मुफ्त की चाकरी : नेपाली लोक-कथा

Muft Ki Chaakari : Nepali Lok-Katha

गोटिया बहुत ही नटखट लड़का था । उसका दिमाग हरदम शैतानियों में ही लगा रहता था । सब लोग गोटिया की शरारतों से तंग आ चुके थे । गोटिया के मामा चाहते थे कि वह उनके कामों में हाथ बंटाए, परंतु गोटिया का न तो काम में मन लगता था, न ही वह कोई काम तसल्ली से करता था ।

गोटिया के मां-बाप का बचपन में ही देहांत हो गया था । अत: उसके लिए जो कुछ भी परिवार के नाम पर था, वह उसके मामा-मामी थे । गोटिया का एक बड़ा भाई भी था, जो दिन-रात मेहनत करके मामा-मामी की सेवा करता था ।

एक दिन गोटिया के मामा ने उसे डांटते हुए कहा - "तू न तो काम का न धाम का, दिन भर मुफ्त की रोटियां तोड़ता रहता है । जब खुद कमाएगा तो पता लगेगा कि मेहनत की कमाई क्या होती है ।" गोटिया को मामा की बात दिल में चुभ गई । उसने सोचा कि यदि मामा के साथ काम करूंगा भी तो बदले में वह कुछ नहीं देंगे, इससे बेहतर है कि मैं कहीं और काम करूं ताकि कमाई भी हो जिसमें से कुछ पैसा वह मामा-मामी के हाथ पर रख सके । यही सोचकर एक दिन गोटिया चुपचाप घर से चला गया ।

चलते-चलते गोटिया पास के गांव में पहुंच गया । वहां एक सेठ रहते थे । नाम था - मोहरचन्द । बड़े धनी सेठ थे, पर थे बड़े कंजूस । लोगो से मुफ्त की चाकरी कराने में उन्हें बड़ा आनंद आता था । गोटिया सेठ मोहरचन्द के यहां पहुंचा और उसने काम देने की गुहार की ।
सेठ ने कहा - "मैं तुम्हें नौकरी पर रख सकता हूं, पर मेरी कुछ शर्तें हैं ।"

गोटिया अपने को बहुत चालाक समझता था, वह बोला - "सेठ जी, आप अपनी शर्तें बताइए । मैं हर हाल में काम करके पैसा कमाना चाहता हूं । बस मुझे तनख्वाह अच्छी चाहिए ।"

सेठ ने कहा - "तनख्वाह की फिक्र तुम मत करो । मेरे पास पैसे की कोई कमी नहीं है । मैं तुम्हें पांच सोने की मोहरे प्रतिमाह दूंगा । पर मेरी शर्त यह है कि तुम हरदम मेरी इच्छानुसार काम करोगे । यह हमेशा ध्यान रखना कि मुझे किसी बात पर क्रोध न आए । यदि मुझे महीने में एक बार भी क्रोध आ गया तो मैं तुम्हें उस माह की तनख्वाह नहीं दूंगा ।"

गोटिया हंसते हुए बोला - "यह कौन सी बड़ी बात है सेठ जी । मैं इतनी मेहनत और लगन से काम करूंगा कि आपको क्रोध का मौका ही नहीं दूंगा । लेकिन सेठ जी, आपसे एक प्रार्थना है कि आप मेरे रहने व भोजन का प्रबंध कर दें ताकि मैं आपकी खूब सेवा कर सकूं ।"
सेठ ने बहुत प्यार से कहा - "गोटिया, मैं तुम्हारे रहने का इंतजाम कर दूंगा । पर याद रखना कि दोनों वक्त तुम्हें एक पत्ता भर भोजन ही मिला करेगा ।"

गोटिया ने बाहर की दुनिया देखी न थी और न कहीं नौकरी की थी । वह सेठ की चालाकी भांप नहीं सका और बोला - "सेठ जी, मैं थोड़ा-सा ही भोजन खाता हूं, आज से ही काम पर लग जाता हूं ।"

गोटिया सेठ मोहरचन्द के यहां खूब मन लगाकर काम करने लगा । अत: सेठ का क्रोध करने का सवाल ही न था । वह दिन-रात काम में लगा रहता, ताकि कहीं कोई काम गलती से छूट न जाए । लेकिन गोटिया परेशान था कि पत्ते पर बहुत थोड़ा-सा ही भोजन आता था ।

सेठ के घर के बाहर एक शहतूत का पेड़ था । गोटिया रोज पेड़ पर चढ़ कर खूब बड़ा पत्ता ढूंढ़ने की कोशिश करता । परंतु पत्ते पर थोड़े से ही चावल आते थे, जिससे गोटिया का पेट नहीं भरता था । उसे हरदम यूं लगता था कि उसे भूख लग रही है । फिर भी गोटिया खुश था कि उसे महीने के अंत में पांच सोने की मोहरें मिलेंगी । वह सोचता था कि कुछ माह पश्चात जब वह ढेर सारी मोहरें इकट्ठी कर लेगा, तब वह अपने गांव जाकर मामा को देगा तो मामा खुश हो जाएगा ।
गोटिया को काम करते 20 दिन बीत चुके थे । वह खुश था कि जल्दी ही एक महीना पूरा हो जाएगा तब उसे सोने की मोहरें मिलेंगी ।
अगले दिन सेठ जी ने सुबह ही गोटिया को अपने पास बुलाया और कहा - "आज तुम खेत पर चले जाओ और सारे खेतों में पानी लगाकर आओ ।"

गोटिया ने कहा - "जो आज्ञा सेठ जी ।" और खेतों की तरफ चल दिया । यूं तो गोटिया ने कभी मेहनत की नहीं थी, परंतु जब उसे धन कमाने की धुन सवार थी तो खूब काम में लगा रहता था । वह खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि सेठ के खेत मीलों दूर तक फैले हैं । यहां तो पूरे खेत में पानी लगाने में एक हफ्ता भी लग सकता है । लेकिन वह घबराया नहीं । कुएं से पानी खींच कर मेड़ों के सहारे पानी खेतों में पहुंचाने लगा ।

सारा दिन लगे रहने के बावजूद मुश्किल से एक चौथाई खेत में ही पानी लग पाया, तभी शाम हो गई । गोटिया बेचारा थक कर सुस्ताने लगा, तभी उसे याद आया कि देर से वापस पहुंचा तो भोजन भी नहीं मिलेगा । वह तुरंत घर चल दिया । वहां पहुंचते ही सेठ मोहरचन्द ने पूछा - "क्या पुरे खेत में पानी लगा कर आए हो ?"
"नहीं सेठ जी, अभी तो चार दिन लगेंगे पुरे खेत में पानी देने के लिए ।" गोटिया ने शांति से जवाब दिया ।
सेठ से जोर से कहा - "फिर अभी वापस क्यों आ गए ? मैंने तुम्हें पुरे खेत में पानी देने को कहा था ।"
गोटिया धीरे से बोला - "सेठ जी, अंधेरा हो गया था, सूरज डूब गया था ।"
"तो... ? सूरज डूब गया तो क्या, चांद की रोशनी खेतों में नहीं फैली है ?" सेठ ने क्रोधित होकर कहा ।
गोटिया को सेठ के क्रोधित होने का ही डर था, वही हुआ । सेठ क्रोध में बोला - "मुझे नहीं पता, जाओ खेतों में पानी दो ।"

गोटिया भूखा ही घर से निकल गया । वह थका हुआ था । खेत के किनारे सो गया । आधी रात बीतने पर उसकी आंख खुली तो वह खेत में पानी देने लगा । पुरे दिन काम में लगा रहा । रात्रि होने लगी तब तक खेत में जैसे-तैसे पानी लगा दिया, फिर वह थका-हारा सेठ के घर लौट आया । सेठ ने उससे कुछ नहीं पूछा । गोटिया भोजन खाकर सो गया ।

धीरे-धीरे एक महीना बीत गया । गोटिया जानता था कि उसे वेतन नहीं मिलेगा । वाकई सेठ ने उसे उस माह वेतन नहीं दिया । अगले माह वह हर रोज ध्यानपूर्वक कार्य करता रहा, परंतु माह के अंत में सेठ किसी बहाने क्रोधित हो गया और उसे उस माह फिर तनख्वाह नहीं मिली ।

इस प्रकार छह माह बीत गए परंतु गोटिया को एक बार भी वेतन नहीं मिला । गोटिया भोजन कम मिलने से दिन पर दिन दुबला होता जा रहा था, साथ ही साथ वेतन न मिलने से दुखी भी था ।"

गोटिया का भाई रामफल गोटिया के चले जाने से बहुत दुखी था । वह उसे खोजते-खोजते सेठ मोहरचन्द के घर तक पहुंच गया । वहां अपने नटखट भाई की हालत देखकर वह बहुत दुखी हुआ । उसने गोटिया को समझाया कि किसी न किसी बहाने वह नौकरी छोड़ दे । अगले दिन गोटिया सुबह देर तक सोता रहा । दोपहर खाने के वक्त भोजन लेने पहुंच गया । सेठ को पता लगा कि गोटिया ने आज दिन भर काम नहीं किया है । अत: सेठ ने गोटिया को खूब डांटा, गोटिया रोने लगा । सेठ ने कहा - "ठीक है, तुम्हें अपने घर जाना है तो जा सकते हो, मुझे लगता है कि तुम्हें अपने घर की याद आ रही है, परंतु दो दिन में जरूर लौट आना ।"

गोटिया का मन खुश करने के लिए सेठ ने उसके हाथ पर एक चांदी का सिक्का रख दिया ताकि धन के लालच में गोटिया वापस आ जाए । सेठ मोहरचन्द को मुफ्त में नौकर चले जाने का डर था ।

अगले दिन रामफल सेठ के पास काम मांगने पहुंचा तो सेठ मन ही मन बहुत खुश हुआ कि चलो एक नौकर गया तो दूसरा लड़का नौकरी मांगने आ गया । उसने कहा - "रामफल, हम तुम्हें नौकरी पर रख सकते हैं पर हमारी कुछ शर्ते हैं ।"
रामफल बोला - "सेठ जी, आप अपनी शर्तें बताइए । आप यह भी बताइए कि आप मुझे कितना वेतन देंगे ।"

सेठ जानता था कि वह अपने नौकरों से मुफ्त में काम कराता था अत: बहुत अच्छी तनख्वाह का लालच देता था ताकि नौकर चुपचाप काम करता रहे । सेठ बोला - "देखो, मैं तुम्हें हर माह दस सोने की मोहरें दूंगा, पर मेरी शर्त यह है कि पूरे माह मुझे तुम पर क्रोध नहीं आना चाहिए । मुझे उम्मीद है कि तुम इतना अच्छा काम करोगे कि मुझे क्रोधित न होना पड़े । यदि एक बार भी मुझे क्रोध आ गया तो तुम्हें उस माह का वेतन नहीं मिलेगा ।"

रामफल ने भोलेपन से कहा - "सेठ जी, मुझे क्या पता कि आपको किस बात पर क्रोध आता है । हर आदमी अपने क्रोध पर काबू रख सकता है, किसी दूसरे के क्रोध पर नहीं ।"

सेठ बहुत अक्लमंद था, वह तुरंत बात को संभालते हुए बोला - "ठीक है, यदि तुम्हें किसी बात पर किसी माह क्रोध आया तो तुम्हें उस माह का वेतन नहीं मिलेगा और यदि मुझे क्रोध आ गया तो 10 कि जगह 15 सोने की मोहरें वेतन में मिलेंगी ।"
रामफल बोला - "यह मुझे मंजूर है परंतु मैं अपने भोजन की बात भी तय कर लूं कि मैं दोनों वक्त भोजन आपके यहां ही खाऊंगा ।"
सेठ ने तुरंत स्वीकृति देते हुए कहा - "ठीक है, तुम्हें एक वक्त में एक पत्ता भर भोजन मिलेगा ।"

रामफल तुरंत तैयार हो गया और बोला - "मैं चाहता हूं कि यह भी तय हो जाए कि आप मुझे नौकरी से निकालेंगे नहीं ।" सेठ को रामफल की बात सुनकर कुछ आशंका हुई तुरंत उसे अपनी चतुराई पर पूर्ण भरोसा था । सेठ बोला - "यदि मैं तुम्हें एक वर्ष से पहले नौकरी से निकालूंगा तो 100 मोहरें तुम्हें हरजाने के तौर पर दूंगा, परंतु यदि तुमने बीच में नौकरी छोड़ी तो तुम जुर्माने के तौर पर 50 मोहरें दोगे ।"

यह सुनकर रामफल भीतर ही भीतर थोड़ा डर गया कि सेठ ने मुझ पर जुर्म किया तो मुझे नौकरी छोड़नी पड़ेगी तब मैं जुर्माना कहां से भरूंगा । परंतु फिर रामफल ने सारी बात ईश्वर पर छोड़कर नौकरी स्वीकार कर ली ।

अगले ही दिन रामफल काम पर लग गया और ठीक प्रकार काम करने लगा । जब भोजन का वक्त आया तो रामफल पत्ता लेकर रसोइए के पास पहुंचा । रसोइया पत्ते का आकार देखकर विस्मित था । रामफल बड़ा-सा केले का पत्ता लाया था, जिस पर पूरे घर के लिए बना भोजन समा गया । परंतु शर्त के अनुसार रसोइए को पत्ता भरना पड़ा । रामफल सारा भोजन लेकर पास में बनी अपनी झोंपड़ी में आ गया जहां गोटिया इंतजार कर रहा था । दोनों भाइयों ने पेट भर भोजन किया बाकी भोजन कुत्तों व कौओं को डाल दिया ।

सेठ को पता लगा तो उसे रामफल की चालाकी पर बड़ा क्रोध आया, परंतु वह रामफल के आगे क्रोध प्रकट नहीं कर सकता था । रामफल ठीक प्रकार पूरे माह काम करता रहा । माह के अंत में सेठ ने रामफल को अपने गोदाम भेजा और कहा कि सारा अनाज बोरों में भर दो । शाम तक रामफल आधे बोरों में अनाज भर कर सेठ के यहां वापस आ गया । सेठ ने सोचा कि किसी तरह इसे क्रोध दिलाया जाए ताकि उसे रामफल का वेतन न देना पड़े । सेठ प्यार से बोला - "तुम वापस क्यों आ गए, जब सारा अनाज थैलों में नहीं भरा था ?"
रामफल ने शांति से कहा, "क्योंकि मैं थक गया था, अब मैं कल काम करूंगा ।"
सेठ को अचानक क्रोध आ गया और बोला - "कल-कल क्या करते हो, अभी जाओ और सारा अनाज भर कर आओ ।"
रामफल जोर से हंसा और बोला - "सेठ जी, अब तो मैं कल ही काम करूंगा । और हां, कल आपको मुझे तनख्वाह में 15 मोहरें देनी होंगी ।"
सेठ अपने क्रोध की उलटी शर्त भूल चुका था, क्रोध में चिल्लाया - "एक तो काम नहीं करते ऊपर से हंसते हो । मैं तुम्हें 15 मोहरें क्यों दूंगा ?"
"सेठ जी, क्योंकि आपको क्रोध आ रहा है ।"रामफल बोला ।

सेठ ने अचानक अपना रुख बदला और नकली हंसी के अन्दाज में बोला - "ओह... अच्छा... ठीक है ।" फिर अगले दिन सेठ ने रामफल को तनख्वाह की 15 मोहरें दे दीं, लेकिन मन ही मन निश्चय किया कि कम से कम 6 माह तक उसे कोई वेतन नहीं दूंगा । फिर बेचारा खुद ही परेशान होकर नौकरी छोड़ देगा और जुर्माने के तौर पर 50 मोहरें मुझे देगा ।

लेकिन रामफल भी कम चालाक न था । वह तनख्वाह लेकर अगले दिन सुबह काम पर आ गया । सेठ ने उसे गोदाम पर जाने को कहा और अपने काम में लग गया । थोड़ी देर बाद सेठ जब उधर आया तो देखा कि रामफल सर्दी की धूप सेंक रहा है, अभी तक गोदाम नहीं गया । सेठ को रामफल पर बहुत क्रोध आया, लेकिन वह उससे कुछ कह नहीं सकता था, अत: प्यार से उसे गोदाम का काम करने को कहकर कर चला गया ।

अब रामफल अपनी मर्जी से कभी काम करता, कभी नहीं । एक सप्ताह बीत गया, परंतु रामफल ठीक प्रकार से काम नहीं कर रहा था । वह सेठ के अन्य नौकरों को भी बातों में उलझाए रखता । सेठ मन ही मन क्रोध में उबल रहा था । एक तरफ तो वह केले के पत्ते पर ढेरों भोजन ले लेता था, दूसरी तरफ ठीक प्रकार से काम भी नहीं करता था ।

एक दिन सेठानी बोली - "यह रामफल हमारे सारे नौकरों को बिगाड़ रहा है । एक दिन यह हमारा जीना मुश्किल कर देगा, आप इसे निकाल क्यों नहीं देते ?"

सेठ ने सेठानी को कारण बताया तो सेठानी बोली - "आप इतने वर्षों से इतने सारे नौकरों से मुफ्त काम कराए आए हैं । लगता है यह नौकर आपको सबक सिखाकर रहेगा, फिर आप किसी से मुफ्त में काम नहीं कराएंगे । आप इसकी आज ही छुट्टी कर दो, वरना सभी नौकर बगावत पर उतर आए तो सबसे निपटना मुश्किल होगा ।"

अगले दिन सेठ ने रामफल को बुलाने भेजा, परंतु रामफल ने कहला भेजा कि वह थोड़ी देर में आएगा । दोपहर में रामफल आया और आकर भोजन खाने बैठ गया । सेठ जोर से चीखा - "रामफल, इधर आओ, मैं आज तुम्हें नौकरी से निकालता हूं ।"

रामफल भोजन खाकर हंसता हुआ आया और बोला - "सेठ जी, मेरा हरजाना दे दीजिए, मैं चला जाऊंगा । सेठ इसके लिए पहले ही तैयार था । उसने तुरंत हरजाने की सौ मोहरें रामफल को दीं और घर से निकलने का आदेश दिया ।"

रामफल रकम लेकर हंसते हुए चल दिया । सेठ मोहरचन्द को क्रोध बहुत आ रहा था, परंतु तसल्ली थी कि ऐसे नौकर से छुटकारा मिल गया । उसने बाहर झांक कर देखा, रामफल एक छोटे लड़के का हाथ पकड़े अपनी पोटली लिए जा रहा था । सेठ ने ध्यान से पहचानने का प्रयास किया तो उसे समझने में देर न लगी कि वह लड़का गोटिया था । अब सेठ ने कसम खाई कि किसी से मुफ्त में चाकरी नहीं कराएगा ।

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