ऐमपिपिडी और मोटलोपी पेड़ : बोत्सवाना लोक-कथा
Mpipidi Aur Motlopi Ped : Botswana Folk Tale
एक बार की बात है कि एक लड़का था जिसका नाम था ऐमपिपिडी। वह उस देश के दूर के एक उस छोटे से गाँव में रहता था जहाँ मोटलोपी के पेड़ उगते थे और रात को भेड़िये चिल्लाते रहते थे।
ऐमपिपिडी अपने माता पिता के साथ रहता था। हर सुबह वह उठ कर अपना खाना ले कर अपने भेड़ों के झुंड को चराने के लिये जंगलों में दूर तक ले जाता। वहाँ जा कर वह सबसे ऊँचे मोटलोपी पेड़ पर चढ़ जाता और वहीं से अपने जानवरों को देखता रहता।
उसको वहाँ बैठना बहुत अच्छा लगता था। वहाँ से वह दूर के नीले नीले पहाड़ देखता और वह इतना ऊँचा होता कि चील उसका भाई होता और बादल उसकी बहिनें। उसकी बहिनें? पर बहिनों का खयाल ही उसके मन को दुखी कर देता क्योंकि उसके कोई बहिन नहीं थी।
जब कभी उसकी एक गाय भी इधर उधर हो जाती तो वह हल्के से सीटी बजा देता। उसकी सीटी से बड़ी धीमी और मीठी सी धुन निकलती जैसे हनी बर्ड किसी बैजर को शहद के छत्ते की तरफ बुला रही हो। और तब वह गाता —
स्वर्र स्वर्र ओ मेरी कत्थई वाली इधर उधर मत जाना
स्वर्र स्वर्र नहीं तो तुमको गोगोमोडुमो खा जायेगा स्वर्र स्वर्र
यह सुन कर इधर उधर जाती वह गाय अपना सिर उठाती और चरती हुई ऐमपिपिडी के पास मोटलोपी के पेड़ की तरफ आ जाती। यह तरकीब ऐमपिपिडी को पेड़ के ऊपर नीचे चढ़ने उतरने और जानवरों को इधर उधर देखने से बचाती।
एक दिन ऐमपिपिडी अपने जानवरों को जंगल में और भी ज़्यादा दूर ले गया। वहाँ वह अपने चढ़ने के लिये मोटलोपी का एक ऊँचा सा पेड़ ढूँढ रहा था कि उसने एक हल्की सी आवाज सुनी – “गीं गीं। ”
ऐमपिपिडी रुक गया और उसने फिर से उसे सुनने की कोशिश की। वह आवाज फिर से आयी – “गीं गीं। ”
वह मोटलोपी की घनी शाखाओं के नीचे से हो कर यह देखने गया कि वह आवाज कहाँ से आ रही थी तो उसने देखा कि एक नयी बुनी हुई टोकरी में जानवरों की मुलायम खाल के ऊपर एक बच्चा लेटा हुआ था।
वह एक छोटी लड़की थी। उसको देख कर उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा। नहीं नहीं, वह उसको घर नहीं ले जा सकता। शायद वे उसकी कहानी के ऊपर विश्वास ही न करें और या फिर वे उसे किसी और को दे दें।
इसलिये उसने बच्ची को फिर से उसी टोकरी में रख दिया और उसने दूसरा कोई मोटलोपी पेड़ दूर की तरफ देखना शुरू किया जिस के नीचे वह उसको छिपा सके। एक मोटलोपी के पेड़ के नीचे उसे उस बच्ची को लिटाने की जगह मिल गयी।
फिर उसने अपने खाने में से दूध निकाला और उस बच्ची को पिलाया। जल्दी ही बच्ची खुश हो कर सो गयी। ऐमपिपिडी ने काँटों वाले पेड़ों से कुछ शाखें तोड़ीं और उस बच्ची को जंगली जानवरों से बचाने के लिये उसके सोने की जगह के चारों तरफ लगा दीं।
उस शाम उसने उस बच्ची के बारे में किसी को नहीं बताया, बस वह बच्ची उसका अपना भेद ही रही।
उस दिन के बाद हर सुबह ऐमपिपिडी उस बच्ची के लिये बकरी का दूध ले कर जाता और अपने लिये खाना। हर सुबह वह अपने जानवरों को गहरे जंगल में चरने के लिये ले जाता और वहाँ जा कर वह बड़ी सावधानी से उस मोटलोपी के पेड़ के पास जाता और बड़ी धीमे से गाता।
वह गाना सुन कर एक छोटी सी आवाज जवाब देती — “गीं गीं। ” और इस तरह ऐमपिपिडी जान जाता कि बच्ची अभी भी ज़िन्दा है।
वह उसके चारों तरफ लगायी हुई बाड़ की एक डंडी हटाता, उसको गोद में उठाता और उसे दूध पिलाता। इस सारे समय वह गाता रहता।
जब बच्ची का पेट भर जाता तो वह उसको सावधानी से मोटलोपी पेड़ के नीचे उसी टोकरी में लिटा देता और उसे खाल ओढ़ा देता। फिर वह उस बाड़ की डंडी को उसी जगह रख देता जहाँ से उसने उसे हटाया था।
यह सब तब तक चलता रहा जब तक कि उसकी माँ को यह एहसास नहीं हुआ कि ऐमपिपिडी उससे कुछ छिपा रहा है।
एक दिन उसने एम्पिपिडी के पिता से कहा — “तुम इस लड़के के बारे में क्या सोचते हो? यह रोज इस बात पर क्यों अड़ा रहता है कि वही जानवरों को चराने के लिये ले जायेगा चाहे मौसम कितना ही खराब क्यों न हो। ”
पिता ने इसमें और जोड़ा — “और वह अपने भाई को भी अपने साथ क्यों नहीं ले जाना चाहता? अगर वह उसको अभी से अपने साथ ले कर नहीं जायेगा तो वह जानवर चराना कैसे सीखेगा? मैं कल उसके पीछे पीछे जा कर देखता हूँ। ”
अगली सुबह जब ऐमपिपिडी जानवर चराने के लिये गया तो उसका पिता भी उसके पीछे पीछे हो लिया। वह उससे काफी दूर रहा ताकि वह उसको दिखायी न दे सके पर वह उसके इतना पास भी था कि वह अपने बेटे की सीटी बजाने की और गाने की आवाज सुन सके। ”
ऐमपिपिडी सीटी बजाते हुए जानवरों को चराने की जगह ले गया।
गहरे जंगल में जा कर उसकी सीटी की आवाज रुक गयी। उसका पिता थोड़ा और तेज़ी से चला तो उसने देखा कि ऐमपिपिडी कितनी सावधानी से उस ऊँचे मोटलोपी पेड़ के पास पहुँचा।
जब वह उस पेड़ के पास पहुँचा तो उसके पिता ने उसको धीमे धीमे गाते हुए सुना और फिर उसके बाद सुनी एक छोटी सी आवाज — “गीं गीं। ”
उसकी आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गयीं। क्या यह एक बच्चे की आवाज नहीं थी?
उसने ऐमपिपिडी को वहीं लगे बाड़े की एक शाख हटाते देखा, फिर उसने उसको एक बच्चे को गोद में उठाते देखा और फिर उसको उस बच्चे को दूध पिलाते देखा।
जब बच्चे ने दूध पी लिया तो ऐमपिपिडी ने उसको उसी पेड़ के नीचे उसी टोकरी में लिटा दिया और उसे खाल ओढ़ा दी। फिर उसने बाड़ की वह शाख भी वहीं वापस रख दी।
तो यह था उसके बेटे का भेद। उसका पिता तुरन्त ही घर वापस लौट गया और अपनी पत्नी को जा कर वह सब बताया जो कुछ उसने जंगल में देखा था।
अगली सुबह जब अँधेरा ही था तो ऐमपिपिडी का पिता उसकी माँ को ले कर उस मोटलोपी पेड़ के पास गया जहाँ वह बच्ची थी और गाँव में सब लोगों के जागने से पहले ही वे दोनों उस बच्ची को ले कर घर आ गये।
उस दिन भी रोज की तरह ऐमपिपिडी ने अपना खाना लिया, बकरी का दूध लिया और जानवरों को ले कर उनको चराने के लिये जंगल की तरफ चल दिया।
उस दिन भी वह बड़ी सावधानी से उस मोटलोपी पेड़ के पास पहुँचा। जब वह उसके पास पहुँच गया तो उसने धीमी आवाज में अपना वही गीत गाया जो वह रोज गाता था।
फिर उसने सुनने की कोशिश की पर उसके जवाब में कोई छोटी आवाज नहीं आयी। उसने अपनी धुन फिर से गायी पर फिर भी कोई जवाब नहीं आया।
उसने काँपती आवाज में अपनी धुन बार बार दोहरायी पर उस पेड़ से कोई आवाज नहीं आयी। सो ऐमपिपिडी ने शाख हटायी तो देखा तो वह बच्ची तो वहाँ से जा चुकी थी। वह वहीं उस मोटलोपी के पेड़ के नीचे लेट गया और रोने लगा।
शाम को वह अपने जानवरों को ले कर घर लौटा। जब वह अपनी झोंपड़ी में घुसा तो जा कर अन्दर बैठ गया। खुली आग का धुँआ उसकी आँखों में लग रहा था। उसकी आँखों में आँसू आ गये और उसका दिल डर और दुख से भारी हो गया।
ऐमपिपिडी की माँ ने उससे पूछा — “बेटे, तुम क्यों रो रहे हो?”
ऐमपिपिडी बोला कि उसकी आँखों में धुँआ लग रहा था। पर जब उसकी माँ ने उसको ताजा हवा में बाहर जाने के लिये कहा तो उसने अपना सिर ना में हिला दिया।
माँ बोली — “ऐमपिपिडी, हमें मालूम है कि तुम उस बच्ची के लिये रो रहे हो जिसको तुमने मोटलोपी पेड़ के नीचे छिपा रखा था। ”
यह सुन कर ऐमपिपिडी तो हक्का बक्का रह गया और उसने रोना बन्द कर दिया।
उसकी माँ बोली — “आओ मेरे साथ आओ। ”
उसने ऐमपिपिडी के पिता को भी बुलाया। फिर वे सब अपनी सोने वाली झोंपड़ी में गये।
दरवाजे पर ऐमपिपिडी ने धीमे से वही गीत गाया जो वह मोटलोपी के पेड़ के पास गाता था और फिर उन सबने एक छोटी से आवाज सुनी — “गीं गीं। ”
ऐमपिपिडी ने पहले अपनी माँ की तरफ देखा और फिर अपने पिता की तरफ।
उसका पिता बोला — “हाँ ऐमपिपिडी, हम जानते हैं कि यही तुम्हारा भेद था। क्या यही वजह थी जिसकी वजह से तुम अपने भाई को जानवरों के चराने के लिये नहीं ले जा रहे थे?”
ऐमपिपिडी ने कोई जवाब नहीं दिया। उसने दूध की बोतल ली और रोज की तरह बच्ची को दूध पिलाने बैठ गया। उसकी माँ ने देखा कि ऐमपिपिडी उस बच्ची को कितना प्यार करता था।
वह बोली — “अपनी छोटी बहिन कैनील्वे को मुझे दो। ” ऐमपिपिडी ने बच्ची को अपनी माँ को दे दिया। वह अपनी छोटी बहिन को अपनी माँ की बाँहों में देख कर बहुत खुश हो गया।
कैनील्वे बड़ी हो कर बहुत ही सुन्दर लड़की बन गयी और एक प्यार करने वाली बहिन भी। उसका नाम हर एक को याद दिलाता था कि वह कहीं से आयी थी – कैनील्वे यानी “जो दी गयी हो। ”
(साभार : सुषमा गुप्ता)