है। वे इसका निचोड़ इस तरह से निकालते हैं कि ये मानो खिलंदड़े दर्द में से निकाला गया हो। वे लिखते हैं कि आदमी नाम का यह प्राणी आत्मपीड़क होता है और वह दर्द का कई रूपों में आनंद उठाता है। और दर्शक भी वैसे ही दूसरे का चोला धारण करके पीड़ा भोगना पसंद करते हैं जिस तरह से बच्चे खेल-खेल में उठाते हैं। बच्चे खेल-खेल में मारा जाना और मौत की भयावहता से गुज़रना पसंद करते हैं।

मैं इस सब से सहमत हूं। लेकिन ये हास्य के बजाये ड्रामा का ज्यादा विश्लेषण है। हालांकि दोनों देखने में एक जैसे ही लगते हैं लेकिन हास्य के बारे में मेरा विश्लेषण थोड़ा अलग है। जो साधारण व्यवहार लगता है ये उससे मामूली-सा हट कर होता है। दूसरे शब्दों में, हास्य के जरिये जो तार्किक होता है, उसमें हम अतार्किक देखते हैं और जो महत्त्वपूर्ण लगता है उसमें अमहत्त्वपूर्ण देख लेते हैं। ये हमारी जीजिविषा के स्तर को भी ऊपर उठाये रहता है और हमारे होशो-हवास को बचाये रखता है। ये हास्य ही होता है जिसकी वजह से हम ज़िंदगी की बदतमीजियों को देख कर खुशी से बहुत ज्यादा खुश नहीं होते। इससे अनुपात की हमारी सोच को गति मिलती है और ये बात हमारे सामने रखता है कि गम्भीरता से कही गयी किसी बात में भी वाहियातपना छुपा होता है।

मिसाल के तौर पर, किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार का दृश्य है। मित्र और संबंधीगण मृतक की चिता के आस-पास सम्मान से सिर झुकाये जमा हैं। तभी कोई लेट लतीफ ठीक उसी वक्त वहां आ पहुंचता है जब कि प्रार्थनाएं, बस, शुरू होने ही वाली हैं। वह हड़बड़ी में एक खाली सीट की तरफ लपकता है जहां संवेदना प्रकट करने आया कोई व्यक्ति अपना हैट भूल गया है। अपनी हड़बड़ी में लेट लतीफ अचानक उसी हैट के ऊपर जा बैठता है। तब मूक क्षमा याचना के साथ वह मुचड़ा हुआ हैट उस व्यक्ति को सौंपता है। हैट का मालिक मूक गुस्से के साथ हैट ले लेता है और अपना ध्यान प्रार्थनाओं की तरफ लगाये रखता है। और आप देखते हैं कि उस पल की गम्भीरता हास्यास्पद हो गयी है।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 14

न्यू यार्क से यात्रा शुरू करने वाली रात से पहले मैंने इलिसी कैफे में लगभग चालीस मेहमानों को एक पार्टी दी। मेहमानों में मैरी पिकफोर्ड,डगलस फेयरबैंक्स और मादाम मातेरलिंक भी थीं। हम चेरेड्स खेलते रहे। डगलस और मैरी ने पहले अक्षर के लिए भूमिका निभायी। डलगस स्ट्रीटकार कन्डक्टर बने और उन्होंने टिकट पंच करके मैरी को दिया। दूसरे अक्षर के लिए उन्होंने जान बचाने के दृश्य का मूक अभिनय किया। मैरी मदद के लिए चिल्लाती है और डगलस तैर कर उसके पास पहुंचते हैं और उसे सुरक्षित नदी के किनारे तक लाते हैं। तय था, हम सब चिल्ला रहे थे- "फेयरबैंक्स।"

जैसे-जैसे शाम में रंगीनियां आने लगीं, मैंने और मादाम मातेरलिंक ने कैमिला का मृत्यु वाले दृश्य का अभिनय किया। मातेरलिंक कैमिला बनीं और मैं बना आर्मांड। जिस वक्त वे मेरी बाहों में दम तोड़ रही थीं, उन्हें खांसी का दौरा पड़ गया। शुरू-शुरू में हल्का, और फिर, खांसने की गति बढ़ गयी। उनकी खांसी का यह हाल हो गया कि मुझे भी खांसी का दौरा पड़ गया। इसके बाद तो हम दोनों के बीच खांसने की प्रतियोगिता ही शुरू हो गयी। आखिरकार, मैंने ही उनकी बाहों में मरने का अभिनय किया।

जिस दिन समुद्री यात्रा करनी थी, उस दिन मैं सुबह साढ़े आठ बजे बहुत तकलीफ के साथ उठा। नहाने के बाद, मैं सारे के सारे उहापोह से मुक्त हो गया और इंगलैंड के लिए रवाना होने के ख्याल से ही रोमांचित हो गया। मेरे दोस्त, किस्मत और दूसरे नाटकों के लेखक एडवर्ड नोब्लॉक भी मेरे साथ ही ओलम्पिक पर यात्रा कर रहे थे।

अखबारवालों का एक हुजूम जहाज पर चढ़ आया और मुझे इस हताशा ने घेर लिया कि ये सब भी हमारे साथ पूरी यात्रा में भी बने रहेंगे। उनमें से दो तो हमारे साथ ही चले, बाकी दूसरे लोग पाइलट के साथ उतर गये।

आखिरकार, मैं अपने केबिन में अकेला था। केबिन मेरे दोस्तों की तरफ से आये फूलों और फलों की टोकरियों से अटा पड़ा था। मुझे इंगलैंड छोड़े दस बरस बीत चुके थे और मैं इसी जहाज से कार्नो कम्पनी के साथ निकला था; उस वक्त हमने दूसरे दर्जे में यात्रा की थी। मुझे याद है कि स्टीवर्ड ने हमें पहले दर्जे का हड़बड़ी में दौरा कराया था ताकि हमें इस बात की झलक मिल सके कि दूसरी तरफ के लोग किस तरह से रहते हैं। उसने प्राइवेट सुइटों की शानो शौकत के और उनके आकाश छूते किराये के बारे में बताया था, और अब मैं उन सुइटों में से एक में था और इंगलैंड वापिस जा रहा था। मैंने लंदन को लैम्बेथ के एक नामालूम से, संघर्षरत युवा के रूप जाना था; अब प्रख्यात और अमीर आदमी के रूप में मैं लंदन को मानो पहली बार देखूंगा।

अभी कुछ ही घंटे बीते थे कि माहौल अंग्ऱेजी हो चुका था। हर रात हैडी नोब्लॉक और मैं मुख्य डाइनिंग कक्ष के बजाये रिट्ज रेस्तरां में खाना खाते। रिट्ज में भोजन की अ' ला कार्ते व्यवस्था थी। वहां पर शैम्पेन, कैवियर, और दूसरी बीसियों तरह की शराबें और लजीज़ व्यंजन सामने रखे होते। अब समय की कोई कमी नहीं थी इसलिए हर शाम मैं काली टाई लगा कर तैयार होने की वाहियात रस्म निभाता। इस तरह की विलासिता और फिजूलखर्ची से मुझे पैसे की माया का अहसास होता।

मुझे लगता था कि मैं आराम कर पाऊंगा। लेकिन ओलम्पिक के नोटिस बोर्ड पर लंदन में मेरे प्रत्याशित आगमन के बारे में बुलेटिन लग जाते। अभी हमने आधा रास्ता ही पार किया था कि निमंत्रणों और अनुरोधों वाले तारों का तांता-सा लगना शुरू हो गया। उन्माद जो था, तूफान की शक्ल ले रहा था। ओलम्पिक के बुलेटिन में युनाइटेड न्यूज और मार्निंग टेलिग्राफ से आलेख उद्धृत किये जाते। एक आलेख इस तरह का था: "चैप्लिन विजेता की तरह लौट रहा है! साउथम्पटन से लंदन तक की तरक्की रोमन विजय से मेल खायेगी।"

दूसरा लेख इस तरह से था: "जहाज के चलने के बारे में और जहाज पर चैप्लिन की गतिविधियों पर दैनिक बुलेटिनों पर अब जहाज से जारी होने वाले हर घंटे के फ्लैश भारी पड़ रहे हैं, और अखबारों के खास संस्करण गली कूचों में धूम मचाते, आड़े तिरछे चलने वाले इस महान नन्हें शख्स के बारे में खबरें दे रहे हैं।"

एक और था: "पुराना जेकोबाई गाना, "चार्ली इज माइ डार्लिंग" चार्ली के प्रति पागलपन को चरितार्थ करता है जो पूरे इंगलैंड को पिछले पूरे हफ्ते से अपनी गिरफ्त में लिये हुए है और जैसे-जैसे चार्ली को घर लाते हुए ओलम्पिक अपने पीछे लहरों के भंवर छोड़ रहा है, ये उन्माद हर घंटे और तेज होता जा रहा है।"

एक अन्य लेख में लिखा था: "आज रात ओलम्पिक साउथम्पटन में कोहरे से घिर गया था और नन्हें कॉमेडियन के स्वागत में जुटी उसके आराधकों की विशाल भीड़ शहर में उसकी राह देख रही थी। डॉक पर तथा उस नागरिक अभिनंदन समारोह के स्थल पर जहां मेयर चार्ली की अगवानी करने वाले हैं, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस खास इंतजाम करने में व्यस्त है। . . .जैसा कि विजय के दिनों के बाद हुआ करता था, अखबार ये बताने में लगे हुए हैं कि किस स्थल से लोग चार्ली को बेहतर तरीके से देख सकते हैं।"

मैं इस तरह के स्वागत के लिए तैयार नहीं था। यह स्वागत जिस तरह का अचरज भरा और असाधारण था, काश, मैंने इस यात्रा को तब तक के लिए स्थगित कर दिया होता जब तक मैं इसके लायक न हो जाता। मैं जिस चीज़ के लिए तड़प रहा था, वो थी उस पुरानी परिचित जगहों की एक झलक भर देखने को मिल जाये। लंदन में चुपचाप आस-पास घूमना और देखना, केनिंगटन और ब्रिक्स्टन में तफरीह मारना, 3 पाउनॉल टैरेस की खिड़की पर निगाह डालना, उस अंधियारी लकड़ी की टाल में झांकना जहां मैंने लकड़ी चीरने वालों की मदद की थी, 287 केनिंगटन रोड की दूसरी मंज़िल की खिड़की की तरफ देखना जहां मैं लुइसी और अपने पिता के साथ रहा था - ये इच्छा अचानक ही एक तरह की सनक में बदल चुकी थी।

आखिरकार हम चेरबर्ग में पहुंचे! कई लोग नीचे उतर रहे थे और कई लोग सवार हो रहे थे- कैमरामैन और अखबार वाले। "इंगलैंड के लिए मेरे पास क्या संदेश है?" "फ्रांस के लिए क्या संदेश है?" "क्या मैं आयरलैंड जाऊंगा?" "आयरिश सवाल के बारे में मैं क्या सोचता हूं?" अलंकार की भाषा में कहूं तो मुझ पर झपट्टे मारे जा रहे थे।

हम चेरबर्ग से रवाना हुए और अब हम इंगलैंड की राह पर थे, लेकिन ये यात्रा रेंगने की तरह थी। जहाज बहुत धीमी गति से जा रहा था। नींद का तो सवाल ही नहीं उठता था। एक बजता, दो बज जाते, तीन बज जाते और मैं अभी भी जाग रहा होता। इंजिन रुके, विपरीत दिशा में चलने लगे और आखिर पूरी तरह से थम गये। मैं बाहर गलियारे में सामने से पीछे की तरफ और पीछे से सामने की तरफ लोगों के भागने दौड़ने की भारी आवाज़ें सुन पा रहा था। तनावग्रस्त और पूरी तरह से जागे हुए, मैंने झिर्री में से देखा। लेकिन बाहर अंधेरा था; मैं कुछ भी नहीं देख पाया। इसके बावज़ूद मैं अंग्रेज़ी आवाज़ें सुन सका!

प्रभात की किरणें फूटीं और बेहद थकान के मारे मुझे नींद आ गयी, लेकिन ये नींद भी दो घंटे के लिए थी। जिस वक्त स्टीवर्ड मेरे लिए गरमा-गरम कॉफी और सुबह का अखबार ले कर आया, मैं तड़के ही उठ चुका था।

एक हैडलाइन में लिखा था:

विराम संधि दिवस§ के मुकाबले

कॉमेडियन की घर वापसी

दूसरी:

सारा लंदन चैप्लिन के दौरे की बात कर रहा है।

एक और:

चैप्लिन जा रहे हैं लंदन

महान स्वागत की गारंटी

एक और बड़े आकार के फौंट में

देखो हमारे पुत्र!!

अलबत्ता, कुछेक आलोचनात्मक टिप्पणियां भी थीं:

होश में आओ!!

भगवान के नाम अब हमें होश में आ जाना चाहिये। मैं यह कहने की ज़ुर्रत नहीं कर सकता कि मिस्टर चैप्लिन ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर सर्वाधिक अनुमान लगाये जाते हैं, और मैं यह जानने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी भी नहीं रखता कि क्यों ये घर की याद जो उन्हें इस मौके पर इतनी ज्यादा भावुक बनाये हुए है, उन काले बरसों के दौरान सामने क्यों नहीं आयी जिस वक्त हूणों के काले कारनामों के कारण ग्रेट ब्रिटेन के घर खतरों से जूझ रहे थे। हो सकता है कि ये सच हो, जैसा कि तर्क दिया जा रहा है, कि चार्ली चैप्लिन कैमरे के सामने मसखरी की हरकतें करने में लगे हुए ही बेहतर थे बजाये वे बंदूक के पीछे रहते हुए मरदाने काम करते।

डॉक पर एक तरफ साउथम्पटन के मेयर ने मेरा स्वागत किया और तुरंत मुझे एक रेलग़ाड़ी में बिठा दिया गया। आखिरकार अब हम लंदन की राह पर थे! आर्थर कैली, हैट्टी कैली के भाई भी मेरे ही कूपे में थे। मुझे याद है कि आर्थर और मैं आपस में बातचीत का सिलसिला जमाने के लिए बाहर हरे-भरे खेतों की तेजी से पीछे छूटती दृश्यावली देख रहे थे। मैंने उसे बताया कि मुझे उसकी बहन की तरफ से एक खत मिला था जिसमें उसने पोर्ट स्क्वायर के अपने घर पर रात के खाने के लिए आमंत्रित किया था।

उसने मेरी तरफ हैरानी से देखा और कुछ परेशान सा लगा,"आपको पता है, हैट्टी मर चुकी है!"

मुझे झटका लगा लेकिन उस पल मैं उसकी पूरी त्रासदी को भीतर उतार नहीं कर पाया - बहुत सारी घटनाएं घटती चली जा रही थीं, लेकिन मुझे लगा कि मैं एक अनुभव से वंचित हो गया हूं। मेरे अतीत के दिनों से हैट्टी ही वह अकेली परिचित व्यक्ति थी जिससे दोबारा मिलना मुझे अच्छा लगता, खास तौर पर इन बेहतरीन परिस्थितियों में उससे मिलने का सुख मिलता।

अब हम लंदन के उपनगरों में प्रवेश कर रहे थे। मैं बेसब्री से खिड़की के बाहर देखने लगा। मैं पास से गुज़रती किसी गली को पहचानने की बेकार कोशिश कर रहा था। उत्तेजना के साथ ही एक डर भी घुला हुआ कि शायद युद्ध के बाद लंदन बहुत अधिक बदल गया होगा।

अब उत्तेजना अपने चरम पर थी। कोई भी चीज दिमाग को बांध नहीं पा रही थी, बस सिर्फ प्रत्याशा ही थी। किस चीज की प्रत्याशा? मेरे दिमाग में हाहाकार मचा हुआ था। मेरे सोचने-समझने की शक्ति साथ छोड़ चुकी थी। मैं वस्तुपरक तरीके से सिर्फ लंदन की छतें ही देख पाया,लेकिन वास्तविकता वहां पर नहीं थी। सिर्फ प्रत्याशा थी और कुछ भी नहीं था!

आखिरकार हम पहुंच गये थे। रेलवे स्टेशन की घिरी हुई आवाज़ के दायरे में - वाटरलू स्टेशन! जैसे ही मैं ट्रेन से उतरा, मैंने प्लेटफार्म के दूसरे सिरे पर अपार भीड़ को देखा जिसे रस्से के सहारे रोक कर रखा गया था, और लगी थी पुलिस वालों की लाइनें। हर चीज बेहद तनाव में,हरकत में थी। और हालांकि मैं उत्तेजना के सिवाय किसी भी चीज को जज्ब़ करने की हालत से परे था, मैं इस बात को अच्छी तरह से जानता था कि मुझे प्लेटफार्म पर ही दबोच लिया जायेगा और प्लेटफार्म पर मेरी परेड करा दी जायेगी मानो मुझे गिरफ्तार किया गया हो। जैसे ही हम रस्से से रोकी गयी भीड़ के पास पहुंचे, तनाव ढीला होने लगा, "यहां है वो, वो आ गया! हमारा प्यारा चार्ली!" और इसके बाद वे लोग हर्ष ध्वनि करने लगे। इस सारे हंगामे के बीच मुझे मेरे कज़िन ऑब्रेय के साथ एक लिमोज़िन में ठूंस दिया गया। मैं ऑब्रेय से पन्द्रह बरस से नहीं मिला था। मुझमें सोचने-समझने की इतनी ताकत भी नहीं रह गयी थी कि उस भीड़ से इस तरह से छुपाये जाने का विरोध ही कर सकूं जो मुझसे मिलने के लिए इतनी देर से मेरा इंतज़ार कर रही थी।

मैंने ऑब्रेय से कहा कि वह पक्के तौर पर देख ले कि हम वेस्टमिन्स्टर ब्रिज से ही हो कर गुज़रें। वाटरलू से निकलते हुए और यॉर्क रोड से गुज़रते हुए मैंने पाया कि पुराने मकान ढहाये जा चुके हैं और उनकी जगह पर नया ढांचा एल सी सी बिल्डिंग खड़ी की दी गयी है। लेकिन जब हम यार्क रोड के कोने से मुड़े तो वेस्टमिन्स्टर ब्रिज चमकते सूर्य की तरह आंखों के सामने आ गया! पुल ठीक वैसा ही था, उसका सौम्य संसद भवन वैसा ही सदाबहार खड़ा था। पूरा का पूरा परिदृश्य ठीक वैसा ही था जैसा मैं छोड़ कर गया था। मेरी आंखों से आंसू ढरकने को थे।

मैंने रिट्ज होटल चुना क्योंकि यह उसी वक्त बनाया गया था जिस वक्त मैं छोटा बच्चा था और, उसके प्रवेश द्वार के पास से गुज़रते हुए मैंने उसके भीतर की शानो-शौकत की एक झलक देखी थी और तब से मुझे ये जानने की उत्सुकता थी कि बाकी सब कैसा लगता है!

होटल के बाहर बेइन्तहां भीड़ मेरी राह देख रही थी। मैंने एक छोटा-सा भाषण दिया। और आखिरकार जब मैं अपने कमरों में व्यवस्थित हो गया तो अकेले बाहर निकलने की मेरी बेसब्री ज़ोर मारने लगी। लेकिन कंधे से कंधा भिड़ाती भीड़ अभी भी बाहर जुटी हुई थी, चिल्ला-चिल्ला कर मेरा अभिवादन कर रही थी और इस चक्कर में मुझे कई बार बाल्कनी में आना पड़ा और राजसी मेहमानों की तरह उनके अभिवादन को स्वीकार करना पड़ा। इस बात को बयान कर पाना मुश्किल है कि ऐसी असाधारण परिस्थितियों में क्या चल रहा होता है।

मेरा सुइट दोस्तों से भरा हुआ था, लेकिन मेरी इच्छा यही थी कि इन सबसे छुटकारा पाया जाये। इस समय दोपहर के चार बज रहे थे,इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं थोड़ी झपकी लेना चाहूंगा और उनसे डिनर के वक्त शाम को मिलूंगा।

जैसे ही वे लोग गये, मैंने फटाफट कपड़े बदले, सामान ले जानी वाली लिफ्ट पकड़ी और पिछले दरवाजे से चुपचाप सरक लिया। तुरंत ही मैं जर्मिन स्ट्रीट के दूसरे सिरे की तरफ लपका। मैंने एक टैक्सी पकड़ी और ट्रैफेल्गार स्क्वायर, संसद भवन और वेस्टमिन्स्टर ब्रिज के ऊपर से होते हुए हेय मार्केट की तरफ फूट लिया।

टैक्सी ने एक मोड़ काटा और आखिर, केनिंगटन स्ट्रीट पर आ पहुंची! मेरे सामने थी केनिंगटन स्ट्रीट! अविश्वसनीय सी लगती! कुछ भी तो नहीं बदला था। वेस्टमिन्स्टर ब्रिज रोड के कोने पर क्राइस्ट चर्च था। ब्रुक स्ट्रीट के कोने पर टैन्कार्ड बार था।

मैंने टैक्सी को 3 पाउनॉल टैरेस से थोड़ा सा पहले ही रुकवा लिया। मैं जैसे ही घर की तरफ बढ़ा, एक अजीब-सी शांति मुझ पर तारी हो गयी। मैं एक पल के लिए ठिठका रहा, और दृश्य को अपने भीतर उतारता रहा। 3 पाउनॉल टैरेस! सामने नज़र आ रहा था पाउनॉल टैरेस। किसी उदास पुरानी खोपड़ी की तरह। मैंने सबसे ऊपर की मंज़िल की दो खिड़कियों की तरफ देखा - वो परछत्ती जहां पर मां बैठा करती थी, कमज़ोर और कुपोषण की शिकार, धीरे-धीरे उसका दिमाग साथ छोड़ रहा था। खिड़कियां मज़बूती से बंद थीं। वे कोई भेद नहीं खोल रही थीं और उस आदमी की तरफ पूरी तरह से उदासीन थीं जो इतनी देर से नीचे खड़ा उनकी तरफ घूर रहा था, इसके बावजूद उनके मौन ने मुझसे इतना कुछ कह दिया जोकि शायद शब्द भी न कह पाते। तभी कुछ छोटे-छोटे बच्चे वहां आ गये और उन्होंने मुझे घेर लिया, और मुझे मजबूरन वहां से हटना पड़ा।

मैं कैनिंगटन रोड के पिछवाड़े में घुड़साल की तरफ बढ़ा। वहां पर मैं लकड़ी चीरने वालों की मदद किया करता था। लेकिन घुड़साल में ईंटें चढ़ा दी गयी थीं, और लकड़ी चीरने वालों का वहां कोई नामो-निशान नहीं था।

तब मैं 287 केनिंगटन रोड की तरफ बढ़ा जहां पर सिडनी और मैं अपने पिता और लुइसी और उनके नन्हें मुन्ने बेटे के साथ रहा करते थे। मैंने कमरे की दूसरी मंज़िल की खिड़की की तरफ निगाह दौड़ायी। ये कमरा हमारे बचपन की हताशाओं का कितना हमजोली हुआ करता था। अब ये सारी चीजें कितनी निश्छल सी दिखती हैं। शांत और स्थिर।

अब मैं केनिंगटन पार्क की तरफ चला। उस डाकखाने के आगे से गुज़रते हुए जहां पर मेरा साठ पाउंड का एक बचत खाता हुआ करता था -ये वो राशि थी जो मैं 1908 से बचाने के लिए कितनी कंजूसी किया करता था और ये राशि अभी भी वहीं थी।

केनिंगटन पार्क! इतने बरसों के बाद भी वह उदासी भरी हरियाली से लहलहा रहा था। अब मैं केनिंगटन गेट की तरफ मुड़ा। ये वही जगह थी जहां पर हैट्टी से मेरी पहली मुलाकात हुई थी। मैं एक पल के लिए थमा। तभी एक ट्राम कार आ कर रुकी। उसमें कोई चढ़ा लेकिन उतरा कोई भी नहीं।

अब मेरा अगला पड़ाव था ब्रिक्सटन रोड में 15 ग्लेनशॉ मैन्सन। यहां पर वह फ्लैट था जिसे सिडनी और मैंने सजाया था। लेकिन मेरी संवेदनाएं सूख चुकी थीं, मात्र उत्सुकता बाकी रह गयी थी।

वापिस आते समय मैं एक ड्रिंक लेने के लिए हॉर्न्स बार में रुक गया। अपने अच्छे दिनों में ये बहुत भव्य हुआ करता था। इसका पॉलिश से दमकता महोगनी बार, शानदार दर्पण और बिलियर्ड रूम। वहां एक बड़ा-सा एसेम्बली रूम था जहां पर पिता के लिए आखिरी बार सहायतार्थ आयोजन रखा गया था। अब हॉर्न्स थोड़ा थोड़ा अस्त व्यस्त लग रहा था लेकिन सब कुछ वैसा का वैसा ही था। पास ही में वह जगह थी जहां पर मैंने दो बरस तक पढ़ाई की थी, केनिंगटन रोड काउंटी काउंसिल स्कूल। मैंने खेल के मैदान में झांक कर देखा; डामर का उसका धूसर मैदान सिकुड़ चुका था और उस जगह पर और इमारतें आ गयी थीं।

मैं जैसे-जैसे केनिंगटन में भटकता रहा, वो सब कुछ जो मेरे साथ हुआ था, सपने की मानिंद लगने लगा और जो कुछ मेरे साथ स्टेट्स में हुआ था, वास्तविकता प्रतीत होने लगा। इसके बावजूद मुझे कुछ-कुछ असहजता का अहसास होने लगा कि शायद गरीबी की अपनी सी उन गलियों में अभी भी इतनी ताकत है कि मुझे अपनी हताशा की फिसलती रेत में धंसा लेंगी।

मेरी गम्भीर उदासी और तन्हाई के बारे में बहुत कुछ बकवास लिखा जा चुका है। शायद मुझे कभी भी बहुत ज्यादा दोस्तों की ज़रूरत नहीं रही - आदमी जब किसी ऊंची जगह पर पहुंच जाता है तो दोस्त चुनने में कोई विवेक काम नहीं करता। जब मैं मूड में होता हूं तो मैं दोस्तों को वैसे ही पसंद करता हूं जैसे संगीत को पसंद करता हूं। ज़रूरत के वक्त किसी दोस्त की मदद करना आसान होता है लेकिन आप हमेशा इतने खुशनसीब नहीं होते कि उसे अपना समय दे पायें। जब मैं लोकप्रियता के शिखर पर था तो मेरे दोस्तों और परिचितों का हुजूम मुझे ज़रूरत से ज्यादा घेरे रहता था। मैं एक साथ ही बहिर्मुखी और अंतर्मुखी हूं लेकिन जब मेरा अंतर्मुखी पक्ष हावी होता तो मुझे इस सारे ताम-झाम से दूर भाग जाना पड़ता। शायद यही वज़ह रही होगी कि मेरे बारे में इस तरह के आलेख लिखे गये कि मैं बचता फिरता हूं, अकेला रहता हूं और सच्ची दोस्ती के काबिल नहीं हूं। ये सब बकवास है। मेरे एक-दो बहुत ही अच्छे दोस्त हैं जो मेरे क्षितिज को रौशन बनाये रहते हैं और जब भी मैं उनके साथ होता हूं, आम तौर पर उनके साथ का आनंद उठाता हूं।

इसके बावजूद मेरे व्यक्तित्व को लेखक के स्वभाव के अनुसार ऊपर उठाया गया है और नीचे गिराया गया है।

उदाहरण के लिए, सॉमरसेट मॉम ने लिखा है:

चार्ली चैप्लिन . . . उसका मज़ाक सरल और मिठास भरा और सहज है। और इसके बावजूद आपको यह अहसास होता है कि इन सबके पीछे एक गहरी उदासी है। वह मूड का प्राणी है और इसके लिए उसे परिहासयुक्त स्वीकृति की ज़रूरत नहीं होती। ""हेय, कल रात मुझे ऐसा दौरा पड़ा कि मुझे बिल्कुल भी पता नहीं चला कि मैं अपने आप के साथ क्या करूं!!" मैं आपको चेताता हूं कि उसका हास्य उदासी के साथ-साथ चलता है। वह आपको खुश आदमी की छवि नहीं देता। मुझे तो ये लगता है कि वह झोपड़पट्टियों की आसक्त करने वाली याद से पीड़ित है। जिस तरह के वैभव को वह भोगता है, उसकी दौलत, उसे इस तरह की ज़िंदगी में कैद कर लेते हैं जिसे वह अड़चनों की तरह ही पाता है। मुझे लगता है कि वह अपनी संघर्षशील जवानी की आज़ादी की तरफ मुड़-मुड़ कर देखता है, उसकी मुफलिसी और कड़वे अभावों के साथ, उस चाहत के साथ जिसे बारे में उसे पता है कि कभी भी संतुष्ट नहीं की जा सकती। उसके लिए दक्षिणी लंदन की गलियां मौज मस्ती, ऐशो आराम और बेइन्तहां रोमांच के ठिकाने हैं . .. मैं इस बात की कल्पना कर सकता हूं कि वह अपने खुद के घर में जाता है और हैरान होता है कि आखिर वह अजनबी आदमी के घर पर कर ही क्या रहा है!! मुझे शक है कि वह सिर्फ एक ही घर को अपने घर की तरह देख सकता है और वह है केनिंगटन रोड की दूसरी मंज़िल पर पिछवाड़े की तरफ का घर। एक रात मैं उसके साथ लॉस एंजेल्स में घूम रहा था और चलते चलते हमारे कदम शहर के गरीब तबकों के इलाके की तरफ मुड़ गये। वहां पर मुफलिसी में जीने वालों के घर थे और गंदी, भड़कीली दुकानें थीं जिनमें गरीब आदमी अपनी रोज़ाना की ज़रूरत की चीजें खरीदते हैं। चार्ली का चेहरा दमक उठा और जब उसने अपनी बात कही तो उसकी आवाज़ में एक जोशीला स्वर आ मिला था, "देखो तो, यही है असली ज़िंदगी, नहीं क्या? बाकी सब कुछ तो मक्कारी है!!"*

किसी दूसरे व्यक्ति के लिए गरीबी को आकर्षक बनाने की चाह रखने का यह नज़रिया कोफ्त में डालता है। मैं अब तक ऐसे एक भी गरीब आदमी से नहीं मिला हूं जो अपनी गरीबी के प्रति आसक्त हो या उसमें आज़ादी ढूंढता हो। न ही मिस्टर मॉम किसी गरीब आदमी को इस बात का यकीन ही दिला पाये कि प्रसिद्धि के शिखर पर होने और बेइन्तहां दौलत का मतलब रुकावट होता है- इसके विपरीत मुझे तो प्रसिद्ध और बेइन्तहां दौलत में आज़ादी महसूस होती है। मुझे नहीं लगता कि मिस्टर मॉम अपने किसी उपन्यास में अपने किसी चरित्र को इस तरह के झूठे अर्थ देंगे,उनमें से किसी को भी नहीं। इस तरह के शब्द जाल,"दक्षिणी लंदन की गलियां मौज मस्ती, ऐशो आराम और बेइन्तहां रोमांच के ठिकाने" हैं, में फ्रांस की महारानी मैरीएंटोइनेटे की काल्पनिक दिल्लगी की तंज नज़र आती है।

गरीबी मुझे न तो आकर्षक और न ही कलात्मक लगती है। इसने मुझे और कुछ नहीं, बल्कि मूल्यों को विकृत करना, अमीरों तथा तथा कथित सम्पन्न वर्गों की विशेषताओं और गरिमा को बढ़ा चढ़ा कर बताना ही सिखाया है।

इसके विपरीत धन-दौलत और प्रसिद्धि ने मुझे दुनिया को सही नज़रिये से देखना, और यह पता लगाना सिखाया है कि खास जगहों पर बैठे हुए लोगों के सम्पर्क में जब मैं आया तो अपने तरीके से वे भी उतने ही कमज़ोरियों के पुतले थे जितने बाकी हम सब लोग हैं।

धन दौलत और प्रसिद्धि ने मुझे ये भी सिखाया कि तलवार, छड़ी और उठे हुए कोड़े के महत्त्व को कैसे भुनाना है और ये कैसे घमंड के अर्थ के नजदीक पड़ता है। मैंने सीखा, कॉलेज वाले उच्चारण के मद में आदमी के गुणों और बौद्धिकता का अनुमान लगाना और इस झूठ ने अंग्रेजी मध्यम वर्गों पर जो लकवा मारने वाला असर छोड़ा है उसे जानना और ये जानना कि मेधा जरूरी नहीं कि शिक्षा से या पुराने महाकाव्य पढ़ कर ही आती हो।

मॉम के अनुमानों के बावजूद मैं और सब लोगों की तरह वही हूं जो मैं हूं। एक व्यक्ति, अनूठा और अलग। जिसमें प्राम्पट करने का भीतरी भावों को समाने लाने का थोड़ा सा रेखीय इतिहास रहा है। सपनों का, इच्छाओं का, और खास अनुभवों का इतिहास, और मैं इन सबका जोड़ हूं।

लंदन में पहुंचने के बाद मैं अपने-आपको लगातार हॉलीवुड के दोस्तों के संग-साथ में ही पा रहा था। मैं परिवर्तन चाहता था, नये लोग, नये अनुभव; मैं प्रसिद्ध शख्सियत होने के इस कारोबार की कीमत वसूलना चाहता था। मैं अब तक सिर्फ एक ही व्यक्ति से मिला था और ये थे एच जी वेल्स। उसके बाद मैं अलमस्त घूम रहा था और हिचकिचाहट भरी उम्मीद कर रहा था कि और लोगों से मुलाकात हो।

"मैंने तुम्हारे लिए गैरिक क्लब में एक डिनर का इंतज़ाम किया है।" ऐडी नोब्लॉक ने बताया।

"फिर वही अभिनेता, कलाकार और लेखक," मैंने मज़ाक में कहा,"लेकिन वो इंगलिश माहौल, वो देहातों वाले घर और घरेलू पार्टियां कहां हैं जहां का मुझे न्यौता नहीं दिया गया है?" मैं ड्यूकों जैसे जीवन के दुर्लभतम माहौल के लिए छटपटा रहा था। ये बात नहीं है कि मैं घमंडी था, बल्कि मैं तो एक पर्यटक था और सैर सपाटे को निकला व्यक्ति था।

गैरिक क्लब में माहौल बेहद लुभाने वाला था, धूप छांही ओक की गाढ़े रंग की दीवारें और तैल चित्र। यहीं पर मैं सर जेम्स बैरी, ई वी लुकास, वाल्टर हैकेट, जॉर्ज फ्रैम्पटन, सर एडविन लुट्येंस, स्क्वायर बैनक्रोफ्ट और अन्य गणमान्य विभूतियों से मिला। हालांकि ये पार्टी कुछ हद तक फीकी ही थी, मैं इन महान विभूतियों की मौजूदगी से मिले सम्मान से ही बहुत ज्यादा अभिभूत था।

लेकिन मुझे लगता है कि उस शाम को जितना रंगीन होना चाहिये था, उतनी हुई नहीं। जब महान विभूतियां एक जगह पर एकत्रित होती हैं,तो मौके का मांग यह होती है कि आपस में प्रेम से घुला-मिला जाये और ये हो पाना कुछ हद तक इस वज़ह से मुश्किल था क्योंकि सम्मानित मेहमान जो थे, वे एक विख्यात नव धन कुबेर थे जिन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया था कि डिनर के बाद वाली कोई भाषणबाजी नहीं होगी; शायद इसी बात की कमी खल रही थी। डिनर के दौरान फ्रैम्पटन, वास्तुशिल्पी ने कुछ हँसी मज़ाक का प्रयास किया और वे खूब जमे, लेकिन वे गैरिक क्लब में छायी मनहूसियत को कम करने में मुश्किल पा रहे थे, क्योंकि हम सब बाकी लोग उबले हैम और थिट्रकल पुडिंग खाने में लगे हुए थे।

अंग्रेज़ी प्रेस के साथ अपने पहले साक्षात्कार में मैंने अनजाने में यह कह दिया था कि मैं अपने इंगलिश स्कूली दिनों को फिर से जीने, रसेदार ईल मछली और ट्रिकल पुडिंग का स्वाद लेने के लिए आया हूं। इसका नतीजा ये हुआ कि इन लोगों ने मुझे गैरिक क्लब में, रिट्ज में, एच जी वेल्स के यहां और यहां तक कि सर फिलिप सैसून के यहां छप्पन भोग वाले डिनर में भी जो स्वीट डिश खिलायी, वह ट्रिकल पुडिंग ही थी।

पार्टी जल्द ही बिखर गयी। तब ऐडी नोब्लॉक मेरे कान में फुसफुसाये कि सर जेम्स बैरी चाहते हैं कि हम एडेल्फी टैरेस स्थित उनके अपार्टमेंट में एक कप चाय के लिए चलें।

बेरी का अपार्टमेंट चित्रशाला की तरह था। एक बहुत बड़ा-सा कमरा जहां से टेम्स नदी का नज़ारा दिखायी देता था। कमरे के बीचों-बीच एक गोलाकार अंगीठी थी जिसमें से चिमनी का एक पाइप ऊपर छत तक चला गया था। वे हमें उस खिड़की तक ले गये जो एक तंग गली की तरफ खुलती थी और उसके ठीक सामने एक दूसरी खिड़की थी।

"ये बर्नार्ड शॉ का सोने का कमरा है।" उन्होंने अपने स्कॉटिश लहजे में शरारतपूर्ण तरीके से कहा,"जब भी मैं बत्ती जली हुई देखता हूं तो मैं उनकी खिड़की पर चेरी या आलूचे के बीज फेंक कर मारता हूं। अगर वे गप्पबाजी करना चाहते हैं तो वे खिड़की खोल देते हैं, और हम थोड़ी देर निठल्ली औरतों की तरह गपशप कर लेते हैं और अगर वे बात नहीं करना चाहते तो मेरी तरफ कोई ध्यान नहीं देते या फिर बत्ती बुझा देते हैं। आम तौर पर मैं तीन बार बीज उनकी खिड़की पर मारता हूं और उसके बाद छोड़ देता हूं।"

पैरामाउंट हॉलीवुड में पीटर पैन फिल्माने जा रहे थे। "पीटर पैन" मैंने बेरी से कहा,"में नाटक से भी ज्यादा फिल्म में संभावनाएं हैं।" और वे मुझसे सहमत थे। उस शाम बैरी ने ये पूछा,"आपने द किड में एक स्वप्न की दृश्यावली को क्यों पिरोया है? इससे कथा के विकास में बाधा आती है।"

"चूंकि मैं ए किस ऑफ सिंड्रेला से प्रभावित था।" मैंने बेधड़क हो कर कहा।

अगले दिन ऐडी और मैं खरीदारी के लिए निकल गये। उसके बाद उन्होंने सुझाव दिया कि क्यों न हम बर्नार्ड शॉ से मिलते चलें! कोई समय तय नहीं किया गया था। "हम बस उनसे यूं ही मिल लेंगे।" कहा ऐडी ने। दोपहर चार बजे के करीब ऐडी ने एडेल्फी टैरेस में दरवाजे की घंटी बजायी। जिस वक्त हम इंतज़ार कर रहे थे कि तभी अचानक मेरा मूड उखड़ गया,"किसी और समय।" कहा मैंने और वहां से गली में सरपट दौड़ लिया। ऐडी मेरे पीछे-पीछे दौड़ रहे थे। वे बेकार में मुझे आश्वस्त कर रहे थे कि सब कुछ ठीक हो जायेगा।

1931 में ही यह संभव हो पाया था जब मुझे बर्नार्ड शॉ से मिलने का सौभाग्य मिला।

अगली सुबह मेरी नींद बैठक में बज रही टेलिफोन की घंटी से खुली और मैंने अपने अमरीकी सचिव की गुरू गम्भीर आवाज़ सुनी: "कौन?प्रिंस ऑफ वेल्स!!"

ऐडी भी वहीं पर थे और चूंकि वे अपने आपको प्रोटोकॉल के जानकार समझते थे, फोन सचिव से ले लिया। मैं ऐडी की आवाज़ सुन पा रहा था, वे कह रहे थे,"तो आप हैं! हां हां, जी हां, आज रात? धन्यवाद!!"

ऐडी ने उत्तेजित होते हुए मेरे सचिव को बताया कि प्रिंस ऑफ वेल्स चाहते हैं कि चैप्लिन आज रात उनके साथ भोजन करें और वे खुद मेरे बेडरूम की तरफ लपके।

"उन्हें अभी मत जगाइये।" मेरे सचिव ने कहा।

"अरे भाई, समझा करो। ये प्रिंस ऑफ वेल्स हैं।" ऐडी ने नाराज़ होते हुए कहा और ब्रिटिश तौर तरीकों पर हल्ला बोल दिया।

एक ही पल बाद मैंने अपने बैडरूम के दरवाजे के हैंडल को घूमते हुए सुना तो मैंने यही जतलाया मानो मैं जाग रहा था। ऐडी भीतर आये और दबी हुई उत्तेजना के साथ और नकली उदासीनता के साथ बताने लगे," आज रात अपने आपको फ्री रखना। तुम्हें प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ खाना खाने के लिए न्यौता मिला है।"

उसी तरह की उदासीनता ओढ़ते हुए मैंने उन्हें बताया कि ये खराब लगेगा क्योंकि मैं आज की शाम एच जी वेल्स के साथ डिनर करने के बारे में पहले ही तय कर चुका हूं। मैंने जो कुछ कहा उस पर ऐडी ने कोई ध्यान नहीं दिया और प्रिंस के संदेश को दोहराया। बेशक मैं रोमांचित था -बकिंघम पैलेस में प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ भोजन करने का ख्याल ही रोमांचित करने वाला था!

"लेकिन मेरा ख्याल है, ज़रूर कोई हमें बुद्धू बना रहा है।" कहा मैंने,"क्योंकि मैंने कल रात ही पढ़ा था कि प्रिंस स्कॉटलैंड में हैं, शिकार के लिए!"

ऐडी अचानक मूरख नज़र आने लगे, "शायद यही बेहतर होगा कि मैं महल में फोन करके पता करूं!"

वे वापिस आये तो उनके चेहरे पर गूढ़ भाव थे। उन्होंने चेहरे पर कोई भी संवेदना लाये बगैर कहा,"ये सच है। वे अभी भी स्कॉटलैंड में ही हैं।"

उसी सुबह खबर आयी कि कीस्टोन कम्पनी में मेरे सहयोगी रोस्को ऑरबक्कल पर कत्ल का इल्ज़ाम लगाया गया है। ये अविश्वसनीय खबर थी। मैं रोस्को को जानता था। वे बहुत ही नेक, मिलनसार आदमी थे और वे इतने सज्जन थे कि कभी किसी मक्खी को भी नहीं मार सकते थे। जब प्रेस ने इस बारे में मेरा साक्षात्कार लिया तो मैंने यही राय जाहिर की थी। बाद में ऑरबक्कल को पूरी तरह से दोष मुक्त कर दिया गया था लेकिन इस मामले ने उनका कैरियर ही चौपट कर दिया: हालांकि उन्हें फिर से जनता में अपनी पुरानी जगह मिल गयी थी, इस दुखद प्रसंग ने उन पर अपना असर छोड़ा और वे एकाध बरस के भीतर ही गुज़र गये थे।

मुझे ऑसवाल्ड स्टॉल थियेटर के दफ्तर में दोपहर के वक्त वेल्स महोदय से मिलना था। हमें वहां पर उनकी एक कहानी पर आधारित बनी हुई फिल्म देखनी थी। जैसे ही हम निकट पहुंचे तो देखते क्या हैं कि वहां पर अपार भीड़ जुटी हुई है। जल्दी ही मुझे धकियाया गया, उछाला गया और एक लिफ्ट में एक तरह से धकेल दिया गया। और इस तरह से मैं एक छोटे-से दफ्तर में पहुंचा जहां पर और भी कई लोग थे।

मैं इस बात को ले कर हैरान-परेशान था कि हमारी पहली ही मुलाकात इस तरह के मुहूर्त में हो रही है। वेल्स एक डेस्क के पास शांत मुद्रा में बैठे हुए थे। दयालुता से भरी उनकी बैंजनी नीली आंखें चमक रही थीं। वे भी थोड़े परेशान लग रहे थे। इससे पहले कि हम हाथ ही मिला पाते,चारों तरफ से फ्लैशलाइटों और फोटाग्राफरों के हुजूम ने हमें घेर लिया। वेल्स झुके और फुसफुसाये,"आप और मैं बकरियां हैं!"

तब हमें प्रोजेक्शन रूम में ले जाया गया। फिल्म खत्म होने को थी कि तभी वेल्स मेरे कान में फुसफुसाये,"आपको कैसी लगी फिल्म?"

मैंने स्पष्ट उत्तर दिया कि फिल्म अच्छी नहीं थी। जब रौशनियां जल गयीं तो वेल्स तेजी से झुके,"नायक के बारे में तो दो भले शब्द कह दो!"

दरअसल, नायक जॉर्ज के आर्थर ही थे जो अकेले फिल्म की जान थे।

फिल्मों के प्रति वेल्स का नज़रिया अप्राकृतिक रूप से सहन करने वालों की तरह का था। "बुरी फिल्म नाम की कोई चीज नहीं होती।" कहा उन्होंने,"बात यही है कि उनकी गति शानदार होती है।"

उस अवसर पर एक दूसरे को जान पाने का मौका नहीं था लेकिन, बाद में उसी दिन मुझे उनका संदेश मिला।

डिनर के बारे में मत भूलना। अगर आपको ठीक लगे तो अपने आपको ओवरकोट में छुपाते हुए आ जाना। 7.30 बजे सरक कर आ जाना और हम शांति से खाना खा पायेंगे।

उस शाम रेबेका वेस्ट भी वहीं थी। बातचीत थोड़ी उखड़ी-उखड़ी चल रही थी। लेकिन आखिरकार हमने पिघलना शुरू किया। वेल्स रूस के बारे में बातें करने लगे। वे हाल ही में रूस हो कर आये थे।

"प्रगति धीमी है।" वे बोले,"आदर्शवादी फतवे जारी करना आसान होता है लेकिन उन्हें अमल में लाना मुश्किल होता है।"

"उपाय क्या है?" मैंने पूछा।

"शिक्षा"

मैंने उन्हें बताया कि मैं समाजवाद से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ नहीं हूं और मैंने मज़ाक में कहा कि मैं ऐसी व्यवस्था का हामी नहीं हूं जहां पर जीवन जीने के लिए आदमी को काम करना ही पड़े। "सच कहूं तो मैं ऐसी व्यवस्था को पसंद करूंगा जहां आदमी को काम किये बिना भी जीने दिया जाये।"

वे हँसे,"तो भई, आपकी फिल्में क्या हैं?"

"वो तो कोई काम थोड़े ही है, वह तो बच्चों का खेल है।" मैंने मज़ाक मेंकहा।

उन्होंने पूछा कि यूरोप में छुट्टियों में मैं क्या करने वाला हूं। मैंने बताया कि पहले तो मैं पेरिस जाने की सोच रहा हूं और फिर सांडों के साथ लड़ाई, बुल फाइट देखने स्पेन जाने का मन है।

"मुझे बताया गया है कि तकनीक ड्रामाई और सुंदर होती है।"

"हां सो तो है, लेकिन घोड़ों के लिए ये सब बहुत क्रूरतापूर्ण है," कहा उन्होंने।

"लेकिन घोड़ों के लिए क्या भावुक होना?" मैंने इस मूर्खतापूर्ण जुमले के लिए मैंने अपना सिर पीट लिया होता!! ये मेरी दिलेरी थी। लेकिन मैं देख पाया कि वेल्स समझ गये थे। अलबत्ता, घर आते समय सारे समय मैं अपने-आपको इस बात के लिए कोसता रहा कि मैंने इतनी हल्की बात कैसे कह दी।

अगले दिन ऐडी नोब्लॉक के दोस्त, सर एडविन लुट्येंस, प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी होटल में मिलने आये। वे दिल्ली में नयी सरकारी इमारत के लिए नक्शों पर काम कर रहे थे और बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्च V के साथ अभी-अभी मुलाकात करके लौट रहे थे। वे अपने साथ एक छोटा-सा घुमंतू टायलेट ले कर गये थे; ये लगभग छ: इंच ऊंचा था और इसमें एक छोटी सी टंकी लगी हुई थी जिसमें शराब के गिलास जितना पानी आ जाता था। जिस वक्त जंजीर खींची जाती थी, उसका फ्लश नियमित टायलट की तरह चलता था। राजा और रानी दोनों ही इसे देख कर इतने आनंदित हुए और जंजीर का खींचना और फ्लश का चल पड़ना उन्हें इतना भाया कि लुट्येंस ने सुझाया कि इसके चारों तरफ एक गुड़िया घर बना दिया जाये। बाद में उन्होंने इस बात की व्यवस्था की कि कई ख्यातिनाम अंग्रेज़ कलाकारों ने प्रधान कक्षों के लिए मिनिएचर तस्वीरें पेंट कीं। प्रत्येक घरेलू वस्तु मिनिएचर में ही बनायी गयी थी। जब काम पूरा हो गया तो महारानी ने इस बात की अनुमति दी कि इन्हें जनता के प्रदर्शन के लिए रखा जाये और इस तरह से उन्होंने सहायतार्थ बड़ी राशियां जुटायीं।

कुछ ही अरसे बाद मेरी सामाजिक गतिविधियों का ज्वार नीचे उतरने लगा। मैं साहित्यकारों से और गणमान्य व्यक्तियों से मिल चुका था और अपने बचपन की जगहों पर जा चुका था; अब मेरे लिए और कुछ नहीं रह गया था सिवाय इसके कि भीड़ से बचने के लिए टैक्सियों में घुसता और उनमें से निकलता रहूं; और अब चूंकि ऐडी नोब्लॉक ब्राइटन के लिए जा चुके थे, मैंने अचानक ही तय किया कि बोरिया-बिस्तर बांध लिया जाये और इस सबसे मुक्ति पायी जाये।

हम बिना किसी प्रचार के चले थे, ये मेरा ख्याल था, लेकिन कालाइस पर बहुत बड़ी भीड़ ने हमारा स्वागत किया। जैसे ही मैं जहाज के रास्ते से नीचे आया, वे चिल्लाये, "जुग जुग जीओ चार्लोट¨।" हमारी समुद्री यात्रा बहुत ही दुरूह रही थी और मेरा आधा तन तो चैनल में ही रह गया था; इसके बावजूद मैंने अपना कमज़ोर हाथ हिलाया और मुस्कुराया। मुझे धक्का दिया गया, खींचा गया और दबा कर ट्रेन के हवाले कर दिया गया। पेरिस पहुंचने पर बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने और पुलिस बंदोबस्त ने हमारा स्वागत किया। एक बार फिर उत्साहपूर्वक मुझे धकियाया गया, रगेदा गया और पुलिस की मदद से मुझे उठाया गया और एक टैक्सी में ठूंस दिया गया। ये सब बहुत मज़ेदार रहा और सच कहूं तो मुझे इस सबमें मज़ा आया। लेकिन ये सब उससे ज्यादा था जितने का मैं हकदार था। हालांकि जिस तरह से मेरी अगवानी की जा रही थी, इसकी उत्तेजना ने मुझे निचोड़ कर रख दिया था।

क्लेरिज होटल में हर दस मिनट बाद फोन लगातार घनघनाना शुरू कर देता। मिस ऐन मोर्गन का सचिव बात करना चाहता था। मैं जानता था कि ये फोन किसी न किसी अनुरोध को ले कर ही होगा, क्योंकि ऐन जे पी मोर्गन की पुत्री थीं। इसलिए हमने सचिव की तरफ तवज्जो देना छोड़ दिया लेकिन सचिव महाशय हमें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

"क्या मैं मिस मोर्गन से मिलूंगा? वे मेरा ज्यादा वक्त नहीं लेंगी।"

मैंने हार मान ली और ये वादा किया कि मैं अपने होटल में दोपहर को पौने चार बजे मिलूंगा। लेकिन मिस मोर्गन को देर हो गयी इसलिए मैंने चार बजने से दस मिनट पहले जाने की तैयारियां शुरू कर दीं। जिस वक्त मैं लॉबी में से जा रहा था, होटल का प्रबंधक मेरे पास लपकता हुआ आया और परेशान हाल बोला,"मिस मोर्गन आपसे मिलने के लिए आ पहुंची हैं सर!"

मैं मिस मोर्गन के पक्के इरादे और आश्वस्ति का मुरीद हो गया था। और फिर ऊपर से देरी! मैंने मुस्कुराते हुए उनका स्वागत किया,"मुझे खेद है कि चार बजे मुझे किसी से मिलना है।"

"ओह, सचमुच!" कहा उन्होंने,"तो ठीक है, मैं आपके पांच मिनट से ज्यादा नहीं लूंगी।"

मैंने अपनी घड़ी देखी। चार बजने में पांच मिनट बाकी थे।

"क्या हम दो घड़ी के लिए बैठ कर बात कर सकते हैं!" उन्होंने कहा और जब लॉबी में बैठने के लिए जगह के लिए तलाश कर रहे थे, हमने बात करना शुरू कर दिया।

"मैं बरबाद हो चुके फ्रांस के पुनर्निर्माण के लिए निधियां जुटाने में मदद कर रही हूं और अगर हम ट्रोकारडो में आपकी फिल्म द किड का भव्य प्रदर्शन रखें और आप उसके साथ मंच पर आ सकें तो हम हज़ारों डॉलर जुटा सकते हैं।"

मैंने उन्हें बताया कि वे इस मौके पर फिल्म का प्रदर्शन तो कर सकती हैं लेकिन मैं उसके साथ उपस्थित नहीं रहूंगा।

"लेकिन आपकी मौजूदगी से हम कुछ हज़ार डॉलर अतिरिक्त जुटा पायेंगे!" उन्होंने ज़ोर दिया, "और मुझे विश्वास है कि आपका सम्मान किया जायेगा।"

मुझ पर जैसे शैतान हावी हो गया और मैंने सीधे उनकी तरफ देखा,"यकीन है आपको?"

मिस मोर्गन हँसी,"अब आदमी सरकार से सिफारिश ही तो कर सकता है।" वे बोलीं, "और मैं अपनी ओर से पूरी कोशिश करूंगी।"

मैंने घड़ी की तरफ देखा और अपना हाथ बढ़ा दिया,"मुझे बेहद अफसोस है कि मुझे जाना ही होगा। अलबत्ता, मैं अगले तीन दिन के लिए बर्लिन में होऊंगा और शायद आप मुझे बता देंगी।" और इस भेद भरे जुमले के साथ मैंने उनसे विदा ली। मैं जानता था कि ये मेरी ज्यादती थी और जिस वक्त मैं होटल से जा रहा था, मुझे अपनी इस हिमाकत पर अफसोस होता रहा।

सामाजिक ढांचे से आपका परिचय आम तौर पर अचानक ही किसी घटना के कारण होता है और वह आग से किसी चिन्गारी की तरह सामाजिक गतिविधियों का सिलसिला शुरू कर देता है और आप पाते हैं कि आप उसके "भीतर" हैं।

मुझे वेनेजुएला की दो लड़कियों की याद है - सीधी सादी लड़कियां। उन्होंने मुझे बताया था कि किस तरह से न्यू यार्क के सोसाइटी में उन्होंने अपनी पैठ बनायी थी। एक समुद्री जहाज पर उनकी मुलाकात रॉकफैलर्स में से एक से हुई थी जिसने उन्हें अपने दोस्तों के नाम परिचय की चिट्टी दे दी थी और यहीं से परिचयों का सिलसिला शुरू हुआ। बहुत बरसों के बाद उनमें से एक ने मुझे बताया था कि उनकी सफलता का राज्ा़ ये रहा कि उन्होंने कभी भी शादीशुदा आदमियों पर लाइन नहीं मारी; और इसका नतीजा ये हुआ कि मेज़बान महिलाएंं उन्हें पसंद करती थीं और उन्हें हर कहीं बुलाती थीं और उनके लिए यहां तक किया कि उनके लिए पति भी तलाशे।

जहां तक मेरा सवाल है, अंग्रेजी समाज में मेरा प्रवेश अचानक ही हुआ। मैं क्लेरिज होटल में स्नान कर रहा था। जॉर्जेस कारपेंटियर, जिनसे मैं न्यू यार्क में जैक डेम्प्से के साथ उनकी लड़ाई से पहले मिल चुका था, के आने के बारे में बताया गया और वे बाथरूम में चले आये। गर्मजोशी से मिल लेने के बाद वे मेरे कान में फुसफुसाये कि बैठक में उनका एक दोस्त बैठा हुआ है जिससे वे मुझे मिलवाना चाहते हैं। ये अंग्रेज शख्स अंग्रेजी समाज में बहुत खास जगह रखता है। ये सुन कर मैंने फटाफट बाथरोब डाला, और सर फिलिप सैसून से मिला। ये एक बहुत ही प्यारी दोस्ती की शुरुआत थी जो अगले तीस बरस तक चलती रही। उस शाम हमने सर फिलिप सैसून और उनकी बहन के साथ भोजन किया। वे उस वक्त लेडी रॉकसैवेज हुआ करती थीं। अगले ही दिन मैं बर्लिन के लिए रवाना हो गया।

बर्लिन में जनता की प्रतिक्रिया मज़ेदार थी। वहां पर मेरे व्यक्तित्व के अलावा मुझसे मेरा सब कुछ उतरवा लिया गया और हालत ये हो गयी कि एक नाइट क्लब में मुझे ढंग की मेज़ तक नसीब नहीं हुई। इसकी वजह ये थी कि वहां पर मेरी कोई भी फिल्म अब तक प्रदर्शित नहीं हुई थी। शुरुआत तब हुई जब एक अमेरिकी अधिकारी ने मुझे पहचाना और हैरान परेशान मालिक को उदासीनता के साथ बताया कि मैं कौन हूं और कम से कम हम अपरिचय के दायरे से बाहर आ पाये थे। होटल के प्रबंधन की उस प्रतिक्रिया देखना तो और भी मज़ेदार था जब हमारी मेज़ के आस पास उन लोगों की भीड़ लग गयी जिन्होंने मुझे पहचान लिया था। उनमें से एक जर्मन, जो इंगलैंड में कैद में रह चुका था, और वहां पर उसने मेरी दो तीन कॉमेडी फिल्में देख रखी थीं, अचानक चिल्लाया, "शार्ली ई ई ई!" और हक्के-बक्के खड़े ग्राहकों की तरफ मुड़ कर बोला,"आपको पता है ये कौन है? शार्ली ई ई ई!" तब जैसे उसे पागलपन का दौरा पड़ गया हो, उसने मुझे गले लगाया और मुझे चूमा। लेकिन उसके उस उत्साह से ज्यादा कुछ हंगामा नहीं हुआ। लेकिन तभी जर्मन फिल्म अदाकारा, पोला नेगरी, जो सबकी आंखों का तारा थी, ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनकी मेज पर आना पसंद करूंगा, तभी जा कर थोड़ी बहुत दिलचस्पी पैदा हो पायी थी।

मेरे पहुंचने के दिन ही मुझे एक रहस्यमय संदेश मिला। इसमें लिखा था:

प्यारे दोस्त चार्ली, पिछली बार जब हम डुडले फील्ड मालोने के यहां न्यू यार्क में पार्टी में मिले थे, उसके बाद बहुत कुछ घट चुका है। इस समय मैं अस्पताल में बहुत बीमार पड़ा हुआ हूं, इसलिए मेहरबानी करके आओ और मुझसे मिलो। मुझे बहुत बहुत खुशी होगी . ..।

लेखक ने अस्पताल का अपना पता दिया था और हस्ताक्ष किये थे: "जॉर्ज"

पहले तो मुझे याद ही नहीं आया कि ये शख्स है कौन!! तभी मुझे सूझा: हां, ये वही बुल्गारियाई जॉर्ज है जिसे अट्ठारह बरस के लिए दोबारा जेल में जाना था।

पत्र की भाषा से ही साफ़ जाहिर हो रहा था कि मामला दिल को छूने वाला ही होगा इसलिए मैंने सोचा कि अपने साथ पांच सौ डॉलर लेता चलूं। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब अस्पताल में मुझे एक बहुत बड़े से कमरे में ले जाया गया जिसमें एक डेस्क रखी थी और उस पर दो टेलिफोन रखे हुए थे। वहां पर दो अच्छे-खासे कपड़े पहने दो सिविल अधिकारियों ने मेरा स्वागत किया जिनके बारे में बाद में मुझे पता चला कि वे जॉर्ज के सचिव थे। उनमें से एक मुझे साथ वाले कमरे में लिवा ले गया जहां पर जॉर्ज बिस्तर पर लेटा था। "मेरे दोस्त!" वह भावुक हो कर मेरा स्वागत करते हुए बोला, "तुम आये, ये देख कर मुझे कितनी खुशी हो रही है। मैं डुडले की पार्टी में तुम्हारी सहानुभूति और मेहरबानी कभी भी भूल नहीं सकता!" उसने तब अपने सचिव को यंत्र चालित तरीके से आदेश दिया और हम दोनों को अकेला छोड़ दिया गया। चूंकि उसने अमेरिका से चले जाने के बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया, तो मुझे यही ठीक लगा कि इस बारे में उससे बात न करना ही उचित रहेगा; इसके अलावा, वह न्यू यार्क के अपने दोस्तों के बारे में जानने के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक था। मैं हैरान था। मुझे परिस्थिति का सिर पैर समझ में नहीं आ रहा था। ये सब किसी किताब के कई अध्याय एक साथ पलट लेने जैसा लग रहा था। रहस्य से पर्दा उठने की घड़ी तब आयी जब उसने बताया कि आजकल वह बोल्शेविक सरकार के लिए खरीद करने वाला एजेंट है और इस समय वह बर्लिन में रेलवे इंजिन और इस्पात के पुल खरीदने के लिए आया हुआ है।

मैं वापिस लौटा तो मेरे पांच सौ डॉलर मेरी जेब में सुरक्षित थे।

बर्लिन हताश करने वाला शहर था। वहां पर अभी भी हार वाला माहौल पसरा हुआ था और लगभग हर गली के कोने पर भीख मांगते लूले लंगड़े सैनिक युद्ध के बाद की त्रासद कहानी कह रहे थे। अब मुझे मिस मोर्गन के सचिव से तार मिलने शुरू हो गये जिनमें चिंता झलकती लगती क्योंकि पेस ने पहले से ही शो के समय ट्रोकाडेरो में मेरे उपस्थित होने की घोषणा प्रसारित करनी शुरू कर दी थी। मैंने वापसी तार भेजा कि मैंने मौजूद रहने का कोई वादा नहीं किया है और कि फ्रांसीसी जनता का विश्वास बनाये रखने के लिए मुझे उन्हें सच से अवगत कराना ही पड़ेगा।

आखिरकार एक तार आया: पूरा आश्वासन मिला कि अगर आप मौजूद रहते हैं तो आपको सम्मानित (डेकोरेट) किया जायेगा, लेकिन इसे पीछे कोशिशों और संकटों की लम्बी कड़ी रही है- ऐन मोर्गन। इसलिए बर्लिन में तीन दिन बिता कर मैं पेरिस वापिस आ गया।

ट्रोकाडेरो में प्रीमियर की रात मैं बॉक्स में सिसिल सोरेल, ऐन मोर्गन, और कई अन्य लोगों के साथ था। सिसिल मेरे कान में कोई गहरा भेद खोलने के लिए मेरे नज़दीक आये,"आज की रात आपका सम्मान किया जा रहा है।"

"कितनी शानदार बात है, नहीं क्या?" मैंने विनम्रता से कहा।

इंटरवल तक कोई वाहियात डॉक्यूमेंटरी चलती रही, चलती रही। तब तक मैं बीच बीच में काफी ऊब झेल चुका था कि तभी बत्तियां जल गयीं और दो अधिकारी आये और मेरी अगवानी करके मंत्री महोदय के बॉक्स तक ले गये। कई पत्रकार भी हमारे साथ लग लिये। एक काइंया अमेरिकी संवाददाता लगातार मेरी गर्दन के पीछे से फुसफुसाता रहा,"आपको लीजन ऑफ ऑनर मिल रहा है, दोस्त।" जिस वक्त मंत्री अपना भाषण दे रहे थे,मेरे इस दोस्त ने मेरे कान में लगातार फुसफुसाना जारी रखा,"इन लोगों ने आपको डबल क्रॉस किया है, दोस्त। ये गलत रंग है। इस रंग के रिबन से तो वे अपने स्कूल के टीचरों का सम्मान करते हैं। इस सम्मान को पा लेने से आप कोई तोप नहीं हो जायेंगे। आप लाल रंग से अपना सम्मान करने के लिए कहिये। मेरी मानो दोस्त।"

सच तो ये था कि मैं स्कूल टीचरों के वर्ग के साथ सम्मानित किये जाने से बहुत खुश था। प्रमाण पत्र में लिखा था: चार्ल्स चैप्लिन,नाटककार, कलाकार, ऑफिशियल द ल इलस्टेशन पब्लिक ।

मुझे ऐन मोर्गन की तरफ से आभार का बहुत ही खूबसूरत खत मिला और साथ में मिला - विला ट्रायनन, वर्सेलेस में खाना खाने का न्यौता। ऐन ने बताया कि वे मुझे वहीं पर मिलेंगी। ये कुछ खास हस्तियों का ही जमाव़ड़ा था। प्रिंस जॉर्ज ऑफ ग्रीस, लेडी साराह विल्सन, द मार्कुस द टालेरेंड पेरीगोल्ड, कमांडर पॉल लुइस वैल्लर, इल्सा मैक्सवेल तथा अन्य। उस मौके पर जो कुछ भी हुआ या जो भी बातें हुईं, मुझे उनकी याद नहीं है क्योंकि मैं तो अपने आकर्षण को ही भुनाने में लगा हुआ था। अगले दिन मेरे मित्र वाल्डो फ्रैंक जैकस कोपीउ के साथ मेरे होटल में आये। जैकस फ्रांसीसी थियेटर में नये आंदोलन के अगुआ थे। हम उस शाम एक साथ सर्कस देखने गये और हमने कुछ बेहद शानदार जोकर देखे। इसके बाद हमने लेटिन क्वार्टर में कोपीउ की मंडली के साथ खाना खाया।

अगले दिन मुझे लंदन में होना चाहिये था। वहां पर मुझे सर फिलिप सासून और लार्ड और लेडी रॉकसैवेज के साथ लंच लेना था और लॉयड जॉर्ज से मुलाकात करनी थी। लेकिन चैनल पर खूब अधिक धुंध होने के कारण जहाज को फ्रांसीसी तट पर ही उतरना पड़ा और इस तरह से हम तीन घंटे देर से पहुंच पाये।

सर फिलिप सासून के बारे में दो शब्द। वे युद्ध के समय लॉयड जॉर्ज के आधिकारिक सचिव रह चुके थे। वे लगभग मेरी ही उम्र के थे और बहुत ही शानदार व्यक्तित्व के मालिक थे। वे देखने में सुदर्शन थे और आंखों को भा जाने वाले नज़र आते थे। वे संसद सदस्य थे और वहां ब्राइटन और होव का प्रतिनिधित्व करते थे। हालांकि वे इंगलैंड के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे, उन्हें खाली बैठे रहना पसंद नहीं था। वे कड़ी मेहनत करते थे और उन्होंने अपने लिए बहुत ही रोचक ज़िंदगी का रास्ता चुना था।

जब मैं उनसे पहली बार पेरिस में मिला तो मैंने उन्हें बताया था कि मैं थक चुका हूं और भीड़ भाड़ से दूर चले जाना चाहता हूं। इसके अलावा मैं बहुत नर्वस हो गया हूं और मैंने उनसे ये शिकायत तक कर डाली थी कि मेरे होटल के कमरे की दीवारों के रंग भी मेरी कोफ्त बढ़ा रहे हैं।

वे हँसे थे,"आपको कौन सा रंग पसंद है?"

"पीला और सुनहरी," मैंने मज़ाक में कहा।

उन्होंने तब मुझे सुझाव दिया कि मैं उनकी इस्टेट लिम्पने में चला जाऊं जहां मुझे भरपूर शांति मिलेगी और मैं लोगों से दूर रह पाऊंगा। मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब मैंने वहां पहुंच कर पाया कि मेरे कमरे में पीले और सुनहरी रंग के पेस्टल परदे थे।

उनकी इस्टेट असाधारण रूप से खूबसूरत थी। घर को चमक दमक से सजाया गया था। फिलिप इसे कर पाये क्योंकि उनकी अभिरुचि बहुत ऊंची थी। मुझे याद है कि मैं ये देख कर कितना प्रभावित हुआ था कि मेरा सुइट विलासिता की सभी सुविधाओं से लैस था। अगर रात को कहीं मुझे भूख लगे तो सूप गरम रखने के लिए आग से गरम रखी जाने वाली तश्तरी। सवेरे के वक्त दो अनुभवी बटलर तरह तरह के व्यंजनों से लदी एक ट्राली ले कर आते जिस में तरह तरह के पकवान होते: अमेरिकी सीरियल, फिश कटलेट, बैकन और अंडे। मुझे ख्याल आया था कि जब से मैं यूरोप में था, मैं अमेरिकी व्हीटकेक की कमी महसूस कर रहा था और अब ये मेरे सामने थे। मेरे बिस्तर के बगल में ही ले आये गये थे। एकदम गरमा गरम, और साथ में मक्खन और मैपल का शोरबा। लगता था ये सब अरेबियन नाइट्स से चल कर आया है।

सर फिलिप घूम घूम कर घर के काम काज निपटाते और उनका एक हाथ कोट की जेब में होता। वे उस हाथ से मां की मोतियों की माला फेर रहे होते। ये लगभग एक गज लम्बी माला थी और मोतियों का आकार अंगूठे के नाखून के बराबर था। उन्होंने बताया,"मैं मोतियों को जीवित रखने के लिए हमेशा अपने पास रखता हूं।"

जब मैं अपनी थकान से उबर गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ ब्राइटन में अस्पताल तक चला चलूंगा जहां पर कुछ ऐसे असाध्य मरीज हैं जो युद्ध में घायल हो गये थे। उन युवा चेहरों को देखना बेहद तकलीफदेह था, खास कर एक ऐसे नौजवान को देखना जिसके हाथ पांव बेकार हो चुके थे और वह मुंह में ब्रश ले कर पेंट कर रहा था क्योंकि यही वह इकलौता अंग था उसके शरीर का जो काम कर रहा था। एक अन्य सैनिक की मुट्ठियां इतनी भिंच गयी थीं कि उसके नाखून काटने के लिए उसे बेहोश करना पड़ा था ताकि उनके नाखून कहीं उसकी हथेलियों में ही न घुस जायें। कुछ मरीज तो इतनी दयनीय हालत में थे कि मुझे उन्हें देखने ही नहीं दिया गया। अलबत्ता, सासून उनसे मिले। लिम्पने के बाद हम एक साथ ड्राइव करते हुए लंदन में उनके पार्क स्ट्रीट स्थित घर में आ गये जहां पर उन्होंने सहायतार्थ पेंटिंगों की अपनी वार्षिक फोर जॉर्ज प्रदर्शनी का आयोजन किया हुआ था। ये बहुत ही शानदार घर था और उसमें एक बहुत बड़ी पौधशाला थी जिसमें नीले हाइसिंथ के फूल बिछे हुए थे। अगले दिन जब मैंने वहां पर लंच लिया तो पाया कि हाइसिंथ के फूल बदल दिये गये थे और अब किसी और रंग के थे।

हम सर विलियम ऑर्पेन के स्टूडियो में गये जहां पर हमने फिलिप की बहन लेडी रॉकसैवेज का पोर्ट्रेट देखा। ये बेहद खूबसूरती से सजाया गया था। मैंने तो अपनी तरफ से ऑर्पेन को नकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी थी क्योंकि उन्होंने गूंगे की तरह विश्वास न करने जैसे भाव दिखाये थे और मैं समझा था कि ये भाव नकली हैं।

हम एक बार फिर एच जी वेल्स के गांव वाले घर में गये। ये वारविक इस्टेट के काउटेंस पर था और यहां पर वे अपनी पत्नी और अपने दोनों बेटों के साथ रहते थे। उनके बेटे हाल ही में कैम्ब्रिज से आये थे। मुझे रात भर वहां ठहरने का न्यौता दिया गया था।

दोपहर के आसपास कैम्ब्रिज संकाय के तीस से भी ज्यादा लोग आ गये और बगीचे में इस तरह से सट कर बैठ गये मानो स्कूल ग्रुप की फोटो ली जा रही हो। वे गूंगे हो कर मुझे देखे जा रहे थे मानो वे किसी दूसरे नक्षत्र से आये किसी विचित्र प्राणी को देख रहे हों।

शाम के वक्त वेल्स परिवार ने एक खेल खेला जिसका नाम था जानवर, सब्जी या खनिज। ये खेलते हुए मुझे लगा मानो मैं सामान्य ज्ञान की कोई परीक्षा दे रहा हूं। मेरी स्मृति में सबसे ऊपर है वहां की बरफ जैसी ठंडी चादरें और मोमबत्ती ले कर बिस्तर पर सोने जाना। इंगलैंड में बितायी गयी ये मेरी सबसे ठंडी रात थी। सारी रात मैं ठिठुरता रहा था और सुबह जब उठा तो एच जी वेल्स ने मुझसे पूछा कि रात नींद आयी थी क्या।

"हां, ठीक से सोया मैं," मैंने विनम्रता से जवाब दिया।

"हमारे कई मेहमान कहते हैं कि कमरा ठंडा होता है?" उन्होंने भोलेपन से पूछा।

"मैं ये तो नहीं कहूंगा, ठंडा था, हां बर्फीला ज़रूर था।"

वे हँसे।

एच जी वेल्स के घर उस बार जाने की कुछ और स्मृतियां हैं मेरे पास। उनका छोटा सा अध्ययन कक्ष था जो बाहर लगे दरख्तों के कारण अंधेरा सा लगता था। उसकी खिड़की के पास पुराने ढब की एक ढलुवां लिखने की डेस्क थी। उनकी प्यारी सी, सुंदर पत्नी ने मुझे ग्यारहवीं शताब्दी का गिरजाघर दिखाया था। हमने एक नक्काशी करने वाले से बात की थी जो कुछ समाधि शिलाओं से पीतल की छाप ले रहा था। घर के पास झुंड के झुंड हिरण घूम रहे थे। लंच के वक्त सेंट जॉन इर्विन ने रंगीन फोटोग्राफी के रोमांचकारी पहलुओं के बारे में बताया था और मैंने उनके प्रति अपनी नापसंदगी जाहिर की थी। एच जी ने कैम्ब्रिज के प्रोफेसर के व्याख्यान में से एक पन्ना पढ़ कर सुनाया था और मैंने कहा था कि इसकी पुरातन शैली यही आभास देती है मानो पन्द्रहवीं शताब्दी के किसी भिक्षु ने इसे लिखा हो। और फ्रैंक हैरिस के बारे में वेल्स का किस्सा। वेल्स ने बताया कि संघर्षरत युवा लेखक के रूप में उन्होंने चौथे आयाम को छूते हुए अपनी पहली विज्ञान कहानियों में से एक लिखी थी और उसे उन्होंने कई पत्रिकाओं के सम्पादकों को भेजा था लेकिन सफलता कहीं नहीं मिली थी। आखिर उन्हें फ्रैंक हैरिस से एक पर्ची मिली जिसमें अनुरोध किया गया कि मै उनके दफ्तर में आ कर मिलूं।

"हालांकि उन दिनों मैं कड़की में था," वेल्स ने बताया,"मैंने इस मौके के लिए एक पुराना टॉप हैट खरीदा । हैरिस ने मेरा इन शब्दों के साथ स्वागत किया: 'हे भगवान, तुमने ये हैट कहां से पा लिया और खुदा खैर खरे, तुम पत्रिकाओं में इस तरह के लेख बेचने के बारे में सोच ही कैसे सकते हो।' उन्होंने पांडुलिपि मेज पर पटक दी,'इस कारोबार में बौद्धिकता के लिए कोई जगह नहीं है।' मैंने अपना हैट सावधानी से डेस्क के कोने पर रखा हुआ था और बात करते समय फ्रैंक बार बार अपना हाथ डेस्क पर मार रहे थे और मेरा हैट बार बार इधर उधर उछल रहा था। मैं भयभीत था कि किसी भी पल उनकी मुट्ठी सीधे ही मेरे हैट पर पड़ेगी। अलबत्ता, उन्होंने वह लेख ले लिया था और मुझे और भी काम दिये थे।"

लंदन में मैं लाइम लाइट्स के लेखक थॉमस बर्के से मिला। वे शांत, अभेद्य, छोटे कद के आदमी थे जिनका चेहरा मुझे कीट्स के पोट्रेट की याद दिलाता था। वे बिना हिले डुले बैठे रहते और जिस व्यक्ति से बात कर रहे होते, शायद ही उससे आंखें मिलाते, लेकिन फिर भी उन्होंने मुझे बहुत प्रभावित किया। मुझे लगा कि मैं इस आदमी के सामने अपनी आत्मा का बोझ हल्का करना चाहता हूं और मैंने किया भी। मैं बर्के के साथ अपने सर्वश्रेष्ठ रूप में था। वेल्स की तुलना में भी अधिक। बर्के और मैं लाइमहाउस और चाइनाटाउन की गलियों में चहलकदमी करते रहते और आपस में एक शब्द भी न बोलते। जगहें घुमाने का उनका यही तरीका था। वे अलग ही तरह के आदमी थे और मैं कभी भी ये समझ नहीं पाया कि वे मेरे बारे में क्या सोचते थे। तीन या चार बरस के बाद ही उन्होंने मुझे अपनी अर्ध आत्मकथात्मक किताब द विंड एंंड द रेन भेजी थी तभी मुझे पता चल पाया था कि वे मुझे पसंद करते थे। उनकी युवावस्था भी मेरी अपनी जवानी की तरह रही थी।

जब उत्तेजना की कलई उतरने लगी तो मैंने अपने कज़िन ऑब्रे और उसके परिवार के साथ डिनर लिया। एक दिन बाद मैं कार्नो के दिनों के जिम्मी रसेल से मिलने गया। उसका एक पब था। तब मैं स्टेट्स में वापिस लौटने के बारे में सोचने लगा।

अब मैं ऐसे पलों में पहुंच चुका था जब मुझे लगा कि अगर मैं लंदन में और अधिक रहा तो मैं अपने आपको निकम्मा महसूस करने लगूंगा। मैं इंगलैंड छोड़ने में हिचकिचकाहट महसूस कर रहा था लेकिन प्रसिद्धि के पास अब मुझे देने के लिए और कुछ नहीं बचा था। मैं पूरी संतुष्टि के साथ इंगलैंड से वापिस लौट रहा था हालांकि थोड़ा सा उदास था, क्योंकि मैं अपने पीछे न केवल अमीर और प्रसिद्ध लोगों के द्वारा दिये गये सम्मान और खातिरदारी और प्यार के शोर को पीछे छोड़ कर जा रहा था बल्कि वाटरलू और गरे दू नोर्ड स्टेशनों पर मेरा इंतज़ार करके स्वागत करने के लिए जुटी इंगलैंड और फ्रांस की जनता द्वारा ईमानदारी और प्यार से दिये गये स्नेह और उत्साह भी अब पीछे छूट रहे थे। इस बात की कोफ्त कि आप उनके पास से ले जाये जाये रहे हैं और टैक्सी में ठूंसे जा रहे हैं और इस हालत में भी नहीं हैं कि आप उनकी तरफ हाथ भी हिला सकें,तकलीफ देता है। मानो मैं फूलों को कुचलते हुए चला होऊं। मैं अपना अतीत भी पीछे छोड़ का जा रहा था। केनिंगटन, और 3 पाउनाल टैरेस में जाने से मेरे भीतर कुछ भर गया सा लगता था। अब मैं कैलिफोर्निया लौटते हुए और खुद को काम में झोंक देने के लिए संतुष्ट था क्योंकि काम ही मेरी मुक्ति थी। बाकी सब कुछ दोगलापन था।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 15

जब मैं न्यू यार्क में पहुंचा तो मैरी डोरो ने फोन किया। मैरी डोरो का फोन करना - इस फोन का मतलब कुछ बरस पहले क्या हो सकता था!

मैं उन्हें लंच के लिए ले गया और उसके बाद हम उस नाटक का मैटिनी शो देखने गये जिस में वे अभिनय कर रही थीं: लिलीज़ ऑफ द फील्ड।

शाम को मैंने मैक्स ईस्टमैन, उनकी बहन, क्रिस्टल ईस्टमैन, और जमाइका के कवि और जहाजी मज़दूर क्लाउड मैके के साथ खाना खाया।

न्यू यार्क में अंतिम दिन। मैं फ्रैंक हैरिस के साथ सिंग सिंग जेल गया। रास्ते में उन्होंने बताया कि वे अपनी आत्म कथा पर काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें लगता है कि शुरू करने में बहुत देर हो गयी है,"मैं बूढ़ा हो रहा हूं।" कहा उन्होंने।

"उम्र अपने तरीके से क्षतिपूर्ति भी करती है।" मैंने चुटकी ली,"विवेक के हाथों मार खाना कम ही तकलीफदेह होता है।"

जिम लार्किन, आइरिश विद्रोही और मज़दूरों की यूनियन का संगठनकर्ता सिंग सिंग जेल में पांच बरस की सज़ा काट रहा था और फ्रैंक उससे मिलना चाहते थे। लार्किन बेहद मेधावी वक्ता था और उसे एक पूर्वाग्रही न्यायाधीश और जूरी द्वारा सरकार का तख्ता पलटने के झूठे जुर्म में सज़ा दी गयी थी, ऐसा फ्रैंक का कहना था और बाद में यह उस वक्त सिद्ध भी हो गया था जब गवर्नर अल स्मिथ ने उसकी सज़ा माफ़ कर दी थी लेकिन तब तक लार्किन अपनी सज़ा के अधिकांश बरस काट चुका था।

जेलों का एक अजीब-सा माहौल होता है। मानो वहां पर मानवीय आत्मा को स्थगित कर दिया गया हो। सिंग सिंग जेल में पुरानी कोठरियों के ब्लॉक बाबा आदम के ज़माने के थे। छोटी, संकरी, पत्थर की कोठरियां और हर कोठरी में चार से छ: तक कैदी एक साथ सोते थे। इस तरह की हौलनाक इमारतें बनाने की सोचने वालों का दिमाग कितना खुराफाती होता होगा। कोठरियां इस वक्त खाली थीं क्योंकि कैदी इस वक्त बाहर एक्सरसाइज वाले अहाते में थे। वहां पर सिर्फ़ एक ही जवान आदमी था जो अपनी खुली कोठरी की दीवार से टिका बैठा उदासी में अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। वार्डन ने समझाया कि लम्बी सज़ा के लिए आने वाले नये कैदियों को पहले बरस के लिए पुरानी कोठरियों वाले ब्लॉक में ही रखा जाता है और उसके बाद ही उन्हें अधिक आधुनिक कोठरियों में डाला जाता है। मैं नौजवान के आगे से कदम रखता हुआ उसकी कोठरी में गया और वहां की तंग जगह के आतंक को देख घबरा उठा,"हे मेरे भगवान," मैंने बाहर कदम रखते हुए तेजी से कहा,"ये तो अमानवीय है।"

"आपका कहना सही है," युवा कैदी कड़ुवाहट के साथ फुसफुसाया।

वार्डन बेचारा भला आदमी था, बताने लगा कि सिंग सिंग जेल में ज़रूरत से ज्यादा भीड़ है तथा और कोठरियां बनाने के लिए पैसे चाहिये लेकिन किसे फुर्सत,"हम पर सबके बाद ही विचार किया जाता है। कोई भी राजनेता जेल की स्थितियों को सुधारने के लिए सोचता नहीं।"

जिस कमरे में मौत की सज़ा दी जाती थी, वह स्कूल के कमरे की तरह था, लम्बोतरा और संकरा, जिसकी छत नीची थी और दोनों तरफ पत्रकारों के लिए लम्बी बेंचें और डेस्क लगे हुए थे और उनके सामने एक सस्ता-सा लकड़ी का ढांचा, बिजली की कुर्सी रखी हुई थी। कुर्सी पर, ऊपर से बिजली की एक नंगी तार लटक रही थी। कमरे में सबसे ज्यादा आतंकित करने वाली बात उसकी सादगी थी। वहां किसी किस्म का कोई ड्रामा नहीं था और ये बात निर्दयता से मुंह ढक कर मारने से भी ज्यादा पापमय थी। कुर्सी के ठीक पीछे लकड़ी का एक पार्टीशन बना हुआ था जहां पर आदमी को मारने के तुरंत ले जाया जाता था और वहां पर उसकी चीर-फाड़ की जाती थी। "अगर कुर्सी ने अपना काम पूरी तरह से नहीं किया होता तो शरीर को शल्य क्रिया द्वारा काट-पीट दिया जाता है।" डॉक्टर ने हमें बताया। और आगे कहा कि खत्म कर दिये जाने के तुरंत बाद मानव शरीर के दिमाग में खून का तापमान 212 डिग्री फारेनहाइट के आस-पास होता है। हम मौत के कमरे से भागते हुए बाहर निकले।

फ्रैंक ने जिम लार्किन के बारे में पूछा तो वार्डन इस बात के लिए तैयार हो गया कि हम उससे मिल सकते हैं। हालांकि ये नियमों के खिलाफ था, वह हमारे लिए ये काम भी कर देगा। लार्किन जूते बनाने की फैक्टरी में था। वहां पर उसने हमारा स्वागत किया। वह एक लम्बा, सुंदर, लगभग छ: फुट चार इंच का शख्स था और उसकी नीली बेधती हुई आंखें लेकिन मोहक मुसकान थी।

हालांकि वह फ्रैंक से मिल कर खुश हुआ लेकिन वह नर्वस और व्यथित था और अपनी बेंच पर वापिस जाने के लिए लालायित था। यहां तक कि वार्डन के आश्वासन से भी उसकी बेचैनी दूर नहीं हुई। "नैतिक रूप से ये दूसरे कैदियों के हक में गलत होगा अगर मुझे काम के घंटों के दौरान अपने मेहमानों से मिलने दिया जाये," लार्किन ने कहा। फ्रैंक ने जब उससे पूछा कि वहां पर उसके साथ कैसा बरताव होता है और क्या वह उसके लिए कुछ कर सकता है तो उसने बताया कि उसके साथ ठीक-ठाक व्यवहार होता है, बस, वह आयरलैंड में अपनी बीवी और बच्ची के लिए परेशान है। उनके बारे में उसने सज़ा मिलने के बाद से नहीं सुना है। फ्रैंक ने वायदा किया कि वह उसकी मदद करेगा। जब हम वहां से चले तो फ्रैंक ने कहा कि जिम लार्किन जैसे इस बहादुर, जांबाज चरित्र को जेल के कैदी में बदल दिये जाने से उन्हें बहुत हताशा होती है।

जब मैं हॉलीवुड लौटा तो मां से मिलने के लिए बीच में रुक गया। वह बहुत खुश नज़र आ रही थी और उसे मेरी लंदन की विजय यात्रा की सारी खबरें मिल गयी थीं।

"बताओ तो मां, अपने बेटे और इन सारी बेवकूफियों के बारे में तुम क्या सोचती हो?" मैंने शरारतन पूछा।

"ये सब हैरान करने वाला है। लेकिन क्या ये अच्छा नहीं होगा कि तुम अपने असली रूप में रहो बजाये नकली की ड्रामाई दुनिया में रहने के!"

"इसका जवाब तो मां, तुम्हें ही देना चाहिये," मैं हँसा, "इस नकलीपने के लिए तुम्हीं जिम्मेवार हो।"

वह एक पल के लिए रुकी,"काश, तुमने अपने आपको परम पिता परमात्मा की सेवा में लगा दिया होता तो तुम हज़ारों लोगों की ज़िंदगी बचा सकते थे।"

मैं मुस्कुराया,"मैंने आत्माओं को तो बचा लिया होता लेकिन धन न बचा पाता।"

घर की तरफ जाते समय मिसेज रीव्ज़, मेरे प्रबंधक की पत्नी, जोकि मां की देखभाल करती थी, बताने लगीं कि जब से मैं बाहर था, मां की सेहत बहुत अच्छी रही है और उन्हें कोई भी मानसिक दौरा नहीं पड़ा है। वे खुश रहीं और उन्हें जिम्मेवारी का कोई अहसास नहीं था। मिसेज रीव्ज़ को मां के पास जाना अच्छा लगता था क्योंकि मां हमेशा सब का दिल बहलाये रखती थी और अपने अतीत के रोचक किस्से सुना-सुना कर उन्हें हँसी से लोट-पोट कर देती थी। हां, ऐसे भी वक्त आते जब मां जिद पकड़ बैठती।

मिसेज़ रीव्ज़ ने मुझे एक दिन का किस्सा बताया। वे और नर्स उन्हें शहर ले जाना चाहती थीं ताकि उनकी कुछ नयी पोशाकों की नाप जांच सकें। अचानक मां जिद पकड़ बैठीं। वे कार से बाहर ही न आयें। "उन्हें ही मेरे पास आने दो।" मां ने ज़िद पकड़ ली,"इंगलैंड में वे आपकी गाड़ी तक आते हैं।"

आखिरकार वे बाहर आयीं, एक प्यारी-सी लड़की उनकी हाजरी में थी और उन्हें कपड़ों के कई थान दिखा रही थी। उनमें से एक गहरे भूरे रंग का था जो रीव्ज़ और नर्स को अच्छा लगा लेकिन मां ने उसे हिकारत से सरका दिया, और तब बेहद सुसंस्कृत अंग्रेजी स्वर में बोलीं,"नहीं नहीं, ये तो गू के रंग का है, मुझे कोई ज्यादा खिला हुआ रंग दिखाओ।"

उस हक्की-बक्की लड़की ने तुरंत मां की बात मान ली लेकिन उसे अभी भी अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।

मिसेज़ रीव्ज ने मुझे ये भी बताया कि वे मां को ऑस्ट्रिच फार्म में ले कर गयी थीं। वहां का कीपर, जो एक भला और विनम्र आदमी थी,उन्हें अंडे सेने की जगह दिखा रहा था। "ये वाला," ऑस्ट्रिच के एक अंडे को हाथ में ले कर कहा उसने,"एकाध हफ्ते में से लिया जायेगा।" तभी उसका फोन आ गया और उसे बुलवा लिया गया और जाते-जाते क्षमा मांगते हुए वह अंडा नर्स को थमा गया। जैसे ही वह वहां से गया, मां ने नर्स के हाथ से अंडा छीना और कहा,"इसे उस बेचारे ऑस्ट्रिच को वापिस लौटा दो।"

और मां ने अंडे को अहाते में फैंक दिया। अंडा वहां पर ज़ोर की आवाज़ के साथ फूट गया। इससे पहले कि कीपर वापिस आता उन्होंने तुरंत ही मां को थामा और सीधे ही आस्ट्रिच पार्क से बाहर ले आयीं।

"एक गर्म, धूप भरे दिन की बात है," मिसेज रीव्ज़ ने बताया,"वे शोफर और हम सबके लिए आइसक्रीम कोन दिलाने की ज़िद पर अड़ गयीं। एक बार वे कार से एक मैनहोल के पास गुज़र कर जा रहे थे कि एक कामगार का चेहरा ऊपर उभरा। मां कार से बाहर झुकीं ताकि वह कोन उस आदमी को दे सकें, लेकिन कोन को सीधे ही उसके मुंह पर उछाल दिया, "लो बेटे, ये तुम्हें वहां पर ठंडा रखेगा।" कार से उसकी तरफ हाथ हिलाते हुए मां ने कहा।

हालांकि मैं अपने व्यक्तिगत मामले मां से अलग ही रखता था, ऐसा लगता था कि उसे सारी घटनाओं के बारे में खबर मिल जाती थी। जिन दिनों मेरी दूसरी पत्नी के साथ मेरी घरेलू समस्याएं चल रही थीं, उन दिनों, शतरंज के खेल के बीच उसने अचानक ही मुझसे कहा, (वैसे वह हर बार जीतती ही थी।) "तुम अपनी इन सारी मुसीबतों से अपने-आप को मुक्त क्यों नहीं कर लेते। पूरब की तरफ निकल जाओ और मौज़-मज़ा करो।"

मैं हैरान हुआ और पूछने लगा कि उसके कहने का मतलब क्या है।

"तुम्हारी निजी ज़िंदगी के बारे में प्रेस में ये सब किस्से!"

मैं हँसा,"मेरी व्यक्तिगत ज़िंदगी के बारे में तुम जानती ही क्या हो?"

उसने कंधे उचकाये,"अगर तुम इतने अलग न होते तो शायद मैं तुम्हें कुछ सलाह दे पाती।"

इस तरह के जुमले वह उछाल दिया करती थी और आगे कुछ नहीं कहती थी।

वह अक्सर बेवरली हिल्स वाले घर में मेरे बच्चों, चार्ली और सिडनी से मिलने के लिए चली आती थी। मुझे उसका पहली बार का आना याद है। मैंने अपना घर तभी बनाया ही था। घर अच्छी तरह से सजाया गया था और वहां पर पूरा स्टाफ था, बटलर, नौकरानियां वगैरह। वह कमरे में चारों तरफ देखती रही। फिर खिड़की में से चार मील दूर प्रशांत महासागर का दिखायी दे रहा नज़ारा देख रही थी। हम उसकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे।

"शांति भंग करना कितनी खराब बात है," कहा उसने।

वह मेरी धन-दौलत और सफलता को मान कर ही चल रही थी और उन पर उसने कभी भी कोई टिप्पणी नहीं की। एक दिन लॉन पर हम दोनों अकेले थे। वह बगीचे की तारीफ कर रही थी और इस बात को सराह रही थी कि इसे कितनी अच्छी तरह से रखा गया है।

"हमारे पास दो माली हैं।" मैंने उसे बताया।

वह एक पल के लिए रुकी और मेरी तरफ देखने लगी,"इसका मतलब तुम काफी अमीर होगे!" मां ने कहा।

"मां, मेरी हैसियत इस वक्त पचास लाख डॉलर की है।"

मां ने सोचते हुए सिर हिलाया,"तभी तक जब तक तुम अपनी सेहत बनाये रख पाते हो और इसे भोग पाते हो।" मां की सिर्फ यही टिप्पणी थी।

अगले दो बरस तक मां की सेहत अच्छी बनी रही। लेकिन द सर्कस के निर्माण के समय मुझे तार मिला कि मां बीमार है। उसे पहले पित्ताशय का दौरा पड़ चुका था और वह उससे उबर गयी थी। इस बार डॉक्टरों ने मुझे चेताया कि इस बार का उसका दौरा गम्भीर है। उसे ग्लेंडले अस्पताल ले जाया गया था। लेकिन डॉक्टरों ने यही बेहतर समझा कि उसके दिल की कमज़ोर हालत को देखते हुए ऑपरेशन न करना ही ठीक होगा।

जब मैं अस्पताल में पहुंचा, उस वक्त वह अर्ध मूर्छा की हालत में थी। उसे दर्द कम करने की दवा दी गयी थी।

"मां, ये मैं हूं चार्ली," मैं फुसफुसाया, और धीमे से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसने कमज़ोरी से मेरा हाथ दबा कर अपनी भावना को मुझ तक पहुंचाया और फिर अपनी आंखें खोलीं। वह बैठना चाहती थी लेकिन बहुत ही कमज़ोर हो गयी थी। वह बेचैन थी और दर्द की शिकायत कर रही थी। मैंने उसे तसल्ली देने की कोशिश की कि वह एकदम चंगी हो जायेगी।

"शायद," उसने थकान के मारे कहा। और एक बार फिर मेरा हाथ दबाया। इसके बाद उसे बेहोशी आ गयी।

अगले दिन, काम के बीच, मुझे बताया गया कि मां गुज़र गयी है। मैं इसके लिए तैयार था क्योंकि डॉक्टर पहले ही जवाब दे चुके थे और मुझे बता चुके थे। मैंने अपना काम रोका, मेक-अप उतारा, और अपने सहायक निर्देशक हैरी क्रोकर के साथ अस्पताल के लिए रवाना हो गया।

हैरी बाहर इंतज़ार करता रहा और मैं कमरे के भीतर गया और खिड़की और बिस्तर के बीच एक कुर्सी पर बैठ गया। धूप के पर्दे आधे गिरे हुए थे। बाहर धूप तीखी थी। कमरे का मौन भी उतना ही तीखा था। मैं बैठा रहा और बिस्तर पर पड़ी कमज़ोर काया को देखता रहा। उसका चेहरा ऊपर उठा हुआ था और आंखें बंद थीं। यहां तक कि मृत्यु में भी उसके चेहरे पर पीड़ा दिखायी दे रही थी मानो उम्मीद कर रही हो कि कितनी तकलीफें उसके हिस्से में और लिखी हैं। कितनी अजीब बात है कि उसका अंत यहां पर हुआ, हॉलीवुड के माहौल में, उसके सारे वाहियात मूल्यों के साथ, लैम्बेथ, उसके दिल टूटने की जगह से सात हज़ार मील दूर। इसके बाद उसके आजीवन संघर्षों की, उसकी बहादुरी की और उसकी त्रासद, बेकार गयी ज़िंदगी की स्मृतियां मुझ पर हावी हो गयीं और मैं रो पड़ा।

एक घंटे के बाद कहीं मैं अपने आप को संभाल पाया और कमरे से बाहर आया।

हैरी क्रोकर अभी भी वहीं था। मैंने उससे माफी मांगी कि उसे इस तरह से इतनी देर तक इंतज़ार करना पड़ा। लेकिन वास्तव में, वह स्थिति समझता था। हम चुपचाप ड्राइव करके घर आ गये।

सिडनी यूरोप में था और उस वक्त बीमार था। वह अंतिम संस्कार में नहीं आ सकता था। मेरे बेटे चार्ली और सिडनी अपनी मां के पास थे लेकिन मैं उनसे नहीं मिला। मुझसे पूछा गया कि क्या मैं मां का दाह संस्कार किया जाना पसंद करूंगा। इस तरह के ख्याल ने ही मुझे डरा दिया। नहीं, मैं चाहूंगा कि उसे हरी-भरी धरती में दफ़नाया जाये, जहां वह अभी भी मौजूद है - हॉलीवुड सिमेट्री में।

मैं नहीं जानता कि मैं अपनी मां का वैसा चित्र प्रस्तुत कर पाया हूं जिसकी वह हकदार थी। लेकिन मैं इतना जानता हूं कि वह अपना बोझ खुशी-खुशी ढो कर ले गयी। दयालुता और सहानुभूति उसकी उत्कृष्ट खूबियां थीं। हालांकि वह धार्मिक थी, वह पापियों को प्यार करती थी और हमेशा अपने-आपको उनमें से ही एक मानती थी। उसकी प्रकृति में अश्लीलता का रंच मात्र भी नहीं था। जो भी विद्रोही व्यवहार वह किया करती थी, वह हमेशा आलंकारिक रूप में सही ही होता था। और उस गंदे माहौल, जिसमें हम रहने को मज़बूर थे, के बावजूद उसने सिडनी और मुझे गलियों से हमेशा बाहर रखा था और हमें यह महसूस कराया था कि हम गरीबी की आम संतानें नहीं हैं, बल्कि खास और अनूठे हैं।

क्लेयर शेरिडन, मूर्तिकार, जिसने अपनी किताब फ्रॉम मेफेयर टू मॉस्को से अच्छा-खासा हंगामा मचाया था, जब हॉलीवुड आयीं तो सैम गोल्डविन ने उनके सम्मान में रात्रि भोज दिया तो मुझे भी आमंत्रित किया।

छरहरी और सुंदर चेहरे-मोहरे वाली क्लेयर विन्स्टन चर्चिल की भतीजी थीं और रिचर्ड ब्रिन्स्ले शेरिडन की सीधी वंश परम्परा में आती थीं। वे क्रांति के बाद रूस जाने वाली पहली अंग्रेज महिला थीं और उन्हें बोल्शेविक क्रांति की प्रमुख हस्तियों की आवक्ष प्रतिमाएं, बस्ट बनाने का काम सौंपा गया था। इनमें लेनिन और ट्राटस्की भी शामिल थे।

हालांकि वे बोल्शेविक की पक्षधर थीं फिर भी उनकी किताब ने केवल मामूली-सा ही विरोध पैदा किया।अमेरिकी लोग इससे भ्रम में पड़ गये थे क्योंकि क्लेयर को अंग्रेजी राजसी परिवार से होने का गौरव प्राप्त था। न्यू यार्क का समाज उनकी आवभगत करता था और उन्होंने वहां पर कई विभूतियों की आवक्ष प्रतिमाएं बनायीं। उन्होंने हरबर्ट बेयार्ड स्वोप तथा बर्नार्ड बरूच तथा अन्य हस्तियों की भी मूर्तियां बनायी थीं। जिस वक्त मैं उनसे मिला था, वे पूरे देश में घूम-फिर कर व्याख्यान दे रही थीं और उनका छ: बरस का बेटा डिकी उनके साथ ही यात्राएं कर रहा था। उन्होंने शिकायत की थी कि अमेरिका में मूर्तियां बना कर रोज़ी-रोटी कमाना मुश्किल है। अमेरिकी आदमी इस बात का बुरा नहीं मानते कि उनकी बीवियां बैठ कर अपनी मूर्तियां बनवायें, लेकिन वे खुद इतने विनम्र होते हैं कि अपने खुद के लिए बैठने में उन्हें हिचक होती है।

"मैं विनम्र नहीं हूं," मैंने कहा।

इस तरह से उनके लिए मिट्टी और उनके औज़ार वगैरह मेरे घर लाने का इंतज़ाम किया गया और दोपहर के वक्त लंच के बाद मैं उनके सामने देर तक बैठा रहता। क्लेयर में ये खासियत थी कि वे बातचीत को जीवंत रख सकती थीं और मैंने पाया कि मैं भी अपनी बौद्धिकता बघार रहा हूं। प्रतिमा पूरी होने के आस-पास मैंने उसकी जांच की।

"ये किसी अपराधी का सिर हो सकता है," मैंने कहा।

"इसके बजाये, ये एक मेधावी आदमी का सिर है।" उन्होंने नकली गम्भीरता के साथ कहा।

मैं हँसा और मैंने ये सिद्धांत गढ़ लिया कि चूंकि जीनियस और अपराधी एक-दूसरे से निकटता सेजुड़े होते हैं, इसलिए दोनों ही एकदम व्यक्तिवादी होते हैं।

एक बार उन्होंने मुझे बताया कि जब से उन्होंने रूस के बारे में व्याख्यान देना शुरू किया है, वे अपने-आपको बिरादरी बाहर पा रही हैं। मैं जानता हूं कि क्लेयर पैम्फलेटबाजी करने वाली या राजनैतिक कट्टरपंथी नहीं थीं।

"आपने तो रूस के बारे में एक बहुत ही रोचक किताब लिखी है, उसे भी उसी खाते में जाने दीजिये ना, क्यों राजनैतिक झमेलों में पड़ती हैं,"कहा मैंने,"इससे तो आप ही को तकलीफ होगी।"

"मैं ये व्याख्यान अपनी रोज़ी-रोटी के लिए देती हूं," उन्होंने बताया,"लेकिन लोग हैं कि सच सुनना ही नहीं चाहते, और जब मैं बिना तैयारी के, सहज रूप से बोलती हूं तो मुझे सिर्फ सच ही तो दिशा देता है। इसके अलावा," उन्होंने आगे जोड़ा,"मैं अपने प्रिय बोल्शेविकों को प्यार करती हूं।"

"मेरे प्रिय बोल्शेविक," मैंने दोहराया और हँसा, इसके बावजूद मुझे ये भी महसूस हुआ कि क्लेयर भीतर ही भीतर अपनी परिस्थितियों के बारे में साफ और यथार्थवादी नज़रिया रखती हैं। इसकी वज़ह ये रही है कि जब मैं उनसे बाद में 1931 में मिला तो उन्होंने बताया कि वे टयूनिस के बाहरी इलाके में रह रही हैं।

"लेकिन आप वहां पर क्यों रह रही हैं?" मैंने पूछा।

"वहां पर सस्ता पड़ता है," उन्होंने तत्काल जवाब दिया,"लंदन में मेरी सीमित आय है, उससे मैं ब्लूम्सबरी में दो छोटे कमरों के कमरों में ही रह पाती, जबकि ट्यूनिस में मेरा घर है, और नौकर चाकर हैं और डिक्की के लिए खूबसूरत बगीचा भी है।"

डिक्की की उन्नीस बरस की उम्र में मृत्यु हो गयी थी। ये एक ऐसा दुखदायी और भयावह झटका था जिससे वे कभी भी उबर नहीं पायीं। वे कैथोलिक बन गयीं और कुछ अरसे तक कॉन्वेंट में भी रहीं, धर्म की तरफ मुड़ गयीं। मेरा ख्याल है, राहत पाने के लिए उन्होंने ऐसा किया होगा।

मैंने एक बार दक्षिणी फ्रांस में एक समाधि शिला पर चौदह बरस की मुस्कुराती हुई एक लड़की की फोटो देखी जिस पर लिखा था, "क्यों?"पीड़ा के ऐसे पागल कर देने वाले पलों में कोई जवाब मांगना बेमानी होता है। ये आपको झूठे उपदेश देने और पीड़ा की तरफ ही ले जाता है और इसके बाद भी इसका ये मतलब नहीं होता कि आपको जवाब मिल ही जायेगा। मैं इस बात में विश्वास नहीं कर सकता कि हमारा अस्तित्व बिना किसी मतलब के या दुर्घटनावश है, जैसे कि कुछ वैज्ञानिक हमें बतायेंगे। ज़िंदगी और मौत बहुत अधिक तयशुदा और बहुत अधिक बेरहम हैं और कि ये दुर्घटनावश तो नहीं ही हो सकते।

ज़िदंगी और मृत्यु के ये तरीके, किसी जीनियस को बीच में से ही उठा लेना, दुनिया में उतार-चढ़ाव, महाविनाश और तबाहियां, ये सब बेमतलब और निरर्थक लगते हैं। लेकिन ये तथ्य कि ये बातें होती हैं, इस बात का प्रमाण हैं कि कुछ है जो हमारे त्रिविमीय मस्तिष्क के दायरे से परे एक दृढ़, निर्धारित प्रयोजन के साथ होता रहता है।

कुछ ऐसे दार्शनिक हैं जो यह दावा करते हैं कि सभी कुछ गति के किसी न किसी रूप में तत्व ही है। और सारे के सारे अस्तित्व में न तो कुछ जोड़ा जा सकता है और न ही घटाया ही जा सकता है। यदि तत्व गति है तो इस पर कार्य और कारण के कोई तो नियम लागू होते ही होंगे। अगर मैं इस बात को मान लूं तो हर गतिविधि पूर्व नियोजित है और यदि ऐसा है तो मेरा अपनी नाक का खुजाना भी उतना ही पूर्व निर्धारित है जितना की किसी तारे का टूटना। बिल्ली घर-भर में घूमती रहती है, पत्ते पेड़ से गिरते रहते हैं, बच्चा ठोकर खा कर गिरता है। क्या इन सारी की सारी गतिविधियों को किसी अनंत में तलाशा जा सकता है। क्या ये शाश्वत रूप में पूर्व निर्धारित और निरंतर चलने वाली क्रियाएं नहीं हैं। हम पत्ती के गिरने, बच्चे के ठोकर खाने का तत्काल कारण जानते हैं लेकिन हम उसकी शुरुआत और अंत का पता नहीं लगा सकते।

मैं दकियानूसी अर्थ में धार्मिक नहीं हूं। मेरे विचार ठीक वैसे ही हैं जैसे मैकाले के हैं, जिन्होंने इस आशय की बातें लिखी हैं कि सोलहवीं शताब्दी में ऐसी ही दार्शनिक विद्वता के साथ इन्हीं धार्मिक तर्कों पर बहस की जाती थी जैसी कि आज की जाती है और संचित ज्ञान और वैज्ञानिक प्रगति के बावज़ूद न तो अतीत में और न ही वर्तमान में किसी दार्शनिक ने इस मामले पर उससे आगे कोई आध्यात्मिक योगदान दिया है।

मैं किसी चीज़ में न तो विश्वास करता हूं और न ही अविश्वास ही करता हूं। यह कि जिसकी कल्पना की जा सकती है, सच का उतना ही अनुमान लगाने की तरह होता है जिस तरह से गणित से सिद्ध किये जाने वाली कोई बात होती है। आदमी हमेशा सच तक तर्क के ज़रिये ही नहीं पहुंच सकता। ये हमें सोच के ज्यामितिक ढांचे में बांध लेता है और इसके लिए तर्कसंगति और विश्वसनीयता की ज़रूरत होती है। हम अपने सपनों में मृतकों को देखते हैं और ये स्वीकार कर लेते हैं कि वे जीवित हैं जबकि उसी समय हम ये भी जानते हैं कि वे अब इस दुनिया में नहीं हैं। और हालांकि यह स्वप्न मस्तिष्कबिना किसी तर्क के नहीं है, क्या इसकी अपनी विश्वसनीयता नहीं है? तर्क के परे भी कई च़ीज़ें हुआ करती हैं। हम एक सेकेंड के लाखों-करोड़ोंवें हिस्से के होने से कैसे इन्कार कर सकते हैं जबकि वास्तव में वह गणित की गणनाओं के अनुसार अवश्य होगा ही।

मैं जैसे-जैसे बूढ़ा हो रहा हूं, मैं विश्वास से और ज्यादा घिरता जा रहा हूं। हम जितना सोचते हैं, उससे ज्यादा इसके साथ जीते हैं और जितना महसूस करते हैं, उससे ज्यादा इससे पाते हैं। मैं यह मानता हूं कि विश्वास हमारे सभी विचारों के लिए पूर्व पीठिका है। अगर विश्वास न होता तो न तो हमने मूल कल्पना की खोज की होती, न सिद्धांत, न विज्ञान और न ही गणित हमारे जीवन में आये होते। मेरा ये मानना है कि विश्वास मस्तिष्क का ही विस्तार है। ये वो कुंजी है जो असंभव का नकार करती है। विश्वास को न मानने का मतलब अपने आपको तथा उस शक्ति को नकारना है जो हमारी सारी सृजनात्मक शक्तियों को संचालित करती है।

मेरा विश्वास अज्ञात में है। उस सब में जिसे हम तर्क के ज़रिये नहीं समझ सकते। मैं यह विश्वास करता हूं कि जो कुछ हमारी सोच के दायरे से परे है, वह दूसरी दिशाओं में साधारण तथ्य होता है और अज्ञात की सत्ता के अंतर्गत एक ऐसी शक्ति होती है जो बेहतरी की असीम शक्ति के रूप में होती है।

हॉलीवुड में मैं अभी भी छड़ा ही था। मैं अपने खुद के स्टूडियो में काम करता था इसलिए दूसरे स्टूडियो में काम करने वालों से मिलने-जुलने के कम ही मौके मिलते। इसलिए मेरे लिए नये दोस्त बना पाना मुश्किल होता था। डगलस और मैरी ही मेरी सामाजिक मुक्ति थे।

अपनी शादी के बाद दोनों बेहद खुश थे। डगलस ने अपने पुराने घर को नये सिरे से बनवा लिया था और उसकी खूबसूरती से साज-सज्जा की थी और उसमें मेहमानों के लिए कई कमरे जोड़े थे। वे भव्य तरीके से रहते थे और उनके पास उत्कृष्ट सेवा, उत्कृष्ट खान-पान थे और सबसे बड़ी बात, डगलस और मैरी उत्कृष्ट मेजबान थे।

स्टूडियो में ही उनका विशालकाय क्वार्टर था। टर्किश बाथ के साथ ड्रेसिंग रूम और साथ में एक स्विमिंग पूल। यहीं पर वे अपने अत्यंत विशिष्ट मेहमानों की खातिरदारी करते, उन्हें स्टूडियो में लंच कराते, आस-पास का साइट सीइंग टूर कराते, और उन्हें दिखाते कि फिल्में किस तरह से बनती हैं और फिर उन्हें भाप स्नान कराते और तैरने के लिए आमंत्रित करते। इसके बाद मेहमान लोग उनके ड्राइंग रूम में रोमन सिनेटरों की तरह कमर पर तौलिया लपेटे बैठ जाते।

ये वाकई बेहूदगी भरा लगता कि आप भाप स्नान से निकल कर तरण ताल में छलांग लगाने के लिए उस तरफ लपक रहे होते कि बीच में सियाम नरेश (अब थाइलैंड अनु.) से आपका परिचय कराया जाता। आपको मैं बताऊं कि मैं कितनी ही विख्यात विभूतियां से टर्किश तौलिया बांधे मिला हूं। इनमें से कुछ, आल्बा के ड्यूक, ड्यूक ऑफ सूदरलैंड, आस्टेन चैम्बरलिन, द मार्केस ऑफ वियेना, द ड्यूक ऑफ पानारांडा और कई अन्य थे। जब किसी आदमी से उसके सभी सांसारिक अधिकार चिह्न उतरवा लिये जाते हैं तभी आप उसकी सच्ची तारीफ कर सकते हैं कि उसकी असली औकात क्या है। ड्यूक ऑफ आल्बा मेरे अनुमान पर बहुत कुछ खरे उतरे।

जब भी इन महान हस्तियों में से कोई पधारता तो डगलस मुझे ज़रूर बुलवा भेजते क्योंकि मैं उसके शो पीसों में से एक था। वहां पर ये रिवाज़ था कि स्टीम लेने के बाद आदमी आठ बजे के आस-पास पिकफेयर में पहुंचेगा, साढ़े आठ बजे डिनर लेगा और डिनर के बाद फिल्म देखेगा। इसलिए कभी इस बात का मौका ही नहीं मिल पाया कि मैं किसी से अंतरंगता स्थापित कर पाऊं। अलबत्ता, कभी-कभार, मैं फेयरबैंक्स दम्पत्ति को उनके खूब सारे मेहमानों से मुक्ति दिला देता और उनमें से कुछ को अपने घर पर टिका देता। लेकिन मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मेरी मेहमाननवाजी फेयरबैंक्स दम्पत्ति की मेहमाननवाजी की तुलना में कहीं नहीं ठहरती थी।

प्रतिष्ठित हस्तियों की मेज़बानी करते समय फेयरबैंक्स दम्पत्ति अपने सर्वोत्तम रूप में होते। वे उनके साथ सहज अनुकूलता स्थापित कर लेते जो कि मेरे लिए मुश्किल होती। हां, ड्यूकों की आवभगत करते समय पहली रात तो महामहिम जैसे संबोधन लगातार सुनायी देते रहते लेकिन जल्दी ही ये महामहिम अपनापन लिये जॉर्जी और जिम्मी बन चुके होते।

डिनर के वक्त डगलस का प्रिय छोटा-सा दोगला कुत्ता अक्सर आ जाता और डगलस सहज, ध्यान बंटाने के तरीके से कुत्ते से बेवकूफी भरी ट्रिक करवाते जिससे माहौल जिसके बंधा-बंधा और औपचारिक होने का डर था, थोड़ा अनौपचारिक और आत्मीय हो जाता। मैं कई बार डगलस की शान में मेहमानों द्वारा फुसफुसा कर कही गयी तारीफों का गवाह रहा हूं। "क्या शानदार व्यक्ति है!" महिलाएं गोपनीय तरीके से फुसफुसातीं। और हां, वे थे भी शानदार व्यक्ति। महिलाओं को उनसे बेहतर तरीके से और कोई आकर्षण में बांध ही नहीं सकता था।

लेकिन एक बार ऐसा हुआ कि डगलस भी झमेले में फंसगये। मैं स्पष्ट कारणों से नामों का उल्लेख नहीं कर रहा हूं लेकिन जो लोग आये थे, वे खास थे, उनकी ऊंची ऊंची पदवियां थीं और डगलस ने उनकी तीमारदारी में और उन्हें हर तरह से प्रसन्न रखने में पूरा हफ्ता खपा दिया। जो मेहमान आये थे, वे हनीमून पर निकले दम्पत्ति थे। जिस चीज़ की भी कल्पना की जा सकती थी, उससे उनकी आवभगत की गयी थी। कैटेलिना में उनके लिए निजी याच पर मछली मारने के अभियान की व्यवस्था थी, जहां पर मैंने और डगलस ने एक बछड़ा कटवाया था और समुद्र में नीचे जाने दिया था ताकि वह मछलियों का चुग्गा बन सके (लेकिन मेहमानों ने कोई मछली नहीं पकड़ी।) इसके बाद स्टूडियो के ग्राउंड पर एक मोटर साइकिलों के खास प्रदर्शन का इंतज़ाम किया गया था। लेकिन खूबसूरत, छरहरी दुल्हन, हालांकि विनम्र थी, बेहद चुप रहने वाली लड़की थी और ज़रा-सा भी उत्साह नहीं दिखा रही थी।

हर रात डिनर के समय डगलस इस बात की कोशिश करते कि उसे खुश कर सकें लेकिन उनके सारे हँसी-मज़ाक और जोश मोहतरमा को उनके ठंडे बरताव से बाहर नहीं निकाल पाये।

चौथी रात डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"वह मुझे हैरान कर रही है। मैं उससे बात ही नहीं कर सकता," कहा उन्होंने,"इसलिए आज की रात मैंने इस तरह का इंतज़ाम किया है कि तुम उसकी बगल वाली सीट पर बैठोगे।" वे हँसी दबा कर बोले,"मैंने उसे बताया है कि तुम कितने मेधावी और मज़ेदार हो।"

डगलस की योजना के बाद डिनर के लिए अपनी सीट पर बैठने से पहले मैं अपने आपको वैसे ही सहज महसूस करने लगा जैसे कोई पैरा ट्रूपर छलांग लगाने से पहले महसूस करता है। अलबत्ता, मैंने यही सोचा कि मैं पहले रहस्यपूर्ण नज़रिया अपनाऊंगा। इसलिए मेज़ पर अपना नैपकिन लेते हुए मैं झुका और मोहतरमा के कान में फुसफुसाया,"हिम्मत मत हारो।"

वह मुड़ी, वह समझ नहीं पायी कि मैंने क्या कहा है,"माफ करना मैं समझी नहीं!"

"हिम्मत मत हारो।" मैंने दोबारा रहस्यपूर्ण तरीक से कहा।

वह हैरान हो कर देखने लगी, "हिम्मत मत हारो!"

"हां," मैंने अपने घुटनों पर अपना नैपकिन ठीक से लगाते हुए कहा, और सीधा सामने की तरफ देखने लगा।

वह एक पल के लिए रुकी, मुझे देखती रही, और फिर बोली,"आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

मैंने एक मौका लिया,"क्योंकि आप बहुत उदास हैं।" और इससे पहले कि वह जवाब दे सके, मैंने अपनी बात जारी रखी,"देखिये आप, मैं आधा जिप्सी हूं और इन सारी बातों को जानता हूं। आप किस महीने में पैदा हुई थीं?"

"अप्रैल!"

"बेशक, ऐरीज, मुझे पता होना चाहिये था।"

वह सतर्क हो गयी, और उसे स्वाभाविक रूप से होना भी चाहिये था।

"क्या जानना चाहिये था?" वह मुस्कुरायी।

"ये महीना आपकी ऊर्जस्विता के नीचे रहने का महीना है।"

वह एक पल के लिए सोचने लगी,"ये तो बहुत हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं!"

"ये बहुत आसान है अगर आदमी में अंतर्दृष्टि हो। ठीक इस वक्त आपका प्रभा मंडल नाखुशी वाला है।"

"क्या ये इतना स्पष्ट है?"

"शायद दूसरों को नहीं!"

वह मुस्कुरायी और एक पल के लिए रुकने के बाद सोचते हुए कहने लगी,"कितनी हैरानी की बात है कि आप ये कह रहे हैं। हां, ये सच है,मैं बहुत हताश हूं।"

मैंने सहानुभूति से सिर हिलाया,"ये आपका सबसे खराब महीना है।"

"मैं कितनी उपेक्षित हूं! मैं बहुत हताशा महसूस करती हूं।" उसने अपनी बात जारी रखी।

"मेरा ख्याल है, मैं इस बात को समझता हूं।" मैंने कहा, यह जाने बिना कि आगे क्या होने जा रहा है।

वह उदासी से कहती रही,"काश, मैं भाग पाती, हर चीज़ और हर व्यक्ति से दूर, मैं कुछ भी करूंगी, मैं नौकरी करूंगी, फिल्मों में एक्स्ट्रा की भूमिका करूंगी, लेकिन इससे उन सबको तकलीफ होगी जो मुझसे जुड़े हैं और वे इतने अच्छे हैं कि उन्हें ये तकलीफ नहीं दी जानी चाहिये।"

वह बहुवचन में बात कर रही थी लेकिन मैं बेशक इस बात को जानता था कि वह अपने पति के बारे में ही बात कर रही है। अब मैं सतर्क हो गया। इसलिए मैंने रहस्यवाद का सारा जामा उतार दिया और उसे एक गम्भीर सलाह देने की कोशिश की, बेशक ये सलाह मामूली सी ही थी,"भागना बेकार है। जिम्मेवारियां हमेशा आपका पीछा करेंगी।" कहा मैंने,"ज़िंदगी चाहतों की अभिव्यक्ति होती है। आज तक कोई संतुष्ट नहीं हो सका है। इसलिए जल्दीबाजी में कोई भी काम मत कीजिये। ऐसा कोई भी कदम मत उठाइये जिससे ज़िंदगी-भर पछताना पड़े।"

"मेरा ख्याल है आप सही कह रहे हैं।" उसने सोचते हुए कहा,"अलबत्ता, मैं किसी ऐसे व्यक्ति से बात करके कितनी राहत महसूस कर रही हूं जो समझता है।"

दूसरे मेहमानों के साथ बात करते हुए भी डगलस बीच-बीच में हमारी दिशा में निगाह फेर रहे थे। अब मोहतरमा ने उनकी तरफ देखा और मुस्कुरायी।

डिनर के बाद, डगलस मुझे एक तरफ ले गये,"आखिर तुम दोनों क्या बातें कर रहे थे? मुझे तो ऐसा लगा कि तुम दोनों एक दूसरे के कान ही कुतर डालोगे।"

"अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं, बस मूलभूत सिद्धांतों की बातें।" मैंने अकड़ के साथ कहा।

  • हैट्टी ग्रीन, दुनिया में सबसे अमीर महिलाओं में से एक। उसके बारे में कहा जाता था कि उसने अपनी कारोबारी दक्षता के बल पर 100,000,000 डॉलर कमाये थे।

§ कार्ल लीबनेख्ते का जन्म0 अगस्तस 1871 में और मृत्यु जनवरी 1919 में हुई थी। वे फ्रेडरिक एबर्ट की सरकार के खिलाफ तथाकथित जर्मन क्रांति के नेतृत्वस के कारण रातों रात प्रसिद्ध हो गये थे। अनु. § लगभग सौ बरस से न्यूत यार्क में 14वीं स्ट्रीाट के नीचे की तरफ और ब्रॉडवे के पश्चिम की तरफ का ये छोटा सा इलाका रचनात्म्क, विद्रोही और बोहेमियन वर्ग का मक्काी मदीना माना जाता रहा है। अब ये इलाका इतना महंगा हो चुका है कि इस वर्ग का कोई कलाकार वहां रहने के बारे में सोच भी नहीं सकता। अलबत्ता , वहां की फिज़ां में अभी भी उन पुराने दिनों की गूंज बाकी है। अनु.

§ प्राविंसटाउन प्लेयर्स, एक अमेरिकी थियेटर कम्पनी जिसने सबसे पहले 1916 में नाटककार यूजीन ओ'नील ने नाटक खेले। बाद में वे लोग न्यू यार्क में ग्रिनविच विलेज के साथ मिल कर नाटक खेलते थे। अनु.

§इंडस्ट्रियल वर्कर्स ऑप द वर्ल्ड संस्था

§चैरेड्स मूक अभिनय का खेल होता है। इसमें जिस खिल़ाडी का नम्बर आता है, उसे बिना बोले उस अभिव्यक्ति का अभिनय करके दिखाना होता है और तब आपकी टीम के बाकी सदस्य इस बात काअंदाजा लगाते हैं कि आपने कौन सी अथिभव्यक्ति या वाक्यांश सोचा था। लक्ष्य यहीहोता है कि अपनी टीम के लिए यथाशीघ्र उसका वाक्यांश का अर्थ निकाला जाये। उन दिनों अमेरिका में छोटे बडे,सभी लोगों में अत्यंत लोकप्रिय खेल। अनु

§ 11 नवम्बर 1918 जो कि प्रथम विश्व युद्ध की विराम संधि के वार्षिक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

  • ये मान्यताप्राप्त जुमला सही नहीं है। हम उस वक्त मैक्सिन क्वार्टर में थे और मेरा जुमला ये था, "यहां पर बेवरली हिल्स की तुलना में कहीं ज्यादा जीवंतता है।"

¨ फ्रांस की जनता द्वारा चार्ली चैप्लिन को दिया गया प्यार भरा नाम। अऩुवादक

मेरी आत्मकथा : अध्याय 16

अब मैं फर्स्ट नेशनल के साथ अपने करार के अंतिम दौर में प्रवेश कर रहा था और करार के खत्म होने की बेसब्री से राह देख रहा था। वे लोग स्वार्थी, सहानुभूति से हीन और दूरदष्टि न रखने वाले लोग थे और मैं उनसे जान छुड़ाना चाहता था। इसके अलावा फीचर फिल्मों के लिए मेरे मन में विचार कुलबुला रहे थे।

अंतिम तीन फिल्मों को पूरा करना कभी न खत्म होने वाले काम की तरह लगा। मैंने दो रील वाली फिल्म "पे डे" पर काम किया। इसके बाद मुझे सिर्फ दो फिल्में करके देनी थी। मेरी अगली कॉमेडी फिल्म "द पिलग्रिम" फीचर फिल्म की लंबाई वाली फिल्म बन गयी। इसका मतलब एक बार फिर फर्स्ट नेशनल के साथ परेशान करने वाली सौदेबाजी। लेकिन जैसाकि सैम गोल्डविन ने मेरे बारे में कहा था, "चार्ली करोबारी आदमी नहीं है। वह सिर्फ यही जानता है कि वह किसी कम चीज़ पर समझौता नहीं कर सकता।" सौदेबाजी संतोषजनक तरीके से निपट गयी।

`द किड' की आशातीत सफलता के बाद मुझे `द पिलग्रिम' के लिए अपनी शर्तें मनवाने के लिए बहुत कम विरोध सहना पड़ा। ये फिल्म दो फिल्मों की जगह लेगी और वे लोग मुझे 400,000 डॉलर की गारंटी और लाभ में से हिस्सा देंगे। आखिर वह वक्त आ गया जब मैं युनाइटेड आर्टिस्ट में अपने सहयोगियों के साथ काम करने के लिए स्वतंत्र था।

डगलस और मैरी के सुझाव पर ऑनेस्ट जो, जैसा कि हम जोसेफ़ शैंक को पुकारा करते थे, ने अपनी पत्नी नोरमा टालमैज़ के साथ युनाइटेड आर्टिस्ट में प्रवेश किया। नोरमा की फिल्में हमारी कंपनी के ज़रिए प्रदर्शित की जानी थीं। मिस्टर जो को अध्यक्ष बनाने की बात थी। हालांकि मैं जो को पसंद करता था, मुझे यह नहीं लगा कि उसका योगदान इतना है कि उसके अध्यक्ष बनने को उचित ठहरा सके। हालांकि उसकी पत्नी कुछ हद तक स्टार थी, लेकिन वह मैरी या डगलस से होने वाली बॉक्स ऑफिस कमाई की तुलना नहीं कर सकती थी। हमने अपनी कंपनी में एडोल्फ जुकोर को हिस्सेदारी देने से मना कर दिया था तो जो शैंक को हिस्सा क्यों दिया जाए जबकि वह जुकोर जितना महत्त्वपूर्ण भी नहीं था? इसके बावजूद डगलस और मैरी के उत्साह ने बाजी जीत ली और जो को अध्यक्ष तथा युनाइटेड आर्टिस्ट्स में बराबरी हिस्सेदार बनाया गया।

इसके कुछ ही अर्से बाद मुझे एक जरूरी पत्र मिला जिसमें मुझे युनाइटेड आर्टिस्ट के भविष्य के बारे में विचार करने के लिए एक बैठक में शामिल होना था। अध्यक्ष की औपचारिक और आशावादी टिप्पणियों के बाद मैरी ने गंभीरता से हमें संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जो कुछ उद्योग में हो रहा है, उसे लेकर वे चिंतित हो रही हैं - वे हमेशा चिंतित रहा करती थीं - थियेटर सर्किट आपस में मिल रहे हैं और, जब तक हम उनके इन प्रयासों का मुकाबला करने के लिए उपाय नहीं करते, युनाइटेड आर्टिस्ट का भविष्य मंझधार में रहेगा।

इस घोषणा से मुझे कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि मेरा यह मानना था कि हमारी फिल्मों की उत्कृष्टता इस तरह की प्रतिस्पर्धा का सच्चा जवाब है। लेकिन औरों को इस बात से आश्वस्त नहीं किया जा सका। जो शैंक ने हमें गंभीर चेतावनी दी कि हालांकि कंपनी मूल रूप से स्वस्थ है, हमें अपनी भविष्य का बीमा करा लेना चाहिए और सारे जोखिम खुद उठाने के बजाय अपने फायदों में दूसरों को भी थोड़ी सी हिस्सेदारी देनी चाहिए। उन्होंने वॉल स्ट्रीट की डिल्लान, रीड एंड कंपनी से संपर्क किया था और वे लोग स्टॉक के एक निर्गम के लिए और हमारी कंपनी में एक हिस्से के लिए 40,000,000 डॉलर लगाने को तैयार थे। मैंने साफ तौर पर कह दिया कि मैं अपने काम में वॉल स्ट्रीट की किसी भी तरह की दखलंदाजी के खिलाफ हूं और एक बार फिर उन्हें आश्वस्त किया कि जब तक हम अच्छी फिल्में बनाते रहेंगे हमें इस तरह के विलयनों की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। जो ने अपनी चिड़चिड़ाहट को दबाते हुए शांत, समझाने वाले तरीके से कहा कि वे कंपनी के लिए कुछ सकारात्मक करना चाहते हैं और कि हमें इसका फायदा उठाना चाहिए।

मैरी ने फिर से मोर्चा संभाला। उनका कारोबार की बात करने का नकारात्मक तरीका था। वे मुझसे सीधे बात न करके औरों के ज़रिए बात कर रही थीं। इस बात ने मुझे यह एहसास कराया कि मैं भयंकर स्वार्थ का दोषी हूं। उन्होंने जो कि विशेषताएं गिनानी शुरू कर दीं और इस बात पर ज़ोर दिया कि जो ने कितनी मेहनत की है और हमारी कंपनी को खड़ा करने में कितनी मुसीबतें उठायी है। मैरी ने कहा, "हम सबको ज़रूर ही सकारात्मक होना चाहिए।"

लेकिन मैं ज़िद पर अड़ा रहा और इस बात पर टिका रहा कि मैं अपने व्यक्तिगत प्रयासों में किसी और की कोई हिस्सेदारी नहीं चाहता; मुझे अपने आप पर भरोसा था और मैं इन प्रयासों में अपना खुद का पैसा लगाने के लिए तैयार था। बैठक गरमागरम बहस में बदल गयी - गर्मी अधिक और बहस कम - लेकिन मैं अपनी ज़मीन पर खड़ा रहा और यही कहता रहा कि अगर बाकी लोग मेरे बिना काम चला सकते हैं, तो वे ऐसा कर लें और मैं कंपनी से रिटायर हो जाऊंगा। इससे हम सब निष्ठा को ले कर गम्भीर रूप से एकमत हो गये और जो की तरफ से यह पुष्टि मिल गयी कि यह कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहता जिससे हमारी मित्रता पर या हमारी कंपनी की समरस्ता पर आंच आए और इस तरह से वॉल स्ट्रीट का मामला छोड़ दिया गया।

युनाइटेड आर्टिस्ट के लिए अपनी पहली फिल्म शुरू करने से पहले मैं एडना पुर्विएंस को प्रमुख भूमिका में उतारना चाहता था। हालांकि ऐडना और मेरे बीच भावनात्मक रिश्ते तनाव में थे फिर भी मैं उसके कैरियर में दिलचस्पी रखता था। लेकिन जब मैंने वस्तुपरक दृष्टि से ऐडना की तरफ देखा तब मैंने पाया कि वह धीरे-धीरे प्रौढ़ होती जा रही है जो कि मेरी भावी फिल्मों के लिए ज़रूरी, स्त्रियोचित लावण्य के लिए उचित नहीं होगा। इसके अलावा, मैं नहीं चाहता था कि मेरे विचार और चरित्र कॉमेडी स्टॉक कंपनी की सीमाओं तक बँधे रहें, क्योंकि मेरे मन में अस्पष्ट महत्त्वाकांक्षी विचार थे कि मैं फीचर कॉमेडी फिल्में बनाऊं जिनके लिए अधिक सामान्य अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की ज़रूरत होती।

कई महीने तक मैं एडना को लेकर `द ट्रोज़न विमेन' बनाने के विचार को लेकर मंथन करता रहा। मैं इसके लिए अपना स्वयं का रूपांतरण इस्तेमाल करता। लेकिन हम जितनी ज्य़ादा खोज करते गये, वह उतनी ही अधिक मँहगी फिल्म में बदलती गयी। इसलिए इसका इरादा छोड़ दिया गया।

इसके बाद मैंने ऐसी अन्य दिलचस्प महिलाओं के बारे में सोचना शुरू किया जिनकी भूमिका शायद एडना कर सके और सामने थी जोसेफाइन! इस बात को जानते हुए भी कि इस फिल्म के लिए उस काल विशेष की पोशाकों की ज़रूरत होगी और इसकी लागत भी `द ट्रोज़न विमन' की तुलना में दुगुनी आयेगी, मैंने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया। मैं बेहद उत्साहित था।

हमने व्यापक अनुसंधान शुरू किया। हमने बॉरियन के लिखे नेपोलियन बोनापार्ट के संस्मरण और नेपोलियन के सारथी कॉन्सटैन्ट के संस्मरण पढ़े। लेकिन जैसे-जैसे हम जोसेफ़ाइन की ज़िन्दगी में उतरते गए, उतना ही अधिक नेपोलियन सामने आता गया। मैं इस जाँबाज़ जीनियस को लेकर इतना अभिभूत था कि जोसेफाइन के बारे में फिल्म बनाने का इरादा धुंधला होता गया और नेपोलियन सामने झिलमिलाने लगा, जिसकी भूमिका मैं खुद करने की सोच सकता था। यह फिल्म उसकी इतालवी मुहिम का अभिलेख होती। छब्बीस बरस के एक नौजवान की इच्छा शक्ति और उत्साह की महागाथा जो शानदार विपक्ष और बूढ़े, अनुभवी सेनाध्यक्षों की ईष्या से पार पाता है। लेकिन, मेरा दुर्भाग्य, मेरा उत्साह उतर गया और नेपोलियन तथा जोसेफाइन, दोनों पर फिल्में बनाने का इरादा खटाई में पड़ गया।

लगभग इसी समय पैगी हॉकिन्स जॉयस नाम की विख्यात अप्सरा हॉलीवुड के दृश्य पटल पर अवतरित हुई। वह गहनों से लदी हुई थी और उसके पास अपने पाँच पतियों से जमा की गयी तीस लाख डॉलर की अथाह संपत्ति थी - ऐसा उसने मुझे खुद बताया था। पैगी बेहद मामूली परिवार से आयी थी; नाई की बेटी जो कोरस गर्ल बनी और उसने पाँच लखपतियों से ब्याह रचाया था। हालांकि पैगी अभी भी सुंदर थी, वह थोड़ी-थोड़ी थकी हुई नज़र आ रही थी। वह सीधे पेरिस से आयी। उसने काले रंग का बहुत आकर्षक गाउन पहना हुआ था क्योंकि एक नौजवान ने हाल ही में उसके प्रेम में पागल होकर खुदकशी कर ली थी। इस शोकमय वस्त्र में पैगी ने हॉलीवुड में धमाके के साथ प्रवेश किया।

एक साथ, एक शांत डिनर के दौरान उसने मुझे अपने विश्वास में लेते हुए बताया कि उसे हंगामे पसंद नहीं हैं, "मैं सिर्फ यही चाहती हूं कि मैं ब्याह रचाऊं और मेरे बच्चे हों। दिल से मैं एक बहुत ही सीधी-सादी औरत हूँ।" उसने अपने बीस कैरेट के हीरे और पन्ने के हाथ के कड़े ठीक करते हुए कहा। जब पैगी गंभीर मूड में नहीं होती थी, वह इन्हें, "मेरे बंधन" कहती थी।

अपने एक पति के बारे में बताते हुए उसने कहा कि उसने अपनी सुहाग रात में अपने आप को बेडरूम में बंद कर लिया था और पति को तब तक अंदर नहीं आने दिया जब तक उसने दरवाज़े के नीचे से 500,000 डॉलर का चेक नहीं सरका दिया।

"उसने ऐसा किया?" मैंने पूछा।

"हाँ" उसने तुनुकमिजाजी के साथ और बिना हँसे बताया,"और मैंने अगले दिन सुबह उसके उठने के पहले ही पहला काम यह किया कि चेक कैश कराया। लेकिन वह मूरख था और खूब शराब पीता था। एक बार मैंने उसके सिर पर शैम्पेन की बोतल दे मारी थी और उसे अस्पताल भिजवा दिया था।"

"और इस तरह से आप लोग अलग हुए!"

"नहीं", वह हँसी,"लगता है उसे ऐसा अच्छा लगता था और वह मेरा और भी दीवाना हो गया।"

थॉमस इन्स ने हमें अपनी याच पर आमंत्रित किया। वहाँ पर सिर्फ हम तीन ही लोग थे। पैगी, टॉम और मैं। हम तीनों याच के स्टेट रूम में एक मेज़ पर शैम्पेन पी रहे थे। शाम का वक्त था और शैम्पेन की बोतल पैगी के निकट ही रखी हुई थी। जैसे-जैसे रात ढलती गयी मैं देख रहा था कि पैगी का आकर्षण मुझसे हट कर टॉम इन्स की ओर हो रहा था और वह मुझे थोड़ी भद्दी लगने लगी। मुझे याद आया कि जो कुछ उसने अपने पति के साथ शैम्पेन की बोतल से किया था, मुझ पर भी कर सकती है।

हालांकि मैंने बहुत ही कम शैम्पेन पी थी, मुझे चढ़ गयी थी और मैंने उसे सज्जनता से कहा कि अगर मुझे उसकी खूबसूरत भौं के इशारे से हल्का-सा भी शक हुआ तो मैं उसे उठाकर नाव से बाहर फेंक दूंगा। इसके बाद मैं उसके चमचों के दल से हटा दिया गया था और एम.जी.एम. के इरविंग थॉलबर्ग उसके आकर्षण के अगले बिंदु बने। कुछ अरसे तक तो पैगी की हंगामाखेज हरकतें इरविंग को भरमाए रहीं क्योंकि वे बहुत युवा थे। एम.जी.एम. स्टूडियोज़ में दोनों की शादी की गरमा गरम अफवाहें फैलने लगीं, लेकिन इरविंग का बुखार उतर गया और मामला ठप्प पड़ गया।

हमारे अजीब हालांकि संक्षिप्त संबंध के दौरान पैगी ने मुझे एक विख्यात फ्रांसीसी प्रकाशक के साथ अपने संबंधों के कई किस्से सुनाए थे। इन किस्सों ने मुझे एडना पूर्विएंस को अभिनेत्री के रूप में लेते हुए अ वुमन ऑफ पेरिस की कथा लिखने के लिए प्रेरित किया। फिल्म में आने का मेरा कोई इरादा नहीं था, लेकिन मैंने फिल्म का निर्देशन किया।

कुछ आलोचकों ने घोषित किया कि मूक पर्दे पर मनोविज्ञान को अभिव्यक्त नहीं किया सकता। कोई स्पष्ट एक्शन जैसे नायक नायिकाओं को पेड़ों के सहारे झुका रहे हैं और उनके गले से लिपटे तेज-तेज साँसें ले रहे हैं या आरामकुर्सी पर झूलना, मारा मारी करना ही मूक पर्दे पर दिखाए जा सकते हैं। "अ वुमन ऑफ पेरिस" एक चुनौती थी। मैं मामूली एक्शन के जरिए मनोविज्ञान संप्रेषित करना चाहता था। उदाहरण के लिए, एडना एक अमीरजादी की भूमिका करती है। उसकी सहेली भीतर आती है और उसे एक सोसायटी पत्रिका दिखाती है, जिसमें एडना के प्रेमी की शादी की खबर छपी है। एडना निरपेक्ष भाव से पत्रिका लेती है, देखती है और तुरंत ही उसे एक किनारे फेंक देती है। उदासीन भाव से अभिनय करते हुए वह एक सिगरेट जलाती है। लेकिन दर्शक देख सकते हैं कि उसे झटका लगा है। अपनी सहेली को दरवाजे तक आकर मुस्कराते हुए विदा कहने के बाद वह लपक कर वापिस पत्रिका के पास जाती है और ड्रामाई गहराई के साथ उसे पढ़ती है।

एडना के बेडरूम के एक अन्य दृश्य में नौकरानी एक दराज खोलती है और अचानक ही आदमियों द्वारा कमीज पर लगाए जाने वाला कॉलर फर्श पर गिर जाता है, जिससे इसके और नायक (एडॉल्फ मैन्जाऊ द्वारा अभिनीत) के बीच संबंधों का पता चलता है।

फिल्म अलग-अलग वर्ग के दर्शकों के बीच बहुत सफल रही। यह पहली मूक फिल्म थी, जिसमें व्यंग्य और मनोविज्ञान की बारीकियां दिखाई गयी थीं। बाद में इसी तरह की कई फिल्में आईं जिसमें अंर्स्ट लुबिश की फिल्म `द मैरिज सर्कल' भी थी जिसमें मैन्जाऊ ने लगभग इसी तरह का चरित्र दुबारा निभाया था।

एडॉल्फ मेन्जाऊ रातों-रात स्टार बन गए लेकिन एडना ज्यादा हासिल नहीं कर पायी। इसके बावजूद उसे इटली में एक फिल्म बनाने के लिए पाँच हफ्ते के काम के लिए दस हज़ार डॉलर का प्रस्ताव मिला और उसने उसे स्वीकार करने के बारे में मेरी सलाह मांगी। मैं उत्साहित था, लेकिन एडना पूरी तरह से अपने संबंध तोड़ने में हिचकिचा रही थी। इसलिए मैंने सुझाव दिया कि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार ले और अगर बात नहीं बनती तो वापिस लौट आए और मेरे साथ काम करती रहे और दस हज़ार डॉलर कमाती रहे। एडना ने फिल्म की लेकिन यह सफल नहीं रही। इसलिए वह कंपनी में लौट आयी।

मेरे `अ वुमन ऑफ पैरिस' पूरी करने से पहले पोला नेगरी ने सच्चे हॉलीवुड फैशन में अपनी अमरीकी शुरुआत की। पैरामाउंट पब्लिसिटी विभाग ने अपने सामान्य खर्च से कहीं अधिक उन पर खर्च किया। ईर्ष्या और झगड़ों की एक झूठी कहानी गढ़ी गयी और उसमें ग्लोरिया स्वैनसन तथा पोला का ख़ूब प्रचार किया गया और उन्हें खूब प्रचारित किया गया। इस तरह की खबरें पहले पन्ने पर छपने लगीं।

"नैग्री ने स्वैनसन के ड्रेसिंग रूम की मांग की"

"ग्लोरियस स्वैनसन ने पोला नेगरी से मिलने से मना किया"

"नेगरी ने एक सामाजिक मुलाकात के लिए स्वैनसन का अनुरोध माना"

और इस तरह से प्रेस लगातार उनके बारे में छापती रही।

इन मनगढ़ंत किस्सों के लिए न तो ग्लोरिया को और न ही पोला को दोषी को ठहराया जा सकता था। दरअसल वे तो शुरू से ही बहुत अच्छी दोस्त थीं। लेकिन इसमें पेंच वाला मामला प्रचार विभाग का शगूफा था। पोला के सम्मान में पार्टियां और रिसेप्शन दिए गये थे। ऐसे ही एक दिखावे के समारोह के दौरान मैं एक हॉलीवुड आयोजन में सिम्फनी के एक संगीत कार्यक्रम में पोला से मिला। वह मेरे साथ वाले बॉक्स में अपने प्रचार टीम और पैरामाउंट के अफसरों के साथ बैठी हुई थीं, "चारली! आपने मुझे पूछा क्यों नहीं? आपने मुझे कभी फोन नहीं किया? आपको नहीं लगता कि मैं इतनी दूर से जर्मनी से आपसे मिलने आयी हूं?"

मुझे अच्छा लगा। हालांकि मैं उसके आखिरी जुमले पर मुश्किल से विश्वास कर सकता था क्योंकि मैं उससे केवल एक ही बार बर्लिन में सिर्फ बीस मिनट के लिए मिला था।

"आप बहुत क्रूर हैं चार्ली कि आपने मुझे फोन नहीं किया। मैं जब से आपकी आवाज़ सुनने की राह देख रही थी। आप कहाँ काम करते हैं? मुझे अपना फोन नंबर दीलिए और मैं आपको फोन करूंगी।"

मुझे इस अति उत्साह के बारे में संदेह था। लेकिन ये भी था कि खूबसूरत पोला के आमंत्रण ने मुझ पर असर छोड़ा था। कुछ ही दिन बाद मुझे एक पार्टी का न्यौता मिला जो वे अपने किराये के मकान में बेवरली हिल्स पर दे रही थीं। यह बॉलीवुड के मानकों से बहुत ही भव्य आयोजन था और अन्य कई पुरुष कलाकारों की मौजूदगी के बावजूद उनका ज्यादातर ध्यान मेरी ओर ही रहा। वे ईमानदार थीं या नहीं, इस बात को जाने दें लेकिन पार्टी में मुझे बहुत आनन्द आया। ये हमारे असामान्य संबंधों की शुरुआत थी। कई हफ्तों तक हम सार्वजनिक रूप से एक साथ देखे जाते रहे और बेशक, ये सब कॉलम लिखने वालों के लिए लिखने का भरपूर मसाला जुटा रहा था। जल्दी ही अखबारों में हैड लाइनें आने लगीं - "पोला और चार्ली की सगाई।" ये बात पोला के लिए बहुत अखरने वाली थी और उन्होंने मुझसे कहा कि मैं किसी तरह का कोई बयान दूं।

"ये बयान तो महिला की ओर से आना चाहिये," मैंने जवाब दिया।

"मैं उन्हें क्या बताऊं?"

मैंने मैं क्या जानूं वाले अंदाज़ में कंधे उचकाये।

अगले दिन मुझे एक संदेश मिला जिसमें लिखा था कि मिस पोला नेगरी मुझसे नहीं मिल पायेंगी। कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया था। उसी शाम उनकी नौकरानी ने फोन किया और घबरायी हुई आवाज़ में बताया कि उनकी मैडम बीमार हो गयी हैं और क्या मैं तुरंत आ सकूंगा। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे रोती हुई एक नौकरानी ड्रांइगरूम तक ले गयी और मैंने देखा कि मादाम नेगरी एक दीवान पर पसरी हुई लेटी हैं। उनकी आंखें बंद हैं। जब उन्होंने आंखें खोलीं तो वे कराहीं,"आप बहुत क्रूर हैं।" और तब मैंने अपने आपको कैसानोवा की भूमिका में पाया।

एक या दो दिन के बाद चार्ली हैटन, पैरामाउंट स्टूडियो के मैनेजर ने टेलीफोन किया,"आप हमारे लिए बहुत मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं चार्ली, मैं आपसे इस बारे में बात करना चाहूंगा।"

"बेशक, आपका स्वागत है, घर पर चले आइये।" मैंने कहा।

इस तरह से वे आये। जिस समय हेटन आये, लगभग आधी रात होने को थी। वे थोड़े भारी बदन के भोंदू किस्म के आदमी थे जो शायद किसी थोक के गोदाम में ज्यादा अच्छे लगते। वे बैठे और बिना किसी दुआ सलाम के शुरू हो गये, "चार्ली, प्रेस में ये सारी अफवाहें जो आ रही हैं, उनसे पोला बीमार हो रही हैं। आप कोई बयान दे कर इन सबको रोक क्यों नहीं देते?"

इस तरह के बदतमीजी भरे तरीके का सामना होने पर मैंने सीधे उनकी आंखों में देखा, "आप मुझसे क्या कहलवाना चाहते हैं?"

मज़ाकिया बहादुरी के साथ उसने अपनी झेंप मिटानी चाही, "आप उन्हें चाहते हैं, नहीं क्या?"

"मुझे नहीं लगता कि इससे आपका कुछ लेना देना हो सकता है।" मैंने जवाब दिया।

"लेकिन हमने इस मोहतरमा पर लाखों डॉलर लगा रखे हैं। और इस तरह का प्रचार उनके लिए बुरा है।" वे रुके, "चार्ली अगर आप उन्हें चाहते हैं तो उनसे शादी क्यों नहीं कर लेते?"

उन पलों में मुझे इस वाहियात सवाल में ज़रा-सा भी हास्य बोध नज़र नहीं आया, "अगर आप सोचते हैं कि मुझे किसी से सिर्फ इसलिए शादी कर लेनी चाहिये ताकि मैं पैरामाउंट के हितों की रक्षा कर सकूं तो आप बहुत बड़ी गलती पर हैं।"

"तब आप उनसे मिलना बंद कर दीजिये" वे बोले।

"ये पोला को तय करना है," मैंने जवाब दिया।

इसके बाद जो संवाद हुआ, वह बेहद शुष्क, और मजाकिया बात के साथ खत्म हुआ कि क्योंकि पैरामाउंट में मेरी कोई हिस्सेदारी नहीं है, मैं इस बात को समझ नहीं पा रहा हूं कि मैं उनसे शादी क्यों करूं। और जिस तरह से अचानक ही पोला से मेरा संबंध शुरू हुआ था, उसी तरह से अचानक खत्म भी हो गया। इसके बाद उन्होंने मुझे कभी नहीं बुलाया।

पोला के साथ इस हड़बड़ी वाले संग-साथ के दौरान स्टूडियो में एक सुंदर मैक्सिकन लड़की आयी। वह सीधे मैक्सिको से चल कर चार्ली चैप्लिन से मिलने यहां तक आयी थी। कई चालबाजों और खब्ती लोगों के साथ अपने अनुभवों को देखते हुए मैंने अपने मैनेजर से कहा कि किसी अच्छे तरीके से इस लड़की से पीछा छुड़ाओ।

मैंने इसके बारे में बाद में कुछ भी नहीं सोचा कि तभी घर से फोन आया कि एक लड़की सामने वाले दरवाजे पर बैठी हुई है। इससे मेरे कान खड़े हो गये। मैंने बटलर से कहा कि इस लड़की से पीछा छुड़ाये और मैं तब तक स्टूडियो में ही रहूंगा जब तक मैदान साफ नहीं हो जाता। दस मिनट बाद संदेश आया कि वह लड़की जा चुकी है।

उसी शाम पोला, डॉक्टर रेनाल्ड्स और उनकी पत्नी मेरे घर पर डिनर के लिए आये हुए थे और मैंने उन्हें इस घटना के बारे में बताया। हमने सामने वाला दरवाजा खोला और जायज़ा लेने के लिए आस पास देखा कि कहीं लड़की लौट कर आयी तो नहीं है। लेकिन हमने अभी अपना डिनर पूरा भी नहीं किया था कि बटलर हड़बड़ाता हुआ डाइनिंग रूम में आया। उसका चेहरा फक्क पड़ा हुआ था,"वह ऊपर आपके बिस्तर में है।" उसने बताया कि वह रात के लिए मेरे लिए कमरा तैयार करने के लिए ऊपर गया था तो पाया कि वह आपका पायजामा पहने आपके बिस्तर में घुसी हुई है।

मैं हक्का बक्का कि करूं तो क्या करूं!!

"मैं उसे देखता हूं," रेनॉल्ड्स ने मेज पर से उठते हुए और लपक कर ऊपर जाते हुए कहा। हम बाकी लोग इंतज़ार करने लगे कि देखें क्या होता है। कुछ देर बाद रेनॉल्ड्स नीचे आये,"मैंने उससे लंबी बात की है।" बताया उन्होंने,"वह युवा है और देखने में सुंदर है। काफी समझदारी से बात करती है। मैंने उससे पूछा कि वह मिस्टर चैप्लिन के बिस्तर में क्या कर रही है। तो उसने बताया,'मैं मिस्टर चैप्लिन से मिलना चाहती हूं।'

"क्या तुम जानती हो," मैंने उससे पूछा,"तुम्हारा ये व्यवहार पागलपन माना जा सकता है और शायद इसके लिए तुम्हें पागलखाने भी भेजा जा सकता है?" वह ज़रा भी विचलित नज़र नहीं आयी।

'मैं पागल नहीं हूं,' वह बोली, 'मैं तो मिस्टर चैप्लिन की कला की प्रशंसक हूं बस, और मैक्सिको से उनसे मिलने के लिए ही आयी हूं।' मैंने उसे बताया कि बेहतर होगा वह आपका पायजामा उतार दे और अपने कपड़े पहन कर तुरंत वहां से चली जाये। नहीं तो हमें पुलिस बुलवानी पड़ेगी।"

"मैं उस लड़की से मिलना चाहूंगी," पोला ने हल्के फुल्के ढंग से कहा,"उसे नीचे दीवानखाने तक ले आइये।" मैं हिचकिचाया क्योंकि ऐसा करना सबको परेशानी में डालना होगा। अलबत्ता, लड़की पूरे आत्मविश्वास के साथ कमरे में आयी। रेनॉल्ड्स का कहना सही था। वह युवा और आकर्षक थी। उसने हमें बताया कि वह बाहर और स्टूडियो में सारा दिन भटकती घूमती रही है। हमने उसे डिनर लेने के लिए कहा लेकिन उसने कहा कि वह सिर्फ एक गिलास दूध लेगी।

जिस वक्त वह दूध पी रही थी, पोला ने उस पर प्रश्नों की झड़ी लगा दी, "क्या तुम मिस्टर चैप्लिन से प्यार करती हो?" (मेरी हालत खराब।)

लड़की हँसी,"प्यार? ओह नहीं, मैं सिर्फ उनकी प्रशंसक हूं क्योंकि वे बहुत बड़े कलाकार हैं।"

पोला ने अगला सवाल दागा,"क्या तुमने मेरी कोई फिल्म देखी है?"

"ओह हां," लड़की ने चलताऊ ढंग से कहा।

"तुम उनके बारे में क्या सोचती हो?"

"बहुत अच्छी। लेकिन आप उतनी बड़ी कलाकार नहीं हैं जितने बड़े मिस्टर चैप्लिन हैं।"

पोला का चेहरा देखने लायक था।

मैंने लड़की को चेतावनी दी कि उसकी हरकतों की वजह से उसका गलत अर्थ लिया जा सकता है और उससे पूछा कि क्या उसके पास वापिस मैक्सिको जाने के लिए किराया भाड़ा है। उसने बताया कि उसके पास पैसे हैं। मिस्टर रेनॉल्ड्स की ओर से उसे सलाहों की और घुट्टी पिलाये जाने के बाद वह घर से चली गयी।

लेकिन अगले दिन दोपहर को ही बटलर कमरे में एक बार फिर हड़बड़ाता हुआ आया और बताने लगा कि वह सड़क के बीचों बीच बैठी हुई है और उसने ज़हर खा लिया है। बिना और वक्त गंवाये, हमने पुलिस को फोन किया और उसे वहां से एम्बुलेंस में ले जाया गया।

अगले दिन इस बात को ले कर अखबारों ने काफी हो हल्ला मचाया। अस्पताल के बिस्तर पर बैठे हुए उसकी तस्वीरें छापी गयीं। उसके पेट को साफ किया गया था और अब वह प्रेस को बयान दे रही थी। उसने घोषणा की कि उसने ज़हर नहीं खाया था वह तो बस, जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहती थी, कि उसे चार्ली चैप्लिन से प्यार नहीं है। वह तो बस, हॉलीवुड में किस्मत आजमाने और फिल्मों में काम पाने की कोशिश कर रही थी।

अस्पताल से छुट्टी दे दिये जाने के बाद उसे कल्याण संस्था की देखरेख में रखा गया। उन्होंने मुझे एक बहुत ही प्यारा सा पत्र लिखा कि क्या मैं उसे मैक्सिको वापिस भेजने के लिए कुछ मदद करना चाहूंगा। उन्होंने बताया कि वह कोई नुक्सान नहीं पहुंचायेगी और वह खराब लड़की नहीं है। हमने उसके घर वापिस जाने के लिए किराया अदा कर दिया।

अब मैं युनाइटेड आर्टिस्ट्स के लिए अपनी पहली कॉमेडी बनाने के लिए स्वंतत्र था और चाहता था कि द किड की सफलता से आगे कुछ काम करूं। कई हफ्तों तक मैं छटपटाता रहा, सोचता रहा, सिर खुजाता रहा कि कहीं से कोई विचार आये। मैं अपने आप से कहता रहा कि अगली फिल्म महाकाव्य की तरह होनी चाहिये। अब तक की महानतम। लेकिन कुछ सामने आने को तैयार ही नहीं था। तभी एक दिन रविवार की सुबह फेयरबैंक्स के यहां वीक एंड मनाते हुए मैं डगलस के साथ नाश्ते के बाद बैठा था और स्टीरियोस्कोपिक तस्वीरें देख रहा था। कुछ अलास्का पहाड़ के थे और कुछ क्लोंडाइक पहाड़ के। एक दृश्य चिलकूट दर्रे का था जिसमें बर्फ से जमे हुए पहाड़ पर चढ़ने वालों की लम्बी कतारें थीं और पीछे की तरफ उसके बारे में बताया गया था कि किस तरह से इस पहाड़ को फतह करने में कितनी कोशिशें लगती हैं और कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ये एक बहुत ही शानदार थीम थी, मेरे ख्याल में ये मेरी कल्पना शक्ति को पंख लगाने के लिए काफी थी। तत्काल ही विचार और कॉमेडी की हरकतों ने आकार लेना शुरू कर दिया और हालांकि मेरे सामने कोई कहानी नहीं थी, एक कथा ने रूप लेना शुरू कर दिया।

कॉमेडी का सृजन करने में सबसे बड़ी विडम्बना ये होती है कि त्रासदी मज़ाक उड़ाने की भावना को शह देती है क्योंकि मेरे ख्याल से मज़ाक उड़ाना एक तरह से ललकारने वाला नज़रिया होता है। हमें प्रकृति की शक्तियों के खिलाफ अपनी विवशता को देखते हुए हँसना ही होगा नहीं तो हम पागल हो जायेंगे। मैंने डोनर पार्टी के बारे में एक किताब पढ़ी थी जो कैलिफोर्निया जाते हुए रास्ता भटक जाते हैं और सिएरा नेवादा पहाड़ों पर हिम पात में घिर जाते हैं। एक सौ साठ लोगों में से केवल अट्ठारह ही जीवित बचे थे। ज्यादातर लोग भूख और ठंड से मर गये थे। कुछ नरभक्षी बन गये और अपने मृतक साथियों को ही खाना शुरू कर दिया। कुछ ने अपनी भूख मिटाने के लिए हिरन की खाल के अपने जूते ही भून कर खाये। इस हौलनाक दृश्यावली से मैंने अपनी फिल्म का सबसे मज़ाकिया दृश्य बुना। भयंकर भूख के मारे मैं अपना जूता उबालता हूं और उसे खाता हूं। कीलों को मैं इतने सलीके से निकालता हूं मानो वे किसी स्वादिष्ट मुर्गे की हड्डियां हों और तस्मों को मैं नूडल्स समझ कर खाता हूं। इसी बदहवासी में मेरा साथी मुझे मुर्गा समझता है और मुझे खाना चाहता है।

छ: महीने तक मैं कॉमेडी की दृश्यावलियां विकसित करता रहा और बिना किसी पटकथा के शूटिंग शुरू कर दी। मैं यह मान कर चल रहा था कि कॉमेडी के रूटीन से और इसी तरह से कथा खुद ब खुद जन्म ले लेगी। बेशक मैं कई बार अंधी गलियों में जा फंसा और कई मज़ेदार दृश्यों को भी छोड़ देना पड़ा। ऐसा ही एक सीन था: एस्कीमो लड़की के साथ प्यार का सीन जिसमें एस्कीमो लड़की ट्रैम्प को एस्कीमो तरीके से चुम्बन लेना सिखाती है और दोनों को नाक रगड़नी होती है। जब वह सोने की तलाश में विदा होता है तो वह प्यार भरी विदाई के रूप में अपनी नाक बहुत ज़ोर से उसकी नाक से रगड़ता है। और जिस वक्त वह चलता है और पीछे मुड़ कर देखता है और अपनी मध्यमा उंगली से अपनी नाक को सहलाता है और उसकी तरफ एक प्यार भरा चुम्बन उछालता है और फिर अंध विश्वास में अपनी उंगली को अपनी पैंट से पोंछता है क्योंकि उसे थोड़ा सा जुकाम लगा हुआ है। लेकिन एस्कीमो वाला हिस्सा काट दिया गया था क्योंकि ये एक और ज्यादा महत्त्वपूर्ण दृश्य डांस हाल वाली लड़की से टकरा रहा था।

द गोल्ड रश के निर्माण के दौरान मैंने दूसरी बारी शादी की। चूंकि हमारे दो बड़े-बड़े बेटे हैं जिन्हें मैं बहुत प्यार करता हूं इसलिए मैं ज्यादा ब्यौरों में नहीं जाऊंगा। दो वर्ष तक हम विवाहित बने रहे और शादी को ठीक ठाक चलाने की कोशिश भी करते रहे लेकिन मामला निराशाजनक था। ये शादी बहुत ज्यादा कड़ुवाहट के साथ समाप्त हुई।

गोल्ड रश का पहला शो न्यू यार्क में स्ट्रैंड थियेटर में हुआ और मैं उसके प्रीमियर में शामिल हुआ। जिस पल से फिल्म शुरू हुई, जिसमें मैं पीछे आ रहे आ रहे भालू से अनजान सीधी खड़ी चट्टान का चक्कर लगा रहा हूं, दर्शकों ने लगातार चिल्लाना और तालियां बजाना जारी रखा। पूरी फिल्म में हँसी के दौरान बीच बीच में एकाध ठहाका सुनायी पड़ जाता। हिरैम अब्राम्स, युनाइटेड आर्टिस्ट्स के बिक्री प्रबंधक बाद में मेरे पास आये और मुझे गले से लगा लिया,"चार्ली, मैं गारंटी देता हूं कि ये साठ लाख डॉलर से ज्यादा का कारोबार करेगी" और उसने किया भी।

प्रीमियर के बाद मुझे दौरा पड़ा। मैं रिट्ज होटल में ठहरा हुआ था और सांस नहीं ले पा रहा था। इसलिए मैंने घबरा कर एक दोस्त को फोन किया,"मैं मर रहा हूं। मेरे वकील को बुलवाओ।"

"वकील? तुम्हें डॉक्टर की ज़रूरत है," उसने चिंतित होते हुए कहा।

"नहीं, नहीं, मैं वसीयत करना चाहता हूं।"

मेरा दोस्त हक्का बक्का रह गया। उसने दोनों को बुलवाया। लेकिन चूंकि मेरा वकील उस वक्त यूरोप में गया हुआ था, सिर्फ डॉक्टर ही आ पाया।

गहन जांच पड़ताल करने के बाद डॉक्टर ने पाया कि मुझे कुछ भी नहीं हुआ था, बस शिराओं का दौरा पड़ा था। "सिर्फ गर्मी की वजह से हुआ है ये।" बताया उसने,"न्यू यार्क से बाहर निकलो, समुद्र की तरफ चले जाओ जहां पर आप आराम से और शांति से रह सकते हैं।"

एक घंटे के भीतर ही मुझे ब्राइटन बीच में भेज दिया गया। रास्ते में मैं बिना किसी वजह से रोया। अलबत्ता, मुझे होटल में समुद्र की तरफ खुलने वाला कमरा मिल गया। मैं वहां पर साफ सुथरी हवा भीतर उतारने के लिए लम्बी लम्बी सांसें लेने लगा। लेकिन होटल के बाहर भीड़ जमा होने लगी,"हाय चार्ली! क्या खूब, चार्ली!!" इसका नतीजा ये हुआ कि मुझे अपनी खिड़की पर से हट जाना पड़ा ताकि दिखायी न दूं।

अचानक ही शोर शराबा होने लगा। जैसे कोई कुत्ता भूंक रहा हो। कोई आदमी डूब रहा था। जीवन रक्षकों ने उसे बाहर निकाला और ठीक मेरी खिड़की के नीचे ले आये। उसे प्रथम उपचार देने की कोशिश की गयी लेकिन बहुत देर हो चुकी थी। वह मर चुका था। अभी उसे लेकर एम्बुलेंस गयी ही थी कि एक बार फिर कुत्ते के भूंकने की आवाज़। कुल मिला कर तीन आदमियों को लाया गया। दो को बचा लिया गया। ये अब तक की सबसे खराब हालत थी। इसलिए मैंने फैसला किया कि न्यू यार्क ही लौटा जाये। दो दिन के भीतर ही मैं इतना ठीक हो चुका था कि कैलिफोर्निया लौट सकूं।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 17

बेवरली हिल्स में वापिस आने पर मुझे एक न्यौता मिला कि मैं अपने एक दोस्त के यहां मिस गर्टरूड स्टेन से मिलूं। जब मैं वहां पर पहुंचा तो मिस स्टेन ड्राइंग रूम के बीचों बीच एक कुर्सी पर बैठी हुई थीं। उन्होंने भूरी ड्रेस पहनी हुई थी और लेस कॉलर लगा रखा था। उनके हाथ गोद में थे। किसी वज़ह से वे मुझे वान गॉग के पोर्टरेट मैडम रॉलिन जैसी लगीं, बस फर्क सिर्फ यही था कि लाल बालों के जूड़े के बजाये गर्टरूड के छोटे कटे हुए भूरे बाल थे।

मेहमान उनके चारों तरफ सम्मानित दूरी बनाये रखते हुए एक घेरे में खड़े हुए थे। मेज़बान की बांदी गर्टरूड के कानों में कुछ फुसफुसायी और फिर मेरे पास आयी,"मिस गर्टरूड स्टेन आपसे मिलना चाहेंगी।" मैं आगे बढ़ा। उस वक्त उनसे बात कर पाने के बहुत ही कम मौके थे क्योंकि और लोग आ रहे थे और परिचय कराये जाने का इंतज़ार कर रहे थे।

लंच पर मेजबान ने मुझे उनके साथ वाली कुर्सी पर बिठाया। हमारी बातचीत का विषय पता नहीं कैसे कला की तरफ मुड़ गया। मेरा ख्याल है इसकी शुरुआत डाइनिंग रूम से दिखायी देते नज़ारे की मेरे द्वारा तारीफ करने से हुई। लेकिन गर्टरूड स्टेन ने कोई उत्साह नहीं दिखाया,"प्रकृति," उन्होंने कहा,"साधारण बात है, नकल ज्यादा रोचक होती है।" उन्होंने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि नकली संगमरमर वास्तविक संगमरमर की तुलना में ज्यादा सुंदर दिखता है। और कि चित्रकार टर्नर का सूर्यास्त किसी भी वास्तविक आसमान की तुलना में ज्यादा प्यारा है। हालांकि उनकी ये दलीलें कुछ हद तक कोफ्त दिलानेवाली थीं, मैं विनम्रता पूर्वक उनसे सहमत होता रहा।

उन्होंने सिनेमा प्लॉट के बारे में अपनी राय रखी,"ये बहुत ही घिसे पिटे, जटिल और बनावटी लगते हैं।" वे मुझे किसी फिल्म में बस, किसी गली में चलते हुए फिर किसी कोने पर मुड़ते हुए और एक और गली में फिर एक और गली में मुड़ते हुए देखना पसंद करेंगी।

मैंने ये कहने के बारे में सोचा कि उनके विचार उन्हीं की रहस्यवादी जुमलेबाजी वाले शब्दों की कलाबाजी है। मैं कहना चाहता था,"गुलाब गुलाब है, गुलाब है गुलाब।" लेकिन मेरी भीतरी प्रेरणा ने मुझे रोक दिया।

लंच बहुत ही खूबसूरत बेल्जियन लेस वाले मेजपोश पर परोसा गया था और इस मेजपोश की सभी मेहमानों ने खुल कर तारीफ की। हमारी गपशप के दौरान कॉफी बहुत ही हल्के, लाख के बने कपों में परोसी गयी थी और मेरा कप मेरी बांह के इतना नज़दीक रख दिया गया कि मैंने ज्यों ही अपना हाथ ज़रा सा हिलाया, कॉफी का प्याला डगमगाया और कॉफी मेजपाश पर छलक गयी। मेरी तो जैसे जान ही निकल गयी! मैं अपनी मेजबान से बार बार माफी मांगे जा रहा था कि तभी गर्टरूड स्टेन ने भी कमोबेश वही किया जो मैंने किया था। अपनी कॉफी का प्याला लुढ़का दिया। मुझे भीतर ही भीतर राहत मिली, क्योंकि अब मैं अपनी परेशानी में अकेला नहीं था। लेकिन गर्टरूड स्टेन ने एक बार भी अफसोस नहीं किया। उन्होंने कहा,"कोई बात नहीं, हो जाता है। शुक्र है ये मेरी पोशाक पर नहीं गिरी।"

जॉन मेसफील्ड स्टूडियो में आये। वे लम्बे, आकर्षक, सज्जन, दयालु और समझ बूझ रखने वाले शख्स थे। लेकिन उनके इन्हीं गुणों के कारण मैं उनसे झेंप महसूस कर रहा था। सौभाग्य से मैंने अभी हाल ही में उनकी किताब द विडो इन द बाइ स्ट्रीट पढ़ी थी जिसे मैंने सराहा था, इसलिए मैं पूरी तरह से गूंगा भी नहीं बना हुआ था। मैंने उसमें से अपनी कुछ प्रिय पंक्तियां सुनायीं:

वहां थे कुछ लोग जेल के दरवाजे के बाहर

बजने वाली घंटी की आवाज़ सुनने को बेताब

इंतजार में

वैसा ही इंतजार जैसा खाली लोग करते रहते हैं: इंतजार

दूसरे के नरक के तीखे जहर के लिए।

द गोल्ड रश के निर्माण के दौरान मुझे एलिनॉर ग्लिन की तरफ से एक टेलीफोन आया: मेरे प्यारे चार्ली, आपको मैरियन डेविस से ज़रूर मिलना चाहिये: वे सचमुच बहुत ही प्यारी शख्सियत हैं और तुमसे मिल कर बहुत खुश होगीं, इसलिए तुम एम्बेसेडर होटल में हमारे साथ खाना खाओगे और उसके बाद हमारे साथ पसाडेना चलोगे जहां पर हम तुम्हारी फिल्म द आइडल क्लास देखेंगे।

मैं मैरियन डेविस से कभी नहीं मिला था। लेकिन उनके धूंआधार प्रचार से वाकिफ था। वे हर्स्ट के सभी अखबारों में और पत्रिकाओं में छायी रहतीं और उनकी पूरे पेज की तस्वीर छपती थी। ये सब कोफ्त पैदा करता। उस समय ये प्रचार इतना ज्यादा हो चला था कि मैरियन डेविस कई लतीफों के केन्द्र में आ गयी थीं। एक बार बिट्रीस लिली ने एक मज़ेदार लतीफा उन पर कह दिया था। जब उन्हें किसी ने लॉस एंजेल्स की झुंड की झुंड बत्तियां दिखायी थीं तो वे बोलीं,"हाय कितनी शानदार," बिट्रीस ने कहा, "मेरा ख्याल है कि बाद में ये बत्तियां आपस में मिल जायेंगी और उनमें मैरियन डेविस का नाम पढ़ा जा सकेगा।"

हर्स्ट की कोई भी पत्रिका या अखबार ऐसा नहीं था जिसे खोलने पर मैरियन डेविस की बड़ी सी तस्वीर नज़र न आये। इन सारी बातों ने जनता को बॉक्स ऑफिस से दूर ही रखा।

लेकिन एक दिन फेयरबैंक्स दम्पत्ति ने मैरियन डेविस की फिल्म वैन नाइटहुड वाज ए फ्लावर चला दी थी। मैं ये देखकर हैरान हुआ कि वे काफी हद तक कॉमेडी कर लेती हैं, उनमें आकर्षण और अपील थे, और वे हर्स्ट के तूफानी प्रचार के बिना भी अपने बलबूते पर स्टार बन सकती थीं। एलिनॉर ग्लिन के यहां डिनर पर मैंने उन्हें सादगीपूर्ण और आकर्षक पाया और उसके बाद से हम दोनों में दांत काटी दोस्ती वाला मामला हो गया।

हर्स्ट और मैरियन के बीच संबंध युनाइटेड स्टेट्स में मिथक बन गये थे और शायद पूरी दुनिया के लिए भी। उनके बीच तीस बरस का लम्बा संग साथ रहा और हर्स्ट की मृत्यु के दिन तक चलता रहा।

अगर मुझसे पूछा जाये कि वह कौन सा व्यक्तित्व है जिसने मेरे जीवन पर सबसे गहरा प्रभाव छोड़ा है तो मैं कहूंगा, स्वर्गीय विलियम रैंडोल्फ हर्स्ट। मैं ये बताना चाहूंगा कि ये असर हमेशा ही सुखद नहीं था, हालांकि उनमें अनुकरणीय गुण थे। ये उनके व्यक्तित्व की पहेली थी जो मुझे अभिभूत करती थी। उनका लड़कपन, उनकी काइयांपन, उनकी दयालुता, उनका अक्खड़पन, उनकी बेइंतहां ताकत और दौलत, और सबसे बड़ी बात, उनकी असली सहजता। सांसारिक मूल्यों से देखें तो वे इतने स्वतंत्र व्यक्ति थे जैसा मैंने आज तक नहीं देखा। उनका कारोबारी साम्राज्य विपुल और विविधता लिये हुए था। उनके सैकड़ों प्रकाशन, न्यू यार्क भू संपदा में बहुत बड़ी-बड़ी ज़मीनें, खनन, और मैक्सिको में बहुत बड़े-बड़े प्लॉट थे। उनके सचिव ने मुझे बताया था कि हर्स्ट की सम्पत्ति 400,000,000 डॉलर के आस-पास थी और उन दिनों ये बहुत बड़ी दौलत हुआ करती थी।

हर्स्ट के बारे में विरोधाभासी अभिमत थे। कुछ लोगों का मानना था कि वे सच्चे अमेरिकी देशभक्त थे, जबकि कुछ अन्य लोगों की राय थी कि वे अवसरवादी थे और मात्र अपने अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ाने और अपना साम्राज्य बढ़ाने में ही रुचि रखते थे। लेकिन जब वे युवा थे तो वे रोमांचकारी और उदार थे। इसके अलावा, उन्हें अपने माता-पिता से भी विरासत में बहुत कुछ मिला था। एक किस्सा चलता है कि वित्तपोषक रसेल सेज, हर्स्ट की मां फोबे हर्स्ट से फिफ्थ एवेन्यू में मिले। कहा उन्होंने,"अगर आपका बेटा वॉल स्ट्रीट पर अपने हमले करना जारी रखेगा तो उसके अखबार को हर साल दस लाख डॉलर का नुक्सान उठाना पड़ेगा।"

"इस दर से तो, मिस्टर सेज, वह कारोबार में अगले अस्सी बरस तक रह सकता है," उनकी मां ने जवाब दिया।

मैं जब पहली बार हर्स्ट से मिला तो मैं एक बड़ी गलती कर बैठा। साइम सिल्वरमैन, वेराइटी के प्रकाशक और संपादक मुझे हर्स्ट के रिवरसाइड ड्राइव वाले अपार्टमेंट में लंच के लिए ले गये। ये एक परम्परागत अमीर आदमी का घर था, डुप्ले किस्म का घर, उसमें लगी हुई दुर्लभ पेंटिंग्स, महोगनी के पैनल और दीवार में ही बने हुए शो केस जिनमें पोर्सलीन की वस्तुएं रखी हुई थीं। जब हर्स्ट परिवार से मेरा परिचय करा दिया गया तो हम सब खाना खाने के लिए बैठे।

मिसेज हर्स्ट एक आकर्षक महिला थीं और उनके तौर-तरीके में दयालुता और गरिमा थी। जबकि दूसरी तरफ हर्स्ट की आंखें बड़ी-बड़ी थीं और वे उस तरह के व्यक्ति थे जो सारी बातें मैं ही करूंगा प्रकार में आते हैं।

"जब मैं आपसे पहली बार मिला मिस्टर हर्स्ट," मैंने कहा,"ये बीऊ आर्ट्स रेस्तरां की बात है, आप वहां पर दो महिलाओं के साथ बैठे हुए थे। आपकी तरफ मेरे एक दोस्त ने इशारा किया था।"

मेज के नीचे मैंने अपने पैर पर दबाव महसूस किया। मैंने अंदाजा लगाया कि ये पैर सिल्वरमैन का है।

"आह," हर्स्ट ने चेहरे पर मज़ाकिया भाव लाते हुए कहा।

मैं अब गड़बड़ाने लगा,"मेरा ख्याल है, वो आप नहीं थे, ज़रूर कोई और रहा होगा जिसकी शक्ल आप से मिलती-जुलती होगी। बेशक मेरे दोस्त को भी पूरी तरह से यकीन नहीं था।" मैंने भोलेपन से कहा।

"हां, हो जाता है," हर्स्ट ने अपनी आंखों में चमक लाते हुए कहा,"एक जैसी शक्ल के दो व्यक्ति दिखायी दे जाना बहुत मामूली बात है।"

"हां," मैं हँसा, शायद कुछ ज्यादा ही ज़ोर से।

मिसेज हर्स्ट ने मुझे उबारा,"हां," उन्होंने मज़ाकिया तरीके से ज़ोर दिया,"ये बहुत ही मामूली बात है।"

अलबत्ता, ये बात आयी-गयी हो गयी और मेरा ख्याल है, लंच ठीक-ठाक निपट गया।

मेरियन डेविस हॉलीवुड में हर्स्ट कॉस्मापालिटन प्रोडक्शन की फिल्मों में काम करने के लिए आयी थीं। उन्होंने बेवरली हिल्स पर किराये पर एक मकान लिया और हर्स्ट अपना दो सौ अस्सी फुट का क्रूज़र पैनामा नहर से होते हुए कैलिफोर्निया वाटर्स में ले आये। उसके बाद तो फिल्म कॉलोनी की बन आयी। वहां पर अरेबियन नाइट्स युग का स्वर्ग उतर आया। हफ्ते में दो या तीन बार मैरियन बहुत बड़े पैमाने पर डिनर पार्टियां देतीं जिसमें कई-कई बार तो सौ-सौ मेहमान होते। उनमें अभिनेता, अभिनेत्रियां, सिनेटर, पोलो खिलाड़ी, कोरस गाने वाले लड़के, विदेशी राजनयिक, और हर्स्ट के उच्च अधिकारी, संपादकीय स्टाफ से ले कर सबसे नीचे के स्तर के स्टाफ का भी मेला लगता। उस वक्त वहां पर तनाव और ओछेपन का देखने लायक आलम होता क्योंकि कोई भी सर्वशक्तिमान हर्स्ट के तापमान के बारे में पूर्वानुमान नहीं लगा सकता था। उनका बैरोमीटर ही यह तय करता था कि शाम अच्छी गुज़रेगी या नहीं।

मुझे मेरियन द्वारा अपने किराये के घर में दिये गये डिनर की एक घटना याद आती है। हम लगभग पचास के करीब मेहमान इंतज़ार कर रहे थे और जनाब हर्स्ट अपने संपादकीय स्टाफ से घिरे कमरे में ऊंची पीठ वाली कुर्सी पर मनहूस चेहरा बनाये बैठे हुए थे। मेरियन एक सेट्टी पर पसरी किसी महारानी की तरह गाउन में सजी, बेहद खूबसूरत नज़र आ रही थीं, लेकिन हर्स्ट जिस तरह से अपने कारोबार में उलझे हुए थे, उससे और अधिक चुप्पा होती जा रही थीं।

अचानक ही मेरियन नाराज़गी से चिल्लायीं,"ऐय आप?"

हर्स्ट ने सिर उठाया,"क्या आप मुझसे कुछ कह रही हैं?" उन्होंने पूछा।

"हां आप ही से, आप ज़रा इधर आइये," मेरियन ने जवाब दिया और अपनी बड़ी-बड़ी नीली आंखें उन पर टिकाये रखीं, हर्स्ट का स्टाफ पीछे सरक गया और जल्द ही कमरे में एक कड़ा सन्नाटा छा गया।

हर्स्ट स्पिंक्स की तरह बैठे रहे और उनकी आंखें सिकुड़ कर छोटी हो गयीं। उनकी त्यौरियां चढ़ गयीं, उनके होंठ पतली रेखा में बदल गये और वे अपने सिहांसन सरीखी कुर्सी के हत्थे पर नर्वस हो कर उंगलियां थपकाने लगे। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि गुस्से के मारे फट पड़ें या नहीं। मुझे लगा कि अपना हैट तलाश लिया जाये। लेकिन अचानक ही हर्स्ट खड़े हुए,"मेरा ख्याल है, अब मुझे जाना चाहिये," उन्होंने मेरियन की तरफ किसी गावदी की तरह लंगड़ा कर जाते कहा,"और हमारी मोहतरमा चाहती क्या हैं?"

"अपना धंधा शहर जा के करो।" मेरियन ने हिकारत से कहा,"मेरे घर में नहीं, मेरे मेहमान ड्रिंक के लिए इंतज़ार कर रहे हैं, इसलिए जल्दी करो और उनके लिए ड्रिंक्स ले कर आओ।"

"ठीक है ठीक है," उन्होंने कहा और जोकर की तरह खिसियाते हुए रसोई की तरफ लपके और सबने मुस्कुराते हुए राहत की सांस ली।

एक बार मैं एक ज़रूरी काम से लॉस एंजेल्स से न्यू यार्क तक की ट्रेन की यात्रा कर रहा था। मुझे तभी हर्स्ट से तार मिला जिसमें उन्होंने मुझे उनके साथ मैक्सिको की यात्रा पर चलने का न्यौता दिया था। मैंने वापसी तार भेजा कि मैं नहीं आ सकूंगा क्योंकि मुझे न्यू यार्क में ज़रूरी काम निपटाना है। अलबत्ता, कन्सास सिटी में मुझे हर्स्ट के दो एजेंट मिले। "हम आपको ट्रेन से उतार कर लेने आये हैं," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और बताया कि मिस्टर हर्स्ट न्यू यार्क में अपने वकीलों के जरिये मेरा ज़रूरी काम करवा देंगे। लेकिन मैं उनके साथ नहीं जा सका।

मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं जानता तो अपनी दौलत को इस तरह बेरहम तरीके से लुटाता हो जिस तरह से हर्स्ट लुटाते थे। रॉकफैलर दौलत का नैतिक बोझ महसूस करते थे, पीयरपाँट मोर्गन ने दौलत की ताकत को दिल से लगा लिया था लेकिन हर्स्ट लाखों-करोड़ों डॉलर निर्मम हो कर खर्च कर डालते थे मानो ये साप्ताहिक जेबखर्ची हो।

हर्स्ट ने मेरियन को सांता मोनिका में जो बीच हाउस दिया था, वह सांकेतिक रूप से रेत पर बनाया गया महल था। इसे इटली से आये कारीगरों ने बनाया था। इसमें जॉर्जियन शैली के सत्तर कमरे थे। ये तीन सौ फुट चौड़ा और तीन मंज़िला था, इसमें सोने का पानी चढ़ी पत्तियों वाला बॉलरूम और डाइनिंग रूम थे। वहां पर रेनॉल्ड्स, लॉरेंस, और दूसरे कलाकारों की पेंटिंग्स सब कहीं टंगी थीं। कहीं असली और कहीं नकली। वहां पर बनायी गयी ओक के पैनलों वाली विशालकाय लाइब्रेरी में जब एक बटन दबाया जाता था तो फर्श का एक हिस्सा ऊपर उठ जाता था और वह सिनेमा के परदे में बदल जाता था।

मेरियन के डाइनिंग रूम में पचास आदमी आराम से बैठ सकते थे। भव्य तरीके से सजे कई मेहमान कक्ष थे जहां पर आराम से बीस मेहमान टिक सकते थे। इटालियन संगमरमर का एक स्वीमिंग पूल था, उसके ऊपर से बीचों-बीच वेनेशियन संगमरमर का पुल बना हुआ था। ये समुद्र की तरफ एक घिरे हुए बगीचे में बना हुआ था। स्वीमिंग पूल से ही सटी हुई एक और जगह थी जहां पर बार रूम और छोटा-सा कैबरे डांस फ्लोर थे।

सांता मोनिका के प्राधिकारी चाहते थे कि वे वहां पर नौसेना के छोटे वाले क्राफ्ट के लिए और मौज मजा वाली किश्तियों के लिए एक छोटा-सा बंदरगाह बनायें। इस परियोजना को लॉस एंजेल्स टाइम्स का समर्थन मिला हुआ था। चूंकि मेरे पास भी एक छोटा सा क्रूजर था, मैंने सोचा कि ये बढ़िया रहेगा और इसके बारे में एक दिन नाश्ते के समय मैंने हर्स्ट से बात की। "इससे पूरे पास-पड़ोस पर खराब असर पड़ेगा।" उन्होंने हिकारत से कहा,"नाविक लोग आ-आ कर खिड़कियों से झांकेंगे मानो ये कोई रंडीखाना है।"

इसके बाद इस विषय पर कोई बात नहीं हुई।

हर्स्ट आश्चर्यजनक रूप से सहज रहते थे। जब वे मूड में होते तो मनभावन ठुमके लगाते हुए अपना प्रिय चार्ल्सटन डांस करते, इस बात की परवाह किये बिना कि कोई कुछ भी कहे। वे कभी भी कोई मुखौटा नहीं ओढ़े रखते थे और सिर्फ इसी बात से कोई काम करते थे कि उसे करना उन्हें अच्छा लगता है। उन्होंने मुझ पर ये हमेशा यही छवि छोड़ी कि वे सुस्त जान हैं। शायद वे थे भी, लेकिन उन्होंने कभी किसी और रूप में होने की कोशिश ही नहीं की। कई लोग सोचते थे कि रोज़ाना जो संपादकीय उनके हस्ताक्षरों के साथ जाते हैं, वे आर्थर ब्रिसबेन के लिखे होते हैं लेकिन ब्रिसबेन ने मुझे खुद ही बताया था कि हर्स्ट देश के सबसे होशियार संपादकीय लेखक थे।

कई बार वे आश्चर्यजनक रूप से बच्चों जैसा बरताव करने लगते और उनकी भावनाओं को आसानी से चोट पहुंचायी जा सकती थी। मुझे एक शाम की बात याद है, हम चेरेड्स का खेल खेल रहे थे। हम चुन रहे थे कि कौन किस तरफ रहेगा। हर्स्ट ने शिकायत की कि उन्हें बाहर ही छोड़ दिया गया है।

"तो ठीक है," जैक गिल्बर्ट ने ठिठोली करते हुए कहा,"हम दोनों मिल कर अपना खुद का चेरेड खेलेंगे और गोली और बक्से का अभिनय करेंगे। मैं बक्सा बनूंगा और आप गोली बन जाना।"

लेकिन डब्ल्यू आर ने इसका भी उल्टा ही मतलब निकाला और उनकी आवाज़ कापंने लगी,"मैं आपका सड़ा-गला चेरेड नहीं खेलना चाहता।" कहा उन्होंने और ये कहते हुए कमरे से बाहर चले गये और जाते-जाते ज़ोर से दरवाजा बंद कर गये।

सैन सिमॉन में हर्स्ट का चार लाख एकड़ का रैंच प्रशांत महासागर के तट के किनारे-किनारे तीस मील तक फैला हुआ था। रहने के जो क्वार्टर वहां पर बनाये गये थे वे किसी गढ़ की तरह समुद्र तल से पांच सौ फिट ऊपर और समुद्र तट से चार मील दूर एक पठार पर बनाये गये थे। मुख्य महल के लिए यूरोप से कई लदानों में कई किले जहाज से लाये गये थे, उन्हें मिला कर बनाया गया। उसका सामने का हिस्सा फ्रांस के सबसे बड़े रीम्स कैथेड्रल और विशाल स्विस लकड़ी के बंगले का मिला-जुला रूप लगता था। इसके चारों ओर प्रहरियों की तरह पांच इतालवी विला थीं जो कि पठार के कोने में बनी हुई थीं। प्रत्येक में छ: मेहमान ठहर सकते थे। इन्हें इतालवी शैली में सजाया गया था और इनकी छतें अति अलंकृत थीं और उनमें आपकी तरफ मुस्कुराते हुए फरिश्ते और देवदूत चित्रित किये गये थे। मुख्य बंगले में तीस और मेहमानों को टिकाने की जगह थी। स्वागत कक्ष नब्बे फुट लम्बा और पचास फुट चौड़ा था, उसमें सोने की चित्र यवनिका झूल रही थी, कुछ असली और कुछ नकली। इस राजसी परिवेश में चौसर जैसी मेजें थीं और कमरे के सभी कोनों में पिनबाल गेम्स थे डाइनिंग रूम वेस्टमिन्स्टर के गिरजे के बीच वाले भाग की तर्ज पर बनाया गया था और उसमें आराम से अस्सी लोग बैठ सकते थे। घर में साठ नौकर-चाकर थे।

महल से सुने जाने वाली दूरी पर एक चिड़िया घर था। वहां पर शेर, चीते, भालू, ओरांग उटांग और दूसरे लंगूर, पक्षी, और सर्प आदि थे। लॉज गेट से महल तक पांच मील लम्बी ड्राइव थी और रास्ते में दोनों तरफ नोटिस नज़र आते, "पशुओं को भी रास्ते पर चलने का अधिकार है।" कई बार आपको अपनी कार में वहां से जाते हुए रुक जाना पड़ता ताकि सड़क पर बैठे आस्ट्रिचों के झुंड तय कर सकें कि सड़क से हटना है या नहीं। भेड़ें, हिरण, बारहसिंघे और भैंसे झुंडों में इस्टेट में विचरते रहते और आपकी अपनी गति कम करनी पड़ती।

रेलवे स्टेशन पर मेहमानों को लिवाने के लिए कारें खड़ी रहतीं। और अगर आप हवाई जहाज से आ रहे हों तो आपके जहाज की लैंडिंग के लिए निजी फील्ड थी। यदि आप दो खानों के वक्त के बीच किसी वक्त वहां पहुंचते तो आपको बताया जाता कि आपके ठहरने का इंतज़ाम फलां जगह पर है और आपको हिदायत दी जाती कि डिनर का समय आठ बजे है और कॉकटेल मुख्य हॉल में साढ़े सात बजे सर्व किये जायेंगे।

मनोरंजन के लिए वहां पर थे तैराकी, घुड़सवारी, टैनिस, और हर तरक के खेलकूद। या आप चिड़ियाघर भी देखने जा सकते थे। हर्स्ट ने एक कड़ा नियम बना रखा था कि किसी को भी शाम छ: बजे से पहले ड्रिंक सर्व न किये जायें। लेकिन मेरियन अपने दोस्तों को अपने क्वार्टर में बुला लेतीं और वहां पर बिना भेदभाव के कॉकटेल सर्व किये जाते।

डिनर छप्पन भोग वाले होते। मीनू पढ़ कर लगता कि आप पहले चार्ल्स की दावत का मीनू पढ़ रहे हैं। वहां पर मौसम के अनुसार लजीज पकवान होते। भेड़, जंगली बत्तख, मुर्गाबी और हिरण का मांस। इस सब विलासिता के बीच हमें कागज के नैपकिन दिये जाते। और कपड़े वाले नैपकिन मेहमानों को तभी नसीब होते जब मिसेज हर्स्ट वहां पर मौजूद होतीं।

मिसेज हर्स्ट सैन सिमॉन में साल में एक बार आतीं और उनके आने से कोई भी हंगामा न होता। मैरियन और मिसेज हर्स्ट के बीच सह-अस्तित्व के लिए आपसी सहमति थी। जब मिसेज हर्स्ट के आने का समय निकट आने को होता, मैरियन और हम सब लोगों का जमावड़ा वहां से चुपचाप कूच कर जाता या फिर सांता मेरियन के मोनिका वाले बीच हाउस में जा कर डेरा डाल देते। मैं मिलिसेंट हर्स्ट को 1916 से जानता था और हम दोनों बहुत ही अच्छे दोस्त थे। इस हिसाब से मुझे दोनों ही घरों में आने की छूट थी। मिसेज हर्स्ट जब अपनी सैन फ्रांसिस्को की सोसाइटी की सखियों के साथ रैंच पर मौज कर रही होतीं तो वे मुझसे वहां पर वीक एंंड मनाने आने के लिए कहतीं और मैं वहां पर इस तरह चला जाता मानो मैं वहां पर पहली ही बार जा रहा होऊं। लेकिन मिलिसेंट को कोई भ्रम नहीं थे। हालांकि उन्हें इस बात का हल्का-सा अहसास होता कि सब लोग हाल में वहां से एक साथ निकले हैं, उसकी परवाह न करते हुए वे इसके बारे में हास्य बोध के साथ बतातीं।

"अगर मैरियन न होतीं तो उनकी जगह कोई और होता," उन्होंने कहा।

वे अक्सर मुझे विश्वास में ले कर मेरियन और हर्स्ट के संबंधों के बारे में बात करतीं। लेकिन इस बातचीत में कभी भी कड़ुवाहट न होती,"वे अभी भी ऐसा ही बरताव करते हैं मानो हम दोनों के बीच कभी कुछ हुआ ही न हो और मानो मेरियन का अस्तित्व ही न हो।" कहा उन्होंने,"जब मैं यहां पहुंचती हूं तो वे हमेशा बहुत प्यार से और स्नेह से पेश आते हैं लेकिन कभी भी मेरे पास कुछ घंटों से ज्यादा नहीं रहते। और हमेशा इसका एक ही रूटीन होता है। डिनर के बीच ही बटलर उन्हें एक पर्ची थमा जायेगा और वे माफी मांगते हुए मेज से उठ कर चल देंगे। जब वे वापिस आयेंगे तो खिसियाते हुए कहेंगे कि किसी ज़रूरी मामले की वजह से तुंत उन्हें लॉस एजेंल्स पहुंचना है और हम सब यही दर्शाते हैं कि हम उन पर विश्वास कर रहे हैं। और बेशक हम सब जानते हैं कि वे लौट कर मेरियन के पास जा रहे हैं।"

एक शाम डिनर के बाद मैं मैदान में चहल कदमी के लिए मिलिसेंट के साथ था। शेट्यू चांदनी में नहाया हुआ था और सात पहाड़ियों की जंगली सेटिंग में डरावना और भुतैला लग रहा था। बेहद साफ आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। एक पल के लिए खड़े हो कर हम इस अद्भुत दृश्य को निहारते रहे। चिड़ियाघर की तरफ से बीच-बीच में किसी शेर के चिंघाड़ने की आवाज़ आ जाती और किसी ओरांग उटांग के लगातार चीखने की आवाज़ें आतीं। ये आवाज़ें गूंजतीं और पहाड़ियों से टकरा कर लौट आतीं। ये सब अद्भुत और डरावना था। हर शाम ओरांग उटांग सूर्यास्त के वक्त शुरू करता और भयानक रूप से चिल्लाता रहता और ये चिल्लाना रात भर चलता रहता।

"ये कम्बख्त जानवर ज़रूर पागल होगा,' मैंने कहा।

"ये पूरी की पूरी जगह ही पागल बना देने वाली है, देखो तो जरा," महल की तरफ देखते हुए उन्होंने कहा,"पागल कलाकार ओटो का सृजन, और वह तब तक इस तरह की इमारतें बनाता जायेगा और उनमें जोड़ता जायेगा जब तक वह मर नहीं जाता। तब इनका क्या इस्तेमाल होगा। किसी की भी इतनी हैसियत नहीं है कि इनका रख रखाव ही कर सके। होटल के रूप में ये बेकार है। और हर्स्ट अगर इसे सरकार को सौंप देता है तो मुझे शक है कि वे इसका कोई इस्तेमाल कर भी पायेंगे या नहें। विश्वविद्यालय के रूप में भी नहीं।"

मिलिसेंट हमेशा हर्स्ट के बारे में मातृत्व के तरीके से बात करती थीं। इससे मुझे लगता था कि वे अभी भी उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ी हुई हैं। वे दयालु, समझ-बूझ रखने वाली महिला थीं लेकिन बाद के बरसों में जब मैं राजनैतिक षडयंत्रों का शिकार हो गया था, उन्होंने मुझे त्याग दिया।

एक शाम जब मैं वीक एंड के लिए सैन सिमॉन में पहुंचा तो मेरियन मुझे मिलीं। वे नर्वस और उत्तेजित थीं। उनके मेहमानों में से एक पर उस वक्त ब्लेड से हमला किया गया था जब वह मैदान पार कर रहा था।

मेरियन जिस समय उत्तेजित होती थीं, हकलाती थीं, उससे उनका सौन्दर्य और भी निखर उठता था और उन्हें मुसीबत में औरत वाले गुणों से भर देता था। "हम अभी .....भी न नहीं जानते कि कि किसने कि ... किया है ये," वे फुसफुसायीं,"लेकिन डब्ल्यू आर के कई जा.. .. सूस मैदान की तलाशी ले .. रहे हैं और हम कोशिश कर रहे हैं कि ये खबर दूसरे मेहमानों तक न पहुंचे। कुछ लोगों का ख्याल है कि ये किसी फिलिपीनो की कारस्तानी है। इसलिए हर्स्ट ने रैंच से सभी फिलिपीनो लोगों को तब तक के लिए हटा दिया है जब तक जांच पूरी न हो जाये।"

"वो आदमी कौन है जिस पर हमला हुआ है?" पूछा मैंने।

"आप उसे रात को खाने की मेज पर देखेंगे," कहा उसने।

डिनर के वक्त मैं उस नौजवान के सामने बैठा जिसका चेहरा पट्टियों से ढका हुआ था। सिर्फ उसकी चमकती हुई आंखें और सफेद दांत ही दिखायी दे रहे थे जिन्हें वह बीच बीच में मुस्करा कर झलका रहा था।

मेरियन ने मेज़ के नीचे से मुझे इशारा किया,"यही है वो," वे फुसफुसायीं।

ऐसा कत्तई नहीं लगा कि उस पर हमला हुआ होगा, उसकी अच्छी खासी खुराक थी। उससे जो भी पूछा जा रहा था, वह बस, कंधे उचका देता या खिसिया कर हँस देता।

डिनर के बाद मेरियन ने मुझे वह जगह दिखायी, जहां पर हमला हुआ था, ये जगह मूर्ति के पीछे थी। बताया उन्होंने, "विजेता की पंख वाली संगमरमर की मूर्ति के पीछे। वहां पर खून के निशान हैं।"

"वह मूर्ति के पीछे क्या कर रहा था?"

"हमलावर से ब .. .. बचने के लिए।" उसने जवाब दिया।

अचानक ही अंधेरे में से हमारा मेहमान अवतरित हुआ और इस वक्त भी उसका चेहरा खून से लथपथ था। वह हमारे पास से लड़खड़ाते हुए गुज़रा। मेरियन चीखीं और तीन फुट उछल गयीं। पल भर में न जाने कहां से बीस आदमी वहां पर जुट आये।

"मुझ पर फिर से हमला हुआ है।" वह मिमियाया। उसे दो जासूसों ने अपनी बाहों पर थामा हुआ था और उसे उसके कमरे में वापिस ले जाया गया। वहां पर उससे पूछताछ हुई। मेरियन गायब हो गयीं। लेकिन एक घंटे बाद मैंने उन्हें मुख्य हॉल में देखा।

"क्या हुआ?" पूछा मैंने।

वे शंकित नज़र आ रही थीं,"उनका कहना है कि उस आदमी ने ये खुद ही किया है।" वह खड़ूस है और सिर्फ अपनी ओर ध्यान दिलाना चाहता है।"

बिना किसी और पूछताछ के उस सनकी का बोरिया बिस्तर बांध के उसी रात पहाड़ी से भेज दिया गया और बेचारे फिलिपीनो सवेरे अपने काम पर लौट आये।

सर थॉमस लिप्टन सैन सिमॉन पर तथा मेरियन के बीच हाउस पर मेहमान थे। वे खुशमिजाज, बहुत बोलने वाले बूढ़े स्कॉटमैन थे और वे बहुत अच्छे देहाती उच्चारण में बात करते थे। वे रुक रुक कर बोलते थे और यादों में खो जाते थे।

उन्होंने कहा,"चार्ली, आप अमेरिका आये और आपने अपनी किस्मत का सितारा बुलंद किया। मैंने भी यही किया। मैं पहली बार यहां आया तो मवेशियों वाली नाव में आया था। और तब मैंने अपने आप से कहा, "अगली बार, मैं अपनी याच पर आऊंगा और मैं आया।" उन्होंने मुझसे शिकायत की कि उन्हें उनके चाय के कारोबार में लाखों डॉलर का चूना लगाया जा रहा है।"

एलेक्जेंडर मूर, स्पेन में राजदूत, सर थॉमस लिप्टन और मैं अक्सर लॉस एंजेल्स में एक साथ खाना खाते। और सर थॉमस और एलेक्स वे बारी बारी से पुरानी यादों में खो जाते और सिगरेट के टोटों की तरह शाही नाम उनके मुंह से निकलते रहते। दोनों ही मुझ पर ये प्रभाव छोड़ते कि राजसी जीवन में और कुछ नहीं बस सूक्तियां ही होती हैं।

इस अरसे में मैं हर्स्ट और मेरियन से बहुत बार मिला क्योंकि मैं उस शानो शौकत की ज़िंदगी को पसंद करता था जो वे जीते थे और चूंकि मेरे पास हमेशा वीक एंड मेरियन के बीच हाउस में मनाने का न्यौता होता, मैं अक्सर इसका खास तौर पर फायदा उठाता क्योंकि तब डगलस और मैरी यूरोप गये होते। एक सुबह कई दूसरे लोगों के साथ ब्रेकफास्ट के समय मेरियन ने अपनी पटकथा के बारे में मेरी राय जाननी चाही। लेकिन मैंने जो कुछ कहा, वह डब्ल्यू आर को पसंद नहीं आया। कहानी की थीम औरताना थी और मैंने इस बात का उल्लेख किया कि औरतें पुरुषों का पीछा करती हैं और पुरुषों को इस मामले में करने धरने को कुछ नहीं होता।

डब्ल्यू आर ने इसका उल्टा सोचा,"ओह नहीं," कहा उन्होंने,"आदमी ही हमेशा चुनता है।"

"हम सोचते हैं कि हम चुनते हैं," मैंने जवाब दिया,"लेकिन होता है कि कोई नन्हीं परी अपनी छोटी उंगली से आपकी तरफ इशारा करती है और कहती है ये मेरा है, और आपको ले लिया जाता है।"

"आप बिलकुल ही गलत कह रहे हैं।" डब्ल्यू आर ने पूरे विश्वास के साथ कहा।

"मुसीबत ये है," मैं कहता रहा,"उनकी तकनीक इतनी शानदार तरीके से छुपी होती है कि हमें यही विश्वास दिलाया जाता है कि चयन हम ही कर रहे हैं।"

डब्ल्यू आर ने अचानक मेज़ पर ज़ोर का घूंसा मारा कि मेज पर ब्रेकफास्ट की चीजें उलट पुलट गयीं,"जब मैं कहता हूं कि कोई चीज़ सफेद है तो आप कहते हैं कि काली है।" वे चिल्लाये।

मुझे लगा कि मैं थोड़ा पीला पड़ गया। उस वक्त बटलर मेरी कॉफी डाल रहा था। मैंने सिर उठाया और कहा,"क्या आप किसी को मेरा सामान पैक करने के लिए कहेंगे और मेरे लिए एक टैक्सी बुलवा देंगे।" तब एक शब्द भी बोले बिना मैं उठा और बालरूम में चला गया और वहां पर गुस्से से भरा हुआ चुपचाप चहल कदमी करने लगा।

एक पल बाद मेरियन आयीं,"क्या हो गया चार्ली?"

मेरी आवाज़ कांपी,"मुझ पर इस तरह से कोई आदमी चिल्ला नहीं सकता। वह अपने आप को समझता क्या है? नेपोलियन? नीरो?"

मेरी बात का जवाब दिये बिना वे मुड़ीं और तेज़ी से कमरे से चली गयीं। एक पल के बाद डब्ल्यू आर आये और ऐसे जतलाने लगे मानो कुछ हुआ ही न हो,"क्या बात है चार्ली?"

"मैं इस बात का आदी नहीं हूं कि कोई मुझ पर चिल्लाये, खास तौर पर तब जब मैं घर में मेहमान हूं। इसलिए मैं ... मैं जा रहा हूं।" मेरी आवाज गले में ही फंस कर रह गयी और मैं वाक्य ही पूरा नहीं कर पाया।

डब्ल्यू आर ने एक पल के लिए सोचा और वे भी वहीं पर चहल कदमी करने लगे।

"आओ हम इस बारे में बात कर लें।" उन्होंने कहा, उनकी आवाज़ भी भर्रा गयी थी।

मैं उनके पीछे पीछे हॉल में और वहां से आराम करने वाले कमरे में चला जहां पर एक एंटीक डबल कुर्सी रखी हुई थी। डब्ल्यू आर छ: फुट चार इंच के थे और बहुत बड़ी काया थी उनकी। वे बैठ गये और जितनी भी जगह बची थी उसमें मुझे भी बैठने का इशारा किया।

"बैठ जाओ चार्ली, और हम बातचीत से इसे सुलझा लेंगे।"

मैं उनके पास बैठ गया। लेकिन मैं सिकुड़ कर ही बैठ पाया। बिना एक शब्द भी बोले उन्होंने मेरी तरफ अपना हाथ बढ़ाया, हालांकि बैठे हुए मैं अपना हाथ हिला भी नहीं सकता था, मैंने हाथ मिला ही लिया।

तब उन्होंने सफाई देनी शुरू की, उनकी आवाज़ अभी भी कांप रही थी,"देखो चार्ली, मैं सचमुच नहीं चाहता कि मेरियन ये स्क्रि प्ट करे, और वह तुम्हारी राय की कद्र करती है। और जब तुमने उसे अनुमोदित कर दिया तो मेरा ख्याल है मैं इसी वजह से तुम्हारे साथ ऊंचा नीचा बोल गया।"

मैं तत्काल ही पिघल गया और मैं ही अपने आपको दोषी बताने लगा कि ये सब मेरी ही गलती थी। अंतिम सद्भावना के रूप में हम दोनों ने एक बार फिर हाथ मिलाये और उठने की कोशिश की लेकिन हम दोनों ही चिंपेंडेल में फंस गये थे और कुर्सी के क्रैक होने की आवाज़ें आने लगीं कई बार कोशिश करने के बाद हम दोनों अपने आप को कुर्सी से मुक्त करा पाये और कुर्सी को भी कुछ नहीं हुआ।

ऐसा लगता है कि मेरियन मुझसे मिल कर गयीं तो सीधे हर्स्ट के पास गयी होगीं और उन्हें मेरे प्रति इतना बदतमीज होने के लिए उन्हें फटकारा होगा और कहा होगा कि जाओ और चार्ली से माफी मांगो। मेरियन इस बात को जानती थीं कि किस वक्त अपनी बात मनवानी है और किस वक्त चुप रहना है। वह अक्सर ऐसा ही करती थीं। हर्स्ट के खराब मूड में, मेरियन ने बताया, तूफान ज़ोरदार शोर शराबे के साथ इसी तरह आता है।

मेरियन आकर्षक औरत थीं। और जब हर्स्ट को अपने कारोबार के सिलसिले में न्यू यार्क जाना पड़ता तो वे अपने सारे दोस्तों को बेहरली हिल्स वाले अपने घर (ये बीच हाउस के बनने से पहले की बात है) पर बुला लेतीं और वहां पर हम पार्टियां करते, और आधी रात तक चेरेड्स खेलते रहते। तब रुडोल्फ वेलेन्टिनो अपने छोटे से घर पर पार्टी देते और मैं भी अपने घर पर यही कुछ करता। कई बार हम पब्लिक बस किराये पर ले लेते और उसमें खाने पीने का सामान एक तरह से ठूंस ठूंस कर भर देते और हम दस या बीस लोग मालीबू बीच पर चले जाते जहां पर हम कैम्प फायर जलाते और आधी रात की पिकनिकें मनाते और ग्रनिऑन मछलियां पकड़ते।

लॉयेला पारसंस, हर्स्ट की कॉलम लेखिका अनिवार्य रूप से आतीं और उनके साथ होते हैरी क्रोकर जो बाद में जा कर मेरे सहायक निर्देशकों में से एक बने। इस तरह के अभियानों के बाद हम तीन चार बजे तक वापिस घर न जाते। मेरियन लॉयेला से कहतीं, "अगर हर्स्ट को इस सबके बारे में पता चल जाये तो हम दोनों में से एक की नौकरी जायेगी और वो कम से कम मैं मैं नहीं होऊंगी।"

मेरियन के घर पर इस तरह की एक मौज मज़ा पार्टी के दौरान हर्स्ट ने न्यू यार्क से फोन किया, जब मेरियन फोन सुन कर वापिस आयीं तो वे गुस्से से लाल पीली हो रही थीं,"क्या आप कल्पना कर सकते हैं?" उन्होंने हिकारत से कहा,"हर्स्ट ने मुझ पर जासूस छोड़ रखे हैं।"

फोन पर ही हर्स्ट ने अपने जासूस की रिपोर्ट पढ़ी कि जब से वे बाहर गये थे, यहां पर क्या कुछ चल रहा था।

कि वे फलां के घर से रात चार बजे वापिस आयीं और ढिमका के घर से सुबह पांच बजे वापिस आयीं और इस तरह से। मेरियन ने मुझे बाद में बताया कि हर्स्ट तुरंत ही लॉस एंजेल्स लौट रहे हैं ताकि उनके साथ सारे मामले निपटा लें और कि दोनों अलग हो जायेंगे। बेशक मेरियन नाराज़ थीं, क्योंकि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया था और सिर्फ दोस्तों के साथ मौज मजा करती रही थीं। देखा जाये तो जासूस की रिपोर्ट सच थी लेकिन इसे गलत छवि देने के लिए तोड़ मरोड़ दिया गया था। कन्सास सिटी से हर्स्ट ने तार भेजा,"मैंने अपना इरादा बदल लिया है, और मैं कैलिफोर्निया नहीं लौटूंगा क्योंकि मैं उन जगहों पर अपना चेहरा नहीं दिखा सकता जहां पर मुझे इतना अधिक आनंद मिला है, इसलिए मैं न्यू यार्क लौट रहा हूं।"

लेकिन जल्द ही उन्होंने एक और तार भेजा कि वे लॉस एंजेल्स आ रहे हैं।

जब हर्स्ट लौटे तो हम सब के लिए ये बहुत ही तनावपूर्ण पल थे। अलबत्ता, मेरियन से उनकी जो बातचीत हुई उसका बहुत अच्छा परिणाम रहा। इसकी परिणति हुई बेवरली हिल्स पर हर्स्ट के सम्मान में बहुत ही भव्य पार्टी दी गयी। मेरियन ने अपने किराये के घर में एक अस्थायी डाइनिंग रूम बनवाया जिसमें एक सौ साठ मेहमान आ सकते थे। इसे दो ही दिन में पूरा कर लिया गया। डांस फ्लोर की इमारत सहित इसे सजाया गया। बिजलियों से इसे सजाया गया था, मात्र दो दिन में। मेरियन को केवल जादुई चिराग रगड़ना था और काम हो जाता। उस शाम वह अपनी 75000 डॉलर की पन्ने की अंगूठी पहन कर आयी थीं। ये हर्स्ट की ओर से भेंट थी और संयोग से किसी को भी अपनी नौकरी से हाथ नहीं धोना पड़ा।

सैन सेमियन और मेरियन के बीच हाउस से बदलाव के तौर पर हम अक्सर अपने वीक एंड हर्स्ट के याच पर बिताते और कैटैलिना या सैन डियेगो के दक्षिण की तरफ समन्दर की सैर करते। इन्हीं क्रूस यात्राओं में से किसी एक के दौरान ऐसा हुआ कि थॉमस एच इन्स जिन्होंने हर्स्ट की कॉस्मोपोलिटन फिल्म प्रोडक्शन ली थी, को नाव से उतार कर सैन डिऐगो ले जाना पड़ा। मैं उस ट्रिप पर मौजूद नहीं था लेकिन एलिनॉर ग्लिन जो उस वक्त मौजूद थी ने बाद में मुझे बताया था कि इन्स खुशमिजाज इन्सान थे और मौज कर रहे थे लेकिन लंच के दौरान उन्हें अचानक ऐसा दर्द उठा मानो लकवा मार गया हो और उन्हें मेज पर से उठ जाना पड़ा। सबने यही सोचा कि हो सकता है ये हाजमे वाली गड़बड़ होगी लेकिन वे इतने बीमार हो गये कि यही ठीक समझा गया कि उन्हें किनारे पर उतार कर अस्पताल भिजवा दिया जाये। अस्पताल में ही पता चला कि उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। फिर उन्हें बेवरली हिल स्थित उनके घर पर भिजवा दिया गया। वहां पर तीन हफ्ते बाद उन्हें एक और दौरा पड़ा और वे चल बसे।

इस किस्म की गंदी अफवाहें उड़ने लगीं कि इन्स को गोली मारी गयी थी और इसमें हर्स्ट शामिल थे। ये अफवाहें पूरी तरह से झूठ थीं। मैं इस बात को जानता हूं क्योंकि मैं, हस्ट्र, मेरियन एक साथ उनकी मृत्यु से दो हफ्ते पहले मिलने के लिए उनके घर पर गये थे और वे हम तीनों को देख कर बहुत खुश हुए थे और विश्वास कर रहे थे कि वे जल्द ही ठीक हो जायेंगे।

इन्स की मौत से हर्स्ट की कॉस्मोपालिटन प्रोडक्शन की योजनाएं खटाई में पड़ गयीं इसलिए उन्हें वार्नर ब्रदर्स ने अपने हाथ में ले लिया। लेकिन दो बरस बाद हर्स्ट प्रोडक्शन एमजीएम के पास चली गयी जहां पर मेरियन के लिए एक बहुत ही विशाल बंगला ड्रेसिंग रूम बनाया गया था (मैंने इसे ट्रियानन नाम दिया)।

यहां पर हर्स्ट अपने अखबारों के कारोबार के ज्यादातर मसले निपटाते। कई बार मैंने मेरियन के स्वागत कक्ष में उन्हें पूरे फर्श पर बीस या उससे भी अधिक अखबार फैलाये हुए राजसी कुर्सी पर बैठे देखा। अपनी कुर्सी पर बैठे बैठे वे अलग अलग अखबारों की हैड लाइनों पर निगाह डालते, और ऊंची आवाज़ में बोलना शुरू कर देते,"ये बेहद सिड़ी सेटअप है," फिर दूसरा अखबार उठाते, "और फलां ये स्टोरी क्यों दे रहा है?" तब वे एक पत्रिका उठाते और दोनों हाथों में वजन करते, फिर बोलते,"इस महीने क्या मामला है? ये इतनी हल्की क्यों है? विज्ञापन विभाग क्या कर रहा है। रे लाँग को तार करके तुरंत यहां आने को कहो।" इस दृश्य के बीच मेरियन अपनी शानदार तड़क भड़क में अवतरित होतीं, अभी अभी फिल्म के सेट से आते हुए और अपनी महारानी वाली चाल से जानबूझ कर अखबारों के ऊपर से चलती हुई आतीं, और कहतीं, "हटाओ ये सब कचरा, मेरे सारे ड्राइंगरूम को घेर रखा है।"

हर्स्ट बेहद नौसिखिये बन जाते थे। मेरियन की किसी फिल्म के प्रीमियर पर जाते समय वे मुझे बुलवाते कि मैं उनके साथ ही चलूं और प्रवेश द्वार पर पहुंचने से पहले ही वे कार में से उतर जाते ताकि लोग उन्हें मेरियन के साथ आता हुआ न देख लें। इसके बावजूद जब हर्स्ट के एक्जामिनर और लॉस एंजेल्स का टाइम्स एक राजनैतिक झगड़े में उलझे हुए थे, हर्स्ट बुरी तरह से हमला कर रहे थे और टाइम्स पिछड़ रहा था, टाइम्स ने व्यक्तिगत हमले करने शुरू कर दिये और हर्स्ट पर आरोप लगाया कि वे दोहरा जीवन जी रहे हैं तथा सांता मोनिका बीच पर एक प्यार का घोंसला बनाये हुए हैं, अखबार ने मेरियन का नाम भी उछाल दिया। हर्स्ट ने अपने अखबार में इस हमले का कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन एक दिन बाद (उसी दिन मेरियन की मां गुज़री थीं) मेरे पास आये और बोले, "चार्ली, क्या मिसेज डेविस की अंतिम यात्रा में तुम मेरे साथ अर्थी को आगे की तरफ से कंधा दोगे?" और मैंने बेशक उनकी बात मान ली थी।

1933 या उसके आस पास हर्स्ट ने मुझे अपने साथ यूरोप की यात्रा के लिए न्यौता दिया। उन्होंने कुनार्ड लाइंस नाम के जहाज की पूरी एक साइड ही अपनी पार्टी के लिए अपने नाम पर बुक करा ली थी। लेकिन मैंने मना कर दिया। क्योंकि इस का मतलब होता, दूसरे लोगों के साथ घिसटते रहो। जहां हर्स्ट ले जायें, वहीं जाओ, जहां हर्स्ट को जल्दी हो, वहीं लपकते हुए जाओ।

मुझे इस तरह का अनुभव एक बार पहले हो चुका था। मैं मैक्सिको की ट्रिप में उनके साथ था। उस वक्त मेरी दूसरी पत्नी गर्भवती थी। दस कारों का एक काफिला हर्स्ट और मेरियन की कार के पीछे पीछे उबड़ खाबड़ सड़कों पर चल रहा था। मैं इसकी वजह से सारे के सारे अमले को कोस रहा था। सड़कें इतनी खराब थीं कि हमें अपने मंज़िल की यात्रा बीच में ही छोड़ देनी पड़ी और रात भर के लिए एक मैक्सिकन फार्म हाउस में रुकना पड़ा। हम बीस लोगों के लिए वहां पर सिर्फ दो ही कमरे थे। मेहरबानी पूर्वक एक कमरा मेरी पत्नी, एलिनॉर और मुझे दे दिया गया था। कुछ लोग मेजों पर सोये, कुछ कुर्सियों पर, कुछ लोग मुर्गियों के दड़बों में सोये, और कुछ रसोई में।

उस छोटे से कमरे में नज़ारा बहुत ही शानदार था। मेरी पत्नी अकेले बिस्तर पर, मैं मुड़ी तुड़ी दो कुर्सियों पर, और एलिनॉर, इस तरह की पोशाक में मानो रिट्ज जा रही हों, अपना हैट पहने हुए, नकाब वाली जाली लगाये और दस्ताने पहने हुए एक टूटे फूटे दीवान पर लेटीं। वे अपने हाथ अपनी छाती पर यूं बांधे हुए थीं मानो कब्र में कोई आलसी काया हो। वे एक ही पोज़ में बिना किसी बाधा के सोती रहीं। मैं इस बात को जानता हूं क्योंकि मैंने रात भर एक बार भी पलक नहीं झपकायी थी। सुबह मैंने अपनी आंख की कोर से देखा कि वे जैसे सो रही थीं, वैसे ही उठीं, उनका बाल तक इधर से उधर नहीं हुआ था, उनकी गोरी चमड़ी और चमक लिये हुए, मानो वह रात भर प्लाज़ा होटल के टीरूम में टहलती रही हों।

यूरोप की ट्रिप पर हर्स्ट अपने साथ हैरी क्रोकर को ले गये। अब वह हर्स्ट का सामाजिक सचिव बन गया था। हैरी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं हर्स्ट को सर फिलिप सासून के नाम परिचय का एक पत्र दूंगा। मैंने ये पत्र दिया।

फिलिप ने हर्स्ट को काफी समय दिया। यह बात जानने के बाद कि हर्स्ट कई बरस तक घोषित रूप से ब्रिटिश विरोधी रहे हैं, उन्होंने हर्स्ट की प्रिंस ऑफ वेल्स के साथ मुलाकात रखवायी।

सासून ने उन दोनों को पुस्तकालय के एक बंद कमरे में बातचीत के लिए छोड़ दिया। जहां फिलिप के कथनानुसार प्रिंस ने हर्स्ट से साफ साफ पूछ लिया कि वे इतने अधिक ब्रिटिश विरोधी क्यों हैं। वे वहां पर दो घंटे के लिए रहे, बताया सासून साहब ने, और उनका मानना था कि इस बातचीत के बहुत अच्छे परिणाम आये।

मैं कभी भी हर्स्ट की ब्रिटिश विरोधी भावना को समझ नहीं पाया क्योंकि उनकी इंगलैंड में बेशकीमती सम्पत्ति थी और उन्हें वहां से खूब लाभ मिलते थे। उनकी जर्मन के पक्ष की प्रवृतियां पहले विश्व युद्ध के समय से चली आ रही थीं, जिस आड़े वक्त में काउंट बर्नस्ट्राफ के साथ उनके साथ और मित्रता ने एक स्कैंडल का रूप ले लिया था। उस वक्त काउंट जर्मन राजदूत हुआ करते थे। इसलिए हर्स्ट की असीम शक्ति भी तब उस स्कैंडल का दबा नहीं पायी थी। तब भी उनके अमेरिकी विदेशी संवाददाता कार्ल वॉन वीगैंड दूसरे विश्व युद्ध के शुरू होने तक जर्मनी के पक्ष में लगातार लिखता रहा।

अपनी यूरोप ट्रिप के दौरान हर्स्ट जर्मनी गये और हिटलर से मिले। और उनके साथ बातचीत की। उस वक्त तक हिटलर के यातना शिविरों के बारे में कोई भी नहीं जानता था। इनके बारे में सबसे पहले खबर मेरे मित्र कोर्नेलियस वेंडरबिल्ट की रिपोर्टों से आयी जो किसी न किसी बहाने से एक यातना शिविर में घुस गया था और वहां पर नाजियों के अत्याचारों के बारे में लिखा। लेकिन इन अमावनीय अत्याचारों के बारे में उसके रिपोर्टें इतनी शानदार थीं कि उनके सच होने के बारे में किसी को विश्वास ही नहीं हुआ।

वेंडरबिल्ट ने मुझे पोस्ट कार्डों की एक सीरीज भेजी थी जिनमें हिटलर भाषण दे रहे थे। उसका चेहरा अश्लीलता की हद तक कॉमिक था, मेरी बहुत ही खराब नकल। उसकी घिनौनी मूंछें, बेतरतीब खड़े बाल, और हिकारत पैदा करने वाला पतला चेहरा। मैं हिटलर को गम्भीरता से नहीं ले पाया। हरेक पोस्टकार्ड में उसे अलग पोज में दिखाया गया था। एक में उसके हाथ पंजों की तरह थे, भीड़ को हांकते हुए, एक में एक हाथ ऊपर और दूसरा हाथ नीचे था, तीसरे में क्रिकेटर की भूमिका में जैसे गेंद फैंकने वाला हो। एक और पोस्टकार्ड में दोनों हाथ इस तरह से आगे की तरफ रखे हुए थे मानो काल्पनिक मुगदर उठाया जा रहा हो। सलामी लेते हुए एक हाथ पीछे की तरफ जा रहा था, हथेली ऊपर की तरफ मुझे लगा कि गंदी प्लेटें इस हाथ पर धर दी जायें। ये तो खड़ूस है मैंने सोचा, लेकिन जब आइंस्टीन और थॉमस मान को जर्मनी छोड़ने पर मज़बूर होना पड़ा तो हिटलर का ये चेहरा मज़ाकिया न रह कर पापी का हो गया था।

मैं आइंस्टीन से पहली बार 1926 में मिला था जब वे कैलिफोर्निया में व्याख्यान देने के लिए आये थे। मेरी एक थ्योरी है कि वैज्ञानिक और दार्शनिक प्रकाशमान रूमानी दुनिया में बसने वाले लोग होते हैं जो अपनी आवेश को दूसरी दिशाओं की तरफ मोड़ देते हैं। ये थ्योरी आइंस्टीन के व्यक्तित्व पर पूरी तरह से माफिक बैठती थी। वे सबसे अच्छे अर्थों में हँसोड़ और मित्रवत व्यक्तित्व के साथ एकदम आल्प पर्वत पर रहने वाले जर्मन लगते थे। हालांकि उनके तौर तरीके शांत और विनम्र थे, मैंने ये महसूस किया कि ये बातें बेहद संवेदनशील उत्तेजना के नीचे छुपी हुई थीं और इसी स्रोत से वे अपनी असाधारण बौद्धिक ऊर्जा ग्रहण करते हैं।

युनिवर्सल स्टूडियोज के कार्ल लाएमले ने फोन करके मुझे बताया कि आइंस्टीन महोदय मुझसे मिलना चाहेंगे। मैं रोमांच से भर गया। इस तरह से हम लंच के लिए युनिवर्सल स्टूडियो में मिले। प्रोफेसर, उनकी पत्नी, उनके सचिव हेलेन डुकास और उनके सहायक, प्रोफेसर वाल्टर मायेर। मिसेज आइंस्टीन अंग्रेजी बहुत अच्छी बोल लेती थीं, दरअसल प्रोफेसर से भी बेहतर। वे विराट ऊर्जा वाली चौड़े बदन की महिला थीं। वे इस महान व्यक्ति की पत्नी होने का सुख सहजता से भोग रही थीं, और इस तथ्य को छुपाने का उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया। उनका उत्साह देखते ही बनता था।

लंच के बाद जिस वक्त मिस्टर लाएमेले स्टूडियो में चारों तरफ घुमा रहे थे तो मिसेज आंइस्टीन मुझे एक तरफ ले गयीं और फुसफुसा कर बोलीं,"आप प्रोफेसर को अपने घर पर आमंत्रित क्यों नहीं करते? मुझे पता है वे सिर्फ हम तीनें के बीच शांत बातचीत का खुब लुत्फ उठायेंगे।" जैसा कि मिसेज आइंस्टीन ने अनुरोध किया था, ये एक छोटी सी पार्टी होनी चाहिये, मैंने सिर्फ दो और दोस्तों को बुलवाया। डिनर के वक्त मिसेज आइंस्टीन ने मुझे उस सुबह का किस्सा बताया जब प्रोफेसर को सापेक्षता का सिद्धांत सूझा था।

"प्रोफेसर हमेशा की तरह अपने ड्रेसिंग गाउन में नीचे नाश्ते के लिए आये लेकिन शायद ही उन्होंने किसी चीज़ को छुआ हो। मुझे लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। इसलिए मैंने पूछा कि कौन सी बात आपको परेशान किये हुए है। 'डार्लिंग,' वे बोले,'मेरे दिमाग में एक शानदार विचार आया है।' अपनी कॉफी पी लेने के बाद वे पिआनो पर गये और बजाना शुरू कर दिया। बीच बीच में वे रुक जाते, कुछ देर तक कुछ नोट्स लेते और फिर से बजाने लगते। 'मेरे दिमाग में एक शानदार विचार आया है, अद्भुत विचार!'

मैंने कहा,'तो भगवान के नाम पर मुझे तो बताइये कि ये विचार है क्या, मुझे रहस्य में मत रखो!'

वे बोले,'बहुत मुश्किल है, मुझे अभी उस पर और काम करना है।'

मैडम ने मुझे बताया कि वे लगातार आधे घंटे तक पिआनो बजाते रहे और नोट्स लेते रहे। तब वे ऊपर अपनी स्टडी में चले गये, मुझसे कहा कि वे किसी भी किस्म का व्यवधान नहीं चाहते, वे ऊपर दो हफ्ते तक रहे और मैं उनका खाना ऊपर ही भेजती रही। बताया उन्होंने,'और कभी शाम के वक्त वे एक्सरसाइज करने के लिए थोड़ा सा टहल लेते और फिर से अपने काम पर वापिस चले जाते।

'आखिरकार,' मैडम ने बताया,'वे अपनी स्टडी से नीचे आये। वे बहुत ही पीले नज़र आ रहे थे।' 'ये रहा,' उन्होंने थकान भरी आवाज में कहा और मेरे सामने मेज़ पर दो कागज़ रख दिये। और ये था सापेक्षता का सिद्धांत।'"

डॉक्टर रेनॉल्ड्स को मैंने उस शाम आमंत्रित किया था क्योंकि वे भौतिकी के विद्वान थे। उन्होंने प्रोफेसर से डिनर के दौरान पूछा कि क्या उन्होंने डुने की एन एक्स्पेरिमेंट विद टाइम पढ़ी है।

प्रोफेसर ने सिर हिला दिया।

रेनाल्ड्स हवा बांधने लगे,"विस्तार, डाइमेन्शन के बारे में उनकी एक रोचक थ्योरी है। एक तरह की . . . यहां पर वे हिचकिचाये, एक तरह के विस्तार का विस्तार!"

प्रोफेसर तुरंत मेरी तरफ मुड़े और शरारत पूर्ण तरीके से फुसफुसाये,"विस्तार का विस्तार, ये क्या होता है?"

रेनॉल्ड्स तब विस्तार के रथ से उतर गये और फिर उन्होंने प्रोफेसर से पूछा कि क्या आप भूत प्रेतों में विश्वास करते हैं। प्रोफेसर आइंस्टीन ने माना कि हालांकि उन्होंने कभी भूत देखे तो नहीं है, फिर आगे कहा कि अगर बारह आदमी एक ही समय में एक ही घटना को देख लें तो वे भी उस पर विश्वास कर लेंगे। वे मुस्कुराये।

उस समय में मन की गुत्थियों को ले कर हॉलीवुड में अच्छा खासा हंगामा सा बरपा हुआ था। खास तौर पर फिल्मों के नायकों के घरों में तो तंत्र मंत्र का बहुत ज़ोर था। वहां पर आध्यामिक बैठकें होतीं, आकाश गमन और मानसिक करतबों के प्रदर्शन होते। मैं इन आयोजनों में नहीं जाया करता था लेकिन फैनी ब्राइस, विख्यात कॉमेडियन ने कसम खाते हुए बताया कि ऐसी ही एक बैठक में उसने मेज को ऊपर उठते हुए और कमरे में चारों तरफ तैरते हुए देखा। मैंने प्रोफेसर से पूछा कि क्या उन्होंने कभी ऐसी कोई घटना देखी है।

वे मुस्कुराये और सिर हिलाया। मैंने उनसे यह भी पूछा कि क्या उनका सापेक्षता सिद्धांत कहीं न्यूटन की कल्पनाओं से टकराता है।

"इसके विपरीत," प्रोफेसर बोले,"यह उसका विस्तार ही है।"

डिनर के दौरान मैंने मिसेज आइंस्टीन को बताया कि जब भी मुझे मौका मिलेगा, मैं यूरोप जाना चाहूंगा।

"तब तो आपको जरूर ही बर्लिन आना चाहिये और हमारे घर आना चाहिये।" वे बोलीं,"हमारे पास बहुत बड़ी जगह नहीं है। प्रोफेसर बहुत अमीर नहीं है, हालांकि उनके पास वैज्ञानिक कार्य के लिए रॉकफैलर फाउंडेशन के दस लाख डॉलर से भी ज्यादा तक पहुंच होती है लेकिन वे कभी उसे हाथ नहीं लगाते।"

बाद में मैं जब बर्लिन गया तो उनके साधारण छोटे से घर में गया। ये उस तरह का घर था जो आपको आम तौर पर न्यू यार्क के ब्रांक्स इलाके में दिखायी देता है। एक ही कमरे में बैठक और डाइनिंग रूम, उसमें पुराने फटे हुए कालीन बिछे थे। वहां का सबसे ज्यादा कीमती फर्नीचर था उनका पिआनो जिस पर उन्होंने चौथे विस्तार के ऐतिहासिक प्रारम्भिक नोट लिखे थे। मैं कई बार हैरान होता हूं कि उस पिआनो का क्या हुआ होगा। शायद ये स्मिथसोनियम संस्थान में हो या मैट्रोपोलिटन संग्रहालय में, शायद नाजियों द्वारा लकड़ियां जलाने के काम में लाया गया हो।

जिस वक्त जर्मनी में नाज़ी आतंक शुरू हुआ, प्रोफेसर के परिवार ने अमेरिका में शरण ली। मिसेज आइंस्टीन प्रोफेसर की पैसों के मामले में अज्ञानता की एक मजेदार कहानी बताती हैं कि प्रिंस्टन विश्वविद्यालय वाले चाहते थे कि प्रोफेसर उनकी फैकल्टी में आ जायें और उन्होंने शर्तों के बारे में लिखा। प्रोफेसर ने इतनी मामूली रकम लिखी कि प्रिंस्टन के अध्यक्ष का उत्तर आया कि जिन शर्तों पर वे आना चाहते हैं, उस पर यहां पर उनका गुज़ारा नहीं हो पायेगा और उन्हें अमेरिका में रहने के लिए उसके कम से कम तीन गुना रकम की ज़रूरत पड़ेगी।

जब प्रोफेसर आइंस्टीन 1937 में दोबारा कैनिफार्निया में आये तो वे मेरे घर आये। उन्होंने मुझे प्यार से गले लगा लिया और मुझे चेतावनी दी कि वे अपने साथ तीन संगीतकार ला रहे हैं। "हम आपके लिए डिनर के बाद संगीत बजायेंगे।" उस शाम प्रोफेसर मोज़ार्ट के साजिंदे जैसे लग रहे थे। हालांकि उनका हस्त लाघव इतना आश्वस्त नहीं था, और उनकी तकनीक थोड़ी मुश्किल थी, फिर भी उन्होंने आनंद ले कर आंखें बंद करके लहराते हुए बजाया।

तीनों संगीतकार, जिन्होंने प्रोफेसर की संगत के लिए बहुत अधिक उत्साह नहीं दिखाया, विनम्रतापूर्वक यही संकेत दिया कि वे प्रोफेसर को आराम देना चाहते हैं और अपनी मनमर्जी का बजाते रहे। प्रोफेसर ने हार मान ली और बैठ गये। लेकिन जब उन्होंने कई चीजें बजा लीं तो वे मुझसे फुसफुसा कर बोले," मैं दोबारा कब बजाऊंगा?"

जब संगीतकार चले गये तो मिसेज आइंस्टीन ने थोड़ा परेशानी में अपने पति को आश्वस्त किया,"आपने उन लोगों से बेहतर बजाया।"

कुछ ही रातों के बाद आइंस्टीन दोबारा खाने पर आये मैंने तब मैरी पिकफोर्ड, डगलस फेयरबैंक्स, मेरियन डेविस, डब्ल्यू आर हर्स्ट, और एकाध और दोस्त को भी आमंत्रित किया। मेरियन डेविस आइंस्टीन के पास बैठी और मिसेज आइंस्टीन मेरी दायीं तरफ हर्स्ट के साथ बैठीं। डिनर से पहले लगा कि सब कुछ ठीक ठाक है, हर्स्ट अच्छे मूड में थे और आइंस्टीन विनम्र। लेकिन जैसे जैसे डिनर आगे बढ़ा, मैं महसूस कर पाया कि मामला कुछ ठंडा चल रहा है क्योंकि दोनों ने आपस में एक शब्द भी नहीं बोला। मैंने बातचीत में जीवंतता लाने की हर संभव कोशिश की लेकिन कोई भी बात उन्हें आपस में बात करने के लिए प्रेरित न कर सकी। डाइनिंग रूम में भयंकर सन्नाटा पसर गया और मैंने देखा कि हर्स्ट अपनी स्वीट डिश की प्लेट में अफसोसजनक तरीके से देख रहे हैं और प्रोफेसर मुसकुरा रहे हैं और शांत अपने ही ख्यालों में खोये हुए हैं।

मेरियन अपने मनमौजी तरीके से सबकी चुटकी लेती रही लेकिन आइंस्टीन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अचानक ही मेरियन आइंस्टीन की तरफ मुड़ी और अजीब तरीके से बोली,"हालो," और फिर अपने हाथ की बीच की उंगलियां उनके सिर की तरफ लहराती हुई बोली, "आप अपने बाल क्यों नहीं कटवा लेते?"

आइंस्टीन मुस्कुराये और मुझे लगा कि यही समय है कि कॉफी के लिए ड्राइंगरूम की तरफ चला जाये।

रूसी फिल्मकार आइंस्टीन अपने स्टाफ के साथ हॉलीवुड आये। उनके साथ ग्रिगोर एलेक्सान्द्रेव और एक अंग्रेज इवॉर मोंटेग्यू भी थे। ये आइंस्टीन के मित्र थे। मैं उन्हें कई बार मिला। वे मेरे टैनिस कोर्ट पर बहुत ही खराब टैनिस खेलते थे, खास तौर तो एलेक्सांदर तो बहुत ही खराब।

आइंस्टीन को पेरामाउंट कम्पनी के लिए एक फिल्म बनानी थी। वे पोटेमकिन और टेन डेज़ दैट शूक द वर्ल्ड की प्रसिद्धि के साथ आये थे पैरामाउंट ने इसे कारोबार के हिसाब से उचित समझा कि उन्है अपनी खुद की लिखी पटकथा पर फिल्म बनाने के लिए कहा जाये। उन्होंने एक बहुत ही अच्छी पटकथा लिखी सटर्स गोल्ड। इसे उन्होंने कैलिफोर्निया के शुरुआती दिनों की एक रोचक कथा से उठाया था। फिल्म में किसी तरह का कोई प्रचार नहीं था लेकिन आइंस्टीन चूंकि रूस से थे, पैरामांउट बाद में डर गये और फिर कुछ भी नहीं हुआ।

उनके साथ एक दिन साम्यवाद पर बात करते हुए मैंने पूछा कि क्या वे सोचते हैं कि पढ़ा लिखा प्रोलेतेरियन मानसिक रूप से एरिस्टोक्रेट के साथ अपनी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के साथ बराबरी पर खड़ा होता है, मेरा ख्याल है उन्हें मेरी अज्ञानता पर हैरानी हुई थी। आइंस्टीन जो रूस के इंजीनियरों के मध्यम स्तर के परिवार से आये थे, बोले, "यदि पढ़ा लिखा हो तो जनता की मिली जुली ताकत समृद्ध नयी जमीन की तरह होती है।"

उनकी फिल्म इवान द टैरिबल जिसे मैंने दूसरे विश्व युद्ध के बाद देखा, सभी ऐतिहासिक फिल्मों में से सबसे अच्छी थी। उन्होंने इतिहास को कविता की तरह पेश किया था। उससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका यही था। जब मैं महसूस करता हूं कि हाल ही की घटनाएं किस तरह से विकृत हो गयी हैं, इस तरह से इतिहास मेरी सिर्फ शंकाएं ही बढ़ाता है जबकि कविता के रूप में व्याख्या काल के सामान्य प्रभाव को ग्रहण करती है। आखिर कला में इतिहास की किताबों की तुलना में अधिक वैध तथ्य और ब्योरे होते हैं।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 18

जिस वक्त मैं न्यू यार्क में था तो मेरे एक दोस्त ने बताया कि उसने फिल्मों में आवाज़ को शामिल किये जाते देखा है। उसने भविष्यवाणी की कि इससे जल्द ही फिल्म उद्योग में क्रांति आने वाली है।

मैंने इसके बारे में तब तक नहीं सोचा जब कई महीने बाद वार्नर ब्रदर्स ने अपनी पहली बोलती फिल्म बनायी। ये एक कॉस्ट्यूम फिल्म थी जिसमें एक बेहद खूबसूरत अभिनेत्री को दिखाया गया था। उसका कुछ भी नाम नहीं रहने वाला था। वह दुख के कुछ चरम क्षणों को चुपचाप अभिव्यक्त करती है, मुर्दनगी से भरी उसकी बड़ी-बड़ी आंखें शेक्सपीयर की वाक् पटुता से भी अधिक पीड़ा दिखाती हैं। और तभी फिल्म में एक नयी बात का प्रवेश होता है। उस तरह का शोर सुनाई देने लगता है जैसा आप शंख को कान से लगाने पर सुनते हैं। तब वह खूबसूरत राजकुमारी इस तरह से बोलने लगती है मानो रेत में से बोल रही हो,"मैं ग्रेगोरी से ही शादी करूंगी भले ही मुझे इसके लिए अपना राजपाट ही छोड़ना पड़े।" ये भयंकर झटका था। क्योंकि अब तक तो राजकुमारी हमारा मनोरंजन ही कर रही थी। जैसे-जैसे पिक्चर आगे बढ़ती गयी, संवाद और मज़ाकिया होते चले गये। लेकिन उतने नहीं जितने साउंड इफेक्ट हो रहे थे। जब निजी बैठक के दरवाजे का हैंडल घूमा तो मुझे लगा कि किसी ने खेत में काम करने वाला ट्रैक्टर चला दिया है और जब दरवाजा बंद हुआ तो लगा, मिट्टी ढोने वाले दो ट्रक आपस में टकरा गये हैं। शुरू शुरू में वे आवाज़ को नियंत्रित करने के बारे में कुछ नहीं जानते थे। म्यान में तलवार रखने की आवाज़ ऐसे आती मानो स्टील फैक्टरी में काम चल रहा हो। साधारण पारिवारिक डिनर की मेज से आवाजें ऐसे आतीं मानो किसी भीड़ भरे रेस्तरां में खाना खाया जा रहा हो और गिलास में पानी डालने की आवाज़ इतनी खास तरह की आवाज़ निकलती कि आवाज़ के बहुत ऊंचे डेसिबल तक जा पहुंचती। मैं थियेटर से ये सोचते हुए लौटा कि आवाज़ के दिन बस, गिने चुने ही हैं।

लेकिन एक ही महीने बाद एमजीएम ने एक फिल्म बनायी, द ब्राडवे मेलोडी। ये एक पूरी लम्बाई वाली संगीत भरी फिल्म थी और हालांकि ये बड़ा ही सस्ता और सुस्त मामला था, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर इसने सफलता के झंडे गाड़ दिये और इसी से सिलसिला चल निकला। सभी थियेटरों ने रातों-रात आवाज़ के लिए तार बिछाने शुरू कर दिये। ये मूक फिल्मों की सांझ थी। ये तरस खाने वाली बात थी क्योंकि इस बीच मूक फिल्मों में सुधार होने शुरू हो गये थे। मिस्टर मुरनऊ, जर्मन निर्देशक ने इस माध्यम को बहुत अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया था और हमारे कुछ अमेरिकी निर्देशक भी इसी तरह के प्रयोग कर रहे थे। किसी भी अच्छी मूक फिल्म में विश्वव्यापी अपील होती थी जो बुद्धिजीवी वर्ग और आम जनता को एक जैसे पसंद आती थीं। अब ये सब कुछ खो जाने वाला था।

लेकिन मैं इस बात पर अड़ा हुआ था कि मैं मूक फिल्में ही बनाता रहूंगा क्योंकि मेरा ये मानना था कि सभी तरह के मनोरंजन के लिए हमेशा गुंजाइश रहती है। इसके अलावा, मैं मूक अभिनेता, पेंटोमाइमिस्ट था और उस माध्यम में मैं विरल था और अगर इसे मेरी खुद की तारीफ करना न माना जाये तो मैं इस कला में सर्वश्रेष्ठ था। इसलिए मैंने एक और मूक फिल्म द सिटी लाइट्स के लिए काम करना शुरू कर दिया।

इसकी कहानी एक जोकर के आसपास बुनी गयी थी जो एक सर्कस में दुर्घटनावश, अपनी आंखों की रौशनी खो बैठता है। उसकी एक बीमार-सी, प्यारी-सी बेटी है जो नर्वस है और जब वह अस्पताल से वापिस आता है तो डॉक्टर उसे चेताता है कि वह अपनी बेटी से अपना अंधापन तब तक छुपाये रखे जब तक वह इतनी समझदार नहीं हो जाती कि अंधेपन को समझ सके, नहीं तो इसका लड़की पर उल्टा असर पड़ेगा। उसका चीजों पर लड़खड़ाना और ठोकरें खाना बेटी को खुशी भरी हंसी से भर देता है। लेकिन ये कुछ ज्यादा ही हो जाता। अलबत्ता, जोकर का अंधापन फिल्म सिटी लाइट्स में लड़की के हिस्से में चला जाता है।

इसमें एक उप कहानी भी थी जिस पर मैं कई बरसों से सोच रहा था। अमीर आदमियों के एक क्लब के दो सदस्य हैं जो इस बात पर बहस कर रहे हैं कि आदमी की आत्मा कितनी अस्थिर होती है। वे एक ट्रैम्प के साथ एक प्रयोग करते हैं। उसे वे लंदन के एम्बेंकमेंट इलाके में सोया हुआ पाते हैं। वे उसे अपने महलनुमा घर में ले आते हैं और उसकी खूब खातिरदारी करते हैं। सुरा और सुंदरी और गाना बजाना होता है। और जिस वक्त वह बुरी तरह से नशे में धुत्त होता है और सो रहा होता है, वे उसे वहीं पर छोड़ आते हैं जहां से वे उसे उठा कर लाये थे। जब वह जागता है तो यही समझता है कि उसने सपना देखा है। इसी विचार से द सिटी लाइट्स के करोड़पति की कहानी बुनी गयी थी जो नशे में होते वक्त एक ट्रैम्प से दोस्ती करता है लेकिन जिस वक्त वह होश में होता है तो ट्रैम्प की अनदेखी करता है। इसी थीम से कहानी आगे बढ़ती है और ट्रैम्प उस अंधी लड़की के सामने ये नाटक कर पाता है कि वह अमीर आदमी है।

सिटी लाइट्स पर दिन भर काम करने के बाद मैं डगलस के स्टूडियो की तरफ निकल जाया करता और वहां स्टीम बाथ लेता। उनके कई दोस्त अभिनेता, निर्माता और निर्देशक वहां पर जमा होते और वहां पर हम बैठ जाया करते। अपनी जिन या टानिक की चुस्कियां लेते हुए, गप्पें मारते हुए सवाक फिल्मों की बातें करते। ये तथ्य किसी के भी गले से नीचे नहीं उतरता था कि मैं एक और मूक फिल्म बना रहा हूं।

"आप में तो भई गज़ब का धैर्य है," वे लोग कहा करते।

अपने पिछले कामों के दौरान अक्सर मैं निर्माताओं में रुचि पैदा कर लिया करता था। लेकिन इस वक्त तो हालत ये थी कि वे लोग सवाक फिल्मों की सफलता से इतने ज्यादा भरे हुए थे और जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था मुझे ऐसा लगने लगा था कि चीजें मेरे हाथ से फिसलती जा रही हैं; मुझे ऐसा लगा कि मैं बरबाद हो चुका हूं।

जो शेंक, जिन्होंने सवाक फिल्मों के प्रति अपना रोष सार्वजनिक रूप से प्रकट कर दिया था, अब उनके पक्ष में बात करने लगे थे,"चार्ली, मुझे ये डर है कि ये फिल्में हमेशा के लिए आ रही हैं!" तब वे इस बात की कल्पना करने लगते कि केवल चार्ली ही अकेले ऐसे शख्स हैं जो अभी भी सफल मूक फिल्में बना सकते हैं। ये बात तारीफ में कही गयी थी लेकिन बहुत ज्यादा राहत देने वाली नहीं थी। क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मैं अकेला ही मूक फिल्मों की कला का इकलौता पुजारी बचा रह जाऊं। न ही फिल्मी पत्रिकाओं में चार्ली चैप्लिन के फिल्मी कैरियर के भविष्य के बारे में व्यक्त की गयी शंकाओं और डरों को पढ़ना ही आश्वस्त करता था।

इसके बावजूद सिटी लाइट्स एक आदर्श मूक फिल्म थी और कोई भी बात मुझे ये फिल्म बनाने से रोक नहीं सकी। लेकिन मेरे सामने कई समस्याएं आ खड़ी हुई थीं। सवाक फिल्मों को आये अब लगभग तीन बरस हो गये थे, इस बीच अभिनेता इस बात को कमोबेश भूल ही चुके थे कि मूक अभिनय, पेंटोमाइमिंग करते ही कैसे हैं। उसकी सारी टाइमिंग बोलने में जा चुकी थी न कि एक्शन में। दूसरी परेशानी थी एक ऐसी लड़की की खोज करना जो अपने सौन्दर्य से निगाहें हटवाये बिना अंधी लग सके। कई आवेदक लड़कियां सामने आयीं जो अपनी आंखों की सफेद पुतलियां दिखा रही थीं लेकिन ये सब देखना बहुत ही हताश करने वाला था। किस्मत ने एक बार फिर मेरा साथ दिया। एक बार सांता मोनिका समुद्र तट पर मैंने एक फिल्म कम्पनी को शूटिंग करते देखा। वहां पर नहाने के कपड़ों में कई सुंदर लड़कियां थीं। उनमें से एक ने मेरी तरफ देख कर हाथ हिलाया, ये वर्जिनिया चेरिल थी। मैं उससे पहले भी मिल चुका था।

"मैं आपकी फिल्म में कब काम करने जा रही हूं?" पूछा उसने?

नीले रंग के बेदिंग सूट में उसकी कमनीय देहयष्टि ने कहीं भी मेरे इस ख्याल को प्रेरित नहीं किया कि वह अंधी लड़की के रूप में आध्यात्मिक भूमिका कर पायेगी। लेकिन दूसरी नायिकाओं के साथ दो एक परीक्षण कर लेने के बाद मैंने बुरी तरह से हताश होने के बाद उसी को बुलवाया। मेरी हैरानी की सीमा न रही जब मैंने पाया कि उसमें अंधी लड़की की भूमिका करने के सभी गुण मौजूद थे। मैंने उसे आदेश दिया कि वह मेरी तरफ देखे लेकिन वह तब भीतर देख रही हो न कि मुझे और वह ये काम कर पायी। मिस चेरिल खूबसूरत और फोटोजेनिक थी लेकिन उसे अभिनय करने का बहुत ही कम अनुभव था। कई बार ये बात, खास कर मूक फिल्मों में फायदे की ही होती है। कारण ये है कि वहां पर तकनीक ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। अनुभवी अभिनेत्रियां कई बार अपनी आदतों में इतनी जकड़ चुकी होती हैं और मूक अभिनय में मूवमेंट की तकनीक इतनी ज्यादा मशीनी होती है कि उन्हें ये बाधा ही पहुंचाती है। जो कम अनुभवी होती हैं वे अपने आपको इन मशीनी मूवमेंट के साथ आसानी से ढाल लेती हैं।

फिल्म में एक दृश्य है जिसमें ट्रैम्प ट्रैफिक की भीड़ से बचने के लिए एक लिमोजिन कार में से चल कर सड़क पार करता है। वह एक तरफ का दरवाजा खोल कर उसमें घुसता है और दूसरी तरफ से बाहर निकल जाता है। फूल बेचने वाली अंधी लड़की कार का दरवाजा बंद होने की आवाज़ सुनती है और इस आवाज़ से वह उसे कार का मालिक समझ बैठती है और उसे फूल बेचने की कोशिश करती है। उसके पास सिर्फ आधे क्राउन का सिक्का ही बचा है और उससे वह कोट के बटन में लगाये जाने वाले फूल खरीद लेता है। दुर्घटनावश, फूल लड़की के हाथ से फुटपाथ पर गिर जाते हैं। एक घुटने के बल झुक कर वह फूल तलाशने की कोशिश करती है। वह बताना चाहता है कि फूल किस जगह पर हैं। लेकिन वह फिर भी तलाशती रहती है। अधीर हो कर वह खुद फूल उठाता है और उसकी तरफ अविश्वास से देखता है। लेकिन अचानक ही उसे ये लगता है कि लड़की देख नहीं सकती है और उसकी आंखों के आगे से फूल फिराते हुए वह पाता है कि वह सचमुच अंधी है। वह उससे माफी मांगता है और खड़े होने में उसकी मदद करता है।

ये पूरा दृश्य लगभग सत्तर सेकेंड तक चलता है। लेकिन इसे सही तरीके से लेने के लिए हमें पांच दिन तक रीटेक लेने पड़े। इसमें सारी गलती लड़की की नहीं थी। लेकिन मेरा खुद का भी कसूर था। मैं परफैक्शन चाहने के चक्कर में पागलपन की हद तक काम करता हूं। सिटी लाइट्स को बनाने में एक बरस से भी ज्यादा का समय लग गया।

फिल्म निर्माण के दौरान स्टॉक मार्केट धराशायी हो गया। सौभाग्य से मैं उसमें कहीं नहीं था। चूंकि मैं मेजर एच डगलस का लेख सोशल क्रेडिट बढ़ चुका था जिसमें उन्होंने हमारी अर्थ व्यवस्था का विश्लेषण किया था और तालिकाएं बना कर समझाया था कि मूल रूप से सारे फायदे वेतनों से ही आते हैं। इसलिए बेरोज़गारी का मतलब हुआ लाभ में कमी और पूंजी में गिरावट। मैं उनकी थ्योरी से 1928 में प्रभावित हुआ था और उस वक्त अमेरिका में बेरोज़गारों की संख्या एक करोड़ चालीस लाख तक जा पहुंची थी। तब मैंने अपने सारे स्टॉक और बांड बेच डाले थे और अपनी पूंजी को मैंने नकदी में बनाये रखा था।

स्टॉक मार्केट के लुढ़कने से एक दिन पहले मैं इर्विंग बर्लिन के साथ खाना खा रहा था। वे स्टॉक मार्केट को ले कर बहुत ज्यादा आशावादी थे। वे बता रहे थे कि वे जिस रेस्तरां में खाना खाया करते थे वहां की एक वेट्रेस ने बाजार में पैसे लगाये थे और एक बरस से भी कम के अरसे में अपने निवेशों से दुगुना लाभ कमाते हुए 40000 डॉलर बना लिये थे। स्टॉकों में उनकी खुद की कई करोड़ों की इक्विटी लगी हुई थी जिन पर दस लाख डॉलर से भी ज्यादा के फायदे नज़र आ रहे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं भी स्टॉक बाजार का खिलाड़ी हूं। मैंने उन्हें बताया कि जिस वक्त एक करोड़ चालीस लाख लोग बेरोज़गार हों तो मैं स्टॉक बाजार पर भरोसा नहीं कर सकता। जब मैंने उन्हें सलाह दी कि वे अपने स्टॉक बेच डालें और उन्हें जितना भी लाभ मिल रहा है उसे ले कर एक किनारे हो जायें तो वे नाराज़ हो गये। हम दोनों में गरमा गरम बहस छिड़ गयी। "क्यों, श्रीमान जी, आप अमेरिका को कम करके आंक रहे हैं?" उन्होंने कहा और मुझ पर बहुत ज्यादा देशद्रोही होने का आरोप लगाया। अगले दिन बाजार पचास पाइंट लुढ़क गया। इर्विंग की किस्मत ने कलाबाजी खायी और वे सड़क पर थे। दो एक दिन बाद वे मेरे पास स्टूडियो में आये। वे हक्के बक्के थे और माफी मांग रहे थे। वे जानना चाहते थे कि मुझे ये जानकारी कहां से मिली थी।

आखिरकार सिटी लाइट्स पूरी हो गयी। अब सिर्फ संगीत रिकार्ड किया जाना ही बाकी था। आवाज़ के बारे में एक अच्छी बात ये थी कि मैं संगीत को नियंत्रित कर सकता था। इसलिए मैंने स्वयं संगीत रचना की।

मैं रोमानी और भव्य संगीत रचना करना चाहता था ताकि वह मेरी कॉमेडियों में ट्रैम्प के चरित्र के ठीक उल्टा जाये। मेरा ये मानना है कि भव्य संगीत मेरी कॉमेडियों को एक भावनात्मक आयाम देता है। संगीत अरेंजर शायद ही इस बात को कभी समझ पाये। वे चाहते थे कि संगीत मज़ाकिया हो। लेकिन मैं उन्हें समझाता कि मैं कोई प्रतिस्पर्धा नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि संगीत गरिमा और सौन्दर्य का ही हिस्सा बन कर आये, वह संवेदनाओं को अभिव्यक्त करे, जिसके बिना, जैसा कि हैज़लिट कहते हैं, कला का कोई कर्म पूरा ही नहीं होता। कई बार कोई संगीतकार मुझसे बहस करता और संगीत के आरोह और अवरोह की बंधी हुई सीमाओं की बात करता, तो मैं उसकी बात बीच में ही काट कर उसके सामने आम आदमी की राय रख देता, जो भी है संगीतात्मकता है, बाकी सब पैबंद है। अपनी एक या दो फिल्मों का संगीत तैयार कर लेने के बाद मैं किसी कन्डक्टर की संगीतबद्ध की गयी रचना की तरफ व्यावसायिक नज़रिये से और यह जानने के लिए देखने लगा कि संगीत रचना में बहुत अधिक आर्केस्ट्रा तो नहीं आ गया है। यदि मुझे पीतल वाले वाद्यों में और काष्ठ के वाद्यों में बहुत ज्यादा धुनें मिलतीं तो मैं कह देता,"यहां पीतल कुछ ज्यादा ही घनघना रहा है या काष्ठ वाद्य कलाकार कुछ ज्यादा ही व्यस्त हैं।

इससे ज्यादा रोमांचकारी और आल्हादक और कोई चीज़ नहीं होती जब आप पचास वाद्य यंत्रों के आर्केस्ट्रा पर तैयार की गयी अपनी फिल्म की धुनों को पहली बार सुनते हैं।

जब आखिरकार सिटी लाइट्स की संगीत रचना को फिल्म में पिरो लिया गया तो मैं उसका भाग्य जानने को बेचैन था। इसलिए बिना किसी घोषणा के हमने शहर से बाहर के इलाके में इसका एक प्रिव्यू रखा।

ये बहुत भयानक अनुभव था। वजह ये थी कि हमारी फिल्म आधे भरे हुए सिनेमा हॉल के परदे पर दिखायी जा रही थी। दर्शक एक ड्रामा देखने आये थे न कि कॉमेडी और वे पिक्चर के आधी चल जाने तक अपनी घबराहट से उबर नहीं पाये। कुछ हँसी के पल थे, लेकिन कमज़ोर। और इससे पहले कि फिल्म पूरी हो पाती, मैंने बीच के रास्ते से कुछ छायाओं को बाहर की तरफ जाते देखा। मैंने अपने सहायक निर्देशक को टहोका मारा,"लोग तो फिल्म छोड़ कर जा रहे हैं!"

"हो सकता है वे टायलेट के लिए जा रहे हों।" वह फुसफुसाया।

इसके बाद मैं फिल्म में अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाया। बल्कि इस बात का इंतज़ार करने लगा कि जो लोग उठ कर बाहर गये थे, वापिस आते हैं या नहीं। कुछ पलों के बाद मैं फुसफुसाया,"वे लोग वापिस नहीं आये हैं।"

"कुछ लोगों को ट्रेन पकड़नी होगी," सहायक निर्देशक ने जवाब दिया।

मैं इस भावना के साथ थियेटर से बाहर आया कि मेरी दो साल की मेहनत और बीस लाख डॉलर गये पानी में। जिस वक्त मैं थियेटर से बाहर आया तो थियेटर का प्रबंधक लॉबी में खड़ा था। उसने मेरा अभिवादन किया,"ये बहुत अच्छी है।" उसने मुस्कुराते हुए कहा, और बात पूरी करते करते एक और जुमला जड़ दिया,"अब मैं देखना चाहता हूं कि आप सवाक फिल्में बनायें और पूरी दुनिया इसी बात की राह देख रही है।"

मैंने मुस्कुराने की कोशिश की। हमारा स्टाफ थियेटर से बाहर सरक आया था और इस समय दीवारों से सट कर खड़ा था। मैं भी उनमें जा मिला। रीव्ज़, मेरे मैनेजर ने हमेशा की तरह गम्भीर बने रहते हुए मेरा अभिवादन किया और अपनी आवाज़ को लय ताल में बांधते हुए बोला,"काफी अच्छी चली। नहीं क्या! मैंने सोचा, ये देखते हुए कि - -।" उसका अंतिम शब्द स्पष्ट ही उसका शक जाहिर करता था लेकिन मैंने विश्वास के साथ सिर हिलाया।

"जब पूरा थियेटर भरा होगा तो ये महान फिल्म होगी। हां, बेशक एक आध कट करने की ज़रूरत पड़ेगी।" मैंने अपनी तरफ से जोड़ा।

अब तूफान की तरह परेशान करने वाला ये ख्याल हमारे सामने मंडराने लगा कि अब तक हमने पिक्चर बेचने की कोशिश ही नहीं की है। लेकिन इस बात को ले कर मैं बहुत ज्यादा परेशान नहीं था क्योंकि मेरे नाम का सिक्का अभी भी बॉक्स ऑफिस पर सफलता की गारंटी है, इस बात की मुझे उम्मीद थी। जो शेंक, हमारे युनाइटेउ आर्टिस्ट्स के अध्यक्ष ने मुझे चेताया कि वितरक मुझे उन्हीं शर्तों पर पैसा देने के लिए तैयार नहीं हैं जिन शर्तों पर उन्होंने द गोल्ड रश उठायी थी। और कि बड़े सर्किट अपने हाथ बांधे, इंतज़ार करो और देखो का रुख अपनाये हुए थे। इससे पहले ये होता था कि जब भी मेरी कोई नयी फिल्म आती थी तो वे दिल खोल कर दिलचस्पी लिया करते थे। अब उनकी दिलचस्पी में वो गर्मजोशी नहीं थी। इसके अलावा, न्यू यार्क में शो करने के लिए समस्याएं उठ खड़ी हुईं। मुझे ये बताया गया था कि न्यू यार्क के सभी थियेटर पहले से ही बुक हो चुके थे। इसलिए मुझे अपनी बारी का इंतज़ार करना पड़ेगा।

न्यू यार्क में मात्र एक ही थियेटर उपलब्ध था। ये भीड़ भाड़ वाले इलाके से काफी हट कर ग्यारह सौ पचास की बैठने की क्षमता वाला जॉर्ज एम कोहन थियेटर था और इसे सफेद हाथी समझा जाता था। देखा जाये तो ये सिनेमा घर भी नहीं था। मैं सात हजार डॉलर प्रति सप्ताह पर चार दीवारें किराये पर ले सकता था और इसके लिए आठ सप्ताह के किराये की गारंटी देनी होती, और बाकी सारी चीजों का इंतज़ाम मुझे खुद करना होता। मैनेजर, कैशियर, सीटें दिखाने वाले, प्रोजेक्टर चलाने वाले, स्टेज संभालने वाले और बिजली वाले साइन बोर्ड और प्रचार। अब चूंकि मेरे खुद के बीस लाख डॉलर दांव पर लगे हुए थे, और वो भी मेरा खुद का धन, मैंने सोचा ये पूरा जूआ भी क्यों न खेल कर देख लिया जाये और मैंने हॉल किराये पर ले लिया।

इस बीच रीव्ज़ ने लॉस एंजेल्स में हाल ही में बने एक नये थियेटर में सौदा कर लिया। चूंकि आइंस्टीन दम्पत्ति अभी भी वहीं पर थे, और उन्होंने पहला शो देखने की इच्छा व्यक्त की लेकिन मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस बात का रत्ती भर भी गुमान होगा कि वे क्या देखने जा रहे हैं। प्रीमियर से पहले वाली रात उन्होंने मेरे घर पर खाना खाया फिर हम सब शहर की तरफ चले। मुख्य गली कई मौहल्लों तक भीड़ से अटी पड़ी थी। पुलिस कारें और एम्बुलेंस की गाड़ियां भीड़ में से रास्ता बनाने की नाकाम कोशिश कर रही थीं। भीड़ ने थियेटर के साथ वाली दुकान के शीशे तोड़ दिये थे। पुलिस की टुकड़ी की मदद से हमें किसी तरह से फोयर तक पहुंचाया गया। इन पहली रातों से मुझे कितनी कोफ्त होती है! व्यक्तिगत तनाव, खुशबुओं, अलग अलग किस्म के इत्रों की मिली जुली गंध, इन सबका असर उबकाई लाने वाला और नसें तड़काने वाला था।

मालिक ने थियेटर बहुत खूबसूरत बनाया था लेकिन उन दिनों के अधिकांश वितरकों की तरह वह फिल्मों के प्रदर्शन के बारे में बहुत कम जानता था। फिल्म शुरू हुई। क्रेडिट टाइटल दिखाये गये, पहली रात को होने वाला शोर शराबा हुआ। आखिर पहला सीन खुला। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा। पहला दृश्य कॉमेडी का था जिसमें एक मूर्ति का अनावरण दिखाया गया था। लोग हँसने लगे। फिर ये हँसी चीखने में बदल गयी। उनकी नस अब मेरे हाथ में थी। मेरी सभी शंकाएं और डर हवा में काफूर की तरह उड़ गये। अब मैं रोना चाहता था। तीन रीलों तक लोग हँसते ही रहे। और मैं खुद अपनी शिराओं में दौड़ते रक्त में घुली उत्तेजना में उनके साथ साथ हँस रहा था।

तभी एक बहुत ही वाहियात घटना घट गयी। अचानक ही ठहाकों के बीच फिल्म रोक दी गयी। हॉल की बत्तियां जल गयीं और लाउड स्पीकार पर एक आवाज़ उभरी,"इस शानदार कॉमेडी को आगे बढ़ाने से पहले हम आपके कीमती समय में से पांच मिनट चाहेंगे और इस खूबसूरत नये थियेटर की विशेषताओं के बारे में कुछ बताना चाहेंगे।" मैं अपने कानों पर विश्वास ही न कर सका। मैं पागल हो गया। मैं अपनी सीट से कूदा और बीच वाले रास्ते पर दौड़ा,"कहां है वो हरामजादा? सूअर का पिल्ला मैनेजर, मैं उसे जान से मार डालूंगा।"

दर्शकगण मेरे साथ हो लिये और जमीन पर पैर पटकने और शोर मचाने लगे जबकि वह मूरख थियेटर के गुणगान करने में ही लगा रहा। अलबत्ता, जब दर्शकों ने हो हल्ला करना शुरू कर दिया तो उसने अपनी भाषणबाजी बंद की। एक और रील चलने के बाद ही ठहाके फिर से हॉल में गूंजने लगे। ऐसी परिस्थितियों में मेरा ख्याल है, पिक्चर ठीक ठाक चली। अंतिम सीन में मैंने देखा, आइंस्टीन साहब अपनी आंखें पोंछ रहे थे। इस बात का एक और सबूत कि वैज्ञानिक भी ठीक न हो सकने वाले संवेदनशील प्राणी होते हैं।

अगले दिन समीक्षाओं का इंतज़ार किये बिना मैं न्यू यार्क के लिए चला क्योंकि पहले प्रदर्शन से पहले मेरे पास सिर्फ चार ही दिन थे। जब मैं पहुंचा तो ये देख कर मेरे होश उड़ गये कि पिक्चर का ज़रा सा भी प्रचार नहीं किया गया था। सिर्फ औपचारिक घोषणाएं और मामूली सा प्रचार ही किया गया था- "हमारा पुराना दोस्त एक बार फिर हमारे सामने" और इसी तरह की कमज़ोर लाइनें ही आयी थीं। इसलिए मैंने अपने युनाइटेड आर्टिस्ट्स स्टाफ को कड़वी घुट्टी पिलायी,"संवेदनाओं की परवाह मत करो। उन्हें जानकारी दो। हम एक ऐसे थियेटर में फिल्म दिखा रहे हैं जो पिक्चर हॉल नहीं है और आम रास्ते से हट कर है।"

मैंने आधे-आधे पेज के विज्ञापन लिये, और उन्हें न्यू यार्क के सभी महत्त्वपूर्ण अखबारों में एक ही फांट साइज में प्रकाशित कराया -

चार्ली चैप्लिन

कोहन थियेटर पर

सिटी लाइट्स में सारे दिन की दरें 50 सेंट और एक डॉलर

मैंने अखबारों पर 30000 डॉलर अतिरिक्त खर्च किये और थियेटर के आगे लगाये जाने के लिए बिजली वाला एक साइन बोर्ड किराये पर लिया और उस पर 30000 डॉलर खर्च किये। हमारे पास समय बहुत कम था और हमें बहुत काम करना था। मैं सारी रात जागता रहा और फिल्म के प्रोजेक्टशन के प्रयोग करता रहा, फिल्म के आकार के बारे में माथा पच्ची करता रहा और उसमें आयी खामियों को ठीक करता रहा। अगले दिन मैं प्रेस से मिला और उन्हें बताया कि मैंने ये मूक फिल्म क्यों और किसके लिए बनायी है।

युनाइटेड आर्टिस्ट्स के स्टाफ सदस्य मेरे प्रवेश शुल्क को ले कर शंका में पड़े हुए थे क्योंकि मैं सीधे सीधे एक डॉलर और पचास सेंट वसूल कर रहा था जबकि सभी सिनेमा हॉल शुरुआती प्रदर्शनों के लिए महंगे स्टालों के लिए पिचासी सेंट और पैंतीस सेंट लिया करते थे जबकि वे सवाक फिल्में दिखा रहे थे और फिल्म के शुरू में कलाकारों का शो भी होता। मेरा मनोविज्ञान इस प्रमुख तथ्य पर काम कर रहा था कि ये मूक फिल्म थी और इसीलिए इसकी कीमत बढ़ाये जाने की ज़रूरत थी। और अगर जनता पिक्चर देखना चाहती है तो उन्हें पिचासी सेंट और एक डॉलर के बीच के फर्क नहीं रोक पायेगा। इसलिए मैंने समझौता करने से इन्कार कर दिया।

प्रीमियर में फिल्म बहुत अच्छी गयी। लेकिन प्रीमियर तो आगे के बारे में कोई संकेत नहीं देते। आम जनता ही तो मायने रखती है। क्या वे मूल फिल्म में दिलचस्पी लेंगे। ये ख्याल आधी रात तक मुझे जगाये रहे। अलबत्ता, सुबह मुझे हमारे प्रचार प्रबंधक ने जगाया, और मेरे बेडरूम में ग्यारह बजे धड़धड़ाता हुआ घुसा,"साहब, आपने तो कमाल कर दिया! क्या हिट जा रही है! आज सुबह दस बजे से ही जो लाइनें लगनी शुरू हुई हैं वे सारी गलियों को घेरे हुए हैं और सारा ट्रैफिक रुका पड़ा है। कम से कम दस पुलिस वाले ट्रैफिक नियंत्रण में लगे हैं। लोग हैं कि किसी तरह से भीतर घुसना चाहते हैं। आपको देखना चाहिये कि वे किस तरह से हो हल्ला कर रहे हैं!"

मुझ पर सुख की, राहत की भावना तारी हो गयी और मैंने ब्रेकफास्ट मंगवाया और तैयार होने लगा। "मुझे बताओ, सबसे ज्यादा ठहाके किस सीन पर लगे थे?" पूछा मैंने, और उसने बारीकी से बताना शुरू किया कि कहां कहां लोग हँसे थे और कहाँ पेट पकड़ कर हँसे थे और कहां हँसते हँसते पागल हो रहे थे। आओ, और अपने आप देखो।" कहा उसने,"इससे आपका जी अच्छा हो जायेगा।"

मैं जाने में हिचकिचा रहा था क्योंकि कोई भी शै उसके उत्साह का मुकाबला नहीं कर सकती थी। फिर भी, मैं थियेटर में पीछे की तरफ भीड़ के साथ खड़े हो कर आधे घंटे तक फिल्म देखता रहा, लगातार जो ठहाके गूंज रहे थे, उनसे मुझे हर्ष मिश्रित राहत मिल रही थी। ये मेरे लिए काफी था। मैं संतुष्ट वापिस आया और चार घंटे तक न्यूयार्क की सड़कों पर भटकता रहा और अपनी भावनाओं को हवा देता रहा। बीच बीच में मैं थियेटर के पास से गुज़रता, और देखता, अभी भी चारों तरफ की सड़कों पर अंतहीन कतारें लगी हुई हैं।

फिल्म को गुमनाम लोगों की तरफ से भी बहुत अच्छी समीझाएं मिलीं।

1150 की क्षमता वाले हॉल से हमने तीन हफ्ते तक 80000 डॉलर प्रति सप्ताह की दर से कमायी की जबकि ठीक सामने वाली सड़क पर 3000 क्षमता वाले पैरामाउंट में सवाक फिल्म दिखायी जा रही थी और मॉरिस शैवेलियर स्वयं मौजूद थे, वहां कुल 38000 डॉलर प्रति सप्ताह ही निकल पाये। सिटी लाइट्स बारह हफ्ते तक चलती रही और सारे खर्च निकाल लेने के बाद 400000 डॉलर से भी ज्यादा का शुद्ध मुनाफा दे गयी। फिल्म उतारने का एक ही कारण था कि न्यू यार्क थियेटर सर्किट, जिन्होंने इसे अच्छी कीमत पर बुक कर रखा था, ये अनुरोध करने लगे कि वे नहीं चाहते कि उनके सर्किट में पहुंचने से पहले ऐसा न हो कि हर आदमी ने इसे देख रखा हो।

और अब मैं लंदन जाना चाहता था और वहां पर सिटी लाइट्स को लांच करना चाहता था। जब मैं न्यू यार्क में था तो द न्यू यार्कर के अपने दोस्त राल्फ बर्टन से बहुत ज्यादा मिला करता था, उन्होंने हाल ही में बालजाक की किताब ड्रॉल स्टोरीज़ का चित्रण पूरा किया था। वे सिर्फ सैंतीस बरस के थे और बेहद सुसंस्कृत और सनकी आदमी थे। उन्होंने पांच शादियां रचायी थीं। वे कुछ अरसे से हताशा में चल रहे थे और किसी चीज की ज्यादा खुराक ले कर खुदकशी करने की कोशिश भी की थी। मैंने उन्हें सुझाव दिया कि वे मेरे मेहमान के तौर पर मेरे साथ यूरोप चलें और इस बदलाव से उन्हें बेहतर महसूस होगा। इस तरह से हम दोनों ओलम्पिक में चले। ये वही जहाज था जिस पर मैंने इंगलैंड के लिए अपनी पहली यात्रा की थी।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 19

दस बरस के बाद मैं इस बात को ले कर भावुक था कि लंदन में मेरा स्वागत कैसा होगा। काश, मैं बिना किसी टीम-टाम के चुपचाप लंदन पहुंच पाता। लेकिन मैं सिटी लाइट्स के प्रीमियर में शामिल होने के लिए आया था और इसका मतलब था पिक्चर के लिए प्रचार। अलबत्ता, अपने स्वागत के लिए जुट आयी भीड़ के आकार को देख कर मैं निराश भी नहीं हुआ।

इस बार मैं कार्लटन में ठहरा। कारण ये था कि ये रिट्ज की तुलना में लंदन का पुराना लैंडमार्क था और इसके ज़रिये लंदन मेरे लिए ज्यादा पहचाना हुआ लगता था। मेरा सुइट अति उत्तम था। मैं सबसे ज्यादा उदास करने वाली जिस बात की कल्पना कर सकता हूं वह ये है कि विलासिता की आदत कैसे डाली जाये। हर दिन मैं कार्लटन में कदम रखता तो ऐसा महसूस होता मानो सोने के स्वर्ग में प्रवेश कर रहा होऊं। लंदन में अमीर हो कर रहने से ज़िंदगी हर पल उत्तेजना पूर्ण रोमांच की तरह हो गयी थी। दुनिया आवभगत का ही नाम हो गया था। इस प्रदर्शन की सबसे पहली कड़ी सुबह से ही शुरू हो गयी।

मैंने अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांका तो मुझे नीचे गली में कई प्लेकार्ड नज़र आये। एक पर लिखा था: "चार्ली अभी भी उनका चहेता है।" मैं इसके अर्थ को सोच कर मुस्कुराया। प्रेस मेरे प्रति बहुत अच्छी तरह से पेश आ रही थी। इसकी वज़ह ये हुई कि एक साक्षात्कार में जब किसी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं एल्स्ट्री जाऊंगा तो मैंने अच्छी खासी भूल कर दी। "ये कहां है?" मैंने भोलेपन से पूछा। वे एक दूसरे की तरफ देख कर मुस्कुराये। तब उन्होंने मुझे बताया कि ये इंगलिश फिल्म उद्योग का केन्द्र है। मेरी शर्मिंदगी इतनी वास्तविक थी कि उन्होंने इस बात का बुरा नहीं माना।

ये दूसरा दौरा पहले दौरे की ही तरह आत्मा को झकझोर देने वाला और उत्तेजनापूर्ण था और इसमें कोई शक नहीं कि ये ज्यादा रोचक था। ये वजह भी रही कि मुझे और अधिक रोचक लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला।

सर फिलिप सैसून ने फोन किया और मुझे और राल्फ को पार्क लेन स्थित अपने शहर वाले घर पर तथा लिम्पने वाले कन्ट्री हाउस में कई डिनर पार्टियों में आमंत्रित किया। हमने उनके साथ हाउस ऑफ कॉमंस में भी खाना खाया। वहां पर हमारी मुलाकात लॉबी में लेडी एस्टर से हुई। एकाध दिन के बाद उन्होंने भी हमें नम्बर 1 सेंट जेम्स स्ट्रीट पर दोपहर के खाने पर बुलाया।

जैसे ही हम स्वागत कक्ष में पहुंचे, ऐसा लगा मानो हम मैडम टुसैड के हॉल ऑफ फेम में जा पहुंचे हैं। वहां पर बहुत-सी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं। हमारा सामना बर्नार्ड शॉ, जॉन मेनार्ड कीन्स, लॉयड जॉर्ज और दूसरे कई लोगों से हुआ लेकिन ये लोग मैडम टुसैड के हॉल ऑफ फेम की तरह मोम के पुतले नहीं, हाड़ मांस के जीते जागते इन्सान थे। लेडी एस्टर ने अपनी अथक सूझबूझ के साथ बातचीत को तब तक जीवंत बनाये रखा जब तक उनके लिए अचानक बुलावा नहीं आ गया। और इसके बाद मौन पसर गया। फिर बागडोर संभाली बर्नार्ड शॉ ने और उन्होंने डीन इंगे के बारे में एक रोचक किस्सा सुनाया। डीन इंगे ने सेंट पॉल के उपदेशों के प्रति अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा था,"सेंट पॉल ने हमारे परम पिता परमेश्वर के उपदेशों को इतना विकृत कर दिया था कि यीशु को एक तरह से सिर के बल सूली पर चढ़ा दिया था।" बातचीत को जीवंत बनाये रखने में मदद करने में बर्नार्ड शॉ ने जो दयालुता और विनम्रता दिखायी, वह उनमें बेहद मनभावन और आकर्षक थी।

लंच के दौरान मैंने कीन्स से बात की और उन्हें बताया कि मैंने एक अंग्रेजी पत्रिका में बैंक ऑफ इंगलैंड में कर्ज के कामकाज के बारे में पढ़ा था। उस वक्त ये बैंक निजी कार्पोरेशन हुआ करता था। यह कि युद्ध के दौरान बैंक के स्वर्ण भंडार सूख गये थे और इसके पास केवल 400,000,000 डॉलर की ही विदेशी प्रतिभूतियां बची थीं और कि जिस वक्त सरकार ने बैंक से 500,000,000 डॉलर का कर्ज लेना चाहा तो बैंक ने सिर्फ अपनी प्रतिभूतियां बाहर निकालीं, उन्हें देखा और वापिस वाल्ट में रख दिया और सरकार को कर्ज जारी कर दिया। और यही लेनदेन कई कई बार दोहराया गया। .

कीन्स ने सिर हिलाया और कहा,"ये वो बात है जो घटी थी।"

लेकिन मैंने विनम्रता से पूछा,"लेकिन ये कर्ज चुकाये कैसे गये थे?"

"उसी विश्वास के धन के साथ।" कीन्स ने बताया।

लंच के खत्म होने से कुछ पहले लेडी एस्टर ने अपने चेहरे पर मज़ाकिया नकली दांत लगा लिये। इससे उनके असली दांत छुप गये। उन्होंने तब विक्टोरियाई युग की एक महिला की नकल करके दिखायी जो घुड़सवारों के एक क्लब में बोल रही है। इन दांतों से उनका चेहरा विकृत हो गया और उस पर ठिठोली करने वाले भाव आ गये। उन्होंने उत्साह से कहा,"हमारे ज़माने में हम ब्रिटिश महिलाएं विधिवत महिलाओं के से फैशन में शिकारी कुत्तों का पीछा करती थीं न कि पश्चिम की उन अमेरिकी पश्चिमी छिनालों की तरह अश्लील ढंग से टांगें मोड़ कर। हम एक तरफ वाली गद्दी पर ही बैठा करती थीं और इसमें स्त्रियोचित गरिमा होती थी।"

लेडी एस्टर बहुत ही शानदार अभिनेत्री बन सकती थीं। वे बहुत ही भली मेज़बान थीं और मैं उनका कई शानदार पार्टियों के लिए आभार मानता हूं। इन पार्टियों में मुझे इंगलैंड की कई महान विभूतियों के दर्शन करने के मौके मिले।

लंच के बाद सभी लोग बिखर गये। लॉर्ड एस्टर हमें मुनिंग्स द्वारा बनाया गया अपना पोट्रेट दिखाने ले गये। जिस वक्त हम स्टूडियो पर पहुंचे तो मुनिंग्स हमें तब तक भीतर आने देने के लिए बहुत इच्छुक नहीं थे जब तक लॉर्ड एस्टर ने जिद करके हमें भीतर आने देने के लिए उन्हें नहीं मना लिया। लॉर्ड एस्टर का पोर्ट्रेट हंटर पर था और वे हाउंड कुत्तों के झुंड से घिरे हुए थे। मैंने मुनिंग्स के साथ एक शरारत की। मैंने उनकी कई शुरुआती जल्दबाजी वाले अध्ययनों की तारीफ की जो उन्होंने कुत्तों की गति और अंतिम रूप से तैयार पोर्ट्रेट में दिखाये थे। "गति ही संगीत है।" कहा मैंने। मुनिंग्स का चेहरा खिल गया और उन्होंने मुझे कई दूसरे क्विक स्कैच दिखाये।

एकाध दिन बाद हमने बर्नार्ड शॉ के यहां खाना खाया। इसके बाद जी बी मुझे अपने पुस्तकालय में ले कर गये। वहां सिर्फ हम दो ही थे। लेडी एस्टर और बाकी दूसरे मेहमान बैठक में ही थे। पुस्तकालय खूब खुला खुला और खुशरंग कमरे में था और उसके सामने टेम्स नदी नज़र आती थी। और, जिगर थाम के, मेरे सामने एक आतिशदान पर रखी थीं बर्नार्ड शॉ की किताबें और मैं एक ठहरा मूरख, शॉ को बहुत कम पढ़ रखा था मैंने। मैं उनकी किताबों तक गया और हैरानी के से भाव लाते हुए बोला," आहा! ये सब आपका काम है!" तब मुझे सूझा कि वे शायद ये सुनहरी अवसर इसीलिये लाये होंगे कि अपनी किताबों के बारे में मुझसे चर्चा करके मेरे दिमाग की थाह ले सकें। मैंने कल्पना की कि हम दोनों बातचीत में इतने डूबे हुए हैं कि बैठक में बैठे बाकी मेहमान भीतर आ गये और हमारी बातचीत को भंग किया। काश, ऐसा होता तो कितना अच्छा होता। लेकिन हुआ कुछ और ही। हम दोनों के बीच मौन के पल आये, मैं मुस्कुराया और कमरे में चारों तरफ देखा और कमरे के इतने खुशनुमा होने के बारे में एकाध चलताऊ सा जुमला कहा। तब हम बाकी मेहमानों के बीच आ बैठे।

उसके बाद भी मैं मिसेज शॉ से कई बार मिला। मुझे याद है कि मैंने उनके साथ शॉ के नाटक एप्पल कार्ट के बारे में चर्चा की थी। इस नाटक को उदासीनता भरी समीक्षाएं मिली थीं। मिसेज शॉ नाराज़ थीं। कहा उन्होंने,"मैंने शॉ से कहा था कि और नाटक लिखना बंद कर दो। जनता और समीक्षक इनके लायक नहीं हैं।"

अगले तीन दिन तक हमारे पास न्यौतों का तांता लगा रहा। एक निमंत्रण प्रधान मंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड की तरफ से था। दूसरा विंस्टन चर्चिल की तरफ से तथा अन्य निमंत्रण लेडी एस्टर, सिर फिलिप ससून और इसी तरह से राजसी लोगों की तरफ से थे।

विंस्टन चर्चिल से मैं पहली बार मैरियन डेविस के बीच हाउस पर मिला था। वहां पर बाल रूम तथा स्वागत वाले कमरे के बीच लगभग पचास मेहमान एक दूसरे के कंधे से कंधा भिड़ाते घूम रहे थे। तभी दरवाजे में हर्स्ट के साथ चर्चिल नज़र आये। वे नेपोलियन की तरह अपना हाथ वेस्टकोट में डाले खड़े थे और नृत्य देख रहे थे। वे अपने आप में खोये खोये और असंगत लग रहे थे। डब्ल्यू आर ने मुझे देखा और मुझे आगे करके हम दोनों का परिचय कराया गया।

चर्चिल का तौर तरीका आत्मीय होने के बावजूद झटके वाला था। हर्स्ट ने हम दोनों को अकेला छोड़ दिया और हम दोनों खड़े खड़े आपस में इधर उधर की बातें करने लगे। हमारे चारों तरफ लोगों की भीड़ जुट आयी थी। जब तक मैंने उनसे इंगलिश लेबर सरकार की बात नहीं की, उनके चेहरे पर रौनक नहीं आयी।

"एक बात मैं समझ नहीं पाता," मैंने कहा,"कि इंगलैंड में समाजवादी सरकार का चुनाव राजा और रानी की हैसियत नहीं बदलता।"

उन्होंने मेरी तरफ तेज़ निगाहों से देखा और मज़ाक में चुनौती दी,"बेशक नहीं," कहा उन्होंने।

"मैं सोचता था कि समाजवादी राजशाही के खिलाफ होते हैं।"

वे हँसे,"अगर आप इंगलैंड में होते तो इस जुमले के लिए आपका सर कलम कर दिया जाता।"

एक या दो दिन बाद की बात है, उन्होंने होटल में अपने सुइट में मुझे डिनर के लिए आमंत्रित किया। वहां पर दो मेहमान और थे। उनका लड़का रैन्डोल्फ भी वहीं पर था। वह सोलह बरस का खूबसूरत किशोर था जो बौद्धिक तर्क करने के लिए उतावला था और उसमें असहनीय जवानी वाली आलोचना थी। मैं देख पा रहा था कि चर्चिल को उस पर बहुत गर्व था। ये एक बहुत ही शानदार शाम थी जिसमें बाप बेटे बेसिलसिलेवार चीज़ों के बारे में शेखियां बघार रहे थे। उसके बाद उनके इंगलैंड लौटने से पहले हम कई बार मैरियन के बीच हाउस पर मिले।

और अब चूंकि हम लंदन में थे, मिस्टर चर्चिल ने सप्ताहांत बिताने के लिए मुझे और रैल्फ को चार्टवैल में आमंत्रित किया। वहां तक हमें ठंड में और मुश्किल ड्राइव करनी पड़ी। चार्टवैल एक पुराना-सा प्यार-सा घर है जिसे सादगी से लेकिन सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया गया है। यहां पर आ कर घर जैसी भावना मिलती है। लंदन में अपनी दूसरी यात्रा के बाद ही यह संभव हो सका था कि मैं चर्चिल को ढंग से जान पाया। इस दौरान वे हाउस ऑफ कामंस में पीछे की सीटों पर बैठा करते थे।

मेरी कल्पना शक्ति ये कहती है कि सर विंस्टन में हम सब से अधिक मज़ाक का माद्दा था। अपनी ज़िंदगी के मंच पर उन्होंने कई भूमिकाएं बहादुरी, ऊर्जा और उल्लेखनीय उत्साह के साथ अदा की हैं। इस दुनिया में बहुत कम ऐसे आनंद होंगे जो उन्होंने न भोगे हों। वे भरपूर जीवन जीए और भरपूर खेले - उन्होंने खेल में सबसे बड़ी बाजियां लगायीं और जीते भी। उन्होंने सत्ता का सुख भोगा लेकिन उसके मोह में नहीं पड़े। अपने व्यस्त जीवन में से भी उन्होंने ईंटें बनाने, घुड़दौड़ और चित्रकारी के लिए अपने शौक पूरे करने के लिए वक्त निकाल ही लिया। डाइनिंग रूम में मैंने आतिशदान के ऊपर एक स्टिल लाइफ पेंटिंग देखी। विन्स्टन ने ताड़ लिया कि मैं उसमें गहरी रुचि ले रहा हूं।

"ये मैंने बनायी है।"

"लेकिन कितनी शानदार है!' मैंने उत्साहपूर्वक कहा।

"ये तो कुछ भी नहीं है। मैंने दक्षिणी फ्रांस में एक आदमी को लैंडस्केप बनाते हुए देखा और कहा, 'मैं भी ये कर सकता हूं।' "

अगले दिन उन्होंने मुझे चार्टवैल के चारों तरफ बनायी गयी वह दीवार दिखायी जो उन्होंने खुद बनायी थी। मैं हैरान हुआ था और इस आशय की कोई बात कही थी कि ईंटें बनाना उतना आसान नहीं होता जितना लगता है।

"मैं आपको बताता हूं कि कैसे बनती हैं ईंटें और आप पांच मिनट में बनाना सीख जायेंगे।"

पहली रात डिनर के समय कई युवा संसद सदस्य सचमुच ही उनके कदमों में बैठे। इनमें थे मिस्टर बूथबाय, अब लॉर्ड बूथबाय, और स्वर्गीय ब्रैन्डेन ब्रैकेन जो बाद में चल कर लार्ड ब्रैकने बने। दोनों ही प्यारे और अच्छी तरह से बातचीत करने वाले लोग थे। मैंने उन्हें बताया कि मैं गांधी जी से मिलने जा रहा हूं जो इन दिनों लंदन में हैं।

"हमने इस व्यक्ति को बहुत झेल लिया है। ब्रैकेन ने कहा,"भूख हड़ताल हो या न हो, उन्हें चाहिये कि वे इन्हें जेल में ही रखें। नहीं तो ये बात पक्की है कि हम भारत को खो बैठेंगे।"

"गांधी को जेल में डालना सबसे आसान हल होगा, अगर ये हर काम करे तो" मैंने टोका,"लेकिन अगर आप एक गांधी को जेल में डालते हैं तो दूसरा गांधी उठ खड़ा होगा और जब तक उन्हें वह मिल नहीं जाता जो वे चाहते हैं वे एक गांधी के बाद दूसरा गांधी पैदा करते रहेंगे।" चर्चिल मेरी तरफ मुड़े और मुस्कुराये,"आप तो अच्छे खासे लेबर सदस्य बन सकते हैं।"

चर्चिल का आकर्षण इसी बात में था कि वे दूसरों की राय के प्रति भी सहनशक्ति और सम्मान की भावना रखते थे। वे उनके प्रति भी कोई दुर्भावना नहीं रखते थे जो उनसे असहमत होते थे।

ब्रैकेन और बूथबाय पहली रात हमसे विदा हो गये और अगली रात मैंने चर्चिल को अपने परिवार के साथ अंतरंग पलों में देखा। ये राजनैतिक रूप से उतार चढ़ाव का दिन था। लॉर्ड बीवरब्रूक सारा दिन चार्टवैल में टेलीफोन करते रहे और विंस्टन चर्चिल को डिनर के दौरान कई बार उठना पड़ा। ये चुनाव के बीच की बात है और देश आर्थिक संकट के दौर से गुज़र रहा था।

मुझे खाना खाने के वक्त मज़ा आ रहा था। कारण ये था कि चर्चिल खाने की मेज़ पर राजनैतिक व्याख्याएं कर रहे थे जबकि उनका परिवार बिना प्रभावित हुए खाना खा रहा था। सामने वाले को यही लगता कि ये रोज़ाना की बात है और वे लोग इसके आदी हैं।

"मंत्रालय अपनी मुश्किलें गिनवा रहा है जो उन्हें बजट का संतुलन बिठाने में आ रही हैं," चर्चिल ने पहले अपने परिवार की तरफ कनखियों से देखा फिर मेरी तरफ देखा, "क्योंकि वे अपनी निधियों की आखिरी सीमा तक पहुंच गये हैं, अब उनके सामने कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर टैक्स लगा सकें, जबकि इंगलैंड अपनी चाय को शरबत की तरह हिला रहा है।" वे इस बात का असर देखने के लिए रुके।

"क्या ये संभव है कि चाय पर अतिरिक्त टैक्स लगा कर आपके बजट को संतुलित कर लिया जाये?" मैंने पूछा।

वे मेरी तरफ देखने लगे और हिचकिचाये,"हां," वे कहने लगे, लेकिन मेरा ख्याल है इस कहने में प्रतिबद्धता नहीं थी।

मैं चार्टवैल की सादगी और कुछ हद तक सादगीपूर्ण रुचि के कारण उसका दीवाना हो गया था। उनका सोने का कमरा उनके पुस्तकालय से जुड़ा हुआ ही था और उसमें चारों तरफ किताबों के ऊपर से नीचे अम्बार लगे थे। एक तरफ की दीवार पूरी तरह से हैन्सार्ड की संसदीय रिपोर्टों को समर्पित थी।

वहां पर नेपोलियन पर भी कई खंड थे।

"हां," उन्होंने बताया,"मैं नेपोलियन का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं।"

"मैंने सुना है कि आप नेपोलियन पर फिल्म बनाने के बारे में सोच रहे हैं!" कहा उन्होंने,"आपको से फिल्म ज़रूर बनानी चाहिये। उसमें कॉमेडी की बहुत अधिक संभावनाएं हैं: नेपोलियन स्नान कर रहे हैं। उनका भाई जेरोम सोने की कसीदाकारी की हुई यूनिफार्म पहन कर उनके बाथरूम में घुसा चला आता है, ताकि इस पल में अपने भाई को परेशान कर सके और उसे अपनी मांगें मनवाने के लिए मज़बूर कर सके। लेकिन नेपोलियन जान बूझ कर बाथटब में सरक जाता है और पानी के छींटे भाई की यूनिफार्म पर उछालता है और उसे दफा हो जाने के लिए कहता है। भाई कलंकित हो कर चला जाता है। कितना शानदार कॉमेडी सीन है!"

मुझे याद है मिस्टर और मिसेज चर्चिल क्वाग्लिनो रेस्तरां में खाना खा रहे थे। विन्स्टन बच्चों की तरह मुंह फुलाये बैठे थे। मैं उनसे दुआ सलाम करने के लिए उनकी मेज़ तक गया।

"ऐसा लगता है मानो आपने पूरी दुनिया का व़ज़न निगल लिया हो?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

उन्होंने बताया कि वे अभी अभी हाउस ऑफ कामंस से एक बहस से उठ कर आ रहे हैं और उन्हें वे सब बातें पसंद नहीं आयीं जो जर्मनी के बारे में की जा रही हैं। मैंने ऐसा ही कोई हल्का फुल्का जुमला उछाला, लेकिन उन्होंने सिर हिलाया, "ओह नहीं, मामला बहुत ही गम्भीर है, सचमुच बहुत ही गम्भीर।"

चर्चिल के पास रुकने के थोड़े ही अरसे बाद मैं गांधी से मिला। मैंने गांधी की राजनैतिक साफगोई और इस्पात जैसी दृढ़ इच्छा शक्ति के लिए हमेशा उनका सम्मान किया है और उनकी प्रशंसा की है। लेकिन मुझे ऐसा लगा कि उनका लंदन आना एक भूल थी। उनकी मिथकीय महत्ता, लंदन के परिदृश्य में हवा में ही उड़ गयी है और उनका धार्मिक प्रदर्शन भाव अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रहा है। इंगलैंड के ठंडे भीगे मौसम में अपनी परम्परागत धोती, जिसे वे अपने बदन पर बेतरतीबी से लपेटे रहते हैं, में वे बेमेल लगते हैं। लंदन में उनकी इस तरह की मौजूदगी से कार्टून और कैरीकेचर बनाने वालों को मसाला ही मिला है। दूर के ढोल ही सुहावने लगते हैं। किसी भी व्यक्ति के प्रभाव का असर दूर से ही होता है। मुझसे पूछा गया था कि क्या मैं उनसे मिलना चाहूंगा। बेशक, मैं इस प्रस्ताव से ही रोमांचित था।

मैं उनसे ईस्ट इंडिया डॉक रोड के पास ही झोपड़ पट्टी जिले के छोटे से अति साधारण घर में मिला। गलियों में भीड़ भरी हुई थी और मकान की दोनों मंज़िलों पर प्रेस वाले और फोटोग्राफर ठुंसे पड़े थे। साक्षात्कार पहली मंज़िल पर लगभग बारह गुणा बारह फुट के सामने वाले कमरे में हुआ। महात्मा तब तक आये नहीं थे; और जिस वक्त मैं उनका इंतज़ार कर रहा था, मैंने ये सोचने लगा कि मैं उनसे क्या बात करूंगा। मैंने उनके जेल जाने और भूख हड़तालों तथा भारत की आज़ादी के लिए उनकी लड़ाई के बारे में सुना था और मैं इस बारे में थोड़ा बहुत जानता था कि वे मशीनों के इस्तेमाल के विरोधी हैं।

आखिरकार जिस वक्त गांधी आये, टैक्सी से उनके उतरते ही चारों तरफ हल्ला गुल्ला मच गया। उनकी जय जय कार होने लगी। गांधी अपनी धोती को बदन पर लपेट रहे थे। उस तंग भीड़ भरी झोपड़ पट्टी की गली में ये अजीब नज़ारा था। एक दुबली पतली काया एक जीर्ण शीर्ण से घर में प्रवेश कर रही थी और उनके चारों तरफ जय जयकार के नारे लग रहे थे। वे ऊपर आये और फिर खिड़की में अपना चेहरा दिखाया। तब उन्होंने मेरी तरफ इशारा किया और तब हम दोनों ने मिल कर नीचे जुट आयी भीड़ की तरफ हाथ हिलाये।

जैसे ही हम सोफे पर बैठे, चारों तरफ से अचानक ही कैमरों की फ्लैश लाइटों का हमला हो गया। मैं महात्मा की दायीं तरफ बैठा था। अब वह असहज करने वाला और डराने वाला पल आ ही पहुंचा था जब मुझे एक ऐसे विषय पर घाघ की तरह बौद्धिक तरीके से कुछ कहना था जिसके बारे में मैं बहुत कम जानता था। मेरी दायीं तरफ एक हठी युवती बैठी हुई थी जो मुझे एक अंतहीन कहानी सुना रही थी और उसका एक शब्द भी मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा था। मैं सिर्फ हां हां करते हुए सिर हिला रहा था और लगातार इस बात पर हैरान हो रहा था कि मैं उनसे कहूंगा क्या। मुझे पता था कि बात मुझे ही शुरू करनी है और ये बात तो तय ही थी कि महात्मा तो मुझे नहीं ही बताते कि उन्हें मेरी पिछली फिल्म कितनी अच्छी लगी थी और इस तरह की दूसरी बातें। और मुझे इस बात पर भी शक था कि उन्होंने कभी कोई फिल्म देखी भी होगी या नहीं। अलबत्ता, एक भारतीय महिला की आदेश देती सी आवाज़ गूंजी और उसने उस युवती की बक बक पर रोक लगा दी: "मिस, क्या आप बातचीत बंद करेंगी और मिस्टर चैप्लिन को गांधी जी से बात करने देंगी?"

भरा हुआ कमरा एक दम शांत हो गया। और जैसे ही महात्मा के चेहरे पर मेरी बात का इंतज़ार करने वाले भाव आये, मुझे लगा कि पूरा भारत मेरे शब्दों का इंतज़ार कर रहा है। इसलिए मैंने अपना गला खखारा।

"स्वाभाविक रूप से मैं आज़ादी के लिए भारत की आकांक्षाओं और संघर्ष का हिमायती हूं," मैंने कहा,"इसके बावज़ूद, मशीनरी के इस्तेमाल को ले कर आपके विरोध से मैं थोड़ा भ्रम में पड़ गया हूं।"

मैं जैसे जैसे अपनी बात कहता गया, महात्मा सिर हिलाते रहे और मुस्कुराते रहे। "कुछ भी हो, मशीनरी अगर नि:स्वार्थ भाव से इस्तेमाल में लायी जाती है तो इससे इन्सान को गुलामी के बंधन से मुक्त करने में मदद मिलनी चाहिये और इससे उसे कम घंटों तक काम करना पड़ेगा और वह अपना मस्तिष्क विकसित करने और ज़िंदगी का आनंद उठाने के लिए ज्यादा समय बचा पायेगा।"

"मैं समझता हूं," वे शांत स्वर में अपनी बात कहते हुए बोले, "लेकिन इससे पहले कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त कर सके, भारत को अपने आपको अंग्रेजी शासन से मुक्त कराना है। इससे पहले मशीनरी ने हमें इंगलैंड पर निर्भर बना दिया था, और उस निर्भरता से अपने आपको मुक्त कराने का हमारे पास एक ही तरीका है कि हम मशीनरी द्वारा बनाये गये सभी सामानों का बहिष्कार करें। यही कारण है कि हमने प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह देशभक्तिपूर्ण कर्तव्य बना दिया है कि वह अपना स्वयं का सूत काते और अपने स्वयं के लिए कपड़ा बुने। ये इंगलैंड जैसे अत्यंत शक्तिशाली राष्ट्र से लड़ने का हमारा अपना तरीका है और हां, और भी कारण हैं। भारत का मौसम इंगलैंड के मौसम से अलग होता है और भारत की आदतें और ज़रूरतें अलग हैं। इंगलैंड के सर्दी के मौसम के कारण ये ज़रूरी हो जाता है कि आपके पास तेज उद्योग हो और इसमें अर्थव्यवस्था शामिल है। आपको खाना खाने के बर्तनों के लिए उद्योग की ज़रूरत होती है। हम अपनी उंगलियों से ही खाना खा लेते हैं। और इस तरह से देखें तो कई किस्म के फर्क सामने आते हैं।"

मुझे भारत की आज़ादी के लिए सामरिक जोड़ तोड़ में लचीलेपन का वस्तुपरक पाठ मिल गया था और विरोधाभास की बात ये थी कि इसके लिए प्रेरणा एक यथार्थवादी, एक ऐसे युग दृष्टा से मिल रही थी जिसमें इस काम को पूरा करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति थी। उन्होंने मुझे ये भी बताया कि सर्वोच्च स्वंतत्रता वह होती है कि आप अपने आपको अनावश्यक वस्तुओं से मुक्त कर डालें और कि हिंसा अंतत: स्वयं को ही नष्ट कर देती है।

जब कमरा खाली हो गया तो उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मैं वहीं रह कर उन्हें प्रार्थना करते हुए देखना चाहूंगा। महात्मा फर्श पर चौकड़ी मार कर बैठ गये और उनके आस पास घेरा बना कर पांच अन्य लोग बैठ गये। ये एक देखने योग्य दृष्य था। लंदन के झोपड़ पट्टी वाले इलाके के बीचों बीच एक छोटे से कमरे के फर्श पर छ: मूर्तियां पद्मासन में बैठी हुईं। लाल सूर्य छतों के पीछे से तेजी से अस्त हो रहा था और मैं खुद सोफे पर बैठा उन्हें नीचे देख रहा था। वे विनम्रता पूर्वक अपनी प्रार्थनाएं कर रहे थे। क्या विरोधाभास है, मैंने सोचा, मैं इस अत्यंत यथार्थवादी व्यक्ति को, तेज कानूनी दिमाग और राजनैतिक वास्तविकता का गहरा बोध रखने वाले इस शख्स को देख रहा था। ये सब आरोह अवरोह रहित बातचीत में विलीन हो रहा प्रतीत हो रहा था।

सिटी लाइट्स के मुहूर्त पर मूसलाधार बारिश हुई। लेकिन वहां पर भीड़ अच्छी खासी संख्या में जुट आयी थी और पिक्चर अच्छी चल गयी। मैंने बॉक्स में बर्नार्ड शॉ के साथ वाली सीट ली जिसकी वज़ह से खूब हँसी मज़ाक हुआ और ठहाके लगे। हम दोनों को खड़ा होना और झुकना पड़ा। इसके एक बार फिर हँसी गूंजी।

चर्चिल प्रीमियर पर और बाद में होने वाली दावत में आये। उन्होंने इस आशय का भाषण दिया कि वे उस शख्स के लिए जाम पेश करना, टोस्ट करना चाहते हैं जिसने नदी के दूसरी तरफ से एक लड़के के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी और उसने पूरी दुनिया का प्यार पाया है - और वह लड़का है चार्ली चैप्लिन! ये अप्रत्याशित था और मैं इससे थोड़ा सा चने के झाड़ पर चढ़ा दिया गया महसूस करने लगा। खासकर, तब जब उन्होंने अपनी बात कहने से पहले,"माय लॉर्ड्स, लेडीज़ एंड जेंटिलमेन" कहा। अलबत्ता, दूसरी बातों के अलावा, मौके की नज़ाकत से बंधे होने के कारण मैंने भी इसी तरीके से अपनी बात कही, "माय लॉर्ड्स, लेडीज़ एंड जेंटिलमेन, जैसा कि मेरे मित्र, स्वर्गीय वित्त मंत्री," मैं अपनी बात पूरी नहीं कर पाया, अच्छा खासा शोर शराबा हो गया। और मुझे बार बार जोरदार आवाज़ सुनायी देने लगी, "स्वर्गीय, स्वर्गीय, हमें अच्छा लगा स्वर्गीय!!" बेशक ये चर्चिल की आवाज़ थी। जब मैंने अपने आपको संभाला तो मैंने जुमला कसा, "दरअसल, भूतपूर्व वित्त मंत्री कहना ज़रा अटपटा लग रहा था।"

लेबर प्रधान मंत्री रैमसे मैक्डोनाल्ड के बेटे मैल्कोम मैकडोनाल्ड ने राल्फ और मुझे आमंत्रित किया कि हम उनके पिता से मिलें और रात वहीं उनके घर पर गुज़ारें। हम प्रधान मंत्री से उस वक्त मिले जब वे अपनी चार चीज़ों, अपने स्कार्फ, अपनी कैप, अपने पाइप और छड़ी के साथ अपनी संवैधानिक चहलकदमी कर रहे थे। उस वक्त वे अपने भदेस बाने में थे और बिल्कुल नहीं लगता था कि वे लेबर पार्टी के नेता हैं। महान गरिमा, अपने नेतृत्व के बोझ के प्रति बेहद सतर्क और गरिमामय सज्जन पुरुष की पहली छवि बिना हास्य के नहीं थी।

शाम का पहला हिस्सा कुछ खिंचा खिंचा सा था। लेकिन डिनर के बाद हम प्रसिद्ध ऐतिहासिक लाँग रूम में कॉफी पीने के लिए गये और वहां पर मूल क्रोमवेलियन सज़ाए मौत के मुखौटे तथा दूसरी ऐतिहासिक चीज़ें देखने के बाद फुर्सत से बतियाने बैठ गये। मैंने उन्हें बताया कि अपनी पहली यात्रा के बाद से मैंने यहां पर बहुत से परिवर्तन देखे हैं और ये परिवर्तन बेहतरी दर्शाते हैं। 1921 में मैं लंदन आया था तो यहां बहुत गरीबी देखी थी, सफेद बालों वाली बूढ़ी औरतें टेम्स नदी के किनारे पर सो रही होती थीं, अब वे औरतें कहीं नज़र नहीं आतीं। दुकानें सामान से भरी भरी नज़र आती हैं और बच्चों के पेट भी भरे हुए लगते हैं और निश्चित रूप से इन सबके लिए लेबर पार्टी की सरकार को श्रेय दिया जाना चाहिये।

उनके चेहरे पर भेद न खोलने वाले भाव आये और उन्होंने मुझे बिना रुके बात पूरी करने दी। मैंने पूछा कि लेबर सरकार जिसे मैं समाजवादी सरकार समझता आया हूं, क्या देश के मूल संविधान को बदलने की ताकत रखती है। उन्होंने आंखें झपकायीं और हँसते हुए बोले," होनी तो चाहिये लेकिन ब्रिटिश राजनीति की यही विडम्बना है। जैसे ही किसी के हाथ में सत्ता आती है वह नपुंसक हो जाता है।" वे एक पल के लिए रुके फिर वह किस्सा बताया कि जब प्रधान मंत्री के रूप में चुने जाने पर उन्हें पहली बार बकिंघम पैलेस में बुलाया गया।

उनका हार्दिक स्वागत करने के बाद महामहिम ने उनसे कहा, "अच्छी बात है, आप समाजवादी लोग मेरे बारे में क्या करने जा रहे हैं?" प्रधान मंत्री हँसे और बोले,"कुछ नहीं, बस इस बात की कोशिश करेंगे कि महामहिम के और देश के सर्वोत्तम हित में काम कर सकें।"

चुनाव के दौरान लेडी एस्टर ने राल्फ और मुझे प्लायमाउथ में अपने घर पर वीक एंड मनाने और टी ई लॉरेंस से मिलने के लिए आमंत्रित किया। लॉरेंस भी अपना वीक एंड वहीं मनाने वाले थे। लेकिन, किसी वज़ह से लॉरेंस नहीं आ पाये। अलबत्ता, लेडी एस्टर ने हमें अपने चुनाव क्षेत्र में और डॉक साइड में एक बैठक में आमंत्रित किया। वहां पर उन्हें मछुआरों के सामने भाषण देना था। मोहतरमा ने पूछा कि क्या मैं दो शब्द कहना चाहूंगा। मैंने उन्हें चेताया कि मैं लेबर पार्टी के पक्ष का आदमी हूं और सच तो ये है कि मैं उनकी राजनीति का समर्थन नहीं करता। "इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।" वे बोलीं,"बात सिर्फ इतनी सी है कि वे लोग आपको देखना चाहेंगे, बस!!"

ये खुले मैदान वाली चुनाव सभा थी और हम एक बड़े से ट्रक से बोल रहे थे। उनके चुनाव क्षेत्र के बिशप भी वहीं थे और कुछ कुछ नाराज़ मूड में लग रहे थे। मुझे लगा, उन्होंने चलताऊ ढंग से हमसे दुआ-सलाम की। लेडी एस्टर के संक्षिप्त शुरुआती भाषण के बाद मैं ट्रक पर चढ़ा। "कैसे हैं आप लोग?" मैंने कहा,"हम सब करोड़पतियों के लिए ये कितना अच्छा होता है आप लोगों से कहना कि वोट कैसे डालें लेकिन हम लोगों की परिस्थितियां आप लोगों की परिस्थितियों से काफी अलग होती हैं।"

अचानक मैंने बिशप की खुशी के मारे चीखने की आवाज़ सुनी,"शाबाश!" वे चिल्लाये।

मैंने अपनी बात जारी रखी,"लेडी एस्टर में और आप लोगों में कुछ बातें एक समान हो सकती हैं जिनके बारे में मैं नहीं जानता। मेरा ख्याल है उनके बारे में आप मुझसे बेहतर तरीके से जानते हैं।"

"शानदार, बहुत अच्छे!!" बिशप ने हुंकारा लगाया।

"चूंकि उनकी राजनीति और इस इस हं" "चुनाव क्षेत्र" बिशप ने मेरा वाक्य पूरा किया, (जब भी मैं हिचकिचाता, बिशप मुझे सही शब्द बता देते), - लेडी एस्टर का रिकार्ड ज़रूर ही बहुत संतोषजनक रहा होगा-" और मैंने अपनी बात ये कहते हुए खत्म की कि मैं उन्हें एक बहुत ही नेक, भली और दयालु महिला के रूप में जानता हूं जिनकी नीयत हमेशा बहुत अच्छी होती है। जब मैं नीचे उतरा तो बिशप के चेहरा खूब दमक रहा था और उन्होंने मुस्कुराते हुए गर्मजोशी से मुझसे हाथ मिलाया।

अंग्रेजी पादरी लोगों में एक बात बहुत अच्छी होती है कि इसमें साफगोई और निष्ठा की बहुत मज़बूत भावना होती है और ये बात इंगलैंड को अपने सर्वोत्तम रूप में सामने रखती है। डॉक्टर हेवलेट जॉनसन और कैनन कॉलिंस और दूसरे कई धर्म गुरुओं के कारण ही इंगलिश चर्च को ताकत मिलती रही है।

मेरे मित्र राल्फ बर्टन का व्यवहार अजीब सा होता जा रहा था। मैंने पाया कि बैठक में लगी बिजली से चलने वाली घड़ी बंद पड़ गयी है। उसके तार काट दिये गये थे। जब मैंने राल्फ को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा."हां, मैंने ये तार काटे हैं। मुझे घड़ी की टिक टिक से नफरत है।" मैं हैरान हुआ और थोड़ा नाराज भी लेकिन इस मामले को मैंने राल्फ का पागलपन मान कर रफा दफा कर दिया। जब से हम न्यू यार्क से चले थे, ऐसा लगने लगा था कि राल्फ पूरी तरह से चंगे हो गये हैं। अब वे वापिस स्टेट्स जाना चाहते थे।

वापिस चलने से पहले रॉल्फ ने पूछा कि क्या मैं उनके साथ उनकी बेटी से मिलने जाऊँगा? उनकी बेटी एक वर्ष पहले ही ईसाई भिक्षुणी बनी थी और इस समय हैकने में कैथोलिक कॉन्वेंट में थी। यह उनकी पहली पत्नी से जन्मी सबसे बड़ी बेटी थी। रॉल्फ अक्सर उसके बारे में बताते रहते थे। रॉल्फ ने बताया था कि वह चौदह वर्ष की उम्र से ही नन बनने की चाह रखती थी और उन्होंने तथा उनकी पत्नी ने ऐसा करने से रोकने के लिए सारी कोशिशें करके देख ली थीं। रॉल्फ ने मुझे अपनी बिटिया की उस वक्त की फोटो दिखाई जब वह सोलह बरस की थी और मैं उसका सौंदर्य देखकर एकदम अभिभूत हो गया था : दो बड़ी बड़ी काली आँखें, संवेदनशील भरा चेहरा और बाँध लेने वाली मुस्कुराहट फोटो में से देख रहे थे।

रॉल्फ ने बताया कि वे उसे पेरिस में यह सोचकर कई डॉन्स और नाइट क्लबों में लेकर गये थे कि शायद उसे उसकी गिरजा घर संबंधी इच्छा से विमुख कर सकें। उन्होंने उसका परिचय प्रेमी से कराया था और उसे हर तरह की खुशियाँ दीं थीं। उन्हें लगा था कि वह उन सबका आनंद ले रही है। लेकिन कोई भी चीज़ उसे नन बनने से डिगा नहीं सकी। रॉल्फ ने उसे 18 महीने से नहीं देखा था। अब उसने दीक्षा की परीक्षा पास कर ली थी और अब पूरी तरह से परम पिता परमात्मा की शरण में चली गयी थी।

यह कॉन्वेंट हैकने के झोपड़पट्टी वाले इलाकों के बीचों बीच उदास और अंधेरी इमारत थी। जब हम वहाँ पहुँचे तो मदर सुपीरियर ने हमारा स्वागत किया और हमें छोटे से अंधेरे कमरे में ले गयी। हम वहाँ बैठे और इंतज़ार करने लगे। ऐसा लगा, इंतज़ार की यह घड़ियाँ कभी खत्म नहीं होंगी। आखिरकार रॉल्फ की बेटी आयी। मुझे तत्काल उसकी खूबसूरती ने बाँध लिया क्योंकि वह अभी भी उतनी ही सुंदर थी जितनी फोटो में दिखायी दी थी। सिर्फ़ यही फ़र्क पड़ा था कि जिस वक्त वह मुस्कुरायी, उसके किनारे वाले दो दांत गायब थे।

ये दृश्य बेतुका था। हम उस छोटे से, भुतैले कमरे में बैठे थे। सैंतीस बरस के ये सुदर्शन, शहराती पिता, टांगें मुड़ी हुई, सिगरेट पीते हुए, और उनकी बेटी, उन्नीस बरस की प्यारी सी लड़की-सामने की तरफ बैठी हुई। मैंने कोशिश की कि मैं उठकर बाहर आ जाऊं और उनका इंतज़ार करूं, लेकिन दोनों में से किसी ने भी मेरी बात नहीं मानी।

हालांकि वह होशियार और तेज थी, मैं देख रहा था कि वह जीवन से बेजार हो चुकी थी, उसके हावभाव उखड़े हुए थे और जिस वक्त वह स्कूल टीचर के रूप में अभी ड्यूटी के बारे में बता रही थी, उसके हावभाव डरे हुए और तनाव लिए हुए थे, "छोटे बच्चों को पढ़ाना बहुत मुश्किल होता है," बताया उसने, "लेकिन मुझे इसकी आदत पड़ जायेगी।"

जिस समय रॉल्स अपनी बेटी से बात कर रहे थे, तो उनकी आंखों में चमक आयी। वे सिगरेट पीते रहे, जिस तरह के वे काफिर थे, मैं यह देख पाया कि वे कुछ हद तक उसके नन बनने के विचार से खुश हुए थे।

इस मुलाकात के बारे में कुछ ऐसा था जो उदास नि:संगता थी। इस बात में कोई शक नहीं था कि वह आध्यात्मिक परीक्षणों से गुज़री थी, वह जितनी खूबसूरत और यौवन से भरी हुई थी, उतनी ही उदास और समर्पित लग रही थी। वह लंदन में हमारे स्वागत के शोशेबाजी की बातें करती रही और उसने जर्माइन टैलफर, रॉल्फ की पांचवीं पत्नी के बारे में पूछा, रॉल्फ ने बिटिया को बताया कि वे अलग हो चुके हैं।

"बेशक" बेटी ने मेरी तरफ मुड़ते हुए मज़ाक में कहा, "मैं पापा की पत्नियों का हिसाब किताब नहीं रख सकती", रॉल्फ और मैं, दोनों ही आत्म सजग हो कर हंसे।

रॉल्फ ने पूछा कि क्या उसे काफी अरसे तक हैकने में रहना पड़ेगा। उसने सोचते हुए अपना सिर हिलाया और बताया कि उसे शायद सेन्ट्रल अमेरिका की तरफ भेज दिया जाये, "लेकिन वे हमें कभी पता नहीं चलने देते कि कब और कहां।"

"ठीक है, लेकिन जब तुम वहां पहुंचो तो अपने पापा को लिख तो सकती हो", मैंने बीच में टोका।

वह हिचकिचाई, "हमसे यह उम्मीद की जाती है कि हम किसी से भी सम्पर्क न रखें।"

"अपने माता-पिता के साथ भी नहीं?" पूछा मैंने।

"नहीं" बताया उसने। वह वस्तुपरक होने की कोशिश कर रही थी। तब वह अपने पिता की तरफ देखकर मुस्कुरायी। एक पल का मौन छा गया। जब वहां से चलने का समय आ गया तो उसने अपने पिता का हाथ थामा और उसे देर तक और प्यार से थामे रही, मानो कोई भीतरी ताकत उससे ऐसा करवा रही थी। जिस समय वापिस आ रहे थे, रॉल्फ बुझे हुए थे हालांकि अभी उदासीन दिखने की कोशिश कर रहे थे। दो हफ्ते बाद, अपने न्यूयार्क के अपार्टमेंट में उन्होंने बिस्तर में चादर तान कर लेटे हुए ही अपने सिर पर गोली मार कर खुदकशी कर ली थी।

मैं एच.जी.बेल्स से अक्सर मिलता, उनका ब्रेकर स्ट्रीट में एक अपार्टमेंट था, जिस वक्त मैं वहां पहुंचा, उनकी चार महिला सेक्रेटरी सन्दर्भ पुस्तकों को खंगाल रही थीं, और एन्साइक्लोपीडिया, तकनीकी पुस्तकों, दस्तावेजों तथा कागजों में से कुछ जांच रही थीं।

"ये द' एनाटोमी ऑफ मनी, मेरी किताब है," उन्होंने बताया, "काफी बड़ा काम है।"

"मुझे तो ऐसा लगता है, कि ज्यादातर काम तो ये ही कर रही हैं।" मैंने मज़ाक में जुमला उछाला। उनके पुस्तकालय में ऊंचे शेल्फों पर करीने से रखे बिस्किटों के टिन लग रहे थे, उन पर लिखा था, "जीवनीपरक सामग्री", "व्यक्तिगतपत्र", "दर्शन", "वैज्ञानिक आंकड़े" और इसी तरह के लेबल उन पर लगे हुए थे।

डिनर के बाद उनके दोस्त आ गये। उनमें से एक थे प्रोफेसर लास्की। वे अभी भी एकदम युवा दिखते थे। हारोल्ड बहुत ही मेधावी भाषण करते थे। मैंने उन्हें कैलिफोर्निया में अमेरिकन बार एसोसिएशन में बोले हुए सुना था। वहां पर उन्होंने बिना किसी कागज की तरफ देखे लगातार एक घंटे तक बिना रुके और शानदार तरीके से भाषण दिया था।

उस रात एच जी वेल्स के फ्लैट में, हारोल्ड ने समाजवाद दर्शन में आश्चर्यजनक नयी खोजों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि गति में थोड़ी सी भी बढ़ोतरी का मतलब भयंकर सामाजिक अंतर होता है। एच जी वेल्स के बिस्तर पर जाने के समय तक बातचीत बहुत ही रोचक तरीके से चलती रही। वेल्स साहब ने थोड़े संकोच के साथ, मेहमानों की तरफ देखते हुए इशारा किया और फिर अपनी घड़ी की तरफ देखा, तब सब लोग विदा हो गये।

वेल्स साहब मेरे यहां कैलिफोर्निया में 1935 में आये थे। मैं उन्हें जबरदस्ती रूस की आलेचना की बात पर ले आया। मैं उनकी रिपोर्टें पढ़ चुका था, इसलिए मैं खुद उनके मुंह से सुनना चाहता था और मैं ये देख कर हैरान हुआ कि वे इसके बारे में बहुत हद तक कड़ुवाहट से भरे हुए थे। "लेकिन क्या इस बारे में फैसला कर लेना बहुत जल्दी नहीं है?" मैंने तर्क दिया।

"उन्हें भीतर से और बाहर से मुश्किल कामों, विपक्ष और षड़यंत्रों का सामना करना पड़ रहा है। तय है कि समय बीतने के साथ-साथ अच्छे परिणाम भी आयेंगे।"

उस समय वेल्स इस बात को लेकर बहुत उत्साहित थे, जो कुछ रूज़वेल्ट ने नये समझौते के बारे में किया था। उनकी राय थी कि अमेरिका में मरते हुए पूंजीवाद में से अर्ध समाजवाद उभर कर आयेगा। वो स्तालिन के खास तौर पर आलोचक थे। उन्होंने स्तालिन का साक्षात्कार लिया था और कहा कि उसके राज में रूस आतंकवादी तानाशाह बन चुका है।

"यदि आप, समाजवादी, यह विश्वास करते हैं कि पूंजीवाद गर्त में जा चुका है," मैंने कहा,"तो फिर अगर रूस में समाजवाद ही असफल हो जाये तो दुनिया के लिए क्या उम्मीद बचती है?"

"रूस में या कहीं पर भी समाजवाद असफल नहीं होगा," उन्होंने कहा, "लेकिन रूस की यह वाली गतिविधि बेशक तानाशाही की तरफ मुड़ गयी है।"

"बेशक रूस ने गलतियां की है," मैंने आगे कहा," और दूसरे राष्ट्रों की तरह रूस आगे भी गलतियां करता रहेगा। सबसे बड़ी गलती, मेरे ख्याल से, अपने विदेशी कर्जों, रूसी बाँडों वगैरह को हड़प जाना है और क्रांति के बाद ये कह दिया कि ये जार के कर्जे थे, हालांकि रूस कर्जे पटाये जाने के बारे में अपनी जगह पर सही हो सकता था, मेरा ख्याल है, वहां पर उनसे गलती हो गयी है, क्योंकि इससे पूरी दुनिया उनके खिलाफ हो गयी। बहिष्कार और सैन्य हमले शुरू हो गये। लम्बे अरसे में ये बात उसे कर्जे चुका दिये जाने की तुलना में दुगुनी महंगी पड़ेगी। वेल्स आंशिक रूप से सहमत हो गये और कहने लगे कि मेरी टिप्पणी सिद्धांत के रूप में सही है लेकिन तथ्य रूप से नहीं, क्योंकि जार के कर्जों को हड़प लिया जाना ही उन कारणों में से एक था जिनकी वज़ह से क्रांति की भावना को शह मिली। पुराने शासन के कर्जों को अदा करने की बात से ही लोग भड़क गये होते।

"लेकिन," मैंने तर्क दिया,"रूस ने खेल खेला और कम आदर्शवादी रहा है, उसने पूंजीवादी देशों से बड़ी मात्रा में राशियां उधार ली होतीं और अपनी अर्थव्यवस्था को ज्यादा तेजी से संवारा होता। युद्ध के बाद की मुद्रास्फीति और इसी तरह की बातों के साथ उसने पूंजीवाद के दबावों के उसने अपने कर्जे आसानी से उतार दिये होते और दुनिया भर में उसकी साख भी बची रहती।"

वेल्स हँसे, "इसके लिए अब बहुत देर हो चुकी है।"

मैं अलग अलग मौकों पर एच जी वेल्स से कई बार मिला। फ्रांस के दक्षिणी इलाके में उन्होंने अपनी रूसी रखैल के लिए एक घर बनवा रखा था। वह बहुत तुनुक मिजाज महिला थी। उनके आतिशदान पर गोथिक अक्षरों में खुदा हुआ था : दो प्रेमियों ने ये घर बनाया।" "हां", जब मैंने इस पर टिप्पणी की तो वे बोले, "हमें इसे कई बार लगवाना और हटवाना पड़ा है। जब भी हममें झगड़ा होता है, मैं मिस्त्रीा को इसे हटा देने के लिए कहता हूं और जब हममें सुलह हो जाती है तो मोहतरमा मिस्त्रीर को इसे फिर लगाने के लिए कह देती हैं। इसे इतनी बार लगाया और हटाया गया है कि मिस्त्री ने आखिर हमारी तरफ ध्यान देना छोड़ दिया और इसे यहीं छोड़ गया है। 1931 में वेल्स साहब ने 'एनाटॉमी ऑफ मनी' पूरी की। इसमें दो वर्ष का परिश्रम लगा था और वे थके हुए नज़र आ रहे थे।

"अब आप क्या करने जा रहे हैं?" मैंने पूछा।

"दूसरी किताब लिखूंगा", वे थकी हुई हँसी हंसे।

"हे भगवान", मैं हैरान हुआ,"क्या आपको नहीं लगता कि आराम करना चाहिये या कोई और काम करना चाहिए?"

"और कुछ करने-धरने को है ही क्या?"

वेल्स की मामूली शुरुआत ने, उनके काम पर नज़रिये पर नहीं बल्कि मेरी ही तरह उनके व्यक्तिगत संवेदनाशीलता पर बहुत अधिक ज़ोर देने के रूप में असर छोड़ा था। मुझे याद है, एक बार उन्होंने एक गलत जगह पर एच अक्षर देख लिया था और वे इतना अधिक झेंपे कि पूछो नहीं। इतनी छोटी सी चीज़ के लिए इतने महान व्यक्ति का झेंपना। मुझे याद है वे अपने एक चाचा की बात बता रहे थे जो एक पदवीधारी अंग्रेज के यहां माली हुआ करते थे। उनके चाचा की अभिलाषा थी कि वेल्स भी उनकी तरह घरेलू नौकरी पकड़ लें। एच जी वेल्स ने व्यंग्य से कहा,"भगवान की दया ही रही वरना मैं सहायक रसोइया बन गया होता।"

वेल्स जानना चाहते थे कि मैं समाजवाद में दिलचस्पी कैसे लेने लगा। ये तब तक नहीं हुआ था तब तक मैं युनाइटेड स्टेट्स नहीं आया था और अप्टन सिन्क्लेयर से नहीं मिला था। मैंने उन्हें बताया। हम लंच के लिए पेसाडेना में गाड़ी चलाते हुए उनके घर की तरफ जा रहे थे। तभी अप्टन ने बेहद नरम आवाज में पूछा कि क्या मैं लाभ वाली प्रणाली में विश्वास करता हूं। मैंने जवाब दिया कि इस सवाल का जवाब देने के लिए तो मुझे एकाउन्टेंट की ज़रूरत पड़ेगी। हालांकि ये ऐसा सवाल था जिससे कोई नुक्सान नहीं होता लेकिन मैंने महसूस किया कि ये मामले की जड़ तक उतर गया है और उसी पल में मैं इसमें दिलचस्पी लेने लगा और राजनीति को इतिहास की तरह नहीं बल्कि एक आर्थिक समस्या के रूप में देखने लगा।

वेल्स ने मुझसे पूछा, जैसा कि मुझे लगा कि मुझे इंद्रियों से परे का आभास कैसे हो जाता है। मैंने उन्हें एक घटना के बारे में बताया जोकि सिर्फ़ संयोग मात्र नहीं हो सकती थी। टेनिस खिलाड़ी हेनरी क्रोसेट, एक अन्य मित्र और मैं बियारिट्ज होटल में एक कॉकटेल बार में गये। वहां पर बालरूम की दीवार पर जूए के तीन चक्के लगे थे और प्रत्येक पर एक ने दस तक की संख्याएं बनी हुई थीं। मैंने ड्रामाई ढंग से आधे मजाक में घोषणा की कि मुझमें पराभौतिक शक्तियां हैं और मैं तीनों चक्के घुमा दूंगा और कि पहला चक्का नौ पर रुकेगा, दूसरा चार पर और तीसरा सात पर। और लीजिये, पहला चक्का नौ पर रुका, दूसरा चार पर और तीसरा सात पर। ऐसा लाखों करोड़ों में एक बार ही होता है। वेल्स ने कहा कि ये विशुद्ध संयोग भी तो हो सकता है। "लेकिन जब संयोग ही बाद में दोबारा होने लगे तो परखने की ज़रूरत होती है।" कहा मैंने और उन्हें एक और किस्से के बारे में बताया जो मेरे बचपन में हुआ था मैं केम्बरवैल रोड पर एक राशन की दुकान के आगे से गुज़र जा रहा था और मैंने उस दुकान पर शटर गिरे हुए देखे। ये अनहोनी सी बात थी। किसी चीज़ ने मुझे प्रेरित किया कि मैं खिड़की की सिल पर चढ़ कर शटर के बीच की झिर्री में से देखूं। भीतर अंधेरा और सुनसान था लेकिन राशन का सारा सामान मौजूद था। फर्श के बीचों बीच एक बड़ा सा पैकिंग केस रखा हुआ था। मैं खिड़की की सिल से कूदा और किसी अन्त: प्रेरणा से अपने रास्ते चल दिया। उसके तुरंत बाद, एक हत्या के मामले का पता चला। एडगर एडवर्ड्स भला और बूढ़ा आदमी, जिसकी उम्र लगभग पैंसठ बरस की थी, ने इसी तरह से राशन की पांच दुकानें हथिया लीं। वह तौलने वाले बट्टे से दुकानों के मालिकों को मार डालता था और इस तरह से दुकान पर कब्जा कर लेता था। कैम्बरवैल की राशन की उस दुकान में, उस पैकिंग केस में उसके अंतिम तीन शिकारों, मिस्टर और मिसेज डर्बी और उनकी बच्ची की लाशें थीं।

लेकिन वेल्स मेरी बातें मानने के लिए तैयार ही नहीं थे। उन्होंने कहा कि हरेक की जिंदगी में अमूमन ऐसा होता ही रहता है कि कई संयोग घटते रहते हैं और इससे कुछ सिद्ध नहीं होता। हमारी चर्चा वहीं पर खत्म हो गयी थी लेकिन मुझे लगा, मैंने उन्हें अपने एक और अनुभव के बारे में बताया होता। उस वक्त मैं छोटा सा लड़का था और लंदन ब्रिज रोड पर मैं एक सैलून पर रुका और एक गिलास पानी माँगा। एक सज्जन पुरुष ने, जिसकी गहरी मूंछें थीं, मुझे पानी दिया। किसी वजह से मैं वह पानी नहीं पी पाया। मैंने पानी पीने का नाटक किया जैसे ही उस व्यक्ति ने एक ग्राहक की तरफ चेहरा मोड़ा, मैंने गिलास नीचे रखा और वहां से फूट लिया। दो सप्ताह बाद लंदन ब्रिज रोड पर क्राउन पब्लिक हाउस के मालिक जार्ज चैपमैन पर कुचले के सत का जहर दे कर अपनी पांच पत्नियों को मारने का इल्ज़ाम लगा।

जिस दिन उसने मुझे पानी का गिलास दिया था, उसकी नवीनतम शिकार सैलून के ऊपर वाले कमरे में मर रही थी। चैपमैन और एडवर्ड दोनों को फांसी पर लटका दिया गया था।

इस गूढ़ प्रसंग के अनुकूल एक और किस्सा है। बेवरली हिल्स पर जब मैंने अपना घर बनवाया था, उससे एक बरस पहले मुझे एक गुमनाम खत मिला था जिसमें बताया गया था कि पत्र लेखक सूक्ष्मदर्शी है और उसने सपने में एक पहाड़ी पर बना हुआ एक घर देखा है जिसका लॉन सामने की तरफ है और आगे की तरफ वाला हिस्सा नाव के सिरे की तरह निकला हुआ है। इस घर में चालीस खिड़कियां हैं और ऊंची छत वाला बड़ा सा संगीत कक्ष है। इस घर की ज़मीन पवित्र भूमि है जिस पर प्राचीन काल में रेड इंडियन जनजातियां दो हज़ार वर्ष पूर्ण मानव बलियां दिया करती थीं। इस घर में भूतों का डेरा है और इसे बिल्कुल भी अंधेरे में न छोड़ा जाये। पत्र में इस बात का जिक्र था कि जब तक मैं घर में बिल्कुल अकेला नहीं रहता और घर में रौशनी बनी रहती है, घर को कोई खतरा नहीं रहेगा।

उस समय मैंने ये खत किसी झक्की द्वारा लिखा गया मान कर एक तरफ रख दिया था। उसकी तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया था और उसे अजीब सा और मज़ेदार मानकर एक तरफ रख दिया था। लेकिन दो बरस बाद अपनी डेस्क पर कुछ कागज तलाशते हुए वह खत फिर मेरे हाथ लग गया और मैंने इसे एक बार फिर पढ़ा। हैरानी की बात थी कि घर के और लॉन के ब्यौरे बिल्कुल सही थे। मैंने खिड़कियां नहीं गिनी थीं और ये सोचा था कि गिनूंगा लेकिन मेरी हैरानी की सीमा न नही जब मैंने देखा कि पूरी चालीस खिड़कियां थी।

हालांकि मैं भूत प्रेतों में विश्वास नहीं करता, मैंने प्रयोग करने का फैसला किया। बुधवार के दिन, रात के वक्त स्टाफ की छुट्टी होती थी और घर खाली था, इसलिए मैंने बाहर खाना खाया, डिनर के तुरंत बाद मैं घर वापिस लौटा और संगीत कक्ष में चला गया। ये कमरा लम्बा और संकरा था, चर्च के किसी गलियारे की तरह और इसकी छत गॉथिक शैली की थी। पर्दे खींच लेने के बाद मैंने सारे घर की बत्तियां बंद कर दीं। तब मैं टटोलता हुआ अपनी आराम कुर्सी तक आया, वहां लगभग दस मिनट तक चुपचाप बैठा रहा। गहरे अंधेरे से मेरी इन्द्रियां जागृत हो गयीं और मैं अपनी आंखों के सामने तैरती हुई आकृति विहीन छायाओं की कल्पना करने लगा; लेकिन मैंने तर्क लगाया कि ये परदों के बीच की बारीक झिर्री में से चांदनी आ रही थी और ये क्रिस्टल डिकैंटर पर परावर्तित हो रही थी। मैंने परदों को और अच्छी तरह खींच लिया और तैरती हुई आकृतियां गायब हो गयीं। इसके बाद, मैं एक बार फिर अंधेरे में इंतजार करने लगा - पांच मिनट तो ज़रूर ही बीत गये होंगे। चूंकि कुछ भी नहीं हुआ इसलिए मैंने ज़ोर ज़ोर से बोलना शुरू कर दिया,"अगर जो आत्माएं हैं जो सामने आ कर दर्शन दें।" मैं कुछ पल तक इंतज़ार करता रहा फिर भी कुछ नहीं हुआ। मैंने फिर कहना जारी रखा,"क्या संवाद स्थापित करने का कोई तरीका है? शायद किसी संकेत के जरिये, ठक ठक या, अगर ऐसा न हो सके, तो शायद मेरे मन के जरिये, जिससे हो सकता है, मैं कुछ लिखने के लिए प्रेरित हो जाऊं; या शायद ठंडी हवा का झोंका आपकी मौजूदगी का संकेत दे सके।"

तब मैं और पांच मिनट के लिए बैठा रहा। लेकिन न तो कोई संकेत ही मिला और न ही किसी तरह का आदेश ही आया। आखिर मैंने इसे गया गुज़रा मामला मान कर छोड़ दिया और बत्ती जला दी। तब मैं बैठक वाले कमरे में चला गया। पर्दे अभी हटाये नहीं गये थे, और चांदनी में पिआनो की छवि का आभास हो रहा था। मैं बैठ गया और कुंजी पटल पर उंगलियां दौड़ाने लगा। ऐसा करते हुए मैं ऐसी स्वर तंत्री पर अटका जिसने मुझे बांध लिया। मैंने इसे कई बार दोहराया, तब तक पूरा कमरा उससे कम्पित नहीं होने लगा। मैं ये क्यों कर रहा था? शायद यही बुलावा था। मैं एक ही स्वर तंत्री दोहराता रहा। अचानक ही रोशनी का एक सफेद हाथ मेरी छाती से लिपट गया: मैं बंदूक की गोली की तरह पिआनो से कूदा और खड़ा हो गया। मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से ड्रम की तरह धड़क रहा था।

जब मुझे होश आया, मैंने स्थिति को समझने की कोशिश की। पिआनो खिड़की के पास वाली आराम करने की जगह पर रखा हुआ था। तब मैंने जाना कि जिसे मैं रहस्यमय शक्ति की पट्टी समझ रहा था, पहाड़ी की ढलान से उतरती हुई किसी गाड़ी की पास आती हुई लाइट थी। अपने आपको सन्तुष्ट करने के लिए मैं पिआनो पर बैठा और उसी कुंजी को कई बार बजाया। बैठक के दूर वाले सिरे पर एक अंधियारा गलियारा था और उसके पार डाइनिंग रूम का दरवाजा था। मैंने अपनी आंख की कोर से देखा कि दरवाजा खुला और डाइनिंग रूम में से कुछ आया और अंधियारे गलियारे में से गुज़रा। ये डरावना, बौना सा दिखने वाला जानवर था जिसकी आंखों के चारों तरफ जोकरों जैसे सफेद घेरे थे। वह संगीत कक्ष की तरफ बत्तख जैसी चाल चलता हुआ चला जा रहा था। मैं अपना सिर घुमा पाता इससे पहले ही वह गायब हो गया था। भयभीत सा, मैं उठ खड़ा हुआ और उसका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन वह गायब हो चुका था। यह विश्वास करते हुए मैंने खुद अपनी बेहद नर्वस हालत में कोई दृष्टिभ्रम पैदा कर लिया होगा जिससे भ्रम हो गया हो। मैं फिर से पिआनो बजाने बैठ गया, लेकिन फिर कुछ भी नहीं हुआ, इसलिए मैंने सो जाने का फैसला किया।

मैंने कपड़े बदले, पायजामा पहना और बाथरूम में गया। जब मैंने बत्ती जलायी तो बाथरूम में एक अजगर पसरा हुआ था और मेरी तरफ देख रहा था। मैं बाथरूम से एक तरह से छलांग लगाते हुए बाहर आया। यही धोखेबाज था! मैंने इन्हीं महाशय को अपनी आंख की कोर से देखा था। तब नीचे वाली मंजिल पर ये आकार में कुछ ज्यादा ही बड़ा प्रतीत हुआ था।

सवेरे, रसोइये में उस हैरान परेशान प्राणी को एक पिंजरे में बंद किया और अंतत: हमने उसे पालतू बना लिया। लेकिन एक दिन वह गायब हो गया और हमने उसे फिर कभी नही देखा।

लंदन से मेरे चलने से पहले यार्क के ड्यूक और डचेस ने मुझे लंच पर आमंत्रित किया, ये बेहद अनौपचारिक लंच था और वहां पर सिर्फ ड्यूक, डचेज, डचेज के पिता और माता, उनके भाई और तेरह बरस का एक किशोर युवक ही थे। सर फिलिप ससून बाद में आये, और उनकी और मेरी ये ड्यूटी लगा दी गयी कि हम डचेस के छोटे भाई को एटन छोड़ते चलें। वह नन्हां सा शांत लड़का था जो, जिस वक्त दो प्रीफेक्ट हमें अपन स्कूल दिखा रहे थे, तो वह पीछे पीछे चला आ रहा था। बाद में प्रीफेक्ट और कई लोगों ने हमें चाय पर आमंत्रित किया।

हम मिठाई की दुकान में पहुंचे। ये कैंडी बेचने वाली और छ: पैनी की चाय बेचने वाली एक साधारण सी जगह थी। तब वह ईटन के सैकड़ों लड़कों के साथ बाहर ही रहा। हम चारों सीढ़ियां के ऊपर वाले एक कमरे में एक छोटी सी मेज पर बैठे। सब कुछ बहुत ही शानदार चल रहा था कि तभी मुझसे पूछा गया कि क्या मैं चाय का दूसरा कप लेना पसन्द करूंगा और मैंने अनजाने में कह दिया, "हां।" इससे वहां पर आर्थिक संकट पैदा हो गया क्योंकि हमारे मेजबान के पास पैसे कम पड़ गये थे और उसे कई दूसरे लड़कों के आगे कटोरा घुमाना पड़ा।

फिलिप फुसफसाये, "मुझे डर है कि हमने उन्हें दो पेंस के अतिरिक्त संकट में डाल दिया है और हालत ये है कि हम उनके लिए कुछ भी नहीं कर सकते।"

अलबत्ता, उन्होंने आपस में ही इंतजाम कर लिया और चाय की एक और केतली का आर्डर दिया। ये चाय हमें हड़बड़ी में पीनी पड़ी क्योंकि इस बीच स्कूल की घंटी बज गयी थी और उन्हें एक मिनट के भीतर स्कूल के गेट पर पहुंचना था। वहां अच्छी खासी भगदड़ मच गयी। भीतर, हैडमास्टर ने हमारा स्वागत किया और वह हॉल दिखाया जहां शैली और कई दूसरी महान विभूतियों ने अपने नाम अंकित कर रखे थे। आखिरकार, हैडमास्टर ने फिर से हमें दो प्रीफेक्टों के हवाले कर दिया जो हमें पवित्रतम गृभ गृह में ले गये। वह कमरा जिसमें कभी शैली रहे थे, लेकिन हमारा नन्हां फरिश्ता दोस्त बाहर ही रहा।

हमारे युवा मेज़बान ने बेहद उखड़े तरीके से उससे कहा "तुम क्या चाहते हो?"

"ओह, वह हमारे साथ है," फिलिप ने टोका, और बताया कि हम उसे लंदन के वापिस लाये हैं।

"तब ठीक है।" हमारे मेज़बान ने बेचैनी से कहा,"भीतर आ जाओ।"

फिलिप फुसफुसाये,"वे उसे भीतर आने दे कर बहुत बड़ी रियायत पर रहे हैं; इससे इस तरह की पवित्रभूमि पर अनधिकार प्रवेश से किसी और बच्चे का कैरियर बरबाद हो जायेगा।"

ये तो बाद में जब मैं लेडी एस्टर के साथ एटन गया तो मुझे वहां के सादगी भरे अनुशासन का पता चला। जिस वक्त हम बहुत कम रौशनी वाले गलियारे से गुजरे तो वहां भयंकर सर्दी थी और बहुत अंधेरा था। हम टटोलते हुए आगे बढ़े। गलियारे में हर कमरे के दरवाजे के बाद दीवार पर पैर धोने के बरतन लटक रहे थे। आखिर हमने सही दरवाजा तलाश लिया और खटखटाया।

उनके लड़के, पीले चेहरे वाले नन्हें से बच्चे ने दरवाजा खोला। भीतर, उसके दो साथी छोटे के फायर प्लेस में मुठ्ठी भर कोयले डाल कर सिकुड़े बैठे अपने हाथ सेंक रहे थे। माहौल निश्चित ही डरावना था।

लेडी एस्टर ने कहा,"मैं देखना चाहती हूं कि क्या तुम्हें मैं वीक एन्ड के लिए ले जा सकती हूं!" हम थोड़ी देर तक बात करते रहे, तभी अचानक दरवाजे पर ठक ठक हुई और इससे पहले कि हम 'भीतर आइये' कह पाते, दरवाजे का हत्था घूमा और हाउस मास्टर भीतर आये। वे खूबसूरत, लाल बाल और सुगठित देह वाले, लगभग चालीस बरस के शख्स थे। `गुड ईवनिंग,' उन्होंने रूखेपन से लेडी एस्टर से कहा और मेरी तरफ देखकर सिर हिलाया। इसके बाद उन्होंने छोटे से आतिशदान पर अपनी कुहनी टिकायी और अपना पाइप पीना शुरू कर दिया। लेडी एस्टर का आना स्पष्ट ही गलत वक्त पर था इसलिए उन्होंने सफाई देनी शुरू कर दी,"मैं यह देखने आयी हूं कि मैं अपने बेटे को वीक एंड के लिए वापिस ले जा सकती हूं?"

"मुझे खेद है आप नहीं ले जा सकतीं," दो टूक जवाब मिला।

"ओह, जाने भी दीजिये," लेडी एस्टर ने अपनी खनकती हुई आवाज़ में कहा, "इतने हठी मत बनिये।"

"मैं हठी नहीं हूं, मैं सिर्फ एक तथ्य बयान कर रहा हूं।"

"लेकिन वह कितना पीला नज़र आ रहा है?"

"वाहियात!! उसके साथ कुछ भी गड़बड़ नहीं है।" वे लड़के के बिस्तर से उठीं, जिस पर हम बैठे हुए थे, और हाउस मास्टर के पास गयीं, "ओह, छोड़िये भी!"

उन्होंने नज़ाकत के साथ कहा और हेडमास्टर को अपने खास अंदाज में हल्का सा धक्का दिया। मैंने उन्हें लॉयड जॉर्ज और दूसरे लोगों को, जिन्हें भी वे उकसाना चाहती थीं, इस तरह का धक्का देते हुए देखा था।

"लेडी एस्टर," हेडमास्टर ने कहा,"आपको लोगों को धक्का देकर उनका संतुलन बिगाड़ने की बहुत खराब आदत है। मैं चाहता हूं कि आप ऐसा करना छोड़ दें।"

ऐसे पलों में लेडी एस्टर की सारी शेखी ने उनका साथ छोड़ दिया। पता नहीं, बातचीत कैसे राजनीति की तरफ मुड़ गयी। हाउस मास्टर ने बात को बीच में ही काट दिया और अपना संक्षिप्त सा जुमला कह दिया,"अंग्रेजी राजनीति के साथ मुसीबत ये है कि इसमें औरतें बहुत अधिक दखल देती हैं और इसके साथ ही मैं आपको गुड नाइट कहूंगा, लेडी एस्टर।" तब उन्होंने हम दोनों की तरफ हौले से सिर हिलाया और चले गये। "कितना खड़ूस आदमी है," लेडी एस्टर ने कहा। लेकिन बच्चे ने हैड मास्टर की तरफ से जवाब दिया,"ओह नहीं मां, वे सचमुच बहुत अच्छे हैं।" मैं उस व्यक्ति की सिर्फ़ प्रशंसा ही कर सका। महिला विरोधी अपनी भावनाओं के बावजूद उसके चरित्र में ईमानदारी और खरापन है - उसमें हास्यबोध नहीं था लेकिन ईमानदारी थी।

मैं चूंकि सिडनी से कई बरसों से नहीं मिला था, मैं लंदन से ये सोच कर चला कि उसके साथ थोड़ा सा वक्त नाइस में बिताऊंगा। सिडनी हमेशा कहा करता था कि जब वह 250,000 डॉलर बचा लेगा तो वह रिटायर हो जायेगा। मैं यहां पर ये बात जोड़ दूं कि उसने इस तय राशि से बहुत ज्यादा बचा लिये थे। एक काइयां कारोबारी आदमी होने के अलावा वह बहुत ही शानदार कॉमेडियन था और उसने कई सफल फिल्में बनायी थीं : सबमेरीन, पाइलट, द बैटर ओल, मैन इन द' बॉक्स और फार्चून। और अब चूंकि सिडनी रिटायर हो चुका था, जैसा कि उसने कहा था, वह रिटायर हो कर नाइस में रह रहा था।

जब नाइस में रहने वाले फ्रैंक जे. गॉल्ड को पता चला कि मैं अपने भाई से मिलने के लिए आ रहा हूं तो मुझे उन्होंने जुआं-लेस-पिन्स में अपने मेहमान के रूप में आने का न्योता दिया जिसे मैंने स्वीकार कर लिया।

नाइस में जाने से पहले मैं दो दिन के लिए पेरिस में रुका और फॉलिस बरजेरे में गया क्योंकि मूल अष्टम लंका शायर बाल मंडली के एल्फ्रेड जैक्सन वहां पर काम कर रहे थे। वे मूल ट्रुप के पुत्रों में से एक थे। जब मैं एलफ्रेड से मिला तो उन्होंने बताया कि जैक्सन परिवार बहुत समृद्ध हो गया है और उनके लिए नृत्य करने वाली लड़कियों के आठ दल हैं और कि उनके पिता अभी भी जीवित हैं। अगर मैं फालिज बरजेरे जाऊं, जहां पर वे पूर्वाभ्यास कर रहे हैं तो मैं उनके पिता से मिल सकता हूं।

हालांकि मिस्टर जैक्सन अस्सी की उम्र पार कर चुके थे, वे अभी भी हट्टे कट्टे और चुस्त दुरुस्त लग रहे थे। हम हैरान होते हुए अपने पुराने दिन याद करते रहे और बार बार कहते रहे,"किसने सोचा था, ऐसा होगा?"

"तुम्हें पता है, चार्ली," वे बोले," छोटे से बच्चे के रूप में जो तुम्हारी उत्कृष्ट याद बाकी है, वो है तुम्हारी विनम्रता।"

अगर आप ये मुगालता पाले रहते हैं कि आप जनता की निगाहों में बहुत दिन तक सितारे बने रहेंगे तो आप गलती पर हैं। चांदनी चार दिन की ही रहती है और फिर अंधेरा आता ही है। इसलिए मेरे इस स्वागत के बाद सारी चीजें अचानक ही शांत हो गयीं। पहला झटका प्रेस से मिला। मेरी तारीफों के पुल बांधने के बाद उन्होंने एकदम विपरीत रुख अपना लिया। मेरा ख्याल है, इससे पढ़ने वालों को मज़ा ही आया होगा। लंदन और पेरिस की उत्तेजना अपने निशान छोड़ रही थी। मैं थका हुआ था और अब आराम चाहता था।

जुआं-लेस-पिन्स में मैं जब आराम कर रहा था तो मुझसे कहा गया कि मैं लंदन में पैलेडियम में एक कमांड पर्मार्मेंस में अपना चेहरा दिखाऊं। इसके बजाये, मैंने दो सौ पाउंड का चेक भेज दिया। इससे तो हंगामा उठ खड़ा हुआ। मैंने राजा को ठेस पहुंचायी थी और राज आदेश की अवमानना की थी। मुझे पैलेडियम के प्रबंधक की ओर से जो नोट मिला उसे मैंने राजसी आदेश नहीं माना। इसके अलावा, मैं एक पल के नोटिस पर प्रदर्शन करने के लिए तैयार नहीं था।

अगला हमला कुछ सप्ताह बाद आया। मैं एक टेनिस कोर्ट में अपने पार्टनर का इंतज़ार कर रहा था कि तभी एक नौजवान ने मेरे एक दोस्त के दोस्त के रूप में अपना परिचय दिया। हालचाल पूछ लेने के बाद हमारी बातचीत आपसी राय की तरफ मुड़ गयी। वह बातचीत में बहुत माहिर और सहानुभूतिपूर्ण रवैये वाला नौजवान था। मुझमें एक कमज़ोरी है कि मैं लोगों को अचानक ही पसन्द करने लगता हूं, वो भी खास तब जब वे अच्छे श्रोता हों। मैं कई विषयों पर बात करने लगा। दुनिया भर में चल रहे हालात पर मैंने आपसी हताशा जतलायी और उसे बताया कि यूरोप में जो हालात चल रहे हैं वे एक और युद्ध की ओर ले जा रहे हैं।

"ठीक है, भई, मुझे वे अगले युद्ध में नहीं पायेंगे", मेरे दोस्त ने कहा।

"मैं आपको दोष नहीं देता," मैंने जवाब दिया,"मेरे मन में उनके लिए कोई सम्मान नहीं है जो हमें मुसीबतों में फंसाते है; मैं यह बताया जाना पसन्द नहीं करता कि किसको मारूं और किसके लिए मृत्यु को गले लगाया जाये और ये सब देशभक्ति के नाम पर!!"

हम बहुत अच्छे माहौल में विदा हुए। मेरा ख्याल है मैंने अगली शाम को उसके साथ खाना खाने का भी तय कर लिया था, लेकिन वह आया नहीं। और लीजिये! किसी दोस्त के साथ बात करने के बजाये, मैंने पाया कि मैं एक न्यूज रिपोर्टर से बात कर रहा था और अगले दिन अखबारों में पहले पेज पर पूरे पन्ने की खबर थी:

"चार्ली चैप्लिन देशभक्त नहीं।" वगैरह।

ये सच है लेकिन उस वक्त मैं नहीं चाहता था कि मेरी निजी राय को इस तरह से प्रेस की तरफ से सार्वजनिक किया जाये। सच तो ये है कि मैं देशभक्त नहीं हूं। नैतिक या बौद्धिक कारणों की वजह से ही नहीं - लेकिन इसका कारण ये भी है कि मेरे मन में देश के लिए कोई भावना नहीं है। कोई व्यक्ति देशभक्ति को किस तरह से स्वीकार कर सकता है जब देशभक्ति के ही नाम पर साठ लाख यहूदियों का कत्ल किया जा रहा है। कोई यह बात कह सकता है कि वे जर्मनी में हो रहा है; इसके बावजूद, उस तरह के मौत का खेल दिखाने वाली कोठरियां हरेक देश में मौजूद हैं।

मैं राष्ट्रीय गौरव को ले कर हो हल्ला नहीं मचा सकता। यदि कोई व्यक्ति पारिवारिक परम्पराओं में, घर और बगीचे में, अपने सुखी बचपन में परिवार में, दोस्तों में व्यस्त हो तो मैं उसकी इस भावना को समझ सकता हूं लेकिन मेरे पास इस तरह की पृष्ठभूमि नहीं है। मेरे लिए सर्वोत्तम राष्ट्रभक्ति यही है जो स्थानीय आदतों के रूप में विकसित हुई। घुड़दौड़, शिकार करना, यॉकशायर पुडिंग, अमेरिकी हैम वर्गर और कोका कोला, लेकिन आज इस तरह की देशी चीजें भी पूरी दुनिया में फैल चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से, जिस देश में मैं रहता हूं, यदि उस पर हमला होता है तो मैं, हममें से अधिकांश लोगों की तरह, मुझे विश्वास है कि मैं परम त्याग का कोई भी कार्य करने में सक्षम होऊंगा। लेकिन मैं मातृभूमि के लिए दिखावे का प्यार दिखाने के काबिल नहीं हूं। क्योंकि इस प्यार ने केवल नाज़ी पैदा किये हैं और मैं बिना किसी अफसोस के ये कहना चाहूंगा कि जो कुछ मैंने देखा समझा है, नाज़ियों की कोठरियां, हालांकि इस वक्त बंद पड़ी है, किसी भी देश में तेजी से सक्रिय बनायी जा सकती है, इसलिए, मैं किसी राजनैतिक कारण के लिए तब तक कोई त्याग करने के लिए तैयार नहीं हूं जब तक मेरा उसमें व्यक्तिगत रूप से विश्वास न हो। मैं राष्ट्रपिता के लिए शहीद होने वालों में से नहीं हूं और न ही मैं राष्ट्रपति के लिए, प्रधानमंत्री या किसी तानाशाह के लिए मरने के लिए ही इच्छुक हूं।

एकाध दिन बाद सर फिलिप सैसून मुझे कॉन्सुएलो वैन्डरबिल्ट बालसन के घर पर लंच के लिए गये। दक्षिणी फ्रांस में ये एक बहुत ही खूबसूरत जगह थी। वहां पर एक मेहमान अलग ही नज़र आ रहा था - लम्बा, दुबला व्यक्ति, जिनके बाल गहरे काले थे, और कतरी हुई मूंछें थीं। खुशमिजाज और बांध लेने वाला व्यक्तित्व। मैंने पाया कि लंच के वक्त मैं अपनी बातचीत में उसे संबोधित कर रहा हूं। मैं मेजर डगलस की किताब इकॉनामिक डेमोक्रेसी की बात कर रहा था। मैंने कहा कि उनकी ऋण थ्योरी कितने शानदार तरीके से मौजूदा विश्वव्यापी संकट को हल कर सकती है।

कॉन्सुऐलो बालसन ने उस दोपहर के बारे में लिखा, "मैंने पाया कि चैप्लिन बातचीत में बहुत दिलचस्प हैं और मैंने उनमें मजबूत समाजवादी प्रवृत्तियां पायीं।

मैंने ज़रूर ऐसा कुछ कहा होगा जो उस लम्बे व्यक्ति को खास तौर पर अच्छा लगा होगा क्योंकि उसका चेहरा खिल उठा और उसकी आंखें इतनी चौड़ी हो गयीं कि मुझे उन आंखों की सफेदी तक नज़र आने लगी। मैं जो कुछ भी कह रहा था, वह उसका समर्थन करता जा रहा था और तभी मैं अपनी धारणाओं के क्लाइमेक्स तक जा पहुंचा, जो निश्चित ही उसकी स्वयं की धारणाओं की विपरीत दिशा में चला गया होगा। उसके चेहरे पर निराशा झलकने लगी।

मैं सर ओस्वाल्ड मेस्ले से बात कर रहा था और मुझे इस बात का ज़रा भी गुमान नहीं था कि ये व्यक्ति इंगलैंड की ब्लैक शर्ट्स का भावी प्रमुख बनेगा - लेकिन उसकी बड़ी बड़ी आंखों की नज़र आती पुतलियां और खुली-खुली मुस्कराहट वाला चेहरा मेरी स्मृति में – खास तौर की अभिव्यक्ति के रूप में अभी भी बना हुआ है - उसमें डर कहीं नहीं था।

दक्षिणी फ्रांस में मैं एमिल लुडविग से भी मिला। उन्होंने नेपोलियन, बिस्मार्क, बालज़ाक और अन्य विभूतियों की मोटी मोटी जीवनियां लिखी हैं। उन्होंने नेपोलियन के बारे में बहुत रोचक तरीके से लिखा था। लेकिन उन्होंने कथा वाचन की दिलचस्पी से विमुख करने की हद तक मनोविश्लेषण का कुछ ज्यादा ही छोंका लगा दिया था।

उन्होंने मुझे एक तार भेजा कि उन्हें सिटी लाइट्स कितनी पसन्द आयी थी और कि वे मुझसे मिलना चाहेंगे। मैंने जिस रूप में उनकी कल्पना की थी, वे उससे बिल्कुल अलग थे। वे परिष्कृत ऑस्कर वाइल्ड की तरह लग रहे थे। उनके बाल थोड़े लम्बे थे और उनका लम्बोतरा भरा हुआ चेहरा औरतों जैसे कटाव लिये हुए था। मेरे होटल में हम दोनों मिले। उन्होंने वहां पर खुद को कुछ हद तक भड़कीले, ड्रामाई तरीके से पेश किया। मुझे एक तेजपात की पत्ती भेंट करते हुए उन्होंने कहा, "जब रोमन ने महानता हासिल की तो उन्हें तेजपात की पत्तियों से बनाया गया कल्प वृक्ष ताज भेंट किया गया था। इसलिए मैं आपको एक पत्ती भेंट करता हूं।"

इस तरह की असंगत बातों के कारण उनसे तालमेल बिठाने में एक पल लगा; तब मुझे महसूस हुआ कि वे अपनी झेंप छुपा रहे थे। जब वे सहज हुए तो वे एक बहुत ही चतुर और रोचक आदमी के रूप में मुझसे मिले। मैंने उनसे पूछा कि जीवनी लिखने में उन्हें सबसे ज्यादा ज़रूरी बात क्या लगती है। उन्होंने कहा कि नज़रिया।

"तब तो जीवनी पूर्वाग्रहपूर्ण और नपा तुला लेख हो जाती है।" मैंने कहा।

"पैंसठ प्रतिशत कहानी तो कभी कही ही नहीं जाती," उन्होंने जवाब दिया,"क्योंकि उस पैंसठ प्रतिशत में दूसरे लोग शामिल होते हैं।"

डिनर के दौरान उन्होंने पूछा कि अब तक मैंने सर्वाधिक सुन्दर दृश्य कौन सा देखा है। मैं यूं ही कह दिया कि हेलेन विल्स को टेनिस खेलते हुए देखना: इसमें गरिमा और एक्शन की किफायत तो है ही, सैक्स के लिए स्वस्थ अपील भी है। दूसरा दृश्य था एक न्यूजरील का। युद्ध विराम के तुरंत बाद, फ्लैंडर्स नाम की जगह में खेत जोतता हुआ किसान, जहां हज़ारों लोग मरे थे। लुडविग ने फ्लोरिडा समुद्र तट के सूर्यास्त, तट पर खरामा खरामा चली जाती एक स्पोर्ट्स कार, जिसमें बेदिंग सूट पहने खूबसूरत लड़कियां लदी पड़ी हों और एक लड़की पीछे बोनट पर बैठी हो, उसकी टांगें झूल रही हों और पैर के तलुए रेत को छू रहे हों और जैसे जैसे कार चल रही हो, उसकी ऐड़ी से रेत पर एक लकीर बनती चली जा रही हो।

उसके बाद से मैं कई दूसरे सुन्दर नज़ारों को याद कर सकता हूं। फ्लोरेंस में पिआज़ा डेला सिग्नोरिया में बेनवेनुतो सेलिनी का `परसेउस' नाटक। रात का वक्त था। चौराहा रौशनी से नहाया हुआ था और मुझे वहां माइकलएंजेलो की डेविड की आकृति खींच ले गयी थी, लेकिन जैसे ही मैंने परसेउस देखा, सब कुछ गौण हो गया था। मैं उसकी गरिमा और रूप के अछूते सौन्दर्य को देख कर ठगा रह गया था। ये उदासी की साक्षात प्रतिमा लग रही थी और इसने मुझे ऑस्कर वाइल्ड की रहस्यपूर्ण पंक्ति की याद दिला दी,"इसके बावजूद आदमी उसे मार डालता है जिसे वह चाहता है।" उस शाश्वत रहस्य, अच्छे और बुरे के संघर्ष में उसका कारण खो गया था।

मुझे ड्यूक ऑफ आल्बा से एक तार मिला जिसमें उन्होंने मुझे स्पेन में आमंत्रित किया था। लेकिन अगले ही दिन सभी अखबारों में बड़ी-बड़ी हैडलाइनें नज़र आयीं,"स्पेन में क्रांति"। इसलिए मैं स्पेन के बजाये विएना चला गया - उदास, संवेदनशील विएना। उसकी सबसे खास स्मृति जो मेरे पास है, वह है एक खूबसूरत लड़की के साथ रोमांस की। ये किसी विक्टोरियाई उपन्यास के अंतिम अध्याय की तरह था; हमने प्यार में जीने मरने की कसमें खायीं और विदा के चुम्बन लिये दिये। हम जानते थे कि दोबारा फिर कभी मिलना नहीं होगा।

विएना के बाद, मैं वेनिस चला गया। ये पतझड़ के दिन थे और ये जगह पूरी तरह सुनसान थी। मैं उसे उस वक्त ज्यादा पसन्द करता जब ये पर्यटकों से भरा रहता, क्योंकि पर्यटक किसी भी ऐसी जगह को ऊष्मा और जीवन्तता प्रदान करते हैं, जो उनके बिना आसानी से उनके लिए किसी कब्रिस्तान सरीखी हो सकती है। दरअसल, मैं घुमक्कड़ी करने वालों को पसन्द करता हूं क्योंकि लोग बाग किसी जगह छुट्टियां मनाते ज्यादा सही नज़र आते हैं बजाये किसी दफ्तर की इमारत में घूमते दरवाजों से टकराते हुए।

हालांकि वेनिस खूबसूरत था लेकिन उतना ही उदास भी था; मैं वहां पर सिर्फ दो रातों के लिए ठहरा; वहां मेरे पास करने धरने को कुछ नहीं था, बस फोनोग्राम रिकार्ड सुनते रहो और वो भी छुप कर, क्योंकि मुसोलिनी ने रविवार के दिन नाचने या रिकार्ड बजाने पर पाबंदी लगा रखी थी। मुझे विएना लौटना अच्छा लगता ताकि वहां पर अपनी प्रेमिका से प्रेम प्रसंग को आगे बढ़ा सकूं लेकिन पेरिस में मुझे एक व्यक्ति से मिलना था और मैं इस मुलाकात से चूकना नहीं चाहता था। मुझे एरिस्टाइड ब्रायंड के साथ लंच करना था। वे युनाइटेड स्टेट्स ऑफ यूरोप के विचार का अमली जामा पहनाने वाले और उसके संरक्षक थे। जिस वक्त मैं मिस्टर ब्रायंड से मिला, उनका स्वास्थ्य नाज़ुक चल रहा था और वे दिग्भ्रमित और ज़माने भर के सताये हुए लग रहे थे। लंच का आयोजन ले'इन्ट्रासिजिएन के प्रकाशक मिस्टर बाल्बी के यहां था और ये बेहद मज़ेदार आयोजन रहा, भले ही मैं फ्रांसीसी भाषा नहीं बोला, काउन्टेस दे नोआइलेस, स्मार्ट, पंछी की तरह नन्हीं सी महिला ने अंग्रेजी में बात की। वे बेहद मज़ाकिया और आकर्षक थीं। मिस्टर ब्रायंड ने यह कहते हुए उनका स्वागत किया,"आजकल आपके तो दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं, आपकी मौजूदगी उतनी ही विरल होती जा रही है जितनी कि किसी की छोड़ी हुई रखैल की हो जाती है।" लंच के बाद मुझे राज प्रासाद एलिसी ले जाया गया और मुझे लीजन द' ऑनर का सम्मान दिया गया।

मैं उस बेइन्तहां भीड़ के पागलपन भरे उत्साह का यहां पर ज़िक्र नहीं करूंगा जो बर्लिन में मेरे दूसरी बार आने पर जुट आयी थी - हालांकि उसका बयान करने से मैं अपने आपको रोक नहीं पा रहा हूं।

प्रसंग आया है तो मुझे मैरी और डगलस द्वारा उनकी विदेश यात्रा पर रिकार्ड की गयी फिल्म का प्रदर्शन याद आ रहा है। मैं एक रोचक यात्रा वृतांत का मज़ा लेने के लिए पूरी तरह से तैयार था। फिल्म शुरू हुई मैरी और डगलस के लंदन पहुंचने के दृश्य से। स्टेशन पर अपार भीड़ जुटी हुई है और होटल के बाहर भी उतनी ही उत्साही भीड़ का कोई ओर छोर नहीं है। होटल की बाहरी सज्जा और लंदन, पेरिस, मॉस्को, विएना और बूदापेस्ट के रेल स्टेशन को दिखाये जाने के बाद मैंने मासूमियत से पूछा,"हम छोटे शहर और गांव देहात कब देखेंगे?" वे दानों हँसे। मैं इस बात को स्वीकार करता हूं कि मैं अपने खुद के स्वागत के लिए जुटी भीड़ का बयान करने में विनम्र नहीं रहा हूं।

बर्लिन में मैं लोकतांत्रिक सरकार का मेहमान था और एक बेहद आकर्षक जर्मन युवती काउन्टेस यार्क को मेरी अताशे के रूप में नियुक्त किया गया था। ये 1931 का बरस था और कुछ ही अरसा पहले नाज़ियों ने रीचस्टैग में सत्ता हथिया ली थी और मैं इस बात से वाकिफ़ नहीं था कि आधी प्रेस मेरे खिलाफ है। उनका आरोप था कि मैं विदेशी हूं और कि जर्मन इस तरह के सनक भरे प्रदर्शन के जरिये खुद का मज़ाक उड़वा रहे हैं। बेशक, ये नाज़ी प्रेस थी और मैं मासूमियत से इन सारी बातों को जानते हुए भी अनज़ान बना रहा और खूब शानदार वक्त बिताया मैंने। कैसर के एक कज़िन ने कृपापूर्वक मुझे पौट्सडैम और सैन्स सौसी महलों की सैर करायी। मेरे लिए सारे के सारे महल नकली ज़िदगी के स्मारक होते हैं। कुरुचिपूर्ण और भोग विलास के भौंडे प्रदर्शन। उनकी ऐतिहासिक दिलचस्पी के बावजूद जब मैं वर्साइलेस, क्रेमलिन, पौट्सडैम, बकिंघम पैलेस और इस तरह के दूसरे महलों को देखता हूं तो मुझे लगता है कि ज़रूर उन्हें फूल कर कुप्पा हो गये अहंवादियों ने बनवाया होगा। कैसर के कजिन ने मुझे बताया कि सैन्स सौसी फिर भी सुरुचिपूर्ण है, छोटा और अधिक मानवीय है; लेकिन मेरे लिए ये श्रृंगारदान की तरह था और मेरे भीतर उसे देखकर कोई भावना नहीं उपजी।

सबसे ज्यादा डराने वाली और हताश करने वाली जगह थी - बर्लिन का पुलिस संग्रहालय, जहां मैं गया था। कत्ल के शिकार लोगों की, आत्महत्याओं, अमानवीय यंत्रणाओं, और हर तरह की मानवीय विकृतियों की तस्वीरें। मुझे इमारत से बाहर आकर और खुली हवा में सांस लेकर बहुत राहत मिली।

डॉक्टर वौन फुलमुलर, द मिरैकल के लेखक ने अपने घर पर मेरी अगवानी की। वहां मैं कला और थियेटर के जर्मन प्रतिनिधि से मिला। एक और शाम मैंने आइन्सटीन दम्पत्ति के साथ उनके छोटे से अपार्टमेंट में गुजारी। इस बात की व्यवस्था की गयी थी कि मैं जनरल वौन हिडंनबर्ग के साथ खाना खाऊं लेकिन अंतिम पलों में वे बीमार हो गये, इसलिए मैं एक बार फिर दक्षिणी फ्रांस चला गया।

मैंने अन्यत्र कहीं कहा है कि सैक्स का ज़िक्र तो होगा लेकिन उस पर ज़ोर नहीं डाला जायेगा, क्योंकि इस विषय पर मेरे पास नया कहने के लिए कुछ भी नहीं है। अलबत्ता, प्रजनन क्रिया प्रकृति का प्रमुख कारोबार है, और हर व्यक्ति, चाहे वह युवा हो या बूढ़ा, जब किसी औरत से मिलता है तो वह दोनों के बीच सैक्स की संभावनाओं की तलाश करता है। इसी तरह की स्थितियां मेरे साथ हमेशा होती रही हैं।

काम के दौरान, औरतें कभी भी मेरी रुचि नहीं जगातीं; यह दो फिल्मों के बीच के अरसे के दौरान ही होता कि मेरे पास करने के लिए कुछ भी न होता और मैं कमज़ोर पड़ जाता। जैसा कि एच जी वेल्स ने कहा है, "दिन में एक ऐसा पल आता है जब आपने सुबह के वक्त अपने पत्र लिख लिये हैं, दोपहर के वक्त अपनी डाक वगैरह निपटा ली है और उसके बाद आपके पास करने के लिए कुछ भी नहीं होता। तब वह घड़ी आती है जब आप बोर हो जाते हैं; यही वक्त सैक्स के लिए होता है।"

इसलिए, जब कोटे द'अजूर पर मेरे पास जब करने के लिए कुछ भी नहीं था तो मेरे सौभाग्य से मेरा परिचय एक बहुत ही कमनीय लड़की से कराया गया जो बोरियत के घंटों को परे करने के लिए सारी ज़रूरतें पूरी करती थी। वह भी मेरी तरह छड़ी छांट थी और हम दोनों ने एक दूसरे को पहली ही बार, जो जैसा है, के आधार पर पसंद कर लिया। उसने मुझसे अपना रहस्य बांटा कि वह अभी अभी ही एक युवा इजिप्ट लड़के से अपने दुखद प्रेम प्रसंग से उबरी है। हालांकि हमने अपने संबंधों के बारे में चर्चा नहीं की थी, फिर भी हम समझते थे, उसे पता था कि मैं आखिरकार अमेरिका लौट जाऊंगा। मैं उसे साप्ताहिक भत्ता दिया करता और हम एक साथ कैसिनो में, रेस्तराओं में और मेले ठेलों में जाते। एक साथ खाना खाते, नाचते और अमूमन ऐसे मौकों पर की जाने वाली सभी मस्तियां करते। लेकिन मैं उसके सौन्दर्य के जाल में फंसता चला गया और अनहोनी हो गयी; मैं भावनात्मक रूप से उससे जुड़ गया और अमेरिका वापिस जाने के बारे में सोचने लगा। मैं पक्के तौर पर फैसला नहीं कर पा रहा था कि उसे पीछे छोड़ कर जाऊं या नहीं। उसे छोड़ने के ख्याल मात्र से मैं बेचारगी महसूस करने लगता; वह हंसमुख, आकर्षक और सहानुभुति से भरी थी। इसके बावजूद, बीच-बीच में ऐसे मौके आते, जब अविश्वास सिर उठाने लगता।

एक दोपहरी, द' दासां में एक कैसीनो में उसने अचानक मेरा हाथ थाम लिया। वहां पर एस. था। उसका ईजिप्शियन प्रेमी, जिसके बारे में उसने मुझे बहुत कुछ बताया था। मैं हक्का बक्का। अलबत्ता, कुछ ही पल बाद हम वहां से चले गये। जैसे ही हम होटल के नज़दीक पहुंचे, उसने अचानक पाया कि वह अपने दस्ताने वहीं छोड़ आयी है और उसे उन दस्तानों को वापिस लाने के लिए जाना ही पड़ेगा। उसने मुझसे कहा कि मैं आगे चलूं। उसका बहाना एकदम साफ था। मैंने उसे बिल्कुल भी नहीं रोका और न ही कोई टिप्पणी ही की। मैं सीधा अपने होटल में चला आया। जब वह दो घंटे बाद भी वापिस नहीं आयी तो मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि मामला दस्तानों से कुछ ज्यादा ही का था। उस शाम मैंने कुछ दोस्तों को डिनर पर बुला रखा था। डिनर का समय नज़दीक आ रहा था और वह अभी भी गायब थी। जिस वक्त मैं उसके बिना कमरे से निकल रहा था तो उसने अपना चेहरा दिखाया। वह पीली और अस्त व्यस्त दिखायी दे रही थी।

"तुम इतनी देर से आयी हो कि डिनर के लिए जाने का समय ही नहीं बचा" मैंने कहा, "इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम अपने गर्म गुदगुदे बिस्तर में लौट जाओ।"

उसने मना किया, गिड़गिड़ायी, हाथ पैर जोड़े लेकिन इतने लम्बे समय तक गैर हाज़िर रहने के पीछे कोई विश्वसनीय कारण नहीं दे पायी। मुझे यकीन हो चला था कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के साथ ही थी और उसकी लंतरानियां सुनने के बाद मैं उसके बिना ही चला गया।

कौन ऐसा होगा जो बिसूरते हुए सैक्सोफोन के शोर और नाइट क्लब के हंगामें और शोर शराबे के बीच शोर से भी ऊंची आवाज़ में बात करते हुए अचानक आ गये अकेलेपन से हताश नहीं बैठा होगा? आप दूसरों के साथ बैठे हैं, आप मेज़बानी कर रहे हैं लेकिन भीतर ही भीतर आप टूटे हुए हैं। जब मैं होटल में वापिस लौटा तो वह वहां पर नहीं थी। इस बात ने मुझे संकट में डाल दिया। क्या वह पहले ही जा चुकी है? इतनी जल्दी? मैं उसके बेडरूम में गया और ये देखकर मुझे बहुत राहत मिली कि उसके कपड़े और दूसरी चीजें अभी भी वहीं थीं। वह दस मिनट में ही आ गयी। वह खुश थी और अच्छे मूड में थी। उसने बताया कि वह एक फिल्म देखने चली गयी थी। मैंने उसे ठण्डेपन के साथ बताया कि अगले दिन मैं पेरिस के लिए निकल रहा हूं और उसके साथ सारा हिसाब किताब निपटा दूंगा और निश्चित ये हमारे संबंधों का पूर्ण विराम है। उसने इन सारी बातों को स्वीकार कर लिया, लेकिन वह इस बात से इन्कार करती रही कि वह अपने इजिप्शियन प्रेमी के साथ थी।

"जो भी दोस्ती बची है," मैंने कहा,"तुम उसे इस धोखे पर टिके रह कर खत्म कर रही हो"। तब मैंने उससे झूठ बोला और उसे बताया कि मैं उसका पीछा करता रहा था और कि जब वह कैसिनो से गयी तो अपने प्रेमी के साथ उसके होटल चली गयी थी। मुझे यह देख कर हैरानी हुई कि वह रो पड़ी और इन बात को स्वीकार किया कि हां, ये सच था। उसने कसमें खायीं और वचन दिये कि वह फिर कभी अपने प्रेमी से नहीं मिलेगी।

अगली सुबह जब मैं पैक कर रहा था और निकलने की तैयारी कर रहा था, वह हौले-हौले रोने लगी। मैं अपने एक दोस्त की कार में जा रहा था। दोस्त बताने के लिए आया कि सब कुछ तैयार है और कि वह नीचे इंतज़ार कर रहा है। लड़की ने अपनी अनामिका उंगली दांतों तले दबायी और अब जोर जोर से रोने लगी। "मुझे छोड़कर मत जाइए, प्लीज़" प्लीज़ मुझे छोड़कर मत जाइए।"

"अब तुम मुझसे क्या उम्मीद करती हो?" मैंने ठण्डेपन से पूछा।

"बस, मुझे अपने साथ पेरिस तक जाने दीजिये, उसके बाद, मैं आपसे वादा करती हूं कि आपको फिर कभी परेशान नहीं करूंगी," उसने जवाब दिया।

वह इतनी दयनीय नज़र आ रही थी कि मैं कमज़ोर पड़ गया। मैंने उसे चेताया कि ये एक दुख देने वाली यात्रा होगी और कि इस बात का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि ज्यों ही हम पेरिस में पहुंचेंगे, हम अलग हो जायेंगे। उसने सारी बातें मान लीं। उस सुबह हम तीनों अपने दोस्त की कार में पेरिस के लिए रवाना हुए।

शुरू-शुरू में यात्रा में सभी खामोश बने रहे। लड़की शांत और सहमी। मैं ठण्डा और विनम्र लेकिन इस तरह के रुख को बनाये रखना मुश्किल था। इसलिए जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती रही, सांझी रुचि की कोई किसी चीज़ पर हमारी निगाह प़ड़ जाती और हममें से कोई कुछ न कुछ कह देता। लेकिन ये सब हमारी पहले वाली अंतरंगता के दायरे से बाहर था।

हम सीधे लड़की के होटल में गये और मैंने उसे विदा के दो शब्द कहे। उसका ये दिखावा कि ये उसकी अंतिम विदाई है, दयनीय तरीके से साफ-साफ नज़र आ रहा था। मैंने उसके लिए जो कुछ भी किया था, उसके लिए उसने आभार माना, मुझसे हाथ मिलाया और फिर ड्रामाई गुडबाय के साथ अपने होटल में गायब हो गयी।

अगले दिन उसने मुझे फोन किया कि क्या मैं उसे लंच कराऊंगा। मैंने मना कर दिया। लेकिन जैसे ही मेरा दोस्त और मैं होटल से बाहर निकले, वह बाहर ही खड़ी थी और उसने फर के कपड़े और न जाने क्या क्या पहना हुआ था। इसलिए हम तीनों ने एक साथ लंच लिया और उसके बाद हम मालमाइसन गये जहां पर नेपोलियन द्वारा तलाक दिये जाने के बाद जोसेफाइन रही थी और बाद में वहीं मरी थी। ये एक खूबसूरत घर था जिसमें जोसेफाइन ने आठ आठ आंसू बहाये थे। ये एक अंधियारा, पतझड़ का दिन था जो हमारी परिस्थिति की उदासी से मेल खाता था। अचानक मैंने पाया कि मेरी महिला मित्र गायब है; तब मैंने देखा कि वह पार्क में पत्थर की बेंच पर बैठी रोये जा रही है - ऐसा लगा कि पूरे माहौल ने उस पर असर डाल दिया था। अगर ये सब मेरी वज़ह से हुआ होता तो मुझे अफसोस हुआ होता लेकिन मैं उसके इजिप्शियन प्रेमी को नहीं भूल पाया। इस तरह से हम पेरिस में जुदा हो गये और मैं लंदन के लिए चल दिया।

लंदन वापिस आने के बाद मैं प्रिंस ऑफ वेल्स से कई बार मिला। पहली बार उनसे मेरी मुलाकात मेरी एक मित्र लेडी फर्नेस की मार्फत बियारिट्ज में हुई। कोचेट, टेनिस खिलाड़ी, दो अन्य मित्र और मैं एक लोकप्रिय रेस्तरां में बैठे थे जब प्रिंस और लेडी फर्नेस आये। लेडी फर्नेस ने हमारी मेज पर एक पर्ची भेजी और जानना चाहा कि क्या हम बाद में रशियन क्लब में उनसे मिलना चाहेंगे।

मेरा ख्याल है, ये एक छोटी सी औपचारिक मुलाकात थी। जब हमारा परिचय करा दिया गया, महामहिम प्रिंस ने ड्रिंक्स का आर्डर दिया। तब वे खड़े हो गये और लेडी फर्नेस के साथ नृत्य करने लगे। जब प्रिंस मेज़ पर वापिस आये, तो मेरी बगल में बैठे और क्लास लेने लगे: "आप बेशक अमेरिकी हैं न" उन्होंने पूछा।

"नहीं, मैं अंग्रेज़ हूं।"

वे हैरान नज़र आये, "आपको अमेरिका में रहते कितना अरसा हो गया है?"

"1910 से।"

"ओह" उन्होंने सोचते हुए सिर हिलाया, "युद्ध से पहले से?"

"मेरा ख्याल है।"

वे हँसे।

उस रात बातचीत के दौरान मैंने उनसे कहा कि चालियापिन मेरे सम्मान में एक पार्टी दे रहे हैं। एकदम लड़कपन के तरीके से प्रिंस ने कहा कि वे भी उस पार्टी में आना चाहेंगे।

"ज़रूर, महाशय" मैंने कहा,"चालियापिन आपको अपने बीच पाकर गौरव अनुभव करेंगे और प्रसन्न होंगे।" मैंने उनसे अनुमति मांगी कि इसकी व्यवस्था कर लूं।

उस शाम प्रिंस ने उस वक्त मेरा दिल जीत लिया जब वे चालियापिन की मां के साथ बैठे। वे अस्सी पार कर चुकी बुढ़िया थीं। मां जी के चले जाने तक वे उनके पास ही बैठे रहे। बाद में वे हमसे आ मिले और मौज मस्ती करने लगे।

और अब प्रिंस ऑफ वेल्स लंदन में थे और उन्होंने मुझे देहात में अपने घर फोर्ट बेल्डेवियर में आमंत्रित किया था। ये एक पुराना सा किला था जिसे नया रूप दिया गया था और यूं कहें कि साधारण रुचि से सजाया गया था। लेकिन खाना पीना उत्कृष्ट था और प्रिंस बहुत ही प्यारे मेजबान थे। उन्होंने मुझे अपना घर दिखाया; उनका बेडरूम साधारण था और उसमें आधुनिक लाल रेशम के पर्दे और चादरें वगैरह थे। बिस्तर पर सिर की तरफ राजसी प्रतीक बना हुआ था। दूसरा बेडरूम देखकर मैं हैरान रह गया। चार स्तंम्भ वाले बिस्तर पर गुलाबी और सफेद आकृतियां बनी थीं और हरेक स्तम्भ के ऊपर तीन गुलाबी पंख बने हुए थे। तब मुझे याद आया; बेशक, ये पंख प्रिंस के राजसी कोट की बांह पर भी थे।

उस शाम किसी ने एक ऐसे खेल के बारे में बताया जो अमेरिका में प्रचलित था। इसे दो टूक अनुमान अर्थात "फ्रैंक एस्टीमेशन" कहते थे। प्रत्येक मेहमान को एक कार्ड दे दिया जाता जिस पर दस गुण लिखे होते: आकर्षण, बौद्धिकता, व्यक्तित्व, सेक्स अपील, अच्छा चेहरा-मोहरा, ईमानदारी, हास्य बोध, परिस्थिति के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता और इसी तरह से दूसरे गुण। मेहमान को कमरे में से जाना होता और उससे पहले अपनी विशेषताओं के बारे में दो टूक अनुमान अपने कार्ड पर दर्ज करना होता और अपने प्रत्येक गुण के लिए अधिकतम एक से दस तक अंक देने होते। मिसाल के तौर पर मैंने अपने आपको हास्य बोध के लिए सात, सेक्स अपील के लिए छ:, अच्छे चेहरे के लिए छ:, खुद को परिस्थिति के अनुसार ढालने की क्षमता के लिए आठ, ईमानदारी के लिए चार अंक दिये। इस बीच, हरेक मेहमान उस व्यक्ति के बारे में अपना मूल्यांकन देता जो कमरे से बाहर गया होता और गुप्त रूप से उसके कार्ड पर अंक दर्ज करता। तब अमुक व्यक्ति भीतर वापिस आता और वह अंक पढ़ता जो उसने स्वयं को दिये होते, और एक प्रवक्ता वे सारे अंक ज़ोर से पढ़ कर सुनाता जो मेहमानों ने उसे दिये होते और इस तरह देखा जाता कि दोनों तरह के अंकों में कितना फर्क है।

जब प्रिंस का नम्बर आया तो उन्होंने बताया कि उन्होंने सैक्स अपील के लिए तीन अंक दिये हैं, मेहमानों ने उन्हें चार के औसत से अंक दिये थे। मैंने पांच दिये थे, किसी किसी के कार्ड पर उन्हें सेक्स अपील के लिए सिर्फ दो अंक दिये गये थे। अच्छे चेहरे के लिए प्रिंस ने खुद को छ: दिये थे, मेहमानों का औसत आठ का था और मैंने उन्हें सात दिये थे। आकर्षण के लिए उनके खुद के अंक पांच थे, मेहमानों ने आठ दिये थे और मैंने भी उन्हें आठ ही अंक दिये थे। ईमानदारी के लिए प्रिंस ने अपने आपको अधिकतम दस अंकों से नवाजा था, मेहमानों का औसत साढ़े तीन का था और मैंने उन्हें चार अंक दिये थे। प्रिंस नाराज़ हो गये; "मेरा ख्याल है, मेरे पास मेरा सबसे अच्छा गुण ईमानदारी ही है," वे बोले।

अपने बचपन के दिनों में मैं मैनचेस्टर में कई महीने रहा था। और अब चूंकि मेरे पास करने को कोई काम नहीं था, मैंने सोचा, जल्दी से एक ट्रिप मानचेस्टर का लगा लिया जाये और उन जगहों को देखा जाये। मनहूसियत के बावजूद मानचेस्टर के लिए मेरे मन में रूमानी अपील थी; कोहरे और बरसात की धुंधली रौशनी की तरह कुछ; शायद ये लंकाशायर की किचन की आग की स्मृति बची रही हो या शायद वहां के लोगों की भावना काम कर रही हो। इसलिए मैंने एक लिमोज़िन किराये पर ली और उत्तर की तरफ चल पड़ा।

मॉनचेस्टर जाते समय मैं रास्ते में स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवॉन में रुका। इस जगह मैं कभी नहीं आया था। मैं शनिवार की रात देर से पहुंचा था और खाना खाने के बाद यूं ही टहलने के लिए निकला। मैं उम्मीद कर रहा था कि शेक्सपीयर की कुटिया खोज लूंगा। काली अंधियारी रात थी लेकिन मैं अन्तर्प्रेरणा से एक गली में मुड़ा और एक घर के बाहर रुक गया, माचिस की तीली जलायी और बोर्ड देखा,"शेक्सपीयर कॉटेज"! इसमें कोई शक नहीं कि किसी दयालु आत्मा ने, शायद महाकवि की ही आत्मा ने मुझे रास्ता दिखाया था।

सवेरे आर्चीबाल्ड फ्लॉवर, स्ट्रैटफोर्ड के मेयर होटल में आये और मुझे शेक्सपीयर की कॉटेज में घुमाया। मैं किसी भी तरह से इस कॉटेज सेमहाकवि को नहीं जोड़ पाता; कि इस तरह का मस्तिष्क कभी यहां रहा होगा या उसकी शुरुआत यहां से हुई होगी। ये बात अविश्वसनीय सी लगती है। इस बात की आसानी से कल्पना की जा सकती है कि किसी किसान का बेटा लंदन में बसने चला जाये और वहां पर एक सफल अभिनेता और थियेटर का मालिक बन जाये; लेकिन उसके लिए महाकवि और नाटककार बनना, और विदेशी न्यायालयों की, पादरियों की और राजाओं की इतनी विशद जानकारी रखना मेरे गले से नीचे से नहीं उतरता। मुझे इस बात की परवाह नहीं है कि शेक्सपीयर की रचनाएं किसने लिखीं, बेकन ने, साउथम्पटन ने या रिचमण्ड ने, लेकिन मैं इस बात पर यकीन नहीं कर सकता कि वह स्ट्रैटफोर्ड का छोकरा था। उन रचनाओं को जिसने भी लिखा, उसका राजसी नज़रिया था। व्याकरण के लिए उसका बिल्कुल भी परवाह न करना उसके राजसी नज़रिये का, ईश्वरीय मस्तिष्क ही परिचायक हो सकता है। इसके अलावा, कॉटेज को देख लेने के बाद, उनके बेसिलसिलेवार बचपन के बारे में स्थानीय रूप के छिटपुट जानकारी पा लेने के बाद और उनके भदेस नज़रिये के बारे में पता चलने के बाद मैं इस बात पर विश्वास ही नहीं कर सकता कि उनका इस तरह से कायान्तरण हुआ होगा कि वे अब तक के सबसे बड़े कवि बन गये। कितने भी महान रचनाकार की कृतियों से आप गुज़रें, आपको उनकी विनम्र शुरुआत के चिह्न कहीं न कहीं मिल ही जाते हैं लेकिन शेक्सपीयर में उनकी ज़मीन के निशान कहीं नहीं नज़र आते। स्ट्रैटफोर्ड से मैं मोटर में मानचेस्टर की तरफ चला और दोपहर को लगभग तीन बजे पहुंचा। रविवार का दिन था और मानचेस्टर सुनसान नज़र आ रहा था। गलियों में एक भी आदमी चलता फिरता नज़र नहीं आ रहा था। इसलिए मैं खुशी खुशी अपनी कार में वापिस आया और ब्लैकबर्न के अपने रास्ते पर चल दिया।

शरलोक होम्स नाटक के साथ एक बच्चे के रूप में यात्राएं करते हुए ब्लैकबर्न शहर मेरी पंसदीदा जगह हुआ करती थी। मैं एक छोटे से पब में रहा करता था और मुझे खाने और रहने की सुविधा चौदह शिलिंग प्रति सप्ताह की दर से मिली हुई थी। जब मैं खाली होता तो उनकी छोटी-सी बिलियर्ड मेज पर खेला करता। बिलिंगटन, इंगलैंड के जल्लाद भी अक्सर उस जगह पर आया करते और मैं ये शेखी बघारा करता था कि मैंने उनके साथ बिलियर्ड्स खेली है।

जिस वक्त हम ब्लैकबर्न में पहुंचे, हालांकि अभी पांच ही बजे थे लेकिन काफी अंधेरा हो चला था। मुझे अपना पब मिल गया और मैंने बिना पहचान में आये एक ड्रिंक लिया, पब के मालिक बदल चुके थे लेकिन मेरी पुरानी दोस्त बिलियर्ड्स की मेज अभी भी वहीं थी। इसके बाद मैं अंधेरे में रास्ता तलाशता हुआ बाजार के चौराहे पर पहुंचा। वहां तीन चार एकड़ का इलाका था और इसे रौशन करने के लिए तीन या चार स्ट्रीट लैम्प ही काफी होते। वहां पर कई समूहों में लोग राजनैतिक वक्ताओं को सुन रहे थे। यह वह वक्त था जब इंगलैंड में मंदी की बुरी हालत थी। मैं एक समूह से दूसरे समूह में जाता रहा और उनके भाषण सुनता रहा। कुछ वक्ता तीखेपन से और कड़ुवाहट घोलते हुए बोल रहे थे; एक वक्ता समाजवाद की बात कर रहा था, दूसरा साम्यवाद की विरुदावली गा रहा था और तीसरा डगलस योजना की बात कर रहा था जो दुर्भाग्य से इतनी जटिल थी कि औसत कामगार के पल्ले ही नहीं पड़ रही थी। बैठक के बाद जो छोटे छोटे समूह बन गये थे, उन्हें सुनते हुए मैं हैरान हुआ कि एक पुराना विक्टोरिया कालीन कन्जर्वेटिव पार्टी का आदमी अपने विचार व्यक्त कर रहा था। उसने कहा,"इंगलैंड के साथ मुसीबत ये है कि बाहरी मदद से इंगलैंड बरबाद हो रहा है।" उस अंधेरे में मैं अपनी दो कौड़ी की राय देने से अपने आपको नहीं रोक पाया, इसके लिए ज़ोर से बोल पड़ा,"बिना बाहरी मदद के इंगलैंड ही नहीं रहेगा"। मेरी बात के समर्थन में कई लोगों ने हैय, हैय करके आवाज़ उठायी। राजनैतिक नज़रिया पागलपन से भरा था। इंगलैंड में लगभग चालीस लाख लोग बेरोजगार थे और ये संख्या बढ़ती जा रही थी। इसके बावजूद लेबर पार्टी के पास कंजर्वेटिव पार्टी से अलग हट कर देने के लिए कुछ भी नहीं था।

मैं वूलविच की तरफ निकल गया और वहां पर मिस्टर कनिंघम रीड का चुनावी भाषण सुना। वे उदारवादी प्रत्याशी की तरफ से बोल रहे थे। हालांकि वे राजनैतिक कुतर्क के बारे में बहुत कुछ बोल रहे थे, उन्होंने कोई वायदा नहीं किया और न ही उस चुनाव क्षेत्र पर कोई प्रभाव ही छोड़ा। मेरे पास ही बैठी एक युवा कॉकेनी लड़की चिल्लायी,"इस बकवास को तो आप रहने ही दीजिये। आप हमें ये बताइए कि चालीस लाख बेरोज़गारों के लिए आप क्या करने जा रहे हैं। उसके बाद ही हम तय करेंगे कि आपकी पार्टी को वोट दिया जाये या नहीं।" अगर वह लड़की आम राजनैतिक कार्यकर्ता का उदाहरण थी तो इस बात की उम्मीद थी कि लेबर पार्टी चुनाव जीत जाती। मैंने ये सोचा लेकिन मैं गलती पर था। रेडियो पर स्नोडेन के भाषण को सुन लेने के बाद ये कन्जर्वेटिव वालों के लिए रुख बदल देने वाला मामला था और स्नोडेन के लिए अमीरों का पद। इस तरह से मैंने जब इंगलैंड छोड़ा तो कन्जर्वेटिव पार्टी आ रही थी और जब अमेरिका पहुंचा तो वहां की कन्जर्वेटिव पार्टी की सरकार बाहर का रुख कर रही थी।

छुट्टियों का सबसे बड़ा मज़ा खालीपन होता है। मैं यूरोप के रिजार्टस् पर बहुत दिनों तक भटकता रहा था। और मैं जानता था, क्यों? मेरे पास कोई मकसद नहीं था और कुंठित था। फिल्मों में आवाज़ के आ जाने के बाद मैं अपनी भावी योजनाओं के बारे में तय नहीं कर पा रहा था। हालांकि सिटी लाइट्स बहुत सफल फिल्म रही थी और उसने उस वक्त की सवाक फिल्मों की तुलना में अधिक कारोबार किया था, मैंने सोचा कि एक और मूक फिल्म बनाना अपने हाथ बांध लेने जैसा होगा और मेरे मन में यह डर भी बैठा हुआ था कि मुझ पर पुराने फैशन का होने का ठप्पा लग जायेगा। हालांकि एक अच्छी मूक फिल्म अधिक कलात्मक होती। मुझे ये बात स्वीकार करनी पड़ी कि आवाज में चरित्र अधिक जीवंत हो उठते हैं।

बीच बीच में मैं सवाक फिल्म बनाने की संभावनाओं के बारे में सोचने लगता। लेकिन इस विचार से ही मुझे कोफ्त होने लगती क्योंकि मैं इस बात को जानता था कि मैं वहां पर अपनी मूक फिल्मों की उत्कृष्टता को कभी भी हासिल नहीं कर पाऊंगा। इसका मतलब ये होता कि मुझे अपने ट्रैम्प चरित्र को हमेशा के लिए छोड़ देना पड़ता। कुछ लोगों ने सुझाव दिया कि ट्रैम्प बात भी तो कर सकता है। इसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था, क्योंकि जहां उसने पहला शब्द बोला कि वह एकदम दूसरे व्यक्ति में परिवर्तित हो जायेगा। इसके अलावा, वह वह सांचा, वह मैट्रिक्स, जिसमें उसका जन्म हुआ था वह उतना ही चुप्पा था जिस तरह के चीथड़े वह पहनता था।

ये ही उदास करने वाले ख्याल थे कि जो मेरी छुट्टियों को बढ़ाये जा रहे थे। लेकिन मेरी अंतरात्मा मुझे लगातार कोंचती रहती थी कि "हॉलीवुड वापिस चलो और काम करो!"

उत्तरी इंगलैण्ड की अपनी ट्रिप के बाद मैं लंदन में कार्लटन में लौटा और न्यू यार्क होते हुए कैलिफोर्निया वापिस जाने के लिए आरक्षण आदि करवाने के बारे में सोचने लगा। तभी सेंट मौरिट्ज से आये डगलस फैयरबैंक्स के तार ने मेरी योजना को ही बदल डाला। तार में लिखा था,"सेंट मौरिट्ज चले आओ। हम तुम्हारे आगमन पर नये हिमपात का आदेश दे देंगे। तुम्हारा इंतज़ार रहेगा। प्यार, डगलस।"

मैंने अभी तार पढ़ा ही था कि दरवाजे पर हल्की सी ठक ठक हुई। मैंने सोचा कि वेटर होगा इसलिए कह दिया, "आ जाओ। इसके बजाये, कोटे द'अजूर वाली मेरी महिला मित्र का चेहरा नज़र आया। मैं हैरान हुआ, चिड़चिड़ाया और हार मान ली, "आ जाओ।" मैंने ठंडेपन से कहा। हम हैरोड्स में शॉपिंग के लिए गये और स्कीइंग का साजो-सामान खरीदा। तब हम बाँड स्ट्रीट में ज्वेलरी की दुकान में गये और एक ब्रेसलेट खरीदा। ब्रेसलेट पा कर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। एक या दो दिन की देरी से हम सेंट मॉरिट्ज पहुंचे। वहां डगलस फेयरबैंक्स को देख कर मेरा सीना चौड़ा हो गया। हालांकि डगलस भी अभी तक मेरी ही तरह अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित थे, हम दोनों ने ही इस बारे में कोई बात नहीं की। वे अकेले थे। मेरा ख्याल है वे और मैरी अलग हो चुके थे। अलबत्ता, स्विट्जरलैण्ड के पहाड़ों पर मिलने में हमारी उदासी छू मंतर हो गयी।

हम एक साथ स्कीइंग करते रहे। कम से कम एक साथ स्कीइंग करना सीखा तो सही।

भूतपूर्व जर्मन राजकुमार, कैसर के पुत्र भी उसी होटल में थे लेकिन मैं उनसे कभी नहीं मिला। हालांकि अगर हम दोनों कभी एक ही लिफ्ट में होते तो मैं मुस्कुरा भर देता और मुझे अपनी कॉमेडी शोल्डर आर्म्स की याद आ जाती जिसमें राजकुमार को एक कॉमेडी चरित्र के रूप में पेश किया गया था।

सेंट मारिट्ज में ही रहते हुए मैंने अपने भाई सिडनी को भी बुलवा लिया। अब चूंकि बेवरली हिल्स लौटने की कोई हड़बड़ी नहीं थी, मैंने तय किया कि पूर्व की ओर से होते हुए कैलिफोर्निया लौटा जाये। सिडनी इस बात के लिए सहमत हो गया कि वह जापान तक मेरा साथ देगा। हम नेपल्स के लिए चले। वहां मैंने अपनी महिला मित्र को गुडबाय कहा। अब आंसू नहीं थे। मैंने सोचा कि उसने स्थितियों को स्वीकार कर लिया था और कुछ हद तक राहत महसूस कर रही थी। क्योंकि स्विट्जरलैण्ड की यात्रा में हमारे आपसी आकर्षण के सारे रसायन अब कुछ हद तक मंद हो चुके थे और इस बात को हम दोनों ही जानते थे। इसलिए हम अच्छे दोस्तों की तरह विदा हुए। जैसे ही नाव चली, वह तटबंध पर मेरे ट्रैम्प की नकल करते हुए चल रही थी।

तभी मैंने उसे आखरी बार देखा था।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 20

पूरब के बारे में पहले से ही कई उत्कृष्ट पर्यटन किताबें लिखी गयी हैं इसलिए मैं पाठक के धैर्य की परीक्षा नहीं लूंगा। अलबत्ता, मेरे पास जापान के बारे में लिखने के लिए एक बहाना है क्योंकि मैं वहां पर अजीबो-गरीब हालात में पहुंचा था। मैंने जापान के बारे में लाफकाडियो हर्न की एक किताब पढ़ी थी और उन्होंने जापानी संस्कृति और उनके थियेटर के बारे में जो कुछ लिखा था, उससे जापान जाने के बारे में मेरी इच्छा बढ़ गयी थी।

हमने एक जापानी जहाज में यात्रा की। इसने जनवरी की बर्फीली हवाओं में तट छोड़ा था और सुएज नहर में गर्मी के मौसम में प्रवेश करने वाला था। एलेक्जेंड्रिया तट पर उसमें नये यात्री चढ़े। अरब और हिन्दू। दरअसल उनके आने से हमारे सामने एक नयी दुनिया खुली। सूर्यास्त के वक्त अरब डेक पर अपनी चटाइयां बिछा देते और मक्का की तरफ मुंह करके नमाज पढ़ते।

अगली सुबह हम लाल सागर में थे। इसलिए हमने अपने औपचारिक कपड़े लबादे जैसे कपड़े उतार फेंके और सफेद निकरें और हल्की रेशमी कमीजें पहन लीं। हमने अपने साथ गर्म देशों वाले फल और नारियल एलेक्जेंड्रिया में ही भर लिये थे इसलिए नाश्ते में हम आम लेते और डिनर के वक्त बर्फ से ठंडा किया गया नारियल दूध लेते। एक रात हमने जापानी ढंग अपना लिया और डेक के फर्श पर डिनर लिया। मुझे जहाज के अधिकारी ने बताया कि अगर मैं अपने चावलों पर थोड़ी सी चाय डाल दूं तो उनका स्वाद बढ़ जाता है। जैसे जैसे जहाज दक्षिणी तट के नजदीक पहुंचा तो हमारा रोमांच बढ़ने लगा। जापानी कप्तान ने शांत स्वर में बताया कि हम अगली सुबह कोलम्बो पहुंचने वाले हैं। हालांकि सीलोन जाना एक मोहक अनुभव था, हमारी इच्छा थी कि हम बाली और जापान पहुंचें।

हमारा अगला पत्तन सिंगापुर था जहां पर हम चीनी शैली के बेंत की तरह लचीली प्लेट के परिवेश में जा पहुंचे। वहां पर समुद्र के बीचों बीच वट वृक्ष उगते हैं। मुझे सिंगापुर की जो सबसे शानदार स्मृति है वो है उन चीनी अभिनेताओं की जो न्यू वर्ल्ड एम्यूजमेंट पार्क में प्रदर्शन करते थे। उन बच्चों को ईश्वरीय देन थी अभिनय की क्योंकि उनके नाटकों में महान चीनी नाटककारों के कई कई महान कृतियां शामिल थीं। वे लोग परम्परागत तरीके से पैगोडा में प्रदर्शन कर रहे थे। जो नाटक मैंने देखा, वह तीन रात तक चलता रहा। कलाकारों की मंडली में से जो प्रमुख अभिनेत्री थी, वह पन्द्रह बरस की लड़की थी और उसने राजकुमार का अभिनय किया था। वह ऊंचे, उत्तेजनापूर्ण स्वर में गा रही थी। तीसरी रात क्लाइमेक्स की थी। कई बार ये बहुत अच्छा होता है कि आप भाषा नहीं जानते क्योंकि जितना अधिक असर अंतिम अंक ने छोड़ा और किसी चीज़ का उतना असर हो ही नहीं सकता था। संगीत की व्यंग्यपूर्ण धुनें, कांपती तारें, और घंटों की तूफानी टकराहट और एकांत आकाश में क्रोध में चिल्लाती निर्वासित युवा राजकुमार की बेधती उस वक्त की भारी आवाज़ जिस वक्त वह अंतिम रूप से मंच से जाता है।

सिडनी ने इस बात की सिफारिश की कि बाली द्वीप चला जाये। उसने बताया कि ये अभी भी आधुनिक सभ्यता से अछूता है और ये भी बताया कि वहां की औरतें अभी भी नंगे सीने के साथ चलती हैं और बेहद खूबसूरत होती हैं। इन बातों से मेरी रुचि जागृत हो गयी। द्वीप की पहली झलक हमने सुबह के वक्त तब देखी जब सफेद रुई के गालों जैसे बादल हरे पर्वतों के चारों तरफ घेरा बनाये हुए थे और उनकी चोटियां ऐसे लग रही थीं मानो द्वीप हवा में तैर रहे हों। उन दिनों कोई पत्तन या हवाई पट्टी नहीं हुआ करती थी, बस, यात्रियों को अपनी नावों से एक लकड़ी के तट पर उतरना होता था।

हम दालानों में से आगे गुज़रे। ये खूबसूरत दीवारों से घिरे शानदार अहाते थे जिनमें दस बीस परिवार रहते थे। हम जितना अंदर जाते गये, प्रदेश उतना ही खूबसूरत होता चला गया। हरे धान के खेतों के चांदी से चमकते सीढ़ीनुमा खेत हमें घुमावदार झरने की तरफ ले गये। अचानक सिडनी ने मुझे कोंचा। सड़क के किनारे राजसी औरतों की एक पांत जा रही थी। उन्होंने अपनी कमर पर सिर्फ छींट लपेटे हुए थे और उनकी छातियां नंगी थीं। वे अपने सिरों पर टोकरियां लिये हुए थीं जिनमें वे फल लादे हुए थीं। इसके बाद तो हम लगातार एक दूसरे को कोंचते रहे। कुछ तो वाकई बेहद खूबसूरत थीं। हमारा गाइड जो एक अमेरिकी तुर्क था, और आगे ड्राइवर के साथ बैठा हुआ था, बेहद गुस्सा दिला रहा था क्योंकि जब भी हम कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करते, वह ओछेपन के साथ सिर घुमाता मानो उसने हमारे लिए कोई शो रखा हुआ हो।

डेनपासर में होटल अभी हाल ही में बनाया गया था। हरेक बैठक के सामने एक वरांडा था जिसे पिछवाड़े की तरफ सोने के कमरे से अलग किया गया था। सोने के कमरे आरामदायक और साफ सुथरे थे।

हर्चफेल्ड, अमेरिकी वाटर कलर चित्रकार और उसकी पत्नी बाली में दो महीने से रह रहे थे और उन्होंने अपने घर पर हमें आमंत्रित किया। वहां पर उनसे पहले मैक्सिकन कलाकार मिगुएल कुआरीबियास रह चुके थे। उन्होंने ये घर बाली के एक मुखिया से किराये पर ले रखा था और पन्द्रह डॉलर प्रति सप्ताह पर घर के मालिक की तरह शानो शौकत से रह रहे थे। डिनर के बाद हर्चफेल्ड दम्पत्ति, सिडनी और मैं टहलने के लिए निकले। रात अंधियारी और नमकीन थी। हवा नहीं चल रही थी और पत्ता भी नहीं खड़क रहा था। तभी अचानक वहां पर जुगनुओं ने हमला कर दिया और धान के खेतों पर वे नीली रौशनी के उतार चढ़ाव वाली लहरों की तरह फैल गये। दूसरी दिशा से संगीतमय आरोह अवरोह के साथ घंटे बजने और तम्बूरे बजने की आवाज़ें आने लगीं। "कहीं डांस हो रहा है," हर्चफेल्ड ने कहा,"आओ चलें।"

लगभग दो सौ गज दूर, स्थानीय वासी समूहों में खड़े थे या आस पास चौकड़ी मार के बैठे थे। लड़कियां पैर मोड़े टोकरियां और छोटे छोटे लैम्प लिये बैठी थीं और खाने पीने की चीज़ें बेच रही थीं। हम भीड़ में से रास्ता बनाते हुए निकले। हमने दस बरस की उम्र की दो लडकियों को देखा जो क़ढ़ाईदार सारोंग लपेटे हुई थीं और उन्होंने बहुत ही भव्य, सोने के काम वाले सिर के दुपट्टे ओढ़े हुए थे और वे बड़े बड़े पीतल के घंटों में से निकलती गहरी आवाज़ की धुन पर सिर हिलाती नाच रही थीं। ऊंचे सुर में कांपती धुनें बज रही थीं। संगीत की लहरियां किसी तूफानी लहर की तरह ऊपर उठतीं और गम्भीर नदी में उतार की तरह नीचे आ जातीं। अंतिम पल एक दम हतप्रभ कर देने वाले थे। नर्तकियां अचानक ही रुक गयीं और भीड़ में गुम हो गयीं। किसी किस्म की कोई तालियां नहीं बजीं। बाली समाज में कभी तारीफ में ताली नहीं बजायी जाती, न ही उनके पास प्यार या आभार के लिए शब्द ही हैं।

वाल्टर स्पाइस, संगीतकार और पेंटर हमसे मिलने आये और उन्होंने हमारे साथ होटल में लंच लिया। वे पन्द्रह बरस से बाली में रह रहे थे और बाली भाषा बोलते थे। उन्होंने बाली वासियों के संगीत के कुछ हिस्सों को अपने लिए पिआनो की धुनों में ढाल लिया था। उन्होंने वे अंश बजा कर सुनाये। इसका असर दोहरे समय में बजाये गये बाख कोन्सार्टो की तरह का था। बाली वासियों की संगीत की अभिरुचि काफी परिष्कृत है, बताया उन्होंने। हमारे आधुनिक जाज को वे ये कह कर दरकिनार कर देते हैं कि ये धीमा और सुस्त है। मोजार्ट को वे संवेदनशील मानते हैं लेकिन वे सिर्फ बाख को ही पसंद करते हैं क्योंकि उसकी पद्धतियां और धुनें उन्हें अपने खुद के संगीत के निकट जान पड़ती हैं।

मुझे उनका संगीत ठंडा, बेरहम और कुछ हद तक बेचैन करने वाला लगा। यहां तक कि गहरे विषादपूर्ण अंश भी भूखे ग्रीक देव मिनोटार की मनहूस उबासी की तरह थे।

लंच के बाद स्पाइस हमें जंगल के भीतर की तरफ ले गये। वहां पर पताका आरोहण का कोई आयोजन होने वाला था। वहां तक पहुंचने के लिए हमें जंगल के रास्ते से चार मील पैदल चलना पड़ा। जब हम वहां पहुंचे तो हमें लगभग बारह फुट लम्बी पवित्र वेदी को घेर कर खड़े हुए हजारों आदमियों की भीड़ दिखायी दी। नंगी छातियां झलकातीं, सुंदर सारोंग पहने नवयुवतियां थीं वहां। वे अपनी टोकरियों में फल और अर्ध्य की दूसरी वस्तुं लिये पंक्तियों में खड़ी थीं और एक पुजारी, जो दरवेश की तरह लगता था, उसके छाती तक लम्बे बाल थे, और उसने सफेद चोगा पहना हुआ था। वह आशीर्वाद दे रहा था और उनसे पूजा अर्चन का सामान ले कर वेदी पर रख रहा था। जब पुजारी ने अर्चन की आरती गा ली तो खिलखिलाते युवकों ने वेदी पर हल्ला बोल दिया और वहां पर सारी चीज़ें लूट लीं। उनके हाथ जो भी आया, उन्होंने लूटा और पुजारी उन पर बेरहमी से अपने कोड़े बरसाने लगा। कुछ लोगों को लूटा गया अपना सामान लौटा देना पड़ा क्योंकि कोड़े बहुत तीखे पड़ रहे थे और ये मान्यता थी कि इससे उन्हें उन बुरी आत्माओं से मुक्ति मिल जायेगी जो उन्हें चोरी करने के लिए प्रेरित कर रही थीं।

हम जब भी जी चाहता, मंदिर और अहाते के भीतर चले जाते और बाहर आ आते। हमने मुर्गों की लड़ाइयां देखीं, मेलों और धार्मिक विधियों में शामिल हुए। वहां रात दिन अनुष्ठान चलते रहते। एक दिन तो मैं सुबह पांच बजे वापिस आया। उनके देवता मौज मस्ती पसंद करते हैं और बाली के लोग उनकी आराधना डर के मारे नहीं बल्कि स्नेह से करते हैं।

एक रात बहुत देर स्पाइस और मैं मशालों की रौशनी में नाचने वाली एक लम्बी वीरांगना से जा टकराये। उसका बच्चा पीछे बैठा उसकी नकल उतार रहा था। युवा सा दिखने वाला एक आदमी उसे बार बार हिदायतें दे रहा था। बाद में हमें पता चला कि वह आदमी उस लड़की का पिता था। स्पाइस ने उससे उसकी उम्र पूछी।

"भूकम्प कब आया था," उस आदमी ने पूछा।

"बारह बरस पहले," स्पाइस ने बताया।

"तो उस वक्त मेरे तीन शादीशुदा बच्चे थे," अपने जवाब से वह संतुष्ट नजर नहीं आया इसलिए आगे बोला,"मेरी उम्र दो हज़ार डॉलर है।" ये इस बात की घोषणा थी कि मैं अपनी जिंदगी में दो हजार डॉलर जितनी रकम खर्च कर चुका हूं।

कई अहातों में मैंने एकदम नयी लिमोज़िन कारें देखीं जिन्हें मुर्गियों के अंडे सेने के काम में लाया जा रहा था। मैंने स्पाइस से इसका कारण पूछा। उसने बताया,"यहां के अहाते समुदाय के आधार पर चलाये जाते हैं और थोड़े से मवेशियों का निर्यात करके उन्हें जो पैसे मिलते हैं उन्हें ये बचत खाते में डालते रहते हैं और जो वक्त बीतने के साथ साथ बहुत बड़ी रकम हो जाती है। एक दिन कारों का एक होशियार सेल्समैन इनके पास आया और कैडिलैक लिमोजिन कारें खरीदने के बारे में बात करने लगा। पहले कुछ दिन तो उन लोगों ने कारों में खूब मज़ा किया, आस पास सैर सपाटा किया, फिर उनमें पेट्रोल खत्म हो गया। इसके बाद इन लोगों ने पाया कि एक दिन कार चलाने के लिए जितने पैसों के पेट्रोल की ज़रूरत पड़ती है, उतनी तो उनकी पूरे महीने की कमाई है। इसलिए उन्होंने कारों को अहाते में ही छोड़ दिया और अब उनमें मुर्गियां पाली जाती हैं।

बाली वासियों का हास्य बोध भी हमारी तरह ही है और उसमें सैक्स संबंधी लतीफों, स्वयं सिद्ध बातों की भरमार है और वे शब्दों के साथ खिलवाड़ करते हैं। मैंने होटल में एक युवा वेटर के हास्य बोध की परीक्षा ली। "मुर्गे ने सड़क पार क्यों की?" पूछा मैंने।

उसकी प्रतिक्रिया बेहद शानदार थी। "हर कोई इस बात को जानता है।' उसने दुभाषिये से कहा।

"अच्छी बात है, अब ये बताओ कि पहले मुर्गी हुई या अंडा?"

इस सवाल से वह परेशान हो गया। उसने अपना सिर हिलाया, "मुर्गी ..." "अंडा . . ." उसने अपनी पगड़ी पीछे सरकायी, कुछ पलों के लिए सोचा और पूरे विश्वास के साथ घोषणा की, "अंडा।"

"लेकिन अंडा दिया किसने?"

"कछुए ने, क्योंकि कछुआ ही परम सत्ता है और वही सभी अंडे देता है।"

बाली तब स्वर्ग की तरह था। वहां के निवासी चार महीनों तक धान के खेतों में काम करते और अपने बाकी आठ महीने कला और संस्कृति के नाम करते। मनोरंजन पूरे द्वीप में नि:शुल्क था और एक गांव वाले दूसरे गांव में जा कर प्रदर्शन करते। लेकिन अब उस स्वर्ग के दिन लद गये हैं। शिक्षा ने उन्हें अपनी छातियां ढकना सिखा दिया है और अब वे अपने प्रसन्न चित्त रहने वाले देवताओं को पश्चिमी देवताओं के पक्ष में छोड़ रहे हैं।

जापान के लिए निकलने से पहले मेरे जापानी सचिव कोनो ने इच्छा व्यक्त की कि वह पहले जा कर मेरे आगमन की तैयारियां करना चाहेगा। हम सरकार के मेहमान रहने वाले थे। कोबे बंदरगाह पर हमारा स्वागत हमारे जहाज पर चक्कर काटते विमानों ने किया। वे ऊपर से स्वागत के पर्चे गिरा रहे थे। हज़ारों लोगों ने तट पर खुशी से हमारा स्वागत किया। धूंए के बादलों और गंदे धूसर डैक की पृष्ठभूमि में सैकड़ों की संख्या में शोख रंग के किमोनो पहने लड़कियों को देखना किसी स्वर्गतुल्य नज़ारे की तरह था। बेहद खूबसूरत। उस जापानी प्रदर्शन में प्रसिद्ध रहस्यवाद या रुकावट का लेश मात्र भी स्थान नहीं था। यह उसी तरह से उत्तेजना और उत्साह से भरी भीड़ थी जैसी मैंने किसी भी जगह पर देखी थी।

सरकार ने हमारे लिए एक विशेष रेलगाड़ी उपलब्ध करा रखी थी जो हमें टोकियो ले जाने वाली थी। हरेक स्टेशन पर भीड़ और उत्तेजना दोनों ही बढ़ते जाते, प्लेटफार्म खूबसूरत लड़कियों से अटे पड़े रहते और वे लड़कियां हमें उपहारों से लाद देतीं। इसका असर, जिस वक्त वे किमोनो में इंतजार करती खड़ी होतीं, फूलों की प्रदर्शनी की तरह था। टोकियो में तकरीबन चालीस हज़ार की भीड़ हमारे स्वागत के लिए खड़ी हुई थी। भीड़ की धक्का मुक्की में सिडनी गिर गया और उसे लगभग कुचल ही डाला गया था।

पूरब का रहस्य मिथकीय है। मैं हमेशा ही ये मान कर चलता रहा कि पश्चिम वाले उसे बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं। लेकिन जिस पल से हम कोबे बंदरगाह पर उतरे थे, ये रहस्य वहां की फिजां में था और अब टोकियो में ये हमें अपनी गिरफ्त में ले रहा था। होटल की तरफ जाते समय हम शहर के एक शांत इलाके से गुज़रे। अचानक कार धीमी हो गयी और सम्राट के महल के पास रुक गयी। कोनो ने चिंतातुर होते हुए लिमोजिन की खिड़की में से पीछे हमारी तरफ देखा। तब वह मेरी तरफ मुड़ा और एक अजीब सा अनुरोध करने लगा,"क्या मैं कार से बाहर निकलूंगा और महल की तरफ देखते हुए झुकूंगा?"

"क्या ये परम्परा है?" पूछा मैंने।

"हां, उसने यूं ही जवाब दिया,"आपको झुकने की जरूरत नहीं है, बस कार में से उतर भर जाइये, इतनी ही काफी हेगा।"

इस अनुरोध ने मुझे कुछ हद तक परेशानी में डाल दिया क्योंकि हमारे पीछे आ रही दो तीन कारों के अलावा वहां पर कोई भी नहीं था। अगर ये रिवाज का हिस्सा था तो लोगों को पता होता और वहां पर भीड़ जमा हो गयी होती। बेशक छोटी सी ही सही। अलबत्ता, मैं बाहर निकला और सिर झुकाया। जब मैं कार में वापिस आया तो कोनो ने राहत की सांस ली। सिडनी को ये अजीब सा अनुरोध लगा और उसे लगा कि कोनो ने कुछ अजीब सा व्यवहार किया है। जब से हम कोबे में पहुंचे थे, कोनो परेशान लग रहा था। मैंने मामले को रफा दफा कर दिया और कहा कि शायद कोनो कुछ ज्यादा ही मेहनत कर रहा है इसलिए परेशान लग रहा है।

उस रात कुछ नहीं हुआ, लेकिन अगली सुबह सिडनी मेरी बैठक में आया। वह अभी भी उत्तेजित था। "मुझे ये पसंद नहीं है," वह बोला,"मेरे बैगों की तलाशी ली गयी है और मेरे सारे कागजात आगे पीछे कर दिये गये हैं।" मैंने उसे बताया कि भले ही ये सच हो सकता है लेकिन कुछ मायने नहीं रखता। "कुछ न कुछ तो रहस्यमय चल रहा है।" सिडनी ने कहा। लेकिन मैं हँस दिया और उसी पर आरोप लगा दिया कि वह ही कुछ ज्यादा ही शकी होता जा रहा है।

अगली सुबह हमारी देखभाल करने के लिए एक सरकारी एजेंट लगा दिया गया और उसने बताया कि हम कहीं भी जाना चाहें हम उसे कोनो के जरिये बता दें। सिडनी ने फिर इस बात पर ज़ोर दिया कि हम पर निगाह रखी जा रही है और कि कोनो कुछ न कुछ छुपा रहा है। मैं ये स्वीकार करता हूं कि अब कोनो पहले की तुलना में और भी ज्यादा परेशान नज़र आ रहा था।

सिडनी के शक के पीछे कोई न कोई वजह थी। क्योंकि उस दिन एक और अजीब बात हो गयी। कोनो ने बताया कि एक व्यापारी है जिसके पास रेशम के कपड़े पर चित्रित कुछ कामुक नंगी तस्वीरें हैं और वह मुझे ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। वह मुझे अपने घर पर बुला कर ये तस्वीरें दिखाना चाहता है। मैंने कोनो को बताया कि उस आदमी से कह दे कि मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं है। कोनो परेशान नज़र आया।

"अगर मैं उससे कहूं कि वह तस्वीरें होटल में छोड़ जाये?" कोनो ने सुझाव दिया।

"किसी भी हालत में नहीं," कहा मैंने,"बस उससे यही कहो कि अपना समय बरबाद न करे।"

वह हिचकिचाया, "ये लोग न सुनने के आदी नहीं होते।"

"आप बात ही क्या कर रहे हैं?" पूछा मैंने।

"दरअसल, वे मुझे कई दिनों से धमका रहे हैं, टोकियो में उन लोगों का बहुत आतंक है।"

"क्या बेहूदगी है?" मैंने जवाब दिया,"मैं उनके पीछे पुलिस लगा दूंगा।"

लेकिन कोनो ने सिर हिलाया।

अगली रात, जब मेरा भाई सिडनी, कोनो और मैं एक रेस्तरां के प्राइवेट रूप में डिनर ले रहे थे, छ: युवक भीतर आये। एक आदमी कोनो के साथ सट कर बैठ गया और अपनी बांहें मोड़ लीं। जबकि बाकी पांच आगे पीछे होते रहे और खड़े ही रहे। बैठे हुए आदमी ने कोनो से जापानी में दबी हुई आवाज़ में बात करनी शुरू कर दी और। उसने कुछ कहा जिससे कोनो अचानक पीला पड़ गया।

मैं निहत्था था। इसके बावजूद मैंने अपना हाथ कोट के जेब के भीतर लिया मानो मेरे पास रिवाल्वर हो और मैं चिल्लाया,"इस सबका क्या मतलब है?"

कोनो अपनी प्लेट से सिर उठाये बिना कुछ मिनमिनाया,"इसका कहना है कि आपने तस्वीरें देखने से इन्कार करके इसके पूर्वजों का अपमान किया है।"

मैं अपने पैरों पर उछला, और अपने हाथ को कोट की जेब में रखे हुए ही उस युवक की तरफ तेज निगाहों से देखा,"ये सब क्या हो रहा है?" तब मैंने सिडनी से कहा,"चलो हम यहां से चलें। और आप, कोनो, एक टैक्सी मंगवाओ।"

एक बार गली में आ जाने के बाद हम सुरक्षित महसूस कर रहे थे। हमें राहत मिली।

रहस्य से परदा अगले दिन उस वक्त उठा जब प्रधान मंत्री के पुत्र मिस्टर केन इनाकुई ने हमें सुओमी कुश्ती के मैचों में अपने मेहमानों के रूप में आमंत्रित किया। जब हम बैठे और मैच देख रहे थे, एक परिचर आया और उसके कंधे पर थपथपा कर उसके कान में कुछ फुसफुसाया। केन हमारी तरफ मुड़ा और माफी मांग कर चला गया कि कोई खास बात हो गयी है और उसे जाना पड़ेगा लेकिन वह बाद में जल्दी ही लौट आयेगा। कुश्ती खत्म होने के आस पास वह वापिस आया। उसका चेहरा सफेद फक्क था और वह बुरी तरह से भयभीत लग रहा था। मैंने उससे पूछा कि उसकी तबीयत तो ठीक है। उसने सिर हिलाया और अचानक दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लिया,"मेरे पिता को अभी अभी कत्ल कर दिया गया है।"

हम उसे अपने कमरे में लेकर गये और उसे थोड़ी ब्रांडी पिलायी। तब उसने बताया कि क्या हुआ था। जल सेना के छ: कैडेटों ने प्रधान मंत्री के निवास के बाहर तैनात सुरक्षा गार्डों को मार डाला था और उनके निजी आवास में घुस गये थे। वहां पर प्रधान मंत्री अपनी और पुत्री के साथ थे। बाकी कहानी उसे उसकी मां ने बतायी थी: हमलावर बीस मिनट तक पिता के सिर पर बंदूक ताने खड़े रहे जबकि पिता उनसे बहस करके उन्हें समझाने बुझाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बिना कुछ बोले वे गोली मारने ही वाले थे लेकिन पिता ने उसने अनुरोध किया कि वे उन्हें उनके परिवार के सामने न मारें। इसलिए उन लोगों ने पिता को इस बात की इजाज़त दे दी कि वे अपनी पत्नी और पुत्री से विदा ले लें। शांत वे उठे और हत्यारों को दूसरे कमरे में ले गये। वहां उन्होंने हत्यारों को फिर से समझाने की कोशिश की होगी क्योंकि परिवार जान निकाल देने वाले सस्पेंस में बैठा रहा और तभी उन लोगों ने गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और इस तरह से केन के पिता को मार डाला गया।

कत्ल उस समय हुआ जब उनका बेटा कुश्ती मैच देख रहा था। अगर वह हमारे साथ न होता तो उसे भी अपने पिता के साथ मार दिया जाता, कहा था उसने।

मैं उसके साथ उसके घर तक गया और उस कमरे को देखा जहां दो घंटे पहले उसके पिता को मार दिया गया था। कालीन पर अभी भी गीले खून के चहबच्चे थे। वहां पर कैमरामैन और रिपोर्टर बड़ी संख्या में मौजूद थे लेकिन उन्होंने इतनी शालीनता दिखायी कि कोई तस्वीर नहीं ली। अलबत्ता, उन्होंने मुझ पर ज़ोर डाला कि मैं बयान दूं।

मैं सिर्फ यही कह पाया कि ये परिवार और देश के लिए हिला देने वाली त्रासदी है।

जिस दिन ये हादसा हुआ, मुझे प्रधान मंत्री से एक आधिकारिक स्वागत समारोह में मिलना था और बेशक इस आयोजन को कैंसिल कर दिया गया था।

सिडनी ने घोषित कर दिया कि इस कत्ल की कड़ियां ज़रूर एक बड़े रहस्य से जुड़ी हुई हैं और कि इसमें हम किसी न किसी रूप में जुड़े हुए हैं। उसने कहा,"ये एक संयोग से ज्यादा ही है कि छ: कातिलों ने प्रधान मंत्री को मारा और छ: ही आदमी उस रात रेस्तरां में आये थे जब हम खाना खा रहे थे।"

ये तभी हुआ कि बहुत अरसे बाद ह्यूज ब्यास ने बेहद रोचक और सूचनाप्रद पुस्तक गवर्नमेंट बाय एसेसिनेशन लिखी तो सारे रहस्य से पर्दा उठा। इसे अल्फ्रेड ए नॉप्फ ने छापा था। जिसमें जहां तक मेरा सवाल था, पूरे रहस्य पर से पर्दा उठा दिया था। ऐसा लगता है कि ब्लैक ड्रैगन नाम की एक सोसाइटी उस समय सक्रिय थी और उन्होंने ही ये मांग रखी थी कि मैं महल के सामने सिर झुकाऊं। जिन लोगों पर प्रधान मंत्री का हत्या के लिए मुकदमा चलाया गया था, मैं यहां पर उसका लेखा जोखा प्रस्तुत कर रहा हूं।

लेफ्टीनेंट सेशी कोगा, प्लॉट के रिंग लीडर ने बाद में अदालत को बताया था कि षडयंत्र कारियों ने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव के भवन को उड़ा कर मार्शल लॉ लाने की योजना बनायी थी। आम आदमी जो आसानी से बिना पहचान में आये वहां से गुज़र सकते थे, बम फैंकते और युवा अधिकारी बाहर इंतज़ार करते रहते और जिस वक्त सदस्य बाहर आते, उन्हें मार डालते। दूसरी योजना, बेहद क्रूर थी अगर पूरी की जाती, जैसा कि अदालत को बताया गया था। ये प्रस्ताव था उस वक्त जापान की यात्रा पर आ रहे चार्ली चैप्लिन की हत्या का। प्रधान मंत्री ने चार्ली को चाय पर बुलाया था और युवा अधिकारियों ने योजना के बारे में सोचा था कि जब पार्टी चल रही हो तो सरकारी निवास पर हमला कर दिया जाये।

न्यायाधीश: चार्ली को मारने का क्या महत्त्व होता?

कोगा: चार्ली अमेरिका में एक लोकप्रिय व्यक्तित्व है और पूंजीवादी वर्ग का चहेता है। हम ये मानकर चल रहे थे कि चार्ली को मारने से अमेरिका के साथ जंग छिड़ जायेगी और इस तरह से हम एक तीर से दो शिकार कर लेते।

न्यायाधीश: लेकिन तब आपने इतनी शानदार योजना को छोड़ क्यों दिया?

कोगा: क्योंकि बाद में अखबारों ने खबर दी थी कि होने वाली स्वागत पार्टी का कुछ पक्का नहीं था।

न्यायाधीश: प्रधान मंत्री के राजकीय निवास पर हमला करने की योजना बनाने के पीछे क्या मंशा थी?

कोगा: इससे प्रीमियर का तख्ता पलट दिया जाता। वे राजनीतिक पार्टी के सर्वे सर्वा भी थे। दूसरे शब्दों में, सरकार के केन्द्र को ही नेस्तनाबूद करना था।

न्यायाधीश: क्या आप प्रीमियर को मारना चाहते थे?

कोगा: हां, मैं मारना चाहता था लेकिन मेरी उनसे कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं थी।

उसी कैदी ने बताया था कि उन्होंने चार्ली को मारने की योजना इसलिए छोड़ दी थी क्योंकि इस बात पर विवाद हो गया था कि क्या इस बात में दम है कि मात्र इस आधार पर एक कामेडियन को मार देना कि उससे अमेरिका से लड़ाई छिड़ जायेगी और मिलिटरी की ताकत बढ़ जायेगी।

मैं ये कल्पना कर सकता हूं कि हत्यारों ने अपनी योजना पूरी करके चार्ली को मार दिया होता और बाद में उन्हें पता चलता कि मैं अमेरिकी नहीं, अंग्रेज़ हूं तो वे कहते, "ओह, सो सॉरी।"

अलबत्ता, जापान में सब कुछ रहस्यमय और अप्रिय ही नहीं था, वहां पर मैंने अपना ज्यादातर वक्त अच्छा ही गुज़ारा। काबुकी थियेटर देखना अपने आप में एक सुखद अनुभव था और ये मेरी उम्मीदों से कहीं अधिक था। काबुकी मात्र औपचारिक थियेटर ही नहीं है, बल्कि ये आधुनिकता और पुरातनता का मिश्रण है। वहां पर किसी अभिनेता की दक्षता ही प्रमुख होती है और नाटक तो मात्र वह सामग्री है जिसके साथ वह प्रदर्शन करता है। हमारे पश्चिमी मानकों के अनुसार, उनकी तकनीक की तीव्र सीमाएं हैं। जहां पर यथार्थवाद को प्रभावी ढंग से प्राप्त नहीं किया जा सकता, वहां पर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है। उदाहरण के लिए, हम पश्चिमी वासी बिना अमूर्त के स्पर्श के तलवारों की लड़ाई दिखा ही नहीं सकते क्योंकि भले ही लड़ाई कितनी भी भीषण न हो, सामने वाले को सतर्कता का थोड़ा बहुत पता चल ही जाता है। दूसरी तरफ जापानी यथार्थवाद का कोई दिखावा नहीं करते। वे एक दूसरे से थोड़ी दूरी बनाये रखते हुए लड़ते हैं और अपनी तलवारों से तेज धार से काट डालने वाली मुद्राएं दिखाते हैं मानो वह सामने वाले का सिर ही काट डालेगा और सामने वाला अपने विरोधी के पैर काट डालने का प्रयास करता लगता है। दोनों ही अपने अपने दायरे में कूदते हैं, नृत्य करते हैं, और एक पांव पर नृत्य करते हैं। ये सब बैले की तरह होता है। ये संघर्ष प्रभाववादी होता है और इसका समापन विजेता और पराभूत में होता है। इस प्रभाववाद में से अभिनेता मृत्यु वाले दृश्य के दौरान यथार्थवाद में घुल मिल जाते हैं।

विडंबना उनके अधिकांश नाटकों की थीम होती है। मैंने उनका एक नाटक देखा जिसकी तुलना रोमियो और जूलिएट से की जा सकती है। इस नाटक में दो युवा प्रेमी होते हैं जिनके विवाह का विरोध उनके माता पिता कर रहे हैं। इसे एक घूमते हुए मंच पर अभिनीत किया गया था। इस तरह के मंच को जापानी लोग तीन सौ बरस से उपयोग में ला रहे हैं। पहला दृश्य वैवाहिक कक्ष के भीतर का था जहां अभी अभी परिणय सूत्र में बंधे प्रेमी युगल को दिखाया जाता है। अंक के दौरान दूत दोनों के माता पिता को प्रेमी युगल के पक्ष में समझाने बुझाने का प्रयास करते हैं और उम्मीद करते हैं कि शायद समझौता हो जाये। लेकिन परम्परा जो है, बहुत गहरी है। माता पिता जिद पर अड़े हुए हैं। इसलिए प्रेमी युगल तय करता है कि वे जापानी पद्धति से आत्महत्या कर लेंगे। दोनों ये फैसला करते हैं कि फूलों की कलियों की कौन सी सेज पर कौन मरेगा। दूल्हा दुल्हन को पहले मारेगा और फिर खुद को तलवार की धार पर गिरा देगा।

जिस वक्त प्रेमी प्रेमिका मृत्यु का वरण करने के लिए फूलों की सेज बिछा रहे होते हैं तो उस वक्त वे जो जुमले बोलते हैं, उनसे दर्शकों के बीच हँसी फैल गयी। मेरे दुभाषिए ने बताया कि इस तरह की पंक्तियों, कि इस तरह की प्यार भरी रात के बाद जीना हतप्रभ करने वाला होगा, के व्यंग्य पर लोग हँसे थे। दस मिनट तक वे इस तरह की व्यंग्यपूर्ण शैली में अपनी अपनी राम कहानी कहते रहते हैं। इसके बाद दुल्हन अपनी फूलों की सेज पर घुटनों के बल झुक जाती है। ये सेज दूल्हे की सेज से ज़रा सी दूरी पर है। वह दुल्हन के गले पर से कपड़ा हटाता है और जैसे ही दूल्हा तलवार निकालता है और धीरे धीरे दुल्हन की तरफ बढ़ता है, मंच घूमना शुरू हो जाता है और उस बिंदु पर आने से पहले कि दूल्हे की तलवार दुल्हन के गले को छूए, दृश्य दर्शकों के सामने से चला जाता है और अब घर के बाहर का दृश्य दिखाया जाता है। चारों तरफ चांदनी फैली हुई है। दर्शक सांस रोके बैठे रहते हैं कि पता नहीं आगे क्या होगा। एक दम सन्नाटा छा जाता है। आखिरकार आवाज़ें नजदीक आनी शुरू हो जाती हैं। ये लोग मृतक प्रेमी युगल के मित्र लोग हैं जो ये खुशखबरी ला रहे हैं कि उनके माता पिताओं ने उन्हें माफ कर दिया है। अब उनमें ये बहस छिड़ गयी है कि प्रेमी युगल को ये खुशखबरी कौन देगा। इसके बाद वे आवाज़ें देना शुरू कर देते हैं और कोई उत्तर न पा कर दरवाजा पीटने लगते हैं।

"उन्हें डिस्टर्ब मत करो," उनमें से एक कहता है,"या तो वे सो रहे हैं या फिर बहुत व्यस्त हैं।" इसलिए वे अपने अपने रास्ते चले जाते हैं। वे अभी भी आवाजें दे रहे हैं और टिक टौक, बक्से जैसी आवाजें कर रहे हैं। ये इस बात का इशारा है कि नाटक समाप्त हो रहा है। और मंच पर धीरे धीरे परदा नीचे आने लगता है।

ये प्रश्न बहस मांगता है कि जापान कब तक पश्चिमी सभ्यता की बुराइयों से बच पायेगा। ज़िंदगी के उन साधारण पलों के लिए भी जापान के लोगों में सराहना उनकी सभ्यता का एक ऐसा अभिन्न अंग है। चांदनी की लकीर को देर तक देखते रहना, चेरी को खिलते देखने के लिए जाने के लिए तीर्थ की तरह यात्रा, चाय के आयोजन का शांत ध्यान, लगता है ये सारी चीजें पश्चिमी हवा के झोंके के साथ न जाने कहां उड़ जायेंगी।

मेरी छुट्टी समाप्त होने वाली थी और हालांकि मैंने इसके कई पहलुओं का भरपूर आनंद उठाया था, कुछ बातें हताश करने वाली भी थीं। मैंने खाने को बरबाद होते देखा, सामान के ढेर ऊपर उठते देखे लेकिन लोगों को उनके आसपास भूख से मंडराते देखा। वहां लाखों लोग बेरोज़गार थे और उनकी सेवाएं बेकार जा रही थीं।

दरअसल मैंने एक आदमी को डिनर के दौरान ये कहते सुन लिया था कि जब तक हमें और सोना नहीं मिल जाता, हालात सुधरने वाले नहीं हैं। जब मैंने इस समस्या की बात की कि मशीनीकरण से हाथ के काम खत्म होते जा रहे हैं तो किसी ने कहा कि समस्या का समाधान अपने आप ही निकल आयेगा क्योंकि अंतत मजदूरी इतनी सस्ती हो जायेगी कि वह मशीनीकरण का मुकाबला करने की हालत में आ जायेगी। ये हताशा निश्चय ही मारक थी।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 21

मुझे यूरोप में हल्की सी उम्मीद थी कि किसी से मेरी मुलाकात होगी जो मेरी ज़िंदगी को दिशा दे सके। लेकिन कुछ भी तो नहीं हुआ था। मैं जितनी भी महिलाओं से मिला था, कोई भी उस श्रेणी में नहीं आती थी और जो उस किस्म की श्रेणी में आती भी थीं, वे ही इच्छुक नहीं थीं। और अब एक बार फिर वापिस कैलिफोर्निया। मैं कब्र में लौट आया था। डगलस और मैरी अलग हो चुके थे इसलिए अब दुनिया मेरे लिए बची ही नहीं थी।

जिस वक्त मैं बेल्डेवियर में टहल रहा था, मैं सोचने लगा कि अब मुझे रिटायर हो जाना चाहिये और सब कुछ बेच बाच कर चीन की तरफ निकल जाना चाहिये। अब हॉलीवुड में बने रहने का कोई लालच नहीं रहा था। इसमें कोई शक नहीं था कि मूक फिल्मों के दिन लद चुके थे और मैं सवाक फिल्मों के साथ संषर्घ करने जैसा महसूस नहीं कर रहा था। इसके अलावा, अब मेरी पूछ नहीं रही थी। मैंने कोशिश की कि किसी ऐसे अंतरंग व्यक्ति के बारे में सोचूं जिसे मैं फोन कर सकूं और बिना परेशान हुए डिनर के लिए आमंत्रित कर सकूं। लेकिन ऐसा कोई भी नहीं था। जब मैं घर लौटा तो रीव्ज़, मेरे मैनेजर यह बताने के लिए मिलने के लिए आये थे कि सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है। लेकिन और कोई नहीं आया था।

लुइस फर्डिनाड, कैसर का पोता स्टूडियो में मिलने के लिए आया और बाद में हमने घर पर एक साथ खाना खाया। हममें बहुत मज़ेदार बातचीत हुई। राजकुमार बहुत ही आकर्षक और बुद्धिमान लड़का था और वह पहले विश्व युद्ध के बाद जर्मन क्रांति के बारे में बता रहा था कि ये एक कॉमिक ओपेरा की तरह है।"मेरे दादा हॉलैंड गये थे," बताया उसने, "लेकिन हमारे कुछ रिश्तेदार पॉट्सडम के महल में ही रह गये थे। वे इतने डरे हुए थे कि वहां से निकले ही नहीं। और आखिरकार जब क्रांतिकारी महल में घुसे तो उन्होंने हमारे रिश्तेदारों को ये पूछते हुए एक नोट भेजा कि क्या उनका स्वागत किया जायेगा और उस मुलाकात में ये आश्वासन दिया कि हमारे रिश्तेदारों की रक्षा की जायेगी और कि अगर उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उन्हें केवल समाजवादी मुख्यालय में फोन भर करना होगा। हमारे रिश्तेदार अपने कानों पर विश्वास ही नहीं कर सके। लेकिन जब बाद में सरकार ने उनकी सम्पत्तियों के निपटान के बारे में उसने सम्पर्क साधा तो मेरे रिश्तेदार नखरे करने लगे तथा और ज्यादा मांगने लगे।" अपनी बात को खत्म करते हुए उसने बताया,"रूसी क्रांति एक त्रासदी थी और हमारी क्रांति एक लतफा!"

अलबत्ता, फ्रैंकलिन डी रुज़वेल्ट व्हाइट हाउस में पहुंचे और देश रसातल में नहीं गया। उनकी फारगाटन मैन स्पीच• ने अमेरिका को उसकी चिड़चिड़ाहट भरी ऊंघ से उठाया और अमेरिकी इतिहास में सर्वाधिक प्रेरणास्पद युग में ला स्थापित किया। मैंने उनका भाषण सैम गोल्डविन के बीच हाउस में रेडियो पर सुना था। हम कई लोग आस पास बैठे हुए थे। इनमें कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के बिल पैले, जो शेंक, फ्रेड एस्टेयर, उनकी पत्नी और अन्य मेहमान थे। "हमें जिस अकेली चीज़ से डरना है वह डर ही है।" ये शब्द फिज़ां में सूर्य की किरणों की तरह कौंधे। लेकिन मैं संदेह कर रहा था जैसे कि सभी कर रहे थे। मैंने कहा,"ये इतनी अच्छी बात है कि सच हो ही नहीं सकती।"

हर तरह की इमर्जेंसी के लिए कानून बना दिये गये। समय से पहले बंदी के नाम पर जो थोक डकैती हो रही थी, उसे रोकने के लिए फार्म क्रेडिट स्थापित करना, बड़ी बड़ी सार्वजनिक परियोजनाओं को धन उपलब्ध कराना, राष्ट्रीय वसूली अधिनियम लागू करना, न्यूनतम मज़दूरी बढ़ाना, काम के घंटे कम करके नये काम मुहैय्या कराना, और मज़दूर यूनियनों को प्रोत्साहित करना जैसे क्रांतिकारी कदम उठाये गये। 'आप बहुत आगे बढ़ रहे हैं: ये समाजवाद है,' विपक्ष वाले चिल्लाये। ये समाजवाद था या नहीं, लेकिन इसने पूंजीवाद को पूरी तरह से धराशाई होने से रोक लिया। इसने युनाइटेड स्टेट्स के इतिहास में कई सर्वोत्तम सुधारों के लिए भी ज़मीन तैयार की। ये देखना बेहद प्रेरणादायक था कि किस तरह से अमेरिकी नागरिकों ने काम करने वाली सरकार का साथ दिया।

मैं अभी भी इसी बात पर विचार कर रहा था कि अपना सारा काम समेटूं और हांग कांग या चीन की तरफ कूच कर जाऊं जहां पर मैं आराम से रह सकता हूं और सवाक फिल्मों को भूल सकता हूं बजाये यहां हॉलीवुड में सड़ते रहने के।

और सचमुच हुआ भी यही। मैं पॉलेट गोदार्द से मिला। वह हंसमुख लड़की थी और शाम के वक्त उसने मुझे बताया कि वह अपने भूतपूर्व पति से अलगाव के हर्जाने के रूप में मिले धन में से 50,000 डॉलर फिल्म कारोबार में निवेश करने जा रही है। वह अपने साथ नाव पर सारे कागज़ात लेती आयी थी जिन पर बस, हस्ताक्षर किये जाने थे। मैंने उसे इस काम में हाथ डालने से रोकने के लिए एक तरह से उसका गला ही पकड़ लिया था। जिस कम्पनी में वह पैसा डालने जा रही थी वह जाहिर तौर पर हॉलीवुड की घुमंतु कम्पनी थी। मैंने उसे बताया कि मैं फिल्म लाइन से इसकी शुरुआत से ही जुड़ा हुआ हूं और मेरा जो ज्ञान है फिल्म लाइन का उसे देखते हुए मैं अपनी फिल्म में भी एक पैसा तक न लगाऊं। उसमें भी जोखिम है। मैंने उसे तर्क दिया कि अगर हर्स्ट जैसे व्यक्ति, जिनके पास साहित्यिक स्टाफ था और जिनकी पहुंच अमेरिका की बेहतरीन कहानियों तक थी, ने फिल्मो में निवेश करके अपने 7,000,000 डॉलर गवां दिये तो वे किस खेत की मूली हैं। आखिरकार मैं उसे इसमें हाथ डालने से रोकने में कामयाब हो गया। ये हमारी दोस्ती की शुरुआत थी।

पॉलेट की जानकारी के बिना मैंने नाव खरीद ली और उसे कैटेलिना की यात्रा के लिए ठीक कर लिया। मैं नाव पर अपने खुद के रसोइया और कीस्टोन के एक भूतपूर्व सिपाही एंडी एंडरसन को ले गया। एंडी लाइसेंस शुदा कैप्टन था। अगले रविवार सब कुछ तैयार था। पॉलेट और मैं अल सुबह ही निकल पड़े। उसने यही सोचा कि हम लम्बी ड्राइव के लिए निकल रहे हैं। वह इस बात पर राजी हो गयी थी कि हम सिर्फ एक कप कॉफी ले कर निकलेंगे और बाद में कहीं नाश्ते के लिए चले चलेंगे। तब उसने पाया कि हम तो सेन पैड्रो की तरफ जा रहे हैं। 'ये बात तय रही कि आप उस नाव को देखने के लिए दोबारा नहीं जा रहे हैं?'

'तब आप अकेले ही जाना अंदर। बहुत खराब लगता है।' उसने अफसोस के साथ कहा, 'मैं कार में ही बैठी रहूंगी और आपका इंतजार करूंगी।' जब हम नाव की लैंडिंग पर रुके तो वह किसी भी कीमत पर कार से बाहर निकलने को राजी ही न हो।

दो ही मिनट के भीतर मैं कार के पास आया और पॉलेट को मनाने की कोशिश की, उसकी इच्छा के खिलाफ कि वह नाव तक आये तो सही। केबिन को गुलाबी और नीले मेजपोश से बहुत अच्छी तरह से सजाया गया था और उसके साथ मेल खाते गुलाबी और नीले चीनी परदे थे। गैली से बैकन और अंडे तले जाने की मस्त कर देने वाली महक आ रही थी।

उसकी प्रतिक्रिया बहुत ही मज़ेदार थी। 'एक मिनट रुको,' कहा उसने। वह उठी, नाव से बाहर आयी और बंदरगाह पर पचास गज की दौड़ लगायी, अपने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया।

जब वह नाव पर वापिस आयी तो बोली, 'इस झटके से उबरने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा।'

काम करने की अभी भी कोई योजना सामने नहीं थीं। पॉलेट के साथ मैं आलतू फालतू हरकतें करता रहता। रेस मीटिगों में भाग लेता, नाइट्स स्पाट्स में और सार्वजनिक आयोजनों में घूमता फिरता रहता। कुछ भी ऐसा करता जिससे वक्त गुज़र जाये। मैं न तो अकेले रहना चाहता था और न ही सोचना ही चाहता था। लेकिन इन सारी मौज मस्तियों में भीतर ही कहीं एक भावना काम कर रही थी। अपराध बोध का लगातार अहसास : मैं यहां क्या कर रहा हूं? मैं अपने काम पर क्यों नहीं हूं?

ये सोचने की बात है कि किस तरह से एक संयोग से और ऐसे वक्त में जब मैं इसके बारे में सोच भी नहीं सकता था, मैं अचानक एक और मूक फिल्म बनाने के लिए प्रेरित हुआ। पॉलेट और मैं मैक्सिको में ट्रिजुआना रेसकोर्स में गये जहां पर कैंटकी या ऐसा ही कुछ नाम था उसका, विजेता को रजत कप से नवाज़ा जाना था। वहां पर पॉलेट से पूछा गया कि क्या वह विजेता जॉकी को पदक प्रदान करेगी और दक्षिणी अमेरिका में बोले जाने वाले उच्चारण में कुछ शब्द बोलेगी। उसे प्रेरित करने में थोड़ा सा ही वक्त लगा। मैं उसे लाउडस्पीकर पर सुन कर हैरान रह गया। हालांकि वह ब्रुकलिन से है, उसने किसी केंटकी सोसाइटी लड़की की बहुत ही बढ़िया नकल करके दिखायी। इससे मैं इस बात का कायल हो गया कि वह अभिनय कर सकती है।

तब मुझे अपना एक साक्षात्कार याद आया जो मैंने न्यू यार्क में एक होशियार युवा रिपोर्टर को दिया था। ये सुनने पर कि मैं डैट्रियट जा रहा हूं, उसने मुझे वहां पर फैक्टरी बेल्ट सिस्टम के बारे में बताया था। ये बड़े उद्योगों का एक भयावह गोरख धंधा था जो हट्टे कट्टे किसानों को उनके खेतों से लालच दे कर लाता था और काम में झोंक देता था। चार या पांच बरस तक बेल्ट सिस्टम में काम करने के बाद ये लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते थे।

किसी अभिनेत्री को फैशनेबल कपड़ों में आकर्षक ढंग से तैयार करना आसान होता है लेकिन किसी लड़की को फूल बेचने वाली लड़की की तरह तैयार करना और उसे सुंदर भी दिखाना जैसा कि सिटी लाइट्स में किया गया था, मुश्किल काम होता है। गोल्ड रश में नायिका के कॉस्ट्यूम तैयार करने में कोई समस्या नहीं आयी थी। लेकिन माडर्न टाइम्स में पॉलेट की पोशाकों के लिए फैशन डिज़ाइनर के बनायी पोशाकों की तरह बहुत सोचना विचारना पड़ा। यदि सड़क छाप लड़की की वेशभूषा के बारे में बिना सोचे समझे फैसला कर लिया जाता तो थिगलियां नकली और अविश्वसनीय लगतीं। गली गली घूमने वाली आवारा लड़की या फूल बेचने वाली लड़की के रूप में नायिका को तैयार करके मैं काव्यात्मक प्रभाव पैदा करना चाहता था और उसे उसके व्यक्तित्व से वंचित नहीं करना चाहता था।

इस तरह के समाचार बुलेटिन सुनने से ज्यादा नसें तड़काने वाली और कोई बात नहीं होती कि पहले हफ्ते आने वाले दर्शकों की संख्या ने अब तक के सारे रिकार्ड तोड़ दिये हैं और दूसरे हफ्ते में मामूली सी गिरावट आयी है। इसलिए न्यू यार्क और लॉस एंजेल्स में प्रीमियर के बाद मेरी एक ही इच्छा थी कि जितनी जल्दी हो सके, फिल्म की खबरों से जितना दूर जा सकूं, चला जाऊं इसलिए मैंने होनोलुलु जाने का फैसला किया। मैं अपने साथ पॉलेट और उसकी मां को ले गया और पीछे ऑफिस में ये हिदायतें छोड़ दीं कि मुझे किसी भी तरह का कोई भी संदेश न भेजा जाये।

'चलो, हम वहीं चलते हैं।'

'चीन!'


'लेकिन मेरे पास कपड़े नहीं हैं।'

सारी नावों का नामकरण करके उन्हें पैनेशिया नाम दे देना चाहिये क्योंकि समुद्री यात्रा से ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक और कुछ नहीं होता। आपकी सारी चिंताएं स्थगित हो जाती हैं, नाव आपको गोद ले लेती है, और आपकी देखभाल करती है, और आखिरकार जब नाव पत्तन पर पहुंचती है तो आपको संकोच के साथ हड़बड़ाती दुनिया को लौटा देती है।

अलबत्ता, टोकियो में मुझे इतना डर नहीं लगा क्योंकि कैप्टन ने मेहरबानी करके मुझे दूसरे यात्री के रूप में पंजीकृत कर रखा था। जापानी प्राधिकारियों ने जब मेरा पासपोर्ट देखा तो इसे मामले को तिल का ताड़ बना दिया, 'आपने हमें बताया क्यों नहीं कि आप आ रहे हैं?' कहा उन्होंने। चूंकि वहां पर कुछ ही दिन पहले सैन्य विद्रोह हो चुका था जिसमें सैकड़ों लोग मारे गये थे, उनका ये पूछना ठीक ही था, मैंने सोचा। जापान में हमारे ठहरने के दौरान सरकार की तरफ से तैनात एक अधिकारी ने एक पल के लिए भी हमें अकेला नहीं छोड़ा। सैन फ्रांसिस्को से चलने से ले कर हांग कांग पहुंचने तक हमने किसी भी यात्री से बात नहीं की थी लेकिन हांग कांग पहुंचते ही ये मौन उवपास धरा रह गया। 'चार्ली,' एक लम्बे से, चुप्पे से दिखने वाले व्यापारी ने मुझसे कहा, 'मैं कनेक्टिकट से नाता रखने वाले एक अमेरिकी पादरी से ज़रूर मिलूं। वे पिछले पांच बरस से कोढ़ियों की बस्ती में टिके हुए हैं। फादर के लिए ये अकेलापन काट खाने वाला होगा इसलिए हर रविवार वे हांग कांग अपनी अमेरिकी नावों को देखने आते हैं।'

हम पांच महीने तक हॉलीवुड से परे रहे। इस ट्रिप के दौरान पॉलेट और मैंने शादी कर ली थी। इसके बाद हम स्टेट्स लौटे। हमने वापसी के लिए सिंगापुर में एक जापानी नाव ली।

तत्काल ही कॉकटेयु दुभाषिये से मेरी तरफ मुड़ते और तेज, चिड़िया की तरह सिर हिलाते और अपनी बात जारी रखते। इसके बाद मैं बात का सिरा आगे बढ़ाता और गहराई से दर्शन और कला पर अपना ज्ञान बधारने लगता। जब हम दोनों एक दूसरे से सहमत होते तो इस दूजे को गले लगाते और हमारा दुभाषिया ठंडी ठंडी आंखों से देखता रह जाता। इस तरह से, इसी महान तरीके से हम रात भर बातें करते रहे। हम सुबह चार बजे तक बतियाते रहे और ये वायदा किया कि एक बजे लंच पर फिर मिलेंगे। लेकिन हमारा उत्साह अपने परम बिंदु तक पहुंच चुका था। हम दोनों ही क्लाइमेक्स तक पहुंच चुके थे लेकिन दोनों ने ही इसका आभास नहीं होने दिया। दोपहर के वक्त हम दोनों के ही माफी मांगते हुए पत्र एक दूसरे के पास पहुंचे। उन दोनों खतों की विषय सस्तु एक जैसी ही थी, दोनों ही क्षमा याचनाओं से भरे हुए थे कि हम अब और मिल नहीं पा रहे है। हम दोनों ने एक दूसरे को ज़रूरत से ज्यादा ही देख परख लिया था।

अगली सुबह मैं डेक पर अकेले ही चहलकदमी कर रहा था, अचानक ही, ये देख कर मेरे आतंक की सीमा न रही कि दूर के कोने से कॉकटेयु का चेहरा उभरा और वे मेरी तरफ चले आ रहे थे। हे मेरे भगवान!! मैंने जल्दी से आसपास छुपने की जगह देखी। तब उन्होंने मुझे देखा और तब मुझे बहुत राहत मिली जब वे मुख्य सैलून दरवाजे से बाहर निकल गये। इसके साथ ही हमारी सुबह की चहलकदमी खत्म हो गयी। दिन भर हम एक दूसरे से बचते हुए चोर सिपाही का खेल खेलते रहे। अलबत्ता, जिस वक्त हम हांग कांग पहुंचे, हम इतने उबर चुके थे कि बीच बीच में कुछ पलों के लिए मिल लेते, लेकिन टोकियो आने में अभी भी चार दिन बाकी थे।

बीच बीच में जहाज कई जगह रुकता और हम एक दूसरे से मुश्किल से ही मिले। हां, कभी मिलते भी तो बातचीत कैसे हैं और चलते हैं से आगे न बढ़ती। लेकिन जब ये खबर फैली कि हम दोनों की प्रेसिडेंट कूलिज नाम के जहाज में एक साथ यात्रा करते हुए अमेरिका वापिस जा रहे हैं तो हम दोनों ने ही हार मान ली और इसके बाद उत्साह दिखाने का और कोई प्रयास नहीं किया।

जब हम सैन फ्रासिस्को पहुंचे तो मैंने ज़ोर दिया कि वे हमारे साथ ही कार में लॉज एंजेल्स चलें। हमारी लिमोज़िन हमारा इंतज़ार कर रही थी। पीलू साथ में आया। यात्रा के दौरान पीलू ने गाना शुरू कर दिया।

मुझे धक्का लगा। पूछा मैंने, 'आपने ऐसा क्यों किया?'

'लेकिन' मैंने कहा, 'वो इस विदेश में अजनबी है और यहां की भाषा भी नहीं जानता।'


जब हम बेवरली हिल्स पहुंचे तो वे बहुत उत्साहजनक खबर आयी, माडर्न टाइम्स अपार सफल रही थी।

पॉलेट और मेरे विवाह को अब एक बरस होने को आया था लेकिन हम दोनों के बीच खाइयां बढ़ती ही जा रही थीं। इस का आंशिक कारण ये भी था कि मैं अपने काम की चिंता में पड़ा रहता था और काम करने की समस्याओं में उलझा रहता था। अलबत्ता, माडर्न टाइम्स की सफलता ने पोलैट के लिए नये द्वार खोल दिये थे और अब उसने पैरामाउंट वालों के लिए कई फिल्में साइन की थीं। लेकिन मैं न तो काम कर पा रहा था और न अभिनय ही। उदासी के इसी आलम में मैंने अपने दोस्त टिम डुरैंट के साथ पैबल बीच पर जाने का फैसला किया। शायद मैं वहां पर बेहतर तरीके से काम कर सकूं।

मैं टिम ड़ुरैंट से तब मिला था जब उन्हें कोई हमारी एक रविवारी टेनिस पार्टी में लेकर आया था। टिम बहुत अच्छा टेनिस खेलते थे और हम एक साथ खूब खेला करते। उनका हाल ही में अपनी पत्नी ई एफ हट्टन की बेटी से तलाक हो गया था और उसी के सदमे से उबरने के लिए हाल ही में कैलिफोर्निया आये थे। टिम सहानुभूति रखने वाले शख्स थे। हम दोनों बहुत अच्छे दोस्त बन गये।

विल्सन मिज़नर की बहन को पड़ोसी अच्छे नहीं लगते थे। पड़ोसियों का टेनिस कोर्ट उनके घर के सामने पड़ता था और जब भी उनके पड़ोसी टेनिस खेलते, वह ढेर सारी आग जला देती और धूंए से टेनिस कोर्ट भर जाता।

जॉन सवेरे के वक्त काम करते, और औसतन वो हज़ार शब्द प्रतिदिन लिखते थे। मैं उनके साथ सुथरे पन्नों को देख कर हैरान होता। उनमें शायद ही कोई गलती होती। मैं उनसे ईर्ष्या करता।

स्टेनबैक दम्पत्ति के पास कोई नौकर नहीं था। उनकी पत्नी ही घर का सारा कामकाज़ करतीं। वे बहुत शानदार तरीके से घर बार संभालतीं। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक था।

एक आकर्षक विवाहित महिला ने, जिसका पति घोषित रूप से बेवफा था, ने अपने बड़े से घर में मेरे साथ अकेली मुलाकात का इंतज़ाम किया। मैं वहां पर अपनी शरारतपूर्ण मंशा के साथ गया। लेकिन जब औरत ने रोते हुए मुझसे ये रहस्य बांटा कि उसका अपने पति के साथ पिछले आठ बरस से कोई शारीरिक संबंध नहीं रहा है और वह उससे अभी भी प्यार करती है, तो उसके आंसुओं ने मेरे उत्साह पर पानी फेर दिया और मैंने पाया कि मैं उसे आध्यात्मिक सलाह दे रहा हूं - सारा का सारा मामला ही दिमाग पर चढ़ जाने वाला हो गया। बाद में पता चला कि वह समलिंगी, लेस्बियन हो गयी है।

रॉबिनसन दो बिनमन और उनकी पत्नी प्रागैतिहासिक काल की पत्थर की एक छोटी सी हवेली में रहते थे। इसका नाम था टोर। इसे उन्होंने खुद प्रशांत महासागर के तटों पर चट्टान के स्लैब पर बनाया था। इसमें थोड़ा सा छिछोरापन नज़र आता था ऐसा मुझे लगा। सबसे बड़ा कमरा बारह फुट से ज्यादा बड़ा नहीं था। घर से कुछ ही दूर प्रागैतिहासिक काल की लगने वाली पत्थरों की एक गोलाकर मीनार थी। सोलह ऊंची और चार फुट के घेरे वाली। तंग सीढ़ियां आपको ऊपर मियानी तक ले जाती थीं। वहां पर खिड़की के लिए जगह बनी हुई थी। ये उनका अध्ययन कक्ष था। यहीं पर उन्होंने रोन स्टालिन लिखा था। टिम का विचार था कि इस तरह की भयावह रुचि उनके लिए मनोवैज्ञानिक चाह थी। लेकिन मैं देखता कि रॉबिनसन सूर्यास्त के वक्त अपने कुत्ते के साथ टहल रहे हैं। वे शाम का आनन्द ले रहे होते। उनके चेहरे पर असीम शांति होती और लगता, वे कहीं दूर ख्यालों में खोये हुए हैं। मुझे यकीन है कि रॉबिनसन जेफर्स जैसा व्यक्ति मृत्यु की कामना तो नहीं ही कर सकता।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 22

फिज़ां में एक बार फिर युद्ध के काले बादल मंडरा रहे थे। नाज़ी अपनी मुहिम पर निकल चुके थे। हम कितनी जल्दी पहले विश्व युद्ध की विभीषिका और चार वर्ष के मृत्यु के तांडव को भूल गये? कितनी जल्दी हम आदमियों के लाशों के ढेरों को, लाशों से भरी पेटियों को, हाथ कटे, पांव कटे, अंधे हो गये, टूटे जबड़ों वाले और अंग भंग हो गये विकृत लूले लंगड़े लोगों को भूल गये? और जो मारे नहीं गये थे या घायल नहीं हुए थे, वे भी कहां बच पाये थे? कितने ही लोगों के दिमाग चल गये थे। ग्रीक लोक कथाओं में आने वाले उस काल्पनिक मानवभक्षी मिनोटॉर की तरह युद्ध युवा पीड़ी को निगल गया था और बूढ़े, सनकी लोग जीवन जीने के लिए अभिशप्त बाकी रह गये थे। लेकिन हम हमारी स्मृति बहुत कमज़ोर होती है और हम युद्ध का गुणगान लोकप्रिय टिन पैन ऐले के गीतों के साथ करने लगते हैं

आप उन्हें कैसे उलझाये रखेंगे खेतों में जब देख ली हों उन्होंने पारी

और इसी तरह की बातें। कुछ लोगों का यह कहना था कि युद्ध कई मायनों में अच्छा होता है। इससे उद्योग धंधे फैलते हैं, उन्नत तकनीकें सामने आती हैं और लोगों को रोज़गार मिलता है। जब हम स्टॉक एक्सचेंज में लाखों डॉलर कमाने की बात सोच रहे होंगे तो हम उन लाखों लोगों के बारे में कैसे सोचेंगे जो मारे जा रहे हैं। जब बाज़ार एक दम ऊपर जा रहा था तो हर्स्ट के एग्जामिनर अखबार के आर्थर ब्रिसबेन ने कहा था,'युनाइटेड स्टेटस् में स्टील के भाव में पांच सौ डॉलर प्रति शेयर का उछाल आयेगा।' जबकि हुआ ये कि सट्टेबाजों ने ही खिड़कियों से छलांगें लगायीं।

और अब एक और युद्ध की सुगबुगाहट हो रही थी और मैं पॉलेट के लिए एक कहानी लिखने की कोशिश कर रहा था; लेकिन मैं आगे नहीं बढ़ पा रहा था। ऐसे वक्त में मैं औरताना चोंचलेबाजियों में अपने आपको झोंक ही कैसे सकता था या रोमांस के बारे में सोच सकता था या प्रेम की समस्याओं के बारे में सोच ही कैसे सकता था जब सबसे खतरनाक विषम आदमी - एडोल्फ हिटलर द्वारा पूरे माहौल में पागलपन आतंक मचाये हुए हो?

1937 में एलेक्जेंडर कोर्डा ने सुझाव दिया था कि मैं गलत पहचान को ले कर हिटलर पर कोई कहानी बनाऊं। हिटलर की भी वैसी ही मूंछें हों जैसी कि ट्रैम्प की होती हैं: मैं ही दोनों भूमिकाएं करूं, उन्होंने कहा था। उस वक्त तो मैंने इस विचार के बारे में बहुत ज्यादा नहीं सोचा था, लेकिन अब ये मामला गरम था और मैं फिर से काम शुरू करने के लिए बहुत बेचैन था। तभी अचानक मुझे कुछ सूझा। बेशक!! हिटलर के रूप में मैं भीड़ के सामने कुछ भी बकवास करते हुए अपनी बात कह सकता हूं और ट्रैम्प के रूप में मैं खामोश ही बना रहूंगा या कम ही बोलूंगा। इस तरह से हिटलर की कहानी प्रहसन और मूक अभिनय के लिए एक मौका होती। इस विचार के साथ ही मैं लपक कर वापिस हॉलीवुड वापिस जाना चाहता था ताकि पटकथा पर काम शुरू कर सकूं। कहानी विकसित करने में मुझे दो बरस लग गये। मैंने शुरुआती दृश्यों के बारे में सोचा। सबसे पहले दृश्य में पहले विश्व युद्ध की लड़ाई में बिग बार्था§ और उसकी पिचहत्तर मील तक की मार करने की क्षमता को दिखाया जाता कि किस तरह से जर्मन उसके बलबूते पर मित्र राष्ट्रों को नेस्तनाबूद करने का इरादा रखते हैं। इससे वे रीम्स कैथेडरल को नष्ट करने जा रहे हैं लेकिन निशाना चूक जाता है और इसके बजाये वे साथ ही बनी पानी की टंकी नष्ट कर बैठते हैं।

पॉलेट फिल्म में काम करने वाली थी और उसने पिछले दो बरसों में पैरामाउंट के साथ काम करते हुए खूब सफलता पायी थी। हालांकि हमारे संबंधों में दरार आ गयी थी, फिर भी हम दोस्त थे और अभी भी शादीशुदा चल रहे थे। लेकिन पॉलेट अपने आप में अजूबा थी। सनकों का पिटारा। सामने वाले को हैरानी ही होती अगर वह इससे ज्यादा गलत वक्त पर न आती। एक दिन वह स्टूडियो में मेरे ड्रेसिंग रूम में आयी। उसके साथ एक सींकिया सा, दर्जी के अच्छे सिले कपड़ों में एक शख्स था। लगता था, उसे बिजूके की तरह कपड़े पहना दिये गये हैं। मैं दिन भर अपनी पटकथा से जूझता रहा था और उनके इस तरह से व्यवधान डालने से थोड़ा हैरान हुआ था। लेकिन पॉलेट ने कहा कि बात बेहद ज़रूरी है; तब वह बैठ गयी और साथ आये आदमी को भी आमंत्रित किया कि वह भी कुर्सी खींच कर उसे पास बैठ जाये।

'ये मेरे एजेंट हैं।' पॉलेट ने कहा।

इसके बाद पॉलेट ने उस आदमी की तरफ इशारा किया कि वह आगे की बात करे। वह पढ़ाये हुए तोते की तरह तेजी से बोलने लगा, मानो अपने ही शब्दों को आनंद ले रहा हो, 'आप जानते ही हैं मिस्टर चैप्लिन, आप माडर्न टाइम्स के बाद से पॉलेट को दो हज़ार पाँच सौ डॉलर प्रति सप्ताह दे रहे हैं लेकिन जो बात हमने आपसे अब तक तय नहीं की है, मिस्टर चैप्लिन, वो ये है कि उनके बिल तैयार करने में, ये सभी पोस्टरों पर पिचहत्तर प्रतिशत होनी चाहिये-' इससे आगे वह बात नहीं कर पाया।

'ये सब क्या बकवास है?' मैं चिल्लाया, 'मुझे मत सिखाओ कि उसे कितनी राशि मिलनी चाहिये!! उसका हित तुम्हारी तुलना में मेरे दिल में कहीं ज्यादा है! दफा हो जाओ यहां से, तुम दोनों के दोनों।'

द ग्रेट डिक्टेटर बनाने के अधबीच में ही मुझे युनाइटेड आर्टिस्टस् से चेतावनी भरे संदेश आने शुरू हो गये। उन्हें ऐसे संकेत मिल रहे थे कि मैं सेंसरबोर्ड के झमेलों में फंस जाऊंगा।

इसके अलावा, इंगलिश ऑफिस भी हिटलर विरोधी पिक्चर के बारे में चिंतित था और उसे इस बात का शक था कि क्या इसे ब्रिटेन में दिखाया जा सकेगा। लेकिन मेरा पक्का फैसला था कि मुझे आगे काम पूरा करना है क्योंकि हिटलर पर हँसा ही जाना चाहिये। अगर मुझे जर्मन यातना शिविरों के वास्तविक आतंक के बारे में पता होता तो मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बना ही न पाता। मैं नाज़ियों के अमानवीय पागलपन का मज़ाक उड़ा ही न पाता। अलबत्ता, ये मेरा पक्का फैसला था कि शुद्ध रक्त वाली जाति के बारे में उनकी रहस्यमयी सोच का मज़ाक उड़ाया ही जाना चाहिये। मानो इस तरह की कोई जाति कभी आस्ट्रेलियाई मूल जनजातियों से बाहर भी अस्तित्व में रही हो!

जिस वक्त मैं द ग्रेट डिक्टेटर बना रहा था, सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस से होते हुए कैलिफोर्निया आये। वे ऑक्सफोर्ड से हाल ही में आये एक नौजवान के साथ डिनर पर आये थे। मैं उस नौजवान का नाम भूल रहा हूं लेकिन उसका वो जुमला मुझे अभी भी याद है जो उसने उस शाम कहा था। उसका कहना था,`जिस तरह से जर्मनी में और अन्यत्र चीज़ें घट रही हैं, मुझे नहीं लगता कि मैं पांच बरस से ज्यादा जी पाऊंगा।' सर स्टैफोर्ड क्रिप्स रूस में तथ्यों की जानकारी एकत्र करने के मिशन पर गये हुए थे और उन्होंने वहां पर जो कुछ देखा था, उससे खासे प्रभावित हुए थे। उन्होंने रूस में चल रही बड़ी बड़ी परियोजनाओं के बारे में बताया और साथ में वहां की समस्याओं के बारे में भी बताया। वे ये सोच कर चल रहे थे कि युद्ध से बचा नहीं जा सकेगा।

सबसे ज्यादा चिंताजनक पत्र न्यू यार्क ऑफिस से आये जिनमें मुझसे अनुरोध किया गया था कि मैं इस फिल्म को न ही बनाऊं। उन्होंने तो घोषणा तक कर डाली कि ये फिल्म अमेरिका और इंगलैंड में कभी भी नहीं दिखायी जायेगी। लेकिन मैं तो ठान ही चुका था कि फिल्म तो बन कर ही रहेगी भले ही मुझे खुद ही हॉल किराये पर ले कर इसका प्रदर्शन क्यों न करना पड़े।

इससे पहले कि मैं द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म पूरी कर पाता, इंगलैंड ने नाज़ियों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। मैं कैटैलिना में नाव पर सवार अपना सप्ताहांत मना रहा था जिस वक्त मैंने रेडियो पर ये हताशाजनक खबर सुनी। शुरू शुरू में सभी मोर्चों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही थी। हमने कहा,`जर्मन कभी भी मैगिनोट लाइन§ को तोड़ नहीं पायेंगे।' और तभी अचानक महाआतंक शुरू हो गया। बेल्जियम में विजय, मैगिनोट लाइन का ढहना, डनकिर्क± के नंगे और हौलनाक तथ्य - और फ्रांस पर कब्जा कर लिया गया। खबरें जो थीं, वे और ज्यादा दिल दहलाने वाली होती जा रही थीं। इंगलैंड लड़ तो रहा था लेकिन उसकी पीठ दीवार से सटी हुई थी। अब न्यू यार्क तार पर तार भेजे जा रहा था, 'अपनी फिल्म जल्दी पूरी करो,हर आदमी उसकी राह देख रहा है।'

द ग्रेट डिक्टेटर फिल्म बनाना मुश्किल काम था; इसके लिए मिनिएचर मॉडलों की और प्रापर्टीज़ की ज़रूरत थी। इन्हें तैयार करने में ही एक बरस का वक्त लग गया। इन तरकीबों के बिना फिल्म की लागत पांच गुना बढ़ जाती। अलबत्ता, मैं कैमरा घुमाने से पहले ही 500,000 डॉलर खर्च कर चुका था।

तब श्रीमान हिटलर महाशय ने रूस पर हमला करने का फैसला किया! ये इस बात का सबूत था कि उसका अपरिहार्य पागलपन पैर फैला चुका है। अमेरिका अभी तक युद्ध में शामिल नहीं हुआ था, लेकिन अमेरिका और इंगलैंड, दोनों जगह बहुत राहत महसूस की जा रही थी।

दडिक्टेटर पूरी होने वाली थी कि तभी डगलस फेयरबैंक्स और उनकी पत्नी सिल्विया हमसे मिलने के लिए लोकेशन पर आये। डगलस ने पिछले पांच बरस से कोई काम नहीं किया था और मेरी उनसे बहुत कम ही मुलाकातें हुई थीं। कारण ये भी रहा कि वे इंगलैंड की और वहां से यात्राएं करते रहे। मुझे लगा कि उनकी उम्र थोड़ी बढ़ गयी है, वे थोड़े मोटे हो गये हैं और विचारों में खोये खोये लगते हैं। इसके बावजूद वे वही उत्साही डगलस थे। हम जब एक दृश्य की शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने छत फाड़ ठहाका लगाया। 'मैं इसे देखने के लिए इंतज़ार नहीं कर सकता,' वे कहने लगे।

डगलस लगभग एक घंटे तक रुके रहे। जब वे जा रहे थे तो मैं उन्हें जाते हुए देखता रहा। मैं देख रहा था कि वे चढ़ाई चढ़ते हुए अपनी पत्नी की मदद कर रहे थे। और जब वे फुटपाथ पर चले गये तो हमारे बीच दूरी बढ़ती गयी, मुझे अचानक उदासी ने घेर लिया। डगलस मुड़े तो मैंने हाथ हिलाया। जवाब में उन्होंने भी हाथ हिलाया। यही आखिरी बार थी जब मैंने उन्हें देखा था। एक महीने बाद डगलस जूनियर ने फोन करके बताया कि उसके पिता पिछली रात दिल का दौरा पड़ने के कारण गुज़र गये। ये मेरे लिए बहुत बड़ा धक्का था क्योंकि वे जीवन से बहुत नज़दीकी नाता रखते थे।

मैं डगलस की कमी महसूस करता हूं। मैं उनके उत्साह की ऊष्मा और आकर्षण की कमी महसूस करता हूं। मैं टेलीफोन पर उनकी दोस्ताना आवाज़ की कमी महसूस करता हूं। यह आवाज़ उदास और अकेले रविवारों की सुबह मुझे फोन किया करती थी: 'चार्ली, लंच के लिए आ रहे हो ना!!उसके बाद तैराकी, और उसके बाद डिनर, और फिर, पिक्चर देखेंगे?' हां, मैं उनकी जानदार दोस्ती की कमी महसूस करता हूं।


किन आदमियों के समाज से मैं अपने आपको जोड़ना चाहूंगा? मेरा ख्याल है, मेरा अपना व्यवसाय ही मेरी पसंद होनी चाहिये। इसके बावजूद डगलस ही एक मात्र ऐसे अभिनेता थे जिनसे मैंने दोस्ती की। विभिन्न हॉलीवुड पार्टियों में सितारों से मिलने के बाद मैं संदेह से भरा हुआ ही बाहर आया हूं। इसका कारण शायद ये हो सकता है कि हम जैसे बहुत सारे थे। वहां का माहौल दोस्ताना होने के बजाये चुनौतीपूर्ण होता था। और होता ये था कि अपनी ओर खास तौर पर ध्यान खींचने के लिए आदमी को बुफे के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। नहीं, सितारे आपस में बहुत कम ऊष्मा या रोशनी देते हैं।

लेखक बहुत अच्छे लोग होते हैं लेकिन वे देने में कंजूसी बरतते हैं; वे जो कुछ भी जानते हैं, वे शायद ही दूसरों के बीच बांटते हों। उनमें से ज्यादातर अपने ज्ञान को अपनी किताबों की जिल्दों के भीतर रखते हैं। हो सकता है कि वैज्ञानिक बहुत अच्छी कम्पनी देते हों, लेकिन उनकी मौजूदगी मात्र से ड्राइंगरूम में मौजूद हम अन्य सभी मानसिक रूप से विक्षिप्त महसूस करने लगते हैं। पेंटर अपने आप में इस मायने में बोर होते हैं कि वे आपको इस बात का विश्वास दिला कर ही छोड़ेंगे कि वे पेंटर की तुलना में बड़े दार्शनिक हैं। निश्चित रूप से कवि बेहतरीन श्रेणी में आते हैं क्योंकि व्यक्ति के रूप में वे खुशमिजाज, सहनशक्ति से लैस और बहुत ही शानदार कम्पनी होते हैं। लेकिन मेरा ख्याल है कि कुल मिला कर संगीतकार किसी भी अन्य वर्ग की तुलना में अधिक सहयोगी होते हैं। किसी सिम्फनी आर्केस्ट्रा को देखने से ज्यादा ऊष्मा और गति देने वाली और कोई चीज़ नहीं है। उनके म्यूजिक स्टैंड की रूमानी लाइटें, ट्यून अप करना और जब कन्डक्टर प्रवेश करता है तो अचानक छा जाने वाला सन्नाटा,ये बातें सामाजिक, सहयोगी भावना को ही दर्शाती हैं। मुझे याद है, होरोविट्ज़, पिआनोवादक मेरे घर पर खाना खा रहे थे, और मेहमान दुनिया के हालात पर बातचीत कर रहे थे, और बता रहे थे कि ये मंदी और बेरोज़गारी दुनिया में एक तरह का आध्यात्मिक नवजागरण लायेंगे। अचानक ही वे उठे और बोले, 'इस बातचीत को सुन कर मेरी इच्छा हो रही है कि मैं पिआनो बजाऊं।' बेशक किसी ने भी इस पर एतराज़ नहीं किया और उन्होंने शूमैन का सोनाटा नम्बर 2 बजाया। मुझे शक है कि कभी इसे इससे बेहतर तरीके से बजाया गया होगा।

युद्ध शुरू होने से बस, कुछ ही दिन पहले मैंने उनकी पत्नी, टोस्कानिनी की बेटी के साथ खाना खाया। रशमनीनोफ और बार्बीरोली भी वहीं पर थे। रशमनीनोफ थोड़े अजीब से दिखने वाले शख्स थे। उनमें सौन्दर्य और साधक तत्व था। ये डिनर बेहद आत्मीय माहौल में था और वहां पर सिर्फ हम पांच ही थे।


ऐसा लगता है कि जब भी कला की चर्चा होती है, मैं हर बार इसकी अलग ही व्याख्या करता हूं। ऐसा क्यों न हो? उस शाम मैंने कहा था कि कला कौशलपूर्ण तकनीक में इस्तेमाल की जाने वाली अतिरिक्त संवेदना है। किसी ने तब विषय को धर्म की तरफ मोड़ दिया। तब मैंने स्वीकार किया कि मैं विश्वास करने वालों में से नहीं हूं। रशमनीनोफ ने तुरंत टोका, 'तो क्या आपके पास बिना धर्म के कला हो सकती है?'

मैं एक पल के लिए सिटपिटा गया। 'मुझे नहीं लगता कि हम एक ही विषय के बारे में बात कर रहे हैं,' मैंने कहा, 'धर्म की मेरी संकल्पना किसी हठधर्मिता में विश्वास करना है और कला विश्वास से कहीं अधिक भावना होती है।'

'यही बात धर्म के साथ भी है,' उन्होंने जवाब दिया। इसके बाद तो मैं चुप ही हो गया।


मेरे घर पर खाना खाते हुए इगोर स्ट्राविन्सकी ने सुझाव दिया कि हम मिल कर एक फिल्म बनायें। मैंने कहानी बुनी। मैंने कहा कि ये अतियथार्थवादी होनी चाहिये - एक ढहता हुआ नाइट क्लब है और उसमें डांस फ्लोर के चारों तरफ मेजें लगी हुई हैं। और हरेक मेज पर समूह और जोड़े बैठे हैं जो सांसारिक विश्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक मेज पर लालच, दूसरी पर पाखंड, एक अन्य मेज पर बेरहमी हैं। जो फ्लोर शो है वह भावनाओं का खेल है और जबकि सबके त्राता को सूली पर चढ़ाया जा रहा है, सब के सब उदासीन हो कर देख रहे हैं। कोई खाने का आर्डर दे रहा है तो कोई धंधे की बात कर रहा है। बाकी लोग भी बहुत कम दिलचस्पी दिखा रहे हैं। भीड़, उच्च पादरी और पाखंडी सूली पर अपनी मुट्ठियां ताने चिल्ला रहे हैं, 'अगर आप ईश्वर की संतान हैं तो नीचे आइये और अपने आप को बचाइये।' पास ही की एक मेज पर कारोबारी लोगों का एक समूह उत्तेजना में एक बड़े सौदे की बात कर रहा है। एक आदमी नर्वस हो कर अपनी सिगरेट पर झुका है और त्राता की तरफ देख रहा है और परमात्मा की दिशा में, ख्यालों में खोये हुए धूंआ छोड़ रहा है।

एक अन्य मेज पर एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ बैठा मीनू देख रहा है। वह ऊपर देखती है और फिर फ्लोर से अपनी कुर्सी पीछे सरका देती है, 'मैं इस बात को समझ नहीं पाती कि लोग यहां आते ही क्यों हैं?' वह बेचैन हो कर कहती है, 'यहां दम घुटता है।'

'ये अच्छा मनोरंजन है।' व्यापारी कहता है। यहां शो शुरू करने से पहले ये जगह दिवालिया थी। अब वे मुसीबत से बाहर निकल आये हैं।'

'मेरा ख्याल है ये धर्मविरोधी है।'

'इससे बहुत भला होता है,' व्यापारी ने कहा, 'जो लोग कभी भी किसी गिरजा घर के अंदर नहीं गये, यहां आते हैं और उन्हें ईसाईयत की कहानी पता चलती है।'

जैसे जैसे शो आगे बढ़ता है, एक शराबी, शराब के नशे में एक अलग ही धरातल पर उड़ रहा है। वह अकेले बैठा हुआ है और पहले वह रोना और फिर शोर मचाना शुरू कर देता है, 'देखो, वे लोग उन्हें सूली पर चढ़ा रहे हैं, और किसी को परवाह ही नहीं है।' वह अपने पैरों पर लड़खड़ाता है और अपील करने की मुद्रा में अपने हाथ सूली की तरफ बढ़ा देता है। पास ही बैठी एक मंत्री की बीवी वेटर से शिकायत करती है और शराबी को उस जगह से बाहर ले जाया जाता है। वह अभी भी रो रहा है और विरोध कर रहा है, 'देखो, किसी को परवाह ही नहीं है, कितने शानदार ईसाई हैं आप लोग!!'

'आप देखिये,' मैंने स्ट्राविन्स्की से कहा, 'वे उसे उठा कर बाहर फेंक देते हैं क्योंकि वह शो का मज़ा खराब कर रहा है।' मैंने उन्हें समझाया कि नाइट क्लब के डांस फ्लोर पर भावना के खेल को डालने का अर्थ ये दिखाना था कि ईसाईयत के प्रदर्शन में दुनिया कितनी पागल और दकियानूसी बन गयी है।

महाशय का चेहरा बहुत गम्भीर हो गया, 'लेकिन ये तो बहुत भयानक है,' कहा उन्होंने।

मैं थोड़ा हैरान और कुछ हद तक परेशान भी हुआ।

'ऐसा है क्या?' पूछा मैंने, 'मेरी मंशा ऐसा करने की कत्तई नहीं थी। मैं तो ये सोच रहा था कि ये ईसाईयत के प्रति दुनिया के नज़रिये की आलोचना है - शायद कहानी सुनाते समय मैं कहीं गलती कर गया और बात को साफ नहीं कर पाया।' और इस तरह से इस विषय को छोड़ ही दिया गया। लेकिन कई हफ्ते बाद स्ट्राविन्स्की ने यह जानने के लिए पत्र लिखा कि क्या मैं अभी भी उनके साथ मिल कर फिल्म बनाने का विचार रखता हूं। अलबत्ता, मेरा उत्साह ठंडा पड़ गया था और मैं अपनी खुद की फिल्म बनाने में ज्यादा रुचि लेने लगा।

हैन्स एस्लर शोनबर्ग को मेरे स्टूडियो में लाये। वे स्पष्टवादी और रूखे आदमी थे। मैं उनके संगीत का प्रशंसक था और उन्हें मैं लॉस एंजेल्स में टेनिस टूर्नामेंटों में सफेद कैप और टीशर्ट पहने खुली सीटों पर अकेले बैठे अक्सर देखा था। मेरी फिल्म माडर्न टाइम्स देखने के बाद उन्होंने मुझे बताया था कि उन्हें कॉमेडी तो अच्छी लगी थी लेकिन मेरा संगीत बहुत खराब था। मैं उनसे आंशिक रूप से सहमत था। संगीत के बारे में चर्चा करते समय उन्होंने एक जुमला कहा था जो शाश्वत था: 'मैं आवाज़ें पसंद करता हूं, खूबसूरत आवाज़ें।'

हैन्स एस्लर ने इस महान व्यक्ति के बारे में एक मज़ेदार किस्सा सुनाया था। हैन्स उनके पास हार्मोनी सीखने जाया करते थे। उन्हें कड़ाके की ठंड में, जब बर्फ पड़ रही होती थी, पांच मील चल कर जाना पड़ता था ताकि वे आठ बजे अपने गुरू से संगीत का पाठ पढ़ सकें। शोनबर्ग, जो गंजेपन की ओर बढ़ रहे थे, पिआनो पर बैठ जाते जबकि हैन्स उनके कंधे के पीछे खड़े हो जाते और संगीत का पाठ पढ़ते रहते और सीटी बजाते रहते। 'नौजवान' गुरूजी ने कहा, 'सीटी मत बजाओ, तुम्हारी बर्फीली सांस मेरे सिर पर बहुत ठंडी लग रही है।'


दडिक्टेटर के निर्माण के दौरान मुझे सनक भरे पत्र मिलने शुरू हो गये थे और अब चूंकि फिल्म पूरी हो गयी थी, ऐसे पत्रों की संख्या बढ़ने लगी। कुछ पत्रों में धमकियां दी गयी थीं कि वे लोग थियेटर पर बदबूदार बम फेंकेंगे जबकि कुछ और धमकियां थीं कि जहां कहीं फिल्म दिखायी जा रही होगी, परदे फाड़ देंगे। कुछ अन्य पत्रों में दंगा फसाद करने की बात कही गयी थी। पहले तो मैंने सोचा कि पुलिस को बताया जाये लेकिन फिर सोचा कि इस तरह का प्रचार शायद दर्शकों को थियेटरों से दूर ही रखे। मेरे एक दोस्त ने सुझाव दिया कि जहाजी मज़दूरों की यूनियन के प्रमुख हैरी ब्रिजेस से बात करना ठीक रहेगा। इसलिए मैंने उन्हें घर पर खाने के लिए बुलाया।

मैंने उन्हें बुलाये जाने के कारण के बारे में साफ साफ बता दिया। मैं जानता था कि ब्रिजेस नाज़ी विरोधी हैं, इसलिए मैंने उन्हें समझाया कि मैं नाज़ी विरोधी फिल्म बना रहा हूं और मुझे धमकी भरे खत मिल रहे हैं। मैंने कहा, 'अगर कहें तो मैं पहले शो में आपके बीस या तीस मज़दूरों को आमंत्रित कर सकता हूं जो दर्शकों में घुल मिल कर बैठ जायेंगे और अगर ये नाज़ी समर्थक कोई हंगामा शुरू करते हैं तो आपके आदमी कुछ भी गम्भीर बात होने से पहले उनकी ऐसी तैसी कर सकते हैं।'

ब्रिजेस हँसे, 'मुझे नहीं लगता कि हालत यहां तक पहुंचेगी, चार्ली। ऐसे खुराफातियों का मुकाबला करने के लिए आपकी अपनी ही जनता में काफी रक्षक होंगे। और अगर ये पत्र नाज़ी समर्थकों की तरफ से हैं तो वैसे भी वे दिन दहाड़े वहां आने की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे।'

उस रात हैरी ने सैन फ्रांसिस्को की हड़ताल के बारे में एक बहुत ही रोचक बात बतायी। उस वक्त ये हालत थी कि पूरा का पूरा शहर ही उनके नियंत्रण में था। शहर की पूरी आपूर्ति उनके हाथ में थी। लेकिन उन्होंने अस्पतालों और बच्चों के लिए आवश्यक आपूर्ति में कोई बाधा नहीं डाली। हड़ताल के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, 'जब कारण न्यायोचित हो तो आपको जनता को प्रेरित करने की ज़रूरत नहीं होती; आपको सिर्फ यही करना होता है कि उन्हें तथ्य बता दें। बाकी बातें वे अपने आप तय कर लेंगे। मैंने अपने आदमियों से कहा कि अगर आप हड़ताल पर जाते हैं तो बीसियों तरह की तकलीफ़ें होंगी: हो सकता है कि कुछ लोगों को नतीजे ही पता न चलें। लेकिन वे जो भी तय करेंगे, मैं उनके कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहूंगा। अगर हड़ताल करने का फैसला होता है तो मैं पहली पंक्ति में खड़ा रहूंगा। मैंने कहा और पांच हज़ार आदमियों ने एक मत से हड़ताल करने का फैसला किया।'


द' ग्रेटडिक्टेटर न्यू यार्क में दो थियेटरों, एस्टर तथा द कैपिटल में फिल्म दिखाये जाने के लिए बुक की गयी थी। एस्टर में हमने फिल्म प्रेस को दिखाने की व्यवस्था की। हैरी हॉपकिन्स, फ्रैंकलिन रूज़वेल्ट के प्रमुख सलाहकार ने उस रात मेरे साथ खाना खाया। इसके बाद, हम प्रेस के लिए आयोजित फिल्म प्रदर्शन के लिए गये। जब हम पहुंचे तो फिल्म आधी चल चुकी थी।

कॉमेडी के प्रेस प्रदर्शन की एक खास विशेषता हुआ करती है। हँसी फिल्म में जिस तरह से होती है, उसी तरह से सुनायी देती है। रिव्यू में फिल्म में हँसी के पल, अपने सही अर्थों में सामने आते रहे।

'ये वाकई महान फिल्म है,' जब हम थियेटर से निकले तो हैरी ने कहा, 'आपने बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम किया है, लेकिन इसके चलने की बहुत कम उम्मीद है। आपको घाटा उठाना पड़ेगा।' चूंकि इस फिल्म में मेरे खुद के 2,000,000 डॉलर लगे हुए थे और दो वर्ष की मेहनत इससे जुड़ी हुई थी, मैं उनकी इस विपरीत राय से चिंतातुर होने की सीमा तक सहमत नहीं था। फिर भी, मैंने गम्भीरता से सिर हिलाया।

ईश्वर का धन्यवाद कि हॉपकिन्स गलत साबित हुए।

द' ग्रेटडिक्टेटर ने कैपिटल में खुशी से मस्त दर्शकों के सामने शानदार ढंग से खाता खोला। दर्शक दिल खोल कर हँस रहे थे और उनके उत्साह की सीमा नहीं थी। ये फिल्म न्यू यार्क में दो थियेटरों में पन्द्रह सप्ताह तक चलती रही और उस वक्त तक की मेरी सभी फिल्मों की तुलना में सबसे ज्यादा कमाई करके देने वाली फिल्म साबित हुई।

लेकिन समीक्षाएं जो थीं, वे मिली-जुली थीं। अधिकतर समीक्षकों को अंतिम भाषण पर एतराज़ था। द' न्यूयार्कडेलीन्यूज ने लिखा कि मैंने दर्शकों की तरफ साम्यवाद की उंगली उठायी है। हालांकि अधिकांश समीक्षकों ने भाषण पर ही एतराज़ किया था और कहा कि ये चरित्र में नहीं था। आम तौर पर जनता ने इसे पसन्द किया, और मुझे उसकी तारीफ में कई खत मिले।

आर्ची एल. मेयो, हॉलीवुड के महत्त् वपूर्ण निर्देशकों में से एक ने मुझसे अनुमति मांगी कि वे इस भाषण को अपने क्रिसमस कार्ड पर छापना चाहते हैं। यहां मैं मूल भाषण और उससे पहले उनके द्वारा दिया गया परिचय दे रहा हूं:

द' डिक्टेटर

का समापन भाषण

'मुझे खेद है, लेकिन मैं शासक नहीं बनना चाहता। ये मेरा काम नहीं है। किसी पर भी राज करना या किसी को जीतना नहीं चाहता। मैं तो किसी की मदद करना चाहूंगा - अगर हो सके तो - यहूदियों की, गैर यहूदियों की - काले लोगों की - गोरे लोगों की।

हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं। मानव होते ही ऐसे हैं। हम एक दूसरे की खुशी के साथ जीना चाहते हैं - एक दूसरे की तकलीफ़ों के साथ नहीं। हम एक दूसरे से नफ़रत और घृणा नहीं करना चाहते। इस संसार में सभी के लिए स्थान है और हमारी यह समृद्ध धरती सभी के लिए अन्न जल जुटा सकती है।

'जीवन का रास्ता मुक्त और सुन्दर हो सकता है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने आदमी की आत्मा को विषाक्त कर दिया है -दुनिया में नफ़रत की दीवारें खड़ी कर दी हैं - लालच ने हमें ज़हालत में, खून खराबे के फंदे में फंसा दिया है। हमने गति का विकास कर लिया लेकिन अपने आपको गति में ही बंद कर दिया है। हमने मशीनें बनायीं, मशीनों ने हमें बहुत कुछ दिया लेकिन हमारी मांगें और बढ़ती चली गयीं। हमारे ज्ञान ने हमें सनकी बना छोड़ा है; हमारी चतुराई ने हमें कठोर और बेरहम बना दिया है। हम बहुत ज्यादा सोचते हैं और बहुत कम महसूस करते हैं। हमें बहुत अधिक मशीनरी की तुलना में मानवीयता की ज्यादा ज़रूरत है। चतुराई की तुलना में हमें दयालुता और विनम्रता की ज़रूरत है। इन गुणों के बिना, जीवन हिंसक हो जायेगा और सब कुछ समाप्त हो जायेगा।

'हवाई जहाज और रेडियो हमें आपस में एक दूसरे के निकट लाये हैं। इन्हीं चीज़ों की प्रकृति ही आज चिल्ला-चिल्ला कर कह रही है - इन्सान में अच्छाई हो - चिल्ला चिल्ला कर कह रही है - पूरी दुनिया में भाईचारा हो, हम सबमें एकता हो। यहां तक कि इस समय भी मेरी आवाज़ पूरी दुनिया में लाखों-करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है - लाखों करोड़ों - हताश पुरुष, स्त्रियां, और छोटे छोटे बच्चे - उस तंत्र के शिकार लोग, जो आदमी को क्रूर और अत्याचारी बना देता है और निर्दोष इन्सानों को सींखचों के पीछे डाल देता है। जिन लोगों तक मेरी आवाज़ पहुंच रही है - मैं उनसे कहता हूं- `निराश न हों'। जो मुसीबत हम पर आ पड़ी है, वह कुछ नहीं, लालच का गुज़र जाने वाला दौर है। इन्सान की नफ़रत हमेशा नहीं रहेगी, तानाशाह मौत के हवाले होंगे और जो ताकत उन्होंने जनता से हथियायी है, जनता के पास वापिस पहुंच जायेगी और जब तक इन्सान मरते रहेंगे, स्वतंत्रता कभी खत्म नहीं होगी।

'सिपाहियो! अपने आपको इन वहशियों के हाथों में न पड़ने दो - ये आपसे घृणा करते हैं - आपको गुलाम बनाते हैं - जो आपकी ज़िंदगी के फैसले करते हैं - आपको बताते हैं कि आपको क्या करना चाहिए - क्या सोचना चाहिए और क्या महसूस करना चाहिए! जो आपसे मशक्कत करवाते हैं - आपको भूखा रखते हैं - आपके साथ मवेशियों का-सा बरताव करते हैं और आपको तोपों के चारे की तरह इस्तेमाल करते हैं - अपने आपको इन अप्राकृतिक मनुष्यों, मशीनी मानवों के हाथों गुलाम मत बनने दो, जिनके दिमाग मशीनी हैं और जिनके दिल मशीनी हैं! आप मशीनें नहीं हैं! आप इन्सान हैं! आपके दिल में मानवता के प्यार का सागर हिलोरें ले रहा है। घृणा मत करो! सिर्फ़ वही घृणा करते हैं जिन्हें प्यार नहीं मिलता - प्यार न पाने वाले और अप्राकृतिक!!

'सिपाहियो! गुलामी के लिए मत लड़ो! आज़ादी के लिए लड़ो! सेंट ल्यूक के सत्रहवें अध्याय में यह लिखा है कि ईश्वर का साम्राज्य मनुष्य के भीतर होता है - सिर्फ़ एक आदमी के भीतर नहीं, न ही आदमियों के किसी समूह में ही अपितु सभी मनुष्यों में ईश्वर वास करता है! आप में! आप में, आप सब व्यक्तियों के पास ताकत है - मशीनें बनाने की ताकत। खुशियां पैदा करने की ताकत! आप, आप लोगों में इस जीवन को शानदार रोमांचक गतिविधि में बदलने की ताकत है। तो - लोकतंत्र के नाम पर - आइए, हम ताकत का इस्तेमाल करें - आइए, हम सब एक हो जायें। आइए, हम सब एक नयी दुनिया के लिए संघर्ष करें। एक ऐसी बेहतरीन दुनिया, जहां सभी व्यक्तियों को काम करने का मौका मिलेगा। इस नयी दुनिया में युवा वर्ग को भविष्य और वृद्धों को सुरक्षा मिलेगी।

'इन्हीं चीज़ों का वायदा करके वहशियों ने ताकत हथिया ली है। लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे उस वायदे को पूरा नहीं करते। वे कभी करेंगे भी नहीं! तानाशाह अपने आपको आज़ाद कर लेते हैं लेकिन लोगों को गुलाम बना देते हैं। आइए, दुनिया को आज़ाद कराने के लिए लड़ें - राष्ट्रीय सीमाओं को तोड़ डालें - लालच को खत्म कर डालें, नफ़रत को दफ़न करें और असहनशक्ति को कुचल दें। आइये, हम तर्क की दुनिया के लिए संघर्ष करें - एक ऐसी दुनिया के लिए, जहां पर विज्ञान और प्रगति इन सबकों खुशियों की तरफ ले जायेगी, लोकतंत्र के नाम पर आइए, हम एक जुट हो जायें!

हान्नाह![1] क्या आप मुझे सुन रही हैं?

आप जहां कहीं भी हैं, मेरी तरफ देखें! देखें, हान्नाह! बादल बढ़ रहे हैं! उनमें सूर्य झाँक रहा है! हम इस अंधेरे में से निकल कर प्रकाश की ओर बढ़ रहे हैं! हम एक नयी दुनिया में प्रवेश कर रहे हैं - अधिक दयालु दुनिया, जहाँ आदमी अपनी लालच से ऊपर उठ जायेगा, अपनी नफ़रत और अपनी पाशविकता को त्याग देगा। देखो हान्नाह! मनुष्य की आत्मा को पंख दे दिये गये हैं और अंतत: ऐसा समय आ ही गया है जब वह आकाश में उड़ना शुरू कर रहा है। वह इन्द्रधनुष में उड़ने जा रहा है। वह आशा के आलोक में उड़ रहा है। देखो हान्नाह! देखो!'

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प्रीमियर के एक हफ्ते बाद मुझे आर्थर सुल्जबर्गर, न्यूयार्कटाइम्स के स्वामी द्वारा दिये गये लंच आयोजन में आमंत्रित किया गया। जब मैं वहां पहुंचा तो मुझे टाइम्स बिल्डिंग की सबसे ऊपर वाली मंजिल में ले जाया गया और एक घरेलू सुइट में मेरी अगवानी की गयी। ये पेंटिंगों,फोटोग्राफों और चमड़े के गद्दे वगैरह से सजा धजा एक ड्राइंग रूम था। फायर प्लेस के पास कई विभूतियां विराजमान थीं। इनमें युनाइटेड स्टेट्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति मिस्टर हरबर्ट हूवर, भी थे। साधुओं जैसी मुखाकृति और छोटी आंखें वाले कद्दावर शख्स थे वे।

'ये, श्रीमान पेसिडेंट, चार्ली चैप्लिन हैं।' मिस्टर सुल्जबर्गर ने मुझे उस विभूति के पास ले जाते हुए कहा। कई सलवटों के बीच में से मिस्टर हूवर का चेहरा मुस्कुराया।

'ओह! हां,' वे उत्साह से बोले, 'हम पहले भी मिल चुके हैं। कई बरस पहले।'

मैं ये देख कर हैरान हुआ कि मिस्टर हूवर को वह मुलाकात याद रही, क्योंकि उस वक्त वे व्हाइट हाउस के लिए खुद को ढालने की तैयारियों में लगे हुए थे। वे एस्टर होटल में एक प्रेस डिनर में शामिल हुए थे और मुझे वहां के एक सदस्य द्वारा मिस्टर हूवर के व्याख्यान से पहले भर्ती के रूप में शामिल कर लिया गया था। उस समय मैं तलाक दिये जाने की उलझनों में फंसा हुआ था और मुझे ऐसा लगता है कि मैंने इस आशय के कुछ शब्द बड़बड़ा दिये थे कि मैं राजनीति के बारे में बहुत कम जानता हूं बल्कि सच तो ये है कि मैं अपने खुद के मामलों को भी ढंग से कहां जानता हूं। दो मिनट तक इस तरह की कुछ बकवास करने के बाद मैं बैठ गया था। बाद में मिस्टर हूवर से मेरा परिचय कराया गया था। मेरा ख्याल है, मैंने वहां कहा था,'कैसे हैं आप!' और बस, बात वहीं खत्म हो गयी थी।

वे बेतरतीब सी पाण्डुलिपि देखकर बोल रहे थे। उनके सामने कागज़ों की चार इंच मोटी गड्डी थी और वे जैसे जैसे कागज़ पढ़ते जाते, उन्हें अपने सामने से हटाते जाते। डेढ़ घंटे बाद सब लोग उन कागज़ों को मज़े लेते हुए देखने लगे। दो घंटे बाद कागज़ों की बराबर-बराबर की दो गड्डियां हो गयी थी। कई बार वे बारह पन्द्रह कागज़ एक साथ उठा लेते और उन्हें एक तरफ रख देते। बेशक, वे पल बहुत सुखद होते। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है और ये भाषण भी आखिर खत्म हुआ, जिस वक्त उन्होंने बिल्कुल कारोबारी तरीके से अपने कागज़ संभाले, मैं उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया। मैं उन्हें उनके भाषण के लिए बधाई देना ही चाहता था कि वे मेरी तरफ ध्यान दिये कि मेरे पास से गुज़र गये थे।

और अब, कई बरसों के बाद, बीच का वह अरसा, जिसमें वे राष्ट्रपति रहे थे, वे असामान्य रूप से दोस्ताना दिखते हुए फायर प्लेस के सामने खड़े थे। हम एक बड़ी सी गोल मेज पर लंच के लिए बैठ गये। कुल मिला कर हम बारह लोग थे। मुझे बताया गया था कि इस तरह के लंच आयोजन एक खास भीतरी समूह के लिए ही होते थे।

अमेरिकी व्यवसायी प्रशासकों का एक वर्ग होता है जो मुझे हीनता की भावना से भर देता है। वे बहुत ऊंचे कद के होते हैं, दिखने में आकर्षक होते हैं, बेहद शानदार तरीके से उन्होंने कपड़े पहने होते हैं, सहज, आत्म नियंत्रण में रहने वाले और साफ सोचने वाले लोग, और उनके सामने तथ्य सफाई से रखे होते हैं। उनकी गूंजती सी भारी आवाज़ होती है और जब वे मानवीय मामलों की बात करते हैं तो ज्यामिती की भाषा के शब्दों में करते हैं। उदाहरण के लिए वे कहेंगे: 'वार्षिक बेरोज़गारी के नमूने से होनी वाली संगठनात्मक प्रक्रियाएं' आदि। और इसी तरह के लोग उस मेज पर चारों तरफ बैठे हुए थे। वे भयावह लग रहे थे और उनके कद आकाश को छूते लग रहे थे। उनमें अगर कोई मानवीय चेहरा था तो वह था ओ'हरे मैक्कार्मिक का। वे बहुत विदुषी और आकर्षक महिला थीं। वे न्यूयार्कटाइम्स की विख्यात राजनैतिक स्तम्भकार थीं।

लंच के वक्त माहौल औपचारिक था और बातचीत कर पाना मुश्किल था। हर कोई मिस्टर हूवर को 'मिस्टर प्रेसिडेंट' कह कर संबोधित कर रहा था। मुझे लगा, शायद इस सब की ज़रूरत नहीं थी। जैसे जैसे लंच आगे बढ़ा, मुझे यह महसूस होने लगा कि मुझे यूं ही बेकार में लंच के लिए आमंत्रित नहीं किया गया है। एक पल बाद मिस्टर सुल्जबर्गर ने जो कुछ कहा, उससे मेरा रहा सहा शक भी जाता रहा। बीच में, मौन के अनुकूल पल पा कर उन्होंने कहा,'मिस्टर प्रेसिडेंट, मैं चाहता हूं कि आप यूरोप के लिए अपने प्रस्तावित मिशन के बारे में बतायें।'

मिस्टर हूवर ने अपने छुरी कांटे नीचे रख दिये, ध्यानपूर्वक कौर चबाते रहे, तब उसे गले से नीचे उतारा और अंतत: उन्होंने वह सब कुछ कहना शुरू किया जो पूरे लंच के दौरान उसके दिलो-दिमाग को घेरे हुए था। वे अपनी प्लेट में देखकर बात करने लगे और जब वे बोलते तो मिस्टर सुल्जबर्गर और मेरी तरफ भेदभरी निगाहों से देख लेते,'हम सब जानते हैं कि इस वक्त यूरोप किस दयनीय हालत से गुज़र रहा है, वहां पर युद्ध के बाद से गरीबी और भुखमरी के हालात अपने पैर पसार रहे हैं। वहां पर हालात इतने नाज़ुक हैं कि मैंने वाशिंगटन से अनुरोध किया है कि वे हालात पर काबू पाने के लिए जल्दी ही कुछ करें,' (मैंने यही माना कि वाशिंगटन का मतलब राष्ट्रपति रूज़वेट ही होगा) यहां पर उन्होंने पहले विश्व युद्ध के दौरान भेजे गये अपने पिछले मिशन के आंकड़े और नतीजे उगलने शुरू कर दिये, जब 'हमने पूरे यूरोप को खिलाया था।' 'इस तरह का मिशन,'उन्होंने कहना जारी रखा,'किसी पार्टी से जुड़ा नहीं होगा, और ये पूरी तरह से मानवीय प्रयोजनों के लिए होगा। आप इसमें कुछ दिलचस्पी रखते हैं?'उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखते हुए कहा।

मैंने गंभीरता से सिर हिलाया।

'आप इस परियोजना को कब शुरू करना चाहते हैं, मिस्टर प्रेसिडेंट?' मिस्टर सुल्जबर्गर ने पूछा।

'जैसे ही हमें वाशिंगटन की तरफ से अनुमोदन मिलेगा,' मिस्टर हूवर ने कहा। 'वाशिंगटन को जनता की तरफ से अनुरोध किये जाने और गणमान्य सार्वजनिक विभूतियों की ओर से समर्थन की ज़रूरत है।' एक बार फिर उन्होंने मेरी तरफ कनखियों से देखा और मैंने एक बार फिर सिर हिलाया। 'कब्जे वाले फ्रांस में,' उन्होंने कहना जारी रखा, 'लाखों लोग ऐसे हैं जिन्हें मदद की ज़रूरत है। नार्वे, डेनमार्क, हॉलेण्ड, बेल्जियम, सब जगह,पूरा का पूरा यूरोप ही अकाल की चपेट में हैं।' वे साधिकार बोलते रहे, आंकड़े उगलते रहे और उन पर अपने विश्वास, आशा और सहृदयता का मुल्लमा चढ़ाते रहे।

इसके बाद मौन पसर गया। मैंने अपना गला खखारा,'बेशक, स्थितियां बिल्कुल वैसी ही नहीं हैं जैसी कि पहले विश्व युद्ध के समय थीं। फ्रांस और उसी की तरह दूसरे कई देश भी पूरी तरह से कब्जे में हैं। निश्चित रूप से हम नहीं चाहेंगे कि हम जो अन्न भेजें, वह नाज़ियों के हाथ लगे।'

मिस्टर हूवर थोड़ा सा नाराज़ दिखे, इसी तरह की मामूली सी सरसराहट उन सब लोगों में भी दिखी जो वहां पर जमा थे। वे सब के सब पहले मिस्टर हूवर की तरफ देखने लगे फिर मेरी तरफ।

मिस्टर हूवर ने फिर से अपनी प्लेट की तरफ देख कर कहा,'हम अमेरिकी रेड क्रॉस के सहयोग से, पार्टीबाजी से परे एक कमीशन बनायेंगे और हेग समझौते के पैरा सत्ताइस, खण्ड तितालिस के अधीन काम करेंगे। इसके अन्तर्गत मदद करने वाला मिशन (मर्सी कमीशन) दोनों ही तरफ के, वे आपस में संघर्षरत हों या नहीं, बीमारों और ज़रूरतमंदों की मदद करेगा। मेरा ख्याल है, मानवता की दृष्टि से आप सब के सब इस तरह के कमीशन का समर्थन करेंगे।' ये ठीक वही शब्द नहीं हैं जो उन्होंने कहे थे - इसी तरह के भावार्थ वाली बात कही थी उन्होंने।

मैं अपनी बात पर अड़ा रहा। 'मैं इस विचार से सच्चे दिल से पूरी तरह से सहमत हूं, लेकिन शर्त यही है कि ये अन्न नाज़ियों के हाथों में नहीं पड़ना चाहिए,' मैंने कहा।

इस जुमले से मेज पर एक बार फिर सनसनी फैल गयी।

मिस्टर हूवर ने सधी हुई विनम्रता के साथ कहा,'हम इस तरह के काम पहले भी कर चुके हैं।' वहां जो आकाश छूती युवा विभूतियां बैठी थीं,उन सबकी निगाह अब मेरी तरफ मुड़ी। उनमें से एक मुस्कुराया।

उसके बोल फूटे,'मेरा ख्याल है मिस्टर प्रेसिडेंट स्थिति को संभाल सकते हैं।'

'बहुत ही अच्छा विचार है,' मिस्टर सुल्जबर्गर ने अधिकारपूर्ण तरीके से कहा।

'मैं पूरी तरह से सहमत हूं,' मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा,'और इसका सौ प्रतिशत समर्थन करूंगा, यदि भौतिक रूप से इसकी व्यवस्था यहूदी लोगों के हाथों में हो।'

'ओह,' मिस्टर हूवर ने बात काटते हुए कहा,'ये तो संभव नहीं होगा।'

·

फिफ्थ एवेन्यू के आसपास चुस्त युवा नाज़ियों को महोगनी के छोटे-छोटे मंचों पर खड़े होकर जनता के छोटे-छोटे समूहों के सामने भाषण देते सुनना बहुत अजीब लगता। एक भाषण यूं चल रहा था: 'हिटलर का दर्शन गहन हैं और इस औद्योगिक युग, जिसमें बिचौलिये या यहूदी के लिए बिल्कुल भी जगह नहीं है, की समस्याओं का सुविचारित अध्ययन है।'

एक महिला ने टोका,'ये किस किस्म की बात हो रही है?' वह हैरान हुई,'ये अमेरिका है। आप समझते क्या हैं कि आप कहां हैं?'

वह चमचे सरीखा नौजवान, जो सुदर्शन था, बेशरमी से गुस्कुराया। 'मैं युनाइटेड स्टेट्स में हूं और संयोग से मैं अमेरिकी नागरिक हूं।' उसने सहजता से कहा।

'ये बात है,' वह महिला बोली,'मैं एक अमेरिकी नागरिक हूं और यहूदी हूं और अगर मैं पुरुष होती तो तुम्हें धूल चटा देती।'

एक या दो लोगों ने महिला की धमकी का समर्थन किया लेकिन ज्यादातर लोग भावशून्य होकर मौन खड़े रहे। पास ही खड़े एक पुलिस वाले ने महिला को शांत किया। मैं हैरान होकर वहां से लौटा। मैं अपने कानों पर विश्वास ही नहीं कर पा रहा था।

एक या दो दिन के बाद की बात है, मैं देहात वाले घर में था और एक पीले, खून की कमी की वज़ह से कमज़ोर-से दिखने वाले फ्रांसीसी युवक काउंट चैम्बरुन, जो पियरे लावाल की पुत्री का पति था, ने लंच से पहले मुझे लगातार कोंचना शुरू किया। उसने न्यू यार्क में पहली ही रात दग्रेटडिक्टेटर देखी थी। उसने उदारता से कहा, 'बेशक, आपके नज़रिये को गम्भीरता से नहीं लिया गया है।'

'कुछ भी कहो, ये कामेडी ही तो है।' मैंने कहा।

नाज़ी यातना शिविरों में जो जघन्य कत्ले आम हो रहे थे और जो अत्याचार ढाये जा रहे थे, अगर मुझे उनके बारे में पता होता तो मैं इतना विनम्र न होता। वहां पर पचास के करीब मेहमान जमा थे और हरेक मेज़ पर चार लोग बैठे थे। वह हमारी मेज़ पर चला आया और मुझे राजनैतिक बहस में घसीटने की कोशिश करने लगा। लेकिन मैंने उससे कह दिया कि मैं राजनीति की तुलना में अच्छा भोजन ज्यादा पसन्द करता हूं। उसकी बातचीत इस तरह की थी कि मैंने मज़बूरन अपना गिलास उठाया और कहा,'लगता है मैं बहुत अधिक मिनरल वाटर पीने लगा हूं।' अभी मैंने ये शब्द कहे ही थे कि किसी दूसरी मेज पर झड़प शुरू हो गयी और दो महिलाओं में तू तू मैं मैं शुरू हो गयी। ये झगड़ा इतना भीषण हो गया कि लगता था, एक-दूसरे के बाल खींचे जायेंगे। एक महिला दूसरी पर चिल्ला रही थी,'मैं इस तरह की बकवास सुनने की आदी नहीं हूं। तुम बेगैरत नाज़ी हो।'

न्यू यार्क के एक युवा राजकुमार ने मुझसे विनम्रता से पूछा कि मैं इतना अधिक नाज़ी विरोधी क्यों हूं? मैंने कहा, क्योंकि वे जनता के ही विरोधी हैं। 'बेशक' वह बोला, और उसे लगा कि उसने कोई नयी खोज कर ली है। पूछा मुझसे,'क्या आप यहूदी हैं? नहीं क्या?'

'नाज़ी विरोधी होने के लिए किसी का यहूदी होना ज़रूरी नहीं है।' मैंने जवाब दिया,'सबसे बड़ी और महत्त् वपूर्ण बात तो यही है कि आदमी सामान्य सभ्य आदमी बना रहे।' और ये विषय वहीं खत्म हो गया था।

एक या दो दिन के बाद की बात है, मुझे वाशिंगटन में हॉलआफदडॉटर्सऑफदअमेरिकनरिवोल्यूशन में हाज़िर होना था और रेडियो पर दग्रेटडिक्टेटर के अंतिम भाषण का पाठ करना था। इससे पहले, मुझे राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से मिलने के लिए बुलाया गया था। उनके अनुरोध पर मैंने ये फिल्म व्हाइट हाउस भिजवा दी थी। जब मुझे उनके निजी अध्ययन कक्ष में ले जाया गया तो उन्होंने ये कहते हुए मेरा स्वागत किया,'बैठो, चार्ली,आपकी फिल्म की वज़ह से अर्जेन्टीना में बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो गयी है।' फिल्म के बारे में बस, उनकी यही टिप्पणी थी। बाद में मेरे एक मित्र ने पूरी बात का निचोड़ बताते हुए कहा था,'आपका व्हाइट हाउस में स्वागत तो किया गया लेकिन गले से नहीं लगाया गया।'

मैं राष्ट्रपति के साथ लगभग चालीस मिनट तक बैठा था। इस दौरान उन्होंने मुझे कई बार ड्राई मार्टिनी के जाम पेश किये जिन्हें मैं शर्म के मारे भीतर उतरता रहा। जब विदा होने का वक्त आया तो मैं एक तरह से व्हाइट हाउस से लुढ़कता हुआ बाहर आया - तब मुझे अचानक याद आया कि मुझे तो दस बजे रेडियो पर बोलना था। ये राष्ट्रीय प्रसारण था जिसका मतलब होता लगभग छ: करोड़ लोगों से बात करना। ठण्डे पानी के नीचे खड़े हो कर कई बार सिर धोने और तेज़ ब्लैक कॉफी पीने के बाद ही मैं कमोबेश होश में आ पाया था।

अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं कूदा था इसलिए उस रात हाल में बहुत सारे नाज़ी थे। अभी मैंने अपना भाषण शुरू ही किया था कि नाज़ियों ने खांसना खखारना शुरू कर दिया। ये आवाज़ें स्वाभाविक रूप से खांसने से बहुत ऊंची थीं। इस बात ने मुझे नर्वस कर दिया और नतीजा ये हुआ कि मेरा मुंह सूख गया। मेरी जीभ मेरे तालु से चिपकने लगी और मेरे लिए शब्द बोलना मुश्किल हो गया। भाषण छ: मिनट लम्बा था। भाषण बीच में रोक कर मैंने कहा कि जब तक मुझे एक गिलास पानी नहीं मिलेगा, मैं आगे नहीं बोल पाऊंगा। बेशक, हॉल में एक बूंद भी पानी नहीं था और यहां पर मैं छ: करोड़ लोगों को रोके हुए था। दो मिनट के अंतराल के बाद मुझे कागज़ के एक छोटे से लिफाफे में पानी दिया गया। तभी मैं अपना भाषण पूरा कर पाया था।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 23

अब ये अपरिहार्य हो गया था कि पॉलेट और मैं अलग हो जायें। हम दोनों ही इस बात को दग्रेटडिक्टेटर के शुरू होने से बहुत पहले से जानते थे और अब फिल्म पूरी हो जाने के बाद हमारे सामने ये सवाल मुंह बाये खड़ा था कि कोई फैसला लें। पॉलेट यह संदेश छोड़ कर गयी कि वह पैरामाउंट में एक और फिल्म में काम करने के लिए कैलिफोर्निया वापिस जा रही है। इसलिए मैं कुछ अरसे तक रुका रहा और न्यू यार्क के आस-पास ही भटकता फिरा। फ्रैंक, मेरे बटलर ने फोन पर बताया कि जब वह बेवरली हिल्स वापिस आयी तो वह वहां पर ठहरी नहीं, अलबत्ता उसने अपना सामान समेटा और चली गयी। जब मैं बेवरली हिल्स अपने घर लौटा तो वह तलाक लेने के लिए मैक्सिको जा चुकी थी। घर अब बहुत उदास हो गया था। ज़िंदगी का ये मोड़ वाकई तकलीफ देने वाला था क्योंकि किसी की ज़िंदगी से आठ बरस के संग-साथ को काट कर अलग कर पाना मुश्किल काम था।

हालांकि दग्रेटडिक्टेटर अमेरिकी जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हो रही थी, इस बात में कोई शक नहीं था कि इसने भीतर ही भीतर विरोध के स्वर भी खड़े किये थे। इस तरह का पहला संकेत प्रेस से उस वक्त आया जब मैं बेवरली हिल्स वापिस आया। बीस से भी ज्यादा लोगों की धमकाती भीड़ हमारे कांच से घिरे पोर्च में आ जुटी और आ कर चुपचाप बैठ गयी। मैंने उन्हें शराब पिलानी चाही तो उन्होंने मना कर दिया - प्रेस के सदस्यों द्वारा इस तरह का व्यवहार करना असामान्य बात थी।

'आपके दिमाग में क्या है, चार्ली?' उनमें से एक ने पूछा। वह स्पष्टत: ही उन सबकी तरफ से बात कर रहा था।

'द डिक्टेटर के लिए थोड़ा-बहुत प्रचार!' मैंने मज़ाक में कहा।

मैंने उन्हें राष्ट्रपति के साथ अपने साक्षात्कार के बारे में बताया और इस बात का उल्लेख किया कि अमेरिकी दूतावास को अर्जेन्टीना में इस फिल्म की वज़ह से तकलीफ़ हो रही है। मुझे लगा कि मैंने उन्हें एक मज़ेदार किस्सा सुनाया है, लेकिन फिर भी वे मौन ही बने रहे। थोड़ी देर के अंतराल के बाद मैंने हँसी मज़ाक में कहा,'लगता है ये बात कुछ हजम नहीं हुई, क्या ख्याल है?'

'नहीं, बात तो नहीं जमी,' प्रवक्ता ने कहा। 'आपका जन सम्पर्क बहुत अच्छा नहीं है। आप प्रेस की परवाह न करते हुए चले गये थे और हमें ये बात अच्छी नहीं लगी।'

हालांकि मैं स्थानीय प्रेस के साथ कभी भी इतना लोकप्रिय नहीं था, उसकी बात से मुझे थोड़ा मज़ा आया। सच तो ये था कि मैं प्रेस से बिन मिले ही हॉलीवुड से चला गया था क्योंकि मैं यह मान कर चल रहा था कि जो मेरे बहुत अच्छे दोस्त नहीं हैं, हो सकता है वे लोग `दग्रेटडिक्टेटर को न्यू यार्क में देखे जाने का मौका दिये जाने से पहले ही उसकी चिंदी-चिंदी कर डालें। फिल्म में मेरे 2,000,000 डॉलर दांव पर लगे हुए थे और मैं कोई भी जोखिम लेना गवारा नहीं कर सकता था। मैंने उन्हें बताया कि चूंकि ये नाज़ी विरोधी फिल्म है, इसलिए इसके दुश्मन भी शक्तिशाली हैं,यहां कि वे लोग अमेरिका में भी हैं और फिल्म को एक मौका दिये जाने के लिए मैंने अंतिम क्षणों में ही जनता के लिए इसे प्रस्तुत करने से पहले इसका रिव्यू करने का फैसला लिया था।

लेकिन मेरी कही कोई भी बात उनके अड़ियल रुख को डिगा नहीं सकी। माहौल बदला और प्रेस में कई खुराफाती चीज़ें नज़र आने लगीं। शुरू-शुरू में छोटे-छोटे हमले, मेरे कमीनेपन के किस्से, फिर पॉलेट और मेरे बारे में अफवाहें। लेकिन उल्टे प्रचार के बावजूद दग्रेटडिक्टेटर इंगलैंड और अमेरिका, दोनों ही जगह धूम मचाती रही, कीर्तिमान भंग करती रही।

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हालांकि अमेरिका अभी तक युद्ध में नहीं उतरा था, रूज़वेल्ट ने हिटलर के साथ शीत युद्ध छेड़ा हुआ था। इस बात ने राष्ट्रपति को अच्छी-खासी परेशानी में डाल रखा था क्योंकि नाज़ियों ने अमेरिकी संस्थाओं और संगठनों में भीतर तक पैठ बनायी हुई थी; चाहे ये संगठन इस बात को जानते थे या नहीं; उन्हें नाज़ियों के हथियारों की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा था।

तभी अचानक और ड्रामाई खबर आयी कि जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला कर दिया है। इसकी भीषणता ने अमेरिका को सन्न कर दिया। लेकिन अमेरिका ने तत्काल ही युद्ध के लिए कमर कस ली और देखते ही देखते अमेरिकी सैनिकों की कई डिवीज़न समुद्र पर जा चुकी थीं। इसी वक्त में, रूसी सैनिक हिटलरी सेना को मास्को के बाहर रोके हुए थे और मांग कर रहे थे कि जल्दी ही दूसरा फ्रंट खोला जाये। रूज़वेल्ट ने इसकी सिफ़ारिश की थी; और हालांकि नाज़ियों के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोग अब भूमिगत हो चुके थे, उनका फैलता गया ज़हर अभी भी फिज़ां में घुला हुआ था। हमें अपने रूसी मित्रों से अलग करने की हर संभव कोशिश की जा रही थी। उस वक्त इस तरह का ज़हरीला प्रचार-प्रसार हो रहा था: 'पहले दोनों को आपस में लड़ मरने दो, फिर हम मौके के हिसाब से फैसला करेंगेl'

दूसरे फ्रंट को रोकने के लिए हर तरह की तरकीब इस्तेमाल की जा रही थी। आने वाले दिन चिंता से भरे थे। हर दिन हमें रूस में मरने वालों की दिल दहला देने वाली खबरें मिलतीं। दिन हफ्तों में बदलते गये और हफ्ते कई-कई महीनें में बदल गये, लेकिन हालात अभी भी वही थे। नाज़ी मास्को के बाहर डेरा डाले हुए थे।

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मेरा ख्याल है, इसी वक्त के दौरान मेरी मुसीबतें शुरू हुईं। मुझे सैन फ्रांसिस्को में रूसी युद्ध राहत के लिए अमेरिकी समिति के प्रमुख की ओर से एक टेलीफोन संदेश मिला। उन्होंने पूछा कि क्या मैं रूस में भूतपर्व अमेरिकी राजदूत मिस्टर जोसेफ ई डेविस की जगह ले सकूंगा? वे बोलने वाले थे लेकिन अंतिम क्षणों में उन्हें गले की तकलीफ हो गयी है। हालांकि मेरे पास कुछ ही घंटे का समय था, मैंने न्यौता स्वीकार कर लिया। बैठक अगले दिन होने वाली थी, इसलिए मैंने शाम की गाड़ी पकड़ी जिसने मुझे अगले दिन सुबह आठ बजे सैन फ्रांसिस्को पहुंचा दिया।

समिति ने मेरे लिए `एक सामाजिक यात्रा दौरा' तैयार किया था। लंच फलां जगह लेना है और डिनर दूसरी जगह - इसकी वज़ह से मुझे भाषण के बारे में सोचने का बहुत थोड़ा-सा ही वक्त मिल पाया। अलबत्ता, मैंने डिनर के वक्त दो गिलास शैम्पेन के अपने हलक के नीचे उतारे तो कुछ बात बनी।

उस हॉल की दस हज़ार लोगों की क्षमता थी और वह खचाखच भरा हुआ था। मंच पर विराजमान थे अमेरिकी जल सेना अध्यक्ष और थल सेना अध्यक्ष, तथा सैन फ्रांसिस्को के मेयर रोस्सी। उनके भाषण बंधे-बंधे से तथा टाल मटोल वाली भाषा में थे। मेयर ने कहा,'इस तथ्य को स्वीकार करना ही होगा कि रूसी हमारे मित्र हैं।' वे इस बात के प्रति सतर्क थे कि कहीं वे रूसी एमर्जेंसी का कुछ ज्यादा ही बखान न कर दें, या उनकी बहादुरी की कुछ ज्यादा ही तारीफ़ न कर दें या इस तथ्य का उल्लेख न कर दें कि वे नाज़ियों की लगभग दो सौ डिवीज़नों को रोके रखने के लिए लड़ और मर रहे थे। उस शाम मैंने महसूस किया कि नज़रिया तो यही था कि हमारे मित्र राष्ट्र हमदम तो हैं लेकिन अजीब हैं।

समिति के प्रमुख ने मुझसे आग्रह किया था कि मैं, हो सके तो एक घंटे तक बोलूं। इस बात ने मुझे भयभीत कर दिया। अधिकतम चार मिनट तक बोलने की मेरी सीमा थी। लेकिन इस तरह की कमज़ोर दलीलें सुन कर मेरा गुस्सा भड़क उठा था। मैंने अपने डिनर के निमंत्रण पत्र के पीछे चार विषयों की टिप्पणियां लिखीं। मैं घबराहट और डर की हालत में मंच के पीछे वाले हिस्से में दायें बायें हो रहा था। मैं मित्रों के आगे बढ़ने का इंतज़ार कर रहा था। तभी मैंने सुना कि मेरा परिचय दिया जा रहा था।

मैं काली टाई और डिनर जैकेट पहने हुए था। थोड़ी सी तालियां बजीं जिससे मुझे अपने आपको संभालने के लिए थोड़ा-सा वक्त मिल गया। जब शोर थमा तो मैंने एक ही शब्द कहा,'कॉमेरड्स!' और पूरे हॉल में हँसी वे जैसे फटाखे फूटे। जब हँसी थमी तो मैंने ज़ोर देकर कहा,'और मैं सचमुच कॉमरेड ही कहना चाहता हूं।' नये सिरे से हँसी की फुहारें, फिर तालियां। मैंने अपनी बात जारी रखी,'मैं ये मान कर चल रहा हूं कि आज रात यहां पर बहुत सारे रूसी हैं, और जिस तरह से आपके देशवासी ठीक इस पल में लड़ रहे हैं और मर रहे हैं, आपको कॉमरेड कह कर पुकारना अपने आप में आदर और विशेषाधिकार है।' तालियां बजाते हुए कई लोग खड़े हो गये।

'दोनों को खून बहाने दो' के बारे में सोचते हुए अब मेरे भीतर जोत जल चुकी थी। मैं इस जुमले के बारे में अपनी नाराज़गी दर्शाना चाहता था, लेकिन किसी भीतरी प्रेरणा ने मुझे ऐसा करने से रोका। इसके बजाये मैंने कहा,'मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं, मैं एक इन्सान हूं और मेरा ख्याल है, मैं मानवों की, इन्सानों की प्रतिक्रिया के बारे में जानता हूं। कम्यूनिस्ट किसी और व्यक्ति से ज़रा-सा भी अलग नहीं होते; चाहे वे अपना एक हाथ खो बैठें, या अपनी टांग खो बैठें; उन्हें भी उतनी ही तकलीफ़ भोगनी पड़ती है जितनी हमें भोगनी पड़ती है, वे भी वैसे ही मरते हैं जैसे हम मरते हैं और कम्यूनिस्ट मां भी किसी दूसरी मां की ही तरह होती है। जब उसे यह दु:खद समाचार मिलता है कि उसका बेटा अब कभी लौट कर नहीं आयेगा तो वह भी उसी तरह से रोती है जिस तरह से कोई और मां रोती है। मुझे ये सब जानने के लिए मेरा कम्यूनिस्ट होना ज़रूरी नहीं है। ये सब जानने के लिए मेरा इन्सान होना ही काफी है, और ठीक इन्हीं पलों में रूसी माताएंं बहुत रो रही हैं और उनके बहुत से बेटे मर रहे हैं...।'

मैं चालीस मिनट तक बोलता रहा। मुझे नहीं मालूम था कि अगले शब्द कौन से होंगे। मैंने उन्हें हँसाया और रूज़वेल्ट के बारे में किस्से सुना कर खुश किया। मैंने उन्हें पहले विश्व युद्ध में युद्ध संबंधी अपने भाषण के बारे में बता कर हँसाया - मैं गलती पर नहीं था।

मैंने अपनी बात जारी रखी,'और अब ये युद्ध - 'मैं यहां पर रूसीयुद्धराहत की ओर से आया हूं।' मैं रुका और फिर मैंने अपने शब्द दोहराये,'रूसी युद्ध राहत।' धन से मदद हो सकती है लेकिन उन्हें धन से भी अधिक कुछ चाहिए। मुझे बताया गया है कि आयरलैण्ड के उत्तर में मित्र राष्ट्रों के बीस लाख सैनिक जान की बाजी लगाये बैठे हैं जबकि रूसी अकेले के दम पर नाज़ियों की दोनों डिवीज़नों को रोके हुए हैं।' मौन बहुत अधिक घना हो गया। 'रूसी,' मैंने ज़ोर देकर कहा,'हमारे मित्र हैं। वे केवल अपनी जीवन शैली के लिए ही नहीं लड़ रहे हैं, वे हमारी जीवन शैली के लिए भी लड़ रहे हैं और अगर मैं अमेरीकियों को जानता हूं तो वे अपनी खुद की लड़ाई लड़ना पसन्द करते हैं। स्तालिन चाहते हैं, रूज़वेल्ट ने इसका आह्वान किया है, इसलिए आइए, हम सब इसकी मांग करें - अब हम दूसरा मोर्चा खोलें।'

इसे सुन कर जो पागल कर देने वाला शोर-शराबा हुआ, पूरे सात मिनट तक चलता रहा। यह विचार श्रोताओं के दिल में और दिमाग में था। उन्होंने मुझे आगे बात ही नहीं करने दी। वे लगातार ज़मीन पर पैर पटकते और तालियां बजाते रहे। जिस वक्त वे ज़मीन पर पैर पटक रहे थे,चिल्ला रहे थे, और हवा में अपने हैट उछाल रहे थे, मैं ये सोच-सोच कर हैरान होने लगा कि मैंने कहीं कुछ ज्यादा तो नहीं कह दिया है या कहीं बहुत आगे तो नहीं बढ़ गया हूं। तब मैं अपने आपसे इस बात पर गुस्सा होने लगा कि मैंने उन हज़ारों लोगों के, जो लड़ रहे थे और मर रहे थे, के मुंह पर भयभीत कर देने वाले इतने घिनौने विचार प्रकट ही कैसे कर दिये, और आखिर में जब श्रोता शांत हुए तो मैंने कहा,'आप जिस तरह से इस चीज़ के बारे में सोचते हैं, क्या आप में से हरेक व्यक्ति राष्ट्रपति को इस आशय का एक तार भेजेगा? हम उम्मीद करें कि कल तक राष्ट्रपति तक दस हज़ार तार इस अनुरोध के साथ पहुंच जायेंगे कि दूसरा मोर्चा खोला जाये!'

बैठक के बाद मैंने महसूस किया कि माहौल में तनाव और बेचैनी घुल गये हैं। डुडले फील्ड मालोने, जॉन गारफील्ड और मैं किसी जगह पर खाना खाने के लिए गये। 'यार, आपमें तो गज़ब की हिम्मत है,' गारफील्ड ने मेरे भाषण का ज़िक्र करते हुए कहा। उनकी बात ने मुझे विचलित कर दिया, क्योंकि मैं शहीद नहीं होना चाहता था और न ही किसी राजनैतिक पचड़े में फंसना चाहता था। मैंने वही कहा था जो मैंने ईमानदारी से महसूस किया था और जिसे मैंने सही समझा था। इसके बावजूद, जॉन के जुमले के बाद मैं बाकी पूरी शाम हताशा महसूस करता रहा। लेकिन भाषण के नतीजे के रूप में मैंने जिन डरावने बादलों की उम्मीद की थी, वे सब हवा में उड़ चुके थे और बेवरली हिल्स वापिस आ कर जीवन एक बार उसी ढर्रे पर चलने लगा था।

कुछ ही हफ्तों बाद मुझे एक और अनुरोध मिला कि मैं मेडिसन स्क्वायर में होने वाली विशाल जनसभा को टेलीफोन पर ही संबोधित करूं। चूंकि ये सभा भी उसी मकसद के लिए थी, मैंने उसे स्वीकार कर लिया। और करता भी क्यों नहीं? इस सभा को सर्वाधिक सम्मानित व्यक्तियों के संगठनों द्वारा प्रायोजित किया गया था। मैं चौदह मिनट तक बोलता रहा। यह भाषण औद्योगिक संगठनों की कांग्रेस की परिषद को इतना अच्छा लगा कि उन्होंने इसे प्रकाशित करना उचित समझा। इस प्रयास में मैं अकेला ही नहीं था, ये बात सीआइओ द्वारा प्रकाशित पुस्तिका से स्पष्ट हो जायेगी:

भाषण

'रूस के लड़ाई के मैदानों पर

लोकतंत्र जियेगा या मरेगा'

विशाल भीड़, जिसे पहले से ही चेतावनी दे दी गयी थी कि वह न तो बीच में टोकेगी और न ही तालियां बजायेगी, प्रत्येक शब्द पर हिस हिस करती रही और तनाव में बैठी रही। इस तरह से वे अमेरिका की महान जनता के महान कलाकार चार्ल्स चैप्लिन को चौदह मिनट तक उस वक्त सुनते रहे जब वे हॉलीवुड से टेलीफोन पर उन्हें संबोधित कर रहे थे।

22 जुलाई 1942 की शाम होने से पहले न्यू यार्क में मेडिसन स्क्वायर पर ट्रेड यूनियनों के सदस्य, नागरिक, भाई बिरादर, बुजुर्ग सदस्य,समुदाय और गिरजा घर संगठनों और अन्यों के सत्रह हज़ार सदस्य जुटे ताकि वे हिटलर और उसकी चांडाल चौकड़ी पर अंतिम विजय के पलों को निकट लाने के लिए दूसरा मोर्चा तत्काल ही खोलने के लिए राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट के समर्थन में अपनी आवाज़ उठा सकें।

इस विशाल प्रदर्शन की प्रायेजक थीं ग्रेटर न्यू यार्क इंडस्ट्रियल यूनियन काउंसिल सीआइओ से जुड़ी 250 यूनियनें। वेंडल एल विल्की, फिलिप मुरे, सिडनी हिलमैन और कई अन्य प्रमुख अमेरिकियों ने इस रैली के समर्थन में अपने उत्साहवर्धक संदेश भेजे।

इस अवसर पर मौसम ने भी अपना समर्थन जतलाया। आसमान साफ रहा। वक्ताओं के मंच पर अमेरिकी राष्ट्र ध्वज के दोनों तरफ मित्र राष्ट्रों के झण्डे लहरा रहे थे और राष्ट्रपति के समर्थन में तथा दूसरा मोर्चा खोलने के लिए नारों की पट्टिकाओं से वह विशाल जन सागर अटा पड़ा था। पार्क के चारों तरफ की सड़कों पर जहां कहीं देखो, लोग नज़र आते थे।

बैठक की शुरुआत लूसी मोनरो ने द' स्टारस्पैंगल्डबैनर गीत गा कर की तथा जेन फ्रोमैन, आरलेन फ्रांसिस और अमेरिकी थियेटर संघ के कई अन्य लोकप्रिय सितारों ने जन समुदाय का मनोरंजन किया। युनाइटेड स्टेट्स सीनेटर जेम्स एम. मीड, और क्लाउड पैपर, मेयर एफ एच ला गॉर्डिया, लेफ्टिनेंट गवर्नर चार्ल्स पोलेटी, प्रतिनिधि वीटो मर्केन्टोनियो, माइकल क्विल तथा जोसेफ कुर्रान, न्यू यार्क सीआइओ काउंसिल के अध्यक्ष आदि मुख्य वक्ता थे।

सीनेटर मीड ने कहा,'हम इस युद्ध को तभी जीत पायेंगे जब हम आज़ादी के संघर्ष के लिए एशिया में, जीते हुए यूरोप में, अफ्रीका में, पूरे दिल से और पूरे उत्साह से बड़ी संख्या में लोगों को भर्ती करेंगे।' और सीनेटर पैपर: 'वह जो हमारी कोशिशों में अड़ंगा लगाता है, जो रोकने के लिए गिड़गिड़ाता है, वह गणतंत्र का दुश्मन है।' और जोसेफ़ कुर्रान: 'हमारे पास मानव शक्ति है। हमारे पास सामग्री है। हम जीतने का एक ही रास्ता जानते हैं - और वह है कि दूसरा मोर्चा खोल दिया जाये!'

यहां पर जो आम जनता की भीड़ जमा थी, जब भी राष्ट्रपति का ज़िक्र होता, दूसरे मोर्चे का, और हमारे बहादुर मित्र राष्ट्रों का, बहादुर लड़ाकों का और सोवियत संघ का, ब्रिटेन और चीन का ज़िक्र होता तो सबके सब एक स्वर में खूब उत्साह बढ़ाते। इसके बाद लाँग डिस्टेंस टेलीफोन के ज़रिये चार्ल्स चैप्लिन का भाषण आया।

अबदूसरेमोर्चेकेलिए राष्ट्रपतिकीरैलीकासमर्थनकरनेकेलिए!

मेडिसन स्क्वायर पार्क, जुलाई 22, 1942

'रूस के लड़ाई के मैदानों में लोकतंत्र जीवित रहेगा या खत्म हो जायेगा। मित्र राष्ट्रों की किस्मत कम्यूनिस्टों के हाथों में है। अगर रूस को हटा दिया जाता है तो एशियाई महाद्वीप - इस ग्लोब में सबसे बड़ा और सबसे समृद्ध महाद्वीप नाज़ियों के अधिकार में चला जायेगा। चूंकि लगभग पूरा का पूरा पूर्वी क्षेत्र जापानियों के हाथों में है, तब दुनिया की कमाबेश सभी महत्त् वपूर्ण युद्ध सामग्री नाज़ियों के हाथ लग जायेगी। तब हमारे पास हिटलर को हराने का कौन-सा मौका रह जायेगा?

परिवहन की दिक्कत, हमारी संचार की लाइनों के हज़ारों मील दूर होने की समस्या, इस्पात, तेल और रबड़ की समस्या - और हिटलर की ये रणनीति कि फूट डालो और जीतो - अगर रूस को हटा दिया जाता है तो हम तो कहीं के नहीं रहेंगे। बुरी हालत हो जायेगी हमारी।

'कुछ लोग कहते हैं कि इससे युद्ध दस या बीस बरस तक खिंच जायेगा। अगर मैं अपने अनुमान की बात करूं तो यह इस बात को आशावादी तरीके से सामने रखना है, ऐसे हालात में और इस तरह के खतरनाक शत्रु के सामने भविष्य बेहद अनिश्चित रहेगा।

हमकिसबातकाइंतज़ारकररहेहैं?

'रूसियों को मदद की बहुत सख्त ज़रूरत है। वे दूसरे मोर्चे के लिए गिड़गिड़ा रहे हैं। मित्र राष्ट्रों के बीच इस बात को लेकर मतभेद है कि क्या इस वक्त एक दूसरा मोर्चा संभव है। हमारे सुनने में ये बात आती है कि मित्र राष्ट्रों के पास इतनी आपूर्ति नहीं है कि वे दूसरे मोर्चे का बोझ उठा सकें। लेकिन फिर सुनायी देता है कि उनके पास पर्याप्त साज़ो-सामान है। हम ये भी सुनते हैं कि वे इस वक्त, संभावित हार को देखते हुए दूसरे मोर्चे का जोखिम नहीं लेना चाहते। कि वे तब तक कोई मौका नहीं लेना चाहते जब तक वे निश्चित या तैयार न हो जायें।

'लेकिन क्या हम तब तक इंतज़ार करना गवारा कर सकते हैं जब तक निश्चित और तैयार न हो जायें। क्या आप सुरक्षित खेलना गवारा कर सकते हैं? युद्ध में कोई भी रणनीति सुरक्षित नहीं हुआ करती। ठीक इसी वक्त जर्मन काकेशस से 35 मील दूर हैं। अगर काकेशस उनके हाथ में चला जाता है तो रूसी तेल का 95 प्रतिशत हाथ से चला जायेगा। जब हज़ारों लोग मर रहे हों और लाखों लोग मरने की कगार पर हों तो हमें ईमानदारी से वह सब कुछ कह ही डालना चाहिये जो हमारे दिमाग में है। लोग-बाग अपने आपसे सवाल पूछ रहे हैं। हम सुनते हैं कि आयरलैण्ड में महान अभियान दल उतर रहे हैं, हमारी कानबाइयों में से पिचानवे प्रतिशत सफलता से यूरोप में पहुंच रही हैं, बीस लाख अंग्ऱेजों के पास हर तरह का साज़ो-सामन है, और वे कूद पड़ने को तैयार हैं। तो ऐसे में जबकि रूस में हालात इतने हताशाजनक हैं, हम किस चीज़ का इंतज़ार कर रहे हैं?

हमचुनौतीस्वीकारकरसकतेहैं

'नोट करें वाशिंगटन के अधिकारीगण और लंदन के अधिकारीगण, ये प्रश्न असहमतियां पैदा करने के लिए नहीं। हम उनसे ये सवाल इसलिए पूछते हैं ताकि भ्रम को दूर कर सकें और आखिर में होने वाली विजय के लिए विकास और एकता की भावना कर सकें। और जो भी जवाब होगा,हम स्वीकार कर सकते हैं।

'इस समय रूस की जो हालत है, वह दीवार से पीट सटाये लड़ रहा है। ये दीवार है मित्र राष्ट्रों की सबसे मज़बूत प्रतिरक्षा। हमने लीबिया की प्रतिरक्षा की और उसे खो बैठे, हमने क्रेटे की प्रतिरक्षा की और उससे हाथ धो बैठे। हमने प्रशांत के इलाके में फिलिपीन्स की और दूसरे द्वीपों की रक्षा की और वे सब हमसे छिन गये। लेकिन हम रूस को हाथ से जाने देना गवारा नहीं कर सकते। जिस वक्त हमारी दुनिया - हमारा जीवन -हमारी सम्पति हमारे पैरों के पास गिरी पड़ी हो तो हमें मौके का फायदा उठाना ही होगा।

'अगर रूस काकेशस को हार बैठता है तो ये मित्र राष्ट्रों के उद्देश्‍यों के लिए सबसे बड़ी आपदा होगी। तब आप तुष्टि देने वालों का इंतज़ार करेंगे। वे छिपने की अपनी जगहों से बाहर आयेंगे। वे विजेता हिटलर के साथ शांति स्थापित करना चाहेंगे। वे कहेंगे: `और अधिक अमेरिकी जानें गंवाने में कोई समझदारी नहीं है - हम हिटलर के साथ 'एक अच्छा सौदा कर सकते हैं।`

नाज़ीफंदेसेसावधानरहें

`इस नाज़ी फंदे से सावधान रहें। ये नाज़ी भेड़िये भेड़ों का भेस धारण कर लेंगे। वे हमारे लिए शांति को बहुत अधिक आकर्षक बना देंगे और इससे पहले कि हम उस शांति को जान ही पायें, हम नाज़ी विचारों के चंगुल में फंस चुके होंगे। तब हमें गुलाम बना लिया जायेगा। वे हमसे हमारी आज़ादी छीन लेंगे और हमारे दिमागों पर नियंत्रण कर लेंगे। इस दुनिया पर तब गेस्टापो कर राज होगा। वे हवा में से हम पर शासन करेंगे। हां,यही भविष्य की ताकत है।

'जब सारे आकाशों की ताकत नाज़ी हाथों में होगी तो नाज़ी आदेशों का विरोध करने वाली सारी ताकतों का अस्तित्व ही समाप्त कर दिया जायेगा। मानव प्रगति का नामो-निशान नहीं रहेगा। दुनिया में अल्पसंख्यकों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे, कामगारों के कोई अधिकार नहीं रहेंगे। नागरिक अपने लिए किसी अधिकार की मांग नहीं कर सकेंगे। सारी की सारी चीज़ें नेस्तनाबूद कर दी जायेंगी, हम अगर एक बार भी इन तुष्टिदाताओं की बात सुन लें और विजेता हिटलर के साथ शांति का समझौता कर लें तो उन्हीं का आतताई आदेश पूरी धरती को नियंत्रित करेगा।

हमएकमौकालेसकतेहैं

'उन तुष्टिदाताओं पर निगाह रखो जो आपदा के बाद हमेशा सिर उठाते हैं।

'अगर हम अपनी निगाहें खुली रखते हैं और हम अपने मनोबल को ऊंचा बनाये रखते हैं तो हमें बिल्कुल भी डरने की ज़रूरत नहीं है। याद रखें, मनोबल था इसीलिए इंगलैंड बच पाया, और अगर हम अपना मनोबल बनाये रखेंगे, तो आश्वस्त रहें, जीत हमारी ही है।

'हिटलर ने कई मौकों का फायदा उठाया है। उसका सबसे बड़ा मौका रूसी मुहिम है। अगर वह इन गर्मियों तक काकेशस की घेराबंदी तोड़ने में सफल नहीं हो जाता तो ईश्वर ही मालिक है। अगर उसे मास्को के आस पास सर्दियों का एक और मौसम गुज़ारना पड़ता है तो ईश्वर ही मालिक है। उसके पास जो अवसर है, वह बहुत दुर्लभ है लेकिन फिर भी उसने मौका ले लिया है। और अगर हिटलर मौकों का फायदा उठा सकता है तो हम क्यों नहीं ले सकते मौका? हम एक्शन चाहते हैं। हमें बर्लिन पर गिराने के लिए और बम दो। हमें वे उन्नत ग्लेन मार्टिन सी प्लेन दो ताकि हम अपनी परिवहन की समस्या से निपट सकें। सबसे बड़ी बात, अब हमें दूसरा मोर्चा चाहिए ही चाहिए।

वसन्तऋतुतकविजय

'आइए, हम लक्ष्य बना कर चलें कि वसन्त ऋतु तक विजय पा लेंगे। आप भले ही फैक्टरियों में हों, आप भले ही खेतों में हों, आप वर्दी में हों, दुनिया के सभी नागरिको, आइए, हम इस लक्ष्य को पाने के लिए मिल कर काम करें और इसके लिए संघर्ष करें। आप, वाशिंगटन के अधिकारीगण, और लंदन के अधिकारीगण, आइए, हम अपना लक्ष्य निश्चित कर लें - हमें वसंत ऋतु तक विजय हासिल करनी है।

'अगर हम इसी विचार को लेकर चलें, इसी विचार के साथ काम करें, इसी विचार के साथ जीयें, इससे एक ऐसी भावना पैदा होगी जिससे हमारी ऊर्जा बढ़ेगी और हम अपनी मुहिम में तेज़ी ला पायेंगे।

'आइए, इस असंभव को संभव कर दिखाने के लिए जुट जायें। इस बात को याद रखें कि पूरा इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि सबसे बड़ी उपलब्धियां वे ही जीतें रही हैं जिन्हें असंभव माना जा रहा था।'

फिलहाल मेरे दिन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहे थे, लेकिन ये तूफान से पहले की शांति थी। जो परिस्थितियां इस अजीबो-गरीब किस्से तक ले गयीं वे बेहद मासूमियत से शुरू हुई थीं। रविवार का दिन था और टेनिस के एक खेल के बाद डूरैंट ने मुझे बताया कि उसने जॉन बैरी नाम की एक नवयुवती से मिलने की बात तय कर रखी है। वह पोला गेट्टी की मित्र है; वह उसके किसी मित्र ए.सी. ब्लूमेंटल के परिचय पत्र के साथ हाल ही में मैक्सिको शहर से आयी है। टिम ने बताया कि वह उस लड़की और उसकी एक सहेली के साथ खाना खाने जा रहा है। उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं भी साथ चलना चाहूंगा क्योंकि मैरी ने मुझसे मिलने की इच्छा व्यक्त की है, हम पेरिनो के रेस्तरां में मिले। जिस सहेली का उसने ज़िक्र किया था वह खुशमिजाज और देखने में भली लग रही थी। हम चारों ने वह सुकून भरी शाम एक साथ गुज़ारी और मैंने सोचा भी नहीं था कि उस लड़की से दोबारा मुलाकात होगी।

लेकिन अगले ही रविवार टिम उसे अपने साथ लेकर आया। ये टेनिस के लिए ओपन हाउस था। रविवारों की शाम को हमेशा यही होता था कि मैं अपने सारे स्टाफ को छुट्टी दे देता था और बाहर खाना खाया करता था इसलिए मैंने टिम और मिस बैरी को रोमानोफ रेस्तरां में खाने के लिए आमंत्रित किया और डिनर के बाद मैंने उन्हें अपनी गाड़ी में उनके घर पर छोड़ दिया। अलबत्ता, अगली सुबह मिस बैरी का फोन आया। वह जानना चाह रही थी कि क्या मैं उसे लंच के लिए ले जाऊंगा। मैंने उसे बताया कि मैं नब्बे मील दूर सांता बारबारा में एक नीलामी में हिस्सा लेने जा रहा हूं और अगर उसे करने के लिए और कोई काम नहीं है तो वह मेरे साथ चली चले। हम वहां पर लंच करेंगे और उसके बाद नीलामी में चले जायेंगे। एक दो चीज़ें खरीदने के बाद मैंने उसे गाड़ी में वापिस लॉस एंजेल्स छोड़ दिया।

मिस बैरी बाइस बरस की भरपूर सौन्दर्य वाली युवती थी। उसकी कद काठी अच्छी थी। ईश्वर उसके वक्षस्थल को लेकर उस पर कुछ अधिक ही मेहरबान हुआ था। उसके उरोज बेहद आकर्षक और विशाल थे और जब वह गर्मियों वाली काफी नीचे वाले गले की काट वाली पोशाक पहनती तो सामने वाले की नीयत डांवाडोल कर देती थी। मैं जब उसे वापिस उसके घर छोड़ रहा था तो उसने मेरी कामुक उत्सुकता को जगा दिया। तभी उसने बताया कि पॉल गेट्टी के साथ उसका झगड़ा हो गया है और वह अगली ही रात न्यू यार्क वापिस जा रही है। लेकिन अगर मैं चाहूं तो वह मेरे लिए सब कुछ छोड़-छाड़ कर रुक सकती है। मुझे थोड़ा-सा शक हुआ क्योंकि ये प्रस्ताव इतना अचानक, इतना अजीब लग रहा था, मैंने उसे साफ-साफ बता दिया कि वह मेरे भरोसे न रहे और ये कहते हुए मैंने उसे उसके अपार्टमेंट के बाहर छोड़ दिया और उसे विदा किया।

मेरी हैरानी की सीमा न रही जब उसने दो एक दिन बाद फोन किया और बताया कि वह कैसे भी करके रुक रही है और क्या मैं उससे उसी रात मिल सकूंगा। जहां चाह वहां राह! और इस तरह से वह अपने लक्ष्य को पाने में सफल रही और मैं उससे अक्सर मिलने लगा। इसके बाद जो दिन आये, हालांकि नाखुश करने वाले नहीं थे लेकिन उनमें कुछ न कुछ ऐसा था जो अजीब था और सब कुछ सामान्य नहीं था। कई बार बिना फोन किये वह देर रात को अचानक ही मेरे घर आ जाती। ये बात कुछ हद तक विचलित करने वाली थी। कभी ऐसा भी होता कि पूरे हफ्ते तक मुझे उसकी कोई खबर न मिलती। हालांकि मैं इस बात को स्वीकार नहीं करूंगा लेकिन मैंने बेचैनी महसूस करना शुरू कर दिया। हां, ये ज़रूर होता कि जब वह दोबारा अपना चेहरा दिखाती तो बेहद खुश नज़र आती और फिर मेरे शक और डर हवा में उड़ जाते।

एक दिन मैंने सर कैड्रिक हार्डविक और सिन्क्लेयर लेविस के साथ लंच लिया। लंच के दौरान उन्होंने शैडोएण्डसब्सटेंस नाम के नाटक का ज़िक्र किया। इसमें खुद कैड्रिक ने भूमिका निभायी थी। लेविस ने ब्रिजेट की भूमिका की तुलना आधुनिक जॉन ऑफ आर्क से की। उसका सवाल था कि इस नाटक पर एक बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती है। इसमें मेरी दिलचस्पी जागी। मैंने कैड्रिक से कहा कि मैं नाटक पढ़ना चाहूंगा। उन्होंने मेरे पास प्रति भिजवा दी।

एक या दो रात बाद की बात है। जॉन बैरी डिनर के लिए आयी। मैंने उससे नाटक का ज़िक्र किया तो बैरी ने बताया कि उसने ये नाटक देख रखा है और वह लड़की की भूमिका करना चाहेगी। मैंने उसे गम्भीरता से नहीं लिया। लेकिन उस शाम उसने मुझे लड़की वाली भूमिका पढ़ कर सुनायी और मैं ये देखकर हैरान रह गया कि उसने बेहतरीन ढंग से पाठ किया था। वह आइरिश उच्चारण बनाये रख पायी थी। मैं इतना अधिक उत्साहित हो गया कि मैंने यह देखने के लिए उसका मौन परीक्षण भी किया कि वह कैमरे के सामने कैसी लगेगी। मैं सन्तुष्ट हुआ।

अब उसकी अजीबो-गरीब हरकतों के बारे में मेरे सारे शक दूर हो गये। मुझे तो यहां तक लगा कि मैंने एक खोज कर ली है। मैंने उसे मैक्स रेनहार्ड के अभिनय स्कूल में भेजा क्योंकि उसे तकनीकी प्रशिक्षण की ज़रूरत थी और अब चूंकि वह वहां पर व्यस्त थी, हमारी कम ही मुलाकातें हो पातीं। मैंने अभी तक नाटक के अधिकार नहीं खरीदे थे, इसलिए मैं कैड्रिक से मिला और उसकी मदद से मैं 25,000 डॉलर में फिल्म के लिए अधिकार हासिल कर पाया। तब मैंने बैरी को 250 डॉलर प्रति सप्ताह के करार पर रख लिया।

ऐसे रहस्यवादी लोग होते हैं जो ये मान कर चलते हैं कि हमारा अस्तित्व आधा स्वप्न होता है और कि ये जानना मुश्किल होता है कि वह सपना कहां खत्म होता है और कहां वास्तविकता शुरू होती है। मेरे साथ यही हो रहा था। महीनों तक मैं पटकथा लिखने में उलझा रहा। तभी अजीबो-गरीब और परेशान करने वाली बातें होने लगीं। बैरी अपनी कैडिलैक चलाते हुए आधी रात को आती। वह बहुत ज्यादा नशे में होती। तब मुझे अपने ड्राइवर को जगाना पड़ता ताकि वह उसे घर छोड़ आये। एक बार तो उसने अपनी कार रास्ते में भिड़ा दी और उसे कार को वहीं छोड़ घर आना पड़ा। अब चूंकि उसका नाम चैप्लिन स्टूडियो से जुड़ा हुआ था, मुझे इस बात की चिंता सताने लगी कि कहीं पुलिस उसे शराब पीकर गाड़ी चलाने के जुर्म में पकड़ कर ले गयी तो इससे अच्छा-खासा हंगामा खड़ा हो जायेगा। आखिर हालत ये हो गयी कि वह इतनी झगड़ालू हो गयी कि जब वह आधी रात को फोन करती तो मैं न तो फोन उठाता और न ही उसके लिए दरवाजा खोलता। उसने तब खिड़कियों के कांच तोड़ना शुरू कर दिया। रातों-रात मेरा अस्तित्व एक दु:स्वप्न में बदल गया।

तब मेरी जानकारी में ये बात आयी कि वह रेनहार्ड स्कूल से कई हफ्तों से गैर हाज़िर है। जब मैंने उससे आमने-सामने इस बारे में पूछा तो उसने अचानक घोषणा कर दी कि वह अभिनेत्री नहीं बनना चाहती और अगर मैं उसके लिए तथा उसकी मां के लिए न्यू यार्क वापिस जाने पर किराया और 5000 डॉलर दे दूं तो वह खुशी-खुशी करार फाड़ डालेगी। ऐसी हालत में मैंने बिना किसी हूल हिज्जत के उनकी बातें मान लीं, उनका किराया दिया, 5000 डॉलर दिये और मुझे इस बात की खुशी हुई कि मैं उससे जान छुड़वा पाया।

हालांकि, बैरी मैडम का मामला टांय टांय फिस्स हो गया था, मुझे शैडोएण्डसब्सटेंस के अधिकार खरीदने का कोई अफसोस नहीं था। मैं पटकथा लगभग पूरी कर चुका था और मेरे ख्याल से ये बहुत अच्छी बन पड़ी थी।

सैन फ्रांसिस्को की बैठक को इस बीच महीनों बीत चुके थे, और रूसी अभी भी दूसरे मोर्चे की मांग कर रहे थे। अब न्यू यार्क से एक और अनुरोध आया। मुझसे अनुरोध किया गया कि मैं कार्नेजी हॉल में एक सभा को संबोधित करूं। मैं अपने आप से बहस करता रहा कि जाऊं या न जाऊं और इस नतीजे पर पहुंचा कि मैंने बिस्मिल्लाह कर दिया था, उतना ही काफी है। लेकिन एक दिन बाद जब जैक वार्नर मेरे टेनिस कोर्ट में खेल रहे थे, तो मैंने उनसे इसके बारे में बताया। उन्होंने रहस्यमय तरीके से सिर हिलाया।

'मत जाओ,' वे बोले।

'लेकिन क्यों नहीं?' पूछा मैंने।

उन्होंने कारण तो नहीं बताया लेकिन यही कहते रहे, 'मैं आपको भीतर की बात बता रहा हूं, मत जाइए।'

इसका उलटा असर हुआ। मेरे लिए ये एक चुनौती हो गया। ये वह वक्त था जब दूसरे मोर्चे के लिए पूरे अमेरिका में सहानुभूति की चिंगारी लगाने के लिए बहुत ही कम शब्दों की ज़रूरत थी। रूस हाल ही में स्तालिनग्राद की लड़ाई जीत चुका था। इसलिए मैं गया, टिम डुरैंट को अपने साथ लेता गया।

कार्नेजी हॉल बैठक में पर्ल बक, रोकवैल कैंट, ओर्सोन वैलेस और कई ख्यातिनाम विभूतियां मौजूद थीं। ओर्सोन वैलेस को इस मौके पर बोलना था, लेकिन जब विरोधी पक्ष की आवाज़ बुलंद होने लगी, उन्होंने नपे तुले शब्दों में ही अपनी बात कहने में अपनी बेहतरी समझी। ऐसा मेरा ख्याल है। वे मुझसे पहले बोले और इस बात का उल्लेख किया कि उन्हें इस बात की कोई तुक नज़र नहीं आती कि वे क्यों न बोलें क्योंकि ये आयोजन रूसी युद्ध राहत के लिए है और रूसी हमारे मित्र हैं। उनका भाषण बिना नमक के भोजन की तरह बेस्वाद था। इससे मेरा फैसला और भी पक्का हो गया कि मुझे अपने मन की बात कहनी ही चाहिए। मैंने अपने शुरुआती शब्दों में एक स्तम्भ लेखक का उल्लेख किया जिसने मुझ पर आरोप लगाया था कि मैं चाहता हूं कि यह युद्ध चलता रहे और मैंने कहा, 'जिस तरह की मुट्ठियां उस स्तम्भकार ने तानी हैं, मेरा तो यही कहना है कि वही ईष्यार्लु है और खुद ही लड़ाई का चलते रहना चाहता है। मुसीबत ये है कि हम रणनीति पर असहमत हो जाते हैं - वह खुद इस वक्त दूसरे मोर्चे पर भरोसा नहीं करता। मैं खुद करता हूं।'

'ये बैठक चार्ली और दर्शकों के बीच एक प्यार भरी दावत थी।' डेलीवर्कर ने लिखा। लेकिन मेरी भावनाएं मिली-जुली थीं; हालांकि मैं सन्तुष्ट था लेकिन डरा हुआ था।

कार्नेजी हॉल से निकलने के बाद टिम और मैंने कांसटेंस कौलियर के साथ खाना खाया। वे भी बैठक में मौजूद थीं। मेरी बात सुन कर वे बहुत अभिभूत थीं। कांसटेंस कुछ भी हो सकती थीं, वामपंथी नहीं थीं। जब हम वाल्डोर्फ आस्टोरिया पहुंचे तो हमें जॉन बैरी की तरफ से कई टेलीफोन संदेश मिले। मेरी बायीं आंख फड़कने लगी। मैंने सारे संदेश तुरंत फाड़ डाले लेकिन फोन फिर बजा। मैं टेलीफोन ऑपरेटर से कहना चाहता था कि वह उसकी तरफ से मुझे कोई कॉल न लगाये लेकिन टिम ने कहा, 'बेहतर होगा आप ऐसा न करें। या तो आप फोन पर बात करें या वह खुद ही यहां पहुंच जायेगी और हंगामा खड़ा करेगी।'

अगली बार जब फोन बजा तो मैंने बात की। वह काफी सामान्य और खुश लग रही थी। वह सिर्फ़ आ कर मिलना और हैलो कहना चाहती थी। मैंने सहमति दे दी और टिम से कहा कि वे मुझे बैरी के साथ अकेला न छोड़ें। उस शाम बैरी ने मुझे बताया कि न्यू यार्क आने के बाद में वह पियरे होटल में रह रही है। ये होटल पॉल गेट्टी का है। मैंने झूठ बोला कि हम सिर्फ़ एक या दो दिन के लिए ही रुक रहे हैं और मैं कोशिश करूंगा और एकाध लंच उसके साथ करने की गुंजाइश निकालूंगा। वह आधे घंटे तक रुकी और पूछा कि क्या मैं उसे पीयरे तक छोड़ने चलूंगा? जब उसने ज़िद की कि मैं उसे कम से कम लिफ्ट तक तो छोड़ दूं तो मुझे शक होने लगा। अलबत्ता, मैंने उसे प्रवेश द्वार पर छोड़ा और और ये पहली और आखिरी बार था जब मैंने उसे न्यू यार्क में देखा था।

दूसरे मोर्चे के लिए मेरे भाषणों का ये नतीजा हुआ कि न्यू यार्क में मेरी सामाजिक ज़िंदगी में उतार आने लगा। अब मुझे सप्ताहांत बिताने के लिए महलनुमा देहाती घरों में नहीं बुलाया जाता था। कार्नेजी हाल बैठक के बाद क्लिफटन फैडीमैन, लेखक और निबंधकार जो कि कोलम्बिया ब्रॉडकास्टिंग सिस्टम के लिए काम कर रहे थे, होटल में मुझसे मिलने आये और पूछा कि क्या मैं अन्तर्राष्ट्रीय प्रसारण करना चाहूंगा। वे मुझे सात मिनट देंगे और मैं अपनी मर्जी से कुछ भी कह सकता हूं। मुझे ये प्रस्ताव स्वीकार करने का लालच हो रहा था लेकिन तभी उन्होंने ज़िक्र किया कि ये प्रसारण केट स्मिथ कार्यक्रम में होगा। तब मैंने इस आधार पर मना कर दिया कि युद्ध के प्रयासों के बारे में मेरी प्रतिबद्धताएं जेलो के लिए विज्ञापनबाजी बन कर रह जायेंगी। मैं फैडीमैन का दिल नहीं दुखाना चाहता था। वे बहुत प्यारे, ईश्वरीय दिल वाले और सुसंस्कृत व्यक्ति थे और जब वे जैलो का ज़िक्र कर रहे थे, उनका चेहरा लाल हो गया था। मुझे तत्काल अफसोस हुआ। काश, मैं अपने शब्द वापिस ले सकता।

उसके बाद, मेरे पास हर तरह के ढेरों खत आये - एक पत्र विख्यात अमेरीकी प्रथम नागरिक - गेराल्ड एल के स्मिथ की तरफ से था जो इस विषय पर मुझसे बहस करना चाहते थे। अन्य प्रस्ताव भाषणों के थे, दूसरे मोर्चे के पक्ष में बोलने के थे।

अब मुझे लगने लगा कि मैं राजनैतिक भंवर में फंस गया हूं। मैंने अपने लक्ष्यों के बारे में ही सवाल करने शुरू कर दिये। मेरे भीतर का अभिनेता मुझे कितना प्रेरित करता था और सामने वाली जनता की प्रतिक्रिया कितनी प्रेरित करती थी? अगर मैंने नाज़ी विरोधी फिल्म न बनायी होती तो क्या मैं इस शेखचिल्लीपने के रोमांचकारी हंगामे में उतरा होता? क्या ये मेरी सवाक फिल्मों के खिलाफ मेरी चिढ़ और प्रतिक्रिया का परम बिन्दु था? मेरा ख्याल है, ये सभी बातें कहीं न कहीं जुड़ी हुई थीं, लेकिन सबसे खास बात ये थी कि ये नाज़ी व्यवस्था के लिए मेरी नफ़रत और अवमानना थी।


§ जर्मनों द्वारा 1914 में विकसित चलने पिरने वाली होवित्जर तोपें। इनका नामकरण गुस्ताव क्रुप की पत्नी के नाम पर किया गया था। 43 टन की ये तोपें 2200 पौंड के गोले पेंक सकती थीं। अऩु

§ 1939-45 युद्ध से पहले प्रांस जर्मन सीमा पर प्रांस द्वारा घेरी गयी सीमा रेखा

± मई 1940 में प्रांस के बंदरगाहों से हारी हुई ब्रिटिश सेनाओं को समुद्री रास्ते से निकालने के दृश्य

मेरी आत्मकथा : अध्याय 24

बेवरली हिल्स वापिस आने के बाद मैं एक बार फिर शैडोएंडसब्सटैंस पर काम करने में जुट गया। ओर्सेन वैलेस मेरे घर पर एक प्रस्ताव ले कर आये। उन्होंने बताया कि वे डॉक्यूमेंटरी फिल्मों की एक श्रृंखला कर रहे हैं। जीवन से ली गयी सच्ची कहानियों को ले कर। इनमें में से एक होगी कुख्यात फ्रांसीसी हत्यारे, औरतों के रसिया लांड्रू पर। उनके ख्याल से ये मेरे करने के लिए एक शानदार ड्रामाई काम होगा।

इसमें मेरी दिलचस्पी जागी क्योंकि ये काम कॉमेडी से थोड़ा-सा हट कर होगा और साथ ही लेखन से, अभिनय करने से और स्वयं निर्देशन करने से थोड़ा बदलाव आयेगा। ये काम मैं बरसों से करता आ रहा था। इसलिए मैंने पटकथा मांगी।

'ओह, वो तो अभी तक लिखी ही नहीं गयी है।' बताया उन्होंने, 'लेकिन सबसे बड़ी ज़रूरत यही है कि लांड्रू के मुकदमे से सब कुछ ले लिया जाये और आपका काम बन जायेगा।' उन्होंने आगे कहा, 'मेरा तो यही ख्याल था कि आप इसके लेखन में मदद करेंगे ही।'

मैं निराश हो गया। 'अगर मुझे इसके लेखन में मदद करनी है तो इसे करने में मेरी कोई रुचि नहीं है।' मैंने कह दिया और मामला वहीं खत्म हो गया।

लेकिन एक या दो दिन बाद ही मुझे लगा कि लांड्रू वाले विचार को ले कर एक शानदार कॉमेडी बनायी जा सकती है। इसलिए मैंने वैलेस को फोन किया, 'देखो, लांड्रू के बारे में डॉक्यूमेंटरी बनाने के आपके विचार ने मुझे एक कॉमेडी के लिए आइडिया दिया है। इसका लांड्रू से कुछ भी लेना देना नहीं है, लेकिन सब कुछ साफ हो, इसलिए मैं आपको पांच हज़ार डॉलर देने के लिए तैयार हूं, सिर्फ इसलिए कि आपके प्रस्ताव ने मुझे इस दिशा में सोचने दिया है।'

वे हुम .. .. करने लगे और हिचकिचाये।

'देखिये, लांड्रू आपके साथ या किसी और के साथ कोई असली कहानी नहीं है। ये तो अब जनता की स्मृति में है।'

वे कुछ पल सोचते रहे फिर बोले कि मैं उनके मैनेजर से बात कर लूं। इस तरह से सौदा कर लिया गया: वैलेस को 5000 डॉलर मिलेंगे और मैं सभी दायित्वों से मुक्त रहूंगा। वैलेस ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया लेकिन एक प्रावधान जोड़ने के लिए कहा: कि फिल्म देख लेने के बाद उन्हें ये विशेष अधिकार दिया जाये कि वे स्‍क्रीन क्रेडिट्स में ये वाक्य डलवा सकें: 'आइडिया ओर्सोन वैलेस ने सुझाया।'

मैंने अपने उत्साह में इस अनुरोध पर बहुत कम सोचा। अगर मैंने इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया होता कि वे इससे आखिर क्या हासिल करना चाहते हैं तो मैंने इस बात पर ज़ोर दिया होता कि कोई स्‍क्रीन आभार नहीं माना जायेगा।

अब मैंने शैडोएंडसब्सटैंस को एक तरफ रख दिया और मोन्स्योरवेरडौऊ लिखना शुरू कर दिया। मैं इस पटकथा पर पिछले तीन महीने से काम कर रहा था कि अचानक जॉन बैरी ने बेवरली हिल्स पर तूफान खड़ा कर दिया। मेरे बटलर ने बताया कि उसने फोन किया था। मैंने कह दिया कि किसी भी हालत में मैं उससे नहीं मिलूंगा।

इसके बाद जो घटनाएं हुईं, वे न केवल घिनौनी थीं बल्कि व्यथित करने वाली भी थीं। चूंकि मैंने उससे मिलने से मना कर दिया था इसलिए वह जबरदस्ती घर में घुस गयी और खिड़कियां तोड़ डालीं, मेरी जान लेने की धमकी दी और धन की मांग की। आखिर मज़बूरन मुझे पुलिस को बुलवाना पड़ा। ये काम मुझे बहुत पहले ही कर लेना चाहिये था, बेशक इससे प्रेस वालों को लिखने के लिए अच्छा-खासा मसाला मिल जाता। लेकिन पुलिस ने बहुत सहयोग दिया। उन्होंने कहा कि वे उसके खिलाफ आवारागर्दी के आरोप रोक लेंगे अगर मैं इसे वापिस न्यू यार्क भिजवाने के लिए किराया देने के लिए तैयार हो जाऊं। इसलिए मैंने एक बार फिर उसका किराया दिया। पुलिस ने उसे चेतावनी दी कि अगर वह बेवरली हिल्स के आस पास भी नज़र आयी तो उस पर आवारागर्दी का आरोप ठोक दिया जायेगा।

इस बात को सोच कर तरस ही आता है कि आप कह सकते हैं कि इस घिनौने घटनाक्रम के बाद मेरे जीवन के सबसे सुखद दिन, बस, आने ही चाहिये थे। लेकिन छायाएं रात के अंधेरे में विलीन हो जाती हैं और प्रात: होते ही सूर्य उदित होता है।

कुछ ही महीने बीते होंगे कि एक दिन मिस मिन्ना वालिस, हॉलीवुड में काम करने वाली एक फिल्म एजेंट ने यह कहने के लिए फोन किया कि उसके पास न्यू यार्क से हाल ही में आयी एक कलाकार है जो उनके ख्याल से शैडोएंडसब्सटैंस में ब्रिजेट के प्रमुख पात्र के लिए एकदम सही रहेगी। अब चूंकि मोन्स्योरवेरडाऊ प्रेरित कर पाने के हिसाब से एक मुश्किल कहानी थी, मैं उसे आगे बढ़ाने में मुश्किलें पा रहा था, मैंने मिस वालिस के इस संदेश को एक अच्छे शकुन के रूप में माना कि शायद मैं शैडोएंडसब्सटैंस पर काम करने के बारे में फिर से सोचूं और फिलहाल के लिए मोन्स्योरवेरडाऊ को एक तरफ सरका दूं। इसलिए मैंने और अधिक ब्यौरे जानने की नीयत से उन्हें फोन किया। मिस वालिस ने बताया कि उस लड़की का नाम ऊना ओ'नील है और वह प्रसिद्ध नाटककार यूजीन ओ'नील की बेटी है। मैं यूजीन ओ'नील से कभी नहीं मिला था लेकिन उनके नाटकों की गम्भीरता से मुझे धुंधला सा अहसास था कि उनकी लड़की कैसी होगी। इसलिए मैंने मिस वापिस से दो टूक पूछा, 'क्या वह अभिनय कर सकती है?'

'उसे पूरब की तरफ गर्मियों में होने वाले नाटकों में अभिनय करने का थोड़ा बहुत अनुभव है। बेहतर होगा आप उसका स्‍क्रीन टैस्ट ले लें और अपने आप ही देख लें।' कहा उन्होंने,'या उससे बेहतर ये भी हो सकता है कि यदि आप अपनी तरफ से कोई वचन नहीं देना चाहते तो आप मेरे घर पर डिनर के लिए आइये। मैं उसे वहीं पर बुलवा लूंगी।'

मैं वहां जल्दी पहुंच गया। मैंने वहां पर आग के पास बैठी एक अकेली नवयुवती को पाया। मिस वालिस का इंतज़ार करते हुए मैंने अपना परिचय दिया और कहा कि शायद वो ऊना ओ'नील ही है। वह मुस्कुरायी। मेरी पूर्वधारणा के विपरीत, मैं उसके जगमग करते सौन्दर्य के प्रति सतर्क हो गया। उसमें एक तरह का बांध लेने वाला आकर्षण और विनम्रता थे और ये बातें बेहद अपील करती थीं।

अपनी मेज़बान की राह देखते हुए हम बैठे बातें करते रहे।


आखिरकार मिस वालिस आयीं और हमारा औपचारिक रूप से परिचय कराया गया। डिनर के लिए हम चार ही लोग थे: मिस वालिस, मिस ओ'नील, टिम डुरैंट और मैं। हालांकि हमने कारोबार की बात नहीं की, हम उसके आस पास ही बात करते रहे। मैंने इस बात का ज़िक्र किया कि शैडोएंडसब्सटैंस की लड़की बहुत युवा है। ये सुनते ही मिस वालिस ने ये जुमला उछाल दिया कि मिस ओ'नील की उम्र सत्तरह बरस से थोड़ी सी ही ज्यादा है। मेरा दिल डूब गया। हालांकि उस भूमिका के लिए किसी युवा लड़की की ही ज़रूरत थी, लेकिन चरित्र बेहद जटिल था और इसके लिए थोड़ी बड़ी और अनुभवी अभिनेत्री चाहिये थी। इसलिए मैंने संकोच के साथ उसे अपने दिमाग से निकाल दिया।

लेकिन कुछ ही दिन बीते थे कि मिस वालिस ने फोन करके जानना चाहा कि क्या मैं मिस ओ'नील के बारे में कुछ कर रहा हूं क्योंकि फॉक्स फिल्म वाले उसमें दिलचस्पी ले रहे हैं। ये तभी और वहीं हुआ कि मैंने ओ'नील के साथ करार कर लिया। ये उस संबंध की शुरुआत थी जो अगले बीस बरस तक और मुझे उम्मीद है, कई और बरसों के लिए भी परम प्रसन्नता के बरस बनने के लिए मेरे भाग्य में लिखे थे।

जैसे जैसे मैं ऊना को जानता गया, मैं लगातार उसके हास्य बोध और सहनशक्ति को देख कर हैरान होता रहा; वह हमेशा सामने वाले व्यक्ति के नज़रिये का भी ख्याल रखती थी। यही और कई तरह के दूसरे कारण भी रहे कि मैं ऊना से प्यार करने लगा। अब तक वह अट्ठारह बरस की हो चुकी थी; लेकिन मुझे इस बात का पूरा यकीन था कि वह उस उम्र की तरंग से बंधी हुई नहीं थी - ऊना नियमों से परे थी। हालांकि शुरू शुरू में मैं हम दोनों के बीच के उम्र के फासले को ले कर डरा हुआ था, लेकिन ऊना पक्के फैसले वाली थी, मानो वह किसी सच को हासिल कर चुकी थी। इसलिए हमने शैडोएंडसब्सटैंस फिल्म पूरी कर लेने के बाद शादी करने का फैसला किया।

मैंने पटकथा का पहला ड्राफ्ट पूरा कर लिया था और अब उसके निर्माण का काम शुरू करने की सोच रहा था। अगर मैं उस फिल्म में ऊना में मौजूद आकर्षण की उस दुर्लभ छवि को दिखा पाया तो शैडोएंडसब्सटैंस बेहद सफल फिल्म होगी।

ठीक इसी मौके पर, बैरी ने एक बार फिर शहर पर धावा बोल दिया और बटलर को फोन पर लापरवाही वाले अंदाज़ में बताया कि वह ज़रूरतमंद है और तीन महीने का गर्भ है उसे लेकिन उसने न तो ऐसा आरोप लगाया और न ही संकेत ही दिया कि इसके लिए कौन जिम्मेवार है। बेशक ये मेरे लिए चिंता की बात नहीं थी, इसलिए मैंने बटलर से कह दिया कि अगर वह घर के आसपास किसी तरह की हरकत करती है तो चाहे स्कैंडल हो या न हो, मैं पुलिस को बुलवा लूंगा। लेकिन वह अगले दिन आयी तो बहुत खुश नज़र आ रही थी। उसने घर के और बगीचे के कई चक्कर काटे। इसमें कोई शक नहीं था कि वह योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही थी। ये तो बाद में जा कर पता चला था कि वह प्रेस की आग लगाऊ महिला पत्रकारों के पास गयी थी और उन्हीं लोगों से उसे सलाह दी थी कि वह घर वापिस जाये और अपने आपको गिरफ्तार करवा ले। मैंने उससे खुद बात की और चेतावनी दी कि अगर वह घर से बाहर नहीं जाती है तो मुझे पुलिस को बुलवाना पड़ेगा। लेकिन जवाब में वह सिर्फ हँस दी। ब्लैकमेल करने वाली उसकी इस हरकत की जब सीमा पार हो गयी तो मैंने बटलर से कहा कि पुलिस को फोन करे।

कुछ ही घंटे बीते थे कि अखबार बड़ी बड़ी हैडलाइनों से रंगे हुए थे। मुझे अपमानित किया गया था, मेरी निंदा की गयी थी और मुझ पर हर तरह का कीचड़ उछाला गया था: चैप्लिन, जॉन के अजन्मे बच्चे के पिता ने उसे गिरफ्तार करवाया, उसे बेहाल छोड़ दिया। एक ही हफ्ते बाद मेरे खिलाफ पितृत्व का मामला दाखिल कर दिया गया। इन आरोपों को देखते हुए मैंने अपने वकील लॉयड राइट से सम्पर्क किया और उसे बताया कि जॉन नाम की इस औरत से मेरा दो बरस से कोई नाता नहीं रहा है।

ये जानते हुए कि मैं शैडोएंडसब्सटैंसका निर्माण शुरू करने जा रहा हूं, उन्होंने विनम्रता से सुझाव दिया कि मैं इसे फिलहाल के लिए टाल दूं और कि ऊना ओ'नील वापिस न्यू यार्क लौट जाये। लेकिन हमने उनकी सलाह नहीं मानी। न ही हम बैरी नाम की इस औरत की और न ही प्रेस की हैडलाइनों की धमकियों में ही आयेंगे। अब चूंकि ऊना और मैं शादी करने के बारे में पहले ही बात कर चुके थे, हमने तय किया कि हम तभी और वहीं शादी कर डालें। मेरे दोस्त हैरी क्रॉकर ने सभी शुरुआती तैयारियां कीं। इन दिनों वह हर्स्ट साहब के लिए काम कर रहा था, उसने वादा किया कि वह थोड़ी सी ही तस्वीरें लेगा ताकि हर्स्ट साहब को ही इसकी खास स्टोरी मिल सके और एक मित्र, लौयेला पारसंस शादी के बारे में लिखेगी ताकि हम दूसरे अखबारों के विरोध के शिकार न बनें।

हमने कारपेंटरिया में शादी की। ये सांता बारबारा से पन्द्रह मील की दूरी पर एक छोटा सा गांव था। लेकिन इससे पहले कि हमें शादी का लाइसेंस मिलता, हमें सांता बारबारा के टाउन हॉल में शादी को रजिस्टर करवाना था। अभी सुबह के आठ ही बजे थे और उस वक्त शहर में गहमा गहमी शुरू नहीं हुई थी। जो क्लर्क शादियां रजिस्टर करता था, थोड़ा बदमाश था। अगर शादी करने वाले जोड़े में से कोई एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति हो तो वह आम तौर पर अपनी डेस्क के नीचे लगे एक गुप्त बटन को दबा कर प्रेस को खबर कर दिया करता था। इसलिए फोटो आयोजन से बचने के लिए हैरी ने इस बात का इंतज़ाम किया कि जब तक ऊना रजिस्टर में हस्ताक्षर आदि करे, मैं कार्यालय के बाहर ही इंतज़ार करूं। सामान्य किस्म के ब्यौरे, मसलन उसका नाम, उम्र आदि नोट कर लेने के बाद क्लर्क ने कहा, 'कहां हैं दूल्हे महाशय?'

जब मैं उसके सामने आया तो उसकी आंखें चौड़ी हो गयीं,'ये तो भई, बहुत बड़ा सरप्राइज़ है!' और हैरी ने उसके हाथ को डेस्क के नीचे गायब होते देख लिया। लेकिन हमने उस पर जल्दी करने के लिए ज़ोर डाला। बहुत देर तक हील हुज्जत करने और जितनी देर वह लगा सकता था, उतनी देर लगाने के बाद उसने संकोच के साथ हमें लाइसेंस दिया। जैसे ही हम इमारत से बाहर निकले और अपनी कारों की तरफ जा ही रहे थे, प्रेस वालों का हुजूम दालान में आ पहुंचा। इसके बाद तो जीवन मरण की दौड़ शुरू हुई। सांता बारबारा की सुनसान गलियों में तेज मोड़ काटते हुए और ब्रेक लगाते हुए कारें दौड़ाना, कभी इस तरफ की गली में मुड़ना तो तभी दूसरी तरफ की गली में से बचते बचाते निकलना। इस तरह से हमने उन्हें छकाया और वापिस कारपेंटरिया पहुंचे। वहां पर ऊना और मैंने बिना शोर शराबे के शादी कर ली।

हमने सांता बारबरा में दो महीने के लिए एक मकान लीज़ पर ले लिया। प्रेस द्वारा उगले जाते ज़हर के बावज़ूद हमने वहां ये वक्त बहुत अच्छी तरह से गुज़ारा, क्योंकि उन्हें मालूम नहीं था कि हम कहां पर हैं। हालांकि जब भी दरवाजे की घंटी बजती, हम उछल जाते।

शाम के वक्त हम गांव की तरफ शांत चहल कदमी के लिए निकल जाते। हम इस बात का ध्यान रखते कि देख न लिये जायें या पहचान न लिये जायें। अक्सर मुझे गहरी हताशा घेर लेती, मैं यह महसूस करता कि मेरे हिस्से में पूरे देश की कड़ुवाहट और नफरत आयी है और मेरा फिल्म कैरियर चौपट हो गया है। ऐसे वक्त में ऊना मुझे ऐसे मूड में से बाहर निकालती और मेरे लिए ट्रिलबाय· के अंश पढ़ कर सुनाती। ये किताब बहुत ही विक्टोरिया कालीन और हँसी मज़ाक से भरी हुई है। खास तौर पर वे अंश जहां पर लेखक पेज दर पेज इस बात की व्याख्याएं देता चलता है कि ट्रिलबाय क्यों अपनी अस्मत लगातार दोनों हाथों से लुटाती रहती है। ऊना आग के पास आराम कुर्सी पर मुड़ी तुड़ी होकर बैठ जाती और मुझे ये अंश पढ़ कर सुनाती। बीच बीच में हताशा के दौर के बावजूद सांता बारबरा में ये दो महीने उदास, रुमानियत से भरे, ईश्वरीय वरदान सरीखे और चिंता और हताशा के बीच गुज़रे।


जब हम लॉस एंजेल्स लौटे तो युनाइटेड स्टेट्स के उच्चतम न्यायालय के मेरे मित्र जस्टिस मर्फी की तरफ से चिंता में डालने वाली खबर मिली। उन्होंने बताया कि प्रभावशाली राजनीतिज्ञों के एक डिनर में एक राजनेता ने ये टिप्पणी की थी कि 'हम चैप्लिन को बाहर निकाल कर ही दम लेंगे।'

जस्टिस मर्फी ने लिखा था, 'अगर आप किसी मुसीबत में फंस जाते हैं तो आप किसी छोटे, नामालूम-से वकील की सेवाएं ही लेना और महंगा वकील कत्तई मत करना।'

अलबत्ता, इस बात में थोड़ा समय लग गया कि संघीय सरकार हरकत में आयी। उन्हें गुमनाम प्रेस का समर्थन मिल रहा था। प्रेस की निगाह में मैं सबकी आंख की किरकिरी बना हुआ था।

इस बीच हम पितृत्व वाले मामले की तैयारी कर रहे थे। ये दीवानी मामला था और इसका संघीय सरकार से कुछ लेनादेना नहीं था। पितृत्व वाले मामले के लिए लॉयड राइट ने सुझाव दिया कि मैं अपने खून की जांच करवा लूं। अगर ये जांच मेरे पक्ष में गयी तो ये इस बात का पक्का सबूत होगा कि मैं मोहतरमा जॉन बैरी के बच्चे का पिता नहीं हूं। बाद में वे मेरे पास ये खबर लेकर आये कि उन्होंने जॉन के वकील के साथ एक समझौता किया है। शर्त ये थी कि अगर हम जॉन बैरी को 25000 डॉलर दे दें तो वह अपने और अपनी बच्ची के खून के नमूने जांच के लिए दे देगी और अगर नतीजों से ये सिद्ध हो गया कि मैं बच्ची का पिता नहीं हो सकता तो वह पितृत्व वाला मामला वापिस ले लेगी। मैं प्रस्ताव पर कूद पड़ा। लेकिन ये मेरे खिलाफ चौदह की तुलना में एक वाला मामला था क्योंकि बहुत सारे लोगों का ब्लड ग्रुप एक जैसा ही होता है। उसने समझाया कि अगर बच्चे का ब्लड ग्रुप ऐसा हो जो कि न तो मां का है और न ही आरोपित पिता का ही है तो अवश्य ही ये ब्लड गुप किसी तीसरे व्यक्ति की वजह से आया होना चाहिये।

बैरी जॉन द्वारा बच्ची को जन्म दे दिये जाने के बाद संघीय सरकार ने बहुत बड़े पैमाने पर जांच पड़ताल शुरू कर दी और मुझे फंसाने की नीयत से बैरी से सवाल जवाब शुरू कर दिये। किन आधारों पर, मैं इसकी कल्पना नहीं कर पा रहा था। दोस्तों ने मुझे सलाह दी कि मैं प्रख्यात फौजदारी वकील गिस्लर से सम्पर्क करूं और जस्टिस मर्फी की सलाह के खिलाफ मैंने ऐसा ही किया। ये एक बहुत बड़ी गलती थी क्योंकि इससे ऐसा लगा मानो मैं किसी बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं। लॉयड राइट ने इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए गिस्लर से मुलाकात की व्यवस्था की कि संघीय सरकार की जूरी मुझ पर किन मामलों पर आरोप लगा सकती है। दोनों ही वकीलों ने ये सुना था कि मेरे खिलाफ मान्न अधिनियम¹ के उल्लंघन का आरोप सिद्ध करना चाहती है।

बीच बीच में संघीय सरकार अपने राजनैतिक विरोधियों को उनकी औकात दिखाने के लिए इस कानूनी ब्लैकमेल का सहारा लिया करती थी। मान्न अधिनियम का मूल आशय ये था कि वेश्वावृत्ति के प्रयोजन से किसी औरत को एक राज्य से दूसरे राज्य में ले जाने को रोकना था। रेड लाइट इलाकों के समाप्त कर दिये जाने के बाद इसका बहुत ही कम वैध उपयोग रह गया था लेकिन नागरिकों को हैरान परेशान करने के लिए इसे अभी भी इस्तेमाल किया जा रहा था। मान लीजिये, कोई व्यक्ति अपनी तलाकशुदा पत्नी को दूसरे राज्य की सीमा पर ले कर जाता है और वह वहां पर उसके साथ संभोग करता है तो ये माना जायेगा कि उसने मान्न अधिनियम का उल्लंघन किया है और उसे पांच बरस के लिए सींखचों के पीछे डाला जा सकता है। ये कानूनी अवसरवाद का बोगस नमूना था जिसके आधार पर संघीय सरकार मेरे खिलाफ आरोप पत्र लायी थी।

इस दूर की कौड़ी वाले आरोप के अलावा सरकार एक और कानूनी खिचड़ी पका रही थी जो एक पुरानी पड़ चुकी कानूनी तकनीकी बात पर आधारित थी। ये बात इतनी वाहियात थी कि आखिर इसे उन्हें वापिस लेना ही पड़ा। राइट और गिस्लर दोनों ही इस बात से सहमत थे कि दोनों ही आरोप वाहियात थे और उन्हें लगा कि अगर मुझ पर आरोप लगाये जाते हैं तो कोई वजह नहीं कि मैं मामला जीत न सकूं।

और अब महान जूरी की जांच शुरू हो गयी थी। मुझे लग रहा था कि पूरा का पूरा मामला ही गिर जायेगा; ये बात तो थी ही कि मैं समझता था कि बैरी अपनी मां के साथ न्यू यार्क आती जाती रही थी। अलबत्ता, कुछ ही दिन बाद, गिस्लर मुझसे मिलने आये, 'आपके खिलाफ सभी मामलों में आरोप लगा दिये गये हैं,' कहा उन्होंने, `हम ब्यौरों वाला पत्र बाद में हासिल कर लेंगे। मैं आपको शुरुआती सुनवाई की तारीखों के बारे में बता दूंगा।'

आगे आने वाले दिन काफ्का की किसी कहानी की तरह थे। मैं पा रहा था कि मेरी आज़ादी दांव पर लगी हुई है और मैं उसे बचाने के लिए एक ऐसी मुहिम में लगा हुआ हूं जिस पर मुझे पूरी तरह से ध्यान देने की ज़रूरत है। अगर सभी मामलों में मेरे खिलाफ आरोप सिद्ध हो जाते तो मुझे बीस बरस की कैद हो सकती थी।

अदालत में शुरुआती सुनवाइयों के बाद तो फोटोग्राफरों और प्रेस वालों की बन आयी। वे मेरे मना करने के बावजूद संघीय मार्शल के दफ्तर में जबरदस्ती घुस आये और जिस वक्त मेरी उंगलियों के निशान लिये जा रहे थे, मेरे फोटोग्राफ लेने लगे।

'क्या उन्हें ऐसा करने का अधिकार है?' पूछा मैंने।

'नहीं,' मार्शल ने कहा, 'लेकिन आप इन लोगों पर काबू नहीं पा सकते।' ये बात संघीय सरकार का एक अधिकारी बता रहा था।

अब बैरी संतान इतनी बड़ी हो गयी थी कि उसके खून का नमूना लिया जा सके। बैरी के और मेरे वकील की आपसी सहमति से एक क्लिनिक चुना गया और बैरी, उसकी बच्ची और मैंने अपने अपने खून के नमूने जमा कराये।

बाद में मेरे वकील ने फोन किया। उसकी आवाज़ खुशी के मारे कांप रही थी, 'चार्ली, आप दोषमुक्त हो गये। ब्लड टेस्ट से पक्के तौर पर ये सिद्ध हो गया है कि चार्ली उस बच्ची के पिता नहीं हो सकते।'

मैंने भावुक हो कर कहा, 'ये न्याय है।'

इस खबर से प्रेस में थोड़ी देर के लिए सनसनी छा गयी। एक अखबार ने लिखा: 'चार्ली चैप्लिन दोषमुक्त।' दूसरे ने लिखा: 'रक्त की जांच ने पक्के तौर पर सिद्ध किया कि चार्ली पिता नहीं हो सकते।'

हालांकि रक्त की जांच के नतीजों ने संघीय सरकार को परेशानी में डाल दिया था, वे फिर भी अपने मामले को आगे बढ़ाते रहे। जैसे जैसे मुकदमा नज़दीक आता गया, मुझे लम्बी भयानक शामें गिस्लर के घर पर गुज़ारनी पड़तीं जहां पर मैं ऐसे हताश करने वाले ब्यौरों से जूझता रहता कि मैं जॉन बैरी से कब और कैसे मिला था। सैन फ्रांसिस्को में रहने वाले वाले एक कैथोलिक पादरी से एक महत्त्वपूर्ण पत्र मिला जिसमें उन्होंने ये लिखा था कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि बैरी को एक फासीवादी संगठन इस्तेमाल कर रहा है और कि वे सैन फ्रांसिस्को से लॉस एंजेल्स आ कर इस आशय का बयान देने के लिए तैयार हैं। लेकिन गिस्लर ने इसे अप्रासंगिक कह कर दरकिनार का दिया।

हमारे पास ऐसे बहुत से नुक्सान पहुंचाने वाले सबूत थे जिनसे जॉन के चरित्र और उसके अतीत को उघाड़ा जा सकता था। हम कई हफ्तों से इन कोणों पर विचार कर रहे थे। तभी एक रात, मेरी हैरानी की सीमा न रही जब गिस्लर के अचानक घोषणा कर दी कि चरित्र हनन बहुत पुराना टोटका रहा है और हालांकि ये ऐरॉल फ्लिन केस¶ में सफल रहा था, यहां पर इसकी ज़रूरत नहीं रहेगी। 'हम इस मामले को इस फालतू की चीज़ को इस्तेमाल में लाये बिना आसानी से जीत सकते हैं।' बताया उन्होंने। गिस्तर के लिए ये फालतू की चीज़ हो सकता था लेकिन हमारे पास उसके अतीत के जो सबूत थे, वे मेरे लिए बहुत मायने रखते थे।

मेरे पास बैरी के वे खत भी थे जो उसने मेरे लिए खड़ी की गयी सारी मुसीबतों के लिए माफी मांगते हुए लिखे थे और मेरी दयालुता और उदारता के लिए मेरे प्रति आभार माना था। मैं इन पत्रों को सबूत के तौर पर इस्तेमाल करना चाहता था क्योंकि इनसे प्रेस के अमानवीय किस्सों को गलत ठहराया जा सकता था। इसी कारण से मैं खुश था कि स्कैंडल इस हद तक आ गया था कि अब प्रेस को सच छापना ही पड़ेगा और मैं कम से कम अमेरिकी जनता की निगाहों में तो दोष मुक्त माना जाऊंगा - मैं ये सोच कर चल रहा था।

इस मौके मैं जे एडगर हूवर और उनके संगठन के बारे में दो शब्द अवश्य ही कहना चाहूंगा। चूंकि ये एक संघीय मामला था और एफबीआई इस बात में जी जान से जुटी हुई थी कि अभियोजन पक्ष के लिए खूब साक्ष्य जुटाये जायें। मैं मिस्टर हूवर से कई बरस पहले एक डिनर पार्टी में मिला था। जब आप एक तरह से क्रूर चेहरे और टूटी नाक से उबर जाते हैं तो आप को कोई भी अच्छा लगने लगता है। जब मैं उनसे उस वक्त मिला था तो वे मुझसे बहुत उत्साह से मिले थे और अपने सेवा में कानून के विद्यार्थियों सहित, किसी अच्छे व्यक्ति को रखने की बात कर रहे थे।

और अब मुझे फंसाये जाने के कुछ रातों के बाद हूवर चेसन रेस्तरां में बैठे हुए थे। वे एफबीआइ के अपने आदमियों के साथ थे और ऊना और मुझसे मात्र तीन ही मेजें दूर बैठे थे। उसी मेज पर उनके साथ बैठे थे टिप्पी ग्रे जिन्हें मैं 1918 के बाद से बीच बीच में हॉलीवुड में देखता आया था। वे हॉलीवुड की पार्टियों में नज़र आ जाते। वे नेगेटिव, परवाह न करने वाले और लगातार खोखली हँसी हंसते और उन्हें देख कर मुझे कोफ्त होती थी। मैं ये मान कर चला करता था कि वे फिल्मों में या तो प्लेबॉय रहे होंगे या छोटे मोटे रोल करते होंगे। अब मैं इस बात को ले कर हैरान था कि वे हूवर की मेज़ पर क्या कर रहे थे। जब ऊना और मैं चलने के लिए खड़े हुए तो मैंने उसी वक्त मुड़ कर देखा जिस वक्त टिप्पी ने मुड़ कर देखा। एक पल के लिए हमारी निगाहें मिलीं। उन्होंने अचानक खींसें निपोरीं। तभी मैं उस खींसे निपोरने का फालतू का अर्थ समझ पाया था।

आखिर ट्रायल का आखिरी दिन आया। गिस्लर ने कहा कि मैं उनसे दस बजने से ठीक दस मिनट पहले फेडरल बिल्डिंग के बाहर मिलूं ताकि हम अदालत में एक साथ अंदर जा सकें।

अदालत का कमरा दूसरी मंज़िल पर था। जिस वक्त हमने अदालत में प्रवेश किया, हमारी मौजूदगी ने बहुत कम हलचल पैदा की। दरअसल,प्रेस के सदस्यों ने अब मेरी उपेक्षा की। मुझे ऐसा लगा कि अब उन्हें मुकदमे से ही काफी मसाला मिल जाने वाला था। गिस्लर ने मुझे एक कुर्सी में बिठा दिया और अदालत में कई लोगों से बात करते हुए वे इधर उधर घूमने लगे। ऐसा लगा कि ये सब की पार्टी है और उसमें मैं कहीं नहीं हूं।

मैंने फेडरल एटार्नी के तरफ देखा। वे कागज़ात पढ़ रहे थे, प्रविष्टियां कर रहे थे, बातें कर रहे थे और पूरे विश्वास के साथ कई लोगों से बातें करते हुए हँस रहे थे। टिप्पी ग्रे भी वहीं मौजूद थे और बीच बीच में वे मेरी तरफ सरसरी निगाह डालते और बेवजह खींसें निपोरने लगते।

गिस्लर मेज पर एक कागज़ और पेंसिल छोड़ गये थे ताकि मुकदमे के दौरान नोट्स ले सकें। मैं खाली बैठ कर इधर उधर न घूरता रहूं इसलिए मैंने ड्राइंग बनाना शुरू कर दिया। गिस्लर तुरंत लपक कर मेरे पास आये और फुसफुसाए 'ये सब मत करो।' ये कहते हुए उन्होंने मेरे हाथ से कागज़ छीन लिया और फाड़ने लगे, 'अगर ये कागज प्रेस के हाथ लग गया तो वे इसका विश्लेषण करवा लेंगे और इससे हर तरह के नतीजे निकाल लेंगे।' मैंने एक नदी और एक पुराने से पुल का जरा सा स्कैच ही बनाया था जैसा कि मैं बचपन में करता था।

आखिरकार, अदालत के कमरे में तनाव फैल गया और हर आदमी अपनी जगह पर पहुंच गया। तब क्लर्क ने अपनी हथौड़ी से तीन बार ठक ठक की और मुकदमा शुरू हो गया। मेरे खिलाफ़ चार आरोप लगाये गये थे: दो आरोप मान्न अधिनियम के लिए और दो आरोप किसी ऐसे अप्रचलित कानून के लिए जिसके बारे में किसी ने गृह युद्ध के बाद सुना ही नहीं था। ये इस आशय के आरोप थे कि मैंने नागरिक के अधिकारों में दखल दिया है। पहले तो गिस्लर ने कोशिश की कि पहले आरोपों को ही रफा दफा कर दिया जाए लेकिन यह एक औपचारिकता मात्र थी: यह मांग कुछ ऐसी ही थी कि आप सर्कस में पैसा देकर अंदर आए दर्शकों को बाहर जाने के लिए कहें।

जूरी के चयन में दो दिन लग गए: वहां पर चौबीस लोगों का पैनल था जिसमें से बारह लोग चुने जाने थे। प्रत्येक पक्ष को उनमें से छह लोग चुनने का अधिकार था ताकि जूरी के बारह सदस्यों का चयन हो सके। दोनों तरफ से जूरी के सदस्यों की खूब प़ड़ताल की जाती है और भयानक जांच की जाती है। तरीका यह है कि जज और अटार्नी मामले में बिना भेदभाव के निर्णय देने के लिए उसकी योग्यता के बारे में इस तरह के सवाल पूछते हैं: क्या उसने कागजात पढ़े हैं, क्या उन्हें पढ़ लेने के बाद वह उनसे प्रभावित हुआ है या उसने कोई पूर्वाग्रह पाला है या वह मामले से जुड़े किसी व्यक्ति को जानता है? यह सनक भरा तरीका था। ऐसा मुझे लगा क्योंकि नब्बे प्रतिशत प्रेस मेरे खिलाफ चौदह महीने से विरोध का माहौल बनाने में लगी हुई थी। संभावित जूरर से प्रश्न पूछने में लगभग आधा घंटा लगता था और इस अवधि के बीच वादी और प्रतिवादी, दोनों अटार्नी अपने जांच कर्ताओं को उसके बारे में जानकारी जुटाने के लिए भेजते थे। जैसे ही प्रत्येक संभावित जूरर को बुलाया जाता था गिस्लर नोट्स बनाते और उन्हें अपने जांच कर्ताओं के हाथ में सरका देते और वे तुरंत गायब हो जाते। दस मिनट बाद जांच कर्ता वापिस आता और सूचना से लैस पर्ची गिस्लर के हाथ में थमा देता: 'जो डोग्स, हाबर डाशरी स्टोअर्स में क्लर्क, पत्नी, दो बच्चे, कभी सिनेमा देखने नहीं जाता।' 'हम उसे फिलहाल के लिए रख लेंगे' गिस्लर फुसफुसाए और इस तरह से चयन चलता रहता, प्रत्येक पक्ष जूरी के सदस्यों को ठुकरा देता या स्वीकार कर लेता, फेडरल अटार्नी अपने जांच कर्ताओं के साथ फुसफुसा कर सलाह लेता: बीच बीच में टिप्पी ग्रे अपनी सामान्य मुस्कुराहट के साथ मेरी तरफ देख लेते।

जब जूरी के आठ सदस्य चुन लिए गये तो जूरी बॉक्स में एक महिला ने प्रवेश किया। गिस्लर ने कहा, 'मैं इसे पसन्द नहीं करता।' वे दोहराते रहे, 'मैं इसे पसन्द नहीं करता। इस औरत में कुछ ऐसा है जो मुझे पसन्द नहीं है।' जिस वक्त उस महिला से पूछताछ की जा रही थी तो गिस्लर के जांच कर्ता ने उन्हें एक पर्ची थमाई। 'मैंने ऐसा ही सोचा था।' गिस्लर पर्ची पढ़ कर फुसफुसाए। वह महिला लॉसएंजेल्स टाइम्स में रिपोर्टर रह चुकी थी। 'हमें इससे पीछा छुड़ाना ही होगा। इसके अलावा दूसरे पक्ष ने उसे कितनी जल्दी स्वीकार कर लिया है।' मैंने उस महिला का चेहरा पढ़ने की कोशिश की लेकिन मैं उसे बहुत अच्छी तरह से नहीं देख पाया इसलिए मैंने अपना चश्मा निकालने की कोशिश की। गिस्लर ने तुरंत मेरी बांह थाम ली। 'अपना चश्मा मत लगाओ।' वे फुसफुसाए। मुझे ऐसा आभास हुआ कि वह अपने ख्यालों में खोयी हुई थी लेकिन मेरे चश्मे के बिना सब कुछ धुंधला था। गिस्लर ने कहा, 'दुर्भाग्य से हमारे पास दो ही आपत्तियां रह गयी हैं इसलिए फिलहाल यही बेहतर रहेगा कि हम उसे रख लें।'लेकिन चूंकि चयन प्रक्रिया चलती रही इसलिए उन्हें अपने दो अंतिम आपत्तियां ऐसे दो लोगों पर इस्तेमाल करनी पड़ी जो स्पष्ट रूप से मेरे खिलाफ पूर्वाग्रही थे और उन्हें मजबूरन महिला पत्रकार को लेना ही पड़ा।

दोनों अटार्नियों की कानूनी बहसबाजी सुनने के बाद मुझे ऐसा लगा कि वे दोनों कोई खेल खेल रहे हैं और उसमें मेरा कुछ लेना देना नहीं हैं। आरोपों के वाहियात होने के बावजूद मेरे दिमाग के पिछले हिस्से में यह संभावना कुलबुला रही थी कि मुझे शायद सूली पर चढ़ा दिया जायेगा। लेकिन मैं इसके बारे में कभी पूरी तौर पर यकीन नहीं कर पाया और अक्सर मुझे मेरे कैरियर के भविष्य के बारे में ख्याल आ जाता लेकिन अब सब कुछ हंगामें में खो चुका था और कुछ भी साफ नहीं था। मैंने इन सारी बातों को दिमाग से सरका दिया। मैं एक वक्त में एक ही बात सोच पा रहा था।

जैसा कि सारी मुसीबतों में होता है, व्यक्ति इसके बारे में लगातार गंभीर नहीं हो सकता। मुझे याद है कि एक बार अदालत किसी कानूनी मुद्दे पर चर्चा करने के लिए रुकी हुई थी। जूरी के सदस्य जा चुके थे और अटार्नी तथा न्यायाधीश अपने भीतर वाले कक्ष में जा चुके थे। दर्शक,फोटोग्राफर और मैं ही अदालत के कमरे में रह गये थे। फोटोग्राफर इस बात की ताक में था कि मुझे जरा हटकर किसी पोज़ में पकड़ ले। जैसे ही मैंने पढ़ने के लिए अपना चश्मा निकाला, उसने अपना कैमरा उठा लिया, मैंने तुरंत अपना चश्मा उतार लिया। यह देख कर अदालत के कमरे में बाकी बचे लोगों में हँसी की लहर फैल गयी। जब उसने अपना कैमरा नीचे कर लिया तो मैंने दोबारा चश्मा पहन लिया। इसके बाद तो यह चूहे बिल्ली का खेल हो गया जो बहुत अच्छे मूड में खेला जा रहा था। वह कैमरा ऊपर करता और मैं चश्मा उतार देता। दर्शक इस बात का मज़ा ले रहे थे। जब अदालत फिर से जुटी तो निश्चय ही मैंने अपने चश्मा उतार दिया और अपनी गंभीर मुद्रा बनाकर बैठ गया।

ट्रायल कई दिन तक चलता रहा। चूंकि यह संघीय मुकदमा था, इसलिए जॉन बैरी के मित्र मिस्टर पॉल गेट्टी को मज़बूरन गवाह के रूप में आना पड़ा। उसके साथ ही दो युवा जर्मन और अन्य लोग भी आए। पॉल गेट्टी को अतीत में जॉन बेरी के साथ अपने दोस्ती स्वीकार करनी पड़ी और यह भी मानना पड़ा कि उन्होंने उसे पैसे दिए थे। लेकिन जो बात महत्त्वपूर्ण थी, वह वे पत्र थे जो उसने मुझे सारी तकलीफों के लिए मुझसे माफी मांगते हुए और मेरी दयालुता तथा उदारता के लिए मुझे धन्यवाद देते हुए लिखे थे। हालांकि गिस्लर ने इन पत्रों को साक्ष्य के रूप में पेश किए जाने की कोशिश की लेकिन अदालत ने इस पर आपत्ति की। लेकिन मुझे नहीं लगता कि गिस्लर ने इसके लिए ज्यादा जोर दिया होगा।

ट्रायल में यह साक्ष्य सामने आया कि मेरे घर में घुसने से पहले वाली रातों में से किसी एक रात वह एक युवा जर्मन के अपार्टमेंट में वास्तव में सारी रात सोयी थी और उस जर्मन को गवाहों के कटघरे में इस बात को स्वीकार करना पड़ा।

कमीनगी भरे इन सारे तथ्यों के केंद्रों में होने का मतलब ऐसा ही था मानो आपको सार्वजनिक स्टॉक में डाल दिया गया हो। लेकिन जैसे ही मैं अदालत का कमरा छोड़ता, मैं सब कुछ भुला देता और उसके बाद ऊना के साथ एकांत में डिनर लेने के बाद मैं थकान से चूर होकर बिस्तर पर जा लेटता।

ट्रायल के तनाव और चिंता के अलावा एक और बात यह थी कि सुबह सात बजे उठने की बोरियत भरी रस्म निभानी पड़ती और उसके बाद नाश्ता करते ही तुरंत निकलना पड़ता क्योंकि लॉस एंजेल्स के ट्रैफिक में से एक घंटे की ड्राइव करनी होती ताकि अदालत के खुलने से ठीक दस मिनट पहले वहां पर पहुंच सकें।

आखिर ट्रायल समाप्त हुआ। प्रत्येक अटार्नी इस बात पर सहमत हुआ कि वह ढाई घंटे में अपनी बात कहेगा। मुझे इस बात का रत्ती भर भी ख्याल नहीं था कि वे इतने लम्बे समय तक क्या बात करेंगे। मेरे लिए यह सब कुछ हथेली की लकीरों की तरह साफ था: सरकार का केस गिर चुका था और बेशक अगर मुझे सभी आरोपों का दोषी पाया जाता तो बीस बरस की सजा भुगतने की संभावना कभी भी मेरे दिमाग में नहीं आयी। मेरे ख्याल से न्यायाधीश द्वारा मामले का सार संक्षेप शायद कम अस्पष्ट होता। मैं यह देखना चाहता था कि इसका टाइम्स वाली महिला पर क्या असर होता है। लेकिन उसका चेहरा दूसरी तरफ था। जिस वक्त जूरी को विचार विमर्श के लिए बाहर भेजा गया, वह बिना दायें बायें देखे अदालत से बाहर चली गयी।

जिस वक्त हम अदालत के कमरे से बाहर निकले, गिस्लर हौले से मेरे कानों में फुसफसाये, 'आज हम तब तक इमारत से बाहर जा नहीं जा सकते जब तक फैसला सुना नहीं दिया जाता। लेकिन,' उन्होंने आशावादी तरीके से कहा, 'हम बाहर रेलिंग पर बैठ कर थोड़ी देर धूप सेंक सकते हैं।'इस संक्षिप्त सूचना ने मुझमें यह अहसास भर दिया कि पापपूर्ण सर्व सत्ता अपना फंदा मेरे गले के चारों ओर कस रही है। इससे मुझे एक पल के लिए याद आया कि मैं कानून की संपत्ति हूं।

अब डेढ़ बजने को था और मैं हैरान हो रहा था कि बहुत होगा तो फैसला बीस मिनट के अंदर आ जाना चाहिये। इसलिए, मैंने सोचा कि ऊना को फोन करने से पहले मैं इंतज़ार कर लेता हूं लेकिन एक और घंटा बीत गया। मैंने उसे फोन करके बताया कि जूरी अभी भी बाहर है और जैसे ही मैं अदालत का फैसला सुनूंगा, उसे खबर कर दूंगा।

एक और घंटा बीत चुका था और अभी तक फैसला नहीं हुआ था! किस वजह से देर हो रही थी? इसमें दस मिनट से ज्यादा नहीं लगना चाहिए था। उन्हें अपराधी नहीं के फैसले पर ही तो पहुंचना था। इस बीच गिस्लर और मैं बाहर रेलिंग पर बैठे रहे। हम दोनों में से कोई भी इस बात पर टिप्पणी नहीं कर रहा था कि देरी क्यों हो रही है। तभी गिस्लर ने मजबूरन अपनी घड़ी देखी। उन्होंने चलताऊ ढंग से कहा, 'चार बज गये, मैं हैरान हूं, उन्हें देर क्यों हो रही है?' इससे हम दोनों में शांत खुली बहस छिड़ गयी कि वे कौन से संभावित मुद्दे रहे होंगे जिनकी वजह से देर हुई होगी।

पौने पांच बजे इस आशय की घोषणा करने वाली घंटी बजी कि जूरी फैसले पर पहुंच गयी है। मेरा दिल उछलने लगा। जिस वक्त हम इमारत में प्रवेश कर रहे थे, गिस्लर जल्दी से फुसफुसाए, 'कोई भी फैसला हो, अपनी भावनाएं मत दर्शाना।' जब हम जा रहे थे तो हमारे पास से वादी अटार्नी लपकते हुए सीढ़ियां चढ़ने लगे। वे उत्तेजित थे और उनकी सांस फूल रही थी। उनके पीछे पीछे खुशी से दमकते चेहरे लिए उनके सहायक दौड़ रहे थे। टिप्पी ग्रे सबसे आखिर में आए और जब वह हमारे पास से गुज़रे तो उन्होंने अपने कंधे से हमारी तरफ देखा और खींसें निपोरीं।

अदालत का कमरा जल्दी ही भर गया। चारों तरफ तनाव का माहौल हो गया। किसी वजह से मैं शांत बना हुआ था भले ही मेरा दिल उछल कर गले तक आ रहा था।

अदालत के क्लर्क ने तीन बार हथौड़ी बजायी जिस मतलब था, न्यायाधीश महोदय आ रहे है और हम सब खड़े हो गये। जब सभी वापिस बैठ गये तो जूरी ने प्रवेश किया और फोरमैन ने अदालत के क्लर्क को एक दस्तावेज सौंपा। गिस्लर सिर नीचे करके, अपने पैरों की तरफ देखते हुए बैठ गये। वे सांस दबा कर, नर्वस होकर बुदबुदा रहे थे: 'अगर इन्हें अपराधी घोषित कर दिया जाता है तो ये मेरी जानकारी में अब तक का न्याय का सबसे बड़ा गर्भपात होगा।' वे यही दोहराते रहे, 'अगर इन्हें अपराधी घोषित कर दिया जाता है तो ये मेरी जानकारी में अब तक का न्याय का सबसे बड़ा गर्भपात होगा।'

अदालत के क्लर्क ने अब दस्तावेज पढ़ा। फिर तीन बार हथौड़ी बजायी। सघन सन्नाटे में उसने घोषणा की:

'चार्ल्स चैप्लिन, मामला नम्बर 337068 अपराध - पहला आरोप . . . ' इसके बाद लम्बा विराम - 'अपराधी नहीं!'

दर्शकों में अचानक चीख उभरी। फिर अचानक सन्नाटा पसर गया और लोग क्लर्क की बात पूरी होने के इंतज़ार करने लगे।

'दूसरे आरोप पर . . . - अपराधी नहीं!'

दर्शकों में हो हल्ला मच गया। मुझे नहीं मालूम था कि मेरे इतने सारे दोस्त हैं। कुछ लोग पार्टीशन की रेलिंग तोड़ कर आ गए और मुझे गले लगाने और चूमने लगे। मैंने टिप्पी ग्रे की एक झलक देखी। उनके चेहरे से मुस्कान जा चुकी थी और उनका अब चेहरा भावहीन था।

इसके बाद न्यायाधीश ने मुझसे कुछ शब्द कहे: 'मिस्टर चैप्लिन, अदालत में आपको मौजूद रहने की और ज़रूरत नहीं रहेगी। अब आप आज़ाद हैं।' तब उन्होंने अपनी बेंच से मुझसे हाथ मिलाया और मुझे बधाई दी। वादी अटार्नी ने भी मुझे बधाई दी। तब गिस्लर फुसफुसाए, 'जाओ और सबसे हाथ मिला कर आओ।'

जब मैं जूरी के सदस्यों के पास पहुंचा तो उस महिला ने, जिस पर गिस्लर ने अविश्वास किया था, अपना हाथ बढ़ाया और तब मैंने पहली बार उसके चेहरे को नज़दीक से देखा। वह सुंदर, बुद्धिमता से दमकती और समझ रखने वाली महिला थी। जब हमने हाथ मिलाए, उसने मुस्कुराते हुए कहा, 'सब चलता है चार्ली, यह अभी भी आज़ाद देश है।'

मैं अपने आप पर विश्वास कर नहीं पाया कि क्या बोलूं: उसके शब्दों ने मुझे तोड़कर रख दिया था। मैं सिर्फ सिर हिलाकर मुस्कुरा ही सका। उसने अपनी बात जारी रखी, 'मैं जूरी कक्ष की खिड़की से आपको चहल कदमी करते हुए देख रही थी, इसलिए मैं आपको बताना चाहती थी कि चिंता न करें। सिर्फ एक ही व्यक्ति की वज़ह से हमें देर हो गयी, नहीं तो हम दस मिनट में फैसले पर पहुंच जाते।'

बहुत मुश्किल था उसके शब्दों पर न रोना लेकिन मैं सिर्फ मुस्कुरा भर दिया और उसका आभार माना। इसके बाद मैं धन्यवाद देने के लिए दूसरों की तरफ मुड़ गया। सब लोगों ने खुले दिल से हाथ मिलाए, लेकिन एक ही महिला ने अपने चेहरे पर नफ़रत पोत रखी थी। जब मैं उसके आगे से जाने वाला था तो फोरमैन की आवाज सुनाई दी: 'छोड़ो भी मोहतरमा, अपने चेहरे पर हँसी लाओ और हाथ मिलाओ!' हिचकिचाते हुए उसने मिलाया और मैंने ठंडे तरीके से आभार माना।


ऊना, जिसे चार महीने का गर्भ था, घर पर लॉन में बैठी हुई थी। वह अकेली थी और जिस वक्त उसने रेडियो पर खबर सुनी, वह बेहोश हो गयी।

उस शाम हमने, सिर्फ ऊना और मैंने चुपचाप घर पर ही खाना खाया। हम कोई अखबार, कोई टेलीफोन कॉल नहीं चाहते थे। मैं किसी से बात करना या किसी को देखना नहीं चाहता था। मैं खाली, घायल और अपने चरित्र से वंचित किया गया महसूस कर रहा था। यहां तक कि घरेलू स्टाफ की मौजूदगी भी परेशान कर रही थी। डिनर के बाद ऊना ने एक तेज जिन और टॉनिक बनाया और हम आग के पास बैठ गए और तब मैंने उसे फैसले में देरी की वजह बतायी और उस औरत के बारे में बताया जो यह कह रही थी कि यह अभी भी आज़ाद देश है। कई महीनों के तनाव के बाद यह एन्टी क्लायमेक्स हुआ था। उस रात मैं अपने बिस्तर में इस सुखद ख्याल के साथ सोया कि अगली सुबह मुझे अदालत में हाज़री बजाने के लिए जल्दी नहीं उठना है।


एक या दो दिन बाद लायन फ्यूचवेंगर ने मज़ाक में कहा, 'आप थिएटर के एक अकेले ऐसे कलाकार हैं जिनका नाम अमेरिका के इतिहास के पन्नों पर इसलिए लिखा जाएगा कि आपने पूरे राष्ट्र का राजनैतिक विरोध का तूफान खड़ा कर दिया है।

और अब पितृत्व के मामले में, जिसके बारे में मैं मान कर चल रहा था कि खून की जांच के साथ निपट जाएगा, एक बार फिर उठ खड़ा हुआ। स्थानीय राजनीति से प्रभावित हो कर एक और वकील मामले को चतुराई भरा मोड़ दे कर फिर से खोलने में सफल हो गया था। बच्ची के संरक्षण को मां से अदालत के पक्ष में हस्तांतरित करने की उसकी चालबाजी भरी तरकीब से मां के करार का उल्लंघन नहीं हुआ था और वह 25000डॉलर अपने पास रख सकती थी और अब अदालत संरक्षक के रूप में बच्ची के लालन पालन के लिए मुझ पर मामला दायर कर सकती थी।

पहले ट्रायल में जूरी इस बात से असहमत रही। मेरे वकील जो ये मानकर चल रहे थे कि ये तो जीता जिताया है ये देख कर बहुत निराश हुए। लेकिन दूसरे ट्रायल में खून की जांच के बावजूद, जिसे अब तक पितृत्व के मामले में कैलिफोर्निया स्टेट लॉ द्वारा सकारात्मक सबूत के तौर पर स्वीकार किया जा चुका था, फैसला मेरे विरोध में पलट दिया गया।


एक बात जो ऊना और मैं चाहते थे, ये थी कि हम कैलिफोर्निया से निकल चलें। हमारी शादी को एक बरस हो गया था और तब से हम चक्की में पिस रहे थे और अब हमें आराम की ज़रूरत थी। इसलिए हमने अपनी छोटी काली बिल्ली को साथ लिया और न्यू यार्क जाने वाली गाड़ी में सवार हो गये। वहां से हम न्यैक गये। वहां पर हमने एक मकान किराये पर ले लिया। ये सारी चीज़ों से बहुत दूर था। चारों तरफ पत्थर थे,बंजर ज़मीन थी, इसके बावजूद इसका अपना एक खास आकर्षण था। ये छोटा सा प्यारा सा, 1780 में बना हुआ घर था और किराये की एक खास बात ये थी कि साथ में बहुत ही सहानुभूति रखने वाला हाउसकीपर था। वह अद्भुत रसोइया भी था। घर के साथ ही एक प्यारा सा बूढ़ा काला कुत्ता भी मिला जो हमारे साथ महिला के साथी के तरह लग लिया। वह नाश्ते के समय पर नियमित रूप से पोर्च में हाज़िर हो जाता और शराफत से पूंछ हिलाता रहता। फिर बैठ जाता और जब तक हम नाश्ता करते रहते, इंतज़ार करता। जिस वक्त हमारी नन्हीं काली बिल्ली ने उसे देखा तो उस पर गुर्रायी और उस पर थूका लेकिन उसने अपनी थूथनी फर्श पर टिका दी मानो मिल जुल कर रहने के लिए तैयार हो।

उन दिनों न्यैक रमणीय हुआ करता था। हालांकि वहां पर अकेलापन था। न कोई हमसे मिलने आता और न ही हम किसी से मिलने जाते। ये ठीक भी था क्योंकि मैं अब तक ट्रायल की परेशानियों से उबरा नहीं था।

हालांकि इस मशक्कत ने मेरी सृजनात्मकता के पर कतर डाले थे, इसके बावजूद मैं मोन्स्योरवेरडाऊ का काफी काम कर चुका था। अब इसे पूरा करने की मेरी इच्छा होने लगी थी।

हमने पूरब में कम से कम छह महीने तक रहने के बारे में सोचा था। ऊना अपने बच्चे को वहीं जन्म देने वाली थी। लेकिन मैं न्यैक में काम नहीं कर सकता था, इसलिए पांच सप्ताह के बाद हम कैलिफोर्निया लौट आए। शादी के तुरंत बाद ही ऊना ने इच्छा व्यक्त की थी कि फिल्मों या मंच पर अभिनेत्री बनने की उसकी कोई चाह नहीं है। इस खबर से मुझे खुशी हुई। इससे कम से कम मेरी एक बीवी तो होगी और वह कैरियर की चाह रखने वाली लड़की नहीं होगी। तभी मैंने शैडोएंडसब्सटेंस फिल्म छोड़ दी और मोन्स्योरवेरडाऊ पर काम करना शुरू कर दिया। लेकिन तभी सरकार ने बड़ी बेरहमी से खलल डाला। मैं अक्सर सोचा करता हूं कि फिल्मों ने एक बेहतरीन कॉमेडियन को खो दिया क्योंकि ऊना में बहुत ही शानदार हास्य बोध था।

मुझे याद है ट्रायल से एकदम पहले ऊना और मैं बेवरली हिल्स में उसका श्रृंगारदान ठीक कराने के लिए एक आभूषण की दुकान में गये। इंतज़ार करते समय हमने कुछ ब्रेसलेट्स देखने शुरू किये। एक बहुत ही खूबसूरत हीरों और रूबी वाला सेट हमें पसंद आया लेकिन ऊना को लगा कि उसकी कीमत बहुत ज्यादा है, इसलिए मैंने ज्वेलर को बताया कि हम इसके बारे में बाद में सोचेंगे और हम दुकान से चले आये। जैसे ही हम कार में पहुंचे, मैंने नर्वस होकर कहा, 'जल्दी करो, फटाफट कार चलाओ।' तभी मैंने अपनी जेब में हाथ डाला और सावधानी से वही ब्रेसलेट बाहर निकाला जिसे उसने पसंद किया था। 'जब हम दूसरे ब्रेसलेट देख रहे थे तो ये ब्रेसलेट मैंने चुपके से जेब में सरका लिया था।' मैंने बताया।

ऊना का चेहरा सफेद पड़ गया, 'नहीं, आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।' वह गाड़ी चलाती रही। तब उसने एक गली में गाड़ी मोड़ी, ब्रेक लगाए और गाड़ी रोक दी। 'हमें इस पर सोचना चाहिए,' उसने कहा और दोहराया, 'आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था।'

'ठीक है, मैं इसे वापिस तो नहीं कर सकता' मैंने कहा। लेकिन ये नाटक मैं ज्यादा देर तक नहीं चला पाया। मुझे हँसी आ गयी और मैंने उसे इस मज़ाक के बारे में बताया कि जब वह दूसरी चीज़ें देख रही थी तो मैं सुनार को एक तरफ ले गया था और ब्रेसलेट खरीद लिया था।

मैंने हँसते हुए कहा, 'और तुम सोच रही थीं कि मैंने इसे चुराया है।' अपराध के ऊपर एक और अपराध करने के लिए तैयार?'

'दरअसल, मैं नहीं चाहती थी कि आप और मुसीबतों में फंसें।' कहा उसने।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 25

ट्रायल के दौरान हम कई प्रिय दोस्तों से घिरे हुए थे। सबके सब वफादार और सहानुभूति रखने वाले। सालका वीरटेल, क्लिफोर्ड, ओडेत्स दम्पत्ति, हेन्स एस्लर दम्पत्ति, फ्यूशवेंगर दम्पत्ति और कई अन्य।

सालका वीरटेल सांता मोनिका में अपने घर पर बहुत बढ़िया खाने की पार्टियां दिया करती थीं। उनके घर पर कला और साहित्य, दोनों से जुड़े लोग आते। टॉमस मान, ब्रटोल्ट ब्रेख्त, शोनबर्ग, हेन्स एस्लर, लायन फ्यूशवेंगर, स्टीफेन स्पेंडर, सिरियल कोनोली और अन्य कई विभूतियां वहां आतीं। सालका जहां कहीं रहती थीं वहीं पर अपनी खूबसूरत दुनिया बसा लेती थी।

हेन्स एस्लर दम्पत्ति के यहां हमारी मुलाकात ब्रेटोल्ट ब्रेख्त के साथ होती। वे घुटे हुए सिर के साथ बेहद ताकतवर लगते और जहां तक मुझे याद पड़ता है, वे हमेशा सिगार पीते रहते थे। कई महीने बाद मैंने उन्हें मोन्स्योरवेरडाऊ की पटकथा दिखायी थी। उन्होंने इसे पूरा पढ़ा था। उनकी एक ही टिप्पणी थी: 'ओह, आप चीनी शैली में लिखते हैं।'

मैंने लायन फ्यूशवेंगर से पूछा कि वे अमेरिका में राजनैतिक स्थिति के बारे में क्या सोचते हैं। उन्होंने मज़ाक में कहा: 'इस तथ्य में कोई खास बात हो सकती है कि जब मैंने बर्लिन में अपना नया मकान बनाना पूरा किया तो हिटलर सत्ता में आया और मुझे बाहर निकलना पड़ा। जब मैंने पेरिस में अपने फ्लैट की साज सज्जा पूरी की तो नाज़ी चले आये और मैं एक बार फिर वहां से निकला। और अब मैंने अमेरिका में हाल ही में सांता मोनिका में घर खरीदा है।' उन्होंने कंधे उचकाए और एक खास ढंग से मुस्कुराए।

अक्सर हम ऑल्डस हक्सले दम्पत्ति से मिलते। उस समय वे रहस्यवाद के झूले में बहुत अधिक हिचकोले खा रहे थे। मैं उन्हें बीस पच्चीस बरस के सनकी युवा के रूप में ज्यादा पसंद करता था।

एक दिन हमारे मित्र फ्रांक टेलर ने फोन करके बताया कि डायलैंड थॉमस, वेल्श कवि हमसे मिलना चाहेंगे। हमने कहा कि हमें बहुत खुशी होगी। 'दरअसल' फ्रांक ने हिचकिचाते हुए कहा, 'अगर वे नशे में न हुए तो मैं उन्हें लेता आऊंगा।' बाद में उस शाम जब घंटी बजी तो मैंने दरवाजा खोला और डायलैन थॉमस सीधे अंदर गिर पड़े। अगर ये नशे में न होना होता है तो तब उनकी हालत क्या होती होगी जब वे सचमुच पिये हुए होते हों। दो एक दिन बाद वे डिनर के लिए आए और बेहतर तरीके से पेश आए। उन्होंने अपनी गहरी आवाज़ में अपनी कोई कविता पढ़ कर सुनायी। मुझे कविता की छवि तो याद नहीं लेकिन एक शब्द 'सेलोफेन' उनकी जादुई आवाज़ से सूर्य की किरणों की तरह परावर्तित हो रहा था।

हमारे मित्रों में थिओडोर ड्रेसर भी थे। मैं उनका बहुत बड़ा प्रशंसक था। वे और उनकी प्यारी सी पत्नी हेलन अक्सर हमारे घर खाना खाते। हालांकि उनके भीतर हमेशा नाराज़गी की भट्टी जलती रहती, वे बहुत विनम्र और दयालु आदमी थे। उनकी मृत्यु पर नाटककार जॉन हॉवर्ड लावसन,जिन्होंने अंतिम संस्कार के समय शोक पत्र पढ़ा था, ने मुझसे पूछा था कि क्या मैं उनकी अर्थी को आगे से कंधा दूंगा और बाद में शोक सभा में ड्रेसर द्वारा लिखी गयी कविता पढ़ूंगा। मैंने ये दोनों काम किये थे।


हालांकि बीच बीच में मेरे कैरियर को लेकर शक के मौके आते लेकिन मैं अपने इस विश्वास से कभी नहीं डिगा कि एक अच्छी कॉमेडी मेरी सारी तकलीफों को सुलझा देगी। इसी दृढ़ निश्चय वाली भावना के साथ मैंने मोन्स्योरवेरडाऊ फिल्म पूरी की। इसमें दो साल की मेहनत लग गयी क्योंकि इसके लिए प्रेरणा पाना मुश्किल काम था, लेकिन इसकी वास्तविक शूटिंग बारह हफ्ते में ही पूरी हो गयी। ये मेरे लिए रिकार्ड समय था। तब मैंने इसकी पटकथा सेंसरशिप के लिए ब्रीन ऑफिस में भेजी। जल्दी ही मुझे उनकी तरफ से ख़त मिला कि इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जा रहा है।

ब्रीन ऑफिस लीज़न ऑफ डीसेंसी की एक शाखा है जो मोशन पिक्चर एसोसिएशन द्वारा स्वघोषित सेंसरशिप करती है। मैं सहमत हूं कि सेंसरशिप ज़रूरी है लेकिन इसे लागू करना मुश्किल होता है। मुझे सिर्फ यही सुझाव देना है कि इसके नियम लचीले होने चाहिए न कि पत्थर की लकीर और इस पर विषय वस्तु के आधार पर निर्णय नहीं लिया जाना चाहिए बल्कि अच्छी रुचि, बौद्धिकता और संवेदनशील निर्वाह पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।

नैतिक दृष्टि से देखें तो मेरा विचार है कि कामुक सैक्स दृश्य की तरह शारीरिक हिंसा और झूठे दर्शन भी उतनी ही हानि पहुंचाते हैं। बर्नार्ड शॉ ने कहा था कि किसी खलनायक के जबड़े पर घूंसा मारना ज़िंदगी की समस्याओं को सुलझाने का बहुत आसान तरीका है।

मोन्स्योरवेरडाऊ की सेंसरशिप पर बहस करने से पहले यह ज़रूरी है कि कथा की ख़ास ख़ास बातों का उल्लेख कर दिया जाए। मोन्स्योरवेरडाऊ एक स्‍त्रीघाती नायक, नामालूम सा बैंक क्लर्क है जिसकी नौकरी मंदी के कारण चली गयी है। वह एक योजना बनाता है और बूढ़ी कुवांरी औरतों के साथ शादी रचा के उनके धन को लूट कर उनकी हत्या कर देता है। उसकी वैध पत्नी अपंग है जो गांव में अपने छोटे बेटे के साथ रहती है। लेकिन उसे अपने पति की आपराधिक हरकतों का पता नहीं है। किसी शिकार की हत्या कर देने के बाद वह वैसे ही घर लौटता है जैसे कोई बुर्जुआ पति दिन भर की मेहनत करने के बाद घर लौटता है। वह अच्छाई और बुराई का विरोधाभास है: एक ऐसा व्यक्ति जो अपनी गुलाब की झाड़ियां संवारता है, इल्ली पर पैर रखने से भी बचता है जबकि उसके बगीचे के आखिर में उसकी एक शिकार को भट्टी में भूना जा रहा है। इस कहानी में क्रूर हास्य, कड़वा व्यंग्य और सामाजिक आलोचना है।

सेंसरबोर्ड ने मुझे एक लंबा पत्र भेजा और बताया कि वे फिल्म को क्यों पूरी तरह से बैन कर रहे हैं। मैं यहां पर उनके पत्र का ये हिस्सा दे रहा हूं:

हम उन तत्वों की बात करेंगे जो अपनी संकल्पना में और महत्ता में असामाजिक लगते हैं। कहानी में ऐसे अंश हैं जहां वेरडाऊ सिस्टम पर उंगली उठाता है और आज के दिन के सामाजिक ढांचे पर आरोप लगाता करता है। इसके बजाये, हम आपका ध्यान उस ओर दिलाना चाहते हैं जो कि और भी अधिक खतरनाक है और संहिता के अंतर्गत बाकायादा न्याय विचार किया जाना मांगता है। वेरडाऊ का यह बनावटी दावा कि उसकी ज्यादतियों की सीमा से दंग रह जाना बेवकूफी है, कि वे युद्ध के कानूनी आधार पर बड़े पैमाने पर कत्लेआम की तुलना में तो कत्लों की कॉमेडी मात्र हैं जिन्हें हम सिस्टम द्वारा सोने के पतरे मढ़ कर गुणगान करते हैं। इस बात पर किसी बहस में उलझे बिना कि युद्ध बड़े पैमाने पर कत्लेआम या न्यायोचित रूप से मारना है या नहीं, इस बहस में उलझे बिना ये तथ्य अभी भी अपनी जगह पर है कि वेरडाऊ अपने भाषणों के दौरान अपने अपराधों की नैतिक गुणवत्ता का मूल्यांकन करने की गम्भीर कोशिश करता है।

इस कहानी को स्वीकार न किये जाने के पीछे दूसरा मूल कारण ये है कि हम अधिक संक्षेप में अपनी बात कर सकते हैं। ये इस तथ्य में निहित है कि ये बहुत कहें तो ये एक ऐसे विश्वास से भरे आदमी की कहानी है जो कई औरतों को अपने प्रेम जाल में फंसाता है ताकि उनकी दौलत उसके कब्जे में आ जाये और इसके लिए वह उन्हें एक के बाद एक नकली शादियों के झांसे में फंसाता चलता है। कहानी के इस अंश में अवैध संबंधों का कुरुचिपूर्ण मज़ा लिया गया है जो कि हमारे निर्णय के अनुसार उचित नहीं है।

इस स्थल तक आ कर उन्होंने अपनी आपत्तियों की एक लम्बी फेहरिस्त दी थी। उनके कुछ नमूने देने से पहले मैं अपनी पटकथा में से वे कुछ पन्ने यहां डालना चाहूंगा जो लिडिया, वेरडाऊ की अवैध पत्नियों में से एक है, से संबंध रखते हैं। वह एक बूढ़ी औरत है जिसका वह आज रात कत्ल करने वाला है।

वेरडाऊ : (दबीआवाज़में) कितनासुंदर. . . येपीला, एंडिमियन· का समय . ..

लिडिया की आवाज़: (बेडरूममेंसे) आपकिसकेबारेमेंबातकररहेहैं?

वेरडाऊ: (तंद्रा में) एंडिमियन माय डीयर, . . चांद द्वारा मोहित एक खूबसूरत नौजवान।

लीडिया की आवाज़: ठीक है, भूल जाओ उसके बारे में और बिस्तर पर चले आओ।

वेरडाऊ: हां, माय डीयर, हमारे पैर फूलों से नाज़ुक थे।

वह लिडिया के बेडरूम में चला जाता है और हॉल को अर्ध अंधेरे में छोड़ जाता है। वहां पर चांद की रौशनी ही रह जाती है।

वेरडाऊ की आवाज: (लीडिया के बेडरूम में से) चांद की तरफ देखो ज़रा, मैंने आज तक इसे इतना चमकीला नहीं देखा। बदजात चंद्रमा।

लीडिया की आवाज़: बदजात चंद्रमा?? आप भी कितने मूरख हैं? हा हा हा बदजात चंद्रमा!!

संगीत की लहरियां बहुत ऊंचे सुर तक ऊपर उठती हैं और तब दृश्य डिजाल्व हो कर सुबह में बदल जाता है। ये वही हॉल वाला रास्ता है लेकिन अब वहां पर सूर्य की रौशनी आ रही है। वेरडाऊ लीडिया के बेडरूम में से गुनगुनाता हुआ आता है।

इस दृश्य के बारे में सेंसरबोर्ड की आपत्ति इस तरह से थी:

कृपया लीडिया के इस वाक्यांश को बदलें: 'उसे भूल जाओ और बिस्तर में आ जाओ।' इसके बजाये कहें, 'सो जाओ।' हम ये मान कर चल रहे हैं कि ये पूरा का पूरा दृश्य इस तरह से फिल्माया जायेगा कि कहीं भी ये आभास न दे कि वेरडाऊ और लीडिया अब शादी के बाद वाले आनंद में उतरने वाले हैं। दोबारा आये शब्द 'बदजात चंद्रमा' को भी हटा दें। अगली सुबह वेरडाऊ के लीडिया के बेडरूम से गुनगुनाते हुए आने के दृश्य को भी हटा दें।

अगली आपत्ति उस संवाद को ले कर थी जो वेरडाऊ उस लड़की से करता है जिससे वह देर रात को मिलता है। उनका कहना था कि लड़की का चरित्र जिस तरह से बताया गया है, उससे साफ-साफ लगता है कि वह लड़की वेश्या है। इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।

स्वाभाविक है कि मेरी कहानी में लड़की एक सड़क छाप है और ये सोचना ही वाहियात होगा कि वह वेरडाऊ के अपार्टमेंट में उसकी पेंटिंग देखने आती है। लेकिन इस मामले में वह उसे इसलिए ले कर आता है ताकि वह उस पर वह तीखा ज़हर आजमा सके जिसका कोई सबूत बाकी नहीं रहता। लेकिन वह उसके अपार्टमेंट से जाने के एक ही घंटे के बाद वह मर जायेगी। ये दृश्य कुछ भी हो सकता है लेकिन कम से कम अश्लीलता या कामुकता जगाने वाला तो कत्तई नहीं है।

मेरी पटकथा में ये इस तरह से है:

वेरडाऊ: तुम्हें बिल्लियां अच्छी लगती हैं ऐय?

लड़की: ऐसी तो कोई खास बात नहीं है, लेकिन बाहर बहुत ठंड है और सब गीला है। मुझे नहीं लगता कि आपके पास इसे देने के लिए थोड़ा सा दूध होगा?

वेरडाऊ: इसके विपरीत, दूध है मेरे पास। देखो तो, हालात इतने खराब नहीं हैं जितने लगते हैं।

लड़की: क्या मैं इतनी निराशावादी लगती हूं?

वेरडाऊ: लगती तो हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम निराशावादी हो।

लड़की: क्यों?

वेरडाऊ: रात को इस तरह से बाहर निकलना, इसके लिए तो तुम्हें आशावादी होना ही चाहिये।

लड़की: मैं आशावादी छोड़ कर सब कुछ हूं।

वेरडाऊ: इसके खिलाफ हुंअ!!

लड़की: (तानामारतेहुए) पता लगाने का तो आप में गज़ब का गुण है!!

वेरडाऊ: तुम इस धंधे में कब से हो?

लड़की: तीन महीने से।

वेरडाऊ: मुझे यकीन नहीं होता!

लड़की: क्यों?

वेरडाऊ: तुम जैसी आकर्षक लड़की को कुछ और करना चाहिये था।

लड़की:(तानामारतेहुए) धन्यवाद।

वेरडाऊ: अब मुझे सच-सच बता दो। तुम अभी-अभी या तो अस्पताल से आयी हो या जेल से। बोलो कहां से आयी हो?

लड़की: (अच्छेमूडमेंलेकिनचुनौतीदेतेहुए) आप ये किस लिये जानना चाहते हैं?

वरडाउ: क्योंकि मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं।

लड़की: मानवतावादी हुं!!

वेरडाऊ: (विनम्रतासे) एक दम सही .... और मैं बदले में कुछ भी नहीं मांगता।

लड़की: (उसेपरखतेहुए) क्या है ये? साल्वेशन आर्मी?

वेरडाऊ: अच्छी बात है, अगर तुम इसी तरह से महसूस करती हो तो तुम अपनी राह पर जाने के लिए आज़ाद हो।

लड़की: (दोटूक) मैं अभी अभी जेल से छूट कर आ रही हूं।

वेरडाऊ: तुम्हें अंदर क्यों किया गया था?

लड़की: (कंधेउचकातीहै) क्या फर्क पड़ता है? छोटी मोटी हेराफेरी। वे इसे यही कहते हैं। किराये के टाइपराइटर को गिरवी रख देना।

वेरडाऊ: ओ मेरी प्यारी लड़की। तुम्हें इससे बेहतर करने के लिए कुछ नहीं मिला क्या? कितनी सज़ा मिली तुम्हें इसके लिए?

लड़की: तीन महीने।

वेरडाऊ: तो इसका मतलब, ये तुम्हारा जेल से बाहर पहला दिन है?

लड़की : हां।

वेरडाऊ: भूख लगी है क्या?

(वहसिरहिलातीहैऔरयूंहीमुस्कुरातीहै)

वेरडाऊ: अच्छी बात है। जब तक मैं अपनी पाक कला के हुनर का प्रदर्शन करूं, तुम एक काम करो। रसोई में मुझे कुछ चीजें थमा दो। आओ।

वे रसोई में चले जाते हैं। वह अंडों की बुर्जी बनाना शुरू करता है और खाने पीने की चीजें तश्तरी में रखने में लड़की की मदद करता है। लड़की तश्तरी ले कर बैठक में जाती है। जिस वक्त वह रसोई में से निकलती है, वह सतर्क हो कर उसे पीछे से देखता है, तब जल्दी से एक अल्मारी खोलता है, वहां से ज़हर निकालता है और रेड वाइन की एक बोतल में डालता है। तब बोतल का कार्क बंद करता है, दो गिलासों के साथ तश्तरी में रखता है और दूसरे कमरे में चला जाता है।

वेरडाऊ: मुझे नहीं पता कि ये खाना तुम्हारी खुराक के हिसाब से है या नहीं, अंडों की भुर्जी, टोस्ट और थोड़ी सी रेड वाइन?

लड़की: वाह शानदार!!

वेरडाऊ: मुझे लग रहा है कि तुम थकी हुई हो। इसलिए खाना खाने के तुरंत बाद मैं तुम्हें तुम्हारे होटल में छोड़ आऊंगा।

वहबोतलकाकार्कखोलताहै।


लड़की: (उसेध्यानसेदेखतेहुए): आप बहुत दयालु हैं। मैं समझ नहीं पा रही कि आप ये सब मेरे लिए क्यों कर रहे हैं?

वेरडाऊ: क्यों नहीं, (उसकेगिलासमेंज़हरडालतेहुए) क्या थोड़ी सी दयालुता दुर्लभ हो गयी है आजकल?

लड़की: मुझे तो लगने लगा था, है ये दुर्लभ।

वेरडाऊ: ओह टोस्ट!

लड़की: आप अजीब आदमी हैं!

वेरडाऊ: मैं, क्यों?

लड़की: मुझे नहीं पता।

वेरडाऊ: फिर भी, तुम्हें बहुत भूख लगी है इसलिए शुरू करो।

(जैसेहीवहखानाशुरूकरतीहै, वहमेजपरपड़ीकिताबदेखताहै।)

वेरडाऊ: क्या पढ़ रही हो तुम?

लड़की: शॉपेनआवर!

वेरडाऊ: अच्छा लगता है तुम्हें?

लड़की: ठीक ठीक है!

वेरडाऊ: क्या तुमने आत्महत्या पर उनकी किताब ट्रिटाइस पढ़ी है?

लड़की: मुझे जमीं नहीं।

वेरडाऊ: (सम्मोहितसा) अगर अंत सरल होता तब भी नहीं? मान लो, उदाहरण के लिए, तुम सोने के लिए जाती हो, और मौत के ख्याल के बिना ही, अचानक सब कुछ थम जाता है। क्या तुम इसे इस घिसटती ज़िंदगी की तुलना में ज्यादा पसंद नहीं करोगी?

लड़की: मैं कह नहीं सकती।

वरडाउ: दरअसल, ये मौत का नज़रिया होता है जो डराता है।

लड़की: (ध्यानमग्नहोकर) मेरा तो ये ख्याल है कि अगर बिन जन्मे को भी ज़िदंगी के नज़रिये के बारे में पता हो तो वह भी उतना ही डरा हुआ होगा।

लड़की: (सोचतेहुए) इसके बावजूद ज़िंदगी खूबसूरत है।

वेरडाऊ: क्या है खूबसूरत ज़िंदगी में?

लड़की: सब कुछ। वसंत की कोई सुबह, गर्मी की रात, संगीत, कला, प्यार।

वेरडाऊ :(हैरानीसे) प्यार?

लड़की: (थोड़ीचुनौतीदेतीसी) ये भी तो होता ही है।

वेरडाऊ: तुम्हें कैसे मालूम?

लड़की: मुझे प्यार हो गया था।

वेरडाऊ: मेरा मतलब है कि तुम किसी के शारीरिक आकर्षण में पड़ गयी थी?

लड़की (पहेलियांबुझातेहुए) आपको औरतें अच्छी लगती हैं! नहीं क्या?

वेरडाऊ: इसके विपरीत, मुझे औरतें अच्छी लगती हैं लेकिन मैं उनकी तारीफ नहीं करता।

लड़की: क्यों?

वेरडाऊ: वे ज़मीनी होती हैं, यथार्थवादी, शारीरिक तथ्यों का बोझ रहता है उन पर।

लड़की : (हिकारतसे) क्या बेवकूफी है?

वेरडाऊ: जब कोई औरत किसी आदमी को धोखा देती है तो वह उसे छोड़ देती है। आदमी की अच्छाइयों और हैसियत के बावजूद वह उसके स्थान पर किसी दीन हीन आदमी को स्वीकार कर लेगी। अगर कोई दूसरा आदमी शारीरिक रूप से ज्यादा आकर्षक है।

लड़की: आप महिलाओं के बारे में कितना कम जानते हैं?

वेरडाऊ: तुम्हें हैरानी होगी?

लड़की: ये प्यार नहीं है!

वेरडाऊ: तो क्या है प्यार?

लड़की: देना, त्याग, वही भावना जो एक मां अपने बच्चे के लिए महसूस करती है।

वेरडाऊ: क्या तुमने इस तरीके से प्यार किया था?

लड़की: हां।

वेरडाऊ: किसे?

लड़की: अपने पति को।

वेरडाऊ: (हैरानीसे) तुम शादीशुदा हो?

लड़की: मैं थी, जब मैं जेल में थी तब वह मर गया।

वेरडाऊ: ओह, तो ये बात है, मुझे उसके बारे में बताओ।

लड़की: लम्बी कहानी है ये (रुकतीहै) वह स्पानी गृह युद्ध में घायल हो गया था। उम्मीद से परे अपंग।

वेरडाऊ: (आगेझुकताहै) अपंग?

लड़की: (सिरहिलातीहै) इसीलिए मैं उससे प्यार करती थी। उसे मेरी ज़रूरत थी। वह मुझ पर निर्भर था। वह बच्चे की तरह था। लेकिन वह मेरे लिए बच्चे से ज्यादा था। वह धर्म की तरह था। वह मेरे लिए सांस की तरह था। मैंने उसके लिए किसी की जान ले ली होती।

वेरडाऊ: एक मिनट रुको, मेरा ख्याल है तुम्हारी शराब में कार्क का टुकड़ा आ गया है। मैं तुम्हारे लिए दूसरा गिलास लाता हूं।

वेरडाऊ: अब बहुत देर हो चुकी है। और तुम थकी भी हुई हो। ये ले लो। इससे तुम्हारा एक आध दिन का गुज़ारा हो जायेगा। . . गुडलक।

लड़की: ओह, ये तो बहुत ज्यादा हैं। मैं इतनी उम्मीद नहीं करती थी। पागल . . इस तरह से ज़िंदगी जीते हुए . मेरा तो हर चीज़ से विश्वास ही उठने लगा था। और तभी ये होता है कि आप फिर से सब कुछ पर विश्वास करना चाहते हैं।

वेरडाऊ: बहुत ज्यादा भरोसा मत करो। ये दुनिया बहुत खराब है।

लड़की: (अपनाहाथहिलातीहै) ये सच नहीं है। ये दुनिया गलतियों का पुतला है और बहुत उदास है ये दुनिया। इसके बावजूद थोड़ी सी दयालुता इसे खूबसूरत बना देती है।

वेरडाऊ: इससे पहले कि तुम्हारे दर्शन से मेरी नीयत डोले, बेहतर हो कि तुम चली जाओ।

ऊपर वाले सीन पर सेंसर बोर्ड को जो आपत्तियां थीं, मैं उनमें से कुछ गिनाता हूं:

मेरी पटकथा के समापन से पहले, वेरडाऊ कई रोमांचकारी घटनाओं के बाद लड़की से दोबारा मिलता है। वेरडाऊ फटेहाल है और लड़की अमीर हो चुकी है। सेंसर बोर्ड को उसकी अमीरी पर आपत्ति थी। दृश्य इस तरह से है:

कैफे के बाहरी हिस्से में फेड होता है। वेरडाऊ मेज पर बैठा अखबार पढ़ रहा है और यूरोप में संभावित युद्ध के बारे में पढ़ रहा है। वह बिल अदा करता है और बाहर आता है। जिस वक्त वह सड़क पार करने ही वाला है कि अचानक एक स्मार्ट लिमोजिन से टकराते टकराते बचता है। कार के ब्रेक लगते हैं। शोफर गाड़ी रोकता है और हॉर्न बजाता है। लिमोजिन की खिड़की से दस्ताना पहने हुए एक हाथ उसकी तरफ हिलता है। और हैरान हो कर वह देखता है कि ये उसी लड़की का हाथ है जिससे कभी उसकी दोस्ती हुई थी। वह वेरडाऊकोदेखकर मुस्कुराती है। लड़की ने बहुत ही अच्छे कपड़े पहने हुए हैं।

लड़की: कैसे हो, मानवतावादी?

वेरडाऊचकराजाताहै।

लड़की: (अपनीबातजारीरखतेहुए) मेरी याद नहीं है क्या? आप मुझे अपने अपार्टमेंट में ले गये थे। बरसात की एक रात थी!

वेरडाऊ: (हैरानीसे) क्या सचमुच?

लड़की: मुझे खाना खिलाने और पैसे देने के बाद आपने मुझे एक अच्छी लड़की की तरह घर वापिस भेज दिया था।

वेरडाऊ: (हँसतेहुए) ज़रूर ही मैं मूरख रहा होउँगा!

लड़की:(ईमानदारीसे) नहीं, आप बहुत अच्छे थे। कहां जा रहे हैं आप?

वेरडाऊ: कहीं नहीं!

लड़की: आ जाओ!

(वरडाउकारमेंघुसताहै।)

(कारकीभीतरीहिस्सा)

लड़की: (शोफरसे) कैफे लाफार्जे चलो . . . मुझे अभी भी लग रहा है कि आप मुझे नहीं पहचानते। . . आप पहचानेंगे भी क्यों?

वेरडाऊ: (उसकीतरफतारीफभरीनिगाहोंसेदेखतेहुए) इस बात के स्पष्ट कारण हैं कि मैं तुम्हें याद रखूं।

लड़की: (मुस्कुरातीहै) आपको याद नहीं उस रात हम मिले थे। मैं उसी वक्त जेल से बाहर आयी थी।

वेरडाऊ: शी . . . ये ठीक है . . . खिड़की ऊपर है। लेकिन ये सब तुम . . हुआ क्या?

लड़की: वही पुरानी कहानी . . . झोपड़ी से महल तक . . . जब मैं आपसे मिली तो मेरी तो किस्मत ही बदल गयी। मैं एक बहुत ही अमीर आदमी से मिली। युद्ध सामग्री बनाने वाले से।

वेरडाऊ: यही तो वह कारोबार है जो मैं करना चाहता था। किस किस्म का आदमी है वह?

लड़की: बहुत दयालु और उदार। लेकिन अपने कारोबार में वह बहुत बेरहम है।

वेरडाऊ: कारोबार बेरहम काम ही होता है। माय डीयर, क्या तुम उसे प्यार करती हो?

लड़की: नहीं, लेकिन यही बात उसकी दिलचस्पी बनाये रखती है।

ऊपरवाले दृश्य पर सेंसर बोर्ड को इस तरह की आपत्तियां थीं:

दूसरी आपत्तियां दूसरे दृश्यों को ले कर और थोड़े बहुत हंसी मज़ाक को ले कर थीं।

मैं उन्हें यहां दे रहा हूं:

पिछवाड़ेकोखुजानेवालालतीफाहटादियाजाये।

बाथरूममेंटायलेटनहींदिखायेजानेचाहिये।

वेरडाऊकेभाषणमेंसेकृपयाकामुकशब्दहटादें

पत्र इस बात का उल्लेख करते हुए समाप्त किया गया था कि उन्हें मामले पर चर्चा करने के लिए मुझसे मिलने पर अपार खुशी होगी और कि फिल्म के मनोरंजन मूल्य को गंभीर रूप से चोट पहुंचाये बिना निर्माण संहिता की अपेक्षाओं के भीतर कहानी को ला पाना संभव होगा। इसलिए मैं खुद ब्रीन ऑफिस में हाजिर हो गया और मुझे मिस्टर ब्रीन के सामने ले जाया गया। एक ही पल बाद मिस्टर ब्रीन का कोई सहायक एक लम्बा,कठोर चेहरे वाला युवा कमरे में आया। उसकी टोन में ज़रा सा भी मैत्री भाव नहीं था।

'आप के मन में कैथोलिक चर्च के खिलाफ क्या है?' उसने पूछा।

'आप ये क्यों पूछ रहे हैं?' मैंने पूछा।

'यहां' उसने मेरी पटकथा की प्रति मेज पर पटकते हुए और उसके पन्ने पलटते हुए कहा: 'काल कोठरी में जहां अपराधी पादरी से कहता है,का दृश्य: 'मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं भले आदमी?'

'आप ही बताइये, क्या वह भला आदमी नहीं है?'

'यह बेहूदगी है,' उसने नाराज़गी से हाथ हिलाते हुए कहा।

'मैं किसी व्यक्ति को अच्छा कहे जाने में कुछ भी बेहूदा नहीं पाता।' मैंने जवाब दिया।

और इस तरह से हमारी बहस चलती रही। मुझे लगा कि मैं उसके साथ बर्नार्ड शॉ के संवादों का अभिनय कर रहा हूं।

'आप पादरी को एक अच्छा आदमी मत कहिये। आप उसे फादर कहिए।'

'बहुत अच्छी बात है, हम उन्हें फादर कहेंगे।' मैंने जवाब दिया।

'और ये लाइन' उसने एक और पेज की तरफ इशारा करते हुए कहा। 'आपने पादरी से कहलवाया है: `मैं तुमसे यह कहने आया हूं कि ईश्वर के साथ शांति स्थापित कर लो।' और वेरडाऊ जवाब देता है: `ईश्वर के साथ मैं शांतिपूर्वक हूं। मेरा संघर्ष व्यक्ति के साथ है।' आप जानते हैं ये धर्मविरुद्ध है।"

'आपको अपनी राय रखने का अधिकार है,' मैंने अपनी बात जारी रखी, 'और मुझे भी यह अधिकार है।'

'और ये' उसने पटकथा को पढ़ते हुए टोका, 'पादरी कहता है: `क्या तुम्हें अपने पापों के लिए कोई प्रायश्चित नहीं है?' और वेरडाऊ जवाब देता है: `कौन जानता है कि पाप क्या है। जैसे कोई स्वर्ग से पैदा हुआ हो। ईश्वर के गिरे हुए देवदूत से, कौन जानता है किससे कौन सी रहस्यमय नियती का काम बनता है?'

'मेरा विश्वास है कि पाप भी अच्छाई की तरह महान रहस्य है।' मैंने जवाब दिया।

'ये बहुत छद्म दर्शन बघारना है।' उसने हिकारत से कहा।

'और तब आपका वेरडाऊ पादरी की तरफ देखता और कहता है: 'आप बिना पाप के क्या करेंगे?'

'मैं मानता हूं कि ये लाइन थोड़ी विवादास्पद है लेकिन आखिर ये विडंबनापूर्ण हास्य ही तो है और ये पादरी को अनादर के तरीके से संबोधित नहीं किया जायेगा।'

'लेकिन आपका वेरडाऊ पादरी का लगातार मज़ाक उड़ाता रहता है।'

'तो आप क्या चाहते हैं कि पादरी कॉमेडी भूमिका अदा करे?'

'बिल्कुल नहीं, लेकिन आप उसे कोई अच्छा सा जवाब क्यों नहीं देते।'

'देखिए' मैंने कहा, 'अपराधी मरने जा रहा है और बाहादुरी दिखाने के चक्कर में है। पादरी लगातार सभ्य बने रहते हैं और ये लाइनें बिल्कुल ठीक हैं। फिर भी मैं सोचूंगा कि पादरी के उत्तर के लिए कुछ अच्छी लाइनें लिखूं।'

'और ये लाइन' वह बोलता रहा, `ईश्वर आपकी आत्मा पर रहम खाये' और वेरडाऊ जवाब देता है: 'क्यों नहीं? आखिर ये तो उसी से नाता रखती है' '

'इसमें गलत क्या है?' मैंने पूछा

उसने संक्षेप में कहा: '`क्यों नहीं!' आप पादरी से इस तरह बात नहीं करते।'

'यह लाइन अपने आपसे कही गयी है। आपको फिल्म देखने तक का इंतज़ार करना चाहिए।' मैंने कहा।

'आप समाज और पूरे देश की तौहीन कर रहे हैं।' उसने कहा।

'अच्छी बात है। आखिर समाज और राष्ट्र दूध के धुले हुए नहीं हैं और उनकी आलोचना की मनाही भी नहीं हैं। नहीं क्या?'

एक या दो अन्य मामूली परिर्वतनों के बाद आखिरकार पटकथा को पास कर दिया गया। मिस्टर ब्रीन के प्रति पूरी तरह न्याय करते हुए कहूं तो उनकी अधिकतर आलोचना सकारात्मक थी। उन्होंने सोचते हुए कहा, 'लड़की को एक और वेश्या मत बनाइए। हॉलीवुड की हर पटकथा में एक वेश्या होती है'

मुझे ये मानना ही होगा कि मुझे खराब लगा। अलबत्ता, मैंने वादा किया कि इस तथ्य पर ज्यादा ज़ोर नहीं दूंगा।

जब फिल्म पूरी हो गयी तो इसे लीज़न ऑफ डिसेंसी के बीस या तीस सदस्यों, सेंसर तथा विभिन्न हैसियत के धार्मिक समूहों के प्रतिनिधियों को दिखाया गया। मैंने अपने आप को कभी भी इतना अकेला महसूस नहीं किया जितना उस मौके पर कर रहा था। अलबत्ता, जब फिल्म पूरी हो गयी और बत्तियां जल गयी तो मिस्टर ब्रीन बाकी लोगों की तरफ मुड़े: 'मेरा ख्याल है ये ठीक है। आइये चले' उन्होंने अचानक कहा।

वहां मौन छा गया: तभी किसी ने कहा, 'मेरे साथ तो यह ठीक है। कुछ भी छुपाया गया नहीं है।' बाकी चुप रह गए।

ब्रीन शुष्क चेहरे के साथ दूसरों की तरफ उचटती सी निगाह डालते हुए बोले, 'ठीक है, ठीक है, हम इसे पास कर सकते हैं हं?'

बहुत कम प्रतिक्रिया हुई। कुछ लोगों ने हिचकते हुए सिर हिलाया। ब्रीन ने ऐसी सभी आपत्तियों को दर किनार कर दिया जो वे पूछ सकते थे और मेरी पीठ पर धौल जमाते हुए बोले, 'ठीक है चार्ली, आगे काम करो और इसके प्रिंट निकलवाओ।'

मैं फिल्म को उनके द्वारा स्वीकार किये जाने को लेकर थोड़ा हैरान था और यह सोच रहा था कि शुरू में तो वे फिल्म को पूरी तरह से बैन करने पर तुले हुए थे। मैं उनके इस शानदार अनुमोदन को लेकर शक में पड़ गया। क्या वो और कोई रास्ता अपनाएंगे?

जब मैं वेरडाऊ का दूसरी बार सम्पादन कर रहा था तो मुझे युनाइटेड स्टेट्स मार्शल से इस आशय का टेलीफोन संदेश मिला कि मेरे नाम अमेरिकी विरोधी गतिविधियों पर समिति के समक्ष वॉशिंगटन में हाज़िर होने का सम्मन है। कुल उन्नीस लोगों को सम्मन भेजे गये थे।

फ्लोरिडा के सीनेटर पैप्पर उस समय लॉस एंजेल्स में थे और ये सुझाव दिया गया कि हम सलाह के लिए सीनेटर से मिल लें। मैं नहीं गया क्योंकि मेरी स्थिति थोड़ी अलग थी। मैं अमेरिकी नागरिक नहीं था। उस बैठक में हर व्यक्ति इस बात के लिए सहमत हुआ कि वे वॉशिंगटन में बुलाए जाने पर अपने सांविधिक अधिकारों पर टिके रहेंगे (जिन्होंने उनकी जमानत दी उन्हें अदालत की अवमानना के जुर्म में एक वर्ष की सज़ा सुनायी गयी।)

सम्मन में यह ज़िक्र किया गया था कि मुझे वाशिंगटन में मेरे वास्तव में हाज़िर होने के बारे में दस दिन के भीतर बता दिया जाएगा: लेकिन तुरंत एक तार आया कि मेरी हाज़िरी को दस दिन के लिए टाल दिया गया है।

तीसरी बार तारीख बदले जाने के बाद मैंने उन्हें यह उल्लेख करते हुए एक तार भेजा कि मेरी वजह से एक बहुत बड़ा संस्थान अधर में लटका हुआ है और मुझे बहुत हानि हो रही है और चूंकि उनकी समिति हाल ही में मेरे दोस्त हेन्स एस्लर से पूछताछ करने के लिए हॉलीवुड आयी थी, वे उसी समय मुझसे भी पूछताछ कर सकते थे और जनता का पैसा बचा सकते थे। 'अलबत्ता,' मैंने आगे लिखा: 'मैं आपकी सुविधा के लिए यह बताना चाहता हूं कि आप क्या जानना चाहते हैं। मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं और मैं अपने जीवन में न कभी किसी राजनैतिक पार्टी या संगठन ही में शामिल हुआ हूं। आप मुझे शांतिदूत कह सकते हैं। मुझे उम्मीद हैं कि इससे आपकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचेगी। इसलिए कृपया पक्के तौर पर बताइए कि मुझे वॉशिंगटन कब बुलाया जाना है।

आपका,

'चार्ल्स चैप्लिन।'

मुझे हैरानी हुई कि जब मुझे इस आशय का बेहद विनम्रता भरा खत मिला कि मेरे मौजूद रहने की ज़रूरत नहीं हैं और मैं इस मामले को समाप्त समझूं।

· जी दू मुरियर का उपन्यास (1894)

¹अमेरिकी कांग्रेस ने इंटरस्टेट वाणिज्य को नियमित करने के मकसद से मान्न अधिनियम पारित किया था ताकि वेश्यावृत्ति और आम तौर पर अवैध संबंधों पर रोक लगायी जा सके।

तीसरे चौथे दशक के अत्यंत प्रसिद्ध अभिनेता की ख्याति परदे की वजह से उतनी नहीं थी जितनी परदे के बाहर की गतिविधियों की वजह से थी। सुरा और सुंदरी का साथ और अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने के ढंग के कारण वे हमेशा सुर्खियों में रहे। चौथे दशक के शुरू में दो अलग अलग मामलों में उन पर नाबालिग ल़डकियों के साथ बलात्कार के आरोप लगे। उन पर बेहद चर्चित मुकदमे चले और उन्हें दोषमुक्त पाया गया। इन आरोपों से उनके कैरियर पर आंच आने के बजाये उनकी ख्याति और ब़ढी।

·ग्रीक पुराणों का एक खूबसूरत नौजवान जिसे सेलेन ने प्यार किया था और जिसकी जवानी को अंदरूनी नींद ने सुरक्षित रखा था।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 26

अपनी व्यक्तिगत समस्याओं के दौरान मैंने युनाइटेड आर्टिस्ट्स के कारोबार की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया था। अब मेरे वकील ने चेताया कि कम्पनी 1,000,000 डॉलर के घाटे में चल रही है। जब इसके अच्छे दिन थे तो हर वर्ष 40,000,000 से 50,000,000 डॉलर तक का लाभ कमा कर दे रही थी। लेकिन मुझे याद नहीं आता कि मुझे दो से ज्यादा लाभांश मिले हों। अपनी समृद्धि के शिखर पर युनाइटेड आर्टिस्ट्स ने चार सौ अंग्रेज़ी थियेटरों में 25 प्रतिशत हिस्सेदारी जुटा ली थी और इसके लिए उसे एक पाई भी नहीं चुकानी पड़ी थी। मुझे पक्के तौर पर नहीं पता कि ये सब हमने कैसे हासिल किया था। मुझे ऐसा लगता है कि ये हमें हमारी फिल्मों के निर्माण की गारंटी देने के बदले दिये गये थे। दूसरी अमेरिकी फिल्म कम्पनियों को इसी तरह से ब्रिटिश सिनेमा में बहुत बड़ी राशि के स्टॉक लेने पड़े थे। एक ऐसा वक्त भी आया था कि रैंक संगठन में हमारी इक्विटी का हिस्सा 10,000,000 डॉलर के बराबर था।

लेकिन एक-एक करके युनाइटेड आर्टिस्ट्स के शेयरधारकों ने अपने शेयर कम्पनी को वापिस बेच दिये थे और इनकी चुकौती करने में कम्पनी की हालत पतली हो गयी थी। अचानक मैंने पाया कि मैं युनाइटेड आर्टिस्ट्स की कम्पनी का आधा मालिक हूं और ये कम्पनी 1,000,000 डालर के घाटे में चल रही थी। मैरी पिकफोर्ड मेरी पार्टनर थी। उसने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाते हुए चेतावनी भरा पत्र लिखा कि सभी बैंकों ने और कर्जे देने से मना कर दिया है। मुझे इस बात की ज्यादा चिंता नहीं थी क्योंकि हम इससे पहले भी कर्जे में आ चुके थे और सफल फिल्मों ने हमें हमेशा इन संकटों से बाहर निकाल लिया था। इसके अलावा, मैंने अभी अभी मोन्स्योरवेरडाऊ पूरी की थी और मैं ये मान कर चल रहा था कि ये बॉक्स ऑफिस पर खूब सफल रहेगी। मेरे प्रतिनिधि आर्थर कैल्ली ने कम से कम 12,000,000 डॉलर की कमाई का अनुमान लगाया था और अगर ये सच हो जाता तो ये हमारी कम्पनी के कर्जे तो उतारेगी ही, 11,000,000 डॉलर का मुनाफा भी दे जायेगी।

हॉलीवुड में मैंने अपने दोस्तों के लिए एक निजी शो की व्यवस्था करायी थी। अंत में, थॉमस मान, लायन फ्यूशवेंगर और कई दूसरी विभूतियां खड़ी हो गयीं और एक मिनट से भी ज्यादा तक तालियां बजाती रहीं।

पूरे विश्वास के साथ मैंने न्यू यार्क में कदम रखा। लेकिन मेरे वहां पहुंचते ही डेलीन्यूज़ ने मुझ पर हमला कर दिया:

चैप्लिन अपनी नयी फिल्म के प्रदर्शन के लिए शहर में हैं। 'मेरे सहयात्रियो·' के रूप में उनके सम्बोधन के बाद मैं उन्हें न्यौता देता हूं कि वे प्रेस में अपना चेहरा दिखायें क्योंकि मैं वहां पर उनसे एक या दो परेशान करने वाले सवाल पूछूंगा।

युनाइटेड आर्टिस्ट्स के प्रचार स्टाफ ने इस बात पर देर तक विचार विमर्श किया कि क्या मेरे लिए अमेरिकी प्रेस से मिलना ठीक रहेगा। मैं परेशान था क्योंकि उस दिन सुबह ही मैं विदेशी प्रेस से मिल चुका था और उन्होंने बहुत गर्मजोशी और उत्साह के साथ मेरा स्वागत किया था। इसके अलावा मैं उन लोगों में से नहीं हूं जो गीदड़ भभकियों से डर जायें।

अगली सुबह हमने होटल में एक बड़ा-सा कमरा आरक्षित कराया और मैं अमेरिकी प्रेस से मिला। जब कॉकटेल सर्व कर दिये गये तो मैं हाज़िर हुआ, लेकिन मैंने ताड़ लिया कि दाल में कुछ काला है। मैं एक छोटी सी मेज के पीछे से एक छोटे से मंच से बोला। मैं अपनी आवाज़ में जितनी मिश्री घोल सकता था, घोली और बोला, 'आप लोग कैसे हैं, देवियो और सज्जनो, मैं यहां पर इसलिए हाज़िर हुआ हूं ताकि मैं अपनी फिल्म के बारे में और अपनी भावी योजनाओं के बारे में जो भी तथ्य आप जानना चाहें, उनके बारे में बता सकूं।'

वे लोग चुप रहे। 'सब एक साथ मत बोलिये,' मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

आखिरकार पहली पंक्ति के पास बैठी एक महिला पत्रकार ने श्रीगणेश किया, 'क्या आप कम्यूनिस्ट हैं?'

'नहीं,' मैंने दृढ़ता से जवाब दिया, 'अगला सवाल प्लीज़,'

इसके बाद भुनभुनाने की एक आवाज़ आने लगी। मुझे लगा कि डेलीन्यूज़ वाले वे वही मेरे शुभचिंतक होंगे, लेकिन उनकी गैर हाज़री साफ तौर पर महसूस की जा सकती थी। लेकिन जो वक्ता खड़े हुए वे अपना ओवरकोट पहने हुए मैले कुचैले से लगने वाले निरीह प्राणी थे और वे अपने उन कागज़ों पर झुके हुए थे जिनमें से वे पढ़ रहे थे।

'माफ कीजिये,' मैंने कहा, 'आपको फिर से पढ़ना पढ़ेगा, आप जो भी कह रहे हैं, मैं उसका एक भी शब्द समझ नहीं पा रहा हूं।'

उन्होंने शुरू किया, 'हम, कैथोलिक युद्ध के .... '

मैंने टोका,'मैं यहां पर किसी कैथोलिक युद्ध के .. .. वरिष्ठ भुक्तभोगियों के सवालों का जवाब देने के लिए नहीं आया हूं। ये बैठक प्रेस के लिए है।'

'आप अमेरिका के नागरिक क्यों नहीं बने हैं?' एक और आवाज़।

'मुझे अपनी राष्ट्रीयता बदलने की कोई वज़ह नज़र नहीं आती। मैं अपने आपको विश्व का नागरिक समझता हूं।' मैंने जवाब दिया।

थोड़ी देर के लिए हंगामा मच गया। दो या तीन एक साथ बोलना चाहते थे। अलबत्ता, एक आवाज़ दूसरी आवाज़ों पर हावी हो गयी, 'लेकिन आप अपनी रोज़ी रोटी तो अमेरिका से कमाते हैं!'

'अच्छी बात है,' मैंने मुस्कुराते हुए कहा, 'अगर आप इसे आर्थिक रूप से तौलना चाहते हैं तो मैं आपके सामने सारे आंकड़े गिनवा देता हूं। मेरा कारोबार अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप का है और मेरी कमाई का सत्तर प्रतिशत विदेशों से आता है। और मज़े की बात, उस पर सत्तर प्रतिशत कर का लाभ अमेरिका को मिलता है। अब आप ही देख लीजिये, मैं आपका कितना अच्छा पेइंग गेस्ट हूं!'

कैथोलिक लीज़न के पक्षधर ने एक बार फिर अपना सिर उठाया, 'आप अपना धन यहां पर कमाते हैं या नहीं, हम लोग, जिन्होंने फ्रांस के तटों पर अपने सैनिक उतारे हैं, इस बात पर आपसे खफा हैं कि आप इस देश के नागरिक नहीं हैं।'

'आप ही अकेले ऐसे सज्जन नहीं हैं जिनके सगे फ्रांस के तटों पर उतरे हैं,' मैंने बताया, 'मेरे दो बेटे भी पैटन की सेना में हैं और एकदम मोर्चे पर हैं और वे न तो आपकी तरह तथ्यों को भुना रहे हैं और न ही उनका फायदा ही उठा रहे हैं।'

'क्या आप हैंस एस्लर को जानते हैं?' एक अन्य रिपोर्टर।

'हां, वे मेरे बहुत प्यारे दोस्त हैं और वे बहुत अच्छे संगीतकार हैं।'

'क्या आपको पता है कि वे कम्यूनिस्ट हैं?'

'मैं इस बात की परवाह नहीं करता कि वे क्या हैं, मेरी दोस्ती राजनीति पर आधारित नहीं है।'

'फिर भी ऐसा लगता है कि आप कम्यूनिस्टों को पसंद करते हैं?' एक अन्य रिपोर्टर।

`किसी को भी ये बताने की ज़रूरत नहीं है कि मुझे क्या पसंद करना चाहिये और क्या नहीं। हम अभी तक उस तरह के संबंधों तक नहीं पहुंचे हैं।'

तभी उसी उत्तेजना के बीच में से एक आवाज़ उभरी, 'कैसा लगता है ऐसा कलाकार होना जिसने छोटे लोगों की खुशियों और समझ के साथ पूरी दुनिया को इतना समृद्ध किया हो और अमेरिकी प्रेस के तथाकथित प्रतिनिधियों की नफ़रत और फटकार का पात्र बनाया जाना और मज़ाक का पात्र बनना?'

मैं सहानुभूति के दो बोल सुनने के लिए इतना तरस गया था कि मैं अचानक टोक बैठा, 'माफ कीजिये, मैं आपकी बात नहीं समझ पाया। क्या आप अपना सवाल दोहरायेंगे?'

मेरे प्रचार प्रबंधक ने मुझे टहोका मारा और फुसफुसाया, 'ये आदमी तो आपके पक्ष में ही बात कर रहा है। उसने बहुत ही उम्दा ही बात की है।' ये अमेरिकी उपन्यासकार और कवि जिम एगी थे जो उस समय टाइम्स मैगजीन के लिए विशेष फीचर लेखक और समीक्षक के रूप में काम कर रहे थे।

'माफ कीजिये,' मैंने कहा, 'मैं आपकी बात सुन नहीं पाया, क्या आप अपनी बात दोहरायेंगे?'

'मुझे नहीं पता कि मैं ऐसा कर पाऊंगा या नहीं,' कहा उन्होंने। वे थोड़ा परेशान हो गये थे, फिर भी उन्होंने लगभग वही शब्द दोहरा दिये।

मुझे कोई जवाब ही नहीं सूझा। इसलिए मैंने अपना सिर हिलाया और कहा, 'कोई टिप्पणी नहीं, लेकिन आपका आभार!'

इसके बाद तो मैं उखड़ ही गया। उनके भले लगने वाले शब्दों ने मुझसे और लड़ने की ताकत ही छीन ली थी। 'मुझे खेद है देवियो और सज्जनो,' मैंने कहा, 'मैं तो ये मान कर चल रहा था कि ये प्रेस सम्मेलन मेरी फिल्म के बारे में साक्षात्कार है, इसके बजाये, ये तो राजनैतिक उठा पटक में बदल गया है। इसलिए मुझे और कुछ नहीं कहना है।'

साक्षात्कार के बाद मैं भीतर ही भीतर बीमार हो गया था, क्योंकि मैं जानता था कि मेरे खिलाफ एक मज़बूत उग्र मोर्चा खोल दिया गया है।

इसके बावज़ूद मैं इस पर यकीन नहीं कर सका। मुझे दग्रेटडिक्टेटर पर बधाई देते हुए बहुत ही शानदार पत्र मिले थे और उससे जो कमाई हुई थी, वह पहले की सारी फिल्मों की कमाई पार कर गयी थी और फिल्म के प्रदर्शित होने से पहले मुझे बहुत सारे प्रतिकूल प्रचार का सामना करना पड़ा था। मुझे मोन्स्योरवेरडाऊ की सफलता पर पूरा भरोसा था और युनाइटेड आर्टिस्ट्स के स्टाफ की भी यही राय थी।

मैरी पिकफोर्ड ने फोन करके बताया कि वह ऊना और मेरे साथ प्रीमियर में आना चाहेगी, इसलिए मैंने उन्हें हमारे साथ '21' पर खाना खाने के लिए आमंत्रित किया। मैरी डिनर पर बहुत देर से पहुंची थीं। उन्होंने बताया कि उन्हें एक कॉकटेल पार्टी की वजह से देरी हो गयी। वहां से निकलने में उन्हें बहुत मुश्किल हो रही थी।

जिस वक्त हम थियेटर में पहुंचे तो बाहर अपार भीड़ जुट चुकी थी। जिस वक्त हम लॉबी में से रास्ता बना कर निकल रहे थे, हमने देखा कि एक आदमी रेडियो पर प्रसारण कर रहा है: 'और अब चार्ली चैप्लिन और उनकी पत्नी आ पहुंचे हैं। आहा, और उनके साथ उनके मेहमान के रूप में हैं मूक फिल्मों के दिनों की शानदार अभिनेत्री जो अभी भी पूरे अमेरिका की हर दिल अजीज हैं। ये हैं मिस मैरी पिकफोर्ड। मैरी, क्या आप इस शानदार प्रीमियर के बारे में कुछ नहीं कहेंगी?'

लॉबी ठसाठस भरी हुई थी। मैरी किसी तरह से भीड़ में से रास्ता बनाते हुए माइक्रोफोन तक पहुंचीं। वे अभी भी मेरा हाथ थामे हुए थीं।

'और अब, देवियो और सज्जनो, पेश हैं मैरी पिकफोर्ड!'

खींचे जाने और धकेले जाने के बीच मैरी ने कहा, 'दो हज़ार साल पहले यीशु का जन्म हुआ था और आज की रात ....' वे आगे कुछ नहीं कह पायीं। चूंकि वे अभी भी मेरा हाथ थामे हुए थीं, उन्हें भीड़ के एक धक्के ने माइक से परे धकेल दिया। मैं अक्सर इस बात पर हैरान होता हूं कि वे आगे क्या कहने वाली थीं।

उस रात थियेटर का माहौल असहज करने वाला था। एक भावना काम कर रही थी कि दर्शक कुछ सिद्ध करने के लिए आये हैं। जिस पल फिल्म शुरू हुई, बेचैन प्रत्याशा और अतीत के सुखद अहसास, जिनके साथ मेरी फिल्मों का स्वागत हुआ करता था, उनकी जगह पर बीच बीच में कुछेक सिसकारियों के बीच बिखरे बिखरे, नर्वस हंसी के पल थे। मुझे ये स्वीकार करना ही होगा कि सिसकारी भरी ये प्रतिक्रियाएं प्रेस की सारी नाराज़गी से भी ज्यादा तकलीफ दे रही थीं।

जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती गयी, मेरी चिंता बढ़ती गयी। हँसी के पल थे लेकिन ये बिखरे हुए थे। ये पुराने वक्त के, दगोल्डरश के, या सिटीलाइट्स के या शोल्डरआर्म्स के ठहाके नहीं थे। ये थियेटर में चल रही सिसकारियों के खिलाफ चुनौतीपूर्ण हँसी थी। मेरा दिल डूबने लगा। मैं अपनी सीट में और देर तक नहीं बैठ पाया। मैंने ऊना से फुसफुसाया, 'मैं बाहर लॉबी में जा रहा हूं। अब और सहन नहीं होता मुझसे।' उसने मेरा हाथ दबाया। मेरे हाथ में मुचड़ा हुआ कार्यक्रम पत्रक था, इसे मैं इतना ज्यादा तोड़ मरोड़ चुका था कि ये मेरी हथेलियों को पसीने से गीला करने लगा। इसलिए मैंने उसे अपनी सीट के नीचे फेंक दिया। मैं दबे पांव बीच वाले रास्ते पर आया और लॉबी की तरफ निकल गया। मैं ठहाके सुनने और उनके बीच में से उठ कर परे चले आने के बीच बंट गया था। तब मैं हौले हौले चलता हुआ बीच वाली मंज़िल तक यह देखने के लिए आया कि वहां पर क्या चल रहा है। एक आदमी बाकी और लोगों की तुलना में सबसे ज्यादा हँस रहा था। निश्चित तौर पर मेरा कोई दोस्त रहा होगा। लेकिन ये विकृत और नर्वस हँसी थी मानो वह कुछ सिद्ध करना चाहता हो। बाल्कनी में भी यही हाल चल रहा था।

दो घंटे तक मैं लॉबी में, गली में और थियेटर के आस पास चहलकदमी करता रहा और फिर वापिस थियेटर में फिल्म देखने आ जाता। ये सब बीच बीच में चलता रहा। आखिर फिल्म खत्म हुई। अर्ल विल्सन, स्तम्भकार, जो बहुत ही प्यारा आदमी था, मुझसे लॉबी में मिलने वाले लोगों में सबसे पहला था। 'मुझे ये बहुत अच्छी लगी।' उसने 'मुझे' पर बहुत ज़ोर दिया। तब मेरे प्रतिनिधि आर्थर केली बाहर आये। 'बेशक, ये एक करोड़ बीस लाख का धंधा तो नहीं ही करने जा रही है।' उसने कहा।

'मैं आधे पर ही समझौता कर लूंगा,' मैंने मज़ाक में कहा।

इसके बाद हमने लगभग एक सौ पचास लोगों को खाने की दावत दी। उनमें से कुछ पुराने दोस्त थे। उस शाम वहां पर तरह तरह की बातें हुईं और शैम्पेन सर्व किये जाने के बावजूद मामला हताश करने वाला था। ऊना जल्दी ही वहां से चली गयी लेकिन मैं आधा घंटा और रुका रहा।

हरबर्ट बेयार्ड स्वोपे, जिन्हें मैं पसंद करता था और समझदार समझता था, फिल्म के बारे में मेरे दोस्त डॉन स्टीवर्ट से बहस कर रहे थे। स्वोपे को ये पसंद नहीं आयी थी। उस रात कुछ ही लोगों ने मुझे बधाई दी। डॉन स्टीवर्ट, जो मेरी तरह खुद भी थोड़े नशे में थे, बोले, 'चार्ली, आस पास बहुत से हरामी मौजूद हैं जो आपकी फिल्म पर राजनीति की रोटियां सेंकना चाहते हैं। लेकिन फिल्म बहुत ऊंची चीज़ बनी है और दर्शक इसे पसंद करेंगे।'

इस समय तक मैं इस बात की परवाह नहीं कर रहा था कि कौन क्या कह रहा है। अब मुझमें विरोध करने की ताकत नहीं बची थी। डॉन मुझे होटल तक छोड़ने आये। जब हम पहुंचे तो ऊना पहले ही सो चुकी थी।

'कौन सी मंज़िल है?' डॉन ने पूछा।

'सत्रहवीं'

'हे भगवान, आपको पता है कि ये कौन सा कमरा है? ये वही कमरा है जिसमें वो लड़का लेज पर निकल आया था और कूद कर जान देने से पहले वहां पर बारह घंटे तक खड़ा रहा था।'

उस शाम का इससे बेहतर क्लाइमेक्स और क्या हो सकता था। अलबत्ता, मैं ये मानता हूं कि मैंने अब तक जितनी भी फिल्में बनायी हैं,उनमें से मोन्स्योरवेरडाऊसबसे ज्यादा चतुराई और समझदारी से बनायी गयी फिल्म है।

मेरी हैरानी की सीमा न रही जब मोन्स्योरवेरडाऊ न्यू यार्क में छ: सप्ताह तक चलती रही और उसने बहुत अच्छा कारोबार किया। लेकिन ये अचानक ही मंदी पड़ गयी। जब मैंने युनाइटेड आर्टिस्ट्स के ग्रैंड सीअर्स से इस बारे में पूछा तो उसने बताया, 'आप जो भी फिल्म बनाते हैं, वह पहले तीन या चार हफ्ते तक तो बहुत अच्छा कारोबार करती है। कारण ये है कि आपके बहुत सारे पुराने प्रशंसक हैं। लेकिन उनके बाद आती है आम जनता। और सच कहें तो प्रेस आपके पीछे कम से कम दस बरस से लट्ठ ले कर पड़ी हुई है और उस लट्ठबाजी की कुछ तो असर होना ही था। यही वजह है कि कारोबार में मंदी आ गयी है।'

'लेकिन ये तो मानना ही पड़ेगा कि लोगों में हास्य बोध है।' मैंने पूछा।

'यहां देखिये,' उसने मुझे डेलीन्यूज और हर्स्ट के अखबार दिखाये, और ये अखबार सारे देश में जाते हैं।'

एक अखबार में एक चित्र दिखाया गया था जिसमें मोन्स्योरवेरडाऊ दिखाने वाले एक थियेटर के बाहर न्यू जर्सी कैथोलिक लीज़न के लोग हाथ में प्लेकार्ड ले कर धरना दे रहे थे। उन लोगों के हाथों में जो बोर्ड थे, उन पर लिखा था,

'चार्ली कॉमरेड है'

'देशद्रोही को देश से बाहर निकालो'

'चैप्लिन बहुत दिन तक मेहमान बन कर रह लिया'

'चैप्लिन, कृतघ्न और कम्यूनिस्टों से सहानुभूति रखने वाला'

'चैप्लिन को रूस भेजो'

जब किसी व्यक्ति पर निराशा और तकलीफ की दुनिया टूट पड़ती है तो अगर वह हताशा की तरफ नहीं मुड़ता तो दर्शन और हास्य की तरफ मुड़ जाता है। और जब ग्रैड ने मुझे धरना देने वालों की तस्वीर दिखायी, तो उस वक्त थियेटर के बाहर एक भी दर्शक नहीं था। मैंने मज़ाक में कहा, 'स्पष्ट ही ये तस्वीर सुबह पांच बजे ली गयी होगी।' अलबत्ता, जहां कहीं भी मोन्स्योरवेरडाऊ बिना बाधा के दिखायी गयी, इसने सामान्य की तुलना में बेहतर ही कारोबार किया।

पिक्चर को देश के सभी बड़े सर्किटों में बुक किया गया था। लेकिन अमेरिकी ल़ाजन की तरफ से और दूसरे समूहों की तरफ से धमकी भरे पत्र मिलने पर उन्होंने शो दिखाने बंद कर दिये। लीज़न ने धमकाने का प्रभावशाली तरीका अपनाया था कि अगर वे कोई चैप्लिन फिल्म दिखा रहे होते या कोई ऐसी फिल्में दिखा रहे होते जिसे वे अनुमोदित नहीं करते थे तो वे वितरकों को पूरे एक बरस तक थियेटर का बहिष्कार करने की धमकी देते थे। डेनवर में पहली रात फिल्म ने बहुत अच्छा कारोबार किया लेकिन इस तरह के धमकी भरे व्यवहार के कारण उसे उतार दिया गया।

न्यू यार्क की ये वाली हमारी यात्रा अब तक की यात्राओं की तुलना में सबसे ज्यादा नाखुश करने वाली थी। रोज़ाना हमें फिल्म के रद्द किये जाने की खबरें मिलतीं। इसके अलावा, मुझेग्रेटडिक्टेटर को ले कर चोरी के इल्ज़ाम में फंसा दिया गया था और प्रेस और जनता की भीषण नफ़रत और विरोध के चरम बिन्दु पर पहुंचने पर और जब कि सीनेट में चार सीनेटर हाथ धो कर मेरे पीछे पड़ गये थे, मेरी इस इच्छा के विरुद्ध कि इस मामले को थोड़ा स्थगित कर दिया जाये, मामले को जूरी के सामने ले जाया गया।

आगे बढ़ने से पहले मैं ये कह कर कुछ बातें साफ कर लेना चाहता हूं कि मैंने हमेशा अकेले के बलबूते पर अपनी पटकथाएं खुद ही सोची और लिखी हैं। मामला अभी शुरू भी नहीं हुआ था कि न्यायाधीश ने यह घोषणा कर दी कि उनके पिता मर रहे हैं और कि हम समझौता कर लें ताकि वह मामला निपटा सकें और अपने पिता के पास जा सकें। दूसरे पक्ष ने इसमें तकनीकी फायदा देखा और समझौते के प्रस्ताव को लपक कर स्वीकार कर लिया। अगर सामान्य परिस्थितियां होतीं तो मैंने मामले को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया होता, लेकिन एक तो मैं उस वक्त अमेरिका में अलोकप्रियता के शिखर पर था और इस तरह के न्यायालय के दबाव में आ गया था, मैं डरा हुआ था कि आगे न जाने क्या हो जाये, हमने समझौता कर लिया।

12,000,000 डॉलर कमाने की सारी उम्मीदें धूल में मिल चुकी थीं। अब तो उसकी कीमत वसूल करने के भी लाले पड़े हुए थे। एक बार फिर युनाइटेड आर्टिस्ट्स गहरे संकट में पड़ गयी थी। किफायत करने की दृष्टि से मैरी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मैं अपने प्रतिनिधि आर्थर कैल्ली की छुट्टी कर दूं और जब मैंने उसे याद दिलाया कि मैं भी कम्पनी का आधा मालिक हूं तो मोहतरमा नाराज़ हो गयीं।

'अगर मेरा प्रतिनिधि जाता है, मैरी, तो आपका प्रतिनिधि भी ज़रूर जायेगा।' मैंने कह दिया। इससे अवरोध पैदा हो गया और मुझे मज़बूरन कहना पड़ा, 'अब हम दोनों में से ही एक कम्पनी खरीदे और दूसरा बेचे। अपनी कीमत बोलिये।' लेकिन मैरी कोई कीमत लगाने के लिए तैयार नहीं थीं और न ही मैं कीमत लगाने में पहल कर रहा था।

आखिर, ईस्टर्न सर्किट ऑफ थियेटर्स का प्रतिनिधित्व करने वाली वकीलों की एक फर्म हमारी संकट मोचक बन कर सामने आयी। वे कम्पनी पर नियंत्रण चाहते थे और 12,000,000 डॉलर देने के लिए तैयार थे। 7,000,000 डॉलर नकद और 5,000,000 डॉलर शेयरों के रूप में। ये बहुत ही अच्छा सौदा था।

'देखो,' मैंने मैरी से कहा, 'आप मुझे अभी नकद 5,000,000 डॉलर दे दीजिये और बाकी आप रख सकती हैं।' वे इस बात से सहमत हो गयीं और कम्पनी को भी इसमें एतराज़ नहीं था।

कई हफ्तों तक सौदेबाजी करने के बाद इस आशय के दस्तावेज तैयार कर लिये गये। आखिरकार मेरा वकील मेरे पास आया और बोला,'चार्ली, अगले दस मिनट बाद आपकी हैसियत पचास लाख डॉलर की हो जायेगी।'

लेकिन दस मिनट बाद उसने फोन किया, 'चार्ली, सौदा खटाई में पड़ गया है। मैरी ने पैन अपने हाथ में ले लिया था और हस्ताक्षर करने ही वाली थीं कि अचानक बोलीं, 'नहीं, चार्ली को पचास लाख डॉलर अभी ही क्यों मिलें और मुझे दो बरस तक इंतज़ार करना पड़े!' हमने तर्क दिया कि उन्हें सत्तर लाख डॉलर मिल रहे हैं, आपकी तुलना में बीस लाख डॉलर ज्यादा। लेकिन उन्होंने ये बहाना बना दिया कि उससे उनकी आय पर टैक्स को ले कर समस्या हो जायेगी। ये हमारे लिए सुनहरी मौका था। बाद में हमें कम्पनी को बहुत कम कीमत पर बेचने पर मज़बूर होना पड़ा।

हम कैलिफोर्निया लौट आये। मैं मोन्स्योरवेरडाऊ के पचड़े से पूरी तरह से मुक्त हो चुका था इसलिए मैं एक बार फिर आइडिया सोचने के लिए तैयार होने लगा। इसकी वज़ह ये थी कि मैं आशावादी था और मुझे अभी भी इस बात का यकीन नहीं था कि मैं अमेरिकी जनता का प्यार पूरी तरह से खो चुका हूं, कि वे राजनैतिक रूप से इतने सजग हो सकते हैं कि या हास्य से इतने हीन हो सकते हैं कि किसी भी ऐसे व्यक्ति का बहिष्कार कर दें जो उन्हें हँसाता रहा है। मेरे पास एक आइडिया था और इसके दबाव के तले मैं इस बात की रत्ती भर भी परवाह नहीं कर रहा था कि नतीजा क्या होगा। फिल्म बननी ही बननी थी।

दुनिया चाहे जितने भी आधुनिक बाने धारण कर ले, उसे प्रेम कहानी हमेशा अच्छी लगती है। जैसा कि हैज़लिट ने कहा है, संवेदना में मेधा की तुलना में ज्यादा अपील होती है और कि ये कला के कार्य में कहीं बड़ा योगदान करती है। इस बार मेरा आइडिया एक प्रेम कहानी का था। इसके अलावा, ये मोन्स्योरवेरडाऊ की पागलपन भरी निराशा की तुलना में दूसरी तरह की फिल्म होती। लेकिन महत्त्वपूर्ण बात ये थी कि इसका आइडिया मुझे उत्तेजित किये हुए था।

लाइमलाइट को तैयार करने में अट्ठारह महीने का समय लगा। इसके लिए बारह मिनट के बैले संगीत की रचना की जानी थी। ये काम हिमालय में से गंगा निकालने जैसा मुश्किल सिद्ध हुआ क्योंकि मुझे बैले की भाव भंगिमाओं की कल्पना करनी थी। अतीत में तो ये होता था कि जब फिल्म पूरी हो जाती थी तभी मैं संगीत रचना किया करता था और ऐसी हालत में मैं एक्शन देख सकता था। इसके बावज़ूद, मैंने नृत्य की मुद्राओं की कल्पना करते हुए सारे संगीत की रचना की। लेकिन जब संगीत पूरा हो गया तो मैं हैरान परेशान था कि ये बैले के लिए माफिक बैठेगा या नहीं क्योंकि नृत्य की कोरियोग्राफी तो नर्तकों द्वारा खुद ही सोची और पेश की जायेगी।

आंद्रे एग्लेवस्की का बहुत बड़ा प्रशंसक होने के नाते मैंने सोचा कि उन्हें बैले में लिया जाये। वे न्यू यार्क में थे इसलिए मैंने उन्हें फोन किया और उनसे पूछा कि क्या वे अलग ही संगीत रचना पर 'ब्लूबर्ड' नृत्य करना चाहेंगे। मैंने उनसे ये भी कहा कि वे अपने साथ नृत्य करने के लिए किसी बैलेरिना का नाम भी सुझायें।

ब्लूबर्ड नृत्य ट्राइकोवस्की के संगीत पर आधारित है और पैंतालीस सेकेंड तक चलता है। इसलिए मैंने कमोबेश इतनी ही अवधि के लिए संगीत रचना तैयार की थी।

हम पिछले कई महीने से पचास कलाकारों वाले आर्केस्ट्रा के साथ बारह मिनट का बैले संगीत बनाने की दिशा में काम कर रहे थे इसलिए मैं आंद्रे साहब की प्रतिक्रिया जानने को बेचैन था। आखिरकार, बैलेरिना मेलिसा हेडन और आंद्रे एग्लेवस्की ये संगीत रचना सुनने के लिए विमान से हॉलीवुड आये। जिस वक्त वे इसे सुनने के लिए बैठे तो मैं बहुत ज्यादा नर्वस था और आत्म सजग था। लेकिन भगवान का शुक्र है, दोनों ने इसे अनुमोदित कर दिया और बताया कि ये बैले के अनुरूप है। मेरे फिल्म कैरियर के पलों में से ये सबसे ज्यादा रोमांचक पल थे - उन्हें इस धुन पर नृत्य करते देखना। उन्होंने इसमें जो अर्थ भरे, वे आह्लाद से भर देने वाले थे और इसने संगीत को एक महाकाव्यात्मक महत्ता प्रदान की।


लड़की की भूमिका के लिए पात्र का चयन करते समय मैं असंभव की चाह रखने लगा था। सौन्दर्य, मेधा, और ऊपर से संवेदनाएं प्रकट कर सकने की बहुत व्यापक रेंज। कई महीनों तक खोजने और जांचने परखने के बाद भी निराशा जनक नतीजे ही सामने आ रहे थे। मैं सौभाग्यशाली था कि मैंने क्लेयर ब्लूम को चुना। मेरे मित्र आर्थर लारेंट्स ने उसकी सिफारिश की थी।

हमारी प्रकृति में कुछ ऐसा होता है कि हम नफ़रत और दुखद बातों को भी भूल जाते हैं। मुकदमा और उसके साथ जुड़ी सारी तकलीफ़ें हवा में बर्फ की तरह पिघल चुकी थीं। इस बीच ऊना चार बच्चों की मां बन चुकी थी। गेराल्डिन, माइकल, जोस्सी और विक्की। बेवरली हिल्स में अब जीवन खुशनुमा था। हमने एक सुखद गृह व्यवस्था जुटा ली थी और सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। रविवार को हम मेल-मुलाकात का दिन रखते और कई दोस्त हमसे मिलने आते। उनमें जिम एगी भी थे जो जॉन हस्टन के लिए पटकथा लेखन के लिए हॉलीवुड आये थे।

विल डुरांट, लेखक और दार्शनिक भी उन दिनों हॉलीवुड में थे और यूसीएलए में व्याख्यान दे रहे थे। वे मेरे पुराने मित्र थे और कभी-कभार हमारे घर पर खाना खाते। वे बहुत शानदार शामें होतीं। विल बहुत ही उत्साही आदमी थे और उन्हें किसी भी तरह के नशे की ज़रूरत न पड़ती। उनके लिए ज़िदंगी का नशा ही काफी था। एक बार उन्होंने मुझसे पूछा, 'सुन्दरता की आपकी धारणा क्या है?' मैंने कहा कि मेरे ख्याल से ये मृत्यु और अकेलेपन, मुस्कुराती हुई उदासी की सर्वत्र बिछी सत्ता है जिसे हम प्रकृति में और प्रत्येक वस्तु में देखते हैं, एक रहस्यमय आध्यात्मिक संबंध जिसे कवि महसूस करता है, ये सूर्य की किरण में चमकता कचरे का डिब्बा भी हो सकता है या गटर में गिरा हुआ गुलाब का फूल भी हो सकता है। एल ग्रेको ने इसे हमारे 'सूली पर चढ़ने वाले यीशू' में देखा था।

हम विल से दोबारा डगलस फेयरबैंक्स जूनियर के यहां डिनर पर मिले। क्लेमेंस डेन और क्लेयर बूथ लूस भी वहीं थे। मैं क्लेयर से कई बरस पहले न्यू यार्क में डब्ल्यू आर हर्स्ट के फैंसी ड्रेस शो में मिला था। उस रात वे अट्ठारहवीं शताब्दी के कॉस्ट्यूम और सफेद विग में गज़ब की सुंदर और मनमोहनी लग रही थीं। तभी मैंने सुना था कि मेरे दोस्त जॉर्ज मूर, जो बेहद संवेदनशील और सुसंस्कृत व्यक्ति थे, के साथ उसकी कहा-सुनी हो गयी थी।

अपने प्रशंसकों के जमावड़े से घिरी वे सबको सुनायी दे सकने वाली आवाज़ में मूर का पानी उतार रही थीं, 'आप तो अच्छे खासे रहस्यमय नज़र आते हैं। आप पैसा कमाते कैसे हैं?'

ये बहुत ही क्रूर बात थी, खास तौर पर तब, जब कई लोग वहां पर मौजूद थे। लेकिन जॉर्ज बहुत ही प्यारे इन्सान थे, उन्होंने हँसते हुए जवाब दिया था, 'मैं कोयला बेचता हूं, अपने दोस्त हिचकॉक के साथ थोड़ी-सी पोलो खेल लेता हूं और यहां,' उस वक्त मैं वहीं से गुज़र रहा था, 'मेरा दोस्त चार्ली मुझे जानता है।' क्लेयर के बारे में तब से मेरी धारणा बदल गयी थी। बाद में मुझे ये सुन कर बिल्कुल भी हैरानी नहीं हुई थी कि वे कांग्रेस में चली गयी थीं और बाद में राजदूत बन गयी थीं। उन्होंने अमेरिकी राजनीति को प्रख्यात दार्शनिक जुमला ग्लोबालोनी· दिया था। उस रात मैं क्लेअर लूस के देव वाणी सदृश उपदेश सुनता रहा। बेशक विषय धर्म की ओर मुड़ गया (वे हाल ही में केथोलिक चर्च में शामिल हो गयी थीं) और मैंने चर्चा के दौरान उनसे कहा, `आदमी को ईसाईयत का तमगा अपने माथे पर लगाने की ज़रूरत नहीं होती। धर्म साधुओं और पापियों, दोनों में एक जैसा होता है। पवित्र आत्मा हर कहीं होती है।' उस रात जब हम विदा हुए तो दोनों ही असहज महसूस कर रहे थे।

लाइमलाइट पूरी हो चुकी थी और मुझे अब तक की बनायी मेरी किसी भी दूसरी फिल्म की तुलना में इसकी सफलता के बारे में बहुत कम शक था। हमने अपने मित्रों के लिए एक निजी शो की व्यवस्था की और सभी बहुत उत्साहित थे। इसलिए हमने यूरोप के लिए निकलने के बारे में सोचना शुरू किया। ऊना चाहती थी कि बच्चों को हॉलीवुड के प्रभाव से कहीं दूर स्कूल में भरती किया जाए।

मैं तीन महीने पहले ही री-एंट्री के परमिट के लिए आवेदन दे चुका था, लेकिन अभी तक कोई उत्तर नहीं आया था। इसके बावज़ूद, मैं जाने की तैयारियों में अपने कारोबार को व्यवस्थित करने में लगा हुआ था। मेरे टैक्स की फाइलें जमा कर दी गयी थीं और सारे मामले निपटा दिये गये थे। लेकिन जब आंतरिक राजस्व सेवा विभाग को पता चला कि मैं यूरोप के लिए निकल रहा हूं तो उन्होंने ये बात खोज निकाली कि मैंने उन्हें और पैसे देने हैं। अब उन्होंने एक ऐसी राशि की गिन कर दे दी जो छह अंकों में जाती थी। उन्होंने मुझसे 2,000,000 डॉलर की मांग की। यह राशि उस राशि से दस गुना ज्यादा थी जिसका वे दावा कर रहे थे। मेरी छठी इंद्रिय ने मुझे चेताया कि कुछ भी जमा मत कराओ और मामले को तुरंत अदालत में ले जाये जाने के बारे में अड़ जाओ। इससे जल्दी ही, मामूली-सी राशि पर समझौता हो गया। अब उन्हें कुछ और राशि वसूल नहीं करनी थी इसलिये मैंने फिर से री-एंट्री के परमिट के बारे में आवेदन किया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया। इसलिये, मैंने वाशिंगटन में एक पत्र भेजा और उन्हें सूचित किया कि अगर वे मुझे री-एंट्री परमिट नहीं देना चाहते, तो भी मैं किसी भी हालत में देश से जाना चाहता हूं।

एक हफ्ते बाद मुझे आप्रवास विभाग से एक टेलीफोन संदेश मिला कि वे मुझसे कुछ सवाल पूछना चाहते हैं और क्या वे मेरे घर पर आ सकते हैं?

`बेशक,' मैंने जवाब दिया।

तीन पुरुष और एक महिला पहुंचे। महिला के हाथ में स्टेनोटाइप मशीन थी। पुरुषों के हाथ में चौकोर ब्रीफकेस थे। स्पष्ट था कि वे टेप रिकार्डिंग मशीनें लेकर चल रहे थे। मुख्य जांचकर्ता लगभग चालीस बरस का खूबसूरत, सीधा, दुबला-पतला आदमी था। मुझे पता था कि मैं चार के मुकाबले एक हूं और मुझे अपने वकील को भी बुलवा लेना चाहिए था लेकिन मुझे कुछ भी तो नहीं छुपाना था।

मैं उन्हें धूप वाले पोर्च में ले गया। महिला ने अपनी स्टेनोटाइप मशीन निकाली और एक छोटी सी मेज पर रख दी। पुरुष लोग सेट्टी पर बैठे और अपनी टेप रिकॉर्डिंग मशीनें अपने सामने रख लीं। जांचकर्ता ने एक फुट मोटा रजिस्टर निकाला और सफाई से अपने पास मेज पर रख दिया। मैं उनके सामने बैठा। वह पेज दर पेज अपने रजिस्टर में देखने लगा।

`क्या चार्ल्स चैप्लिन आपका असली नाम है?'

`जी हां,'

`कुछ लोग कहते हैं कि आपका नाम - (यहां उन्होंने कोई विदेशी नाम लिया) कि आपका नाम गलिसिया है!'

'नहीं, मेरा नाम चार्ल्स चैप्लिन है और मेरे पिता का नाम भी चार्ल्स चैप्लिन था और मैं इंगलैंड पैदा हुआ।'

'आपका कहना है कि आप कभी कम्यूनिस्ट नहीं रहे हैं?'

'कभी नहीं, मैं कभी भी अपने जीवन में किसी राजनैतिक संगठन में शामिल नहीं हुआ हूं।'

'आपने एक भाषण दिया था जिसमें आपने 'कॉमरेड' शब्द का इस्तेमाल किया था। इससे आपका क्या मतलब था?'

'बिल्कुल यही। आप शब्दकोष में देखें। कम्यूनिस्ट लोगों का इस शब्द पर कोई एकाधिकार नहीं है।'

वह इसी तरह से अपने सवाल पूछता रहा। अचानक उसने एक सवाल पूछा, 'क्या आपने कभी व्यभिचार किया है?'

'सुनिये,' मैंने जवाब दिया, 'अगर आप मुझे देश से बाहर रखने के लिए कोई तकनीकी कारण खोज रहे हैं तो मुझे बता दीजिये। मैं उसी तरह से व्यवस्था कर लूंगा क्योंकि मैं कहीं पर भी अवांछित व्यक्ति बन कर नहीं रहना चाहता।'

'ओह, नहीं,' वह बोला, 'यह सवाल तो हरेक री-एंट्री परमिट में होता है।'

'व्यभिचार की परिभाषा क्या है?' मैंने पूछा।

हम दोनों ने शब्दकोष में देखा।

'हम मान लें कि दूसरे की पत्नी के साथ संबंध,' कहा उसने।

मैं कुछ पल सोचता रहा, 'मेरी जानकारी में नहीं,' मैंने जवाब दिया।

'अगर आपके देश पर हमला हो जाता है, तो क्या आप इसके लिए लड़ेंगे?'

'बेशक, मैं इस देश को प्यार करता हूं। ये मेरा घर है। मैं यहां चालीस बरस से रह रहा हूं,' मैंने जवाब दिया।

'लेकिन आप कभी इसके नागरिक नहीं बने?'

'इसके खिलाफ कोई कानून नहीं हैं, अलबत्ता, मैं अपने टैक्स यहीं अदा करता हूं।'

'लेकिन आप पार्टी लाइन के हिसाब से क्यों चलते हैं?'

'अगर आप मुझे बता दें कि पार्टी लाइन क्या होती है तो मैं आपको बता दूंगा कि मैं इसके हिसाब से चलता हूं या नहीं।'

थोड़ी देर के लिए मौन पसर गया, फिर मैंने अपनी बात कही: 'क्या आप जानते हैं कि मैं इस सारी मुसीबत में कैसे फंसा?'

उसने सिर हिलाया।

'आपकी सरकार पर अहसान करके!'

उसने हैरानी से अपनी भौहें ऊपर कीं।

'रूस में आपके राजदूत मिस्टर जोसेफ डेविस को रूसी युद्ध राहत की ओर से सैन फ्रांसिस्को में भाषण देना था, लेकिन ऐन मौके पर उनका गला खराब हो गया और आपकी सरकार के एक उच्च अधिकारी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके स्थान पर बोलने की मेहरबानी करूंगा और तब से मैं इसमें अपनी गर्दन फंसाये बैठा हूं।'

तीन घंटे तक मुझसे पूछताछ होती रही। एक हफ्ते बाद फिर उन्होंने मुझे फोन किया कि क्या मैं आप्रवास कार्यालय में आऊंगा। मेरे वकील ने मेरे साथ चलने की ज़िद की। उसका कहना था, 'हो सकता है वे कुछ और सवाल पूछें।'

जब मैं वहां पर पहुंचा तो मैं इतने सौहार्दपूर्ण स्वागत की उम्मीद नहीं करता था। आप्रवास विभाग के प्रमुख, मझौली उम्र के एक दयालु शख्स ने मानो दिलासा देते हुए कहा, 'मुझे खेद है कि आपको हमारी वजह से विलंब हुआ है, मिस्टर चैप्लिन, लेकिन अब हमने आप्रवास कार्यालय की एक शाखा लॉस एंजेल्स में भी खोली है और अब आपका काम जल्दी ही हो जाया करेगा और आपको अपने आवेदन पत्र वाशिंगटन भेजने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। आपसे सिर्फ एक सवाल और पूछना है, मिस्टर चैप्लिन, 'आप कितना अरसा बाहर रहेंगे?'

'छह महीने से ज्यादा नहीं,' मैंने जवाब दिया, 'हम सिर्फ छुट्टी मनाने जा रहे हैं।'

'नहीं तो, अगर आप ज्यादा अरसे के लिए जा रहे हैं तो आपको समय विस्तार के लिए अवश्य ही अनुमति लेनी होगी।' उन्होंने मेज पर एक दस्तावेज रख दिया और कमरे से बाहर चले गये। मेरे वकील ने तेजी से दस्तावेज की तरफ देखा, 'ये हुई न बात,' कहा उसने, 'उन्होंने परमिट दे दिया है।'

वह आदमी एक पेन लेकर लौटा, 'क्या आप यहां हस्ताक्षर करेंगे, मिस्टर चैप्लिन, और हां, आपको अपनी यात्रा के दूसरे कागज़ात लेने होंगे।'

मेरे हस्ताक्षर कर लेने के बाद उन्होंने प्यार से मेरा कंधा थपथपाया, 'ये रहा आपका परमिट, मैं उम्मीद करता हूं कि आपकी यात्रा सुखद रहेगी, चार्ली। जाइये, जल्दी घर जाइये।'

शनिवार का दिन था और हम ट्रेन से रविवार की सुबह न्यू यार्क के लिए निकलने वाले थे। मैं चाहता था कि ऊना मेरे सेफ डिपाजिट बॉक्स को अपने कब्जे में ले ले क्योंकि कुछ भी हो सकता था और मेरी सारी पूंजी इसी बक्से में रखी थी लेकिन ऊना बैंक में जाकर हस्ताक्षर करना टालती रही। और अब लॉस एंजेल्स में ये हमारा आखिरी दिन था और दस मिनट में बैंक बन्द हो जाने वाला था।

'हमारे पास सिर्फ दस ही मिनट बचे हैं, इसलिए हमें जल्दी करनी होगी!' मैंने कहा।

ऐसे मामलों में ऊना बहुत टाल मटोल करती है। 'क्या हम छुट्टियों से वापिस आने का इंतज़ार नहीं कर सकते?' कहा उसने। लेकिन मैं ज़िद पर अड़ा रहा। हमने एक अच्छा काम किया नहीं तो देश से अपनी सारी पूंजी बाहर निकालने के लिए हमें बाकी जीवन मुकदमेबाजी में ही गुज़ार देना पड़ता।

ये एक खुशनुमा दिन था जब हम न्यू यार्क के लिए चले। ऊना जाने के लिए अंतिम घरेलू तैयारियां कर रही थी और मैं बरामदे में खड़ा घर को दुविधा भरी भावनाओं के साथ देख रहा था। इस घर में मेरे साथ कितना कुछ घटा था। इतनी सारी खुशियां, इतनी सारी तकलीफ़ें और अब घर कितना शांत और दोस्ताना लग रहा था कि मुझे इसे छोड़ते हुए तकलीफ़ हो रही थी।

हैलन, हमारी नौकरानी और हेनरी, हमारे बटलर को विदा कह देने के बाद मैं रसोई में लपका और अपनी कुक अन्ना को विदा के दो शब्द कहे। मैं ऐसे मौकों पर बहुत शर्मीला हो जाता हूं और अन्ना, गोल-मटोल सी, भारी भरकम महिला थोड़ा ऊंचा सुनती थी। 'गुड बाय' मैंने कहा और उसकी बांह को छुआ। ऊना सबसे बाद में निकली। उसने मुझे बताया कि उसने कुक और नौकरानी को रोते हुए देखा था। मेरे असिस्टेंट डायरेक्टर जेरी एप्सटीन हमें स्टेशन पर छोड़ने आये।

शहर के बाहरी इलाकों की यात्रा राहत देने वाली थी। समुद्री यात्रा शुरू करने से पहले हम एक हफ्ते तक न्यू यार्क में रहे। जिस समय मैं आनंद भोगने के लिए अपने आप को तैयार कर ही रहा था कि मेरे वकील चार्ल्स श्वार्त्ज यह कहने के लिए आये कि युनाइटेड आर्टिस्ट्स का कोई भूतपूर्व कर्मचारी मुझ पर कई लाख डॉलर के लिए मुकदमा कर रहा है। 'ये सब बकवास है चार्ली, साथ ही साथ, मैं चाहता हूं कि आप ये सम्मन न लें क्योंकि इसका मतलब आपको छुट्टी से वापिस आना पड़ सकता है।' इस तरह से मुझे इन आखिरी चार दिनों के लिए अपने कमरे मे ही बंद रह जाना पड़ा और मैं ऊना और बच्चों के साथ न्यू यार्क नहीं घूम पाया। अलबत्ता, मैं लाइमलाइट के प्रेस प्रिव्यू के समय मौजूद रहना चाहता था,सम्मन मिले या नहीं!

क्रोकर, मेरे प्रचार प्रबंधक ने टाइम तथा लाइफ पत्रिकाओं के सम्पादकीय स्टाफ के साथ एक लंच का आयोजन किया था। ये इस तरह का मौका था कि खुद आगे बढ़ कर प्रचार कराया जाय। नंगी, सफेद प्लस्तर वाली दीवारों वाले उनके दफ्तर उस लंच के मनहूस माहौल के लिए एकदम माफिक सेटिंग थे। मैं टाइम स्टाफ के उदास, घुटे सिर वाले लोगों के साथ मज़ाकिया और अंतरंग बनने की कोशिश करता रहा। खाने में चिपचिपा,रसेदार चिकन था जो बिल्कुल बेस्वाद था लेकिन जहां तक लाइमलाइट के लिए अच्छे प्रचार का सवाल था, न तो मेरी मौजूदगी ने, न मेरे उनके नज़दीक आने की कोशिशों ने और न ही खाने ने ही कोई फायदा पहुंचाया। उन्होंने फिल्म के बारे में बहुत बेरहमी से लिखा।

हालांकि प्रेस प्रिव्यू के समय थिएटर में निश्चय ही माहौल दोस्ताना नहीं था, लेकिन बाद में मुझे ये देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि कुछ बड़े अखबारों ने अच्छी समीक्षाएं दी थीं।

मेरी आत्मकथा : अध्याय 27

मैं सुबह पांच बजे के रोमांटिक वक्त पर क्वीन एलिजाबेथ जहाज पर चढ़ा। मैं सम्मन देने वालों से बचने के लिए ही ऐसे वक्त पर अपनी यात्रा शुरू कर रहा था। मेरे वकील ने हिदायत दी थी कि मैं चुपके से जहाज पर चढ़ूं, अपने आपको सुइट में बन्द कर लूं और तब तक डेक पर न आऊं जब तक पालयट न उतर जाये। मुझे पिछले दस बरस से हर तरह की खराब बातों की आदत पड़ चुकी थी, इसलिए मैंने उसकी बात मान ली।

मैं अपने परिवार के साथ जहाज के विशाल आकार को उस वक्त चलते देखने का आनंद लेना चाहता था जब वह वहां से छूटता और एक दूसरी दुनिया में प्रवेश करता। इसके बजाये, मैं डर के मारे अपने केबिन में छुपा हुआ था और पोर्टहोल में से झांक रहा था।

दरवाजा खटखटाते हुए ऊना ने कहा, 'मैं हूं।'

मैंने दरवाजा खोला।

'जिम एगी अभी-अभी हमें विदाई देने के लिए आए हैं। वे डैक पर खड़े हैं। मैंने चिल्ला कर उन्हें बताया कि आप सम्मन देने वालों से छुपे हुए हैं और पोर्टहोल में से आपकी तरफ देख कर हाथ हिलाएंगे। वे तटबंध के आखिर में खड़े हुए हैं।' ऊना ने बताया।

मैंने जिम को लोगों की भीड़ से थोड़ा अलग हटकर खड़े हुए देखा। वे तेज़ धूप में जहाज का मुआयना कर रहे थे। मैंने जल्दी से अपना फेडोरा हैट लिया और पोर्टहोल में से अपनी बांह निकाल कर हाथ हिलाया। ऊना दूसरे पोर्टहोल में से देख रही थी। 'नहीं, उन्होंने आपको अभी भी नहीं देखा है।' ऊना ने बताया।

और जिम मुझे कभी नहीं देख पाये। ये आखिरी बार था कि मैं जिम को देख रहा था। दुनिया से अलग अकेले खड़े हुए। ताकते हुए और खोजते हुए। दो बरस बाद दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गयी थी।

और आखिर हमने अपनी यात्रा शुरू की। पायलट के जाने से पहले ही मैंने दरवाजा खोला और डेक पर एक आज़ाद आदमी की तरह आ गया। सामने थीं आकाश छूती न्यू यार्क की इमारतें। अकेली और विशाल, धूप में मुझसे दूर जाती हुईं और हर पल और अधिक खूबसूरत होती हुईं। विशाल महाद्वीप धुंध में गायब हो रहा था और मुझे एक अजीब एहसास से भर रहा था।

हालांकि मैं अपने परिवार के साथ इंगलैंड जाने की उम्मीद से ही उत्साहित था, मैं सुखद रूप से राहत भी महसूस कर रहा था। अटलांटिक का विस्तार मन को राहत दे रहा था। मुझे लगा, मानो मैं कोई दूसरा ही व्यक्ति हूं। मैं अब फिल्मी दुनिया का मिथक नहीं रहा था न ही बदनामी का निशाना, बल्कि मैं एक शादीशुदा आदमी था जो अपने बीवी-बच्चों के साथ छुट्टी मनाने निकला है। बच्चे ऊपरी डेक पर खेलने में व्यस्त थे जबकि मैं और ऊना डेक की कुर्सियों पर बैठे हुए थे और इसी मूड में मुझे परम प्रसन्नता का अनुभव हुआ - ये एहसास उदासी के बहुत निकट था।

हम उन दोस्तों के बारे में बहुत स्नेह से बातें करते रहे जिन्हें हम पीछे छोड़ आये थे। यहां तक कि हमने आप्रवास विभाग में मिले मित्रवत व्यवहार की भी बात की। आदमी छोटे-छोटे सौजन्य के आगे कितनी आसानी से झुक जाता है। दुश्मनी पालना कितना मुश्किल होता है।

ऊना और मैंने यह सोचा था कि हम लम्बी छुट्टी लेंगे और अपने आप को प्रसन्नता के हवाले कर देंगे। लाइमलाइट को लांच करने के कार्यक्रम के साथ हमारी छुट्टियां बेमतलब नहीं होने वाली थी। जब आपको पता हो कि आप आनंद को कारोबार के साथ मिला रहे हैं तो बेहद खुशी होती है।

अगले दिन इससे बेहतर लंच नहीं हो सकता था। हमारे मेहमान थे आर्थर रुबिनस्टेन दम्पत्ति और एडोल्फ ग्रीन लेकिन अभी खाना चल ही रहा था कि हेरी क्रोकर को एक तार थमाया गया। क्रोकर तार को अपनी जेब के हवाले करने ही वाला थे कि संदेशवाहक ने कहा: वे वायरलेस पर इसके उत्तर का इंतजार कर रहे हैं। तार पढ़ते समय क्रोकर के चेहरे पर बादल घिर आये, उसने माफी मांगी और मेज से उठ कर चला गया। बाद में क्रोकर ने मुझे अपने केबिन में बुलाया और तार पढ़ा। तार में लिखा था कि मुझे युनाइटेड स्टेट्स में प्रवेश करने की मनाही की जा रही है और देश में फिर से प्रवेश करने से पहले मुझे राजनैतिक प्रकृति और नैतिक मूल्यों के आरोपों के उत्तर देने के लिए आप्रवास विभाग के जांच बोर्ड के सामने जाना होगा। युनाइटेड प्रेस जानना चाहती थी कि मुझे क्या इस बारे में कुछ कहना है।

मेरी शिराएं तन गयीं। अब मेरे लिए ये बात कोई मायने नहीं रखती थी कि मैं नाखुशी देने वाले उस देश में फिर से जाता हूं या नहीं। मैंने उन्हें बताया होता कि मैं उनके दमघोंटू माहौल से जितनी जल्दी बाहर आता, उतना ही बेहतर होता और मैं अमेरिका से मिले अपमान और नैतिक आडम्बर से थक चुका था और कि पूरा का पूरा मामला ही बोर करने वाला था। लेकिन मुसीबत यह थी कि मेरा जो कुछ भी था, वह सब कुछ स्टेट्स में ही था और मुझे डर था कि वे उसे जब्त करने का कोई तरीका न निकाल लें। अब मैं किसी भी शरारतपूर्ण कार्रवाई की उम्मीद कर सकता था। इसलिए मैंने आत्म प्रदर्शन से भरा एक बयान जारी किया कि मैं वापिस आऊंगा और उनके आरोपों का जवाब दूंगा और कि मेरा री-एंट्री परमिट कागज़ का कोई ऐसा वैसा टुकड़ा नहीं बल्कि युनाइटेड स्टेट्स सरकार द्वारा सदाशयता में मुझे दिया गया एक दस्तावेज है, वगैरह वगैरह।

अब जहाज पर आराम मिलने का सवाल ही नहीं था। दुनिया के सभी हिस्सों से प्रेस रेडिओग्राम बयान मांग रहे थे। साउथम्पटन से एक स्टॉप पहले चेरबर्ग में सौ या उससे भी अधिक यूरोपियन पत्रकार साक्षात्कार लेने के लिए जहाज पर चढ़ आये। हमने लंच के बाद बुफे रूम में उन्हें एक घंटा दिये जाने की व्यवस्था की। हालांकि उनका व्यवहार सहानुभूतिपूर्ण था, पूरी कार्रवाई शुष्क और थका देने वाली थी।

साउथम्पटन से लंदन की यात्रा बेचैन रहस्य से भरी हुई थी। युनाइटेड स्टेट्स से बाहर कर दिये जाने से महत्त्वपूर्ण मेरी चिंता यह थी कि अंग्रेजी देश को पहली बार देखना ऊना और बच्चों को कैसा लगेगा। कई बरसों तक मैं इंगलैंड के दक्षिण पश्चिमी हिस्से, डेवनशायर तथा कॉर्नवेल की असीम खूबसूरती के गुणगान करता आया था और अब हम लाल ईंटों वाली इमारतों और पहाड़ी पर बने एक जैसे घरों की कतारों के पास से गुज़र रहे थे। कहा ऊना ने, 'ये सब एक जैसी दिखती हैं!'

'हमें एक मौका दो,' कहा मैंने, 'हम तो अभी साउथम्पटन के बाहर ही हैं।' और जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते गये, इलाके और अधिक खूबसूरत होते चले गये।

जब हम लंदन में वॉटरलू स्टेशन पर पहुंचे, हमें प्यार करने वाली भीड़ अभी भी वहां जुटी हुई थी और वे पहले की ही तरह प्रेम भाव से भरे और उत्साह से खड़े थे। जब हम स्टेशन से बाहर निकले तो वे हाथ हिला रहे थे और खुशी से चिल्ला रहे थे। किसी एक ने कहा, 'चार्ली वे तुम्हारा प्यार चाहते हैं, उन्हें दो।' सचमुच ये दिल को छू लेने वाला मामला था।

आखिर जब ऊना और मैं एक अकेले हुए, तो हम सेवाय होटल की पांचवीं मंज़िल पर अपने सुइट की खिड़की पर आ खड़े हुए। मैंने नये वाटरलू ब्रिज की तरफ इशारा किया। हालांकि ये सुंदर था फिर भी अब मेरे लिए बहुत मायने नहीं रखता था, बस एक ही बात थी कि इसकी सड़क मेरे बचपन की ओर जाती थी। हम चुपचाप खड़े रहे और इस पूरी दुनिया में शहर के सबसे अधिक छू लेने वाले दृश्य को देखते हुए पीते रहे। मैंने पेरिस में प्लेस दे ला कोन्कोर्ड की रुमानी उत्कृष्टता की तारीफ की है, न्यू यार्क में सूर्यास्त में हज़ारों चमकती खिड़कियों से रहस्यपूर्ण संदेश महसूस किये हैं लेकिन हमारे होटल की खिड़की से लंदन टेम्स का नज़ारा मेरे लिए इन सब दृश्यों से कहीं अधिक रोमानी था - कुछ ऐसा, जो बेहद मानवीय था।

ऊना जब इस दृश्य को निहार रही थी तो मैंने उसकी तरफ देखा। उसका चेहरा उत्साह से तन गया था और वह अपनी सत्ताइस बरस की उम्र से छोटी लग रही थी। हमारी शादी के बाद से वह मेरे साथ कई मुसीबतों से गुज़र कर आयी थी और इस वक्त वह लंदन को निहार रही थी,धूप उसके काले बालों से खेल रही थी। मैंने पहली बार उसके एक-दो सफेद बाल देखे। मैंने कुछ नहीं कहा, लेकिन उस वक्त मैंने अपने आप को उसके प्रति पूरी तरह से समर्पित पाया जब उसने कहा, 'मुझे लंदन अच्छा लगा है।'

पिछली बार जब मैं यहां आया था तब से बीस बरस का अरसा गुज़र चुका था। मेरी निगाह में नदी के मोड़ और तटों की रेखाएं भद्दी आधुनिक इमारतों से घिर गयी थीं और इससे आकाश को छूती दृश्यावली खराब लगने लगी थी। मेरे बचपन का आधा हिस्सा इसके विशाल खाली हिस्सों की झुलसती शामों में गुज़रा था।

जिस वक्त ऊना और मैं लीस्टर स्क्वायर और पिकैडिली में घूम रहे थे ये जगह भड़कीली अमेरिकी चीज़ों, लंच काउंटरों, हॉटडॉग स्टैंडों और मिल्क बारों से अटी पड़ी थी। हमने पाया कि बिना हैट पहने युवा लड़के और जीन्स पहने लड़कियां वहां तफरीह कर रहे थे। मुझे याद आया, जब वेस्ट एण्ड के लिए मैं तैयार हुआ करता था और पीले दस्ताने और छड़ी लेकर वहां चहल कदमी करता था। वे दिन अब हवा हो गए थे और उसकी जगह पर आंखें कुछ और ही देख रही थीं। हमारी भावनाएं दूसरी थीमों पर प्रतिक्रिया देती हैं। आदमी जॉज सुनकर रोते हैं और हिंसा कामुक हो गयी है। समय बीतता रहता है।

हम टैक्सी लेकर तीन पाउनॉल टैरेस देखने के लिए केनिंगटन गये लेकिन घर खाली पड़ा था और इसे गिराया जाने वाला था। हम 287केनिंगटन रोड के आगे रुके। यहां पर सिडनी और मैं अपने पिता के साथ रहा करते थे। हम बेलग्राविया के आगे से गुज़रे और जहां कभी पुराने शानदार प्रायवेट घर हुआ करते थे, उनके कमरों में अब निओन बत्तियां जल रही थीं और क्लर्क डेस्कों पर काम कर रहे थे: बाकी घर गिरा दिये गये थे और उनके जगह पर ग्लास टैंक जैसी लम्बोतरी इमारतें और ऊपर की ओर उठती माचिस की तरह की सीमेंट की इमारतें नज़र आ रही थीं। ये सब प्रगति के नाम पर हो रहा था।

हमारे सामने कई समस्याएं थीं: पहली थी: स्टेट्स से धन बाहर कैसे निकाला जाये। इसका मतलब, ऊना को विमान से वापिस कैलिफोर्निया जाना होगा और हमारे सेफ डिपाज़िट बॉक्स से सब कुछ निकालना होगा।

उसे गये हुए दस दिन हो गये थे। जब वह वापिस आयी तो उसने मुझे विस्तार से बताया कि क्या हुआ था। बैंक में क्लर्क ने उसके हस्ताक्षरों का अध्ययन किया, उसकी तरफ देखा, वहां से गया और बैंक मैनेजर के साथ गुपचुप बात करता रहा। ऊना तब तक बेचैनी महसूस करती रही जब तक उन्होंने हमारा डिपाज़िट बॉक्स खोल नहीं दिया।

उसने बताया कि बैंक में अपना काम पूरा कर लेने के बाद वह बेवरली हिल्स पर अपने घर गयी। सब कुछ वैसा ही था जैसा हम छोड़ कर आये थे और फूल और मैदान प्यारे लग रहे थे। वह बैठक में एक पल के लिए अकेली खड़ी रही और बहुत भावुक हो गयी। इसके बाद वह स्विस बटलर हैनरी से मिली। हैनरी ने उसे बताया कि हमारे जाने के बाद एफबीआइ के आदमी दो बार आये थे और उससे पूछताछ करते रहे। वे जानना चाहते थे कि मैं किस किस्म का आदमी हूं और कि क्या उसे पता है कि घर पर नंगी लड़कियों की पार्टियां हुआ करती थीं। जब बटलर ने उन्हें बताया कि मैं अपनी पत्नी और परिवार के साथ शांत जीवन बिताया करता था तो वे उसकी खिंचाई करने लगे और उससे उसकी राष्ट्रीयता पूछने लगे और जानना चाहा कि वह कब से इस देश में था। उन्होंने उससे उसका पासपोर्ट भी देखने के लिए मांगा।

ऊना ने बताया कि जब उसने ये सब कुछ सुना तो घर के प्रति उसका जो भी मोह था, वहीं और उसी वक्त चूर-चूर हो गया। यहां तक कि हमारी नौकरानी हैलन ऊना के बाहर निकलते समय रो रही थी, उसके आंसू भी ऊना को वहां से तुरंत निकलने से रोक नहीं पाये।

मित्र मुझसे पूछते हैं कि मैं इस अमेरिकी विरोध का शिकार कैसे बना। मेरा मासूम पाप यही था और है भी कि मैं समझौतापरस्त नहीं हूं। हालांकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं हूं फिर भी मैं उनके विरोध में खड़ा होने से इन्कार करता रहा। इससे कई लोगों को वाकई तकलीफ हुई और तकलीफ पाने वालों में अमेरिकी लीज़न के लोग भी थे। मैं उस संगठन के वास्तविक सकारात्मक कामों में उसके खिलाफ़ नहीं हूं। उन्होंने अच्छे काम भी किये हैं। भूतपूर्वक सैनिकों और वरिष्ठ नागरिकों के ज़रूरतमंद बच्चों के लाभ के लिए अधिकार का विधेयक लाना और जो उपाय किये गये हैं, वे बहुत शानदार और मानवीय हैं। लेकिन लीज़न के लोग जब अपने वैध अधिकारों से परे चले जाते हैं और देशभक्ति के नाम पर अपनी शक्ति को दूसरों पर लादते हैं तो वे अमेरिकी सरकार के मूलभूत ढांचे के खिलाफ अपराध करते हैं। इस तरह के महादेशभक्त अमेरिका को फासीवादी देश में बदल सकते हैं।

दूसरी बात, मैं गैर-अमेरिकी गतिविधियों की समिति के खिलाफ़ था। अगर मैं बेईमानी भरे जुमले का इस्तेमाल करूं तो यह किसी भी ऐसे अकेले अमेरिकी की आवाज़ को दबाने के लिए काफी लचीला है जो अपनी ईमानदार राय में अकेला पड़ जाता है।

तीसरी बात, मैंने कभी भी अमेरिकी नागरिक बनने का प्रयास नहीं किया। हालांकि सैकड़ों अमेरिकी बाशिंदे इंगलैंड में अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। वे कभी भी ब्रिटिश नागरिक बनने का प्रयास नहीं करते; उदाहरण के लिए, एमजीएम स्टूडियो का एक अमेरिकी अधिकारी इंगलैंड में पिछले पैंतीस बरस से रह रहा है और हर हफ्ते चार अंकों में वेतन लेता है। वह कभी ब्रिटिश नागरिक नहीं बना और अंग्रेज़ों ने कभी इस बात की परवाह ही नहीं की।

ये स्पष्टीकरण क्षमायाचना नहीं है। जब मैंने यह किताब शुरू की तो मैंने अपने आपसे इसे लिखने का कारण पूछा। किताब लिखने के कई कारण हैं लेकिन उनमें से क्षमायाचना नहीं है। अपनी स्थिति को संक्षेप में सामने रखते हुए मैं कहूंगा कि शक्तिशाली समूहों तथा अदृश्य सरकारों के परिवेश में मैं राष्ट्र के विरोध का शिकार हुआ और दुर्भाग्य से, अमेरिकी जनता का प्यार खो बैठा।

लाइमलाइट लीस्टर स्क्वेअर में ओडियन थिएटर में सबसे पहले दिखाई जानी थी। मैं इस बात को लेकर बेचैन था कि उसका स्वागत कैसा होगा। कारण ये था कि ये सामान्य चैप्लिन कॉमेडी नहीं थी। प्रीमियर से पहले हमने एक प्रीमियर प्रेस के लिए रखा। समय इतना बीत चुका था कि मैं इसे वस्तुपरक तरीके से नहीं देख पाया था और मैं ये ज़रूर कहूंगा कि मैं फिल्म देख कर विचलित हुआ। ये आत्म प्रशंसा नहीं है क्योंकि मैं अपनी फिल्मों के कई दृश्यों का मज़ा ले सकता हूं और दूसरे दृश्यों को नापसंद कर सकता हूं। अलबत्ता, मैं कभी भी नहीं रोया जैसा कि किसी शरारती पत्रकार ने बताया कि मैं रोया था। और अगर मैं रोया भी होऊं तो क्या हुआ! अगर लेखक अपने सृजन के बारे में संवेदना महसूस नहीं करता तो वह जनता से ऐसा करने की उम्मीद ही कैसे कर सकता है। ईमानदारी से कहूं तो मुझे अपनी फिल्मों में जनता से भी ज्यादा मज़ा आता है।

लाइमलाइट के लिये प्रीमियर सहायतार्थ था और उसमें राजकुमारी मार्गरेट पधारी थीं। अगले दिन जनता के लिए फिल्म प्रदर्शित की गयी। हालांकि समीक्षाएं यूं ही सी थीं, इसने विश्व कीर्तिमान भंग कर दिये और इसे अमेरिका में प्रतिबंधित किये जाने के बावजूद इसने मेरी अब तक की फिल्मों की तुलना में सबसे अधिक कमाई करके दी।

लंदन से पेरिस के लिए चलने से पहले ऊना और मैं हाउस ऑफ लॉर्ड्स में एक डिनर पर लॉर्ड स्ट्राबोल्गी के मेहमान थे। मैं हरबर्ट मौरिसन के पास बैठा था और यह सुन कर मैं हैरान हुआ कि वे समाजवादी के रूप में परमाणु प्रतिरक्षा की नीति का समर्थन करते थे। मैंने उन्हें बताया कि हम भले ही परमाणु बमों के अम्बार लगा दें, इंगलैंड हमेशा सबके निशाने पर बना रहेगा क्योंकि ये एक छोटा सा द्वीप है और इसे राख के ढेर में बदल दिये जाने के बाद किसी भी किस्म का बदला कोई राहत नहीं दिला पायेगा। मैं इस बात को मानता हूं कि इंगलैंड की रक्षा के लिए सबसे मजबूत रणनीति निष्पक्ष रहने की है क्योंकि परमाणु युग में मुझे इस बात का शक है कि निष्पक्ष रहने का उल्लंघन किया जायेगा। लेकिन मेरे विचार मौरिसन के विचारों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाते थे।

मैं इस बात को सोच कर हैरान हूं कि किस तरह से कई बौद्धिक लोग परमाणु हथियारों के पक्ष में बात करते हैं। एक और घर में मैं लॉर्ड सेलिसबरी से मिला और उनकी भी वही राय थी जो मौरिसन की थी और परमाणु प्रतिरक्षा के प्रति अपनी नफ़रत को व्यक्त करते समय मैंने महसूस किया कि मैं उनकी लॉर्डशिप के साथ मेल नहीं बिठा पा रहा हूं।

इस मौके पर मुझे ये उचित जान पड़ता है कि मैं दुनिया के उन हालात को संक्षेप में सामने रखूं जिस तरह से मैं आज इसे देखता हूं। आधुनिक जीवन की जुड़ती जटिलताओं और बीसवीं सदी के गतिशील हमले से मैं पाता हूं कि व्यक्ति पर चारों तरफ से बड़ी-बड़ी संस्थाओं के हमले हो रहे हैं। ये हमले राजनैतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक रूप से हो रहे हैं। हम आत्म अनुकूलन के और बंदिशों और परमिटों के शिकार हो रहे हैं।

यह तंत्र, जिसमें हमने अपने आपको ढल जाने दिया है, इसलिए हो रहा है कि हममें सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि की कमी है। हम भद्देपन और भीड़ की तरफ अंधाधुंध चले जा रहे हैं और हम अब इस लायक नहीं रहे कि सौंदर्य की सराहना ही कर सकें। हमारे जीवन की संवेदनाओं को लाभ, शक्ति और एकाधिकार ने भोंथरा बना दिया है। हमने इन शक्तियों को अपने चारों तरफ लिपट जाने दिया है और इस बात की रत्ती भर परवाह नहीं की है कि इन सबका अंजाम क्या होगा।

सुविचारित दिशा के बिना अथवा उत्तरदायित्व के बोध के बिना विज्ञान ने राजनीतिज्ञों को अपार शक्ति दे दी है और इतने खतरनाक सैन्य हथियार उन्हें थमा दिये हैं कि इस धरती पर जो कुछ भी जीवंत है उसके भाग्य का निर्धारण ये ही लोग करेंगे। ऐसे व्यक्तियों के हाथों में सारी शक्तियां दे देना जिनके नैतिक उत्तरदायित्व और बौद्धिक क्षमता संदेह से परे नहीं हैं, और इसके बारे में जितना कहा जाये, कम हैं और कई मामलों में उनके ऊपर उंगली उठायी जा सकती है कि वे धरती पर सारे जीवन को नष्ट करने वाला युद्ध छेड़ सकते हैं। फिर भी हम आंखें मूंदे चले जा रहे हैं।

जैसा कि डॉक्टर जे रॉबर्ट ओपेनहैमर ने मुझे एक बार बताया था, 'आदमी जानने की इच्छा से संचालित होता है।' बहुत अच्छी बात है। लेकिन कई मामलों में हम परिणामों की परवाह ही नहीं करते। इससे डॉक्टर ओपेनहैमर सहमत थे। कई वैज्ञानिक धार्मिक रूप से हठधर्मी होते हैं। वे इस विश्वास के साथ आगे बढ़ते जाते हैं कि वे जो कुछ भी खोजेंगे, अच्छा ही होगा और जानने की उनकी आकांक्षा हमेशा नैतिक होती है।

मनुष्य जीवित रहने की मूल भावनाओं वाला पशु है। परिणाम यह हुआ है कि उसकी सृजनात्मकता पहले विकसित हुई है और आत्मा का विकास बाद में हुआ है। इस तरह से विज्ञान की प्रगति मनुष्य के तार्किक व्यवहार से बहुत आगे है।

हितवाद मानव प्रगति के पथ पर धीमी गति से चला है। यह विज्ञान के साथ-साथ आगे बढ़ता है और ठोकरें खाता है और केवल परिस्थितियों की ताकत से ही इसे चलने की अनुमति है। गरीबी को हितवाद द्वारा या सरकारों के मानवतावाद की वजह से नहीं घटाया गया था बल्कि इसे कम करने के पीछे द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की ताकतें काम कर रहीं थी।

कार्लाइल ने कहा था कि विश्व की मुक्ति लोगों की सोच की वजह से आयेगी। लेकिन इस परिर्वतन को लाने के लिए मनुष्य को गंभीर परिस्थितियों में धकेला जाना चाहिए। इस तरह से, अणु का विखंडन करके मनुष्य को कोने में धकेल कर सोचने पर विवश कर दिया गया है। उसके सामने दो ही विकल्प हैं: अपने आपको नष्ट कर डाले या अपना व्यवहार सुधारे: विज्ञान की गति उसे यह निर्णय लेने के लिए विवश कर रही है। और इन परिस्थितियों में मेरा मानना है कि अंतत: हितवाद ही बचेगा और मनुष्य की सदाशयता मानवता के लिए विजय पायेगी।


अमेरिका छोड़ने के बाद जीवन एक और ही स्तर पर चल रहा था। पेरिस और रोम में हमारा स्वागत विजेता नायकों की तरह हो रहा था:राष्ट्रपति विन्सेंट ऑरिओल ने हमें एलिसी महल में लंच के लिए बुलाया और हमें ब्रिटिश दूतावास में खाने पर बुलाया गया। इसके बाद फ्रांसीसी सरकार ने मुझे लीज़न ऑफ ऑनर की पदवी देकर मेरा कद ऊंचा किया और उसी दिन सोसायटीदेसऑतर्सएतकंपोजिटर्सड्रमेटिक्स ने मुझे मानद सदस्यता प्रदान की। इस अवसर पर अध्यक्ष मिस्टर रोजर फर्डिनांड से मुझे जो पत्र मिला, वह बेहद प्यार भरा था। मैं यहां उसका अनुवाद दे रहा हूं।

प्रिय मिस्टर चैप्लिन

हो सकता है कि कुछ लोग यहां पर आपकी उपस्थिति को दिये गये प्रचार से हैरान हो रहे हों, वे उन कारणों को नहीं जानते होंगे जिनकी वज़ह से हम आपको प्यार करते हैं और आपके प्रशंसक हैं; वे मानवीय मूल्यों के भी बहुत खराब निर्णायक होंगे और उन्होंने उन आशीर्वादों को गिनने का कष्ट नहीं उठाया होगा जो आपने पिछले चालीस बरस के दौरान हम पर बरसाये हैं और न ही उन्होंने आपकी सीख की सराहना की होगी या उन खुशियों तथा भावनाओं की गुणवत्ता को ही देखा होगा जो आपने उनके सच्चे मूल्यों के साथ हम पर न्यौछावर की हैं; थोड़े में कहें तो वे हमेशा कृतघ्न बने रहे हैं।

आप विश्व के महानतम व्यक्तित्वों में से एक हैं और प्रसिद्धि के लिए आपका स्थान उनके बराबर ही है जिन्हें सर्वाधिक उल्लेखनीय विभूतियों में गिना जा सकता है।

अपनी बात शुरू करें तो इसके पीछे आपकी मेधा है, जीनियस है। इस शब्द का बहुत गलत अर्थ लिया जाता रहा है। जीनियस शब्द को तभी उसका सही अर्थ मिलता है जब इसे किसी ऐसे व्यक्ति के साथ जोड़ा जाता है जो न केवल उत्कृष्ट कॉमेडियन है बल्कि एक लेखक, संगीतकार,निर्माता है और सबसे बड़ी बात, उस व्यक्ति में ऊष्‍मा, उदारता और महानता है। आप में ये सारे गुण वास करते हैं और इससे बड़ी बात, कि आप में वह सादगी है जिससे आपका कद और ऊंचा होता है और एक गरमाहट भरी सहज अपील के दर्शन होते हैं जिसमें न तो कोई हिसाबी गणना होती है और न ही कोई प्रयास ही आप इसके लिए करते हैं और इनसे आप सीधे इन्सान के दिल में प्रवेश करते हैं। इन्सान, जो आप ही की तरह मुसीबतों का मारा है। लेकिन सराहना के गुण गिनाने के लिए जीनियस ही काफी नहीं होती; न ही यह प्यार का प्रतिदान करने के लिए ही काफी होती है। और इसके बावजूद, प्यार ही उस संवेदना के लिए अकेला शब्द है जिसकी प्रेरणा आप देते हैं।

जब हमने लाइमलाइट देखी तो हम हँसे, कई बार दिल खोल कर और हम रोये, असली आँसुओं के साथ - आपके आँसुओं के साथ, क्योंकि आप ही ने हमें आँसुओं का कीमती उपहार दिया है।

सच कहें तो जो सही प्रसिद्धि होती है, कभी सिर पर चढ़ कर नहीं बोलती; जब इसे किसी अच्छे कारण की ओर मोड़ दिया जाता है तो इसमें एक भावना, एक मूल्य, एक अवधि आ जाती है। और आपकी विजय इस तथ्य में है कि आपमें मानवीय उदारता और सहजता है कि आप नियमों से या चालाकी से बंधे हुए नहीं है, बल्कि आप अपनी ऊर्जा, अपनी तकलीफों से, अपनी खुशियों से आशाओं से और हताशाओं से ग्रहण करते हैं; वह सब कुछ, जिसे वे ही समझ सकते हैं जो अपनी शक्ति से परे तकलीफ उठाते हैं और दया की भीख मांगते हैं और जो लगातार इस बात की आशा करते हैं कि उन्हें सांत्वना मिले, कि उन्हें एक पल के लिए उस हँसी से सब कुछ भूलने का मौका मिले जो इलाज करने का दिखावा नहीं करती लेकिन सिर्फ सांत्वना देने के लिए होती है।

हम इस बात की कल्पना ही कर सकते हैं, भले ही हम इसे न जानते हों कि हमें हँसाने और अचानक रुलाने लायक होने के इस शानदार उपहार के लिए आपने खुद कौन सी कीमत चुकाई हैं। हम अनुमान लगा सकते हैं और बहुत हुआ तो सोच सकते हैं कि आपने स्वयं कौन कौन सी तकलीफें झेली होंगी ताकि आप बारीकी से उन सारी छोटी छोटी च़ीजों को बयान कर सकें जो हमें इतनी गहराई से छूती हैं और जिन्हें आपने अपनी स्वयं की ज़िंदगी के पलों से लिया है।

इसका कारण यह है कि आपकी स्मृति बहुत अच्छी है। आप अपने बचपन की स्मृतियों के लिए शुक्रगुज़ार हैं। आपने उसकी उदासी, उसकी वेदना में से कुछ भी नहीं भुलाया है; आपने चाहा है कि आपने जो तकलीफें भोगी हैं, दूसरों को न भोगनी पड़ें और कम से कम आपने इतना ही तो चाहा ही है कि आप सबको आशावान बने रहने का कारण दे सकें। आपने अपनी उदास युवावस्था को कभी धोखा नहीं दिया है और प्रसिद्धि में कभी भी यह ताकत नहीं थी कि वह आपको आपके अतीत से अलग कर सके - क्योंकि, अफसोस, इस तरह की बातें संभव हुआ करती हैं।

आपकी सबसे पुरानी स्मृतियों के प्रति आपकी यह वफादारी ही शायद आपका सबसे बड़ा गुण है और आपकी आस्तियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भी है। और यही असली कारण भी है कि लोग आपको क्यों प्यार करते हैं। वे आपके अभिनय की बारीकियों पर प्रतिक्रिया देते हैं। ऐसा लगता है कि मानो आप हमेश दूसरों के दिलों से सीधे संपर्क में रहते हैं और बेशक लेखक, अभिनेता और निर्देशक, तीनों रूपों में आपके सांझे अवदान से ज्यादा मनभावन कुछ नहीं हो सकता। आपके रूप में ये तीनों कलाकार, उनकी सेवा में अपनी सांझी मेधा लगा देते हैं जोकि मानवीय है और बेहतर है।

यही कारण है कि काम हमेशा उदार होता है। इसे सिद्धांतों से जकड़ा नहीं जा सकता - तकनीकों से तो बिल्कुल ही नहीं। ये हमेशा के लिए एक स्वीकारोक्ति है एक विश्वास है, एक प्रार्थना है और हर व्यक्ति आपका संगी साथी है क्योंकि वह वैसा ही सोचता और महसूस करता है, जैसा कि आप करते हैं।

आपने अपनी मेधा के बलबूते पर समालोचकों का मुंह बंद किया है क्योंकि आप उन्हें अपने नियंत्रण में करने में सफल हुए हैं। यह एक बहुत ही मुश्किल काम है। वे कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेंगे कि आपने पुराने फैशन के मेलोड्रामा के आकर्षण और फेदेयू के पाश्विक उत्साह के प्रति एक जैसी प्रतिक्रिया दी है। और इसके बावजूद, आपने ऐसा किया और एक खास गरिमा बनाये रखी जो हमें मुसेट· के बारे में सोचने पर मजबूर करती है हालांकि आप न तो किसी की नकल करते हैं और न ही किसी और जैसे लगते हैं। यह भी आपकी गरिमा का रहस्य है।

आज लेखकों और नाटककारों की हमारी सोसायटी को यह सौभाग्य और खुशी मिल रहे हैं कि हम आपका स्वागत कर रहे हैं। हम इस तरह से कुछ ही पल के लिये ही सही, आपके उन कामों को बोझ बढ़ा रहे हैं जो आप इतनी सदाशयता से पूरे करते हैं। हम आपको अपने बीच पाकर बहुत आतुर हैं और आपको बताना चाहते हैं कि हम आपकी कितनी सराहना करते हैं और आपको कितना प्यार करते हैं। और यह भी कहना चाहते हैं कि आप सचमुच हममें से ही एक हैं, क्योंकि आपकी फिल्मों में कहानी मिस्टर चैप्लिन द्वारा लिखी होती है। और इस तरह से संगीत भी उन्हीं का बनाया होता है और निर्देशन भी वे ही करते हैं और कॉमेडियन जो है इनके अतिरिक्त होता है और उसका योगदान उच्च श्रेणी का होता है।

यहां पर आपके सामने फ्रांस के लेखक, नाटकों और फिल्म के लेखक, संगीतकार, निर्माता सब उपस्थित हैं। वे सब के सब आपको पसंद करते हैं। अपने अपने तरीके से वे उस कड़ी मेहनत के सम्मान और आत्म त्याग से अच्छी तरह से परिचित हैं जो आप अच्छी तरह से जानते हैं क्योंकि आपकी यही महत्त्वाकांक्षा रही है कि आप जनता को आंदोलित करें और उन्हें खुश करें कि आप खोये हुए प्यार के डर को चित्रित करें, जो इस लायक नहीं हैं उन तकलीफों के लिए दया दिखाएं और आपकी एक इच्छा है कि जो शांति, उम्मीद और भाईचारे की भावना के रास्ते में आता है, उसे ठीक करें।

धन्यवाद, मिस्टर चैप्लिन

रोजर फर्डिनांड

लाइमलाइट के प्रीमियर में अधिकांश गणमान्य विभूतियां पधारीं। इनमें फ्रांसीसी केंद्रीय मंत्री और विदेशी राजदूत शामिल थे। अलबत्ता,अमेरिकी राजदूत नहीं आये।

कॉमेडीफ्रान्चाइज में हम मोलियर के नाटक डॉनजुआन के विशेष प्रदर्शन पर खास मेहमान थे। इसमें फ्रांस के महानतम चुनिंदा कलाकारों ने अभिनय किया था। उस रात राजसी महल के फव्वारों में रोशनी की गयी और हमें कॉमेडीफ्रान्चाइज के विद्यार्थी अट्ठारहवीं शताब्दी की पोशाकों में मिले। उन्होंने हाथों में जलती हुई मोमबत्तियां थामी हुई थीं और वे हमारी अगवानी करके हमें समस्त यूरोप की सर्वाधिक सुंदर महिलाओं से भरे ग्रैंड सर्किल में लेकर गये।

रोम में भी हमारा स्वागत इसी तरह से हुआ। राष्ट्रपति और मंत्रियों ने मेरा सम्मान किया, मुझे अलंकृत किया और मेरी अगवानी की। उस मौके पर लाइमलाइट के प्रीमियर में एक मज़ेदार घटना घटी। फाइन आर्ट्स के मंत्री ने मुझे सुझाव दिया मैं भीड़ से बचने के लिए मंच द्वार से आऊं। मुझे मंत्री महोदय का सुझाव थोड़ा अजीब-सा लगा और मैंने उन्हें बताया कि अगर लोगों में मुझसे मिलने के लिए थिएटर के बाहर खड़े होने का धैर्य है तो मुझमें कम से कम इतनी विनम्रता तो होनी ही चाहिए कि मैं सामने के द्वार से आऊं और अपना चेहरा दिखाऊं। मुझे लगा कि उनके चेहरे पर उस वक्त अजीब से भाव आये जब उन्होंने हौले से अपनी बात को दोहराया कि इससे मुझे पीछे वाले रास्ते में जाने में कम तकलीफ होगी। मैंने ज़िद की तो उन्होंने और ज़ोर नहीं डाला।

उस रात वैसा ही चमक-दमक वाला प्रिव्यू था। जब हम लिमोजिन में बैठ कर आये तो भीड़ को रस्सियों से काफी दूर रोका गया था, ऐसा मुझे लगा। अपनी पूरी विनम्रता और आकर्षण के साथ मैं गाड़ी से बाहर निकला, लिमोज़िन का चक्कर काटा और सड़क के बीचों बीच आ गया और चौंधियाती रोशनी के नीचे खड़ा हो गया। मैंने अपनी दोनों बांहें द' गॉल की तरह फैलाते हुए चेहरे पर मुस्कान बिखेरी। तभी अचानक बंद गोभी और टमाटर मेरी तरफ उछाले जाने लगे। मैं तय नहीं कर पाया कि वे क्या थे और क्या हुआ था। तभी मैंने अपने इतालवी मित्र, दुभाषिये को अपने पीछे मिमियाते सुना, 'ज़रा सोचिये, ये सब मेरे देश में हो रहा है।' अलबत्ता, मुझे कुछ भी नहीं लगा और हम फटाफट थियेटर के अंदर ले जाये गये। तभी मुझे परिस्थिति का मज़ाक समझ में आया और मैं अपनी हँसी नहीं रोक पाया। यहां तक कि मेरे इतालवी दुभाषिये मित्र भी मेरे साथ हँसने लगे।

बाद में हमें पता चला कि ये शरारती लोग युवा नवफासीवादी थे। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि उनकी फेंकने की कार्रवाई में ज़रा भी नफ़रत नहीं थी। यह एक तरह का प्रदर्शन ही था। चार लोगों को तत्काल गिरफ्तार कर लिया गया था और पुलिस ने मुझसे जानना चाहा था कि क्या मैं उनके खिलाफ़ कोई आरोप लगाना चाहूंगा। 'बेशक नहीं,' मैंने कहा, 'वे अभी लड़के ही तो हैं। वे चौदह और सोलह बरस में लड़के थे, इसलिए मामला रफा दफा कर दिया गया।

पेरिस से रोम के लिए चलने से पहले लुईस अरागौन, कवि और लेसलेटर्सफ्रेंचाइज के संपादक ने फोन करके बताया कि ज्यां पाल सार्त्र और पिकासो मुझसे मिलना चाहेंगे। इसलिए मैंने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया। उन्होंने कहीं शांत जगह का सुझाव दिया इसलिए हमने होटल में मेरे कमरों में खाना खाया। जब हैरी क्रोकर, मेरे प्रचार प्रबंधक को इसके बारे में पता चला तो उसे जैसे दौरा पड़ गया, 'हम जब से स्टेट्स से चले हैं हमने जो भी अच्छा किया है, ये मुलाकात उन पर पानी फेर देगी।'

'लेकिन हैरी, ये यूरोप है, स्टेट्स नहीं और ये विभूतियां विश्व की तीन महानतम शख्सियतों में से हैं।' मैंने कहा। मैंने इस बात की सावधानी बरती थी कि हैरी या किसी को भी यह नहीं बताया था कि अमेरिका लौटने का मेरा कोई इरादा नहीं हैं। क्योंकि अभी भी मेरी सम्पत्ति वहां पर थी और मैंने उसे अभी बेचा नहीं था। हैरी ने मुझे लगभग विश्वास दिला दिया था कि अरागौन, पिकासो और सार्त्र के साथ मुलाकात पश्चिमी लोकतंत्र को उखाड़ फेंकने का षडयंत्र थी। इसके बावजूद, मज़ेदार किस्सा ये रहा कि उसकी चिंता ने उसे अपनी ऑटोग्राफ बुक में उनके हस्ताक्षर लेने से नहीं रोका। हैरी को डिनर के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। हमने उसे बताया कि हम बाद में स्टालिन के आने की उम्मीद कर रहे हैं इसलिए हम इस बारे में कोई भी प्रचार नहीं चाहते।

मैं इस शाम के बारे में बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं था। केवल अरागौन ही अंग्रेज़ी बोल पाते थे और दुभाषिए के जरिए बातचीत करना किसी दूर के निशाने पर गोली चला कर अपने लक्ष्य के इंतज़ार करने की तरह होता है।

अरागौन खूबसूरत और सुंदर चेहरे मोहरे वाले व्यक्ति थे। पिकासो पहेलीनुमा हंसोड़ दिखते थे और उन्हें आसानी से पेंटर की तुलना में एक्रोबैट या जोकर समझा जा सकता था। सार्त्र का चेहरा गोल था और हालांकि उनके चेहरे मोहरे का विश्लेषण नहीं किया जा सकता था, उनमें भीतरी सौंदर्य और संवेदनशीलता थी। सार्त्र ने अपने मन को बहुत कम खोला। उस शाम पार्टी के समाप्त हो जाने के बाद पिकासो हमें अपने लैफ्ट बैंक स्टुडियो में लेकर गये। इस स्टुडियो को वे अभी भी इस्तेमाल करते हैं। जब हम सीढ़ियां चढ़ रहे थे तो हमने उनके नीचे वाले अपार्टमेंट के दरवाजे पर एक बोर्ड देखा - 'ये पिकासो का स्टूडियो नहीं है। कृपया एक और मंज़िल चढ़ें।'

हम बेहद फटीचर, खलिहान जैसी दुछत्ती पर पहुंचे। यहां पर चैटरटन· ने भी मरने से मना कर दिया होता। एक बीम पर एक कील से एक नंगा बल्ब लटका हुआ था जिसकी रोशनी में हम एक पुराना लोहे का जंग खाया बिस्तर और टूटा फूटा एक स्टोव देख पाये। दीवार के सहारे पुराने धूल भरे कैनवास टिके रखे थे। पिकासो ने एक कैनवास उठाया - सीज़ेन जो सबसे खूबसूरत था। वे एक के बाद एक कैनवास उठाते गये। हमने कम से कम पचास मास्टर कलाकृतियां देखीं। मेरा बहुत मन हुआ कि उन्हें इस पूरे ढेर के लिए एकमुश्त राशि देने का प्रस्ताव करूं, मात्र इस कचरे छुटकारा पाने के लिये। इसी ढेर में असली खजाना छुपा हुआ था।


· ऐसा गैर कम्यूनिस्ट जो कम्यूनिस्ट पार्टी के लक्ष्यों और आम नीतियों का समर्थन करता है। अऩु

· इसका अर्थ कमोबेश वैश्वीकरण जैसा ही है।

· फ्रांसीसी लेखक। वे फ्रेंच रोमांटिक आंदोलन के प्रमुख कवि थे। उन्होंने लौरेंजकियो (1834) जैसी कॉमेडी भी लिखी।

· ब्रिटिश कवि जो विद्वानों को अपनी कविताएं 15वीं शताब्दी के भिक्षु थॉमस रावले की रचनाएं बता कर बुद्धू बनाया करता था। लिखने से गुजारा न कर पाने के कारण वह हताश हो गया और 18 बरस की आयु में उसने खुदकुशी कर ली। उसकी रचनाएं रोमांटिक कवियों के लिए प्रेरणा की स्रोत बनीं। अनुवादक

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