मुश्किल आसान : बांग्ला/बंगाली लोक-कथा

Mushkil Aasaan : Lok-Katha (Bangla/Bengal)

बहुत दिनों पहले की बात है । होबूचंद्र नामक एक राजा थे। उनके महामंत्री का नाम था गोबूचंद्र । लोग कहते होबूचंद्र राजा का गोबूचंद्र मंत्री | राजा होबूचंद्र अत्यंत आनंदित होकर अपना राज-काज चला रहे थे, लेकिन प्रजा डर-डरकर जी रही थी। मंत्री भी अत्यंत सहमे-सहमे रहते थे। बुद्धि में राजा - मंत्री कोई एक-दूसरे से कम न थे, लेकिन उनकी बुद्धि की मार से प्रजाजनों के प्राण हलक में अटके रहते थे।

दरअसल होबूचंद्र के दिमाग में जब-तब उद्भट विचार जन्म लेता और उन विचारों के समाधान का दायित्व गोबूचंद्र के कंधे पर पड़ता था । दायित्व से मुकरने का कोई उपाय नहीं था। राजा संभव - असंभव कुछ सुनना नहीं चाहते थे। किसी प्रकार की आपत्ति पर ध्यान नहीं देते थे । हुकुम तामील न होने पर होबूचंद्र जल्लाद को बुलवाकर सूली पर चढ़ाने का आदेश जारी कर देते थे। ऐसे राजा के राज्य में प्रजा के दिन किस प्रकार कट रहे होंगे, यह सहज समझा जा सकता है। नित्य नए डर की छाया में वे जी रहे थे ।

एक दिन राजा होबूचंद्र ने दरबार में आते ही मंत्री गोबूचंद्र को तलब किया। राजदरबार में हाजिर होने गोबूचंद्र ने जरा भी देर नहीं की । हाथ जोड़कर बोला, "आदेश कीजिए महाराज ! "

होबूचंद्र ने कहा, “सुनो गोबू ! आज दरबार में आकर सिंहासन पर बैठते समय देखा, मेरे तलवे में ढेर सारी धूल लगी हुई है।"

गोबूचंद्र ने अपनी जीभ को दाँतों से दबाते हुए कहा, “ महा सर्वनाश ! महाराज के पैरों में धूल ! देख रहा हूँ धूल का साहस काफी बढ़ गया है। आज पैर में बैठ गई। दो दिनों बाद...।"

“ठीक कह रहे हो तुम," होबूचंद्र ने कहा, "सिर पर चढ़ जाएगी। उन बेअदब धूलों पर रोक लगानी होगी। तुम सारे राज्य से धूलों को हटाओ। दो दिनों में यह करना होगा। अगर न कर सके तो तुम्हें सूली पर चढ़ा दूँगा।”

गोबूचंद्र ने कहा, “महाराज ! आप चिंता मत कीजिए। मैं अभी उपयुक्त व्यवस्था कर रहा हूँ ।"

गोबूचंद्र दरबार से बाहर आया और उसने राज्य के सारे झाडूदारों को तलब किया। थोड़ी ही देर में हाथ में झाडू लेकर दो हजार झाडूदार उपस्थित हो गए। गोबूचंद्र ने उन्हें आदेश दिया, “सारे राज्य में झाडू लगाकर आज ही समस्त धूलों को दूर करो। कहीं धूल का एक कण भी नहीं रहना चाहिए।"

“जो आज्ञा,” बोलकर दो हजार झाड़ूदार तुरंत अपने कार्य में जुट गए। देखते-ही-देखते पथ-घाट, बाजार-हाट, खेत-खलिहान आदि की धूलें आसमान में उठ गईं । चतुर्दिक् धूल-ही-धूल । आँखें खोलकर देखना असंभव हो गया। राज्य की प्रजा की आँखों के सामने अंधकार छा गया। चारों ओर से सिर्फ एक ही स्वर - " गया रे ! मर गया रे !"

लेकिन झाडूदारों को रोकने की हिम्मत किसी में नहीं थी। मंत्री गोबूचंद्र का हुक्म था।

इधर अपने महल के बाहर शोर सुनकर होबूचंद्र ने अपनी खिड़की को खोलकर देखा तो वे अवाक् रह गए। यह क्या कांड हो गया ? रास्ते, मैदान, घर-द्वार, पेड़-पौधे सब कहाँ चले गए? ऐसा लगता था मानो धूल के बादलों ने सबको ढक दिया हो। कुछ ही क्षणों में ढेर सारे धूलों ने खिड़की से प्रवेश कर राजा के मुँह, आँख, कानों को आच्छादित कर दिया । होबूचंद्र की आँखों के आगे अँधेरा छा गया। उनके दाँत कड़कड़ाने लगे। शीघ्र खिड़की को बंद कर अत्यंत गुस्से में पुकारा, "गोबूचंद्र !”

गोबूचंद्र दौड़ा आया एवं हाथ जोड़कर बोला, “ आदेश कीजिए प्रभु !"

जोर से गरजते हुए होबूचंद्र ने कहा, “तुम्हारे प्रभु की ऐसी-की-तैसी ! यह सब क्या शुरू किया है तुमने ? तुम क्या अंधे हो गए हो ? धूलों के गुबार में सब ढक गया है। सब झाड़ूदारों को जल्दी से रोको।"

गोबूचंद्र ने कहा, “तब धूलों का क्या करना होगा महाराज ?"

होबूचंद्र ने कहा, " धूल हटाने का उपाय तुम करो । सारे राज्य की प्रजा में इस धूल के कारण हाहाकार मचा हुआ है। "

गोबूचंद्र ने कहा, “ठीक है महाराज ! कोई दूसरा उपाय करता हूँ।"

होबूचंद्र ने कहा, “दो दिनों के अंदर धूलों को हटाओ, नहीं तो सूली पर चढ़ा दूँगा ।"

गोबूचंद्र तुरंत दौड़ा-दौड़ा झाड़ूदारों के सरदार के पास पहुँचा और आदेश दिया, “तुरंत काम बंद करवाओ।"

झाड़ूदारों ने झाडू देना तो बंद कर दिया, परंतु उड़ती धूलों को किसी भी प्रकार रोका न जा सका। गोबूचंद्र ने सिर खुजलाते हुए सोचा, 'धूलों को उड़ने से कैसे रोका जाए ?' उसकी बुद्धि बहुत तेज थी। झाडूदारों का काम बंद करवाकर उसने भिश्तियों को बुलवाया। राज्य के दो हजार भिश्ती अपनी आँखें रगड़ते हुए हाजिर हुए। गोबूचंद्र ने हुक्म दिया, “तुम लोग रास्ते में, मैदान में, खेत-खलिहान में शीघ्र जल का छिड़काव करो। जहाँ भी मिट्टी देखोगे, पानी ढालकर उसे सराबोर कर देना । महाराज के पाँवों धूल का एक कण नहीं लगना चाहिए। "

आदेश पाते ही दो हजार भिश्ती अपने काम में लग गए। मशक भर-भरकर जल लाकर हाट-बाजार, पथ-मैदान, खेत-खलिहान सर्वत्र ढालने लगे। देखते-ही-देखते नदी और तालाब के जल से सब एकाकार हो गया। लोग ठेहुने के ऊपर कपड़ों को उठाकर चलते। इस क्रम में कई लोग फिसलकर गिर पड़े एवं अपने हाथ-पैर तुड़वा बैठे। अनेक लोगों के घर ढह गए। अनेक लोग आवासहीन होने लगे । बिना वर्षा के राजभवन के मुख्य द्वार पर जल हिलोरें मारने लगा । महल के भीतर शोरगुल शुरू हो गया। सारा कांड देखकर होबूचंद्र ने क्रोध से काँपते - काँपते गर्जना की, “गोबूचंद्र!"

गोबूचंद्र तुरंत हाजिर हुआ और हाथ जोड़कर बोला, “महाराज !"

होबूचंद्र बोले, “तुम्हें मैं सूली पर चढ़ाऊँगा, फाँसी पर लटकाऊँगा । यह सब हो क्या रहा है ?"

गोबूचंद्र ने कातर आवाज में कहा, "धूल हटाने की व्यवस्था हो रही है, महाराज ! "

होबूचंद्र गुस्से से थर-थर काँपते हुए चिल्लाकर बोला, “पूरे राज्य को पानी में डुबाकर धूल हटाने की व्यवस्था कर रहे हो? मुझे मूर्ख समझा है क्या ? तुम्हें धूल - बालू दूर करने को कहा था और तुम कभी धूल का तूफान खड़ा करवाते हो और कभी राज्य में बाढ़ की स्थिति ला देते हो। यही तुम्हारी मंत्री बुद्धि है? तुम्हें मैं सूली पर चढ़ाकर रहूँगा । मेरा नाम होबूचंद्र है, याद रखना।"

गोबूचंद्र ने हथेलियों को मसलते हुए कहा, "महाराज !"

होबूचंद्र ने हुंकार भरते हुए कहा, “कोई बात नहीं सुनूँगा मैं। यह सब तुरंत बंद करो। दो दिनों के अंदर राज्य की धूलों को दूर नहीं किया, तो तुम्हें सूली पर चढ़ाऊँगा । यह मेरा अग्रिम हुक्म है, बोलकर रख रहा हूँ।"

गोबूचंद्र के माथे पर मानो वज्रपात हो गया। इतनी बुद्धि लगाकर दो बेहतरीन उपाय निकाला, दोनों व्यर्थ हो गए ? अब क्या उपाय है ? सोच-सोचकर गोबूचंद्र अपने केश और अपनी दाढ़ी नोचने लगा । एक बार उसके मन में विचार आया कि राजा के दोनों पैर काट देने से समस्या दूर हो जाएगी। इससे राजा के पैरों में धूल लगने की समस्या ही खत्म हो जाएगी। फिर सोचा समूचे राज्य में मिट्टी के ऊपर अगर चटाई बिछा दी जाए, तो समस्या खत्म हो जाएगी। लेकिन कोई भी बुद्धि उसे युक्तिसंगत नहीं लग रही थी। सबके साथ कुछ असुविधाएँ जुड़ी हुई थीं। चिंता के कारण गोबूचंद्र की दशा पागलों जैसी होती जा रही थी। उसे लग रहा था कि अंततः उसे सूली पर चढ़कर मरना ही होगा । उसकी वैसी ही पागलपन की अवस्था में उसके नौकर ने खबर दी, “ एक गँवार आदमी आपसे मिलने आया है हुजूर !"

गोबूचंद्र को क्रोध तो बहुत आया, परंतु कुछ सोचकर पूछा, “क्या चाहता है वह ?

नौकर ने कहा, "जी, ऐसा तो उसने कुछ नहीं कहा, सिर्फ यही कहा कि मंत्री महाशय से भेंट करना चाहता हूँ।"

गोबूचंद्र बोला, “बुलाओ ! देखता हूँ कौन है ? बहुत पाप न करने से कोई राजा का मंत्री नहीं होता।"

थोड़ी ही देर बाद फटी-पुरानी, पैबंद लगी कमीज पहना हुआ, बेचारा - सा दिखनेवाला एक आदमी वहाँ आया और उसने गोबूचंद्र को साष्टांग प्रणाम किया । उस व्यक्ति के हाथ में एक लंबा पके हुए चमड़े का टुकड़ा था। कंधे पर एक चिक्कट झोला ।

प्रणाम करके उठने के बाद उस आदमी ने कहा, "मुझे एक बार महाराज के पास लेकर चलिए । मैं उनके पैरों में धूल न लगने की व्यवस्था कर दूँगा।”

सुनते ही गोबूचंद्र उछलकर बोला, “सच कह रहे हो ? तब तो शीघ्र चलो मेरे साथ । "

गोबूचंद्र उस आदमी को साथ लेकर होबूचंद्र के दरबार में उपस्थित हुए। कान छूती हँसी के साथ बोले, “महाराज, समस्या का समाधान मिल गया । यह आदमी आपके पैरों में धूल लगने नहीं देगा।"

उस आदमी ने होबूचंद्र को प्रणाम करते हुए कहा, “महाराज ! आपके पैरों में धूल नहीं लगेगी, राज्य जल में नहीं डूबेगा, धूलों के गुबार से लोग काना नहीं होंगे। मेरे पास ऐसी व्यवस्था है। यदि आप आदेश दें, तो कर सकता हूँ।”

सिंहासन पर चौकस होकर बैठने के बाद होबूचंद्र ने कहा, “यदि न कर सके, तो तुम्हें सूली पर चढ़ाऊँगा।"

उस आदमी ने हँसकर कहा, “जितनी बार आपकी इच्छा हो । अब कृपया अपने दोनों पैर आगे कीजिए। "

होबूचंद्र ने अवाक् होकर दोनों पैर आगे कर दिए। उस आदमी ने जमीन पर बैठकर अपने झोले से हथौड़ी, राँपी, छुरी, काँटी, सूई-धागा आदि निकाला। उसके बाद होबूचंद्र के तलवे की माप लेकर कुछ ही देर में चमड़े की एक जोड़ी चप्पल बना दिया। दोनों चप्पलों को होबूचंद्र के पैरों में पहनाकर उस आदमी ने कहा, "महाराज, अब आप चलकर देखिए।"

होबूचंद्र तुरंत सारे दरबार में, घर के बाहर बरामदे में चहलकदमी करने लगे। बार-बार पैर उठाकर देखते। नहीं, पैर में कहीं धूल नहीं लगी है। अंदर आकर होबूचंद्र अत्यंत प्रसन्न होकर बोले, “बहुत अच्छी चीज बनाई है तुमने । तुम्हारी बुद्धि अत्यंत तीव्र है। तुम्हीं मेरा मंत्री बनने के योग्य हो।"

मंत्री - पद को हाथ से जाते देख गोबूचंद्र ने तुरंत महाराज के कान में कहा, "यह बुद्धि तो मेरे मन में थी। यह आदमी निश्चय कोई जादू जानता है । अन्यथा इसे पता कैसे चला ?"

होबूचंद्र ने आँखें तरेरकर गोबूचंद्र को देखा और कहा, “सारे राज्य में घोषणा करवा दो कि अब से सबको चमड़े की चप्पल पहननी होगी। जो मेरा आदेश नहीं मानेगा, उसे सूली पर चढ़ा दिया जाएगा। और कल से तुम चमड़े की चप्पल पहनकर राजसभा में आओगे।"

गोबूचंद्र ने कहा, " आपका आदेश शिरोधार्य महाराज ! "

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