मुक़ाबला (कहानी) : कमलेश्वर

Muqabala (Hindi Story) : Kamleshwar

सभी को मालूम है कि शेर बहुत सफाई पसन्द होता है। एक बार हुआ यह कि किसी बात पर शेर और जंगली सुअर में झगड़ा हो गया। जंगल के लगभग सभी जानवर शेर से भयभीत रहते थे। उन्हें मौका मिल गया। उन्होंने सोचा, जंगली सुअर भी शेर से कम ताकतवर नहीं है। उसमें बस साहस की कमी है। वह अगर हिम्मत करके शेर से भिड़ जाए तो शेर को पछाड़ा जा सकता है। एक बार शेर हार गया तो उसकी बादशाहत हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
सबने मिलकर जंगली सुअर को चढ़ा दिया।

दोनों की तू-तू-मैंमैं इस कदर बढ़ गई कि जंगली सुअर ने शेर को मुकाबले की चुनौती दे दी। सारे भयभीत जानवरों ने तालियाँ बजाकर जंगली सुअर की हौसला-अफ़जाई की।

शेर को ताज्जुब तो हुआ पर वह मुक़ाबले की चुनौती से इनकार भी नहीं कर सकता था। उसने चुनौती मंजूर कर ली।

शेर के चुनौती मंज़ूर करते ही सुअर मन-ही-मन घबराने और पछताने लगा, पर वह अपने सपोर्टर्स के सामने अपनी घबराहट ज़ाहिर भी नहीं कर सकता था।
तभी शेर दहाड़ा-तो फिर आ जा मैदान में!

जंगली सुअर की पसलियाँ काँप उठीं। उस ने मौत को टालने के लिए फौरन एक तरकीब सोची। वह शेर से बोला-मुक़ाबला हो तो शानदार तरीके से हो। जंगल के जो जानवर मौजूद नहीं हैं, उन्हें हमारे मुक़ाबले की ख़बर होनी चाहिए।

लोमड़ी ने आगे बढ़कर जंगली सुअर की हाँ में हाँ मिलाई। सुअर को थोड़ी राहत मिली। आखिर आम राय से मुकाबले की तारीख और वक्‍त एक हफ़्ते बाद तय कर दिया गया।
शेर चला गया।

जंगली सुअर ने शेर को जाते हुए देखा पर उसकी अपनी हालत पतली थी। तैश में आकर जो गलती वह कर बैठा था वह उसे भीतर ही भीतर साल रही थी। हफ्ते भर बाद उसे अपनी मौत सामने खड़ी दिखाई दे रही थी। वह सोच रहा था कि अब कदम पीछे हटाया और मुक़ाबले से मना किया तो सपोर्टर्स जिंदा नहीं छोड़ेंगे! पछताते हुए वह जाके एक गंदे नाले में लेट गया। वहाँ लेटे-लेटे उसे एक जुगत सूझी। सफ़ाईपसन्दी तो शेर की आदत थी, जुगत यह थी कि सुअर अगर काफी मैला और गन्दगी अपने बदन में लपेट ले तो सामने आते ही उसकी बदबू से शेर की हालत खराब हो जाएगी। उसकी आधी ताकत बरबाद हो जाएगी। तब शायद कोई दाँव लगा कर वह शेर को पछाड़ने में कामयाब भी हो सकता है।

इसी जुगत पर जंगली सुअर ने सातों दिन अमल किया। वह मैले और गन्दगी में लेट-लेट कर उसे अपने बदन पर सुखाता रहा। गन्दगी और मैले की परतें उसके बदन पर चढ़ती रहीं।

आख़िर मुक़ाबले का दिन और वक्‍त भी आया। जंगल के तय- शुदा मैदान में सारे जानवर इकट्ठा हो गए। लोमड़ी और कुछ गीदड़ मिलकर जंगली सुअर का हौसला बढ़ाते हुए उसे मैदान में लाए।

शेर अकेला आया। सामने आकर उसने जंगली सुअर को पहला हमला करने के लिए ललकारा। डरते-डरते सुअर ने दौड़ कर हमले की कोशिश की। उसकी गन्दगी की बदबू से बेहाल होते हुए शेर परेशान हुआ, उसने कुछ सोचा और ऐलान किया-हाज़रीन!

मैं जंगली सुअर की ताकत से तो लड़ सकता हूँ, इसकी गन्दगी और बदबू से नहीं...इससे कहिए साफ़-सुथरा होकर आए, मुक़ाबला उसी दिन हो जाएगा!

(‘महफ़िल’ से)

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