मुर्दा के साथ ब्याह : लोककथा (उत्तराखंड)

Murda Ke Saath Byah : Lok-Katha (Uttarakhand)

श्यामा के जन्म लेते ही उसके पिता की मृत्यु हो गई थी। उसकी माँ ने ही उसे पिता का भी प्यार दिया। जब वह बड़ी हुई तो उसकी माँ को उसकी शादी की चिन्ता हुई। उसकी माँ ने एक ज्योतिषी को घर बुलाया। श्यामा की जन्म कुण्डली देखकर श्यामा से ज्योतिषी बोला, ‘‘ आज के बाद जो तीसरी एकादशी आएगी उस दिन तुम्हारी माँ की मृत्यु का योग है। इसके दो महीने के बाद तुम्हें एक मुर्दा आदमी मिलेगा जिससे तुम्हारी शादी होगी।‘‘

समय गुजरता गया। तीसरी एकादशी के दिन श्यामा की माँ मर गई। श्यामा की माँ की मृत्यु के दो माह के बाद जब श्यामा कहीं जा रही थी, उसे एक मुर्दा आदमी सड़क पर पड़ा हुआ मिला। श्यामा को ज्योतिषी की कही बात याद आ गई। वह उस मरे हुए आदमी को अपने घर ले आई। कुछ देर बाद श्यामा के दरवाजे पर किसी ने खट खट किया। श्यामा ने दरवाजा खोला तो बाहर देखा कि एक औरत खड़ी है। वह रोते हुए कहने लगी, ‘‘ मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। मैं बहुत थक गई हूँ। मुझे एक रात के लिए जगह दे दीजिए। कल सुबह मैं वापस चली जाऊंगी।‘‘

श्यामा को दया आ गई। उसने उस औरत को एक रात ठहरने के लिए जगह दे दी।

श्यामा ,मुर्दा के सिर को अपनी गोदी में रखकर शिव का नाम जपने लगी। शिव -शिव की ध्वनि शिव लोक में शिव और पार्वती के कानों में पहुंची। इस ध्वनि को सुनकर पार्वती ने शिव से कहा, ‘‘ स्वामी! आप तो भक्त वत्सल हैं। श्यामा के जीवन का कष्ट क्यों नहीं हर लेते हो। ‘‘

‘‘देवी! चलो, श्यामा के घर चलते हैं।‘‘ - शिव ने कहा।

शिव और पार्वती ने जोगी और जोगिनी का वेश धारण किया। वे दोनों श्यामा के घर भिक्षा मांगने चले गए। शिव -पार्वती की आवाज को सुनकर श्यामा ने उसके घर में रुकी उस औरत से कहा,‘‘ बहिन ! तुम थोड़ी देर तक इन्हें (उस मुर्दा शरीर को) अपनी गोदी के बल लिटाओ। मैं तब तक कुछ चावल निकाल कर बाहर भिक्षा देने जाती हूँ।‘‘

यह कहकर श्यामा भिक्षा के लिए चावल निकाल कर बाहर की ओर चली गई। उस दूसरी औरत ने उस मुर्दा शरीर को अपनी गोदी के बल लिटा लिया। जैसे ही श्यामा ने चावल शिव और पार्वती के भिक्षा पात्र में डाले, शिव-पार्वती के आशीर्वाद से उस मुर्दा शरीर में जान आ गई। उसने कहा, ‘‘ मैं एक राजकुमार हूँ। मेरे साथियों ने मुझे धोखा देकर मारने की कोशिश की थी। मैं यहाँ कैसे पहुंचा ? ‘‘

‘‘तुम्हें यहाँ तक मैं लाई हूँ । ‘‘- उस दूसरी औरत ने राजकुमार से कहा।

यह देखकर श्यामा को आश्चर्य हुआ। उसने ऊंची आवाज में कहा, ‘‘ यह औरत झूठ कह रही है। तुम्हें यहाँ तक मैं लाई हूँ।‘‘

राजकुमार को श्यामा की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने उस औरत को ही सच्चा समझा। वह उसे अपने दरबार में ले आया। उन दोनों की धूमधाम से शादी हो गई।

एक रात राजकुमार को सपना हुआ। सपने में उसने शिव और पार्वती को देखा। उन्होंने राजकुमार से कहा,‘‘ वत्स! तुम जिसे पत्नी मान बैठे हो, वह धोखेबाज औरत है। तुम्हें सड़क से अपने घर वह नहीं लाई। तुम्हें श्यामा नाम की लड़की अपने घर लाई थी।‘‘

सुबह उठते ही राजकुमार ने उस औरत को अपना देखा सपना सुनाया। सुनकर उसके होश उड़ गए। वह रोते हुए बोली, ‘‘तुम मेरे वचनों से अधिक सपनों पर विश्वास करते हो ? स्वप्न झूठे भी तो हो सकते हैं।‘‘

राजकुमार उसकी बातों में आ गया। उसने सोचा,‘‘मेरी पत्नी ठीक कहती है। सपनों से अधिक मुझे अपनी पत्नी पर विश्वास करना चाहिए।‘‘ दूसरी रात को भी राजकुमार को वही सपना हुआ। उसने सपने में शिव और पार्वती से कहा,‘‘ मेरी पत्नी कहती है कि सपने तो झूठे भी हो सकते हैं।‘‘

‘‘कल हम जोगी -जोगिनी के वेश में राज दरबार में आएंगे। तब तो तुम्हें हमारी बात पर विश्वास हो जाएगा।‘‘ - शिव-पार्वती ने राजकुमार से कहा।

राजकुमार की नींद खुल गई। उसने इस सपने के बारे में अपनी पत्नी को नहीं बताया। सुबह शिव और पार्वती उसके दरबार में जोगी और जोगिनी के रूप में आ गए। जैसे ही राजकुमार की पत्नी ने उन्हें देखा तो वह अन्दर छिप गई।

राजकुमार को उसकी वास्तविकता पता चल गई। दूसरे दिन राजकुमार, श्यामा को ढूंढ़कर अपने दरबार में लाया। राजकुमार और श्यामा का धूमधाम से विवाह हो गया। राजकुमार की पत्नी बनी उस औरत को राजकुमार ने कठोर दण्ड दिया।

(साभार : डॉ. उमेश चमोला)

  • उत्तराखंड कहानियां और लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां